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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
प्रेषितों

प्रेषितों के काम

1 प्यारे थियुफिलुस, जब से यीशु ने सेवा करनी शुरू की तब से उसने जो-जो काम किए और बातें सिखायीं, वह सब मैंने अपनी पहली किताब में लिखा है।+ 2 उसमें उस वक्‍त तक का ब्यौरा है जब यीशु ने अपने चुने हुए प्रेषितों को पवित्र शक्‍ति के ज़रिए हिदायतें दीं+ और इसके बाद उसे स्वर्ग उठा लिया गया।+ 3 अपनी मौत तक दुख झेलने के बाद, वह कई मौकों पर अपने चेलों को दिखायी दिया और उन्हें इस बात के पक्के सबूत दिए कि वह ज़िंदा हो गया है।+ वह 40 दिन तक उन्हें दिखायी देता रहा और उन्हें परमेश्‍वर के राज के बारे में बताता रहा।+ 4 जब वह चेलों से मिला तो उसने उन्हें आज्ञा दी, “यरूशलेम छोड़कर मत जाना।+ यहीं रहना और पिता ने जिस बात का वादा किया है+ और जिसके बारे में तुमने मुझसे सुना है, उसके पूरा होने का इंतज़ार करना। 5 क्योंकि यूहन्‍ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया था, मगर अब से कुछ दिन बाद तुम पवित्र शक्‍ति से बपतिस्मा पाओगे।”+

6 जब चेले इकट्ठा हुए तो उससे पूछने लगे, “प्रभु, क्या तू इसी वक्‍त इसराएल को उसका राज दोबारा दे देगा?”+ 7 उसने उनसे कहा, “समय या दौर* को जानने का अधिकार तुम्हें नहीं, इन्हें तय करना पिता ने अपने अधिकार में रखा है।+ 8 लेकिन जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे+ और यरूशलेम+ और सारे यहूदिया और सामरिया में,+ यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में*+ मेरे बारे में गवाही दोगे।”+ 9 जब वह ये बातें कह चुका, तो उनके देखते-देखते वह ऊपर उठा लिया गया और एक बादल ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया।+ 10 जब वह जा रहा था, तब वे आकाश की तरफ ताक रहे थे। तभी अचानक सफेद कपड़े पहने दो आदमी+ उनके पास आकर खड़े हो गए 11 और उन्होंने कहा, “हे गलीली आदमियो, तुम यहाँ खड़े आकाश की तरफ क्यों ताक रहे हो? यह यीशु, जो तुम्हारे पास से आकाश में उठा लिया गया है, वह इसी ढंग से आएगा जैसे तुमने उसे आकाश में जाते देखा है।”

12 फिर वे उस पहाड़ से, जिसे जैतून पहाड़ कहा जाता है, यरूशलेम लौट आए।+ यह पहाड़ यरूशलेम के पास है और सिर्फ सब्त के दिन की दूरी पर है। 13 यरूशलेम शहर पहुँचकर चेले ऊपर के उस कमरे में गए जहाँ वे ठहरे हुए थे। ये चेले थे पतरस, यूहन्‍ना और याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस और थोमा, बरतुलमै और मत्ती, हलफई का बेटा याकूब, जोशीला शमौन और याकूब का बेटा यहूदा।+ 14 वे सभी एक ही मकसद से प्रार्थना करते रहे और उनके साथ कुछ औरतें,+ यीशु के भाई और उसकी माँ मरियम भी थी।+

15 उन्हीं दिनों की बात है, एक बार पतरस भाइयों के बीच खड़ा हुआ (उनकी* गिनती करीब 120 थी) और कहने लगा, 16 “भाइयो, पवित्र शक्‍ति ने दाविद से यहूदा के बारे में जो भविष्यवाणी करवायी थी, उसका पूरा होना ज़रूरी था।+ यहूदा उन लोगों को यीशु के पास ले गया जो उसे गिरफ्तार करने आए थे।+ 17 उसकी गिनती हमारे साथ होती थी+ और उसने हमारी तरह सेवा में हिस्सा भी लिया था। 18 (इसी आदमी ने अपनी बेईमानी की कमाई से एक ज़मीन खरीदी थी।+ वह सिर के बल गिरा, उसका पेट फट गया और उसकी सारी अंतड़ियाँ बाहर निकल गयीं।+ 19 यरूशलेम के रहनेवाले सभी लोगों को यह बात पता चली, इसलिए उनकी भाषा में वह ज़मीन हकलदमा यानी “खून की ज़मीन” कहलायी।) 20 क्योंकि भजनों की किताब में लिखा है, ‘उसका घर उजड़ जाए और सुनसान हो जाए’+ और ‘उसका निगरानी का पद कोई और ले ले।’+ 21 इसलिए यह ज़रूरी है कि उसकी जगह किसी ऐसे आदमी को चुना जाए, जो उस पूरे समय के दौरान हमारे साथ था जब प्रभु यीशु ने हमारे बीच रहकर सेवा की,* 22 यानी जब से यीशु ने यूहन्‍ना से बपतिस्मा पाया,+ तब से लेकर उस दिन तक जब उसे ऊपर उठा लिया गया।+ और वह आदमी इस बात का भी गवाह हो कि यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है।”+

23 इसलिए उन्होंने दो चेलों के नाम का सुझाव दिया। पहला था यूसुफ जो बर-सबा और युसतुस भी कहलाता है और दूसरा मत्तियाह। 24 फिर चेलों ने प्रार्थना की, “हे यहोवा,* तू जो सबके दिलों को जानता है,+ हमें बता कि तूने इन दो आदमियों में से किसे चुना है 25 ताकि उसे सेवा की ज़िम्मेदारी और प्रेषित-पद मिले जिसे यहूदा ने ठुकरा दिया और अपने रास्ते चला गया।”+ 26 तब उन्होंने उनके नाम पर चिट्ठियाँ डालीं+ और चिट्ठी मत्तियाह के नाम निकली। और वह 11 प्रेषितों के साथ गिना गया।*

2 पिन्तेकुस्त के त्योहार के दिन,+ जब वे सब एक ही घर में इकट्ठा थे, 2 तभी अचानक आकाश से साँय-साँय करती तेज़ आँधी जैसी आवाज़ हुई और सारा घर जिसमें वे बैठे थे गूँज उठा।+ 3 और उन्हें आग की लपटें दिखायी दीं जो जीभ जैसी थीं और ये अलग-अलग बँट गयीं और उनमें से हरेक के ऊपर एक-एक जा ठहरी। 4 तब वे सभी पवित्र शक्‍ति से भर गए+ और अलग-अलग भाषा बोलने लगे, ठीक जैसा पवित्र शक्‍ति उन्हें बोलने के काबिल बना रही थी।+

5 उस वक्‍त, दुनिया के सभी देशों से आए यहूदी भक्‍त यरूशलेम में थे।+ 6 जब यह आवाज़ सुनायी दी, तो भीड़-की-भीड़ इकट्ठी हो गयी और वे सब हैरान थे क्योंकि हर किसी को चेलों के मुँह से अपनी ही भाषा सुनायी दे रही थी। 7 लोग दंग रह गए और कहने लगे, “कमाल हो गया! ये लोग जो बोल रहे हैं क्या ये सब गलील के रहनेवाले+ नहीं? 8 तो फिर हममें से हरेक को अपनी ही मातृ-भाषा* कैसे सुनायी दे रही है? 9 हम तो पारथी, मादी+ और एलामी+ हैं और मेसोपोटामिया, यहूदिया और कप्पदूकिया, पुन्तुस और एशिया प्रांत के रहनेवाले+ हैं 10 और फ्रूगिया, पमफूलिया और मिस्र से और लिबिया के इलाकों से हैं जो कुरेने के पास है और रोम से आए मुसाफिर हैं। हम सब यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवालों+ में से हैं। 11 हममें क्रेती और अरबी लोग भी हैं। फिर भी हम इन लोगों को हमारी अपनी भाषा में परमेश्‍वर के शानदार कामों के बारे में बोलते हुए सुन रहे हैं।” 12 सब लोग हैरान थे और उलझन में थे। वे एक-दूसरे से कहने लगे, “यह सब क्या हो रहा है?” 13 मगर कुछ लोग चेलों की खिल्ली उड़ाने लगे, “ये तो नयी* दाख-मदिरा के नशे में हैं।”

14 तब पतरस उन ग्यारहों+ के साथ खड़ा हुआ और उसने वहाँ मौजूद लोगों से बुलंद आवाज़ में कहा, “हे यहूदिया और यरूशलेम के सब लोगो, मेरी बात ध्यान से सुनो। 15 जैसा तुम सोच रहे हो, ये लोग नशे में नहीं हैं क्योंकि अभी सुबह का तीसरा घंटा* ही हुआ है। 16 इसके बजाय, यह वही हो रहा है जिसके बारे में भविष्यवक्‍ता योएल ने बताया था: 17 ‘परमेश्‍वर कहता है, “मैं आखिरी दिनों में हर तरह के इंसान पर अपनी पवित्र शक्‍ति उँडेलूँगा और तुम्हारे बेटे-बेटियाँ भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे और तुम्हारे बुज़ुर्ग खास सपने देखेंगे।+ 18 उन दिनों मैं अपने दास-दासियों पर भी अपनी पवित्र शक्‍ति उँडेलूँगा और वे भविष्यवाणी करेंगे।+ 19 और मैं ऊपर आकाश में अजूबे और नीचे धरती पर चमत्कार दिखाऊँगा, खून, आग और धुएँ का बादल। 20 यहोवा* के महान और महिमा से भरे दिन के आने से पहले सूरज पर अँधेरा छा जाएगा और चाँद खून जैसा लाल हो जाएगा। 21 और जो कोई यहोवा* का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।”’+

22 हे इसराएलियो, मेरी यह बात सुनो: यीशु नासरी परमेश्‍वर का भेजा हुआ इंसान था और इस बात को साबित करने के लिए परमेश्‍वर ने उसके ज़रिए तुम्हारे बीच बड़े-बड़े शक्‍तिशाली और आश्‍चर्य के काम और चमत्कार किए,+ जैसा कि तुम खुद भी जानते हो। 23 इस आदमी को तुमने दुष्टों के हाथ सौंपा और काठ पर लटकाकर मार डाला।+ परमेश्‍वर ने भविष्य जानने की काबिलीयत का इस्तेमाल करके और अपनी मरज़ी* के मुताबिक यह तय किया+ कि उसके साथ ऐसा ही हो। 24 मगर परमेश्‍वर ने उसे ज़िंदा करके+ मौत के बंधनों से आज़ाद किया, क्योंकि यह नामुमकिन था कि वह मौत के बंधनों* में जकड़ा रहे।+ 25 इसलिए कि दाविद ने उसके बारे में कहा था, ‘मैं हर पल यहोवा* को अपने सामने* रखता हूँ। वह मेरे दायीं तरफ रहता है ताकि मुझे कभी हिलाया न जा सके। 26 इस वजह से मेरा दिल खुशी से भर गया है और मेरी जीभ बड़े आनंद से बोल उठी है। मैं* पूरी आशा के साथ जीऊँगा। 27 क्योंकि तू मुझे कब्र* में नहीं छोड़ देगा, तू अपने वफादार जन को सड़ने नहीं देगा।+ 28 तूने मुझे जीवन की राह दिखायी है, तू अपने सामने* मुझे खुशी से भर देगा।’+

29 भाइयो, मैं कुलपिता दाविद के बारे में बेझिझक तुमसे यह कह सकता हूँ कि उसकी मौत हुई और उसे कब्र में दफनाया गया+ और उसकी कब्र आज के दिन तक हमारे बीच मौजूद है। 30 वह एक भविष्यवक्‍ता था और जानता था कि परमेश्‍वर ने शपथ खाकर उससे वादा किया है कि वह उसके वंशजों में से एक को उसकी राजगद्दी पर बिठाएगा।+ 31 दाविद, मसीह के ज़िंदा होने के बारे में पहले से जानता था और उसने बताया कि मसीह को कब्र* में नहीं छोड़ा जाएगा, न ही उसका शरीर सड़ने दिया जाएगा।+ 32 इसी यीशु को परमेश्‍वर ने ज़िंदा किया है और हम सब इस बात के गवाह हैं।+ 33 उसे परमेश्‍वर के दायीं तरफ ऊँचा पद दिया गया है+ और वादे के मुताबिक उसने पिता से पवित्र शक्‍ति पायी है।+ यही शक्‍ति उसने हम पर उँडेली है और इसी को तुम काम करते हुए देख और सुन रहे हो। 34 दाविद स्वर्ग नहीं गया, मगर वह खुद कहता है, ‘यहोवा* ने मेरे प्रभु से कहा, “तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ, 35 जब तक कि मैं तेरे दुश्‍मनों को तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ।”’+ 36 इसलिए इसराएल का सारा घराना हर हाल में यह जान ले कि परमेश्‍वर ने इसी यीशु को प्रभु+ और मसीह ठहराया है, जिसे तुमने काठ पर लटकाकर मार डाला।”+

37 जब उन्होंने यह सुना तो उनका दिल उन्हें बेहद कचोटने लगा और उन्होंने पतरस और बाकी प्रेषितों से कहा, “भाइयो, अब हमें क्या करना चाहिए?” 38 पतरस ने उनसे कहा, “पश्‍चाताप करो+ और तुममें से हरेक अपने पापों की माफी के लिए+ यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले।+ तब तुम पवित्र शक्‍ति का मुफ्त वरदान पाओगे। 39 क्योंकि यह वादा+ तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के लिए और दूर-दूर के उन सब लोगों के लिए है जिनको हमारा परमेश्‍वर यहोवा* अपने पास बुलाएगा।”+ 40 उसने और भी बहुत-सी बातें बताकर अच्छी तरह गवाही दी और वह उन्हें समझाता रहा, “इन टेढ़े लोगों की पीढ़ी+ से अलग हो जाओ और उद्धार पाओ।” 41 जिन लोगों ने खुशी-खुशी उसके वचन को माना, उन्होंने बपतिस्मा लिया।+ उस दिन चेलों में करीब 3,000 लोग शामिल हो गए।+ 42 और वे सब प्रेषितों से लगातार सीखते रहे। वे एक-साथ इकट्ठा होते, खाना खाते+ और प्रार्थना करते थे।+

43 हर इंसान पर डर छाने लगा और प्रेषितों के हाथों बहुत-से आश्‍चर्य के काम और चमत्कार होने लगे।+ 44 वे सभी जिन्होंने विश्‍वास किया, साथ इकट्ठा होते और उनके पास जो कुछ था आपस में बाँट लेते थे। 45 वे अपना सामान और अपनी जायदाद बेच देते+ और मिलनेवाली रकम सबमें बाँट देते थे। हरेक को उसकी ज़रूरत के मुताबिक देते थे।+ 46 वे एक ही मकसद के साथ हर दिन मंदिर में हाज़िर रहते और एक-दूसरे के घर जाकर खाना खाते और सच्चे दिल से और खुशी-खुशी मिल-बाँटकर खाते थे। 47 वे परमेश्‍वर की तारीफ करते और सब लोग उनसे खुश थे। यहोवा* हर दिन ऐसे और भी लोगों को उनमें शामिल करता गया, जिन्हें वह उद्धार दिला रहा था।+

3 पतरस और यूहन्‍ना नौवें घंटे* के करीब, प्रार्थना के वक्‍त मंदिर जा रहे थे। 2 तभी लोग एक आदमी को ला रहे थे जो जन्म से लँगड़ा था। वे उसे रोज़ मंदिर के उस फाटक के पास बिठा दिया करते थे, जिसका नाम सुंदर फाटक था ताकि वह मंदिर में जानेवालों से भीख* माँग सके। 3 जब उसने देखा कि पतरस और यूहन्‍ना मंदिर के अंदर जा रहे हैं, तो वह उनसे भीख माँगने लगा। 4 तब पतरस और यूहन्‍ना ने सीधे उसे देखा और कहा, “हमारी तरफ देख।” 5 इसलिए वह उनसे कुछ पाने की उम्मीद में उन्हें ताकने लगा। 6 मगर पतरस ने कहा, “सोना-चाँदी तो मेरे पास नहीं है मगर जो मेरे पास है वह तुझे दे रहा हूँ। यीशु मसीह नासरी के नाम से मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो और चल-फिर।”+ 7 पतरस ने उसका दायाँ हाथ पकड़कर उसे उठाया।+ उसी घड़ी उस आदमी के पैर और टखने मज़बूत हो गए+ 8 और वह उछलकर खड़ा हो गया+ और चलने-फिरने लगा। वह चलते और उछलते-कूदते परमेश्‍वर की बड़ाई करता हुआ उनके साथ मंदिर में गया। 9 सब लोगों ने उसे चलते-फिरते और परमेश्‍वर की बड़ाई करते देखा। 10 वे पहचान गए कि यह वही आदमी है जो मंदिर के सुंदर फाटक के पास बैठकर भीख माँगा करता था।+ उसे चलता-फिरता देखकर लोग हैरान रह गए और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

11 जब वह आदमी पतरस और यूहन्‍ना को थामे हुए था, तब सब लोग दौड़े-दौड़े उस जगह आए, जिसे ‘सुलैमान का खंभोंवाला बरामदा’ कहा जाता है।+ यह घटना देखकर लोगों की आँखें फटी-की-फटी रह गयीं। 12 लोगों को देखकर पतरस ने उनसे कहा, “इसराएल के लोगो, तुम यह देखकर क्यों इतना ताज्जुब कर रहे हो? तुम हमें ऐसे क्यों देख रहे हो मानो यह हमने अपनी शक्‍ति से किया हो? या हम परमेश्‍वर के बड़े भक्‍त हैं, इसलिए हमने इसे चलने-फिरने के काबिल बनाया हो? 13 अब्राहम, इसहाक, याकूब और हमारे पुरखों के परमेश्‍वर+ ने अपने सेवक यीशु की महिमा की है,+ जिसे तुमने दुश्‍मनों के हवाले कर दिया था।+ तुमने पीलातुस के सामने उसे ठुकरा दिया, जबकि पीलातुस ने उसे छोड़ने का फैसला किया था। 14 हाँ, तुमने उस पवित्र और नेक इंसान को ठुकरा दिया और उसके बदले अपने लिए एक कातिल को माँग लिया,+ 15 जबकि तुमने जीवन दिलानेवाले खास अगुवे को मार डाला।+ मगर परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया है और इस सच्चाई के हम गवाह हैं।+ 16 हम उसके नाम पर विश्‍वास करते हैं और उसके नाम से ही यह आदमी ठीक हुआ है, जिसे तुम देख रहे हो और जानते भी हो। यीशु पर हमारे विश्‍वास की वजह से ही इस आदमी को तुम्हारे सामने पूरी तरह ठीक किया गया है। 17 भाइयो, मैं जानता हूँ कि तुमने जो भी किया अनजाने में किया,+ ठीक जैसे तुम्हारे धर्म-अधिकारियों ने किया।+ 18 मगर इस तरह परमेश्‍वर ने वे बातें पूरी कीं, जो उसने सारे भविष्यवक्‍ताओं से बहुत पहले कहलवायी थीं कि उसका मसीह दुख उठाएगा।+

19 इसलिए पश्‍चाताप करो+ और पलटकर लौट आओ+ ताकि तुम्हारे पाप मिटाए जाएँ+ और यहोवा की तरफ से* तुम्हारे लिए ताज़गी के दिन आएँ 20 और वह तुम्हारे लिए ठहराए गए मसीह यानी यीशु को भेजे। 21 उसका तब तक स्वर्ग में रहना ज़रूरी है जब तक कि सबकुछ पहले जैसा न कर दिया जाए, जिसके बारे में परमेश्‍वर ने बीते ज़माने में अपने पवित्र भविष्यवक्‍ताओं से कहलवाया था। 22 दरअसल मूसा ने तो कहा था, ‘तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा* तुम्हारे भाइयों के बीच में से तुम्हारे लिए मेरे जैसा एक भविष्यवक्‍ता खड़ा करेगा।+ जो कुछ वह तुमसे कहे, वह सब तुम सुनना।+ 23 जो कोई उस भविष्यवक्‍ता की बात नहीं सुनेगा, उसे लोगों के बीच से मिटा दिया जाएगा।’+ 24 सभी भविष्यवक्‍ताओं ने यानी शमूएल से लेकर जितने भी भविष्यवक्‍ता हुए, उन सबने इन दिनों के बारे में साफ-साफ ऐलान किया था।+ 25 तुम भविष्यवक्‍ताओं के वंशज और उस करार के वारिस हो जो परमेश्‍वर ने तुम्हारे पुरखों के साथ किया था।+ परमेश्‍वर ने अब्राहम से कहा था, ‘तेरे वंश के ज़रिए धरती के सभी परिवार आशीष पाएँगे।’+ 26 उसने अपने सेवक को ठहराकर सबसे पहले तुम्हारे पास भेजा+ ताकि वह तुममें से हरेक को दुष्ट काम छोड़ने में मदद दे और आशीष दे।”

4 जब ये दोनों, लोगों को ये बातें बता रहे थे तभी कुछ याजक, मंदिर के पहरेदारों का सरदार और सदूकी+ वहाँ आ धमके। 2 वे इस बात से चिढ़ गए कि प्रेषित, लोगों को सिखा रहे हैं और खुलकर बता रहे हैं कि यीशु मरे हुओं में से ज़िंदा हो गया है।*+ 3 और उन्होंने दोनों प्रेषितों को पकड़* लिया और शाम हो जाने की वजह से उन्हें अगले दिन तक हिरासत में रखा।+ 4 मगर जिन लोगों ने वह भाषण सुना था, उनमें से बहुतों ने विश्‍वास किया और चेलों में आदमियों की गिनती करीब 5,000 तक पहुँच गयी।+

5 अगले दिन यरूशलेम में यहूदियों के धर्म-अधिकारी, मुखिया और शास्त्री जमा हुए। 6 उनके साथ प्रधान याजक हन्‍ना,+ कैफा,+ यूहन्‍ना, सिकंदर और प्रधान याजक के सभी रिश्‍तेदार भी थे। 7 उन्होंने पतरस और यूहन्‍ना को अपने बीच खड़ा करके उनसे पूछताछ करनी शुरू की, “तुमने किस अधिकार से यह काम किया है और किसके नाम से यह किया है?” 8 तब पतरस ने पवित्र शक्‍ति से भरकर+ उनसे कहा,

“धर्म-अधिकारियो और मुखियाओ सुनो, 9 अगर आज के दिन इस अपाहिज आदमी+ का भला करने की वजह से हमसे पूछताछ की जा रही है कि किसने इसे ठीक किया है, 10 तो तुम सब और इसराएल के सभी लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से+ यह आदमी ठीक हुआ है और यहाँ तुम्हारे सामने भला-चंगा खड़ा है। हाँ, उसी यीशु के नाम से जिसे तुमने काठ पर लटकाकर मार डाला था,+ मगर जिसे परमेश्‍वर ने मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया।+ 11 यीशु ही ‘वह पत्थर है जिसे राजमिस्त्रियों ने बेकार समझा, मगर वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया।’+ 12 यह भी जान लो कि किसी और के ज़रिए उद्धार नहीं मिलेगा क्योंकि परमेश्‍वर ने हमें उद्धार दिलाने के लिए धरती पर इंसानों में कोई और नाम नहीं चुना।”+

13 जब उन्होंने देखा कि पतरस और यूहन्‍ना कैसे बेधड़क* होकर बोल रहे हैं और यह जाना कि ये कम पढ़े-लिखे,* मामूली आदमी+ हैं, तो वे ताज्जुब करने लगे। फिर उन्हें एहसास हुआ कि ये लोग यीशु के साथ रहा करते थे।+ 14 वे देख रहे थे कि जिस आदमी को पतरस और यूहन्‍ना ने ठीक किया था, वह उनके साथ खड़ा है+ इसलिए उनके पास प्रेषितों के खिलाफ कहने के लिए कुछ नहीं रहा।+ 15 उन्होंने पतरस और यूहन्‍ना को महासभा के भवन से बाहर जाने का हुक्म दिया। फिर वे एक-दूसरे से मशविरा करने लगे 16 और कहने लगे, “हम इन आदमियों के साथ क्या करें?+ क्योंकि यह सच है कि इनके हाथों एक बड़ा चमत्कार हुआ है, जिसे यरूशलेम के सब रहनेवालों ने देखा है+ और हम इसे झुठला नहीं सकते। 17 अब आओ हम इन्हें धमकाएँ कि वे इस नाम से फिर कभी किसी से बात न करें ताकि यह बात और लोगों में न फैले।”+

18 फिर उन्होंने चेलों को बुलाया और हुक्म दिया कि वे यीशु के नाम से कोई बात न करें और न ही सिखाएँ। 19 मगर पतरस और यूहन्‍ना ने उन्हें जवाब दिया, “क्या परमेश्‍वर की नज़र में यह सही होगा कि हम उसकी बात मानने के बजाय तुम्हारी सुनें, तुम खुद फैसला करो। 20 मगर जहाँ तक हमारी बात है, हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।”+ 21 उन्होंने पतरस और यूहन्‍ना को एक बार फिर धमकाकर छोड़ दिया क्योंकि उन्हें सज़ा देने की कोई वजह नहीं मिली। अधिकारियों को लोगों का भी डर था+ क्योंकि जो घटना घटी थी उसकी वजह से सभी परमेश्‍वर की महिमा कर रहे थे। 22 जो आदमी इस चमत्कार* से चंगा हुआ था, उसकी उम्र 40 साल से ज़्यादा थी।

23 वहाँ से छूटकर पतरस और यूहन्‍ना अपने लोगों के पास गए और उन्हें वे सारी बातें बतायीं जो प्रधान याजकों और मुखियाओं ने उनसे कही थीं। 24 यह सुनने के बाद उन सभी ने एक मन होकर ऊँची आवाज़ में परमेश्‍वर से बिनती की:

“हे सारे जहान के मालिक, तूने ही आकाश और पृथ्वी और समुंदर और उनमें की सब चीज़ों को बनाया है+ 25 और तूने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए हमारे पुरखे और अपने सेवक दाविद के मुँह से कहलवाया,+ ‘राष्ट्र क्यों गुस्से से उफन रहे हैं? देश-देश के लोग क्यों खोखली बातें सोच* रहे हैं? 26 धरती के राजा, यहोवा* और उसके अभिषिक्‍त जन* के खिलाफ खड़े हुए और अधिकारियों ने मिलकर उनका विरोध किया।’+ 27 और सचमुच ऐसा ही हुआ। राजा हेरोदेस और पुन्तियुस पीलातुस दोनों,+ गैर-यहूदियों और इसराएल की जनता के साथ मिलकर इस शहर में तेरे पवित्र सेवक यीशु के खिलाफ इकट्ठा हुए, जिसका तूने अभिषेक किया था+ 28 ताकि वे उसके साथ वह सब करें जो तूने अपनी शक्‍ति और मरज़ी के मुताबिक पहले से तय किया था।+ 29 अब हे यहोवा,* उनकी धमकियों पर ध्यान दे और अपने दासों की मदद कर कि वे पूरी तरह निडर होकर तेरा वचन सुनाते रहें 30 और तू अपना हाथ बढ़ाकर लोगों को चंगा करता रहे और तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से+ चमत्कार और आश्‍चर्य के काम होते रहें।”+

31 जब वे गिड़गिड़ाकर मिन्‍नत कर चुके तो वह जगह जहाँ वे इकट्ठा थे, काँप उठी और वे सब-के-सब पवित्र शक्‍ति से भर गए+ और निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाने लगे।+

32 विश्‍वास करनेवाले सब लोग एक दिल और एक जान* थे। उनमें से कोई भी अपनी संपत्ति को अपना नहीं कहता था, बल्कि सब चीज़ें वे आपस में बाँट लेते थे।+ 33 और प्रेषित बड़े ज़बरदस्त ढंग से गवाही देते रहे कि प्रभु यीशु मरे हुओं में से ज़िंदा हो गया है।+ उन सब पर परमेश्‍वर की भरपूर महा-कृपा बनी रही। 34 सच तो यह है कि उनमें कोई भी तंगी में नहीं था+ क्योंकि जितनों के पास खेत या घर थे, वे उन्हें बेच देते और मिलनेवाली रकम लाकर 35 प्रेषितों के पैरों पर रख देते थे।+ और फिर हरेक को उसकी ज़रूरत के मुताबिक बाँट दिया जाता था।+ 36 यूसुफ जिसे प्रेषित, बरनबास+ नाम से बुलाते थे, (जिसका मतलब है, “दिलासे का बेटा”) कुप्रुस का रहनेवाला लेवी था। 37 उसके पास ज़मीन का एक टुकड़ा था जिसे उसने बेच दिया और रकम लाकर प्रेषितों के पैरों पर रख दी।+

5 हनन्याह नाम के एक आदमी और उसकी पत्नी सफीरा ने भी अपनी कुछ ज़मीन बेची। 2 मगर हनन्याह ने चोरी-छिपे उसकी कीमत का कुछ हिस्सा अपने पास रख लिया और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी। उसने रकम का सिर्फ कुछ हिस्सा ले जाकर प्रेषितों के पैरों पर रखा।+ 3 तब पतरस ने कहा, “हनन्याह, क्यों शैतान ने तुझे ऐसा ढीठ बना दिया कि तू पवित्र शक्‍ति से झूठ बोले+ और ज़मीन की कीमत का कुछ हिस्सा चोरी से अपने पास रख ले? 4 जब तक वह तेरे पास थी, क्या वह तेरी न थी और बेचने के बाद भी क्या उसकी कीमत पर तेरा हक नहीं था? तो फिर क्यों तूने अपने दिल में ऐसा काम करने की सोची? तूने इंसानों से नहीं, परमेश्‍वर से झूठ बोला है।” 5 यह सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा और मर गया। और इस बारे में सुननेवाले हर किसी पर डर छा गया। 6 फिर कुछ नौजवानों ने उठकर उसे कपड़े में लपेटा और उसे बाहर ले गए और दफना दिया।

7 करीब तीन घंटे बाद उसकी पत्नी आयी और उसे नहीं पता था कि वहाँ क्या हुआ है। 8 पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता, क्या तुम दोनों ने अपनी ज़मीन इतने ही दाम में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने में ही बेची थी।” 9 पतरस ने उससे कहा, “क्यों तुम दोनों ने मिलकर तय किया कि तुम यहोवा* की पवित्र शक्‍ति की परीक्षा लो? देख! तेरे पति को दफनानेवाले दरवाज़े पर हैं और अब वे तुझे भी उठाकर ले जाएँगे।” 10 उसी घड़ी वह उसके पैरों पर गिर पड़ी और मर गयी। जब वे नौजवान अंदर आए तो उन्होंने उसे मरा हुआ पाया और वे उसे उठाकर बाहर ले गए और उसके पति के पास उसे दफना दिया। 11 इस घटना से पूरी मंडली पर और इस बारे में सुननेवाले हर किसी पर डर छा गया।

12 प्रेषितों के हाथों लोगों के बीच और भी बहुत-से चमत्कार और आश्‍चर्य के काम होते रहे।+ वे सभी ‘सुलैमान के खंभोंवाले बरामदे’ में इकट्ठा हुआ करते थे।+ 13 बाकियों में से किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वे चेलों में जा मिले। फिर भी लोग चेलों की तारीफ करते थे। 14 और-तो-और प्रभु पर विश्‍वास करनेवाले आदमी-औरत बड़ी तादाद में उनमें शामिल होते रहे।+ 15 यहाँ तक कि वे बीमारों को बड़ी सड़कों पर लाकर चारपाइयों और बिस्तरों पर लिटा देते थे ताकि जब पतरस वहाँ से गुज़रे, तो कम-से-कम उसकी परछाईं ही उनमें से कुछ पर पड़ जाए।+ 16 यरूशलेम के आस-पास के शहरों से भी भारी तादाद में लोग वहाँ आते रहे और बीमारों और दुष्ट स्वर्गदूतों के सताए हुओं को लाते रहे और वे सब-के-सब ठीक हो जाते थे।

17 मगर महायाजक और वे सभी जो उसके साथ थे यानी उस वक्‍त के सदूकियों के गुट के लोग, जलन से भर गए। 18 उन्होंने प्रेषितों को पकड़* लिया और जेल में डाल दिया।+ 19 मगर रात को यहोवा* के स्वर्गदूत ने जेल के दरवाज़े खोल दिए+ और उन्हें बाहर लाकर उनसे कहा, 20 “जाओ और जाकर मंदिर में लोगों को जीवन* का संदेश सुनाते रहो।” 21 इसलिए वे सुबह होते ही मंदिर में गए और सिखाने लगे।

फिर जब महायाजक और उसके साथी आए, तो उन्होंने महासभा और इसराएलियों के मुखियाओं की पूरी सभा को इकट्ठा किया और जेल से प्रेषितों को लाने के लिए पहरेदार भेजे। 22 मगर वहाँ पहुँचकर पहरेदारों ने देखा कि वे जेल में नहीं हैं। इसलिए वे लौट आए और आकर यह खबर दी, 23 “हमने देखा कि जेल के दरवाज़े अच्छी तरह बंद हैं और दरवाज़ों पर पहरेदार भी तैनात हैं, मगर जेल खोलने पर हमें अंदर कोई नहीं मिला।” 24 जब मंदिर के पहरेदारों के सरदार और प्रधान याजकों ने यह सुना, तो वे बड़ी दुविधा में पड़ गए और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा। 25 मगर किसी ने आकर उन्हें खबर दी, “देखो! तुमने जिन आदमियों को जेल में डाला था, वे तो मंदिर में हैं और वहाँ खड़े होकर लोगों को सिखा रहे हैं।” 26 तब सरदार अपने पहरेदारों के साथ गया और उन्हें ले आया, मगर उनके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं लोग हमें पत्थरों से मार न डालें।+

27 वे उन्हें ले आए और लाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया। महायाजक ने उनसे कुछ सवाल किए 28 और कहा, “हमने तुम्हें कड़ा आदेश दिया था कि इस नाम से सिखाना बंद कर दो,+ मगर फिर भी देखो! तुमने सारे यरूशलेम को अपनी शिक्षाओं से भर दिया है और तुमने इस आदमी के खून का दोष हमारे सिर पर थोपने की ठान ली है।”+ 29 तब पतरस और दूसरे प्रेषितों ने कहा, “इंसानों के बजाय परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।+ 30 जिस यीशु को तुमने काठ* पर लटकाकर मार डाला था, उसे हमारे पुरखों के परमेश्‍वर ने ज़िंदा कर दिया।+ 31 परमेश्‍वर ने उसी को ऊँचा पद देकर खास अगुवा+ और उद्धारकर्ता ठहराया+ और अपने दायीं तरफ बिठाया+ ताकि इसराएल पश्‍चाताप करे और पापों की माफी पाए।+ 32 हम इन सब बातों के गवाह हैं+ और पवित्र शक्‍ति भी गवाह है+ जो परमेश्‍वर ने उन लोगों को दी है, जो उसे राजा जानकर उसकी आज्ञा मानते हैं।”

33 जब उन्होंने यह सुना तो वे आग-बबूला हो उठे और वे उनका काम तमाम कर देना चाहते थे। 34 मगर महासभा में गमलीएल+ नाम का एक फरीसी खड़ा हुआ, जो कानून का शिक्षक था और लोगों में उसकी बड़ी इज़्ज़त थी। उसने इन आदमियों को कुछ देर के लिए बाहर ले जाने का हुक्म दिया। 35 फिर गमलीएल ने उनसे कहा, “इसराएल के लोगो, तुम इन आदमियों के साथ जो करना चाहते हो, उसके बारे में अच्छी तरह सोच लो। 36 कुछ वक्‍त पहले थियूदास यह कहते हुए उठ खड़ा हुआ था कि मैं भी कुछ हूँ। और कई आदमी, करीब 400 लोग उसके गुट में शामिल हो गए थे। मगर वह मार डाला गया और जितने उसे मानते थे वे सब तितर-बितर हो गए। 37 उसके बाद, नाम-लिखाई के दिनों में गलील का यहूदा उठ खड़ा हुआ और उसने लोगों को बहकाकर अपने पीछे कर लिया। मगर वह आदमी भी मिट गया और जो उसे मानते थे वे सब तितर-बितर हो गए। 38 इसलिए अभी के हालात को देखते हुए मैं तुमसे कहता हूँ, इन आदमियों के काम में दखल मत दो, पर इन्हें अपने हाल पर छोड़ दो। क्योंकि अगर यह योजना या यह काम इंसानों की तरफ से है तो यह मिट जाएगा, 39 लेकिन अगर यह परमेश्‍वर की तरफ से है, तो तुम इन्हें मिटा नहीं सकोगे।+ कहीं ऐसा न हो कि तुम परमेश्‍वर से लड़नेवाले ठहरो।”+ 40 उन्होंने उसकी सलाह मान ली और प्रेषितों को बुलवाकर उन्हें कोड़े लगवाए*+ और हुक्म दिया कि यीशु के नाम से बोलना बंद कर दें, फिर उन्हें जाने दिया।

41 तब वे महासभा के सामने से इस बात पर बड़ी खुशी मनाते हुए अपने रास्ते चल दिए+ कि उन्हें यीशु के नाम से बेइज़्ज़त होने के लायक तो समझा गया। 42 और वे बिना नागा हर दिन मंदिर में और घर-घर जाकर सिखाते रहे+ और मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाते रहे।+

6 उन दिनों चेलों की गिनती बढ़ती जा रही थी। तब ऐसा हुआ कि यूनानी बोलनेवाले यहूदी चेले, इब्रानी बोलनेवाले यहूदी चेलों के बारे में शिकायत करने लगे, क्योंकि रोज़ के खाने के बँटवारे में यूनानी बोलनेवाली विधवाओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा था।+ 2 तब उन 12 प्रेषितों ने बाकी सभी चेलों को बुलाया और उनसे कहा, “यह ठीक नहीं कि हम प्रेषित, परमेश्‍वर का वचन सिखाना छोड़कर खाना बाँटने के काम में लग जाएँ।+ 3 इसलिए भाइयो, अपने बीच से ऐसे सात आदमी चुनो जिनका तुम्हारे बीच अच्छा नाम हो+ और जो पवित्र शक्‍ति और बुद्धि से भरपूर हों+ ताकि हम उन्हें इस ज़रूरी काम की देखरेख के लिए ठहराएँ।+ 4 और हम प्रार्थना करने और वचन सिखाने की सेवा में लगे रहेंगे।” 5 यह बात सबको अच्छी लगी और उन्होंने इन आदमियों को चुना: स्तिफनुस, जो विश्‍वास और पवित्र शक्‍ति से भरपूर था और फिलिप्पुस,+ प्रखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और निकुलाउस। निकुलाउस, अंताकिया का रहनेवाला था और उसने यहूदी धर्म अपनाया था। 6 वे इन सातों को प्रेषितों के पास लाए। उन्होंने प्रार्थना की और उन पर हाथ रखे।+

7 इस वजह से परमेश्‍वर का वचन फैलता गया+ और यरूशलेम में चेलों की गिनती तेज़ी से बढ़ती गयी+ और बड़ी तादाद में याजक भी विश्‍वासी बन गए।+

8 स्तिफनुस पर परमेश्‍वर की बड़ी कृपा थी और वह उसकी शक्‍ति से भरपूर था, इसलिए वह लोगों के बीच बड़े-बड़े आश्‍चर्य के काम और चमत्कार करता था। 9 मगर कुछ आदमी जो ‘आज़ाद लोगों के सभा-घर’ के सदस्य थे, कुरेने, सिकंदरिया, किलिकिया और एशिया के लोगों के साथ मिलकर स्तिफनुस के खिलाफ खड़े हुए और उससे बहस करने लगे। 10 मगर स्तिफनुस ने बड़ी बुद्धिमानी से और पवित्र शक्‍ति की मदद से उन्हें जवाब दिया, इसलिए वे उसके सामने टिक नहीं पाए।+ 11 तब उन्होंने चोरी-छिपे कुछ आदमियों को फुसलाया कि वे लोगों में यह बात फैलाएँ, “हमने इसे मूसा और परमेश्‍वर के खिलाफ निंदा की बातें कहते सुना है।” 12 उन्होंने जनता को और मुखियाओं और शास्त्रियों को भड़काया और अचानक स्तिफनुस पर टूट पड़े और उसे ज़बरदस्ती महासभा के सामने ले गए। 13 और वे झूठे गवाहों को ले आए जिन्होंने कहा, “यह आदमी हमारे पवित्र मंदिर और परमेश्‍वर के कानून के खिलाफ बोलने से बाज़ नहीं आता। 14 जैसे, हमने इसे यह कहते सुना है कि यीशु नासरी इस मंदिर को ढा देगा और उन रीतियों को बदल डालेगा जो हमें मूसा से मिली हैं।”

15 जब महासभा में बैठे सब लोगों ने स्तिफनुस पर नज़र डाली, तो देखा कि उसका चेहरा एक स्वर्गदूत के चेहरे जैसा दिख रहा है।

7 फिर महायाजक ने उससे पूछा, “क्या ये बातें सच हैं?” 2 स्तिफनुस ने जवाब दिया, “भाइयो और पिता समान बुज़ुर्गो, सुनो। हमारा पुरखा अब्राहम, हारान में बसने से पहले जब मेसोपोटामिया में रहता था,+ तब महिमा से भरपूर परमेश्‍वर ने उसे दर्शन दिया 3 और उससे कहा, ‘तू अपने देश और नाते-रिश्‍तेदारों को छोड़कर एक ऐसे देश में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।’+ 4 तब अब्राहम कसदियों के उस देश से निकलकर हारान में रहने लगा। फिर उसके पिता की मौत के बाद,+ परमेश्‍वर ने उसे वहाँ से निकालकर इस देश में बसाया, जहाँ अब तुम रहते हो।+ 5 मगर फिर भी परमेश्‍वर ने उस वक्‍त अब्राहम को इस देश में कोई ज़मीन नहीं दी, पैर रखने तक की जगह भी नहीं दी। मगर परमेश्‍वर ने उससे वादा किया कि वह यह देश उसे और उसके बाद उसके वंशजों को विरासत में देगा,+ जबकि उस वक्‍त तक अब्राहम की कोई औलाद नहीं थी। 6 और परमेश्‍वर ने यह भी कहा कि अब्राहम का वंश पराए देश में परदेसी बनकर रहेगा और वहाँ के लोग उससे गुलामी करवाएँगे और 400 साल तक उसे सताते रहेंगे।*+ 7 फिर परमेश्‍वर ने कहा, ‘जिस देश की वे गुलामी करेंगे उसे मैं सज़ा दूँगा+ और यह सब होने के बाद वे वहाँ से निकल आएँगे और इस जगह मेरी पवित्र सेवा करेंगे।’+

8 परमेश्‍वर ने अब्राहम के साथ खतने का करार भी किया।+ फिर अब्राहम, इसहाक का पिता बना+ और आठवें दिन उसका खतना किया।+ और इसहाक से याकूब पैदा हुआ* और याकूब के 12 बेटे हुए जो अपने घराने के मुखिया* बने। 9 वे अपने भाई यूसुफ से जलने लगे+ और उन्होंने उसे मिस्रियों को बेच दिया।+ मगर परमेश्‍वर यूसुफ के साथ था।+ 10 परमेश्‍वर ने उसे सारी मुसीबतों से छुड़ाया और इस काबिल बनाया कि उसने फिरौन का दिल जीत लिया और वह उसके सामने बुद्धिमान ठहरा। और फिरौन ने उसे मिस्र और अपने पूरे घराने का अधिकारी बनाया।+ 11 मगर फिर पूरे मिस्र और कनान देश पर एक बड़ी मुसीबत टूट पड़ी, वहाँ अकाल पड़ा और हमारे पुरखों को कहीं भी खाने की चीज़ें नहीं मिल पा रही थीं।+ 12 मगर जब याकूब ने सुना कि मिस्र में खाने-पीने की चीज़ें* हैं, तो उसने अपने बेटों यानी हमारे पुरखों को पहली बार वहाँ भेजा।+ 13 और जब वे दूसरी बार वहाँ गए, तब यूसुफ ने अपने भाइयों को बताया कि वह कौन है और फिरौन को उसके परिवार के बारे में मालूम हुआ।+ 14 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब को और अपने घराने के सभी लोगों को कनान से बुलवा लिया,+ जो कुल मिलाकर 75 लोग थे।+ 15 तब याकूब मिस्र में आकर रहने लगा।+ और वहीं उसकी मौत हुई+ और हमारे पुरखों की भी मौत हुई+ 16 और उनकी हड्डियाँ शेकेम लायी गयीं और उस कब्र में रखी गयीं जिसे अब्राहम ने चाँदी देकर शेकेम में हमोर के बेटों से खरीदा था।+

17 और परमेश्‍वर ने अब्राहम से जो वादा किया था, जैसे-जैसे उसके पूरा होने का वक्‍त पास आ रहा था, वैसे-वैसे अब्राहम के वंशज मिस्र में बढ़ते गए और उनकी गिनती बहुत हो गयी। 18 फिर मिस्र में दूसरा राजा हुआ, जो यूसुफ को नहीं जानता था।+ 19 उसने हमारी जाति के खिलाफ एक चाल चली और हमारे पुरखों को मजबूर किया कि वे अपने बच्चों को पैदा होते ही मरने के लिए छोड़ दें।+ 20 उस दौरान मूसा पैदा हुआ और वह बहुत सुंदर* था। तीन महीने तक तो उसके माता-पिता ने उसे घर में पाला-पोसा।*+ 21 मगर जब उसे छोड़ दिया गया,+ तो फिरौन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपने बेटे की तरह उसकी परवरिश की।+ 22 और मूसा को मिस्रियों की हर तरह की शिक्षा दी गयी। यही नहीं, वह दमदार तरीके से बोलता था और बड़े-बड़े काम करता था।+

23 जब वह 40 साल का हुआ, तो उसके दिल में यह बात आयी* कि वह जाकर अपने भाइयों को यानी दूसरे इसराएलियों को देख आए।*+ 24 जब उसने देखा कि एक मिस्री एक इसराएली के साथ अन्याय कर रहा है, तो उसने जाकर उसे बचाया और मिस्री को मारकर उस इसराएली की तरफ से बदला लिया। 25 उसने सोचा कि इसराएली यह समझ जाएँगे कि परमेश्‍वर उसके ज़रिए उन्हें छुड़ा रहा है, मगर उन्होंने ऐसा नहीं समझा। 26 अगले दिन जब दो इसराएली आपस में झगड़ रहे थे, तो वह उनके सामने गया और उसने उनके बीच सुलह करवाने के लिए कहा, ‘तुम तो भाई-भाई हो। फिर क्यों एक-दूसरे के साथ बुरा सलूक कर रहे हो?’ 27 मगर जो अपने साथी इसराएली के साथ बुरा सलूक कर रहा था, उसने मूसा को धक्का दिया और कहा, ‘तुझे किसने हमारा अधिकारी और न्यायी ठहराया है? 28 क्या तू मुझे भी मार डालना चाहता है, जैसे तूने कल उस मिस्री को मार डाला था?’ 29 यह सुनकर मूसा वहाँ से भाग गया और मिद्यान देश में परदेसी की तरह रहने लगा। वहाँ उसके दो बेटे पैदा हुए।+

30 फिर 40 साल बाद, जब मूसा सीनै पहाड़ के पास वीराने में था, तो एक स्वर्गदूत उसके सामने एक जलती हुई कँटीली झाड़ी की लपटों में प्रकट हुआ।+ 31 जब मूसा ने यह देखा, तो वह दंग रह गया। जब वह उसे देखने के लिए पास जा रहा था तो उसे यहोवा* की यह आवाज़ सुनायी दी, 32 ‘मैं तेरे पुरखों का परमेश्‍वर हूँ, अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर।’+ यह सुनकर मूसा काँपने लगा और उसने और आगे जाकर देखने की हिम्मत नहीं की। 33 यहोवा* ने उससे कहा, ‘तू अपने पाँवों की जूतियाँ उतार दे क्योंकि जिस ज़मीन पर तू खड़ा है वह पवित्र है। 34 बेशक मैंने देखा है कि मिस्र में मेरे लोगों पर कितने ज़ुल्म किए जा रहे हैं और मैंने उनका कराहना सुना है।+ मैं उन्हें छुड़ाने के लिए नीचे आया हूँ। अब आ, मैं तुझे मिस्र भेजूँगा।’ 35 जिस मूसा को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया था, ‘तुझे किसने हमारा अधिकारी और न्यायी ठहराया है?’+ उसी को परमेश्‍वर ने अधिकारी और छुड़ानेवाला ठहराकर उस स्वर्गदूत के ज़रिए भेजा,+ जो कँटीली झाड़ी में उसे दिखायी दिया था। 36 इसी मूसा ने उन्हें मिस्र और लाल सागर+ में चमत्कार और आश्‍चर्य के काम दिखाए+ और उन्हें वहाँ से निकाल लाया।+ उसने 40 साल वीराने में भी ऐसे आश्‍चर्य के काम किए।+

37 यह वही मूसा है जिसने इसराएलियों से कहा था, ‘परमेश्‍वर तुम्हारे भाइयों के बीच में से तुम्हारे लिए मेरे जैसा एक भविष्यवक्‍ता खड़ा करेगा।’+ 38 यह वही मूसा है जो वीराने में इसराएल की मंडली के बीच था और उस स्वर्गदूत के साथ था,+ जिसने सीनै पहाड़ पर उससे बात की थी।+ मूसा ने ही हमारे पुरखों से बात की थी और जीवित और पवित्र वचन पाए थे ताकि हम तक पहुँचाए।+ 39 हमारे पुरखों ने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया और उसे ठुकरा दिया+ और वे मन-ही-मन मिस्र लौटने के सपने देखने लगे।+ 40 और उन्होंने हारून से कहा, ‘पता नहीं उस मूसा का क्या हुआ, जो हमें मिस्र से निकालकर यहाँ ले आया था। इसलिए अब हमारे लिए देवता बना कि वे हमारी अगुवाई करें।’+ 41 फिर उन्होंने बछड़े की एक मूरत बनायी और उस मूरत के आगे बलि चढ़ायी और अपने हाथों से बनायी उस मूरत के सामने मौज-मस्ती करने लगे।+ 42 इसलिए परमेश्‍वर ने उनसे मुँह फेर लिया और उन्हें आकाश की सेना को पूजने के लिए छोड़ दिया,+ ठीक जैसा भविष्यवक्‍ताओं की किताब में लिखा है, ‘हे इसराएल के घराने, वीराने में उन 40 सालों के दौरान क्या तूने बलिदान और चढ़ावे मुझे ही दिए थे? 43 नहीं, बल्कि तुम मोलोक के तंबू+ और रिफान देवता के तारे की मूरत लिए फिरते रहे, जिन्हें तुमने इसलिए बनाया था कि तुम उनकी पूजा करो। इसलिए मैं तुम्हें देश से निकालकर बैबिलोन के उस पार भेज दूँगा।’+

44 हमारे पुरखों के पास वीराने में गवाही का तंबू था, जिसके बारे में परमेश्‍वर ने मूसा को आदेश दिए थे कि उसे जो नमूना दिखाया गया है, उसी के मुताबिक वह तंबू बनाए।+ 45 यह हमारे पुरखों को दिया गया और वे इसे यहोशू के साथ इस देश में ले आए, जिस पर दूसरी जातियों का कब्ज़ा था+ और जिन्हें परमेश्‍वर ने हमारे पुरखों के सामने से खदेड़ दिया था।+ गवाही का यह तंबू दाविद के दिनों तक यहीं रहा। 46 दाविद पर परमेश्‍वर की कृपा थी और उसने बिनती की कि उसे याकूब के परमेश्‍वर के निवास के लिए एक भवन बनाने का मौका दिया जाए।+ 47 मगर उसने नहीं बल्कि सुलैमान ने यह भवन बनाया।+ 48 फिर भी, परम-प्रधान परमेश्‍वर हाथ के बनाए भवनों में नहीं रहता,+ ठीक जैसे एक भविष्यवक्‍ता ने बताया था, 49 ‘यहोवा* कहता है, स्वर्ग मेरी राजगद्दी है+ और पृथ्वी मेरे पाँवों की चौकी।+ तो फिर तुम मेरे लिए कैसा भवन बनाओगे? मेरे रहने के लिए कहाँ जगह बनाओगे? 50 क्या मेरे ही हाथों ने इन सब चीज़ों को नहीं रचा?’+

51 अरे ढीठ लोगो, तुमने अपने कान और अपने दिल के दरवाज़े बंद कर रखे हैं। तुम हमेशा से पवित्र शक्‍ति का विरोध करते आए हो। तुम वही करते हो जो तुम्हारे बाप-दादा करते थे।+ 52 ऐसा कौन-सा भविष्यवक्‍ता हुआ है जिस पर तुम्हारे पुरखों ने ज़ुल्म नहीं ढाए?+ हाँ, उन्होंने उन लोगों को मार डाला जिन्होंने पहले से उस नेक जन के आने का ऐलान किया था।+ और अब तुमने भी उसके साथ विश्‍वासघात किया और उसका खून कर दिया।+ 53 हाँ तुमने ही ऐसा किया। तुम्हें स्वर्गदूतों के ज़रिए पहुँचाया गया कानून मिला,+ मगर तुम उस पर नहीं चले।”

54 जब उन्होंने ये बातें सुनीं, तो वे तिलमिला उठे और उस पर दाँत पीसने लगे। 55 मगर उसने पवित्र शक्‍ति से भरकर स्वर्ग की तरफ एकटक देखा और उसे परमेश्‍वर की महिमा दिखायी दी और उसने यीशु को परमेश्‍वर के दाएँ हाथ खड़े देखा+ 56 और कहा, “देखो! मैं स्वर्ग को खुला हुआ और इंसान के बेटे+ को परमेश्‍वर के दाएँ हाथ+ खड़ा देख रहा हूँ।” 57 यह सुनते ही वे चीख उठे और हाथों से अपने कान बंद कर लिए और सब मिलकर उस पर लपक पड़े। 58 और उसे खदेड़कर शहर के बाहर ले गए और पत्थरों से मारने लगे।+ स्तिफनुस के खिलाफ झूठी गवाही देनेवालों+ ने अपने चोगे उतारकर शाऊल नाम के एक नौजवान के पाँवों के पास रख दिए।+ 59 जब वे स्तिफनुस को पत्थर मार रहे थे, तो उसने यह प्रार्थना की, “हे प्रभु यीशु, मैं अपनी जान* तेरे हवाले करता हूँ।” 60 फिर उसने घुटने टेककर बड़ी ज़ोर से पुकारा, “यहोवा,* यह पाप इनके सिर मत लगाना।”+ यह कहने के बाद वह मौत की नींद सो गया।

8 शाऊल ने भी स्तिफनुस के कत्ल में साथ दिया।+

उस दिन से यरूशलेम की मंडली पर बहुत ज़ुल्म होने लगे। प्रेषितों को छोड़ बाकी सभी चेले यहूदिया और सामरिया के इलाकों में तितर-बितर हो गए।+ 2 मगर कुछ भक्‍त जन स्तिफनुस को दफनाने ले गए और उन्होंने उसके लिए बहुत मातम मनाया। 3 शाऊल मंडली को तबाह करने लगा। वह घर-घर घुसकर आदमी-औरत सबको घसीटकर निकालता और उन्हें जेल में डलवा देता था।+

4 मगर जो चेले तितर-बितर हो गए थे वे जहाँ कहीं गए, वहाँ वचन की खुशखबरी सुनाते गए।+ 5 फिलिप्पुस नाम का चेला सामरिया+ शहर* गया और वहाँ मसीह के बारे में प्रचार करने लगा। 6 लोगों की भीड़ ने फिलिप्पुस की बातों पर ध्यान दिया और मन लगाकर उन्हें सुना और उसके चमत्कार देखे। 7 वहाँ ऐसे बहुत-से लोग थे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे और वे ज़ोर से चीखते हुए उनसे बाहर निकल जाते थे।+ इसके अलावा, कई लोग जो लकवे के मारे थे और लँगड़े थे वे भी ठीक हो गए। 8 इससे पूरे शहर में खुशियाँ छा गयीं।

9 सामरिया शहर में शमौन नाम का एक आदमी था, जिसने अपनी जादूगरी से लोगों को हैरत में डाल रखा था। वह खुद को एक महापुरुष बताता था। 10 छोटे से लेकर बड़े तक, सब उस पर ध्यान देते थे और कहते थे, “इस आदमी में परमेश्‍वर की शक्‍ति है, महाशक्‍ति।” 11 उसने उन्हें काफी समय से अपनी जादूगरी से हैरत में डाल रखा था इसलिए वे उस पर ध्यान देते थे। 12 मगर जब उन्होंने फिलिप्पुस का यकीन किया, जो उन्हें परमेश्‍वर के राज की और यीशु मसीह के नाम की खुशखबरी सुना रहा था,+ तो आदमी-औरत सबने बपतिस्मा लिया।+ 13 शमौन भी एक विश्‍वासी बन गया और बपतिस्मा लेने के बाद फिलिप्पुस+ के साथ-साथ रहने लगा। वह उसके चमत्कार और बड़े-बड़े शक्‍तिशाली काम देखकर दंग रह जाता था।

14 जब यरूशलेम में प्रेषितों ने सुना कि सामरिया के लोगों ने परमेश्‍वर का वचन स्वीकार किया है,+ तो उन्होंने पतरस और यूहन्‍ना को उनके पास भेजा। 15 उन्होंने वहाँ जाकर उनके लिए प्रार्थना की कि वे पवित्र शक्‍ति पाएँ।+ 16 क्योंकि तब तक उनमें से किसी पर भी पवित्र शक्‍ति नहीं उतरी थी, मगर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम से सिर्फ बपतिस्मा लिया था।+ 17 तब पतरस और यूहन्‍ना ने उन पर हाथ रखे+ और वे पवित्र शक्‍ति पाने लगे।

18 अब जब शमौन ने देखा कि प्रेषितों के हाथ रखने से पवित्र शक्‍ति मिलती है, तो उसने उन्हें पैसा देते हुए 19 कहा, “मुझे भी यह अधिकार दो कि जिस किसी पर मैं अपने हाथ रखूँ वह पवित्र शक्‍ति पाए।” 20 मगर पतरस ने उससे कहा, “तेरी चाँदी तेरे संग नाश हो, क्योंकि तूने सोचा कि तू परमेश्‍वर के मुफ्त वरदान को पैसों से खरीद सकता है।+ 21 लेकिन इस सेवा में न तेरा कोई साझा है, न हिस्सा क्योंकि परमेश्‍वर की नज़र में तेरा दिल सीधा नहीं है। 22 इसलिए अपनी यह बुराई छोड़ और पश्‍चाताप करके यहोवा* से मिन्‍नत कर कि हो सके तो तेरे दिल का यह दुष्ट विचार माफ किया जाए 23 क्योंकि मैं देख सकता हूँ कि तेरे दिल में ज़हर भरा है* और तू बुराई का गुलाम है।” 24 तब शमौन ने उनसे कहा, “मेहरबानी करके मेरे लिए यहोवा* से मिन्‍नत करो कि जो बातें तुमने कही हैं, उनमें से कोई भी मुझ पर न आ पड़े।”

25 इस तरह जब पतरस और यूहन्‍ना सारे इलाके में अच्छी तरह गवाही दे चुके और यहोवा* का वचन सुना चुके, तो वे यरूशलेम लौट चले और रास्ते में सामरियों के बहुत-से गाँवों में खुशखबरी सुनाते गए।+

26 मगर यहोवा* के स्वर्गदूत+ ने फिलिप्पुस से कहा, “उठ और दक्षिण की तरफ उस रास्ते पर जा जो यरूशलेम से गाज़ा जाता है।” (यह एक सुनसान रास्ता है।) 27 यह सुनकर फिलिप्पुस उठा और निकल पड़ा और उसे रास्ते में इथियोपिया का एक खोजा* मिला। यह खोजा इथियोपिया की रानी कन्दाके के दरबार में ऊँचे पद पर था और उसके सारे खज़ाने का अधिकारी था। वह यरूशलेम में उपासना करने गया था+ 28 और अब लौट रहा था। वह अपने रथ पर बैठा ऊँची आवाज़ में भविष्यवक्‍ता यशायाह की किताब पढ़ रहा था। 29 तब पवित्र शक्‍ति ने फिलिप्पुस से कहा, “जा, उस रथ के पास जा।” 30 फिलिप्पुस उस रथ के साथ-साथ दौड़ने लगा और उसने खोजे को भविष्यवक्‍ता यशायाह की किताब पढ़ते सुना और उससे पूछा, “तू जो पढ़ रहा है, क्या उसे समझता भी है?” 31 उसने कहा, “जब तक कोई मुझे न समझाए, मैं भला कैसे समझ सकता हूँ?” फिर उसने फिलिप्पुस से बिनती की कि वह रथ पर चढ़कर उसके साथ बैठ जाए। 32 शास्त्र का जो हिस्सा वह पढ़ रहा था वह यह था: “वह भेड़ की तरह बलि होने के लिए लाया गया। जैसे मेम्ना अपने ऊन कतरनेवाले के सामने चुपचाप रहता है, वैसे ही उसने अपने मुँह से एक शब्द नहीं निकाला।+ 33 जब उसका अपमान हो रहा था, तो उसके साथ न्याय नहीं किया गया।+ यह कौन बताएगा कि वह कौन है, कहाँ से आया है? क्योंकि धरती से उसका जीवन ले लिया गया।”+

34 तब खोजे ने फिलिप्पुस से कहा, “मेहरबानी करके मुझे बता कि भविष्यवक्‍ता यह किसके बारे में कह रहा है? अपने बारे में या किसी दूसरे के बारे में?” 35 तब फिलिप्पुस ने बोलना शुरू किया और शास्त्र के इस वचन से शुरू करते हुए उसे यीशु के बारे में खुशखबरी सुनायी। 36 जब वे सड़क पर जा रहे थे, तो वे एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ काफी पानी था और खोजे ने कहा, “देख! यहाँ पानी है, अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रुकावट है?” 37* — 38 तब खोजे ने रथ रुकवाया और वे दोनों पानी में उतरे और फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया। 39 जब वे पानी से बाहर निकले, तो यहोवा* की पवित्र शक्‍ति फिलिप्पुस को वहाँ से फौरन कहीं और ले गयी और खोजा उसे फिर नहीं देख पाया और वह खुशी-खुशी अपने रास्ते चल दिया। 40 इसके बाद, फिलिप्पुस ने खुद को अशदोद में पाया और कैसरिया+ पहुँचने तक वह सभी इलाकों और शहरों में खुशखबरी सुनाता गया।

9 मगर शाऊल पर अब भी प्रभु के चेलों को धमकाने और मार डालने का जुनून सवार था।+ इसलिए वह महायाजक के पास गया 2 और उससे दमिश्‍क शहर के सभा-घरों के नाम चिट्ठियाँ माँगीं ताकि ‘प्रभु की राह’ पर चलनेवाला जो भी मिले, चाहे आदमी हो या औरत, उन्हें गिरफ्तार करके* यरूशलेम ले आए।+

3 जब वह दमिश्‍क पहुँचनेवाला था, तो रास्ते में अचानक उसके चारों तरफ आकाश से रौशनी चमक उठी।+ 4 तब वह ज़मीन पर गिर पड़ा और उसने एक आवाज़ सुनी जो उससे कह रही थी, “शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?” 5 शाऊल ने कहा, “हे प्रभु, तू कौन है?” उसने कहा, “मैं यीशु हूँ,+ जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है।+ 6 मगर अब उठ और शहर में जा और जो तुझे करना है वह तुझे बता दिया जाएगा।” 7 जो आदमी शाऊल के साथ सफर कर रहे थे, वे हक्के-बक्के रह गए और वहीं खड़े रहे। उन्हें कुछ आवाज़ तो आ रही थी मगर कोई दिखायी नहीं दे रहा था।+ 8 तब शाऊल ज़मीन से उठकर खड़ा हुआ। उसकी आँखें तो खुली थीं मगर वह कुछ देख नहीं पा रहा था। इसलिए वे उसे हाथ पकड़कर ले गए और दमिश्‍क पहुँचा दिया। 9 तीन दिन तक शाऊल कुछ नहीं देख पाया और न उसने कुछ खाया, न पीया।+

10 वहाँ दमिश्‍क में हनन्याह नाम का एक चेला था+ और प्रभु ने एक दर्शन में उससे कहा, “हनन्याह!” उसने कहा, “हाँ, प्रभु!” 11 प्रभु ने उससे कहा, “उठ, उस गली में जा जो सीधी कहलाती है। वहाँ यहूदा के घर में जाकर शाऊल नाम के आदमी के बारे में पूछ जो तरसुस का रहनेवाला है।+ क्योंकि देख! वह प्रार्थना कर रहा है 12 और उसने एक दर्शन में देखा है कि हनन्याह नाम का एक आदमी उसके पास आया और उसने उसके ऊपर हाथ रखा ताकि उसकी आँखों की रौशनी लौट आए।”+ 13 मगर हनन्याह ने कहा, “प्रभु, मैंने उस आदमी के बारे में कई लोगों से सुना है कि उसने यरूशलेम में तेरे पवित्र जनों को कितना दुख दिया है। 14 अब उसके पास प्रधान याजकों की तरफ से यह अधिकार है कि जितने तेरा नाम लेते हैं, उन सबको गिरफ्तार कर ले।”*+ 15 मगर प्रभु ने उससे कहा, “तू उसके पास जा क्योंकि मैंने उसे चुना है*+ ताकि वह गैर-यहूदियों को, साथ ही राजाओं+ और इसराएलियों को मेरे नाम की गवाही दे।+ 16 मैं उस पर साफ ज़ाहिर करूँगा कि उसे मेरे नाम की खातिर कितने दुख सहने होंगे।”+

17 तब हनन्याह चल पड़ा और उस घर में गया जहाँ शाऊल था। उसने अपने हाथ शाऊल पर रखे और कहा, “शाऊल, मेरे भाई, प्रभु यीशु जिसने उस सड़क पर तुझे दर्शन दिया था जहाँ से तू आ रहा था, उसी ने मुझे तेरे पास भेजा है ताकि तेरी आँखों की रौशनी लौट आए और तू पवित्र शक्‍ति से भर जाए।”+ 18 उसी घड़ी शाऊल की आँखों से छिलकों जैसा कुछ गिरा और वह फिर से देखने लगा और उसने उठकर बपतिस्मा लिया। 19 उसने खाना खाया और ताकत पायी।

शाऊल कुछ दिनों तक दमिश्‍क+ में चेलों के साथ रहा 20 और उसने तुरंत वहाँ के सभा-घरों में यीशु का प्रचार करना शुरू कर दिया कि वही परमेश्‍वर का बेटा है। 21 मगर जितनों ने भी उसके बारे में सुना, वे सब दंग रह गए और कहने लगे, “यह तो वही आदमी है न, जो यरूशलेम में यीशु का नाम लेनेवालों पर ज़ुल्म कर रहा था?+ क्या वह यहाँ भी इसी इरादे से नहीं आया था कि चेलों को गिरफ्तार करके* प्रधान याजकों के पास ले जाए?”+ 22 लेकिन शाऊल सिखाने में और भी दमदार होता गया। वह बढ़िया तर्क देकर साबित करता था कि यीशु ही मसीह है और दमिश्‍क के यहूदियों का मुँह बंद कर देता था।+

23 इस तरह जब कई दिन गुज़र गए, तो यहूदियों ने उसे मार डालने के लिए मिलकर साज़िश की।+ 24 मगर शाऊल को उनकी साज़िश का पता चल गया। यहूदी उसे मार डालने के लिए दिन-रात शहर के फाटकों पर नज़र रखे हुए थे। 25 इसलिए उसके चेलों ने रातों-रात उसे एक बड़े टोकरे में बिठाकर शहरपनाह में बनी एक खिड़की से नीचे उतार दिया।+

26 जब वह यरूशलेम+ पहुँचा तो उसने चेलों के साथ जुड़ने की कोशिश की, मगर सभी उससे डरते थे क्योंकि उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वह भी एक चेला बन चुका है। 27 इसलिए बरनबास+ उसकी मदद के लिए आगे आया और उसे प्रेषितों के पास ले गया। बरनबास ने उन्हें पूरी जानकारी दी कि कैसे शाऊल ने सड़क पर प्रभु को देखा था+ और यह भी कि प्रभु ने उससे बात की थी और कैसे उसने दमिश्‍क में निडर होकर यीशु के नाम से प्रचार किया था।+ 28 इसलिए शाऊल यरूशलेम में चेलों के साथ रहा और वहाँ खुलेआम आता-जाता था और प्रभु के नाम से निडर होकर बात करता था। 29 वह यूनानी बोलनेवाले यहूदियों से बातचीत और बहस किया करता था। मगर उन लोगों ने उसे खत्म करने की कोशिश की।+ 30 जब यह बात भाइयों को पता चली, तो वे उसे कैसरिया ले आए और वहाँ से उसे तरसुस+ भेज दिया।

31 इसके बाद सारे यहूदिया, गलील और सामरिया में मंडली के लिए शांति का दौर शुरू हुआ+ और वह विश्‍वास में मज़बूत होती गयी। मंडली यहोवा* का डर मानती रही और पवित्र शक्‍ति+ से दिलासा पाती रही और उसमें बढ़ोतरी होती गयी।

32 जब पतरस पूरे इलाके का दौरा कर रहा था, तो वह लुद्दा शहर में रहनेवाले पवित्र जनों के पास भी आया।+ 33 वहाँ उसे ऐनियास नाम का एक आदमी मिला, जो आठ साल से लकवे की वजह से खाट पर पड़ा था। 34 पतरस ने उससे कहा, “ऐनियास, यीशु मसीह तेरी बीमारी दूर करता है।+ उठ और अपना बिस्तर ठीक कर।”+ वह फौरन उठ खड़ा हुआ। 35 जब लुद्दा और शारोन के मैदानी इलाके में रहनेवाले सभी लोगों ने उसे देखा, तो वे प्रभु की तरफ हो गए।

36 याफा शहर में तबीता नाम की एक शिष्या थी, जिसका नाम यूनानी में “दोरकास”* था। वह बहुत-से भले काम करती और दान दिया करती थी। 37 मगर उन दिनों वह बीमार पड़ गयी और मर गयी। उन्होंने उसे नहलाकर ऊपर के एक कमरे में रखा। 38 लुद्दा शहर याफा के पास ही था इसलिए जब चेलों ने सुना कि पतरस लुद्दा में है, तो उन्होंने दो आदमियों को भेजकर उससे बिनती की, “जल्दी से हमारे पास आ।” 39 तब पतरस उठकर उनके साथ गया। जब वह याफा पहुँचा तो वे उसे ऊपरी कमरे में ले गए और सारी विधवाएँ रोती हुई उसके पास आयीं। वे पतरस को वे कपड़े और कुरते दिखाने लगीं जो दोरकास ने उनके लिए बनाए थे। 40 फिर पतरस ने सबको बाहर जाने के लिए कहा+ और घुटने टेककर प्रार्थना की। इसके बाद उसने लाश की तरफ मुड़कर कहा, “तबीता, उठ!” तबीता ने अपनी आँखें खोलीं और जैसे ही उसने पतरस को देखा, वह उठ बैठी।+ 41 पतरस ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे उठाया और पवित्र जनों और विधवाओं को बुलाकर उसे जीती-जागती उन्हें सौंप दिया।+ 42 यह बात पूरे याफा में फैल गयी और बहुत-से लोग प्रभु में विश्‍वासी बन गए।+ 43 पतरस काफी दिनों तक याफा में ही रहा। वह शमौन नाम के एक आदमी के घर ठहरा, जो चमड़े का काम करता था।+

10 कैसरिया में कुरनेलियुस नाम का एक आदमी था। वह उस फौजी टुकड़ी का अफसर* था जो इतालवी टुकड़ी* कहलाती थी। 2 वह एक भक्‍त इंसान था। वह और उसका पूरा घराना परमेश्‍वर का डर मानता था। वह लोगों को बहुत-से दान देता था और परमेश्‍वर के सामने गिड़गिड़ाकर बिनती किया करता था। 3 उसने दिन के करीब नौवें घंटे*+ में परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत को दर्शन में साफ देखा, जिसने उसके पास आकर कहा, “कुरनेलियुस!” 4 वह डर के मारे दूत को देखता रह गया और उसने कहा, “प्रभु, क्या हुआ?” दूत ने उससे कहा, “परमेश्‍वर ने तेरी प्रार्थनाएँ सुनी हैं और जो दान तू देता है उन पर ध्यान दिया है।+ 5 इसलिए अब तू अपने आदमी भेजकर याफा से शमौन को बुलवा ले, जो पतरस भी कहलाता है। 6 वह चमड़े का काम करनेवाले शमौन के यहाँ मेहमान है, जिसका घर समुंदर के किनारे है।” 7 उस स्वर्गदूत के जाते ही कुरनेलियुस ने अपने घर के दो सेवकों को और परमेश्‍वर का डर माननेवाले अपने एक सैनिक को बुलाया, जो हमेशा उसकी सेवा में हाज़िर रहता था। 8 उसने उन्हें पूरी बात बताकर याफा भेजा।

9 अगले दिन जब कुरनेलियुस के सेवक सफर करते-करते शहर के पास आ पहुँचे, तब छठे घंटे* के करीब पतरस प्रार्थना करने के लिए घर की छत पर गया। 10 मगर उसे ज़ोरों की भूख लगी और वह कुछ खाना चाहता था। जब वे खाना तैयार कर रहे थे, तो उसे एक दर्शन मिला।*+ 11 और उसने देखा कि आकाश खुल गया और बड़ी चादर जैसा कुछ* नीचे आ रहा है। उसे चारों कोनों से पकड़कर धरती पर उतारा जा रहा है। 12 उसमें धरती पर पाए जानेवाले हर किस्म के जानवर* और रेंगनेवाले जीव-जंतु और आकाश के पक्षी हैं। 13 फिर पतरस को एक आवाज़ सुनायी दी, “पतरस उठ, इन्हें काटकर खा!” 14 मगर उसने कहा, “नहीं प्रभु, नहीं! मैंने कभी कोई दूषित और अशुद्ध चीज़ नहीं खायी है।”+ 15 फिर दूसरी बार उसी आवाज़ ने उससे कहा, “तू अब से उन चीज़ों को दूषित मत कहना जिन्हें परमेश्‍वर ने शुद्ध किया है।” 16 तीन बार ऐसा हुआ और फिर वह चादर जैसी चीज़* फौरन आकाश में उठा ली गयी।

17 पतरस बड़ी उलझन में था कि इस दर्शन का क्या मतलब हो सकता है। वह इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी कुरनेलियुस के आदमी शमौन का घर पूछते-पूछते उसके दरवाज़े पर आ खड़े हुए।+ 18 उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगायी और पूछा कि शमौन जो पतरस कहलाता है, क्या वह यहीं ठहरा हुआ है। 19 पतरस दर्शन के बारे में सोच रहा था और पवित्र शक्‍ति+ ने उससे कहा, “देख! तीन आदमी तेरे बारे में पूछ रहे हैं। 20 उठ, नीचे जा और उनके साथ बेझिझक चला जा, क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।” 21 तब पतरस सीढ़ियाँ उतरकर उन आदमियों के पास गया और उसने कहा, “देखो! तुम जिसे ढूँढ़ रहे हो, वह मैं ही हूँ। यहाँ कैसे आना हुआ?” 22 उन्होंने कहा, “सेना-अफसर कुरनेलियुस+ ने हमें भेजा है। वह परमेश्‍वर का डर माननेवाला नेक इंसान है। सारे यहूदी भी उसकी तारीफ करते हैं। एक पवित्र स्वर्गदूत ने उसे परमेश्‍वर की तरफ से हिदायत दी है कि तुझे बुलवा ले और जो बातें तू बताएगा उन्हें सुने।” 23 यह सुनकर पतरस ने उन्हें अंदर बुलाया और अपना मेहमान बनाकर वहाँ ठहराया।

अगले दिन पतरस उठा और उनके साथ निकल पड़ा और याफा के कुछ भाई भी उसके साथ गए। 24 दूसरे दिन वह कैसरिया पहुँचा। वहाँ कुरनेलियुस उनका इंतज़ार कर रहा था। उसने अपने रिश्‍तेदारों और करीबी दोस्तों को भी अपने घर बुला रखा था। 25 जब पतरस घर के अंदर गया, तो कुरनेलियुस उससे मिला और उसने पतरस के पैरों पर गिरकर उसे प्रणाम* किया। 26 मगर पतरस ने उसे उठाकर कहा, “खड़ा हो, मैं भी तेरे जैसा एक इंसान हूँ।”+ 27 पतरस उससे बातें करता हुआ अंदर गया और उसने देखा कि वहाँ बहुत लोग जमा हैं। 28 उसने उनसे कहा, “तुम अच्छी तरह जानते हो कि एक यहूदी के लिए दूसरी जाति के किसी इंसान से मिलना-जुलना या उसके यहाँ जाना भी नियम के खिलाफ है।+ मगर फिर भी परमेश्‍वर ने मुझे दिखाया है कि मैं किसी भी इंसान को दूषित या अशुद्ध न कहूँ।+ 29 इसलिए जब मुझे बुलाया गया, तो मैं बिना किसी एतराज़ के चला आया। अब मुझे बताओ कि तुमने मुझे किस वजह से बुलाया है।”

30 फिर कुरनेलियुस ने कहा, “आज से ठीक चार दिन पहले की बात है, जब मैं नौवें घंटे* में अपने घर में प्रार्थना कर रहा था, तब मैंने देखा कि एक आदमी उजले कपड़े पहने मेरे सामने आ खड़ा हुआ। 31 उसने मुझसे कहा, ‘कुरनेलियुस, परमेश्‍वर ने तेरी प्रार्थना सुन ली है और जो दान तू देता है उन पर उसने ध्यान दिया है। 32 इसलिए अब अपने आदमियों को याफा भेज और उस शमौन को, जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। वह चमड़े का काम करनेवाले शमौन के यहाँ मेहमान है, जिसका घर समुंदर किनारे है।’+ 33 इसलिए मैंने फौरन तुझे बुलावा भेजा और तूने यहाँ आकर हम पर मेहरबानी की है। अब इस वक्‍त, हम सब परमेश्‍वर के सामने हाज़िर हैं ताकि वे सारी बातें सुनें, जिन्हें सुनाने की आज्ञा यहोवा* ने तुझे दी है।”

34 तब पतरस ने बोलना शुरू किया, “अब मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ कि परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता,+ 35 मगर हर वह इंसान जो उसका डर मानता है और सही काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, उसे वह स्वीकार करता है।+ 36 परमेश्‍वर ने इसराएलियों के पास एक संदेश भेजा, उन्हें यह खुशखबरी दी कि यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर के साथ शांति कायम की जा सकती है।+ यही यीशु सबका प्रभु है।+ 37 तुम जानते हो कि जब यूहन्‍ना ने बपतिस्मे का प्रचार किया तो उसके बाद गलील में किस बात की चर्चा होने लगी और पूरे यहूदिया में फैल गयी,+ 38 यानी नासरत के यीशु की चर्चा। तुमने सुना है कि परमेश्‍वर ने किस तरह पवित्र शक्‍ति से उसका अभिषेक किया+ और उसे ताकत दी और वह पूरे देश में भलाई करता रहा और शैतान* के सताए हुओं को ठीक करता रहा,+ क्योंकि परमेश्‍वर उसके साथ था।+ 39 और हम उन सभी कामों के गवाह हैं जो उसने यहूदियों के देश में और यरूशलेम में किए थे। मगर उन्होंने उसे काठ* पर लटकाकर मार डाला। 40 परमेश्‍वर ने इसी यीशु को तीसरे दिन ज़िंदा किया+ और उसे लोगों पर प्रकट होने दिया।* 41 मगर सभी लोगों पर नहीं बल्कि उन गवाहों पर जिन्हें परमेश्‍वर ने पहले से चुना था, यानी हम पर। जब वह मरे हुओं में से ज़िंदा हो गया तो उसके बाद हमने उसके साथ खाया-पीया।+ 42 उसने हमें यह आज्ञा भी दी कि हम लोगों को प्रचार करें और इस बात की अच्छी तरह गवाही दें+ कि यह वही है जिसे परमेश्‍वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है।+ 43 सारे भविष्यवक्‍ताओं ने इसी यीशु की गवाही दी+ कि जो कोई उस पर विश्‍वास करेगा वह उसके नाम से पापों की माफी पाएगा।”+

44 पतरस ये बातें बोल ही रहा था कि तभी पवित्र शक्‍ति उन सभी लोगों पर उतरी जो वचन सुन रहे थे।+ 45 पतरस के साथ आए सभी विश्‍वासी भाई, जिनका खतना हो चुका था,* वे दंग रह गए क्योंकि पवित्र शक्‍ति का मुफ्त वरदान, गैर-यहूदियों को भी दिया जा रहा था। 46 उन्होंने उन लोगों को अलग-अलग भाषाएँ* बोलते और परमेश्‍वर की बड़ाई करते सुना।+ तब पतरस ने कहा, 47 “इन लोगों ने भी हमारी तरह पवित्र शक्‍ति पायी है, अब कौन इन्हें पानी में बपतिस्मा लेने से रोक सकता है?”+ 48 फिर पतरस ने यह आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया जाए।+ इसके बाद उन्होंने पतरस से बिनती की कि वह कुछ दिन वहीं ठहर जाए।

11 यह बात प्रेषितों और उन भाइयों ने सुनी, जो यहूदिया में थे कि गैर-यहूदियों ने भी परमेश्‍वर का वचन स्वीकार किया है। 2 इसलिए जब पतरस यरूशलेम आया, तो खतने का समर्थन करनेवाले+ उसे बुरा-भला कहने* लगे, 3 “तू ऐसे लोगों के घर गया था जिनका खतना नहीं हुआ और तूने उनके साथ खाना भी खाया।” 4 तब पतरस उन्हें शुरू से लेकर सारी बात समझाने लगा कि क्या-क्या हुआ था:

5 “जब मैं याफा शहर में प्रार्थना कर रहा था, तो मुझ पर बेसुधी छा गयी और मैंने एक दर्शन देखा। मैंने देखा कि एक बड़ी चादर जैसा कुछ* आकाश से नीचे आ रहा है। उसे चारों कोनों से पकड़कर धरती पर उतारा जा रहा था और वह बिलकुल मेरे पास आ गया।+ 6 फिर मैंने गौर किया कि उसमें धरती पर पाए जानेवाले हर किस्म के जानवर,* जंगली जानवर, रेंगनेवाले जीव-जंतु और आकाश के पक्षी थे। 7 मुझे एक आवाज़ भी सुनायी दी जो कह रही थी, ‘पतरस उठ, इन्हें काटकर खा!’ 8 मगर मैंने कहा, ‘नहीं प्रभु, नहीं! मैंने कभी कोई दूषित और अशुद्ध चीज़ अपने मुँह में नहीं डाली।’ 9 फिर दूसरी बार आकाश से उसी आवाज़ ने मुझसे कहा, ‘तू अब से उन चीज़ों को दूषित मत कहना जिन्हें परमेश्‍वर ने शुद्ध किया है।’ 10 ऐसा ही तीसरी बार हुआ और फिर सबकुछ वापस आकाश में उठा लिया गया। 11 उसी घड़ी, तीन आदमी उस घर के सामने आ खड़े हुए जहाँ हम ठहरे हुए थे। उन्हें कैसरिया से मेरे पास भेजा गया था।+ 12 पवित्र शक्‍ति ने मुझे बताया कि मैं बेझिझक उनके साथ चला जाऊँ। और ये छ: भाई भी मेरे साथ चल पड़े और हम उस आदमी के घर गए।

13 उसने हमें बताया कि उसने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़े देखा जिसने उससे कहा, ‘याफा में आदमी भेजकर शमौन को, जो पतरस भी कहलाता है, बुलवा ले।+ 14 वह तुझे वे बातें बताएगा जिनसे तू और तेरा सारा घराना उद्धार पा सकता है।’ 15 मगर जब मैंने बोलना शुरू किया, तो उन पर पवित्र शक्‍ति उतरी, ठीक जैसे शुरूआत में हम पर उतरी थी।+ 16 तब मुझे प्रभु की वह बात याद आयी, जो वह कहा करता था, ‘यूहन्‍ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया था,+ मगर तुम्हें पवित्र शक्‍ति से बपतिस्मा दिया जाएगा।’+ 17 इसलिए जब परमेश्‍वर ने उन्हें भी वह मुफ्त वरदान दिया, जो उसने हमें यानी प्रभु यीशु मसीह पर विश्‍वास करनेवालों को दिया था, तो परमेश्‍वर को रोकनेवाला* भला मैं कौन होता?”+

18 जब उन्होंने ये बातें सुनीं तो इस बारे में और कुछ न कहा* और यह कहकर परमेश्‍वर की महिमा करने लगे, “तो इसका मतलब, परमेश्‍वर ने गैर-यहूदियों को भी पश्‍चाताप करने का मौका दिया है ताकि वे भी जीवन पाएँ।”+

19 स्तिफनुस के कत्ल के बाद जब भाइयों पर ज़ुल्म होने लगे और वे तितर-बितर हो गए,+ तो वे फीनीके, कुप्रुस और अंताकिया तक पहुँच गए। मगर उन्होंने यहूदियों के अलावा किसी और को परमेश्‍वर का संदेश नहीं सुनाया।+ 20 लेकिन उनमें से कुछ चेले जो कुप्रुस और कुरेने के थे, वे अंताकिया आए और यूनानी बोलनेवाले लोगों को प्रभु यीशु की खुशखबरी सुनाने लगे। 21 इसके अलावा, यहोवा* का हाथ उन पर था और बड़ी तादाद में लोगों ने विश्‍वास किया और प्रभु की तरफ हो गए।+

22 उनके बारे में यरूशलेम की मंडली तक खबर पहुँची और उन्होंने बरनबास+ को अंताकिया भेजा। 23 वहाँ पहुँचकर जब उसने परमेश्‍वर की महा-कृपा देखी, तो वह बहुत खुश हुआ और सबका हौसला बढ़ाने लगा कि वे दिल के पक्के इरादे के साथ प्रभु के वफादार बने रहें।+ 24 क्योंकि बरनबास एक अच्छा इंसान था और पवित्र शक्‍ति और विश्‍वास से भरपूर था। और बड़ी तादाद में लोग प्रभु पर विश्‍वास करने लगे।+ 25 इसलिए बरनबास तरसुस गया ताकि वहाँ जाकर शाऊल को अच्छी तरह ढूँढ़े।+ 26 और जब शाऊल उसे मिल गया, तो वह उसे अंताकिया ले आया। इसके बाद, पूरे एक साल तक वे वहाँ की मंडली के साथ इकट्ठा होते रहे और लोगों की बड़ी भीड़ को सिखाते रहे। और परमेश्‍वर के मार्गदर्शन से अंताकिया में ही पहली बार चेले ‘मसीही’ कहलाए।+

27 उन्हीं दिनों यरूशलेम से कुछ भविष्यवक्‍ता+ अंताकिया आए। 28 उनमें से एक का नाम अगबुस था।+ उसने उठकर पवित्र शक्‍ति की मदद से बताया कि पूरी दुनिया में भारी अकाल पड़नेवाला है।+ यह अकाल क्लौदियुस के दिनों में पड़ा। 29 तब अंताकिया के चेलों ने ठान लिया कि हरेक से जितना बन पड़ेगा,+ उतना वे यहूदिया के भाइयों की मदद के लिए राहत का सामान भेजेंगे।+ 30 और उन्होंने ऐसा ही किया और यह सामान बरनबास और शाऊल के हाथों प्राचीनों के पास भेजा।+

12 उन्हीं दिनों राजा हेरोदेस मंडली के कुछ लोगों पर ज़ुल्म ढाने लगा।+ 2 उसने यूहन्‍ना के भाई याकूब+ को तलवार से मरवा डाला।+ 3 जब उसने देखा कि यहूदी इससे खुश हुए हैं, तो उसने पतरस को भी गिरफ्तार कर लिया। (ये बिन खमीर की रोटी के त्योहार के दिन थे।)+ 4 हेरोदेस ने पतरस को पकड़कर जेल में डाल दिया+ और चार सिपाहियों के चार दल ठहराए कि वे बारी-बारी से उस पर पहरा दें। उसका इरादा था कि फसह के त्योहार के बाद वह उसे लोगों के सामने* ले जाएगा। 5 जब पतरस जेल में था तो मंडली उसके लिए परमेश्‍वर से दिलो-जान से प्रार्थना कर रही थी।+

6 जिस दिन हेरोदेस उसे लोगों के सामने पेश करनेवाला था, उससे पहले की रात पतरस दो ज़ंजीरों से बँधा हुआ दो सिपाहियों के बीच सो रहा था और जेल के दरवाज़े पर पहरेदार पहरा दे रहे थे। 7 तभी अचानक यहोवा* का स्वर्गदूत वहाँ आ खड़ा हुआ+ और जेल की वह कोठरी रौशनी से जगमगा उठी। स्वर्गदूत ने पतरस का कंधा थपथपाकर उसे जगाया और कहा, “उठ, जल्दी कर!” तब उसके हाथों की ज़ंजीरें खुलकर गिर पड़ीं।+ 8 स्वर्गदूत ने पतरस से कहा, “कमर कस ले और अपनी जूतियाँ पहन ले।” उसने ऐसा ही किया। फिर उसने पतरस से कहा, “अपना चोगा पहन ले और मेरे पीछे चला आ।” 9 वह निकलकर उसके पीछे-पीछे चलता गया, मगर वह यह नहीं जानता था कि स्वर्गदूत जो कर रहा है वह हकीकत में हो रहा है। उसे तो यही लगा कि वह कोई दर्शन देख रहा है। 10 पहरेदारों की पहली और दूसरी चौकी पार करके वे लोहे के उस फाटक पर आ पहुँचे जो शहर की तरफ खुलता है। वह फाटक उनके लिए अपने आप खुल गया। बाहर निकलने के बाद वे एक गली में पहुँचे और उसी घड़ी स्वर्गदूत उसे छोड़कर चला गया। 11 तब पतरस को एहसास हुआ कि असल में क्या हुआ है। उसने कहा, “अब मैं जान गया हूँ कि यहोवा* ने एक स्वर्गदूत भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से बचाया है और मेरे साथ वे बुरी घटनाएँ नहीं होने दीं जिनकी यहूदी उम्मीद कर रहे थे।”+

12 इसके बाद वह मरियम के घर गया जो मरकुस कहलानेवाले यूहन्‍ना+ की माँ थी। वहाँ काफी चेले जमा थे और प्रार्थना कर रहे थे। 13 जब पतरस ने बाहर का दरवाज़ा खटखटाया, तो रुदे नाम की दासी यह देखने आयी कि कौन आया है। 14 पतरस की आवाज़ पहचानने पर वह इतनी खुश हो गयी कि दरवाज़ा खोले बिना ही दौड़कर अंदर चली गयी और जाकर सबको बताने लगी कि पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा है। 15 चेलों ने उससे कहा, “तू पागल हो गयी है।” मगर वह ज़ोर देकर कहती रही कि सचमुच वही आया है। तब वे कहने लगे, “वह उसका स्वर्गदूत होगा।” 16 मगर पतरस वहीं खड़ा खटखटाता रहा। जब उन्होंने दरवाज़ा खोला तो उसे देखकर दंग रह गए। 17 मगर पतरस ने हाथ से उन्हें चुप रहने का इशारा किया और उन्हें पूरा किस्सा कह सुनाया कि कैसे यहोवा* ने उसे जेल से बाहर निकाला। फिर उसने कहा, “ये बातें याकूब+ और दूसरे भाइयों को बता देना।” इसके बाद वह बाहर गया और किसी और जगह के लिए निकल पड़ा।

18 जब दिन हुआ तो सिपाहियों में अफरा-तफरी मच गयी कि आखिर पतरस गया कहाँ। 19 हेरोदेस ने उसकी बहुत तलाश करवायी और जब वह उसे नहीं मिला, तो उसने पहरेदारों से पूछताछ की और हुक्म दिया कि इन्हें ले जाओ और सज़ा दो।+ फिर हेरोदेस यहूदिया से कैसरिया चला गया और कुछ समय के लिए वहीं रहा।

20 राजा हेरोदेस, सोर और सीदोन के लोगों से बहुत गुस्सा था।* इसलिए वे सभी एक मन से उसके पास आए और उन्होंने राजा के घराने की देखरेख करनेवाले बलासतुस को मनाकर राजा के साथ सुलह करनी चाही, क्योंकि उनके देश को राजा के देश से ही खाने का सामान मिलता था। 21 फिर एक दिन एक खास मौके पर, हेरोदेस शाही लिबास में न्याय-आसन पर बैठा और उसने जनता को भाषण देना शुरू किया। 22 उसकी बातें सुनकर वहाँ जमा लोग चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “यह किसी इंसान की नहीं, बल्कि देवता की आवाज़ है!” 23 उसी घड़ी यहोवा* के स्वर्गदूत ने हेरोदेस को मारा क्योंकि उसने परमेश्‍वर की महिमा नहीं की। उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और वह मर गया।

24 मगर यहोवा* का वचन फैलता गया और बहुत-से लोगों ने विश्‍वास किया।+

25 बरनबास+ और शाऊल यरूशलेम में राहत का काम पूरा करने के बाद+ लौट गए और अपने साथ यूहन्‍ना को ले गए+ जो मरकुस कहलाता है।

13 अंताकिया की मंडली में कई भविष्यवक्‍ता और शिक्षक थे।+ ये थे बरनबास, शिमौन जो काला* कहलाता था, कुरेने का लूकियुस, मनाहेम जो ज़िला-शासक हेरोदेस के साथ पढ़ा था और शाऊल। 2 जब वे यहोवा* की सेवा करने* और उपवास करने में लगे हुए थे तो पवित्र शक्‍ति ने उनसे कहा, “मेरे लिए बरनबास और शाऊल+ को उस काम के लिए अलग करो, जिसके लिए मैंने उन्हें बुलाया है।”+ 3 तब उपवास और प्रार्थना करने के बाद, उन्होंने उन दोनों पर हाथ रखे और उन्हें रवाना कर दिया।

4 फिर ये आदमी पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक सिलूकिया गए और फिर वहाँ से जहाज़ पर चढ़कर कुप्रुस द्वीप के लिए रवाना हुए। 5 जब वे उस द्वीप के सलमीस शहर पहुँचे, तो वे यहूदियों के सभा-घरों में परमेश्‍वर का वचन सुनाने लगे। उनके साथ यूहन्‍ना* भी था, जो उनकी सेवा किया करता था।*+

6 जब वे उस पूरे द्वीप का दौरा करते हुए पाफुस शहर पहुँचे, तो वहाँ उन्हें बार-यीशु नाम का एक यहूदी मिला। वह एक जादूगर और झूठा भविष्यवक्‍ता था। 7 वह उस प्रांत के राज्यपाल* सिरगियुस पौलुस के साथ-साथ रहता था। सिरगियुस पौलुस एक अक्लमंद इंसान था। उसने बरनबास और शाऊल को अपने पास बुलाया क्योंकि उसे परमेश्‍वर का वचन सुनने की गहरी इच्छा थी। 8 मगर बार-यीशु जो इलीमास जादूगर कहलाता है (इलीमास नाम का मतलब है, जादूगर) उनका विरोध करने लगा और उसने पूरी कोशिश की कि राज्यपाल इस विश्‍वास को न अपनाए। 9 तब शाऊल ने, जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र शक्‍ति से भरकर उसकी तरफ टकटकी लगाकर देखा 10 और कहा, “अरे शैतान की औलाद,+ तू जो हर तरह की धोखाधड़ी और मक्कारी से भरा हुआ है और हर तरह की नेकी का दुश्‍मन है, क्या तू यहोवा* की सीधी राहों को बिगाड़ना नहीं छोड़ेगा? 11 अब देख! यहोवा* का हाथ तेरे खिलाफ उठा है और तू अंधा हो जाएगा और कुछ वक्‍त के लिए सूरज की रौशनी नहीं देख पाएगा।” उसी पल उसकी आँखों के आगे घने कोहरे जैसा धुँधलापन और अँधेरा छा गया और वह इधर-उधर टटोलने लगा कि कोई उसका हाथ पकड़कर उसे ले चले। 12 तब जो कुछ हुआ, उसे देखकर राज्यपाल विश्‍वासी बन गया क्योंकि वह यहोवा* की शिक्षा से दंग रह गया था।

13 इसके बाद पौलुस और उसके साथी, पाफुस से समुद्री यात्रा करते हुए पमफूलिया प्रांत के पिरगा शहर पहुँचे। वहाँ यूहन्‍ना*+ उन्हें छोड़कर यरूशलेम लौट गया।+ 14 मगर वे पिरगा से आगे बढ़े और पिसिदिया इलाके के अंताकिया शहर में आए और सब्त के दिन सभा-घर में जाकर बैठ गए।+ 15 वहाँ जब सबके सामने कानून और भविष्यवक्‍ताओं की किताबें पढ़कर सुनायी गयीं,+ तो इसके बाद सभा-घर के अधिकारियों ने पौलुस और उसके साथियों को यह कहकर बुलवाया, “भाइयो, अगर लोगों की हिम्मत बँधाने के लिए तुम्हारे पास कहने को कुछ हो तो कहो।” 16 तब पौलुस उठा और उसने हाथ से सबको शांत हो जाने का इशारा करते हुए कहा,

“इसराएलियो और परमेश्‍वर का डर माननेवाले दूसरे लोगो, सुनो। 17 इसराएल के परमेश्‍वर ने हमारे पुरखों को चुना और जब वे मिस्र में परदेसियों की तरह रहते थे, तब उन्हें महान किया और अपने शक्‍तिशाली हाथों से वहाँ से बाहर ले आया।+ 18 वह करीब 40 साल तक वीराने में उन्हें बरदाश्‍त करता रहा।+ 19 उसने कनान देश में सात जातियों का नाश करने के बाद, उनका देश इसराएलियों को विरासत में दे दिया।+ 20 यह सब करीब 450 साल के दौरान हुआ।

इसके बाद, परमेश्‍वर ने उन पर न्यायी ठहराए। न्यायियों का दौर भविष्यवक्‍ता शमूएल तक चला।+ 21 मगर आगे चलकर इसराएली एक राजा की माँग करने लगे+ और परमेश्‍वर ने कीश के बेटे शाऊल को उनका राजा बनाया, जो बिन्यामीन गोत्र से था।+ वह 40 साल तक उनका राजा रहा। 22 उसे हटाने के बाद, उसने दाविद को उनका राजा बनाया,+ जिसके बारे में उसने यह गवाही दी, ‘मैंने यिशै के बेटे दाविद को पाया,+ वह एक ऐसा इंसान है जो मेरे दिल को भाता है।+ मेरी जो भी मरज़ी है उसे वह पूरा करेगा।’ 23 परमेश्‍वर ने अपने वादे के मुताबिक इसी दाविद के वंश* से इसराएल के पास एक उद्धारकर्ता भेजा, वह यीशु था।+ 24 यीशु के आने से पहले यूहन्‍ना ने सरेआम इसराएल के सब लोगों को प्रचार किया कि वे बपतिस्मा लें, जो इस बात की निशानी होगा कि उन्होंने पश्‍चाताप किया है।+ 25 मगर जब यूहन्‍ना अपनी सेवा के आखिरी समय में पहुँचा तो वह कहता था, ‘तुम्हें क्या लगता है, मैं कौन हूँ? मैं वह नहीं हूँ। मगर देखो! मेरे बाद वह आ रहा है जिसके पैरों की जूतियाँ तक खोलने के मैं लायक नहीं।’+

26 भाइयो, अब्राहम के वंशजो और परमेश्‍वर का डर माननेवाले बाकी लोगो, सुनो। परमेश्‍वर ने हमारे उद्धार के बारे में एक संदेश हम तक पहुँचाया है।+ 27 यरूशलेम के रहनेवालों और उनके धर्म-अधिकारियों* ने उस उद्धारकर्ता को नहीं पहचाना, मगर उसका न्याय करते वक्‍त उन्होंने भविष्यवक्‍ताओं की कही वे सारी बातें पूरी कीं+ जो हर सब्त के दिन पढ़कर सुनायी जाती हैं। 28 हालाँकि उसे मार डालने की उन्हें कोई वजह नहीं मिली,+ फिर भी उन्होंने पीलातुस से माँग की कि उसे मौत की सज़ा दी जाए।+ 29 और जब उन्होंने वह सब कर लिया जो उसके बारे में लिखा था, तो उसे काठ* से नीचे उतारा और एक कब्र* में रख दिया।+ 30 मगर परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया।+ 31 फिर वह कई दिनों तक उन लोगों को दिखायी देता रहा जो उसके साथ गलील से यरूशलेम गए थे। आज वे सब लोगों के सामने उसके गवाह हैं।+

32 इसलिए हम तुम्हें उस वादे के बारे में खुशखबरी सुना रहे हैं जो हमारे पुरखों से किया गया था। 33 परमेश्‍वर ने अपने बच्चों यानी हमारी खातिर यह वादा हर तरह से पूरा किया और इसके लिए उसने यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया,+ ठीक जैसे दूसरे भजन में लिखा है, ‘तू मेरा बेटा है, आज मैं तेरा पिता बना हूँ।’+ 34 परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया और वह फिर कभी इंसान नहीं बनेगा जो मरकर सड़ जाता है। परमेश्‍वर ने इस बात को पक्का करने के लिए कहा है, ‘मैं तुम लोगों पर ज़ाहिर करूँगा कि दाविद के लिए मेरा प्यार अटल और सच्चा है, ठीक जैसे मैंने उससे वादा किया था।’+ 35 इसलिए एक और भजन कहता है, ‘तू अपने वफादार जन को सड़ने नहीं देगा।’+ 36 जहाँ तक दाविद की बात है, उसने सारी ज़िंदगी परमेश्‍वर की पवित्र सेवा की,* फिर वह मौत की नींद सो गया और उसे अपने पुरखों के साथ दफनाया गया और वह सड़ गया।+ 37 मगर वहीं, जिसे परमेश्‍वर ने मरे हुओं में से ज़िंदा किया, उसका शरीर नहीं सड़ा।+

38 इसलिए भाइयो, तुम जान लो कि उसी के ज़रिए तुम्हें पापों की माफी मिल सकती है और यही खबर हम तुम्हें सुना रहे हैं।+ 39 और जिन बातों में मूसा का कानून तुम्हें निर्दोष नहीं ठहरा सका,+ उन्हीं बातों में एक इंसान यीशु के ज़रिए निर्दोष ठहर सकता है, बशर्ते वह विश्‍वास करे।+ 40 इसलिए खबरदार रहो कि भविष्यवक्‍ताओं की किताबों में लिखी यह बात कहीं तुम्हारे साथ न घटे: 41 ‘हे ठट्ठा करनेवालो, देखो, ताज्जुब करो और मिट जाओ, क्योंकि मैं तुम्हारे दिनों में ऐसा काम करनेवाला हूँ जिसके बारे में अगर कोई तुम्हें बारीकी से भी बताए, तो भी तुम हरगिज़ उसका यकीन नहीं करोगे।’”+

42 यह सब कहने के बाद जब वे बाहर जा रहे थे, तो लोग उनसे बिनती करने लगे कि ये बातें उन्हें अगले सब्त के दिन फिर सुनायी जाएँ। 43 जब सभा खत्म हो गयी तो बहुत-से यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले, जो परमेश्‍वर की उपासना करते थे, पौलुस और बरनबास के साथ-साथ गए। उन दोनों ने उनसे बात की और उन्हें बढ़ावा दिया कि वे परमेश्‍वर की महा-कृपा के लायक बने रहें।+

44 अगले सब्त के दिन करीब-करीब पूरा शहर यहोवा* का वचन सुनने के लिए जमा हो गया। 45 जब यहूदियों ने लोगों की इतनी बड़ी भीड़ देखी, तो वे जलन से भर गए और पौलुस की बातों को गलत साबित करने के लिए बहस करने लगे और उसकी बातों की निंदा करने लगे।+ 46 तब पौलुस और बरनबास ने निडर होकर उनसे कहा, “यह ज़रूरी था कि परमेश्‍वर का वचन पहले तुम यहूदियों को सुनाया जाए।+ मगर तुम इसे ठुकरा रहे हो और दिखा रहे हो कि तुम हमेशा की ज़िंदगी के लायक नहीं हो, इसलिए देखो! हम दूसरे राष्ट्रों के पास जा रहे हैं।+ 47 यहोवा* ने हमें यह आज्ञा दी है, ‘मैंने तुझे राष्ट्रों के लिए रौशनी ठहराया है ताकि तू पृथ्वी के छोर तक उद्धार का संदेश सुनाए।’”+

48 जब गैर-यहूदियों ने यह बात सुनी, तो वे बहुत खुश हुए और यहोवा* के वचन की बड़ाई करने लगे और वे सभी जो हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते थे, विश्‍वासी बन गए। 49 इतना ही नहीं, यहोवा* का वचन आस-पास के पूरे इलाके में फैलता रहा। 50 मगर यहूदियों ने शहर की जानी-मानी औरतों को, जो परमेश्‍वर का डर मानती थीं और खास-खास आदमियों को भड़काया। उन्होंने पौलुस और बरनबास पर ज़ुल्म करवाया+ और उन्हें अपनी सरहदों के बाहर खदेड़ दिया। 51 तब पौलुस और बरनबास ने अपने पैरों की धूल झाड़ दी ताकि उनके खिलाफ गवाही हो और वे इकुनियुम शहर चले गए।+ 52 और चेले आनंद और पवित्र शक्‍ति से भरपूर होते रहे।+

14 अब पौलुस और बरनबास इकुनियुम में एक-साथ यहूदियों के सभा-घर में गए और वहाँ उन्होंने इतने बढ़िया ढंग से बात की कि बहुत-से यहूदी और यूनानी विश्‍वासी बन गए। 2 मगर जिन यहूदियों ने विश्‍वास नहीं किया, उन्होंने गैर-यहूदियों को भड़काया और भाइयों के खिलाफ उनके मन में कड़वाहट भर दी।+ 3 इसलिए पौलुस और बरनबास ने वहाँ काफी समय बिताया। और यहोवा* से मिले अधिकार की वजह से वे निडर होकर उसका वचन सुनाते रहे। परमेश्‍वर उनके हाथों चमत्कार और आश्‍चर्य के काम करवाता रहा ताकि साबित हो कि परमेश्‍वर की महा-कृपा का जो संदेश वे सुना रहे हैं, वह उसी की तरफ से है।+ 4 मगर शहर के लोगों में फूट पड़ गयी और कुछ यहूदियों की तरफ हो गए, तो कुछ प्रेषितों की तरफ। 5 गैर-यहूदी और यहूदी अपने अधिकारियों के साथ मिलकर पौलुस और बरनबास को बेइज़्ज़त करने और उन्हें पत्थरों से मार डालने की कोशिश करने लगे।+ 6 मगर पौलुस और बरनबास को इसकी खबर मिल गयी, इसलिए वे वहाँ से भाग गए और लुकाउनिया के लुस्त्रा और दिरबे शहर में और आस-पास के इलाकों में चले गए।+ 7 वहाँ वे खुशखबरी का ऐलान करते चले।

8 लुस्त्रा में एक आदमी था जो पाँवों से लाचार था। वह जन्म से ही लँगड़ा था और कभी नहीं चला था। 9 यह आदमी पौलुस की बातें ध्यान से सुन रहा था। पौलुस ने उसे गौर से देखा और जान गया कि उस आदमी में विश्‍वास है और उसे यकीन भी है कि वह ठीक हो सकता है।+ 10 इसलिए पौलुस ने ऊँची आवाज़ में कहा, “अपने पाँवों के बल सीधा खड़ा हो जा।” तब वह उछलकर खड़ा हो गया और चलने लगा।+ 11 जब लोगों ने पौलुस का यह काम देखा, तो लुकाउनिया की भाषा में चिल्लाने लगे, “देवता, इंसान बनकर हमारे बीच उतर आए हैं!”+ 12 वे बरनबास को ज़्यूस देवता मगर पौलुस को हिरमेस देवता कहने लगे क्योंकि बात करने में पौलुस ही आगे था। 13 और शहर के सामने जो ज़्यूस का मंदिर था, वहाँ का पुजारी बैल और फूलों के हार* लेकर फाटक के पास आया। वह लोगों के साथ मिलकर पौलुस और बरनबास के आगे बलि चढ़ाना चाहता था।

14 मगर जब प्रेषित बरनबास और प्रेषित पौलुस ने इस बारे में सुना, तो उन्होंने अपने कपड़े फाड़े और भीड़ में कूद पड़े और चिल्लाकर कहने लगे, 15 “हे लोगो, तुम यह सब क्यों कर रहे हो? हम भी तुम्हारी तरह मामूली इंसान हैं+ और तुम्हें एक खुशखबरी सुना रहे हैं ताकि तुम इन बेकार की चीज़ों को छोड़कर जीवित परमेश्‍वर के पास आओ, जिसने आकाश, पृथ्वी और समुंदर को और जो कुछ उनमें है सब बनाया है।+ 16 बीते समय में उसने सब राष्ट्रों को अपनी-अपनी राह चलने दिया,+ 17 फिर भी वह भलाई करता रहा और इस तरह अपने बारे में गवाही देता रहा।+ वह तुम्हें आकाश से बरसात और अच्छी पैदावार के मौसम देता रहा+ और तुम्हें जी-भरकर खाना देता रहा और तुम्हारे दिलों को आनंद से भरता रहा।”+ 18 यह सब कहने के बाद भी वे बड़ी मुश्‍किल से भीड़ को उनके आगे बलिदान चढ़ाने से रोक पाए।

19 मगर अंताकिया और इकुनियुम से यहूदी वहाँ आ धमके और उन्होंने लोगों को अपनी तरफ कर लिया।+ तब लोगों ने पौलुस को पत्थरों से मारा और उसे मरा समझकर शहर के बाहर घसीटकर ले गए।+ 20 मगर जब चेले उसके चारों तरफ आ खड़े हुए, तो वह उठा और शहर में गया। दूसरे दिन वह बरनबास के साथ दिरबे चला गया।+ 21 वे उस शहर में खुशखबरी सुनाने और कई चेले बनाने के बाद लुस्त्रा, इकुनियुम और अंताकिया लौट गए। 22 वहाँ उन्होंने चेलों की हिम्मत बँधायी+ और यह कहकर उन्हें अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखने का बढ़ावा दिया, “हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना है।”+ 23 इसके अलावा, उन्होंने हर मंडली में उनके लिए प्राचीन ठहराए,+ उपवास रखा और प्रार्थना की+ और प्राचीनों को यहोवा* के हाथ में सौंप दिया जिन्हें परमेश्‍वर पर पूरा विश्‍वास था।

24 फिर वे पिसिदिया के इलाके से होते हुए पमफूलिया पहुँचे+ 25 और पिरगा में वचन सुनाने के बाद वे अत्तलिया आए। 26 वहाँ से वे जहाज़ पर चढ़कर अंताकिया गए। यह वही जगह थी जहाँ भाइयों ने उन्हें परमेश्‍वर की महा-कृपा के भरोसे सौंपा था। और अब वे यह काम पूरा कर चुके थे।+

27 जब वे अंताकिया पहुँचे, तो उन्होंने मंडली को इकट्ठा किया और उन्हें बताने लगे कि परमेश्‍वर ने उनके ज़रिए कैसे-कैसे काम किए और किस तरह उसने गैर-यहूदियों के लिए विश्‍वास अपनाने का रास्ता खोल दिया है।+ 28 और उन्होंने वहाँ चेलों के साथ काफी वक्‍त बिताया।

15 फिर यहूदिया से कुछ लोग अंताकिया आए और भाइयों को यह सिखाने लगे, “जब तक तुम मूसा के रिवाज़ के मुताबिक खतना नहीं करवाओगे,+ तब तक तुम उद्धार नहीं पा सकते।” 2 मगर जब इस बात पर पौलुस और बरनबास के साथ उनकी काफी बहस हुई और झगड़ा हुआ, तो इस सिलसिले में पौलुस और बरनबास को साथ ही कुछ और भाइयों को, प्रेषितों और प्राचीनों के पास यरूशलेम भेजने का इंतज़ाम किया गया।+

3 मंडली ने उन्हें कुछ दूर तक विदा किया और फिर ये भाई फीनीके और सामरिया के इलाकों से होते हुए गए और वहाँ के भाइयों को पूरा ब्यौरा देकर बताया कि गैर-यहूदी खुद को बदलकर परमेश्‍वर की तरफ हो गए हैं। यह सब सुनकर भाइयों को बहुत खुशी हुई। 4 जब वे यरूशलेम पहुँचे तो मंडली और प्रेषितों और प्राचीनों ने खुशी से उनका स्वागत किया और पौलुस और बरनबास ने उन सब कामों के बारे में उन्हें बताया जो परमेश्‍वर ने उनके ज़रिए किए थे। 5 मगर फरीसियों के गुट के कुछ लोग, जो विश्‍वासी बन गए थे, अपनी जगह से उठ खड़े हुए और उन्होंने कहा, “यह बेहद ज़रूरी है कि गैर-यहूदियों का खतना कराया जाए और उन्हें मूसा का कानून मानने की आज्ञा दी जाए।”+

6 तब प्रेषित और प्राचीन इस मामले पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए। 7 उन्होंने इस मामले पर गहराई से सोच-विचार किया और उनके बीच लंबी चर्चा* हुई। इसके बाद पतरस ने उठकर उनसे कहा, “भाइयो, तुम अच्छी तरह जानते हो कि शुरू में ही परमेश्‍वर ने तुम्हारे बीच में से मुझे चुना कि मेरे मुँह से गैर-यहूदी खुशखबरी सुनें और विश्‍वास करें।+ 8 और परमेश्‍वर ने, जो दिलों को जानता है,+ उन्हें पवित्र शक्‍ति देकर गवाही दी+ कि उसने उन्हें मंज़ूर किया है, ठीक जैसे हमें भी मंज़ूर किया था। 9 उसने हमारे और उनके बीच कोई फर्क नहीं किया,+ मगर उनके विश्‍वास की बिनाह पर उनके दिलों को शुद्ध किया।+ 10 तो अब तुम क्यों परमेश्‍वर की परीक्षा लेने के लिए चेलों पर ऐसा बोझ लाद रहे हो,+ जिसे न हमारे बाप-दादा उठा सके थे, न हम?+ 11 इसके बजाय, हमें विश्‍वास है कि हम प्रभु यीशु की महा-कृपा की वजह से उद्धार पाते हैं,+ ठीक जैसे वे भी उद्धार पाते हैं।”+

12 यह सुनकर पूरी सभा खामोश हो गयी और वे बरनबास और पौलुस की सुनने लगे कि कैसे परमेश्‍वर ने उनके ज़रिए गैर-यहूदियों के बीच बहुत-से चमत्कार और आश्‍चर्य के काम किए। 13 जब वे बोल चुके तो याकूब ने कहा, “भाइयो, मेरी सुनो। 14 शिमौन*+ ने पूरा ब्यौरा देकर बताया कि परमेश्‍वर ने कैसे पहली बार गैर-यहूदी राष्ट्रों की तरफ ध्यान दिया ताकि उनके बीच से ऐसे लोगों को इकट्ठा करे जो परमेश्‍वर के नाम से पहचाने जाएँ।+ 15 और इस बात से भविष्यवक्‍ताओं के वचन भी मेल खाते हैं, जैसा कि लिखा है: 16 ‘इन बातों के बाद मैं वापस आऊँगा और दाविद का गिरा हुआ तंबू* दोबारा खड़ा करूँगा और उसके खंडहरों को फिर बनाऊँगा और उसे पहले जैसा कर दूँगा 17 ताकि उसके बचे हुए लोग, सब राष्ट्रों के साथ मिलकर जी-जान से यहोवा* की खोज करें, जिनके बारे में यहोवा* ने कहा है कि वे मेरे नाम से पुकारे जाते हैं। परमेश्‍वर ने, जो यह सब कर रहा है+ 18 बहुत पहले ही ऐसा करने की ठान ली थी।’+ 19 इसलिए मेरा फैसला* यह है कि गैर-यहूदियों में से जो लोग परमेश्‍वर की तरफ फिर रहे हैं, उन्हें हम परेशान न करें,+ 20 मगर उन्हें यह लिख भेजें कि वे मूर्तिपूजा से अपवित्र हुई चीज़ों से,+ नाजायज़ यौन-संबंध* से,+ गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से* और खून से दूर रहें।+ 21 इसलिए कि पुराने ज़माने से ही ऐसे लोग रहे हैं जो मूसा की किताबों में लिखी इन बातों का हर शहर में प्रचार करते आए हैं, हर सब्त के दिन सभा-घरों में उसकी किताबें पढ़कर सुनाते आए हैं।”+

22 फिर प्रेषितों और प्राचीनों ने पूरी मंडली के साथ मिलकर फैसला किया कि वे पौलुस और बरनबास के साथ अपने बीच से चुने हुए आदमियों को अंताकिया भेजें, यानी बर-सबा कहलानेवाले यहूदा और सीलास को,+ जो भाइयों में अगुवे थे। 23 उन्होंने इन भाइयों के हाथ यह चिट्ठी भेजी:

“अंताकिया,+ सीरिया और किलिकिया में रहनेवाले गैर-यहूदी भाइयों को, आपके भाइयों यानी प्रेषितों और प्राचीनों का नमस्कार! 24 हमने सुना है कि हमारे यहाँ से कुछ लोगों ने आकर तुमसे ऐसी बातें कहीं जिससे तुम परेशान हो गए+ और उन्होंने तुम्हारे विश्‍वास को मिटाने की कोशिश की है, जबकि हमने उन्हें ऐसी कोई हिदायत नहीं दी थी। 25 इसलिए हम सबने एकमत होकर तय किया कि हम कुछ भाइयों को चुनकर उन्हें हमारे प्यारे बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजेंगे। 26 ये ऐसे आदमी हैं जिन्होंने हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम की खातिर अपनी जान तक दाँव पर लगा दी।+ 27 हम यहूदा और सीलास को भेज रहे हैं ताकि वे खुद भी तुम्हें इन बातों की जानकारी दें।+ 28 हम पवित्र शक्‍ति+ की मदद से इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इन ज़रूरी बातों को छोड़ हम तुम पर और बोझ न लादें 29 कि तुम मूरतों को बलि की हुई चीज़ों से,+ खून से,+ गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से*+ और नाजायज़ यौन-संबंध* से+ हमेशा दूर रहो। अगर तुम ध्यान रखो कि तुम इन बातों से हमेशा दूर रहोगे, तो तुम्हारा भला होगा। सलामत रहो!”*

30 फिर जब इन आदमियों को विदा किया गया, तो वे अंताकिया गए और उन्होंने सब चेलों को इकट्ठा किया और उन्हें वह चिट्ठी सौंप दी। 31 चिट्ठी पढ़कर उन्हें बहुत हौसला मिला और वे बेहद खुश हुए। 32 यहूदा और सीलास भविष्यवक्‍ता थे, इसलिए उन्होंने कई भाषण देकर भाइयों की हिम्मत बँधायी और उन्हें मज़बूत किया।+ 33 उन्होंने वहाँ कुछ वक्‍त बिताया, फिर वहाँ के भाइयों ने उन्हें विदा किया और वे उन भाइयों के पास लौट आए जिन्होंने उन्हें भेजा था। 34* — 35 मगर पौलुस और बरनबास अंताकिया में ही रहे और कई और लोगों के साथ मिलकर यहोवा* के वचन की खुशखबरी सुनाते और सिखाते रहे।

36 फिर कुछ दिन बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, “चलो,* हम उन सभी शहरों में दोबारा जाएँ जहाँ हमने यहोवा* का वचन सुनाया था और देख आएँ कि वहाँ के भाई कैसे हैं।”+ 37 बरनबास ने तो ठान लिया था कि वह अपने साथ यूहन्‍ना को भी ले जाएगा जो मरकुस कहलाता है।+ 38 मगर पौलुस को उसे अपने साथ ले जाना ठीक नहीं लगा क्योंकि वह पमफूलिया में उन्हें छोड़कर चला गया था और उसने इस काम में उनका साथ नहीं दिया था।+ 39 इस बात को लेकर पौलुस और बरनबास के बीच ज़बरदस्त तकरार हुई, इसलिए वे एक-दूसरे से अलग हो गए। बरनबास+ मरकुस को लेकर जहाज़ से कुप्रुस के लिए रवाना हो गया। 40 लेकिन पौलुस ने सीलास को चुना। भाइयों ने पौलुस के लिए प्रार्थना की कि उस पर यहोवा* की महा-कृपा बनी रहे।+ फिर वे दोनों निकल पड़े। 41 वह सीरिया और किलिकिया के इलाकों से होता हुआ मंडलियों को मज़बूत करता गया।

16 फिर पौलुस दिरबे और लुस्त्रा शहर भी पहुँचा।+ और देखो! वहाँ तीमुथियुस+ नाम का एक चेला था, जो एक विश्‍वासी यहूदी औरत का बेटा था मगर उसका पिता यूनानी था। 2 लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे। 3 इसलिए पौलुस ने यह इच्छा ज़ाहिर की कि वह तीमुथियुस को अपने साथ सफर पर ले जाना चाहता है। उसने तीमुथियुस को अपने साथ लिया और उसका खतना करवाया क्योंकि उन इलाकों के सभी यहूदी जानते थे कि तीमुथियुस का पिता यूनानी था।+ 4 वे अपने सफर में जिन-जिन शहरों में गए, वहाँ उन्होंने बताया कि यरूशलेम के प्रेषितों और प्राचीनों ने क्या-क्या आदेश दिए हैं ताकि वे उन्हें मानें।+ 5 नतीजा यह हुआ कि मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता गया और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती गयी।

6 इसके बाद वे फ्रूगिया और गलातिया प्रांत से गुज़रे+ क्योंकि पवित्र शक्‍ति ने उन्हें एशिया प्रांत में वचन सुनाने से मना किया था। 7 फिर जब वे मूसिया पहुँचे तो उन्होंने बितूनिया+ प्रांत में जाने की कोशिश की, मगर यीशु ने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उन्हें वहाँ जाने की इजाज़त नहीं दी। 8 इसलिए वे मूसिया से* होकर त्रोआस शहर पहुँचे। 9 रात को पौलुस ने एक दर्शन में देखा कि मकिदुनिया का एक आदमी खड़ा हुआ उससे यह बिनती कर रहा है, “इस पार मकिदुनिया आकर हमारी मदद कर।” 10 जैसे ही उसने यह दर्शन देखा, हम यह समझकर मकिदुनिया के लिए निकल पड़े कि परमेश्‍वर ने हमें वहाँ के लोगों को खुशखबरी सुनाने का बुलावा दिया है।

11 इसलिए हम त्रोआस में जहाज़ पर चढ़े और समुंदर के रास्ते सीधे समोथ्राके द्वीप पहुँचे और अगले दिन नियापुलिस शहर गए। 12 वहाँ से हम फिलिप्पी+ गए जो मकिदुनिया के उस ज़िले का सबसे जाना-माना शहर और एक रोमी उपनिवेश बस्ती है। हम उस शहर में कुछ दिन रहे। 13 सब्त के दिन हम यह सोचकर शहर के फाटक के बाहर नदी किनारे गए कि वहाँ प्रार्थना करने की कोई जगह होगी। हम वहीं बैठकर उन औरतों को प्रचार करने लगे जो वहाँ जमा थीं। 14 वहाँ लुदिया नाम की एक औरत भी थी जो थुआतीरा+ शहर की रहनेवाली थी और बैंजनी कपड़े* बेचती थी। वह परमेश्‍वर की उपासक थी और जब वह पौलुस की बातें सुन रही थी, तो यहोवा* ने उसके दिल के दरवाज़े पूरी तरह खोल दिए ताकि वह उसकी बातों पर यकीन करे। 15 लुदिया और उसके घराने ने बपतिस्मा लिया,+ फिर उसने हमसे बिनती की, “अगर तुम वाकई मानते हो कि मैं यहोवा* की वफादार हूँ, तो मेरे घर आकर ठहरो।” वह हमें जैसे-तैसे मनाकर अपने घर ले ही गयी।

16 फिर जब हम प्रार्थना की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली जिसमें भविष्य बतानेवाला दुष्ट स्वर्गदूत समाया था।+ वह दासी भविष्य बताया करती थी जिससे उसके मालिकों की बहुत कमाई होती थी। 17 पौलुस और हम जहाँ कहीं जाते, वह लड़की हमारे पीछे-पीछे आती और चिल्लाकर कहती थी, “ये आदमी परम-प्रधान परमेश्‍वर के दास हैं,+ तुम्हें उद्धार की राह का संदेश सुना रहे हैं।” 18 वह बहुत दिनों तक ऐसा करती रही। आखिरकार, पौलुस उससे तंग आ गया और उसने मुड़कर उस दासी में समाए दुष्ट स्वर्गदूत से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से हुक्म देता हूँ, उससे बाहर निकल जा।” उसी घड़ी वह बाहर निकल गया।+

19 जब उस दासी के मालिकों ने देखा कि उनकी कमाई का ज़रिया बंद हो गया है,+ तो उन्होंने पौलुस और सीलास को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर चौक में अधिकारियों के सामने ले आए।+ 20 वे उन्हें नगर-अधिकारियों के पास ले गए और कहने लगे, “ये आदमी हमारे शहर में गड़बड़ी मचा रहे हैं।+ ये यहूदी हैं और 21 लोगों को ऐसे रिवाज़ सिखा रहे हैं जिन्हें अपनाने या मानने की हमें इजाज़त नहीं क्योंकि हम रोमी हैं।” 22 तब लोगों की भीड़ उनके खिलाफ जमा हो गयी और नगर-अधिकारियों ने पौलुस और सीलास के कपड़े फाड़ दिए और उन्हें बेंत लगाने का हुक्म दिया।+ 23 उन्हें बहुत मारने के बाद जेल में डाल दिया गया और जेलर को हुक्म दिया गया कि उन पर सख्त पहरा दे।+ 24 ऐसा कड़ा हुक्म पाने की वजह से जेलर ने उन्हें अंदर की कोठरी में डाल दिया और उनके पाँव काठ में कस दिए।

25 मगर आधी रात के वक्‍त, पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और गीत गाकर परमेश्‍वर का गुणगान कर रहे थे+ और बाकी कैदी सुन रहे थे। 26 तभी अचानक एक बड़ा भूकंप हुआ जिससे जेल की नींव तक हिल गयी। उसी घड़ी जेल के सारे दरवाज़े खुल गए और सबकी ज़ंजीरें खुलकर गिर पड़ीं।+ 27 तब जेलर जाग गया और जेल के दरवाज़े खुले देखकर उसने सोचा कि कैदी भाग गए हैं।+ उसने अपनी तलवार खींची और वह अपनी जान लेने ही वाला था, 28 तभी पौलुस ने ज़ोर से पुकारकर कहा, “अपनी जान मत ले क्योंकि हम सब यहीं हैं!” 29 तब जेलर ने दीपक मँगवाए और जल्दी से अंदर आया और थर-थर काँपता हुआ पौलुस और सीलास के पैरों पर गिर पड़ा। 30 वह उन्हें बाहर ले आया और उसने कहा, “मुझे बताओ, उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?” 31 उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु पर विश्‍वास कर, तब तू और तेरा सारा घराना उद्धार पाएगा।”+ 32 पौलुस और सीलास ने उसे और उसके पूरे घराने को यहोवा* का वचन सुनाया। 33 जेलर ने रात को उसी घड़ी उन्हें अपने साथ ले जाकर उनके घाव धोए। फिर उसने और उसके घराने के सब लोगों ने बिना देर किए बपतिस्मा लिया।+ 34 वह उन्हें अपने घर ले आया और उनके सामने खाना परोसा। उसने अपने पूरे घराने के साथ इस बात पर खुशियाँ मनायीं कि अब वह परमेश्‍वर पर विश्‍वास करनेवाला बन गया है।

35 जब दिन निकला तो नगर-अधिकारियों ने पहरेदारों के हाथ यह संदेश भेजा: “उन आदमियों को रिहा कर दो।” 36 तब जेलर ने उनकी बात पौलुस को बतायी, “नगर-अधिकारियों ने कुछ आदमियों के हाथ यह संदेश भेजा है कि तुम दोनों को रिहा कर दिया जाए। इसलिए अब बाहर आ जाओ और सही-सलामत लौट जाओ।” 37 मगर पौलुस ने उनसे कहा, “हम रोमी नागरिक हैं,+ फिर भी उन्होंने यह साबित किए बगैर कि हमने कोई जुर्म किया है,* हमें सबके सामने पिटवाया और जेल में डाल दिया। और अब कह रहे हैं कि हम चुपचाप यहाँ से निकल जाएँ? नहीं, ऐसा हरगिज़ नहीं होगा! उन्हें खुद आकर हमें यहाँ से बाहर ले जाना होगा।” 38 पहरेदारों ने जाकर ये बातें नगर-अधिकारियों को बतायीं। जब अधिकारियों ने सुना कि ये आदमी रोमी नागरिक हैं, तो वे बहुत डर गए।+ 39 इसलिए वे आए और उन्हें मनाने लगे और उन्हें बाहर लाकर उनसे गुज़ारिश की कि वे शहर छोड़कर चले जाएँ। 40 मगर वे जेल से निकलकर लुदिया के घर गए और जब वे भाइयों से मिले, तो उनकी हिम्मत बँधायी+ और फिर वहाँ से चले गए।

17 अब वे अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया शहरों से होते हुए थिस्सलुनीके शहर आए,+ जहाँ यहूदियों का एक सभा-घर था। 2 पौलुस अपने रिवाज़ के मुताबिक+ उस सभा-घर में गया और उसने तीन सब्त तक पवित्र शास्त्र से उन यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क किया+ 3 और वह शास्त्र से हवाले दे-देकर समझाता रहा और साबित करता रहा कि मसीह के लिए दुख उठाना+ और मरे हुओं में से ज़िंदा होना ज़रूरी था।+ वह कहता था, “यही है वह मसीह, वह यीशु जिसके बारे में मैं तुम्हें बता रहा हूँ।” 4 नतीजा यह हुआ कि उनमें से कुछ विश्‍वासी बन गए और पौलुस और सीलास के साथ हो लिए।+ इनके अलावा, परमेश्‍वर की उपासना करनेवाले यूनानियों की एक बड़ी भीड़ ने भी विश्‍वास किया। इनमें कई जानी-मानी औरतें भी थीं।

5 मगर यह देखकर यहूदी जलन से भर गए+ और अपने साथ बाज़ार के कुछ आवारा बदमाशों को लेकर एक दल बना लिया और शहर भर में हंगामा करने लगे। उन्होंने यासोन के घर पर धावा बोल दिया ताकि पौलुस और सीलास को इस पागल भीड़ के हवाले कर दें। 6 मगर जब ढूँढ़ने पर उन्हें पौलुस और सीलास वहाँ नहीं मिले, तो उन्होंने यासोन और कुछ और भाइयों को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर नगर-अधिकारियों के पास ले गए और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “जिन आदमियों ने सारी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है, वे अब यहाँ भी आ पहुँचे हैं+ 7 और इस यासोन ने उन्हें अपने घर में मेहमान ठहराया है। ये आदमी सम्राट* के आदेशों के खिलाफ बगावत करते हैं और कहते हैं कि कोई दूसरा राजा है, जिसका नाम यीशु है।”+ 8 जब भीड़ ने और नगर-अधिकारियों ने यह सुना तो वे घबरा गए। 9 नगर-अधिकारियों ने यासोन और बाकियों से ज़मानत के तौर पर भारी रकम लेकर उन्हें छोड़ दिया।

10 तब भाइयों ने बिना देर किए रातों-रात पौलुस और सीलास, दोनों को बिरीया शहर भेज दिया। वहाँ पहुँचने पर वे यहूदियों के सभा-घर में गए। 11 बिरीया के लोग तो थिस्सलुनीके के लोगों से ज़्यादा भले और खुले विचारोंवाले थे क्योंकि उन्होंने बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार किया। वे हर दिन ध्यान से शास्त्र की जाँच करते थे कि जो बातें वे सुन रहे हैं वे सच हैं या नहीं। 12 इसलिए उनमें से कई लोग विश्‍वासी बन गए। और कई इज़्ज़तदार यूनानी आदमी-औरत भी विश्‍वासी बन गए। 13 मगर जब थिस्सलुनीके के यहूदियों को पता चला कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्‍वर का वचन सुना रहा है, तो वे वहाँ आ धमके ताकि जनता को भड़काएँ और हंगामा मचाएँ।+ 14 तब भाइयों ने फौरन पौलुस को समुंदर किनारे भेज दिया,+ मगर सीलास और तीमुथियुस वहीं बिरीया में रहे। 15 जो भाई पौलुस को छोड़ने उसके साथ गए वे उसे बहुत दूर एथेन्स तक ले गए। पौलुस ने उन्हें विदा करते वक्‍त सीलास और तीमुथियुस+ के लिए यह खबर दी कि वे जल्द-से-जल्द उसके पास एथेन्स चले आएँ।

16 जब पौलुस एथेन्स में उनका इंतज़ार कर रहा था, तब उसने देखा कि पूरा शहर मूरतों से भरा हुआ है। यह देखकर उसका जी जलने लगा। 17 इसलिए वह सभा-घर में यहूदियों के साथ और परमेश्‍वर का डर माननेवाले दूसरे लोगों के साथ शास्त्र से तर्क-वितर्क करने लगा। साथ ही, हर दिन बाज़ार में उसे जो भी मिलता था उसके साथ वह इसी तरह तर्क-वितर्क करता था। 18 मगर इपिकूरी और स्तोइकी दार्शनिकों में से कुछ लोग पौलुस से बहस करने लगे। उनमें से कुछ कहते थे, “यह बकबक करनेवाला आखिर कहना क्या चाहता है?” दूसरे कहते थे, “यह तो कोई विदेशी देवताओं का प्रचारक लगता है।” क्योंकि पौलुस, यीशु के बारे में खुशखबरी सुना रहा था और यह सिखा रहा था कि मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे।+ 19 तब ये लोग उसे अपने साथ अरियुपगुस ले गए और कहने लगे, “क्या हम जान सकते हैं कि तू यह जो नयी शिक्षा सिखा रहा है यह क्या है? 20 क्योंकि तू ऐसी नयी बातें बता रहा है जो हमारे कानों को अजीब लगती हैं। हम जानना चाहते हैं कि इन सब बातों का क्या मतलब है।” 21 दरअसल एथेन्स के सभी लोग और वहाँ रहनेवाले* विदेशी लोग अपना फुरसत का समय किसी और काम में नहीं बल्कि कुछ-न-कुछ नया सुनने या सुनाने में बिताते थे। 22 तब पौलुस अरियुपगुस+ के बीच खड़ा हुआ और उनसे कहने लगा,

“एथेन्स के लोगो, मैं देख सकता हूँ कि तुम हर बात में दूसरों से बढ़कर देवताओं के भक्‍त* हो।+ 23 मिसाल के लिए, जब मैं यहाँ से गुज़र रहा था और उन चीज़ों पर गौर कर रहा था जिनकी तुम पूजा करते हो, तो मैंने एक वेदी देखी जिस पर लिखा था, ‘अनजाने परमेश्‍वर के लिए।’ इसलिए तुम अनजाने में जिस परमेश्‍वर की उपासना कर रहे हो, मैं उसी के बारे में तुम्हें बता रहा हूँ। 24 जिस परमेश्‍वर ने पूरी दुनिया और उसकी सब चीज़ें बनायीं, वह आकाश और धरती का मालिक है+ इसलिए वह हाथ के बनाए मंदिरों में नहीं रहता,+ 25 न ही वह इंसान के हाथों अपनी सेवा करवाता है, मानो उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो+ क्योंकि वह खुद सबको जीवन और साँसें और सबकुछ देता है।+ 26 उसने एक ही इंसान से+ सारे राष्ट्र बनाए कि वे पूरी धरती पर रहें+ और उनका वक्‍त ठहराया और उनके रहने की हदें तय कीं+ 27 ताकि वे परमेश्‍वर को ढूँढ़ें और उसकी खोज करें और वाकई उसे पा लें।+ सच तो यह है कि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं है। 28 क्योंकि उसी से हमारी ज़िंदगी है और हम चलते-फिरते हैं और वजूद में हैं, जैसा तुम्हारे कुछ कवियों ने भी कहा है, ‘हम तो उसी के बच्चे हैं।’

29 हम परमेश्‍वर के बच्चे हैं+ इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्‍वर सोने या चाँदी या पत्थर जैसा है, या इंसान की कल्पना और कला से गढ़ी गयी किसी चीज़ जैसा है।+ 30 सच है कि परमेश्‍वर ने उस वक्‍त को नज़रअंदाज़ किया जब लोगों ने अनजाने में ऐसा किया था।+ मगर अब वह हर जगह ऐलान कर रहा है कि सब लोग पश्‍चाताप करें। 31 क्योंकि उसने एक दिन तय किया है जब वह सच्चाई से सारी दुनिया का न्याय करेगा+ और इसके लिए उसने एक आदमी को ठहराया है। और सब इंसानों को इस बात का पक्का यकीन दिलाने* के लिए परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया है।”+

32 जब उन्होंने मरे हुओं के ज़िंदा होने की बात सुनी, तो कुछ लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगे+ जबकि दूसरों ने कहा, “हम इस बारे में तुझसे फिर कभी सुनेंगे।” 33 तब पौलुस वहाँ से निकल गया। 34 मगर कुछ आदमी उसके साथ हो लिए और विश्‍वासी बन गए। इनमें अरियुपगुस की अदालत का एक न्यायी दियोनिसियुस और दमरिस नाम की एक औरत और इनके अलावा और भी लोग थे।

18 इसके बाद पौलुस एथेन्स से निकला और कुरिंथ शहर आया। 2 कुरिंथ में उसे अक्विला नाम का एक यहूदी मिला,+ जिसका जन्म पुन्तुस इलाके में हुआ था। वह हाल ही में अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला के साथ इटली से आया था, क्योंकि सम्राट क्लौदियुस ने सभी यहूदियों को रोम से निकल जाने का हुक्म दिया था। पौलुस, अक्विला और प्रिस्किल्ला के पास गया। 3 पौलुस का और उनका पेशा एक ही था, इसलिए वह उनके घर में रहने लगा और उनके साथ काम करने लगा।+ वे तंबू बनाया करते थे। 4 पौलुस हर सब्त+ के दिन सभा-घर में भाषण देता*+ और यहूदियों और यूनानियों को कायल करता था।

5 जब सीलास+ और तीमुथियुस+ दोनों मकिदुनिया से आ गए, तो पौलुस और भी ज़ोर-शोर से वचन का प्रचार करने लगा। वह यहूदियों को गवाही देने लगा और साबित करने लगा कि यीशु ही मसीह है।+ 6 मगर जब वे पौलुस के संदेश का विरोध करते रहे और उसके बारे में बुरी-बुरी बातें कहते रहे, तो उसने अपने कपड़े झाड़ते हुए+ उनसे कहा, “तुम्हारा खून तुम्हारे ही सिर पड़े।+ मैं निर्दोष हूँ।+ अब से मैं गैर-यहूदियों के पास जाऊँगा।”+ 7 फिर वह वहाँ* प्रचार करने के बजाय तितुस युसतुस नाम के एक आदमी के घर से प्रचार करने लगा, जो परमेश्‍वर का उपासक था और जिसका घर सभा-घर से सटा हुआ था। 8 सभा-घर का अधिकारी क्रिसपुस+ और उसका पूरा घराना पौलुस का संदेश सुनकर प्रभु में विश्‍वासी बन गया। कुरिंथ के बहुत-से लोगों ने भी यह संदेश सुनकर विश्‍वास किया और बपतिस्मा लिया। 9 यही नहीं, रात में प्रभु ने एक दर्शन में पौलुस से कहा, “मत डर, प्रचार किए जा, चुप मत रह। 10 इस शहर में मेरे बहुत-से लोग हैं जिन्हें इकट्ठा करना बाकी है। इसलिए मैं तेरे साथ हूँ+ और कोई भी तुझ पर हमला करके तुझे चोट नहीं पहुँचाएगा।” 11 इसलिए पौलुस डेढ़ साल तक वहीं रहा और उनके बीच परमेश्‍वर का वचन सुनाता रहा।

12 जब गल्लियो, अखाया प्रांत का राज्यपाल* था, तो उस दौरान यहूदी आपस में तय करके एक-साथ पौलुस पर चढ़ आए और उसे न्याय-आसन के सामने ले गए। 13 वे उस पर यह इलज़ाम लगाने लगे, “यह आदमी लोगों को ऐसे तरीके से परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए कायल कर रहा है जो कानून के खिलाफ है।” 14 मगर इससे पहले कि पौलुस कुछ बोलता, गल्लियो ने यहूदियों से कहा, “यहूदियो, अगर यह अन्याय या बड़े अपराध का मामला होता, तो मैं ज़रूर सब्र के साथ तुम्हारी बात सुनता। 15 लेकिन अगर ये झगड़े तुम्हारे अपने कानून को लेकर हैं और शब्दों और नामों के बारे में हैं, तो तुम्हीं इन्हें सुलझाओ।+ मैं इन बातों में तुम्हारा न्यायी नहीं बनना चाहता।” 16 यह कहकर उसने यहूदियों को न्याय-आसन के सामने से निकलवा दिया। 17 फिर उन सभी ने सभा-घर के अधिकारी सोस्थिनेस+ को पकड़ लिया और न्याय-आसन के सामने उसे पीटने लगे। मगर गल्लियो इस मामले में बिलकुल नहीं पड़ा।

18 फिर भी पौलुस वहाँ कुछ दिन और ठहरा और इसके बाद उसने भाइयों से विदा ली। उसने किंख्रिया+ में अपने बाल कटवाए क्योंकि उसने मन्‍नत मानी थी। फिर वह जहाज़ से सीरिया के लिए रवाना हो गया और प्रिस्किल्ला और अक्विला भी उसके साथ थे। 19 जब वे इफिसुस आए तो प्रिस्किल्ला और अक्विला को वहीं छोड़कर वह वहाँ के सभा-घर में गया और यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क करके उन्हें समझाने लगा।+ 20 वे उससे कुछ और वक्‍त वहीं रहने की बिनती करते रहे, मगर वह नहीं माना। 21 उसने यह कहकर उनसे विदा ली, “अगर यहोवा* ने चाहा तो मैं तुम्हारे पास दोबारा आऊँगा।” वह इफिसुस से समुद्री यात्रा पर निकल पड़ा 22 और कैसरिया आया। फिर उसने वहाँ से ऊपर* जाकर मंडली से मुलाकात की और वहाँ से अंताकिया चला गया।+

23 अंताकिया में कुछ वक्‍त बिताने के बाद, पौलुस वहाँ से रवाना हुआ और गलातिया और फ्रूगिया प्रांत+ में जगह-जगह जाकर सभी चेलों की हिम्मत बँधाता रहा।+

24 अपुल्लोस नाम का एक यहूदी,+ जिसका जन्म सिकंदरिया शहर में हुआ था, इफिसुस आया। वह बात करने में माहिर था और शास्त्र का अच्छा ज्ञान रखता था। 25 उस आदमी को यहोवा* की राह के बारे में सिखाया गया था* और वह पवित्र शक्‍ति से भरपूर होने की वजह से बहुत जोशीला था। वह यीशु के बारे में सही-सही बातें बोलता और सिखाता था, मगर सिर्फ उस बपतिस्मे के बारे में जानता था जिसका यूहन्‍ना ने प्रचार किया था। 26 अपुल्लोस सभा-घर में बेधड़क होकर बोलने लगा। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला+ ने उसकी बातें सुनीं, तो वे उसे अपने साथ ले गए और उसे परमेश्‍वर की राह के बारे में सही जानकारी दी और अच्छी तरह समझाया। 27 अपुल्लोस चाहता था कि वह उस पार अखाया जाए, इसलिए भाइयों ने वहाँ के चेलों को चिट्ठी लिखकर उन्हें बढ़ावा दिया कि वे उसका प्यार से स्वागत करें। अखाया पहुँचने के बाद, अपुल्लोस ने उन लोगों की बहुत मदद की जो परमेश्‍वर की महा-कृपा की वजह से विश्‍वासी बने थे। 28 उसने सरेआम और बड़े दमदार तरीके से यहूदियों को गलत साबित किया और शास्त्र से साफ-साफ दिखाया कि यीशु ही मसीह है।+

19 जब अपुल्लोस+ कुरिंथ में था तब पौलुस समुद्री तट से दूर, अंदर के इलाकों का दौरा करता हुआ इफिसुस+ शहर आया। वहाँ उसे कुछ चेले मिले। 2 उसने उनसे पूछा, “जब तुम विश्‍वासी बने तब क्या तुमने पवित्र शक्‍ति पायी?”+ उन्होंने कहा, “हमने पवित्र शक्‍ति के बारे में कभी नहीं सुना।” 3 तब पौलुस ने कहा, “तो फिर, तुमने कौन-सा बपतिस्मा लिया?” उन्होंने कहा, “यूहन्‍ना का।”+ 4 पौलुस ने कहा, “यूहन्‍ना ने पश्‍चाताप का बपतिस्मा दिया था+ और लोगों को बताया था कि उसके बाद जो आनेवाला है,+ उस पर यानी यीशु पर विश्‍वास करें।” 5 यह सुनने पर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम से बपतिस्मा लिया। 6 और जब पौलुस ने उन पर अपने हाथ रखे, तो उन पर पवित्र शक्‍ति आयी+ और वे अलग-अलग भाषा बोलने और भविष्यवाणी करने लगे।+ 7 ये करीब 12 आदमी थे।

8 फिर पौलुस तीन महीने तक इफिसुस के सभा-घर में जा-जाकर+ निडरता से बोलता रहा। वह परमेश्‍वर के राज के बारे में भाषण देता और दलीलें देकर लोगों को कायल करता था।+ 9 मगर जब कुछ लोगों ने ढीठ होकर मानने से इनकार कर दिया और लोगों के सामने ‘प्रभु की राह’ को बदनाम करने लगे,+ तो उसने उन्हें छोड़ दिया+ और चेलों को उनसे अलग कर लिया। वह हर दिन तरन्‍नुस के स्कूल के सभा-भवन में भाषण देता था। 10 ऐसा दो साल तक चलता रहा। इसलिए एशिया प्रांत में रहनेवाले सब लोगों ने, चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, प्रभु का वचन सुना।

11 परमेश्‍वर, पौलुस के हाथों बड़े-बड़े शक्‍तिशाली काम करवाता रहा।+ 12 यहाँ तक कि उसके शरीर को छूनेवाले कपड़े और अंगोछे बीमारों के पास ले जाए जाते थे+ और उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थीं और जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे वे उनमें से बाहर निकल जाते थे।+ 13 मगर कुछ यहूदियों ने भी जो जगह-जगह घूमकर दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला करते थे, यीशु का नाम लेकर लोगों में से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने की कोशिश की। वे कहते थे, “मैं तुम्हें उस यीशु के नाम से हुक्म देता हूँ जिसका प्रचार पौलुस करता है।”+ 14 स्कीवा नाम के एक यहूदी प्रधान याजक के सात बेटों ने भी ऐसा ही करने की कोशिश की। 15 मगर उस दुष्ट स्वर्गदूत ने उन्हें जवाब दिया, “मैं यीशु को भी जानता हूँ+ और पौलुस को भी+ मगर तुम कौन हो?” 16 यह कहकर वह आदमी, जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत था, उन पर झपट पड़ा और उसने एक-एक करके उन सातों को धर दबोचा और उन पर इस कदर हावी हो गया कि वे नंगे और ज़ख्मी हालत में उसके घर से भागे। 17 यह बात इफिसुस में रहनेवाले यहूदियों और यूनानियों, सबको पता चली और उन सब पर डर छा गया और प्रभु यीशु के नाम की बड़ाई होती गयी। 18 बहुत-से लोग जो विश्‍वासी बन गए थे, वे आते और खुलकर मान लेते थे कि उन्होंने क्या-क्या बुरे काम किए और इनके बारे में साफ-साफ बताते थे। 19 यहाँ तक कि बहुत-से लोग जो जादूगरी की विद्या में लगे हुए थे, अपनी-अपनी पोथियाँ ले आए और सबके सामने उन्हें जला दिया।+ जब उन्होंने हिसाब लगाया तो उनकी कीमत 50,000 चाँदी के टुकड़े निकली। 20 इस तरह बड़े शक्‍तिशाली तरीके से यहोवा* का वचन फैलता गया और उसकी जीत होती गयी।+

21 यह सब होने के बाद, पौलुस ने मन में ठाना कि वह मकिदुनिया+ और अखाया का दौरा करने के बाद यरूशलेम के सफर पर निकलेगा।+ उसने कहा, “वहाँ पहुँचने के बाद मुझे रोम भी जाना होगा।”+ 22 उसने अपनी सेवा करनेवालों में से दो भाइयों यानी तीमुथियुस+ और इरास्तुस+ को मकिदुनिया भेजा, मगर वह खुद कुछ वक्‍त के लिए एशिया प्रांत में ही रुक गया।

23 उसी दौरान इफिसुस में ‘प्रभु की राह’+ को लेकर बड़ा हंगामा मचा।+ 24 वहाँ देमेत्रियुस नाम का एक सुनार था जो चाँदी से अरतिमिस देवी के छोटे-छोटे मंदिर बनाता था और कारीगरों का बहुत मुनाफा करवाता था।+ 25 उसने इन कारीगरों को और उनके जैसे दूसरे कारीगरों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, “लोगो, तुम अच्छी तरह जानते हो कि इस कारोबार से हमारी कितनी कमाई होती है। 26 तुमने यह भी देखा और सुना है कि इस पौलुस ने किस तरह न सिर्फ इफिसुस में,+ बल्कि एशिया प्रांत के तकरीबन सभी इलाकों में भारी तादाद में लोगों को कायल किया है और उन्हें यह कहकर दूसरे मत की तरफ फेर दिया है कि जो हाथ के बनाए हुए हैं वे ईश्‍वर हैं ही नहीं।+ 27 इससे न सिर्फ इस बात का खतरा है कि हमारे कारोबार की बदनामी होगी बल्कि महान देवी अरतिमिस के मंदिर को तुच्छ समझा जाएगा। और जिस देवी को एशिया का सारा प्रांत और सारी दुनिया पूजती है, उसकी शान खत्म हो जाएगी।” 28 यह सुनकर लोग आग-बबूला हो उठे और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!”

29 तब शहर में बड़ा हुल्लड़ मच गया और वे सब इकट्ठे रंगशाला में घुस गए और अपने साथ गयुस और अरिस्तरखुस+ को घसीटकर ले गए जो मकिदुनिया से थे और पौलुस के सफरी साथी थे। 30 पौलुस तो चाहता था कि वह खुद भी अंदर लोगों के सामने जाए, मगर चेलों ने उसे जाने नहीं दिया। 31 यहाँ तक कि त्योहारों और खेलों के कुछ प्रबंधकों ने, जो पौलुस का भला चाहते थे, उसे संदेश भेजा और यह बिनती की कि वह रंगशाला में जाने का जोखिम न उठाए। 32 भीड़ में कोई कुछ चिल्ला रहा था तो कोई कुछ क्योंकि उनमें गड़बड़ी मची हुई थी और ज़्यादातर लोगों को तो पता भी नहीं था कि आखिर वे रंगशाला में क्यों जमा हुए हैं। 33 इसलिए भीड़ में से कुछ लोगों ने सिकंदर को आगे कर दिया और यहूदियों ने उसे सामने की तरफ धकेल दिया। तब सिकंदर ने अपने हाथ से इशारा किया और लोगों को सफाई देनी चाही। 34 मगर जब उन्होंने उसे पहचान लिया कि वह एक यहूदी है, तो वे सब एक-साथ चिल्ला उठे और दो घंटे तक चिल्लाते रहे, “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!”

35 आखिर में नगर-प्रमुख ने भीड़ को शांत किया और उनसे कहा, “इफिसुस के लोगो, इस दुनिया में ऐसा कौन है जो यह न जानता हो कि इफिसियों का यह शहर, महान अरतिमिस के मंदिर का और आकाश से गिरी मूरत का रखवाला है? 36 इन बातों को कोई झुठला नहीं सकता, इसलिए तुम शांत रहो और जल्दबाज़ी में कोई कदम मत उठाओ। 37 तुम ऐसे आदमियों को पकड़ लाए हो जो न तो मंदिरों को लूटते हैं, न हमारी देवी को बदनाम करते हैं। 38 इसलिए अगर देमेत्रियुस+ और उसके साथी कारीगरों का किसी के साथ कोई झगड़ा है, तो ऐसे मामलों के लिए तय दिनों पर अदालत लगती है और राज्यपाल भी हैं। वे वहाँ जाकर एक-दूसरे पर इलज़ाम लगाएँ। 39 लेकिन अगर तुम कुछ और चाहते हो तो उसका फैसला जनता की सभा में किया जाना चाहिए, 40 क्योंकि आज के इस मामले को लेकर हम पर देशद्रोह का इलज़ाम लगने का खतरा है। वह इसलिए कि हमने हुल्लड़ मचानेवाली इस भीड़ को जो इकट्ठा होने दिया है, हम इसकी कोई वजह नहीं दे सकते।” 41 यह कहने के बाद उसने भीड़ को भेज दिया।

20 जब हुल्लड़ थम गया, तो पौलुस ने चेलों को बुलवाया और उनका हौसला बढ़ाने के बाद उन्हें अलविदा कहा और मकिदुनिया के सफर पर निकल पड़ा। 2 उन इलाकों का दौरा करते वक्‍त उसने बहुत-सी बातें कहकर वहाँ के चेलों का हौसला बढ़ाया और फिर वह यूनान आया। 3 वहाँ तीन महीने रहने के बाद, जब वह जहाज़ पर सीरिया के लिए रवाना होने पर था, तो यहूदियों ने उसके खिलाफ साज़िश रची,+ इसलिए उसने मकिदुनिया से होते हुए लौटने का फैसला किया। 4 उसके साथ ये सभी लोग गए: बिरीया के रहनेवाले पुररुस का बेटा सोपत्रुस, थिस्सलुनीके के रहनेवालों में से अरिस्तरखुस+ और सिकुंदुस और दिरबे का रहनेवाला गयुस और तीमुथियुस+ और एशिया प्रांत से तुखिकुस+ और त्रुफिमुस।+ 5 ये लोग आगे निकल गए और त्रोआस शहर में हमारा इंतज़ार करने लगे। 6 मगर हम बिन-खमीर की रोटी के त्योहार+ के दिनों के बाद फिलिप्पी से समुद्री यात्रा पर निकले और पाँच दिन के अंदर उनके पास त्रोआस पहुँच गए। हमने वहाँ सात दिन बिताए।

7 हफ्ते के पहले दिन जब हम खाना खाने के लिए इकट्ठा हुए, तो पौलुस जमा हुए लोगों को उपदेश देने लगा। वह अगले दिन वहाँ से निकलनेवाला था इसलिए वह आधी रात तक भाषण देता रहा। 8 ऊपर के जिस कमरे में हम इकट्ठा थे वहाँ बहुत-से दीए जल रहे थे। 9 युतुखुस नाम का एक जवान, खिड़की पर बैठा हुआ था। जब पौलुस देर तक बातें करता रहा, तो वह लड़का गहरी नींद सो गया और तीसरी मंज़िल से नीचे गिर पड़ा। जब उसे उठाया गया तो वह मर चुका था। 10 मगर पौलुस सीढ़ियाँ उतरकर नीचे गया और झुककर उससे लिपट गया+ और भाइयों से कहा, “शांत हो जाओ क्योंकि यह अब ज़िंदा हो गया है।”+ 11 इसके बाद वह ऊपर गया और खाना खाने लगा* और तब तक उनसे बातें करता रहा जब तक कि दिन न निकल गया और फिर उसने उनसे विदा ली। 12 और वे उस लड़के को ले गए और उसे ज़िंदा पाकर उन्हें इतना दिलासा मिला कि उसका बयान नहीं किया जा सकता।

13 इसके बाद हम जहाज़ पर चढ़कर अस्सुस के लिए रवाना हो गए। मगर पौलुस पैदल चलकर वहाँ आया। अस्सुस में हमें पौलुस को अपने साथ जहाज़ पर लेना था, जैसा उसने हमसे कहा था। 14 जब पौलुस अस्सुस पहुँचा, तो हमने उसे अपने साथ जहाज़ पर चढ़ाया और मितुलेने गए। 15 अगले दिन हम वहाँ से जहाज़ पर निकले और खियुस के पास पहुँचे। फिर दूसरे दिन जहाज़ सामुस में रुका और अगले दिन हम मीलेतुस पहुँचे। 16 पौलुस ने तय किया था कि वह इफिसुस+ में रुके बिना आगे बढ़ जाएगा ताकि उसे एशिया प्रांत में और वक्‍त न बिताना पड़े। वह इसलिए जल्दी कर रहा था कि हो सके तो पिन्तेकुस्त के त्योहार के दिन तक यरूशलेम+ पहुँच जाए।

17 मगर उसने मीलेतुस से इफिसुस में संदेश भेजा और वहाँ की मंडली के प्राचीनों को बुलवाया। 18 जब वे उसके पास आए तो उसने उनसे कहा, “तुम अच्छी तरह जानते हो कि जिस दिन से मैंने एशिया प्रांत में कदम रखा उस दिन से मैंने तुम्हारे बीच किस तरह जीवन बिताया।+ 19 मैं प्रभु का दास बनकर पूरी नम्रता से+ उसकी सेवा करता रहा और यहूदियों की साज़िशों की वजह से मैंने बहुत आँसू बहाए और कई परीक्षाओं का सामना किया। 20 इस दौरान मैं तुम्हें ऐसी कोई भी बात बताने से पीछे नहीं हटा जो तुम्हारे फायदे* की थी, न ही तुम्हें सरेआम और घर-घर जाकर+ सिखाने+ से रुका। 21 मगर मैंने यहूदी और यूनानी, दोनों को परमेश्‍वर के सामने पश्‍चाताप करने+ और हमारे प्रभु यीशु पर विश्‍वास करने के बारे में अच्छी तरह गवाही दी।+ 22 और अब देखो, मैं पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक यरूशलेम जाने के लिए मजबूर हूँ, हालाँकि मैं नहीं जानता कि वहाँ मुझ पर क्या-क्या बीतेगी। 23 मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि हर शहर में पवित्र शक्‍ति ने बार-बार मुझ पर ज़ाहिर किया कि कैद और मुसीबतें मेरी राह तक रहे हैं।+ 24 फिर भी मैं अपनी जान को ज़रा भी कीमती नहीं समझता। बस इतना चाहता हूँ कि मैं किसी तरह अपनी दौड़ और अपनी सेवा पूरी कर सकूँ।+ यह सेवा मुझे प्रभु यीशु ने सौंपी थी कि मैं परमेश्‍वर की महा-कृपा की खुशखबरी के बारे में अच्छी गवाही दूँ।

25 अब देखो! मैं जानता हूँ कि तुम सब जिनके बीच मैंने राज का प्रचार किया, मेरा मुँह फिर कभी नहीं देखोगे। 26 इसलिए आज के दिन तुम इस बात के गवाह हो कि मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ।+ 27 क्योंकि मैं परमेश्‍वर की मरज़ी* के बारे में तुम्हें सारी बातें बताने से पीछे नहीं हटा।+ 28 तुम अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो+ जिसके बीच पवित्र शक्‍ति ने तुम्हें निगरानी करनेवाले ठहराया है+ ताकि तुम चरवाहों की तरह परमेश्‍वर की मंडली की देखभाल करो+ जिसे उसने अपने बेटे के खून से खरीदा है।+ 29 मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद अत्याचारी भेड़िए तुम्हारे बीच घुस आएँगे+ और झुंड के साथ कोमलता से पेश नहीं आएँगे 30 और तुम्हारे ही बीच में से ऐसे आदमी उठ खड़े होंगे जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।+

31 इसलिए जागते रहो और याद रखो कि तीन साल तक,+ मैं रात-दिन आँसू बहा-बहाकर तुममें से हरेक को समझाता रहा। 32 और अब मैं तुम्हें परमेश्‍वर और उसकी महा-कृपा के वचन के हवाले सौंपता हूँ। यह वचन तुम्हें मज़बूत कर सकता है और सब पवित्र जनों के बीच विरासत दिला सकता है।+ 33 मैंने किसी की चाँदी या सोने या कपड़े का लालच नहीं किया।+ 34 तुम खुद यह बात जानते हो कि मेरे इन्हीं हाथों ने न सिर्फ मेरी बल्कि मेरे साथियों की ज़रूरतों को भी पूरा किया है।+ 35 मैंने सब बातों में तुम्हें दिखाया है कि तुम भी इसी तरह मेहनत करते हुए+ उन लोगों की मदद करो जो कमज़ोर हैं और प्रभु यीशु के ये शब्द हमेशा याद रखो जो उसने खुद कहे थे: ‘लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।’”+

36 यह सब कहने के बाद पौलुस ने उन सबके साथ घुटने टेके और प्रार्थना की। 37 तब वे सब फूट-फूटकर रोने लगे और पौलुस के गले लगकर उसे प्यार से चूमने लगे। 38 वे खासकर पौलुस की इस बात से दुखी हो गए थे कि वे फिर कभी उसका मुँह नहीं देख पाएँगे।+ इसके बाद वे उसे जहाज़ तक छोड़ने गए।

21 हमने भारी दिल से उनसे विदा ली और अपनी समुद्री यात्रा शुरू की। हम बड़ी तेज़ी से सीधे कोस द्वीप पहुँचे, फिर दूसरे दिन रुदुस द्वीप आए और वहाँ से पतरा बंदरगाह। 2 फिर हमें एक जहाज़ मिला जो सीधे समुंदर पार फीनीके जा रहा था, हम उस पर सवार होकर वहाँ से चल दिए। 3 रास्ते में हमें कुप्रुस द्वीप दिखायी दिया जो हमारे बायीं तरफ* था। उसे पीछे छोड़ते हुए हम सीरिया की तरफ बढ़ते गए और सोर के बंदरगाह पहुँचकर वहाँ जहाज़ से उतरे, क्योंकि वहाँ जहाज़ का माल उतारा जाना था। 4 वहाँ हमने ढूँढ़कर पता लगाया कि चेले कहाँ रहते हैं और हम सात दिन तक वहाँ ठहरे। मगर पवित्र शक्‍ति ने जो ज़ाहिर किया था उसकी वजह से चेलों ने पौलुस से बार-बार कहा कि वह यरूशलेम न जाए।+ 5 जब वहाँ ठहरने का समय पूरा हुआ, तो हम वहाँ से निकले और अपने सफर पर चल पड़े। मगर सारे भाई, औरतों और बच्चों के साथ हमें शहर के बाहर तक विदा करने आए। हमने समुंदर के किनारे घुटने टेककर प्रार्थना की 6 और एक-दूसरे को अलविदा कहने के बाद हम जहाज़ पर चढ़ गए और वे अपने घरों को लौट गए।

7 फिर हम सोर से निकले और समुद्री रास्ते से पतुलि-मयिस शहर के बंदरगाह पहुँचे। वहाँ हम भाइयों से मिले और एक दिन उनके साथ रहे। 8 अगले दिन हम वहाँ से निकलकर कैसरिया पहुँचे और प्रचारक फिलिप्पुस के घर गए। फिलिप्पुस चुने हुए सात आदमियों में से एक था+ और हम उसके यहाँ ठहरे। 9 उस आदमी की चार कुँवारी बेटियाँ थीं जो भविष्यवाणी करती थीं।+ 10 हमें वहाँ रहते काफी दिन हो गए और तब यहूदिया से अगबुस नाम का एक भविष्यवक्‍ता+ आया। 11 उसने हमारे यहाँ आकर पौलुस का कमरबंद लिया और उससे अपने हाथ-पैर बाँधकर कहा, “पवित्र शक्‍ति कहती है, ‘जिस आदमी का यह कमरबंद है, उसे यहूदी इसी तरह यरूशलेम में बाँधेंगे+ और दूसरे राष्ट्रों के लोगों के हवाले कर देंगे।’”+ 12 जब हमने यह सुना, तो हम और वहाँ के लोग पौलुस से मिन्‍नतें करने लगे कि वह यरूशलेम न जाए। 13 तब पौलुस ने कहा, “तुम क्यों रो-रोकर मेरा इरादा* कमज़ोर कर रहे हो? यकीन मानो, मैं प्रभु यीशु के नाम की खातिर यरूशलेम में न सिर्फ बंदी बनने के लिए बल्कि मरने के लिए भी तैयार हूँ।”+ 14 जब वह नहीं माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, “यहोवा* की मरज़ी पूरी हो।”

15 इसके बाद हमने सफर की तैयारी की और यरूशलेम के लिए निकल पड़े। 16 कैसरिया से कुछ चेले भी हमारे साथ आए ताकि हमें कुप्रुस के मनासोन के घर ले जाएँ जिसके यहाँ हमें ठहरना था। मनासोन शुरू के चेलों में से एक था। 17 जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो भाइयों ने खुशी-खुशी हमारा स्वागत किया। 18 मगर अगले दिन पौलुस हमारे साथ याकूब+ से मिलने गया और सभी प्राचीन वहाँ मौजूद थे। 19 पौलुस ने उन्हें नमस्कार किया और उन्हें पूरा ब्यौरा दिया कि परमेश्‍वर ने उसकी सेवा के ज़रिए गैर-यहूदियों के बीच क्या-क्या काम किए थे।

20 यह सुनकर वे परमेश्‍वर की महिमा करने लगे और उन्होंने पौलुस से कहा, “भाई, तू देख रहा है कि हज़ारों यहूदी विश्‍वासी बन गए हैं और वे सब पूरे जोश के साथ कानून मानते हैं।+ 21 मगर उन्होंने तेरे बारे में यह अफवाह सुनी है कि तू दूसरे राष्ट्रों में रहनेवाले सब यहूदियों को मूसा के कानून के खिलाफ बगावत करना सिखा रहा है। तू उनसे कहता है कि वे न तो अपने बच्चों का खतना करें, न ही सदियों से चले आ रहे रिवाज़ों को मानें।+ 22 अब इस बारे में क्या किया जाए? उन्हें पता चल ही जाएगा कि तू यहाँ आया हुआ है। 23 इसलिए हम जो तुझसे कह रहे हैं वह कर। हमारे यहाँ ऐसे चार आदमी हैं जिन्होंने मन्‍नत मानी है। 24 तू इन आदमियों को साथ ले जा और रिवाज़ के मुताबिक उनके साथ-साथ खुद को शुद्ध कर और उनका खर्च उठा ताकि वे अपना सिर मुँड़वाएँ। तब हर कोई जान लेगा कि तेरे बारे में उन्होंने जो अफवाह सुनी थी वह सच नहीं है, बल्कि तू सही चाल चलता है और कानून भी मानता है।+ 25 जहाँ तक गैर-यहूदी विश्‍वासियों की बात है, हमने अपना फैसला उन्हें लिख भेजा है कि वे मूरतों के आगे बलि की हुई चीज़ों से,+ खून से,+ गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से*+ और नाजायज़ यौन-संबंध* से हमेशा दूर रहें।”+

26 अगले दिन पौलुस उन आदमियों को ले गया और कानून के मुताबिक उसने खुद को उन आदमियों के साथ शुद्ध किया।+ वह मंदिर के अंदर यह बताने गया कि कानून के मुताबिक शुद्ध होने के दिन कब पूरे होंगे और कब उनमें से हरेक के लिए बलिदान चढ़ाए जाने हैं।

27 जब वे सात दिन पूरे होनेवाले थे, तो एशिया से आए यहूदियों ने उसे मंदिर में देखा और भीड़ को भड़काकर उसे पकड़ लिया। 28 वे चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, “इसराएल के लोगो, हमारी मदद करो! यही है वह आदमी जो हर कहीं, हर किसी को हमारे लोगों के खिलाफ और हमारे कानून और इस जगह के खिलाफ शिक्षा दे रहा है। और-तो-और, यह यूनानियों को इस मंदिर में लाया है और इसने इस पवित्र जगह को दूषित कर दिया है।”+ 29 ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने पहले, इफिसुस के त्रुफिमुस+ को उसके साथ शहर में देखा था और उन्हें लगा कि पौलुस उसे मंदिर के अंदर ले आया है। 30 तब सारे शहर में होहल्ला होने लगा और लोग इकट्ठा होकर मंदिर की तरफ दौड़ पड़े। उन्होंने पौलुस को धर-दबोचा और उसे घसीटते हुए मंदिर के बाहर ले गए। उसी घड़ी दरवाज़े बंद कर दिए गए। 31 वे उसे मार डालना चाहते थे। तभी रोमी पलटन के सेनापति को खबर मिली कि सारे यरूशलेम में हाहाकार मचा हुआ है। 32 तब वह फौरन सैनिकों और सेना-अफसरों को लेकर नीचे उनके पास दौड़ा। जब यहूदियों ने सेनापति और उसके सैनिकों को देखा, तो पौलुस को पीटना बंद कर दिया।

33 तब सेनापति पास आया और उसने पौलुस को हिरासत में ले लिया। उसने हुक्म दिया कि उसे दो ज़ंजीरों से बाँध दिया जाए।+ फिर वह पूछताछ करने लगा कि वह कौन है और उसने क्या किया है। 34 मगर भीड़ में कोई कुछ चिल्लाता तो कोई कुछ। जब वह इस हंगामे की वजह से पौलुस के बारे में ठीक-ठीक नहीं जान पाया, तो उसने हुक्म दिया कि पौलुस को सैनिकों के रहने की जगह ले जाओ। 35 मगर जब पौलुस सीढ़ियों पर पहुँचा, तो भीड़ उसे मारने पर उतारू हो गयी इसलिए सैनिकों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। 36 लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई पीछे-पीछे आ रही थी, “इसे मार डालो!”

37 जब वे पौलुस को लेकर अपने रहने की जगह पहुँचनेवाले थे तो पौलुस ने सेनापति से कहा, “क्या मैं कुछ कह सकता हूँ?” उसने कहा, “क्या तू यूनानी बोल सकता है? 38 क्या तू वही मिस्री नहीं जिसने कुछ समय पहले बगावत की आग भड़कायी थी और 4,000 कटारबंद आदमियों को वीराने में ले गया था?” 39 तब पौलुस ने कहा, “मैं दरअसल एक यहूदी हूँ+ और किलिकिया के तरसुस शहर का नागरिक हूँ+ और वह कोई छोटा शहर नहीं है। इसलिए मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि मुझे इन लोगों से बात करने की इजाज़त दे।” 40 जब उसने इजाज़त दी तो पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े-खड़े हाथ से लोगों को शांत होने का इशारा किया। तब सन्‍नाटा छा गया और पौलुस इब्रानी भाषा में उनसे बात करने लगा।+ उसने कहा,

22 “भाइयो और पिता समान बुज़ुर्गो, अब मैं अपनी सफाई में जो कहने जा रहा हूँ, वह सुनो।”+ 2 जब उन्होंने पौलुस को इब्रानी भाषा में बोलते सुना, तो वे और भी शांत हो गए और उसने कहा, 3 “मैं एक यहूदी हूँ।+ मेरा जन्म किलिकिया के तरसुस में हुआ था।+ मगर मैंने यहाँ यरूशलेम में गमलीएल के पैरों के पास बैठकर शिक्षा पायी+ और मुझे पुरखों के कानून को सख्ती से मानना सिखाया गया।+ मैं परमेश्‍वर की सेवा में बहुत जोशीला था, जैसे आज तुम सब हो।+ 4 इस ‘राह’ के माननेवालों को मैं गिरफ्तार करके जेल में डलवा देता था, फिर चाहे वे आदमी हों या औरत। मैं उन पर बहुत ज़ुल्म ढाता था, यहाँ तक कि उन्हें मरवा डालता था।+ 5 मेरी इन बातों की गवाही महायाजक और मुखियाओं की पूरी सभा दे सकती है। मैंने उनसे दमिश्‍क के यहूदी भाइयों के नाम चिट्ठियाँ भी ली थीं। और वहाँ के लिए निकल पड़ा ताकि वहाँ जो लोग इस ‘राह’ को मानते थे, उन्हें गिरफ्तार करके यरूशलेम ले आऊँ और उन्हें सज़ा दिलाऊँ।

6 मगर जब मैं सफर करते-करते दमिश्‍क के पास आ पहुँचा, तो दोपहर के वक्‍त अचानक आकाश से तेज़ रौशनी मेरे चारों तरफ चमक उठी।+ 7 तब मैं ज़मीन पर गिर पड़ा और मैंने एक आवाज़ सुनी जो मुझसे कह रही थी, ‘शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?’ 8 मैंने पूछा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ उसने कहा, ‘मैं यीशु नासरी हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है।’ 9 जो आदमी मेरे साथ थे, उन्हें रौशनी तो दिखायी दे रही थी मगर वे उसके शब्द नहीं समझ रहे थे जो मुझसे बात कर रहा था। 10 तब मैंने कहा, ‘प्रभु, मैं क्या करूँ?’ प्रभु ने मुझसे कहा, ‘उठ और दमिश्‍क जा और वहाँ तुझे वे सारे काम बताए जाएँगे जो तेरे लिए ठहराए गए हैं।’+ 11 मगर मैं उस रौशनी की चमक की वजह से कुछ नहीं देख पा रहा था, इसलिए जो मेरे साथ थे उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर मुझे दमिश्‍क पहुँचाया।

12 वहाँ हनन्याह नाम का एक आदमी था जो परमेश्‍वर का कानून माननेवाला एक भक्‍त इंसान था और वहाँ रहनेवाले सभी यहूदी उसकी तारीफ किया करते थे। 13 वह मेरे पास आकर खड़ा हुआ और उसने मुझसे कहा, ‘शाऊल, मेरे भाई, आँखों की रौशनी पा!’ उसी घड़ी मेरी आँखों की रौशनी लौट आयी और मैंने उसे देखा।+ 14 उसने कहा, ‘हमारे पुरखों के परमेश्‍वर ने तुझे चुना है कि तू उसकी मरज़ी को जाने और उस नेक जन को देखे+ और उसकी आवाज़ सुने, 15 क्योंकि तुझे उसकी तरफ से सब इंसानों के सामने उन बातों की गवाही देनी होगी जो तूने देखी और सुनी हैं।+ 16 अब तू देर क्यों करता है? उठ, बपतिस्मा ले और उसका नाम लेकर+ अपने पापों को धो ले।’+

17 मगर जब मैं यरूशलेम+ लौटकर मंदिर में प्रार्थना कर रहा था, तो मैंने एक दर्शन देखा।* 18 और मैंने देखा कि वह मुझसे कह रहा है, ‘जल्दी कर, फौरन यरूशलेम से निकल जा क्योंकि तू मेरे बारे में जो गवाही दे रहा है, उसे वे नहीं मानेंगे।’+ 19 तब मैंने कहा, ‘प्रभु, वे जानते हैं कि मैं तुझ पर विश्‍वास करनेवालों को जेल में डालता था और एक-एक सभा-घर में जाकर उन्हें कोड़े लगाता था।+ 20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का खून बहाया जा रहा था, तब मैं भी वहीं पास खड़े होकर उस कत्ल में साथ दे रहा था और उसके कातिलों के कपड़ों की रखवाली कर रहा था।’+ 21 फिर भी उसने मुझसे कहा, ‘जा, मैं तुझे दूर-दूर के गैर-यहूदियों के पास भेजता हूँ।’”+

22 भीड़ के लोग अब तक पौलुस की बात सुन रहे थे, मगर फिर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे, “इस आदमी का धरती से नामो-निशान मिटा दो, यह ज़िंदा रहने के लायक नहीं!” 23 वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर अपने चोगे यहाँ-वहाँ हवा में उछाल रहे थे और धूल उड़ा रहे थे।+ 24 इसलिए सेनापति ने हुक्म दिया कि पौलुस को सैनिकों के रहने की जगह लाया जाए और उसे कोड़े लगाकर पूछताछ की जाए ताकि मैं ठीक-ठीक जानूँ कि ये लोग क्यों इसके खिलाफ इतना चिल्ला रहे हैं। 25 मगर जब सैनिकों ने उसे कोड़े लगाने के लिए बाँध दिया, तो पौलुस ने वहाँ खड़े सेना-अफसर से कहा, “क्या तू एक रोमी नागरिक को, यह साबित किए बगैर कि उसने कोई जुर्म किया है,* कोड़े लगवाएगा? क्या यह कानून के हिसाब से सही है?”+ 26 जब सेना-अफसर ने यह सुना, तो वह सेनापति के पास गया और उसे यह खबर देकर कहा, “तू क्या करना चाहता है? यह आदमी तो एक रोमी नागरिक है।” 27 तब सेनापति ने पौलुस के पास आकर उससे पूछा, “मुझे बता, क्या तू रोमी नागरिक है?” उसने कहा, “हाँ।” 28 सेनापति ने कहा, “मैंने बड़ी रकम देकर नागरिक होने के अधिकार खरीदे हैं।” पौलुस ने कहा, “मगर मेरे पास तो ये जन्म से ही हैं।”+

29 तब फौरन वे आदमी जो उसे बुरी तरह पीटकर पूछताछ करनेवाले थे, उसके पास से हट गए और सेनापति यह जानकर डर गया कि उसने एक रोमी आदमी को ज़ंजीरों में जकड़ा है।+

30 इसलिए अगले दिन उसने पौलुस के बंधन खोल दिए और प्रधान याजकों और पूरी महासभा को इकट्ठा होने का हुक्म दिया क्योंकि वह ठीक-ठीक जानना चाहता था कि यहूदी क्यों उस पर इलज़ाम लगा रहे हैं। इसके बाद वह पौलुस को नीचे लाया और उनके बीच खड़ा किया।+

23 पौलुस ने महासभा की तरफ टकटकी लगाकर देखा और कहा, “भाइयो, मैंने आज के दिन तक परमेश्‍वर के सामने बिलकुल साफ ज़मीर से ज़िंदगी बितायी है।”+ 2 यह सुनकर महायाजक हनन्याह ने पौलुस के पास खड़े लोगों को हुक्म दिया कि वे उसके मुँह पर थप्पड़ मारें। 3 तब पौलुस ने उससे कहा, “अरे कपटी,* तुझ पर परमेश्‍वर की मार पड़ेगी। तू कानून के मुताबिक मेरा न्याय करने बैठा है और मुझे मारने का हुक्म देकर उसी कानून को तोड़ भी रहा है?” 4 तब वहाँ खड़े लोगों ने कहा, “तू परमेश्‍वर के महायाजक की बेइज़्ज़ती कर रहा है?” 5 पौलुस ने कहा, “भाइयो, मुझे मालूम नहीं था कि यह महायाजक है। क्योंकि लिखा है, ‘तू अपने लोगों के अधिकारी की निंदा मत करना।’”+

6 पौलुस ने यह जानते हुए कि उनमें से एक दल सदूकियों का है और दूसरा फरीसियों का, महासभा में ज़ोर से पुकारकर कहा, “भाइयो, मैं एक फरीसी हूँ+ और फरीसियों का बेटा हूँ। मरे हुओं के ज़िंदा होने की आशा को लेकर मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है।” 7 जब उसने यह कहा, तो फरीसियों और सदूकियों में झगड़ा होने लगा और सभा में फूट पड़ गयी। 8 क्योंकि सदूकी कहते हैं कि न तो मरे हुए ज़िंदा किए जाते हैं, न स्वर्गदूत होते हैं, न ही अदृश्‍य प्राणी। मगर फरीसी इन सब बातों पर विश्‍वास करते हैं।+ 9 इसलिए वहाँ बड़ी चीख-पुकार मच गयी और फरीसियों के दल के कुछ शास्त्री उठे और यह कहकर बुरी तरह झगड़ने लगे, “हमें इस आदमी में कोई बुराई नज़र नहीं आती। क्या पता किसी अदृश्‍य प्राणी या स्वर्गदूत ने उससे बात की हो+ . . .।” 10 जब झगड़ा हद-से-ज़्यादा बढ़ गया, तो सेनापति डर गया कि कहीं वे पौलुस की बोटी-बोटी न कर दें। उसने सैनिकों को हुक्म दिया कि वे नीचे जाकर पौलुस को छुड़ा लें और सैनिकों के रहने की जगह ले आएँ।

11 मगर उसी रात प्रभु पौलुस के पास आ खड़ा हुआ और उसने कहा, “हिम्मत रख!+ क्योंकि जैसे तू यरूशलेम में मेरे बारे में अच्छी तरह गवाही देता आया है, उसी तरह रोम में भी तुझे गवाही देनी है।”+

12 जब दिन निकला, तो यहूदियों ने एक साज़िश रची और यह कसम खायी कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें तब तक अगर हमने कुछ खाया या पीया, तो हम पर शाप पड़े। 13 जिन्होंने यह कसम खाकर साज़िश रची थी उनकी गिनती 40 से ज़्यादा थी। 14 वे प्रधान याजकों और मुखियाओं के पास गए और कहने लगे, “हमने कसम* खायी है कि जब तक हम पौलुस को मार नहीं डालते, तब तक अगर हमने कुछ खाया तो हम पर शाप पड़े। 15 इसलिए अब तुम लोग महासभा के साथ मिलकर सेनापति को बताओ कि वह पौलुस को नीचे तुम्हारे पास ले आए, मानो तुम उसके मामले की करीबी से जाँच करना चाहते हो। मगर हम उसके यहाँ पहुँचने से पहले ही उसका काम तमाम करने के लिए तैयार रहेंगे।”

16 लेकिन पौलुस के भाँजे ने यह सुन लिया कि वे उसे छिपकर मार डालने की साज़िश कर रहे हैं। उसने सैनिकों के रहने की जगह जाकर यह खबर पौलुस को दे दी। 17 तब पौलुस ने एक सेना-अफसर को अपने पास बुलाकर उससे कहा, “इस लड़के को सेनापति के पास ले जाओ, यह उसे एक खबर देना चाहता है।” 18 वह उसे लेकर सेनापति के पास गया और उसने कहा, “कैदी पौलुस ने मुझे अपने पास बुलाया और मुझसे गुज़ारिश की कि इस लड़के को तेरे पास ले आऊँ क्योंकि यह तुझे कुछ बताना चाहता है।” 19 सेनापति लड़के का हाथ पकड़कर उसे अलग ले गया और अकेले में उससे पूछा, “तू मुझे क्या खबर देना चाहता है?” 20 उसने कहा, “यहूदियों ने मिलकर यह तय किया है कि वे तुझसे बिनती करेंगे कि तू कल पौलुस को महासभा के सामने लाए, मानो वे उसके मामले के बारे में और जानना चाहते हों।+ 21 मगर तू उनकी बातों में न आना क्योंकि उनके 40 से ज़्यादा आदमी पौलुस को छिपकर मार डालने की साज़िश कर रहे हैं और उन्होंने कसम* खायी है कि जब तक वे पौलुस को मार न डालें, तब तक अगर उन्होंने कुछ खाया या पीया तो उन पर शाप पड़े।+ और अब वे तैयार हैं और तुझसे इजाज़त पाने का इंतज़ार कर रहे हैं।” 22 इसलिए सेनापति ने लड़के को सख्ती से यह कहकर भेज दिया, “किसी से मत कहना कि तूने मुझे यह बात बता दी है।”

23 तब उसने दो सेना-अफसरों को बुलाया और उनसे कहा, “200 सैनिक, 70 घुड़सवार और 200 भाला चलानेवाले तैयार रखो कि वे रात के तीसरे घंटे* कैसरिया के लिए कूच करें। 24 और पौलुस के लिए घोड़े तैयार रखो ताकि तुम उसे सही-सलामत राज्यपाल फेलिक्स के पास पहुँचाओ।” 25 और उसने चिट्ठी लिखी जिसमें ये बातें थीं:

26 “महाप्रतापी राज्यपाल फेलिक्स को क्लौदियुस लूसियास का नमस्कार! 27 इस आदमी को यहूदियों ने पकड़ लिया था और वे इसे मार डालनेवाले थे, मगर मैंने अपने सैनिकों के साथ फौरन वहाँ पहुँचकर इसे बचा लिया,+ क्योंकि मुझे पता चला कि यह एक रोमी नागरिक है।+ 28 मैं जानना चाहता था कि वे किस वजह से इस पर इलज़ाम लगा रहे हैं, इसलिए मैं इसे उनकी महासभा में ले गया।+ 29 मैंने पाया कि उनके अपने कानूनी मसले को लेकर इस पर इलज़ाम लगाया गया था,+ मगर इस पर ऐसा कोई भी इलज़ाम नहीं था जिससे यह मौत की सज़ा पाने या जेल जाने के लायक ठहरे। 30 मगर मुझे खबर मिली कि इसके खिलाफ एक साज़िश रची गयी है।+ इसलिए मैं बिना देर किए इसे तेरे पास भेज रहा हूँ और मैंने मुद्दइयों को हुक्म दिया है कि तेरे सामने इसके खिलाफ अपने इलज़ाम बताएँ।”

31 इसलिए सैनिकों को जैसा हुक्म मिला था, वे पौलुस को रातों-रात अंतिपत्रिस शहर ले आए।+ 32 अगले दिन घुड़सवार पौलुस को लेकर आगे निकल गए और सैनिक अपने रहने की जगह लौट आए। 33 कैसरिया पहुँचकर घुड़सवारों ने राज्यपाल को चिट्ठी दी और पौलुस को उसके सामने पेश किया। 34 चिट्ठी पढ़कर राज्यपाल ने पूछा कि पौलुस किस प्रांत का है और उसे पता चला कि वह किलिकिया से है।+ 35 उसने पौलुस से कहा, “जब तेरे मुद्दई यहाँ आएँगे,+ तो मैं तुझे अपनी सफाई में बोलने का पूरा-पूरा मौका दूँगा।” उसने हुक्म दिया कि उसे हेरोदेस के महल में पहरे में रखा जाए।

24 पाँच दिन बाद महायाजक हनन्याह+ कुछ मुखियाओं और तिरतुल्लुस नाम के किसी वकील के साथ वहाँ आया और उन्होंने राज्यपाल+ के सामने पौलुस के खिलाफ मुकदमा पेश किया। 2 जब तिरतुल्लुस को बोलने के लिए कहा गया, तो उसने यह कहकर पौलुस पर इलज़ाम लगाना शुरू किया,

“हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरी बदौलत हम बड़े अमन-चैन से हैं और तेरी अच्छी-अच्छी योजनाओं से इस जाति में काफी सुधार हो रहे हैं। 3 इनका फायदा हमें हर वक्‍त और हर जगह हो रहा है और इसके लिए हम तेरे बहुत एहसानमंद हैं। 4 मगर मैं तुझे और तकलीफ नहीं देना चाहता, इसलिए मैं तुझसे मिन्‍नत करता हूँ कि तू मेहरबानी करके कुछ देर के लिए हमारी सुन ले। 5 हमने पाया है कि यह आदमी फसाद की जड़* है+ और पूरी दुनिया में यहूदियों को बगावत करने के लिए भड़काता है+ और नासरियों के गुट का एक मुखिया है।+ 6 इसने मंदिर को अपवित्र करने की भी कोशिश की इसलिए हमने इसे पकड़ लिया।+ 7* — 8 हम इस पर जो-जो इलज़ाम लगा रहे हैं, उनके बारे में अगर तू खुद इससे पूछताछ करे तो तुझे पता चल जाएगा कि ये बातें सच हैं।”

9 तब यहूदी भी पौलुस के खिलाफ बोलने लगे और दावे के साथ कहने लगे कि ये बातें सही हैं। 10 जब राज्यपाल ने सिर हिलाकर पौलुस को बोलने का इशारा किया, तो उसने कहा,

“मुझे तेरे सामने अपनी सफाई पेश करने में बड़ी खुशी हो रही है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तू कई सालों से इस जाति का न्यायी है।+ 11 मैं जो कह रहा हूँ उसकी सच्चाई तू खुद पता कर सकता है। मुझे उपासना के लिए यरूशलेम गए 12 दिन से ज़्यादा नहीं हुए+ 12 और ऐसा कभी नहीं हुआ कि यहूदियों ने मुझे मंदिर में किसी से बहस करते पाया हो, या फिर सभा-घरों या शहर में कहीं भीड़ को जमा करते हुए पाया हो। 13 न ही ये उन बातों के सच होने का सबूत दे सकते हैं जिनका ये मुझ पर अभी इलज़ाम लगा रहे हैं। 14 मगर मैं तेरे सामने स्वीकार करता हूँ कि जिस राह को ये एक गुट कहते हैं, उसी को मानते हुए मैं अपने पुरखों के परमेश्‍वर की पवित्र सेवा कर रहा हूँ।+ क्योंकि मैं कानून और भविष्यवक्‍ताओं की लिखी सारी बातों पर विश्‍वास करता हूँ।+ 15 और मैं भी इन लोगों की तरह परमेश्‍वर से यह आशा रखता हूँ कि अच्छे और बुरे,+ दोनों तरह के लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा।+ 16 इसलिए मैं हमेशा कोशिश करता हूँ कि परमेश्‍वर और इंसानों की नज़र में कोई अपराध न करूँ ताकि मेरा ज़मीर साफ* रहे।+ 17 कई सालों बाद मैं अपने लोगों के लिए दान लेकर आया था+ और परमेश्‍वर को चढ़ावे अर्पित करने आया था। 18 जब मैं ये काम कर रहा था, तो उन्होंने मुझे मंदिर में मूसा के कानून के मुताबिक शुद्ध पाया।+ मगर वहाँ न तो मेरे साथ कोई भीड़ थी, न ही मैं कोई दंगा कर रहा था। वहाँ एशिया प्रांत के कुछ यहूदी भी मौजूद थे। 19 अगर उन्हें मेरे खिलाफ कुछ कहना था तो उन्हें यहाँ होना चाहिए था और तेरे सामने मुझ पर इलज़ाम लगाना था।+ 20 या फिर यहाँ मौजूद ये लोग बताएँ कि जब मैं महासभा के सामने खड़ा था तो इन्होंने मुझमें क्या दोष पाया। 21 वे मुझ पर सिर्फ एक बात का दोष लगा सकते हैं, जो मैंने इनके बीच खड़े होकर बुलंद आवाज़ में कही थी, ‘मरे हुओं के ज़िंदा होने की बात को लेकर आज तुम्हारे सामने मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है!’”+

22 फेलिक्स ‘प्रभु की राह’+ के बारे में अच्छी तरह जानता था कि सच क्या है, फिर भी उसने यह कहकर मामला टाल दिया, “जब सेनापति लूसियास यहाँ आएगा तब मैं तुम्हारे इस मामले का फैसला करूँगा।” 23 फिर उसने सेना-अफसर को हुक्म दिया कि इस आदमी को हिरासत में रखा जाए मगर थोड़ी आज़ादी दी जाए और उसके लोगों को उसकी सेवा करने से न रोका जाए।

24 कुछ दिन बाद जब फेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला को, जो एक यहूदी थी, साथ लेकर आया तो उसने पौलुस को बुलवाया। और जब पौलुस ने उसे मसीह यीशु में विश्‍वास करने के बारे में बताया तो उसने सुना।+ 25 लेकिन जब पौलुस नेकी, संयम और आनेवाले न्याय के बारे में बात करने लगा,+ तो फेलिक्स घबरा उठा और उसने कहा, “फिलहाल तू जा। फिर कभी मौका मिला तो मैं तुझे बुला लूँगा।” 26 पर साथ ही वह पौलुस से रिश्‍वत पाने की भी उम्मीद कर रहा था। इसलिए वह उसे बार-बार बुलाकर उससे बातचीत किया करता था। 27 इस तरह दो साल बीत गए और फेलिक्स की जगह पुरकियुस फेस्तुस ने ले ली। फेलिक्स यहूदियों को खुश करना चाहता था,+ इसलिए वह पौलुस को कैद में ही छोड़ गया।

25 उस प्रांत में आने और सत्ता सँभालने के तीन दिन बाद, फेस्तुस+ कैसरिया से यरूशलेम गया। 2 तब प्रधान याजकों और यहूदियों के खास-खास आदमियों ने उसके सामने पौलुस के खिलाफ अपने इलज़ाम पेश किए।+ वे फेस्तुस से बिनती करने लगे 3 कि वह मेहरबानी करके पौलुस को यरूशलेम भेजे। मगर उन्होंने साज़िश की थी कि वे छिपकर बैठेंगे और रास्ते में ही पौलुस को मार डालेंगे।+ 4 मगर फेस्तुस ने कहा कि पौलुस को कैसरिया में ही हिरासत में रखा जाए और मैं खुद बहुत जल्द वहाँ जानेवाला हूँ। 5 उसने कहा, “इसलिए तुम लोगों के जो बड़े अधिकारी हैं वे मेरे साथ चलें और उस आदमी ने अगर कुछ बुरा किया है, तो उस पर इलज़ाम लगाएँ।”+

6 फेस्तुस यरूशलेम में आठ-दस दिन रहने के बाद कैसरिया आया और अगले दिन न्याय-आसन पर बैठा। उसने हुक्म दिया कि पौलुस को लाया जाए। 7 जब पौलुस आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे वे उसे घेरकर खड़े हो गए और उस पर कई बड़े-बड़े इलज़ाम लगाने लगे जिनका वे कोई सबूत नहीं दे सकते थे।+

8 मगर पौलुस ने अपनी सफाई में कहा, “मैंने किसी के खिलाफ कोई पाप नहीं किया, न यहूदियों के कानून के खिलाफ, न मंदिर के खिलाफ और न ही सम्राट के खिलाफ।”+ 9 फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने के इरादे से+ पौलुस से कहा, “तो क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि वहाँ मेरे सामने इन मामलों के बारे में तेरा न्याय किया जाए?” 10 मगर पौलुस ने कहा, “मैं सम्राट के न्याय-आसन के सामने खड़ा हूँ, मेरा न्याय यहीं किया जाना चाहिए। मैंने यहूदियों के साथ कुछ बुरा नहीं किया, जैसा कि तुझे अच्छी तरह पता चल रहा है। 11 अगर मैं वाकई अपराधी हूँ और मैंने मौत की सज़ा के लायक कोई अपराध किया है,+ तो मैं मरने से पीछे नहीं हटता। लेकिन अगर इनका एक भी इलज़ाम सच नहीं है तो कोई भी आदमी उन्हें खुश करने के लिए मुझे उनके हवाले नहीं कर सकता। मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”+ 12 तब फेस्तुस ने अपने सलाहकारों की सभा से मशविरा करने के बाद पौलुस से कहा, “तूने सम्राट* से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।”

13 कुछ दिन बाद राजा अग्रिप्पा और बिरनीके, फेस्तुस को मुबारकबाद देने के लिए उससे मिलने कैसरिया आए। 14 वे वहाँ कई दिन रहनेवाले थे, इसलिए फेस्तुस ने राजा को पौलुस के मुकदमे के बारे में बताया और कहा,

“एक आदमी है जिसे फेलिक्स कैद में छोड़ गया है। 15 जब मैं यरूशलेम में था तो यहूदियों के प्रधान याजकों और मुखियाओं ने इस बारे में मुझे बताया+ और इसे सज़ा सुनाने के लिए मुझसे बिनती की। 16 मगर मैंने उन्हें यह जवाब दिया कि यह रोमी तरीका नहीं कि किसी मुलज़िम को उसके मुद्दइयों के सामने लाए बगैर और उसे बचाव में बोलने का मौका दिए बगैर सज़ा दे दी जाए, सिर्फ इसलिए कि मुद्दई खुश हों।+ 17 इसलिए जब वे यहाँ आए, तो मैं बिना देर किए अगले ही दिन न्याय-आसन पर बैठा और उस आदमी को लाने का हुक्म दिया। 18 मैंने सोचा था कि उसके मुद्दई उस पर बुरे-बुरे कामों का इलज़ाम लगाएँगे, मगर जब वे खड़े हुए तो उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा।+ 19 उनका झगड़ा बस अपने ईश्‍वर की उपासना*+ और किसी यीशु को लेकर था, जो मर चुका है मगर जिसके बारे में पौलुस दावा करता रहा कि वह ज़िंदा है।+ 20 मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इस मामले को कैसे निपटाऊँ। इसलिए मैंने उससे पूछा कि क्या वह यरूशलेम जाना चाहेगा ताकि वहाँ उसका न्याय किया जाए।+ 21 मगर पौलुस ने फरियाद की कि उसका फैसला महामहिम* के हाथों हो और तब तक उसे वहीं हिरासत में रखा जाए।+ इसलिए मैंने हुक्म दिया कि जब तक मैं उसे सम्राट के पास न भेजूँ तब तक उसे वहीं रखा जाए।”

22 तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “मैं खुद उसके मुँह से सुनना चाहता हूँ।”+ फेस्तुस ने कहा, “तू कल उसकी बात सुन सकता है।” 23 इसलिए अगले दिन, अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूम-धाम से दरबार में आए और उनके साथ सेनापति और शहर के जाने-माने लोग भी आए। फिर फेस्तुस के हुक्म पर पौलुस को वहाँ लाया गया। 24 फेस्तुस ने कहा, “हे राजा अग्रिप्पा और यहाँ मौजूद सभी लोगो, तुम उस आदमी को देख रहे हो जिसके खिलाफ पूरे यहूदी समाज ने यरूशलेम में और यहाँ भी चिल्ला-चिल्लाकर मुझसे बिनती की है कि यह आदमी मार डाला जाए, यह ज़िंदा रहने के लायक नहीं है।+ 25 मगर मैं जान गया हूँ कि इस आदमी ने ऐसा कुछ नहीं किया है कि इसे मौत की सज़ा दी जाए।+ इसलिए जब इसने खुद महामहिम के पास जाने की फरियाद की, तो मैंने इसे वहाँ भेजने का फैसला किया। 26 मगर इसके बारे में मेरे पास अपने मालिक को लिखने लायक कोई पुख्ता बात नहीं है। इसलिए मैं इस आदमी को तुम सबके सामने, खासकर राजा अग्रिप्पा तेरे सामने लाया हूँ ताकि अदालती जाँच के बाद मुझे इसके बारे में लिखने के लिए कुछ मिले। 27 क्योंकि मुझे यह सही नहीं लगता कि मैं एक कैदी को वहाँ भेजूँ तो सही, मगर उस पर लगे इलज़ाम न बताऊँ।”

26 फिर अग्रिप्पा+ ने पौलुस से कहा, “तुझे अपनी सफाई में बोलने की इजाज़त है।” तब पौलुस ने हाथ उठाया और अपने बचाव में यह कहने लगा,

2 “हे राजा अग्रिप्पा, यहूदियों ने मुझ पर जिन बातों का इलज़ाम लगाया है,+ उन सबके बारे में आज तेरे सामने अपनी सफाई देने में मुझे बड़ी खुशी हो रही है, 3 खासकर इसलिए कि तुझे यहूदियों के सभी रिवाज़ों, साथ ही उनके मसलों की अच्छी जानकारी है। इसलिए मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि तू सब्र से मेरी सुने।

4 वाकई, मैंने जवानी से अपने जाति-भाइयों के बीच और यरूशलेम में रहते वक्‍त जैसी ज़िंदगी बितायी है, उसके बारे में उन सभी यहूदियों को मालूम है+ 5 जो मुझे पहले से जानते हैं। अगर वे चाहें तो इस बात की गवाही दे सकते हैं कि मैं अपने धर्म के सबसे कट्टर पंथ को मानता था+ और एक फरीसी की ज़िंदगी जीता था।+ 6 मगर अब उस आशा की वजह से जिसका वादा परमेश्‍वर ने हमारे पुरखों से किया था,+ मुझ पर यहाँ मुकदमा चलाया जा रहा है। 7 हमारे 12 गोत्र इसी वादे के पूरा होने की आशा लगाए हुए हैं, इसलिए वे रात-दिन बड़े जतन से परमेश्‍वर की पवित्र सेवा करते हैं। हे राजा, इसी आशा के बारे में यहूदियों ने मुझ पर इलज़ाम लगाए हैं।+

8 तुम्हें क्यों यह नामुमकिन लगता है कि परमेश्‍वर मरे हुओं को ज़िंदा करता है? 9 एक वक्‍त पर मुझे भी लगता था कि यीशु नासरी के नाम का कड़ा विरोध करना मेरा फर्ज़ है। 10 और मैंने यरूशलेम में ऐसा ही किया। मैंने प्रधान याजकों से अधिकार पाकर बहुत-से पवित्र जनों को जेलों में बंद कर दिया+ और जब उन्हें मौत की सज़ा देने की बात चलती, तो मैं भी हामी भरता था। 11 मैंने हर सभा-घर में जाकर उन्हें कितनी ही बार सज़ा दिलायी ताकि वे मजबूर होकर अपना विश्‍वास छोड़ दें। मैं उनके खिलाफ गुस्से से इस कदर पागल हो गया था कि दूसरे शहरों में भी जाकर उन पर ज़ुल्म ढाने लगा।

12 इसी धुन में जब मैं प्रधान याजकों से अधिकार और आज्ञा पाकर दमिश्‍क जा रहा था, 13 तो हे राजा, भरी दोपहरी में आकाश से एक रौशनी चमकी जो सूरज से भी तेज़ थी। वह रौशनी मेरे और मेरे साथ चलनेवालों के चारों तरफ चमक उठी।+ 14 तब हम सब ज़मीन पर गिर पड़े और मैंने एक आवाज़ सुनी जो मुझसे इब्रानी भाषा में कह रही थी, ‘शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है? इस तरह विरोध करके* तू अपने लिए मुश्‍किल पैदा कर रहा है।’ 15 मगर मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ और प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है। 16 मगर अब उठ, अपने पाँवों के बल खड़ा हो। मैंने तुझे इसलिए दर्शन दिया है कि तुझे एक सेवक और गवाह ठहराऊँ ताकि तूने मेरे बारे में जो बातें देखी हैं और जो मैं तुझे आगे दिखाऊँगा, उनकी तू गवाही दे।+ 17 और मैं इस राष्ट्र से और दूसरे राष्ट्रों से तेरी हिफाज़त करूँगा जिनके पास मैं तुझे भेज रहा हूँ।+ 18 मैं तुझे इसलिए भेज रहा हूँ ताकि तू उनकी आँखें खोले+ और उन्हें अंधकार से निकालकर+ उजाले में ले आए+ और शैतान के अधिकार से छुड़ाकर+ परमेश्‍वर के अधिकार में ले आए और वे मुझ पर विश्‍वास करके पापों की माफी पाएँ+ और उन लोगों के साथ विरासत पाएँ जो पवित्र ठहराए गए हैं।’

19 इसलिए हे राजा अग्रिप्पा, जो आज्ञा मुझे स्वर्ग के इस दर्शन में मिली, मैंने उसे नहीं तोड़ा। 20 मैंने सबसे पहले दमिश्‍क के लोगों को,+ फिर यरूशलेम के लोगों को+ और पूरे यहूदिया प्रदेश में और फिर दूसरे राष्ट्रों में भी यह संदेश दिया कि उन्हें पश्‍चाताप करना चाहिए और पश्‍चाताप दिखानेवाले काम करके परमेश्‍वर की तरफ फिरना चाहिए।+ 21 इसीलिए यहूदियों ने मुझे मंदिर में पकड़ लिया और मुझे मार डालने की कोशिश की।+ 22 मगर परमेश्‍वर मेरी मदद करता रहा इसलिए मैं आज के दिन तक छोटे-बड़े सभी को गवाही दे रहा हूँ। और मैं उन बातों को छोड़ और कुछ नहीं बताता जिनके बारे में भविष्यवक्‍ताओं और मूसा ने पहले से कहा था।+ 23 यानी यह कि मसीह दुख उठाएगा+ और वही पहला होगा जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा+ और वह इस राष्ट्र को और दूसरे राष्ट्रों को प्रचार करेगा और रौशनी देगा।”+

24 पौलुस अपने बचाव में ये बातें बोल ही रहा था कि फेस्तुस ने ऊँची आवाज़ में कहा, “अरे पौलुस, तेरा दिमाग खराब हो गया है, बहुत ज्ञान ने तुझे पागल कर दिया है!” 25 मगर पौलुस ने कहा, “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ, मैं सच्ची बातें कह रहा हूँ और पूरे होश-हवास में बोल रहा हूँ। 26 सच तो यह है कि जिस राजा के सामने मैं बेझिझक बात कर रहा हूँ, वह खुद भी इन बातों के बारे में अच्छी तरह जानता है और मुझे पूरा यकीन है कि इनमें से एक भी बात उससे छिपी नहीं है क्योंकि ये घटनाएँ किसी कोने में तो नहीं घटीं।+ 27 हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यवक्‍ताओं की बातों पर यकीन करता है? मैं जानता हूँ तू यकीन करता है।” 28 मगर अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “थोड़ी ही देर में तू मुझे मसीही बनने के लिए कायल कर देगा।” 29 तब पौलुस ने कहा, “परमेश्‍वर से मेरी यही दुआ है कि चाहे थोड़ी देर में या ज़्यादा में, सिर्फ तू ही नहीं बल्कि जितने लोग आज मेरी सुन रहे हैं, सब मेरी तरह बन जाएँ, बस इस तरह ज़ंजीरों में न हों।”

30 तब राजा अग्रिप्पा उठा और उसके साथ राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठे आदमी उठ खड़े हुए। 31 मगर जाते-जाते वे एक-दूसरे से कहने लगे, “इस आदमी ने ऐसा कुछ नहीं किया कि इसे मौत की सज़ा दी जाए या जेल में डाला जाए।”+ 32 तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “अगर इस आदमी ने सम्राट से फरियाद न की होती, तो इसे रिहा किया जा सकता था।”+

27 जैसा तय किया गया था कि हम जहाज़ से इटली जाएँ,+ उन्होंने पौलुस और दूसरे कुछ कैदियों को औगुस्तुस की टुकड़ी के सेना-अफसर, यूलियुस के हाथ सौंप दिया। 2 फिर हम अद्र-मुत्तियुम के एक जहाज़ पर चढ़े जो एशिया प्रांत के किनारे के बंदरगाहों से होते हुए जानेवाला था। और हम वहाँ से रवाना हुए। हमारे साथ अरिस्तरखुस+ भी था जो मकिदुनिया प्रांत के थिस्सलुनीके का रहनेवाला था। 3 अगले दिन हमने सीदोन में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा* की और पौलुस को अपने दोस्तों के यहाँ जाकर उनसे मदद पाने की इजाज़त दी।

4 वहाँ से लंगर उठाकर हम रवाना हुए और कुप्रुस की आड़ में होकर चले क्योंकि हवा का रुख हमारे खिलाफ था। 5 हम खुले समुंदर में किलिकिया और पमफूलिया के पास से होते हुए लूसिया के मूरा बंदरगाह में उतरे। 6 वहाँ सेना-अफसर ने सिकंदरिया का एक जहाज़ देखा जो इटली जानेवाला था और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया। 7 फिर कई दिनों तक धीमी रफ्तार से बढ़ते हुए हम बड़ी मुश्‍किल से कनिदुस द्वीप पहुँचे। हवा हमें सीधे आगे नहीं बढ़ने दे रही थी इसलिए हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले। 8 और किनारे-किनारे बड़ी मुश्‍किल से खेते हुए हम उस जगह पहुँचे जो ‘बढ़िया बंदरगाह’ कहलाती है, जहाँ से लसिया शहर पास था।

9 बहुत दिन बीत गए, यहाँ तक कि प्रायश्‍चित के दिन+ का उपवास भी बीत गया और समुंदर में सफर करना अब खतरे से खाली नहीं था। इसलिए पौलुस ने उन्हें यह सलाह दी, 10 “सज्जनो, मैं देख सकता हूँ कि अब जहाज़ को आगे बढ़ाना ठीक नहीं होगा, वरना हमें न सिर्फ माल और जहाज़ का भारी नुकसान होगा, बल्कि अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ेगा।” 11 मगर सेना-अफसर ने पौलुस की बातों पर ध्यान देने के बजाय जहाज़ के कप्तान और मालिक की बात मानी। 12 वह बंदरगाह सर्दियाँ बिताने के लिए सही नहीं था, इसलिए ज़्यादातर लोगों ने सलाह दी कि हम यहाँ से आगे बढ़ें और किसी तरह फीनिक्स पहुँचकर वहाँ सर्दियाँ बिताएँ। फीनिक्स, क्रेते का एक ऐसा बंदरगाह है जिसके उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व दोनों तरफ जहाज़ आकर रुकते थे।

13 जब दक्षिणी हवा मंद-मंद बह रही थी, तो उन्हें लगा कि जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही हो जाएगा। उन्होंने लंगर उठाया और क्रेते के किनारे-किनारे जहाज़ आगे बढ़ाने लगे। 14 मगर कुछ ही समय बाद उत्तर-पूर्व से एक बड़ी आँधी चली, जो यूरकुलीन कहलाती है और इसने क्रेते द्वीप को अपनी चपेट में ले लिया। 15 जहाज़ तूफान में घिर गया और आँधी को चीरकर आगे न बढ़ सका। हमने लाचार होकर जहाज़ को हवा के रुख के साथ-साथ बहने दिया। 16 तब हम बहते-बहते कौदा नाम के एक छोटे द्वीप की आड़ में आ गए, फिर भी हम बहुत मुश्‍किल से जहाज़ के पिछले हिस्से में लगी डोंगी* को काबू में कर सके। 17 मगर डोंगी को ऊपर खींचने के बाद, नाविकों ने जहाज़ को ऊपर से नीचे तक रस्सों से बाँध दिया और सुरतिस* में धँस जाने के डर से उन्होंने पाल उतार दिया और जहाज़ को बहने दिया। 18 जहाज़ आँधी में बुरी तरह हिचकोले खा रहा था इसलिए अगले दिन नाविक जहाज़ को हलका करने के लिए समुंदर में माल फेंकने लगे। 19 तीसरे दिन उन्होंने अपने ही हाथों से पाल चढ़ाने के रस्से समुंदर में फेंक दिए।

20 कई दिनों तक न सूरज निकला, न तारे दिखायी दिए, न ही इस ज़बरदस्त आँधी के थपेड़े थम रहे थे। हमारे बचने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। 21 बहुत दिनों से किसी ने कुछ नहीं खाया था। पौलुस ने उनके बीच खड़े होकर कहा, “सज्जनो, तुम्हें मेरी बात मान लेनी थी और क्रेते से आगे सफर नहीं करना चाहिए था, तब तुम्हें यह तकलीफ और नुकसान नहीं झेलना पड़ता।+ 22 पर अब भी मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि हिम्मत रखो, क्योंकि तुममें से एक की भी जान नहीं जाएगी, सिर्फ जहाज़ का नुकसान होगा। 23 क्योंकि मैं जिस परमेश्‍वर का हूँ और जिसकी पवित्र सेवा करता हूँ, उसका एक स्वर्गदूत+ रात को मेरे पास आया था 24 और उसने मुझसे कहा, ‘पौलुस, मत डर। तू सम्राट के सामने ज़रूर खड़ा होगा+ और देख, परमेश्‍वर तेरी वजह से उन सबकी भी जान बचाएगा जो तेरे साथ सफर कर रहे हैं।’ 25 इसलिए लोगो, हिम्मत रखो क्योंकि मुझे परमेश्‍वर पर विश्‍वास है कि जैसा मुझे बताया गया है बिलकुल वैसा ही होगा। 26 मगर हमारा जहाज़ एक द्वीप के किनारे+ जाकर टूट जाएगा।”

27 जब 14वीं रात हुई और हम अद्रिया सागर में हिचकोले खा रहे थे, तो आधी रात को नाविकों को लगने लगा कि वे किसी तट के पास पहुँच गए हैं। 28 और जब उन्होंने पानी की गहराई नापी, तो पाया कि वह 36 मीटर* गहरा है और थोड़ी दूर जाकर फिर से नापने पर पाया कि 27 मीटर* गहरा है। 29 और इस डर से कि हम कहीं चट्टानों से न जा टकराएँ, उन्होंने जहाज़ के पिछले हिस्से से चार लंगर डाले और दिन निकलने का इंतज़ार करने लगे। 30 मगर जब नाविकों ने जहाज़ से निकलकर भागने के लिए, आगे के हिस्से से लंगर डालने के बहाने डोंगी को नीचे समुंदर में उतारा, 31 तो पौलुस ने सेना-अफसर और सैनिकों से कहा, “अगर ये आदमी जहाज़ में नहीं रहे, तो तुम भी नहीं बच पाओगे।”+ 32 तब सैनिकों ने डोंगी के रस्से काट दिए और उसे समुंदर में गिर जाने दिया।

33 जब दिन निकलने पर था, तो पौलुस उन्हें समझाने लगा कि वे कुछ खा लें। उसने कहा, “तुम्हें इंतज़ार करते-करते आज 14वाँ दिन हो गया है और इतने दिनों से तुमने कुछ नहीं खाया है। 34 इसलिए मेरी मानो, कुछ खा लो। मैं तुम्हारे ही भले के लिए कह रहा हूँ क्योंकि तुम में से किसी का बाल भी बाँका नहीं होगा।” 35 यह कहने के बाद उसने सबके सामने एक रोटी लेकर परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और उसे तोड़कर खाने लगा। 36 तब उन सबको हिम्मत मिली और वे भी खाने लगे। 37 जहाज़ में हम सबको मिलाकर 276 लोग थे। 38 जब उन्होंने जी-भरकर खा लिया तो वे जहाज़ को हलका करने के लिए गेहूँ समुंदर में फेंकने लगे।+

39 जब दिन निकला तो वे उस जगह को पहचान न सके,+ मगर उन्हें एक खाड़ी और उसका किनारा नज़र आया। उन्होंने ठान लिया कि हम किसी तरह जहाज़ को किनारे ले जाकर लगा देंगे। 40 इसलिए उन्होंने लंगर के रस्से काट दिए और उन्हें समुंदर में गिरा दिया। और जहाज़ को खेनेवाले पतवारों के बंधन ढीले किए और आगे का पाल चढ़ाकर हवा के रुख में किनारे की तरफ बढ़ चले। 41 उनका जहाज़ रेत के ऐसे ढेर पर जा टिका जो दो समुंदरों की लहरों के टकराने से बना था। जहाज़ रेत में धँस गया और उसका अगला हिस्सा रेत में गड़ गया और हिल न सका, जबकि जहाज़ का पिछला हिस्सा लहरों के थपेड़ों से बुरी तरह टूटने लगा।+ 42 यह देखकर सैनिकों ने तय किया कि वे कैदियों को मार डालेंगे ताकि कोई भी तैरकर भाग न सके। 43 लेकिन सेना-अफसर ने पौलुस को बचाने के इरादे से उन्हें ऐसा करने से रोका। उसने हुक्म दिया कि जो तैर सकते हैं वे समुंदर में कूद जाएँ और किनारे पर पहले पहुँच जाएँ 44 और बाकी लोग जहाज़ के तख्तों और दूसरी चीज़ों के सहारे किनारे पहुँच जाएँ। इस तरह सब लोग किनारे पर सही-सलामत पहुँच गए।+

28 जब हम सही-सलामत किनारे पहुँच गए, तो हमें मालूम हुआ कि उस द्वीप का नाम माल्टा है।+ 2 उस द्वीप के लोगों* ने हम पर अनोखी कृपा* की और हमारी बहुत मदद की। उन्होंने हमारे लिए आग जलायी क्योंकि बारिश हो रही थी और बहुत ठंड थी। 3 जब पौलुस ने लकड़ियों का एक गट्ठर बटोरकर आग पर रखा, तो गरमी की वजह से गट्ठर के अंदर से एक ज़हरीला साँप निकला और पौलुस के हाथ से लिपट गया। 4 जब द्वीप के लोगों* ने देखा कि एक ज़हरीला साँप उसके हाथ से लटक रहा है, तो वे एक-दूसरे से कहने लगे, “यह आदमी ज़रूर कोई खूनी है। यह समुंदर से तो बच गया मगर इंसाफ* ने इसकी जान नहीं बख्शी।” 5 पौलुस ने हाथ झटककर साँप को आग में झोंक दिया मगर पौलुस को कुछ नहीं हुआ। 6 फिर भी लोग उम्मीद कर रहे थे कि पौलुस का शरीर सूज जाएगा या वह अचानक गिरकर मर जाएगा। उन्होंने काफी देर तक इंतज़ार किया और जब उन्होंने देखा कि उसके साथ कुछ बुरा नहीं हुआ है, तो उन्होंने अपनी राय बदल दी और कहने लगे कि यह ज़रूर कोई देवता है।

7 वहीं पास में द्वीप के प्रधान पुबलियुस की ज़मीनें थीं। उसने बड़े प्यार से हमारा स्वागत किया और तीन दिन तक हमारी खातिरदारी की। 8 पुबलियुस का पिता बिस्तर पर बीमार पड़ा था। उसे बुखार था और पेचिश हो गयी थी। पौलुस उसके पास गया और उसने प्रार्थना की, उस पर अपने हाथ रखे और उसे ठीक किया।+ 9 जब ऐसा हुआ, तो द्वीप के बाकी बीमार लोग भी पौलुस के पास आने लगे और ठीक हुए।+ 10 फिर उन्होंने हमें कई तोहफे देकर हमारा सम्मान किया और जब हम जहाज़ पर चढ़कर जाने लगे, तो उन्होंने हमें ज़रूरत का ढेर सारा सामान दिया।

11 तीन महीने बाद हम सिकंदरिया के एक जहाज़ से रवाना हुए, जो पूरी सर्दी उसी द्वीप पर रुका हुआ था। उस जहाज़ के सामने की तरफ “ज़्यूस के बेटों” की निशानी बनी हुई थी। 12 फिर हम सुरकूसा के बंदरगाह में लंगर डालकर तीन दिन वहीं रहे। 13 वहाँ से हम रवाना हुए और रेगियुम पहुँचे। एक दिन बाद दक्षिणी हवा चली और हम अगले ही दिन पुतियुली पहुँच गए। 14 यहाँ हमें मसीही भाई मिले और उन्होंने हमसे बिनती की कि हम उनके यहाँ सात दिन ठहरें। इसके बाद हम रोम की तरफ निकल पड़े। 15 जब भाइयों ने हमारे आने की खबर सुनी, तो वे हमसे मिलने अपियुस के बाज़ार तक और तीन सराय तक आए। भाइयों को देखते ही पौलुस ने परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी।+ 16 आखिरकार जब हम रोम पहुँचे, तो पौलुस को अकेले रहने की इजाज़त मिली और उस पर पहरा देने के लिए एक सैनिक ठहराया गया।

17 तीन दिन बाद उसने यहूदियों के खास आदमियों को अपने यहाँ बुलाया। जब वे इकट्ठा हुए, तो वह उनसे कहने लगा, “भाइयो, मैंने अपने लोगों या अपने पुरखों के रीति-रिवाज़ों के खिलाफ कुछ नहीं किया।+ फिर भी मुझे यरूशलेम में कैदी बनाकर रोमियों के हाथ सौंप दिया गया।+ 18 उन्होंने मामले की जाँच करने के बाद+ मुझे छोड़ देना चाहा क्योंकि मुझे मौत की सज़ा देने के लिए उन्हें मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।+ 19 मगर जब यहूदियों ने एतराज़ जताया, तो मुझे मजबूरन सम्राट से फरियाद करनी पड़ी,+ लेकिन मेरा इरादा यह नहीं था कि अपनी जाति पर कोई दोष लगाऊँ। 20 इसीलिए मैंने तुम्हें बुलाने और तुमसे बात करने की बिनती की थी, क्योंकि इसराएल को जिसकी आशा थी उसकी वजह से मैं इन ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ हूँ।”+ 21 उन्होंने पौलुस से कहा, “हमें तेरे बारे में न तो यहूदिया से चिट्ठियाँ मिली हैं, न ही वहाँ से आए किसी यहूदी भाई ने तेरे बारे में खबर दी या कुछ बुरा कहा। 22 मगर हमें लगता है कि जो भी तेरे विचार हैं वे तुझी से सुनना सही होगा, क्योंकि जहाँ तक हमें इस गुट के बारे में मालूम हुआ है,+ सब जगह लोग इसके खिलाफ ही बात करते हैं।”+

23 उन्होंने उसके साथ एक दिन तय किया और उसके ठहरने की जगह पर भारी तादाद में इकट्ठा हुए। पौलुस ने सुबह से शाम तक उन्हें परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दी और समझाता रहा। वह मूसा के कानून+ और भविष्यवक्‍ताओं की किताबों से यीशु के बारे में दलीलें देकर उन्हें कायल करता रहा।+ 24 उनमें से कुछ लोगों ने उसकी बातों पर यकीन किया मगर दूसरों ने नहीं। 25 उनके बीच मतभेद हो गया इसलिए वे वहाँ से जाने लगे। तब पौलुस ने उनसे एक और बात कही,

“पवित्र शक्‍ति ने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए तुम्हारे पुरखों से बिलकुल सही कहा था, 26 ‘जाकर इन लोगों से कह, “तुम लोग सुनोगे मगर सुनते हुए भी बिलकुल नहीं समझोगे। और देखोगे मगर देखते हुए भी बिलकुल नहीं देख पाओगे।+ 27 क्योंकि इन लोगों का मन सुन्‍न हो चुका है। वे अपने कानों से सुनते तो हैं, मगर कुछ करते नहीं। उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली हैं ताकि न वे कभी अपनी आँखों से देखें, न अपने कानों से सुनें और न कभी उनका मन इसे समझे और न वे पलटकर लौट आएँ और मैं उन्हें चंगा करूँ।”’+ 28 इसलिए तुम जान लो कि परमेश्‍वर की तरफ से मिलनेवाले इस उद्धार का संदेश, गैर-यहूदियों के पास भेजा गया है+ और वे इसे ज़रूर सुनेंगे।”+ 29* —

30 पौलुस पूरे दो साल तक किराए के मकान में रहा+ और जितने भी लोग उसके यहाँ आते उनका वह प्यार से स्वागत करता रहा। 31 वह उनको परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह के बारे में बेझिझक* और बिना किसी रुकावट के सिखाता रहा।+

यानी ठहराए हुए दिनों।

या “कोनों तक।”

या “भीड़ की।”

शा., “अंदर आता था और बाहर जाता था।”

अति. क5 देखें।

या “माना गया,” यानी बाकी 11 के बराबर समझा गया।

या “जन्म की भाषा।”

या “मीठी।”

यानी सुबह करीब 9 बजे।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “मकसद।”

या शायद, “रस्सों।”

अति. क5 देखें।

या “अपनी आँखों के सामने।”

शा., “मेरा शरीर।”

या “हेडीज़।” शब्दावली देखें।

या “अपने मुख के सामने।”

या “हेडीज़।” शब्दावली देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

यानी दोपहर करीब 3 बजे।

शा., “दया के दान।”

शा., “यहोवा के मुख से।” अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “यीशु की मिसाल देकर मरे हुओं के जी उठने का ऐलान कर रहे थे।”

या “गिरफ्तार कर।”

या “निडर।”

या “अनपढ़।” वे सचमुच में अनपढ़ नहीं थे बल्कि उन्होंने कभी रब्बियों के स्कूल में पढ़ाई नहीं की थी।

या “चिन्ह।”

या “बातों पर गहराई से विचार कर।”

अति. क5 देखें।

या “उसके मसीह।”

अति. क5 देखें।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

अति. क5 देखें।

या “गिरफ्तार कर।”

अति. क5 देखें।

या “इस जीवन।”

या “पेड़।”

या “पिटवाया।”

या “बुरा सलूक करेंगे।”

या शायद, “उसी तरह याकूब का खतना किया।”

या “कुलपिता।”

या “अनाज।”

या “परमेश्‍वर की नज़र में सुंदर।”

या “दूध पिलाया।”

या “उसने फैसला किया।”

या “का हाल देख आए।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।

अति. क5 देखें।

या शायद, “एक शहर।”

अति. क5 देखें।

शा., “तू कड़वा पित्त है।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “दरबारी।”

अति. क3 देखें।

अति. क5 देखें।

या “बाँधकर।”

शा., “बाँध ले; जेल में डाल दे।”

या “वह मेरा चुना हुआ पात्र है।”

शा., “उन्हें बाँधकर।”

अति. क5 देखें।

यूनानी नाम दोरकास और अरामी नाम तबीता, दोनों का मतलब “हिरनी” है।

या “शतपति,” जिसकी कमान में 100 सैनिक होते थे।

या “टोली,” 600 सैनिकों से बनी रोमी टुकड़ी।

यानी दोपहर करीब 3 बजे।

यानी दोपहर करीब 12 बजे।

या “उस पर बेसुधी छा गयी।”

शा., “एक तरह का बरतन।”

शा., “चार-पैरोंवाले प्राणी।”

शा., “बरतन।”

या “दंडवत।”

यानी दोपहर करीब 3 बजे।

अति. क5 देखें।

शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।

या “पेड़।”

या “को दिखने दिया।”

या “वफादार जन।”

शा., “दूसरी ज़बान।”

या “झगड़ने।”

शा., “एक तरह का बरतन।”

या “चार-पैरोंवाले प्राणी।”

या “परमेश्‍वर का रास्ता रोकनेवाला।”

या “और एतराज़ नहीं किया।”

अति. क5 देखें।

या “मुकदमे के लिए बाहर।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “झगड़ा करने पर उतारू था।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

शा., “नीगर।”

अति. क5 देखें।

या “सरेआम सेवा करने।”

यानी यूहन्‍ना मरकुस।

या “उनका मददगार था।”

शब्दावली देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

यानी यूहन्‍ना मरकुस।

शा., “बीज।”

शा., “शासकों।”

या “पेड़।”

या “स्मारक कब्र।”

या “परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी की।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “फूलों के ताज।”

अति. क5 देखें।

या “काफी बहस।”

या “पतरस।”

या “छप्पर; घराना।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “मेरी राय।”

यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।

या “ऐसे जानवर का माँस जिसका खून अच्छी तरह नहीं बहाया जाता।”

या “ऐसे जानवर का माँस जिसका खून अच्छी तरह नहीं बहाया जाता।”

यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।

या “अलविदा।”

अति. क3 देखें।

अति. क5 देखें।

या शायद, “हर हाल में।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “के बीच से।”

या “बैंजनी रंग की डाई।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “उन्होंने बिना किसी मुकदमे के।”

यूनानी में “कैसर।”

या “आनेवाले।”

या “धार्मिक।”

या “गारंटी देने।”

या “उन्हें दलीलें देकर समझाता।”

यानी सभा-घर।

शब्दावली देखें।

अति. क5 देखें।

ज़ाहिर है कि यह यरूशलेम है।

अति. क5 देखें।

या “ज़बानी तौर पर सिखाया गया था।”

अति. क5 देखें।

शा., “रोटी तोड़ी।”

या “तुम्हारे भले के लिए।”

या “के मकसद।”

या “बंदरगाह की तरफ।”

या “दिल।”

अति. क5 देखें।

या “ऐसे जानवर का माँस जिसका खून अच्छी तरह नहीं बहाया जाता।”

यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।

या “मुझ पर बेसुधी छा गयी।”

या “बिना किसी मुकदमे के।”

या “सफेदी पुती दीवार।”

या “शपथ।”

या “शपथ।”

यानी रात करीब 9 बजे।

शा., “महामारी।”

अति. क3 देखें।

या “निर्दोष।”

यूनानी में “कैसर।”

या “अपने धर्म को लेकर।”

रोमी सम्राट की उपाधि।

शा., “अंकुश पर लात मारकर।”

या “इंसानियत के नाते कृपा।”

एक छोटी नाव जो जान बचाने के काम आती।

शब्दावली देखें।

शा., “20 पुरसा।” अति. ख14 देखें।

शा., “15 पुरसा।” अति. ख14 देखें।

या “दूसरी भाषा बोलनेवालों।”

या “इंसानियत के नाते कृपा।”

या “दूसरी भाषा बोलनेवाले।”

यूनानी में डायकी। शायद यह शब्द उस देवी के लिए इस्तेमाल हुआ है जिसे बदला चुकाकर इंसाफ देनेवाली माना जाता था। या शायद यहाँ न्याय के गुण की बात की गयी है।

अति. क3 देखें।

या “निडर होकर।”

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