दूसरा राजा
1 अहाब की मौत के बाद मोआब देश+ ने इसराएल से बगावत की।
2 उसी दौरान अहज्याह सामरिया में अपने महल की छत के जंगले से गिर पड़ा और घायल हो गया। इसलिए उसने अपने दूतों को यह कहकर भेजा, “तुम जाकर एक्रोन+ के देवता बाल-जबूब से पूछो कि मैं बिस्तर से उठूँगा या नहीं।”+ 3 मगर यहोवा के एक स्वर्गदूत ने तिशबे के रहनेवाले एलियाह*+ से कहा, “तू जाकर सामरिया के राजा के दूतों से मिल और उन्हें यह संदेश दे: ‘क्या इसराएल में कोई परमेश्वर नहीं है जो तू एक्रोन के देवता बाल-जबूब से पूछने के लिए दूत भेज रहा है?+ 4 इसलिए यहोवा ने कहा है, “तू इस बिस्तर से नहीं उठेगा, तू ज़रूर मर जाएगा।”’” तब एलियाह उन दूतों से मिलने निकल पड़ा।
5 जब राजा के दूत उसके पास लौट आए तो उसने फौरन उनसे पूछा, “तुम लोग वापस क्यों आ गए?” 6 उन्होंने कहा, “एक आदमी हमसे मिलने आया और उसने कहा, ‘जिस राजा ने तुम्हें भेजा है, उसके पास लौट जाओ और उससे कहो, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘क्या इसराएल में कोई परमेश्वर नहीं है जो तू एक्रोन के देवता बाल-जबूब से पूछने के लिए दूत भेज रहा है? इसलिए तू इस बिस्तर से नहीं उठेगा, तू ज़रूर मर जाएगा।’”’”+ 7 राजा ने उनसे पूछा, “जिस आदमी ने आकर तुमसे यह बात कही, वह दिखने में कैसा था?” 8 उन्होंने कहा, “वह आदमी रोएँदार कपड़ा+ और कमर पर चमड़े का पट्टा पहने हुए था।”+ यह सुनते ही राजा ने कहा, “वह तिशबे का रहनेवाला एलियाह है।”
9 तब राजा ने 50 सैनिकों के एक अधिकारी को उसके 50 आदमियों के साथ एलियाह के पास भेजा। जब वह अधिकारी एलियाह के पास गया तो वह एक पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ था। अधिकारी ने एलियाह से कहा, “हे सच्चे परमेश्वर के सेवक,+ राजा ने कहा है, ‘नीचे उतर आ।’” 10 मगर एलियाह ने उससे कहा, “अगर मैं परमेश्वर का सेवक हूँ, तो आसमान से आग बरसे+ और तुझे और तेरे 50 आदमियों को भस्म कर दे।” तब आसमान से आग बरसी और वह अधिकारी और उसके 50 आदमी भस्म हो गए।
11 तब राजा ने 50 सैनिकों के एक और अधिकारी को उसके 50 आदमियों के साथ भेजा। उसने एलियाह के पास जाकर कहा, “हे सच्चे परमेश्वर के सेवक, राजा ने कहा है, ‘जल्दी नीचे आ।’” 12 मगर एलियाह ने कहा, “अगर मैं सच्चे परमेश्वर का सेवक हूँ, तो आसमान से आग बरसे और तुझे और तेरे 50 आदमियों को भस्म कर दे।” तब परमेश्वर ने आसमान से आग बरसायी और वह अधिकारी और उसके 50 आदमी भस्म हो गए।
13 इसके बाद राजा ने तीसरी बार 50 सैनिकों के एक अधिकारी को उसके 50 आदमियों के साथ भेजा। यह तीसरा अधिकारी ऊपर चढ़कर एलियाह के पास गया और उसके सामने घुटनों के बल झुका और रहम की भीख माँगने लगा, “हे सच्चे परमेश्वर के सेवक, मेरी और तेरे इन 50 सेवकों की जान तेरी नज़र में अनमोल ठहरे। 14 जैसे उन दो अधिकारियों और उनके 50 आदमियों पर आसमान से आग बरसी और उन्हें भस्म कर दिया, वैसे मेरे साथ मत होने दे। मेरी और तेरे इन 50 सेवकों की जान तेरी नज़र में अनमोल ठहरे।”
15 तब यहोवा के स्वर्गदूत ने एलियाह से कहा, “तू इसके साथ नीचे जा। उससे मत डर।” तब एलियाह उठकर अधिकारी के साथ नीचे उतरा और राजा के पास गया। 16 एलियाह ने राजा से कहा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘क्या इसराएल में कोई परमेश्वर नहीं है जो तूने एक्रोन+ के देवता बाल-जबूब से पूछने के लिए दूत भेजे?+ तूने इसराएल के परमेश्वर से क्यों नहीं पूछा? इसलिए तू जिस बिस्तर पर पड़ा है उससे कभी नहीं उठेगा। तू इसी पर मर जाएगा।’” 17 एलियाह ने यहोवा का जो संदेश सुनाया, बिलकुल वैसा ही हुआ। अहज्याह की मौत हो गयी। उसका कोई बेटा नहीं था इसलिए उसकी जगह यहोराम*+ राजा बना। जब यहोराम इसराएल का राजा बना तब यहूदा में यहोशापात के बेटे यहोराम+ के राज का दूसरा साल चल रहा था।
18 अहज्याह+ की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए उन सबका ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।
2 जब यहोवा एलियाह+ को एक आँधी के ज़रिए आसमान की तरफ उठा लेनेवाला था+ तो एलियाह और एलीशा+ गिलगाल+ से निकले। 2 एलियाह ने एलीशा से कहा, “तू यहीं ठहर जा क्योंकि यहोवा ने मुझे बेतेल जाने के लिए कहा है।” मगर एलीशा ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, मैं तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा।” इसलिए वे दोनों नीचे बेतेल+ गए। 3 बेतेल में भविष्यवक्ताओं के बेटे* एलीशा के पास आकर कहने लगे, “क्या तुझे पता है, आज यहोवा तेरे मालिक को तुझसे दूर ले जानेवाला है, तेरा मुखिया तुझसे जुदा होनेवाला है?”+ उसने कहा, “हाँ, मुझे पता है। तुम इस बारे में बात मत करो।”
4 फिर एलियाह ने एलीशा से कहा, “एलीशा, तू यहीं ठहर जा क्योंकि यहोवा ने मुझे यरीहो जाने के लिए कहा है।”+ मगर उसने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, मैं तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा।” इसलिए वे दोनों यरीहो गए। 5 यरीहो में भविष्यवक्ताओं के बेटे थे, वे एलीशा के पास आकर कहने लगे, “क्या तुझे पता है, आज यहोवा तेरे मालिक को तुझसे दूर ले जानेवाला है, तेरा मुखिया तुझसे जुदा होनेवाला है?” उसने कहा, “हाँ, मुझे पता है। तुम इस बारे में बात मत करो।”
6 फिर एलियाह ने एलीशा से कहा, “तू यहीं ठहर जा क्योंकि यहोवा ने मुझे यरदन नदी के पास जाने के लिए कहा है।” मगर उसने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, मैं तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा।” इसलिए वे दोनों आगे गए। 7 भविष्यवक्ताओं के बेटों में से 50 आदमी भी उनके साथ गए। जब एलियाह और एलीशा यरदन नदी के पास पहुँचे तो वे भविष्यवक्ता दूर खड़े उन्हें देखने लगे। 8 एलियाह ने अपनी पोशाक*+ उतारी और उसे मोड़कर पानी पर मारा और नदी का पानी दायीं और बायीं तरफ हटकर दो हिस्सों में बँट गया। तब वे दोनों बीच में सूखी ज़मीन पर चलकर नदी के उस पार गए।+
9 जैसे ही वे दोनों उस पार पहुँचे, एलियाह ने एलीशा से कहा, “इससे पहले कि परमेश्वर मुझे तुझसे दूर ले जाए, तू जो चाहे मुझसे माँग ले।” एलीशा ने कहा, “परमेश्वर ने तुझे जो शक्ति* दी है+ क्या उसके दो हिस्से+ मुझे मिल सकते हैं?” 10 एलियाह ने कहा, “तूने एक मुश्किल चीज़ माँगी है। जब मुझे तुझसे दूर ले जाया जाएगा, तब अगर तू मुझे देखेगा तो तूने जो माँगा है वह तुझे मिल जाएगा। लेकिन अगर तू मुझे नहीं देखेगा तो तुझे वह नहीं मिलेगा।”
11 जब वे दोनों बातें करते हुए साथ-साथ चल रहे थे, तब अचानक एक रथ और कुछ घोड़े दिखायी पड़े जो आग की तरह तेज़ चमक रहे थे+ और उन्होंने उन दोनों को अलग कर दिया। फिर एलियाह एक आँधी में आसमान की तरफ ऊपर उठने लगा।+ 12 एलीशा जब यह सब देख रहा था तो वह ज़ोर-ज़ोर से कह रहा था, “हे मेरे पिता, हे मेरे पिता! देख, इसराएल का रथ और उसके घुड़सवार!”+ जब एलियाह उसकी आँखों से ओझल हो गया, तो उसने अपने कपड़े फाड़कर दो टुकड़े कर दिए।+ 13 इसके बाद उसने एलियाह की पोशाक*+ उठायी जो नीचे गिर गयी थी। फिर वह वापस यरदन नदी के किनारे गया और वहाँ खड़ा हो गया। 14 उसने एलियाह की पोशाक ली और उसे पानी पर मारा और कहा, “एलियाह का परमेश्वर यहोवा कहाँ है?” जब उसने पोशाक पानी पर मारी, तो नदी का पानी दायीं और बायीं तरफ हटकर दो हिस्सों में बँट गया और एलीशा बीच से चलता हुआ उस पार गया।+
15 जब यरीहो के भविष्यवक्ताओं ने दूर से उसे देखा तो उन्होंने कहा, “एलियाह की शक्ति अब एलीशा में आ गयी है।”+ फिर वे उससे मिलने उसके पास गए और उन्होंने उसके सामने ज़मीन पर गिरकर उसे प्रणाम किया। 16 उन्होंने उससे कहा, “देख, अब तेरी सेवा में 50 काबिल आदमी हाज़िर हैं। इजाज़त हो तो वे जाकर तेरे मालिक को ढूँढ़ लाएँगे। हो सकता है यहोवा की पवित्र शक्ति* उसे उठाकर ले गयी हो और उसे किसी पहाड़ पर या किसी घाटी में छोड़ दिया हो।”+ मगर एलीशा ने कहा, “उन्हें मत भेजो।” 17 फिर भी वे उससे बार-बार कहते रहे, इसलिए वह उलझन में पड़ गया और उसने कहा, “ठीक है, भेज दो उन्हें।” उन्होंने एलियाह को ढूँढ़ने 50 आदमियों को भेजा। वे तीन दिन तक उसे ढूँढ़ते रहे, मगर वह उन्हें नहीं मिला। 18 वे एलीशा के पास लौट आए जो उस वक्त यरीहो+ में ठहरा था। उसने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें जाने से मना किया था न!”
19 कुछ समय बाद यरीहो शहर के आदमियों ने एलीशा से कहा, “मालिक, तू देख सकता है कि हमारा शहर कितनी अच्छी जगह पर बसा है।+ मगर यहाँ का पानी खराब है और ज़मीन बंजर है।”* 20 एलीशा ने कहा, “एक नयी कटोरी लो और उसमें नमक डालकर मेरे पास लाओ।” उन्होंने एक कटोरी में नमक डालकर उसे दिया। 21 एलीशा पानी के सोते के पास गया और उसने उस पर नमक फेंककर+ कहा, “यहोवा कहता है, ‘मैंने इस पानी को पीने लायक कर दिया है। अब से इसकी वजह से न तो किसी की मौत होगी, न कोई औरत बाँझ रहेगी।’”* 22 जैसे एलीशा ने कहा था, वहाँ का पानी पीने लायक हो गया और आज तक ऐसा ही है।
23 इसके बाद एलीशा वहाँ से बेतेल गया। जब वह बेतेल की तरफ ऊपर जा रहा था तो शहर से कुछ लड़के बाहर आए और उसकी खिल्ली उड़ाने लगे,+ “ओ गंजे! जा ऊपर जा! ओ गंजे, जा ऊपर जा!” 24 कुछ देर बाद, एलीशा ने मुड़कर उनकी तरफ देखा और यहोवा के नाम से उन्हें शाप दिया। तब जंगल से दो रीछनियाँ+ निकलकर आयीं और उनमें से 42 बच्चों को फाड़ डाला।+ 25 फिर एलीशा वहाँ से आगे बढ़ता हुआ करमेल पहाड़+ पर गया और वहाँ से सामरिया लौट गया।
3 जब अहाब का बेटा यहोराम+ इसराएल का राजा बना, तब यहूदा में राजा यहोशापात के राज का 18वाँ साल चल रहा था। यहोराम ने सामरिया में रहकर 12 साल राज किया। 2 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। मगर वह उस हद तक नहीं गया जिस हद तक उसके माता-पिता ने बुरे काम किए थे, क्योंकि उसने बाल का वह पूजा-स्तंभ हटा दिया जो उसके पिता ने बनवाया था।+ 3 लेकिन वह ऐसे पाप करने में लगा रहा जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+ वह उनसे बाज़ नहीं आया।
4 मोआब का राजा मेशा बड़ी तादाद में भेड़ें रखता था। वह इसराएल के राजा को नज़राने में 1,00,000 मेम्ने और ऐसे 1,00,000 मेढ़े देता था जिनका ऊन न कतरा गया हो। 5 जैसे ही अहाब की मौत हो गयी,+ मोआब का राजा इसराएल के राजा से बगावत करने लगा।+ 6 इसलिए राजा यहोराम सामरिया से निकला और उसने युद्ध के लिए सारे इसराएल को इकट्ठा किया। 7 साथ ही उसने यहूदा के राजा यहोशापात को यह संदेश भेजा: “मोआब के राजा ने मुझसे बगावत की है। क्या तू उससे युद्ध करने मेरे साथ चलेगा?” यहोशापात ने कहा, “मैं ज़रूर चलूँगा।+ हम दोनों एक हैं। मेरे लोग तेरे ही लोग हैं। मेरे घोड़े तेरे घोड़े हैं।”+ 8 तब यहोशापात ने पूछा, “हमें किस रास्ते से जाना चाहिए?” यहोराम ने कहा, “एदोम के वीराने के रास्ते से।”
9 तब इसराएल का राजा, यहूदा और एदोम+ के राजा के साथ निकल पड़ा। सात दिन तक घुमावदार रास्ते से सफर करने के बाद, उनके पीछे-पीछे चलनेवाले सैनिकों और पालतू जानवरों के लिए पानी नहीं बचा। 10 इसराएल के राजा ने कहा, “यह कैसी मुसीबत है! लगता है यहोवा ने हम तीनों राजाओं को इसीलिए इकट्ठा किया कि हमें मोआब के हाथ में कर दे!” 11 यहोशापात ने कहा, “क्या यहाँ यहोवा का कोई भविष्यवक्ता नहीं है जिससे हम यहोवा की मरज़ी जान सकें?”+ इसराएल के राजा के एक सेवक ने कहा, “एक भविष्यवक्ता है, शापात का बेटा एलीशा+ जो एलियाह के हाथ धुलाने के लिए पानी डालता था।”*+ 12 यहोशापात ने कहा, “वह हमें यहोवा की मरज़ी बता सकता है।” तब इसराएल का राजा और यहोशापात और एदोम का राजा, एलीशा के पास गए।
13 एलीशा ने इसराएल के राजा से कहा, “तेरा मुझसे क्या काम?+ जा, अपने पिता के भविष्यवक्ताओं और अपनी माँ के भविष्यवक्ताओं के पास जा।”+ मगर इसराएल के राजा ने कहा, “नहीं, मैं नहीं जाऊँगा क्योंकि हम तीनों राजाओं को यहोवा ने इकट्ठा किया है ताकि वह हमें मोआब के हाथ में कर दे।” 14 एलीशा ने कहा, “सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपथ जिसकी मैं सेवा करता हूँ,* अगर मैं यहूदा के राजा यहोशापात+ का आदर नहीं करता, तो मैं तेरी तरफ कोई ध्यान नहीं देता,+ तुझे देखता तक नहीं। 15 अब जाओ, जाकर एक सुरमंडल बजानेवाले* को लाओ।”+ जब सुरमंडल बजानेवाला आकर साज़ बजाने लगा, तो यहोवा की शक्ति* एलीशा पर आयी।+ 16 एलीशा ने कहा, “यहोवा कहता है, ‘इस घाटी में जगह-जगह खाई खोदो। 17 मैं यहोवा कहता हूँ, “तुम्हें न आँधी चलती दिखायी देगी और न बारिश होती नज़र आएगी, फिर भी यह घाटी पानी से भर जाएगी।+ तुम और तुम्हारे सभी जानवर उससे पीएँगे।”’ 18 ऐसा करना यहोवा के लिए कोई बड़ी बात नहीं है।+ वह तो मोआब को भी तुम्हारे हाथ में कर देगा।+ 19 तुम उनके हर किलेबंद शहर+ को और हर बढ़िया शहर को नाश कर देना। तुम हर अच्छे पेड़ को काट डालना, उनके सभी सोते बंद कर देना और उनका हर उपजाऊ खेत पत्थरों से भरकर बरबाद कर देना।”+
20 अगले दिन सुबह अनाज के चढ़ावे के समय,+ एदोम देश की दिशा से अचानक पानी बहता हुआ आया और पूरी घाटी पानी से भर गयी।
21 जब सभी मोआबियों ने सुना कि राजा उनसे लड़ने आए हैं, तो उन्होंने अपने उन सभी आदमियों को इकट्ठा किया जो हथियार चला सकते थे।* वे देश की सीमा पर तैनात हुए। 22 जब वे सुबह जल्दी उठे, तो उस वक्त सूरज की रौशनी से घाटी का पानी चमक रहा था। उस पार जो मोआबी थे, उन्हें यह पानी खून जैसा लाल दिखायी दिया। 23 उन्होंने कहा, “यह तो खून है! ज़रूर उन राजाओं ने एक-दूसरे को तलवार से मार डाला होगा। मोआबियो, चलो उन्हें लूटकर आते हैं!”+ 24 जब मोआबी इसराएल की छावनी में आए, तो इसराएली उन्हें घात करने लगे। मोआबी उनसे भागने लगे,+ मगर इसराएलियों ने उनका पीछा किया। इसराएली मोआब की तरफ बढ़ने लगे और पूरे रास्ते उनको घात करते गए। 25 उन्होंने वहाँ के शहरों को ढा दिया और उनका हर उपजाऊ खेत पत्थरों से भर दिया। उन्होंने उनके पानी के सभी सोते बंद कर दिए+ और उनके सभी अच्छे-अच्छे पेड़ काट डाले।+ आखिर में सिर्फ कीर-हरासत+ शहर की पत्थर की दीवारें बच गयीं। फिर गोफन चलानेवाले सैनिकों ने उसे घेर लिया और ढा दिया।
26 जब मोआब के राजा ने देखा कि वह युद्ध हार गया है, तो उसने तलवारों से लैस 700 आदमी लिए और दुश्मन सेना को चीरकर एदोम के राजा तक पहुँचने की कोशिश की।+ मगर वह नाकाम रहा। 27 आखिरकार उसने अपने पहलौठे को लिया, जो उसकी राजगद्दी का वारिस था और शहरपनाह पर आग में उसकी बलि चढ़ा दी।+ तब इसराएल पर मोआबियों का क्रोध भड़क उठा। इसलिए इसराएल ने मोआब के राजा पर हमला करना छोड़ दिया और अपने देश लौट गया।
4 भविष्यवक्ताओं के बेटों+ में से एक आदमी की मौत हो गयी थी और उसकी विधवा एलीशा के पास आकर अपना दुखड़ा रोने लगी, “मेरे पति की मौत हो गयी है। तू अच्छी तरह जानता है कि तेरा सेवक हमेशा यहोवा का डर मानता था।+ उसने एक आदमी से कर्ज़ लिया था और अब वह आदमी मेरे दोनों बच्चों को दास बनाकर ले जाने आया है।” 2 एलीशा ने कहा, “मैं तेरी क्या मदद कर सकता हूँ? तेरे घर में क्या है?” उसने कहा, “तेरी दासी के घर में सुराही-भर* तेल के सिवा कुछ नहीं है।”+ 3 एलीशा ने कहा, “अपने सभी पड़ोसियों के पास जा और उनसे खाली बरतन माँगकर ला। जितने ज़्यादा बरतन माँग सकती है माँगकर ला। 4 इसके बाद तू अपने बेटों के साथ घर के अंदर जाना और दरवाज़ा बंद कर लेना। तू सभी बरतनों में तेल भरती जाना और भरे हुए बरतनों को एक तरफ रखती जाना।” 5 तब वह औरत वहाँ से चली गयी।
उसने अपने बेटों के साथ घर के अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया। उसके बेटे उसे बरतन ला-लाकर देते रहे और वह उन्हें भरती रही।+ 6 जब सारे बरतन भर गए तो उसने अपने एक बेटे से कहा, “एक और बरतन ला।”+ मगर बेटे ने कहा, “और बरतन नहीं है।” तब उसकी सुराही से तेल निकलना बंद हो गया।+ 7 फिर उस औरत ने सच्चे परमेश्वर के सेवक को यह सब बताया। उसने औरत से कहा, “अब जा और तेल बेचकर अपना सारा कर्ज़ चुका दे। जो पैसा बचेगा उससे तू अपना और अपने बेटों का गुज़ारा करना।”
8 एक दिन एलीशा शूनेम+ गया और वहाँ की एक नामी औरत उसे बहुत मनाने लगी कि वह उसके घर आकर खाना खाए।+ उसके बाद से जब भी वह वहाँ से गुज़रता उसके घर रुककर खाना खाता था। 9 एक बार उस औरत ने अपने पति से कहा, “परमेश्वर का यह खास सेवक अकसर यहाँ से गुज़रता है। 10 क्यों न हम अपने घर की छत पर उसके लिए एक छोटा-सा कमरा+ बनाएँ? हम उसके लिए एक पलंग, मेज़, कुर्सी और दीवट रख सकते हैं ताकि वह जब भी हमारे घर आए तो उस कमरे में रह सके।”+
11 एक दिन एलीशा उनके घर आया और लेटने के लिए छतवाले कमरे में गया। 12 उसने अपने सेवक गेहजी+ से कहा, “शूनेमी+ औरत को बुला।” गेहजी ने उस औरत को बुलाया और वह आकर एलीशा के सामने खड़ी हो गयी। 13 एलीशा ने गेहजी से कहा, “उससे कह, ‘तू हमारे लिए बहुत तकलीफ उठाती है।+ बता मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ?+ तू चाहे तो मैं राजा या उसके सेनापति से बात करके तेरी खातिर कुछ कर सकता हूँ।’”+ औरत ने कहा, “नहीं, मुझे कोई परेशानी नहीं है, मैं तो अपने लोगों के बीच चैन से रह रही हूँ।” 14 एलीशा ने गेहजी से पूछा, “तो फिर उसके लिए क्या किया जा सकता है?” गेहजी ने कहा, “उसका कोई बेटा नहीं है+ और उसका पति बूढ़ा हो चुका है।” 15 एलीशा ने फौरन कहा, “जा, उसे बुला।” गेहजी उस औरत को बुला लाया और वह आकर दरवाज़े के पास खड़ी हो गयी। 16 एलीशा ने औरत से कहा, “अगले साल इस समय तक तेरी गोद में एक बेटा होगा।”+ लेकिन औरत ने कहा, “मालिक, तू सच्चे परमेश्वर का सेवक है। अपनी दासी से झूठ मत बोल।”
17 मगर एलीशा की बात सच निकली। वह औरत गर्भवती हुई और अगले साल उसी समय के दौरान उसने एक बेटे को जन्म दिया, ठीक जैसे एलीशा ने कहा था। 18 जब बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तब एक दिन वह अपने पिता के पास गया जो खेत में कटाई करनेवालों के साथ था। 19 वहाँ वह अपने पिता से बार-बार कहने लगा, “मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है!” पिता ने अपने सेवक से कहा, “इसे उठाकर इसकी माँ के पास ले जा।” 20 तब सेवक उसे उठाकर उसकी माँ के पास ले गया। वह लड़का अपनी माँ की गोद में दोपहर तक बैठा रहा और फिर उसकी मौत हो गयी।+ 21 वह औरत अपने बेटे को उठाकर ऊपर ले गयी और उसे सच्चे परमेश्वर के सेवक के पलंग पर लिटा दिया।+ फिर वह दरवाज़ा बंद करके नीचे आयी। 22 उसने अपने पति को बुलवाया और कहा, “मैं अभी सच्चे परमेश्वर के सेवक के पास जाना चाहती हूँ। मेरे साथ एक सेवक को भेज और सफर के लिए एक गधा भी दे। मैं जल्दी जाकर लौट आऊँगी।” 23 मगर उसके पति ने कहा, “आज तो कोई नए चाँद+ या सब्त का दिन नहीं है। फिर तू क्यों उसके पास जाना चाहती है?” उसने कहा, “चिंता मत कर, सब ठीक है।” 24 औरत ने गधे पर काठी कसी और उस पर बैठकर अपने सेवक से कहा, “जल्दी-जल्दी हाँक। जब तक मैं न बोलूँ तब तक हाँकने में ढिलाई मत करना।”
25 वह औरत सच्चे परमेश्वर के सेवक से मिलने करमेल पहाड़ पर गयी। जैसे ही सच्चे परमेश्वर के सेवक ने उसे दूर से देखा, उसने अपने सेवक गेहजी से कहा, “देख, शूनेमी औरत आ रही है। 26 तू दौड़कर उसके पास जा और उसकी खैरियत पूछ और यह भी पूछ कि उसका पति और बच्चा ठीक तो है।” गेहजी के पूछने पर औरत ने कहा, “सब ठीक है।” 27 वह सच्चे परमेश्वर के सेवक एलीशा के पास गयी और उसने झट-से उसके पैर पकड़ लिए।+ तब गेहजी उसके पास आया कि उसे धक्का देकर हटा दे, मगर सच्चे परमेश्वर के सेवक ने कहा, “इसे छोड़ दे क्योंकि इस वक्त इसका मन बहुत दुखी है। यहोवा ने मुझे नहीं बताया है कि बात क्या है।” 28 तब औरत ने कहा, “मालिक, क्या मैंने तुझसे कभी बेटे के लिए मिन्नत की थी? क्या मैंने तुझसे नहीं कहा था, ‘मुझे झूठी आशा मत दे’?”+
29 एलीशा ने फौरन गेहजी से कहा, “अपनी पोशाक कमर पर कस+ और मेरी लाठी लेकर जल्दी से इस औरत के घर जा। रास्ते में अगर कोई मिले तो उसे दुआ-सलाम मत करना। अगर कोई तुझे दुआ-सलाम करे, तो उसे जवाब मत देना। जाकर मेरी यह लाठी लड़के के चेहरे पर रखना।” 30 इस पर लड़के की माँ ने एलीशा से कहा, “तुझे भी आना होगा। यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ, मैं ऐसे नहीं जाऊँगी।”+ इसलिए एलीशा भी उस औरत के साथ गया। 31 गेहजी उन दोनों से पहले चला गया था। उसने जाकर एलीशा की लाठी लड़के के चेहरे पर रखी, मगर लड़का हिला नहीं और न ही उसके मुँह से कोई आवाज़ आयी।+ गेहजी वापस एलीशा से मिलने निकल पड़ा और उससे मिलकर उसे बताया कि लड़का नहीं उठा।
32 जब एलीशा उस औरत के घर आया तो उसने देखा कि लड़के की लाश उसके पलंग पर पड़ी है।+ 33 एलीशा कमरे के अंदर गया और उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। वहाँ उन दोनों के सिवा और कोई न था। फिर वह यहोवा से प्रार्थना करने लगा।+ 34 इसके बाद वह बिस्तर पर जाकर लड़के के ऊपर लेट गया। उसने अपना मुँह लड़के के मुँह पर रखा, अपनी आँखें उसकी आँखों पर और अपनी हथेलियाँ उसकी हथेलियों पर रखीं। वह कुछ देर तक इसी तरह उसके ऊपर लेटा रहा। तब बच्चे का शरीर गरमाने लगा।+ 35 एलीशा उठा और कमरे में एक बार इधर से उधर चला। वह फिर से बिस्तर पर जाकर लड़के पर लेट गया। तब लड़के ने सात बार छींका और उसके बाद अपनी आँखें खोलीं।+ 36 एलीशा ने गेहजी को बुलाया और उससे कहा, “शूनेमी औरत को बुला।” गेहजी ने औरत को बुलाया और वह कमरे में एलीशा के पास गयी। एलीशा ने उससे कहा, “अपने बेटे को गोद में उठा ले।”+ 37 तब वह औरत एलीशा के पैरों पर गिर पड़ी और ज़मीन पर झुककर उसे प्रणाम किया। इसके बाद वह अपने बेटे को उठाकर ले गयी।
38 जब एलीशा गिलगाल लौटा तो वहाँ अकाल पड़ा हुआ था।+ जब भविष्यवक्ताओं के बेटे+ उसके सामने बैठे हुए थे तो एलीशा ने अपने सेवक से कहा,+ “हंडा चढ़ा दे और भविष्यवक्ताओं के बेटों के लिए शोरबा बना।” 39 उनमें से एक सब्ज़ियाँ लेने खेत गया। मगर जब उसे एक जंगली बेल दिखायी दी, तो उसने उसका फल तोड़ लिया और अपने कपड़े में भरकर ले आया। वह नहीं जानता था कि वह असल में क्या है। उसने उन्हें काटा और हंडे में डाल दिया। 40 बाद में शोरबा भविष्यवक्ताओं को परोसा गया। मगर जैसे ही उन्होंने मुँह में डाला वे चिल्ला पड़े, “यह तो ज़हर है ज़हर! सच्चे परमेश्वर के सेवक, यह ज़हर है!” वे उसे नहीं खा पाए। 41 तब एलीशा ने कहा, “थोड़ा आटा ले आओ।” उसने आटा हंडे में डाला और कहा, “अब यह सब लोगों को परोसो।” तब हंडे के शोरबे से कोई नुकसान नहीं हुआ।+
42 बाल-शालीशा+ से एक आदमी आया और उसने सच्चे परमेश्वर के सेवक को जौ की 20 रोटियाँ+ लाकर दीं। ये रोटियाँ जौ की पहली फसल से बनी थीं। वह एक थैला-भर नया अनाज भी लाया।+ एलीशा ने अपने सेवक से कहा, “यह सब लोगों को खाने के लिए दे।” 43 मगर सेवक ने कहा, “मैं यह 100 लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ?”+ एलीशा ने कहा, “तू यह लोगों को खाने के लिए दे क्योंकि यहोवा ने कहा है, ‘वे सब खाएँगे और उसके बाद कुछ बच भी जाएगा।’”+ 44 तब सेवक ने खाना सबको दिया और जैसे यहोवा ने कहा था, सबने खाया और खाने के बाद कुछ बच भी गया।+
5 सीरिया के राजा का सेनापति नामान एक मशहूर आदमी था। राजा उसका बहुत सम्मान करता था क्योंकि उसके ज़रिए यहोवा ने सीरिया को जीत दिलायी थी।* नामान एक वीर योद्धा था, इसके बावजूद कि उसे कोढ़ की बीमारी थी।* 2 सीरिया के सैनिक इसराएल में अकसर लूटमार करते थे। एक बार जब वे इसराएल से कुछ लोगों को बंदी बनाकर ले गए तो उनमें एक छोटी लड़की भी थी जो नामान की पत्नी की दासी बनी। 3 उस लड़की ने अपनी मालकिन से कहा, “अगर मेरा मालिक सामरिया के भविष्यवक्ता+ के पास जाए तो वह ठीक हो सकता है। वह भविष्यवक्ता ज़रूर उसका कोढ़ दूर कर देगा।”+ 4 इसलिए उसने* जाकर इसराएल की उस लड़की की बात अपने मालिक को बतायी।
5 सीरिया के राजा ने नामान से कहा, “तू अभी वहाँ जा। मैं इसराएल के राजा को एक खत भेजता हूँ।” तब नामान इसराएल के लिए निकल पड़ा। वह अपने साथ दस तोड़े* चाँदी, सोने के 6,000 टुकड़े और दस जोड़े कपड़े ले गया। 6 उसने इसराएल के राजा को वह खत दिया जिसमें लिखा था: “खत के साथ मैं अपने सेवक नामान को तेरे पास भेज रहा हूँ ताकि तू उसका कोढ़ दूर कर दे।” 7 जैसे ही इसराएल के राजा ने खत पढ़ा, उसने अपने कपड़े फाड़े और वह कहने लगा, “क्या मैं परमेश्वर हूँ? क्या ज़िंदगी और मौत देना मेरे हाथ में है?+ देखो तो उसे! इस आदमी को भेजकर कहता है मैं उसका कोढ़ ठीक कर दूँ। मुझे मालूम है, वह बस लड़ाई की चिंगारी भड़काना चाहता है।”
8 मगर जब सच्चे परमेश्वर के सेवक एलीशा ने सुना कि इसराएल के राजा ने अपने कपड़े फाड़े हैं तो उसने फौरन राजा के पास यह संदेश भेजा: “तूने अपने कपड़े क्यों फाड़े? मेहरबानी करके तू उस आदमी को मेरे पास आने दे ताकि वह जान जाए कि इसराएल में एक भविष्यवक्ता रहता है।”+ 9 तब नामान अपने घोड़ों और युद्ध-रथों को लेकर एलीशा के घर गया और द्वार पर खड़ा हुआ। 10 मगर एलीशा उससे मिलने बाहर नहीं आया बल्कि एक दूत के हाथ यह कहला भेजा, “जाकर यरदन नदी+ में सात बार+ डुबकी लगा, तब तेरा शरीर दुरुस्त हो जाएगा और तू शुद्ध हो जाएगा।” 11 मगर नामान गुस्से से भड़क उठा और यह कहकर वापस लौटने लगा, “मैंने सोचा था, वह बाहर आकर मुझसे मिलेगा और यहाँ खड़े होकर अपने परमेश्वर यहोवा का नाम पुकारेगा और मेरे कोढ़ पर अपना हाथ फेरकर उसे ठीक कर देगा। 12 क्या हमारे दमिश्क+ की अबाना और पर्पर नदी, इसराएल की सभी नदियों से बढ़कर नहीं हैं? क्या मैं उनमें डुबकी लगाकर शुद्ध नहीं हो सकता?” वह तमतमाता हुआ मुड़ा और वापस जाने लगा।
13 तब उसके सेवकों ने उसके पास आकर कहा, “मेरे पिता, अगर भविष्यवक्ता तुझे कोई मुश्किल काम करने को कहता तो क्या तू नहीं करता? फिर जब उसने इतना ही कहा है कि तू जाकर नदी में डुबकी लगा और शुद्ध हो जा, तो क्या तुझे यह आसान काम नहीं करना चाहिए?” 14 तब वह यरदन नदी पर गया और उसने सात बार उसमें डुबकी लगायी, ठीक जैसे सच्चे परमेश्वर के सेवक ने उससे कहा था।+ तब उसकी त्वचा एक छोटे लड़के की त्वचा जैसी हो गयी+ और वह शुद्ध हो गया।+
15 इसके बाद नामान अपने सेवकों की पूरी टोली के साथ वापस सच्चे परमेश्वर के सेवक के पास गया+ और उसके सामने खड़ा हुआ। उसने कहा, “अब मैं जान गया हूँ कि पूरी धरती पर सिर्फ इसराएल में ही परमेश्वर है, और कहीं नहीं।+ अब मेहरबानी करके अपने सेवक के हाथ से यह तोहफा* कबूल कर।” 16 मगर एलीशा ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ जिसकी मैं सेवा करता हूँ,* मैं यह तोहफा नहीं लूँगा।”+ नामान ने उसे बहुत मनाया, फिर भी उसने नहीं लिया। 17 आखिर में नामान ने कहा, “ठीक है, मगर तू अपने सेवक की एक गुज़ारिश पूरी कर। मुझे इस देश की ज़मीन की इतनी मिट्टी दे जितनी दो खच्चर उठा सकें, क्योंकि मैं अब से यहोवा को छोड़ किसी और ईश्वर को होम-बलि या कोई और बलि नहीं चढ़ाऊँगा। 18 लेकिन यहोवा तेरे सेवक को सिर्फ इस बात के लिए माफ कर दे: जब मेरा मालिक राजा, रिम्मोन देवता के मंदिर में जाकर उसके आगे दंडवत करता है तब वह मेरे हाथों का सहारा लेता है, इसलिए मुझे भी मंदिर में झुकना पड़ता है। जब मैं रिम्मोन के मंदिर में झुकूँगा तब यहोवा दया करके मुझे माफ कर दे।” 19 एलीशा ने कहा, “तू बेफिक्र होकर जा।” तब नामान वहाँ से चला गया। वह कुछ ही दूर तक गया था 20 कि यहाँ सच्चे परमेश्वर के सेवक+ एलीशा का सेवक गेहजी+ मन-ही-मन सोचने लगा, ‘मेरे मालिक ने यह क्या किया! सीरिया के नामान+ का तोहफा लिए बिना ही उसे भेज दिया! यहोवा के जीवन की शपथ, मैं अभी नामान के पीछे भागकर जाऊँगा और उससे कुछ लेकर ही आऊँगा।’ 21 गेहजी नामान से मिलने दौड़ा। जब नामान ने देखा कि उसके पीछे कोई भागता हुआ आ रहा है तो वह उससे मिलने के लिए अपने रथ से नीचे उतरा। उसने गेहजी से पूछा, “सब ठीक तो है?” 22 उसने कहा, “हाँ, सब ठीक है। मेरे मालिक ने तेरे लिए यह संदेश भेजा है: ‘देख! अभी-अभी एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के भविष्यवक्ताओं के बेटों में से दो जवान मेरे पास आए हैं। मेहरबानी करके उनके लिए एक तोड़ा चाँदी और दो जोड़े कपड़े देना।’”+ 23 नामान ने कहा, “एक क्या, दो तोड़े चाँदी ले जा।” नामान उससे बार-बार कहने लगा+ और उसने दो बोरियों में दो तोड़े चाँदी और दो जोड़े कपड़े बाँध दिए और अपने दो सेवकों के हाथ में दिए और वे उन्हें उठाकर गेहजी के आगे-आगे चल दिए।
24 जब गेहजी ओपेल* पहुँचा तो उसने उनके हाथ से बोरियाँ ले लीं और अपने घर में रख दीं और उन आदमियों को भेज दिया। उनके जाने के बाद, 25 गेहजी अपने मालिक एलीशा के पास गया और उसके सामने खड़ा हुआ। एलीशा ने उससे पूछा, “गेहजी, तू कहाँ गया था?” उसने कहा, “तेरा सेवक कहीं नहीं गया था।”+ 26 एलीशा ने उससे कहा, “जब वह आदमी तुझसे मिलने के लिए अपने रथ से उतरा तो उसी घड़ी मेरा मन यह बात जान गया था। क्या यह वक्त चाँदी और कपड़े कबूल करने का है? क्या यह वक्त जैतून या अंगूरों के बाग लेने का है? भेड़-बकरी, गाय-बैल, दास-दासियाँ लेने का है?+ 27 अब नामान का कोढ़+ तुझे लग जाएगा और पीढ़ी-दर-पीढ़ी तेरे वंशजों को भी लगा रहेगा।” तब गेहजी को कोढ़ लग गया और उसका शरीर बर्फ जैसा सफेद हो गया।+ इसलिए वह फौरन एलीशा के सामने से चला गया।
6 भविष्यवक्ताओं के बेटों+ ने एलीशा से कहा, “देख, यह जगह हम सबके रहने के लिए कम पड़ रही है। 2 इजाज़त हो तो हम सब यरदन चले जाएँ। वहाँ हममें से हर कोई एक शहतीर लेकर आए और हम सब रहने के लिए एक घर बनाएँ।” एलीशा ने कहा, “ठीक है, जाओ।” 3 उनमें से एक ने कहा, “मालिक, अगर तू भी हमारे साथ चले तो बड़ी मेहरबानी होगी।” उसने कहा, “अच्छा, मैं भी चलता हूँ।” 4 वह उनके साथ चल दिया और वे सब यरदन के पास पहुँचे और लकड़ी के लिए पेड़ काटने लगे। 5 उनमें से एक जब पेड़ काट रहा था, तो कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर पानी में जा गिरी। वह ज़ोर से चिल्लाया, “मालिक, अब क्या होगा! वह कुल्हाड़ी माँगी हुई थी।” 6 सच्चे परमेश्वर के सेवक ने पूछा, “कुल्हाड़ी कहाँ गिरी?” उसने एलीशा को जगह दिखायी। एलीशा ने लकड़ी का एक टुकड़ा काटा और उसे उसी जगह फेंका। तब कुल्हाड़ी पानी के ऊपर आकर तैरने लगी। 7 एलीशा ने कहा, “कुल्हाड़ी उठा ले।” उस आदमी ने हाथ बढ़ाकर कुल्हाड़ी उठा ली।
8 सीरिया का राजा इसराएल से युद्ध करने निकल पड़ा।+ उसने अपने सेवकों से सलाह-मशविरा किया और उनसे कहा, “मैं तुम लोगों के साथ फलाँ जगह छावनी डालूँगा।” 9 तब सच्चे परमेश्वर के सेवक+ ने इसराएल के राजा के पास यह संदेश भेजा: “तू उस जगह से मत गुज़रना क्योंकि सीरिया की सेना हमला करने वहीं आ रही है।” 10 इसलिए इसराएल के राजा ने उस जगह संदेश भिजवाया, जिसके बारे में सच्चे परमेश्वर के सेवक ने उसे खबरदार किया था। उसने राजा को खबरदार किया और राजा उस जगह से दूर रहा। ऐसा कई बार* हुआ।+
11 इस वजह से सीरिया का राजा* गुस्से से भर गया। उसने अपने सेवकों को बुलाया और उनसे कहा, “बताओ! हमारे बीच ऐसा कौन है जो इसराएल के राजा का साथ दे रहा है?” 12 उनमें से एक ने कहा, “मेरे मालिक राजा, हमारे बीच ऐसा कोई नहीं है। इसराएल में जो भविष्यवक्ता एलीशा है, यह उसी का काम है। वही जाकर उस राजा को वे सारी बातें बता देता है जो तू सोने के कमरे में कहता है।”+ 13 तब सीरिया के राजा ने कहा, “जाओ, जाकर पता लगाओ वह कहाँ है। मैं अपने आदमी भेजकर उसे पकड़वा लूँगा।” बाद में राजा को खबर दी गयी कि एलीशा दोतान+ शहर में है। 14 राजा ने फौरन घोड़ों और युद्ध-रथों समेत एक बड़ी सेना भेजी और वे रात को दोतान पहुँचे और उन्होंने शहर को घेर लिया।
15 अगले दिन जब वह आदमी जो सच्चे परमेश्वर के सेवक, एलीशा की सेवा करता था, सुबह-सुबह उठा और बाहर गया, तो उसने देखा कि घोड़ों और युद्ध-रथों समेत एक बड़ी सेना शहर को घेरे हुए है। वह फौरन एलीशा के पास जाकर कहने लगा, “मालिक, मालिक, अब हम क्या करें?” 16 मगर एलीशा ने कहा, “घबरा मत!+ उनके साथ जितने हैं उनसे कहीं ज़्यादा हमारे साथ हैं।”+ 17 फिर एलीशा प्रार्थना करने लगा, “हे यहोवा, मेहरबानी करके इसकी आँखें खोल दे ताकि यह देख सके।”+ यहोवा ने फौरन एलीशा के सेवक की आँखें खोल दीं और उसने देखा कि एलीशा के चारों तरफ+ का पहाड़ी इलाका ऐसे घोड़ों और युद्ध-रथों से भरा पड़ा है जो आग जैसे दिखायी दे रहे थे।+
18 जब सीरिया की सेना एलीशा की तरफ बढ़ने लगी तो उसने यहोवा से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, इस राष्ट्र को अंधा कर दे।”+ परमेश्वर ने एलीशा की बिनती सुनी और उन सबको अंधा कर दिया। 19 फिर एलीशा ने उनसे कहा, “तुम लोग गलत रास्ते आ गए हो। तुम जिस शहर पर हमला करने आए हो, वह यह नहीं है। तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें उस आदमी के पास ले जाऊँगा जिसे तुम ढूँढ़ रहे हो।” मगर एलीशा उन्हें सामरिया+ ले गया।
20 जब वे सामरिया पहुँचे तो एलीशा ने प्रार्थना की, “हे यहोवा, इनकी आँखें खोल दे ताकि ये देख सकें।” तब यहोवा ने उनकी आँखें खोल दीं और उन्होंने देखा कि वे सामरिया के बीचों-बीच हैं। 21 जब इसराएल के राजा ने उन्हें देखा तो उसने एलीशा से पूछा, “मेरे पिता, क्या मैं इन्हें मार डालूँ? इन्हें खत्म कर दूँ?” 22 मगर उसने कहा, “नहीं, इन्हें मत मार। तू जिन लोगों को तलवार और तीर-कमान के दम पर बंदी बनाता है, क्या उन्हें मार डालता है? इन्हें रोटी और पानी दे ताकि ये खा-पीकर+ अपने मालिक के पास लौट जाएँ।” 23 इसलिए राजा ने उन सबके लिए एक बड़ी दावत रखी और उन्होंने खाया-पीया। फिर राजा ने उन्हें उनके मालिक के पास वापस भेज दिया। इसके बाद फिर कभी सीरिया के लुटेरे-दलों+ ने इसराएल देश में कदम नहीं रखा।
24 बाद में सीरिया के राजा बेन-हदद ने अपनी पूरी सेना इकट्ठी की और जाकर सामरिया को घेर लिया।+ 25 घेराबंदी काफी समय तक रही जिस वजह से सामरिया में ऐसा भयंकर अकाल पड़ा+ कि वहाँ गधे का सिर+ चाँदी के 80 टुकड़ों में और कब* की चौथाई-भर फाख्ता की बीट चाँदी के 5 टुकड़ों में बिकने लगी। 26 एक दिन जब इसराएल का राजा शहरपनाह के ऊपर चलता हुआ जा रहा था तो एक औरत ने उसकी दुहाई दी, “हे राजा, मेरे मालिक, मेरी मदद कर!” 27 राजा ने कहा, “जब यहोवा तुम लोगों की कोई मदद नहीं कर रहा, तो मैं कैसे मदद कर सकता हूँ? मैं कहाँ से खाना, तेल या दाख-मदिरा लाकर दूँ?” 28 फिर राजा ने उससे पूछा, “बोल, क्या बात है?” उसने कहा, “इस औरत ने मुझसे कहा था, ‘आज तू अपना बेटा दे, हम उसे खाएँगे। फिर कल मैं अपना बेटा दूँगी और हम उसे खाएँगे।’+ 29 मैंने अपना बेटा दिया और हमने उसे उबालकर खाया।+ अगले दिन मैंने उससे कहा कि तू अपना बेटा दे कि हम उसे खाएँ, मगर उसने नहीं दिया। उसने अपने बेटे को छिपा लिया।”
30 जैसे ही राजा ने औरत की बात सुनी, उसने अपने कपड़े फाड़े।+ जब वह शहरपनाह के ऊपर चल रहा था तो लोगों ने देखा कि वह अपने कपड़े के अंदर* टाट पहने हुए है। 31 उसने कहा, “आज अगर मैंने शापात के बेटे एलीशा का सिर न उड़ा दिया तो परमेश्वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे!”+
32 एलीशा अपने घर में बैठा था और उसके साथ मुखिया भी बैठे थे। राजा ने अपने आगे-आगे एलीशा के पास एक दूत भेजा। इससे पहले कि दूत वहाँ पहुँचता, एलीशा ने मुखियाओं से कहा, “देखो, कातिल के उस बेटे+ ने मेरा सिर कटवाने के लिए अपना दूत भेजा है। इसलिए तुम देखते रहना, जब वह दूत आएगा तो तुम दरवाज़ा बंद कर देना और दबाकर रखना ताकि वह अंदर घुस न सके। उसके पीछे उसका मालिक भी आ रहा है।” 33 एलीशा उन्हें यह बात बता ही रहा था कि दूत वहाँ पहुँच गया और राजा ने कहा, “यह कहर यहोवा ने ही ढाया है। इसलिए मैं राहत के लिए अब और यहोवा की तरफ क्यों आस लगाऊँ?”
7 फिर एलीशा ने कहा, “अब यहोवा का संदेश सुनो। यहोवा कहता है, ‘कल इसी समय सामरिया के फाटक* पर एक सआ* मैदा एक शेकेल* में और दो सआ जौ एक शेकेल में मिलेगा।’”+ 2 तब सहायक सेना-अधिकारी ने, जो राजा का भरोसेमंद सेवक था, सच्चे परमेश्वर के सेवक से कहा, “अगर यहोवा आकाश के झरोखे खोल दे तो भी यह नहीं हो सकता!”+ तब एलीशा ने कहा, “कल तू खुद अपनी आँखों से यह देखेगा,+ मगर उसमें से कुछ खा नहीं पाएगा।”+
3 सामरिया के फाटक के पास चार कोढ़ी बैठे थे।+ उन्होंने एक-दूसरे से कहा, “हम यहाँ बैठे-बैठे मौत का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं? 4 चाहे हम यहाँ बैठे रहें या शहर के अंदर जाएँ, हमारी मौत तय है क्योंकि वहाँ अकाल पड़ा है।+ इसलिए क्यों न हम सीरिया के लोगों की छावनी में चले जाएँ? अगर उन्होंने हमें ज़िंदा छोड़ दिया तो अच्छी बात है। लेकिन अगर उन्होंने हमें मार डाला तो भी कोई बात नहीं, मरना तो है ही।” 5 इसलिए शाम को जब अँधेरा हो गया तो वे कोढ़ी उठकर सीरिया के लोगों की छावनी में गए। जब वे छावनी के किनारे पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ कोई नहीं है।
6 दरअसल यहोवा ने ऐसा किया था कि सीरिया के सैनिकों को युद्ध-रथों, घोड़ों और एक विशाल सेना का शोर सुनायी पड़ा।+ वे एक-दूसरे से कहने लगे, “लगता है इसराएल के राजा ने हमसे लड़ने के लिए हित्तियों के राजाओं और मिस्र के राजाओं को किराए पर बुलाया है!” 7 इसलिए शाम को जब अँधेरा हो गया था, तब वे अपनी जान बचाने के लिए फौरन छावनी छोड़कर भाग गए। उन्होंने अपने तंबू, घोड़े, गधे, यहाँ तक कि पूरी छावनी जैसी की तैसी छोड़ दी थी।
8 जब वे कोढ़ी उनकी छावनी के किनारे पहुँचे तो उनके एक तंबू में गए और खाने-पीने लगे। उन्होंने वहाँ से सोना, चाँदी और कपड़े लिए और जाकर यह सब कहीं छिपा दिया। फिर से वे छावनी में आए और एक दूसरे तंबू में गए और वहाँ से भी कुछ चीज़ें ले जाकर छिपा दीं।
9 कुछ देर बाद वे एक-दूसरे से कहने लगे, “हम जो कर रहे हैं वह सही नहीं है। आज का दिन खुशखबरी सुनाने का दिन है! अगर हमने अभी जाकर यह खबर नहीं सुनायी और सुबह सबको यह बात पता चल गयी तो हम सज़ा के लायक ठहरेंगे। चलो अब हम जाकर राजा के महल तक यह खबर पहुँचाते हैं।” 10 वे वहाँ से चले गए और उन्होंने शहर के फाटक के पहरेदारों को आवाज़ देकर बताया, “हम सीरिया के लोगों की छावनी में गए थे, मगर वहाँ कोई नहीं था। हमें किसी की आवाज़ नहीं सुनायी दी। वहाँ सिर्फ उनके घोड़े और गधे बँधे हुए थे और वे अपने तंबू ऐसे ही छोड़कर चले गए।” 11 यह सुनते ही पहरेदारों ने राजमहल के लोगों को आवाज़ दी और उन्हें यह खबर सुनायी।
12 राजा रात को ही उठा और उसने अपने सेवकों से कहा, “यह ज़रूर सीरिया के लोगों की चाल है। वे जानते हैं कि हम भूख से मर रहे हैं,+ इसलिए वे यह सोचकर कहीं मैदान में छिप गए हैं कि जैसे ही इसराएली शहर से बाहर आएँगे हम उन्हें ज़िंदा पकड़ लेंगे और उनके शहर में घुस जाएँगे।”+ 13 तब राजा के एक सेवक ने कहा, “राजा से मेरी गुज़ारिश है कि वह कुछ आदमियों से कहे कि वे शहर में बचे पाँच घोड़े लेकर जाएँ और इस बात का सही-सही पता लगाएँ। अगर वे मारे गए तो भी कोई बात नहीं क्योंकि यहाँ शहर में रहकर भी वे कौन-से ज़िंदा रहनेवाले हैं। हम सब इसराएलियों के साथ वे भी तो मरेंगे ही।” 14 तब उन आदमियों ने घोड़ों के साथ दो रथ लिए और उन्हें राजा ने यह कहकर सीरिया के लोगों की छावनी में भेजा, “जाओ, जाकर देख आओ।” 15 वे सीरिया के लोगों को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते दूर यरदन तक पहुँच गए। उन्होंने देखा कि पूरे रास्ते में कपड़े और बरतन फैले पड़े हैं क्योंकि सीरिया के लोग जब डर के मारे भागने लगे तो उन्होंने रास्ते में ये चीज़ें फेंक दी थीं। राजा के दूतों ने वापस आकर उसे खबर दी।
16 फिर इसराएल के लोग शहर से निकलकर सीरिया के लोगों की छावनी में गए और उन्होंने उसे लूट लिया। इसलिए एक सआ मैदा एक शेकेल में और दो सआ जौ एक शेकेल में बिकने लगा, ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।+ 17 राजा ने अपने सहायक सेना-अधिकारी को, जो उसका भरोसेमंद सेवक था, फाटक का अधिकारी ठहराया था। मगर वह वहाँ लोगों के पैरों के नीचे दबकर मर गया। तब सच्चे परमेश्वर के सेवक की वह बात पूरी हुई जो उसने राजा से उस वक्त कही थी जब राजा उसके पास गया था। 18 सच्चे परमेश्वर के सेवक की यह बात पूरी हुई जो उसने राजा से कही थी, “कल इसी समय सामरिया के फाटक पर दो सआ जौ एक शेकेल में और एक सआ मैदा एक शेकेल में मिलेगा।”+ 19 मगर सहायक सेना-अधिकारी ने सच्चे परमेश्वर के सेवक से कहा था, “अगर यहोवा आकाश के झरोखे खोल दे तो भी यह नहीं हो सकता!” तब एलीशा ने कहा था, “कल तू खुद अपनी आँखों से यह देखेगा, मगर उसमें से कुछ खा नहीं पाएगा।” 20 उस अधिकारी के साथ ठीक ऐसा ही हुआ क्योंकि फाटक पर लोगों के रौंदने से उसकी मौत हो गयी।
8 एलीशा ने उस औरत से, जिसके बेटे को उसने ज़िंदा किया था,+ कहा, “तू अपने घराने के साथ यह देश छोड़कर जा और जहाँ कहीं तू रह सकती है वहाँ परदेसी की तरह रह, क्योंकि यहोवा ने कहा है कि इस देश में सात साल तक अकाल पड़ेगा।”+ 2 उस औरत ने ठीक वैसा ही किया जैसा सच्चे परमेश्वर के सेवक ने उससे कहा था। वह अपने घराने को लेकर निकल पड़ी और पलिश्तियों के देश+ चली गयी और वहाँ सात साल रही।
3 सात साल के बीतने पर वह औरत पलिश्तियों के देश से अपने देश लौट आयी। वह राजा से फरियाद करने गयी कि उसका घर और खेत उसे लौटा दिया जाए। 4 उस वक्त राजा सच्चे परमेश्वर के सेवक एलीशा के सेवक गेहजी से बात कर रहा था। उसने गेहजी से कहा था, “ज़रा मुझे उन सभी बड़े-बड़े कामों के बारे में बता जो एलीशा ने किए हैं।”+ 5 और गेहजी जब राजा को सुना रहा था कि एलीशा ने कैसे एक मरे हुए लड़के को ज़िंदा किया,+ तो उसी वक्त वह औरत वहाँ पहुँची। वह राजा से अपने घर और खेत के लिए फरियाद करने लगी।+ उसे देखते ही गेहजी ने कहा, “मेरे मालिक राजा, यही वह औरत है और यही उसका लड़का है जिसे एलीशा ने ज़िंदा किया था।” 6 राजा ने उस औरत से कहा कि वह उस वाकये के बारे में उसे बताए और उस औरत ने उसे पूरी कहानी सुनायी। फिर राजा ने अपने एक दरबारी को यह ज़िम्मेदारी दी, “तू इस बात का ध्यान रख कि इस औरत की पूरी जायदाद इसे लौटा दी जाए। इसने जिस दिन यह देश छोड़ा था तब से लेकर आज तक इसके खेत से जितनी पैदावार होती, उसकी कीमत इसे अदा कर दी जाए।”
7 जब सीरिया का राजा बेन-हदद+ बीमार था तो एलीशा दमिश्क+ गया। बेन-हदद को खबर दी गयी कि सच्चे परमेश्वर का सेवक+ आया है। 8 राजा ने हजाएल+ से कहा, “तू सच्चे परमेश्वर के सेवक के लिए कुछ तोहफा लेकर उससे मिलने जा।+ उससे कह कि वह यहोवा से पूछकर बताए कि मेरी यह बीमारी दूर होगी या नहीं।” 9 हजाएल एलीशा से मिलने निकला। उसने एलीशा को तोहफे में देने के लिए दमिश्क की हर तरह की अच्छी चीज़ों से 40 ऊँट लदवाए। यह सब लेकर वह एलीशा के पास आया और उसके सामने खड़े होकर कहने लगा, “तेरे सेवक सीरिया के राजा बेन-हदद ने मुझे तेरे पास भेजा है। वह जानना चाहता है कि उसकी बीमारी ठीक होगी या नहीं।” 10 एलीशा ने कहा, “जाकर उससे कह, ‘तू ज़रूर ठीक हो जाएगा।’ मगर यहोवा ने मुझ पर ज़ाहिर किया है कि वह ज़रूर मर जाएगा।”+ 11 यह कहने के बाद एलीशा हजाएल को ऐसे घूरने लगा कि वह झिझक महसूस करने लगा। फिर सच्चे परमेश्वर का सेवक रोने लगा। 12 हजाएल ने पूछा, “क्या हुआ मालिक? तू क्यों रो रहा है?” एलीशा ने कहा, “क्योंकि मैं जानता हूँ कि तू इसराएल के लोगों पर क्या-क्या कहर ढानेवाला है।+ तू उनके किलेबंद शहरों को आग से फूँक देगा, उनके वीर योद्धाओं को तलवार से मार डालेगा, उनके बच्चों को पटक-पटककर मार डालेगा और उनकी गर्भवती औरतों का पेट चीर देगा।”+ 13 हजाएल ने कहा, “मगर तेरे सेवक की औकात ही क्या है कि यह काम कर सके? मैं तो सिर्फ एक कुत्ता हूँ।” मगर एलीशा ने कहा, “यहोवा ने मुझ पर ज़ाहिर किया है कि तू सीरिया का राजा बनेगा।”+
14 तब हजाएल एलीशा के यहाँ से चला गया और अपने मालिक राजा के पास लौट आया। राजा ने उससे पूछा, “एलीशा ने तुझसे क्या कहा?” हजाएल ने कहा, “उसने कहा कि तू ज़रूर ठीक हो जाएगा।”+ 15 मगर अगले दिन हजाएल ने एक चादर पानी में डुबोकर राजा के मुँह पर रखी और उसे दबाकर मार डाला।+ इसके बाद हजाएल राजा बन गया।+
16 जब इसराएल में अहाब के बेटे यहोराम+ के राज का पाँचवाँ साल चल रहा था, तब यहूदा में यहोशापात राजा था और उसी दौरान उसका बेटा यहोराम+ यहूदा का राजा बना। 17 यहोशापात का बेटा यहोराम 32 साल की उम्र में राजा बना और उसने यरूशलेम में रहकर आठ साल राज किया। 18 यहोराम ने इसराएल के राजाओं के तौर-तरीके अपना लिए,+ ठीक जैसे अहाब के घराने ने किया था+ क्योंकि उसकी शादी अहाब की बेटी से हुई थी।+ वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा।+ 19 फिर भी यहोवा ने अपने सेवक दाविद की खातिर यहूदा राज का नाश नहीं करना चाहा।+ उसने दाविद से वादा किया था कि उसका और उसके बेटों का दीया हमेशा जलता रहेगा।+
20 यहोराम के दिनों में एदोम ने यहूदा से बगावत की+ और फिर अपना एक राजा खड़ा किया।+ 21 इसलिए यहोराम अपने सभी रथ लेकर उस पार साईर गया। उसने रात के वक्त जाकर एदोमियों पर हमला किया, जो उसे और रथ-सेना के अधिकारियों को घेरे हुए थे। उसने एदोमियों को हरा दिया और उनकी सेनाएँ अपने तंबुओं में भाग गयीं। 22 इसके बाद भी एदोम ने यहूदा से बगावत करना नहीं छोड़ा और आज तक वह बगावत कर रहा है। उन्हीं दिनों लिब्ना+ ने भी यहूदा से बगावत की।
23 यहोराम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 24 फिर यहोराम की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में उसके पुरखों की कब्र में दफनाया गया।+ यहोराम की जगह उसका बेटा अहज्याह+ राजा बना।
25 जब राजा यहोराम का बेटा अहज्याह यहूदा का राजा बना, तब इसराएल में अहाब के बेटे यहोराम के राज का 12वाँ साल चल रहा था।+ 26 अहज्याह 22 साल की उम्र में राजा बना और उसने यरूशलेम में रहकर एक साल राज किया। उसकी माँ का नाम अतल्याह+ था जो इसराएल के राजा ओम्री+ की पोती* थी। 27 अहज्याह ने अहाब के घराने के तौर-तरीके अपना लिए+ और वह उस घराने की तरह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा, क्योंकि वह अहाब के घराने का रिश्तेदार था।+ 28 इसलिए वह अहाब के बेटे यहोराम के साथ सीरिया के राजा हजाएल से युद्ध करने रामोत-गिलाद+ गया, मगर सीरिया के सैनिकों ने यहोराम को घायल कर दिया।+ 29 राजा यहोराम ठीक होने के लिए यिजरेल+ लौटा क्योंकि रामाह में सीरिया के राजा हजाएल के सैनिकों ने उसे घायल कर दिया था।+ अहाब का बेटा यहोराम ज़ख्मी हो गया था,* इसलिए उसे देखने के लिए यहूदा का राजा अहज्याह, जो यहोराम का बेटा था, यिजरेल गया।
9 फिर भविष्यवक्ता एलीशा ने भविष्यवक्ताओं के बेटों में से एक को बुलाया और उससे कहा, “अपनी कमर कस ले और तेल की यह सुराही लेकर फौरन रामोत-गिलाद+ जा। 2 वहाँ पहुँचकर तू येहू+ को ढूँढ़ना, जो यहोशापात का बेटा और निमशी का पोता है। तू उसके पास जाना और उसे उसके भाइयों के बीच से बुलाकर अंदर के कमरे में ले जाना। 3 यह तेल उसके सिर पर उँडेलना और उससे कहना, ‘यहोवा ने कहा है, “मैं तेरा अभिषेक करके तुझे इसराएल का राजा ठहराता हूँ।”’+ इसके बाद दरवाज़ा खोलकर तुरंत वहाँ से भाग निकलना।”
4 तब भविष्यवक्ता का सेवक रामोत-गिलाद के लिए निकल पड़ा। 5 जब वह वहाँ पहुँचा तो सेनापति बैठे हुए थे। उसने कहा, “हे प्रधान, मैं तेरे लिए एक संदेश लाया हूँ।” येहू ने पूछा, “हममें से किसके लिए?” उसने येहू से कहा, “प्रधान, तेरे लिए।” 6 येहू उठा और घर के अंदर गया। फिर सेवक ने उसके सिर पर तेल उँडेलकर कहा, “इसराएल के परमेश्वर यहोवा ने कहा है, ‘मैं यहोवा तेरा अभिषेक करके तुझे अपनी प्रजा इसराएल का राजा ठहराता हूँ।+ 7 तू अपने मालिक अहाब के घराने को मिटा देना। मैं अपने सभी भविष्यवक्ताओं के खून का और यहोवा के उन सभी सेवकों के खून का बदला लूँगा जो इज़ेबेल के हाथों मारे गए थे।+ 8 अहाब का पूरा घराना नाश हो जाएगा। मैं उसके घराने के हर आदमी और लड़के को मार डालूँगा, यहाँ तक कि इसराएल के बेसहारा और कमज़ोर लोगों को भी मिटा दूँगा।+ 9 मैं अहाब के घराने का वही हश्र करूँगा जो मैंने नबात के बेटे यारोबाम के घराने का+ और अहियाह के बेटे बाशा के घराने का किया था।+ 10 और इज़ेबेल की लाश को यिजरेल की ज़मीन के उस टुकड़े पर कुत्ते खा जाएँगे+ और उसे कोई नहीं दफनाएगा।’” इतना कहकर उसने दरवाज़ा खोला और भाग गया।+
11 जब येहू राजा के दूसरे सेनापतियों के पास लौटा तो वे उससे पूछने लगे, “सब ठीक तो है न? वह पागल तेरे पास क्यों आया था?” उसने कहा, “तुम तो उन आदमियों को जानते हो, बेसिर-पैर की बातें करते हैं।” 12 मगर उन्होंने कहा, “नहीं, कुछ तो बात है। क्या तू हमें नहीं बताएगा?” येहू ने कहा, “उसने मुझसे ऐसा-ऐसा कहा और फिर यह संदेश दिया: ‘यहोवा ने कहा है, “मैं तेरा अभिषेक करके तुझे इसराएल का राजा ठहराता हूँ।”’”+ 13 तब उन सबने फौरन अपना-अपना कपड़ा लिया और येहू के आगे सीढ़ियों पर बिछाया+ और नरसिंगा फूँककर कहा, “येहू राजा बन गया है!”+ 14 इसके बाद येहू+ ने, जो यहोशापात का बेटा और निमशी का पोता था, यहोराम के खिलाफ साज़िश रची।
यहोराम पूरी इसराएली सेना के साथ रामोत-गिलाद गया हुआ था+ ताकि सीरिया के राजा हजाएल+ से उस शहर की रक्षा कर सके। 15 बाद में वह यिजरेल+ लौट आया क्योंकि सीरिया के राजा हजाएल से लड़ते वक्त वह ज़ख्मी हो गया था।+
अब येहू ने दूसरे सेनापतियों से कहा, “अगर तुम मेरी तरफ हो, तो शहर में से किसी को भी बाहर मत जाने देना ताकि यह खबर यिजरेल तक न पहुँचे।” 16 फिर येहू अपने रथ पर सवार होकर यिजरेल गया क्योंकि यहोराम ठीक होने के लिए वहाँ गया था। यहोराम को देखने यहूदा का राजा अहज्याह वहाँ आया हुआ था। 17 यिजरेल की मीनार पर तैनात पहरेदार ने देखा कि येहू के आदमियों का दल पास आ रहा है। उन्हें देखते ही उसने कहा, “मुझे आदमियों का एक बड़ा दल आता दिखायी दे रहा है।” यहोराम ने कहा, “एक घुड़सवार से कहो कि वह उनसे मिलने जाए और पूछे, ‘तुम शांति के इरादे से ही आए हो न?’” 18 तब एक घुड़सवार निकला और जाकर येहू से मिला और उसने कहा, “राजा ने पूछा है, ‘तुम शांति के इरादे से ही आए हो न?’” मगर येहू ने कहा, “तू कौन होता है यह पूछनेवाला? मेरे पीछे चल!”
तब पहरेदार ने यहोराम से कहा, “दूत उन तक पहुँचा तो है, मगर अभी तक लौटा नहीं।” 19 फिर एक और घुड़सवार भेजा गया। वह जाकर येहू और उसके दल से मिला और उसने कहा, “राजा ने पूछा है, ‘तुम शांति के इरादे से ही आए हो न?’” मगर येहू ने कहा, “तू कौन होता है यह पूछनेवाला? मेरे पीछे चल!”
20 तब पहरेदार ने यहोराम से कहा, “दूत उन तक पहुँचा तो है, मगर अभी तक लौटा नहीं। मुझे कोई तेज़ी से रथ हाँकता हुआ दिखायी दे रहा है। उसका रथ चलाना निमशी के पोते* येहू जैसा है क्योंकि वही पागलों की तरह रथ दौड़ाता है।” 21 यहोराम ने कहा, “जल्दी से मेरा रथ तैयार करो!” उसका युद्ध-रथ तैयार किया गया और इसराएल का राजा यहोराम और यहूदा का राजा अहज्याह+ येहू से मिलने अपने-अपने रथ पर निकल पड़े। वे येहू से यिजरेली नाबोत+ की ज़मीन पर मिले।
22 जैसे ही यहोराम ने येहू को देखा, उसने पूछा, “येहू, तू शांति के इरादे से ही आया है न?” मगर येहू ने कहा, “जब तक तेरी माँ इज़ेबेल बदचलनी+ और टोना-टोटका करती रहेगी,+ तब तक कहाँ से शांति हो सकती है?” 23 यहोराम ने वहाँ से भाग निकलने के लिए फौरन अपना रथ घुमाया और अहज्याह से कहा, “अहज्याह, यह एक चाल है!” 24 तब येहू ने अपनी कमान उठायी और यहोराम की पीठ पर ऐसा तीर मारा कि वह उसके दिल के आर-पार हो गया और वह रथ पर ही ढेर हो गया। 25 येहू ने अपने सहायक सेना-अधिकारी बिदकर से कहा, “इसे उठाकर यिजरेली नाबोत की इसी ज़मीन पर फेंक दे।+ याद है न, जब हम दोनों इसके पिता अहाब के पीछे-पीछे रथ चला रहे थे तब यहोवा ने अहाब को यह सज़ा सुनायी थी,+ 26 ‘यहोवा ऐलान करता है, “कल नाबोत और उसके बेटों का जो खून बहाया गया था वह मैंने देखा है।”+ यहोवा ऐलान करता है, “मैं इसी ज़मीन पर तुझसे उनके खून का बदला लूँगा।”’+ इसलिए बिदकर, तू इसे उठाकर नाबोत की इसी ज़मीन पर फेंक दे, ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।”+
27 जब यहूदा के राजा अहज्याह+ ने यह सब देखा, तो वह बगीचे के घर के रास्ते से भाग गया। (बाद में येहू ने उसका पीछा किया और अपने आदमियों से कहा, “उसे भी मार डालो!” जब अहज्याह अपने रथ पर सवार ऊपर गूर की तरफ जा रहा था, जो यिबलाम+ के पास है, तो येहू के आदमियों ने उस पर वार किया। मगर वह भागता ही रहा और भागते-भागते मगिद्दो पहुँचा जहाँ उसकी मौत हो गयी। 28 अहज्याह के सेवक उसकी लाश रथ में रखकर यरूशलेम ले आए और दाविदपुर+ में उसके पुरखों की कब्र में उसे दफना दिया। 29 अहज्याह,+ अहाब के बेटे यहोराम के राज के 11वें साल में यहूदा का राजा बना था।)
30 जब येहू यिजरेल+ आया तो इसकी खबर इज़ेबेल+ को मिली। इसलिए इज़ेबेल ने अपनी आँखों में काजल लगाया, अपने बाल सँवारे और खिड़की से नीचे देखने लगी। 31 जैसे ही येहू फाटक से अंदर आया, इज़ेबेल ने कहा, “याद है, जिमरी का क्या हुआ था जिसने अपने मालिक का कत्ल किया था?”+ 32 येहू ने ऊपर खिड़की की तरफ देखकर कहा, “कौन है मेरी तरफ? कौन?”+ फौरन ऊपर से दो-तीन दरबारियों ने उसे देखा। 33 येहू ने उनसे कहा, “उस औरत को नीचे फेंक दो!” दरबारियों ने उसे नीचे फेंक दिया और उसके खून के छींटे दीवार पर और घोड़ों पर पड़े। येहू ने अपने घोड़ों से उसे रौंद दिया। 34 इसके बाद येहू अंदर गया और उसने खाया-पीया। फिर उसने कहा, “उस शापित औरत की लाश ले जाकर दफना दो, आखिर वह एक राजा की बेटी जो है।”+ 35 मगर जब वे उसे दफनाने के लिए वहाँ गए तो उन्होंने देखा कि वहाँ सिर्फ उसकी खोपड़ी, पैर और हथेलियाँ बची हैं।+ 36 जब उन्होंने लौटकर यह बात येहू को बतायी तो उसने कहा, “आज यहोवा का वह वचन पूरा हुआ है+ जो उसने अपने सेवक तिशबे के रहनेवाले एलियाह से कहलवाया था, ‘यिजरेल की इसी ज़मीन पर कुत्ते इज़ेबेल का माँस खा जाएँगे+ 37 और उसकी लाश यिजरेल की ज़मीन पर खाद बन जाएगी ताकि कोई यह न कह सके, “यह इज़ेबेल है।”’”
10 अहाब+ के 70 बेटे सामरिया में रहते थे। इसलिए येहू ने यिजरेल के हाकिमों, मुखियाओं+ और अहाब के बच्चों की देखभाल करनेवाले आदमियों के नाम चिट्ठियाँ लिखकर सामरिया भेजीं। उसने उनको लिखा, 2 “जब तुम्हारे पास यह चिट्ठी पहुँचेगी, तो तुम्हारे साथ तुम्हारे मालिक के बेटे होंगे और तुम्हारे पास युद्ध-रथ, घोड़े और किलेबंद शहर और हथियार भी होंगे। 3 तुम अपने मालिक के बेटों में से सबसे काबिल और होनहार* बेटे को चुनना और उसे उसके पिता की राजगद्दी पर बिठाना। फिर तुम अपने मालिक के घराने की रक्षा के लिए लड़ना।”
4 लेकिन वे सब डर गए और कहने लगे, “जब दो राजा उसके सामने टिक न सके,+ तो हम कैसे टिकेंगे?” 5 इसलिए राजमहल* की निगरानी करनेवाले आदमी, शहर के राज्यपाल, मुखियाओं और अहाब के बच्चों की देखभाल करनेवालों ने येहू को यह संदेश भेजा: “हम तेरे सेवक हैं। तू हमसे जो भी कहेगा, हम करेंगे। हम किसी को राजा नहीं बनाएँगे। तुझे जो सही लगे वह कर।”
6 तब येहू ने उन्हें दूसरी चिट्ठी लिखी, “अगर तुम मेरी तरफ हो और मेरा हुक्म मानने के लिए तैयार हो, तो एक काम करो। अपने मालिक के बेटों का सिर काटकर कल इस वक्त मेरे पास यिजरेल ले आओ।”
राजा अहाब के 70 बेटे शहर के उन खास-खास आदमियों के साथ थे जो उनकी देखभाल करते थे। 7 जैसे ही उन्हें येहू की चिट्ठी मिली, उन्होंने राजा के 70 बेटों को मार डाला।+ उन्होंने उन आदमियों के सिर काटकर टोकरों में भरे और येहू के पास यिजरेल भेज दिए। 8 दूत ने येहू के पास आकर कहा, “वे राजा के बेटों के सिर लाए हैं।” येहू ने कहा, “शहर के फाटक पर उनके दो ढेर लगा दो और कल सुबह तक उन्हें वहीं रहने दो।” 9 सुबह जब वह बाहर गया तो सब लोगों के सामने खड़े होकर कहने लगा, “तुम सब निर्दोष* हो। यह सच है कि मैंने अपने मालिक के खिलाफ साज़िश की और उसे मार डाला,+ मगर इन सबको किसने मारा है? 10 इसलिए तुम सब जान लो कि यहोवा ने अहाब के घराने को जो सज़ा सुनायी थी और उसके बारे में यहोवा ने जो कहा था, उसकी एक-एक बात सच निकलेगी।*+ यहोवा ने बिलकुल वैसा ही किया, जैसा उसने अपने सेवक एलियाह से कहलवाया था।”+ 11 इसके अलावा, येहू ने अहाब के घराने के उन लोगों को भी मार डाला जो यिजरेल में बचे थे। साथ ही, उसने अहाब के सभी खास-खास आदमियों, दोस्तों और पुजारियों को मार डाला,+ एक को भी ज़िंदा नहीं छोड़ा।+
12 इसके बाद वह सामरिया के लिए निकल पड़ा। रास्ते में एक ऐसी जगह थी जहाँ चरवाहे भेड़ों का ऊन कतरते थे। 13 वहाँ येहू की मुलाकात यहूदा के राजा अहज्याह+ के भाइयों से हुई। उसने उनसे पूछा, “तुम लोग कौन हो?” उन्होंने कहा, “हम अहज्याह के भाई हैं। हम राजा के बेटों और राजमाता के बेटों की खैरियत पूछने जा रहे हैं।” 14 येहू ने फौरन अपने आदमियों से कहा, “पकड़ लो इन सबको!” उन्होंने उनको पकड़ लिया और ऊन कतरनेवाली जगह के पास जो कुंड था, वहाँ उन सबको मार डाला। एक को भी ज़िंदा नहीं छोड़ा। वे कुल मिलाकर 42 आदमी थे।+
15 जब येहू वहाँ से आगे बढ़ा तो उसकी मुलाकात रेकाब+ के बेटे यहोनादाब+ से हुई जो उससे मिलने आ रहा था। जब यहोनादाब ने उसे सलाम किया* तो येहू ने उससे पूछा, “क्या तू पूरे* दिल से मेरे साथ है, जैसे मैं पूरे दिल से तेरे साथ हूँ?”
यहोनादाब ने कहा, “हाँ, मैं हूँ।”
येहू ने कहा, “तो फिर अपना हाथ मुझे दे।”
यहोनादाब ने उसे अपना हाथ दिया और येहू ने उसे अपने साथ रथ पर चढ़ाया। 16 फिर उसने यहोनादाब से कहा, “तू मेरे साथ चल और देख कि मैं यह बरदाश्त नहीं कर सकता कि यहोवा के सिवा किसी और की उपासना की जाए।”*+ इस तरह यहोनादाब को येहू के युद्ध-रथ पर चढ़ा दिया गया। 17 फिर येहू सामरिया पहुँचा और वहाँ अहाब के घराने के जितने भी लोग बचे थे उन सबको उसने मार डाला। उसने उनका पूरी तरह सफाया कर दिया,+ ठीक जैसे यहोवा ने एलियाह से कहा था।+
18 इसके बाद येहू ने सब लोगों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, “अहाब ने बाल की उपासना के लिए जो किया वह बहुत कम था,+ अब येहू बढ़-चढ़कर उसकी उपासना करेगा। 19 इसलिए बाल के सब भविष्यवक्ताओं,+ सब भक्तों और सब पुजारियों+ को मेरे पास इकट्ठा करो। ध्यान रखो कि एक भी छूटने न पाए क्योंकि मैं बाल के लिए एक बड़ा बलिदान चढ़ानेवाला हूँ। जो कोई इस मौके पर हाज़िर नहीं होगा उसे मार डाला जाएगा।” दरअसल यह येहू की एक चाल थी। वह बाल के सभी उपासकों को मिटा देना चाहता था।
20 येहू ने यह भी कहा, “बाल के लिए एक खास सभा का ऐलान किया जाए।” इसलिए इसका ऐलान किया गया। 21 इसके बाद येहू ने इसराएल के कोने-कोने में इसकी खबर भिजवायी और बाल के सभी उपासक सभा में आए, एक भी नहीं छूटा। वे सब-के-सब बाल के मंदिर में गए+ जिस वजह से मंदिर खचाखच भर गया। 22 येहू ने पोशाक-घर के अधिकारी से कहा, “बाल के सभी भक्तों के लिए पोशाकें ले आ।” वह उन सबके लिए पोशाकें ले आया। 23 फिर येहू और रेकाब का बेटा यहोनादाब+ बाल के मंदिर में गए। येहू ने बाल के भक्तों से कहा, “अच्छी तरह देखो कि यहाँ कोई यहोवा का उपासक तो नहीं है। यहाँ सिर्फ बाल के उपासक होने चाहिए।” 24 इसके बाद वे बलिदान और होम-बलियाँ चढ़ाने अंदर गए। येहू ने अपने 80 आदमियों को बाहर खड़ा किया था और उन्हें बताया था, “उन सबको मार डालना, किसी को भी मत छोड़ना। अगर तुममें से कोई किसी को भाग जाने देगा, तो उसे भागनेवाले के बदले मार डाला जाएगा।”
25 जैसे ही येहू आग में बलिदान चढ़ा चुका, उसने पहरेदारों और सहायक सेना-अधिकारियों से कहा, “अंदर आओ, इन सबको मार डालो! एक भी भागने न पाए!”+ पहरेदार और सहायक सेना-अधिकारी सबको तलवार से मारते गए और उनकी लाशें बाहर फेंकते गए। वे लोगों को घात करते-करते बाल के मंदिर के अंदरवाले कमरे* तक पहुँच गए। 26 फिर वे मंदिर से सारे पूजा-स्तंभ+ बाहर ले आए और उन्हें जला दिया।+ 27 उन्होंने बाल का पूजा-स्तंभ ढा दिया+ और मंदिर+ को गिरा दिया और उस जगह को शौचालय बना दिया। वह आज तक ऐसा ही है।
28 इस तरह येहू ने इसराएल से बाल की उपासना का नामो-निशान मिटा दिया। 29 मगर वह उन पापों से दूर नहीं रहा, जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे। येहू ने बेतेल और दान में बने सोने के बछड़े की मूरतें रहने दीं।+ 30 यहोवा ने येहू से कहा, “मैंने अहाब के घराने के बारे में अपने मन में जो-जो ठाना था,+ वह सब तूने किया और इस तरह मेरी नज़र में सही काम किया। तूने जो सही कदम उठाया, उस वजह से चार पीढ़ियों तक तेरे बेटे इसराएल की राजगद्दी पर बैठेंगे।”+ 31 मगर येहू ने इसराएल के परमेश्वर यहोवा के कानून को पूरे दिल से मानने का ध्यान नहीं रखा।+ वह उन पापों से दूर नहीं रहा जो यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+
32 उन्हीं दिनों यहोवा इसराएल के इलाके की सीमा घटाने लगा। हजाएल पूरे इसराएल के अलग-अलग प्रांतों पर हमला करता रहा।+ 33 उसने यरदन के पूरब में गिलाद के पूरे इलाके से हमला करना शुरू किया, जहाँ गाद, रूबेन और मनश्शे गोत्र के लोग+ रहते थे। इसमें अरनोन घाटी के पासवाले अरोएर से लेकर गिलाद और बाशान तक का इलाका भी शामिल था।+
34 येहू की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए, उनका और उसके बड़े-बड़े कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 35 फिर येहू की मौत हो गयी* और उसे सामरिया में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा यहोआहाज+ राजा बना। 36 येहू ने सामरिया से इसराएल पर 28 साल राज किया था।
11 जब अहज्याह की माँ अतल्याह+ ने देखा कि उसका बेटा मर गया है,+ तो उसने शाही खानदान के सभी वारिसों को मार डाला।*+ 2 लेकिन राजा यहोराम की बेटी और अहज्याह की बहन यहोशेबा ने अहज्याह के बेटे यहोआश+ को बचा लिया। उसने यहोआश को राजा के बेटों में से चुपके से उठा लिया जिन्हें अतल्याह मार डालनेवाली थी। यहोशेबा, यहोआश और उसकी धाई को सोने के कमरे में ले गयी और उन्हें वहाँ छिपा दिया। उन्होंने किसी तरह यहोआश को अतल्याह से छिपाए रखा, इसलिए वह नहीं मारा गया। 3 यहोआश छ: साल तक उसके साथ रहा। उसे यहोवा के भवन में छिपाकर रखा गया। इस दौरान अतल्याह देश पर राज करती रही।
4 सातवें साल यहोयादा ने सौ-सौ शाही अंगरक्षकों* के दल के अधिकारियों को और महल के सौ-सौ पहरेदारों के दल के अधिकारियों+ को बुलवाया और उन्हें यहोवा के भवन में अपने पास इकट्ठा किया। यहोयादा ने यहोवा के भवन में उन अधिकारियों के साथ एक करार किया और उन्हें शपथ धरायी कि वे उस करार को मानेंगे। इसके बाद उसने उन्हें राजा का बेटा दिखाया।+ 5 उसने उन्हें आदेश दिया, “तुम्हें यह करना होगा: तुममें से एक-तिहाई आदमी सब्त के दिन काम पर होंगे और राजमहल पर कड़ी नज़र रखेंगे,+ 6 एक-तिहाई आदमी ‘नींव के फाटक’ पर तैनात होंगे और बचे हुए एक-तिहाई आदमी महल में पहरेदारों के पीछेवाले फाटक पर तैनात होंगे। तुम सब बारी-बारी से भवन पर नज़र रखोगे। 7 पहरेदारों के उन दो दलों को भी आना होगा जिनकी सब्त के दिन काम पर आने की बारी नहीं है और उन्हें यहोवा के भवन में राजा की हिफाज़त के लिए सख्त पहरा देना होगा। 8 तुम सब अपने हाथों में हथियार लिए राजा के चारों तरफ तैनात रहना और उसकी रक्षा करना। अगर कोई सैनिकों के घेरे के अंदर घुसने की कोशिश करे तो उसे मार डालना। राजा जहाँ कहीं जाए* तुम उसके साथ रहना।”
9 सौ-सौ की टुकड़ियों के अधिकारियों+ ने ठीक वैसा ही किया जैसा यहोयादा याजक ने उन्हें आदेश दिया था। सब्त के दिन हर अधिकारी ने अपने दल के सभी आदमियों को लिया। जिन आदमियों की सेवा करने की बारी थी, उनके साथ-साथ उन आदमियों को भी लिया गया जिनकी बारी नहीं थी। वे सब यहोयादा याजक के पास इकट्ठा हुए।+ 10 याजक ने सौ-सौ की टुकड़ियों के अधिकारियों को भाले और गोलाकार ढालें दीं। ये हथियार राजा दाविद के थे जो यहोवा के भवन में रखे हुए थे। 11 महल के पहरेदार+ हाथ में हथियार लिए परमेश्वर के भवन में अपनी-अपनी जगह तैनात हुए। वे भवन के दाएँ कोने से लेकर बाएँ कोने तक तैनात थे। वे वेदी+ और भवन के पास यानी राजा के चारों तरफ खड़े थे। 12 फिर यहोयादा, राजा के बेटे+ को बाहर लाया और उसे ताज पहनाया और उसके ऊपर साक्षी-पत्र*+ रखा और उन्होंने उसका अभिषेक करके उसे राजा बनाया। फिर वे तालियाँ बजाने लगे और कहने लगे, “राजा की जय हो! राजा की जय हो!”+
13 जब अतल्याह ने लोगों के दौड़ने का शोर सुना तो वह फौरन यहोवा के भवन में वहाँ आयी जहाँ लोगों की भीड़ इकट्ठा थी।+ 14 उसने देखा कि दस्तूर के मुताबिक राजा खंभे के पास खड़ा है+ और उसके साथ प्रधान और तुरही फूँकनेवाले+ भी हैं। देश के सभी लोग खुशियाँ मना रहे हैं और तुरहियाँ फूँकी जा रही हैं। यह देखते ही अतल्याह ने अपने कपड़े फाड़े और वह चिल्लाने लगी, “यह साज़िश है! साज़िश!” 15 तब यहोयादा याजक ने सौ-सौ की टुकड़ियों के अधिकारियों को हुक्म दिया,+ “इस औरत को सैनिकों के बीच से बाहर ले जाओ। अगर कोई इसके पीछे-पीछे जाए तो उसे तलवार से मार डालो!” याजक ने उनसे कहा था, “उस औरत को यहोवा के भवन में घात मत करना।” 16 इसलिए वे उसे पकड़कर ले गए और जब वह उस जगह पहुँची जहाँ से घोड़े महल+ में जाया करते थे, तो उसे मार डाला गया।
17 फिर यहोयादा ने यहोवा और राजा और लोगों के बीच एक करार किया+ कि वे यहोवा के लोग बने रहेंगे। उसने राजा और लोगों के बीच भी एक करार किया।+ 18 इसके बाद देश के सब लोगों ने बाल के मंदिर में जाकर उसकी वेदियाँ ढा दीं,+ उसकी मूरतें चूर-चूर कर दीं+ और वेदियों के सामने ही बाल के पुजारी मत्तान को मार डाला।+
फिर यहोयादा याजक ने कुछ आदमियों को यहोवा के भवन की निगरानी करने का काम सौंपा।+ 19 फिर उसने सौ-सौ की टुकड़ियों के अधिकारियों,+ शाही अंगरक्षकों, महल के पहरेदारों+ और देश के सभी लोगों को साथ लिया और वे सब राजा को यहोवा के भवन से बाहर ले गए। वे महल के पहरेदारोंवाले फाटक से राजमहल के अंदर आए। फिर वह जाकर राजगद्दी पर बैठ गया।+ 20 देश के सभी लोगों ने खुशियाँ मनायीं और शहर में शांति छा गयी क्योंकि राजमहल के पास अतल्याह को तलवार से मार डाला गया था।
21 यहोआश+ जब राजा बना तब वह सात साल का था।+
12 यहोआश+ येहू के राज+ के सातवें साल में राजा बना था और उसने 40 साल यरूशलेम में रहकर राज किया। उसकी माँ का नाम सिब्याह था जो बेरशेबा की रहनेवाली थी।+ 2 जब तक याजक यहोयादा यहोआश का मार्गदर्शन करता रहा तब तक वह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा। 3 मगर उसके राज में ऊँची जगह+ नहीं मिटायी गयीं और लोग उन जगहों पर बलिदान चढ़ाते रहे ताकि उनका धुआँ उठे।
4 यहोआश ने याजकों से कहा, “यहोवा के भवन में पवित्र चढ़ावे के तौर पर जितना पैसा दिया जाता है वह सब तुम लेना,+ यानी हर किसी का कर,+ हर किसी के लिए तय की गयी रकम और वह पैसा जो दिल के उभारने पर लोग यहोवा के भवन में लाकर देते हैं।+ 5 हर याजक खुद जाकर दान करनेवालों* से पैसा इकट्ठा करेगा और भवन में जहाँ कहीं दरारें हों उनकी मरम्मत के लिए सारा पैसा इस्तेमाल करेगा।”+
6 राजा यहोआश के राज का 23वाँ साल हो गया था मगर याजकों ने अब तक भवन की मरम्मत नहीं करवायी।+ 7 इसलिए राजा ने याजक यहोयादा+ और दूसरे याजकों को बुलाया और उनसे कहा, “भवन की मरम्मत अब तक क्यों नहीं की गयी? अगर तुम मरम्मत के काम के लिए पैसा इस्तेमाल नहीं कर रहे हो, तो दान करनेवालों से पैसा लेना बंद कर दो।”+ 8 याजकों ने लोगों से पैसा लेने और भवन की मरम्मत करने की ज़िम्मेदारी राजा को वापस दे दी।
9 तब याजक यहोयादा ने एक पेटी+ ली और उसके ढक्कन में छेद किया और उसे यहोवा के भवन में ऐसी जगह रखा कि वह भवन में आनेवालों को दायीं तरफ वेदी के पास नज़र आए। दरबान का काम करनेवाले याजक उस पेटी में वह सारा पैसा डालते थे जो यहोवा के भवन में लाया जाता था।+ 10 जब भी वे देखते कि पेटी भर गयी है, वे जाकर राजा के सचिव और महायाजक को बताते और वे दोनों आकर यहोवा के भवन में लाया गया सारा पैसा इकट्ठा करते* और उसकी गिनती करते।+ 11 फिर वे पैसा ले जाकर उन आदमियों को देते जिन्हें यहोवा के भवन में काम की निगरानी सौंपी गयी थी। फिर निगरानी करनेवाले पैसा ले जाकर यहोवा के भवन की मरम्मत करनेवाले बढ़इयों और राजगीरों को देते थे,+ 12 और राजमिस्त्रियों और पत्थर काटनेवाले कारीगरों को भी देते थे। इतना ही नहीं, वे उस पैसे से यहोवा के भवन की मरम्मत के लिए शहतीरें और गढ़े हुए पत्थर लाया करते थे और मरम्मत के काम का बाकी सारा खर्च पूरा करते थे।
13 मगर यहोवा के भवन में लाया गया पैसा चाँदी के कटोरे, बाती बुझाने की कैंचियाँ, कटोरियाँ और तुरहियाँ+ बनाने में बिलकुल इस्तेमाल नहीं किया गया, न ही यहोवा के भवन के लिए सोने-चाँदी की कोई और चीज़ बनाने में लगाया गया।+ 14 यह पैसा वे सिर्फ निगरानी करनेवालों को दिया करते थे जो उसे यहोवा के भवन की मरम्मत में लगाते थे। 15 वे निगरानी करनेवाले उन आदमियों से कभी हिसाब-किताब नहीं माँगते थे जिन्हें कारीगरों की मज़दूरी चुकाने के लिए पैसा दिया जाता था क्योंकि वे भरोसेमंद आदमी थे।+ 16 लेकिन जो पैसा दोष-बलियों+ और पाप-बलियों के लिए दिया जाता था वह यहोवा के भवन की मरम्मत में नहीं इस्तेमाल किया जाता था। उस पर याजकों का हक था।+
17 बाद में सीरिया के राजा हजाएल+ ने गत+ पर हमला किया और उस पर कब्ज़ा कर लिया। फिर उसने यरूशलेम पर हमला करने का फैसला किया।*+ 18 तब यहूदा के राजा यहोआश ने वह सारी चीज़ें हजाएल को भेज दीं जो उसके पुरखों ने यानी यहूदा के राजा यहोशापात, यहोराम और अहज्याह ने पवित्र ठहरायी थीं और वह चीज़ें भी जो खुद उसने पवित्र ठहरायी थीं। उसने यहोवा के भवन के खज़ाने और राजमहल के खज़ाने का सारा सोना भी उसे भेज दिया। इसलिए हजाएल ने यरूशलेम पर हमला नहीं किया और लौट गया।+
19 यहोआश की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 20 यहोआश के सेवकों ने मिलकर उसके खिलाफ साज़िश रची+ और सिल्ला जानेवाले रास्ते पर टीले*+ के भवन में उसे मार डाला। 21 उसका कत्ल करनेवाले सेवक थे, शिमात का बेटा योजाकार और शोमेर का बेटा यहोजाबाद।+ उन्होंने उसे दाविदपुर में उसके पुरखों की कब्र में दफना दिया और उसकी जगह उसका बेटा अमज्याह राजा बना।+
13 जब यहूदा में अहज्याह+ के बेटे यहोआश+ के राज का 23वाँ साल चल रहा था, तब इसराएल में येहू+ का बेटा यहोआहाज राजा बना। यहोआहाज ने सामरिया में रहकर 17 साल राज किया। 2 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। वह उस पाप में डूबा रहा जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाया था।+ वह उससे बाज़ नहीं आया। 3 इसलिए इसराएल पर यहोवा का क्रोध+ भड़क उठा+ और उसने उन्हें सीरिया के राजा हजाएल+ और उसके बेटे बेन-हदद+ के हाथ में कर दिया। और वे काफी समय तक उनके कब्ज़े में रहे।
4 कुछ समय बाद यहोआहाज ने यहोवा से रहम की भीख माँगी और यहोवा ने उसकी बिनती सुनी, क्योंकि उसने देखा था कि सीरिया का राजा इसराएल पर कैसे-कैसे अत्याचार कर रहा है।+ 5 इसलिए यहोवा ने इसराएल को एक बचानेवाला दिया+ जिसने उसे सीरिया के चंगुल से छुड़ाया। अब इसराएली पहले की तरह अपने घरों में रहने लगे।* 6 (फिर भी उन्होंने वह पाप करना नहीं छोड़ा जो यारोबाम के घराने ने इसराएल से करवाया था।+ वे उस पाप में डूबे रहे* और सामरिया में जो पूजा-लाठ*+ थी उसे नहीं हटाया गया।) 7 यहोआहाज के पास सिर्फ 50 घुड़सवारों, 10 रथों और 10,000 पैदल सैनिकों की सेना रह गयी थी, क्योंकि सीरिया के राजा ने उसकी सेना को नाश कर दिया था+ और उसे खलिहान में अनाज की धूल की तरह रौंद डाला था।+
8 यहोआहाज की ज़िंदगी की बाकी कहानी और उसने जो-जो काम किए, उनका और उसके बड़े-बड़े कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 9 फिर यहोआहाज की मौत हो गयी* और उसे सामरिया में दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा यहोआश राजा बना।
10 जब यहोआहाज का बेटा यहोआश+ इसराएल का राजा बना, तब यहूदा में राजा यहोआश के राज का 37वाँ साल चल रहा था। इसराएल के राजा यहोआश ने सामरिया में रहकर 16 साल राज किया। 11 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा और उन पापों से बाज़ नहीं आया जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+ वह उन पापों में डूबा रहा।
12 यहोआश की ज़िंदगी की बाकी कहानी और उसने जो-जो काम किए उनका, उसके महान कामों का और उसने कैसे यहूदा के राजा अमज्याह से युद्ध किया,+ उन सबका ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 13 फिर यहोआश की मौत हो गयी* और उसे सामरिया में इसराएल के राजाओं की कब्र में दफनाया गया।+ यहोआश के बाद यारोबाम*+ राजगद्दी पर बैठा।
14 एलीशा+ बीमार हो गया था जिस वजह से बाद में उसकी मौत हो गयी। जब वह बीमार था तब इसराएल का राजा यहोआश उसके पास आया और उसके लिए रोने लगा। उसने कहा, “हे मेरे पिता, मेरे पिता! इसराएल का रथ और उसके घुड़सवार!”+ 15 एलीशा ने उससे कहा, “एक कमान और कुछ तीर ले।” उसने एक कमान और कुछ तीर लिए। 16 एलीशा ने इसराएल के राजा से कहा, “अपनी कमान हाथ में ले।” उसने कमान ली और एलीशा ने अपने हाथ राजा के हाथों पर रखे। 17 उसने राजा से कहा, “पूरब की तरफवाली खिड़की खोल।” उसने खिड़की खोली। एलीशा ने कहा, “चला तीर!” उसने तीर चलाया। एलीशा ने कहा, “यह यहोवा से मिलनेवाली जीत* का तीर है, सीरिया पर मिलनेवाली जीत* का तीर! तू अपेक+ में सीरिया को तब तक मारता रहेगा* जब तक कि तू उसे मिटा नहीं देता।”
18 फिर एलीशा ने कहा, “कुछ तीर हाथ में ले।” उसने तीर लिए। एलीशा ने इसराएल के राजा से कहा, “अब इन्हें ज़मीन पर मार।” वह तीन बार मारकर रुक गया। 19 यह देखकर सच्चे परमेश्वर के सेवक को उस पर बहुत गुस्सा आया और उसने कहा, “तुझे ज़मीन पर पाँच-छ: बार मारना चाहिए था! अगर तू ऐसा करता, तो तू सीरिया को तब तक मारता रहता जब तक कि उसे मिटा नहीं देता। मगर अब तू सिर्फ तीन बार उसे हरा पाएगा।”+
20 इसके बाद एलीशा की मौत हो गयी और उसे दफनाया गया। मोआब के लुटेरे-दल+ साल की शुरूआत में* इसराएल पर हमला करने आते थे। 21 जब कुछ आदमी एक लाश दफना रहे थे, तो उन्होंने मोआब के लुटेरे-दल को देखा। इसलिए वे जल्दी से लाश एलीशा की कब्र में फेंककर भाग गए। वह लाश एलीशा की हड्डियों से जा लगी और वह आदमी ज़िंदा हो गया+ और अपने पैरों पर खड़ा हो गया।
22 यहोआहाज की सारी ज़िंदगी सीरिया का राजा हजाएल+ इसराएल पर अत्याचार करता रहा।+ 23 मगर यहोवा ने अब्राहम,+ इसहाक+ और याकूब के साथ किए करार+ की वजह से इसराएल पर तरस खाया और उस पर दया की।+ वह इसराएल को नाश नहीं करना चाहता था। उसने आज तक इसराएल को अपनी नज़रों से दूर नहीं किया। 24 जब सीरिया का राजा हजाएल मर गया, तो उसकी जगह उसका बेटा बेन-हदद राजा बना। 25 फिर यहोआहाज के बेटे यहोआश ने हजाएल के बेटे बेन-हदद से वे सारे शहर वापस ले लिए, जो हजाएल ने यहोआहाज से युद्ध करके ले लिए थे। यहोआश ने बेन-हदद को तीन बार युद्ध में हराया+ और इसराएल के शहर उससे वापस ले लिए।
14 जब इसराएल में यहोआहाज के बेटे राजा यहोआश+ के राज का दूसरा साल चल रहा था, तब यहूदा में राजा यहोआश का बेटा अमज्याह राजा बना। 2 उस समय अमज्याह 25 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 29 साल राज किया। उसकी माँ का नाम यहोअद्दीन था जो यरूशलेम की रहनेवाली थी।+ 3 अमज्याह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा, मगर वह अपने पुरखे दाविद+ की तरह नहीं था। उसने सबकुछ वैसा ही किया जैसा उसके पिता यहोआश ने किया था।+ 4 मगर उसके राज में ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं+ और लोग अब भी उन जगहों पर बलिदान चढ़ाते थे ताकि उनका धुआँ उठे।+ 5 जैसे ही अमज्याह ने राज पर अपनी पकड़ मज़बूत की, उसने अपने उन सेवकों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता यहोआश का कत्ल किया था।+ 6 मगर उसने उन कातिलों के बेटों को नहीं मारा क्योंकि उसने मूसा के कानून की किताब में लिखी यहोवा की यह आज्ञा मानी: “बेटों के पाप के लिए पिताओं को न मार डाला जाए और न ही पिताओं के पाप के लिए बेटों को मार डाला जाए। जो पाप करता है उसके पाप के लिए उसी को मौत की सज़ा दी जाए।”+ 7 फिर अमज्याह ने नमक घाटी+ में एदोम+ से युद्ध करके उसके 10,000 आदमियों को मार डाला और एदोमी शहर सेला पर कब्ज़ा कर लिया।+ उसने शहर का नाम बदलकर योकतेल रखा और आज तक उसका नाम यही है।
8 इसके बाद अमज्याह ने अपने दूतों के हाथ इसराएल के राजा यहोआश को (जो यहोआहाज का बेटा और येहू का पोता था) यह संदेश भेजा: “युद्ध के मैदान में आ, हम एक-दूसरे से मुकाबला* करें।”+ 9 इसराएल के राजा यहोआश ने यहूदा के राजा अमज्याह को यह जवाब भेजा: “लबानोन के काँटेदार पौधे ने लबानोन के देवदार को एक संदेश भेजा, ‘अपनी बेटी का हाथ मेरे बेटे के हाथ में दे दे।’ मगर लबानोन का एक जंगली जानवर वहाँ से गुज़रा और उसने काँटेदार पौधे को रौंद डाला। 10 माना कि तूने एदोम को हराया है,+ मगर तेरा मन घमंड से इतना क्यों फूल रहा है? तूने जो नाम कमाया है उसकी खुशियाँ मना, पर अपने महल में रहकर। क्यों तू बेकार में मुसीबत को दावत दे रहा है? खुद तो डूबेगा ही, साथ में पूरे यहूदा को भी ले डूबेगा।” 11 मगर अमज्याह ने यहोआश की बात नहीं मानी।+
इसलिए इसराएल का राजा यहोआश, यहूदा के राजा अमज्याह से युद्ध करने निकला और उनका मुकाबला बेत-शेमेश+ में हुआ जो यहूदा के इलाके में है।+ 12 इसराएल ने यहूदा को हरा दिया और यहूदा के सभी लोग अपने-अपने घर* भाग गए। 13 इसराएल के राजा यहोआश ने बेत-शेमेश में यहूदा के राजा अमज्याह को पकड़ लिया, जो यहोआश का बेटा और अहज्याह का पोता था। यहोआश अमज्याह को पकड़कर यरूशलेम ले आया और उसने वहाँ की शहरपनाह का एक हिस्सा तोड़ दिया। उसने एप्रैम फाटक+ से लेकर ‘कोनेवाले फाटक’+ तक का 400 हाथ* लंबा हिस्सा ढा दिया। 14 यहोआश ने यहोवा के भवन से और राजमहल के खज़ानों से सारा सोना-चाँदी और दूसरा सामान लूट लिया और कुछ लोगों को बंदी बना लिया। फिर वह सामरिया लौट गया।
15 यहोआश की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए उनका, उसके बड़े-बड़े कामों का और उसने कैसे यहूदा के राजा अमज्याह से युद्ध किया, उन सबका ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 16 फिर यहोआश की मौत हो गयी* और उसे सामरिया में इसराएल के राजाओं की कब्र में दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा यारोबाम*+ राजा बना।
17 इसराएल के राजा यहोआहाज के बेटे यहोआश की मौत के बाद+ यहूदा का राजा अमज्याह+ (जो यहोआश का बेटा था) 15 साल और जीया।+ 18 अमज्याह की ज़िंदगी की बाकी कहानी यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखी है। 19 बाद में यरूशलेम में उसके खिलाफ साज़िश रची गयी,+ इसलिए वह लाकीश भाग गया। मगर उसके दुश्मनों ने अपने आदमियों को लाकीश भेजा और उसे वहाँ मरवा डाला। 20 वे उसकी लाश घोड़ों पर लादकर यरूशलेम ले आए और वहाँ दाविदपुर में उसके पुरखों की कब्र में उसे दफनाया गया।+ 21 फिर यहूदा के सब लोगों ने अमज्याह के बेटे अजरयाह*+ को उसकी जगह राजा बनाया।+ उस वक्त अजरयाह 16 साल का था।+ 22 जब राजा* की मौत हो गयी* तो उसने एलत+ को फिर से बनाया और उसे वापस यहूदा के अधिकार में कर दिया।+
23 जब यहूदा में यहोआश के बेटे, राजा अमज्याह के राज का 15वाँ साल चल रहा था, तब इसराएल में राजा यहोआश का बेटा यारोबाम+ राजा बना। यारोबाम ने सामरिया से इसराएल पर 41 साल राज किया। 24 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। वह उन सभी पापों से बाज़ नहीं आया जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+ 25 उसने लेबो-हमात*+ से लेकर अराबा के सागर*+ तक इसराएल का पूरा इलाका वापस ले लिया। इस तरह इसराएल के परमेश्वर यहोवा की वह बात पूरी हुई जो उसने अपने सेवक, भविष्यवक्ता योना+ से कहलवायी थी। योना, अमित्तै का बेटा था और गत-हेपेर+ का रहनेवाला था। 26 यहोवा ने देखा था कि इसराएल पर कैसा घोर अत्याचार हो रहा है।+ इसराएल की मदद करनेवाला कोई नहीं था। यहाँ तक कि लाचार या गरीब लोग भी नहीं रह गए थे। 27 मगर यहोवा ने वादा किया था कि वह धरती से इसराएल का नाम नहीं मिटने देगा।+ इसलिए उसने यहोआश के बेटे यारोबाम के ज़रिए इसराएल को बचाया।+
28 यारोबाम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए उनका, उसके बड़े-बड़े कामों का और उसने कैसे युद्ध किए और कैसे दमिश्क+ और हमात+ शहर वापस यहूदा और इसराएल में मिलाए, उन सबका ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 29 फिर यारोबाम की मौत हो गयी* और उसे इसराएल के राजाओं की कब्र में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा जकरयाह+ राजा बना।
15 जब इसराएल में राजा यारोबाम* के राज का 27वाँ साल चल रहा था, तब यहूदा में राजा अमज्याह+ का बेटा अजरयाह*+ राजा बना।+ 2 उस समय अजरयाह 16 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 52 साल राज किया। उसकी माँ का नाम यकोल्याह था जो यरूशलेम की रहनेवाली थी। 3 अजरयाह अपने पिता अमज्याह की तरह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा।+ 4 मगर उसके राज में ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं+ और लोग अब भी उन जगहों पर बलिदान चढ़ाते थे ताकि उनका धुआँ उठे।+ 5 यहोवा ने अजरयाह को कोढ़ की बीमारी से पीड़ित किया+ और वह अपनी मौत तक कोढ़ी रहा। वह एक अलग घर में रहने लगा+ और उस दौरान उसके बेटे योताम+ ने महल की बागडोर सँभाली और वह देश के लोगों का न्याय करता था।+ 6 अजरयाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी,+ उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 7 फिर अजरयाह की मौत हो गयी*+ और उसे दाविदपुर में उसके पुरखों की कब्र में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा योताम राजा बना।
8 जब यहूदा में अजरयाह+ के राज का 38वाँ साल चल रहा था, तब इसराएल के सामरिया में यारोबाम का बेटा जकरयाह+ राजा बना। जकरयाह ने छ: महीने राज किया। 9 उसने अपने पुरखों की तरह ऐसे काम किए जो यहोवा की नज़र में बुरे थे। उसने वे पाप करने नहीं छोड़े जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+ 10 फिर याबेश के बेटे शल्लूम ने जकरयाह के खिलाफ साज़िश रची और उसे यिबलाम+ में मार डाला।+ उसका कत्ल करने के बाद वह खुद राजा बन गया। 11 जकरयाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखी है। 12 इस तरह यहोवा की वह बात पूरी हुई जो उसने येहू से कही थी, “चार पीढ़ियों तक तेरे बेटे+ इसराएल की राजगद्दी पर बैठेंगे।”+ और वैसा ही हुआ।
13 जब इसराएल में याबेश का बेटा शल्लूम राजा बना, तब यहूदा में उज्जियाह+ के राज का 39वाँ साल चल रहा था। शल्लूम ने सामरिया से इसराएल पर एक महीने राज किया। 14 फिर गादी का बेटा मनहेम, तिरसा+ से सामरिया आया और वहाँ उसने याबेश के बेटे शल्लूम को मार डाला।+ उसका कत्ल करने के बाद वह खुद राजा बन गया। 15 शल्लूम की ज़िंदगी की बाकी कहानी और उसने जो साज़िश की, उसका ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 16 उसी दौरान मनहेम, तिरसा से तिपसह आया और उसने तिपसह और उसके आस-पास के इलाके पर हमला कर दिया। तिपसह के लोगों ने उसके लिए फाटक नहीं खोले, इसलिए उसने तिपसह और आस-पास के इलाके के सभी लोगों को मार डाला। उसने तिपसह को तबाह कर दिया और वहाँ की गर्भवती औरतों के पेट चीर दिए।
17 जब इसराएल में गादी का बेटा मनहेम राजा बना, तब यहूदा में अजरयाह के राज का 39वाँ साल चल रहा था। मनहेम ने सामरिया से इसराएल पर दस साल राज किया। 18 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। उसने सारी ज़िंदगी वे पाप करने नहीं छोड़े जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+ 19 अश्शूर का राजा पूल+ इसराएल पर हमला करने आया। तब मनहेम ने पूल को इस इरादे से 1,000 तोड़े* चाँदी दी कि वह इसराएल पर उसका राज मज़बूत करने में उसकी मदद करे।+ 20 उसने ये चाँदी इसराएल के बड़े-बड़े रईसों से वसूल करके इकट्ठी की थी।+ उसने हर रईस से 50 शेकेल* चाँदी लेकर अश्शूर के राजा को दी। इसलिए उस राजा ने देश पर हमला नहीं किया और वापस लौट गया। 21 मनहेम की ज़िंदगी की बाकी कहानी,+ उसके सभी कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 22 फिर मनहेम की मौत हो गयी* और उसकी जगह उसका बेटा पकह-याह राजा बना।
23 जब इसराएल के सामरिया में मनहेम का बेटा पकह-याह राजा बना, तब यहूदा में अजरयाह के राज का 50वाँ साल चल रहा था। पकह-याह ने दो साल राज किया। 24 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। उसने वे पाप करने नहीं छोड़े जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+ 25 फिर उसके सहायक सेना-अधिकारी पेकह+ ने, जो रमल्याह का बेटा था, उसके खिलाफ साज़िश की और अरगोब और अरये के साथ मिलकर उसका कत्ल कर दिया। पेकह ने उसे सामरिया में राजमहल की मीनार में मार डाला। पेकह के साथ गिलाद के 50 आदमी थे। पकह-याह का कत्ल करने के बाद पेकह खुद राजा बन गया। 26 पकह-याह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।
27 जब इसराएल के सामरिया में रमल्याह का बेटा पेकह राजा बना, तब यहूदा में अजरयाह के राज का 52वाँ साल चल रहा था। पेकह+ ने 20 साल राज किया। 28 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। उसने वे पाप करने नहीं छोड़े जो नबात के बेटे यारोबाम ने इसराएल से करवाए थे।+ 29 इसराएल के राजा पेकह के दिनों में अश्शूर के राजा तिगलत-पिलेसेर+ ने इसराएल पर हमला किया और इय्योन, आबेल-बेत-माका,+ यानोह, केदेश,+ हासोर और गिलाद+ पर और गलील यानी नप्ताली के पूरे इलाके पर कब्ज़ा कर लिया।+ वह वहाँ के लोगों को बंदी बनाकर अश्शूर ले गया।+ 30 फिर एलाह के बेटे होशेआ+ ने रमल्याह के बेटे पेकह के खिलाफ साज़िश की और उसे मार डाला। उसका कत्ल करने के बाद होशेआ खुद राजा बन गया। यह घटना उज्जियाह के बेटे योताम के राज के 20वें साल+ में घटी थी। 31 पेकह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।
32 जब इसराएल में रमल्याह के बेटे पेकह के राज का दूसरा साल चल रहा था, तब यहूदा में उज्जियाह+ का बेटा योताम+ राजा बना। 33 उस समय योताम 25 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 16 साल राज किया। उसकी माँ का नाम यरूशा था जो सादोक की बेटी थी।+ 34 योताम अपने पिता उज्जियाह की तरह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा।+ 35 मगर उसके राज में ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं और लोग अब भी उन जगहों पर बलिदान चढ़ाते थे ताकि उनका धुआँ उठे।+ योताम ने ही यहोवा के भवन का ऊपरी फाटक बनवाया था।+ 36 योताम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 37 उन्हीं दिनों यहोवा ने सीरिया के राजा रसीन और रमल्याह के बेटे पेकह+ को यहूदा पर हमला करने भेजा।+ 38 फिर योताम की मौत हो गयी* और उसे उसके पुरखे दाविद के शहर दाविदपुर में पुरखों की कब्र में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा आहाज राजा बना।
16 जब यहूदा में राजा योताम का बेटा आहाज+ राजा बना, तब इसराएल में रमल्याह के बेटे पेकह के राज का 17वाँ साल चल रहा था। 2 उस समय आहाज 20 साल का था और उसने यरूशलेम से यहूदा पर 16 साल राज किया। उसने ऐसे काम नहीं किए जो उसके परमेश्वर यहोवा की नज़र में सही थे, जैसे उसके पुरखे दाविद ने किए थे।+ 3 इसके बजाय उसने इसराएल के राजाओं के तौर-तरीके अपना लिए+ और उन राष्ट्रों के जैसे घिनौने काम किए,+ जिन्हें यहोवा ने इसराएलियों के सामने से खदेड़ दिया था। यहाँ तक कि उसने अपने बेटे को आग में होम कर दिया।+ 4 इतना ही नहीं, वह ऊँची जगहों और पहाड़ियों पर और हर घने पेड़ के नीचे+ बलिदान चढ़ाता था ताकि उनका धुआँ उठे।+
5 उन्हीं दिनों सीरिया का राजा रसीन और इसराएल का राजा पेकह, जो रमल्याह का बेटा था, आहाज से युद्ध करने यरूशलेम आए।+ उन्होंने शहर को घेर लिया मगर वे उस पर कब्ज़ा नहीं कर पाए। 6 उसी दौरान सीरिया के राजा रसीन ने एदोम को एलत शहर वापस दिलाया+ और उसके बाद एलत से यहूदियों* को भगा दिया। और एदोमी आकर एलत में रहने लगे और वे आज तक वहीं बसे हुए हैं। 7 इसलिए आहाज ने अपने दूतों के हाथ अश्शूर के राजा तिगलत-पिलेसेर+ के पास यह संदेश भेजा: “मालिक, मेरी मदद कर। मैं तेरा सेवक हूँ, तेरे सहारे जीता हूँ।* हमें सीरिया के राजा और इसराएल के राजा से बचा ले, जो हम पर हमला करने आए हैं।” 8 तब आहाज ने यहोवा के भवन और राजमहल के खज़ानों से सारा सोना-चाँदी लिया और अश्शूर के राजा को रिश्वत में भेजा।+ 9 अश्शूर के राजा ने उसकी गुज़ारिश मान ली। उसने दमिश्क जाकर उस पर हमला किया और उस पर कब्ज़ा कर लिया। वह उसके लोगों को बंदी बनाकर कीर ले गया+ और उसने रसीन को मार डाला।+
10 तब राजा आहाज अश्शूर के राजा तिगलत-पिलेसेर से मिलने दमिश्क गया। जब आहाज ने वहाँ की वेदी देखी तो उसने उसका एक नमूना याजक उरीयाह को भेजा जिसमें वेदी की बनावट की सारी बारीकियाँ बतायी गयी थीं।+ 11 याजक उरीयाह+ ने उन सारी हिदायतों के मुताबिक एक वेदी बनायी+ जो राजा आहाज ने दमिश्क से भेजी थीं। उसने वह वेदी राजा के दमिश्क से लौटने से पहले बनाकर तैयार कर दी। 12 जब राजा दमिश्क से लौटा तो उसने जाकर वेदी देखी। फिर वह वेदी के पास गया और उसने उस पर बलिदान चढ़ाए।+ 13 वह एक-के-बाद-एक होम-बलियाँ और अपने अनाज के चढ़ावे चढ़ाता रहा ताकि उनका धुआँ उठे। उसने अपना अर्घ भी चढ़ाया और अपनी शांति-बलियों का खून वेदी पर छिड़का। 14 फिर उसने ताँबे की वह वेदी हटा दी+ जो भवन के आगे यहोवा के सामने रखी हुई थी। उसने उस वेदी को अपनी बनायी हुई वेदी और यहोवा के भवन के बीच से हटा दिया और अपनी वेदी के उत्तर में रखा। 15 राजा आहाज ने याजक उरीयाह+ को आदेश दिया, “तू अब से इसी महावेदी पर सुबह की होम-बलि+ और शाम का अनाज का चढ़ावा+ और राजा की दी हुई होम-बलि और अनाज का चढ़ावा, साथ ही लोगों की दी हुई होम-बलियाँ, अनाज के चढ़ावे और अर्घ चढ़ाना। तू होम-बलियों और दूसरे बलिदानों का सारा खून इसी वेदी पर छिड़कना। जहाँ तक उस ताँबे की वेदी की बात है, मैं सोचकर बताता हूँ कि उसका क्या किया जाना चाहिए।” 16 राजा आहाज ने जो-जो आदेश दिया, याजक उरीयाह ने उन सबका पालन किया।+
17 इसके अलावा, राजा आहाज ने भवन की हथ-गाड़ियों में से हौदियाँ निकाल दीं+ और गाड़ियों की पट्टियाँ काटकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।+ ताँबे के बैलों पर जो बड़ा हौद रखा था+ उसे उसने उतार दिया और पत्थर के एक फर्श पर रख दिया।+ 18 भवन में सब्त के लिए जो छतवाली जगह बनी थी, उसे और उस दरवाज़े को उसने हटा दिया जहाँ से राजा यहोवा के भवन में जाया करता था। उसने अश्शूर के राजा की वजह से ऐसा किया।
19 आहाज की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए, उनका ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।+ 20 फिर आहाज की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में उसके पुरखों की कब्र में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा हिजकियाह*+ राजा बना।
17 जब यहूदा में आहाज के राज का 12वाँ साल चल रहा था, तब इसराएल में एलाह का बेटा होशेआ+ राजा बना। उसने सामरिया से इसराएल पर नौ साल राज किया। 2 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा, मगर उस हद तक नहीं जिस हद तक उससे पहले के इसराएल के राजाओं ने किए थे। 3 अश्शूर के राजा शलमन-एसेर ने होशेआ पर हमला कर दिया+ और होशेआ उसके अधीन हो गया और उसे कर देने लगा।+ 4 कुछ समय बाद अश्शूर के राजा को पता चला कि होशेआ उसके खिलाफ साज़िश कर रहा है क्योंकि होशेआ ने मिस्र के राजा सो के पास अपने दूत भेजे थे+ और उसने अश्शूर के राजा को कर लाकर नहीं दिया, जैसे वह बीते सालों में दिया करता था। इसलिए अश्शूर के राजा ने होशेआ को पकड़ लिया और कैद में डाल दिया।
5 इसके बाद अश्शूर के राजा ने आकर पूरे इसराएल देश पर हमला कर दिया और सामरिया की घेराबंदी की और तीन साल तक उसे घेरे रहा। 6 उसने होशेआ के राज के नौवें साल में सामरिया पर कब्ज़ा कर लिया।+ फिर वह इसराएल के लोगों को बंदी+ बनाकर अश्शूर ले गया और उन्हें हलह में, गोजान नदी+ के पास हाबोर में और मादियों के शहरों में बसा दिया।+
7 यह सब इसलिए हुआ क्योंकि इसराएल के लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा के खिलाफ पाप किया था, जो उन्हें मिस्र के राजा फिरौन के चंगुल से छुड़ाकर वहाँ से निकाल लाया था।+ इसराएल के लोग दूसरे देवताओं को पूजते थे।*+ 8 उन्होंने उन राष्ट्रों के रीति-रिवाज़ अपना लिए जिन्हें यहोवा ने उनके सामने से खदेड़ दिया था, साथ ही वे इसराएल के राजाओं के बनाए रीति-रिवाज़ भी मानते थे।
9 इसराएली ऐसे कामों में लग गए जो उनके परमेश्वर यहोवा के मुताबिक सही नहीं थे। वे अपने सभी शहरों में ऊँची जगह बनाते गए, उन्होंने पहरे की मीनार से लेकर किलेबंद शहरों तक का कोना-कोना ऊँची जगहों से भर दिया।*+ 10 वे हर ऊँची पहाड़ी पर और हर घने पेड़ के नीचे+ अपने लिए पूजा-स्तंभ और पूजा-लाठ* बनाते गए।+ 11 वे उन सभी ऊँची जगहों पर बलिदान चढ़ाते थे ताकि उनका धुआँ उठे। वे उन राष्ट्रों की देखा-देखी ऐसा करने लगे जिन्हें यहोवा ने उनके सामने से खदेड़ दिया था।+ वे लगातार दुष्ट काम करके यहोवा का क्रोध भड़काते रहे।
12 वे उन घिनौनी मूरतों* की पूजा करते रहे+ जिनके बारे में यहोवा ने उनसे कहा था, “तुम ऐसा मत करना!”+ 13 यहोवा अपने सब भविष्यवक्ताओं और दर्शियों को भेजकर इसराएल और यहूदा को चेतावनी देता और समझाता रहा,+ “तुम लोग ये दुष्ट काम करना छोड़ दो और पलटकर मेरे पास लौट आओ!+ और उस कानून में लिखी आज्ञाएँ और विधियाँ मानो जो मैंने तुम्हारे पुरखों को दिया था और अपने सेवक भविष्यवक्ताओं के ज़रिए तुम्हें दिया था।” 14 मगर उन्होंने उसकी बात नहीं मानी और वे अपने पुरखों की तरह ढीठ बने रहे जिन्होंने अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास नहीं किया था।+ 15 वे उसके नियमों को ठुकराते रहे और उन्होंने वह करार तोड़ दिया+ जो परमेश्वर ने उनके पुरखों के साथ किया था। परमेश्वर उन्हें याद दिलाकर चेतावनी देता रहा मगर वे अनसुनी करते रहे।+ वे निकम्मी मूरतों की पूजा करते रहे+ और खुद निकम्मे बन गए।+ इस तरह उन्होंने अपने आस-पास के राष्ट्रों के तौर-तरीके अपना लिए, जबकि यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि तुम उनके तौर-तरीके मत अपनाना।+
16 वे अपने परमेश्वर यहोवा की सारी आज्ञाएँ तोड़ते रहे। उन्होंने धातु के दो बछड़े तैयार किए *+ और एक पूजा-लाठ+ बनायी और वे आकाश की सारी सेना के आगे झुककर दंडवत करने लगे+ और बाल देवता को पूजने लगे।+ 17 इतना ही नहीं, उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को आग में होम कर दिया,+ ज्योतिषी के काम करने लगे,+ शकुन विचारने लगे और ऐसे कामों में डूब गए* जो यहोवा की नज़र में बुरे थे और उन्होंने ऐसा करके उसका क्रोध भड़काया।
18 इसलिए यहोवा इसराएल पर बहुत क्रोधित हुआ और उसने उन्हें अपनी नज़रों से दूर कर दिया।+ उसने यहूदा गोत्र के सिवा किसी और को न छोड़ा।
19 यहूदा के लोगों ने भी अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएँ नहीं मानीं।+ उन्होंने भी वही रीति-रिवाज़ अपना लिए जो इसराएल के लोगों ने अपनाए थे।+ 20 यहोवा ने इसराएल के सभी वंशजों को ठुकरा दिया, उन्हें नीचा दिखाया और लुटेरों के हाथ में कर दिया। वह ऐसा तब तक करता रहा जब तक उसने उन्हें अपने सामने से हटा न दिया। 21 उसने दाविद के घराने से इसराएल को छीन लिया। फिर नबात के बेटे यारोबाम को राजा बनाया गया।+ मगर यारोबाम इसराएलियों को यहोवा की उपासना से दूर ले गया और उनसे एक बहुत बड़ा पाप करवाया। 22 वे उन सभी पापों में डूबे रहे जो यारोबाम ने किए थे।+ उन्होंने वे पाप करने नहीं छोड़े। 23 आखिरकार यहोवा ने इसराएल को अपनी नज़रों से दूर कर दिया, ठीक जैसे उसने अपने सब सेवकों यानी भविष्यवक्ताओं से कहलवाया था।+ इसलिए इसराएल के लोगों को बंदी बनाकर अश्शूर ले जाया गया+ और वे आज तक वहीं हैं।
24 फिर अश्शूर का राजा बैबिलोन, कूता, अव्वा, हमात और सपरवैम+ शहर से लोगों को ले आया और उसने उन सबको सामरिया के शहरों में बसा दिया जहाँ इसराएली रहते थे। उन लोगों ने सामरिया को अपने अधिकार में कर लिया और वे उसके शहरों में बस गए। 25 जब वे लोग वहाँ बसे तो शुरू में वे यहोवा का डर नहीं मानते थे।* इसलिए यहोवा ने उनके यहाँ शेरों को भेजा+ जिन्होंने उनमें से कुछ लोगों को मार डाला। 26 अश्शूर के राजा को यह खबर दी गयी: “तूने जिन राष्ट्रों के लोगों को बंदी बनाकर सामरिया के शहरों में बसाया है, वे उस देश के परमेश्वर की उपासना करने का तरीका* नहीं जानते। इसलिए वह परमेश्वर उनके बीच शेरों को भेज रहा है जो लोगों को मार डालते हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि उनमें से कोई भी उस देश के परमेश्वर की उपासना करने का तरीका नहीं जानता।”
27 यह खबर सुनकर अश्शूर के राजा ने हुक्म दिया, “तुम जिन लोगों को सामरिया से बंदी बनाकर लाए हो उनमें से एक याजक को वापस वहाँ भेज दो। वह वहाँ रहकर लोगों को उस देश के परमेश्वर की उपासना करने का तरीका सिखाएगा।” 28 तब सामरिया से बंदी बनाए गए याजकों में से एक याजक वापस बेतेल+ आया और वहाँ रहकर वह लोगों को सिखाने लगा कि उन्हें कैसे यहोवा का डर मानना* चाहिए।+
29 फिर भी हर राष्ट्र के लोगों ने अपने-अपने देवता की मूरत बनायी* और उन मूरतों को ऊँची जगहों पर बने पूजा-घरों में रखा। ये सभी ऊँची जगह सामरी लोगों ने बनायी थीं। हर राष्ट्र से आए लोगों ने उन शहरों में ऐसा किया था जहाँ वे बस गए थे। 30 बैबिलोन के लोगों ने सुक्कोत-बनोत की मूरत बनायी, कूत के लोगों ने नेरगल की, हमात के लोगों+ ने अशीमा की 31 और अव्वा के लोगों ने निभज और तरताक की मूरतें बनायीं। सपरवैम के लोग अपने यहाँ के देवता अद्र-मेलेक और अन-मेलेक के लिए अपने बेटों को आग में होम करते थे।+ 32 हालाँकि लोग यहोवा का डर मानते थे मगर उन्होंने आम लोगों में से कुछ आदमियों को चुनकर उन्हें ऊँची जगहों के पुजारी बना दिया और ये पुजारी ऊँची जगहों पर बने पूजा-घरों में सेवा करते थे।+ 33 इस तरह लोग यहोवा का डर तो मानते थे लेकिन पूजा अपने देवताओं की ही करते थे और उन राष्ट्रों के धर्मों* को मानते थे जहाँ से उन्हें बंदी बनाकर यहाँ लाया गया था।+
34 आज तक ये लोग अपने पुराने धर्मों* को ही मानते हैं। उनमें से कोई भी यहोवा की उपासना नहीं करता,* न ही यहोवा की विधियों, उसके न्याय-सिद्धांतों, कानून और उसकी आज्ञाओं को मानता है जो उसने याकूब के बेटों को दी थीं, जिसका नाम बदलकर उसने इसराएल रखा था।+ 35 यहोवा ने उसके बेटों के साथ एक करार किया था+ और उन्हें यह आज्ञा दी थी, “तुम दूसरे देवताओं का डर मत मानना और उनके आगे दंडवत मत करना, न उनकी सेवा करना और न ही उनके लिए बलिदान चढ़ाना।+ 36 तुम सिर्फ यहोवा का डर मानना+ जो अपना हाथ बढ़ाकर अपनी महाशक्ति से तुम्हें मिस्र से निकाल लाया था।+ तुम उसी के आगे दंडवत करना और उसी के लिए बलिदान चढ़ाना। 37 उसने तुम्हारे लिए जो नियम, न्याय-सिद्धांत, कानून और आज्ञाएँ लिखवायी थीं,+ तुम उनका सख्ती से पालन करना और दूसरे देवताओं का डर मत मानना। 38 तुम वह करार कभी मत भूलना जो मैंने तुम्हारे साथ किया था+ और दूसरे देवताओं का डर मत मानना। 39 मगर तुम सिर्फ अपने परमेश्वर यहोवा का डर मानना क्योंकि वही तुम्हें सभी दुश्मनों के हाथ से छुड़ाएगा।”
40 मगर उन्होंने उसकी आज्ञा नहीं मानी और वे अपने पुराने धर्म* को ही मानते रहे।+ 41 वे यहोवा का डर मानने लगे,+ पर साथ ही अपनी गढ़ी हुई मूरतों की सेवा करते थे। उनके बेटे और पोते भी उन्हीं की लीक पर चले और आज तक वे ऐसा ही करते हैं।
18 जब इसराएल में एलाह के बेटे होशेआ+ के राज का तीसरा साल चल रहा था, तब यहूदा में राजा आहाज+ का बेटा हिजकियाह+ राजा बना। 2 उस समय हिजकियाह 25 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 29 साल राज किया। उसकी माँ का नाम अबी* था जो जकरयाह की बेटी थी।+ 3 हिजकियाह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा,+ ठीक जैसे उसके पुरखे दाविद ने किया था।+ 4 हिजकियाह ही वह राजा था जिसने ऊँची जगह हटायीं,+ पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर दिए और पूजा-लाठ* काट डाली।+ उसने ताँबे का वह साँप भी चूर-चूर कर दिया जो मूसा ने बनवाया था।+ उस साँप को ‘ताँबे के साँप की मूरत’* कहा जाता था। इसराएली अब भी उसके आगे बलिदान चढ़ाया करते थे ताकि उनका धुआँ उठे। 5 हिजकियाह ने हमेशा इसराएल के परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखा।+ यहूदा में जितने राजा हुए थे उनमें हिजकियाह जैसा राजा कोई न था, न उसके पहले न उसके बाद। 6 वह हमेशा यहोवा से लिपटा रहा+ और उसकी बतायी राह से कभी दूर नहीं गया। वह उन आज्ञाओं को मानता रहा जो यहोवा ने मूसा को दी थीं। 7 और यहोवा ने भी उसका साथ नहीं छोड़ा। हिजकियाह ने जो भी काम किया बड़ी बुद्धिमानी से किया। उसने अश्शूर के राजा से बगावत की और उसकी सेवा करने से इनकार कर दिया।+ 8 उसने पलिश्तियों को भी हरा दिया+ और पहरे की मीनार से लेकर किलेबंद शहर तक* उनके सभी इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया। उनमें गाज़ा और उसके आस-पास के इलाके भी थे।
9 जब यहूदा में हिजकियाह के राज का चौथा साल और इसराएल में एलाह के बेटे होशेआ+ के राज का सातवाँ साल चल रहा था, तब अश्शूर के राजा शलमन-एसेर ने सामरिया पर हमला कर दिया और उसकी घेराबंदी करने लगा।+ 10 घेराबंदी का तीसरा साल खत्म होते-होते, अश्शूरियों ने सामरिया पर कब्ज़ा कर लिया।+ उस समय यहूदा में हिजकियाह के राज का छठा साल चल रहा था और इसराएल में होशेआ के राज का नौवाँ साल। 11 सामरिया पर कब्ज़ा करने के बाद अश्शूर का राजा इसराएल के लोगों को बंदी+ बनाकर अश्शूर ले गया और उन्हें हलह में, गोजान नदी के पास हाबोर में और मादियों के शहरों में बसा दिया।+ 12 यह इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने अपने परमेश्वर यहोवा की बात नहीं मानी और वे उसके करार के खिलाफ काम करते रहे, यानी यहोवा के सेवक मूसा ने जितनी आज्ञाएँ दी थीं, उन सबका उन्होंने उल्लंघन किया।+ उन्होंने न तो परमेश्वर की बात सुनी और न उसकी आज्ञा मानी।
13 हिजकियाह के राज के 14वें साल में अश्शूर के राजा सनहेरीब+ ने यहूदा के सभी किलेबंद शहरों पर हमला कर दिया और उन पर कब्ज़ा कर लिया।+ 14 तब यहूदा के राजा हिजकियाह ने अश्शूर के राजा के पास लाकीश में यह संदेश भेजा: “मुझसे गलती हो गयी। तू मुझ पर जो जुरमाना लगाना चाहे लगा दे, मैं देने को तैयार हूँ। तू यह घेराबंदी हटा दे।” अश्शूर के राजा ने हिजकियाह पर 300 तोड़े* चाँदी और 30 तोड़े सोने का जुरमाना लगाया। 15 इसलिए हिजकियाह ने यहोवा के भवन और राजमहल के खज़ानों से सारी चाँदी निकालकर उस राजा को दे दी।+ 16 उस वक्त हिजकियाह ने यहोवा के मंदिर के दरवाज़े+ और उनके बाज़ू निकाल दिए जिन पर उसने खुद सोना मढ़वाया था+ और यह सब अश्शूर के राजा को दे दिया।
17 तब अश्शूर के राजा ने लाकीश+ से तरतान,* रबसारीस* और रबशाके* को एक विशाल सेना के साथ राजा हिजकियाह के पास यरूशलेम भेजा।+ वे यरूशलेम गए और वहाँ के ऊपरवाले तालाब की नहर के पास खड़े हो गए, जो धोबी के मैदान की तरफ जानेवाले राजमार्ग के पास थी।+ 18 जब उन्होंने यहूदा के राजा को बाहर आने के लिए आवाज़ दी, तो उसके राज-घराने की देखरेख करनेवाला अधिकारी एल्याकीम+ (जो हिलकियाह का बेटा था), राज-सचिव शेबनाह+ और शाही इतिहासकार योआह (जो आसाप का बेटा था) बाहर उनके पास आए।
19 रबशाके ने उनसे कहा, “जाकर हिजकियाह से कहो, ‘अश्शूर के राजाधिराज का यह संदेश है: “तू किस बात पर भरोसा किए बैठा है?+ 20 तू जो कहता है कि मेरे पास युद्ध की रणनीति तैयार है, मेरे पास बहुत ताकत है, यह सब बकवास है! तूने किस पर भरोसा करके मुझसे बगावत करने की जुर्रत की है?+ 21 उस मिस्र पर? वह तो कुचला हुआ नरकट है! अगर कोई उसका सहारा लेने के लिए उस पर हाथ रखे तो वह उसकी हथेली में चुभ जाएगा। मिस्र के राजा फिरौन पर जितने लोग भरोसा रखते हैं+ उनके लिए वह एक कुचले हुए नरकट के सिवा कुछ नहीं है। 22 अब यह मत कहना कि हमें अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा है।+ हिजकियाह ने तो उसकी सारी ऊँची जगह और वेदियाँ ढा दीं+ और वह यहूदा और यरूशलेम के लोगों से कहता है, ‘तुम सिर्फ यरूशलेम की इस वेदी के आगे दंडवत करना।’”’+ 23 अब आ और मेरे मालिक अश्शूर के राजा से यह बाज़ी लगा: मैं तुझे 2,000 घोड़े देता हूँ, तू उनके लिए सवार लाकर दिखा।+ 24 जब तू यह नहीं कर सकता, तो हमारी सेना का मुकाबला कैसे करेगा? तू चाहे मिस्र के सारे रथ और घुड़सवार ले आए, फिर भी मेरे मालिक के एक राज्यपाल को, उसके सबसे छोटे सेवक को भी हरा नहीं पाएगा। 25 और क्या मैं बिना यहोवा की इजाज़त के इस जगह को नाश करने आया हूँ? यहोवा ने खुद मुझसे कहा है, ‘जा उस देश पर हमला कर, उसे तबाह कर दे।’”
26 तब हिलकियाह के बेटे एल्याकीम और शेबनाह+ और योआह ने रबशाके+ से कहा, “मेहरबानी करके अपने सेवकों से अरामी* भाषा+ में बात कर क्योंकि हम वह भाषा समझ सकते हैं। तू हमसे यहूदियों की भाषा में बात न कर क्योंकि शहरपनाह पर खड़े लोग सुन रहे हैं।”+ 27 मगर रबशाके ने उनसे कहा, “मेरे मालिक ने मुझे सिर्फ तुम्हें और तुम्हारे मालिक को संदेश सुनाने के लिए नहीं भेजा। यह संदेश शहरपनाह पर खड़े आदमियों के लिए भी है, क्योंकि उनकी और तुम्हारी ऐसी हालत होगी कि तुम अपना ही मल खाओगे और अपना ही पेशाब पीओगे।”
28 फिर रबशाके यहूदियों की भाषा में ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा, “अश्शूर के राजाधिराज का संदेश सुनो,+ 29 ‘तुम लोग हिजकियाह की बातों में मत आओ, वह तुम्हें मेरे हाथ से नहीं छुड़ा सकता।+ 30 उसकी बात पर यकीन मत करो जो तुम्हें यहोवा पर भरोसा दिलाने के लिए कहता है, “यहोवा हमें ज़रूर बचाएगा और यह शहर अश्शूर के राजा के हाथ में नहीं किया जाएगा।”+ 31 तुम उसकी बात बिलकुल मत सुनना। अश्शूर के राजा ने कहा है, “तुम लोग मेरे साथ सुलह कर लो और अपने हथियार डाल दो,* तब तुममें से हर कोई अपने-अपने अंगूरों के बाग और अंजीर के पेड़ से खा सकेगा और अपने कुंड से पानी पी सकेगा। 32 फिर मैं आकर तुम्हें एक ऐसे देश में ले जाऊँगा जो तुम्हारे देश जैसा है।+ वहाँ अनाज, नयी दाख-मदिरा, रोटी और शहद की भरमार होगी और जगह-जगह अंगूरों के बाग और जैतून के पेड़ होंगे। तब तुम्हारी जान सलामत रहेगी, तुम्हें मौत का खतरा नहीं होगा। हिजकियाह की बात मत सुनो, वह यह कहकर तुम्हें गुमराह कर रहा है, ‘यहोवा हमें बचा लेगा।’ 33 क्या आज तक किसी राष्ट्र का देवता अपने देश को अश्शूर के राजा के हाथ से बचा पाया है? 34 हमात+ और अरपाद के देवता कहाँ गए? कहाँ गए सपरवैम,+ हेना और इव्वा के देवता? क्या वे सामरिया को मेरे हाथ से बचा सके?+ 35 क्या उनमें से एक भी देवता ऐसा है जो अपने देश को मेरे हाथ से बचा पाया हो? तो फिर यहोवा कैसे यरूशलेम को मेरे हाथ से बचा पाएगा?”’”+
36 मगर लोग चुप रहे, उन्होंने जवाब में कुछ नहीं कहा क्योंकि राजा का यह आदेश था: “तुम उसे कोई जवाब मत देना।”+ 37 इसके बाद राज-घराने की देखरेख करनेवाला अधिकारी एल्याकीम (जो हिलकियाह का बेटा था), राज-सचिव शेबनाह और शाही इतिहासकार योआह ने (जो आसाप का बेटा था) अपने कपड़े फाड़े और हिजकियाह के पास आकर उसे रबशाके की सारी बातें बतायीं।
19 जैसे ही राजा हिजकियाह ने यह सुना, उसने अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया।+ 2 फिर उसने राज-घराने की देखरेख के अधिकारी एल्याकीम, राज-सचिव शेबनाह और याजकों के मुखियाओं को आमोज के बेटे भविष्यवक्ता यशायाह+ के पास भेजा। वे सभी टाट ओढ़े उसके पास गए। 3 उन्होंने उससे कहा, “हिजकियाह ने कहा है, ‘आज का दिन भारी संकट का दिन है, निंदा* और अपमान का दिन है। हमारी हालत ऐसी औरत की तरह हो गयी है जिसके बच्चे होने का वक्त आ गया है, मगर उसमें बच्चा जनने की ताकत नहीं है।+ 4 इसलिए तू इस देश में बचे हुओं की खातिर परमेश्वर से बिनती कर।+ हो सकता है तेरा परमेश्वर यहोवा रबशाके की सारी बातों पर ध्यान दे जिसे अश्शूर के राजा ने जीवित परमेश्वर पर ताना कसने भेजा।+ और तेरा परमेश्वर यहोवा उससे उन सारी बातों का हिसाब ले जो उसने सुनी हैं।’”
5 जब राजा हिजकियाह के सेवकों ने यशायाह को यह संदेश सुनाया,+ 6 तो यशायाह ने उनसे कहा, “तुम जाकर अपने मालिक से कहना, ‘यहोवा ने कहा है, “अश्शूर के राजा के सेवकों ने मेरी निंदा में जो बातें कही हैं,+ उनकी वजह से तू मत डर।+ 7 मैं उसके दिमाग में एक बात डालूँगा और वह एक खबर सुनकर अपने देश लौट जाएगा। फिर मैं उसे उसी के देश में तलवार से मरवा डालूँगा।”’”+
8 रबशाके को खबर मिली कि अश्शूर का राजा लाकीश+ से अपनी सेना लेकर चला गया है, तब रबशाके वापस अपने राजा के पास लौट गया और उसने देखा कि राजा लिब्ना से युद्ध कर रहा है।+ 9 अश्शूर के राजा को खबर मिली कि इथियोपिया का राजा तिरहाका उससे युद्ध करने आया है। इसलिए उसने अपने दूतों+ से यह कहकर उन्हें फिर हिजकियाह के पास भेजा: 10 “तुम जाकर यहूदा के राजा हिजकियाह से कहना, ‘तू अपने परमेश्वर की बात पर यकीन मत कर। वह तुझे यह कहकर धोखा दे रहा है कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के हाथ में नहीं किया जाएगा।+ 11 तू अच्छी तरह जानता है कि अश्शूर के राजाओं ने दूसरे सभी देशों का क्या हाल किया, उन्हें कैसे धूल चटा दी।+ फिर तूने यह कैसे सोच लिया कि तू अकेला बच जाएगा? 12 मेरे पुरखों ने जिन राष्ट्रों का नाश किया था, क्या उनके देवता अपने राष्ट्रों को बचा सके? गोजान, हारान+ और रेसेप, आज ये सारे राष्ट्र कहाँ हैं? तलस्सार में रहनेवाले अदन के लोग कहाँ गए? 13 हमात का राजा, अरपाद का राजा और सपरवैम, हेना, इव्वा,+ इन सारे शहरों के राजा कहाँ रहे?’”
14 हिजकियाह ने दूतों से वे चिट्ठियाँ लीं और उन्हें पढ़ा। फिर वह यहोवा के भवन में गया और उसने यहोवा के सामने चिट्ठियाँ फैलाकर रख दीं।+ 15 फिर हिजकियाह यहोवा के सामने बिनती करने लगा,+ “हे इसराएल के परमेश्वर यहोवा, तू जो करूबों पर* विराजमान है,+ धरती के सब राज्यों में तू अकेला सच्चा परमेश्वर है।+ तूने ही आकाश और धरती को बनाया है। 16 हे यहोवा, मेरी तरफ कान लगा और सुन!+ हे यहोवा, हम पर नज़र कर!+ सनहेरीब ने तुझ जीवित परमेश्वर को ताना मारने के लिए जो बातें लिखी हैं, उन पर ध्यान दे। 17 हे यहोवा, यह सच है कि अश्शूर के राजाओं ने कई राष्ट्रों और उनके इलाकों को तहस-नहस कर दिया+ और 18 उनके देवताओं को आग में झोंक दिया। मगर वे उन देवताओं को इसलिए नाश कर पाए क्योंकि वे देवता नहीं,+ बस इंसानों की कारीगरी थे,+ पत्थर और लकड़ी थे। 19 अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा, दया करके तू हमें उसके हाथ से बचा ले ताकि धरती के सब राज्य जान लें कि तू यहोवा ही परमेश्वर है।”+
20 तब आमोज के बेटे यशायाह ने हिजकियाह के पास यह संदेश भेजा: “इसराएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘तूने अश्शूर के राजा सनहेरीब के बारे में मुझसे जो प्रार्थना की, वह मैंने सुन ली है।+ 21 यहोवा ने सनहेरीब के खिलाफ यह फैसला सुनाया है:
“सिय्योन की कुँवारी बेटी तुझे तुच्छ समझती है, तेरी खिल्ली उड़ाती है।
यरूशलेम की बेटी सिर हिला-हिलाकर तुझ पर हँसती है।
22 तू जानता भी है तूने किसे ताना मारा है, किसकी निंदा की है?+
किसके खिलाफ आवाज़ उठायी है?+
तू घमंड से भरकर किसे आँख दिखा रहा है?
इसराएल के पवित्र परमेश्वर को!+
23 तूने अपने दूतों+ के हाथ यह संदेश भेजकर यहोवा को ताना मारा है:+
‘मैं अपने बेहिसाब युद्ध-रथ लेकर आऊँगा,
पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ जाऊँगा,
लबानोन के दूर-दूर के इलाकों तक पहुँच जाऊँगा।
मैं उसके ऊँचे-ऊँचे देवदार, बढ़िया-बढ़िया सनोवर काट डालूँगा।
मैं दूर-दूर तक बसे आशियाने में, उसके सबसे घने जंगलों में घुस जाऊँगा।
24 मैं परायी ज़मीन पर कुएँ खुदवाऊँगा, वहाँ का पानी पीऊँगा,
अपने पैरों के तलवे से मिस्र की सारी नदियाँ* सुखा दूँगा।’
25 क्या तूने नहीं सुना? मैंने बहुत पहले ही यह फैसला कर लिया था।+
अरसों पहले इसकी तैयारी कर ली थी।*+
अब वक्त आ गया है इसे अंजाम देने का।+
तू किलेबंद शहरों को मलबे का ढेर बना देगा।+
26 उनके निवासी बेबस हो जाएँगे,
उनमें डर समा जाएगा, वे शर्मिंदा हो जाएँगे।
वे मैदान के पेड़-पौधों और हरी घास की तरह कमज़ोर हो जाएँगे,+
छत की घास जैसे हो जाएँगे जो पूरब की हवा से झुलस जाती है।
28 क्योंकि तेरा क्रोध करना+ और तेरा दहाड़ना मेरे कानों तक पहुँचा है।+
मैं तेरी नाक में नकेल डालूँगा और तेरे मुँह में लगाम लगाऊँगा,+
तुझे खींचकर उसी रास्ते वापस ले जाऊँगा जिससे तू आया है।”+
29 ये बातें ज़रूर होंगी, इसकी मैं तुझे* यह निशानी देता हूँ: इस साल तुम लोग वह अनाज खाओगे जो अपने आप उगता है,* अगले साल वह अनाज खाओगे जो पिछले अनाज के गिरने से उगता है+ और तीसरे साल तुम बीज बोओगे और उसकी फसल काटोगे और अंगूरों के बाग लगाओगे और उनके फल खाओगे।+ 30 यहूदा के घराने के जो लोग बच जाएँगे,+ वे पौधों की तरह जड़ पकड़ेंगे और फल पैदा करेंगे। 31 बचे हुए लोग यरूशलेम से निकलेंगे, हाँ, जो ज़िंदा बच जाएँगे वे सिय्योन पहाड़ से निकलेंगे। सेनाओं का परमेश्वर यहोवा अपने जोश के कारण ऐसा ज़रूर करेगा।+
32 इसलिए यहोवा अश्शूर के राजा के बारे में कहता है,+
“वह इस शहर में नहीं आएगा,+
न यहाँ एक भी तीर चलाएगा,
न ढाल लेकर हमला करेगा,
न ही घेराबंदी की ढलान खड़ी करेगा।+
33 वह जिस रास्ते आया है उसी रास्ते लौट जाएगा,
वह इस शहर में नहीं आएगा।” यह यहोवा का ऐलान है।
35 फिर उसी रात यहोवा का स्वर्गदूत अश्शूरियों की छावनी में गया और उनके 1,85,000 सैनिकों को मार डाला।+ जब लोग सुबह तड़के उठे तो उन्होंने देखा कि चारों तरफ लाशें बिछी हैं।+ 36 तब अश्शूर का राजा सनहेरीब वहाँ से चला गया और नीनवे+ लौट गया और वहीं रहा।+ 37 एक दिन जब वह अपने देवता निसरोक के मंदिर में झुककर दंडवत कर रहा था तो उसके अपने बेटों ने, अद्र-मेलेक और शरेसेर ने उसे तलवार से मार डाला।+ फिर वे अरारात देश भाग गए।+ सनहेरीब की जगह उसका बेटा एसर-हद्दोन+ राजा बना।
20 उन दिनों हिजकियाह बीमार हो गया। उसकी हालत इतनी खराब हो गयी कि वह मरनेवाला था।+ तब आमोज का बेटा, भविष्यवक्ता यशायाह उसके पास आया और उससे कहा, “यहोवा ने कहा है, ‘तू अपने घराने को ज़रूरी हिदायतें दे क्योंकि तू इस बीमारी से ठीक नहीं होगा, तेरी मौत हो जाएगी।’”+ 2 यह सुनकर हिजकियाह ने दीवार की तरफ मुँह किया और वह यहोवा से प्रार्थना करने लगा, 3 “हे यहोवा, मैं तुझसे बिनती करता हूँ, याद कर कि मैं कैसे तेरा विश्वासयोग्य बना रहा और पूरे दिल से तेरे सामने सही राह पर चलता रहा। मैंने हमेशा वही किया जो तेरी नज़र में सही है।”+ यह कहकर हिजकियाह फूट-फूटकर रोने लगा।
4 हिजकियाह को संदेश सुनाने के बाद यशायाह महल के बीचवाले आँगन तक पहुँचा भी न था कि यहोवा का यह संदेश उसके पास आया,+ 5 “तू मेरे लोगों के अगुवे हिजकियाह के पास वापस जा और उससे कह, ‘तेरे पुरखे दाविद के परमेश्वर यहोवा ने कहा है, “मैंने तेरी प्रार्थना सुनी है, तेरे आँसू देखे हैं।+ मैं तेरी बीमारी दूर कर दूँगा।+ तीसरे दिन तू यहोवा के भवन में जाएगा।+ 6 मैं तेरी उम्र 15 साल और बढ़ा दूँगा। मैं तुझे और इस शहर को अश्शूर के राजा के हाथ से बचाऊँगा।+ अपने नाम की खातिर और अपने सेवक दाविद की खातिर मैं इस शहर की हिफाज़त करूँगा।”’”+
7 फिर यशायाह ने राजा के सेवकों से कहा, “सूखे अंजीरों की एक टिकिया ले आओ।” उन्होंने सूखे अंजीरों की टिकिया लाकर हिजकियाह के फोड़े पर लगायी। इसके बाद वह धीरे-धीरे ठीक हो गया।+
8 हिजकियाह ने यशायाह से पूछा था, “मैं कैसे यकीन करूँ कि यहोवा मेरी बीमारी दूर कर देगा और तीसरे दिन मैं यहोवा के भवन में जा पाऊँगा? क्या तू मुझे इसकी कोई निशानी देगा?”+ 9 यशायाह ने उससे कहा, “यहोवा की तरफ से तेरे लिए यह निशानी होगी जिससे तू यकीन करे कि यहोवा ने जो कहा है उसे वह पूरा भी करेगा: तू क्या चाहता है, सीढ़ियों* पर छाया दस कदम आगे बढ़े या दस कदम पीछे जाए?”+ 10 हिजकियाह ने कहा, “छाया का दस कदम आगे बढ़ना आसान है, मगर पीछे जाना मुश्किल।” 11 तब भविष्यवक्ता यशायाह ने यहोवा को पुकारा और परमेश्वर ने आहाज की सीढ़ियों पर वह छाया दस कदम पीछे कर दी जो आगे बढ़ चुकी थी।+
12 उस वक्त बैबिलोन के राजा बरोदक-बलदान ने, जो बलदान का बेटा था, अपने दूतों के हाथ हिजकियाह को चिट्ठियाँ और एक तोहफा भेजा क्योंकि उसे हिजकियाह की बीमारी का पता चला था।+ 13 हिजकियाह ने उन दूतों का स्वागत किया* और उन्हें अपना सारा खज़ाना दिखा दिया।+ उसने सारा सोना-चाँदी, बलसाँ का तेल, दूसरे किस्म के बेशकीमती तेल, हथियारों का भंडार और वह सारी चीज़ें दिखायीं जो उसके खज़ानों में थीं। उसके महल और पूरे राज्य में ऐसी एक भी चीज़ नहीं थी जो उसने उन्हें न दिखायी हो।
14 इसके बाद भविष्यवक्ता यशायाह राजा हिजकियाह के पास आया और उससे पूछा, “ये आदमी कहाँ से आए थे और इन्होंने तुझसे क्या कहा?” हिजकियाह ने कहा, “वे एक दूर देश बैबिलोन से आए थे।”+ 15 फिर यशायाह ने पूछा, “उन्होंने तेरे महल में क्या-क्या देखा?” हिजकियाह ने कहा, “उन्होंने मेरे महल की हर चीज़ देखी। मेरे खज़ानों में ऐसा कुछ नहीं जो मैंने उन्हें न दिखाया हो।”
16 तब यशायाह ने हिजकियाह से कहा, “अब तू यहोवा का संदेश सुन।+ 17 यहोवा कहता है, ‘देख! वह दिन आ रहा है जब तेरे महल का सारा खज़ाना बैबिलोन ले जाया जाएगा। तेरे पुरखों ने आज के दिन तक जितना धन जमा किया था, वह सब भी लूट लिया जाएगा।+ एक भी चीज़ नहीं छोड़ी जाएगी। 18 और तेरे जो बेटे होंगे उनमें से कुछ को बैबिलोन ले जाया जाएगा+ और वहाँ के राजमहल में दरबारी बनाया जाएगा।’”+
19 हिजकियाह ने यशायाह से कहा, “तूने यहोवा का जो फैसला सुनाया है, वह सही है।”+ फिर उसने कहा, “परमेश्वर की बड़ी दया है कि मेरे जीते-जी* मेरे राज में शांति और सुरक्षा* रहेगी।”+
20 हिजकियाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके बड़े-बड़े कामों का और कैसे उसने कुंड+ और पानी की सुरंग बनवाकर शहर में पानी लाने का इंतज़ाम किया,+ उन सबका ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 21 फिर हिजकियाह की मौत हो गयी*+ और उसकी जगह उसका बेटा मनश्शे+ राजा बना।+
21 मनश्शे+ जब राजा बना तब वह 12 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 55 साल राज किया।+ उसकी माँ का नाम हेपसीबा था। 2 मनश्शे ने यहोवा की नज़र में बुरे काम किए। उसने उन राष्ट्रों के जैसे घिनौने काम किए+ जिन्हें यहोवा ने इसराएल के लोगों के सामने से खदेड़ दिया था।+ 3 उसने वे ऊँची जगह फिर से बनवा दीं जो उसके पिता हिजकियाह ने ढा दी थीं।+ उसने बाल के लिए वेदियाँ खड़ी करवायीं और एक पूजा-लाठ* बनवायी,+ ठीक जैसे इसराएल के राजा अहाब ने किया था।+ मनश्शे आकाश की सारी सेना के आगे दंडवत करता था और उसकी पूजा करता था।+ 4 उसने यहोवा के उस भवन में भी वेदियाँ खड़ी कर दीं+ जिसके बारे में यहोवा ने कहा था, “यरूशलेम से मेरा नाम जुड़ा रहेगा।”+ 5 उसने यहोवा के भवन के दोनों आँगनों+ में आकाश की सारी सेना के लिए वेदियाँ खड़ी कीं।+ 6 उसने अपने बेटे को आग में होम कर दिया। वह जादू करता था और शकुन विचारता था+ और उसने देश में मरे हुओं से संपर्क करने का दावा करनेवालों और भविष्य बतानेवालों को ठहराया था।+ उसने ऐसे काम करने में सारी हदें पार कर दीं जो यहोवा की नज़र में बुरे थे और उसका क्रोध भड़काया।
7 उसने जो पूजा-लाठ तराशकर बनवायी थी+ उसे ले जाकर यहोवा के भवन में रख दिया, जिसके बारे में परमेश्वर ने दाविद और उसके बेटे सुलैमान से कहा था, “इस भवन और यरूशलेम के साथ मेरा नाम हमेशा जुड़ा रहेगा, जिन्हें मैंने इसराएल के सभी गोत्रों के इलाके में से चुना है।+ 8 मैं इसराएलियों को इस देश से निकालकर फिर कभी नहीं भटकाऊँगा जो मैंने उनके पुरखों को दिया था,+ बशर्ते वे मेरी सब आज्ञाओं को सख्ती से मानें,+ उस पूरे कानून को जो मेरे सेवक मूसा ने उन्हें दिया था।” 9 मगर उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी और मनश्शे उन्हें सही राह से दूर ले जाता रहा और उन राष्ट्रों से भी बढ़कर दुष्ट काम करवाता रहा, जिन्हें यहोवा ने इसराएलियों के सामने से मिटा दिया था।+
10 यहोवा अपने सेवकों यानी भविष्यवक्ताओं के ज़रिए बार-बार उनसे कहता था,+ 11 “यहूदा के राजा मनश्शे ने ये सारे घिनौने काम किए हैं। उसने उन सभी एमोरियों से बढ़कर दुष्टता की है+ जो उससे पहले हुआ करते थे।+ उसने घिनौनी मूरतें* खड़ी करवाकर यहूदा से पाप करवाया है। 12 इसलिए इसराएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मैं यरूशलेम और यहूदा पर ऐसा कहर ढाऊँगा+ कि सुननेवालों के कान झनझना जाएँगे।+ 13 मैं यरूशलेम को उसी नापने की डोरी से नापूँगा+ जिससे मैंने सामरिया को नापा था+ और उस पर वही साहुल इस्तेमाल करूँगा जो मैंने अहाब के घराने पर इस्तेमाल किया था।+ मैं यरूशलेम का ऐसा सफाया कर दूँगा जैसे कोई कटोरे को साफ कर देता है और उसे पोंछकर उलट देता है।+ 14 मैं अपनी जागीर के बचे हुए लोगों को त्याग दूँगा+ और उन्हें उनके दुश्मनों के हवाले कर दूँगा। उन्हें बंदी बना लिया जाएगा और उनके सारे दुश्मन आकर उनकी चीज़ें लूट लेंगे+ 15 क्योंकि उन्होंने मेरी नज़र में बुरे काम किए हैं और जिस दिन उनके बाप-दादे मिस्र से निकले थे तब से लेकर आज तक वे लगातार मेरा क्रोध भड़काते आए हैं।’”+
16 मनश्शे ने यहूदा के लोगों से ऐसे काम करवाए थे जो यहोवा की नज़र में बुरे थे। इस पाप के अलावा, उसने बेहिसाब मासूमों का खून बहाया। उसने यरूशलेम के एक छोर से दूसरे छोर तक खून की नदियाँ बहा दीं।+ 17 मनश्शे की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए, उनका और उसके सभी पापों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 18 फिर मनश्शे की मौत हो गयी* और उसे उसी के महल के बाग में, जो उज्जा का बाग कहलाता है, दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा आमोन राजा बना।
19 जब आमोन+ राजा बना तब वह 22 साल का था और उसने यरूशलेम से यहूदा पर दो साल राज किया।+ उसकी माँ का नाम मशुल्लेमेत था जो योत्बा के रहनेवाले हारूस की बेटी थी। 20 आमोन अपने पिता मनश्शे की तरह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा।+ 21 वह अपने पिता के ही नक्शे-कदम पर चला। वह उन घिनौनी मूरतों के आगे दंडवत करता था और उनकी पूजा करता था जिन्हें उसका पिता पूजता था।+ 22 उसने अपने पुरखों के परमेश्वर यहोवा को छोड़ दिया और वह यहोवा की राह पर नहीं चला।+ 23 बाद में आमोन के सेवकों ने उसके खिलाफ साज़िश रची और उसी के महल में उसका कत्ल कर दिया। 24 मगर देश के लोगों ने उन सबको मार डाला जिन्होंने राजा आमोन के खिलाफ साज़िश की थी। फिर उन्होंने आमोन की जगह उसके बेटे योशियाह को राजा बनाया।+ 25 आमोन की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए, उनका ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 26 आमोन को उज्जा के बाग में उसकी अपनी कब्र में दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा योशियाह+ राजा बना।
22 योशियाह+ जब राजा बना तब वह आठ साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 31 साल राज किया।+ उसकी माँ का नाम यदीदा था जो बोसकत+ के रहनेवाले अदायाह की बेटी थी। 2 योशियाह ने यहोवा की नज़र में सही काम किए और वह अपने पुरखे दाविद के नक्शे-कदम पर चला।+ वह परमेश्वर की बतायी राह से न कभी दाएँ मुड़ा न बाएँ।
3 योशियाह ने अपने राज के 18वें साल में राज-सचिव शापान को (जो असल्याह का बेटा और मशुल्लाम का पोता था) यह कहकर यहोवा के भवन में भेजा:+ 4 “महायाजक हिलकियाह+ के पास जा और उससे कह कि वह यहोवा के भवन से सारा पैसा निकाले जो लोगों ने दान में दिया है+ और जिसे दरबानों ने इकट्ठा किया है।+ 5 उन्हें बताना कि वह पैसा उन आदमियों को दें जिन्हें यहोवा के भवन में काम की निगरानी सौंपी गयी है। फिर निगरानी करनेवाले पैसा ले जाकर यहोवा के भवन की मरम्मत करनेवाले+ 6 कारीगरों, राजगीरों और राजमिस्त्रियों को देंगे। वे उस पैसे से भवन की मरम्मत के लिए शहतीरें और गढ़े हुए पत्थर खरीदेंगे।+ 7 मगर निगरानी करनेवालों से उस पैसे का कोई हिसाब-किताब न लिया जाए क्योंकि वे भरोसेमंद आदमी हैं।”+
8 बाद में महायाजक हिलकियाह ने राज-सचिव शापान+ से कहा, “मुझे यहोवा के भवन में कानून की किताब मिल गयी है!”+ हिलकियाह ने वह किताब शापान को दी और शापान उसे पढ़ने लगा।+ 9 फिर राज-सचिव शापान राजा के पास गया और उसे बताया, “तेरे सेवकों ने भवन का सारा पैसा निकालकर उन आदमियों को दे दिया है जिन्हें यहोवा के भवन में काम की निगरानी सौंपी गयी है।”+ 10 राज-सचिव शापान ने राजा को यह खबर भी दी, “याजक हिलकियाह ने मुझे एक किताब+ दी है।” फिर शापान राजा को वह किताब पढ़कर सुनाने लगा।
11 जैसे ही राजा ने कानून की किताब में लिखी बातें सुनीं, उसने अपने कपड़े फाड़े।+ 12 फिर उसने याजक हिलकियाह, शापान के बेटे अहीकाम,+ मीकायाह के बेटे अकबोर, राज-सचिव शापान और अपने सेवक असायाह को यह आदेश दिया: 13 “तुम लोग मेरी तरफ से और लोगों और पूरे यहूदा की तरफ से जाओ और यह जो किताब मिली है, इसमें लिखी बातों के बारे में यहोवा से पूछो। हमारे पुरखों ने इस किताब में लिखी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, इसमें जो लिखा है उसे नहीं माना, जिसका हमें भी पालन करना चाहिए। इसलिए यहोवा का गुस्सा, उसके क्रोध की ज्वाला हम पर भड़क उठी है।”+
14 तब याजक हिलकियाह, अहीकाम, अकबोर, शापान और असायाह, सब मिलकर भविष्यवक्तिन+ हुल्दा के पास गए। भविष्यवक्तिन हुल्दा, शल्लूम की पत्नी थी जो तिकवा का बेटा और हरहस का पोता था। शल्लूम पोशाक-घर की देखरेख करनेवाला था। हुल्दा यरूशलेम के ‘नए हिस्से’ में रहती थी और वहीं योशियाह के भेजे हुए आदमियों ने उससे बात की।+ 15 हुल्दा ने उनसे कहा, “इसराएल के परमेश्वर यहोवा ने कहा है, ‘जिस आदमी ने तुम्हें मेरे पास भेजा है, उससे कहना: 16 “यहोवा ने कहा है, ‘मैं इस जगह पर और यहाँ रहनेवालों पर विपत्ति लाऊँगा, ठीक जैसे उस किताब में लिखा है जो यहूदा के राजा ने पढ़ी है।+ 17 उन्होंने मुझे छोड़ दिया है और वे दूसरे देवताओं के सामने बलिदान चढ़ाते हैं+ और अपने हाथ की बनायी चीज़ों से मुझे गुस्सा दिलाते हैं,+ इसलिए मेरे क्रोध की ज्वाला इस जगह पर भड़क उठेगी और वह नहीं बुझेगी।’”+ 18 मगर तुम यहूदा के राजा से, जिसने यहोवा की मरज़ी जानने के लिए तुम्हें भेजा है, कहना, “तूने जो बातें सुनी हैं उनके बारे में इसराएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, 19 ‘जब तूने सुना कि मैं इस जगह और यहाँ रहनेवालों को इस कदर नाश करूँगा कि वे शापित ठहरेंगे और उनकी बरबादी देखनेवाले दहल जाएँगे, तो इस बात ने तेरे दिल पर गहरा असर किया और तूने खुद को यहोवा के सामने नम्र किया है+ और तू अपने कपड़े फाड़कर+ मेरे सामने रोया। इसलिए मैंने तेरी बिनती सुनी है।’ यहोवा का यह ऐलान है। 20 ‘इसलिए तेरे जीते-जी मैं इस जगह पर कहर नहीं ढाऊँगा। तू शांति से मौत की नींद सोएगा* और तुझे अपनी कब्र में दफना दिया जाएगा।’”’” तब उन आदमियों ने जाकर यह संदेश राजा को सुनाया।
23 इसलिए राजा ने आदेश दिया और उन्होंने यहूदा और यरूशलेम के सभी मुखियाओं को बुलवाया।+ 2 इसके बाद राजा योशियाह, यहूदा के सभी आदमियों को, याजकों और भविष्यवक्ताओं को और यरूशलेम के छोटे-बड़े सब लोगों को लेकर यहोवा के भवन में गया। फिर उसने सबको करार+ की पूरी किताब+ पढ़कर सुनायी जो यहोवा के भवन में मिली थी।+ 3 राजा खंभे के पास खड़ा हुआ और उसने यहोवा के सामने यह करार किया*+ कि हम सब यहोवा के पीछे चलेंगे और पूरे दिल और पूरी जान से उसकी आज्ञाओं और विधियों पर चलेंगे, जो हिदायतें वह याद दिलाता है उन्हें मानेंगे और इस किताब में लिखी करार की बातों का हमेशा पालन करेंगे। तब सब लोगों ने इस करार के मुताबिक काम करने की हामी भरी।+
4 इसके बाद राजा ने महायाजक हिलकियाह+ और दूसरे याजकों और दरबानों को हुक्म दिया कि वे यहोवा के मंदिर से वे सारी चीज़ें बाहर निकाले जो बाल और पूजा-लाठ*+ और आकाश की सारी सेना के लिए बनायी गयी थीं। फिर उसने वे सारी चीज़ें यरूशलेम के बाहर ले जाकर किदरोन की ढलानों पर जला दीं और उनकी राख बेतेल+ ले गया। 5 उसने पराए देवताओं के पुजारियों को हटा दिया जिन्हें यहूदा के राजाओं ने यहूदा के शहरों और यरूशलेम के आस-पास की ऊँची जगहों पर बलिदान चढ़ाने के लिए ठहराया था ताकि उनका धुआँ उठे। उसने उन लोगों को भी निकाल दिया जो बाल, सूर्य, चाँद, राशि के नक्षत्रों और आकाश की सारी सेना के लिए बलिदान चढ़ाते थे ताकि उनका धुआँ उठे।+ 6 वह यहोवा के भवन से पूजा-लाठ+ निकालकर यरूशलेम के बाहर किदरोन घाटी में ले गया और वहाँ उसे जला दिया।+ फिर उसने उसे चूर-चूर कर दिया और उसकी राख आम लोगों की कब्रों पर बिखरा दी।+ 7 उसने यहोवा के भवन में उन आदमियों के लिए बने घर भी ढा दिए जो मंदिरों में दूसरे आदमियों के साथ संभोग करते थे।+ उन घरों में औरतें पूजा-लाठ के लिए तंबूवाले पूजा-घर बुनकर बनाती थीं।
8 फिर वह यहूदा के शहरों से सभी याजकों को बाहर ले आया और उसने गेबा+ से बेरशेबा+ तक सारी ऊँची जगहों का ऐसा हाल कर दिया कि वहाँ पूजा न की जा सके। उन जगहों पर पुजारी बलिदान चढ़ाया करते थे ताकि उनका धुआँ उठे। उसने शहर के मुखिया यहोशू के फाटक के पासवाली वे सभी ऊँची जगह भी ढा दीं जो शहर में दाखिल होने पर बायीं तरफ पड़ती थीं। 9 जो याजक ऊँची जगहों में पुजारी का काम करते थे उन्हें यरूशलेम में यहोवा की वेदी के पास सेवा नहीं करने दिया गया,+ मगर उन्हें बाकी याजकों के साथ बिन-खमीर की रोटी खाने दिया गया। 10 राजा ने ‘हिन्नोम के वंशजों की घाटी’*+ के तोपेत+ का भी ऐसा हाल किया कि वहाँ पूजा न की जा सके। उसने ऐसा इसलिए किया ताकि तोपेत में कोई अपने बेटे या बेटी को मोलेक के लिए आग में होम न कर सके।+ 11 और राजा ने सूर्य को अर्पित घोड़ों को यहोवा के भवन में ले जाने पर रोक लगा दी। ये घोड़े, यहूदा के राजाओं ने सूर्य को अर्पित किए थे और इन्हें दरबारी नतन-मेलेक के कमरे* से होते हुए भवन में ले जाया जाता था, जो खंभोंवाले बरामदे के पास था। साथ ही, राजा ने सूर्य की पूजा में इस्तेमाल होनेवाले सारे रथ जला दिए।+ 12 राजा ने वे सारी वेदियाँ भी ढा दीं जो यहूदा के राजाओं ने आहाज के ऊपरी कमरे की छत+ पर खड़ी करवायी थीं। साथ ही, वे वेदियाँ भी नष्ट कर दीं जो मनश्शे ने यहोवा के भवन के दो आँगनों में खड़ी करवायी थीं।+ उसने उन वेदियों को चूर-चूर कर दिया और उनकी धूल किदरोन घाटी में बिखरा दी। 13 और जो ऊँची जगह यरूशलेम के सामने और तबाही पहाड़* के दक्षिण* में थीं, उनका भी राजा ने ऐसा हाल किया कि वहाँ पूजा न की जा सके। ये ऊँची जगह इसराएल के राजा सुलैमान ने सीदोनियों की घिनौनी देवी अशतोरेत के लिए, मोआब के घिनौने देवता कमोश के लिए और अम्मोनियों के घिनौने देवता मिलकोम+ के लिए बनवायी थीं। 14 राजा योशियाह ने पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर दिए, पूजा-लाठें काट डालीं+ और उन्हें जिन-जिन जगहों पर खड़ा किया गया था वहाँ इंसानों की हड्डियाँ भर दीं। 15 उसने बेतेल की वेदी और ऊँची जगह भी ढा दी जिन्हें नबात के बेटे यारोबाम ने खड़ा करके इसराएल से पाप करवाया था।+ फिर उसने वह जगह आग से भस्म कर दी, सबकुछ चूर-चूर कर दिया और पूजा-लाठ जला दी।+
16 जब योशियाह ने मुड़कर पहाड़ पर कब्रें देखीं तो उसने उनमें से हड्डियाँ निकलवायीं और उन्हें उस वेदी पर जला दिया ताकि वहाँ पूजा न की जा सके। इस तरह यहोवा की वह बात पूरी हुई जो उसने अपने सेवक से ऐलान करवायी थी। सच्चे परमेश्वर के उस सेवक ने भविष्यवाणी की थी कि ये सारी घटनाएँ होंगी।+ 17 इसके बाद योशियाह ने पूछा, “यह कब्र किसकी है?” शहर के आदमियों ने उसे बताया, “यह कब्र सच्चे परमेश्वर के उस सेवक की है जो यहूदा से आया था।+ और तूने बेतेल की वेदी के साथ अभी जो किया है, उसके बारे में उसी ने भविष्यवाणी की थी।” 18 तब राजा ने कहा, “उसकी कब्र छोड़ दो। उसकी हड्डियों को कोई हाथ न लगाए।” इसलिए उन्होंने उसकी हड्डियों को कुछ नहीं किया और सामरिया के भविष्यवक्ता की हड्डियों को भी नहीं छुआ।+
19 योशियाह ने सामरिया के शहरों की ऊँची जगहों पर बने सभी पूजा-घरों को भी मिटा दिया।+ ये पूजा-घर बनवाकर इसराएल के राजाओं ने परमेश्वर का क्रोध भड़काया था। योशियाह ने इनका भी वही हाल किया जो उसने बेतेल के पूजा-घर का किया था।+ 20 उसने ऊँची जगहों पर सेवा करनेवाले सभी पुजारियों को वेदियों पर बलि कर दिया और उन वेदियों पर इंसानों की हड्डियाँ जला दीं।+ इसके बाद वह यरूशलेम लौट गया।
21 फिर राजा ने सब लोगों को आज्ञा दी, “अपने परमेश्वर यहोवा के लिए फसह मनाओ,+ जैसे करार की इस किताब में लिखा है।”+ 22 योशियाह के दिनों में जिस तरह का फसह मनाया गया, वैसा इसराएल के न्यायियों के ज़माने से अब तक नहीं मनाया गया था, न इसराएल के किसी राजा के दिनों में और न ही यहूदा के किसी राजा के दिनों में।+ 23 यहोवा के लिए यह फसह योशियाह के राज के 18वें साल में यरूशलेम में मनाया गया।
24 योशियाह ने यहूदा और यरूशलेम से उन लोगों को भी निकाल दिया जो मरे हुओं से संपर्क करने का दावा करते थे और भविष्य बताते थे,+ साथ ही उसने कुल देवताओं की मूरतें,+ घिनौनी मूरतें* और दूसरी सारी घिनौनी चीज़ें हटा दीं। उसने यह सब इसलिए किया क्योंकि वह उस किताब में लिखे कानून का पालन करना चाहता था+ जो याजक हिलकियाह को यहोवा के भवन में मिली थी।+ 25 योशियाह ने जैसे मूसा के पूरे कानून का पालन करके यहोवा के पास लौट आने में पूरी जान, पूरा दिल+ और पूरी ताकत लगा दी, वैसे किसी और राजा ने नहीं किया। न उससे पहले कोई ऐसा राजा हुआ था और न उसके बाद।
26 फिर भी यहूदा पर यहोवा का क्रोध भड़का रहा क्योंकि मनश्शे ने बहुत-से दुष्ट काम करके उसे गुस्सा दिलाया था।+ 27 यहोवा ने कहा, “मैं यहूदा को अपनी नज़रों से दूर कर दूँगा,+ ठीक जैसे मैंने इसराएल को दूर कर दिया।+ मैं यरूशलेम शहर को ठुकरा दूँगा जिसे मैंने चुना था और उस भवन को भी ठुकरा दूँगा जिसके बारे में मैंने कहा था, ‘मेरा नाम उससे हमेशा जुड़ा रहेगा।’”+
28 योशियाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 29 उसके दिनों में मिस्र का राजा फिरौन निको अश्शूर के राजा की मदद करने फरात नदी की तरफ निकला। तब राजा योशियाह, निको से युद्ध करने गया, मगर जब निको ने उसे देखा तो मगिद्दो में उसे मार डाला।+ 30 योशियाह के सेवक उसकी लाश रथ में रखकर मगिद्दो से यरूशलेम ले आए और उसकी कब्र में उसे दफना दिया। फिर यहूदा के लोगों ने योशियाह के बेटे यहोआहाज का अभिषेक किया और उसके पिता की जगह उसे राजा बनाया।+
31 यहोआहाज+ जब राजा बना तब वह 23 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर तीन महीने राज किया। उसकी माँ का नाम हमूतल+ था जो लिब्ना के रहनेवाले यिर्मयाह की बेटी थी। 32 यहोआहाज अपने पुरखों की तरह ऐसे काम करने लगा जो यहोवा की नज़र में बुरे थे।+ 33 फिरौन निको+ ने उसे हमात के इलाके के रिबला में कैद कर दिया+ ताकि वह यरूशलेम में राज न कर सके। फिर निको ने यहूदा देश पर 100 तोड़े* चाँदी और एक तोड़े सोने का जुरमाना लगा दिया।+ 34 और फिरौन निको ने योशियाह की जगह उसके बेटे एल्याकीम को राजा बना दिया और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रख दिया। मगर निको, यहोआहाज को मिस्र ले गया+ जहाँ बाद में उसकी मौत हो गयी।+ 35 यहोयाकीम ने फिरौन को चाँदी और सोने का जुरमाना भरा, मगर उसकी माँग पूरी करने के लिए उसे देश की ज़मीन पर कर लगाना पड़ा। यहोयाकीम ने हर आदमी की ज़मीन की कीमत के हिसाब से सोना-चाँदी वसूल किया ताकि फिरौन निको को अदा कर सके।
36 यहोयाकीम+ जब राजा बना तब वह 25 साल का था और उसने यरूशलेम से यहूदा पर 11 साल राज किया।+ उसकी माँ का नाम जबीदा था जो रूमा के रहनेवाले पदायाह की बेटी थी। 37 यहोयाकीम अपने पुरखों की तरह ऐसे काम करता रहा+ जो यहोवा की नज़र में बुरे थे।+
24 यहोयाकीम के दिनों में बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर+ ने यरूशलेम पर हमला किया और यहोयाकीम तीन साल तक उसके अधीन रहा। मगर फिर वह नबूकदनेस्सर के खिलाफ उठा और उससे बगावत करने लगा। 2 तब यहोवा, यहोयाकीम पर हमला करने के लिए कसदियों,+ मोआबियों, अम्मोनियों और सीरिया के लोगों के लुटेरे-दल भेजने लगा। वह उन सबको इसलिए भेजता रहा ताकि वे यहूदा को नाश कर दें। इस तरह यहोवा की वह बात पूरी हुई+ जो उसने अपने सेवकों यानी भविष्यवक्ताओं से कहलवायी थी। 3 बेशक यहूदा पर यह संकट यहोवा के आदेश पर ही आया। परमेश्वर ने यहूदा को अपनी नज़रों से दूर करने के लिए ऐसा किया+ क्योंकि मनश्शे ने बेहिसाब पाप किए थे+ 4 और मासूमों के खून से पूरे यरूशलेम को भर दिया था।+ यहोवा ने यहूदा को माफ करना न चाहा।+
5 यहोयाकीम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।+ 6 फिर यहोयाकीम की मौत हो गयी*+ और उसकी जगह उसका बेटा यहोयाकीन राजा बना।
7 मिस्र के राजा ने फिर कभी अपनी सेनाओं को किसी से युद्ध करने नहीं भेजा, क्योंकि बैबिलोन के राजा ने उसका सारा इलाका ले लिया था+ जो मिस्र घाटी*+ से लेकर फरात नदी तक फैला था।+
8 जब यहोयाकीन+ राजा बना तब वह 18 साल का था और उसने यरूशलेम से यहूदा पर तीन महीने राज किया।+ उसकी माँ का नाम नहुश्ता था जो यरूशलेम के रहनेवाले एलनातान की बेटी थी। 9 यहोयाकीन अपने पिता की तरह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। 10 उन दिनों बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर के सेवकों ने आकर यरूशलेम पर हमला कर दिया और शहर को घेर लिया।+ 11 जब नबूकदनेस्सर के सेवक शहर को घेरे हुए थे तो उस दौरान वह शहर आया।
12 यहूदा का राजा यहोयाकीन, अपनी माँ और अपने सेवकों, हाकिमों और दरबारियों+ के साथ बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर के सामने गया+ और नबूकदनेस्सर ने यहोयाकीन को बंदी बना लिया। यह घटना नबूकदनेस्सर के राज के आठवें साल में हुई थी।+ 13 फिर नबूकदनेस्सर ने वहाँ यहोवा के भवन और राजमहल के खज़ाने से सारा धन निकाल लिया।+ उसने सोने की उन सारी चीज़ों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जो इसराएल के राजा सुलैमान ने बनवाकर यहोवा के मंदिर में रखी थीं।+ यह बिलकुल वैसे ही हुआ जैसे यहोवा ने भविष्यवाणी की थी। 14 नबूकदनेस्सर, पूरे यरूशलेम को यानी सभी हाकिमों,+ वीर योद्धाओं, कारीगरों और धातु-कारीगरों* को बंदी बनाकर ले गया+ जो कुल मिलाकर 10,000 थे। देश के सबसे गरीब लोगों को छोड़ वह सबको ले गया।+ 15 इस तरह वह यहोयाकीन+ को बंदी बनाकर बैबिलोन ले गया।+ साथ ही, वह उसकी माँ, उसकी पत्नियों, दरबारियों और देश के सबसे खास-खास आदमियों को भी बंदी बनाकर यरूशलेम से बैबिलोन ले गया। 16 बैबिलोन का राजा यरूशलेम के सभी 7,000 योद्धाओं और 1,000 कारीगरों और धातु-कारीगरों* को बंदी बनाकर बैबिलोन ले गया। ये सभी बड़े-बड़े सूरमा थे जिन्हें युद्ध की तालीम दी गयी थी। 17 बैबिलोन के राजा ने यहोयाकीन की जगह उसके चाचा मत्तन्याह+ को राजा बनाया। उसने मत्तन्याह का नाम बदलकर सिदकियाह+ रख दिया।
18 सिदकियाह जब राजा बना तब वह 21 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 11 साल राज किया। उसकी माँ का नाम हमूतल था जो लिब्ना के रहनेवाले यिर्मयाह की बेटी थी। 19 सिदकियाह, यहोयाकीम की तरह वे सारे काम करता रहा जो यहोवा की नज़र में बुरे थे।+ 20 यरूशलेम और यहूदा के साथ ये बुरी घटनाएँ इसलिए घटीं क्योंकि यहोवा का क्रोध उन पर भड़का हुआ था और आखिर में उसने उन्हें अपनी नज़रों से दूर कर दिया। सिदकियाह ने बैबिलोन के राजा से बगावत की।+
25 सिदकियाह के राज के नौवें साल के दसवें महीने के दसवें दिन, बैबिलोन का राजा नबूकदनेस्सर+ अपनी पूरी सेना लेकर यरूशलेम पर हमला करने आया।+ उसने यरूशलेम के बाहर छावनी डाली और उसके चारों तरफ घेराबंदी की दीवार खड़ी की।+ 2 यह घेराबंदी सिदकियाह के राज के 11वें साल तक रही। 3 चौथे महीने के नौवें दिन, जब शहर में भयंकर अकाल था+ और लोगों के पास खाने को कुछ नहीं था,+ 4 तब नबूकदनेस्सर के सैनिकों ने शहरपनाह में दरार कर दी।+ जब कसदी शहर को घेरे हुए थे तब यरूशलेम के सभी सैनिक रात के वक्त उस फाटक से भाग निकले, जो राजा के बाग के पास दो दीवारों के बीच था। और राजा सिदकियाह अराबा के रास्ते से गया।+ 5 मगर कसदी सेना ने राजा का पीछा किया और यरीहो के वीरानों में उसे पकड़ लिया। तब राजा की सारी सेना उसे छोड़कर इधर-उधर भाग गयी। 6 कसदी लोग राजा सिदकियाह को पकड़कर+ बैबिलोन के राजा के पास रिबला ले गए और वहाँ उसे सज़ा सुनायी गयी। 7 उन्होंने सिदकियाह की आँखों के सामने उसके बेटों को मार डाला। फिर नबूकदनेस्सर ने सिदकियाह की आँखें फोड़ दीं और वह उसे ताँबे की बेड़ियों में जकड़कर बैबिलोन ले गया।+
8 फिर बैबिलोन के राजा का सेवक नबूजरदान,+ जो पहरेदारों का सरदार था, पाँचवें महीने के सातवें दिन यरूशलेम आया। यह नबूकदनेस्सर के राज का 19वाँ साल था।+ 9 नबूजरदान ने यहोवा का भवन, राजमहल,+ यरूशलेम के सभी घर और सभी खास-खास आदमियों के घर जलाकर राख कर दिए।+ 10 पहरेदारों के सरदार के साथ आयी पूरी कसदी सेना ने यरूशलेम की शहरपनाह ढा दी।+ 11 शहर में जो लोग बचे थे, साथ ही जो लोग यहूदा के राजा का साथ छोड़कर बैबिलोन के राजा की तरफ चले गए थे, उन सबको नबूजरदान बंदी बनाकर ले गया। उनके अलावा, देश के बाकी लोगों को भी वह ले गया।+ 12 मगर पहरेदारों के सरदार ने देश के कुछ ऐसे लोगों को छोड़ दिया जो बहुत गरीब थे ताकि वे अंगूरों के बाग में काम करें और जबरन मज़दूरी करें।+ 13 कसदियों ने यहोवा के भवन में ताँबे के बने खंभों+ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और यहोवा के भवन में जो हथ-गाड़ियाँ+ और ताँबे का बड़ा हौद+ था उसके भी टुकड़े-टुकड़े कर दिए और सारा ताँबा निकालकर बैबिलोन ले गए।+ 14 वे मंदिर में इस्तेमाल होनेवाली हंडियाँ, बेलचे, बाती बुझाने की कैंचियाँ, प्याले और ताँबे की बाकी सारी चीज़ें उठा ले गए। 15 पहरेदारों का सरदार आग उठाने के करछे और कटोरे भी ले गया जो शुद्ध सोने+ और चाँदी के बने थे।+ 16 सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिए जो दो खंभे, बड़ा हौद और हथ-गाड़ियाँ बनायी थीं उन सबमें इतना ताँबा लगा था कि उसका तौल नहीं किया जा सकता था।+ 17 हर खंभे की ऊँचाई 18 हाथ* थी+ और दोनों खंभों के ऊपर ताँबे का एक-एक कंगूरा लगा था। दोनों कंगूरों की ऊँचाई तीन-तीन हाथ थी। हर कंगूरे के चारों तरफ जो जालीदार काम किया गया था और अनार बनाए गए थे वे भी ताँबे के थे।+
18 पहरेदारों के सरदार ने प्रधान याजक सरायाह+ को और उसके सहायक याजक सपन्याह+ और तीन दरबानों को भी पकड़ लिया।+ 19 वह शहर से उस अधिकारी को ले गया जिसकी कमान के नीचे सैनिक थे, साथ ही वह राजा के पाँच सलाहकारों को भी ले गया जो शहर में पाए गए। उसने सेनापति के सचिव को भी पकड़ लिया जो देश के लोगों को सेना के लिए इकट्ठा करता था। और शहर में अब भी जो आम लोग बचे हुए थे उनमें से 60 आदमियों को वह पकड़कर ले गया। 20 पहरेदारों का सरदार नबूजरदान+ उन सबको बैबिलोन के राजा के पास रिबला ले गया।+ 21 बैबिलोन के राजा ने हमात+ के रिबला में उन सबको मार डाला। इस तरह यहूदा को उसके देश से निकालकर बँधुआई में ले जाया गया।+
22 बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर ने यहूदा में जिन लोगों को छोड़ दिया था, उन पर उसने गदल्याह को अधिकारी ठहराया।+ गदल्याह, अहीकाम+ का बेटा और शापान+ का पोता था।+ 23 जब सभी सेनापतियों और उनके आदमियों ने सुना कि बैबिलोन के राजा ने गदल्याह को अधिकारी ठहराया है तो वे फौरन गदल्याह के पास मिसपा गए। ये थे नतन्याह का बेटा इश्माएल, कारेह का बेटा योहानान, नतोपा के रहनेवाले तनहूमेत का बेटा सरायाह, एक माकाती आदमी का बेटा याजन्याह और उनके आदमी।+ 24 गदल्याह ने शपथ खाकर सेनापतियों और उनके आदमियों से कहा, “तुम लोग कसदियों के सेवक बनने से मत डरो। तुम इसी देश में रहो और बैबिलोन के राजा की सेवा करो। तुम्हें कुछ नहीं होगा, तुम सलामत रहोगे।”+
25 मगर सातवें महीने में इश्माएल,+ जो शाही खानदान* के नतन्याह का बेटा और एलीशामा का पोता था, दस आदमियों के साथ आया और उन्होंने गदल्याह को मार डाला। इस तरह गदल्याह मिसपा में उन यहूदियों और कसदियों के संग मारा गया जो उसके साथ थे।+ 26 इसके बाद छोटे-बड़े सब लोग, यहाँ तक कि सारे सेनापति मिस्र भाग गए+ क्योंकि वे कसदियों से डर गए थे।+
27 यहूदा के राजा यहोयाकीन+ की बँधुआई के 37वें साल के 12वें महीने के 27वें दिन, बैबिलोन के राजा एवील-मरोदक ने यहोयाकीन को कैद से रिहा कर दिया। एवील-मरोदक उसी साल राजा बना था।+ 28 वह यहोयाकीन के साथ प्यार से बात करता था और उसने यहोयाकीन को उन राजाओं से बढ़कर सम्मान का पद सौंपा जो बैबिलोन में थे। 29 यहोयाकीन ने कैदखाने के कपड़े बदल दिए और उसने सारी ज़िंदगी एवील-मरोदक की मेज़ पर भोजन किया। 30 यहोयाकीन को सारी ज़िंदगी, रोज़-ब-रोज़ राजा के यहाँ से खाना मिलता रहा।
मतलब “मेरा परमेश्वर यहोवा है।”
यानी अहज्याह का भाई।
“भविष्यवक्ताओं के बेटों” का मतलब शायद भविष्यवक्ताओं का दल था या भविष्यवक्ताओं का एक संघ था जिसमें उन्हें तालीम दी जाती थी।
या “भविष्यवक्ता की पोशाक।”
यहाँ शक्ति का मतलब परमेश्वर की पवित्र शक्ति या एलियाह का स्वभाव हो सकता है।
या “भविष्यवक्ता की पोशाक।”
या “आँधी।”
या शायद, “ज़मीन गर्भ गिरा देती है।”
या शायद, “न किसी का गर्भ गिरेगा।”
या “जो एलियाह का सेवक था।”
शा., “जिसके सामने मैं खड़ा रहता हूँ।”
या “संगीतकार।”
शा., “हाथ।”
या “जो कमरबंद बाँधे हुए थे।”
या “टोंटीदार सुराही।”
या “उद्धार दिलाया था।”
या “वह त्वचा रोग से पीड़ित था।”
यहाँ शायद नामान की बात की गयी है।
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “आशीर्वाद।”
शा., “जिसके सामने मैं खड़ा रहता हूँ।”
सामरिया की एक जगह जो शायद एक पहाड़ी या किला है।
या “एक-दो से ज़्यादा बार।”
शा., “के राजा का दिल।”
एक कब 1.22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “अंदर अपने शरीर पर।”
या “बाज़ारों।”
एक सआ 7.33 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शा., “बेटी।”
या “बीमार था।”
शा., “बेटे।”
या “सीधे-सच्चे।”
शा., “घर।”
या “नेक।”
शा., “धरती पर नहीं गिरेगी।”
या “आशीर्वाद दिया।”
शा., “सीधे-सच्चे।”
या “देख कि यहोवा के लिए मुझमें कितना जोश है।”
शा., “शहर,” शायद किले जैसी एक इमारत।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शा., “राज के सारे बीज नाश कर दिए।”
शा., “कारी लोगों।”
शा., “जब वह बाहर जाए और जब वह अंदर आए।”
शायद एक खर्रा जिसमें परमेश्वर का कानून लिखा था।
या “जान-पहचानवालों।”
या “थैलियों में डालते।” शा., “थैलियों में बाँधते।”
शा., “हजाएल ने यरूशलेम के खिलाफ अपना मुँह किया।”
या “बेत-मिल्लो।”
यानी शांति और सुरक्षा से रहने लगे।
शा., “वह उसमें चलता रहा।”
शब्दावली देखें।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
यानी यारोबाम द्वितीय।
या “की तरफ से मिलनेवाले उद्धार।”
या “से उद्धार।”
या “हराएगा।”
शायद वसंत में।
या “का सामना।”
शा., “तंबू।”
करीब 178 मी. (584 फुट)। अति. ख14 देखें।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
यानी यारोबाम द्वितीय।
मतलब “यहोवा ने मदद की।” उसे 2रा 15:13; 2इत 26:1-23; यश 6:1 और जक 14:5 में उज्जियाह कहा गया है।
यानी उसका पिता अमज्याह।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
या “हमात के प्रवेश।”
यानी लवण सागर या मृत सागर।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
यानी यारोबाम द्वितीय।
मतलब “यहोवा ने मदद की।” उसे 2रा 15:13; 2इत 26:1-23; यश 6:1 और जक 14:5 में उज्जियाह कहा गया है।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
या “यहूदा के लोगों।”
शा., “तेरा बेटा हूँ।”
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
मतलब “यहोवा मज़बूत करता है।”
शा., “का डर मानते थे।”
यानी हर जगह पर, फिर चाहे वहाँ थोड़े लोग बसे हों या घनी आबादी हो।
शब्दावली देखें।
इनका इब्रानी शब्द शायद “मल” के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से संबंध रखता है और यह बताने के लिए इस्तेमाल होता है कि किसी चीज़ से कितनी घिन की जा रही है।
या “दो बछड़ों की मूरतें ढालकर बनायीं।”
शा., “के लिए खुद को बेच दिया।”
या “की उपासना नहीं करते थे।”
या “के धार्मिक रिवाज़।”
या “की उपासना करनी।”
या “देवताओं की मूरतें बनायीं।”
या “धार्मिक रिवाज़ों।”
या “धार्मिक रिवाज़ों।”
शा., “का डर नहीं मानता।”
या “धार्मिक रिवाज़ों।”
यह अबियाह नाम का छोटा रूप है।
शब्दावली देखें।
या “नहुश-तान।”
यानी हर जगह पर, फिर चाहे वहाँ थोड़े लोग बसे हों या घनी आबादी हो।
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “सेनापति।”
या “मुख्य दरबारी।”
या “प्रधान साकी।”
या “सीरियाई।”
शा., “मेरे साथ आशीर्वाद करो और मेरे पास निकल आओ।”
या “बेइज़्ज़ती।”
या शायद, “के बीच।”
या “नील नदी की नहरें।”
या “इसे रचा था।”
यानी हिजकियाह को।
या “बिखरे हुए दानों से हुई पैदावार खाओगे।”
शायद इन सीढ़ियों का इस्तेमाल एक धूप-घड़ी की तरह समय मापने के लिए किया जाता था।
या “की सुनी।”
शा., “दिनों में।”
या “सच्चाई।”
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शब्दावली देखें।
इनका इब्रानी शब्द शायद “मल” के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से संबंध रखता है और यह बताने के लिए इस्तेमाल होता है कि किसी चीज़ से कितनी घिन की जा रही है।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शा., “अपने पुरखों में जा मिलेगा।”
या “दोबारा करार किया।”
शब्दावली देखें।
शब्दावली में “गेहन्ना” देखें।
या “भोजन के कमरे।”
यानी जैतून पहाड़, खासकर दक्षिणी कोना जिसे अपराध का पहाड़ भी कहा जाता है।
शा., “दायीं तरफ।” यानी जब कोई पूरब की तरफ मुँह करता है तो उसके दक्षिण में।
इनका इब्रानी शब्द शायद “मल” के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से संबंध रखता है और यह बताने के लिए इस्तेमाल होता है कि किसी चीज़ से कितनी घिन की जा रही है।
एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”
शब्दावली देखें।
या शायद, “सुरक्षा-दीवार बनानेवालों।”
या शायद, “सुरक्षा-दीवार बनानेवालों।”
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “राज के बीज।”