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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
मरकुस

मरकुस के मुताबिक खुशखबरी

1 परमेश्‍वर के बेटे यीशु मसीह के बारे में खुशखबरी यूँ शुरू होती है: 2 भविष्यवक्‍ता यशायाह की किताब में लिखा है: “(देख! मैं अपना दूत तेरे आगे-आगे भेज रहा हूँ, जो तेरे लिए रास्ता तैयार करेगा।)+ 3 सुनो! वीराने में कोई पुकार रहा है: ‘यहोवा* का रास्ता तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो।’”+ 4 इसी के मुताबिक, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला वीरान इलाकों में आया। वह प्रचार करने लगा कि लोगों को बपतिस्मा लेना होगा, जो इस बात की निशानी ठहरेगा कि उन्होंने अपने पापों का पश्‍चाताप किया है और वे माफी पाना चाहते हैं।+ 5 इसलिए पूरे यहूदिया प्रदेश और यरूशलेम के सब लोग यूहन्‍ना के पास जाने लगे। वे अपने पापों को खुलकर मान लेते थे और वह उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा देता* था।+ 6 यूहन्‍ना ऊँट के बालों से बने कपड़े पहनता था और कमर पर चमड़े का पट्टा बाँधा करता था।+ वह टिड्डियाँ और जंगली शहद खाता था।+ 7 वह यह प्रचार करता था: “मेरे बाद जो आनेवाला है वह मुझसे कहीं शक्‍तिशाली है। मैं इस लायक भी नहीं कि झुककर उसकी जूतियों के फीते खोलूँ।+ 8 मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, मगर वह तुम्हें पवित्र शक्‍ति से बपतिस्मा देगा।”+

9 उन्हीं दिनों यीशु, गलील प्रदेश के नासरत शहर से यूहन्‍ना के पास आया और उसने यरदन में यूहन्‍ना से बपतिस्मा लिया।+ 10 जैसे ही यीशु पानी में से ऊपर आया, उसने आकाश को खुलते और पवित्र शक्‍ति को एक कबूतर के रूप में अपने ऊपर उतरते देखा।+ 11 फिर स्वर्ग से आवाज़ सुनायी दी: “तू मेरा प्यारा बेटा है, मैंने तुझे मंज़ूर किया है।”+

12 इसके तुरंत बाद पवित्र शक्‍ति ने यीशु को वीराने में जाने के लिए उभारा। 13 यीशु 40 दिन तक वीराने में ही रहा, जहाँ शैतान ने उसे फुसलाने की कोशिश की।+ वह जंगली जानवरों के बीच रहा और स्वर्गदूतों ने उसकी सेवा की।+

14 फिर यूहन्‍ना के गिरफ्तार होने के बाद, यीशु गलील गया+ और परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनाने लगा।+ 15 उसने यह प्रचार किया, “तय किया गया वक्‍त आ चुका है और परमेश्‍वर का राज पास आ गया है। इसलिए हे लोगो, पश्‍चाताप करो+ और खुशखबरी पर विश्‍वास करो।”

16 फिर यीशु ने गलील झील के किनारे चलते-चलते शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को देखा।+ वे दोनों मछुवारे थे और झील में अपने जाल डाल रहे थे।+ 17 यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे हो लो और जिस तरह तुम मछलियाँ पकड़ते हो, मैं तुम्हें इंसानों को पकड़नेवाले बनाऊँगा।”+ 18 तब वे फौरन अपने जाल छोड़कर उसके पीछे चल दिए।+ 19 थोड़ी दूर चलने पर यीशु ने याकूब और उसके भाई यूहन्‍ना को देखा। ये दोनों जब्दी के बेटे थे और अपनी नाव में जाल ठीक कर रहे थे।+ 20 उसने बिना देर किए उन्हें बुलाया। तब वे अपने पिता जब्दी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़कर यीशु के पीछे चल दिए। 21 इसके बाद वे कफरनहूम गए।

जैसे ही सब्त का दिन शुरू हुआ, वह वहाँ के सभा-घर में गया और लोगों को सिखाने लगा।+ 22 लोग उसके सिखाने का तरीका देखकर दंग रह गए, क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार रखनेवाले की तरह सिखा रहा था।+ 23 वहीं सभा-घर में एक ऐसा आदमी था जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था। उस आदमी ने चिल्लाकर कहा, 24 “हे यीशु नासरी, हमें तुझसे क्या लेना-देना?+ क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं जानता हूँ तू असल में कौन है, तू परमेश्‍वर का पवित्र जन है!”+ 25 मगर यीशु ने उसे फटकारा, “चुप हो जा और उसमें से बाहर निकल जा!” 26 तब उस दुष्ट स्वर्गदूत ने उस आदमी को मरोड़ा और फिर ज़ोर से चीखता हुआ उसमें से बाहर निकल गया। 27 यह देखकर सब लोग हैरान रह गए और आपस में कहने लगे, “यह क्या है? यह तो कोई नयी शिक्षा है! वह दुष्ट स्वर्गदूतों को भी अधिकार के साथ आज्ञा देता है और वे उसकी मानते हैं।” 28 और यीशु की चर्चा बड़ी तेज़ी से गलील के पूरे इलाके में फैल गयी।

29 तब वे सभा-घर से निकलकर शमौन और अन्द्रियास के घर गए।+ याकूब और यूहन्‍ना भी उनके साथ थे। 30 शमौन की सास+ बीमार थी और बुखार में पड़ी थी। उन्होंने फौरन यीशु को उसके बारे में बताया। 31 यीशु उसके पास गया और उसने हाथ पकड़कर उसे उठाया। तब उसका बुखार उतर गया और वह उनकी सेवा करने लगी।

32 फिर शाम को जब सूरज ढल चुका था तब लोग उन सभी को जो बीमार थे और जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे, यीशु के पास लाने लगे।+ 33 यहाँ तक कि पूरा शहर उनके दरवाज़े पर जमा हो गया। 34 तब उसने ऐसे बहुत-से लोगों को ठीक किया जिन्हें तरह-तरह की बीमारियाँ थीं।+ उसने कई दुष्ट स्वर्गदूतों को भी निकाला मगर वह उन दुष्ट स्वर्गदूतों को बोलने नहीं देता था, क्योंकि वे जानते थे कि वह मसीह है।*

35 अगली सुबह जब अँधेरा ही था, तब यीशु उठकर बाहर गया और किसी एकांत जगह की तरफ निकल पड़ा। वहाँ वह प्रार्थना करने लगा।+ 36 मगर शमौन और उसके साथी उसे ढूँढ़ने निकले 37 और जब वह उन्हें मिला तो उन्होंने कहा, “सब लोग तुझे ढूँढ़ रहे हैं।” 38 मगर उसने कहा, “आओ हम कहीं और आस-पास की बस्तियों में जाएँ ताकि मैं वहाँ भी प्रचार कर सकूँ क्योंकि मैं इसीलिए आया हूँ।”+ 39 वह वहाँ से गया और पूरे गलील के सभा-घरों में प्रचार करता रहा और लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता रहा।+

40 फिर उसके पास एक कोढ़ी भी आया और उसके सामने घुटने टेककर गिड़गिड़ाने लगा, “बस अगर तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।”+ 41 उसे देखकर यीशु तड़प उठा और अपना हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “हाँ, मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।”+ 42 उसी पल उसका कोढ़ गायब हो गया और वह शुद्ध हो गया। 43 फिर यीशु ने उसे फौरन विदा कर दिया और उसे सख्ती से कहा, 44 “देख, किसी से कुछ न कहना। मगर जाकर खुद को याजक को दिखा और मूसा ने शुद्ध होने के लिए भेंट में जो-जो चीज़ें चढ़ाने के लिए कहा था उन्हें चढ़ा+ ताकि उन्हें गवाही मिले।”+ 45 लेकिन वहाँ से जाते ही वह आदमी सबको बताने लगा। उसने यह किस्सा इतना मशहूर कर दिया कि इसके बाद यीशु खुलेआम किसी शहर में न जा सका बल्कि एकांत इलाकों में ही रहा। फिर भी, लोग हर कहीं से उसके पास आते रहे।+

2 मगर कुछ दिन बाद, यीशु फिर कफरनहूम आया और चारों तरफ खबर फैल गयी कि वह घर पर है।+ 2 वहाँ लोगों की भीड़ लग गयी और घर लोगों से इतना भर गया कि दरवाज़े के पास भी जगह नहीं बची। यीशु उन्हें परमेश्‍वर के वचन सुनाने लगा।+ 3 तब लोग एक लकवे के मारे हुए को वहाँ लाए, जिसे चार आदमी उठाए हुए थे।+ 4 मगर भीड़ की वजह से वे उसे अंदर यीशु के पास नहीं ले जा सके। इसलिए जहाँ यीशु बैठा था, उन्होंने उसके ऊपर घर की छत को खोदा और खोल दिया और लकवे के मारे हुए को उसकी खाट समेत नीचे उतार दिया। 5 जब यीशु ने उनका विश्‍वास देखा,+ तो उसने लकवे के मारे आदमी से कहा, “बेटे, तेरे पाप माफ किए गए।”+ 6 वहाँ कुछ शास्त्री बैठे थे जो मन में कहने लगे,+ 7 “यह आदमी क्या कह रहा है! यह तो परमेश्‍वर की निंदा कर रहा है। परमेश्‍वर के सिवा और कौन पापों को माफ कर सकता है?”+ 8 मगर यीशु ने फौरन मन में जान लिया कि वे क्या सोच रहे हैं। इसलिए उसने कहा, “तुम क्यों अपने मन में ये बातें सोच रहे हो?+ 9 इस लकवे के मारे आदमी से क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए’ या यह कहना, ‘उठ, अपनी खाट उठा और चल-फिर’? 10 मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे+ को धरती पर पाप माफ करने का अधिकार दिया गया है . . .।”+ उसने लकवे के मारे हुए से कहा, 11 “मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो! अपनी खाट उठा और घर जा।” 12 तब वह आदमी खड़ा हो गया और फौरन अपनी खाट उठाकर सबके सामने बाहर निकल गया। यह देखकर सभी दंग रह गए और यह कहकर परमेश्‍वर की महिमा करने लगे, “हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा।”+

13 फिर यीशु वहाँ से निकलकर झील के किनारे गया और लोगों की भीड़ उसके पास आती रही और वह उन्हें सिखाने लगा। 14 फिर चलते-चलते उसकी नज़र हलफई के बेटे लेवी पर पड़ी जो कर-वसूली के दफ्तर में बैठा था। उसने उससे कहा, “आ, मेरा चेला बन जा।” और वह उठकर उसके पीछे चल दिया।+ 15 बाद में वह लेवी के घर खाने पर गया था* और बहुत-से कर-वसूलनेवाले और उनके जैसे दूसरे पापी, यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे थे।* ये लोग बड़ी तादाद में वहाँ जमा थे। उनमें से कई ऐसे थे जो यीशु के पीछे चलते थे।+ 16 मगर जब फरीसी-दल के कुछ शास्त्रियों ने देखा कि वह पापियों और कर-वसूलनेवालों के साथ खाना खा रहा है, तो वे उसके चेलों से कहने लगे, “यह कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ खाता है?” 17 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।”+

18 यूहन्‍ना के चेले और फरीसी उपवास किया करते थे। इसलिए वे यीशु के पास आए और उन्होंने पूछा, “क्या बात है कि यूहन्‍ना के चेले और फरीसियों के चेले उपवास रखते हैं, मगर तेरे चेले उपवास नहीं रखते?”+ 19 तब यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दूल्हा+ अपने दोस्तों के साथ होता है, क्या उसके दोस्त उपवास रखते हैं? नहीं। जब तक दूल्हा उनके साथ रहता है, वे उपवास नहीं रखते। 20 मगर वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे जुदा कर दिया जाएगा,+ तब वे उपवास करेंगे। 21 कोई भी पुराने कपड़े के छेद पर नए कपड़े का टुकड़ा नहीं लगाता। अगर वह लगाए तो नया टुकड़ा सिकुड़कर पुराने कपड़े को फाड़ देगा और छेद और भी बड़ा हो जाएगा।+ 22 न ही कोई नयी दाख-मदिरा पुरानी मशकों में भरता है। अगर वह भरे, तो मदिरा मशकों को फाड़ देगी और मदिरा के साथ-साथ मशकें भी नष्ट हो जाएँगी। मगर लोग नयी मदिरा नयी मशकों में भरते हैं।”

23 जब यीशु सब्त के दिन खेतों से होकर जा रहा था तो उसके चेले चलते-चलते अनाज की बालें तोड़ने लगे।+ 24 तब फरीसियों ने उससे कहा, “यह देख! ये सब्त के दिन ऐसा काम क्यों कर रहे हैं जो कानून के खिलाफ है?” 25 मगर यीशु ने कहा, “क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे और उनके पास खाने को कुछ नहीं था, तब उसने क्या किया?+ 26 क्या तुमने प्रधान याजक अबियातार+ वाले किस्से में नहीं पढ़ा कि दाविद परमेश्‍वर के भवन में गया और उसने चढ़ावे की रोटियाँ* खायीं और कुछ अपने साथियों को भी दीं जबकि कानून के मुताबिक याजकों के सिवा कोई और ये रोटियाँ नहीं खा सकता था?”+ 27 फिर यीशु ने कहा, “सब्त का दिन इंसान के लिए बना है,+ न कि इंसान सब्त के दिन के लिए। 28 इंसान का बेटा तो सब्त के दिन का भी प्रभु है।”+

3 एक बार फिर वह सभा-घर में गया। वहाँ एक ऐसा आदमी था जिसका एक हाथ सूखा हुआ था।*+ 2 फरीसी यीशु पर नज़र जमाए हुए थे कि देखें, वह उस आदमी को सब्त के दिन ठीक करता है या नहीं ताकि वे उस पर इलज़ाम लगा सकें। 3 तब उसने सूखे हाथवाले आदमी* से कहा, “उठ और यहाँ बीच में आ।” 4 फिर उसने उनसे पूछा, “परमेश्‍वर के कानून के हिसाब से सब्त के दिन क्या करना सही है, किसी का भला करना या बुरा करना? किसी की जान बचाना या किसी की जान लेना?”+ मगर वे चुप रहे। 5 उनके दिलों की कठोरता+ देखकर यीशु बहुत दुखी हुआ और उसने गुस्से से भरकर उन सबको देखा और उस आदमी से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” जब उसने हाथ आगे बढ़ाया तो उसका हाथ ठीक हो गया। 6 यह देखकर फरीसी बाहर निकल गए और उसी वक्‍त हेरोदेस के गुट के लोगों के साथ मिलकर यीशु को मार डालने की साज़िश करने लगे।+

7 मगर यीशु वहाँ से निकलकर अपने चेलों के साथ झील की तरफ चला गया। तब गलील और यहूदिया से भारी तादाद में लोग उसके पीछे-पीछे गए।+ 8 उसके बड़े-बड़े कामों की चर्चा सुनकर यरूशलेम, इदूमिया और यरदन पार के इलाकों और सोर और सीदोन के आस-पास से भी लोगों की एक बड़ी भीड़ उसके पास आयी। 9 उसने अपने चेलों से कहा कि एक छोटी नाव उसके लिए तैयार रखें ताकि भीड़ उसे दबा न दे। 10 यीशु ने बहुतों को ठीक किया था, इसलिए जितने लोगों को दर्दनाक बीमारियाँ थीं वे उसे छूने के लिए उसके पास भीड़ लगाने लगे।+ 11 जिन लोगों में दुष्ट स्वर्गदूत+ समाए थे, वे भी जब उसे देखते तो उसके आगे गिर पड़ते और चिल्लाकर कहते, “तू परमेश्‍वर का बेटा है।”+ 12 मगर उसने कई बार उन्हें कड़ा हुक्म दिया कि वे किसी को न बताएँ कि वह कौन है।+

13 फिर यीशु एक पहाड़ पर चढ़ा और उसने अपने कुछ चेलों को बुलाया+ और वे उसके पास आए।+ 14 उसने 12 चेलों का एक दल बनाया* और उन्हें प्रेषित नाम दिया ताकि वे हमेशा उसके साथ रहें और वह उन्हें प्रचार के लिए भेजे 15 और दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने का अधिकार दे।+

16 जिन 12 चेलों का दल+ उसने बनाया* वे थे, शमौन जिसे उसने पतरस नाम दिया,+ 17 जब्दी का बेटा याकूब और याकूब का भाई यूहन्‍ना (इन्हें यीशु ने बोअनरगिस नाम दिया, जिसका मतलब है “गरजन के बेटे”),+ 18 अन्द्रियास, फिलिप्पुस, बरतुलमै, मत्ती, थोमा, हलफई का बेटा याकूब, तद्दी, जोशीला* शमौन 19 और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में उसके साथ गद्दारी की।

फिर यीशु एक घर में गया। 20 एक बार फिर लोगों की इतनी भीड़ जमा हो गयी कि यीशु और उसके चेले खाना तक न खा सके। 21 मगर जब यीशु के घरवालों को इन बातों की खबर मिली, तो वे निकल पड़े कि उसे पकड़कर ले आएँ क्योंकि वे कह रहे थे, “उसका दिमाग फिर गया है।”+ 22 जो शास्त्री यरूशलेम से आए थे वे कह रहे थे, “इसमें बाल-ज़बूल* समाया है। यह दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा की मदद से, लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूत निकालता है।”+ 23 तब यीशु ने उन्हें अपने पास बुलाया और मिसालें देकर कहा, “शैतान खुद शैतान को कैसे निकाल सकता है? 24 अगर किसी राज में फूट पड़ जाए, तो वह राज टिक नहीं सकता।+ 25 और अगर किसी घर में फूट पड़ जाए तो वह घर टिक नहीं सकता। 26 उसी तरह, अगर शैतान अपने ही खिलाफ उठ खड़ा हो और उसमें फूट पड़ जाए, तो वह टिक नहीं सकेगा बल्कि उसका अंत हो जाएगा। 27 सच तो यह है कि कोई किसी ताकतवर आदमी के घर में घुसकर उसका सामान तब तक नहीं चुरा सकता जब तक कि वह पहले उस आदमी को पकड़कर बाँध न दे। इसके बाद ही वह उसका घर लूट सकेगा। 28 मैं तुमसे सच कहता हूँ, इंसानों की सब बातें माफ की जाएँगी, फिर चाहे उन्होंने जो भी पाप किए हों और जो भी निंदा की बातें कही हों। 29 मगर जो कोई पवित्र शक्‍ति के खिलाफ निंदा की बातें कहेगा, उसे कभी माफ नहीं किया जाएगा,+ बल्कि वह ऐसे पाप का दोषी होगा जो कभी नहीं मिटेगा।”+ 30 यीशु ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि वे कह रहे थे, “उसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत है।”+

31 फिर उसकी माँ और उसके भाई+ आए और उन्होंने बाहर खड़े होकर उसे बुलाने के लिए किसी को भेजा।+ 32 भीड़ उसके चारों तरफ बैठी थी और उन्होंने उससे कहा, “देख! तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं, वे तुझसे मिलना चाहते हैं।”+ 33 मगर उसने कहा, “मेरी माँ और मेरे भाई कौन हैं?” 34 फिर उसने उन लोगों को, जो उसके चारों तरफ घेरा बनाकर बैठे थे, देखकर कहा, “देखो, ये रहे मेरी माँ और मेरे भाई!+ 35 जो कोई परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करता है, वही मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माँ है।”+

4 एक बार फिर वह झील के किनारे सिखाने लगा। वहाँ उसके पास लोगों की बड़ी भीड़ इकट्ठा हो गयी। इसलिए वह एक नाव पर चढ़कर बैठ गया और किनारे से थोड़ी दूर नाव में बैठकर भीड़ को सिखाने लगा। सारी भीड़ किनारे पर थी।+ 2 तब वह उन्हें मिसालें देकर कई बातें सिखाने लगा।+ उसने कहा,+ 3 “ध्यान से सुनो। एक बीज बोनेवाला बीज बोने निकला।+ 4 जब वह बो रहा था, तो कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और पंछी आकर उन्हें खा गए। 5 कुछ बीज ऐसी ज़मीन पर गिरे जहाँ ज़्यादा मिट्टी नहीं थी, क्योंकि मिट्टी के नीचे चट्टान थी। इन बीजों के अंकुर फौरन दिखायी देने लगे क्योंकि वहाँ मिट्टी गहरी नहीं थी।+ 6 लेकिन जब सूरज निकला, तो वे झुलस गए और जड़ न पकड़ने की वजह से सूख गए। 7 कुछ और बीज काँटों में गिरे और कँटीले पौधों ने बढ़कर उन्हें दबा दिया और उन्होंने फल नहीं दिए।+ 8 मगर कुछ और बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरे, वे उगे और बढ़े और उनमें फल आने लगे। किसी में 30 गुना, किसी में 60 गुना और किसी में 100 गुना।”+ 9 फिर उसने कहा, “कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।”+

10 जब यीशु अकेला था, तो उसके 12 चेले और बाकी लोग उससे इन मिसालों के बारे में सवाल करने लगे।+ 11 यीशु ने उनसे कहा, “परमेश्‍वर के राज के पवित्र रहस्य+ की समझ तुम्हें दी गयी है, मगर बाहरवालों के लिए ये सिर्फ मिसालें हैं+ 12 ताकि वे देखते हुए भी न देख सकें और सुनकर भी इसके मायने न समझ सकें। वे कभी पलटकर नहीं आएँगे और माफी नहीं पाएँगे।”+ 13 फिर उसने कहा, “जब तुम यह मिसाल नहीं समझते, तो बाकी सब मिसालों का मतलब कैसे समझोगे?

14 बोनेवाला वचन बोता है।+ 15 जो रास्ते के किनारे बोए गए, वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनते हैं, मगर फौरन शैतान आता है+ और उनमें बोया गया वचन ले जाता है।+ 16 वैसे ही जो चट्टानी ज़मीन पर बोए गए, वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनते ही उसे खुशी-खुशी मानते हैं,+ 17 मगर उनमें जड़ नहीं होती इसलिए वे थोड़े समय के लिए रहते हैं। फिर जैसे ही वचन की वजह से उन पर मुसीबतें आती हैं या ज़ुल्म होता है, वे वचन पर विश्‍वास करना छोड़ देते हैं।* 18 कुछ और बीज काँटों में बोए गए। वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनते तो हैं,+ 19 मगर इस ज़माने* की ज़िंदगी की चिंताएँ+ और धोखा देनेवाली पैसे की ताकत+ और बाकी सब चीज़ों की चाहत+ उनमें समा जाती है और वचन को दबा देती है और वे फल नहीं देते। 20 आखिर में, जो बीज बढ़िया मिट्टी में बोए गए, वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनकर उसे खुशी-खुशी मानते हैं और फल देते हैं, कोई 30 गुना, कोई 60 गुना और कोई 100 गुना।”+

21 फिर यीशु ने उनसे कहा, “क्या कोई दीपक जलाकर उसे टोकरी* से ढकता है या पलंग के नीचे रखता है? क्या वह उसे लाकर दीवट पर नहीं रखता?+ 22 ऐसा कुछ भी नहीं जो छिपा है और खोला न जाए। ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिसे बड़ी सावधानी से छिपाया गया हो और जो निकलकर खुले में न आए।+ 23 कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।”+

24 फिर यीशु ने उनसे कहा, “तुम जो सुनते हो उस पर ध्यान दो।+ जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा बल्कि तुम्हें उससे भी ज़्यादा दिया जाएगा। 25 क्योंकि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा।+ लेकिन जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है।”+

26 फिर उसने कहा, “परमेश्‍वर का राज ऐसा है जैसे कोई आदमी खेत में बीज छितराता है। 27 वह आदमी हर रात सोता है और सुबह जागता है। इस दौरान बीज में अंकुर फूटते हैं और अपने आप बढ़ते हैं लेकिन कैसे, यह वह नहीं जानता। 28 ज़मीन अपने आप धीरे-धीरे फल देती है, पहले अंकुर निकलता है, फिर डंठल और आखिर में तैयार दाने की बालें। 29 फिर जैसे ही फसल पक जाती है, वह हँसिया चलाता है क्योंकि कटाई का वक्‍त आ गया है।”

30 फिर उसने कहा, “हम परमेश्‍वर के राज को किसके जैसा बताएँ या क्या मिसाल देकर इसे समझाएँ? 31 वह राई के दाने की तरह है। जब यह दाना ज़मीन में बोया जाता है तो बीजों में सबसे छोटा होता है।+ 32 लेकिन बोने के बाद जब वह उगता है, तो सभी सब्ज़ियों के पौधों से बड़ा हो जाता है। उसमें ऐसी बड़ी-बड़ी डालियाँ निकलती हैं कि उसकी छाँव में आकाश के पंछी आकर बसेरा करते हैं।”

33 तो इस तरह की कई मिसालें देकर,+ जितना वे समझ सकते थे, यीशु उनको परमेश्‍वर का वचन सुनाया करता था। 34 वाकई, वह बगैर मिसाल के लोगों से बात नहीं करता था, मगर अपने चेलों को अकेले में उन सब बातों का मतलब समझाता था।+

35 उस दिन जब शाम ढल गयी तो उसने चेलों से कहा, “आओ हम झील के उस पार चलें।”+ 36 इसलिए भीड़ को विदा करने के बाद, वे उसे नाव में ले गए। उसकी नाव के साथ दूसरी नावें भी थीं।+ 37 अब एक ज़ोरदार आँधी चलने लगी और लहरें नाव से इतनी ज़ोर से टकराने लगीं कि नाव पानी से भरने पर थी।+ 38 मगर यीशु नाव के पिछले हिस्से में एक तकिए पर सिर रखकर सो रहा था। चेलों ने उसे जगाया और कहा, “गुरु, क्या तुझे फिक्र नहीं कि हम नाश होनेवाले हैं?” 39 तब वह उठा और उसने आँधी को डाँटा और लहरों से कहा, “शश्‍श! खामोश हो जाओ!”+ तब आँधी थम गयी और बड़ा सन्‍नाटा छा गया। 40 यीशु ने उनसे कहा, “तुम क्यों इतना डर रहे हो?* क्या तुममें अब भी विश्‍वास नहीं?” 41 मगर उनमें अजीब-सा डर समा गया और वे एक-दूसरे से कहने लगे, “आखिर यह कौन है? आँधी और समुंदर तक इसका हुक्म मानते हैं!”+

5 फिर वे झील के उस पार गिरासेनियों के इलाके में पहुँचे।+ 2 जैसे ही यीशु नाव से उतरा, एक आदमी जो एक दुष्ट स्वर्गदूत के वश में था, कब्रों* के बीच से निकलकर उसके पास आया। 3 यह आदमी कब्रों के बीच भटकता फिरता था। कोई भी उसे बाँधकर रखने में कामयाब नहीं हो सका था, यहाँ तक कि ज़ंजीरों से भी नहीं। 4 उसे कई बार बेड़ियों और ज़ंजीरों से बाँधा गया था, मगर वह ज़ंजीरें तोड़ डालता और बेड़ियों के टुकड़े-टुकड़े कर देता था। किसी में इतनी ताकत नहीं थी कि उसे काबू में कर सके। 5 वह रात-दिन कब्रों और पहाड़ों के बीच चिल्लाता रहता और पत्थरों से खुद को घायल करता रहता। 6 लेकिन जैसे ही उसने दूर से यीशु को देखा, वह भागकर उसके पास गया और उसे झुककर प्रणाम किया।+ 7 फिर उसने ज़ोर से चिल्लाकर कहा, “हे यीशु, परम-प्रधान परमेश्‍वर के बेटे, मेरा तुझसे क्या लेना-देना? मैं परमेश्‍वर की शपथ धराकर तुझसे कहता हूँ, मुझे मत तड़पा।”+ 8 उसने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि यीशु उससे कह रहा था, “हे दुष्ट स्वर्गदूत, इस आदमी में से बाहर निकल जा।”+ 9 मगर यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा, “मेरा नाम पलटन है क्योंकि हम बहुत सारे हैं।” 10 और उसने बार-बार यीशु से बिनती की कि वह उन्हें उस इलाके से बाहर न भेजे।+

11 उस पहाड़ पर सूअरों+ का एक बड़ा झुंड चर रहा था।+ 12 इसलिए दुष्ट स्वर्गदूतों ने उससे बिनती की, “हमें उन सूअरों में भेज दे ताकि हम उनमें समा जाएँ।” 13 उसने उन्हें जाने की इजाज़त दी। तब दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी में से बाहर निकल गए और उन सूअरों में समा गए और करीब 2,000 सूअरों का वह पूरा झुंड तेज़ी से दौड़ा और पहाड़ की कगार से नीचे झील में जा गिरा और सारे सूअर डूबकर मर गए। 14 मगर उन्हें चरानेवाले वहाँ से भाग गए और उन्होंने शहर और देहात में जाकर इसकी खबर दी। और लोग देखने आए कि वहाँ क्या हुआ था।+ 15 वे यीशु के पास आए और उन्होंने देखा कि वह आदमी जो दुष्ट स्वर्गदूत के कब्ज़े में था, वहाँ बैठा हुआ है। यह वही आदमी था जिसमें पहले पलटन समायी हुई थी। अब वह कपड़े पहने है और उसकी दिमागी हालत ठीक हो गयी है। और लोग बहुत डर गए। 16 जिन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा था, उन्होंने लोगों को बताया कि जो आदमी दुष्ट स्वर्गदूतों के कब्ज़े में था उसके साथ यह सब कैसे हुआ और सूअरों का क्या हाल हुआ। 17 इसलिए वे यीशु से बिनती करने लगे कि वह उनके इलाके से चला जाए।+

18 जब यीशु नाव पर चढ़ रहा था, तो वह आदमी जिसमें पहले दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, उससे बिनती करने लगा कि वह उसे अपने साथ आने दे।+ 19 मगर यीशु ने उसे नहीं आने दिया बल्कि उससे कहा, “अपने घर चला जा और अपने रिश्‍तेदारों को बता कि यहोवा* ने तेरे लिए क्या-क्या किया और तुझ पर कितनी दया की है।” 20 तब वह आदमी वहाँ से चला गया और दिकापुलिस* में उन सारे कामों का ऐलान करने लगा जो यीशु ने उसके लिए किए थे और सब लोग ताज्जुब करने लगे।

21 जब यीशु नाव से इस पार लौटा, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास जमा हो गयी।+ वह झील के किनारे था। 22 वहाँ सभा-घर का एक अधिकारी आया जिसका नाम याइर था। जैसे ही उसने यीशु को देखा वह उसके पैरों पर गिर पड़ा।+ 23 वह बार-बार उससे मिन्‍नत करने लगा, “मेरी बच्ची की हालत बहुत खराब है।* मेहरबानी करके मेरे साथ चल और उस पर अपने हाथ रख+ ताकि वह अच्छी हो जाए और जीती रहे।” 24 तब यीशु उसके साथ चल दिया। एक बड़ी भीड़ उसके पीछे थी और लोग उस पर गिरे जा रहे थे।

25 वहाँ एक ऐसी औरत थी जिसे 12 साल से खून बहने की बीमारी थी।+ 26 उसने कई वैद्यों से इलाज करवा-करवाकर बहुत दुख उठाया था और उसके पास जो कुछ था, वह सब खर्च करने के बाद भी वह ठीक नहीं हुई, उलटा उसकी हालत और ज़्यादा बिगड़ गयी थी। 27 जब उसने यीशु के बारे में चर्चा सुनी, तो वह भीड़ में उसके पीछे से आयी और उसके कपड़े को छुआ+ 28 क्योंकि वह कहती थी, “अगर मैं उसके कपड़े को ही छू लूँ, तो अच्छी हो जाऊँगी।”+ 29 उसी घड़ी उसका खून बहना बंद हो गया और उसने महसूस किया कि उसके शरीर की वह दर्दनाक बीमारी ठीक हो गयी है।

30 उसी घड़ी यीशु ने जान लिया कि उसके अंदर से शक्‍ति निकली है+ और उसने भीड़ में पीछे मुड़कर कहा, “मेरे कपड़ों को किसने छुआ?”+ 31 मगर चेलों ने कहा, “तू देख रहा है कि भीड़ तुझे कैसे दबाए जा रही है, फिर भी तू कह रहा है, ‘मुझे किसने छुआ?’” 32 लेकिन यीशु चारों तरफ देखने लगा कि किसने ऐसा किया है। 33 तब वह औरत, यह जानते हुए कि वह ठीक हो गयी है, डरती-काँपती हुई आयी और उसके आगे गिर पड़ी और उसे सबकुछ सच-सच बता दिया। 34 यीशु ने उससे कहा, “बेटी, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है। जा, अब और चिंता मत करना।+ यह दर्दनाक बीमारी तुझे फिर कभी न हो।”+

35 जब वह बोल ही रहा था, तो सभा-घर के अधिकारी के घर से कुछ आदमी आए और कहने लगे, “तेरी बेटी मर गयी! अब गुरु को और क्यों परेशान करें?”+ 36 मगर जब उनकी बातें यीशु के कानों में पड़ीं, तो उसने सभा-घर के अधिकारी से कहा, “डर मत, बस विश्‍वास रख।”+ 37 फिर उसने पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्‍ना के सिवा किसी और को अपने साथ नहीं आने दिया।+

38 जब वे सभा-घर के अधिकारी के घर पहुँचे, तो उसने देखा कि वहाँ काफी होहल्ला मचा है। लोग ज़ोर-ज़ोर से रो रहे हैं, मातम मना रहे हैं।+ 39 यीशु ने अंदर जाने के बाद उनसे कहा, “तुम क्यों रो रहे हो और होहल्ला मचा रहे हो? बच्ची मरी नहीं बल्कि सो रही है।”+ 40 यह सुनकर वे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। मगर यीशु ने उन सबको बाहर भेज दिया और लड़की के माँ-बाप और अपने साथियों को लेकर वह अंदर गया जहाँ लड़की थी। 41 फिर यीशु ने बच्ची का हाथ पकड़कर कहा, “तलीता कूमी,” जिसका मतलब है, “बच्ची, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ!”+ 42 उसी वक्‍त वह लड़की उठकर चलने-फिरने लगी। (वह 12 साल की थी।) यह देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। 43 मगर यीशु ने बार-बार उन्हें सख्ती से कहा* कि वे इस बारे में किसी को न बताएँ+ और फिर कहा कि लड़की को कुछ खाने के लिए दिया जाए।

6 फिर यीशु वहाँ से निकला और अपने इलाके में आया जहाँ वह पला-बढ़ा था+ और उसके चेले भी उसके साथ आए। 2 जब सब्त का दिन आया, तो वह सभा-घर में सिखाने लगा। उसकी बात सुननेवाले ज़्यादातर लोग हैरान थे। उन्होंने कहा, “इस आदमी ने ये बातें कहाँ से सीखीं?+ भला यह बुद्धि इसे कहाँ से मिली और यह ऐसे शक्‍तिशाली काम कैसे कर पा रहा है?+ 3 यह तो वही बढ़ई है न,+ जो मरियम का बेटा+ और याकूब, यूसुफ, यहूदा और शमौन का भाई है!+ और इसकी बहनें यहाँ हमारे बीच ही रहती हैं न!” इसलिए उन्होंने उस पर यकीन नहीं किया। 4 मगर यीशु ने उनसे कहा, “एक भविष्यवक्‍ता का हर कहीं आदर किया जाता है, सिर्फ उसके अपने इलाके, घर और रिश्‍तेदारों के बीच नहीं किया जाता।”+ 5 इसलिए उसने चंद बीमारों पर हाथ रखकर उन्हें ठीक करने के सिवा वहाँ और कोई शक्‍तिशाली काम नहीं किया। 6 दरअसल उनके विश्‍वास की कमी देखकर उसे ताज्जुब हुआ। इसके बाद वह आस-पास के गाँवों में जाकर सिखाने लगा।+

7 फिर यीशु ने उन बारहों को बुलाया और वह उन्हें दो-दो की जोड़ी में भेजने लगा।+ उसने उन्हें दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार भी दिया।+ 8 उसने ये हिदायतें भी दीं कि वे सफर के लिए एक लाठी को छोड़ और कुछ न लें, न रोटी, न खाने की पोटली, न अपने कमरबंद में पैसे,*+ 9 न ही दो जोड़ी कपड़े लें* बल्कि जूतियाँ कस लें। 10 यीशु ने उनसे यह भी कहा, “जब भी तुम किसी घर में जाओ, तो वहाँ तब तक ठहरो जब तक तुम उस इलाके में रहो।+ 11 अगर किसी इलाके में लोग तुम्हें स्वीकार नहीं करें या तुम्हारी नहीं सुनें, तो वहाँ से बाहर निकलते वक्‍त अपने पैरों की धूल झाड़ देना ताकि उन्हें गवाही मिले।”+ 12 तब वे निकल पड़े और प्रचार करने लगे कि लोग पश्‍चाताप करें।+ 13 उन्होंने कई दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला+ और कई बीमारों पर तेल मलकर उन्हें ठीक किया।

14 यह बात राजा हेरोदेस के कानों में पड़ी क्योंकि यीशु का नाम मशहूर हो गया था। लोग कहते थे, “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला, जो मर गया था, ज़िंदा कर दिया गया है और इसीलिए वह ऐसे शक्‍तिशाली काम कर रहा है!”+ 15 मगर दूसरे कहते थे, “यह एलियाह है।” कुछ और लोग कहते थे, “यह तो पुराने ज़माने के भविष्यवक्‍ताओं जैसा कोई भविष्यवक्‍ता है।”+ 16 मगर जब हेरोदेस ने यह बात सुनी, तो उसने कहा, “जिस यूहन्‍ना का सिर मैंने कटवाया था, वह फिर से ज़िंदा हो गया है।” 17 हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास से शादी कर ली थी। हेरोदियास की वजह से हेरोदेस ने यूहन्‍ना को गिरफ्तार कर लिया था और उसे ज़ंजीरों में बाँधकर जेल में डलवा दिया था।+ 18 क्योंकि यूहन्‍ना हेरोदेस से कहा करता था, “तूने अपने भाई की पत्नी को अपना बनाकर कानून तोड़ा है।”+ 19 इसलिए हेरोदियास, यूहन्‍ना से नफरत करने लगी थी। वह उसे मार डालना चाहती थी, मगर ऐसा नहीं कर पा रही थी। 20 क्योंकि हेरोदेस जानता था कि यूहन्‍ना नेक और पवित्र इंसान है।+ इसलिए वह उससे डरता था और उसे बचाने की कोशिश करता था। वह यूहन्‍ना की बातें सुनने के बाद बड़ी उलझन में पड़ जाता था कि क्या करे। फिर भी वह खुशी से उसकी सुनता था।

21 मगर एक दिन वह मौका आया जिसकी हेरोदियास को तलाश थी। उस दिन हेरोदेस का जन्मदिन था और उसने शाम की बड़ी दावत रखी+ जिसमें उसने बड़े-बड़े अधिकारियों और सेनापतियों और गलील के जाने-माने लोगों को बुलाया।+ 22 तब हेरोदियास की बेटी वहाँ आयी और उसने नाचकर हेरोदेस और दावत में मौजूद* बाकी लोगों का दिल खुश किया। राजा ने लड़की से कहा, “तू जो चाहे माँग, मैं तुझे दे दूँगा।” 23 राजा ने कसम खायी, “तू जो चाहे माँग ले, मैं अपना आधा राज तक तुझे दे दूँगा।” 24 तब लड़की ने बाहर जाकर अपनी माँ से पूछा, “मैं क्या माँगूँ?” उसकी माँ ने कहा, “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर।” 25 उसी वक्‍त वह लड़की तेज़ी से अंदर राजा के पास गयी और उसने कहा, “मैं चाहती हूँ कि तू अभी, इसी वक्‍त मुझे एक थाल में यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर ला दे।”+ 26 यह सुनकर राजा बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने जो कसमें खायी थीं और जो मेहमान वहाँ थे,* उनकी वजह से उसने लड़की की गुज़ारिश नहीं ठुकरायी। 27 राजा ने फौरन एक अंगरक्षक को भेजा और उसे यूहन्‍ना का सिर लाने का हुक्म दिया। उस आदमी ने जाकर जेल में यूहन्‍ना का सिर काट दिया 28 और उसे एक थाल में रखकर लड़की को दे दिया और लड़की ने उसे ले जाकर अपनी माँ को दिया। 29 जब यूहन्‍ना के चेलों को इसकी खबर मिली, तो वे आकर उसकी लाश ले गए और उसे एक कब्र* में रख दिया।

30 यीशु के प्रेषित उसके पास इकट्ठा हुए और उन्होंने लोगों के बीच जो-जो काम किए थे और उन्हें जो-जो सिखाया था, वह सब उसे बताया।+ 31 तब यीशु ने उनसे कहा, “आओ, तुम सब अलग किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो,”+ क्योंकि वहाँ बहुत लोग आ-जा रहे थे और उन्हें खाने तक की फुरसत नहीं मिली थी। 32 इसलिए वे एक नाव पर चढ़कर किसी एकांत जगह के लिए निकल पड़े।+ 33 मगर लोगों ने उन्हें जाते देख लिया और बहुतों को इस बात का पता चल गया। तब सब शहरों से लोग दौड़कर उनसे पहले ही उस जगह जा पहुँचे। 34 जब यीशु नाव से उतरा तो उसने लोगों की एक भीड़ देखी और उन्हें देखकर वह तड़प उठा,+ क्योंकि वे ऐसी भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो।+ और वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।+

35 अब काफी वक्‍त बीत चुका था और उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह जगह सुनसान है और बहुत देर हो चुकी है।+ 36 इसलिए इन्हें विदा कर ताकि वे आस-पास के देहातों और गाँवों में जाकर खाने के लिए कुछ खरीद लें।”+ 37 मगर यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” यह सुनकर चेलों ने कहा, “क्या हम 200 दीनार* की रोटियाँ खरीदें और इन्हें खाने को दें?”+ 38 यीशु ने उनसे कहा, “जाओ देखो, तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं।” पता लगाकर उन्होंने कहा, “पाँच। और दो मछलियाँ भी हैं।”+ 39 फिर यीशु ने सब लोगों से कहा कि वे अलग-अलग टोलियाँ बनाकर हरी घास पर आराम से बैठ जाएँ।+ 40 वे सौ-सौ और पचास-पचास की टोलियों में बैठ गए। 41 यीशु ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की तरफ देखकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया।+ फिर वह रोटियाँ तोड़कर चेलों को देने लगा ताकि वे उन्हें लोगों में बाँटें। उसने वे दो मछलियाँ भी सबके लिए बाँट दीं। 42 तब सब लोगों ने जी-भरकर खाया 43 और उन्होंने बची हुई रोटियों के टुकड़े उठाए जिनसे 12 टोकरियाँ भर गयीं। इनके अलावा मछलियाँ भी थीं।+ 44 और रोटियाँ खानेवालों में आदमियों की गिनती 5,000 थी।

45 फिर यीशु ने बिना देर किए अपने चेलों से कहा कि वे नाव पर चढ़ जाएँ और उस पार बैतसैदा चले जाएँ, जबकि वह खुद भीड़ को विदा करने लगा।+ 46 मगर उनको अलविदा कहने के बाद, वह प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़ गया।+ 47 अब शाम ढल चुकी थी और नाव झील के बीच थी, मगर वह अकेला पहाड़ पर था।+ 48 उसने देखा कि तेज़ आँधी चल रही है और उसके चेलों को नाव खेने में बड़ी मुश्‍किल हो रही है क्योंकि हवा का रुख उनके खिलाफ था। तब रात के करीब चौथे पहर* वह झील पर चलते हुए उनकी तरफ आया। मगर ऐसा लग रहा था जैसे वह उनसे आगे जाना चाहता है।* 49 जैसे ही चेलों ने देखा कि वह पानी पर चल रहा है, उन्होंने सोचा, “यह ज़रूर हमारा वहम है!” और वे ज़ोर से चिल्ला उठे। 50 क्योंकि वह उन सबको नज़र आ रहा था और वे घबरा गए। मगर उसने फौरन उनसे बात की और कहा, “हिम्मत रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।”+ 51 फिर यीशु भी उनके पास नाव पर चढ़ गया और आँधी थम गयी। वे मन-ही-मन बहुत हैरान थे 52 क्योंकि रोटियों का चमत्कार देखने के बाद भी वे उसके मायने नहीं समझ सके थे। उनके मन अभी-भी समझने में मंद थे।

53 जब वे इस पार किनारे पहुँचे, तो गन्‍नेसरत आए और वहीं पास में नाव का लंगर डाला।+ 54 मगर जैसे ही वे नाव से उतरे, लोगों ने यीशु को पहचान लिया। 55 और वे उस पूरे इलाके में यहाँ-वहाँ दौड़े गए और बीमारों को खाट पर डालकर लाते गए और उन्हें जहाँ-जहाँ यीशु के होने की खबर मिली वे उन्हें वहाँ ले गए। 56 यीशु जिस किसी गाँव, शहर या देहात में जाता, लोग वहाँ के बाज़ारों में अपने बीमारों को रख देते और उससे बिनती करते कि वह उन्हें अपने कपड़े की झालर को ही छू लेने दे।+ और जितनों ने उसकी झालर छुई, वे सभी ठीक हो गए।

7 अब फरीसी और कुछ शास्त्री जो यरूशलेम से वहाँ आए थे, उसके पास जमा हुए।+ 2 उन्होंने देखा कि उसके कुछ चेले दूषित हाथों से यानी बिना हाथ धोए* खाना खाते हैं। 3 (दरअसल फरीसी और सारे यहूदी अपने पुरखों की ठहरायी परंपराओं को सख्ती से मानते हैं। इसलिए वे तब तक खाना नहीं खाते जब तक कि कोहनी तक हाथ न धो लें। 4 और बाज़ार से लौटने पर वे तब तक नहीं खाते जब तक कि वे पानी से खुद को शुद्ध न कर लें। ऐसी कई और परंपराएँ उन्हें मिली हैं जिन्हें वे सख्ती से मानते हैं। जैसे प्यालों, सुराहियों और ताँबे के बरतनों को पानी में डुबकी दिलाना।)+ 5 इन फरीसियों और शास्त्रियों ने यीशु से पूछा, “क्यों तेरे चेले हमारे पुरखों की परंपराएँ नहीं मानते और दूषित हाथों से खाना खाते हैं?”+ 6 यीशु ने उनसे कहा, “यशायाह ने तुम कपटियों के बारे में बिलकुल सही भविष्यवाणी की थी, जैसा लिखा है, ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है।+ 7 ये बेकार ही मेरी उपासना करते हैं क्योंकि ये इंसानों की आज्ञाओं को परमेश्‍वर की शिक्षाएँ बताकर सिखाते हैं।’+ 8 तुम परमेश्‍वर की आज्ञाओं को छोड़ देते हो और इंसानों की परंपराओं को पकड़े रहते हो।”+

9 फिर उसने कहा, “तुम अपनी परंपरा को बनाए रखने के लिए कितनी चतुराई से परमेश्‍वर की आज्ञा टाल देते हो।+ 10 मिसाल के लिए, मूसा ने कहा था, ‘अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना,’+ और ‘जो कोई अपने पिता या अपनी माँ को बुरा-भला कहता है* वह मार डाला जाए।’+ 11 मगर तुम कहते हो, ‘अगर एक आदमी अपने पिता या अपनी माँ से कहता है, “मेरे पास जो कुछ है जिससे तुझे फायदा हो सकता था वह कुरबान है (यानी परमेश्‍वर के लिए रखी गयी भेंट है),” तो यह गलत नहीं।’ 12 ऐसा करके तुम उसे अपने पिता या अपनी माँ के लिए कुछ भी नहीं करने देते।+ 13 इस तरह तुम अपनी परंपराएँ सिखाकर परमेश्‍वर के वचन को रद्द कर देते हो।+ तुम ऐसे बहुत-से काम करते हो।”+ 14 फिर उसने भीड़ को दोबारा अपने पास बुलाया और उनसे कहा, “तुम सब मेरी बात ध्यान से सुनो और इसके मायने समझो।+ 15 ऐसी कोई चीज़ नहीं जो बाहर से इंसान के अंदर जाकर उसे दूषित कर सके। मगर जो चीज़ें इंसान के अंदर से निकलती हैं, वे ही उसे दूषित करती हैं।”+ 16* —

17 जब वह भीड़ से दूर एक घर में गया, तो उसके चेले उस मिसाल के बारे में उससे सवाल पूछने लगे।+ 18 तब उसने चेलों से कहा, “क्या तुम भी उनकी तरह समझ नहीं रखते? क्या तुम नहीं जानते कि बाहर की कोई भी चीज़ जो इंसान के अंदर जाती है, उसे दूषित नहीं कर सकती? 19 क्योंकि वह उसके दिल में नहीं बल्कि उसके पेट में जाती है और फिर मल-कुंड में निकल जाती है?” इस तरह उसने खाने की सभी चीज़ों को शुद्ध ठहराया। 20 इसके बाद उसने कहा, “इंसान के अंदर से जो निकलता है, वही उसे दूषित करता है।+ 21 क्योंकि इंसानों के अंदर से, उनके दिलों से+ ही बुरे विचार निकलते हैं। इनकी वजह से नाजायज़ यौन-संबंध,* चोरी, कत्ल, 22 व्यभिचार,* लालच, दुष्ट काम, धोखाधड़ी, निर्लज्ज काम,* ईर्ष्या,* निंदा, घमंड और मूर्खता की जाती है। 23 ये सारी बुराइयाँ इंसान के अंदर से निकलती हैं और उसे दूषित करती हैं।”

24 वहाँ से उठकर यीशु सोर और सीदोन के इलाके में गया।+ वहाँ वह एक घर में गया और नहीं चाहता था कि कोई उसके बारे में जाने। फिर भी, वह लोगों की नज़र से छिप न सका। 25 वहाँ एक औरत थी, जिसकी छोटी बच्ची में दुष्ट स्वर्गदूत समाया था। जैसे ही यीशु वहाँ आया, उसके आने की खबर सुनकर वह औरत उसके पास आयी और उसके पैरों पर गिर पड़ी।+ 26 वह औरत यूनानी थी और सीरिया प्रांत के फीनीके इलाके की रहनेवाली थी। वह उससे बिनती करती रही कि मेरी बेटी में से दुष्ट स्वर्गदूत निकाल दे। 27 मगर यीशु ने उससे कहा, “पहले बच्चों को जी-भरके खा लेने दो क्योंकि बच्चों की रोटी लेकर पिल्लों के आगे फेंकना सही नहीं।”+ 28 मगर औरत ने कहा, “सही कहा साहब, मगर फिर भी पिल्ले बच्चों की मेज़ से गिरे टुकड़े तो खाते ही हैं।” 29 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “तूने जो यह बात कही है, इसलिए जा, दुष्ट स्वर्गदूत तेरी बेटी में से निकल चुका है।”+ 30 तब वह औरत अपने घर चली गयी और उसने देखा कि उसकी बच्ची बिस्तर पर लेटी है और दुष्ट स्वर्गदूत उसमें से निकल चुका था।+

31 जब यीशु सोर के इलाके से निकला, तो वह सीदोन और दिकापुलिस* के इलाके से होता हुआ वापस गलील झील पहुँचा।+ 32 यहाँ लोग उसके पास एक बहरे आदमी को लाए जो ठीक से बोल भी नहीं पाता था।+ उन्होंने यीशु से बिनती की कि वह अपना हाथ उस पर रखे। 33 यीशु उस आदमी को भीड़ से दूर अलग ले गया और उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डालीं और थूकने के बाद उसकी जीभ को छुआ।+ 34 फिर उसने आकाश की तरफ देखा और गहरी आह भरकर उससे कहा, “एफ्फतह,” जिसका मतलब है “खुल जा।” 35 तब उस आदमी की सुनने की शक्‍ति लौट आयी+ और उसकी ज़बान खुल गयी और वह साफ-साफ बोलने लगा। 36 फिर यीशु ने उन्हें सख्ती से कहा कि यह सब किसी को न बताएँ।+ मगर जितना वह मना करता, उतना ही वे उसकी खबर फैलाते गए।+ 37 वाकई, लोग हैरान थे+ और कह रहे थे, “उसने कमाल कर दिया! वह तो बहरों और गूँगों को भी ठीक कर देता है।”+

8 उन दिनों जब एक बार फिर एक बड़ी भीड़ जमा थी और उनके पास खाने को कुछ नहीं था, तो यीशु ने चेलों को बुलाकर कहा, 2 “मुझे इस भीड़ पर तरस आ रहा है+ क्योंकि इन्हें मेरे साथ रहते हुए तीन दिन बीत चुके हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है।+ 3 अगर मैं इन्हें भूखा ही घर भेज दूँ, तो वे रास्ते में पस्त हो जाएँगे। इनमें से कुछ तो बहुत दूर से आए हैं।” 4 मगर चेलों ने उससे कहा, “यहाँ इस सुनसान जगह पर कोई कहाँ से इतनी रोटियाँ लाएगा कि ये जी-भरकर खा सकें?” 5 तब यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात।”+ 6 फिर उसने भीड़ को ज़मीन पर आराम से बैठने के लिए कहा। उसने सातों रोटियाँ लीं और प्रार्थना में धन्यवाद दिया, फिर वह उन्हें तोड़कर अपने चेलों को देने लगा कि वे उन्हें बाँट दें। तब चेलों ने रोटियाँ लोगों में बाँट दीं।+ 7 उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं। उसने मछलियों के लिए प्रार्थना में धन्यवाद दिया और चेलों से कहा कि इन्हें भी बाँट दें। 8 तब लोगों ने जी-भरकर खाया और बचे हुए टुकड़े इकट्ठे किए जिनसे सात बड़े टोकरे भर गए।+ 9 खानेवालों में आदमियों की गिनती करीब 4,000 थी। फिर उसने उन्हें विदा किया।

10 वह फौरन अपने चेलों के साथ नाव पर चढ़ गया और दलमनूता के इलाके में आया।+ 11 वहाँ फरीसी आए और उससे बहस करने लगे। वे यीशु की परीक्षा लेने के लिए उससे माँग करने लगे कि वह स्वर्ग से कोई चिन्ह दिखाए।+ 12 तब वह मन-ही-मन बहुत दुखी हुआ और उसने कहा, “यह पीढ़ी क्यों हमेशा चिन्ह देखना चाहती है?+ मैं सच कहता हूँ, इस पीढ़ी को कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा।”+ 13 यह कहने के बाद वह उन्हें छोड़कर दोबारा नाव पर चढ़ गया और उस पार चला गया।

14 चेले अपने साथ रोटियाँ लेना भूल गए थे और नाव में उनके पास एक रोटी को छोड़ और कुछ नहीं था।+ 15 यीशु ने उन्हें साफ शब्दों में यह चेतावनी दी, “अपनी आँखें खुली रखो और फरीसियों के खमीर और हेरोदेस के खमीर से चौकन्‍ने रहो।”+ 16 तब वे एक-दूसरे से बहस करने लगे कि वे अपने साथ रोटियाँ क्यों नहीं लाए। 17 यह देखकर यीशु ने उनसे कहा, “तुम इस बात पर क्यों बहस कर रहे हो कि तुम्हारे पास रोटियाँ नहीं हैं? क्या तुम अब भी नहीं जान पाए और इसके मायने नहीं समझ पाए? क्या तुम्हारे मन अब भी समझने में मंद हैं? 18 ‘क्या आँखें होते हुए भी तुम नहीं देखते और कान होते हुए भी नहीं सुनते?’ क्या तुम्हें याद नहीं, 19 जब मैंने 5,000 आदमियों के लिए पाँच रोटियाँ+ तोड़ीं, तब तुमने कितनी टोकरियों में टुकड़े इकट्ठे किए?” उन्होंने कहा, “बारह।”+ 20 “जब मैंने 4,000 आदमियों के लिए सात रोटियाँ तोड़ीं, तब तुमने टुकड़ों से भरे जो बड़े टोकरे उठाए थे उनकी गिनती क्या थी?” उन्होंने कहा, “सात।”+ 21 तब यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम अब भी मेरी बात नहीं समझ पाए?”

22 अब वे बैतसैदा आए। यहाँ लोग उसके पास एक अंधे आदमी को लाए और उससे बिनती करने लगे कि वह उसे छुए।+ 23 वह अंधे आदमी का हाथ पकड़कर उसे गाँव के बाहर ले गया। उसने उसकी आँखों पर थूककर+ अपने हाथ उस पर रखे और उससे पूछा, “क्या तुझे कुछ दिखायी दे रहा है?” 24 उस आदमी ने ऊपर देखा और कहा, “मुझे लोग दिखायी तो दे रहे हैं, मगर ऐसे लग रहे हैं जैसे चलते-फिरते पेड़ हों।” 25 यीशु ने दोबारा उस आदमी की आँखों पर हाथ रखे और तब उसे साफ दिखने लगा। उसकी आँखों की रौशनी लौट आयी और उसे सबकुछ साफ-साफ दिखने लगा। 26 तब यीशु ने उसे घर भेज दिया और कहा, “इस गाँव में मत जाना।”

27 यीशु और उसके चेले अब कैसरिया फिलिप्पी के गाँवों में जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में वह अपने चेलों से पूछने लगा, “लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं, मैं कौन हूँ?”+ 28 उन्होंने कहा, “कुछ कहते हैं, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला,+ दूसरे कहते हैं एलियाह+ और कुछ कहते हैं तू भविष्यवक्‍ताओं में से एक है।” 29 फिर उसने यही सवाल चेलों से पूछा, “लेकिन तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूँ?” पतरस ने जवाब दिया, “तू मसीह है।”+ 30 तब उसने उन्हें सख्ती से कहा कि किसी को उसके बारे में न बताएँ।+ 31 फिर वह चेलों को बताने लगा कि इंसान के बेटे को कई तकलीफें सहनी पड़ेंगी और मुखिया, प्रधान याजक और शास्त्री उसे ठुकरा देंगे और वह मार डाला जाएगा।+ फिर तीन दिन बाद वह ज़िंदा हो जाएगा।+ 32 वह यह बात उन्हें साफ-साफ बता रहा था। मगर पतरस उसे अलग ले गया और झिड़कने लगा।+ 33 तब यीशु ने मुड़कर अपने चेलों की तरफ देखा और पतरस को झिड़का, “अरे शैतान, मेरे सामने से दूर हो जा!* क्योंकि तेरी सोच परमेश्‍वर जैसी नहीं, बल्कि इंसानों जैसी है।”+

34 अब उसने भीड़ को अपने चेलों समेत पास बुलाया और उनसे कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपना यातना का काठ* उठाए और मेरे पीछे चलता रहे।+ 35 क्योंकि जो कोई अपनी जान* बचाना चाहता है वह उसे खोएगा, मगर जो कोई मेरी और खुशखबरी की खातिर अपनी जान* गँवाता है वह उसे बचाएगा।+ 36 वाकई, अगर एक इंसान सारी दुनिया हासिल कर ले मगर अपनी जान* गँवा बैठे, तो उसे क्या फायदा?+ 37 इंसान अपनी जान* के बदले भला क्या दे सकता है?+ 38 जो कोई इस विश्‍वासघाती* और पापी पीढ़ी के सामने मेरा चेला होने और मेरे वचनों पर विश्‍वास करने में शर्मिंदा महसूस करता है, उसे इंसान का बेटा भी उस वक्‍त स्वीकार करने में शर्मिंदा महसूस करेगा,+ जब वह अपने पिता से महिमा पाकर पवित्र स्वर्गदूतों के साथ आएगा।”+

9 फिर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यहाँ जो खड़े हैं, उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तब तक मौत का मुँह नहीं देखेंगे, जब तक कि वे यह न देख लें कि परमेश्‍वर का राज पूरी ताकत के साथ आ चुका है।”+ 2 इसके छ: दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना को अपने साथ लिया। वह उनको एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया, जहाँ उनके सिवा कोई नहीं था। उनके सामने यीशु का रूप बदल गया।+ 3 उसके कपड़े चमकने लगे और इतने उजले सफेद हो गए जितना कि कोई भी धोबी सफेद नहीं कर सकता। 4 वहाँ चेलों को एलियाह और मूसा भी दिखायी दिए, वे दोनों यीशु से बात कर रहे थे। 5 तब पतरस ने यीशु से कहा, “गुरु,* हम बहुत खुश हैं कि हम यहाँ आए। इसलिए हमें तीन तंबू खड़े करने दे, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।” 6 सच तो यह है कि पतरस को समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्या कहना चाहिए क्योंकि वे बहुत डर गए थे। 7 फिर एक बादल उभरा और उन पर छा गया और बादल में से यह आवाज़ आयी,+ “यह मेरा प्यारा बेटा है।+ इसकी सुनो।”+ 8 फिर अचानक चेलों ने आस-पास नज़र डाली और देखा कि अब वहाँ उनके साथ यीशु के सिवा कोई नहीं है।

9 जब वे पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने उन्हें सख्ती से आदेश दिया कि जब तक इंसान का बेटा मरे हुओं में से ज़िंदा न हो जाए, तब तक उन्होंने जो देखा है वह किसी को न बताएँ।+ 10 चेलों ने यह बात गाँठ बाँध ली।* मगर वे आपस में चर्चा करने लगे कि उसने मरे हुओं में से ज़िंदा होने की जो बात कही, उसका क्या मतलब है। 11 उन्होंने यीशु से पूछा, “शास्त्री क्यों कहते हैं कि पहले एलियाह+ का आना ज़रूरी है?”+ 12 उसने कहा, “एलियाह वाकई पहले आएगा और सबकुछ पहले जैसा कर देगा।+ मगर शास्त्र में फिर ऐसा क्यों लिखा है कि इंसान के बेटे को बहुत-सी तकलीफें झेलनी होंगी+ और उसे तुच्छ समझा जाएगा?+ 13 पर मैं तुमसे कहता हूँ कि एलियाह+ दरअसल आ चुका है और ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, उन्होंने उसके साथ वह सब किया जो वे करना चाहते थे।”+

14 जब वे बाकी चेलों के पास आए, तो उन्होंने देखा कि लोगों की भीड़ चेलों को घेरे हुए है और शास्त्री उनसे बहस कर रहे हैं।+ 15 मगर जैसे ही भीड़ ने यीशु को देखा, वे दंग रह गए और भागकर उसके पास आए और उसका स्वागत किया। 16 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम उनसे क्या बहस कर रहे हो?” 17 भीड़ में से एक ने कहा, “गुरु, मैं अपने बेटे को तेरे पास लाया था क्योंकि उसमें एक गूँगा दुष्ट स्वर्गदूत समाया है।+ 18 और जब कभी वह मेरे बेटे को पकड़ता है, तो उसे ज़मीन पर पटक देता है और मेरे बेटे के मुँह से झाग निकलने लगता है, वह दाँत पीसता है और बिलकुल बेजान हो जाता है। मैंने तेरे चेलों से इस दुष्ट दूत को निकालने के लिए कहा, मगर वे नहीं निकाल सके।” 19 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, “हे अविश्‍वासी लोगो,*+ मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हारी सहूँ? लड़के को मेरे पास लाओ।”+ 20 वे उसे यीशु के पास ले आए। मगर जैसे ही उस दुष्ट स्वर्गदूत ने यीशु को देखा, उसने बच्चे को मरोड़ा और वह बच्चा ज़मीन पर गिर पड़ा और लोटने और झाग उगलने लगा। 21 तब यीशु ने लड़के के पिता से पूछा, “इसकी यह हालत कब से है?” उसने कहा, “बचपन से। 22 इसकी जान लेने के लिए इस दुष्ट दूत ने कई बार इसे आग में झोंका है, तो कई बार पानी में गिराया है। लेकिन अगर तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खा और हमारी मदद कर।” 23 यीशु ने उससे कहा, “तू यह क्यों कह रहा है, ‘अगर तू कुछ कर सके’? जिसमें विश्‍वास है, उसके लिए सबकुछ मुमकिन है।”+ 24 उसी वक्‍त उस बच्चे के पिता ने ऊँची आवाज़ में कहा, “मुझमें विश्‍वास है, लेकिन अगर मेरे विश्‍वास में कोई कमी है, तो मेरी मदद कर!”+

25 तभी यीशु ने देखा कि लोगों की एक भीड़ उनकी तरफ दौड़ी चली आ रही है, इसलिए उसने दुष्ट स्वर्गदूत को फटकारा और कहा, “हे गूँगे और बहरे दूत, मैं तुझे हुक्म देता हूँ, इसमें से बाहर निकल आ और आइंदा कभी इसमें मत जाना!”+ 26 तब वह दुष्ट दूत ज़ोर से चिल्लाया और लड़के को बहुत मरोड़ने के बाद उसमें से निकल गया। वह बच्चा मुरदा-सा हो गया और ज़्यादातर लोग कहने लगे, “यह तो मर गया है!” 27 लेकिन यीशु ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया। 28 इसके बाद यीशु एक घर में गया और वहाँ उसके चेलों ने अकेले में उससे पूछा, “हम उस दुष्ट स्वर्गदूत को क्यों नहीं निकाल पाए?”+ 29 उसने कहा, “इस किस्म का दूत सिर्फ प्रार्थना से निकाला जा सकता है।”

30 वे उस जगह से निकल पड़े और गलील से होकर गए। यीशु नहीं चाहता था कि लोग जानें कि वह कहाँ है। 31 क्योंकि इस दौरान वह अपने चेलों को सिखा रहा था और उन्हें यह बता रहा था, “इंसान के बेटे के साथ विश्‍वासघात किया जाएगा और उसे लोगों के हवाले कर दिया जाएगा। वे उसे मार डालेंगे,+ मगर मरने के तीन दिन बाद वह ज़िंदा हो जाएगा।”+ 32 मगर चेले उसकी बात नहीं समझे और उससे सवाल पूछने से भी डर रहे थे।

33 फिर वे कफरनहूम आए। जब वह घर के अंदर था, तो उसने चेलों से पूछा, “तुम रास्ते में किस बात पर झगड़ रहे थे?”+ 34 वे चुप्पी साधे रहे क्योंकि वे इस बात पर झगड़ रहे थे कि हममें बड़ा कौन है। 35 तब उसने बैठकर बारहों को बुलाया और उनसे कहा, “अगर कोई सबसे बड़ा बनना चाहता है, तो ज़रूरी है कि वह सबसे छोटा बने और सबका सेवक बने।”+ 36 फिर उसने एक छोटे बच्चे को लेकर उनके बीच खड़ा किया और उसके कंधों पर हाथ रखकर उनसे कहा, 37 “जो कोई मेरे नाम से ऐसे एक भी बच्चे को स्वीकार करता है,+ वह मुझे स्वीकार करता है। और जो मुझे स्वीकार करता है, वह न सिर्फ मुझे बल्कि मेरे भेजनेवाले को भी स्वीकार करता है।”+

38 यूहन्‍ना ने उससे कहा, “गुरु, हमने देखा कि एक आदमी तेरा नाम लेकर लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाल रहा था और हमने उसे रोकने की कोशिश की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता।”+ 39 लेकिन यीशु ने कहा, “उसे रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से शक्‍तिशाली काम करे और पलटकर मुझे बदनाम भी करे। 40 जो हमारे खिलाफ नहीं, वह हमारे साथ है।+ 41 जो कोई तुम्हें इसलिए एक प्याला पानी पिलाता है कि तुम मसीह के हो,+ मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह अपना इनाम हरगिज़ न खोएगा।+ 42 लेकिन जो कोई विश्‍वास करनेवाले ऐसे छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है,* उसके लिए यही अच्छा है कि उसके गले में चक्की का वह पाट लटकाया जाए जिसे गधा घुमाता है और उसे समुंदर में फेंक दिया जाए।+

43 अगर तेरा हाथ कभी तुझसे पाप करवाए* तो उसे काट डाल। अच्छा यही होगा कि तू एक हाथ के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि दोनों हाथों समेत गेहन्‍ना* में डाला जाए, हाँ, उस आग में जो कभी बुझायी नहीं जा सकती।+ 44* — 45 और अगर तेरा पैर तुझसे पाप करवाता है* तो उसे काट डाल। अच्छा यही होगा कि तू एक पैर के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि तू दोनों पैरों समेत गेहन्‍ना* में डाला जाए।+ 46* — 47 और अगर तेरी आँख तुझसे पाप करवाती है* तो उसे निकालकर दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू एक आँख के बिना परमेश्‍वर के राज में दाखिल हो, बजाय इसके कि तुझे दोनों आँखों समेत गेहन्‍ना* में फेंक दिया जाए,+ 48 जहाँ कीड़े कभी नहीं मरते और आग कभी नहीं बुझती।+

49 इसलिए कि हर इंसान पर ऐसे आग बरसायी जाएगी जैसे नमक छिड़का जाता है।+ 50 नमक बढ़िया होता है, लेकिन अगर नमक अपना स्वाद खो दे, तो किस चीज़ से तुम उसे नमकीन कर पाओगे?+ खुद में नमक जैसा स्वाद रखो+ और आपस में शांति बनाए रखो।”+

10 यीशु उठा और वहाँ से निकलकर यरदन के पार यहूदिया की सरहदों के पास आया। उसके पास फिर से भीड़ जमा हो गयी। और जैसा उसका दस्तूर था, वह उन्हें एक बार फिर सिखाने लगा।+ 2 अब फरीसी आए और यीशु की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने उससे पूछा कि एक आदमी के लिए अपनी पत्नी को तलाक देना कानून के हिसाब से सही है या नहीं?+ 3 उसने कहा, “मूसा ने तुम्हें क्या आज्ञा दी है?” 4 उन्होंने कहा, “मूसा ने तलाकनामा लिखकर पत्नी को तलाक देने की इजाज़त दी है।”+ 5 मगर यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे दिलों की कठोरता की वजह से+ उसने तुम्हारे लिए यह आज्ञा लिखी।+ 6 मगर सृष्टि की शुरूआत से ‘परमेश्‍वर ने उन्हें नर और नारी बनाया था।+ 7 इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा+ 8 और वह और उसकी पत्नी* एक तन होंगे।’+ तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं। 9 इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है,* उसे कोई इंसान अलग न करे।”+ 10 एक बार फिर जब वे घर में थे, तो चेले इस बारे में उससे सवाल पूछने लगे। 11 यीशु ने उनसे कहा, “जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है और किसी दूसरी से शादी करता है, वह उस पहली औरत का हक मारता है और व्यभिचार* करने का दोषी है।+ 12 और अगर एक औरत अपने पति को तलाक देकर कभी किसी दूसरे से शादी करती है, तो वह व्यभिचार करने की दोषी है।”+

13 अब लोग यीशु के पास छोटे बच्चों को लाने लगे ताकि वह उन पर हाथ रखे, मगर चेलों ने उन्हें डाँटा।+ 14 यह देखकर यीशु नाराज़ हुआ और उसने कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि परमेश्‍वर का राज ऐसों ही का है।+ 15 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई परमेश्‍वर के राज को एक छोटे बच्चे की तरह स्वीकार नहीं करता, वह उसमें हरगिज़ नहीं जा पाएगा।”+ 16 फिर उसने बच्चों को अपनी बाँहों में लिया और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद देने लगा।+

17 जब वह निकलकर अपने रास्ते जा रहा था, तो एक आदमी दौड़कर आया और उसके सामने घुटनों के बल गिरा और उसने पूछा, “अच्छे गुरु, हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”+ 18 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? कोई अच्छा नहीं है, सिवा परमेश्‍वर के।+ 19 तू तो आज्ञाएँ जानता है, ‘खून न करना,+ व्यभिचार न करना,+ चोरी न करना,+ झूठी गवाही न देना,+ किसी को न ठगना+ और अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना।’”+ 20 उस आदमी ने कहा, “गुरु, ये सारी बातें तो मैं बचपन से मान रहा हूँ।” 21 यीशु ने प्यार से उसे देखा और कहा, “तुझमें एक चीज़ की कमी है: जा और जो कुछ तेरे पास है उसे बेचकर कंगालों को दे दे क्योंकि तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा और आकर मेरा चेला बन जा।”+ 22 मगर इस बात पर वह उदास हो गया और दुखी होकर चला गया क्योंकि उसके पास बहुत धन-संपत्ति थी।+

23 यीशु ने चारों तरफ देखने के बाद अपने चेलों से कहा, “पैसेवालों के लिए परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना कितना मुश्‍किल होगा!”+ 24 मगर चेले उसकी बातें सुनकर ताज्जुब करने लगे। तब यीशु ने दोबारा उनसे कहा, “बच्चो, परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना कितना मुश्‍किल है! 25 परमेश्‍वर के राज में एक अमीर आदमी के दाखिल होने से, एक ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है।”+ 26 यह सुनकर वे और भी हैरान रह गए और उन्होंने उससे* कहा, “तो भला कौन उद्धार पा सकता है?”+ 27 यीशु ने सीधे उनकी तरफ देखकर कहा, “इंसानों के लिए यह नामुमकिन है मगर परमेश्‍वर के लिए नहीं, क्योंकि परमेश्‍वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।”+ 28 तब पतरस ने उससे कहा, “देख! हम तो सबकुछ छोड़कर तेरे पीछे चल रहे हैं।”+ 29 यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, ऐसा कोई नहीं जिसने मेरी और खुशखबरी की खातिर घर या भाइयों या बहनों या पिता या माँ या बच्चों या खेतों को छोड़ा हो+ 30 और इस ज़माने में घरों, भाइयों, बहनों, माँओं, बच्चों और खेतों का 100 गुना न पाए पर ज़ुल्मों के साथ+ और आनेवाले ज़माने* में हमेशा की ज़िंदगी न पाए। 31 फिर भी बहुत-से जो पहले हैं वे आखिरी होंगे और जो आखिरी हैं वे पहले होंगे।”+

32 अब वे यरूशलेम जानेवाले रास्ते पर थे और यीशु उनके आगे-आगे चल रहा था। चेले हैरान थे और जो उनके पीछे-पीछे चल रहे थे उन्हें डर लगने लगा। एक बार फिर वह अपने 12 चेलों को अलग ले गया और उन्हें बताने लगा कि उसके साथ यह सब होनेवाला है:+ 33 “देखो! हम यरूशलेम जा रहे हैं और इंसान का बेटा प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हवाले किया जाएगा। वे उसे मौत की सज़ा सुनाएँगे और गैर-यहूदियों के हवाले कर देंगे। 34 वे उसकी खिल्ली उड़ाएँगे, उस पर थूकेंगे, उसे कोड़े लगाएँगे और मार डालेंगे मगर तीन दिन बाद वह ज़िंदा हो जाएगा।”+

35 जब्दी के बेटे याकूब और यूहन्‍ना+ उसके पास आए और उन्होंने कहा, “गुरु, हम चाहते हैं कि हम तुझसे जो कुछ कहें, तू हमारे लिए कर दे।”+ 36 उसने कहा, “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” 37 उन्होंने कहा, “जब तू महिमा पाएगा, तब हममें से एक को अपने दाएँ और दूसरे को अपने बाएँ बैठने देना।”+ 38 मगर यीशु ने उनसे कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम वह प्याला पी सकते हो जिसे मैं पी रहा हूँ? और मेरा जो बपतिस्मा हो रहा है, क्या तुम वह बपतिस्मा ले सकते हो?”+ 39 उन्होंने कहा, “हम कर सकते हैं।” तब यीशु ने उनसे कहा, “जो प्याला मैं पी रहा हूँ, उसे तुम भी पीओगे। और मेरा जो बपतिस्मा हो रहा है, वही तुम्हारा भी होगा।+ 40 मगर मेरे दायीं या बायीं तरफ बैठने की इजाज़त देने का अधिकार मेरे पास नहीं। ये जगह उनके लिए हैं, जिनके लिए ये तैयार की गयी हैं।”

41 जब बाकी दस ने इस बारे में सुना, तो उन्हें याकूब और यूहन्‍ना पर बहुत गुस्सा आया।+ 42 मगर यीशु ने चेलों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम जानते हो कि दुनिया में जिन्हें राज करनेवाले समझा जाता है, वे लोगों पर हुक्म चलाते हैं और उनके बड़े-बड़े लोग उन पर अधिकार जताते हैं।+ 43 मगर तुम्हारे बीच ऐसा नहीं होना चाहिए, बल्कि तुममें जो बड़ा बनना चाहता है, उसे तुम्हारा सेवक होना चाहिए+ 44 और जो कोई तुममें पहला होना चाहता है, उसे सबका दास होना चाहिए 45 क्योंकि इंसान का बेटा भी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है+ और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।”+

46 फिर वे यरीहो आए। मगर जब यीशु, उसके चेले और भारी तादाद में लोग यरीहो से बाहर जा रहे थे, तो (तिमाई का बेटा) बरतिमाई नाम का एक अंधा भिखारी सड़क के किनारे बैठा था।+ 47 जब उसने सुना कि यीशु नासरी वहाँ से जा रहा है, तो वह चिल्लाकर कहने लगा, “दाविद के वंशज+ यीशु, मुझ पर दया कर!”+ 48 इस पर कई लोगों ने उसे डाँटा कि वह चुप हो जाए, मगर वह और ज़ोर से चिल्लाने लगा, “दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर!” 49 तब यीशु रुक गया और उसने कहा, “उसे मेरे पास बुलाओ।” उन्होंने अंधे आदमी को बुलाया और कहा, “हिम्मत रख और खड़ा हो जा, वह तुझे बुला रहा है।” 50 उसने अपना चोगा फेंका और उछलकर खड़ा हो गया और यीशु के पास गया। 51 तब यीशु ने उससे कहा, “तू क्या चाहता है, मैं तेरे लिए क्या करूँ?” अंधे आदमी ने उससे कहा, “हे मेरे गुरु,* मेरी आँखों की रौशनी लौट आए।” 52 यीशु ने उससे कहा, “जा, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है।”+ उसी वक्‍त उसकी आँखों की रौशनी लौट आयी+ और वह यीशु के साथ उसी रास्ते पर चल दिया।

11 अब वे यरूशलेम के पास, जैतून पहाड़ पर बैतफगे और बैतनियाह+ गाँव पहुँचनेवाले थे। वहाँ उसने अपने दो चेलों को यह कहकर भेजा,+ 2 “जो गाँव तुम्हें नज़र आ रहा है उसमें जाओ। जैसे ही तुम वहाँ जाओगे, तुम्हें एक गधी का बच्चा बँधा हुआ मिलेगा, जिस पर आज तक कोई आदमी नहीं बैठा। उसे खोलकर ले आओ। 3 अगर कोई तुमसे कहे, ‘यह क्या कर रहे हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है और वह इसे जल्द वापस भेज देगा।’” 4 तब वे चले गए और उन्होंने गली के नुक्कड़ पर एक दरवाज़े के पास गधी के बच्चे को बँधा हुआ पाया और उसे खोल लिया।+ 5 मगर वहाँ खड़े कुछ लोगों ने उनसे पूछा, “तुम गधी के बच्चे को क्यों खोल रहे हो?” 6 चेलों ने उनसे वही कहा जो यीशु ने बताया था। तब उन्होंने चेलों को जाने दिया।

7 वे गधी के बच्चे+ को यीशु के पास ले आए। उन्होंने अपने ओढ़ने उस पर डाले और वह उस पर बैठ गया।+ 8 कई और लोगों ने अपने कपड़े रास्ते में बिछाए, जबकि दूसरों ने रास्ते के किनारे से पेड़ों की डालियाँ काटकर बिछा दीं।+ 9 जो लोग आगे-आगे चल रहे थे और जो पीछे-पीछे आ रहे थे, वे पुकार रहे थे, “हम बिनती करते हैं, इसे बचा ले!+ धन्य है वह जो यहोवा* के नाम से आता है!+ 10 हमारे पुरखे दाविद का आनेवाला राज धन्य हो!+ स्वर्ग में रहनेवाले, हम बिनती करते हैं, इसे बचा ले!” 11 फिर वह यरूशलेम पहुँचा और मंदिर में गया। वहाँ उसने आस-पास की सब चीज़ों पर नज़र डाली। मगर काफी वक्‍त हो चुका था, इसलिए वह उन बारहों के साथ बैतनियाह चला गया।+

12 अगले दिन जब वे बैतनियाह से निकल रहे थे, तो उसे भूख लगी।+ 13 दूर से उसकी नज़र एक हरे-भरे अंजीर के पेड़ पर पड़ी। वह यह देखने के लिए उसके पास गया कि शायद उसमें कुछ फल मिल जाएँ। मगर नज़दीक पहुँचने पर उसे पत्तियों को छोड़ कुछ नहीं मिला क्योंकि वह अंजीरों का मौसम नहीं था। 14 इसलिए उसने पेड़ से कहा, “अब से फिर कभी कोई तेरा फल न खा सके।”+ उसके चेले यह सुन रहे थे।

15 अब वे यरूशलेम आए। वह मंदिर में गया और जो लोग मंदिर के अंदर बिक्री और खरीदारी कर रहे थे, उन्हें वहाँ से खदेड़ने लगा। उसने पैसा बदलनेवाले सौदागरों की मेज़ें और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं।+ 16 उसने किसी को भी बरतन लेकर मंदिर में से नहीं जाने दिया। 17 उसने लोगों को सिखाया और उनसे कहा, “क्या यह नहीं लिखा है, ‘मेरा घर सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर कहलाएगा’?+ मगर तुम लोगों ने इसे लुटेरों का अड्डा* बना दिया है।”+ 18 जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने यह सुना, तो वे उसे मार डालने की तरकीब सोचने लगे+ क्योंकि वे उससे डरते थे और सारी भीड़ उसकी शिक्षा से दंग रह जाती थी।+

19 जब शाम हो गयी, तो वे शहर से बाहर निकल गए। 20 अगले दिन जब वे तड़के सुबह उधर से जा रहे थे, तो उन्होंने देखा कि अंजीर का वह पेड़ जड़ तक सूख गया है।+ 21 पतरस ने कल की बात याद करके कहा, “गुरु, देख! वह अंजीर का पेड़ जिसे तूने शाप दिया था, सूख गया है।”+ 22 तब यीशु ने उनसे कहा, “परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखो। 23 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे, ‘यहाँ से उखड़कर समुंदर में जा गिर,’ और अपने दिल में शक न करे मगर विश्‍वास रखे कि उसने जो कहा है वह ज़रूर होगा, तो उसके लिए वह हो जाएगा।+ 24 इसीलिए मैं तुमसे कहता हूँ, जो कुछ तुम प्रार्थना में माँगते हो उसके बारे में विश्‍वास रखो कि वह तुम्हें ज़रूर मिलेगा और वह तुम्हें मिल जाएगा।+ 25 जब तुम प्रार्थना करने खड़े हो और तुम्हारे दिल में किसी के खिलाफ कुछ है, तो उसे माफ कर दो। तब तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है, वह भी तुम्हारे अपराध माफ करेगा।”+ 26* —

27 वे एक बार फिर यरूशलेम आए। जब वह मंदिर में टहल रहा था तो प्रधान याजक, शास्त्री और मुखिया उसके पास आए 28 और उससे कहने लगे, “तू ये सब किस अधिकार से करता है? किसने तुझे यह अधिकार दिया है?”+ 29 यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुमसे एक सवाल पूछता हूँ। तुम उसका जवाब दो, तब मैं तुम्हें बताऊँगा कि मैं ये सब किस अधिकार से करता हूँ। 30 जो बपतिस्मा यूहन्‍ना ने दिया,+ वह स्वर्ग की तरफ से था या इंसानों की तरफ से? जवाब दो।”+ 31 वे एक-दूसरे से कहने लगे, “अगर हम कहें, ‘स्वर्ग की तरफ से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर क्यों तुमने उसका यकीन नहीं किया?’ 32 पर हम यह कहने की भी जुर्रत कैसे करें कि इंसानों की तरफ से था?” उन्हें भीड़ का डर था क्योंकि सब लोग मानते थे कि यूहन्‍ना वाकई एक भविष्यवक्‍ता था।+ 33 इसलिए उन्होंने यीशु को जवाब दिया, “हम नहीं जानते।” तब यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।”

12 फिर वह ये मिसालें देकर उनसे बात करने लगा: “किसी आदमी ने अंगूरों का बाग लगाया+ और उसके चारों तरफ एक बाड़ा बाँधा। उसने अंगूर रौंदने का हौद खोदा और एक मीनार खड़ी की।+ फिर उसे बागबानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया।+ 2 कटाई का मौसम आने पर उसने एक दास को बागबानों के पास भेजा ताकि वह अंगूरों की फसल में से उसका हिस्सा ले आए। 3 मगर बागबानों ने उस दास को पकड़ लिया, उसे पीटा और खाली हाथ भेज दिया। 4 फिर बाग के मालिक ने उनके पास एक और दास को भेजा। बागबानों ने उसका सिर फोड़ दिया और उसे बेइज़्ज़त किया।+ 5 फिर मालिक ने एक और दास को भेजा और उन्होंने उसे मार डाला। मालिक ने और भी बहुतों को भेजा, मगर कुछ को उन्होंने पीटा तो कुछ को मार डाला। 6 अब मालिक के पास एक ही रह गया, उसका प्यारा बेटा।+ उसने आखिर में यह सोचकर उसे बागबानों के पास भेजा, ‘वे मेरे बेटे की ज़रूर इज़्ज़त करेंगे।’ 7 मगर बागबान आपस में कहने लगे, ‘यह तो वारिस है।+ चलो इसे मार डालें, तब इसकी विरासत हमारी हो जाएगी।’ 8 उन्होंने उसे पकड़ लिया और मार डाला और बाग के बाहर फेंक दिया।+ 9 अब बाग का मालिक क्या करेगा? वह आकर उन बागबानों को मार डालेगा और अंगूरों का बाग दूसरों को ठेके पर दे देगा।+ 10 क्या तुमने शास्त्र में यह बात कभी नहीं पढ़ी, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है’?+ 11 क्या तुमने यह भी नहीं पढ़ा, ‘यह यहोवा* की तरफ से हुआ है और हमारी नज़र में लाजवाब है’?”+

12 यह सुनकर उसके दुश्‍मनों ने उसे पकड़ना* चाहा क्योंकि वे समझ गए कि उसने यह मिसाल उन्हीं को ध्यान में रखकर दी है। लेकिन वे भीड़ से डरते थे, इसलिए वे उसे छोड़कर चले गए।+

13 इसके बाद उन्होंने कुछ फरीसियों और हेरोदेस के गुट के लोगों को यीशु के पास भेजा ताकि वे उसकी बातों में उसे पकड़ सकें।+ 14 वे उसके पास आए और कहने लगे, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है और इंसानों को खुश करने की कोशिश नहीं करता, क्योंकि तू किसी की सूरत देखकर बात नहीं करता बल्कि सच्चाई के मुताबिक परमेश्‍वर की राह सिखाता है। हमें बता कि सम्राट* को कर देना सही* है या नहीं? 15 हमें कर देना चाहिए या नहीं?” यीशु उनका कपट भाँप गया और उसने कहा, “तुम मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? एक दीनार* लाकर मुझे दिखाओ।” 16 वे एक दीनार लाए। उसने कहा, “इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” उन्होंने कहा, “सम्राट की।” 17 तब यीशु ने कहा, “जो सम्राट* का है वह सम्राट को चुकाओ,+ मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।”+ वे उसका जवाब सुनकर दंग रह गए।

18 अब सदूकी उसके पास आए, जो कहते हैं कि मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने की शिक्षा सच नहीं है।+ उन्होंने उससे पूछा,+ 19 “गुरु, मूसा ने हमारे लिए लिखा है कि अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए और अपनी पत्नी छोड़ जाए, तो उसके भाई को चाहिए कि वह अपने मरे हुए भाई की पत्नी से शादी कर ले और अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे।+ 20 सात भाई थे। पहले ने शादी की मगर बेऔलाद मर गया। 21 तब दूसरे भाई ने उसकी पत्नी से शादी कर ली, मगर वह भी बेऔलाद मर गया। तीसरे के साथ भी ऐसा ही हुआ। 22 सातों भाई बेऔलाद मर गए। आखिर में वह औरत भी मर गयी। 23 अब बता, जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे, तब वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।” 24 यीशु ने उनसे कहा, “तुम बड़ी गलतफहमी में हो, क्योंकि तुम न तो शास्त्र को जानते हो, न ही परमेश्‍वर की शक्‍ति को।+ 25 क्योंकि जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे तो उनमें से न तो कोई आदमी शादी करेगा न कोई औरत, मगर वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे।+ 26 मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में, क्या तुमने मूसा की किताब में नहीं पढ़ा कि परमेश्‍वर ने झाड़ी के पास क्या कहा था, ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’?+ 27 वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्‍वर है। तुम बड़ी गलतफहमी में हो।”+

28 वहाँ आए शास्त्रियों में से एक उनकी बहस सुन रहा था। उसने यह देखकर कि यीशु ने उन्हें क्या ही बेहतरीन ढंग से जवाब दिया है, उससे पूछा, “सब आज्ञाओं में सबसे पहली* आज्ञा कौन-सी है?”+ 29 यीशु ने जवाब दिया, “सबसे पहली* यह है: ‘हे इसराएल सुन, हमारा परमेश्‍वर यहोवा* एक ही यहोवा* है। 30 और तू अपने परमेश्‍वर यहोवा* से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान,* अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना।’+ 31 और दूसरी यह है: ‘तू अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तू खुद से करता है।’+ और कोई आज्ञा इनसे बढ़कर नहीं।” 32 तब उस शास्त्री ने उससे कहा, “गुरु, तूने बिलकुल सही कहा। तेरी बात सच्चाई के मुताबिक है, ‘परमेश्‍वर एक ही है, उसके सिवा और कोई परमेश्‍वर नहीं।’+ 33 और इंसान को अपने पूरे दिल से, पूरी समझ के साथ और पूरी ताकत से उससे प्यार करना चाहिए और अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना चाहिए जैसे वह खुद से करता है। यह सारी होम-बलियों और बलिदानों से कहीं बढ़कर है।”+ 34 यीशु ने यह जानकर कि उस शास्त्री ने बड़ी अक्लमंदी से जवाब दिया है, उससे कहा, “तू परमेश्‍वर के राज से ज़्यादा दूर नहीं।” इसके बाद किसी ने यीशु से और सवाल पूछने की हिम्मत नहीं की।+

35 लेकिन मंदिर में सिखाते वक्‍त यीशु ने उनसे कहा, “शास्त्री क्यों कहते हैं कि मसीह, दाविद का सिर्फ एक वंशज है?+ 36 दाविद ने पवित्र शक्‍ति से उभारे जाने पर+ खुद कहा था, ‘यहोवा* ने मेरे प्रभु से कहा, “तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ, जब तक कि मैं तेरे दुश्‍मनों को तेरे पैरों तले न कर दूँ।”’+ 37 जब दाविद खुद मसीह को प्रभु कहता है, तो फिर मसीह, दाविद का वंशज कैसे हो सकता है?”+

लोगों की भीड़ खुशी से उसकी सुन रही थी। 38 फिर उसने लोगों को यह सिखाया, “शास्त्रियों से खबरदार रहो, जिन्हें लंबे-लंबे चोगे पहनकर घूमना और बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना अच्छा लगता है।+ 39 उन्हें सभा-घरों में सबसे आगे की* जगहों पर बैठना और शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना पसंद है।+ 40 वे विधवाओं के घर* हड़प जाते हैं और दिखावे के लिए लंबी-लंबी प्रार्थनाएँ करते हैं। इन्हें दूसरों के मुकाबले और भी कड़ी सज़ा मिलेगी।”

41 फिर यीशु दान-पात्रों के सामने बैठ गया+ और देखने लगा कि लोगों की भीड़ कैसे दान-पात्रों में पैसे डाल रही है। वहाँ बहुत-से अमीर लोग ढेरों सिक्के डाल रहे थे।+ 42 फिर एक गरीब विधवा आयी और उसने दो पैसे* डाले, जिनकी कीमत न के बराबर थी।+ 43 तब यीशु ने अपने चेलों को पास बुलाया और कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, यहाँ जितने लोग दान-पात्रों में पैसे डाल रहे हैं, उनमें से इस गरीब विधवा ने सबसे ज़्यादा डाला है,+ 44 क्योंकि वे सब अपनी बहुतायत में से डाल रहे हैं, मगर इसने अपनी तंगी में से डाला है, अपने गुज़ारे के लिए जो कुछ उसके पास था उसने सब दे दिया।”+

13 जब वह मंदिर से बाहर निकल रहा था, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “गुरु, देख! ये कितने बढ़िया पत्थर हैं, कितनी शानदार इमारतें हैं!”+ 2 लेकिन यीशु ने उससे कहा, “ये जो आलीशान इमारतें तू देख रहा है, इनका एक भी पत्थर दूसरे पत्थर के ऊपर हरगिज़ न बचेगा जो ढाया न जाए।”+

3 जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा था जहाँ से मंदिर नज़र आता था तब पतरस, याकूब, यूहन्‍ना और अन्द्रियास ने अकेले में उससे पूछा, 4 “हमें बता, ये सब बातें कब होंगी और जब इनका आखिरी वक्‍त पास आ रहा होगा तो उसकी क्या निशानी होगी?”+ 5 तब यीशु ने उनसे कहा, “खबरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न करे।+ 6 बहुत-से लोग आएँगे और मेरा नाम लेकर दावा करेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और बहुतों को गुमराह करेंगे। 7 जब तुम युद्धों का शोरगुल और युद्धों की खबरें सुनो, तो घबरा न जाना। इन सबका होना ज़रूरी है मगर तभी अंत न होगा।+

8 क्योंकि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा।+ एक-के-बाद-एक कई जगह भूकंप होंगे और अकाल भी पड़ेंगे।+ ये बातें प्रसव-पीड़ा की तरह मुसीबतों की सिर्फ शुरूआत होंगी।+

9 मगर तुम चौकन्‍ने रहना। लोग तुम्हें निचली अदालतों के हवाले कर देंगे+ और तुम सभा-घरों में पीटे जाओगे।+ तुम मेरी वजह से राज्यपालों और राजाओं के सामने कठघरे में पेश किए जाओगे ताकि उन्हें गवाही मिले।+ 10 और यह ज़रूरी है कि पहले सब राष्ट्रों में खुशखबरी का प्रचार किया जाए।+ 11 मगर जब वे तुम्हें अदालत के हवाले करने ले जा रहे होंगे, तो पहले से चिंता मत करना कि हम क्या कहेंगे। पर जो कुछ तुम्हें उस घड़ी बताया जाए, वही कहना क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति होगी।+ 12 यही नहीं, भाई, भाई को मरवाने के लिए सौंप देगा और पिता अपने बच्चे को। बच्चे अपने माँ-बाप के खिलाफ खड़े होंगे और उन्हें मरवा डालेंगे।+ 13 मेरे नाम की वजह से सब लोग तुमसे नफरत करेंगे।+ मगर जो अंत तक धीरज धरेगा,*+ वही उद्धार पाएगा।+

14 लेकिन जब तुम्हें वह उजाड़नेवाली घिनौनी चीज़ वहाँ खड़ी नज़र आए+ जहाँ उसे नहीं खड़ा होना चाहिए (पढ़नेवाला समझ इस्तेमाल करे), तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें।+ 15 जो आदमी घर की छत पर हो वह नीचे न उतरे, न ही कुछ लेने के लिए अपने घर के अंदर जाए। 16 जो आदमी खेत में हो वह अपना चोगा लेने या उन चीज़ों को लेने वापस न लौटे जो पीछे छूट गयी हैं। 17 जो गर्भवती होंगी और जो बच्चे को दूध पिलाती होंगी, उनके लिए वे दिन क्या ही भयानक होंगे!+ 18 प्रार्थना करते रहो कि ऐसा सर्दियों के मौसम में न हो। 19 क्योंकि उन दिनों ऐसा संकट आएगा+ जैसा सृष्टि की शुरूआत से, जो परमेश्‍वर ने रची है, न अब तक आया है और न फिर कभी आएगा।+ 20 दरअसल अगर यहोवा* वे दिन न घटाए, तो कोई भी नहीं बच पाएगा। मगर चुने हुओं की खातिर जिन्हें परमेश्‍वर ने चुना है, उसने वे दिन घटाए हैं।+

21 उन दिनों अगर कोई तुमसे कहे, ‘देखो! मसीह यहाँ है,’ ‘देखो! वह वहाँ है,’ तो यकीन न करना।+ 22 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यवक्‍ता उठ खड़े होंगे+ और चमत्कार और अजूबे दिखाएँगे ताकि हो सके तो चुने हुओं को भी बहका लें। 23 इसलिए तुम चौकन्‍ने रहना।+ मैंने तुम्हें सब बातें पहले से बता दी हैं।

24 मगर उन दिनों, उस संकट के बाद सूरज अँधियारा हो जाएगा, चाँद अपनी रौशनी नहीं देगा,+ 25 आकाश से तारे गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्‍तियाँ हिलायी जाएँगी। 26 फिर वे इंसान के बेटे+ को पूरी शक्‍ति और महिमा के साथ बादलों में आता देखेंगे।+ 27 फिर वह स्वर्गदूतों को भेजेगा और पृथ्वी के छोर से लेकर आकाश के छोर तक, चारों दिशाओं से अपने चुने हुओं को इकट्ठा करेगा।+

28 अब अंजीर के पेड़ की मिसाल से यह बात सीखो: जैसे ही उसकी नयी डाली नरम हो जाती है और उस पर पत्तियाँ आने लगती हैं, तुम जान लेते हो कि गरमियों का मौसम पास है।+ 29 उसी तरह, जब तुम ये बातें होती देखो, तो जान लेना कि इंसान का बेटा पास है बल्कि दरवाज़े पर ही है।+ 30 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक ये सारी बातें पूरी न हो जाएँ, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ नहीं मिटेगी।+ 31 आकाश और पृथ्वी मिट जाएँगे,+ मगर मेरे शब्द कभी नहीं मिटेंगे।+

32 उस दिन या उस घड़ी के बारे में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न बेटा बल्कि पिता जानता है।+ 33 जागते रहो, आँखों में नींद न आने दो+ क्योंकि तुम नहीं जानते कि तय किया हुआ वक्‍त कब आएगा।+ 34 यह ऐसा है मानो एक आदमी परदेस जा रहा हो। घर छोड़ने से पहले वह अपने दासों को अधिकार देता है+ और हरेक को उसका काम सौंपता है और दरबान को जागते रहने का हुक्म देता है।+ 35 इसलिए जागते रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का मालिक कब आ रहा है,+ दिन ढलने पर, आधी रात को, मुर्गे के बाँग देने के वक्‍त या सुबह।+ 36 कहीं ऐसा न हो कि जब वह अचानक आए, तो तुम्हें सोता हुआ पाए।+ 37 मगर जो मैं तुमसे कहता हूँ वही सब से कहता हूँ, जागते रहो।”+

14 दो दिन बाद फसह+ और बिन-खमीर की रोटी का त्योहार था।+ और प्रधान याजक और शास्त्री मौका ढूँढ़ रहे थे कि कैसे यीशु को छल से पकड़ें* और मार डालें।+ 2 पर वे कह रहे थे, “त्योहार के वक्‍त नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोग हंगामा मचा दें।”

3 जब वह बैतनियाह में शमौन के घर खाना खाने बैठा हुआ था* जो पहले कोढ़ी था, तब एक औरत खुशबूदार तेल की बोतल* लेकर आयी। उसमें असली जटामाँसी का खुशबूदार तेल था, जो बहुत कीमती था। उस औरत ने बोतल तोड़कर खोली और वह यीशु के सिर पर तेल उँडेलने लगी।+ 4 यह देखकर कुछ लोग भड़क उठे और आपस में कहने लगे, “यह खुशबूदार तेल क्यों बरबाद कर दिया गया? 5 इसे 300 दीनार* से भी ज़्यादा दाम में बेचकर पैसा गरीबों को दिया जा सकता था!” वे उस औरत पर बहुत नाराज़ हुए।* 6 मगर यीशु ने कहा, “तुम क्यों इसे परेशान कर रहे हो? छोड़ दो इसे। इसने मेरी खातिर एक बढ़िया काम किया है।+ 7 गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे+ और तुम जब चाहो उनके साथ भलाई कर सकते हो, मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।+ 8 वह जो कर सकती थी उसने किया। उसने मेरे शरीर पर खुशबूदार तेल मलकर मेरे दफनाए जाने की तैयारी की है।+ 9 मैं तुमसे सच कहता हूँ, सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा,+ वहाँ इस औरत की याद में इसके काम की चर्चा की जाएगी।”+

10 यहूदा इस्करियोती जो बारहों में से एक था, निकलकर प्रधान याजकों के पास गया ताकि यीशु को उनके हाथों पकड़वा दे।+ 11 जब उन्होंने उसकी बात सुनी तो वे बहुत खुश हुए और उसे चाँदी के सिक्के देने का वादा किया।+ तब से यहूदा यीशु को पकड़वाने का मौका ढूँढ़ने लगा।

12 बिन-खमीर की रोटी के त्योहार के पहले दिन,+ जब यहूदी अपने दस्तूर के मुताबिक फसह का जानवर बलि करते थे,+ उसके चेलों ने उससे पूछा, “तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फसह का खाना खाने की तैयारी करें?”+ 13 तब उसने अपने दो चेलों को यह कहकर भेजा, “शहर में जाओ और तुम्हें एक आदमी पानी का घड़ा उठाए हुए मिलेगा। उसके पीछे-पीछे जाना।+ 14 वह जिस घर में जाए उस घर के मालिक से कहना, ‘गुरु ने पूछा है, “मेहमानों का वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने चेलों के साथ फसह का खाना खाऊँ?”’ 15 फिर वह तुम्हें ऊपर का एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो सजा हुआ होगा। वहाँ हमारे लिए तैयारी करना।” 16 तब वे चेले निकले और शहर के अंदर गए और जैसा उसने बताया था ठीक वैसा ही पाया। और उन्होंने फसह की तैयारी की।

17 शाम होने पर वह बारहों के साथ आया।+ 18 और जब वे खाना खा रहे थे,* तब यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुममें से एक जो मेरे साथ खा रहा है, मेरे साथ विश्‍वासघात करके मुझे पकड़वा देगा।”+ 19 वे दुखी होने लगे और एक-एक करके उससे कहने लगे, “वह मैं तो नहीं हूँ न?” 20 उसने कहा, “वह तुम बारहों में से एक है जो मेरे साथ कटोरे में निवाला डुबोकर खा रहा है।+ 21 इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, मगर उस आदमी का बहुत बुरा होगा जो इंसान के बेटे के साथ विश्‍वासघात करके उसे पकड़वा देगा!+ उस आदमी के लिए अच्छा तो यह होता कि वह पैदा ही न हुआ होता।”+

22 जब वे खाना खा रहे थे, तो यीशु ने एक रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उसे तोड़ा और उन्हें देकर कहा, “यह लो, यह मेरे शरीर की निशानी है।”+ 23 फिर उसने एक प्याला लिया और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उन्हें दिया और उन सबने उसमें से पीया।+ 24 फिर यीशु ने उनसे कहा, “यह मेरे खून की निशानी है,+ जो करार+ को पक्का करता है और जो बहुतों की खातिर बहाया जाएगा।+ 25 मैं तुमसे सच कहता हूँ, मैं दाख-मदिरा* उस दिन तक हरगिज़ नहीं पीऊँगा, जिस दिन मैं परमेश्‍वर के राज में नयी दाख-मदिरा न पीऊँ।” 26 आखिर में उन्होंने परमेश्‍वर की तारीफ में गीत* गाए और फिर जैतून पहाड़ की तरफ निकल गए।+

27 यीशु ने उनसे कहा, “तुम सबका विश्‍वास डगमगा जाएगा* क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा+ और भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’+ 28 लेकिन जब मुझे ज़िंदा कर दिया जाएगा, तो मैं तुमसे पहले गलील जाऊँगा।”+ 29 मगर पतरस ने उससे कहा, “चाहे इन सबका विश्‍वास क्यों न डगमगा जाए, मगर मेरा विश्‍वास नहीं डगमगाएगा।”+ 30 तब यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, आज ही, हाँ, इसी रात मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ 31 मगर पतरस बार-बार कहने लगा, “अगर मुझे तेरे साथ मरना पड़े, तब भी मैं तुझे जानने से हरगिज़ इनकार नहीं करूँगा।” बाकी चेले भी यही कहने लगे।+

32 फिर वे गतसमनी नाम की जगह आए और उसने अपने चेलों से कहा, “मैं वहाँ प्रार्थना करने जा रहा हूँ, तुम यहीं बैठे रहना।”+ 33 फिर उसने पतरस, याकूब और यूहन्‍ना को अपने साथ लिया।+ वह मन-ही-मन बेचैन हो उठा* और दुख से बेहाल होने लगा। 34 उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत दुखी है,+ यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत हो रही है। यहीं ठहरो और जागते रहो।”+ 35 फिर वह थोड़ा आगे गया और ज़मीन पर गिरकर प्रार्थना करने लगा कि अगर हो सके तो यह वक्‍त टल जाए। 36 उसने कहा, “हे अब्बा,* हे पिता,+ तेरे लिए सबकुछ मुमकिन है। यह प्याला मेरे सामने से हटा दे। मगर फिर भी जो मैं चाहता हूँ वह नहीं, बल्कि वही हो जो तू चाहता है।”+ 37 जब वह चेलों के पास वापस आया, तो उसने देखा कि वे सो रहे हैं। उसने पतरस से कहा, “शमौन, तू सो रहा है? क्या तुझमें इतनी भी ताकत नहीं कि थोड़ी देर मेरे साथ जाग सके?+ 38 जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।+ दिल तो बेशक तैयार* है, मगर शरीर कमज़ोर है।”+ 39 वह दोबारा गया और उसने फिर से वही प्रार्थना की।+ 40 वह फिर चेलों के पास आया और उसने उन्हें सोता हुआ पाया क्योंकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। वे नहीं जानते थे कि उसे क्या जवाब दें। 41 फिर वह तीसरी बार उनके पास आया और उसने कहा, “तुम ऐसे वक्‍त में सो रहे हो और आराम कर रहे हो! बहुत हुआ! देखो, वह घड़ी आ गयी है!+ अब इंसान के बेटे के साथ विश्‍वासघात करके उसे पापियों के हाथ सौंप दिया जाएगा। 42 उठो, आओ चलें। देखो, मुझसे गद्दारी करनेवाला पास आ गया है।”+

43 वह बोल ही रहा था कि तभी यहूदा आ गया, जो उन बारहों में से एक था। उसके साथ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए लोगों की भीड़ थी जिसे प्रधान याजकों, शास्त्रियों और मुखियाओं ने भेजा था।+ 44 उसके साथ विश्‍वासघात करनेवाले ने यह कहकर उन्हें पहले से एक निशानी दी थी, “जिसे मैं चूमूँगा, वही है। उसे गिरफ्तार कर लेना और सावधानी से ले जाना।” 45 वह सीधे यीशु की तरफ आया और पास आकर उसने कहा, “रब्बी!” और उसे प्यार से चूमा। 46 तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और हिरासत में ले लिया। 47 मगर वहाँ जो खड़े थे उनमें से एक ने अपनी तलवार खींचकर महायाजक के दास पर वार किया और उसका कान उड़ा दिया।+ 48 यीशु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे गिरफ्तार करने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ?+ 49 मैं हर दिन तुम्हारे बीच मंदिर में सिखाया करता था,+ फिर भी तुमने मुझे हिरासत में नहीं लिया। मगर यह सब इसलिए हुआ है ताकि शास्त्र के वचन पूरे हों।”+

50 तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।+ 51 मगर एक नौजवान जो सिर्फ एक बढ़िया मलमल का कपड़ा ओढ़े था, उसके पीछे-पीछे आने लगा। लेकिन जब भीड़ ने उसे पकड़ने की कोशिश की, 52 तो वह अपना मलमल का कपड़ा छोड़कर नंगा* भाग गया।

53 अब वे यीशु को महायाजक के पास ले गए+ और सारे प्रधान याजक, मुखिया और शास्त्री वहाँ इकट्ठा हुए।+ 54 मगर पतरस कुछ दूरी पर रहकर उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन तक आया। वह घर के सेवकों के साथ बैठ गया और आग तापने लगा।+ 55 प्रधान याजक और पूरी महासभा यीशु को मार डालने के लिए उसके खिलाफ झूठी गवाही ढूँढ़ रही थी, मगर उन्हें ऐसी एक भी गवाही नहीं मिली।+ 56 बेशक, बहुत-से लोग उसके खिलाफ झूठी गवाही दे रहे थे,+ मगर उनके बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे थे। 57 कुछ लोगों ने खड़े होकर उसके खिलाफ यह झूठी गवाही दी, 58 “हमने इसे यह कहते सुना है कि मैं हाथ के बनाए इस मंदिर को ढा दूँगा और तीन दिन के अंदर दूसरा मंदिर खड़ा कर दूँगा जो हाथों से नहीं बना होगा।”+ 59 मगर इस बारे में भी उनके बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खा रहे थे।

60 तब महायाजक उनके बीच खड़ा हुआ और उसने यीशु से पूछा, “क्या तू जवाब में कुछ नहीं कहेगा? क्या तू सुन नहीं रहा कि ये तुझ पर क्या-क्या इलज़ाम लगा रहे हैं?”+ 61 मगर तब भी यीशु चुप रहा और उसने कोई जवाब नहीं दिया।+ एक बार फिर महायाजक उससे सवाल करने लगा और उससे कहा, “क्या तू परम-प्रधान परमेश्‍वर का बेटा, मसीह है?” 62 यीशु ने कहा, “हाँ मैं हूँ। और तुम लोग इंसान के बेटे+ को शक्‍तिशाली परमेश्‍वर के दाएँ हाथ बैठा+ और आकाश के बादलों के साथ आता देखोगे।”+ 63 यह सुनते ही महायाजक ने अपना कपड़ा फाड़ा और कहा, “अब हमें और गवाहों की क्या ज़रूरत है?+ 64 तुम लोगों ने ये निंदा की बातें सुनी हैं। अब तुम्हारा क्या फैसला है?”* उन सबने कहा कि यह मौत की सज़ा के लायक है।+ 65 कुछ उस पर थूकने लगे+ और उसका मुँह ढाँपकर उसे घूँसे मारने लगे और उससे कहने लगे, “भविष्यवाणी कर, तुझे किसने मारा!” और पहरेदारों ने उसके मुँह पर थप्पड़ मारे और उसे ले गए।+

66 जब पतरस नीचे आँगन में था, तो महायाजक की एक दासी आयी।+ 67 पतरस को आग तापते देख, वह उस पर नज़रें गड़ाकर बोली, “तू भी उस नासरी यीशु के साथ था।” 68 मगर उसने यह कहकर इनकार कर दिया, “न तो मैं उसे जानता हूँ न मुझे यह समझ आ रहा है कि तू क्या कह रही है।” तब वह बाहर फाटक* के पास चला गया। 69 वहाँ उस दासी ने उसे देखा और वहाँ खड़े लोगों से एक बार फिर कहा, “यह भी उनमें से एक है।” 70 पतरस फिर से इनकार करने लगा। थोड़ी देर बाद आस-पास खड़े लोग फिर से पतरस से कहने लगे, “बेशक तू भी उनमें से एक है क्योंकि तू एक गलीली है।” 71 मगर वह खुद को कोसने लगा और कसम खाकर कहने लगा, “मैं उस आदमी को नहीं जानता जिसकी तुम बात कर रहे हो!” 72 उसी घड़ी एक मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी+ और पतरस को यीशु की यह बात याद आयी, “मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ तब उससे और बरदाश्‍त नहीं हुआ और वह फूट-फूटकर रोने लगा।

15 सुबह होते ही मुखियाओं और शास्त्रियों ने प्रधान याजकों के साथ मिलकर यानी पूरी महासभा ने आपस में सलाह-मशविरा किया। उन्होंने यीशु को बाँधा और पीलातुस के पास ले गए और उसके हवाले कर दिया।+ 2 तब पीलातुस ने यीशु से सवाल किया, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”+ जवाब में उसने कहा, “तू खुद यह कहता है।”+ 3 लेकिन प्रधान याजक उस पर तरह-तरह के इलज़ाम लगाने लगे। 4 अब पीलातुस एक बार फिर उससे सवाल करने लगा, “क्या तेरे पास कोई जवाब नहीं?+ देख, ये तुझ पर कितने इलज़ाम लगा रहे हैं।”+ 5 मगर यीशु ने और कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए पीलातुस को बहुत ताज्जुब हुआ।+

6 ऐसा था कि पीलातुस हर साल त्योहार के वक्‍त, लोगों की गुज़ारिश पर किसी एक कैदी को रिहा कर देता था।+ 7 उस वक्‍त बरअब्बा नाम का एक आदमी कुछ और लोगों के साथ जेल में कैद था। इन सबने सरकार के खिलाफ बगावत की थी और खून किया था। 8 अब भीड़ पीलातुस के पास आयी और गुज़ारिश करने लगी कि जैसा वह उनके लिए करता आया है, वैसा ही करे। 9 उसने लोगों से कहा, “क्या मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के राजा को रिहा कर दूँ?”+ 10 पीलातुस जानता था कि प्रधान याजकों ने ईर्ष्या की वजह से यीशु को उसके हवाले किया था।+ 11 मगर प्रधान याजकों ने भीड़ को यह कहने के लिए भड़काया कि वह यीशु के बजाय बरअब्बा को रिहा करे।+ 12 एक बार फिर पीलातुस ने उनसे कहा, “तो मैं इस आदमी का क्या करूँ जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो?”+ 13 वे फिर चिल्ला उठे, “इसे काठ पर लटका दे!”*+ 14 मगर उसने कहा, “क्यों, इसने क्या बुरा किया है?” मगर वे और भी ज़ोर से चिल्लाने लगे, “इसे काठ पर लटका दे!”*+ 15 तब पीलातुस ने भीड़ को खुश करने के लिए बरअब्बा को रिहा कर दिया और यीशु को कोड़े लगवाने के बाद,+ काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए सौंप दिया।+

16 फिर सैनिक यीशु को राज्यपाल के भवन के अंदर, आँगन में ले गए। उन्होंने सैनिकों की पूरी पलटन को वहाँ बुला लिया।+ 17 उन्होंने उसे बैंजनी कपड़ा पहनाया और काँटों का एक ताज बनाकर उसके सिर पर रखा। 18 वे ज़ोर से चिल्लाकर कहने लगे, “हे यहूदियों के राजा, सलाम!”*+ 19 वे नरकट से उसे सिर पर मारने लगे, उस पर थूकने लगे और उसे झुककर प्रणाम* करने लगे। 20 जब उन्होंने उसका खूब मज़ाक उड़ा लिया, तो वह बैंजनी कपड़ा उतार दिया और उसी के कपड़े उसे पहना दिए। फिर वे उसे काठ पर ठोंकने के लिए ले गए।+ 21 उस वक्‍त शमौन नाम का एक आदमी देहात से आ रहा था और वहाँ से गुज़र रहा था। वह कुरेने का रहनेवाला था और सिकंदर और रूफुस का पिता था। सैनिकों ने उसे जबरन सेवा के लिए पकड़ा कि वह यीशु का यातना का काठ* उठाकर ले चले।+

22 फिर वे यीशु को गुलगुता नाम की जगह ले आए, जिसका मतलब है, “खोपड़ी स्थान।”+ 23 यहाँ उन्होंने उसे नशीली गंधरस मिली दाख-मदिरा पिलाने की कोशिश की,+ मगर उसने नहीं पी। 24 उन्होंने उसे काठ पर ठोंक दिया और उसके ओढ़ने के लिए चिट्ठियाँ डालीं ताकि तय कर सकें कि किसे क्या मिलेगा और उन्हें आपस में बाँट लिया।+ 25 यह तीसरा घंटा* था और उन्होंने उसे काठ पर ठोंक दिया। 26 उस पर जो इलज़ाम था, उसे लिखकर ऊपर लगा दिया गया: “यहूदियों का राजा।”+ 27 और उन्होंने उसके साथ दो लुटेरों को भी काठ पर लटकाया, एक उसके दायीं तरफ और दूसरा बायीं तरफ।+ 28* — 29 जो लोग वहाँ से गुज़र रहे थे वे सिर हिला-हिलाकर उसकी बेइज़्ज़ती करने लगे,+ “अरे ओ मंदिर को ढानेवाले, उसे तीन दिन के अंदर बनानेवाले!+ 30 यातना के काठ* से नीचे उतरकर खुद को बचा ले।” 31 इसी तरह, प्रधान याजक भी शास्त्रियों के साथ मिलकर यह कहते हुए आपस में उसका मज़ाक उड़ा रहे थे, “इसने दूसरों को तो बचाया, मगर खुद को नहीं बचा सकता!+ 32 ज़रा इसराएल का राजा मसीह अब यातना के काठ* से नीचे तो उतरे ताकि हम देखें और यकीन करें।”+ यहाँ तक कि जो आदमी उसके दोनों तरफ काठ पर थे, वे भी उसे बुरा-भला कह रहे थे।+

33 जब छठा घंटा* हुआ, तो पूरे देश में अंधकार छा गया और नौवें घंटे* तक छाया रहा।+ 34 नौवें घंटे में यीशु ने ज़ोर से पुकारा, “एली, एली, लामा शबकतानी?” जिसका मतलब है, “मेरे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?”+ 35 यह सुनकर पास खड़े कुछ लोग कहने लगे, “देखो! यह एलियाह को पुकार रहा है।” 36 फिर एक आदमी भागकर गया और उसने एक स्पंज को खट्टी दाख-मदिरा में डुबोकर नरकट पर रखा और उसे यह कहते हुए पीने के लिए दिया,+ “देखते हैं, एलियाह इसे नीचे उतारने के लिए आता है या नहीं।” 37 लेकिन यीशु ज़ोर से चिल्लाया और उसने दम तोड़ दिया।*+ 38 तब मंदिर का परदा+ ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया।+ 39 जब उसके सामने खड़े सेना-अफसर* ने देखा कि उसकी मौत पर क्या-क्या हुआ तो उसने कहा, “वाकई यह इंसान, परमेश्‍वर का बेटा था।”+

40 वहाँ कुछ औरतें भी थीं, जो दूर खड़ी देख रही थीं। उनमें मरियम मगदलीनी, छोटे याकूब और योसेस की माँ मरियम और सलोमी भी थीं।+ 41 ये औरतें उसके साथ-साथ रहती थीं और जब वह गलील में था तब उसकी सेवा करती थीं।+ वहाँ और भी कई औरतें थीं जो उसके साथ यरूशलेम आयी थीं।

42 दोपहर काफी बीत चुकी थी और यह तैयारी का दिन था यानी सब्त से पहले का दिन। 43 इसलिए अरिमतियाह का रहनेवाला यूसुफ वहाँ आया जो धर्म-सभा* का एक इज़्ज़तदार सदस्य था। वह खुद भी परमेश्‍वर के राज के आने का इंतज़ार कर रहा था। वह हिम्मत करके पीलातुस के सामने गया और उसने यीशु की लाश माँगी।+ 44 मगर पीलातुस को ताज्जुब हुआ कि यीशु वाकई मर चुका है। इसलिए उसने सेना-अफसर को बुलाकर पूछा कि क्या वह मर चुका है। 45 पीलातुस ने सेना-अफसर से यह पक्का कर लेने के बाद कि वह मर चुका है, उसकी लाश यूसुफ को सौंप दी। 46 तब यूसुफ बढ़िया मलमल खरीदकर ले आया और उसने यीशु की लाश नीचे उतारी और उसे मलमल में लपेटकर एक कब्र* में रख दिया,+ जो चट्टान खोदकर बनायी गयी थी। और कब्र* के द्वार पर एक पत्थर लुढ़काकर उसे बंद कर दिया।+ 47 लेकिन मरियम मगदलीनी और योसेस की माँ मरियम उस जगह को देखती रहीं जहाँ उसे रखा गया था।+

16 जब सब्त का दिन+ बीत गया, तो मरियम मगदलीनी, याकूब की माँ मरियम+ और सलोमी ने खुशबूदार मसाले खरीदे ताकि आकर यीशु के शरीर पर लगाएँ।+ 2 वे हफ्ते के पहले दिन सुबह-सुबह, जब सूरज निकला ही था, कब्र* पर आयीं।+ 3 वे आपस में कह रही थीं, “कौन हमारे लिए कब्र के मुँह से पत्थर हटाएगा?” 4 मगर जब उन्होंने नज़र उठाकर देखा, तो पत्थर पहले से ही दूर लुढ़का हुआ था, इसके बावजूद कि वह बहुत बड़ा था।+ 5 जब वे कब्र के अंदर गयीं, तो उन्होंने देखा कि एक नौजवान सफेद चोगा पहने दायीं तरफ बैठा है और वे हैरान रह गयीं। 6 उसने उनसे कहा, “हैरान मत हो।+ तुम यीशु नासरी को ढूँढ़ रही हो न, जिसे काठ पर लटकाकर मार डाला गया था? उसे ज़िंदा कर दिया गया है+ और वह यहाँ नहीं है। यह जगह देखो जहाँ उसे रखा गया था।+ 7 जाओ और जाकर पतरस और बाकी चेलों से कहो, ‘वह तुमसे पहले गलील जाएगा।+ वहाँ तुम उसे देखोगे, ठीक जैसा उसने तुमसे कहा था।’”+ 8 इसलिए जब वे बाहर निकलीं तो वे कब्र से भागीं। वे थर-थर काँप रही थीं और इस कदर हैरान थीं कि उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया क्योंकि वे बहुत डरी हुई थीं।*+

अति. क5 देखें।

या “डुबकी दिलाता।”

या शायद, “वे जानते थे कि वह कौन है।”

या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”

या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”

या “नज़राने की रोटी।”

या “लकवा मार गया था।”

या “जिसका हाथ लकवा मार गया था।”

या “चुना।”

या “चुना।”

शा., “कनानानी।”

शैतान को दिया एक नाम।

शा., “तो वे ठोकर खाते हैं।”

या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।

या “नापने की टोकरी।”

या “तुम्हारे दिल क्यों काँप रहे हैं?”

या “स्मारक कब्रों।”

अति. क5 देखें।

या “दस शहरों का इलाका।”

या “मरने पर है।”

या “यीशु ने उन्हें कड़ा आदेश दिया।”

शा., “ताँबा।”

शा., “दो-दो कपड़े न पहनें।”

या “मेज़ से टेक लगाए।”

या “जो मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”

या “स्मारक कब्र।”

अति. ख14 देखें।

यानी सुबह करीब 3 बजे से करीब 6 बजे तक।

या “आगे निकलनेवाला है।”

यानी रस्म के मुताबिक शुद्ध न होकर।

या “गाली देता है।”

अति. क3 देखें।

यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।

शब्दावली देखें।

या “शर्मनाक बरताव।” शब्दावली देखें।

शा., “ईर्ष्या से भरी आँख।”

या “दस शहरों का इलाका।”

शा., “मेरे पीछे जा।”

शब्दावली देखें।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

शा., “व्यभिचारी।”

शा., “रब्बी।”

या शायद, “यह बात अपने तक रखी।”

शा., “पीढ़ी।”

यानी कुछ ऐसा करता है कि दूसरा आदमी विश्‍वास करना छोड़ देता है।

शा., “तुझे ठोकर खिलाए।”

शब्दावली देखें।

अति. क3 देखें।

शा., “तुझे ठोकर खिलाए।”

शब्दावली देखें।

अति. क3 देखें।

शा., “तुझे ठोकर खिलाए।”

शब्दावली देखें।

शा., “वे दोनों।”

शा., “एक जुए में जोड़ा है।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “एक-दूसरे से।”

या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।

इब्रानी में “रब्बोनी।”

अति. क5 देखें।

शा., “की गुफा।”

अति. क3 देखें।

अति. क5 देखें।

या “गिरफ्तार करना।”

यूनानी में “कैसर।”

या “कानून के मुताबिक।”

अति. ख14 देखें।

यूनानी में “कैसर।”

या “सबसे बड़ी।”

या “सबसे बड़ी।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

अति. क5 देखें।

या “सबसे बढ़िया।”

या “की जायदाद।”

शा., “दो लेप्टा” यानी एक कौद्रान। दो लेप्टा एक दिन की मज़दूरी का 1/64वाँ हिस्सा था। अति. ख14 देखें।

या “धरता है।”

अति. क5 देखें।

या “गिरफ्तार करें।”

या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”

यह बोतल सिलखड़ी पत्थर की थी जो संगमरमर जैसा होता है।

अति. ख14 देखें।

या “उस पर भड़क उठे; उसे डाँटा।”

या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”

शा., “अंगूर की बेल की उपज से बनी यह चीज़।”

या “भजन।”

शा., “तुम ठोकर खाओगे।”

या “उसकी सदमे की सी हालत हो गयी।”

यह इब्रानी या अरामी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है, “हे पिता!”

या “उत्सुक।”

या “कम कपड़ों में।”

या “तुम क्या सोचते हो?”

या “ओसारे।”

या “काठ पर लटकाकर मार डाल!”

या “काठ पर लटकाकर मार डाल!”

या “तेरी जय हो!”

या “उसे दंडवत।”

शब्दावली देखें।

यानी सुबह करीब 9 बजे।

अति. क3 देखें।

शब्दावली देखें।

शब्दावली देखें।

यानी दोपहर करीब 12 बजे।

यानी दोपहर करीब 3 बजे।

या “आखिरी साँस ली।”

या “शतपति,” जिसकी कमान के नीचे सौ सैनिक होते थे।

या “महासभा।”

या “स्मारक कब्र।”

या “स्मारक कब्र।”

या “स्मारक कब्र।”

सबसे पुरानी भरोसेमंद हस्तलिपियों के मुताबिक मरकुस की किताब आय. 8 पर खत्म हो जाती है। अति. क3 देखें।

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