लूका के मुताबिक खुशखबरी
1 आदरणीय थियुफिलुस,+ जिन सच्ची घटनाओं पर हम सब यकीन करते हैं, उन्हें लिखने का काम बहुत-से लोगों ने अपने हाथ में लिया।+ 2 उसी तरह, जो लोग शुरूआत से इन बातों के चश्मदीद गवाह रहे+ और हमें परमेश्वर का संदेश सुनानेवाले सेवक बने, उन्होंने भी ये बातें हम तक पहुँचायी हैं।+ 3 मैंने भी ठाना है कि मैं तुझे ये सारी बातें तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार ढंग से लिखूँ, जिनके बारे में मैंने शुरूआत से सही-सही पता लगाया है 4 ताकि तू पक्की तरह जाने कि जो बातें तुझे ज़बानी तौर पर सिखायी गयी थीं वे भरोसे के लायक हैं।+
5 जिन दिनों हेरोदेस*+ यहूदिया पर राज कर रहा था, उन दिनों जकरयाह नाम का एक आदमी याजक था। वह अबियाह के दल का था+ और उसकी पत्नी का नाम इलीशिबा था, जो हारून के वंश से थी। 6 वे दोनों परमेश्वर की नज़र में नेक थे, क्योंकि वे यहोवा* की सभी आज्ञाओं और कानूनों को मानते थे और उनका चालचलन बेदाग था। 7 लेकिन उनके कोई बच्चा नहीं था क्योंकि इलीशिबा बाँझ थी और वे दोनों बूढ़े हो चुके थे।
8 अब ऐसा हुआ कि जकरयाह परमेश्वर के सामने याजक का काम कर रहा था क्योंकि यह उसके दल की बारी थी।+ 9 याजकपद के रिवाज़ के मुताबिक जब धूप जलाने की उसकी बारी आयी,+ तो वह यहोवा* के मंदिर के अंदर गया।+ 10 धूप जलाने के वक्त, लोगों की सारी भीड़ बाहर प्रार्थना कर रही थी। 11 तब जकरयाह के सामने यहोवा* का स्वर्गदूत प्रकट हुआ। वह धूप की वेदी के दायीं तरफ खड़ा था। 12 उसे देखकर जकरयाह उलझन में पड़ गया और बहुत डर गया। 13 लेकिन स्वर्गदूत ने उससे कहा, “जकरयाह मत डर, क्योंकि तेरी मिन्नतें सुन ली गयी हैं। तेरी पत्नी इलीशिबा माँ बनेगी और तेरे लिए एक बेटे को जन्म देगी। तू उसका नाम यूहन्ना रखना।+ 14 तुझे बहुत खुशी मिलेगी और तू आनंद करेगा। बहुत-से लोग उस बच्चे के जन्म पर खुशियाँ मनाएँगे+ 15 क्योंकि वह यहोवा* की नज़र में महान होगा।+ मगर उसे दाख-मदिरा या शराब बिलकुल नहीं पीनी है।+ वह अपनी माँ के गर्भ से ही* परमेश्वर की पवित्र शक्ति से भरपूर होगा।+ 16 वह बहुत-से इसराएलियों को उनके परमेश्वर यहोवा* के पास वापस ले आएगा।+ 17 और वह एलियाह जैसे जोश* और शक्ति के साथ परमेश्वर के आगे-आगे जाएगा+ ताकि पिताओं का दिल पलटकर बच्चों जैसा कर दे+ और जो आज्ञा नहीं मानते उन्हें ऐसी बुद्धि दे जो नेक लोगों में होती है। इस तरह वह यहोवा* के लिए ऐसे लोगों को तैयार करेगा जो उसके योग्य हों।”+
18 तब जकरयाह ने स्वर्गदूत से कहा, “मैं इस बात का यकीन कैसे करूँ कि मैं पिता बनूँगा? क्योंकि मैं बूढ़ा हो चुका हूँ और मेरी पत्नी की भी उम्र ढल चुकी है।” 19 स्वर्गदूत ने उससे कहा, “मैं जिब्राईल हूँ+ और परमेश्वर के सामने हाज़िर रहता हूँ।+ मुझे तुझसे बात करने और यह खुशखबरी सुनाने के लिए भेजा गया है। 20 मगर देख! तू गूँगा हो जाएगा और जिस दिन तक ये बातें पूरी न हो जाएँ, उस दिन तक तू बोल नहीं सकेगा क्योंकि तूने मेरी बातों का यकीन नहीं किया, जो तय वक्त पर पूरी होंगी।” 21 इस दौरान लोग बाहर जकरयाह का इंतज़ार करते रहे। वे ताज्जुब करने लगे कि उसे मंदिर में इतनी देर क्यों लग रही है। 22 जब वह बाहर आया, तो कुछ बोल नहीं सका। वे समझ गए कि ज़रूर उसने अभी-अभी मंदिर में कोई दर्शन देखा* है। वह उनसे इशारों में बात करता रहा और गूँगा रहा। 23 जब उसकी पवित्र सेवा* के दिन पूरे हुए, तो वह अपने घर लौट गया।
24 कुछ दिनों बाद उसकी पत्नी इलीशिबा गर्भवती हुई। वह पाँच महीने तक अपने घर से नहीं निकली। वह कहती थी, 25 “इन दिनों यहोवा* ने मुझ पर मेहरबानी की है। उसने मुझ पर ध्यान दिया है ताकि लोगों के बीच से मेरी बदनामी दूर करे।”+
26 इलीशिबा के छठे महीने में परमेश्वर ने जिब्राईल स्वर्गदूत+ को गलील के नासरत शहर में 27 एक कुँवारी+ के पास भेजा। उसकी मँगनी यूसुफ नाम के एक आदमी से हो चुकी थी जो दाविद के घराने से था। उस कुँवारी का नाम मरियम था।+ 28 जब वह स्वर्गदूत मरियम के सामने आया, तो उसने मरियम से कहा, “खुश रह! परमेश्वर की बड़ी आशीष तुझ पर है। यहोवा* तेरे साथ है।” 29 मगर यह सुनकर वह बहुत घबरा गयी और सोचने लगी कि ऐसे नमस्कार का क्या मतलब हो सकता है। 30 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “मरियम, मत डर! क्योंकि तूने परमेश्वर की बड़ी आशीष पायी है। 31 देख! तू गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी।+ तू उसका नाम यीशु रखना।+ 32 वह महान होगा+ और परम-प्रधान का बेटा कहलाएगा+ और यहोवा* परमेश्वर उसके पुरखे दाविद की राजगद्दी उसे देगा।+ 33 वह राजा बनकर याकूब के घराने पर हमेशा तक राज करेगा और उसके राज का कभी अंत नहीं होगा।”+
34 मगर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “मुझे बच्चा कैसे हो सकता है, मैं तो कुँवारी हूँ?”*+ 35 स्वर्गदूत ने उससे कहा, “परमेश्वर की पवित्र शक्ति तुझ पर आएगी+ और परम-प्रधान की शक्ति तुझ पर छा जाएगी। इसलिए जो पैदा होगा वह पवित्र+ और परमेश्वर का बेटा कहलाएगा।+ 36 देख! तेरी रिश्तेदार इलीशिबा जिसे बाँझ कहा जाता था, वह भी बुढ़ापे में गर्भवती हुई है। वह एक बेटे को जन्म देनेवाली है और यह उसका छठा महीना है। 37 क्योंकि परमेश्वर के मुँह से निकली कोई भी बात* नामुमकिन नहीं हो सकती।”+ 38 तब मरियम ने कहा, “देख! मैं तो यहोवा* की दासी हूँ! तूने जैसा कहा है, वैसा ही मेरे साथ हो।” तब वह स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
39 उन दिनों मरियम ने जल्दी-जल्दी तैयारी की और पहाड़ी इलाके में यहूदा के एक शहर के लिए निकल पड़ी। 40 वह जकरयाह के घर पहुँची और उसने इलीशिबा को नमस्कार किया। 41 जैसे ही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, उसके पेट में बच्चा उछल पड़ा और इलीशिबा पवित्र शक्ति से भर गयी 42 और ज़ोर से बोल उठी, “तू औरतों में सबसे धन्य है! तेरे गर्भ का फल भी धन्य है! 43 यह मेरे लिए कितना बड़ा सम्मान है कि मेरे प्रभु की माँ मेरे पास आयी है! 44 क्योंकि देख! जैसे ही तेरे नमस्कार की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, मेरे पेट में बच्चा खुशी से उछल पड़ा। 45 तू इसलिए भी धन्य है कि तूने यकीन किया, क्योंकि यहोवा* की जो बातें तुझसे कही गयी हैं, वे सब पूरी होंगी।”
46 तब मरियम ने कहा, “मैं* यहोवा* का गुणगान करती हूँ+ 47 और मेरा दिल मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर की वजह से खुशी से फूला नहीं समा रहा+ 48 क्योंकि उसने अपनी दासी की दीन दशा पर ध्यान दिया है+ और अब से सारी पीढ़ियाँ मुझे सुखी कहा करेंगी।+ 49 क्योंकि शक्तिशाली परमेश्वर ने मेरी खातिर बड़े-बड़े काम किए हैं और उसका नाम पवित्र है।+ 50 जो उसका डर मानते हैं, उन पर उसकी दया पीढ़ी-पीढ़ी तक बनी रहती है।+ 51 उसने अपने बाज़ुओं की ताकत दिखायी है और जिनका दिल घमंड से भरा था उन्हें तितर-बितर किया है।+ 52 उसने अधिकार रखनेवालों को उनकी गद्दी से नीचे उतारा है+ और दीन-हीनों को ऊँचा किया है।+ 53 उसने भूखों को भरपेट अच्छी चीज़ें दी हैं,+ जबकि दौलतमंदों को खाली हाथ लौटा दिया है। 54 वह अपने सेवक इसराएल को सहारा देने आया है और जैसा उसने हमारे पुरखों से वादा किया था,+ 55 उसे अब्राहम और उसके वंश* पर सदा-सदा तक दया करना याद रहा।”+ 56 मरियम करीब तीन महीने तक इलीशिबा के साथ रही और फिर अपने घर लौट आयी।
57 इलीशिबा के दिन पूरे हुए और उसने एक बेटे को जन्म दिया। 58 जब उसके पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने सुना कि यहोवा* ने उस पर बड़ी दया की है, तो उन्होंने उसके साथ खुशियाँ मनायीं।+ 59 आठवें दिन वे उस बच्चे का खतना करने आए।+ वे उसके पिता जकरयाह के नाम पर उसका नाम रखने जा रहे थे। 60 लेकिन बच्चे की माँ ने कहा, “नहीं! उसका नाम यूहन्ना होगा।” 61 तब वे उससे कहने लगे, “तेरे रिश्तेदारों में से किसी का भी यह नाम नहीं है।” 62 फिर उन्होंने बच्चे के पिता से इशारों में पूछा कि वह उसका क्या नाम रखना चाहता है। 63 उसने एक तख्ती मँगवायी और उस पर लिखा, “इसका नाम यूहन्ना होगा।”+ यह देखकर सब हैरान रह गए। 64 उसी घड़ी जकरयाह की ज़बान खुल गयी और वह फिर से बोलने लगा+ और परमेश्वर की तारीफ करने लगा। 65 उनके आस-पास रहनेवाले सभी लोगों पर डर छा गया। यहूदिया के पहाड़ी इलाके में हर तरफ इन बातों की चर्चा होने लगी। 66 जितने लोगों ने यह सब सुना वे मन में सोचने लगे, “यह बच्चा बड़ा होकर क्या बनेगा?” इसलिए कि यहोवा* का हाथ वाकई उस बच्चे पर था।
67 फिर उसका पिता जकरयाह पवित्र शक्ति से भर गया और यह भविष्यवाणी करने लगा, 68 “इसराएल के परमेश्वर यहोवा* की जयजयकार हो,+ क्योंकि उसने अपने लोगों पर ध्यान दिया है और उन्हें छुटकारा दिलाया है।+ 69 उसने अपने सेवक दाविद के घराने+ में हमारे लिए एक शक्तिशाली उद्धारकर्ता पैदा किया+ है,* 70 ठीक जैसे उसने प्राचीनकाल के पवित्र भविष्यवक्ताओं के मुँह से कहलवाया था।+ 71 उसने बताया था कि वह हमारे दुश्मनों से और जो हमसे नफरत करते हैं उन सबसे हमें छुटकारा दिलाएगा।+ 72 वह हमारे पुरखों पर दया करते हुए अपने पवित्र करार को याद करेगा,+ 73 उस शपथ को जो उसने हमारे पुरखे अब्राहम से खायी थी।+ 74 उसने कहा था कि वह हमें दुश्मनों के हाथ से छुड़ाकर हमें यह सम्मान देगा कि हम निडर होकर उसकी पवित्र सेवा करें 75 और सारी ज़िंदगी उसकी नज़रों में वफादार रहें और उसके नेक स्तरों के मुताबिक चलते रहें। 76 मगर मेरे बेटे, जहाँ तक तेरी बात है, तू परम-प्रधान का भविष्यवक्ता कहलाएगा, इसलिए कि तू यहोवा* के आगे-आगे जाकर उसके लिए रास्ता तैयार करेगा।+ 77 और उसके लोगों को यह संदेश देगा कि वह उनके पाप माफ करेगा और उनका उद्धार करेगा।+ 78 यह हमारे परमेश्वर की कोमल करुणा की वजह से होगा। जब वह करुणा करेगा तो मानो हम पर सुबह का उजाला चमकाएगा 79 ताकि जो अँधेरे में और मौत के साए में बैठे हैं उन्हें वह रौशनी दे+ और हमारे कदमों को शांति की राह पर ले चले।”
80 वह लड़का बड़ा होता गया और दमदार शख्सियतवाला इंसान बना। जब तक उसके लिए इसराएल के सामने आने का वक्त नहीं आया, तब तक वह वीरान इलाकों में रहा।
2 उन दिनों सम्राट* औगुस्तुस की तरफ से एक फरमान जारी हुआ कि उसके साम्राज्य* के सब लोग अपना-अपना नाम दर्ज़ कराएँ। 2 (यह पहली नाम-लिखाई तब हुई जब क्वीरिनियुस, सीरिया का राज्यपाल था।) 3 इसलिए सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने शहर जाने लगे, जहाँ वे पैदा हुए थे। 4 यूसुफ+ गलील के नासरत शहर में रहता था। वह दाविद के खानदान और उसके वंश का था। इसलिए वह भी यहूदिया में दाविद के शहर गया जो बेतलेहेम+ कहलाता है 5 ताकि मरियम के साथ अपना नाम लिखवाए। मरियम अब उसकी पत्नी बन चुकी थी+ और इस वक्त पूरे दिनों पेट से थी।+ 6 जब वे बेतलेहेम में थे, तब मरियम के बच्चा जनने का समय आ गया। 7 उसे बेटा हुआ, जो उसका पहलौठा था।+ उन्हें ठहरने के लिए सराय में कोई कमरा नहीं मिला था, इसलिए मरियम ने बच्चे को कपड़े की पट्टियों में लपेटकर एक चरनी में रखा।+
8 उस इलाके में कुछ चरवाहे भी थे, जो मैदानों में रहकर रात को अपने झुंडों की रखवाली कर रहे थे। 9 यहोवा* का एक स्वर्गदूत अचानक उनके सामने आकर खड़ा हो गया और यहोवा* की महिमा का तेज उनके चारों तरफ चमक उठा और वे बहुत डर गए। 10 मगर स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “डरो मत। देखो! मैं तुम्हें एक खुशखबरी सुनाने आया हूँ जिससे सब लोगों को बहुत खुशी मिलेगी। 11 आज दाविद के शहर+ में तुम्हारे लिए एक उद्धार करनेवाला पैदा हुआ है।+ वही मसीह प्रभु है।+ 12 उसे पहचानने की यह निशानी है: तुम एक शिशु को कपड़े की पट्टियों में लिपटा हुआ चरनी में पाओगे।” 13 तभी अचानक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्ग की एक बड़ी सेना+ परमेश्वर की महिमा करती हुई और यह कहती दिखायी दी, 14 “स्वर्ग में परमेश्वर की महिमा हो और धरती पर उन लोगों को शांति मिले जिनसे परमेश्वर खुश है।”*
15 जब स्वर्गदूत वापस स्वर्ग चले गए, तो चरवाहे एक-दूसरे से कहने लगे, “चलो हम बेतलेहेम चलें और जो यहोवा* ने हमें बताया है वह देखकर आएँ।” 16 तब वे जल्दी-जल्दी गए और उन्होंने वहाँ मरियम और यूसुफ को देखा और उस शिशु को चरनी में पाया। 17 जब चरवाहों ने उस बच्चे को देखा, तो उन्होंने वे सारी बातें बतायीं जो स्वर्गदूत ने उसके बारे में कही थीं। 18 जितनों ने चरवाहों की बातें सुनीं, वे सब ताज्जुब करने लगे। 19 मगर मरियम इन सब बातों को अपने दिल में संजोकर रखने लगी और इनके मतलब के बारे में गहराई से सोचने लगी।+ 20 तब चरवाहे, परमेश्वर की बड़ाई और उसका गुणगान करते हुए लौट गए। जैसा उन्हें बताया गया था उन्होंने सबकुछ वैसा ही सुना और देखा था।
21 आठ दिन बाद जब बच्चे का खतना करने का समय आया,+ तो उसका नाम यीशु रखा गया। यह वही नाम था जो स्वर्गदूत ने उसके गर्भ में पड़ने से पहले बताया था।+
22 फिर जब मूसा के कानून के मुताबिक उन्हें शुद्ध करने का समय आया,+ तो वे उसे यहोवा* के सामने पेश करने के लिए यरूशलेम ले आए, 23 ठीक जैसा यहोवा* के कानून में लिखा है: “हरेक पहलौठा यहोवा* के लिए पवित्र ठहराया जाए।”+ 24 और उन्होंने वह बलिदान चढ़ाया जो यहोवा* के कानून में बताया गया है: “फाख्ता का एक जोड़ा या कबूतर के दो बच्चे।”+
25 और देखो! यरूशलेम में शिमोन नाम का एक आदमी था जो नेक और परमेश्वर का भक्त था। उस पर पवित्र शक्ति थी और वह उस समय के इंतज़ार में था जब परमेश्वर इसराएल को दिलासा देगा।+ 26 इतना ही नहीं, परमेश्वर ने पवित्र शक्ति से उस पर ज़ाहिर किया था कि जब तक वह यहोवा* के मसीह को न देख ले, तब तक मौत का मुँह नहीं देखेगा। 27 अब वह पवित्र शक्ति से उभारे जाने पर मंदिर में आया। जब नन्हे यीशु को उसके माता-पिता अंदर ला रहे थे ताकि कानून का रिवाज़ पूरा करें,+ 28 तब शिमोन ने बच्चे को अपनी बाँहों में लिया और परमेश्वर की बड़ाई करने लगा, 29 “हे सारे जहान के मालिक, अब तेरा यह दास शांति से मर सकता है+ क्योंकि जैसा तूने वादा किया था, 30 मेरी आँखों ने उसे देख लिया है जिसके ज़रिए तू उद्धार करेगा+ 31 और जिसे तूने दिया है ताकि सब देशों के लोग उसे देखें।+ 32 वह राष्ट्रों की आँखों से परदा हटाने के लिए एक रौशनी+ है और तेरी प्रजा इसराएल की महिमा है।” 33 जब बच्चे के बारे में ये बातें कही जा रही थीं, तो उसके माता-पिता बड़े हैरान थे। 34 फिर शिमोन ने उन्हें भी आशीष दी और उसकी माँ मरियम से कहा, “देख! यह इसराएल में बहुतों के गिरने+ और बहुतों के फिर से उठने का कारण होगा+ और एक ऐसी निशानी होगा जिसके खिलाफ बातें की जाएँगी।+ 35 (और जहाँ तक तेरी बात है, एक लंबी तलवार तेरे आर-पार हो जाएगी)+ ताकि बहुतों के दिल में क्या है, यह खुलकर सामने आए।”
36 वहाँ हन्ना नाम की एक भविष्यवक्तिन थी, जो बहुत बूढ़ी थी। वह आशेर गोत्र के फनूएल की बेटी थी। शादी के बाद वह सिर्फ सात साल तक अपने पति के साथ रह पायी थी। 37 फिर वह विधवा हो गयी और अब उसकी उम्र 84 साल थी। वह मंदिर जाना कभी नहीं छोड़ती थी और उपवास और मिन्नतें करती हुई रात-दिन पवित्र सेवा में लगी रहती थी। 38 वह ठीक उसी घड़ी वहाँ आयी और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी और उन सबको जो यरूशलेम के छुटकारे का इंतज़ार कर रहे थे,+ उस बच्चे के बारे में बताने लगी।
39 जब यूसुफ और मरियम यहोवा* के कानून में बताए सारे काम पूरे कर चुके,+ तो गलील में अपने शहर नासरत लौट गए।+ 40 वह बच्चा बढ़ता गया और ताकतवर और बुद्धिमान होता गया और परमेश्वर की आशीष उस पर बनी रही।+
41 उसके माता-पिता अपने दस्तूर के मुताबिक हर साल फसह का त्योहार मनाने यरूशलेम जाया करते थे।+ 42 जब वह 12 साल का था, तो वे त्योहार के दस्तूर के मुताबिक यरूशलेम गए।+ 43 मगर त्योहार के दिन खत्म होने के बाद जब वे लौट रहे थे, तो उनका लड़का यीशु पीछे यरूशलेम में ही रह गया। मगर उसके माता-पिता का इस बात पर ध्यान नहीं गया। 44 उन्होंने सोचा कि वह मुसाफिरों की टोली में होगा। इसलिए उन्होंने एक दिन का सफर तय कर लिया। मगर इसके बाद वे उसे अपने रिश्तेदारों और जान-पहचानवालों में ढूँढ़ने लगे। 45 लेकिन जब वह नहीं मिला, तो वे यरूशलेम लौट गए और उसे जगह-जगह ढूँढ़ने लगे। 46 तीन दिन बाद उन्हें वह मंदिर में मिला, जहाँ वह शिक्षकों के बीच बैठा उनकी सुन रहा था और उनसे सवाल कर रहा था। 47 जितने लोग उसकी सुन रहे थे, वे सभी उसकी समझ और उसके जवाबों से रह-रहकर दंग हो रहे थे।+ 48 जब उसके माता-पिता ने उसे वहाँ देखा, तो वे बहुत हैरान हो गए। उसकी माँ ने उससे कहा, “बेटा, तूने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देख, तेरा पिता और मैं तुझे पागलों की तरह ढूँढ़ रहे थे!” 49 लेकिन उसने उनसे कहा, “तुम मुझे यहाँ-वहाँ क्यों ढूँढ़ रहे थे? क्या तुम नहीं जानते थे कि मैं अपने पिता के घर में होऊँगा?”+ 50 मगर वे उसकी बात का मतलब नहीं समझ सके।
51 फिर वह उनके साथ चला गया और नासरत आ गया और लगातार उनके अधीन रहा।*+ उसकी माँ ने ये सारी बातें अपने दिल में संजोकर रखीं।+ 52 यीशु डील-डौल और बुद्धि में बढ़ता गया और परमेश्वर और लोगों की कृपा उस पर बनी रही।
3 सम्राट तिबिरियुस के राज के 15वें साल में, जिस दौरान पुन्तियुस पीलातुस, यहूदिया का राज्यपाल था और हेरोदेस*+ गलील का ज़िला-शासक था, साथ ही हेरोदेस का भाई फिलिप्पुस, इतूरैया और त्रखोनीतिस इलाके का ज़िला-शासक था और लिसानियास, अबिलेने इलाके का ज़िला-शासक था 2 और हन्ना एक प्रधान याजक और कैफा महायाजक था।+ उन्हीं दिनों परमेश्वर का संदेश जकरयाह के बेटे यूहन्ना+ के पास वीराने में पहुँचा।+
3 इसलिए यूहन्ना, यरदन नदी के आस-पास के सभी इलाकों में जाकर प्रचार करने लगा कि लोगों को बपतिस्मा लेना होगा, जो इस बात की निशानी ठहरेगा कि उन्होंने अपने पापों का पश्चाताप किया है और वे माफी पाना चाहते हैं,+ 4 ठीक जैसा भविष्यवक्ता यशायाह की किताब में लिखा है, “सुनो! वीराने में कोई पुकार रहा है, ‘यहोवा* का रास्ता तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो।+ 5 हरेक घाटी भर दी जाए और हरेक पहाड़ और पहाड़ी सपाट कर दी जाए और टेढ़े-मेढ़े रास्ते सीधे और ऊबड़-खाबड़ जगह समतल कर दी जाएँ। 6 और सब इंसान देखेंगे कि परमेश्वर कैसे उद्धार करता है।’”*+
7 जो भीड़ यूहन्ना से बपतिस्मा लेने आती थी, वह उससे कहा करता था, “अरे साँप के सँपोलो, किसने तुम्हें आगाह कर दिया कि तुम आनेवाले कहर से भाग सकते हो?+ 8 इसलिए पश्चाताप दिखानेवाले फल पैदा करो। खुद से यह मत कहो, ‘हम तो अब्राहम के वंशज हैं।’ क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिए संतान पैदा कर सकता है। 9 वाकई, पेड़ों की जड़ पर कुल्हाड़ा रखा जा चुका है। हर वह पेड़ जो अच्छा फल नहीं देता, उसे काटकर आग में झोंक दिया जाएगा।”+
10 तब भीड़ उससे पूछती थी, “तो हमें क्या करना चाहिए?” 11 वह उनसे कहता, “जिस आदमी के पास दो कपड़े हों, वह एक उसे दे दे जिसके पास एक भी नहीं है। जिसके पास खाने की चीज़ें हों वह भी ऐसा ही करे।”+ 12 कर-वसूलनेवाले भी यूहन्ना के पास बपतिस्मा लेने आए।+ उन्होंने उससे पूछा, “गुरु, हमें क्या करना चाहिए?” 13 उसने कहा, “जितना कर बनता है उससे ज़्यादा की माँग* मत करो।”+ 14 जो सेना में थे उन्होंने यूहन्ना से पूछा, “हमें क्या करना चाहिए?” उसने कहा, “किसी को मत सताओ* या किसी पर झूठा इलज़ाम मत लगाओ।+ मगर तुम्हें जो रोज़ी-रोटी* मिलती है उसी में खुश रहो।”
15 लोग मसीह के आने की बड़ी आस लगाए थे और सब लोग मन-ही-मन यूहन्ना के बारे में सोच रहे थे, “कहीं यही तो मसीह नहीं?”+ 16 यूहन्ना ने उन सबसे कहा, “मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ। मगर जो आनेवाला है वह मुझसे कहीं शक्तिशाली है। मैं उसकी जूतियों के फीते खोलने के भी लायक नहीं।+ वह तुम लोगों को पवित्र शक्ति से और आग से बपतिस्मा देगा।+ 17 उसके हाथ में अनाज फटकनेवाला बेलचा है, वह अपने खलिहान को पूरी तरह साफ करेगा और गेहूँ को इकट्ठा करके अपने गोदाम में रखेगा, मगर भूसी को उस आग में जला देगा जिसे बुझाया नहीं जा सकता।”
18 यूहन्ना लोगों को और भी कई सीख देता रहा और उन्हें खुशखबरी सुनाता रहा। 19 लेकिन जब यूहन्ना ने ज़िला-शासक हेरोदेस को फटकारा क्योंकि उसने अपने भाई की पत्नी हेरोदियास को रख लिया था और दूसरे कई दुष्ट काम किए थे, 20 तो हेरोदेस ने यूहन्ना को जेल में डलवा दिया और अपने दुष्ट कामों में एक काम और जोड़ लिया।+
21 जब सब लोग बपतिस्मा ले रहे थे, तब यीशु ने भी बपतिस्मा लिया+ और जब वह प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया+ 22 और परमेश्वर की पवित्र शक्ति कबूतर जैसे आकार में उसके ऊपर उतरी और स्वर्ग से यह आवाज़ सुनायी दी: “तू मेरा प्यारा बेटा है। मैंने तुझे मंज़ूर किया है।”+
23 जब यीशु+ ने अपनी सेवा शुरू की, तो वह करीब 30 साल का था।+ जैसा माना जाता था
वह यूसुफ का बेटा था+
और यूसुफ एली का,
24 एली मत्तात का,
मत्तात लेवी का,
लेवी मलकी का,
मलकी यन्ना का
और यन्ना यूसुफ का बेटा था।
25 यूसुफ मतित्याह का,
मतित्याह आमोस का,
आमोस नहूम का,
नहूम असल्याह का
और असल्याह नोगह का बेटा था।
26 नोगह मात का,
मात मतित्याह का,
मतित्याह शिमी का,
शिमी योसेख का
और योसेख योदाह का बेटा था।
27 योदाह योनान का,
योनान रेसा का,
रेसा जरुबाबेल का,+
जरुबाबेल शालतीएल का+
और शालतीएल नेरी का बेटा था।
28 नेरी मलकी का,
मलकी अद्दी का,
अद्दी कोसाम का,
कोसाम इलमोदाम का
और इलमोदाम एर का बेटा था।
29 एर यीशु का,
यीशु एलीएज़ेर का,
एलीएज़ेर योरीम का,
योरीम मत्तात का
और मत्तात लेवी का बेटा था।
30 लेवी शिमौन का,
शिमौन यहूदा का,
यहूदा यूसुफ का,
यूसुफ योनाम का
और योनाम एल्याकीम का बेटा था।
31 एल्याकीम मलेआह का,
मलेआह मिन्नाह का,
मिन्नाह मत्तता का,
मत्तता नातान का+
और नातान दाविद का बेटा था।+
यिशै ओबेद का,+
ओबेद बोअज़ का,+
बोअज़ सलमोन का+
और सलमोन नहशोन का बेटा था।+
33 नहशोन अम्मीनादाब का,
अम्मीनादाब अरनी का,
अरनी हेसरोन का,
हेसरोन पेरेस का+
और पेरेस यहूदा का बेटा था।+
याकूब इसहाक का,+
इसहाक अब्राहम का,+
अब्राहम तिरह का+
और तिरह नाहोर का बेटा था।+
सरूग रऊ का,+
रऊ पेलेग का,+
पेलेग एबेर का+
और एबेर शेलह का बेटा था।+
36 शेलह केनान का,
केनान अरपक्षद का,+
अरपक्षद शेम का,+
शेम नूह का+
और नूह लेमेक का बेटा था।+
मतूशेलह हनोक का,
हनोक येरेद का,+
येरेद महल-लेल का+
और महल-लेल केनान का बेटा था।+
एनोश शेत का,+
शेत आदम का+
और आदम परमेश्वर का बेटा था।
4 यीशु पवित्र शक्ति से भरा हुआ यरदन से चला गया। पवित्र शक्ति उसे वीराने में ले गयी+ 2 और वह 40 दिन तक वहाँ रहा। इस दौरान यीशु ने कुछ नहीं खाया और जब वे दिन खत्म हुए, तो उसे भूख लगी। तब शैतान* ने उसे फुसलाने की कोशिश की।+ 3 उसने यीशु से कहा, “अगर तू परमेश्वर का एक बेटा है, तो इस पत्थर से बोल कि यह रोटी बन जाए।” 4 मगर यीशु ने उसे जवाब दिया, “लिखा है, ‘इंसान को सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रहना है।’”+
5 फिर शैतान उसे एक ऊँची जगह ले आया और पल-भर में उसे दुनिया के सारे राज्य दिखाए।+ 6 शैतान ने उससे कहा, “मैं इन सबका अधिकार और इनकी शानो-शौकत तुझे दे दूँगा क्योंकि यह सब मेरे हवाले किया गया है+ और मैं जिसे चाहूँ उसे देता हूँ। 7 इसलिए अगर तू बस एक बार मेरे सामने मेरी उपासना करे, तो यह सबकुछ तेरा हो जाएगा।” 8 यीशु ने उसे जवाब दिया, “लिखा है, ‘तू सिर्फ अपने परमेश्वर यहोवा* की उपासना कर और उसी की पवित्र सेवा कर।’”+
9 फिर शैतान, यीशु को यरूशलेम ले गया और मंदिर की छत की मुँडेर* पर लाकर खड़ा किया और उससे कहा, “अगर तू परमेश्वर का एक बेटा है, तो यहाँ से नीचे छलाँग लगा दे+ 10 क्योंकि लिखा है, ‘परमेश्वर अपने स्वर्गदूतों को हुक्म देगा कि वे तुझे बचाएँ,’ 11 और ‘वे तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे ताकि तेरा पैर किसी पत्थर से चोट न खाए।’”+ 12 तब यीशु ने उससे कहा, “यह कहा गया है, ‘तू अपने परमेश्वर यहोवा* की परीक्षा न लेना।’”+ 13 जब शैतान ये सारी परीक्षाएँ ले चुका, तब कोई और सही मौका मिलने तक वह उसके पास से चला गया।+
14 फिर यीशु पवित्र शक्ति से भरा हुआ गलील लौटा+ और आस-पास के सारे इलाकों में उसके बारे में अच्छी खबरें फैल गयीं। 15 वह उनके सभा-घरों में सिखाने लगा और सब लोग उसका आदर करने लगे।
16 फिर वह नासरत गया+ जहाँ उसकी परवरिश हुई थी। और अपने दस्तूर के मुताबिक वह सब्त के दिन वहाँ के सभा-घर में गया+ और पढ़ने के लिए खड़ा हुआ। 17 भविष्यवक्ता यशायाह का खर्रा उसके हाथ में दिया गया और उसने खर्रा खोला और वह जगह ढूँढ़कर निकाली जहाँ यह लिखा था, 18 “यहोवा* की पवित्र शक्ति मुझ पर है क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है कि मैं गरीबों को खुशखबरी सुनाऊँ। उसने मुझे भेजा है ताकि मैं बंदियों को रिहाई का, अंधों को आँखों की रौशनी पाने का और कुचले हुओं को आज़ादी का संदेश दूँ+ 19 और यहोवा* की मंज़ूरी पाने के साल का प्रचार करूँ।”+ 20 फिर उसने खर्रा लपेटकर सेवक को दे दिया और बैठ गया। सभा-घर में सब लोगों की नज़रें उस पर जमी हुई थीं। 21 तब उसने कहा, “यह वचन जो तुमने अभी-अभी सुना, आज पूरा हुआ है।”+
22 वे सभी उसकी तारीफ करने लगे और उसकी दिल जीतनेवाली बातों पर ताज्जुब करने+ और यह कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का बेटा नहीं है?”+ 23 तब यीशु ने उनसे कहा, “बेशक तुम यह कहावत कहोगे, ‘अरे वैद्य, पहले खुद का इलाज कर’ और मुझ पर यह कहते हुए लागू करोगे, ‘कफरनहूम+ में तूने जो काम किए थे उनके बारे में हमने सुना है, अब वही काम अपने शहर में भी कर।’” 24 यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि किसी भी भविष्यवक्ता को उसके अपने इलाके में स्वीकार नहीं किया जाता।+ 25 अब एलियाह के दिनों की ही बात ले लो, साढ़े तीन साल तक बारिश नहीं हुई और पूरे देश में भारी अकाल पड़ा।+ यकीन मानो उस वक्त इसराएल में बहुत-सी विधवाएँ थीं 26 मगर एलियाह को उनमें से किसी भी औरत के पास नहीं भेजा गया, बल्कि सिर्फ सीदोन देश के सारपत नगर की एक विधवा के पास भेजा गया।+ 27 यही नहीं, भविष्यवक्ता एलीशा के ज़माने में इसराएल में बहुत-से कोढ़ी थे, फिर भी उनमें से किसी को भी शुद्ध नहीं किया गया, बल्कि सीरिया के नामान को शुद्ध* किया गया।”+ 28 सभा-घर में मौजूद लोगों ने जब ये बातें सुनीं, तो वे सब आग-बबूला हो गए।+ 29 वे उठे और फौरन यीशु को शहर के बाहर ले गए ताकि जिस पहाड़ पर उनका शहर बसा था उसकी चोटी से उसे नीचे धकेल दें। 30 मगर वह उनके बीच में से निकलकर अपने रास्ते चला गया।+
31 यीशु वहाँ से कफरनहूम गया जो गलील का एक शहर था। वह सब्त के दिन लोगों को सिखा रहा था।+ 32 वे उसके सिखाने का तरीका देखकर दंग रह गए+ क्योंकि वह पूरे अधिकार के साथ बोलता था। 33 उस सभा-घर में एक आदमी था, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था और वह ज़ोर से चिल्लाने लगा,+ 34 “ओ यीशु नासरी,+ हमें तुझसे क्या लेना-देना? क्या तू हमें नाश करने आया है? मैं जानता हूँ तू असल में कौन है, तू परमेश्वर का पवित्र जन है।”+ 35 मगर यीशु ने उसे फटकारा, “चुप हो जा और उसमें से बाहर निकल जा।” तब उस दुष्ट स्वर्गदूत ने उस आदमी को लोगों के बीच पटक दिया और उसे बिना कोई नुकसान पहुँचाए उसमें से निकल गया। 36 यह देखकर सब हैरान रह गए और एक-दूसरे से कहने लगे, “देखो! यह कितने अधिकार के साथ बात करता है, इसके पास कितनी शक्ति है! इसके हुक्म पर तो दुष्ट स्वर्गदूत भी निकल जाते हैं।” 37 इसलिए आस-पास के इलाके में हर तरफ उसकी खबर फैल गयी।
38 सभा-घर से निकलने के बाद, यीशु शमौन के घर आया। शमौन की सास तेज़ बुखार से तप रही थी। उन्होंने यीशु से बिनती की कि वह उसके लिए कुछ करे।+ 39 इसलिए यीशु ने उसके पास खड़े होकर बुखार को डाँटा और उसका बुखार उतर गया। उसी पल वह उठ गयी और उनकी सेवा करने लगी।
40 लेकिन जब सूरज ढलने लगा, तब लोग अपने घर के उन सभी लोगों को उसके पास ले आए, जिन्हें तरह-तरह की बीमारियाँ थीं। उसने हरेक पर अपने हाथ रखकर उन्हें ठीक कर दिया।+ 41 यहाँ तक कि दुष्ट स्वर्गदूत भी यह चिल्लाते हुए बहुतों में से निकल जाते थे, “तू परमेश्वर का बेटा है।”+ मगर वह उन्हें डाँट देता और बोलने नहीं देता था,+ क्योंकि वे जानते थे कि वह मसीह है।+
42 लेकिन जब दिन हुआ, तो वह वहाँ से निकलकर किसी एकांत जगह की तरफ चला गया।+ मगर लोगों की भीड़ उसे तलाशने लगी और ढूँढ़ते-ढूँढ़ते उसके पास पहुँच गयी और उसे रोकने लगी ताकि वह उनके पास से न जाए। 43 मगर यीशु ने उनसे कहा, “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनानी है क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।”+ 44 फिर वह जाकर यहूदिया के सभा-घरों में प्रचार करने लगा।
5 एक बार यीशु गन्नेसरत झील*+ के किनारे खड़ा एक बड़ी भीड़ को परमेश्वर का वचन सिखा रहा था। लोग उस पर गिरे जा रहे थे। 2 तब उसने झील के किनारे लगी दो नाव देखीं, जिनमें से मछुवारे उतरकर अपने जाल धो रहे थे।+ 3 तब वह उनमें से एक नाव पर चढ़ गया जो शमौन की थी। उसने शमौन से कहा कि नाव को खेकर किनारे से थोड़ी दूर ले जाए। फिर यीशु नाव में बैठकर भीड़ को सिखाने लगा। 4 जब उसने बोलना खत्म किया, तो शमौन से कहा, “नाव को खेकर गहरे पानी में ले चल, वहाँ अपने जाल डालना।” 5 मगर शमौन ने कहा, “गुरु, हमने सारी रात मेहनत की, मगर हमारे हाथ कुछ नहीं लगा।+ फिर भी तेरे कहने पर मैं जाल डालूँगा।” 6 जब उन्होंने ऐसा किया, तो ढेर सारी मछलियाँ उनके जाल में आ फँसीं। यहाँ तक कि उनके जाल फटने लगे।+ 7 तब उन्होंने दूसरी नाव में सवार अपने साथियों को इशारा किया कि उनकी मदद के लिए आएँ। और वे आए और आकर दोनों नाव में मछलियाँ भरने लगे। दोनों नाव मछलियों से इतनी भर गयीं कि डूबने लगीं। 8 यह देखकर शमौन पतरस यीशु के पैरों पर गिर पड़ा और कहने लगा, “मेरे पास से चला जा प्रभु, क्योंकि मैं एक पापी इंसान हूँ।” 9 इतनी तादाद में मछलियाँ पकड़ने की वजह से वह और उसके सब साथी हक्के-बक्के रह गए थे। 10 याकूब और यूहन्ना का भी यही हाल था, जो जब्दी के बेटे थे+ और शमौन के साझेदार थे। मगर यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर। अब से तू जीते-जागते इंसानों को पकड़ा करेगा।”+ 11 तब वे अपनी-अपनी नाव किनारे पर ले आए और सबकुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।+
12 एक और मौके पर जब यीशु किसी शहर में था, तो देखो! वहाँ एक आदमी था जिसका पूरा शरीर कोढ़ से भरा था! जैसे ही उसकी नज़र यीशु पर पड़ी, वह उसके सामने मुँह के बल गिरा और गिड़गिड़ाकर कहने लगा, “प्रभु, बस अगर तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।”+ 13 तब यीशु ने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “हाँ, मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।” उसी पल उसका कोढ़ गायब हो गया।+ 14 यीशु ने उस आदमी को आदेश दिया कि किसी को कुछ न बताए और कहा, “जाकर खुद को याजक को दिखा और शुद्ध होने के लिए भेंट चढ़ा, ठीक जैसा मूसा ने कहा था+ ताकि उन्हें गवाही मिले।”+ 15 मगर यीशु की चर्चा दूर-दूर तक फैलती गयी और भीड़-की-भीड़ उसकी सुनने और अपनी बीमारियाँ दूर करवाने उसके पास आती रही।+ 16 लेकिन वह अकसर वीरान इलाकों में चला जाता था ताकि प्रार्थना कर सके।
17 एक दिन वह लोगों को सिखा रहा था। वहाँ गलील, यहूदिया के हर गाँव और यरूशलेम से आए फरीसी और कानून के शिक्षक भी बैठे हुए थे। और लोगों को चंगा करने के लिए यहोवा* की शक्ति उस पर थी।+ 18 तभी लोग लकवे के मारे हुए एक आदमी को खाट पर लेकर आए। वे उसे किसी तरह उस कमरे में ले जाना चाहते थे जहाँ यीशु था।+ 19 मगर जब भीड़ की वजह से उसे अंदर ले जाने का रास्ता नहीं मिला, तो वे ऊपर छत पर चढ़ गए। उन्होंने खपरैल हटाकर उसे खाट समेत उन लोगों के बीच उतार दिया जो यीशु के सामने थे। 20 जब यीशु ने उन आदमियों का विश्वास देखा तो लकवे के मारे से कहा, “तेरे पाप माफ किए गए।”+ 21 यह सुनकर शास्त्री और फरीसी सोचने लगे, “यह कौन है जो परमेश्वर के बारे में निंदा की बातें कर रहा है? परमेश्वर को छोड़ और कौन पापों को माफ कर सकता है?”+ 22 मगर यीशु जान गया कि वे क्या सोच रहे हैं और उसने कहा, “तुम अपने मन में क्या सोच रहे हो? 23 क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए’ या यह कहना, ‘उठ और चल-फिर’? 24 मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे को धरती पर पाप माफ करने का अधिकार दिया गया है . . .।” यीशु ने लकवे के मारे हुए आदमी से कहा, “मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो! अपनी खाट उठा और घर जा।”+ 25 तब वह आदमी उनके सामने खड़ा हो गया। उसने वह खाट उठायी जिस पर वह लेटा था और परमेश्वर की महिमा करता हुआ अपने घर चला गया। 26 यह देखकर सब-के-सब हैरान रह गए और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे और उन पर डर छा गया। वे कहने लगे, “आज हमने अजब घटनाएँ देखी हैं!”
27 इसके बाद यीशु बाहर गया और उसने कर-वसूली के दफ्तर में लेवी नाम के एक आदमी को बैठे देखा जो कर वसूला करता था। यीशु ने उससे कहा, “आ, मेरा चेला बन जा।”+ 28 तब लेवी उठा और सबकुछ छोड़-छाड़कर उसके पीछे हो लिया। 29 फिर लेवी ने यीशु के लिए अपने घर पर एक बड़ी दावत रखी। वहाँ भारी तादाद में कर-वसूलनेवाले और दूसरे लोग आए थे जो उनके साथ खाना खा रहे थे।*+ 30 यह देखकर फरीसी और उनके शास्त्री कुड़कुड़ाने लगे और यीशु के चेलों से कहने लगे, “तुम कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते हो?”+ 31 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है।+ 32 मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ कि वे पश्चाताप करें।”+
33 उन्होंने कहा, “यूहन्ना के चेले अकसर उपवास रखते और मिन्नतें करते हैं और फरीसियों के चेले भी ऐसा ही करते हैं, मगर तेरे चेले खाते-पीते हैं।”+ 34 यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दूल्हा अपने दोस्तों के साथ है, तब तक तुम उसके दोस्तों से उपवास नहीं करवा सकते, क्या करवा सकते हो? 35 लेकिन वे दिन आएँगे जब दूल्हे+ को उनसे जुदा कर दिया जाएगा, तब वे उपवास करेंगे।”+
36 इसके बाद यीशु ने उन्हें एक मिसाल भी दी, “कोई भी नए कपड़े का टुकड़ा काटकर पुराने कपड़े के छेद पर नहीं लगाता। अगर वह लगाए तो नए कपड़े का टुकड़ा फट जाएगा और पुराने कपड़े से मेल नहीं खाएगा।+ 37 न ही कोई नयी दाख-मदिरा पुरानी मशकों में भरता है। अगर वह भरे, तो नयी मदिरा मशकों को फाड़ देगी और बह जाएगी और मशकें भी नष्ट हो जाएँगी। 38 नयी दाख-मदिरा नयी मशकों में भरी जानी चाहिए। 39 जिसने पुरानी दाख-मदिरा पी है वह नयी मदिरा नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, ‘पुरानी ही बढ़िया है।’”
6 एक बार सब्त के दिन वह खेतों से होकर जा रहा था और उसके चेले अनाज की बालें तोड़कर+ और हाथों से मसलकर खाने लगे।+ 2 तब कुछ फरीसियों ने कहा, “तुम सब्त के दिन ऐसा काम क्यों कर रहे हो जो कानून के खिलाफ है?”+ 3 मगर यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे, तब उसने क्या किया?+ 4 किस तरह वह परमेश्वर के भवन में गया और उसे चढ़ावे की रोटियाँ* दी गयीं और उसने वे खायीं और अपने साथियों को भी दीं, जबकि उन्हें याजकों के सिवा किसी और का खाना कानून के खिलाफ था?”+ 5 फिर यीशु ने उनसे कहा, “इंसान का बेटा सब्त के दिन का प्रभु है।”+
6 एक और सब्त के दिन+ यीशु सभा-घर में गया और सिखाने लगा। वहाँ एक आदमी था जिसका दायाँ हाथ सूखा हुआ था।*+ 7 शास्त्री और फरीसी यीशु पर नज़र जमाए हुए थे कि देखें, वह सब्त के दिन बीमारों को ठीक करता है या नहीं ताकि किसी तरह उस पर इलज़ाम लगा सकें। 8 पर यीशु जानता था कि वे अपने मन में क्या सोच रहे हैं,+ इसलिए उसने सूखे हाथवाले आदमी* से कहा, “उठकर यहाँ आ और बीच में खड़ा हो जा।” तब वह आदमी उठा और जाकर बीच में खड़ा हो गया। 9 फिर यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम लोगों से पूछता हूँ, परमेश्वर के कानून के हिसाब से सब्त के दिन क्या करना सही है, किसी का भला करना या बुरा करना? किसी की जान बचाना या किसी की जान लेना?”+ 10 फिर यीशु ने चारों तरफ सब पर नज़र डाली और उस आदमी से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” उसने ऐसा ही किया और उसका हाथ ठीक हो गया। 11 मगर शास्त्री और फरीसी गुस्से से पागल हो गए और एक-दूसरे से सलाह करने लगे कि उन्हें यीशु के साथ क्या करना चाहिए।
12 एक दिन यीशु प्रार्थना करने के लिए पहाड़ पर गया+ और सारी रात परमेश्वर से प्रार्थना करता रहा।+ 13 फिर जब दिन निकला तो उसने अपने चेलों को बुलाया और उनमें से 12 को चुना, जिन्हें उसने प्रेषित नाम दिया।+ 14 ये थे: शमौन, जिसे उसने पतरस नाम भी दिया और उसका भाई अन्द्रियास और याकूब, यूहन्ना, फिलिप्पुस,+ बरतुलमै, 15 मत्ती, थोमा,+ हलफई का बेटा याकूब, शमौन जो “जोशीला” कहलाता है, 16 यहूदा जो याकूब का बेटा था और यहूदा इस्करियोती जो बाद में गद्दार बन गया।
17 यीशु उनके साथ नीचे आया और एक समतल जगह में आकर रुक गया। वहाँ उसके चेलों की एक बड़ी भीड़ थी और पूरे यहूदिया और यरूशलेम से, साथ ही समुद्र-तट के इलाके यानी सोर और सीदोन से भारी तादाद में लोग वहाँ जमा थे। वे उसकी बातें सुनने और अपनी बीमारियों से ठीक होने आए थे। 18 यहाँ तक कि जिन्हें दुष्ट स्वर्गदूत सताते थे, वे भी चंगे हो गए। 19 भीड़ में सभी उसे छूने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि उसके अंदर से शक्ति निकलती थी+ और सबको चंगा करती थी।
20 यीशु ने अपने चेलों की तरफ देखा और वह कहने लगा:
“सुखी हो तुम जो गरीब हो क्योंकि परमेश्वर का राज तुम्हारा है।+
21 सुखी हो तुम जो अभी भूखे हो क्योंकि तुम्हें तृप्त किया जाएगा।+
सुखी हो तुम जो अभी रोते हो क्योंकि तुम हँसोगे।+
22 सुखी हो तुम जब भी लोग इंसान के बेटे की वजह से तुमसे नफरत करें+ और तुम्हें अपने बीच से निकाल दें,+ तुम्हें बदनाम करें और दुष्ट कहकर तुम्हारा नाम खराब करें।* 23 उस दिन मगन होना और खुशियाँ मनाना इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है। उनके पुरखों ने भी भविष्यवक्ताओं के साथ यही सब किया था।+
24 मगर हाय तुम पर जो अमीर हो+ क्योंकि तुम अपने हिस्से का सुख पा चुके।+
25 हाय तुम पर जो अभी तृप्त हो क्योंकि तुम्हें भूख सताएगी।
हाय तुम पर जो अभी हँस रहे हो क्योंकि तुम मातम मनाओगे और रोओगे।+
26 हाय तुम पर जब सब लोग तुम्हारी तारीफ करें,+ क्योंकि उनके बाप-दादे झूठे भविष्यवक्ताओं के साथ ऐसा ही करते थे।
27 मगर मैं तुम लोगों से जो मेरी बातें सुन रहे हो कहता हूँ: अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो। जो तुमसे नफरत करते हैं उनके साथ भलाई करते रहो।+ 28 जो तुम्हें कोसते हैं उन्हें आशीष देते रहो और जो तुम्हारी बेइज़्ज़ती करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।+ 29 जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी तरफ दूसरा गाल भी कर दे। जो तेरा ओढ़ना तुझसे छीन ले, उसे कुरता लेने से भी मत रोक।+ 30 जो कोई तुझसे माँगता है उसे दे+ और जो तेरी चीज़ें उठाकर ले जाता है, उससे वापस मत माँग।
31 ठीक जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।+
32 अगर तुम उन्हीं से प्यार करो जो तुमसे प्यार करते हैं, तो इसमें तारीफ की क्या बात है? इसलिए कि पापी भी उन्हीं से प्यार करते हैं जो उनसे प्यार करते हैं।+ 33 अगर तुम उन्हीं का भला करो जो तुम्हारा भला करते हैं, तो इसमें तारीफ की क्या बात है? पापी भी तो ऐसा ही करते हैं। 34 और अगर तुम उन लोगों को उधार* दो जिनसे तुम्हें वापस पाने की उम्मीद है, तो इसमें तारीफ की क्या बात है?+ पापी भी तो दूसरे पापियों को उधार देते हैं ताकि उन्होंने जितना दिया है उतना वापस पा सकें। 35 इसके बजाय अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो और भलाई करते रहो और उधार देते रहो और बदले में कुछ भी पाने की उम्मीद मत करो।+ इसका तुम्हें बड़ा इनाम मिलेगा और तुम परम-प्रधान के बेटे ठहरोगे, क्योंकि वह एहसान न माननेवालों और दुष्टों पर भी कृपा करता है।+ 36 जैसे तुम्हारा पिता दयालु है, वैसे ही तुम भी दया करते रहो।+
37 दोष लगाना बंद करो और तुम पर भी हरगिज़ दोष नहीं लगाया जाएगा।+ दूसरों को मुजरिम ठहराना बंद करो और तुम्हें हरगिज़ मुजरिम नहीं ठहराया जाएगा। माफ करते रहो* और तुम्हें भी माफ किया जाएगा।*+ 38 दिया करो और लोग तुम्हें भी देंगे।+ वे तुम्हारी झोली में नाप भर-भरकर, दबा-दबाकर, अच्छी तरह हिला-हिलाकर और ऊपर तक भरकर डालेंगे। इसलिए कि जिस नाप से तुम नापते हो, बदले में वे भी उसी नाप से तुम्हारे लिए नापेंगे।”
39 फिर उसने उन्हें एक मिसाल भी दी: “एक अंधा दूसरे अंधे को राह नहीं दिखा सकता, क्या दिखा सकता है? अगर वह दिखाए, तो क्या दोनों गड्ढे में नहीं गिर पड़ेंगे?+ 40 चेला* अपने गुरु से बड़ा नहीं होता, मगर हर कोई जिसे पूरी तरह सिखाया जाता है, वह अपने गुरु जैसा होगा। 41 तो फिर तू क्यों अपने भाई की आँख में पड़ा तिनका देखता है, मगर अपनी आँख के लट्ठे पर ध्यान नहीं देता?+ 42 तू अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘भाई, आ मैं तेरी आँख का तिनका निकाल दूँ,’ जबकि तू उस लट्ठे को नहीं देख रहा जो तेरी अपनी ही आँख में पड़ा है? अरे कपटी! पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब तू साफ-साफ देख सकेगा कि अपने भाई की आँख से तिनका कैसे निकालना है।
43 कोई भी अच्छा पेड़ सड़ा हुआ फल पैदा नहीं करता और न ही कोई सड़ा हुआ पेड़ बढ़िया फल पैदा करता है।+ 44 इसलिए कि हर पेड़ अपने फल से जाना जाता है।+ मिसाल के लिए, लोग कभी कँटीले पेड़ों से अंजीर नहीं बटोरते, न ही कँटीली झाड़ियों से अंगूर काटते हैं। 45 अच्छा इंसान अपने दिल की अच्छाई के खज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है, जबकि बुरा इंसान अपनी बुराई के खज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है, इसलिए कि जो दिल में भरा है, वही उसके मुँह पर आता है।+
46 तो फिर तुम क्यों मुझे ‘प्रभु! प्रभु!’ पुकारते हो, मगर मैं जो कहता हूँ वह नहीं करते?+ 47 मैं तुम्हें बताता हूँ कि हर वह इंसान जो मेरे पास आता है, मेरी बातें सुनता है और उन पर चलता है वह किसके जैसा है।+ 48 वह उस आदमी के जैसा है, जिसने एक घर बनाने के लिए गहराई तक खुदाई की और चट्टान पर नींव डाली। इसलिए जब बाढ़ आयी और नदी की तेज़ धाराएँ उस घर से टकरायीं, तो वे उसे हिला न सकीं क्योंकि उसकी नींव मज़बूत थी।+ 49 दूसरी तरफ, जो मेरी बातें सुनता तो है मगर उन पर चलता नहीं,+ वह उस आदमी के जैसा है जिसने बिना कोई नींव डाले अपना घर ज़मीन पर बनाया। जब नदी की तेज़ धाराएँ उसके घर से टकरायीं, तो वह उसी वक्त ढह गया और तहस-नहस हो गया।”
7 जब वह लोगों को वे सारी बातें बता चुका जो वह बताना चाहता था, तो वह कफरनहूम आया। 2 वहाँ एक सेना-अफसर था जिसे अपने एक दास से बहुत प्यार था। वह दास इतना बीमार पड़ गया कि अब मरने पर था।+ 3 जब सेना-अफसर ने यीशु के बारे में सुना, तो उसने यहूदियों के मुखियाओं को उससे यह बिनती करने भेजा कि आकर मेरे दास को ठीक कर दे। 4 जब वे यीशु के पास पहुँचे, तो उसके आगे गिड़गिड़ाने लगे, “वह सेना-अफसर एक भला आदमी है, मेहरबानी करके उसकी मदद कर। 5 वह हम यहूदियों से प्यार करता है, उसी ने हमारा सभा-घर बनवाया है।” 6 तब यीशु उनके साथ चल दिया। मगर जब वह उसके घर से थोड़ी ही दूर था, तो सेना-अफसर के कुछ दोस्त उसके पास आए, जिनके हाथ उसने यह संदेश भेजा था: “मालिक, और तकलीफ मत उठा क्योंकि मैं इस लायक नहीं कि तू मेरी छत तले आए।+ 7 इसी वजह से मैंने अपने आपको इस काबिल नहीं समझा कि तेरे पास आऊँ। बस तू अपने मुँह से कह दे और मेरा सेवक ठीक हो जाएगा। 8 क्योंकि मैं भी किसी अधिकारी के नीचे काम करता हूँ और मेरे नीचे भी सिपाही हैं। जब मैं एक से कहता हूँ, ‘जा!’ तो वह जाता है और दूसरे से कहता हूँ, ‘आ!’ तो वह आता है और अपने दास से कहता हूँ, ‘यह कर!’ तो वह करता है।” 9 जब यीशु ने यह सुना तो उसे अफसर पर बहुत ताज्जुब हुआ। उसने मुड़कर अपने पीछे आनेवाली भीड़ से कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ, मैंने इसराएल में भी ऐसा ज़बरदस्त विश्वास नहीं पाया।”+ 10 जो भेजे गए थे उन्होंने घर लौटने पर पाया कि वह दास बिलकुल ठीक हो चुका है।+
11 कुछ ही समय बाद वह नाईन नाम के एक शहर गया। उसके चेले और एक बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी। 12 जब वह शहर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो! लोग एक मुरदे को ले जा रहे थे जो अपनी माँ का अकेला* बेटा था।+ और-तो-और, वह विधवा थी। उस शहर से बड़ी तादाद में लोग उस औरत के साथ जा रहे थे। 13 जब प्रभु की नज़र उस औरत पर पड़ी, तो वह तड़प उठा+ और उसने कहा, “मत रो।”+ 14 तब उसने पास आकर अर्थी को छुआ और अर्थी उठानेवाले रुक गए। फिर उसने कहा, “हे जवान, मैं तुझसे कहता हूँ उठ!”+ 15 तब वह जवान जो मर गया था, उठ बैठा और बात करने लगा और यीशु ने उसे उसकी माँ को सौंप दिया।+ 16 यह देखकर सब लोगों पर डर छा गया और वे यह कहते हुए परमेश्वर की महिमा करने लगे, “हमारे बीच एक महान भविष्यवक्ता आया है”+ और “परमेश्वर ने अपने लोगों की तरफ ध्यान दिया है।”+ 17 उसके बारे में यह खबर पूरे यहूदिया और आस-पास के सब इलाकों में फैल गयी।
18 यूहन्ना के चेलों ने उसे इन सारी बातों की खबर दी।+ 19 तब यूहन्ना ने अपने दो चेलों को बुलाया और उन्हें प्रभु से यह पूछने के लिए भेजा, “वह जो आनेवाला था, क्या तू ही है+ या हम किसी और की आस लगाएँ?” 20 जब वे यीशु के पास आए, तो उन्होंने कहा, “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास यह पूछने के लिए भेजा है, ‘वह जो आनेवाला था, क्या तू ही है या हम किसी और की आस लगाएँ?’” 21 उसी वक्त यीशु ने बहुत-से लोगों की बीमारियाँ और दर्दनाक रोग दूर किए+ और लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला और बहुत-से अंधों को आँखों की रौशनी दी। 22 यीशु ने उनसे कहा, “जो कुछ तुमने देखा और सुना है, जाकर वह सब यूहन्ना को बताओ: अंधे अब देख रहे हैं,+ लँगड़े चल-फिर रहे हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जा रहे हैं, बहरे सुन रहे हैं,+ मरे हुओं को ज़िंदा किया जा रहा है और गरीबों को खुशखबरी सुनायी जा रही है।+ 23 सुखी है वह जो मेरे बारे में शक नहीं करता।”*+
24 जब यूहन्ना का संदेश लानेवाले चले गए, तो यीशु भीड़ से यूहन्ना के बारे में यह कहने लगा, “तुम वीराने में क्या देखने गए थे? हवा से इधर-उधर हिलते किसी नरकट को?+ 25 फिर तुम क्या देखने गए थे? क्या रेशमी मुलायम* कपड़े पहने किसी आदमी को?+ शानदार कपड़े पहननेवाले और ऐशो-आराम से जीनेवाले तो महलों में रहते हैं। 26 तो आखिर तुम क्या देखने गए थे? एक भविष्यवक्ता को? हाँ। बल्कि मैं तुमसे कहता हूँ, भविष्यवक्ता से भी बढ़कर किसी को देखने गए थे।+ 27 यह वही है जिसके बारे में लिखा है, ‘देख! मैं अपना दूत तेरे आगे-आगे भेज रहा हूँ, जो तेरे लिए रास्ता तैयार करेगा।’+ 28 मैं तुमसे कहता हूँ, अब तक जितने भी इंसान पैदा हुए हैं, उनमें यूहन्ना से बड़ा कोई भी नहीं। मगर परमेश्वर के राज में जो सबसे छोटा है, वह यूहन्ना से भी बड़ा है।”+ 29 (जब सब लोगों ने और कर-वसूलनेवालों ने यह सुना, तो उन्होंने कहा कि परमेश्वर सच्चा है। इन लोगों ने वह बपतिस्मा लिया था जिसका प्रचार यूहन्ना करता था।+ 30 मगर फरीसी और जो कानून के जानकार थे, उन्होंने वह बपतिस्मा नहीं लिया था। और परमेश्वर ने उनके लिए जो मकसद ठहराया था, उसे ठुकरा दिया।)+
31 “इसलिए मैं इस पीढ़ी के लोगों की तुलना किससे करूँ, ये किसके जैसे हैं?+ 32 ये ऐसे हैं मानो बाज़ारों में बैठे बच्चे एक-दूसरे को पुकारकर कह रहे हों, ‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी मगर तुम नहीं नाचे। हमने विलाप किया मगर तुम नहीं रोए।’ 33 वैसे ही यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला औरों की तरह न रोटी खाता, न दाख-मदिरा पीता आया,+ फिर भी तुम कहते हो, ‘उसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया है।’ 34 जबकि इंसान का बेटा औरों की तरह खाता-पीता आया, फिर भी तुम कहते हो, ‘देखो! यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है और कर-वसूलनेवालों और पापियों का दोस्त है!’+ 35 लेकिन बुद्धि अपने सारे नतीजों* से सही साबित होती है।”*+
36 शमौन नाम का एक फरीसी था जिसने यीशु से बार-बार गुज़ारिश की कि वह उसके यहाँ खाने पर आए। इसलिए यीशु उसके घर गया और खाने बैठा। 37 उसी शहर में एक बदनाम औरत थी, जिसके बारे में सब जानते थे कि वह एक पापिन है। जब उसे मालूम पड़ा कि यीशु उस फरीसी के घर खाने पर आया है,* तो वह खुशबूदार तेल की बोतल लेकर आयी।+ 38 वह यीशु के पैरों के पास पीछे आयी और रो-रोकर अपने आँसुओं से उसके पैर भिगोने लगी और अपने बालों से उन्हें पोंछने लगी। वह बार-बार उसके पैरों को चूम रही थी और उन पर खुशबूदार तेल डाल रही थी। 39 यह देखकर वह फरीसी जिसने यीशु को न्यौता दिया था, मन-ही-मन कहने लगा, “अगर यह आदमी सचमुच एक भविष्यवक्ता होता, तो जान लेता कि यह औरत जो उसे छू रही है, कौन है और कैसी है, यह एक पापिन है।”+ 40 मगर यीशु ने उससे कहा, “शमौन, मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।” उसने कहा, “गुरु, बोल!”
41 “दो आदमी किसी साहूकार के कर्ज़दार थे। एक पर 500 दीनार* का कर्ज़ था और दूसरे पर 50 का। 42 लेकिन जब अपना कर्ज़ चुकाने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था, तब साहूकार ने बड़ी उदारता से उन दोनों का कर्ज़ माफ कर दिया। इसलिए बता, उन दोनों में से कौन साहूकार से ज़्यादा प्यार करेगा?” 43 शमौन ने जवाब दिया, “मेरे खयाल से वही आदमी जिसका उसने ज़्यादा कर्ज़ माफ किया।” यीशु ने कहा, “तूने बिलकुल सही कहा।” 44 तब यीशु ने उस औरत की तरफ मुड़कर देखा और शमौन से कहा, “क्या तू इस औरत को देख रहा है? मैं तेरे घर आया और तूने मुझे पैर धोने के लिए पानी नहीं दिया। मगर इस औरत ने अपने आँसुओं से मेरे पैर धोए और अपने बालों से उन्हें पोंछा। 45 तूने मुझे नहीं चूमा। मगर जब से मैं आया हूँ तब से यह औरत मेरे पैरों को चूम रही है। 46 तूने मेरे सिर पर तेल नहीं उँडेला। मगर इस औरत ने मेरे पैरों पर खुशबूदार तेल डाला है। 47 इस वजह से, मैं तुझसे कहता हूँ कि भले ही इसके पाप बहुत हैं मगर वे माफ किए गए,+ इसलिए यह ज़्यादा प्यार कर रही है। मगर जिसके कम पाप माफ किए गए, वह कम प्यार करता है।” 48 तब यीशु ने औरत से कहा, “तेरे पाप माफ किए गए।”+ 49 यह सुनकर जो लोग उसके साथ मेज़ पर थे, मन-ही-मन कहने लगे, “यह आदमी कौन है जो पापों को भी माफ करता है?”+ 50 मगर यीशु ने औरत से कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है।+ जा, अब और चिंता मत करना।”
8 इसके कुछ समय बाद यीशु शहर-शहर और गाँव-गाँव गया और लोगों को प्रचार करता और परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाता गया।+ वे 12 चेले उसके साथ थे 2 और कुछ औरतें भी थीं, जिनमें से दुष्ट स्वर्गदूत निकाले गए थे और उनकी बीमारियाँ दूर की गयी थीं। जैसे, मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी और जिसमें से सात दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, 3 योअन्ना+ जो हेरोदेस के घर के प्रबंधक खुज़ा की पत्नी थी, सुसन्ना और दूसरी कई औरतें। ये सभी अपनी धन-संपत्ति से यीशु और उसके चेलों की सेवा करती थीं।+
4 अलग-अलग शहरों से आए लोगों के अलावा, जब एक बड़ी भीड़ उसके पास जमा हुई तो उसने उन्हें यह मिसाल दी:+ 5 “एक बीज बोनेवाला बीज बोने निकला। जब वह बो रहा था, तो कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और वे पैरों तले रौंदे गए और आकाश के पंछी आकर उन्हें खा गए।+ 6 कुछ चट्टानी ज़मीन पर गिरे और अंकुर फूटने के बाद सूख गए क्योंकि उन्हें नमी न मिली।+ 7 कुछ और बीज काँटों में गिरे और उनके साथ-साथ बढ़नेवाले कँटीले पौधों ने उन्हें दबा दिया।+ 8 मगर कुछ और बीज अच्छी मिट्टी पर गिरे और अंकुर फूटने के बाद उनसे 100 गुना फल पैदा हुआ।”+ ये बातें बताने के बाद उसने ऊँची आवाज़ में कहा, “कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।”+
9 मगर उसके चेले उससे पूछने लगे कि इस मिसाल का क्या मतलब है।+ 10 उसने कहा, “परमेश्वर के राज के पवित्र रहस्यों की समझ तुम्हें दी गयी है, मगर बाकियों के लिए ये सिर्फ मिसालें ही हैं+ ताकि वे देखते हुए भी न देख सकें और सुनकर भी इसके मायने न समझ सकें।+ 11 इस मिसाल का मतलब यह है: बीज परमेश्वर का वचन है।+ 12 जो बीज रास्ते के किनारे गिरे वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनते हैं, मगर फिर शैतान आता है और उनके दिलों से वचन उठा ले जाता है ताकि वे न तो यकीन करें और न ही उद्धार पाएँ।+ 13 जो बीज चट्टानी ज़मीन पर गिरे, वे ऐसे लोग हैं जो वचन को सुनकर इसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, मगर उनमें जड़ नहीं होती। वे थोड़े वक्त के लिए यकीन करते हैं, मगर परीक्षा के वक्त गिर जाते हैं।+ 14 और जो बीज काँटों में गिरे, वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनते तो हैं, मगर इस ज़िंदगी की चिंताएँ, धन-दौलत+ और ऐशो-आराम उन्हें भटका देता है+ और वे इनसे पूरी तरह दब जाते हैं और अच्छे फल नहीं पैदा करते।+ 15 जो बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरे, वे ऐसे लोग हैं जिनका दिल बहुत अच्छा है।+ वे वचन सुनकर इसे संजोए रखते हैं और धीरज धरते हुए फल पैदा करते हैं।+
16 कोई भी दीपक जलाकर उसे बरतन से नहीं ढकता या पलंग के नीचे नहीं रखता, मगर दीवट पर रखता है ताकि अंदर आनेवालों को रौशनी मिले।+ 17 ऐसा कुछ नहीं जो छिपा है और सामने न लाया जाए, न ही ऐसी कोई चीज़ है जिसे बड़ी सावधानी से छिपाया गया हो और जो कभी जानी न जाए और खुले में न आए।+ 18 इसलिए ध्यान दो कि तुम कैसे सुनते हो। क्योंकि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा।+ लेकिन जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसे लगता है कि उसका अपना है।”+
19 फिर यीशु की माँ और उसके भाई+ उससे मिलने आए, मगर भीड़ की वजह से वे उस तक पहुँच नहीं पा रहे थे।+ 20 इसलिए उसे यह खबर दी गयी, “तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं और तुझसे मिलना चाहते हैं।” 21 तब उसने उनसे कहा, “मेरी माँ और मेरे भाई ये हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और उस पर चलते हैं।”+
22 एक दिन यीशु और उसके चेले एक नाव पर चढ़े और उसने उनसे कहा, “आओ हम झील के उस पार चलें।” तब वे नाव में रवाना हो गए।+ 23 मगर सफर के दौरान वह सो गया। तब झील में भयंकर तूफान उठा और उनकी नाव में पानी भरने लगा, उनकी जान खतरे में थी।+ 24 चेले उसके पास आकर उसे जगाने लगे, “गुरु, गुरु, हम नाश होनेवाले हैं!” यीशु ने उठकर आँधी और उफनती लहरों को डाँटा और वे शांत हो गए और सन्नाटा छा गया।+ 25 फिर उसने चेलों से कहा, “कहाँ गया तुम्हारा विश्वास?” मगर उन पर डर छा गया और वे ताज्जुब करने लगे और एक-दूसरे से कहने लगे, “आखिर यह कौन है जो आँधी और पानी तक को हुक्म देता है और वे उसकी मानते हैं?”+
26 फिर वे किनारे पर गिरासेनियों के इलाके में पहुँचे,+ जो उस पार गलील के सामने है। 27 मगर जब वह उतरकर किनारे पर आया, तो पास के शहर का एक आदमी उससे मिला जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। वह बहुत समय से बिना कपड़ों के घूमता था और घर में नहीं बल्कि कब्रों* के बीच रहता था।+ 28 जब उसने यीशु को देखा तो वह ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगा और उसके आगे गिरकर चिल्लाने लगा, “हे यीशु, परम-प्रधान परमेश्वर के बेटे, मेरा तुझसे क्या लेना-देना? मैं तुझसे बिनती करता हूँ, मुझे मत तड़पा।”+ 29 (क्योंकि यीशु उस दुष्ट स्वर्गदूत को हुक्म दे रहा था कि वह उस आदमी में से निकल जाए। दुष्ट स्वर्गदूत ने कई बार उस आदमी को अपने कब्ज़े में किया था।*+ उस आदमी को बार-बार ज़ंजीरों और बेड़ियों से बाँधा जाता था और उसकी पहरेदारी की जाती थी, मगर वह उन बंधनों को तोड़ देता। दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी को भगाए फिरता था और सुनसान जगहों में ले जाता था।) 30 यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा, “पलटन,” क्योंकि उसमें बहुत सारे दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। 31 वे उससे बिनती करते रहे कि वह उन्हें अथाह-कुंड में जाने का हुक्म न दे।+ 32 वहीं पहाड़ पर बहुत सारे सूअर+ चर रहे थे। इसलिए दुष्ट स्वर्गदूतों ने यीशु से बिनती की कि वह उन्हें सूअरों में समा जाने दे। और उसने उन्हें जाने दिया।+ 33 तब सारे दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी में से बाहर निकल गए और उन सूअरों में समा गए। तब सूअरों का पूरा झुंड बड़ी तेज़ी से दौड़ा और पहाड़ की कगार से नीचे झील में जा गिरा और सारे सूअर डूबकर मर गए। 34 जब सूअर चरानेवालों ने देखा कि क्या हुआ है, तो वे भाग गए और उन्होंने जाकर शहर और देहात में इसकी खबर दी।
35 जो हुआ था, उसे देखने के लिए लोग आए। जब वे यीशु के पास आए तो उन्होंने देखा कि वह आदमी जिससे दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, कपड़े पहने और बिलकुल ठीक दिमागी हालत में यीशु के पैरों के पास बैठा है। यह देखकर लोग बहुत डर गए। 36 जिन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा था, वे लोगों को बताने लगे कि जो आदमी दुष्ट स्वर्गदूतों के कब्ज़े में था, वह किस तरह ठीक हुआ। 37 तब गिरासेनियों के आस-पास के इलाकों से आयी भीड़ ने यीशु से कहा कि वह उनके यहाँ से चला जाए, क्योंकि उनमें डर बैठ गया था। इसलिए यीशु वहाँ से जाने के लिए नाव पर चढ़ गया। 38 तब जिस आदमी से दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, वह यीशु से बार-बार बिनती करने लगा कि वह उसे अपने साथ आने दे। मगर यीशु ने उस आदमी को यह कहकर भेज दिया,+ 39 “अपने घर लौट जा और परमेश्वर ने जो कुछ तेरे लिए किया है, वह सबको बताता रह।” वह आदमी चला गया और पूरे शहर में बताने लगा कि यीशु ने उसके लिए क्या किया है।
40 जब यीशु इस पार आया, तो भीड़ ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया क्योंकि सब उसका इंतज़ार कर रहे थे।+ 41 लेकिन तभी वहाँ याइर नाम का एक आदमी आया, जो सभा-घर में अगुवाई करनेवाला एक अधिकारी था। वह यीशु के पैरों पर गिरकर उससे बिनती करने लगा कि वह उसके घर चले।+ 42 क्योंकि उसकी इकलौती बेटी जो करीब 12 साल की थी मरने पर थी।
जब यीशु जा रहा था, तो लोगों की भीड़ उसे घेरे हुए साथ-साथ चलने लगी। 43 वहाँ एक औरत थी जिसे 12 साल से खून बहने की बीमारी थी+ और वह किसी के भी इलाज से ठीक नहीं हो पायी थी।+ 44 उसने पीछे से आकर यीशु के कपड़े की झालर+ को छुआ और उसी घड़ी उसका खून बहना बंद हो गया। 45 तब यीशु ने कहा, “किसने मुझे छुआ?” जब सब इनकार करने लगे, तो पतरस ने कहा, “गुरु, भीड़ तुझे दबाए जा रही है और तुझ पर गिरे जा रही है।”+ 46 फिर भी यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे अंदर से शक्ति+ निकली है।” 47 जब उस औरत ने देखा कि यीशु को पता चल गया है, तो वह काँपती हुई आयी और उसके आगे गिर पड़ी और उसने सब लोगों के सामने बता दिया कि उसने क्यों उसे छुआ और वह कैसे फौरन ठीक हो गयी। 48 तब यीशु ने उससे कहा, “बेटी, तेरे विश्वास ने तुझे ठीक किया है। जा, अब और चिंता मत करना।”+
49 जब वह बोल ही रहा था, तो सभा-घर के अधिकारी के घर से एक आदमी आया और कहने लगा, “तेरी बेटी मर चुकी है। अब गुरु को और परेशान मत कर।”+ 50 यह सुनकर यीशु ने उस अधिकारी से कहा, “डर मत, बस विश्वास रख और वह बच जाएगी।”+ 51 जब यीशु उस घर में पहुँचा तो उसने पतरस, यूहन्ना, याकूब और लड़की के माता-पिता के सिवा किसी और को अपने साथ अंदर नहीं आने दिया। 52 लेकिन सब लोग रो रहे थे और छाती पीटते हुए उस लड़की के लिए मातम मना रहे थे। यीशु ने कहा, “मत रोओ!+ लड़की मरी नहीं बल्कि सो रही है।”+ 53 यह सुनकर वे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे क्योंकि वे जानते थे कि वह मर चुकी है। 54 फिर यीशु ने बच्ची का हाथ पकड़कर कहा, “बच्ची, उठ!”+ 55 तब उस लड़की में जान*+ आ गयी और वह फौरन उठ बैठी।+ यीशु ने कहा कि लड़की को खाने के लिए कुछ दिया जाए। 56 लड़की को ज़िंदा देखकर उसके माता-पिता खुशी के मारे अपने आपे में न रहे। मगर यीशु ने उनसे कहा कि जो हुआ है, वह किसी को न बताएँ।+
9 फिर यीशु ने अपने 12 चेलों को बुलाया और उन्हें सब दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार दिया और शक्ति दी कि वे लोगों में से उन्हें निकालें+ और बीमारियाँ ठीक करें।+ 2 और उन्हें परमेश्वर के राज का प्रचार करने और चंगा करने भेजा। 3 उसने उनसे कहा, “सफर के लिए कुछ मत लेना, न लाठी, न खाने की पोटली, न रोटी, न पैसे,* न ही दो जोड़ी कपड़े लेना।+ 4 मगर जब भी तुम किसी घर में जाओ, तो वहीं ठहरो और वहीं से विदा लो।+ 5 अगर किसी शहर में लोग तुम्हें स्वीकार न करें, तो वहाँ से बाहर निकलते वक्त अपने पैरों की धूल झाड़ देना ताकि उनके खिलाफ गवाही हो।”+ 6 तब वे पूरे इलाके में गाँव-गाँव जाकर खुशखबरी सुनाते रहे और हर कहीं लोगों को चंगा करते गए।+
7 जब ज़िला-शासक हेरोदेस* ने सुना कि क्या-क्या हो रहा है, तो वह बड़ी उलझन में पड़ गया। इसलिए कि यीशु के बारे में कुछ लोग कहते थे कि वह यूहन्ना है जो मर गया था और जिसे अब ज़िंदा कर दिया गया है।+ 8 जबकि दूसरे उसके बारे में कहते थे कि एलियाह प्रकट हुआ है, मगर कुछ और कहते थे कि पुराने भविष्यवक्ताओं में से कोई ज़िंदा हो गया है।+ 9 हेरोदेस ने कहा, “यूहन्ना का तो मैंने सिर कटवा दिया था।+ तो फिर, यह कौन है जिसके बारे में मैं ऐसी बातें सुन रहा हूँ?” इसलिए वह यीशु को देखना चाहता था।+
10 जब प्रेषित लौटे तो आकर यीशु को बताने लगे कि उन्होंने क्या-क्या किया है।+ तब वह उन्हें साथ लेकर बैतसैदा नाम के शहर में, किसी एकांत जगह के लिए निकल गया।+ 11 मगर भीड़ को इसका पता चल गया और वह उसके पीछे गयी। यीशु उन सबसे प्यार से मिला और उन्हें परमेश्वर के राज के बारे में बताने लगा और जिन्हें इलाज की ज़रूरत थी, उन्हें ठीक किया।+ 12 फिर दिन ढलने लगा और वे 12 उसके पास आए और कहने लगे, “भीड़ को भेज दे ताकि वे आस-पास के गाँवों और देहातों में जाकर अपने खाने और ठहरने का इंतज़ाम करें, क्योंकि हम यहाँ सुनसान जगह में हैं।”+ 13 मगर यीशु ने उनसे कहा, “तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।”+ उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियों और दो मछलियों के सिवा कुछ नहीं है। क्या तू यह चाहता है कि हम खुद जाकर इन सब लोगों के लिए खाना खरीदकर लाएँ?” 14 दरअसल वहाँ करीब 5,000 आदमी थे। यीशु ने अपने चेलों से कहा, “उन्हें पचास-पचास की टोलियों में बिठा दो।” 15 उन्होंने ऐसा ही किया और सबको बिठा दिया। 16 तब उसने पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की तरफ देखकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया। फिर उन्हें तोड़कर चेलों को देने लगा ताकि वे भीड़ के सामने परोस दें। 17 तब सब लोगों ने जी-भरकर खाया और उन्होंने बचे हुए टुकड़े उठाए जिनसे 12 टोकरियाँ भर गयीं।+
18 बाद में जब यीशु अकेले में प्रार्थना कर रहा था, तब चेले उसके पास आए। उसने चेलों से पूछा, “लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं, मैं कौन हूँ?”+ 19 उन्होंने कहा, “कुछ कहते हैं, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, दूसरे कहते हैं एलियाह और कुछ कहते हैं पुराने ज़माने के भविष्यवक्ताओं में से कोई ज़िंदा हो गया है।”+ 20 तब यीशु ने उनसे पूछा, “लेकिन तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूँ?” पतरस ने जवाब दिया, “तू परमेश्वर का भेजा हुआ मसीह है।”+ 21 तब उसने उन्हें सख्ती से कहा कि यह बात किसी को न बताएँ+ 22 और यह भी कहा, “इंसान के बेटे को कई दुख-तकलीफें सहनी पड़ेंगी और मुखिया, प्रधान याजक और शास्त्री उसे ठुकरा देंगे और वह मार डाला जाएगा।+ फिर तीसरे दिन उसे ज़िंदा कर दिया जाएगा।”+
23 तब यीशु ने सबसे कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे+ और हर दिन अपना यातना का काठ* उठाए और मेरे पीछे चलता रहे।+ 24 क्योंकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहता है वह उसे खोएगा, मगर जो कोई मेरी खातिर अपनी जान गँवाता है वही उसे बचाएगा।+ 25 वाकई, अगर एक इंसान सारी दुनिया हासिल कर ले मगर अपनी जान गँवा बैठे या वह बरबाद हो जाए, तो उसे क्या फायदा?+ 26 इसलिए कि जो कोई मेरा चेला होने और मेरे वचनों पर विश्वास करने में शर्मिंदा महसूस करता है, उसे इंसान का बेटा भी उस वक्त स्वीकार करने में शर्मिंदा महसूस करेगा जब वह अपनी, अपने पिता की और पवित्र स्वर्गदूतों की महिमा के साथ आएगा।+ 27 मगर मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यहाँ जो खड़े हैं, उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तब तक मौत का मुँह नहीं देखेंगे, जब तक कि वे परमेश्वर के राज को न देख लें।”+
28 दरअसल यह कहने के करीब आठ दिन बाद ऐसा हुआ कि वह पतरस, यूहन्ना और याकूब को अपने साथ लेकर प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़ गया।+ 29 जब वह प्रार्थना कर रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया और उसके कपड़े सफेद होकर जगमगाने लगे। 30 और देखो! दो आदमी उससे बात कर रहे थे। वे मूसा और एलियाह थे। 31 वे पूरी महिमा के साथ दिखायी दिए और यीशु की विदाई के बारे में बात करने लगे, जो बहुत जल्द यरूशलेम से होनेवाली थी।+ 32 पतरस और उसके साथी नींद से बोझिल थे। मगर जब वे पूरी तरह जाग गए, तो उन्होंने यीशु की महिमा देखी+ और दो आदमियों को उसके साथ खड़ा देखा। 33 जब वे दोनों यीशु के पास से जाने लगे, तो पतरस ने उससे कहा, “गुरु, हम बहुत खुश हैं कि हम यहाँ आए। इसलिए हमें तीन तंबू खड़े करने दे, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।” पतरस नहीं जानता था कि वह क्या कह रहा है। 34 जब वह बोल ही रहा था, तो एक बादल उभरा और उन पर छाने लगा। बादल के घिरने से वे घबरा गए। 35 उस बादल में से आवाज़+ आयी: “यह मेरा बेटा है, जिसे मैंने चुना है।+ इसकी सुनो।”+ 36 जब वह आवाज़ आयी, तो उन्होंने देखा कि यीशु वहाँ अकेला है। उन्होंने वहाँ जो देखा था उसमें से एक भी बात कुछ समय तक किसी को नहीं बतायी और इस बारे में वे चुप रहे।+
37 अगले दिन जब वे पहाड़ से नीचे उतरे, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास आयी।+ 38 तभी अचानक भीड़ में से एक आदमी ने ज़ोर से पुकारा, “गुरु, मैं तुझसे बिनती करता हूँ एक नज़र मेरे बेटे को देख ले, वह मेरा एक ही बेटा है।+ 39 उसे एक दुष्ट स्वर्गदूत जकड़ लेता है और अचानक वह चीखने लगता है। वह दूत उसे ऐसे मरोड़ता है कि वह झाग उगलने लगता है और उसे घायल करने के बाद बड़ी मुश्किल से छोड़ता है। 40 मैंने तेरे चेलों से उसे निकालने की बिनती की मगर वे नहीं निकाल सके।” 41 तब यीशु ने कहा, “अरे अविश्वासी और टेढ़े लोगो,*+ मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हारी सहूँ? अपने बेटे को यहाँ ला।”+ 42 जब लड़का आ रहा था, तो दुष्ट स्वर्गदूत ने उसे ज़मीन पर पटक दिया और बुरी तरह मरोड़ा। लेकिन यीशु ने उस दुष्ट स्वर्गदूत को फटकारा और लड़के को ठीक कर दिया और उसके पिता को सौंप दिया। 43 परमेश्वर की यह महाशक्ति देखकर सब लोग दंग रह गए।
जब वे उसके सब कामों पर ताज्जुब कर रहे थे, तो उसने अपने चेलों से कहा, 44 “मैं जो बताने जा रहा हूँ उस पर कान लगाओ। इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात किया जाएगा और उसे लोगों के हवाले कर दिया जाएगा।”+ 45 मगर चेले अब भी उसकी बात का मतलब नहीं समझे थे। दरअसल इस बात का मतलब उनसे छिपाया गया था ताकि वे इसे समझ न सकें और वे इस बारे में उससे सवाल पूछने से भी डर रहे थे।
46 इसके बाद उनमें यह बहस छिड़ गयी कि उनमें सबसे बड़ा कौन है।+ 47 तब यीशु ने यह जानते हुए कि वे अपने दिलों में क्या सोच रहे हैं, एक छोटे बच्चे को अपने पास खड़ा किया 48 और उनसे कहा, “जो कोई मेरे नाम से इस छोटे बच्चे को स्वीकार करता है वह मुझे भी स्वीकार करता है। और जो मुझे स्वीकार करता है वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है।+ इसलिए कि तुममें से जो अपने आपको बाकियों से छोटा समझकर चलता है, वही तुम सब में बड़ा है।”+
49 यूहन्ना ने कहा, “गुरु, हमने देखा कि एक आदमी तेरा नाम लेकर लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाल रहा था और हमने उसे रोकने की कोशिश की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता।”+ 50 मगर यीशु ने उससे कहा, “उसे रोकने की कोशिश मत करो क्योंकि जो तुम्हारे खिलाफ नहीं, वह तुम्हारे साथ है।”
51 जब वह वक्त पास आ रहा था* कि वह ऊपर उठा लिया जाए,+ तब उसने यरूशलेम जाने की ठान ली। 52 इसलिए उसने कुछ चेलों को अपने आगे-आगे भेजा। वे सामरियों के एक गाँव में गए ताकि उसके लिए तैयारियाँ करें। 53 मगर गाँववालों ने यीशु को कोई जगह नहीं दी+ क्योंकि वह यरूशलेम जाने की ठान चुका था।* 54 यह देखकर चेले याकूब और यूहन्ना+ ने कहा, “प्रभु अगर तेरी इजाज़त हो, तो क्या हम हुक्म दें कि आकाश से आग बरसे और इन्हें भस्म कर दे?”+ 55 मगर उसने पलटकर उन्हें डाँटा। 56 तब वे किसी और गाँव में चले गए।
57 जब वे सड़क पर जा रहे थे, तो किसी ने यीशु से कहा, “तू जहाँ कहीं जाएगा मैं तेरे साथ चलूँगा।” 58 मगर यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों की माँदें और आकाश के पंछियों के बसेरे होते हैं, मगर इंसान के बेटे के पास कहीं सिर टिकाने की भी जगह नहीं है।”+ 59 तब उसने एक और से कहा, “मेरा चेला बन जा।” उस आदमी ने कहा, “प्रभु, मुझे इजाज़त दे कि मैं जाकर पहले अपने पिता को दफना दूँ।”+ 60 मगर यीशु ने उससे कहा, “मुरदों+ को अपने मुरदे दफनाने दे, मगर तू जाकर परमेश्वर के राज का ऐलान कर।”+ 61 फिर किसी और ने कहा, “हे प्रभु, मैं तेरा चेला ज़रूर बनूँगा, मगर मुझे इजाज़त दे कि पहले अपने घरवालों को अलविदा कह दूँ।” 62 यीशु ने उससे कहा, “कोई भी इंसान जो हल पर हाथ रखने के बाद, पीछे छोड़ी हुई चीज़ों को मुड़कर देखता है,+ वह परमेश्वर के राज के लायक नहीं।”+
10 इसके बाद प्रभु ने 70 और चेले चुने और जिस-जिस शहर और इलाके में वह खुद जानेवाला था, वहाँ उन्हें दो-दो की जोड़ियों में अपने आगे भेजा।+ 2 वह उनसे कहने लगा, “बेशक, कटाई के लिए फसल बहुत है मगर मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए खेत के मालिक से बिनती करो कि वह कटाई के लिए और मज़दूर भेजे।+ 3 जाओ, मगर देखो! मैं तुम्हें मेम्नों की तरह भेड़ियों के बीच भेज रहा हूँ।+ 4 अपने साथ पैसों की थैली मत लेना, न खाने की पोटली, न ही जूतियाँ लेना+ और रास्ते में किसी को नमस्कार मत करना।* 5 जब तुम किसी घर में जाओ तो पहले कहो, ‘इस घर में शांति हो।’+ 6 अगर वहाँ कोई शांति चाहनेवाला हो, तो तुम्हारी शांति उस पर बनी रहेगी। लेकिन अगर न हो तो तुम्हारी शांति तुम्हारे पास लौट आएगी। 7 इसलिए उसी घर में रहो+ और जो कुछ वे तुम्हें दें, वह खाओ-पीओ+ क्योंकि काम करनेवाला मज़दूरी पाने का हकदार है।+ अपने ठहरने के लिए घर-पर-घर बदलते मत रहना।
8 जब तुम किसी शहर में जाओ और लोग तुम्हें अपने यहाँ ठहराएँ, तो वे तुम्हारे आगे जो खाना परोसें उसे खाओ, 9 वहाँ बीमारों को ठीक करो और प्रचार करो कि ‘परमेश्वर का राज तुम्हारे पास आ गया है।’+ 10 लेकिन जब किसी शहर में लोग तुम्हें अपने यहाँ न ठहराएँ तो वहाँ के चौराहों में जाओ और कहो, 11 ‘तुम्हारे शहर की धूल तक जो हमारे पैरों में लगी है, हम पोंछ डालते हैं ताकि यह तुम्हारे खिलाफ गवाही दे।+ फिर भी याद रखो कि परमेश्वर का राज पास आ गया है।’ 12 मैं तुमसे कहता हूँ कि उस दिन सदोम का हाल उस शहर के हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा।+
13 हे खुराजीन, धिक्कार है तुझ पर! हे बैतसैदा, धिक्कार है तुझ पर! क्योंकि जो शक्तिशाली काम तुममें हुए थे, अगर वे सोर और सीदोन में हुए होते, तो वहाँ के लोगों ने टाट ओढ़कर और राख में बैठकर कब का पश्चाताप कर लिया होता।+ 14 इसलिए न्याय के वक्त, सोर और सीदोन का हाल तुम्हारे हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा। 15 और कफरनहूम तू, तू क्या सोचता है कि तुझे आकाश तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो नीचे कब्र में जाएगा!
16 जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी भी सुनता है।+ जो तुम्हें ठुकराता है, वह मुझे भी ठुकराता है। जो मुझे ठुकराता है, वह उस परमेश्वर को भी ठुकराता है जिसने मुझे भेजा है।”+
17 इसके बाद वे 70 चेले खुशी-खुशी लौटे और कहने लगे, “प्रभु, तेरा नाम लेने से दुष्ट स्वर्गदूत भी हमारे अधीन हो रहे हैं।”+ 18 तब यीशु ने उनसे कहा, “मैं देख सकता हूँ कि शैतान बिजली की तरह आकाश से गिर चुका है।+ 19 देखो! मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को पैरों तले रौंदने और दुश्मन की ताकत पर काबू पाने का अधिकार दिया है+ और कोई भी चीज़ तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाएगी। 20 फिर भी इस बात से खुश मत हो कि स्वर्गदूत तुम्हारे अधीन किए जा रहे हैं, मगर इस बात पर खुशी मनाओ कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं।”+ 21 उसी घड़ी वह पवित्र शक्ति से भर गया और खुशी से फूला नहीं समाया और बोला, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के मालिक, मैं सबके सामने तेरी बड़ाई करता हूँ कि तूने ये बातें बुद्धिमानों और ज्ञानियों+ से तो बड़े ध्यान से छिपाए रखीं, मगर नन्हे-मुन्नों पर प्रकट की हैं। क्योंकि हे पिता, तुझे यही तरीका मंज़ूर है।+ 22 मेरे पिता ने सबकुछ मेरे हाथ में सौंपा है। बेटा कौन है, यह कोई नहीं जानता सिवा पिता के। और पिता कौन है, यह कोई नहीं जानता सिवा बेटे के+ और उसके, जिस पर बेटा उसे प्रकट करना चाहे।”+
23 तब उसने मुड़कर अपने चेलों से अकेले में कहा, “सुखी हैं वे जिनकी आँखें वह सब देखती हैं जो तुम देख रहे हो।+ 24 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ, बहुत-से भविष्यवक्ताओं और राजाओं ने चाहा था कि वह सब देखें जो तुम देख रहे हो, मगर नहीं देख सके+ और वे बातें सुनें जो तुम सुन रहे हो, मगर नहीं सुन सके।”
25 इसके बाद, एक आदमी जो कानून का अच्छा जानकार था, यीशु की परीक्षा लेने के लिए खड़ा हुआ। उसने कहा, “गुरु, हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”+ 26 यीशु ने कहा, “कानून में क्या लिखा है? तूने क्या पढ़ा है?” 27 उसने जवाब दिया, “‘तुम अपने परमेश्वर यहोवा* से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान,* अपनी पूरी ताकत और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना,’+ और ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।’”+ 28 यीशु ने कहा, “तूने सही जवाब दिया। ऐसा ही करता रह और तू जीवन पाएगा।”+
29 मगर उस आदमी ने खुद को नेक साबित करने+ के इरादे से यीशु से पूछा, “असल में मेरा पड़ोसी कौन है?” 30 यीशु ने कहा, “एक आदमी यरूशलेम से नीचे उतरकर यरीहो जा रहा था और लुटेरों ने उसे घेर लिया। उन्होंने उसके कपड़े उतरवा लिए और उसका सबकुछ छीनकर उसे बहुत मारा और अधमरा छोड़कर वहाँ से चले गए। 31 इत्तफाक से एक याजक उसी सड़क से नीचे जा रहा था, मगर जब उसने उस आदमी को पड़ा देखा, तो सड़क की दूसरी तरफ से निकल गया। 32 उसी तरह, जब एक लेवी भी वहाँ से जा रहा था और उसने उस आदमी को देखा, तो सड़क की दूसरी तरफ से निकल गया। 33 मगर फिर एक सामरी+ उस सड़क से गुज़रा और जब उसने उस आदमी को देखा तो उसका दिल तड़प उठा। 34 वह उसके पास गया और उसके घावों पर तेल और दाख-मदिरा डालकर पट्टियाँ बाँधी। फिर वह उसे अपने गधे पर लादकर एक सराय में ले आया और उसकी देखभाल की। 35 अगले दिन उसने सरायवाले को दो दीनार* देते हुए कहा, ‘इस आदमी की देखभाल करना और इसके अलावा जो भी खर्च होगा, वह मैं लौटकर तुझे दे दूँगा।’ 36 अब बता, तुझे क्या लगता है, उन तीनों में से किसने उस आदमी का पड़ोसी होने का फर्ज़ निभाया,+ जिसे लुटेरों ने घेर लिया था?” 37 उसने कहा, “वही जिसने उस पर दया की और उसकी मदद की।”+ तब यीशु ने उससे कहा, “जा और तू भी ऐसा ही कर।”+
38 फिर वे आगे बढ़े और एक गाँव में गए। वहाँ मारथा+ नाम की एक औरत थी, जिसने उसे अपने घर मेहमान ठहराया। 39 उसकी एक बहन भी थी, जिसका नाम मरियम था। वह नीचे प्रभु के पैरों के पास बैठकर उसकी बातें सुन रही थी। 40 मगर मारथा का ध्यान बहुत-सी तैयारियाँ करने में बँटा हुआ था। इसलिए वह यीशु के पास आयी और बोली, “प्रभु, क्या तुझे परवाह नहीं कि मेरी बहन ने सारा काम मुझ अकेली पर छोड़ दिया है? उससे बोल कि आकर मेरा हाथ बँटाए।” 41 प्रभु ने उससे कहा, “मारथा, मारथा, तू बहुत बातों की चिंता कर रही है और परेशान हो रही है। 42 असल में थोड़ी ही चीज़ों की ज़रूरत है या बस एक ही काफी है। जहाँ तक मरियम की बात है, उसने अच्छा* भाग चुना है+ और वह उससे नहीं छीना जाएगा।”
11 फिर ऐसा हुआ कि यीशु किसी जगह प्रार्थना कर रहा था। जब वह प्रार्थना कर चुका, तो उसके चेलों में से एक ने उससे कहा, “प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया था, तू भी हमें प्रार्थना करना सिखा।”
2 तब उसने कहा, “जब भी तुम प्रार्थना करो तो कहो: ‘हे पिता, तेरा नाम पवित्र किया जाए।*+ तेरा राज आए।+ 3 हर दिन की रोटी हमें देता रह।+ 4 हमारे पाप माफ कर दे,+ इसलिए कि जो भी हमारे खिलाफ पाप करके हमारा कर्ज़दार बन जाता है, हम भी उसे माफ करते हैं।+ और परीक्षा आने पर हमें गिरने न दे।’”+
5 फिर यीशु ने उनसे कहा, “मान लो तुम्हारा एक दोस्त है और तुम आधी रात को जाकर उससे कहते हो, ‘दोस्त, मुझे तीन रोटी उधार दे दे, 6 क्योंकि मेरा एक दोस्त सफर से अभी-अभी मेरे घर आया है और मेरे पास उसे खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है।’ 7 मगर वह अंदर से जवाब देता है, ‘मुझे परेशान मत कर। दरवाज़ा बंद हो चुका है और मेरे बच्चे मेरे साथ बिस्तर पर सो रहे हैं। मैं उठकर तुझे कुछ नहीं दे सकता।’ 8 मैं तुमसे कहता हूँ, वह उसे दोस्ती की खातिर न सही, मगर यह देखकर कि वह बिना शर्म के माँगता ही जा रहा है,+ ज़रूर उठेगा और उसे जो चाहिए देगा। 9 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, माँगते रहो+ तो तुम्हें दिया जाएगा। ढूँढ़ते रहो तो तुम पाओगे। खटखटाते रहो तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।+ 10 क्योंकि हर कोई जो माँगता है, उसे मिलता है+ और हर कोई जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और हर कोई जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा। 11 आखिर तुममें ऐसा कौन-सा पिता है जिसका बेटा अगर उससे मछली माँगे, तो उसे मछली की जगह साँप थमा दे?+ 12 या अगर वह अंडा माँगे, तो उसे बिच्छू थमा दे? 13 इसलिए जब तुम दुष्ट होकर भी अपने बच्चों को अच्छे तोहफे देना जानते हो तो तुम्हारा पिता, जो स्वर्ग में है, और भी बढ़कर अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्ति* क्यों न देगा!”+
14 बाद में, यीशु ने एक आदमी में से दुष्ट स्वर्गदूत निकाला, जिसने उस आदमी को गूँगा कर दिया था।+ जब दुष्ट स्वर्गदूत निकल गया तो वह आदमी बोलने लगा। यह देखकर भीड़ हैरान रह गयी।+ 15 मगर उनमें से कुछ ने कहा, “वह दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा बाल-ज़बूल* की मदद से दुष्ट स्वर्गदूत निकालता है।”+ 16 जबकि दूसरे लोग यीशु की परीक्षा लेने के लिए उससे स्वर्ग से एक चिन्ह माँगने लगे।+ 17 यीशु जानता था कि वे क्या सोच रहे हैं+ इसलिए उसने उनसे कहा, “जिस राज में फूट पड़ जाए, वह बरबाद हो जाएगा और जिस घर में फूट पड़ जाए वह नाश हो जाएगा। 18 उसी तरह अगर शैतान अपने ही खिलाफ हो जाए, तो उसका राज कैसे टिकेगा? क्योंकि तुम कहते हो कि मैं बाल-ज़बूल की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ। 19 अगर मैं बाल-ज़बूल की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से इन्हें निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारे न्यायी ठहरेंगे। 20 लेकिन अगर मैं परमेश्वर की पवित्र शक्ति*+ से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो इसका मतलब परमेश्वर का राज तुम्हारे हाथ से निकल चुका है।+ 21 जब कोई ताकतवर आदमी सारे हथियार लेकर अपने घर की रखवाली करता है, तो उसकी जायदाद कोई नहीं ले सकता। 22 मगर जब कोई उससे भी ताकतवर आदमी उस पर हमला करके उसे हरा देता है, तो वह उसके सारे हथियार छीन लेता है जिन पर उसे भरोसा था और उसकी जायदाद लूटकर बाँट देता है। 23 जो मेरी तरफ नहीं है, वह मेरे खिलाफ है और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह तितर-बितर कर देता है।+
24 जब एक दुष्ट स्वर्गदूत किसी आदमी से बाहर निकल आता है, तो आराम करने की जगह ढूँढ़ने के लिए सूखे इलाकों में फिरता है, मगर जब उसे कोई जगह नहीं मिलती, तो कहता है, ‘मैं अपने जिस घर से निकला था उसमें फिर लौट जाऊँगा।’+ 25 वह आकर पाता है कि वह घर साफ-सुथरा और सजा हुआ है। 26 तब वह जाकर सात और स्वर्गदूतों को लाता है जो उससे भी दुष्ट हैं। फिर वे सब उस आदमी में समाकर वहीं बस जाते हैं। तब उस आदमी की हालत पहले से भी बदतर हो जाती है।”
27 जब वह ये बातें बता रहा था, तो भीड़ में से किसी औरत ने ऊँची आवाज़ में उससे कहा, “सुखी है वह औरत जिसकी कोख में तू रहा और जिसका तूने दूध पीया!”+ 28 मगर यीशु ने कहा, “नहीं, इसके बजाय सुखी हैं वे जो परमेश्वर का वचन सुनते हैं और उस पर चलते हैं!”+
29 जब भीड़ बढ़ने लगी, तो उसने कहा, “यह एक दुष्ट पीढ़ी है जो एक चिन्ह देखना चाहती है। मगर इसे योना के चिन्ह को छोड़ और कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा।+ 30 इसलिए कि जिस तरह योना+ नीनवे के लोगों के लिए एक चिन्ह ठहरा था, उसी तरह इंसान का बेटा भी इस पीढ़ी के लिए चिन्ह ठहरेगा। 31 दक्षिण की रानी+ को न्याय के वक्त इस पीढ़ी के लोगों के साथ उठाया जाएगा और वह इन्हें दोषी ठहराएगी क्योंकि वह सुलैमान की बुद्धि की बातें सुनने के लिए पृथ्वी के छोर से आयी थी। मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो सुलैमान से भी बढ़कर है।+ 32 नीनवे के लोग न्याय के वक्त इस पीढ़ी के साथ उठेंगे और इसे दोषी ठहराएँगे क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर पश्चाताप किया था।+ मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो योना से भी बढ़कर है। 33 एक इंसान दीपक जलाकर उसे आड़ में नहीं रखता, न ही टोकरी* से ढककर रखता है, मगर दीवट पर रखता है+ ताकि अंदर आनेवालों को रौशनी मिले। 34 तेरी आँख तेरे शरीर का दीपक है। अगर तेरी आँख एक ही चीज़ पर टिकी है,* तो तेरा सारा शरीर रौशन है। लेकिन अगर तेरी आँखों में ईर्ष्या भरी है,* तो तेरा सारा शरीर अंधकार से भरा है।+ 35 ध्यान रहे कि तुम्हें रौशनी देनेवाली आँख कहीं अँधेरे में न हो। 36 इसलिए अगर तेरा सारा शरीर रौशन है और उसका कोई भी हिस्सा अंधकार में नहीं, तो पूरा शरीर ऐसा रौशन होगा, जैसे एक दीपक अपनी किरणों से तुम्हें रौशनी देता है।”
37 जब वह यह कह चुका, तो एक फरीसी ने उससे गुज़ारिश की कि वह उसके यहाँ खाने पर आए। इसलिए वह उसके घर गया और खाने बैठा।* 38 लेकिन फरीसी को यह देखकर हैरानी हुई कि उसने खाने से पहले हाथ नहीं धोए।*+ 39 मगर प्रभु ने उससे कहा, “हे फरीसियो, तुम उन प्यालों और थालियों की तरह हो जिन्हें सिर्फ बाहर से साफ किया जाता है, मगर अंदर से वे गंदे हैं। तुम्हारे अंदर लालच और दुष्टता भरी हुई है।+ 40 अरे अक्ल के दुश्मनो! जिसने बाहर से बनाया है, क्या उसी ने अंदर से नहीं बनाया? 41 इसलिए तुम जो दान* देते हो वह दिल से दो, तब तुम पूरी तरह शुद्ध ठहरोगे। 42 मगर धिक्कार है तुम फरीसियों पर! क्योंकि तुम पुदीने, सुदाब और इस तरह के हर साग-पात* का दसवाँ हिस्सा तो देते हो,+ मगर न्याय और परमेश्वर से प्यार करने की आज्ञा को कोई अहमियत नहीं देते। माना कि यह सब देना तुम्हारा फर्ज़ है, मगर तुम्हें उन दूसरी बातों को भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए।+ 43 धिक्कार है तुम फरीसियों पर! क्योंकि तुम्हें सभा-घरों में सबसे आगे की* जगहों पर बैठना और बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना पसंद है!+ 44 धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम उन कब्रों* जैसे हो जो ऊपर से दिखायी नहीं देतीं,*+ इसलिए लोग उन पर चलते-फिरते हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता!”
45 यह सुनकर कानून के एक जानकार ने उससे कहा, “गुरु, यह सब कहकर तू हमारी बेइज़्ज़ती कर रहा है।” 46 तब यीशु ने कहा, “अरे कानून के जानकारो, तुम पर भी धिक्कार है! क्योंकि तुम ऐसे नियम बनाते हो जो लोगों पर भारी बोझ की तरह हैं, मगर तुम खुद इस बोझ को उठाने के लिए अपनी एक उँगली तक नहीं लगाते!+
47 धिक्कार है तुम पर, क्योंकि तुम भविष्यवक्ताओं की कब्रें* बनवाते हो, जबकि तुम्हारे पुरखों ने उन्हें मार डाला था!+ 48 बेशक तुम अपने पुरखों की करतूतें जानते हो, फिर भी तुम उन्हें सही मानते हो। उन्होंने भविष्यवक्ताओं को मार डाला था+ और तुम उन्हीं भविष्यवक्ताओं की कब्रें बनाते हो। 49 इसलिए परमेश्वर ने अपनी बुद्धि की बदौलत* कहा, ‘मैं उनके पास भविष्यवक्ताओं और प्रेषितों को भेजूँगा और वे उनमें से कुछ पर ज़ुल्म करेंगे और कुछ को मार डालेंगे 50 ताकि दुनिया की शुरूआत से जितने भविष्यवक्ताओं का खून बहाया गया है उनके खून का दोष इस पीढ़ी पर आए,*+ 51 यानी हाबिल के खून+ से लेकर जकरयाह के खून तक, जिसे वेदी और मंदिर के बीच मार डाला गया था।’+ हाँ, मैं तुमसे कहता हूँ कि उन सबके खून का दोष इस पीढ़ी पर आएगा।*
52 धिक्कार है तुम पर जो कानून के जानकार हो, क्योंकि तुमने वह चाबी लेकर रख ली है, जो परमेश्वर के बारे में ज्ञान का दरवाज़ा खोलती है। तुम खुद उस दरवाज़े के अंदर नहीं गए और जो जा रहे हैं उन्हें भी तुम रोक देते हो!”+
53 जब यीशु वहाँ से बाहर निकला, तो शास्त्री और फरीसी बुरी तरह उसके पीछे पड़ गए और उन्होंने उसके सामने सवालों की झड़ी लगा दी। 54 वे इस ताक में थे कि उसके मुँह से कोई ऐसी बात निकले जिससे वे उसे पकड़ सकें।+
12 इस बीच लोग हज़ारों की तादाद में वहाँ इकट्ठा हो चुके थे, यहाँ तक कि वे एक-दूसरे पर चढ़े जा रहे थे। वह अपने चेलों से कहने लगा, “फरीसियों के खमीर से, उनके कपट से चौकन्ने रहो।+ 2 लेकिन ऐसी कोई बात नहीं जो बड़ी सावधानी से छिपायी गयी हो और जो सामने न लायी जाए और जिसे राज़ रखा गया हो और जाना न जाए।+ 3 इसलिए जो कुछ तुम अँधेरे में कहते हो वह उजाले में सुना जाएगा और जो तुम अंदर के कमरों में फुसफुसाकर कहते हो उसका घर की छतों पर चढ़कर ऐलान किया जाएगा। 4 मेरे दोस्तो,+ मैं तुमसे कहता हूँ, उनसे मत डरो जो तुम्हारे शरीर को नष्ट कर सकते हैं और इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते।+ 5 मगर मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुम्हें किससे डरना चाहिए। उससे डरो जिसके पास न सिर्फ तुम्हें मार डालने का, बल्कि इसके बाद तुम्हें गेहन्ना* में फेंकने का भी अधिकार है।+ हाँ मैं तुमसे कहता हूँ, उसी से डरो।+ 6 क्या दो पैसे* में पाँच चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? मगर उनमें से एक भी ऐसी नहीं जिसे परमेश्वर भूल जाए।*+ 7 मगर तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है।+ इसलिए मत डरो, तुम बहुत-सी चिड़ियों से कहीं ज़्यादा अनमोल हो।+
8 मैं तुमसे कहता हूँ, जो कोई लोगों के सामने मुझे स्वीकार करता है,+ इंसान का बेटा भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने उसे स्वीकार करेगा।+ 9 मगर जो कोई लोगों के सामने मेरा इनकार करता है, मैं भी परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने उसका इनकार कर दूँगा।+ 10 जो कोई इंसान के बेटे के खिलाफ कुछ कहता है उसे माफ कर दिया जाएगा, मगर जो पवित्र शक्ति के खिलाफ निंदा की बातें बोलता है उसे माफ नहीं किया जाएगा।+ 11 जब वे तुम्हें जनता की सभाओं,* सरकारी अफसरों और अधिकारियों के सामने ले जाएँ, तो यह चिंता मत करना कि अपनी सफाई में तुम क्या कहोगे और कैसे कहोगे।+ 12 इसलिए कि पवित्र शक्ति उसी घड़ी तुम्हें वे सारी बातें सिखा देगी जो तुम्हें बोलनी चाहिए।”+
13 तब भीड़ में से किसी ने उससे कहा, “गुरु, मेरे भाई से बोल कि वह हमारी विरासत का बँटवारा कर दे।” 14 यीशु ने उससे कहा, “किसने मुझे तुम लोगों का न्यायी या बँटवारा करनेवाला ठहराया है?” 15 फिर उसने भीड़ से कहा, “तुम अपनी आँखें खुली रखो और हर तरह के लालच से खुद को बचाए रखो,+ क्योंकि चाहे इंसान के पास बहुत कुछ हो, तो भी उसकी दौलत उसे ज़िंदगी नहीं दे सकती।”+ 16 फिर उसने यह मिसाल दी, “किसी दौलतमंद आदमी की ज़मीन से बहुत उपज हुई। 17 वह मन-ही-मन सोचने लगा, ‘मेरे पास अपनी फसल रखने के लिए और जगह नहीं है, इसलिए अब क्या करना ठीक रहेगा?’ 18 फिर उसने कहा, ‘एक काम करता हूँ,+ अपने गोदाम तुड़वाकर और भी बड़े गोदाम बनवाता हूँ। फिर वहीं अपना सारा अनाज और सारी चीज़ें जमा करूँगा। 19 और खुद से कहूँगा, “तेरे पास कई सालों के लिए बहुत सारी अच्छी चीज़ें जमा हैं। अब चैन से जी, खा-पी और मौज कर।”’ 20 मगर परमेश्वर ने उससे कहा, ‘अरे मूर्ख, आज रात ही तेरी ज़िंदगी तुझसे छीन ली जाएगी।* फिर जो कुछ तूने बटोरा है वह किसका होगा?’+ 21 उस इंसान के साथ भी ऐसा ही होता है, जो धन-दौलत बटोरने में लगा रहता है मगर परमेश्वर की नज़र में कंगाल है।”+
22 फिर उसने अपने चेलों से कहा, “इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, अपने जीवन के लिए चिंता करना छोड़ दो कि तुम क्या खाओगे, न ही अपने शरीर के लिए चिंता करो कि तुम क्या पहनोगे।+ 23 क्योंकि एक इंसान का जीवन भोजन से और उसका शरीर कपड़ों से कहीं ज़्यादा अनमोल है। 24 ध्यान दो कि कौवे न तो बीज बोते हैं, न कटाई करते हैं, न उनके अनाज के भंडार होते हैं, न ही गोदाम, फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है।+ क्या तुम्हारा मोल पंछियों से बढ़कर नहीं?+ 25 तुममें ऐसा कौन है जो चिंता करके एक पल के लिए भी* अपनी ज़िंदगी बढ़ा सके? 26 इसलिए अगर तुम इतना तक नहीं कर सकते, तो बाकी चीज़ों की चिंता क्यों करते हो?+ 27 ध्यान दो कि सोसन* के फूल कैसे उगते हैं। वे न तो कड़ी मज़दूरी करते हैं न ही सूत कातते हैं। मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि सुलैमान भी जब अपने पूरे वैभव में था, तो इनमें से किसी एक की तरह भी सज-धज न सका।+ 28 इसलिए अगर परमेश्वर मैदान में उगनेवाले इन पौधों को, जो आज हैं और कल आग* में झोंक दिए जाएँगे, ऐसे शानदार कपड़े पहनाता है, तो अरे कम विश्वास रखनेवालो! वह तुम्हें इससे भी बढ़कर क्यों न पहनाएगा! 29 इसलिए यह चिंता करना छोड़ दो कि तुम क्या खाओगे और क्या पीओगे। तुम इन बातों की हद-से-ज़्यादा चिंता मत करो।+ 30 क्योंकि इन्हीं सब चीज़ों के पीछे दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं। मगर तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन चीज़ों की ज़रूरत है।+ 31 इसके बजाय, उसके राज को पहली जगह देते रहो* और ये चीज़ें तुम्हें दे दी जाएँगी।+
32 हे छोटे झुंड,+ मत डर, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज देना मंज़ूर किया है।+ 33 इसलिए अपनी चीज़ें बेचकर गरीबों को दान* कर दो।+ अपने लिए पैसे की ऐसी थैलियाँ बनाओ जो कभी पुरानी नहीं होतीं, यानी स्वर्ग में ऐसा खज़ाना जमा करो जो कभी खत्म नहीं होता,+ जहाँ न कोई चोर पास फटकता है, न कोई कीड़ा उसे खाता है। 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा धन होगा, वहीं तुम्हारा मन होगा।
35 तुम कमर कसकर तैयार रहो+ और तुम्हारे दीपक जलते रहें।+ 36 उन आदमियों की तरह बनो जो अपने मालिक का इंतज़ार करते हैं+ कि वह शादी से कब लौटेगा+ ताकि जब वह आकर दरवाज़ा खटखटाए, तो फौरन उसके लिए खोल सकें। 37 सुखी होंगे वे दास जिनका मालिक आने पर उन्हें जागा हुआ पाएगा! मैं तुमसे सच कहता हूँ, वह खुद उनकी सेवा करने के लिए अपनी कमर कसेगा और कहेगा कि वे खाने के लिए बैठें* और पास खड़े होकर उनकी सेवा करेगा। 38 अगर वह दूसरे पहर* में, यहाँ तक कि तीसरे पहर* में आकर उन्हें जागा हुआ पाएगा, तो उनके लिए खुशी की बात है! 39 लेकिन यह जान लो कि अगर घर के मालिक को पता होता कि चोर किस वक्त आनेवाला है, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध नहीं लगने देता।+ 40 तुम भी तैयार रहो क्योंकि जिस घड़ी तुमने सोचा भी न होगा, उसी घड़ी इंसान का बेटा आ रहा है।”+
41 तब पतरस ने कहा, “प्रभु, तू यह मिसाल सिर्फ हमारे लिए बता रहा है या सबके लिए?” 42 प्रभु ने कहा, “असल में वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान* प्रबंधक* कौन है, जिसे उसका मालिक अपने घर के सेवकों के दल* पर ठहराएगा कि उन्हें सही वक्त पर सही मात्रा में खाना देता रहे?+ 43 सुखी होगा वह दास अगर उसका मालिक आने पर उसे ऐसा ही करता पाए! 44 मैं तुमसे सच कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकार देगा। 45 लेकिन अगर कभी वह दास अपने दिल में यह सोचे, ‘मेरा मालिक आने में देर कर रहा है’ और दास-दासियों को पीटने लगे और खा-पीकर, नशे में चूर रहे,+ 46 तो उस दास का मालिक ऐसे दिन आएगा जिस दिन की वह उम्मीद भी नहीं कर रहा होगा और उस घड़ी आएगा जिसकी उसे खबर भी न होगी। और वह उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा देगा और उस जगह फेंक देगा जहाँ विश्वासघातियों को फेंका जाता है। 47 तब वह दास जिसने समझ तो लिया था कि उसके मालिक की मरज़ी क्या है, मगर तैयार नहीं था या उसका दिया हुआ काम उसने नहीं किया,* उसे कोड़े से बहुत मारा जाएगा।+ 48 मगर जो दास अपने मालिक की मरज़ी नहीं जानता था और इसलिए उसने मार खाने लायक काम किए, उसे कम कोड़े लगेंगे। सच, जिस किसी को बहुत दिया गया है, उससे बहुत का हिसाब लिया जाएगा। और जिसे बहुत सारे काम की निगरानी सौंपी गयी है, उससे और ज़्यादा हिसाब लिया जाएगा।+
49 मैं धरती पर आग लगाने आया हूँ। यह आग सुलग चुकी है, इससे बढ़कर मैं और कुछ नहीं चाहता। 50 हाँ, एक बपतिस्मा है जो मुझे लेना है और जब तक मेरा यह बपतिस्मा पूरा नहीं हो जाता, मैं तकलीफ में रहूँगा!+ 51 तुम्हें क्या लगता है, मैं धरती पर शांति देने आया हूँ? नहीं, शांति नहीं बल्कि मैं तुमसे कहता हूँ, मैं फूट डालने आया हूँ।+ 52 इसलिए कि अब से एक ही घर के पाँच लोग एक-दूसरे के खिलाफ हो जाएँगे, तीन दो के खिलाफ होंगे और दो तीन के। 53 वे एक-दूसरे के खिलाफ होंगे, पिता बेटे के खिलाफ और बेटा पिता के, माँ बेटी के खिलाफ और बेटी माँ के, सास अपनी बहू के खिलाफ और बहू अपनी सास के।”+
54 इसके बाद उसने भीड़ से कहा, “जब तुम पश्चिम से एक बादल उठता देखते हो, तो फौरन कहते हो, ‘बरसाती तूफान आनेवाला है’ और ऐसा ही होता है। 55 और जब तुम दक्षिणी हवा चलती देखते हो, तो कहते हो ‘बहुत गरमी होगी’ और ऐसा ही होता है। 56 अरे कपटियो, तुम धरती और आसमान की सूरत देखकर समझ जाते हो कि मौसम कैसा होगा, मगर तुम यह क्यों नहीं समझ पाते कि इस खास वक्त का क्या मतलब है?+ 57 तुम खुद यह फैसला क्यों नहीं कर पा रहे कि तुम्हारे लिए क्या करना सही है? 58 उदाहरण के लिए, जब कोई तुझ पर मुकदमा दायर करने के लिए किसी अधिकारी के पास जा रहा हो, तो तू रास्ते में ही उसके साथ झगड़ा निपटा ले। कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे न्यायी के सामने हाज़िर करे और न्यायी तुझे कोतवाल के हवाले करे और कोतवाल तुझे जेल में डलवा दे।+ 59 मैं तुमसे कहता हूँ, जब तक तुम एक-एक पाई* न चुका दो, तब तक तुम वहाँ से किसी भी हाल में नहीं छूट सकोगे।”
13 उसी दौरान, वहाँ मौजूद कुछ लोगों ने यीशु को बताया कि जब गलील के कुछ लोग मंदिर में बलिदान चढ़ा रहे थे, तो कैसे पीलातुस ने उन्हें मरवा डाला था। 2 तब उसने उनसे कहा, “क्या तुम्हें लगता है कि ये गलीली बाकी सभी गलीलियों से ज़्यादा पापी थे क्योंकि उनके साथ ऐसा हुआ था? 3 मैं तुमसे कहता हूँ, नहीं! अगर तुम पश्चाताप नहीं करोगे, तो तुम सब इसी तरह नाश हो जाओगे।+ 4 क्या तुम्हें लगता है कि वे 18 लोग जिन पर सिलोम की मीनार गिर गयी थी और जो उसके नीचे दबकर मर गए थे, यरूशलेम के बाकी सभी लोगों से ज़्यादा पापी थे? 5 मैं तुमसे कहता हूँ, नहीं! अगर तुम पश्चाताप नहीं करोगे, तो तुम सब इसी तरह नाश हो जाओगे।”
6 इसके बाद उसने यह मिसाल दी, “एक आदमी था जिसके अंगूरों के बाग में एक अंजीर का पेड़ लगा था। वह उस पेड़ में फल ढूँढ़ने आया, मगर उसे एक भी फल नहीं मिला।+ 7 तब उसने बाग के माली से कहा, ‘पिछले तीन साल से मैं इस पेड़ के पास यह उम्मीद लेकर आ रहा हूँ कि मुझे फल मिलें, लेकिन आज तक मुझे एक भी फल नहीं मिला। इस पेड़ को काट डाल! यह बेकार में ज़मीन को क्यों घेरे खड़ा है?’ 8 माली ने उससे कहा, ‘मालिक, एक और साल इसे रहने दे ताकि मैं इसके चारों तरफ खुदाई करके इसमें खाद डालूँ। 9 और अगर यह भविष्य में फल दे, तो अच्छी बात है। लेकिन अगर नहीं, तो तू इसे कटवा देना।’”+
10 सब्त के दिन यीशु एक सभा-घर में सिखा रहा था। 11 वहाँ एक औरत थी जिसमें 18 साल से एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, जिसने उसे बहुत कमज़ोर* कर दिया था। वह कुबड़ी हो गयी थी और बिलकुल सीधी नहीं हो पाती थी। 12 जब यीशु ने उस औरत को देखा, तो उससे कहा, “जा, तुझे अपनी कमज़ोरी से छुटकारा दिया जा रहा है।”+ 13 यीशु ने अपने हाथ उस औरत पर रखे और वह फौरन सीधी हो गयी और परमेश्वर की महिमा करने लगी। 14 मगर जब सभा-घर के अधिकारी ने देखा कि यीशु ने सब्त के दिन चंगा किया है, तो वह भड़क उठा और लोगों से कहा, “छ: दिन होते हैं जिनमें काम किया जाना चाहिए।+ इसलिए उन्हीं दिनों में आकर चंगे हो, सब्त के दिन नहीं।”+ 15 लेकिन प्रभु ने उससे कहा, “अरे कपटियो,+ क्या तुममें से हर कोई सब्त के दिन अपने बैल या गधे को थान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता?+ 16 तो क्या यह औरत, जो अब्राहम की बेटी है और जिसे शैतान ने 18 साल तक अपने कब्ज़े में कर रखा था, इसे सब्त के दिन उसकी कैद से आज़ाद करना सही नहीं था?” 17 जब यीशु ने ये बातें कहीं, तो उसके सभी विरोधी शर्मिंदा हो गए। मगर भीड़ उसके सभी शानदार कामों को देखकर खुशियाँ मनाने लगी।+
18 इसलिए उसने यह भी कहा, “परमेश्वर का राज किसके जैसा है? मैं इसकी तुलना किससे करूँ? 19 यह राई के दाने की तरह है, जिसे एक आदमी ने लेकर अपने बाग में बो दिया और वह उगकर पेड़ बन गया और आकाश के पंछियों ने उसकी डालियों पर आकर बसेरा किया।”+
20 एक बार फिर उसने कहा, “मैं परमेश्वर के राज की तुलना किससे करूँ? 21 यह खमीर की तरह है, जिसे लेकर एक औरत ने करीब दस किलो* आटे में गूँध दिया और सारा आटा खमीरा हो गया।”+
22 फिर यीशु शहर-शहर और गाँव-गाँव जाकर सिखाता रहा और उसने यरूशलेम की तरफ अपना सफर जारी रखा। 23 तब एक आदमी ने उससे पूछा, “प्रभु, जो उद्धार पाएँगे क्या वे थोड़े हैं?” यीशु ने उनसे कहा, 24 “सँकरे दरवाज़े से अंदर जाने के लिए जी-तोड़ संघर्ष करो,+ क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि बहुत लोग अंदर जाना चाहेंगे, मगर नहीं जा पाएँगे। 25 जब घर का मालिक उठकर दरवाज़ा बंद कर देगा, तो तुम बाहर खड़े होकर खटखटाओगे और कहोगे, ‘प्रभु, हमारे लिए दरवाज़ा खोल।’+ तब वह कहेगा, ‘मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ से आए हो।’ 26 तब तुम कहोगे, ‘हमने तेरे साथ बैठकर खाया-पीया और तू हमारे यहाँ सड़क के चौराहों में सिखाया करता था।’+ 27 मगर वह तुमसे कहेगा, ‘मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ से आए हो। अरे दुष्ट काम करनेवालो, दूर हो जाओ मेरे सामने से!’ 28 जब तुम देखोगे कि अब्राहम, इसहाक, याकूब और सभी भविष्यवक्ता परमेश्वर के राज में हैं और तुम्हें बाहर फेंक दिया गया है, तो वहाँ तुम रोओगे और दाँत पीसोगे।+ 29 इतना ही नहीं, लोग पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से आएँगे और परमेश्वर के राज में मेज़ से टेक लगाकर बैठेंगे। 30 देखो! कुछ लोग जो आखिरी हैं वे पहले होंगे और कुछ जो पहले हैं वे आखिरी होंगे।”+
31 उसी वक्त कुछ फरीसी आए और यीशु से कहने लगे, “यहाँ से निकल जा क्योंकि हेरोदेस तुझे मार डालना चाहता है।” 32 लेकिन उसने उनसे कहा, “जाओ जाकर कहो उस लोमड़ी से, ‘देख! मैं आज और कल भी दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालूँगा और लोगों को चंगा करूँगा और तीसरे दिन मेरा काम पूरा होगा।’ 33 मगर चाहे जो भी हो, मुझे आज, कल और परसों भी अपना काम करना है, क्योंकि यह हो नहीं सकता कि एक भविष्यवक्ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए।+ 34 यरूशलेम, यरूशलेम, तू जो भविष्यवक्ताओं का खून करनेवाली नगरी है और जो तेरे पास भेजे जाते हैं उन्हें पत्थरों से मार डालती है+—मैंने कितनी बार चाहा कि जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों तले इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बच्चों को इकट्ठा करूँ! मगर तुम लोगों ने यह नहीं चाहा!+ 35 देखो! परमेश्वर ने तुम्हारे घर* को त्याग दिया है।+ मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम मुझे तब तक नहीं देखोगे जब तक कि यह न कहो, ‘धन्य है वह जो यहोवा* के नाम से आता है!’”+
14 एक और मौके पर यीशु सब्त के दिन फरीसियों के एक सरदार के घर खाने पर गया और वे उस पर नज़रें जमाए हुए थे। 2 वहाँ उसके सामने एक आदमी था जो जलोदर* का रोगी था। 3 तब यीशु ने कानून के जानकारों और फरीसियों से पूछा, “क्या सब्त के दिन बीमारों को ठीक करना सही है?”+ 4 मगर वे खामोश रहे। तब यीशु ने उस आदमी को छूकर ठीक कर दिया और भेज दिया। 5 फिर यीशु ने उनसे कहा, “अगर तुममें से किसी का बेटा या बैल सब्त के दिन कुएँ में गिर जाए,+ तो कौन है जो उसे फौरन खींचकर बाहर नहीं निकालेगा?”+ 6 वे इस सवाल का जवाब नहीं दे सके।
7 इसके बाद जब उसने देखा कि वहाँ आए मेहमान बैठने के लिए कैसे खास-खास जगह चुन रहे हैं,+ तो उसने उनसे कहा,* 8 “जब कोई तुझे शादी की दावत के लिए न्यौता दे, तो जाकर सबसे खास जगह पर मत बैठना।+ हो सकता है किसी और को भी न्यौता दिया गया हो जो तुझसे भी बड़ा है। 9 तब जिस मेज़बान ने तुम दोनों को न्यौता दिया है वह आकर तुझसे कहेगा, ‘इस आदमी को यहाँ बैठने दे।’ और तुझे शर्मिंदा होकर वहाँ से उठना पड़ेगा और जाकर सबसे नीची जगह बैठना पड़ेगा। 10 इसलिए जब तुझे न्यौता मिले, तो जाकर सबसे नीची जगह पर बैठना। जब मेज़बान आएगा तो तुझसे कहेगा, ‘मेरे दोस्त, वहाँ ऊपर जाकर बैठ।’ तब सब मेहमानों के सामने तेरी इज़्ज़त बढ़ेगी।+ 11 क्योंकि हर कोई जो खुद को बड़ा बनाता है उसे छोटा किया जाएगा और जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।”+
12 इसके बाद उसने अपने मेज़बान से कहा, “जब तू दोपहर या शाम का खाना करे, तो अपने दोस्तों, भाइयों, रिश्तेदारों या अमीर पड़ोसियों को मत बुलाना। हो सकता है कि बदले में वे भी तुझे कभी खाने पर बुलाएँ और बात बराबर हो जाए। 13 मगर जब तू दावत दे, तो गरीबों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को न्यौता देना।+ 14 तब तुझे खुशी मिलेगी क्योंकि तुझे बदले में देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। जब नेक जन दोबारा ज़िंदा किए जाएँगे, तब तुझे इसका इनाम मिलेगा।”+
15 ये बातें सुनकर वहाँ मौजूद मेहमानों में से एक ने उससे कहा, “सुखी है वह जो परमेश्वर के राज में भोजन करेगा।”*
16 यीशु ने उससे कहा, “एक आदमी ने शाम के खाने की आलीशान दावत रखी+ और बहुतों को न्यौता दिया। 17 जब दावत शुरू होने का समय आया, तो उसने अपने दास से कहा कि जिन्हें बुलाया गया है उनसे जाकर कह, ‘आ जाओ, सबकुछ तैयार है।’ 18 मगर वे सभी बहाने बनाने लगे।+ पहले ने उससे कहा, ‘मैंने एक खेत खरीदा है, उसे देखने के लिए मेरा जाना ज़रूरी है। इसलिए मुझे माफ कर।’ 19 दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़ी बैल खरीदे हैं और मैं उनकी जाँच-परख करने जा रहा हूँ। इसलिए मुझे माफ कर।’+ 20 एक और ने कहा, ‘मेरी अभी-अभी शादी हुई है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ 21 दास ने लौटकर यह सारी खबर घर के मालिक को दी। तब मालिक भड़क उठा और उसने दास से कहा, ‘फौरन चौराहों और शहर की गलियों में जा और गरीबों, अपाहिजों, अंधों और लँगड़ों को यहाँ ले आ।’ 22 थोड़ी देर बाद दास ने कहा, ‘मालिक, जैसा तेरा हुक्म था वैसा ही किया गया है। मगर फिर भी जगह खाली है।’ 23 तब मालिक ने उससे कहा, ‘सड़कों और तंग गलियों में जा और वहाँ के लोगों को आने के लिए मजबूर कर ताकि मेरा घर भर जाए।+ 24 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ, जिन लोगों को न्यौता दिया गया था उनमें से एक भी मेरी दावत नहीं चख सकेगा।’”+
25 लोगों की एक बड़ी भीड़ यीशु के साथ-साथ चल रही थी। उसने मुड़कर उनसे कहा, 26 “अगर कोई मेरे पास आता है और अपने पिता, माँ, पत्नी, बच्चों, भाइयों और बहनों, यहाँ तक कि अपनी जान से नफरत नहीं करता,*+ तो वह मेरा चेला नहीं बन सकता।+ 27 जो अपना यातना का काठ* नहीं उठाता और मेरे पीछे नहीं चलता, वह मेरा चेला नहीं बन सकता।+ 28 मिसाल के लिए, तुममें ऐसा कौन है जो एक मीनार बनाना चाहता हो और बैठकर पहले इसमें लगनेवाले खर्च का हिसाब न लगाए ताकि देखे कि उसे पूरा करने के लिए उसके पास काफी पैसा है या नहीं? 29 नहीं तो ऐसा होगा कि वह उसकी नींव तो डालेगा, मगर मीनार बनाने का काम पूरा नहीं कर पाएगा। और सब देखनेवाले उसका मज़ाक उड़ाएँगे 30 और कहेंगे, ‘यह आदमी बनाने तो चला, मगर पूरा नहीं कर पाया।’ 31 या कौन-सा राजा ऐसा है जो युद्ध में जाने से पहले बैठकर सलाह न करे कि वह अपनी 10,000 की फौज से उस दुश्मन राजा का मुकाबला कर पाएगा या नहीं, जो 20,000 की फौज लेकर लड़ने आ रहा है? 32 अगर वह मुकाबला नहीं कर सकता, तो दूसरे राजा के दूर रहते ही वह अपने राजदूतों का दल भेजकर उससे सुलह करने की कोशिश करेगा। 33 इसी तरह, यकीन मानो कि तुममें से जो कोई अपनी सारी संपत्ति को अलविदा नहीं कहता* वह मेरा चेला नहीं बन सकता।+
34 बेशक, नमक बढ़िया होता है। लेकिन अगर नमक अपना स्वाद खो दे, तो उसे किस चीज़ से दोबारा नमकीन किया जा सकता है?+ 35 वह न तो ज़मीन के लिए अच्छा होता है न खाद में मिलाने के लिए, बल्कि लोग उसे बाहर फेंक देते हैं। कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।”+
15 फिर सभी कर-वसूलनेवाले और उनके जैसे दूसरे पापी, यीशु की सुनने के लिए उसके पास आने लगे।+ 2 यह देखकर फरीसी और शास्त्री बड़बड़ाने लगे, “यह तो पापियों को भी अपने पास आने देता है और उनके साथ खाता है।” 3 तब यीशु ने उन्हें यह मिसाल दी: 4 “तुममें ऐसा कौन है जिसके पास अगर 100 भेड़ें हों और उनमें से एक खो जाए, तो वह बाकी 99 को वीराने में छोड़कर उस एक को ढूँढ़ने न जाए? क्या वह उस खोयी हुई भेड़ को तब तक नहीं ढूँढ़ता रहेगा जब तक कि वह मिल न जाए?+ 5 और जब वह उसे मिल जाती है, तो वह उसे अपने कंधों पर उठा लेता है और खुशी से फूला नहीं समाता। 6 वह घर पहुँचकर अपने दोस्तों और पड़ोसियों को बुलाता है और उनसे कहता है, ‘मेरे साथ खुशियाँ मनाओ क्योंकि मुझे अपनी खोयी हुई भेड़ मिल गयी है।’+ 7 मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी तरह एक पापी के पश्चाताप करने पर स्वर्ग में इतनी ज़्यादा खुशियाँ मनायी जाएँगी,+ जितनी कि ऐसे 99 नेक लोगों के लिए नहीं मनायी जातीं, जिन्हें पश्चाताप की ज़रूरत नहीं।
8 या ऐसी कौन-सी औरत होगी जिसके पास दस चाँदी के सिक्के* हों और अगर उनमें से एक खो जाए, तो वह दीया जलाकर पूरे घर में झाड़ू न लगाए और उस सिक्के* को बड़े जतन से तब तक न ढूँढ़े, जब तक कि वह मिल नहीं जाता? 9 और जब वह सिक्का उसे मिल जाता है, तो अपनी सहेलियों और पड़ोसिनों को बुलाती है और कहती है, ‘मेरे साथ खुशियाँ मनाओ क्योंकि मुझे अपना खोया हुआ सिक्का* मिल गया है।’ 10 मैं तुमसे कहता हूँ कि पश्चाताप करनेवाले एक पापी के लिए भी, इसी तरह परमेश्वर के स्वर्गदूत बहुत खुशियाँ मनाते हैं।”+
11 फिर उसने कहा, “एक आदमी के दो बेटे थे। 12 छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘पिता, जायदाद में से मेरा हिस्सा मुझे दे दे।’ तब पिता ने अपनी जायदाद उन दोनों में बाँट दी। 13 कुछ दिन बाद, छोटे बेटे ने अपना सबकुछ बटोरा और सफर करके किसी दूर देश चला गया। वहाँ उसने ऐयाशी में अपनी सारी संपत्ति उड़ा दी। 14 जब उसके सारे पैसे खत्म हो गए, तो उस पूरे देश में एक भारी अकाल पड़ा और वह कंगाल हो गया। 15 यह नौबत आ गयी कि वह उस देश के एक आदमी के यहाँ काम करने गया, जिसने उसे अपनी ज़मीन में सूअर+ चराने भेजा। 16 वह उन फलियों को खाने के लिए भी तरसने लगा जिन्हें सूअर खाते थे और उसे कोई कुछ नहीं देता था।
17 जब उसकी अक्ल ठिकाने आयी, तो उसने कहा, ‘मेरे पिता के यहाँ दिहाड़ी पर काम करनेवाले कितने ही मज़दूर हैं जिनके पास रोटी की कोई कमी नहीं। और एक मैं हूँ जो यहाँ भूख से मर रहा हूँ! 18 अब मैं सफर करके वापस अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा, “पिता, मैंने स्वर्ग के और तेरे खिलाफ पाप किया है। 19 मैं इस लायक नहीं कि तेरा बेटा कहलाऊँ। मुझे अपने यहाँ मज़दूर की तरह रख ले।”’ 20 इसलिए वह उठा और अपने पिता के पास गया। अभी वह काफी दूर ही था कि पिता की नज़र उस पर पड़ी और वह तड़प उठा। वह दौड़ा-दौड़ा गया और बेटे को गले लगा लिया और बहुत प्यार से उसे चूमने लगा। 21 तब बेटे ने उससे कहा, ‘पिता, मैंने स्वर्ग के और तेरे खिलाफ पाप किया है।+ मैं इस लायक नहीं कि तेरा बेटा कहलाऊँ।’ 22 मगर पिता ने अपने दासों से कहा, ‘जल्दी जाओ! और सबसे बढ़िया चोगा लाकर इसे पहनाओ। इसके हाथ में अँगूठी और पाँवों में जूतियाँ पहनाओ। 23 एक मोटा-ताज़ा बछड़ा लाकर काटो कि हम खाएँ और खुशियाँ मनाएँ। 24 क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था, अब ज़िंदा हो गया है।+ यह खो गया था और अब मिल गया है।’ फिर वे सब मिलकर खुशियाँ मनाने लगे।
25 उस आदमी का बड़ा बेटा खेत में था। खेत से लौटते वक्त जब वह घर के पास पहुँचा, तो उसे गाने-बजाने और नाचने की आवाज़ सुनायी दी। 26 उसने एक सेवक को अपने पास बुलाकर पूछा कि यह सब क्या हो रहा है। 27 सेवक ने कहा, ‘तेरा भाई आया है और तेरे पिता ने एक मोटा-ताज़ा बछड़ा कटवाया है क्योंकि उसका बेटा उसे सही-सलामत* वापस मिल गया है।’ 28 मगर बड़े बेटे को बहुत गुस्सा आया और उसने घर के अंदर जाने से इनकार कर दिया। तब उसका पिता बाहर आया और उसे मनाने लगा। 29 उसने अपने पिता से कहा, ‘मैं बरसों से तेरी गुलामी कर रहा हूँ और मैंने एक बार भी तेरा हुक्म नहीं टाला। फिर भी तूने मुझे कभी बकरी का एक बच्चा तक नहीं दिया कि मैं अपने दोस्तों के साथ मौज कर सकूँ। 30 लेकिन जैसे ही तेरा यह बेटा वापस आया, जिसने तेरी जायदाद वेश्याओं पर उड़ा दी है,* तूने इसके लिए मोटा-ताज़ा बछड़ा कटवाया।’ 31 तब पिता ने उससे कहा, ‘मेरे बेटे, तू तो हमेशा से मेरे साथ है और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही तो है। 32 लेकिन आज का यह दिन खुशियों का दिन है, हमें मगन होना चाहिए क्योंकि तेरा यह भाई जो मर गया था, अब ज़िंदा हो गया है। हमने इसे खो दिया था, लेकिन अब पा लिया है।’”
16 तब यीशु ने अपने चेलों से यह भी कहा, “एक अमीर आदमी के यहाँ एक प्रबंधक* था, जिसकी शिकायत की गयी कि वह उसके माल की बरबादी कर रहा है। 2 इसलिए उसने प्रबंधक को बुलाया और उससे कहा, ‘मैं तेरे बारे में यह क्या सुन रहा हूँ? अपने काम का हिसाब दे क्योंकि अब से तू मेरे घर के काम की देखरेख नहीं करेगा।’ 3 तब प्रबंधक मन में कहने लगा, ‘अब मैं क्या करूँ? मालिक मुझे प्रबंधक के काम से हटा रहा है। मुझमें इतनी ताकत नहीं कि खेतों में मिट्टी खोदने का काम करूँ और भीख माँगने में मुझे शर्म आती है। 4 हाँ! मुझे समझ आ गया कि मुझे क्या करना चाहिए ताकि जब मुझे प्रबंधक के काम से हटा दिया जाए, तो लोग मुझे अपने घरों में स्वीकार करें।’ 5 उसने अपने मालिक के कर्ज़दारों को एक-एक करके बुलाया और पहलेवाले से कहा, ‘तुझे मेरे मालिक को कितना देना है?’ 6 उसने कहा, ‘2,200 लीटर* जैतून का तेल।’ प्रबंधक ने कहा, ‘यह ले अपना करारनामा जो तूने लिखा था और बैठकर फौरन 1,100 लिख दे।’ 7 इसके बाद उसने दूसरे से पूछा, ‘बता तुझे कितना देना है?’ उसने कहा, ‘170 क्विन्टल* गेहूँ।’ उसने उससे कहा, ‘यह ले अपना करारनामा जो तूने लिखा था और इस पर 136* लिख दे।’ 8 वह प्रबंधक नेक नहीं था, फिर भी मालिक ने उसकी सराहना की, क्योंकि उसने होशियारी से काम लिया था। मैं तुमसे यह इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि इस ज़माने* के लोग दूसरों के साथ व्यवहार करने में उन लोगों से ज़्यादा होशियार हैं जो रौशनी में चलते हैं।+
9 मैं तुमसे यह भी कहता हूँ, इस दुष्ट दुनिया की दौलत+ से अपने लिए दोस्त बना लो ताकि जब यह दौलत न रहे, तो ये दोस्त तुम्हें उन जगहों में ले लें जो हमेशा बनी रहेंगी।+ 10 जो इंसान थोड़े में भरोसे के लायक है, वह बहुत में भी भरोसे के लायक होता है और जो थोड़े में बेईमान है, वह बहुत में भी बेईमान होता है। 11 इसलिए अगर तुम इस दुष्ट दुनिया की दौलत के मामले में भरोसेमंद साबित नहीं होगे, तो कौन तुम्हें सच्ची दौलत सौंपेगा? 12 और अगर तुम दूसरों की संपत्ति के मामले में भरोसेमंद साबित नहीं होगे, तो कौन तुम्हें वह संपत्ति देगा जो तुम्हारे लिए रखी गयी है?+ 13 कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता। क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।”+
14 तब फरीसी जिन्हें पैसों से प्यार था, यीशु की ये सारी बातें सुनकर उसकी खिल्ली उड़ाने लगे।+ 15 इसलिए उसने उनसे कहा, “तुम इंसानों के सामने खुद को बड़ा नेक दिखाते हो,+ मगर परमेश्वर तुम्हारे दिलों को जानता है।+ क्योंकि जिस बात को इंसान बहुत बड़ा समझता है, वह परमेश्वर की नज़र में घिनौनी है।+
16 दरअसल कानून और भविष्यवक्ताओं की लिखी बातें, यूहन्ना के समय तक के लिए थीं। तब से परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनायी जा रही है और हर किस्म का इंसान उसमें दाखिल होने के लिए ज़ोर लगा रहा है।+ 17 आकाश और पृथ्वी का मिट जाना आसान है, लेकिन कानून में लिखा एक भी अक्षर या बिंदु बिना पूरा हुए नहीं मिटेगा।+
18 हर वह आदमी जो अपनी पत्नी को तलाक देता है और दूसरी से शादी करता है, वह व्यभिचार* करने का दोषी है। और जो कोई एक तलाकशुदा औरत से शादी करता है, वह भी व्यभिचार करने का दोषी है।+
19 एक अमीर आदमी था जो बैंजनी और रेशमी कपड़े पहनता था और बड़े ठाट-बाट से रहता और हर दिन ऐश करता था। 20 मगर लाज़र नाम का एक भिखारी था जिसका शरीर फोड़ों से भरा हुआ था। उसे अमीर आदमी के फाटक के पास छोड़ दिया जाता था 21 और वह उसकी मेज़ से गिरनेवाले टुकड़े खाने के लिए तरसता था। यहाँ तक कि कुत्ते आकर उसके फोड़े चाटते थे। 22 कुछ वक्त बाद वह भिखारी मर गया और स्वर्गदूत उसे अब्राहम के पास* ले गए।
फिर वह अमीर आदमी भी मर गया और उसे गाड़ा गया। 23 वह अमीर आदमी कब्र* में तड़प रहा था। वहाँ से उसने नज़रें उठाकर देखा, तो उसे बहुत दूर अब्राहम दिखायी दिया, उसके पास* लाज़र भी था। 24 तब अमीर आदमी ने पुकारा, ‘पिता अब्राहम, मुझ पर दया कर। लाज़र को मेरे पास भेज कि वह अपनी उँगली का छोर पानी में डुबाकर मेरी जीभ को ठंडा करे क्योंकि मैं यहाँ इस धधकती आग में तड़प रहा हूँ।’ 25 मगर अब्राहम ने कहा, ‘बच्चे, याद कर कि तूने अपनी सारी ज़िंदगी बढ़िया-बढ़िया चीज़ों का खूब मज़ा लिया, मगर लाज़र ने दुख-ही-दुख झेला। लेकिन अब वह यहाँ आराम से है जबकि तू तड़प रहा है। 26 इसके अलावा हमारे और तुम लोगों के बीच एक बड़ी खाई बनायी गयी है ताकि कोई चाहते हुए भी यहाँ से तुम्हारे पास न जा सके और न कोई वहाँ से इस पार हमारे यहाँ आ सके।’ 27 तब उसने कहा, ‘अगर ऐसी बात है, तो हे पिता मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज दे 28 ताकि वह जाकर मेरे पाँचों भाइयों को अच्छी तरह समझाए और उन्हें यहाँ आकर तड़पना न पड़े।’ 29 मगर अब्राहम ने कहा, ‘उनके पास मूसा और भविष्यवक्ताओं के वचन हैं, वे उनकी सुनें।’+ 30 तब उसने कहा, ‘नहीं पिता अब्राहम। अगर मरे हुओं में से कोई उनके पास जाएगा, तो वे ज़रूर पश्चाताप करेंगे।’ 31 लेकिन अब्राहम ने उससे कहा, ‘अगर वे मूसा और भविष्यवक्ताओं की नहीं सुनते,+ तो चाहे मरे हुओं में से कोई ज़िंदा हो जाए, तो भी वे उसका यकीन नहीं करेंगे।’”
17 फिर यीशु ने अपने चेलों से कहा, “ऐसा हो नहीं सकता कि विश्वास की राह में बाधाएँ* न आएँ। मगर उस इंसान के साथ बहुत बुरा होगा जो विश्वास की राह में बाधा बनता है। 2 ऐसे इंसान के लिए यही अच्छा होगा कि उसके गले में चक्की का पाट लटकाया जाए और उसे समुंदर में फेंक दिया जाए, बजाय इसके कि वह इन छोटों में से किसी एक को भी ठोकर खिलाए।*+ 3 खुद पर ध्यान दे। अगर तेरा भाई पाप करता है तो उसे डाँट+ और अगर वह पश्चाताप करता है तो उसे माफ कर।+ 4 चाहे वह तेरे खिलाफ दिन में सात बार पाप करे और सातों बार तेरे पास आकर कहे, ‘मैं पछता रहा हूँ,’ तो तुझे उसे माफ करना है।”+
5 फिर प्रेषितों ने प्रभु से कहा, “हमारा विश्वास बढ़ा।”+ 6 तब प्रभु ने कहा, “अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्वास है, तो तुम शहतूत के इस पेड़ से कहोगे, ‘यहाँ से उखड़कर समुंदर में जा लग!’ और वह तुम्हारा कहना मानेगा।+
7 तुममें ऐसा कौन है जिसका दास हल जोतकर या भेड़-बकरियाँ चराकर खेतों से वापस आए, तो वह दास से कहे, ‘फौरन यहाँ आ और खाने के लिए बैठ’? 8 इसके बजाय क्या वह उससे यह न कहेगा, ‘मेरे शाम के खाने के लिए कुछ तैयार कर और जब तक मैं खा-पी न लूँ तब तक कमर में अंगोछा बाँधकर मेरी सेवा कर, फिर बाद में तू खा-पी लेना’? 9 क्या वह उस दास का एहसान मानेगा कि उसने वे सारे काम किए जो उसे दिए गए थे? 10 इसी तरह जब तुम वे सारे काम कर लो जो तुम्हें दिए गए हैं, तो कहना, ‘हम निकम्मे दास हैं। हमने बस वही किया है, जो हमें करना चाहिए था।’”+
11 यीशु यरूशलेम जाते वक्त सामरिया और गलील के बीच से होते हुए गया। 12 जब वह एक गाँव में जा रहा था, तो दस कोढ़ियों ने उसे देखा मगर वे दूर खड़े रहे।+ 13 उन्होंने ज़ोर से पुकारा, “हे गुरु यीशु, हम पर दया कर!” 14 उन्हें देखकर यीशु ने कहा, “जाओ और खुद को याजकों को दिखाओ।”+ जब वे जा रहे थे, तो रास्ते में ही वे शुद्ध हो गए।+ 15 उनमें से एक ने देखा कि वह ठीक हो गया है और वह ज़ोर-ज़ोर से परमेश्वर का गुणगान करता हुआ वापस आया। 16 वह यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरा और उसका धन्यवाद करने लगा। और देखो! वह एक सामरी+ था। 17 उसे देखकर यीशु ने कहा, “क्या दसों के दस शुद्ध नहीं हुए थे? तो फिर बाकी नौ कहाँ हैं? 18 दूसरी जाति के इस आदमी को छोड़, क्या एक भी आदमी परमेश्वर की महिमा करने वापस नहीं आया?” 19 उसने उस आदमी से कहा, “उठ और अपने रास्ते चला जा। तेरे विश्वास ने तुझे ठीक किया है।”+
20 जब फरीसियों ने उससे पूछा कि परमेश्वर का राज कब आ रहा है,+ तो उसने जवाब दिया, “परमेश्वर का राज ऐसे अनोखे तरीके से नहीं आ रहा कि उसे साफ-साफ देखा जा सके 21 और लोग कहें, ‘वह यहाँ है!’ या ‘वहाँ है!’ इसलिए कि देखो! परमेश्वर का राज तुम्हारे ही बीच है।”+
22 फिर उसने चेलों से कहा, “वह वक्त आएगा जब तुम इंसान के बेटे के दिनों में से एक दिन देखना चाहोगे, मगर न देख सकोगे। 23 लोग तुमसे कहेंगे, ‘देखो वह वहाँ है!’ या ‘यहाँ है!’ पर तुम बाहर मत जाना, न उनके पीछे भागना।+ 24 इसलिए कि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से चमकती हुई दूसरे छोर तक दिखायी देती है, वैसे ही इंसान का बेटा+ अपने दिन में होगा।+ 25 मगर इससे पहले उसे बहुत-सी दुख-तकलीफें सहनी होंगी और यह पीढ़ी उसे ठुकरा देगी।+ 26 और ठीक जैसा नूह के दिनों में हुआ था,+ वैसा ही इंसान के बेटे के दिनों में होगा।+ 27 जिस दिन तक नूह जहाज़ के अंदर+ नहीं गया और जलप्रलय ने आकर सबको नाश+ नहीं कर दिया, उस दिन तक लोग खा-पी रहे थे और शादी-ब्याह कर रहे थे। 28 इसी तरह लूत के दिनों में+ भी लोग खा-पी रहे थे, खरीद रहे थे, बेच रहे थे, बीज बो रहे थे और घर बना रहे थे। 29 लेकिन जिस दिन लूत सदोम से बाहर आया, उस दिन आकाश से आग और गंधक बरसी और सब नाश हो गए।+ 30 जिस दिन इंसान का बेटा प्रकट होगा,+ उस दिन भी ऐसा ही होगा।
31 उस दिन जो इंसान घर की छत पर हो मगर उसका सामान घर के अंदर हो, वह उन्हें लेने के लिए नीचे न उतरे। उसी तरह जो आदमी खेत में हो, वह भी उन चीज़ों को लेने वापस न लौटे जो पीछे छूट गयी हैं। 32 लूत की पत्नी+ को याद रखो। 33 जो कोई अपनी जान बचाने की कोशिश करता है वह उसे खोएगा, लेकिन जो कोई उसे गँवाता है वह उसे बचाएगा।+ 34 मैं तुमसे कहता हूँ, उस रात दो आदमी एक पलंग पर होंगे। एक को साथ ले लिया जाएगा, मगर दूसरे को छोड़ दिया जाएगा।+ 35 दो औरतें एक ही चक्की से पीस रही होंगी। एक को साथ ले लिया जाएगा और दूसरी को छोड़ दिया जाएगा।” 36* — 37 तब उन्होंने उससे पूछा, “कहाँ प्रभु?” उसने कहा, “जहाँ लाश है, वहीं उकाब जमा होंगे।”+
18 फिर यीशु ने उन्हें यह समझाने के लिए एक मिसाल दी कि उन्हें क्यों हमेशा प्रार्थना करते रहना चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।+ 2 उसने कहा, “किसी शहर में एक न्यायी था जो न तो परमेश्वर से डरता था, न ही किसी इंसान की इज़्ज़त करता था। 3 उस शहर में एक विधवा थी जो बार-बार उसके पास जाकर कहती रही, ‘किसी भी हाल में मुझे इंसाफ दिला! मुझसे मुकदमा लड़नेवाले से मुझे बचा।’ 4 बहुत समय तक तो वह नहीं माना, मगर बाद में वह अपने दिल में कहने लगा, ‘न तो मैं परमेश्वर से डरता हूँ, न ही किसी इंसान की इज़्ज़त करता हूँ, 5 फिर भी मैं इस विधवा को ज़रूर इंसाफ दिलाऊँगा क्योंकि इसने मुझे परेशान कर रखा है। अगर मैंने इसके लिए कुछ नहीं किया, तो यह बार-बार आकर मेरा जीना दुश्वार कर देगी।’”+ 6 फिर प्रभु ने कहा, “ध्यान दो कि उस न्यायी ने बुरा इंसान होने के बावजूद क्या कहा! 7 तो क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं की खातिर इंसाफ नहीं करेगा, जो दिन-रात उससे फरियाद करते हैं?+ भले ही परमेश्वर उनके मामले में सब्र से काम लेता है, मगर वह उनकी ज़रूर सुनेगा।+ 8 मैं तुमसे कहता हूँ, वह जल्द-से-जल्द उन्हें इंसाफ दिलाएगा। फिर भी जब इंसान का बेटा आएगा, तब क्या वह धरती पर ऐसा विश्वास* पाएगा?”
9 फिर उसने उन लोगों को एक मिसाल दी जिन्हें अपनी नेकी पर बड़ा भरोसा था और जो दूसरों को कुछ नहीं समझते थे। उसने कहा, 10 “दो आदमी मंदिर में प्रार्थना करने गए। एक फरीसी था और दूसरा कर-वसूलनेवाला। 11 फरीसी खड़ा होकर मन-ही-मन प्रार्थना करने लगा, ‘हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि मैं दूसरों की तरह नहीं हूँ जो लुटेरे, बेईमान और व्यभिचारी* हैं, न ही इस कर-वसूलनेवाले जैसा हूँ। 12 मैं हफ्ते में दो बार उपवास करता हूँ और मुझे जो कुछ मिलता है, उसका दसवाँ हिस्सा देता हूँ।’+ 13 मगर कर-वसूलनेवाला दूर खड़ा था। उसे आकाश की तरफ नज़र उठाने की हिम्मत भी नहीं हुई, बल्कि वह छाती पीटते हुए कहता रहा, ‘हे परमेश्वर, मुझ पापी पर दया* कर।’+ 14 मैं तुमसे कहता हूँ, यह आदमी उस फरीसी से ज़्यादा नेक साबित होकर अपने घर गया।+ क्योंकि हर कोई जो खुद को ऊँचा करता है उसे नीचा किया जाएगा, मगर जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।”+
15 फिर लोग अपने नन्हे-मुन्नों को भी उसके पास लाने लगे कि वह उन पर हाथ रखे, मगर यह देखकर चेले उन्हें डाँटने लगे।+ 16 मगर यीशु ने नन्हे-मुन्नों को अपने पास बुलाया और कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि परमेश्वर का राज ऐसों ही का है।+ 17 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई परमेश्वर के राज को एक छोटे बच्चे की तरह स्वीकार नहीं करता, वह उसमें हरगिज़ नहीं जा पाएगा।”+
18 किसी अधिकारी ने उससे पूछा, “अच्छे गुरु, हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”+ 19 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझे अच्छा क्यों कहता है? कोई अच्छा नहीं है, सिवा परमेश्वर के।+ 20 तू तो आज्ञाएँ जानता है, ‘व्यभिचार* न करना,+ खून न करना,+ चोरी न करना,+ झूठी गवाही न देना,+ अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना।’”+ 21 तब उसने कहा, “ये सारी बातें तो मैं बचपन से मान रहा हूँ।” 22 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “तुझमें अब भी एक चीज़ की कमी है: जा और जो कुछ तेरे पास है सब बेचकर कंगालों में बाँट दे और तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा और आकर मेरा चेला बन जा।”+ 23 जब उसने यह सुना, तो वह बहुत दुखी हुआ क्योंकि वह बहुत अमीर था।+
24 यीशु ने उसकी तरफ देखकर कहा, “पैसेवालों के लिए परमेश्वर के राज में दाखिल होना कितना मुश्किल होगा!+ 25 दरअसल, परमेश्वर के राज में एक अमीर आदमी के दाखिल होने से, एक ऊँट का सिलाई की सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है।”+ 26 जिन्होंने यह सुना, उन्होंने कहा, “तो भला कौन उद्धार पा सकता है?”+ 27 उसने कहा, “जो काम इंसानों के लिए नामुमकिन हैं, वे परमेश्वर के लिए मुमकिन हैं।”+ 28 मगर पतरस ने कहा, “देख! हम तो अपना सबकुछ छोड़कर तेरे पीछे चल रहे हैं।”+ 29 उसने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, ऐसा कोई नहीं जिसने परमेश्वर के राज की खातिर घर या पत्नी या भाइयों या माँ-बाप या बच्चों को छोड़ा हो+ 30 और इस ज़माने में इन सबका कई गुना न पाए और आनेवाले ज़माने* में हमेशा की ज़िंदगी न पाए।”+
31 फिर यीशु उन बारहों को अलग ले गया और उनसे कहा, “देखो! हम यरूशलेम जा रहे हैं। और इंसान के बेटे के बारे में भविष्यवक्ताओं ने जो-जो लिखा, वह सब पूरा होगा।+ 32 जैसे, उसे गैर-यहूदियों के हवाले किया जाएगा,+ उसका मज़ाक उड़ाया जाएगा,+ उसके साथ बुरा सलूक किया जाएगा और उस पर थूका जाएगा।+ 33 वे उसे कोड़े लगाएँगे और मार डालेंगे+ मगर तीसरे दिन वह ज़िंदा हो जाएगा।”+ 34 लेकिन चेले इनमें से किसी भी बात के मायने नहीं समझ पाए, क्योंकि ये बातें उनसे छिपाकर रखी गयी थीं और वे इन बातों को नहीं समझ पाए।
35 जब वह यरीहो पहुँचनेवाला था, तो सड़क के किनारे एक अंधा बैठकर भीख माँग रहा था।+ 36 जब उस अंधे ने वहाँ से गुज़रती भीड़ का शोर सुना, तो पूछने लगा कि यह क्या हो रहा है। 37 लोगों ने उसे बताया, “यीशु नासरी यहाँ से जा रहा है!” 38 यह सुनकर उसने ज़ोर से पुकारा, “हे यीशु, दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर!” 39 जो आगे-आगे जा रहे थे वे उसे डाँटने लगे कि चुप हो जा! मगर वह और ज़ोर से चिल्लाता रहा, “हे दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर!” 40 तब यीशु रुक गया और उसने हुक्म दिया कि उस आदमी को उसके पास लाया जाए। जब वह आया तो यीशु ने पूछा, 41 “तू क्या चाहता है, मैं तेरे लिए क्या करूँ?” उसने कहा, “प्रभु, मेरी आँखों की रौशनी लौट आए।” 42 इसलिए यीशु ने उससे कहा, “तेरी आँखें ठीक हो जाएँ। तेरे विश्वास ने तुझे ठीक किया है।”+ 43 उसी पल उसकी आँखों की रौशनी लौट आयी और वह परमेश्वर की महिमा करता हुआ उसके पीछे चल दिया।+ देखनेवाले सब लोगों ने भी परमेश्वर की तारीफ की।+
19 यीशु यरीहो पहुँचा और उस शहर से होकर जा रहा था। 2 वहाँ जक्कई नाम का एक आदमी था। वह कर-वसूलनेवालों का एक प्रधान था और बहुत अमीर था। 3 वह देखना चाहता था कि यह यीशु कौन है, मगर भीड़ की वजह से देख नहीं पा रहा था क्योंकि वह ठिंगना था। 4 इसलिए वह भागकर आगे गया और उसे देखने के लिए रास्ते में एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया क्योंकि यीशु वहीं से गुज़रनेवाला था। 5 जब यीशु वहाँ पहुँचा, तो उसने ऊपर देखकर कहा, “जक्कई, जल्दी से नीचे उतर आ क्योंकि आज मुझे तेरे घर ठहरना है।” 6 तब वह जल्दी-जल्दी नीचे उतरा और उसने खुशी से अपने घर में यीशु का स्वागत किया। 7 जब उन्होंने यह देखा, तो सब बड़बड़ाने लगे, “यह एक ऐसे आदमी के घर ठहरा है जो पापी है।”+ 8 मगर जक्कई खड़ा हुआ और उसने प्रभु से कहा, “प्रभु देख! मैं अपनी आधी संपत्ति गरीबों को देता हूँ और मैंने जिस-जिस को लूटा* है, उसे मैं चार गुना वापस लौटा देता हूँ।”+ 9 तब यीशु ने उससे कहा, “आज परमेश्वर ने इस आदमी और इसके घराने का उद्धार किया है क्योंकि यह भी अब्राहम का एक वंशज है। 10 इसलिए कि जो खो गए हैं, इंसान का बेटा उन्हें ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है।”+
11 जब चेले ये बातें सुन रहे थे, तो उसने एक मिसाल भी दी क्योंकि वह यरूशलेम के करीब था और चेले यह सोच रहे थे कि परमेश्वर का राज बस कुछ ही पल में ज़ाहिर होनेवाला है।+ 12 उसने कहा, “एक आदमी था जो शाही खानदान से था। वह दूर देश के लिए रवाना हुआ+ ताकि राज-अधिकार पाकर लौट आए। 13 उसने अपने दस दासों को बुलाकर उन्हें दस मीना चाँदी के सिक्के* दिए और उनसे कहा, ‘जब तक मैं वापस न आऊँ, तब तक इनसे कारोबार करो।’+ 14 मगर उसके देश के लोग उससे नफरत करते थे और उन्होंने उसके पीछे-पीछे यह कहने के लिए राजदूतों का एक दल भेजा, ‘हम नहीं चाहते कि यह आदमी हमारा राजा बने।’
15 राज-अधिकार हासिल करने* के बाद वह आदमी लौट आया। उसने उन दासों को बुलाया जिन्हें वह पैसे* देकर गया था। वह देखना चाहता था कि उन्होंने उन पैसों से कारोबार करके और कितना कमाया है।+ 16 तब पहला दास उसके सामने आया और कहने लगा, ‘मालिक, तूने मुझे एक मीना चाँदी के सिक्के दिए थे, उनसे मैंने दस मीना चाँदी के सिक्के कमाए हैं।’+ 17 तब मालिक ने उससे कहा, ‘शाबाश, अच्छे दास! तू एक छोटी-सी बात में भी भरोसेमंद साबित हुआ है, मैं तुझे दस शहरों का अधिकारी बनाता हूँ।’+ 18 अब दूसरा आकर कहने लगा, ‘मालिक, तूने मुझे एक मीना चाँदी के सिक्के दिए थे, उनसे मैंने पाँच मीना चाँदी के सिक्के कमाए हैं।’+ 19 मालिक ने उससे कहा, ‘मैं तुझे भी पाँच शहरों का अधिकारी बनाता हूँ।’ 20 मगर एक और आया और कहने लगा, ‘मालिक, यह रही तेरी चाँदी। मैंने इसे कपड़े में बाँधकर छिपा दिया था। 21 मैं तुझसे डरता था क्योंकि तू एक कठोर आदमी है। तू वे पैसे निकालता है जो तूने जमा नहीं किए और वह फसल काटता है जो तूने नहीं बोयी।’+ 22 मालिक ने उससे कहा, ‘अरे दुष्ट दास, तूने जो कहा है उसी से मैं तुझे फैसला सुनाता हूँ। तू जानता था न कि मैं एक कठोर आदमी हूँ? मैं वे पैसे निकालता हूँ जो मैंने जमा नहीं किए और वह फसल काटता हूँ, जो मैंने नहीं बोयी।+ 23 तो फिर, तूने मेरे पैसे* साहूकारों के पास जमा क्यों नहीं कर दिए? तब लौटने पर मुझे अपने पैसों के साथ-साथ ब्याज भी मिलता।’
24 तब जो आस-पास खड़े थे उनसे मालिक ने कहा, ‘यह चाँदी इससे ले लो और उसे दे दो जिसके पास दस मीना चाँदी है।’+ 25 मगर उन्होंने कहा, ‘मालिक, उसके पास तो पहले से दस मीना चाँदी है!’. . . 26 ‘मैं तुमसे कहता हूँ, जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा। मगर जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है।+ 27 मेरे जो दुश्मन नहीं चाहते थे कि मैं उनका राजा बनूँ, उन्हें यहाँ लाओ और मेरे सामने मार डालो।’”
28 ये बातें कहने के बाद यीशु ने अपना सफर जारी रखा और यरूशलेम की तरफ गया। 29 जब वह जैतून नाम पहाड़+ पर बैतफगे और बैतनियाह के पास पहुँचा, तो उसने दो चेलों को यह कहकर भेजा,+ 30 “जो गाँव तुम्हें नज़र आ रहा है उसमें जाओ। वहाँ जाने पर तुम्हें एक गधी का बच्चा बँधा हुआ मिलेगा, जिस पर आज तक कोई आदमी नहीं बैठा। उसे खोलकर ले आओ। 31 लेकिन अगर कोई तुमसे पूछे, ‘तुम इसे क्यों खोल रहे हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इसकी ज़रूरत है।’” 32 तब जिन्हें भेजा गया था, वे चले गए और जैसा उसने कहा था ठीक वैसा ही पाया।+ 33 लेकिन जब वे गधी के बच्चे को खोल रहे थे, तब उसके मालिकों ने उनसे कहा, “तुम गधी के बच्चे को क्यों खोल रहे हो?” 34 उन्होंने कहा, “प्रभु को इसकी ज़रूरत है।” 35 और वे उसे यीशु के पास ले गए और उन्होंने उस गधी के बच्चे के ऊपर अपने ओढ़ने बिछाए और यीशु को उस पर बिठाया।+
36 जैसे-जैसे वह आगे जा रहा था, लोग सड़क पर उसके आगे-आगे अपने कपड़े बिछाने लगे।+ 37 जैसे ही वह उस सड़क के पास पहुँचा जो जैतून पहाड़ से नीचे जाती है, उसके चेलों की सारी भीड़ खुशियाँ मनाने लगी और ऊँची आवाज़ में परमेश्वर की बड़ाई करने लगी क्योंकि उन्होंने बहुत-से शक्तिशाली काम देखे थे। 38 वे कहने लगे, “धन्य है वह जो राजा बनकर यहोवा* के नाम से आ रहा है! स्वर्ग में शांति हो और ऊँचे आसमानों में परमेश्वर की महिमा हो!”+ 39 लेकिन भीड़ में से कुछ फरीसी उससे कहने लगे, “गुरु, अपने चेलों को डाँट।”+ 40 मगर उसने कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ, अगर ये खामोश रहे तो पत्थर बोल उठेंगे।”
41 जब वह शहर के करीब पहुँचा, तो वह शहर को देखकर रोने लगा+ 42 और कहने लगा, “काश आज के दिन तूने, हाँ तूने, उन बातों को समझा होता जिनसे शांति मिलती है—लेकिन अब ये तेरी आँखों से छिपा दी गयी हैं।+ 43 क्योंकि वे दिन आएँगे जब तेरे दुश्मन तेरे चारों तरफ नुकीले लट्ठों से घेराबंदी कर लेंगे और तुझे हर तरफ से घेर लेंगे।*+ 44 वे तुझे और तेरे बच्चों को ज़मीन पर पटक-पटककर मार डालेंगे।+ वे तेरे यहाँ एक पत्थर पर दूसरा पत्थर भी नहीं छोड़ेंगे+ क्योंकि तूने उस वक्त को नहीं पहचाना जब तुझे जाँचा जा रहा था।”
45 फिर यीशु मंदिर में गया और जो लोग वहाँ बिक्री कर रहे थे उन्हें बाहर खदेड़ने लगा।+ 46 उसने उनसे कहा, “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा,’+ मगर तुम लोगों ने इसे लुटेरों का अड्डा* बना दिया है।”+
47 वह हर दिन मंदिर में सिखाता रहा। मगर प्रधान याजक, शास्त्री और जनता के खास-खास लोग उसे मार डालने की ताक में थे।+ 48 मगर उन्हें ऐसा करने का सही मौका नहीं मिल रहा था, क्योंकि सब लोग उसकी बातें सुनने के लिए हमेशा उसे घेरे रहते थे।+
20 उन दिनों जब वह लोगों को मंदिर में सिखा रहा था और खुशखबरी सुना रहा था, तो एक बार प्रधान याजक और शास्त्री, मुखियाओं के साथ उसके पास आए। 2 वे उससे पूछने लगे, “बता, तू ये सब किस अधिकार से करता है? किसने तुझे यह अधिकार दिया है?”+ 3 उसने कहा, “मैं भी तुमसे एक सवाल पूछता हूँ। तुम मुझे उसका जवाब दो। 4 जो बपतिस्मा यूहन्ना ने दिया, वह स्वर्ग की तरफ से था या इंसानों की तरफ से?” 5 तब वे एक-दूसरे से कहने लगे, “अगर हम कहें, ‘स्वर्ग की तरफ से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर क्यों तुमने उसका यकीन नहीं किया?’ 6 लेकिन अगर हम कहें, ‘इंसानों की तरफ से,’ तो सब लोग हमें पत्थरों से मार डालेंगे इसलिए कि उन्हें पूरा यकीन है कि यूहन्ना एक भविष्यवक्ता था।”+ 7 इसलिए उन्होंने कहा कि हम नहीं जानते कि किसकी तरफ से था। 8 तब यीशु ने उनसे कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।”
9 फिर वह लोगों को यह मिसाल देने लगा: “एक आदमी ने अंगूरों का बाग लगाया+ और उसे बागबानों को ठेके पर देकर लंबे समय के लिए परदेस चला गया।+ 10 कटाई का मौसम आने पर उसने एक दास को बागबानों के पास भेजा ताकि वे अंगूरों की फसल में से उसका हिस्सा उसे दें। मगर बागबानों ने उस दास को पीटा और खाली हाथ भेज दिया।+ 11 फिर उसने एक और दास को उनके पास भेजा। उन्होंने उसे भी पीटा, बेइज़्ज़त किया और खाली हाथ भेज दिया। 12 फिर भी उसने तीसरे को भेजा। उन्होंने उसे भी घायल करके भगा दिया। 13 तब बाग के मालिक ने कहा, ‘अब मैं क्या करूँ? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजता हूँ,+ हो सकता है वे उसकी इज़्ज़त करें।’ 14 जैसे ही बागबानों ने उसके बेटे को देखा, वे आपस में कहने लगे, ‘यह तो वारिस है। चलो इसे मार डालें, तब इसकी विरासत हमारी हो जाएगी।’ 15 उन्होंने उसे बाग के बाहर ले जाकर मार डाला।+ अब बाग का मालिक उनके साथ क्या करेगा? 16 वह आकर उन बागबानों को मार डालेगा और अंगूरों का बाग दूसरों को ठेके पर दे देगा।”
यह सुनकर उन्होंने कहा, “ऐसा कभी न हो!” 17 मगर उसने सीधे उनकी तरफ देखकर कहा, “फिर यह जो बात लिखी है इसका क्या मतलब है, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है’?+ 18 जो कोई उस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा।+ और जिस किसी पर यह पत्थर गिरेगा, उसे यह चूर-चूर कर देगा।”
19 तब शास्त्रियों और प्रधान याजकों ने उसे उसी वक्त पकड़ना चाहा, क्योंकि वे समझ गए थे कि उसने यह मिसाल उन्हीं को ध्यान में रखकर दी है। मगर वे लोगों से डरते थे।+ 20 वे उस पर कड़ी नज़र रखे हुए थे। उन्होंने चुपके से कुछ लोगों को पैसों से खरीद लिया कि वे उसके सामने नेक होने का ढोंग करें और उसकी बातों में उसे पकड़ सकें+ ताकि उसे सरकार और राज्यपाल* के हवाले कर दें। 21 उन्होंने उससे कहा, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सही-सही बोलता और सिखाता है और कोई भेदभाव नहीं करता, बल्कि तू सच्चाई के मुताबिक परमेश्वर की राह सिखाता है। 22 हमें बता कि सम्राट* को कर देना सही है या नहीं?” 23 मगर उसने उनकी चालाकी भाँप ली और उनसे कहा, 24 “मुझे एक दीनार* दिखाओ। इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” उन्होंने कहा, “सम्राट की।” 25 उसने कहा, “तो फिर जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ,+ मगर जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को।”+ 26 वे लोगों के सामने उसकी बातों में उसे पकड़ नहीं सके, उलटा उसके जवाब से हैरान रह गए और एक शब्द भी नहीं बोल पाए।
27 मगर सदूकी, जो कहते हैं कि मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने की शिक्षा सच नहीं है,+ उनमें से कुछ लोग उसके पास आए और उससे सवाल करने लगे,+ 28 “गुरु, मूसा ने हमारे लिए लिखा है, ‘अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए और अपनी पत्नी छोड़ जाए, तो उसके भाई को चाहिए कि वह अपने मरे हुए भाई की पत्नी से शादी कर ले और अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे।’+ 29 सात भाई थे। पहले ने शादी की मगर बेऔलाद मर गया। 30 फिर दूसरे ने उसी औरत से शादी की मगर वह भी बेऔलाद मर गया। 31 फिर तीसरे ने उससे शादी की। इस तरह सातों भाइयों ने एक-एक करके उस औरत से शादी की, लेकिन बेऔलाद मर गए। 32 आखिर में वह औरत भी मर गयी। 33 जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे, तब वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।”
34 यीशु ने उनसे कहा, “इस ज़माने* में आदमी शादी करते हैं और औरतों की भी शादी करायी जाती है। 35 मगर जो उस ज़माने में जीवन पाने और मरे हुओं में से ज़िंदा किए जाने के लायक समझे जाएँगे, उनमें न आदमी शादी करेंगे न औरतों की शादी करवायी जाएगी।+ 36 दरअसल वे फिर कभी नहीं मर सकते क्योंकि वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे और मरे हुओं में से ज़िंदा होने की वजह से परमेश्वर के बच्चे कहलाएँगे। 37 मगर यह बात कि मरे हुओं को ज़िंदा किया जाता है, मूसा ने भी झाड़ी के किस्से में ज़ाहिर की है, जहाँ वह यहोवा* को ‘अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर’ कहता है।+ 38 वह मरे हुओं का नहीं, बल्कि जीवितों का परमेश्वर है इसलिए कि वे सब उसकी नज़र में ज़िंदा हैं।”+ 39 यह सुनकर शास्त्रियों में से कुछ ने कहा, “गुरु, तूने क्या खूब कहा!” 40 इसके बाद उन्होंने उससे कोई और सवाल करने की हिम्मत नहीं की।
41 फिर उसने भी उनसे सवाल किया, “लोग क्यों कहते हैं कि मसीह, दाविद का सिर्फ एक वंशज है?+ 42 दाविद खुद भजनों की किताब में कहता है, ‘यहोवा* ने मेरे प्रभु से कहा, “तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ, 43 जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ।”’+ 44 जब दाविद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका वंशज कैसे हुआ?”
45 जब सब लोग यीशु की सुन रहे थे, तो उसने चेलों से कहा, 46 “शास्त्रियों से खबरदार रहो, जिन्हें लंबे-लंबे चोगे पहनकर घूमना और बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना अच्छा लगता है और सभा-घरों में सबसे आगे की* जगहों पर बैठना और शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना पसंद है,+ 47 लेकिन वे विधवाओं के घर* हड़प जाते हैं और दिखावे के लिए लंबी-लंबी प्रार्थनाएँ करते हैं। इन्हें दूसरों के मुकाबले और भी कड़ी सज़ा मिलेगी।”
21 फिर उसने नज़र उठाकर देखा कि अमीर लोग दान-पात्रों में अपना-अपना दान डाल रहे हैं।+ 2 तब उसने एक ज़रूरतमंद विधवा को दो पैसे* डालते देखा जिनकी कीमत न के बराबर थी+ 3 और कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, इस गरीब विधवा ने उन सबसे ज़्यादा डाला है।+ 4 इसलिए कि उन सबने अपनी बहुतायत में से डाला, मगर इस औरत ने अपनी तंगी में से, जो कुछ उसके जीने का सहारा था वह सबकुछ डाल दिया।”+
5 बाद में जब उनमें से कुछ मंदिर के बारे में बात कर रहे थे कि वह कैसे शानदार पत्थरों और समर्पित की हुई चीज़ों से सजाया गया है,+ 6 तो उसने कहा, “ऐसे दिन आएँगे जब यह सब जो तुम देख रहे हो, इनका एक भी पत्थर दूसरे पत्थर के ऊपर नहीं बचेगा जो ढाया न जाए।”+ 7 तब चेलों ने उससे पूछा, “गुरु, ये सब बातें असल में कब होंगी और उस वक्त की क्या निशानी होगी जब इनके होने का समय पास आ रहा होगा?”+ 8 उसने कहा, “खबरदार रहो कि तुम गुमराह न हो जाओ।+ इसलिए कि बहुत-से लोग आएँगे और मेरा नाम लेकर दावा करेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और ‘तय किया हुआ वक्त पास आ गया है।’ तुम उनके पीछे मत जाना।+ 9 इसके अलावा, जब तुम युद्धों और हंगामों* की खबरें सुनो, तो घबरा न जाना। इसलिए कि पहले इन सबका होना ज़रूरी है मगर अंत फौरन नहीं आएगा।”+
10 फिर उसने उनसे कहा, “एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर+ और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा।+ 11 बड़े-बड़े भूकंप आएँगे और एक-के-बाद-एक कई जगह अकाल पड़ेंगे और महामारियाँ फैलेंगी।+ खौफनाक नज़ारे दिखायी देंगे और आकाश में बड़ी-बड़ी निशानियाँ दिखायी देंगी।
12 मगर इन सब बातों के होने से पहले लोग तुम्हें पकड़वाएँगे, तुम पर ज़ुल्म ढाएँगे,+ तुम्हें सभा-घरों के हवाले कर देंगे और जेलों में डलवा देंगे। मेरे नाम की खातिर तुम्हें राजाओं और राज्यपालों के सामने पेश किया जाएगा।+ 13 इससे तुम्हें गवाही देने का मौका मिलेगा। 14 इसलिए अपने दिल में ठान लो कि तुम पहले से तैयारी नहीं करोगे कि अपनी सफाई में क्या-क्या कहोगे।+ 15 इसलिए कि मैं तुम्हें ऐसे शब्द और ऐसी बुद्धि दूँगा कि सब विरोधी साथ मिलकर भी तुम्हारा मुकाबला नहीं कर पाएँगे, न ही जवाब में कुछ कह पाएँगे।+ 16 यहाँ तक कि तुम्हारे माता-पिता, भाई, रिश्तेदार और दोस्त तक तुम्हें पकड़वा देंगे* और तुममें से कुछ को मार डाला जाएगा।+ 17 मेरे नाम की वजह से सब लोग तुमसे नफरत करेंगे।+ 18 मगर तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।+ 19 तुम धीरज धरने की वजह से अपनी जान बचा पाओगे।+
20 जब तुम यरूशलेम को फौजों से घिरा हुआ देखो,+ तो जान लेना कि उसके उजड़ने का समय पास आ गया है।+ 21 तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें+ और जो यरूशलेम के अंदर हों, वे बाहर निकल जाएँ और जो देहातों में हों वे यरूशलेम में न जाएँ। 22 क्योंकि वे दिन, बदला चुकाने* के दिन होंगे ताकि जितनी बातें लिखी हैं वे सब पूरी हों। 23 जो गर्भवती होंगी और जो बच्चे को दूध पिलाती होंगी, उनके लिए वे दिन क्या ही भयानक होंगे!+ इसलिए कि देश पर बड़ी मुसीबत आ पड़ेगी और इन लोगों पर क्रोध भड़क उठेगा। 24 वे तलवार से मार डाले जाएँगे और उन्हें बंदी बनाकर सब राष्ट्रों में ले जाया जाएगा।+ और जब तक राष्ट्रों* के लिए तय किया गया वक्त पूरा न हो जाए, तब तक यरूशलेम राष्ट्रों* के पैरों तले रौंदा जाएगा।+
25 यही नहीं, सूरज, चाँद और तारों में निशानियाँ दिखायी देंगी+ और धरती के राष्ट्र बड़ी मुसीबत में होंगे क्योंकि समुंदर के गरजने और उसकी बड़ी हलचल की वजह से उन्हें बचने का कोई रास्ता नहीं सूझेगा। 26 धरती पर और क्या-क्या होगा, इस चिंता और डर के मारे लोगों के जी में जी न रहेगा, इसलिए कि आकाश की शक्तियाँ हिलायी जाएँगी। 27 इसके बाद वे इंसान के बेटे+ को एक बादल में शक्ति और बड़ी महिमा के साथ आता देखेंगे।+ 28 लेकिन जब ये बातें होने लगें, तो तुम सिर उठाकर सीधे खड़े हो जाना, क्योंकि तुम्हारे छुटकारे का वक्त पास आ रहा होगा।”
29 यीशु ने उन्हें एक मिसाल दी: “अंजीर के पेड़ और दूसरे सभी पेड़ों पर गौर करो।+ 30 जब उनमें नयी पत्तियाँ निकल आती हैं, तो यह देखकर तुम जान लेते हो कि गरमियों का मौसम पास है। 31 उसी तरह, जब तुम ये बातें होती देखो, तो जान लेना कि परमेश्वर का राज पास है। 32 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक सारी बातें पूरी न हो जाएँ, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ नहीं मिटेगी।+ 33 आकाश और पृथ्वी मिट जाएँगे, मगर मेरे शब्द कभी नहीं मिटेंगे।+
34 मगर तुम खुद पर ध्यान दो कि हद-से-ज़्यादा खाने और पीने+ से और ज़िंदगी की चिंताओं+ के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ और वह दिन तुम पर पलक झपकते ही अचानक 35 फंदे की तरह न आ जाए।+ इसलिए कि वह दिन धरती पर रहनेवाले सभी लोगों पर आ जाएगा। 36 इसलिए आँखों में नींद न आने दो+ और हर घड़ी प्रार्थना और मिन्नत करते रहो+ ताकि जिन बातों का होना तय है, उन सबसे तुम बच सको और इंसान के बेटे के सामने खड़े रह सको।”+
37 इस तरह, यीशु दिन के वक्त मंदिर में सिखाता था, मगर रात के वक्त शहर से बाहर चला जाता और जैतून नाम पहाड़ पर ठहरा करता था। 38 सब लोग मंदिर में उसकी सुनने के लिए सुबह जल्दी उसके पास आ जाते थे।
22 बिन-खमीर की रोटी का त्योहार जो फसह कहलाता है,+ पास आ रहा था।+ 2 और प्रधान याजक और शास्त्री, यीशु को अपने रास्ते से हटाना चाहते थे+ मगर उन्हें लोगों का डर था, इसलिए वे कोई बढ़िया तरकीब ढूँढ़ रहे थे।+ 3 फिर शैतान, यहूदा में समा गया जो इस्करियोती कहलाता था और जिसकी गिनती उन बारहों में होती थी।+ 4 यहूदा निकलकर प्रधान याजकों और मंदिर के सरदारों के पास गया और उनसे इस बारे में बात की कि वह यीशु को किस तरह पकड़वाए।+ 5 तब वे बहुत खुश हुए और उन्होंने कहा कि वे उसे चाँदी के सिक्के देंगे।+ 6 यहूदा राज़ी हो गया और यीशु को पकड़वाने के लिए ऐसा मौका ढूँढ़ने लगा जब भीड़ उसके आस-पास न हो।
7 अब बिन-खमीर की रोटी के त्योहार का दिन आया, जब फसह का जानवर चढ़ाया जाना था।+ 8 यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा, “जाओ और हमारे लिए फसह का खाना खाने की तैयारी करो।”+ 9 उन्होंने पूछा, “तू कहाँ चाहता है कि हम इसकी तैयारी करें?” 10 उसने कहा, “देखो! जब तुम शहर में जाओगे तो तुम्हें एक आदमी पानी का घड़ा उठाए हुए मिलेगा। उसके पीछे-पीछे उस घर में जाना जिसमें वह जाएगा।+ 11 तुम उस घर के मालिक से कहना, ‘गुरु ने पूछा है, “मेहमानों का वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने चेलों के साथ फसह का खाना खाऊँ?”’ 12 फिर वह तुम्हें ऊपर का एक बड़ा कमरा दिखाएगा जो सजा हुआ होगा। वहाँ इसकी तैयारी करना।” 13 तब वे निकल पड़े और जैसा उसने बताया था ठीक वैसा ही पाया और उन्होंने फसह की तैयारी की।
14 जब वह वक्त आया, तो वह अपने प्रेषितों के साथ खाना खाने बैठा।*+ 15 यीशु ने उनसे कहा, “मेरी बड़ी तमन्ना थी कि मैं दुख झेलने से पहले तुम्हारे साथ फसह का खाना खाऊँ। 16 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि जब तक इससे जुड़ी हर बात परमेश्वर के राज में पूरी न हो जाए, तब तक मैं इसे फिर नहीं खाऊँगा।” 17 फिर एक प्याला लेकर उसने प्रार्थना में धन्यवाद दिया और कहा, “इसे लो और एक-एक करके इसमें से पीओ। 18 इसलिए कि मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं यह दाख-मदिरा तब तक दोबारा नहीं पीऊँगा जब तक परमेश्वर का राज नहीं आता।”
19 फिर उसने एक रोटी ली+ और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उसे तोड़ा और यह कहते हुए उन्हें दिया, “यह मेरे शरीर की निशानी है,+ जो तुम्हारी खातिर दिया जाना है।+ मेरी याद में ऐसा ही किया करना।”+ 20 जब वे शाम का खाना खा चुके तो उसने प्याला लेकर भी ऐसा ही किया और कहा, “यह प्याला उस नए करार की निशानी है+ जिसे मेरे खून से पक्का किया जाएगा,+ उस खून से जो तुम्हारी खातिर बहाया जाना है।+
21 मगर देखो! मुझसे गद्दारी करनेवाले का हाथ मेरे साथ मेज़ पर है।+ 22 इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसे उसके लिए तय किया गया है।+ लेकिन उस आदमी का बहुत बुरा होगा जो इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात करके उसे पकड़वा देगा!”+ 23 इसलिए वे आपस में बात करने लगे कि आखिर उनमें से वह कौन है जो ऐसा करनेवाला है।+
24 मगर फिर उनके बीच इस बात पर गरमा-गरम बहस छिड़ गयी कि उनमें सबसे बड़ा किसे समझा जाए।+ 25 मगर उसने उनसे कहा, “दुनिया के राजा लोगों पर हुक्म चलाते हैं और जो अधिकार रखते हैं, वे दानी कहलाते हैं।+ 26 मगर तुम्हें ऐसा नहीं होना है।+ इसके बजाय, जो तुममें सबसे बड़ा है वह सबसे छोटा बने+ और जो अगुवाई करता है, वह सेवक जैसा बने। 27 इसलिए कि कौन ज़्यादा बड़ा है, जो खाने के लिए मेज़ से टेक लगाए बैठा है या जो सेवा कर रहा है? क्या वही नहीं जो मेज़ से टेक लगाए बैठा है? मगर मैं तुम्हारे बीच सेवक जैसा हूँ।+
28 मगर तुम वे हो जो मेरी परीक्षाओं+ के दौरान मेरा साथ देते रहे।+ 29 ठीक जैसे मेरे पिता ने मेरे साथ एक करार किया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे साथ राज का एक करार करता हूँ+ 30 ताकि तुम मेरे राज में मेरी मेज़ पर खाओ-पीओ+ और राजगद्दियों पर बैठकर+ इसराएल के 12 गोत्रों का न्याय करो।+
31 शमौन, शमौन, देख! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने की माँग की है।+ 32 मगर मैंने तेरे लिए मिन्नत की है कि तू अपना विश्वास खो न दे।+ जब तू पश्चाताप करके लौट आए, तो अपने भाइयों को मज़बूत करना।”+ 33 तब पतरस ने उससे कहा, “प्रभु, मैं तो तेरे साथ जेल जाने और मरने के लिए भी तैयार हूँ।”+ 34 मगर उसने कहा, “पतरस, मैं तुझसे कहता हूँ, आज जब तक तू मुझे जानने से तीन बार इनकार न करेगा, मुर्गा बाँग न देगा।”+
35 उसने चेलों से यह भी कहा, “जब मैंने तुम्हें पैसे की थैली, खाने की पोटली और जूतियों के बिना भेजा था,+ तो क्या तुम्हें किसी चीज़ की कमी हुई थी?” उन्होंने कहा, “नहीं!” 36 फिर उसने उनसे कहा, “मगर अब जिसके पास पैसे की थैली हो वह उसे ले ले और खाने की पोटली भी रख ले। जिसके पास कोई तलवार नहीं, वह अपना चोगा बेचकर एक खरीद ले। 37 मैं तुमसे कहता हूँ, यह ज़रूरी है कि यह बात मुझ पर पूरी हो जो मेरे बारे में लिखी गयी थी: ‘वह अपराधियों में गिना गया।’+ अब यह बात मुझ पर पूरी हो रही है।”+ 38 तब उन्होंने कहा, “प्रभु, देख! यहाँ दो तलवारें हैं।” उसने कहा, “ये काफी हैं।”
39 फिर वह बाहर निकलकर अपने दस्तूर के मुताबिक जैतून पहाड़ पर गया। चेले भी उसके साथ गए।+ 40 वहाँ पहुँचकर उसने उनसे कहा, “प्रार्थना में लगे रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।”+ 41 वह उनसे कुछ दूर* आगे गया और घुटने टेककर यह प्रार्थना करने लगा, 42 “हे पिता, अगर तेरी मरज़ी हो, तो यह प्याला मेरे सामने से हटा दे। मगर मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”+ 43 तब स्वर्ग से एक दूत उसके सामने प्रकट हुआ और उसकी हिम्मत बँधायी।+ 44 उसका मन दुख और चिंता से ऐसा छलनी हो गया कि वह और ज़्यादा गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करता रहा+ और उसका पसीना खून की बूँदें बनकर ज़मीन पर गिर रहा था। 45 जब वह प्रार्थना करके उठा और अपने चेलों के पास गया, तो उसने देखा कि वे सो रहे थे क्योंकि वे दुख के मारे पस्त हो चुके थे।+ 46 उसने उनसे कहा, “तुम सो क्यों रहे हो? उठो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।”+
47 जब वह बोल ही रहा था, तो देखो! एक भीड़ वहाँ आयी जिसे यहूदा नाम का वह आदमी ला रहा था, जो उन बारहों में से एक था। वह यीशु को चूमने के लिए उसके पास आया।+ 48 मगर यीशु ने उससे कहा, “यहूदा, क्या तू इंसान के बेटे को चूमकर उसे पकड़वा रहा है?” 49 जो उसके साथ थे जब उन्होंने देखा कि क्या होनेवाला है, तो उन्होंने कहा, “प्रभु, क्या हम उन पर तलवार चलाएँ?” 50 यहाँ तक कि उनमें से एक ने महायाजक के दास पर तलवार चलाकर उसका दायाँ कान उड़ा दिया।+ 51 मगर यीशु ने कहा, “बहुत हो चुका।” और यीशु ने उस दास का कान छूकर उसे ठीक किया। 52 तब यीशु ने प्रधान याजकों और मंदिर के सरदारों और मुखियाओं से जो उसे पकड़ने के लिए वहाँ आए थे, कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे पकड़ने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ?+ 53 जब मैं हर दिन तुम्हारे बीच मंदिर में होता था,+ तब तुमने मुझे हाथ नहीं लगाया।+ मगर यह वक्त तुम्हारा है और अभी अंधकार का राज चल रहा है।”+
54 तब उन्होंने उसे गिरफ्तार कर लिया+ और महायाजक के घर ले गए। मगर पतरस कुछ दूरी पर रहते हुए उनका पीछा करता रहा।+ 55 जब वे आँगन के बीच आग जलाकर एक-साथ बैठ गए, तो पतरस भी उनके बीच बैठा हुआ था।+ 56 मगर एक दासी ने उसे आग के सामने बैठे देखा। उसने उसे गौर से देखा और कहा, “यह आदमी भी उसके साथ था।” 57 मगर उसने यह कहते हुए इनकार कर दिया, “मैं उसे नहीं जानता।” 58 थोड़ी ही देर बाद किसी और ने उसे देखकर कहा, “तू भी उनमें से एक है।” मगर पतरस ने कहा, “नहीं भई, मैं नहीं हूँ।”+ 59 फिर करीब एक घंटे बाद, एक और आदमी ज़ोर देकर यह कहने लगा, “बेशक यह आदमी भी उसके साथ था क्योंकि यह एक गलीली है!” 60 मगर पतरस ने कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रहा है।” वह बोल ही रहा था कि उसी घड़ी एक मुर्गे ने बाँग दी 61 और प्रभु ने मुड़कर सीधे पतरस को देखा और पतरस को प्रभु की यह बात याद आयी, “आज मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ 62 और वह बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा।
63 जिन आदमियों ने यीशु को हिरासत में लिया था, वे उसकी खिल्ली उड़ाने+ और उसे मारने लगे।+ 64 वे उसका मुँह ढककर उससे पूछने लगे, “भविष्यवाणी कर! तुझे किसने मारा?” 65 वे उसके बारे में बहुत-सी निंदा की बातें कहने लगे।
66 जब दिन निकल आया तो लोगों के मुखियाओं की सभा इकट्ठा हुई, जिसमें प्रधान याजक और शास्त्री भी थे।+ वे उसे अपनी महासभा के भवन में ले गए और उससे पूछने लगे, 67 “अगर तू मसीह है, तो हमें बता दे।”+ मगर उसने कहा, “अगर मैं तुम्हें बताऊँ तो भी तुम हरगिज़ यकीन नहीं करोगे। 68 और अगर मैं तुमसे सवाल करूँ, तो तुम मुझे जवाब नहीं दोगे। 69 मगर अब से इंसान का बेटा+ परमेश्वर के शक्तिशाली दाएँ हाथ बैठा हुआ होगा।”+ 70 यह सुनकर उन सबने कहा, “तो क्या तू परमेश्वर का बेटा है?” उसने कहा, “तुम खुद कह रहे हो कि मैं हूँ।” 71 उन्होंने कहा, “अब हमें और गवाही की क्या ज़रूरत है? हमने खुद इसके मुँह से सुन लिया है।”+
23 तब वे सब-के-सब उठे और उसे पीलातुस के पास ले गए।+ 2 वहाँ पहुँचकर वे उस पर इलज़ाम लगाने लगे,+ “यह आदमी हमारे राष्ट्र को बगावत के लिए भड़काता है, सम्राट* को कर देने से मना करता है+ और कहता है कि मैं मसीह हूँ, मैं राजा हूँ।”+ 3 तब पीलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” जवाब में यीशु ने कहा, “तू खुद कह रहा है।”+ 4 तब पीलातुस ने प्रधान याजकों और सारी भीड़ से कहा, “मुझे इस आदमी में कोई दोष नज़र नहीं आता।”+ 5 मगर वे और भी ज़ोर देकर कहने लगे, “यह सारे यहूदिया में, गलील से लेकर इस जगह तक लोगों को सिखा-सिखाकर भड़का रहा है।” 6 यह सुनकर पीलातुस ने पूछा कि क्या यह आदमी गलीली है 7 और यह पक्का कर लेने के बाद कि यीशु उस इलाके से है जिस पर हेरोदेस का अधिकार है,+ उसने उसे हेरोदेस के पास भेज दिया। हेरोदेस उन दिनों यरूशलेम में था।
8 यीशु को देखकर हेरोदेस बहुत खुश हुआ इसलिए कि वह एक अरसे से उसे देखना चाहता था। हेरोदेस ने उसके बारे में बहुत कुछ सुना था+ और उम्मीद कर रहा था कि यीशु उसके सामने कोई चमत्कार दिखाएगा। 9 इसलिए हेरोदेस उससे बहुत देर तक सवाल करता रहा, मगर यीशु ने कोई जवाब नहीं दिया।+ 10 लेकिन प्रधान याजक और शास्त्री तैश में आ गए और खड़े हो-होकर उस पर इलज़ाम लगाने लगे। 11 तब हेरोदेस ने अपने सैनिकों के साथ मिलकर उसकी बेइज़्ज़ती की+ और उसे एक शानदार कपड़ा पहनाकर उसकी खिल्ली उड़ायी+ और उसे वापस पीलातुस के पास भेज दिया। 12 उसी दिन हेरोदेस और पीलातुस के बीच दोस्ती हो गयी, जबकि अब तक उनमें दुश्मनी थी।
13 फिर पीलातुस ने प्रधान याजकों, अधिकारियों और लोगों को इकट्ठा किया 14 और उनसे कहा, “तुम इस आदमी को मेरे पास यह कहकर लाए कि यह लोगों को बगावत करने के लिए भड़का रहा है। देखो! मैंने तुम्हारे सामने इससे सवाल-जवाब किए, मगर तुम इस पर जो इलज़ाम लगा रहे हो उसका मुझे कोई सबूत नहीं मिला।+ 15 यहाँ तक कि हेरोदेस को भी कोई सबूत नहीं मिला, इसलिए उसने इसे वापस हमारे पास भेज दिया है। इसने ऐसा कोई काम नहीं किया कि इसे मौत की सज़ा दी जाए। 16 इसलिए मैं इसे कोड़े लगवाकर*+ छोड़ देता हूँ।” 17* — 18 मगर सारी भीड़ चिल्ला उठी, “इस आदमी को मार डाल* और हमारे लिए बरअब्बा को रिहा कर दे!”+ 19 (बरअब्बा को शहर में बगावत और कत्ल करने की वजह से जेल में डाला गया था।) 20 एक बार फिर पीलातुस ने भीड़ से बात की क्योंकि वह यीशु को रिहा करना चाहता था।+ 21 तब वे चीख-चीखकर कहने लगे, “इसे काठ पर लटका दे! काठ पर लटका दे!”+ 22 उसने तीसरी बार उनसे कहा, “क्यों, इस आदमी ने ऐसा क्या बुरा किया है? इसने ऐसा कोई काम नहीं किया कि इसे मौत की सज़ा दी जाए। इसलिए मैं इसे कोड़े लगवाकर* छोड़ देता हूँ।” 23 मगर वे अपनी बात पर अड़े रहे और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर कहने लगे कि उसे मार डाला जाए।* उनका चिल्लाना बढ़ता ही गया।+ 24 इसलिए पीलातुस ने यह फैसला सुनाया कि उनकी माँग पूरी की जाए। 25 उसने उस आदमी को तो रिहा कर दिया, जो बगावत और कत्ल के इलज़ाम में जेल में था और जिसकी लोग माँग कर रहे थे, जबकि उसने यीशु को उनके हवाले कर दिया ताकि वे उसके साथ जो चाहे करें।
26 जब वे उसे ले जा रहे थे, तो उन्होंने शमौन नाम के एक आदमी को पकड़ा जो कुरेने का रहनेवाला था और देहात से आ रहा था। उन्होंने यातना का काठ* उस पर रख दिया कि वह उसे उठाकर यीशु के पीछे-पीछे चले।+ 27 उसके पीछे लोगों की बड़ी भीड़ चल रही थी जिसमें औरतें भी थीं, जो दुख के मारे छाती पीट रही थीं और उसके लिए बिलख-बिलखकर रो रही थीं। 28 यीशु ने पलटकर उन औरतों को देखा और कहा, “यरूशलेम की बेटियो, मेरे लिए मत रोओ। इसके बजाय, अपने और अपने बच्चों के लिए रोओ।+ 29 क्योंकि देखो! वे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, ‘सुखी हैं वे औरतें जो बाँझ हैं और जिन्होंने किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया और किसी को दूध नहीं पिलाया!’+ 30 तब वे पहाड़ों से कहने लगेंगे, ‘हम पर गिर पड़ो!’ और पहाड़ियों से कहेंगे, ‘हमें ढक लो!’+ 31 जब पेड़ हरा है तब वे ऐसा कर रहे हैं, तो उस वक्त क्या करेंगे जब यह सूख जाएगा?”
32 उसके साथ दो और आदमियों को, जो अपराधी थे मार डालने के लिए ले जाया जा रहा था।+ 33 जब वे खोपड़ी कहलानेवाली जगह पर पहुँचे,+ तो वहाँ उन्होंने यीशु को दो अपराधियों के साथ काठ पर ठोंक दिया। एक अपराधी उसके दायीं तरफ था और दूसरा बायीं तरफ।+ 34 मगर यीशु कह रहा था, “पिता, इन्हें माफ कर दे क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।” उन्होंने उसके कपड़े आपस में बाँटने के लिए चिट्ठियाँ डालीं।+ 35 और लोग वहाँ खड़े देख रहे थे। मगर उनके धर्म-अधिकारी* यह कहकर उसकी खिल्ली उड़ाते रहे, “इसने दूसरों को तो बचाया। और अगर यह परमेश्वर का भेजा हुआ मसीह और उसका चुना हुआ है, तो अब खुद को बचाए।”+ 36 यहाँ तक कि सैनिकों ने भी उसकी खिल्ली उड़ायी और उसे खट्टी दाख-मदिरा देते हुए+ कहा, 37 “अगर तू यहूदियों का राजा है, तो खुद को बचा ले।” 38 और उसके ऊपर यह लिखकर लगा दिया गया, “यह यहूदियों का राजा है।”+
39 तब उसके साथ लटकाए गए एक अपराधी ने उसे ताना मारा,+ “तू तो मसीह है न? तो फिर खुद को बचा और हमें भी।” 40 तब दूसरे अपराधी ने उसे डाँटा, “क्या तुझे परमेश्वर का ज़रा भी डर नहीं, जबकि तू भी वही सज़ा पा रहा है? 41 हमें जो सज़ा मिली वह सही है, क्योंकि हमने जो काम किए हैं उन्हीं का अंजाम भुगत रहे हैं। मगर इस आदमी ने तो कुछ बुरा नहीं किया।” 42 फिर उसने कहा, “यीशु, जब तू अपने राज में+ आए तो मुझे याद करना।” 43 तब यीशु ने उससे कहा, “मैं आज तुझसे सच कहता हूँ, तू मेरे साथ फिरदौस* में होगा।”+
44 यह दिन का करीब छठा घंटा* था, फिर भी पूरे देश में अंधकार छा गया और नौवें घंटे* तक छाया रहा+ 45 क्योंकि सूरज ने रौशनी देना बंद कर दिया। तब मंदिर का परदा+ बीच से फटकर दो टुकड़े हो गया।+ 46 यीशु ज़ोर से चिल्लाया और उसने कहा, “पिता, मैं अपनी जान तेरे हवाले करता हूँ।”+ यह कहने के बाद उसने दम तोड़ दिया।*+ 47 जो कुछ हुआ था उसे देखकर सेना-अफसर ने परमेश्वर की बड़ाई की और कहा, “यह वाकई एक नेक इंसान था।”+ 48 वहाँ जमा भीड़ ने जब यह सब देखा, तो वे छाती पीटते हुए घर लौट गए। 49 इतना ही नहीं, उसकी जान-पहचानवाले सब लोग कुछ दूरी पर खड़े थे। और जो औरतें गलील से उसके साथ-साथ आयी थीं, वे भी खड़ी होकर यह सब देख रही थीं।+
50 वहाँ यूसुफ नाम का एक आदमी था, जो धर्म-सभा* का सदस्य और एक अच्छा और नेक इंसान था।+ 51 (उसने धर्म-अधिकारियों की साज़िश और उनके काम में उनका साथ नहीं दिया था।) वह यहूदिया के लोगों के एक शहर अरिमतियाह का रहनेवाला था और परमेश्वर के राज के आने का इंतज़ार कर रहा था। 52 वह पीलातुस के सामने गया और उसने यीशु की लाश माँगी। 53 उसने उसकी लाश नीचे उतारी+ और उसे बढ़िया मलमल में लपेटकर चट्टान में खोदी गयी कब्र* में रखा,+ जिसमें अब तक कोई लाश नहीं रखी गयी थी। 54 यह तैयारी का दिन था+ और सब्त+ शुरू होनेवाला था। 55 मगर जो औरतें यीशु के साथ गलील से आयी थीं, वे भी पीछे-पीछे गयीं और उन्होंने कब्र* को अच्छी तरह देखा और यह भी देखा कि उसकी लाश कैसे रखी गयी थी।+ 56 फिर वे लौट गयीं ताकि मसाले और खुशबूदार तेल तैयार करें। मगर हाँ, जैसी आज्ञा थी, उन्होंने सब्त के दिन आराम किया।+
24 लेकिन हफ्ते के पहले दिन, वे औरतें तैयार किए हुए खुशबूदार मसाले लेकर सुबह-सुबह कब्र* पर आयीं।+ 2 मगर उन्होंने देखा कि कब्र* के मुँह पर रखा गया पत्थर दूर लुढ़का हुआ है।+ 3 अंदर जाने पर उन्हें वहाँ प्रभु यीशु की लाश नहीं मिली।+ 4 जब वे इस बात को लेकर बड़ी उलझन में थीं, तभी अचानक दो आदमी उनके पास आ खड़े हुए जिनके कपड़े तेज़ चमक रहे थे। 5 वे औरतें डर गयीं और अपना सिर नीचे झुकाए रहीं। तब उन आदमियों ने कहा, “जो ज़िंदा है, उसे तुम मरे हुओं के बीच क्यों ढूँढ़ रही हो?+ 6 वह यहाँ नहीं है बल्कि उसे ज़िंदा कर दिया गया है। याद करो, जब वह गलील में ही था तो उसने तुमसे क्या कहा था 7 कि ज़रूरी है कि इंसान का बेटा पापियों के हवाले किया जाए और काठ पर लटकाकर मार डाला जाए, मगर फिर तीसरे दिन ज़िंदा हो जाए।”+ 8 तब उन्हें उसकी ये बातें याद आयीं+ 9 और वे कब्र* से लौट आयीं और इन सारी बातों की खबर उन ग्यारहों को और बाकी सभी को दी।+ 10 ये औरतें थीं, मरियम मगदलीनी, योअन्ना और याकूब की माँ मरियम। उनके साथ दूसरी औरतें भी थीं जिन्होंने प्रेषितों को ये बातें बतायीं। 11 मगर प्रेषितों और दूसरे चेलों को ये बातें एकदम बकवास लगीं और उन्होंने इन औरतों का यकीन नहीं किया।
12 लेकिन पतरस उठा और कब्र* की तरफ दौड़ा। उसने झुककर कब्र के अंदर देखा तो वहाँ सिर्फ मलमल का कपड़ा पड़ा था। इसलिए जो कुछ हुआ था, उस पर वह मन-ही-मन ताज्जुब करता हुआ चला गया।
13 मगर देखो! उसी दिन दो चेले इम्माऊस नाम के एक गाँव जा रहे थे, जो यरूशलेम से करीब 11 किलोमीटर* दूर है। 14 जो-जो हुआ था, उसके बारे में वे एक-दूसरे से बात कर रहे थे।
15 जब वे इस बारे में एक-दूसरे से चर्चा कर रहे थे, तो खुद यीशु उनके पास आया और उनके साथ-साथ चलने लगा 16 मगर वे उसे पहचान नहीं पाए।+ 17 उसने उनसे पूछा, “तुम चलते-चलते एक-दूसरे से किस बारे में बहस कर रहे हो?” तब वे रुक गए, उनके चेहरे पर उदासी छायी हुई थी। 18 क्लियुपास नाम के चेले ने उससे कहा, “क्या तू यरूशलेम में अकेला रहनेवाला कोई परदेसी है और नहीं जानता* कि इस शहर में इन दिनों क्या-क्या हुआ है?” 19 तब उसने उनसे पूछा, “क्या हुआ है?” उन्होंने कहा, “क्या तूने नहीं सुना कि यीशु नासरी+ के साथ क्या-क्या हुआ? उसने ऐसे-ऐसे शक्तिशाली काम किए और शिक्षाएँ दीं जिससे परमेश्वर और इंसानों के सामने साबित हुआ कि वह एक भविष्यवक्ता है।+ 20 और हमारे प्रधान याजकों और धर्म-अधिकारियों ने उसे मौत की सज़ा देने के लिए सौंप दिया+ और उसे काठ पर ठोंक दिया गया। 21 मगर हम तो यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि यह वही है जो इसराएल को छुटकारा दिलाएगा।+ और हाँ, इन सब घटनाओं को हुए आज तीसरा दिन हो चुका है। 22 और-तो-और हमारे बीच कुछ औरतों ने भी हमें हैरत में डाल दिया है क्योंकि जब वे सुबह-सुबह कब्र* पर गयीं,+ 23 तो उन्हें उसकी लाश नहीं मिली। वे आकर कहने लगीं कि उन्होंने एक अनोखी घटना देखी, उन्हें स्वर्गदूत दिखायी दिए जो कह रहे थे कि वह ज़िंदा है! 24 फिर हममें से कुछ उसकी कब्र* पर गए+ और जैसा उन औरतों ने बताया था, वैसा ही पाया मगर उसे नहीं देखा।”
25 तब उसने उनसे कहा, “अरे नासमझ लोगो, तुम्हें भविष्यवक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करना इतना मुश्किल क्यों लग रहा है! 26 क्या मसीह के लिए यह ज़रूरी नहीं था कि वह ये सारे दुख झेले+ और फिर महिमा पाए?”+ 27 उसने मूसा की किताबों से लेकर सारे भविष्यवक्ताओं की किताबों तक,+ यानी पूरे शास्त्र में उसके बारे में जितनी भी बातें लिखी थीं, उन सबका मतलब उन्हें खोल-खोलकर समझाया।
28 आखिरकार वे उस गाँव के नज़दीक आ पहुँचे जहाँ वे जा रहे थे और उसने ऐसे दिखाया जैसे उसे आगे जाना हो। 29 मगर वे उससे बार-बार कहने लगे, “हमारे साथ रुक जा क्योंकि दिन ढल चुका है और अँधेरा होनेवाला है।” तब वह उनके साथ ठहरने के लिए घर में गया। 30 जब वह उनके साथ खाने पर बैठा,* तो उसने रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उसे तोड़ा और उन्हें देने लगा।+ 31 तब उनकी आँखें खुल गयीं और वे उसे पहचान गए। मगर वह उनके सामने से गायब हो गया।+ 32 उन्होंने एक-दूसरे से कहा, “जब वह सड़क पर हमसे बात कर रहा था और हमें शास्त्र का मतलब खोल-खोलकर* समझा रहा था, तो क्या हमारे दिल की धड़कनें तेज़ नहीं हो गयी थीं?” 33 तब उसी घड़ी वे उठे और यरूशलेम लौट आए और उन्होंने उन ग्यारहों को दूसरे चेलों के साथ इकट्ठा पाया, 34 जो कह रहे थे, “यह बात सच है कि प्रभु ज़िंदा हो गया है। वह शमौन को दिखायी दिया है!”+ 35 फिर इन लोगों ने भी वह सारी घटनाएँ बतायीं जो सड़क पर हुई थीं और यह भी कि कैसे उन्होंने उसे रोटी तोड़ते देखकर पहचान लिया।+
36 वे इस बारे में बात कर ही रहे थे कि तभी यीशु खुद उनके बीच आ खड़ा हुआ और उनसे कहा, “तुम्हें शांति मिले।”+ 37 मगर वे बहुत डर गए और दहशत में थे और उन्होंने सोचा कि यह ज़रूर कोई स्वर्गदूत है। 38 तब उसने उनसे कहा, “तुम क्यों परेशान हो रहे हो और क्यों अपने दिलों में शक कर रहे हो? 39 मेरे हाथ और मेरे पैर देखो कि यह मैं ही हूँ। मुझे छूओ और देखो क्योंकि स्वर्गदूत का हाड़-माँस नहीं होता, जैसा कि तुम मेरा देख रहे हो।” 40 यह कहते हुए उसने उन्हें अपने हाथ और पैर दिखाए। 41 मगर वे अभी-भी मारे खुशी और हैरत के यकीन नहीं कर रहे थे। तब उसने उनसे कहा, “क्या तुम्हारे पास खाने के लिए कुछ है?” 42 उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया 43 और उसने लेकर उन सबके सामने खाया।
44 तब उसने कहा, “याद है, ये सारी बातें मैंने तुम्हें उस वक्त बतायी थीं जब मैं तुम्हारे साथ था।+ मैंने बताया था, किस तरह मूसा के कानून, भविष्यवक्ताओं की किताबों और भजनों में मेरे बारे में जो कुछ लिखा है, वह सब पूरा होना ज़रूरी है।”+ 45 तब उसने शास्त्र में लिखी बातों का मतलब उन्हें अच्छी तरह समझाया।*+ 46 और उनसे कहा, “लिखा है कि मसीह दुख झेलेगा और तीसरे दिन मरे हुओं में से ज़िंदा हो जाएगा।+ 47 फिर यरूशलेम से शुरू करते हुए सब राष्ट्रों में प्रचार किया जाएगा+ कि पापों की माफी पाने के लिए उसके नाम से पश्चाताप करो।+ 48 तुम्हें इन बातों की गवाही देनी है।+ 49 और देखो! मैं तुम पर वह शक्ति भेज रहा हूँ, जिसका वादा मेरे पिता ने किया है। मगर जब तक तुम ऊपर से वह शक्ति हासिल न कर लो, तब तक इसी शहर में रहना।”+
50 फिर वह उन्हें शहर से बाहर बैतनियाह तक ले आया और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी। 51 आशीष देते हुए वह उनसे जुदा हो गया और उसे स्वर्ग उठा लिया गया।+ 52 उन्होंने उसे दंडवत किया* और खुशी-खुशी यरूशलेम लौट आए।+ 53 वे हर दिन मंदिर में परमेश्वर की बड़ाई करते रहे।+
शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “पैदा होने के पहले से ही।”
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शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
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या “अनोखी घटना देखी।”
या “जन-सेवा।”
अति. क5 देखें।
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अति. क5 देखें।
या “मैंने किसी आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रखे हैं।”
या “परमेश्वर के लिए कुछ भी।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “मेरा रोम-रोम।” शब्दावली में “जीवन” देखें।
अति. क5 देखें।
शा., “बीज।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
शा., “एक उद्धार का सींग निकाला है।” शब्दावली में “सींग” देखें।
अति. क5 देखें।
यूनानी में “कैसर।”
या “पूरी दुनिया।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “जिन्हें परमेश्वर मंज़ूर करता है।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “उनकी आज्ञा मानता रहा।”
यानी हेरोदेस अन्तिपास। शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
या “उद्धार करने का परमेश्वर का ज़रिया देखेंगे।”
या “इकट्ठा।”
या “लूटो।”
या “मज़दूरी।”
शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
या “सबसे ऊँची जगह।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “चंगा।”
यानी गलील झील।
अति. क5 देखें।
या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
या “नज़राने की रोटी।”
या “लकवा मार गया था।”
या “जिसके हाथ को लकवा मार गया था।”
या “नाम काट दें।”
यानी बिना ब्याज के।
या “दूसरों को छोड़ दो।”
या “छोड़ दिया जाएगा।”
या “विद्यार्थी।”
शा., “इकलौता।”
या “मेरी वजह से ठोकर नहीं खाता।”
या “बढ़िया।”
या “बच्चों।”
या “बुद्धि की जीत होती है।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठा है।”
अति. ख14 देखें।
या “स्मारक कब्रों।”
या शायद, “लंबे अरसे से उसने उस आदमी को अपने कब्ज़े में कर रखा था।”
या “जीवन-शक्ति।” शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
शा., “चाँदी।”
यानी हेरोदेस अन्तिपास। शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
शा., “पीढ़ी।”
शा., “जब दिन पूरे होने पर थे।”
शा., “का रुख किया।”
या “नमस्कार करके गले न लगाना।”
अति. क5 देखें।
शब्दावली में “जीवन” देखें।
अति. ख14 देखें।
या “सबसे बढ़िया।”
या “पवित्र माना जाए; समझा जाए।”
शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
शैतान को दिया एक नाम।
शा., “उँगली।”
या “नापने की टोकरी।”
या “साफ-साफ देखती है।” शा., “सादी।”
शा., “आँख बुरी; दुष्ट है।”
या “मेज़ से टेक लगाकर बैठा।”
यानी रिवाज़ के मुताबिक हाथ नहीं धोए।
शा., “दया के दान।” शब्दावली देखें।
या “हर तरह की सब्ज़ी।”
या “सबसे बढ़िया।”
या “स्मारक कब्रों।”
या “जिन पर कोई निशानी नहीं होती।”
या “स्मारक कब्रें।”
शा., “परमेश्वर की बुद्धि ने।”
या “खून का हिसाब इस पीढ़ी से माँगा जाए।”
या “खून का हिसाब इस पीढ़ी से माँगा जाएगा।”
शब्दावली देखें।
शा., “दो असारियन।” अति. ख14 देखें।
या “अनदेखा करे।”
या शायद, “सभा-घरों के सामने।”
या “वे तेरी ज़िंदगी की माँग कर रहे हैं।”
शा., “एक हाथ भी।” अति. ख14 देखें।
या “लिली।”
या “तंदूर।”
या “की खोज में लगे रहो।”
शा., “दया के दान।” शब्दावली देखें।
या “मेज़ से टेक लगाएँ।”
रात के करीब 9 बजे से आधी रात तक।
आधी रात से सुबह करीब 3 बजे तक।
या “सूझ-बूझ से काम लेनेवाला।”
या “घर के कामों की देखरेख करनेवाला।”
या “घर के दासों।”
या “उसकी मरज़ी पूरी नहीं की।”
शा., “आखिरी लेप्टौन।” अति. ख14 देखें।
या “अपंग।”
शा., “सआ माप।” एक सआ 7.33 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
यानी मंदिर।
अति. क5 देखें।
शरीर में हद-से-ज़्यादा पानी की वजह से होनेवाली सूजन।
शा., “उन्हें एक मिसाल दी।”
शा., “रोटी खाएगा।”
या “कम प्यार नहीं करता।”
शब्दावली देखें।
या “नहीं त्याग देता।”
शा., “द्राख्मा।” अति. ख14 देखें।
शा., “द्राख्मा।” अति. ख14 देखें।
शा., “द्राख्मा।” अति. ख14 देखें।
या “भला-चंगा।”
शा., “जायदाद खा गया।”
या “घर के कामों की देखरेख करनेवाला।”
शा., “सौ बत।” एक बत 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “100 कोर।” एक कोर करीब 220 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “80 कोर।”
या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
शा., “अब्राहम के सीने के पास।”
या “हेडीज़।” शब्दावली देखें।
शा., “उसके सीने के पास।”
या “ठोकर खिलाने की वजह।”
यानी कुछ ऐसा करे कि दूसरा आदमी विश्वास करना छोड़ दे।
अति. क3 देखें।
या “इस तरह का विश्वास।” शा., “यह विश्वास।”
शब्दावली देखें।
या “कृपा।”
शब्दावली देखें।
या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।
या “झूठ बोलकर लूटा।”
यूनानी मीना का वज़न 340 ग्रा. था। एक मीना 100 द्राख्मा के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “हुकूमत पाने।”
शा., “चाँदी।”
शा., “मेरी चाँदी।”
अति. क5 देखें।
या “दुख देंगे।”
शा., “की गुफा।”
शा., “राज्यपाल के अधिकार।”
यूनानी में “कैसर।”
अति. ख14 देखें।
या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “सबसे बढ़िया।”
या “की जायदाद।”
शा., “दो लेप्टा।” अति. ख14 देखें।
या “खलबली; बगावत।”
या “विश्वासघात करेंगे।”
या “न्याय करने।”
या “गैर-यहूदियों।”
या “गैर-यहूदियों।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठा।”
या “पत्थर को जितनी दूर फेंका जा सकता है, करीब उतनी दूर।”
यूनानी में “कैसर।”
शा., “सज़ा देकर।”
अति. क3 देखें।
शा., “को ले जा।”
शा., “सज़ा देकर।”
या “काठ पर मार डाला जाए।”
शब्दावली देखें।
शा., “शासक।”
शब्दावली देखें।
यानी दोपहर करीब 12 बजे।
यानी दोपहर करीब 3 बजे।
या “आखिरी साँस ली।”
या “महासभा।”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
शा., “60 स्तादियौन।” एक स्तादियौन 185 मी. (606.95 फुट) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या शायद, “क्या यरूशलेम में तू ही एक मुसाफिर है जो नहीं जानता?”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
या “मेज़ से टेक लगाए था।”
या “साफ-साफ।”
या “उनके दिमाग पूरी तरह खोल दिए।”
या “झुककर प्रणाम किया।”