मत्ती के मुताबिक खुशखबरी
1 इस किताब में यीशु मसीह* के जीवन का इतिहास है। वह अब्राहम के वंश+ से और उसके वंशज दाविद के वंश+ से था। पेश है यीशु की वंशावली:
इसहाक से याकूब,+
याकूब से यहूदा+ और उसके भाई पैदा हुए,
3 यहूदा से पेरेस और जेरह पैदा हुए+ जिनकी माँ तामार थी,
पेरेस से हेसरोन पैदा हुआ,+
हेसरोन से राम,+
4 राम से अम्मीनादाब,
अम्मीनादाब से नहशोन,+
नहशोन से सलमोन,
5 सलमोन से बोअज़ पैदा हुआ, बोअज़ की माँ राहाब थी।+
बोअज़ से ओबेद पैदा हुआ, ओबेद की माँ रूत थी।+
ओबेद से यिशै पैदा हुआ,+
और दाविद से सुलैमान पैदा हुआ।+ सुलैमान उस औरत से पैदा हुआ जो पहले उरियाह की पत्नी थी।
7 सुलैमान से रहूबियाम पैदा हुआ,+
रहूबियाम से अबियाह,
अबियाह से आसा,+
यहोशापात से यहोराम+
और यहोराम से उज्जियाह पैदा हुआ।
9 उज्जियाह से योताम पैदा हुआ,+
योताम से आहाज,+
आहाज से हिजकियाह,+
मनश्शे से आमोन+
और आमोन से योशियाह पैदा हुआ।+
11 योशियाह+ से यकोन्याह+ और उसके भाई पैदा हुए। उस दौरान, यहूदियों को बंदी बनाकर बैबिलोन ले जाया गया।+
12 बैबिलोन में यकोन्याह से शालतीएल पैदा हुआ,
शालतीएल से जरुबाबेल,+
13 जरुबाबेल से अबीहूद,
अबीहूद से एल्याकीम,
एल्याकीम से अज़ोर,
14 अज़ोर से सादोक,
सादोक से अखीम
और अखीम से एलीहूद पैदा हुआ।
15 एलीहूद से एलिआज़र पैदा हुआ,
एलिआज़र से मत्तान,
मत्तान से याकूब
16 और याकूब से यूसुफ पैदा हुआ जो मरियम का पति था। मरियम ने यीशु को जन्म दिया+ जो मसीह+ कहलाता है।
17 अब्राहम से लेकर दाविद तक कुल मिलाकर 14 पीढ़ियाँ हुईं। दाविद से लेकर उस समय तक 14 पीढ़ियाँ हुईं, जब यहूदी बैबिलोन की बँधुआई में गए। बैबिलोन की बँधुआई से लेकर मसीह तक 14 पीढ़ियाँ हुईं।
18 यीशु मसीह का जन्म इस तरह हुआ। उसकी माँ मरियम की सगाई यूसुफ से हो चुकी थी। मगर शादी से पहले जब वह कुँवारी ही थी, तब परमेश्वर की पवित्र शक्ति* की ताकत से मरियम गर्भवती हुई।+ 19 मगर उसका पति यूसुफ लोगों के सामने उसका तमाशा नहीं बनाना चाहता था क्योंकि वह एक नेक इंसान था। इसलिए उसने चुपके से मरियम को तलाक देने का इरादा किया।+ 20 लेकिन इस बारे में सोच-विचार करने के बाद जब वह सो गया, तो उसे सपने में यहोवा* का स्वर्गदूत दिखायी दिया। स्वर्गदूत ने उससे कहा, “यूसुफ, दाविद के वंशज, तू मरियम से शादी करने* से मत डर क्योंकि जो उसके गर्भ में है वह पवित्र शक्ति की ताकत से है।+ 21 मरियम एक बेटे को जन्म देगी। तू उसका नाम यीशु* रखना+ क्योंकि वह अपने लोगों को पापों से उद्धार दिलाएगा।”+ 22 यह सब इसलिए हुआ ताकि यहोवा* का यह वचन पूरा हो, जो उसने अपने भविष्यवक्ता से कहलवाया था, 23 “देख! कुँवारी गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी। वे उसका नाम इम्मानुएल रखेंगे,”+ जिसका मतलब है, “परमेश्वर हमारे साथ है।”+
24 तब यूसुफ नींद से जाग उठा और उसने वैसा ही किया जैसा यहोवा* के स्वर्गदूत ने उसे बताया था। वह अपनी पत्नी को अपने घर ले आया। 25 मगर जब तक मरियम ने बेटे को जन्म+ न दिया, तब तक यूसुफ ने उसके साथ यौन-संबंध नहीं रखे। यूसुफ ने उस बच्चे का नाम यीशु रखा।+
2 यीशु का जन्म यहूदिया के बेतलेहेम+ में हो चुका था। उन दिनों हेरोदेस*+ यहूदिया का राजा था। यीशु के जन्म के कुछ समय बाद, देखो! पूरब से कुछ ज्योतिषी* यरूशलेम आए। 2 वे पूछने लगे, “यहूदियों का जो राजा+ पैदा हुआ है, वह कहाँ है? जब हम पूरब में थे, तो हमने उसका तारा देखा था। इसलिए हम उसे दंडवत* करने आए हैं।” 3 यह सुनकर राजा हेरोदेस घबरा गया और पूरे यरूशलेम में खलबली मच गयी। 4 हेरोदेस ने सभी प्रधान याजकों और शास्त्रियों को इकट्ठा किया और उनसे पूछा कि मसीह* का जन्म कहाँ होना है। 5 उन्होंने कहा, “यहूदिया के बेतलेहेम में,+ क्योंकि भविष्यवक्ता से यह लिखवाया गया है, 6 ‘हे यहूदा के इलाके के बेतलेहेम, तू यहूदा के राज्यपालों के लिए किसी भी मायने में सबसे छोटा शहर नहीं, क्योंकि तुझी से एक राज करनेवाला निकलेगा जो चरवाहे की तरह मेरी प्रजा इसराएल की अगुवाई करेगा।’”+
7 तब हेरोदेस ने चुपके से उन ज्योतिषियों को बुलवाया। फिर उनसे अच्छी तरह पूछताछ करके पता लगाया कि उन्हें यह तारा पहली बार कब नज़र आया था। 8 फिर उसने यह कहकर उन्हें बेतलेहेम भेजा, “जाओ, अच्छी तरह ढूँढ़ो और उस बच्चे का पता लगाओ। जब वह तुम्हें मिल जाए तो आकर मुझे खबर देना ताकि मैं भी जाकर उसे दंडवत करूँ।” 9 राजा हेरोदेस की यह बात सुनने के बाद ज्योतिषी वहाँ से निकल पड़े। तब देखो! वही तारा जो उन्हें पूरब में दिखायी दिया था,+ उनके आगे-आगे चलने लगा और जाकर उस घर के ऊपर ठहर गया जहाँ वह बच्चा था। 10 जब उन्होंने तारे को ठहरते देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। 11 वे घर के अंदर गए और बच्चे को उसकी माँ मरियम के साथ देखा। उन्होंने बच्चे के आगे गिरकर उसे दंडवत* किया। फिर अपना-अपना खज़ाना खोलकर उसे तोहफे में सोना, लोबान और गंधरस दिया। 12 मगर परमेश्वर ने सपने में उन्हें चेतावनी दी+ कि हेरोदेस के पास फिर न जाएँ। इसलिए वे दूसरे रास्ते से अपने देश लौट गए।
13 उनके चले जाने के बाद, देखो! यहोवा* का स्वर्गदूत यूसुफ को सपने में दिखायी दिया+ और उससे कहने लगा, “उठ, बच्चे और उसकी माँ को लेकर मिस्र भाग जा। जब तक मैं न कहूँ, वहीं रहना क्योंकि हेरोदेस इस बच्चे को मार डालने के लिए इसकी तलाश करनेवाला है।” 14 इसलिए यूसुफ उठा और रात में ही बच्चे और उसकी माँ को लेकर मिस्र चला गया। 15 वह हेरोदेस की मौत तक वहीं रहा। इस तरह, वह बात पूरी हुई जो यहोवा* ने अपने भविष्यवक्ता से कहलवायी थी, “मैंने अपने बेटे को मिस्र से बुलाया।”+
16 जब हेरोदेस ने देखा कि ज्योतिषियों ने उसे धोखा दिया है, तो वह आग-बबूला हो उठा। उसने अपने सेवकों को भेजकर बेतलेहेम और उसके आस-पास के सभी ज़िलों में जितने लड़के दो साल के और उससे छोटे थे, उन सबको मरवा डाला। उसने ज्योतिषियों से समय का जो ठीक-ठीक पता लगाया था,+ उसी के मुताबिक ऐसा किया। 17 इस घटना से वह बात पूरी हुई जो यिर्मयाह भविष्यवक्ता से कहलवायी गयी थी, 18 “रामाह में रोने और मातम मनाने की आवाज़ सुनायी दे रही थी। वह राहेल थी+ जो अपने बच्चों के लिए रो रही थी और किसी भी तरह का दिलासा नहीं चाहती थी क्योंकि वे अब नहीं रहे।”+
19 हेरोदेस के मरने के बाद, देखो! मिस्र में यहोवा* का स्वर्गदूत यूसुफ को सपने में दिखायी दिया+ 20 और उसने कहा, “उठ, बच्चे और उसकी माँ को लेकर इसराएल देश चला जा, क्योंकि जो बच्चे की जान लेना चाहते थे वे मर चुके हैं।” 21 तब यूसुफ उठा और बच्चे और उसकी माँ को लेकर इसराएल देश चला गया। 22 मगर यह सुनकर कि अरखिलाउस अपने पिता हेरोदेस की जगह यहूदिया पर राज कर रहा है, यूसुफ वहाँ जाने से डर गया। यही नहीं, परमेश्वर ने भी उसे सपने में चेतावनी दी थी,+ इसलिए वह गलील+ के इलाके में चला गया। 23 वह आकर नासरत+ नाम के शहर में बस गया। इससे ये शब्द पूरे हुए जो भविष्यवक्ताओं से कहलवाए गए थे, “वह एक नासरी* कहलाएगा।”+
3 उन दिनों यूहन्ना+ बपतिस्मा देनेवाला यहूदिया के वीरान इलाकों में आया और यह प्रचार करने लगा,+ 2 “पश्चाताप करो क्योंकि स्वर्ग का राज पास आ गया है।”+ 3 दरअसल यूहन्ना वही है जिसके बारे में भविष्यवक्ता यशायाह+ से यह कहलवाया गया था, “सुनो! वीराने में कोई पुकार रहा है, ‘यहोवा* का रास्ता तैयार करो, उसकी सड़कें सीधी करो।’”+ 4 यूहन्ना ऊँट के बालों से बने कपड़े पहने था और कमर पर चमड़े का पट्टा बाँधे हुए था।+ उसका खाना टिड्डियाँ और जंगली शहद था।+ 5 तब यरूशलेम, पूरे यहूदिया और यरदन नदी के आस-पास के सारे इलाके से लोग उसके पास जाने लगे।+ 6 वे अपने पापों को खुलकर मान लेते थे और वह उन्हें यरदन नदी में बपतिस्मा देता* था।+
7 जब यूहन्ना ने कई फरीसियों और सदूकियों+ को बपतिस्मे की जगह आते देखा तो उसने उनसे कहा, “अरे साँप के सँपोलो,+ किसने तुम्हें आगाह कर दिया कि तुम आनेवाले कहर से भाग सकते हो?+ 8 इसलिए पश्चाताप दिखानेवाले फल पैदा करो। 9 अब यह मत सोचो, ‘हम तो अब्राहम के वंशज हैं।’+ क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि परमेश्वर इन पत्थरों से अब्राहम के लिए संतान पैदा कर सकता है। 10 पेड़ों की जड़ पर कुल्हाड़ा रखा जा चुका है। हर वह पेड़ जो अच्छा फल नहीं देता, उसे काटकर आग में झोंक दिया जाएगा।+ 11 मैं तो तुम्हारे पश्चाताप की वजह से तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ।+ मगर जो मेरे बाद आनेवाला है, वह मुझसे कहीं शक्तिशाली है। मैं उसकी जूतियाँ उतारने के भी लायक नहीं हूँ।+ वह तुम लोगों को पवित्र शक्ति से और आग से बपतिस्मा देगा।+ 12 उसके हाथ में अनाज फटकनेवाला बेलचा है, वह अपने खलिहान को पूरी तरह साफ करेगा और अपने गेहूँ को तो इकट्ठा करके गोदाम में रखेगा, मगर भूसी को उस आग में जला देगा+ जिसे बुझाया नहीं जा सकता।”
13 फिर यीशु गलील से यरदन नदी के पास आया ताकि यूहन्ना से बपतिस्मा ले।+ 14 मगर यूहन्ना ने यह कहकर उसे रोकने की कोशिश की, “मुझे तो खुद तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की ज़रूरत है और तू मेरे पास आया है?” 15 तब यीशु ने उससे कहा, “इस वक्त ऐसा ही होने दे क्योंकि हमें वही करना चाहिए जो परमेश्वर की नज़र में सही* है।” तब यूहन्ना ने उसे नहीं रोका। 16 बपतिस्मा लेने के बाद यीशु फौरन पानी में से ऊपर आया। तब आकाश खुल गया+ और उसने परमेश्वर की पवित्र शक्ति को एक कबूतर के रूप में उस पर उतरते देखा।+ 17 तभी स्वर्ग से आवाज़ आयी:+ “यह मेरा प्यारा बेटा है।+ मैंने इसे मंज़ूर किया है।”+
4 तब परमेश्वर की पवित्र शक्ति यीशु को वीराने में ले गयी। वहाँ शैतान* ने उसे फुसलाने की कोशिश की।+ 2 यीशु ने 40 दिन और 40 रात उपवास किया था, फिर उसे भूख लगी। 3 तब फुसलानेवाला+ आया और उसने कहा, “अगर तू परमेश्वर का एक बेटा है, तो इन पत्थरों से बोल कि ये रोटियाँ बन जाएँ।” 4 मगर जवाब में यीशु ने कहा, “यह लिखा है, ‘इंसान को सिर्फ रोटी से नहीं बल्कि यहोवा* के मुँह से निकलनेवाले हर वचन से ज़िंदा रहना है।’”+
5 इसके बाद, शैतान उसे पवित्र शहर यरूशलेम+ ले गया और उसे मंदिर की छत की मुँडेर* पर लाकर खड़ा किया।+ 6 उसने यीशु से कहा, “अगर तू परमेश्वर का एक बेटा है, तो यहाँ से नीचे छलाँग लगा दे क्योंकि लिखा है, ‘वह तेरे बारे में अपने स्वर्गदूतों को हुक्म देगा।’ और ‘वे तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे ताकि तेरा पैर किसी पत्थर से चोट न खाए।’”+ 7 यीशु ने शैतान से कहा, “यह भी लिखा है, ‘तू अपने परमेश्वर यहोवा* की परीक्षा न लेना।’”+
8 फिर शैतान उसे अपने साथ बहुत ही ऊँचे पहाड़ पर ले गया और उसे दुनिया के सारे राज्य और उनकी शानो-शौकत दिखायी।+ 9 फिर उसने यीशु से कहा, “अगर तू बस एक बार मेरे सामने गिरकर मेरी उपासना करे, तो मैं यह सबकुछ तुझे दे दूँगा।” 10 यीशु ने उससे कहा, “दूर हो जा शैतान! क्योंकि लिखा है, ‘तू सिर्फ अपने परमेश्वर यहोवा* की उपासना कर+ और उसी की पवित्र सेवा कर।’”+ 11 तब शैतान उसे छोड़कर चला गया।+ और देखो! स्वर्गदूत आकर यीशु की सेवा करने लगे।+
12 जब यीशु ने सुना कि यूहन्ना को गिरफ्तार कर लिया गया है,+ तो वह वहाँ से गलील चला गया।+ 13 फिर नासरत छोड़ने के बाद वह कफरनहूम+ में रहने लगा, जो झील के किनारे जबूलून और नप्ताली के ज़िलों में है। 14 इससे वह बात पूरी हुई जो भविष्यवक्ता यशायाह से कहलवायी गयी थी, 15 “हे गैर-यहूदियों के गलील, जबूलून और नप्ताली के देश, तुम जो समुंदर के रास्ते पर और यरदन के उस पार हो, 16 जो लोग अंधकार में बैठे थे, उन्होंने तेज़ रौशनी देखी। जो मौत के साए के देश में बैठे थे, उन पर रौशनी+ चमकी।”+ 17 उस वक्त से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना शुरू किया, “पश्चाताप करो क्योंकि स्वर्ग का राज पास आ गया है।”+
18 गलील झील के किनारे चलते-चलते उसने शमौन को, जो पतरस कहलाता है+ और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा। वे दोनों मछुवारे थे।+ 19 उसने उनसे कहा, “मेरे पीछे हो लो और जिस तरह तुम मछलियाँ पकड़ते हो, मैं तुम्हें इंसानों को पकड़नेवाले बनाऊँगा।”+ 20 वे फौरन अपने जाल छोड़कर उसके पीछे चल दिए।+ 21 वहाँ से आगे बढ़ने पर यीशु ने याकूब और उसके भाई यूहन्ना को देखा। ये दोनों जब्दी के बेटे थे।+ वे अपने पिता के साथ नाव में अपने जाल ठीक कर रहे थे। यीशु ने उन्हें भी बुलाया।+ 22 वे फौरन नाव को और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे चल दिए।
23 फिर वह पूरे गलील का दौरा करता हुआ,+ उनके सभा-घरों+ में सिखाता और राज की खुशखबरी का प्रचार करता रहा। वह लोगों की हर तरह की बीमारी और शरीर की कमज़ोरी दूर करता रहा।+ 24 उसकी खबर सारे सीरिया प्रांत में फैल गयी। लोग उसके पास तरह-तरह की बीमारियों और पीड़ाओं से दुखी लोगों को लाने लगे।+ उनमें ऐसे लोग भी थे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे+ और मिरगी+ और लकवे के मारे हुए भी थे। उसने सबको ठीक किया। 25 इसलिए गलील, दिकापुलिस,* यरूशलेम और यहूदिया से और यरदन के पार से भीड़-की-भीड़ उसके पीछे हो ली।
5 जब यीशु ने भीड़ को देखा, तो वह पहाड़ पर गया और वहाँ बैठ गया और उसके चेले उसके पास आए। 2 तब वह उन्हें ये बातें सिखाने लगा:
3 “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है*+ क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।
4 सुखी हैं वे जो मातम मनाते हैं क्योंकि उन्हें दिलासा दिया जाएगा।+
5 सुखी हैं वे जो कोमल स्वभाव+ के हैं क्योंकि वे धरती के वारिस होंगे।+
6 सुखी हैं वे जो नेकी के भूखे-प्यासे हैं+ क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे।+
7 सुखी हैं वे जो दयालु+ हैं क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
8 सुखी हैं वे जिनका दिल शुद्ध+ है क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे।
9 सुखी हैं वे जो शांति कायम करते हैं+ क्योंकि वे परमेश्वर के बेटे कहलाएँगे।
10 सुखी हैं वे जो सही काम करने की वजह से ज़ुल्म सहते हैं+ क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।
11 सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें,+ तुम पर ज़ुल्म ढाएँ+ और तुम्हारे बारे में तरह-तरह की झूठी और बुरी बातें कहें।+ 12 तब तुम मगन होना और खुशियाँ मनाना+ इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है।+ उन्होंने तुमसे पहले के भविष्यवक्ताओं पर भी इसी तरह ज़ुल्म ढाए थे।+
13 तुम पृथ्वी के नमक+ हो। लेकिन अगर नमक अपना स्वाद खो दे, तो क्या उसे दोबारा नमकीन किया जा सकता है? नहीं! फिर वह किसी काम का नहीं रहता। उसे सड़कों पर फेंक दिया जाता है+ और वह लोगों के पैरों तले रौंदा जाता है।
14 तुम दुनिया की रौशनी हो।+ जो शहर पहाड़ पर बसा हो, वह छिप नहीं सकता। 15 लोग दीपक जलाकर उसे टोकरी* से ढककर नहीं रखते, बल्कि दीवट पर रखते हैं। इससे घर के सब लोगों को रौशनी मिलती है।+ 16 उसी तरह तुम्हारी रौशनी लोगों के सामने चमके+ ताकि वे तुम्हारे भले काम+ देखकर स्वर्ग में रहनेवाले तुम्हारे पिता की महिमा करें।+
17 यह मत सोचो कि मैं कानून या भविष्यवक्ताओं के वचनों को रद्द करने आया हूँ। मैं उन्हें रद्द करने नहीं बल्कि पूरा करने आया हूँ।+ 18 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जैसे आकाश और पृथ्वी कभी नहीं मिटेंगे, वैसे ही कानून में लिखा छोटे-से-छोटा अक्षर या बिंदु भी बिना पूरा हुए नहीं मिटेगा, उसमें लिखी एक-एक बात पूरी होगी।+ 19 इसलिए अगर कोई इसकी छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को भी तोड़ता है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाता है, तो वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक नहीं होगा।* मगर जो इन्हें मानता है और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्ग के राज में दाखिल होने के लायक होगा।* 20 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ कि अगर तुम्हारे नेक काम शास्त्रियों और फरीसियों के नेक कामों से बढ़कर न हों,+ तो तुम स्वर्ग के राज में हरगिज़ दाखिल न होगे।+
21 तुम सुन चुके हो कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तुम खून न करना।+ जो कोई खून करता है उसे अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा।’+ 22 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह इंसान जिसके दिल में अपने भाई के खिलाफ गुस्से की आग सुलगती रहती है,+ उसे अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा। और हर वह इंसान जो अपने भाई का अपमान करने के लिए ऐसे शब्द कहता है जिन्हें ज़बान पर भी नहीं लाना चाहिए, उसे सबसे बड़ी अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा। और हर वह इंसान जो अपने भाई से कहता है, ‘अरे चरित्रहीन मूर्ख!’ वह गेहन्ना* की आग में जाने के लायक ठहरेगा।+
23 इसलिए अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो+ और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, 24 तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और फिर आकर अपनी भेंट चढ़ा।+
25 अगर कोई तुझ पर मुकदमा दायर करने जा रहा है, तो रास्ते में ही जल्द-से-जल्द उसके साथ सुलह कर ले। कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे न्यायी के हवाले कर दे और न्यायी तुझे पहरेदार के हवाले कर दे और तुझे कैदखाने में डाल दिया जाए।+ 26 मैं तुझसे सच कहता हूँ, जब तक तू एक-एक पाई* न चुका दे, तब तक तू वहाँ से किसी भी हाल में न छूट सकेगा।
27 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तुम व्यभिचार* न करना।’+ 28 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह आदमी जो किसी औरत को ऐसी नज़र से देखता रहता है+ जिससे उसके मन में उसके लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस औरत के साथ व्यभिचार कर चुका है।+ 29 अगर तेरी दायीं आँख तुझसे पाप करवा रही है,* तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू अपना एक अंग गँवा दे, बजाय इसके कि तेरा पूरा शरीर गेहन्ना* में फेंक दिया जाए।+ 30 और अगर तेरा दायाँ हाथ तुझसे पाप करवा रहा है,* तो उसे काटकर दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू अपना एक अंग गँवा दे, बजाय इसके कि तेरा पूरा शरीर गेहन्ना* में डाल दिया जाए।+
31 यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है, वह उसे एक तलाकनामा दे।’+ 32 लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह आदमी जो अपनी पत्नी को नाजायज़ यौन-संबंध* के अलावा किसी और वजह से तलाक देता है, वह उसे व्यभिचार करने के खतरे में डालता है। और जो कोई ऐसी तलाकशुदा औरत से शादी करता है, वह व्यभिचार करने का दोषी है।+
33 तुमने यह भी सुना है कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तुम ऐसी शपथ न खाना जिसे तुम पूरा न करो,+ मगर तुम यहोवा* के सामने अपनी मन्नतें पूरी करना।’+ 34 लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ, तुम कभी कसम न खाना,+ न स्वर्ग की क्योंकि वह परमेश्वर की राजगद्दी है, 35 न ही पृथ्वी की क्योंकि यह उसके पाँवों की चौकी है,+ न यरूशलेम की क्योंकि यह उस महाराजा का नगर है।+ 36 न ही तुम अपने सिर की कसम खाना क्योंकि तुम एक बाल भी सफेद या काला नहीं कर सकते। 37 बस तुम्हारी ‘हाँ’ का मतलब हाँ हो और ‘न’ का मतलब न,+ इसलिए कि इससे बढ़कर जो कुछ कहा जाता है वह शैतान* से होता है।+
38 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत।’+ 39 लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ, जो दुष्ट है उसका मुकाबला मत करो। इसके बजाय, अगर कोई तुम्हारे दाएँ गाल पर थप्पड़ मारे, तो उसकी तरफ दूसरा गाल भी कर देना।+ 40 और अगर कोई तुम पर अदालत में मुकदमा करके तुम्हारा कुरता लेना चाहे, तो उसे अपना ओढ़ना भी दे देना।+ 41 और अगर कोई अधिकारी तुमसे कहे कि मेरा बोझ उठाकर एक मील* चल, तो तुम उसके साथ दो मील चले जाना। 42 जो कोई तुमसे माँगता है, उसे देना और जो तुमसे उधार माँगे* उसे देने से इनकार मत करना।+
43 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘तुम अपने पड़ोसी से प्यार करना+ और दुश्मन से नफरत।’ 44 लेकिन मैं तुमसे कहता हूँ: अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो+ और जो तुम्हें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।+ 45 इस तरह तुम साबित करो कि तुम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के बेटे हो+ क्योंकि वह अच्छे और बुरे दोनों पर अपना सूरज चमकाता है और नेक और दुष्ट दोनों पर बारिश बरसाता है।+ 46 क्योंकि अगर तुम उन्हीं से प्यार करो जो तुमसे प्यार करते हैं, तो तुम्हें इसका क्या इनाम मिलेगा?+ क्या कर-वसूलनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? 47 और अगर तुम सिर्फ अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन-सा अनोखा काम करते हो? क्या गैर-यहूदी भी ऐसा ही नहीं करते? 48 इसलिए तुम्हें परिपूर्ण* होना चाहिए ठीक जैसे स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता परिपूर्ण है।+
6 खबरदार रहो कि तुम लोगों को दिखाने के लिए उनके सामने नेक काम न करो,+ नहीं तो तुम अपने पिता से जो स्वर्ग में है, कोई फल नहीं पाओगे। 2 इसलिए जब तू दान* दे, तो अपने आगे-आगे तुरही न बजवा, जैसे कपटी सभा-घरों और गलियों में बजवाते हैं ताकि लोग उनकी वाह-वाही करें। मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके हैं। 3 मगर जब तू दान दे, तो तेरे बाएँ हाथ को भी मालूम न पड़े कि तेरा दायाँ हाथ क्या दे रहा है, 4 जिससे तेरा दान गुप्त रहे। तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख रहा है,* तुझे इसका फल देगा।+
5 जब तुम प्रार्थना करो, तो कपटियों की तरह मत करो+ क्योंकि उन्हें सभा-घरों और सड़कों के चौराहे पर खड़े होकर प्रार्थना करना अच्छा लगता है ताकि लोग उन्हें देख सकें।+ मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके हैं। 6 लेकिन जब तू प्रार्थना करे, तो अकेले अपने घर के कमरे में जा और दरवाज़ा बंद कर और अपने पिता से जिसे कोई नहीं देख सकता,* प्रार्थना कर।+ तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख रहा है,* तुझे इसका फल देगा। 7 प्रार्थना करते वक्त, दुनिया के लोगों की तरह एक ही बात बार-बार मत दोहराओ क्योंकि वे सोचते हैं कि उनके बहुत ज़्यादा बोलने से परमेश्वर उनकी सुनेगा। 8 इसलिए तुम उनके जैसे मत बनो क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे माँगने से पहले ही जानता है कि तुम्हें किन चीज़ों की ज़रूरत है।+
9 इसलिए, तुम इस तरह प्रार्थना करना:+
‘हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम+ पवित्र किया जाए।*+ 10 तेरा राज+ आए। तेरी मरज़ी+ जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे धरती पर भी पूरी हो।+ 11 आज के दिन की रोटी हमें दे।+ 12 जैसे हमने अपने खिलाफ पाप करनेवालों* को माफ किया है, वैसे ही तू भी हमारे पाप* माफ कर।+ 13 जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे,+ मगर हमें शैतान* से बचा।’*+
14 अगर तुम दूसरों के अपराध माफ करोगे, तो स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता भी तुम्हें माफ करेगा।+ 15 लेकिन अगर तुम दूसरों के अपराध माफ नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध माफ नहीं करेगा।+
16 जब तुम उपवास करते हो,+ तो पाखंडियों की तरह मुँह लटकाए रहना बंद करो, क्योंकि वे अपना चेहरा गंदा कर लेते हैं* ताकि लोग उन्हें देखकर जानें कि वे उपवास कर रहे हैं।+ मैं तुमसे सच कहता हूँ, वे अपना पूरा फल पा चुके हैं। 17 लेकिन जब तू उपवास करे, तो अपने सिर पर तेल लगा और मुँह धो 18 ताकि लोग नहीं बल्कि तेरा पिता, जिसे कोई नहीं देख सकता, जाने कि तू उपवास कर रहा है। तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख रहा है,* तुझे इसका फल देगा।
19 अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो,+ जहाँ कीड़ा और ज़ंग उसे खा जाते हैं और चोर सेंध लगाकर चुरा लेते हैं। 20 इसके बजाय, अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो,+ जहाँ न तो कीड़ा, न ही ज़ंग उसे खाते हैं+ और न चोर सेंध लगाकर चुराते हैं। 21 क्योंकि जहाँ तेरा धन होगा, वहीं तेरा मन होगा।
22 आँख, शरीर का दीपक है।+ इसलिए अगर तेरी आँख एक ही चीज़ पर टिकी है,* तो तेरा सारा शरीर रौशन रहेगा। 23 लेकिन अगर तेरी आँखों में ईर्ष्या भरी है,*+ तो तेरा सारा शरीर अंधकार से भर जाएगा। अगर शरीर को रौशन करनेवाली तेरी आँख ही अँधेरे में हो, तो तू कितने गहरे अंधकार में होगा!
24 कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता। क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार+ या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।+
25 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, अपने जीवन के लिए चिंता करना छोड़ दो+ कि तुम क्या खाओगे या क्या पीओगे, न ही अपने शरीर के लिए चिंता करो कि तुम क्या पहनोगे।+ क्या जीवन भोजन से और शरीर कपड़े से अनमोल नहीं?+ 26 आकाश में उड़नेवाले पंछियों को ध्यान से देखो।+ वे न तो बीज बोते, न कटाई करते, न ही गोदामों में भरकर रखते हैं, फिर भी स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता उन्हें खिलाता है। क्या तुम्हारा मोल उनसे बढ़कर नहीं? 27 तुममें ऐसा कौन है जो चिंता करके एक पल के लिए भी* अपनी ज़िंदगी बढ़ा सके?+ 28 तुम यह चिंता क्यों करते हो कि तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े कहाँ से आएँगे? मैदान में उगनेवाले सोसन* के फूलों से सबक सीखो, वे कैसे बढ़ते हैं; वे न तो कड़ी मज़दूरी करते हैं न ही सूत कातते हैं। 29 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि सुलैमान+ भी जब अपने पूरे वैभव में था, तो इनमें से किसी एक की तरह भी सज-धज न सका। 30 इसलिए अगर परमेश्वर मैदान में उगनेवाले इन पौधों को, जो आज हैं और कल आग* में झोंक दिए जाएँगे, ऐसे शानदार कपड़े पहनाता है, तो अरे कम विश्वास रखनेवालो! क्या वह तुम्हें नहीं पहनाएगा? 31 इसलिए कभी-भी चिंता+ करके यह मत कहना कि हम क्या खाएँगे? या हम क्या पीएँगे? या हम क्या पहनेंगे?+ 32 क्योंकि इन्हीं सब चीज़ों के पीछे दुनिया के लोग दिन-रात भाग रहे हैं। मगर स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन सब चीज़ों की ज़रूरत है।
33 इसलिए परमेश्वर के राज और उसके नेक* स्तरों को पहली जगह देते रहो* और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।+ 34 इसलिए अगले दिन की चिंता कभी न करना+ क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की परेशानियाँ काफी हैं।
7 दोष लगाना बंद करो+ ताकि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। 2 इसलिए कि जैसे तुम दोष लगाते हो, वैसे ही तुम पर भी दोष लगाया जाएगा।+ जिस नाप से तुम नापते हो, वे भी उसी नाप से तुम्हारे लिए नापेंगे।+ 3 तो फिर तू क्यों अपने भाई की आँख में पड़ा तिनका देखता है, मगर अपनी आँख के लट्ठे पर ध्यान नहीं देता?+ 4 या तू अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘आ मैं तेरी आँख का तिनका निकाल दूँ,’ जबकि देख! तेरी अपनी ही आँख में एक लट्ठा है? 5 अरे कपटी! पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब तू साफ-साफ देख सकेगा कि अपने भाई की आँख से तिनका कैसे निकालना है।
6 पवित्र चीज़ें कुत्तों को मत दो, न ही अपने मोती सूअरों के आगे फेंको।+ ऐसा न हो कि वे अपने पैरों से उन्हें रौंद दें और पलटकर तुम्हें फाड़ डालें।
7 माँगते रहो तो तुम्हें दिया जाएगा,+ ढूँढ़ते रहो तो तुम पाओगे, खटखटाते रहो तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।+ 8 क्योंकि हर कोई जो माँगता है, उसे मिलता है+ और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और हर कोई जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा। 9 आखिर तुममें ऐसा कौन है जिसका बेटा अगर उससे रोटी माँगे, तो वह उसे एक पत्थर पकड़ा दे? 10 या मछली माँगे तो उसे एक साँप पकड़ा दे? 11 इसलिए जब तुम दुष्ट होकर भी अपने बच्चों को अच्छे तोहफे देना जानते हो तो तुम्हारा पिता, जो स्वर्ग में है, और भी बढ़कर अपने माँगनेवालों को अच्छी चीज़ें क्यों न देगा!+
12 इसलिए जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।+ दरअसल कानून और भविष्यवक्ताओं की किताबों का निचोड़ यही है।+
13 सँकरे फाटक से अंदर जाओ+ क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और खुला है वह रास्ता, जो विनाश की तरफ ले जाता है और उस पर जानेवाले बहुत हैं। 14 जबकि सँकरा है वह फाटक और तंग है वह रास्ता, जो जीवन की तरफ ले जाता है और उसे पानेवाले थोड़े हैं।+
15 झूठे भविष्यवक्ताओं से खबरदार रहो+ जो भेड़ों के भेस में तुम्हारे पास आते हैं,+ मगर अंदर से भूखे भेड़िए हैं।+ 16 उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग कभी कँटीली झाड़ियों से अंगूर या जंगली पौधों से अंजीर तोड़ते हैं?+ 17 उसी तरह, हरेक अच्छा पेड़ बढ़िया फल देता है, मगर सड़ा हुआ पेड़ खराब फल देता है।+ 18 अच्छा पेड़ खराब फल नहीं दे सकता, न ही सड़ा हुआ पेड़ बढ़िया फल दे सकता है।+ 19 हर वह पेड़ जो बढ़िया फल नहीं देता, काटा और आग में झोंक दिया जाता है।+ 20 इसलिए तुम उन लोगों को उनके फलों से पहचान लोगे।+
21 जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर सिर्फ वही दाखिल होगा जो स्वर्ग में रहनेवाले मेरे पिता की मरज़ी पूरी करता है।+ 22 उस दिन बहुत-से लोग मुझसे कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु,+ क्या हमने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की और तेरे नाम से, लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूतों को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत-से शक्तिशाली काम नहीं किए?’+ 23 तब मैं उनसे साफ-साफ कह दूँगा: ‘मैं तुम्हें नहीं जानता। अरे दुष्टो, दूर हो जाओ मेरे सामने से!’+
24 इसलिए हर कोई जो मेरी ये बातें सुनता है और इन पर चलता है, वह उस समझदार आदमी जैसा होगा जिसने अपना घर चट्टान पर बनाया।+ 25 फिर ज़बरदस्त बरसात हुई, बाढ़-पर-बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं, फिर भी वह नहीं गिरा क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर बनायी गयी थी। 26 लेकिन हर कोई जो मेरी ये बातें सुनता है मगर इन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख जैसा होगा जिसने अपना घर रेत पर बनाया।+ 27 और ज़बरदस्त बरसात हुई, बाढ़-पर-बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं+ और वह ढह गया और तहस-नहस हो गया।”
28 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो भीड़ उसके सिखाने का तरीका देखकर दंग रह गयी,+ 29 क्योंकि वह उनके शास्त्रियों की तरह नहीं बल्कि ऐसे इंसान की तरह सिखा रहा था जिसके पास बड़ा अधिकार हो।+
8 जब यीशु उस पहाड़ से नीचे उतर आया, तो भीड़-की-भीड़ उसके पीछे हो ली। 2 और देखो! एक कोढ़ी उसके पास आया। उसने झुककर उसे प्रणाम* किया और कहा, “प्रभु, बस अगर तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।”+ 3 तब यीशु ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “हाँ, मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।”+ उसी पल उसका कोढ़ दूर हो गया और वह शुद्ध हो गया।+ 4 फिर यीशु ने उससे कहा, “देख, किसी को मत बताना।+ मगर जाकर खुद को याजक को दिखा+ और मूसा ने जो भेंट चढ़ाने के लिए कहा है, वह चढ़ा+ ताकि उन्हें गवाही मिले।”
5 जब यीशु कफरनहूम आया, तो एक सेना-अफसर उसके पास आकर उससे बिनती करने लगा,+ 6 “मालिक, मेरा सेवक घर में बीमार पड़ा है, उसे लकवा मार गया है और उसका बहुत बुरा हाल है।” 7 यीशु ने उससे कहा, “जब मैं वहाँ आऊँगा, तो उसे ठीक करूँगा।” 8 जवाब में सेना-अफसर ने कहा, “मालिक, मैं इस लायक नहीं कि तू मेरी छत तले आए। इसलिए बस तू अपने मुँह से कह दे और मेरा सेवक ठीक हो जाएगा। 9 क्योंकि मैं भी किसी अधिकारी के नीचे काम करता हूँ और मेरे नीचे भी सिपाही हैं। जब मैं एक से कहता हूँ, ‘जा!’ तो वह जाता है और दूसरे से कहता हूँ, ‘आ!’ तो वह आता है और अपने दास से कहता हूँ, ‘यह कर!’ तो वह करता है।” 10 यह सुनकर यीशु को बहुत ताज्जुब हुआ और उसने अपने पीछे आनेवालों से कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, मैंने इसराएल में इसके जैसा एक भी इंसान नहीं पाया जिसमें इतना ज़बरदस्त विश्वास हो।+ 11 मगर मैं तुमसे कहता हूँ कि पूरब से और पश्चिम से बहुत-से लोग आएँगे और स्वर्ग के राज में अब्राहम, इसहाक और याकूब के साथ मेज़ से टेक लगाकर बैठेंगे,+ 12 जबकि राज के बेटे बाहर अँधेरे में फेंक दिए जाएँगे। वहाँ वे रोएँगे और दाँत पीसेंगे।”+ 13 फिर उसने सेना-अफसर से कहा, “जा। जैसा तूने विश्वास किया है, तेरे लिए वैसा ही हो।”+ और उसी पल उसका सेवक ठीक हो गया।+
14 यीशु पतरस के घर आया और देखा कि पतरस की सास+ बीमार है और बुखार में पड़ी है।+ 15 तब यीशु ने उसका हाथ छुआ+ और उसका बुखार उतर गया। वह उठी और उसकी सेवा करने लगी। 16 जब शाम हो गयी, तो लोग उसके पास ऐसे कई लोगों को लाने लगे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। उसने इन दुष्ट स्वर्गदूतों को सिर्फ बोलकर ही निकाल दिया और उन सब लोगों को ठीक कर दिया जो तकलीफ में थे 17 ताकि वह वचन पूरा हो जो भविष्यवक्ता यशायाह से कहलवाया गया था, “उसने हमारी बीमारी खुद पर ले ली और हमारे रोग उठा ले गया।”+
18 जब यीशु ने अपने चारों तरफ लोगों की भीड़ देखी, तो उसने चेलों को हुक्म दिया कि नाव को उस पार ले जाएँ।+ 19 तब एक शास्त्री ने आकर उससे कहा, “गुरु, तू जहाँ कहीं जाएगा, मैं तेरे साथ चलूँगा।”+ 20 मगर यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों की माँदें और आकाश के पंछियों के बसेरे होते हैं, मगर इंसान के बेटे के पास कहीं सिर टिकाने की भी जगह नहीं है।”+ 21 तब एक और चेले ने उससे कहा, “प्रभु, मुझे इजाज़त दे कि मैं जाकर पहले अपने पिता को दफना दूँ।”+ 22 यीशु ने उससे कहा, “मेरे पीछे चलता रह और मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दे।”+
23 जब यीशु एक नाव पर चढ़ गया, तो चेले भी उसके साथ हो लिए।+ 24 तब अचानक झील में ऐसी ज़ोरदार आँधी उठी कि लहरें नाव को ढकने लगीं मगर वह सो रहा था।+ 25 चेले उसके पास आए और यह कहकर उसे जगाने लगे, “प्रभु, हमें बचा, हम नाश होनेवाले हैं!” 26 मगर यीशु ने उनसे कहा, “अरे, कम विश्वास रखनेवालो, तुम क्यों इतना डर रहे हो?”*+ फिर उसने उठकर आँधी और लहरों को डाँटा और बड़ा सन्नाटा छा गया।+ 27 यह देखकर चेले हैरत में पड़ गए और कहने लगे, “आखिर यह आदमी कौन है कि आँधी और समुंदर तक इसका हुक्म मानते हैं?”
28 इसके बाद, यीशु उस पार गदरेनियों के इलाके में पहुँचा। वहाँ दो आदमी थे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। वे कब्रों* के बीच से निकलकर यीशु के पास आए।+ वे इतने खूँखार थे कि कोई भी उस रास्ते से गुज़रने की हिम्मत नहीं करता था। 29 और देखो! वे चिल्लाकर कहने लगे, “हे परमेश्वर के बेटे, हमारा तुझसे क्या लेना-देना?+ क्या तू तय किए गए वक्त से पहले हमें तड़पाने आया है?”+ 30 उनसे काफी दूरी पर सूअरों का एक बड़ा झुंड चर रहा था।+ 31 इसलिए दुष्ट स्वर्गदूत यीशु से बिनती करने लगे, “अगर तू हमें निकाल रहा है, तो हमें सूअरों के उस झुंड में भेज दे।”+ 32 तब यीशु ने उनसे कहा, “जाओ!” और वे उन आदमियों में से बाहर निकल गए और सूअरों में समा गए। और देखो! सूअरों का पूरा झुंड बड़ी तेज़ी से दौड़ा और पहाड़ की कगार से नीचे झील में जा गिरा और सारे सूअर मर गए। 33 मगर उन्हें चरानेवाले वहाँ से भाग गए और उन्होंने शहर में जाकर सारा किस्सा कह सुनाया और उन आदमियों के बारे में भी बताया, जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। 34 तब देखो! सारा शहर निकलकर यीशु को देखने आया। जब उन्होंने उसे देखा, तो उससे बार-बार कहने लगे कि वह उनके इलाके से चला जाए।+
9 तब यीशु नाव पर चढ़कर उस पार चला गया और अपने शहर गया।+ 2 और देखो! कुछ लोग लकवे के मारे हुए एक आदमी को खाट पर लिटाकर ला रहे थे। जब यीशु ने उनका विश्वास देखा, तो उसने लकवे के मारे आदमी से कहा, “हिम्मत रख बेटे, तेरे पाप माफ किए गए।”+ 3 तब कुछ शास्त्री मन में कहने लगे, “यह आदमी परमेश्वर की निंदा कर रहा है।” 4 यह जानते हुए कि वे क्या सोच रहे हैं, यीशु ने कहा, “तुम क्यों अपने मन में बुरी बातें सोच रहे हो?+ 5 क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए’ या यह कहना, ‘उठ और चल-फिर’?+ 6 मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे को धरती पर पाप माफ करने का अधिकार दिया गया है . . .।” फिर उसने लकवे के मारे हुए से कहा, “खड़ा हो! अपनी खाट उठा और घर जा।”+ 7 तब वह आदमी खड़ा हो गया और अपने घर चला गया। 8 यह देखकर लोगों पर डर छा गया और वे परमेश्वर की महिमा करने लगे, जिसने एक इंसान को ऐसा करने का अधिकार दिया था।
9 फिर जब यीशु वहाँ से आगे जा रहा था, तो उसकी नज़र मत्ती नाम के एक आदमी पर पड़ी, जो कर-वसूली के दफ्तर में बैठा था। यीशु ने उससे कहा, “आ, मेरा चेला बन जा।” तब मत्ती उठकर उसके पीछे चल दिया।+ 10 बाद में जब यीशु एक घर में खाना खा रहा था,* तो देखो! बहुत-से कर-वसूलनेवाले और उनके जैसे दूसरे पापी आए और वे भी यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे।*+ 11 मगर यह देखकर फरीसी उसके चेलों से कहने लगे, “तुम्हारा गुरु कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाता है?”+ 12 उनकी बात सुनकर यीशु ने कहा, “जो भले-चंगे हैं उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है।+ 13 इसलिए जाओ और इस बात का मतलब सीखो, ‘मैं बलिदान नहीं चाहता बल्कि यह चाहता हूँ कि तुम दूसरों पर दया करो।’+ क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।”
14 फिर यूहन्ना के चेले यीशु के पास आए और पूछने लगे, “हम लोग और फरीसी तो उपवास रखते हैं, मगर तेरे चेले उपवास क्यों नहीं रखते?”+ 15 यीशु ने उनसे कहा, “जब तक दूल्हा+ अपने दोस्तों के साथ होता है, क्या उसके दोस्त मातम मनाते हैं? नहीं। मगर वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे जुदा कर दिया जाएगा,+ तब वे उपवास करेंगे। 16 कोई भी पुराने कपड़े के छेद पर नए कपड़े का टुकड़ा नहीं लगाता। अगर वह लगाए तो नया टुकड़ा सिकुड़कर पुराने कपड़े को फाड़ देगा और छेद और भी बड़ा हो जाएगा।+ 17 न ही लोग नयी दाख-मदिरा पुरानी मशकों में भरते हैं। अगर वे भरें, तो मशकें फट जाएँगी और मदिरा बह जाएगी और मशकें नष्ट हो जाएँगी। मगर लोग नयी मदिरा नयी मशकों में भरते हैं और दोनों सही-सलामत रहती हैं।”
18 जब वह उन्हें ये बातें बता रहा था, तब देखो! एक अधिकारी उसके पास आया और उसने झुककर उसे प्रणाम* किया और कहा, “अब तक मेरी बच्ची मर चुकी होगी। फिर भी तू चल और उस पर अपना हाथ रख, तब वह फिर से ज़िंदा हो जाएगी।”+
19 तब यीशु उठा और उसके पीछे गया और चेले भी उसके साथ गए। 20 और देखो! एक औरत जो 12 साल से खून बहने की बीमारी से पीड़ित थी,+ वह यीशु के पीछे आयी और उसने उसके कपड़े की झालर छू ली,+ 21 क्योंकि वह मन-ही-मन कहती थी, “अगर मैं उसके कपड़े को ही छू लूँ, तो अच्छी हो जाऊँगी।” 22 यीशु ने मुड़कर उसे देखा और कहा, “बेटी, हिम्मत रख, तेरे विश्वास ने तुझे ठीक किया है।”+ उसी घड़ी वह औरत ठीक हो गयी।+
23 जब वह उस अधिकारी के घर पहुँचा, तो उसकी नज़र बाँसुरी बजानेवालों और शोरगुल करती भीड़ पर पड़ी।+ 24 यीशु ने उनसे कहा, “तुम लोग यहाँ से जाओ, क्योंकि बच्ची मरी नहीं बल्कि सो रही है।”+ यह सुनकर वे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। 25 जैसे ही भीड़ को बाहर कर दिया गया, यीशु अंदर गया और उसने बच्ची का हाथ पकड़ा+ और वह उठ बैठी।+ 26 इस बात की चर्चा उस पूरे इलाके में फैल गयी।
27 जब यीशु वहाँ से आगे जा रहा था, तो दो अंधे आदमी+ उसके पीछे-पीछे यह पुकारते हुए आने लगे, “हे दाविद के वंशज, हम पर दया कर।” 28 जब वह घर के अंदर गया, तो वे अंधे आदमी उसके पास आए। तब यीशु ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूँ?”+ उन्होंने जवाब दिया, “हाँ, प्रभु।” 29 तब उसने उनकी आँखों को छूकर+ कहा, “जैसा तुमने विश्वास किया है, तुम्हारे लिए वैसा ही हो।” 30 और वे अपनी आँखों से देखने लगे। फिर यीशु ने उन्हें चेतावनी दी, “देखो, इस बारे में किसी को मत बताना।”+ 31 मगर बाहर जाने के बाद उन्होंने पूरे इलाके में उसके बारे में बता दिया।
32 फिर जब वे बाहर जा रहे थे तो देखो! लोग उसके पास एक गूँगे आदमी को ले आए, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था।+ 33 जब दुष्ट स्वर्गदूत निकाल दिया गया, तो वह आदमी बोलने लगा।+ यह देखकर भीड़ हैरान रह गयी और कहने लगी, “इसराएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।”+ 34 मगर फरीसी कहने लगे, “यह तो दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा की मदद से दुष्ट स्वर्गदूत निकालता है।”+
35 यीशु सब शहरों और गाँवों का दौरा करने निकला और वह उनके सभा-घरों में सिखाता और राज की खुशखबरी का प्रचार करता गया। वह हर तरह की बीमारी और शरीर की कमज़ोरी दूर करता रहा।+ 36 जब उसने भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा,+ क्योंकि वे ऐसी भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।+ 37 तब उसने अपने चेलों से कहा, “बेशक, कटाई के लिए फसल बहुत है मगर मज़दूर थोड़े हैं।+ 38 इसलिए खेत के मालिक से बिनती करो कि वह कटाई के लिए और मज़दूर भेजे।”+
10 फिर यीशु ने अपने 12 चेलों को पास बुलाया और उन्हें दुष्ट स्वर्गदूतों पर अधिकार दिया+ ताकि वे उन्हें लोगों में से निकालें और हर तरह की बीमारी और शरीर की कमज़ोरी दूर करें।
2 इन 12 प्रेषितों के नाम ये हैं:+ पहला, शमौन जो पतरस+ कहलाता है और उसका भाई अन्द्रियास,+ फिर याकूब और यूहन्ना जो जब्दी के बेटे थे,+ 3 फिलिप्पुस और बरतुलमै,+ थोमा+ और कर-वसूलनेवाला मत्ती,+ हलफई का बेटा याकूब और तद्दी, 4 जोशीला* शमौन और यहूदा इस्करियोती, जिसने बाद में उसके साथ गद्दारी की।+
5 इन बारहों को यीशु ने ये आदेश देकर भेजा,+ “तुम गैर-यहूदियों के इलाके में या सामरिया के किसी शहर में मत जाना।+ 6 इसके बजाय, सिर्फ इसराएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास जाना।+ 7 तुम जहाँ-जहाँ जाओ वहाँ यह प्रचार करना, ‘स्वर्ग का राज पास आ गया है।’+ 8 बीमारों को ठीक करो,+ मुरदों को ज़िंदा करो, कोढ़ियों को शुद्ध करो, दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालो। तुम्हें मुफ्त मिला है, मुफ्त में दो। 9 अपने कमरबंद में न तो सोने के, न चाँदी के और न ही ताँबे के पैसे लेना।+ 10 न ही सफर के लिए खाने की पोटली या दो जोड़ी कपड़े या जूतियाँ या लाठी लेना+ क्योंकि काम करनेवाला भोजन पाने का हकदार है।+
11 तुम जिस किसी शहर या गाँव में जाओ, तो अच्छी तरह ढूँढ़ो कि वहाँ कौन योग्य है और तब तक उसके यहाँ रहो, जब तक कि तुम उस इलाके से न निकलो।+ 12 जब तुम किसी घर में जाओ, तो घर के लोगों को नमस्कार करो। 13 अगर वह घराना योग्य है, तो वह शांति जिसकी तुमने दुआ की थी, उस पर बनी रहेगी।+ लेकिन अगर वह योग्य नहीं है, तो शांति तुम्हारे पास लौट आए। 14 अगर किसी घर या शहर में कोई तुम्हें स्वीकार नहीं करे या तुम्हारी नहीं सुने, तो वहाँ से बाहर निकलते वक्त अपने पैरों की धूल झाड़ देना।+ 15 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि न्याय के दिन सदोम और अमोरा+ का हाल उस शहर के हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा।
16 देखो! मैं तुम्हें भेड़ों की तरह भेड़ियों के बीच भेज रहा हूँ। इसलिए साँपों की तरह सतर्क रहो और कबूतरों की तरह सीधे बने रहो।+ 17 लोगों से सावधान रहो क्योंकि वे तुम्हें निचली अदालतों के हवाले कर देंगे+ और अपने सभा-घरों में तुम्हें कोड़े लगवाएँगे।+ 18 मेरी वजह से तुम्हें राज्यपालों और राजाओं के सामने पेश किया जाएगा+ ताकि उन्हें और गैर-यहूदियों को गवाही मिले।+ 19 मगर जब वे तुम्हें पकड़वाएँगे, तो यह चिंता न करना कि तुम क्या कहोगे और कैसे कहोगे। जो तुम्हें बोलना है वह उस वक्त तुम जान जाओगे।+ 20 इसलिए कि तुम अपने आप नहीं बल्कि अपने पिता की पवित्र शक्ति की मदद से बोलोगे।+ 21 भाई, भाई को मरवाने के लिए सौंप देगा और पिता अपने बच्चों को। बच्चे अपने माँ-बाप के खिलाफ खड़े होंगे और उन्हें मरवा डालेंगे।+ 22 मेरे नाम की वजह से सब लोग तुमसे नफरत करेंगे।+ मगर जो अंत तक धीरज धरेगा,* वही उद्धार पाएगा।+ 23 जब वे एक शहर में तुम्हें सताएँ, तो दूसरे शहर में भाग जाना+ क्योंकि मैं तुमसे सच कहता हूँ कि तुम इसराएल के शहरों का दौरा पूरा भी न कर पाओगे कि इंसान का बेटा आ जाएगा।
24 चेला अपने गुरु से बड़ा नहीं होता, न ही दास अपने मालिक से।+ 25 एक चेले का अपने गुरु जैसा और दास का अपने मालिक जैसा बनना ही बहुत है।+ जब लोगों ने घर के मालिक को ही बाल-ज़बूल* कहा है,+ तो उसके घर के लोगों को क्यों न कहेंगे? 26 इसलिए उनसे मत डरो क्योंकि ऐसा कुछ नहीं जो ढका गया हो और खोला न जाए और जिसे राज़ रखा गया हो और जाना न जाए।+ 27 जो मैं तुम्हें अँधेरे में बताता हूँ उसे उजाले में कहो और जो मैं तुमसे फुसफुसाकर कहता हूँ, उसका घर की छतों पर चढ़कर ऐलान करो।+ 28 उनसे मत डरो जो शरीर को नष्ट कर सकते हैं मगर जीवन को नहीं,*+ इसके बजाय उससे डरो जो जीवन और शरीर दोनों को गेहन्ना* में मिटा सकता है।+ 29 क्या एक पैसे में* दो चिड़ियाँ नहीं बिकतीं? मगर उनमें से एक भी तुम्हारे पिता के जाने बगैर ज़मीन पर नहीं गिरती।+ 30 मगर तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है। 31 इसलिए मत डरो, तुम बहुत-सी चिड़ियों से कहीं ज़्यादा अनमोल हो।+
32 तो फिर, जो कोई लोगों के सामने मुझे स्वीकार करता है,+ मैं भी स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के सामने उसे स्वीकार करूँगा।+ 33 मगर जो कोई लोगों के सामने मेरा इनकार करता है, मैं भी स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के सामने उसका इनकार कर दूँगा।+ 34 यह मत सोचो कि मैं धरती पर शांति लाने आया हूँ, मैं शांति लाने नहीं बल्कि तलवार चलवाने आया हूँ।+ 35 मैं बेटे को पिता के, बेटी को माँ के और बहू को उसकी सास के खिलाफ करने आया हूँ।+ 36 वाकई, एक आदमी के दुश्मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे। 37 जो मुझसे ज़्यादा अपने पिता या अपनी माँ से लगाव रखता है, वह मेरे लायक नहीं और जो मुझसे ज़्यादा अपने बेटे या अपनी बेटी से लगाव रखता है, वह मेरे लायक नहीं।+ 38 जो कोई अपना यातना का काठ* नहीं उठाना चाहता और मेरे पीछे नहीं चलता, वह मेरा चेला बनने के लायक नहीं।+ 39 जो अपनी जान बचाता है वह उसे खोएगा और जो मेरी खातिर अपनी जान गँवाता है वह उसे पाएगा।+
40 जो तुम्हें स्वीकार करता है, वह मुझे भी स्वीकार करता है और जो मुझे स्वीकार करता है, वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है।+ 41 जो किसी भविष्यवक्ता को इसलिए स्वीकार करता है कि वह भविष्यवक्ता है, उसे वही इनाम मिलेगा जो एक भविष्यवक्ता को मिलता है।+ और जो किसी नेक इंसान को इसलिए स्वीकार करता है कि वह नेक है, उसे वही इनाम मिलेगा जो एक नेक इंसान को मिलता है। 42 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कोई इन छोटों में से किसी एक को मेरा चेला जानकर एक प्याला ठंडा पानी भी पिलाता है, वह अपना इनाम ज़रूर पाएगा।”+
11 जब यीशु अपने 12 चेलों को हिदायतें दे चुका, तो वह वहाँ से दूसरे शहरों में सिखाने और प्रचार करने निकल पड़ा।+
2 लेकिन जब जेल में यूहन्ना+ ने मसीह के कामों की चर्चा सुनी, तो उसने अपने चेलों को उसके पास भेजा+ 3 कि वे उससे पूछें, “वह जो आनेवाला था, क्या तू ही है या हम किसी और की आस लगाएँ?”+ 4 यीशु ने उनसे कहा, “जो कुछ तुम देखते और सुनते हो, जाकर वह सब यूहन्ना को बताओ:+ 5 अंधे अब देख रहे हैं,+ लँगड़े चल-फिर रहे हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जा रहे हैं,+ बहरे सुन रहे हैं, मरे हुओं को ज़िंदा किया जा रहा है और गरीबों को खुशखबरी सुनायी जा रही है।+ 6 सुखी है वह जो मेरे बारे में शक नहीं करता।”*+
7 जब वे वहाँ से चल दिए, तो यीशु भीड़ से यूहन्ना के बारे में यह कहने लगा, “तुम वीराने में क्या देखने गए थे?+ हवा से इधर-उधर हिलते किसी नरकट को?+ 8 फिर तुम क्या देखने गए थे? क्या रेशमी मुलायम* कपड़े पहने किसी आदमी को? रेशमी मुलायम कपड़े पहननेवाले तो राजाओं के महलों में होते हैं। 9 तो आखिर तुम क्यों गए थे? एक भविष्यवक्ता को देखने? हाँ। बल्कि मैं तुमसे कहता हूँ, भविष्यवक्ता से भी बढ़कर किसी को देखने गए थे।+ 10 यह वही है जिसके बारे में लिखा है, ‘देख! मैं अपना दूत तेरे आगे-आगे भेज रहा हूँ, जो तेरे लिए रास्ता तैयार करेगा!’+ 11 मैं तुमसे सच कहता हूँ, अब तक जितने भी इंसान पैदा हुए हैं, उनमें यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बड़ा कोई भी नहीं। मगर जो स्वर्ग के राज में सबसे छोटा है, वह यूहन्ना से भी बड़ा है।+ 12 यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के दिनों से अब तक, स्वर्ग का राज वह लक्ष्य है जिसे पाने के लिए लोग ज़ोर लगा रहे हैं और जो पूरी कोशिश कर रहे हैं, वे उसे पा रहे हैं।*+ 13 क्योंकि सारे भविष्यवक्ताओं और कानून ने यूहन्ना के समय तक भविष्यवाणी की।+ 14 चाहे तुम इस बात को मानो या न मानो, ‘जिस एलियाह का आना तय है,’ वह यही है।+ 15 कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।
16 मैं इस पीढ़ी की तुलना किससे करूँ?+ यह ऐसी है मानो बाज़ारों में बैठे बच्चे अपने साथ खेलनेवालों को पुकारकर कह रहे हों, 17 ‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी मगर तुम नहीं नाचे। हम रोए मगर तुमने दुख के मारे छाती नहीं पीटी।’ 18 वैसे ही यूहन्ना औरों की तरह खाता-पीता नहीं आया फिर भी लोग कहते हैं, ‘उसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया है,’ 19 जबकि इंसान का बेटा औरों की तरह खाता-पीता आया,+ फिर भी लोग कहते हैं, ‘देखो! यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है और कर-वसूलनेवालों और पापियों का दोस्त है।’+ लेकिन बुद्धि अपने कामों* से सही साबित होती है।”*+
20 फिर वह उन शहरों को धिक्कारने लगा, जहाँ उसने ज़्यादातर शक्तिशाली काम किए थे, क्योंकि उन्होंने पश्चाताप नहीं किया: 21 “हे खुराजीन, धिक्कार है तुझ पर! हे बैतसैदा, धिक्कार है तुझ पर! क्योंकि जो शक्तिशाली काम तुममें हुए थे, अगर वे सोर और सीदोन में हुए होते, तो वहाँ के लोगों ने टाट ओढ़कर और राख में बैठकर कब का पश्चाताप कर लिया होता।+ 22 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि न्याय के दिन सोर और सीदोन का हाल, तुम्हारे हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा।+ 23 और कफरनहूम+ तू, तू क्या सोचता है कि तुझे आकाश तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो नीचे कब्र में जाएगा+ क्योंकि जो शक्तिशाली काम तुझमें किए गए थे, अगर वे सदोम में हुए होते तो वह आज तक बना रहता। 24 मैं तुझसे कहता हूँ कि न्याय के दिन सदोम का हाल, तेरे हाल से ज़्यादा सहने लायक होगा।”+
25 उस वक्त यीशु ने कहा, “हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के मालिक, मैं सबके सामने तेरी बड़ाई करता हूँ कि तूने ये बातें बुद्धिमानों और ज्ञानियों से तो छिपाए रखीं, मगर नन्हे-मुन्नों पर प्रकट की हैं।+ 26 क्योंकि हे पिता, तुझे यही तरीका मंज़ूर है। 27 मेरे पिता ने सबकुछ मेरे हाथ में सौंपा है।+ और कोई बेटे को पूरी तरह नहीं जानता सिवा पिता के,+ न ही कोई पिता को पूरी तरह जानता है सिवा बेटे के और उसके, जिस पर बेटा उसे प्रकट करना चाहे।+ 28 हे कड़ी मज़दूरी करनेवालो और बोझ से दबे लोगो, तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा। 29 मेरा जुआ उठाओ और मुझसे सीखो क्योंकि मैं कोमल स्वभाव का और दिल से दीन हूँ+ और तुम ताज़गी पाओगे। 30 इसलिए कि मेरा जुआ उठाना आसान है और मेरा बोझ हलका है।”
12 एक बार सब्त के दिन यीशु अपने चेलों के साथ खेतों से होकर जा रहा था। उसके चेलों को भूख लगी और वे अनाज की बालें तोड़कर खाने लगे।+ 2 यह देखकर फरीसियों ने उससे कहा, “देख! तेरे चेले सब्त के दिन वह काम कर रहे हैं जो कानून के खिलाफ है।”+ 3 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे, तब उसने क्या किया?+ 4 किस तरह वह परमेश्वर के भवन में गया और उन्होंने चढ़ावे की वे रोटियाँ* खायीं+ जो सिर्फ याजकों के लिए थीं और जिन्हें खाना उसके और उसके साथियों के लिए कानून के खिलाफ था?+ 5 या क्या तुमने कानून में नहीं पढ़ा कि सब्त के दिन, मंदिर में सेवा करनेवाले याजक सब्त का नियम तोड़ते हैं फिर भी वे निर्दोष ठहरते हैं?+ 6 मगर मैं तुमसे कहता हूँ, यहाँ वह है जो मंदिर से भी बढ़कर है।+ 7 लेकिन अगर तुमने इस बात का मतलब समझा होता कि मैं बलिदान नहीं चाहता बल्कि यह चाहता हूँ कि तुम दूसरों पर दया करो,+ तो तुम निर्दोष लोगों को दोषी न ठहराते। 8 क्योंकि इंसान का बेटा सब्त के दिन का प्रभु है।”+
9 वहाँ से वह उनके सभा-घर में गया। 10 और देखो! वहाँ एक आदमी था जिसका एक हाथ सूखा हुआ था।*+ तब कुछ लोगों ने यीशु से पूछा, “क्या सब्त के दिन बीमारों को ठीक करना सही है?” ताकि उन्हें उस पर इलज़ाम लगाने की कोई वजह मिल सके।+ 11 उसने कहा, “तुममें ऐसा कौन है जिसके पास एक ही भेड़ हो और अगर वह भेड़ सब्त के दिन गड्ढे में गिर जाए, तो वह उसे पकड़कर बाहर न निकाले?+ 12 तो सोचो एक इंसान का मोल भेड़ से कितना ज़्यादा है! इसलिए सब्त के दिन भला काम करना सही है।” 13 फिर उसने उस आदमी से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” जब उसने हाथ आगे बढ़ाया तो उसका हाथ दूसरे हाथ की तरह ठीक हो गया। 14 मगर फरीसी बाहर निकल गए और यीशु को मार डालने की साज़िश करने लगे। 15 यीशु यह जान गया और वहाँ से निकल गया। बहुत-से लोग उसके पीछे हो लिए+ और उसने उन सबकी बीमारियाँ दूर कीं। 16 मगर उसने उन्हें कड़ा हुक्म दिया कि वे किसी को न बताएँ कि वह कौन है+ 17 ताकि ये वचन पूरे हों जो भविष्यवक्ता यशायाह से कहलवाए गए थे:
18 “देखो! मेरा सेवक+ जिसे मैंने चुना है। मेरा प्यारा, जिसे मैंने मंज़ूर किया है!+ मैं उस पर अपनी पवित्र शक्ति उँडेलूँगा+ और वह राष्ट्रों को साफ-साफ दिखाएगा कि सच्चा न्याय क्या होता है। 19 वह न तो झगड़ा करेगा,+ न ज़ोर से चिल्लाएगा, न ही उसकी आवाज़ बड़ी-बड़ी सड़कों पर सुनायी देगी। 20 वह कुचले हुए नरकट को नहीं कुचलेगा, न ही टिमटिमाती बाती को बुझाएगा+ और वह पूरी तरह न्याय करेगा। 21 वाकई, राष्ट्र उसके नाम पर आशा रखेंगे।”+
22 इसके बाद वे उसके पास एक आदमी को लाए, जिसमें एक दुष्ट स्वर्गदूत समाया था और वह आदमी अंधा और गूँगा था। यीशु ने उस आदमी को ठीक कर दिया और वह बोलने और देखने लगा। 23 यह देखकर भीड़ दंग रह गयी और कहने लगी, “कहीं यही तो दाविद का वंशज नहीं?” 24 यह सुनकर फरीसियों ने कहा, “यह आदमी दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा बाल-ज़बूल* की मदद से ही लोगों में समाए दुष्ट स्वर्गदूत निकालता है।”+ 25 यीशु जानता था कि वे क्या सोच रहे हैं इसलिए उसने उनसे कहा, “जिस राज में फूट पड़ जाए, वह बरबाद हो जाएगा और जिस शहर या घर में फूट पड़ जाए वह नहीं टिकेगा। 26 उसी तरह, अगर शैतान ही शैतान को निकाले, तो उसमें फूट पड़ गयी है और वह खुद अपने खिलाफ हो गया है। तो फिर उसका राज कैसे टिकेगा? 27 और फिर, अगर मैं बाल-ज़बूल की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से इन्हें निकालते हैं? इसलिए वे ही तुम्हारे न्यायी ठहरेंगे। 28 लेकिन अगर मैं परमेश्वर की पवित्र शक्ति से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो इसका मतलब परमेश्वर का राज तुम्हारे हाथ से निकल चुका है।+ 29 या क्या कोई किसी ताकतवर आदमी के घर में घुसकर उसका सामान तब तक लूट सकता है जब तक कि वह पहले उस आदमी को पकड़कर बाँध न दे? उसे बाँधने के बाद ही वह उसका घर लूट सकेगा। 30 जो मेरी तरफ नहीं है, वह मेरे खिलाफ है और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह तितर-बितर कर देता है।+
31 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि इंसानों का हर तरह का पाप और निंदा की बातें माफ की जाएँगी, मगर पवित्र शक्ति के खिलाफ निंदा की बातें माफ नहीं की जाएँगी।+ 32 मिसाल के लिए, अगर कोई इंसान के बेटे के खिलाफ बोलता है, तो उसे माफ किया जाएगा।+ मगर जो कोई पवित्र शक्ति के खिलाफ बोलता है, उसे माफ नहीं किया जाएगा, न तो इस दुनिया* में न ही आनेवाली दुनिया* में।+
33 अगर तुम बढ़िया पेड़ हो, तो तुम्हारा फल भी बढ़िया होगा और अगर तुम सड़ा पेड़ हो, तो तुम्हारा फल भी सड़ा हुआ होगा क्योंकि एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है।+ 34 अरे साँप के सँपोलो,+ जब तुम दुष्ट हो तो अच्छी बातें कैसे कह सकते हो? क्योंकि जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।+ 35 अच्छा इंसान अपनी अच्छाई के खज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है, जबकि बुरा इंसान अपनी बुराई के खज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है।+ 36 मैं तुमसे कहता हूँ कि लोग जो भी निकम्मी बात बोलते हैं, उसके लिए उन्हें न्याय के दिन हिसाब देना होगा।+ 37 तुझे अपनी बातों की वजह से नेक ठहराया जाएगा या अपनी बातों की वजह से दोषी ठहराया जाएगा।”
38 यह सुनकर कुछ शास्त्रियों और फरीसियों ने यीशु से कहा, “हे गुरु, हम चाहते हैं कि तू हमें कोई चिन्ह दिखाए।”+ 39 यीशु ने उनसे कहा, “एक दुष्ट और विश्वासघाती* पीढ़ी हमेशा कोई चिन्ह देखने की ताक में लगी रहती है। मगर इसे योना भविष्यवक्ता के चिन्ह को छोड़ और कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा।+ 40 ठीक जैसे योना एक बड़ी मछली के पेट में तीन दिन और तीन रात रहा,+ वैसे ही इंसान का बेटा धरती के गर्भ में तीन दिन और तीन रात रहेगा।+ 41 नीनवे के लोग न्याय के वक्त इस पीढ़ी के साथ उठेंगे और इसे दोषी ठहराएँगे क्योंकि उन्होंने योना का प्रचार सुनकर पश्चाताप किया था।+ मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो योना से भी बढ़कर है।+ 42 दक्षिण की रानी को न्याय के वक्त इस पीढ़ी के साथ उठाया जाएगा और वह इसे दोषी ठहराएगी क्योंकि वह सुलैमान की बुद्धि की बातें सुनने के लिए पृथ्वी के छोर से आयी थी।+ मगर देखो! यहाँ वह मौजूद है जो सुलैमान से भी बढ़कर है।+
43 जब एक दुष्ट स्वर्गदूत* किसी आदमी से बाहर निकल आता है, तो आराम करने की जगह ढूँढ़ने के लिए सूखे इलाकों में फिरता है, मगर उसे कोई जगह नहीं मिलती।+ 44 तब वह कहता है, ‘मैं अपने जिस घर से निकला था, उसमें फिर लौट जाऊँगा।’ वह आकर पाता है कि वह घर न सिर्फ खाली पड़ा है बल्कि साफ-सुथरा और सजा हुआ है। 45 तब वह जाकर सात और स्वर्गदूतों को लाता है जो उससे भी दुष्ट हैं। फिर वे सब उस आदमी में समाकर वहीं बस जाते हैं और उस आदमी की हालत पहले से भी बदतर हो जाती है।+ इस दुष्ट पीढ़ी का भी यही हाल होगा।”
46 जब यीशु भीड़ से बात कर ही रहा था, तो देखो! उसकी माँ और उसके भाई+ आकर बाहर खड़े हो गए। वे उससे बात करना चाहते थे।+ 47 तब किसी ने यीशु से कहा, “देख! तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं और तुझसे बात करना चाहते हैं।” 48 तब यीशु ने उससे कहा, “मेरी माँ और मेरे भाई कौन हैं?” 49 फिर उसने अपने चेलों की तरफ हाथ बढ़ाकर कहा, “देखो, ये रहे मेरी माँ और मेरे भाई!+ 50 क्योंकि जो कोई स्वर्ग में रहनेवाले मेरे पिता की मरज़ी पूरी करता है, वही मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माँ है।”+
13 उस दिन यीशु घर से निकलने के बाद झील के किनारे बैठा हुआ था। 2 तब लोगों की एक बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठा हो गयी, इसलिए वह एक नाव पर चढ़कर बैठ गया और सारी भीड़ किनारे पर खड़ी हुई थी।+ 3 फिर उसने मिसालें देकर उन्हें बहुत-सी बातें बतायीं।+ उसने कहा, “देखो! एक बीज बोनेवाला बीज बोने निकला।+ 4 जब वह बो रहा था, तो कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और पंछी आकर उन्हें खा गए।+ 5 कुछ बीज ऐसी ज़मीन पर गिरे जहाँ ज़्यादा मिट्टी नहीं थी, क्योंकि मिट्टी के नीचे चट्टान थी। इन बीजों के अंकुर फौरन दिखायी देने लगे क्योंकि वहाँ मिट्टी गहरी नहीं थी।+ 6 लेकिन जब सूरज निकला, तो वे झुलस गए और जड़ न पकड़ने की वजह से सूख गए। 7 कुछ और बीज काँटों में गिरे और कँटीले पौधों ने बढ़कर उन्हें दबा दिया।+ 8 मगर कुछ और बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरे और उनमें फल आने लगे। किसी में 100 गुना, किसी में 60 गुना तो किसी में 30 गुना।+ 9 कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।”+
10 फिर चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू लोगों को मिसालें देकर क्यों सिखाता है?”+ 11 तब उसने यह जवाब दिया, “स्वर्ग के राज के पवित्र रहस्यों की समझ+ तुम्हें दी गयी है, मगर उन लोगों को नहीं दी गयी। 12 क्योंकि जिस किसी के पास है, उसे और दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा। मगर जिस किसी के पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है।+ 13 मैं उन्हें इसलिए मिसालें बताता हूँ क्योंकि वे देखते हुए भी नहीं देखते और सुनते हुए भी नहीं सुनते, न ही इसके मायने समझते हैं।+ 14 उन पर यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी होती है, जो कहती है, ‘तुम लोग सुनोगे मगर सुनते हुए भी इसके मायने बिलकुल नहीं समझ पाओगे। और देखोगे मगर देखते हुए भी बिलकुल नहीं देख पाओगे।+ 15 क्योंकि इन लोगों का मन सुन्न हो चुका है। वे अपने कानों से सुनते तो हैं, मगर कुछ करते नहीं। उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली हैं ताकि न वे कभी अपनी आँखों से देखें, न अपने कानों से सुनें और न कभी उनका मन इसके मायने समझे और न वे पलटकर लौट आएँ और मैं उन्हें चंगा करूँ।’+
16 मगर सुखी हो तुम क्योंकि तुम्हारी आँखें देखती हैं और तुम्हारे कान सुनते हैं।+ 17 मैं तुमसे सच कहता हूँ, बहुत-से भविष्यवक्ताओं और नेक लोगों ने चाहा था कि वह सब देखें जो तुम देख रहे हो, मगर नहीं देख सके+ और वे बातें सुनें जो तुम सुन रहे हो, मगर नहीं सुन सके।
18 अब तुम बीज बोनेवाले की मिसाल पर ध्यान दो।+ 19 जो इंसान राज का वचन सुनता तो है मगर उसके मायने नहीं समझता, उसके दिल में जो बोया गया था उसे शैतान*+ आकर छीन ले जाता है। यह वही बीज है जो रास्ते के किनारे बोया गया था।+ 20 जो चट्टानी ज़मीन पर बोया गया था, यह वह इंसान है जो वचन को सुनते ही उसे खुशी-खुशी स्वीकार करता है।+ 21 मगर उसमें जड़ नहीं होती इसलिए वह थोड़े वक्त के लिए रहता है और जब वचन की वजह से उसे मुसीबतें या ज़ुल्म सहने पड़ते हैं, तो वह फौरन वचन पर विश्वास करना छोड़ देता है।* 22 जो काँटों के बीच बोया गया है, यह वह इंसान है जो वचन को सुनता तो है, मगर इस ज़माने* की ज़िंदगी की चिंता+ और धोखा देनेवाली पैसे की ताकत वचन को दबा देती है और वह फल नहीं देता।+ 23 जो बढ़िया मिट्टी में बोया गया है, यह वह इंसान है जो वचन को सुनता है, उसके मायने समझता है और वाकई फल देता है, कोई 100 गुना, कोई 60 गुना और कोई 30 गुना।”+
24 यीशु ने भीड़ को एक और मिसाल बतायी, “स्वर्ग के राज की तुलना एक ऐसे आदमी से की जा सकती है, जिसने अपने खेत में बढ़िया बीज बोए। 25 जब लोग रात को सो रहे थे, तो उसका दुश्मन आया और गेहूँ के बीच जंगली पौधे के बीज बोकर चला गया। 26 जब पौधे बड़े हुए और उनमें बालें आयीं, तो जंगली पौधे भी दिखायी देने लगे। 27 इसलिए उस आदमी के दासों ने आकर उससे कहा, ‘मालिक, क्या तूने अपने खेत में बढ़िया बीज नहीं बोए थे? तो फिर उसमें जंगली पौधे कहाँ से उग आए?’ 28 मालिक ने कहा, ‘यह एक दुश्मन का काम है।’+ तब उन्होंने कहा, ‘अगर तू कहे तो क्या हम जंगली पौधों को उखाड़कर बटोर लें?’ 29 उसने कहा, ‘नहीं! कहीं ऐसा न हो कि जंगली पौधे उखाड़ते वक्त तुम उनके साथ गेहूँ भी उखाड़ दो। 30 कटाई का समय आने तक उन्हें साथ-साथ बढ़ने दो। जब कटाई के दिन आएँगे, तो मैं काटनेवालों से कहूँगा कि पहले जंगली पौधों को उखाड़कर उन्हें गट्ठरों में बाँध दो ताकि उन्हें जला दिया जाए, उसके बाद तुम गेहूँ को मेरे गोदाम में जमा करो।’”+
31 उसने लोगों को एक और मिसाल दी, “स्वर्ग का राज राई के दाने की तरह है, जिसे एक आदमी ने लेकर अपने खेत में बो दिया।+ 32 दरअसल वह बीजों में सबसे छोटा होता है, मगर जब वह उगता है तो सब्ज़ियों के पौधों में सबसे बड़ा हो जाता है और एक पेड़ बन जाता है। यहाँ तक कि आकाश के पंछी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं।”
33 उसने उन्हें एक और मिसाल बतायी, “स्वर्ग का राज खमीर की तरह है, जिसे लेकर एक औरत ने करीब 10 किलो* आटे में गूँध दिया, आखिर में सारा आटा खमीरा हो गया।”+
34 यीशु ने भीड़ को ये सारी बातें मिसालें देकर बतायीं। वाकई, वह बगैर मिसाल के उनसे बात नहीं करता था+ 35 ताकि यह बात पूरी हो जो भविष्यवक्ता से कहलवायी गयी थी, “मैं मिसालें देकर सिखाऊँगा और वे बातें बताऊँगा जो शुरूआत* से छिपी हुई हैं।”+
36 इसके बाद यीशु भीड़ को विदा करके घर में गया। उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “हमें खेत के जंगली पौधों की मिसाल का मतलब समझा।” 37 उसने कहा, “बढ़िया बीज बोनेवाला, इंसान का बेटा है। 38 खेत, दुनिया है।+ बढ़िया बीज, राज के बेटे हैं। मगर जंगली पौधों के बीज, शैतान* के बेटे हैं+ 39 और जिस दुश्मन ने इन्हें बोया है, वह शैतान है। कटाई, दुनिया की व्यवस्था* का आखिरी वक्त है और कटाई करनेवाले स्वर्गदूत हैं। 40 इसलिए ठीक जैसे जंगली दाने के पौधों को उखाड़कर आग में जला दिया जाता है, वैसे ही इस दुनिया की व्यवस्था* के आखिरी वक्त में होगा।+ 41 इंसान का बेटा अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके राज से उन सब लोगों को इकट्ठा करेंगे, जो दूसरों को पाप की तरफ ले जाते हैं* और उन्हें भी जो दुष्ट काम करते हैं। 42 स्वर्गदूत उन्हें आग की भट्ठी में झोंक देंगे,+ जहाँ वे रोएँगे और दाँत पीसेंगे। 43 उस वक्त नेक जन अपने पिता के राज में सूरज की तरह तेज़ चमकेंगे।+ कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।
44 स्वर्ग का राज ज़मीन में छिपे खज़ाने की तरह है जो एक आदमी को मिलता है। वह इसे दोबारा वहीं छिपा देता है और खुशी के मारे जाकर अपना सबकुछ बेच देता है और उस ज़मीन को खरीद लेता है।+
45 इसके अलावा, स्वर्ग का राज एक ऐसे व्यापारी की तरह है, जो बेहतरीन किस्म के मोतियों की तलाश में घूमता है। 46 और जब उसे एक बेशकीमती मोती मिला, तो उसने जाकर फौरन अपना सबकुछ बेच दिया और वह मोती खरीद लिया।+
47 साथ ही, स्वर्ग का राज एक बड़े जाल की तरह है, जिसे समुंदर में डाला गया और जिसने हर किस्म की मछलियाँ समेट लीं। 48 जब जाल भर गया तो वे उसे खींचकर किनारे पर लाए और बैठकर अच्छी मछलियों+ को बरतनों में इकट्ठा किया, जबकि बेकार मछलियों+ को उन्होंने फेंक दिया। 49 इस दुनिया की व्यवस्था* के आखिरी वक्त में भी ऐसा ही होगा: स्वर्गदूत जाकर दुष्टों को नेक जनों से अलग करेंगे। 50 और दुष्टों को आग की भट्ठी में डाल देंगे, जहाँ वे रोएँगे और दाँत पीसेंगे।
51 क्या तुम इन सब बातों के मायने समझे?” उन्होंने कहा, “हाँ।” 52 उसने उनसे कहा, “अगर ऐसा है, तो लोगों को सिखानेवाला हर उपदेशक जिसे स्वर्ग के राज के बारे में सिखाया गया है, घर के उस मालिक की तरह है जो अपने खज़ाने से नयी और पुरानी चीज़ें बाहर लाता है।”
53 ये मिसालें बताने के बाद यीशु वहाँ से चला गया। 54 वह अपने इलाके में आया जहाँ वह पला-बढ़ा था।+ वह सभा-घर में लोगों को सिखाने लगा। वे उसकी बातें सुनकर हैरान रह गए और कहने लगे, “इस आदमी को ऐसी बुद्धि कहाँ से मिली और यह ऐसे शक्तिशाली काम कैसे कर पा रहा है?+ 55 क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं?+ क्या इसकी माँ का नाम मरियम नहीं और इसके भाई याकूब, यूसुफ, शमौन और यहूदा नहीं?+ 56 और इसकी बहनें भी क्या हमारे बीच नहीं रहतीं? तो फिर, इस आदमी को ये सारी बातें कहाँ से आ गयीं?”+ 57 इसलिए उन्होंने उस पर यकीन नहीं किया।+ मगर यीशु ने उनसे कहा, “एक भविष्यवक्ता का हर कहीं आदर किया जाता है, सिर्फ उसके अपने इलाके और घर में नहीं किया जाता।”+ 58 उनके विश्वास की कमी की वजह से उसने वहाँ ज़्यादा चमत्कार नहीं किए।
14 उस वक्त ज़िला-शासक हेरोदेस* ने यीशु के बारे में खबर सुनी।+ 2 उसने अपने सेवकों से कहा, “यह बपतिस्मा देनेवाला यूहन्ना ही है, जो मर गया था पर अब उसे ज़िंदा कर दिया गया है। इसी वजह से वह शक्तिशाली काम कर रहा है।”+ 3 हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की पत्नी हेरोदियास की वजह से यूहन्ना को गिरफ्तार कर लिया था और ज़ंजीरों में बाँधकर जेल में डलवा दिया था।+ 4 क्योंकि यूहन्ना हेरोदेस से कहा करता था, “तूने हेरोदियास को अपनी पत्नी बनाकर कानून तोड़ा है।”+ 5 हेरोदेस यूहन्ना को मार डालना चाहता था, मगर लोगों से डरता था क्योंकि वे यूहन्ना को एक भविष्यवक्ता मानते थे।+ 6 मगर हेरोदेस के जन्मदिन+ पर जब हेरोदियास की बेटी नाची, तो हेरोदेस इतना खुश हुआ+ 7 कि उसने कसम खाकर वादा किया कि वह उससे जो माँगेगी, वह उसे दे देगा। 8 तब उसने अपनी माँ के सिखाने पर कहा, “तू मुझे यहीं एक थाल में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर ला दे।”+ 9 यह सुनकर राजा दुखी तो हुआ, फिर भी उसने जो कसमें खायी थीं और उसके साथ जो लोग बैठे थे,* उनकी वजह से उसने हुक्म दिया कि यूहन्ना का सिर लाकर उसे दे दिया जाए। 10 उसने आदमी भेजा और जेल में यूहन्ना का सिर कटवा दिया। 11 उसका सिर एक थाल में रखकर लाया गया और उस लड़की को दे दिया गया और वह इसे अपनी माँ के पास ले गयी। 12 बाद में यूहन्ना के चेले आकर उसकी लाश ले गए और उसे दफना दिया और आकर यीशु को खबर दी। 13 यह सुनकर यीशु वहाँ से किसी सुनसान जगह में एकांत पाने के लिए नाव पर निकल पड़ा। मगर जब लोगों की भीड़ ने सुना, तो वे शहरों से पैदल ही उसके पीछे चले आए।+
14 जब यीशु किनारे पर पहुँचा, तो उसने लोगों की एक बड़ी भीड़ देखी। उन्हें देखकर वह तड़प उठा+ और उसने बीमारों को ठीक किया।+ 15 मगर जब शाम हुई, तो चेलों ने उसके पास आकर कहा, “यह जगह सुनसान है और बहुत देर हो चुकी है। इसलिए भीड़ को विदा कर दे ताकि वे आस-पास के गाँवों में जाकर खाने के लिए कुछ खरीद लें।”+ 16 मगर यीशु ने उनसे कहा, “उन्हें जाने की ज़रूरत नहीं, तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” 17 चेलों ने उससे कहा, “यहाँ हमारे पास पाँच रोटियों और दो मछलियों के सिवा और कुछ नहीं है।” 18 उसने कहा, “रोटी और मछली मेरे पास लाओ।” 19 इसके बाद यीशु ने भीड़ को घास पर आराम से बैठ जाने के लिए कहा। फिर उसने पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आकाश की तरफ देखकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया।+ उसने रोटियाँ तोड़कर चेलों को दीं और चेलों ने उन्हें भीड़ में बाँट दिया। 20 उन सबने जी-भरकर खाया और उन्होंने बचे हुए टुकड़े उठाए जिनसे 12 टोकरियाँ भर गयीं।+ 21 खानेवालों में करीब 5,000 आदमी थे, उनके अलावा औरतें और बच्चे भी थे।+ 22 फिर यीशु ने बिना देर किए अपने चेलों से कहा कि वे नाव पर चढ़ जाएँ और उससे पहले उस पार चले जाएँ, जबकि वह खुद भीड़ को विदा करने लगा।+
23 भीड़ को भेजने के बाद वह प्रार्थना करने के लिए पहाड़ पर चला गया।+ शाम हो गयी और वह वहाँ अकेला ही था। 24 अब तक चेलों की नाव किनारे से कुछ किलोमीटर* दूर जा चुकी थी। नाव लहरों के थपेड़े खा रही थी क्योंकि हवा का रुख उनके खिलाफ था। 25 मगर रात के चौथे पहर* यीशु पानी पर चलता हुआ उनके पास आया। 26 जैसे ही चेलों ने देखा कि वह पानी पर चल रहा है, वे घबराकर कहने लगे, “यह ज़रूर हमारा वहम है!” और वे डर के मारे ज़ोर से चिल्लाने लगे। 27 मगर तभी यीशु ने उनसे कहा, “हिम्मत रखो, मैं ही हूँ। डरो मत।”+ 28 तब पतरस ने कहा, “प्रभु अगर यह तू है, तो मुझे आज्ञा दे कि मैं पानी पर चलकर तेरे पास आऊँ।” 29 यीशु ने कहा, “आ!” तब पतरस नाव से उतरा और पानी पर चलता हुआ यीशु की तरफ जाने लगा। 30 मगर तूफान को देखकर वह डर गया और डूबने लगा। तब वह चिल्ला उठा, “हे प्रभु, मुझे बचा!” 31 यीशु ने फौरन अपना हाथ बढ़ाकर उसे थाम लिया और उससे कहा, “अरे कम विश्वास रखनेवाले, तूने शक क्यों किया?”+ 32 जब वे दोनों नाव पर चढ़ गए, तो तूफान थम गया। 33 तब जो नाव में थे उन्होंने उसे झुककर प्रणाम* किया और कहा, “तू वाकई परमेश्वर का बेटा है।” 34 वे उस पार पहुँचकर गन्नेसरत आ गए।+
35 वहाँ के लोग उसे पहचान गए और उन्होंने आस-पास के सारे इलाके में खबर भेजी और लोग सब बीमारों को उसके पास ले आए। 36 और वे उससे बिनती करने लगे कि वह उन्हें अपने कपड़े की झालर को ही छू लेने दे।+ जितनों ने उसे छुआ वे सब अच्छे हो गए।
15 इसके बाद यरूशलेम से फरीसी और शास्त्री, यीशु के पास आए+ और कहने लगे, 2 “आखिर क्यों तेरे चेले हमारे पुरखों की परंपराओं को तोड़ते हैं? जैसे, खाना खाने से पहले वे हाथ नहीं धोते।”*+
3 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “तुम क्यों अपनी परंपराओं की वजह से परमेश्वर की आज्ञा तोड़ते हो?+ 4 मिसाल के लिए, परमेश्वर ने कहा था, ‘अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना’+ और ‘जो कोई अपने पिता या अपनी माँ को बुरा-भला कहता है,* वह मार डाला जाए।’+ 5 मगर तुम कहते हो, ‘अगर एक आदमी अपने पिता या अपनी माँ से कहता है, “मेरे पास जो कुछ है जिससे तुझे फायदा हो सकता था, वह परमेश्वर के लिए रखी गयी भेंट है,”+ 6 तो उसे अपने माता-पिता का आदर करने की कोई ज़रूरत नहीं।’ इस तरह तुमने अपनी परंपराओं की वजह से परमेश्वर के वचन को रद्द कर दिया है।+ 7 अरे कपटियो, यशायाह ने तुम्हारे बारे में बिलकुल सही भविष्यवाणी की थी, जब उसने कहा,+ 8 ‘ये लोग होंठों से तो मेरा आदर करते हैं, मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है। 9 ये बेकार ही मेरी उपासना करते रहते हैं क्योंकि ये इंसानों की आज्ञाओं को परमेश्वर की शिक्षाएँ बताकर सिखाते हैं।’”+ 10 तब यीशु ने भीड़ को अपने पास बुलाया और उनसे कहा, “सुनो और इस बात के मायने समझो:+ 11 जो मुँह में जाता है वह इंसान को दूषित नहीं करता, लेकिन जो उसके मुँह से निकलता है वही उसे दूषित करता है।”+
12 फिर चेलों ने आकर उससे कहा, “क्या तू जानता है कि फरीसियों को तेरी बात चुभ गयी है?”+ 13 तब उसने कहा, “हर वह पौधा जिसे स्वर्ग में रहनेवाले मेरे पिता ने नहीं लगाया, जड़ से उखाड़ दिया जाएगा। 14 उन्हें रहने दो। वे खुद तो अंधे हैं, मगर दूसरों को राह दिखाते हैं। अगर एक अंधा अंधे को राह दिखाए, तो दोनों गड्ढे में जा गिरेंगे।”+ 15 यह सुनकर पतरस ने उससे कहा, “हमें उस मिसाल का मतलब समझा।” 16 उसने कहा, “क्या तुम भी अब तक नहीं समझे?+ 17 क्या तुम नहीं जानते कि मुँह में जानेवाली हर चीज़ पेट से होते हुए जाती है और फिर मल-कुंड में निकल जाती है? 18 मगर जो कुछ मुँह से निकलता है, वह दिल से निकलता है और यही सब एक इंसान को दूषित करता है।+ 19 जैसे, दुष्ट विचार दिल से ही निकलते हैं।+ इनकी वजह से हत्या, व्यभिचार, नाजायज़ यौन-संबंध,* और चोरी की जाती है, झूठी गवाही दी जाती है और निंदा की बातें की जाती हैं। 20 यही सब इंसान को दूषित करता है, मगर बिना हाथ धोए* खाना खाना उसे दूषित नहीं करता।”
21 अब यीशु वहाँ से निकलकर सोर और सीदोन के इलाके में चला गया।+ 22 और देखो! उस इलाके की एक औरत जो फीनीके की रहनेवाली थी उसके पास आयी और चिल्लाकर कहने लगी, “हे प्रभु, दाविद के वंशज, मुझ पर दया कर। मेरी बेटी को एक दुष्ट स्वर्गदूत ने बुरी तरह काबू में कर लिया है।”+ 23 मगर यीशु ने उससे एक शब्द भी न कहा। इसलिए उसके चेले आए और बार-बार कहने लगे, “इसे भेज दे क्योंकि यह चिल्लाती हुई हमारे पीछे-पीछे आ रही है।” 24 तब उसने कहा, “मुझे इसराएल के घराने की खोयी हुई भेड़ों को छोड़ किसी और के पास नहीं भेजा गया।”+ 25 मगर वह औरत यीशु के पास आयी और उसे झुककर प्रणाम* करके कहने लगी, “हे प्रभु, मेरी मदद कर!” 26 उसने कहा, “बच्चों की रोटी लेकर पिल्लों के आगे फेंकना सही नहीं है।” 27 तब औरत ने कहा, “सही कहा प्रभु, मगर फिर भी पिल्ले अपने मालिकों की मेज़ से गिरे टुकड़े तो खाते ही हैं।”+ 28 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “तेरा विश्वास बहुत बड़ा है। जैसा तू चाहती है, तेरे लिए वैसा ही हो।” और उसी घड़ी उसकी बेटी ठीक हो गयी।
29 फिर यीशु उस इलाके से निकलकर गलील झील के पास आया+ और पहाड़ पर चढ़कर वहाँ बैठ गया। 30 तब भारी तादाद में लोग उसके पास आए और अपने साथ लूले-लँगड़े, अंधे, गूँगे और ऐसे बहुत-से लोगों को लाए और उसके पैरों के पास डाल दिया और उसने उन्हें ठीक किया।+ 31 जब भीड़ के लोगों ने देखा कि गूँगे बोल रहे हैं, लूले-लँगड़े ठीक हो रहे हैं और अंधे देख रहे हैं, तो वे दंग रह गए और उन्होंने इसराएल के परमेश्वर की महिमा की।+
32 तब यीशु ने अपने चेलों को बुलाया और कहा, “मुझे इस भीड़ पर तरस आ रहा है+ क्योंकि इन्हें मेरे साथ रहते हुए तीन दिन बीत चुके हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा नहीं भेजना चाहता, कहीं वे रास्ते में ही पस्त न हो जाएँ।”+ 33 मगर चेलों ने उससे कहा, “यहाँ इस सुनसान जगह में हम इतनी रोटियाँ कहाँ से लाएँ कि यह बड़ी भीड़ भरपेट खा सके?”+ 34 यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात। और कुछ छोटी मछलियाँ भी हैं।” 35 तब उसने भीड़ को ज़मीन पर आराम से बैठने के लिए कहा 36 और उन सात रोटियों और मछलियों को लेकर प्रार्थना में धन्यवाद दिया। फिर वह उन्हें तोड़कर चेलों को देने लगा और चेलों ने इन्हें भीड़ में बाँट दिया।+ 37 सब लोगों ने जी-भरकर खाया और बचे हुए टुकड़े इकट्ठे किए गए जिनसे सात बड़े टोकरे भर गए।+ 38 खानेवालों में करीब 4,000 आदमी थे, उनके अलावा औरतें और बच्चे भी थे। 39 आखिर में उसने भीड़ को विदा किया, फिर वह नाव पर चढ़कर मगदन के इलाके में आया।+
16 यहाँ फरीसी और सदूकी यीशु के पास आए और उसकी परीक्षा लेने के लिए कहने लगे कि वह उन्हें स्वर्ग से एक चिन्ह दिखाए।+ 2 यीशु ने उनसे कहा, “जब शाम होती है तो तुम कहते हो, ‘मौसम साफ रहेगा क्योंकि आसमान का रंग चटक लाल है।’ 3 फिर सुबह के वक्त कहते हो, ‘आज मौसम सर्द और बरसाती होगा क्योंकि आसमान का रंग लाल तो है, मगर बादल छाए हैं।’ तुम आसमान को देखकर उसका मतलब समझाना तो जानते हो, मगर समय की निशानियाँ देखकर उनका मतलब समझाना नहीं जानते। 4 यह दुष्ट और विश्वासघाती* पीढ़ी हमेशा कोई चिन्ह देखने की ताक में लगी रहती है। मगर इसे योना के चिन्ह को छोड़ और कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा।”+ यह कहने के बाद वह उन्हें छोड़कर आगे चला गया।
5 चेले उस पार जाते समय अपने साथ रोटियाँ लेना भूल गए थे।+ 6 यीशु ने उनसे कहा, “अपनी आँखें खुली रखो और फरीसियों और सदूकियों के खमीर से चौकन्ने रहो।”+ 7 तब वे एक-दूसरे से कहने लगे, “हम अपने साथ रोटियाँ नहीं लाए।” 8 यह जानकर यीशु ने कहा, “अरे कम विश्वास रखनेवालो, तुम क्यों आपस में चर्चा कर रहे हो कि तुम्हारे पास रोटियाँ नहीं हैं? 9 क्या तुम अब तक नहीं समझे? क्या तुम्हें याद नहीं कि कैसे पाँच रोटियों से 5,000 लोगों ने खाया था और तुमने भरी हुई कितनी टोकरियाँ उठायी थीं?+ 10 क्या तुम्हें याद नहीं कि कैसे सात रोटियों से 4,000 लोगों ने खाया था और तुमने भरे हुए कितने टोकरे* उठाए थे?+ 11 तो फिर, तुम यह क्यों नहीं समझ पाए कि मैंने तुमसे रोटियों के बारे में नहीं कहा बल्कि यह कहा कि तुम फरीसियों और सदूकियों के खमीर से चौकन्ने रहो?”+ 12 तब उन्हें समझ आया कि वह फरीसियों और सदूकियों की शिक्षाओं से चौकन्ने रहने के लिए कह रहा है, न कि रोटियों के खमीर की बात कर रहा है।
13 जब यीशु कैसरिया फिलिप्पी के इलाके में आया, तो उसने अपने चेलों से पूछा, “लोग क्या कहते हैं, इंसान का बेटा कौन है?”+ 14 उन्होंने कहा, “कुछ कहते हैं, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला,+ दूसरे कहते हैं एलियाह+ और कुछ कहते हैं यिर्मयाह या कोई और भविष्यवक्ता।” 15 यीशु ने उनसे पूछा, “लेकिन तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूँ?” 16 शमौन पतरस ने जवाब दिया, “तू मसीह है,+ जीवित परमेश्वर का बेटा।”+ 17 यीशु ने उससे कहा, “हे शमौन, योना के बेटे, सुखी है तू क्योंकि तू यह बात हाड़-माँस के इंसान की मदद से नहीं, बल्कि स्वर्ग में रहनेवाले मेरे पिता की मदद से समझ पाया है।+ 18 मैं तुझसे यह कहता हूँ, तू पतरस है।+ और इस चट्टान+ पर मैं अपनी मंडली खड़ी करूँगा और कब्र* के दरवाज़े उस पर हावी न हो सकेंगे। 19 मैं तुझे स्वर्ग के राज की चाबियाँ दूँगा और जो कुछ तू धरती पर बाँधेगा, वह पहले ही स्वर्ग में बँधा होगा और जो कुछ तू धरती पर खोलेगा, वह पहले ही स्वर्ग में खुला होगा।” 20 इसके बाद उसने चेलों को सख्ती से कहा कि वे किसी को न बताएँ कि वह मसीह है।+
21 उस वक्त से यीशु अपने चेलों को बताने लगा कि उसे यरूशलेम जाना होगा और वहाँ मुखियाओं, प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हाथ कई दुख सहने होंगे, उसे मार डाला जाएगा और फिर तीसरे दिन ज़िंदा कर दिया जाएगा।+ 22 तब पतरस उसे अलग ले गया और झिड़कने लगा, “प्रभु खुद पर दया कर, तेरे साथ ऐसा कभी नहीं होगा।”+ 23 मगर उसने पतरस से मुँह फेर लिया और कहा, “अरे शैतान, मेरे सामने से दूर हो जा!* तू मेरे लिए ठोकर की वजह है क्योंकि तेरी सोच परमेश्वर जैसी नहीं, बल्कि इंसानों जैसी है।”+
24 इसके बाद, यीशु ने अपने चेलों से कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपना यातना का काठ* उठाए और मेरे पीछे चलता रहे।+ 25 क्योंकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहता है वह उसे खोएगा, मगर जो कोई मेरी खातिर अपनी जान गँवाता है वह उसे पाएगा।+ 26 वाकई, अगर एक इंसान सारी दुनिया हासिल कर ले मगर अपनी जान गँवा बैठे, तो उसे क्या फायदा?+ या एक इंसान अपनी जान के बदले क्या देगा?+ 27 क्योंकि यह तय है कि इंसान का बेटा अपने पिता से महिमा पाकर अपने स्वर्गदूतों के साथ आएगा। तब वह हरेक को उसके चालचलन के मुताबिक बदला देगा।+ 28 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यहाँ जो खड़े हैं, उनमें से कुछ ऐसे हैं जो तब तक मौत का मुँह नहीं देखेंगे, जब तक कि वे इंसान के बेटे को उसके राज में आता हुआ न देख लें।”+
17 छ: दिन बाद यीशु ने पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्ना को अपने साथ लिया। वह उनको एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया, जहाँ उनके सिवा कोई नहीं था।+ 2 उनके सामने यीशु का रूप बदल गया। उसका चेहरा सूरज की तरह दमक उठा और उसके कपड़े रौशनी की तरह चमकने लगे।+ 3 तभी अचानक उन्हें वहाँ मूसा और एलियाह दिखायी दिए, जो यीशु से बात कर रहे थे। 4 तब पतरस ने यीशु से कहा, “प्रभु, हम बहुत खुश हैं कि हम यहाँ आए। अगर तू चाहे तो मैं यहाँ तीन तंबू खड़े करता हूँ, एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।” 5 वह बोल ही रहा था कि तभी एक उजला बादल उन पर छा गया और देखो! उस बादल में से यह आवाज़ आयी, “यह मेरा प्यारा बेटा है जिसे मैंने मंज़ूर किया है।+ इसकी सुनो।”+ 6 यह सुनते ही चेले औंधे मुँह गिर पड़े और बहुत डर गए। 7 तब यीशु उनके नज़दीक आया और उन्हें छूकर कहा, “उठो, डरो मत।” 8 जब उन्होंने नज़रें उठायीं तो देखा कि वहाँ यीशु के सिवा कोई नहीं था। 9 इसके बाद जब वे पहाड़ से नीचे उतर रहे थे, तो यीशु ने उन्हें हुक्म दिया, “जब तक इंसान के बेटे को मरे हुओं में से ज़िंदा न किया जाए, तब तक इस दर्शन के बारे में किसी को मत बताना।”+
10 मगर चेलों ने उससे पूछा, “तो फिर, शास्त्री क्यों कहते हैं कि पहले एलियाह का आना ज़रूरी है?”+ 11 जवाब में उसने कहा, “एलियाह वाकई आ रहा है और वह सबकुछ पहले जैसा कर देगा।+ 12 बल्कि मैं तुमसे कहता हूँ कि एलियाह आ चुका है और उन्होंने उसे नहीं पहचाना, मगर उसके साथ वह सब किया जो वे करना चाहते थे।+ इसी तरह, इंसान का बेटा भी उनके हाथों दुख झेलेगा।”+ 13 तब चेले समझ गए कि वह उनसे यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के बारे में बात कर रहा है।
14 जब वे भीड़ की तरफ आए,+ तो एक आदमी यीशु के पास आया और उसके सामने घुटने टेककर कहने लगा, 15 “प्रभु, मेरे बेटे पर दया कर क्योंकि इसे मिरगी आती है और इसकी हालत बहुत खराब है। यह कभी आग में गिर जाता है, तो कभी पानी में।+ 16 मैं इसे तेरे चेलों के पास लाया था मगर वे इसे ठीक नहीं कर सके।” 17 तब यीशु ने कहा, “हे अविश्वासी और टेढ़े लोगो,*+ मैं और कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हारी सहूँ? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” 18 तब यीशु ने उस लड़के में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को फटकारा और वह उसमें से निकल गया। उसी पल लड़का ठीक हो गया।+ 19 इसके बाद चेले अकेले में यीशु के पास आए और उन्होंने कहा, “हम उस दुष्ट स्वर्गदूत को क्यों नहीं निकाल पाए?” 20 उसने कहा, “अपने विश्वास की कमी की वजह से। मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्वास है, तो तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘यहाँ से हटकर वहाँ चला जा’ और वह चला जाएगा और तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं होगा।”+ 21* —
22 जब यीशु और उसके चेले गलील में एक-साथ थे, तो उसने उनसे कहा, “इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात किया जाएगा और उसे लोगों के हवाले कर दिया जाएगा।+ 23 वे उसे मार डालेंगे और उसे तीसरे दिन ज़िंदा किया जाएगा।”+ यह सुनकर वे बहुत दुखी हो गए।
24 जब वे कफरनहूम पहुँचे, तो पतरस के पास वे लोग आए जो मंदिर का कर* वसूला करते थे। उन्होंने पतरस से कहा, “क्या तुम्हारा गुरु मंदिर का कर नहीं देता?”+ 25 उसने कहा, “हाँ, देता है।” मगर जब वह घर के अंदर गया, तो यीशु ने उसके बोलने से पहले ही उससे पूछा, “शमौन, तू क्या सोचता है? दुनिया के राजा महसूल या कर किससे लेते हैं? अपने बेटों से या परायों से?” 26 जब उसने कहा, “परायों से,” तो यीशु ने उससे कहा, “इसका मतलब है कि बेटों को कर देने की ज़रूरत नहीं है। 27 लेकिन ऐसा न हो कि हमारी वजह से वे ठोकर खाएँ,+ इसलिए तू झील के किनारे जा और मछली पकड़ने के लिए काँटा डाल। जो पहली मछली पकड़ में आए उसे लेना और उसका मुँह खोलना, तुझे उसमें चाँदी का एक सिक्का* मिलेगा। उसे ले जाकर अपने और मेरे लिए कर-वसूलनेवालों को दे देना।”
18 उस वक्त चेलों ने यीशु के पास आकर उससे पूछा, “स्वर्ग के राज में कौन सबसे बड़ा होगा?”+ 2 तब यीशु ने एक छोटे बच्चे को अपने पास बुलाकर उनके बीच खड़ा किया 3 और कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक कि तुम खुद को बदलकर* वैसे न बनो जैसे छोटे बच्चे होते हैं,+ तब तक तुम स्वर्ग के राज में हरगिज़ दाखिल न हो सकोगे।+ 4 इसलिए जो कोई इस छोटे बच्चे की तरह खुद को नम्र करेगा, वही स्वर्ग के राज में सबसे बड़ा होगा।+ 5 जो कोई मेरे नाम से ऐसे एक भी बच्चे को स्वीकार करता है, वह मुझे स्वीकार करता है। 6 मगर जो कोई मुझ पर विश्वास करनेवाले इन छोटों में से किसी को ठोकर खिलाता है,* उसके लिए यही अच्छा है कि उसके गले में चक्की का वह पाट लटकाया जाए जिसे गधा घुमाता है और उसे गहरे समुंदर में डुबा दिया जाए।+
7 इस दुनिया का बहुत बुरा हाल होगा, क्योंकि यह विश्वास की राह में बाधाएँ* डालती है! बेशक, राह में बाधाएँ ज़रूर आएँगी, मगर उस इंसान के साथ बहुत बुरा होगा जो विश्वास की राह में बाधा बनता है! 8 इसलिए अगर तेरा हाथ या पैर तुझसे पाप करवाता है* तो उसे काटकर दूर फेंक दे।+ अच्छा यही होगा कि तू एक हाथ या पैर के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि तू दोनों हाथों या पैरों समेत हमेशा जलनेवाली आग से नाश किया जाए।+ 9 अगर तेरी आँख तुझसे पाप करवाती है तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे। अच्छा यही होगा कि तू एक आँख के बिना जीवन पाए, बजाय इसके कि तू दोनों आँखों समेत गेहन्ना* की आग में फेंक दिया जाए।+ 10 ध्यान रहे कि तुम इन छोटों में से किसी को भी तुच्छ न समझो। मैं तुमसे कहता हूँ कि इनके स्वर्गदूत हमेशा स्वर्ग में मेरे पिता के सामने मौजूद रहते हैं।+ 11* —
12 तुम क्या सोचते हो? अगर किसी आदमी की 100 भेड़ें हों और उनमें से एक भटक जाए,+ तो क्या वह बाकी 99 को पहाड़ों पर छोड़कर उस एक भटकी हुई भेड़ को ढूँढ़ने नहीं जाएगा?+ 13 और अगर वह उसे मिल जाती है, तो मैं तुमसे सच कहता हूँ कि वह अपनी 99 भेड़ों से ज़्यादा, जो भटकी नहीं थीं, इस एक भेड़ के लिए खुशियाँ मनाएगा। 14 इसी तरह मेरा* पिता जो स्वर्ग में है, नहीं चाहता कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।+
15 अगर तेरा भाई कोई पाप करता है, तो जा और उससे अकेले में बात कर और उसकी गलती उसे बता।*+ अगर वह तेरी सुने, तो तूने अपने भाई को पा लिया है।+ 16 लेकिन अगर वह तेरी नहीं सुनता, तो अपने साथ एक या दो लोगों को ले जाकर उससे बात कर ताकि हर मामले की सच्चाई दो या तीन गवाहों के बयान* से साबित हो।+ 17 अगर वह उनकी नहीं सुनता, तो मंडली को बता। और अगर वह मंडली की भी नहीं सुनता, तो वह तेरे लिए गैर-यहूदी+ या कर-वसूलनेवाले जैसा ठहरे।+
18 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जो कुछ तुम धरती पर बाँधोगे, वह पहले ही स्वर्ग में बँधा होगा और जो कुछ तुम धरती पर खोलोगे, वह पहले ही स्वर्ग में खुला होगा। 19 मैं फिर तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुममें से दो लोग धरती पर किसी ज़रूरी बात के लिए एक मन होकर बिनती करें, तो स्वर्ग में रहनेवाला मेरा पिता उनके लिए उसे पूरा कर देगा।+ 20 इसलिए कि जहाँ दो या तीन जन मेरे नाम से इकट्ठा होते हैं,+ वहाँ मैं उनके बीच मौजूद रहता हूँ।”
21 इसके बाद पतरस ने आकर यीशु से पूछा, “प्रभु, अगर मेरा भाई मेरे खिलाफ पाप करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे माफ करूँ? सात बार?” 22 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझसे कहता हूँ कि सात बार नहीं बल्कि 77 बार।+
23 इसीलिए स्वर्ग के राज की तुलना एक ऐसे राजा से की जा सकती है, जो अपने दासों से कहता है कि वे अपना-अपना कर्ज़ चुकाएँ। 24 जब उसने हिसाब लेना शुरू किया, तो उसके सामने एक ऐसे दास को लाया गया जिस पर छ: करोड़ दीनार* का कर्ज़ था। 25 मगर उसके पास कर्ज़ चुकाने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उसके मालिक ने हुक्म दिया कि उस दास को, उसके बीवी-बच्चों को और जो कुछ उसका है, सब बेचकर कर्ज़ चुकाया जाए।+ 26 तब वह दास उसके सामने गिरकर* गिड़गिड़ाने लगा, ‘मुझे थोड़ी और मोहलत दे और मैं तेरी पाई-पाई चुका दूँगा।’ 27 यह देखकर मालिक का दिल तड़प उठा और उसने उस दास को छोड़ दिया और उसका सारा कर्ज़ माफ कर दिया।+ 28 लेकिन वही दास बाहर निकला और उसने अपने एक संगी दास को ढूँढ़ा, जिसने उससे 100 दीनार* उधार लिए थे। वह उसे पकड़कर उसका गला दबाने लगा और कहने लगा, ‘तूने जो उधार लिया है वह वापस कर।’ 29 तब उसका संगी दास उसके पैर पड़ने लगा और बिनती करने लगा, ‘मुझे थोड़ी और मोहलत दे और मैं तेरा उधार चुका दूँगा।’ 30 मगर उसने उसकी एक न सुनी और जाकर उसे तब तक के लिए जेल में डलवा दिया, जब तक कि वह अपना उधार न चुका दे। 31 जब उसके संगी दासों ने यह सब देखा, तो वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने जाकर अपने मालिक को सारी बात बता दी। 32 तब मालिक ने उस पहले दास को बुलवाया और उससे कहा, ‘अरे दुष्ट, जब तू मेरे सामने गिड़गिड़ाया था, तब मैंने तेरा सारा कर्ज़ माफ कर दिया था। 33 तो क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया नहीं करनी थी, जैसे मैंने तुझ पर दया की थी?’+ 34 मालिक का गुस्सा भड़क उठा और उसने उस दास को तब तक के लिए जेलरों के हवाले कर दिया, जब तक कि वह उसकी पाई-पाई न चुका दे। 35 अगर तुममें से हरेक अपने भाई को दिल से माफ नहीं करेगा, तो स्वर्ग में रहनेवाला मेरा पिता भी तुम्हारे साथ इसी तरह पेश आएगा।”+
19 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो वह गलील से निकल पड़ा और यरदन के पार यहूदिया की सरहदों के पास आया।+ 2 भीड़-की-भीड़ उसके पीछे आ गयी और उसने वहाँ लोगों को ठीक किया।
3 तब फरीसी यीशु की परीक्षा लेने के लिए उसके पास आए। उन्होंने उससे पूछा, “क्या कानून के हिसाब से यह सही है कि एक आदमी अपनी पत्नी को किसी भी वजह से तलाक दे सकता है?”+ 4 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि जिसने उनकी सृष्टि की थी, उसने शुरूआत से ही उन्हें नर और नारी बनाया था+ 5 और कहा था, ‘इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे’?+ 6 तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं। इसलिए जिसे परमेश्वर ने एक बंधन में बाँधा है,* उसे कोई इंसान अलग न करे।”+ 7 तब फरीसियों ने उससे कहा, “तो फिर मूसा ने यह क्यों कहा कि एक आदमी तलाकनामा लिखकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है?”+ 8 यीशु ने उनसे कहा, “मूसा ने तुम्हारे दिलों की कठोरता की वजह से तुम्हें अपनी पत्नियों को तलाक देने की इजाज़त दी,+ मगर शुरूआत से ऐसा नहीं था।+ 9 मैं तुमसे कहता हूँ कि जो कोई नाजायज़ यौन-संबंध* के अलावा किसी और वजह से अपनी पत्नी को तलाक देता है और किसी दूसरी से शादी करता है, वह व्यभिचार* करने का दोषी है।”+
10 चेलों ने उससे कहा, “अगर एक पति का अपनी पत्नी के साथ ऐसा रिश्ता है, तो शादी न करना ही अच्छा है।” 11 उसने उनसे कहा, “मैं जो कह रहा हूँ उसे हर कोई नहीं कर सकता, सिर्फ वे कर सकते हैं जिनके पास यह तोहफा है।+ 12 क्योंकि कुछ लोग ऐसे हैं जो जन्म से नपुंसक हैं। कुछ ऐसे हैं जिन्हें लोगों ने नपुंसक बना दिया है और कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने स्वर्ग के राज के लिए खुद को नपुंसक बना लिया है। जो कोई राज के लिए अविवाहित रह सकता है, वह रहे।”+
13 फिर लोग छोटे बच्चों को यीशु के पास लाए ताकि वह उन पर हाथ रखे और उनके लिए प्रार्थना करे। मगर चेलों ने उन्हें डाँटा।+ 14 लेकिन यीशु ने कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, उन्हें रोकने की कोशिश मत करो, क्योंकि स्वर्ग का राज ऐसों ही का है।”+ 15 और उसने उन पर हाथ रखे, फिर वह वहाँ से चला गया।
16 और देखो! एक आदमी उसके पास आया और कहने लगा, “गुरु, हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए मैं कौन-सा अच्छा काम करूँ?”+ 17 यीशु ने उससे कहा, “तू मुझसे क्यों पूछता है कि अच्छा काम क्या है? सिर्फ एक ही है जो अच्छा है।+ लेकिन अगर तू ज़िंदगी पाना चाहता है, तो आज्ञाएँ मानता रह।”+ 18 उस आदमी ने पूछा, “कौन-सी आज्ञाएँ?” यीशु ने कहा, “यही कि तुम खून न करना,+ तुम व्यभिचार न करना,+ तुम चोरी न करना,+ तुम झूठी गवाही न देना,+ 19 अपने पिता और अपनी माँ का आदर करना+ और अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।”+ 20 उस नौजवान ने यीशु से कहा, “मैं ये सारी बातें मानता आया हूँ। बता कि मुझमें और क्या कमी है?” 21 यीशु ने उससे कहा, “अगर तू चाहता है कि तुझमें कोई कमी न हो,* तो जा और अपना सबकुछ बेचकर कंगालों को दे दे, क्योंकि तुझे स्वर्ग में खज़ाना मिलेगा+ और आकर मेरा चेला बन जा।”+ 22 जब उस नौजवान ने यह बात सुनी, तो वह दुखी होकर चला गया क्योंकि उसके पास बहुत धन-संपत्ति थी।+ 23 तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि एक अमीर आदमी के लिए स्वर्ग के राज में दाखिल होना बहुत मुश्किल होगा।+ 24 मैं तुमसे फिर कहता हूँ, परमेश्वर के राज में एक अमीर आदमी के दाखिल होने से, एक ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना ज़्यादा आसान है।”+
25 यह सुनकर चेलों को बड़ा ताज्जुब हुआ और वे कहने लगे, “तो भला कौन उद्धार पा सकता है?”+ 26 यीशु ने सीधे उनकी तरफ देखकर कहा, “इंसानों के लिए यह नामुमकिन है मगर परमेश्वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।”+
27 तब पतरस ने उससे कहा, “देख! हम तो सबकुछ छोड़कर तेरे पीछे चल रहे हैं, हमें क्या मिलेगा?”+ 28 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जब सबकुछ नया बनाया जाएगा* और इंसान का बेटा अपनी महिमा की राजगद्दी पर बैठेगा, तब तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो, 12 राजगद्दियों पर बैठकर इसराएल के 12 गोत्रों का न्याय करोगे।+ 29 और जिस किसी ने मेरे नाम की खातिर घरों या भाइयों या बहनों या पिता या माँ या बच्चों को छोड़ दिया है या ज़मीनें छोड़ दी हैं, वह इसका 100 गुना पाएगा और हमेशा की ज़िंदगी का वारिस होगा।+
30 फिर भी बहुत-से जो पहले हैं वे आखिरी होंगे और जो आखिरी हैं वे पहले होंगे।+
20 इसलिए कि स्वर्ग का राज उस मालिक जैसा है, जिसका अंगूरों का बाग था। वह तड़के सुबह बाहर निकला कि अपने बाग में दिहाड़ी पर काम करनेवाले मज़दूर लगाए।+ 2 वह मज़दूरों को दिन-भर की मज़दूरी के लिए एक दीनार* देने को राज़ी हुआ और उसने उन्हें अपने बाग में भेज दिया। 3 फिर वह तीसरे घंटे* के करीब बाहर निकला और उसने देखा कि बाज़ार के चौक में कुछ मज़दूर खड़े हैं जिन्हें कोई काम नहीं मिला। 4 बाग के मालिक ने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे बाग में जाओ और जो ठीक होगा, वह मैं तुम्हें दूँगा।’ 5 तब वे बाग में गए। वह फिर छठे* और नौवें घंटे* के करीब बाहर निकला और उसने ऐसा ही किया। 6 आखिर में, वह 11वें घंटे* के करीब बाहर निकला और कई और मज़दूरों को खड़े देखा। तब बाग के मालिक ने उनसे पूछा, ‘तुम दिन-भर यहाँ बेकार क्यों खड़े रहे?’ 7 उन्होंने कहा, ‘हमें किसी ने काम नहीं दिया।’ तब उसने कहा, ‘तुम भी मेरे बाग में जाओ।’
8 जब शाम हुई, तो बाग के मालिक ने काम की देखरेख करनेवाले आदमी से कहा, ‘मज़दूरों को बुला और उनकी मज़दूरी दे।+ जो आखिर में आए थे उनसे शुरू करते हुए, सबसे पहले आए मज़दूरों तक सबको दे।’ 9 जब 11वें घंटे में काम पर लगनेवाले आदमी आए, तो उनमें से हरेक को एक दीनार* मिला। 10 जब सबसे पहले आनेवालों की बारी आयी, तो उन्होंने सोचा कि उन्हें ज़्यादा मज़दूरी मिलेगी। मगर उन्हें भी एक दीनार* दिया गया। 11 एक दीनार मिलने पर वे उस मालिक पर कुड़कुड़ाने लगे, 12 ‘ये जो आखिर में आए थे, इन्होंने बस एक ही घंटा काम किया, फिर भी तूने उन्हें हमारे बराबर कर दिया, जबकि हमने सारा दिन मेहनत की और तपती धूप सही!’ 13 मगर मालिक ने उनमें से एक को जवाब दिया, ‘देख भई, मैं तेरे साथ कोई नाइंसाफी नहीं कर रहा। क्या तू मेरे यहाँ एक दीनार* पर काम करने के लिए राज़ी नहीं हुआ था?+ 14 इसलिए जो तेरा है वह ले और चला जा। जितना मैंने तुझे दिया है, उतना ही मैं आखिर में आनेवाले इस आदमी को देना चाहता हूँ। 15 क्या मुझे अधिकार नहीं कि अपने पैसे के साथ जो चाहे वह करूँ? या मैंने जो भलाई* की है उसे देखकर तुझे जलन हो रही है?’*+ 16 इस तरह, जो आखिरी हैं वे पहले होंगे और जो पहले हैं वे आखिरी।”+
17 जब वे सब यरूशलेम जा रहे थे, तो रास्ते में यीशु ने अपने 12 चेलों को अलग ले जाकर उनसे कहा,+ 18 “देखो! हम यरूशलेम जा रहे हैं और इंसान का बेटा प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हवाले किया जाएगा। वे उसे मौत की सज़ा सुनाएँगे+ 19 और गैर-यहूदियों के हवाले कर देंगे कि वे उसका मज़ाक उड़ाएँ, उसे कोड़े लगाएँ और काठ पर लटकाकर मार डालें।+ फिर तीसरे दिन उसे ज़िंदा कर दिया जाएगा।”+
20 इसके बाद, जब्दी की पत्नी अपने दो बेटों+ के साथ यीशु के पास आयी और उसे झुककर प्रणाम* किया। वह उससे कुछ माँगना चाहती थी।+ 21 यीशु ने उससे कहा, “तू क्या चाहती है?” वह बोली, “मुझसे वादा कर कि तेरे राज में, मेरे ये दोनों बेटे, एक तेरे दाएँ और दूसरा तेरे बाएँ बैठे।”+ 22 यीशु ने कहा, “तुम नहीं जानते कि तुम क्या माँग रहे हो। क्या तुम वह प्याला पी सकते हो, जो मैं पीनेवाला हूँ?”+ उन्होंने कहा, “हम पी सकते हैं।” 23 यीशु ने उनसे कहा, “तुम मेरा प्याला ज़रूर पीओगे,+ मगर मेरे दायीं या बायीं तरफ बैठने की इजाज़त देने का अधिकार मेरे पास नहीं। ये जगह उनके लिए हैं, जिनके लिए मेरे पिता ने इन्हें तैयार किया है।”+
24 जब बाकी दस ने इस बारे में सुना, तो उन्हें दोनों भाइयों पर बहुत गुस्सा आया।+ 25 मगर यीशु ने चेलों को अपने पास बुलाकर कहा, “तुम जानते हो कि दुनिया के अधिकारी लोगों पर हुक्म चलाते हैं और उनके बड़े-बड़े लोग उन पर अधिकार जताते हैं।+ 26 मगर तुम्हारे बीच ऐसा नहीं होना चाहिए,+ बल्कि तुममें जो बड़ा बनना चाहता है, उसे तुम्हारा सेवक होना चाहिए+ 27 और जो कोई तुममें पहला होना चाहता है, उसे तुम्हारा दास होना चाहिए।+ 28 जैसे इंसान का बेटा भी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है+ और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।”+
29 जब वे यरीहो से बाहर जा रहे थे, तब एक बड़ी भीड़ यीशु के पीछे आने लगी। 30 और देखो! दो अंधे सड़क के किनारे बैठे थे। जब उन्होंने सुना कि यीशु वहाँ से गुज़र रहा है तो वे ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगे, “हे प्रभु, दाविद के वंशज, हम पर दया कर!”+ 31 मगर भीड़ ने उन्हें डाँटा कि वे चुप हो जाएँ। लेकिन वे और ज़ोर से चिल्लाने लगे, “हे प्रभु, दाविद के वंशज, हम पर दया कर!” 32 तब यीशु रुक गया और उसने उन्हें बुलाकर कहा, “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?” 33 उन्होंने कहा, “प्रभु, हमारी आँखें ठीक हो जाएँ।” 34 यह देखकर यीशु तड़प उठा और उसने उनकी आँखों को छुआ।+ उसी वक्त उनकी आँखों की रौशनी लौट आयी और वे उसके पीछे हो लिए।
21 जब वे यरूशलेम के करीब आ गए और जैतून पहाड़ पर बैतफगे गाँव पहुँचे, तब यीशु ने दो चेलों को यह कहकर भेजा,+ 2 “जो गाँव तुम्हें नज़र आ रहा है उसमें जाओ। वहाँ जाते ही तुम्हें एक गधी और उसका बच्चा बँधा हुआ मिलेगा। उन्हें खोलकर मेरे पास ले आओ। 3 और अगर कोई तुमसे कुछ कहे तो कहना, ‘प्रभु को इनकी ज़रूरत है।’ तब वह उन्हें फौरन भेज देगा।”
4 यह इसलिए हुआ ताकि यह वचन पूरा हो जो भविष्यवक्ता से कहलवाया गया था: 5 “सिय्योन की बेटी से कहो, ‘देख! तेरा राजा तेरे पास आ रहा है,+ वह कोमल स्वभाव का है+ और एक गधे पर, हाँ, बोझ ढोनेवाली गधी के बच्चे पर सवार है।’”+
6 तब वे चेले निकल पड़े और जैसा यीशु ने उनसे कहा था, उन्होंने वैसा ही किया।+ 7 वे उस गधी और उसके बच्चे को ले आए और उन्होंने इन पर अपने ओढ़ने डाले और वह उन पर* बैठ गया।+ 8 तब भीड़ में से ज़्यादातर लोगों ने अपने कपड़े रास्ते में बिछाए+ जबकि दूसरे लोग पेड़ों से डालियाँ काटकर रास्ते में बिछाने लगे। 9 भीड़ के जो लोग उसके आगे-आगे चल रहे थे और जो उसके पीछे-पीछे आ रहे थे, वे पुकार रहे थे, “हम बिनती करते हैं, दाविद के वंशज को बचा ले!+ धन्य है वह जो यहोवा* के नाम से आता है!+ स्वर्ग में रहनेवाले, हम बिनती करते हैं, इसे बचा ले!”+
10 जब वह यरूशलेम पहुँचा, तो पूरे शहर में तहलका मच गया और सब कहने लगे, “यह कौन है?” 11 भीड़ के लोग कहते रहे, “यह भविष्यवक्ता यीशु है,+ गलील के नासरत का रहनेवाला!”
12 फिर यीशु मंदिर में गया और जो लोग मंदिर के अंदर बिक्री और खरीदारी कर रहे थे, उन सबको उसने खदेड़ दिया और पैसा बदलनेवाले सौदागरों की मेज़ें और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं।+ 13 और उसने उनसे कहा, “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा,’+ मगर तुम इसे लुटेरों का अड्डा* बना रहे हो।”+ 14 फिर मंदिर में उसके पास अंधे और लँगड़े आए और उसने उन्हें ठीक किया।
15 जब प्रधान याजकों और शास्त्रियों ने उसे आश्चर्य के काम करते देखा और मंदिर में लड़कों को यह पुकारते सुना, “हम बिनती करते हैं, दाविद के वंशज को बचा ले!”+ तो उन्हें बहुत गुस्सा आया।+ 16 उन्होंने उससे कहा, “क्या तू सुन रहा है, ये क्या कह रहे हैं?” यीशु ने उनसे कहा, “हाँ, क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा, ‘नन्हे-मुन्नों और दूध-पीते बच्चों के मुँह से तूने तारीफ करवायी है’?”+ 17 और वह उन्हें छोड़कर यरूशलेम से बाहर बैतनियाह चला गया और उसने वहीं रात बितायी।+
18 तड़के सुबह जब वह यरूशलेम की तरफ लौट रहा था तो उसे भूख लगी।+ 19 और रास्ते के किनारे जब एक अंजीर के पेड़ पर उसकी नज़र पड़ी तो वह उसके पास गया, मगर पत्तियों को छोड़ उसमें कुछ नहीं पाया।+ तब उसने पेड़ से कहा, “अब से फिर कभी तुझमें फल न लगें।”+ और अंजीर का वह पेड़ उसी घड़ी सूख गया। 20 जब चेलों ने इसे देखा, तो वे ताज्जुब करते हुए कहने लगे, “यह अंजीर का पेड़ फौरन कैसे सूख गया?”+ 21 यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर तुममें विश्वास हो और तुम शक न करो, तो तुम न सिर्फ वह करोगे जो मैंने इस अंजीर के पेड़ के साथ किया, बल्कि अगर तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘यहाँ से उखड़कर समुंदर में जा गिर,’ तो ऐसा हो जाएगा।+ 22 और तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में जो कुछ माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।”+
23 जब वह मंदिर में जाकर सिखा रहा था, तब प्रधान याजक और लोगों के मुखिया उसके पास आए और उन्होंने कहा, “तू ये सब किस अधिकार से करता है? और किसने तुझे यह अधिकार दिया है?”+ 24 यीशु ने उनसे कहा, “मैं भी तुमसे एक बात पूछता हूँ। अगर तुम उसका जवाब दोगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि मैं ये सब किस अधिकार से करता हूँ: 25 जो बपतिस्मा यूहन्ना ने दिया, वह किसकी तरफ से था? स्वर्ग की तरफ से या इंसानों की तरफ से?” वे एक-दूसरे से कहने लगे, “अगर हम कहें, ‘स्वर्ग की तरफ से,’ तो वह हमसे कहेगा, ‘फिर क्यों तुमने उसका यकीन नहीं किया?’+ 26 लेकिन अगर हम कहें, ‘इंसानों की तरफ से,’ तो पता नहीं यह भीड़ हमारे साथ क्या करेगी, क्योंकि ये सब यूहन्ना को एक भविष्यवक्ता मानते हैं।” 27 इसलिए उन्होंने यीशु को जवाब दिया, “हम नहीं जानते।” तब उसने कहा, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।
28 तुम क्या सोचते हो? एक आदमी के दो बेटे थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘बेटा जा, आज अंगूरों के बाग में काम कर।’ 29 तब उस लड़के ने कहा, ‘मैं नहीं जाऊँगा,’ मगर बाद में उसे पछतावा हुआ और वह गया। 30 फिर दूसरे बेटे के पास जाकर पिता ने वही बात कही। बेटे ने पिता से कहा, ‘ठीक है, मैं जाऊँगा।’ मगर वह नहीं गया। 31 इन दोनों में से किसने अपने पिता की मरज़ी पूरी की?” उन्होंने कहा, “पहले ने।” यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि कर-वसूलनेवाले और वेश्याएँ तुमसे पहले परमेश्वर के राज में जा रहे हैं। 32 क्योंकि यूहन्ना नेकी की राह दिखाता हुआ तुम्हारे पास आया, फिर भी तुमने उस पर यकीन नहीं किया। लेकिन कर-वसूलनेवालों और वेश्याओं ने उस पर यकीन किया।+ और यह सब देखने के बाद भी तुम्हें पछतावा नहीं हुआ और तुमने उस पर यकीन नहीं किया।
33 एक और मिसाल सुनो: एक ज़मींदार ने अंगूरों का एक बाग लगाया+ और उसके चारों तरफ बाड़ा बाँधा। उसने बाग में अंगूर रौंदने का हौद खोदा और एक मीनार खड़ी की।+ फिर उसे बागबानों को ठेके पर देकर वह परदेस चला गया।+ 34 कटाई का मौसम आने पर उसने अपने दासों को बागबानों के पास भेजा कि वे फसल में से उसका हिस्सा ले आएँ। 35 मगर बागबानों ने उसके दासों को पकड़ लिया और एक को उन्होंने पीटा, दूसरे का खून कर दिया और तीसरे को पत्थरों से मार डाला।+ 36 मालिक ने कुछ और दासों को भेजा, जो गिनती में पहले से ज़्यादा थे। लेकिन बागबानों ने इनके साथ भी वैसा ही सलूक किया।+ 37 आखिर में उसने अपने बेटे को यह सोचकर उनके पास भेजा, ‘वे मेरे बेटे की ज़रूर इज़्ज़त करेंगे।’ 38 उसके बेटे को देखकर बागबानों ने आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है।+ चलो इसे मार डालें और इसकी विरासत ले लें!’ 39 तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और बाग के बाहर ले जाकर मार डाला।+ 40 इसलिए जब बाग का मालिक आएगा, तो वह उन बागबानों के साथ क्या करेगा?” 41 उन्होंने कहा, “वे दुष्ट हैं, इसलिए वह उनका भयानक तरीके से नाश करेगा और अपने बाग का ठेका दूसरे बागबानों को दे देगा, जो कटाई के बाद उसका हिस्सा उसे दिया करेंगे।”
42 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुमने शास्त्र में कभी नहीं पढ़ा, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है।’+ क्या तुमने यह भी नहीं पढ़ा, ‘यह यहोवा* की तरफ से हुआ है और हमारी नज़र में लाजवाब है’?+ 43 इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ, परमेश्वर का राज तुमसे ले लिया जाएगा और एक ऐसे राष्ट्र को दे दिया जाएगा, जो राज के योग्य फल पैदा करता है। 44 जो कोई इस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा।+ और जिस किसी पर यह पत्थर गिरेगा, उसे यह चूर-चूर कर देगा।”+
45 जब प्रधान याजकों और फरीसियों ने उसकी मिसालें सुनीं, तो वे समझ गए कि वह उन्हीं के बारे में बोल रहा है।+ 46 हालाँकि वे उसे पकड़ना* चाहते थे मगर भीड़ से डरते थे, क्योंकि लोग यीशु को एक भविष्यवक्ता मानते थे।+
22 यीशु ने एक बार फिर उन्हें मिसालें देकर कहा, 2 “स्वर्ग का राज एक ऐसे राजा की तरह है, जिसने अपने बेटे की शादी पर दावत रखी।+ 3 उसने अपने दासों को भेजकर उन लोगों को बुलाया जिन्हें दावत का न्यौता दिया गया था। मगर वे नहीं आना चाहते थे।+ 4 राजा ने फिर से कुछ दासों को यह कहकर भेजा, ‘जिन्हें न्यौता दिया गया है उनसे जाकर कहो, “देखो! मैं खाना तैयार कर चुका हूँ, मेरे बैल और मोटे-ताज़े जानवर हलाल किए जा चुके हैं और सबकुछ तैयार है। शादी की दावत में आ जाओ।”’ 5 मगर उन्होंने ज़रा भी परवाह नहीं की और अपने-अपने रास्ते चल दिए, कोई अपने खेत की तरफ, तो कोई अपना कारोबार करने।+ 6 और बाकियों ने उसके दासों को पकड़ लिया, उनके साथ बुरा सलूक किया और उन्हें मार डाला।
7 तब राजा का गुस्सा भड़क उठा और उसने अपनी सेनाएँ भेजकर उन हत्यारों को मार डाला और उनके शहर को जलाकर राख कर दिया।+ 8 इसके बाद, उसने अपने दासों से कहा, ‘शादी की दावत तो तैयार है, मगर जिन्हें बुलाया गया था वे इसके लायक नहीं थे।+ 9 इसलिए शहर की बड़ी-बड़ी सड़कों पर जाओ और वहाँ तुम्हें जो भी मिले, उसे शादी की दावत के लिए बुला लाओ।’+ 10 तब वे दास सड़कों पर गए और उन्हें जितने भी लोग मिले, चाहे अच्छे या बुरे, वे सबको ले आए। और वह भवन जहाँ शादी की रस्में होनी थीं, दावत में आए* लोगों से भर गया।
11 जब राजा मेहमानों का मुआयना करने अंदर आया, तो उसकी नज़र एक ऐसे आदमी पर पड़ी जिसने शादी की पोशाक नहीं पहनी थी। 12 तब उसने उससे कहा, ‘अरे भई, तू शादी की पोशाक पहने बिना यहाँ अंदर कैसे आ गया?’ वह कोई जवाब न दे सका। 13 तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पैर बाँधकर इसे बाहर अँधेरे में फेंक दो, जहाँ यह रोएगा और दाँत पीसेगा।’
14 इसलिए कि न्यौता तो बहुत लोगों को मिला है, मगर चुने गए थोड़े हैं।”
15 इसके बाद फरीसी चले गए और उन्होंने आपस में सलाह की कि किस तरह यीशु को उसी की बातों में फँसाएँ।+ 16 इसलिए उन्होंने अपने चेलों को हेरोदेस के गुट के लोगों के साथ उसके पास भेजा।+ उन्होंने यीशु से कहा, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है और सच्चाई से परमेश्वर की राह सिखाता है। तू इंसानों को खुश करने की कोशिश नहीं करता, क्योंकि तू किसी की सूरत देखकर बात नहीं करता। 17 इसलिए हमें बता, तू क्या सोचता है, सम्राट* को कर देना सही है या नहीं?” 18 मगर वह समझ गया कि उनके इरादे बुरे हैं और उसने कहा, “अरे कपटियो, तुम मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? 19 मुझे कर का सिक्का दिखाओ।” तब वे उसके पास एक दीनार* लाए। 20 यीशु ने उनसे पूछा, “इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” 21 उन्होंने कहा, “सम्राट की।” तब उसने कहा, “इसलिए जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को।”+ 22 यह सुनकर वे दंग रह गए और उसे छोड़कर चले गए।
23 उसी दिन सदूकी उसके पास आए, जो कहते हैं कि मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने की शिक्षा सच नहीं है।+ उन्होंने उससे पूछा,+ 24 “गुरु, मूसा ने कहा था, ‘अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से शादी करे और अपने मरे हुए भाई के लिए औलाद पैदा करे।’+ 25 हमारे यहाँ सात भाई थे। पहले ने शादी की और बेऔलाद मर गया। और अपने भाई के लिए अपनी पत्नी छोड़ गया। 26 ऐसा ही दूसरे और तीसरे के साथ हुआ, यहाँ तक कि सातों के साथ यही हुआ। 27 आखिर में वह औरत भी मर गयी। 28 तो फिर जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे, तब वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।”
29 यीशु ने उनसे कहा, “तुम बड़ी गलतफहमी में हो क्योंकि तुम न तो शास्त्र को जानते हो, न ही परमेश्वर की शक्ति को।+ 30 क्योंकि जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे तो उनमें से न तो कोई आदमी शादी करेगा न कोई औरत, मगर वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे।+ 31 जहाँ तक मरे हुओं के ज़िंदा होने की बात है, क्या तुमने वह बात नहीं पढ़ी जो परमेश्वर ने तुमसे कही थी, 32 ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर हूँ’?+ वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्वर है।”+ 33 यह सुनकर भीड़ उसकी शिक्षा से हैरान रह गयी।+
34 जब फरीसियों ने सुना कि उसने सदूकियों का मुँह बंद कर दिया है, तो वे झुंड बनाकर उसके पास आए। 35 उनमें से एक ने, जो कानून का अच्छा जानकार था, यीशु को परखने के लिए पूछा, 36 “गुरु, कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?”+ 37 उसने कहा, “‘तुम अपने परमेश्वर यहोवा* से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान* और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना।’+ 38 यही सबसे बड़ी और पहली आज्ञा है। 39 और इसी की तरह यह दूसरी है, ‘तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।’+ 40 इन्हीं दो आज्ञाओं पर पूरा कानून और भविष्यवक्ताओं की शिक्षाएँ आधारित हैं।”+
41 जब फरीसी वहीं इकट्ठा थे, तो यीशु ने उनसे पूछा,+ 42 “तुम मसीह के बारे में क्या सोचते हो? वह किसका वंशज है?” उन्होंने कहा, “दाविद का।”+ 43 उसने कहा, “तो फिर, क्यों दाविद पवित्र शक्ति से उभारे जाने पर+ उसे प्रभु पुकारता है और कहता है, 44 ‘यहोवा* ने मेरे प्रभु से कहा, “तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ, जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पैरों तले न कर दूँ”’?+ 45 इसलिए अगर दाविद उसे प्रभु कहकर पुकारता है, तो वह उसका वंशज कैसे हुआ?”+ 46 जवाब में कोई उससे एक शब्द भी न कह सका और उस दिन के बाद किसी ने उससे और सवाल पूछने की हिम्मत नहीं की।
23 इसके बाद यीशु ने भीड़ से और अपने चेलों से बात की। उसने कहा, 2 “शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं। 3 इसलिए वे जो कुछ तुम्हें बताते हैं वह सब करो और मानो, मगर उनके जैसे काम मत करो, क्योंकि जो वे कहते हैं वह खुद नहीं करते।+ 4 उनके बनाए हुए नियम भारी बोझ जैसे हैं, जिन्हें वे लोगों के कंधों पर लाद देते हैं,+ मगर उसे उठाने के लिए खुद उँगली तक नहीं लगाना चाहते।+ 5 वे सारे काम लोगों को दिखाने के लिए करते हैं।+ वे उन डिब्बियों को और भी चौड़ा बनाते हैं, जिनमें शास्त्र की आयतें लिखी होती हैं और जिन्हें वे तावीज़ों की तरह पहनते हैं।+ वे अपने कपड़ों की झालरें और लंबी करते हैं।+ 6 उन्हें शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना और सभा-घरों में सबसे आगे की* जगहों पर बैठना पसंद है।+ 7 उन्हें बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना और गुरु* कहलाना अच्छा लगता है। 8 मगर तुम गुरु न कहलाना क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है+ जबकि तुम सब भाई हो। 9 और धरती पर किसी को अपना ‘पिता’ न कहना क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है+ जो स्वर्ग में है। 10 न ही तुम ‘नेता’ कहलाना क्योंकि तुम्हारा एक ही नेता या अगुवा है, मसीह। 11 मगर तुम्हारे बीच जो सबसे बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने।+ 12 जो कोई खुद को बड़ा बनाता है, उसे छोटा किया जाएगा+ और जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।+
13 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम लोगों के सामने स्वर्ग के राज का दरवाज़ा बंद कर देते हो। न तो खुद अंदर जाते हो और न ही उन्हें जाने देते हो जो अंदर जाना चाहते हैं।+ 14* —
15 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो,+ धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम एक आदमी को अपने पंथ में लाने के लिए* पूरी धरती पर फिरते हो और समुंदर तक पार कर जाते हो। और जब वह तुम्हारे पंथ में आ जाता है, तो तुम उसे खुद से दुगना गेहन्ना* के लायक बना देते हो।
16 अरे अंधो, तुम जो दूसरों को राह दिखाते हो,+ धिक्कार है तुम पर! तुम कहते हो, ‘अगर कोई मंदिर की कसम खाए तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर वह मंदिर के सोने की कसम खाए, तो अपनी कसम पूरी करना उसका फर्ज़ है।’+ 17 अरे मूर्खो और अंधो! असल में बड़ा क्या है, सोना या मंदिर जो सोने को पवित्र ठहराता है? 18 तुम यह भी कहते हो, ‘अगर कोई वेदी की कसम खाए तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर वह उस पर रखी भेंट की कसम खाए, तो अपनी कसम पूरी करना उसका फर्ज़ है।’ 19 अरे अंधो! असल में बड़ा क्या है, भेंट या वेदी जो भेंट को पवित्र ठहराती है? 20 इसलिए जो वेदी की कसम खाता है, वह उसकी और उस पर रखी सब चीज़ों की कसम खाता है। 21 जो मंदिर की कसम खाता है, वह उसकी और उस परमेश्वर की कसम खाता है जो मंदिर में निवास करता है।+ 22 जो स्वर्ग की कसम खाता है, वह परमेश्वर की राजगद्दी की और उस पर बैठनेवाले परमेश्वर की कसम खाता है।
23 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम पुदीने, सोए और जीरे का दसवाँ हिस्सा तो देते हो,+ मगर कानून की बड़ी-बड़ी बातों को यानी न्याय,+ दया+ और वफादारी को कोई अहमियत नहीं देते। ज़रूरी था कि ये चीज़ें देने के साथ-साथ तुम दूसरी आज्ञाओं को भी तुच्छ नहीं समझते।+ 24 अरे अंधे अगुवो,+ तुम मच्छर+ को तो छानकर निकाल देते हो, मगर ऊँट को निगल जाते हो!+
25 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम उन प्यालों और थालियों की तरह हो जिन्हें सिर्फ बाहर से साफ किया जाता है,+ मगर अंदर से वे गंदे हैं। तुम्हारे अंदर लालच* भरा है+ और तुम बेकाबू होकर अपनी इच्छाएँ पूरी करते हो।+ 26 अरे अंधे फरीसी, पहले प्याले और थाली को अंदर से साफ कर, तब वह बाहर से भी साफ हो जाएगा।
27 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो,+ धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम सफेदी पुती कब्रों की तरह हो,+ जो बाहर से तो बहुत खूबसूरत दिखायी देती हैं, मगर अंदर मुरदों की हड्डियों और हर तरह की गंदगी से भरी होती हैं। 28 उसी तरह तुम भी बाहर से लोगों को बहुत नेक दिखायी देते हो, मगर अंदर से कपटी और दुष्ट हो।+
29 अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो,+ धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम भविष्यवक्ताओं की कब्रें बनवाते हो और नेक लोगों की कब्रें* सजाते हो+ 30 और तुम कहते हो, ‘अगर हम अपने पुरखों के ज़माने में होते, तो भविष्यवक्ताओं का खून बहाने में उनका साथ नहीं देते।’ 31 इस तरह तुम खुद अपने खिलाफ गवाही देते हो कि तुम भविष्यवक्ताओं का खून करनेवालों की औलाद हो।+ 32 तुम्हारे पुरखों ने पाप करने में जो कसर छोड़ दी, उसे पूरा कर दो।*
33 अरे साँपो और ज़हरीले साँप के सँपोलो,+ तुम गेहन्ना* की सज़ा से बचकर कैसे भाग सकोगे?+ 34 इसलिए मैं तुम्हारे पास भविष्यवक्ताओं+ और बुद्धिमानों को और लोगों को सिखानेवाले उपदेशकों+ को भेज रहा हूँ। उनमें से कुछ को तुम मार डालोगे+ और काठ पर लटका दोगे और कुछ को अपने सभा-घरों में कोड़े लगाओगे+ और शहर-शहर जाकर उन्हें सताओगे।+ 35 जितने नेक जनों का खून धरती पर बहाया गया है यानी नेक हाबिल+ से लेकर बिरिक्याह के बेटे जकरयाह तक, जिसे तुमने मंदिर और वेदी के बीच मार डाला था, उन सबका खून तुम्हारे सिर आ पड़े।+ 36 मैं तुमसे सच कहता हूँ कि ये सारी बातें इस पीढ़ी के सिर आ पड़ेंगी।
37 यरूशलेम, यरूशलेम, तू जो भविष्यवक्ताओं का खून करनेवाली नगरी है और जो तेरे पास भेजे जाते हैं उन्हें पत्थरों से मार डालती है+—मैंने कितनी बार चाहा कि जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों तले इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बच्चों को इकट्ठा करूँ! मगर तुम लोगों ने यह नहीं चाहा।+ 38 देखो! परमेश्वर ने तुम्हारे घर* को त्याग दिया है।*+ 39 मैं तुमसे कहता हूँ कि अब से तुम मुझे तब तक हरगिज़ न देखोगे जब तक कि यह न कहो, ‘धन्य है वह जो यहोवा* के नाम से आता है!’”+
24 जब यीशु मंदिर से बाहर जा रहा था, तो चेले उसके पास आए और उसे मंदिर की इमारतें दिखाने लगे। 2 तब यीशु ने उनसे कहा, “तुम ये सब देखकर ताज्जुब कर रहे हो? मैं तुमसे सच कहता हूँ कि इनका एक भी पत्थर दूसरे पत्थर के ऊपर हरगिज़ न बचेगा जो ढाया न जाए।”+
3 जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा था, तब चेले अकेले में उसके पास आकर पूछने लगे, “हमें बता, ये सब बातें कब होंगी और तेरी मौजूदगी*+ की और दुनिया की व्यवस्था* के आखिरी वक्त की क्या निशानी होगी?”+
4 यीशु ने उन्हें यह जवाब दिया, “खबरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न करे।+ 5 इसलिए कि बहुत-से लोग आएँगे और मेरा नाम लेकर दावा करेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ’ और बहुतों को गुमराह करेंगे।+ 6 तुम युद्धों का शोरगुल और युद्धों की खबरें सुनोगे, देखो घबरा न जाना। क्योंकि इन सबका होना ज़रूरी है मगर तभी अंत न होगा।+
7 क्योंकि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा।+ एक-के-बाद-एक कई जगह अकाल पड़ेंगे+ और भूकंप होंगे।+ 8 ये सारी बातें प्रसव-पीड़ा की तरह मुसीबतों की सिर्फ शुरूआत होंगी।
9 तब लोग तुम पर ज़ुल्म करने के लिए तुम्हें पकड़वाएँगे+ और तुम्हें मार डालेंगे+ और मेरे नाम की वजह से सब राष्ट्रों के लोग तुमसे नफरत करेंगे।+ 10 इतना ही नहीं, बहुत-से लोग परमेश्वर से दूर चले जाएँगे* और एक-दूसरे के साथ विश्वासघात करेंगे और एक-दूसरे से नफरत करेंगे। 11 कई झूठे भविष्यवक्ता उठ खड़े होंगे और बहुतों को गुमराह करेंगे।+ 12 और दुष्टता* के बढ़ने से कई लोगों का प्यार ठंडा हो जाएगा। 13 मगर जो अंत तक धीरज धरेगा,* वही उद्धार पाएगा।+ 14 और राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए+ और इसके बाद अंत आ जाएगा।
15 इसलिए जब तुम्हें वह उजाड़नेवाली घिनौनी चीज़, जिसके बारे में भविष्यवक्ता दानियेल ने बताया था, पवित्र जगह में खड़ी नज़र आए+ (पढ़नेवाला समझ इस्तेमाल करे), 16 तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों की तरफ भागना शुरू कर दें।+ 17 जो आदमी घर की छत पर हो वह अपने घर से सामान लेने के लिए नीचे न उतरे। 18 और जो आदमी खेत में हो वह अपना चोगा लेने न लौटे। 19 जो गर्भवती होंगी और जो बच्चे को दूध पिलाती होंगी, उनके लिए वे दिन क्या ही भयानक होंगे! 20 प्रार्थना करते रहो कि तुम्हें न तो सर्दियों के मौसम में भागना पड़े, न ही सब्त के दिन। 21 इसलिए कि तब ऐसा महा-संकट होगा+ जैसा दुनिया की शुरूआत से न अब तक हुआ और न फिर कभी होगा।+ 22 दरअसल अगर उन दिनों को घटाया न जाए, तो कोई भी नहीं बच पाएगा। मगर चुने हुओं की खातिर वे दिन घटाए जाएँगे।+
23 उन दिनों अगर कोई तुमसे कहे, ‘देखो! मसीह यहाँ है,’+ या ‘वहाँ है!’ तो यकीन न करना।+ 24 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यवक्ता+ उठ खड़े होंगे और बड़े-बड़े चमत्कार और अजूबे दिखाएँगे ताकि हो सके तो चुने हुओं को भी गुमराह कर दें।+ 25 देखो! मैं तुम्हें पहले से खबरदार कर रहा हूँ। 26 इसलिए अगर लोग तुमसे कहें, ‘देखो! वह वीराने में है,’ तो बाहर न जाना। ‘देखो! वह अंदरवाले कमरों में है,’ तो यकीन न करना।+ 27 इसलिए कि जैसे बिजली पूरब से निकलकर पश्चिम तक चमकती दिखायी देती है, वैसे ही इंसान के बेटे की मौजूदगी* भी होगी।+ 28 जहाँ लाश है, वहीं उकाब जमा होंगे।+
29 उन दिनों के संकट के फौरन बाद सूरज अँधियारा हो जाएगा,+ चाँद अपनी रौशनी नहीं देगा, आकाश से तारे गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलायी जाएँगी।+ 30 तब इंसान के बेटे की निशानी आकाश में दिखायी देगी और धरती की सारी जातियाँ दुख के मारे छाती पीटेंगी+ और वे इंसान के बेटे को शक्ति और बड़ी महिमा के साथ आकाश के बादलों पर आता देखेंगे।+ 31 और वह तुरही की बड़ी आवाज़ के साथ अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके चुने हुओं को आकाश के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक, चारों दिशाओं से इकट्ठा करेंगे।+
32 अब अंजीर के पेड़ की मिसाल से यह बात सीखो: जैसे ही उसकी नयी डाली नरम हो जाती है और उस पर पत्तियाँ आने लगती हैं, तुम जान लेते हो कि गरमियों का मौसम पास है।+ 33 उसी तरह, जब तुम ये सब बातें होती देखो, तो जान लेना कि इंसान का बेटा पास है बल्कि दरवाज़े पर ही है।+ 34 मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक ये सारी बातें पूरी न हो जाएँ, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ नहीं मिटेगी। 35 आकाश और पृथ्वी मिट जाएँगे, मगर मेरे शब्द कभी नहीं मिटेंगे।+
36 उस दिन और उस घड़ी के बारे में कोई नहीं जानता,+ न स्वर्ग के दूत, न बेटा बल्कि सिर्फ पिता जानता है।+ 37 ठीक जैसे नूह के दिन थे,+ इंसान के बेटे की मौजूदगी* भी वैसी ही होगी।+ 38 इसलिए कि जैसे जलप्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक नूह जहाज़ के अंदर न गया, उस दिन तक लोग खा-पी रहे थे और शादी-ब्याह कर रहे थे+ 39 और जब तक जलप्रलय आकर उन सबको बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कोई ध्यान न दिया।+ इंसान के बेटे की मौजूदगी भी ऐसी ही होगी। 40 तब दो आदमी खेत में होंगे, एक को साथ ले लिया जाएगा और दूसरे को छोड़ दिया जाएगा। 41 दो औरतें हाथ से चक्की पीस रही होंगी, एक को साथ ले लिया जाएगा और दूसरी को छोड़ दिया जाएगा।+ 42 इसलिए जागते रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आ रहा है।+
43 लेकिन एक बात जान लो कि अगर घर के मालिक को पता होता कि चोर किस पहर* आनेवाला है,+ तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध नहीं लगने देता।+ 44 इस वजह से तुम भी तैयार रहो+ क्योंकि जिस घड़ी तुमने सोचा भी न होगा, उस घड़ी इंसान का बेटा आ रहा है।
45 तो असल में वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान* दास कौन है, जिसे उसके मालिक ने अपने घर के कर्मचारियों के ऊपर ठहराया है कि उन्हें सही वक्त पर खाना दे?+ 46 सुखी होगा वह दास अगर उसका मालिक आने पर उसे ऐसा ही करता पाए!+ 47 मैं तुमसे सच कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकार देगा।
48 लेकिन अगर कभी वह दुष्ट दास अपने दिल में कहने लगे, ‘मेरा मालिक देर कर रहा है’+ 49 और अपने संगी दासों को पीटने लगे और बदनाम शराबियों के साथ खाने-पीने लगे, 50 तो उस दास का मालिक ऐसे दिन आएगा जिस दिन की उसने उम्मीद भी न की होगी और उस घड़ी आएगा जिसकी उसे खबर भी न होगी।+ 51 और वह उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा देगा और उस जगह फेंक देगा जहाँ कपटियों को फेंका जाता है। वहाँ वह रोएगा और दाँत पीसेगा।+
25 स्वर्ग के राज की तुलना उन दस कुँवारियों से की जा सकती है, जो अपना-अपना दीपक+ लेकर दूल्हे से मिलने निकलीं।+ 2 उनमें से पाँच मूर्ख थीं और पाँच समझदार।*+ 3 क्योंकि मूर्ख कुँवारियों ने अपने साथ दीपक तो लिए मगर तेल नहीं लिया, 4 जबकि समझदार कुँवारियों ने दीपकों के साथ-साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी लिया। 5 जब दूल्हा आने में देर कर रहा था, तो सारी कुँवारियाँ ऊँघने लगीं और सो गयीं। 6 ठीक आधी रात को पुकार लगायी गयी, ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे मिलने बाहर चलो।’ 7 तब सारी कुँवारियाँ उठीं और अपना-अपना दीपक तैयार करने लगीं।+ 8 जो मूर्ख थीं उन्होंने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से थोड़ा हमें दो, क्योंकि हमारे दीपक बुझनेवाले हैं।’ 9 लेकिन समझदार कुँवारियों ने कहा, ‘शायद यह हमारे और तुम्हारे लिए पूरा न पड़े। इसलिए तुम तेल बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिए खरीद लाओ।’ 10 जब वे खरीदने जा रही थीं, तो दूल्हा आ गया। जो कुँवारियाँ तैयार थीं वे शादी की दावत के लिए उसके साथ अंदर चली गयीं+ और दरवाज़ा बंद कर दिया गया। 11 बाद में बाकी कुँवारियाँ भी आयीं और कहने लगीं, ‘साहब, साहब, हमारे लिए दरवाज़ा खोलो!’+ 12 मगर दूल्हे ने कहा, ‘मैं सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।’
13 इसलिए जागते रहो+ क्योंकि तुम न तो उस दिन को जानते हो, न ही उस घड़ी को।+
14 स्वर्ग का राज उस आदमी जैसा है जिसने परदेस जाने से पहले अपने दासों को बुलाया और उन्हें अपनी दौलत सौंपी।+ 15 एक को उसने पाँच तोड़े* चाँदी के सिक्के दिए, दूसरे को दो तोड़े और तीसरे को एक तोड़ा। हरेक को उसकी काबिलीयत के मुताबिक देकर वह परदेस चला गया। 16 जिस दास को पाँच तोड़े चाँदी के सिक्के मिले थे, वह फौरन गया और उसने उन पैसों* से कारोबार करके पाँच तोड़े और कमाए। 17 उसी तरह, जिसे दो तोड़े चाँदी के सिक्के मिले थे, उसने दो तोड़े और कमाए। 18 मगर जिसे सिर्फ एक तोड़ा चाँदी के सिक्के मिले थे, उसने मालिक के पैसे* ज़मीन में गाड़कर छिपा दिए।
19 बहुत समय बाद उन दासों का मालिक आया और उसने उनसे हिसाब माँगा।+ 20 जिसे पाँच तोड़े चाँदी के सिक्के मिले थे, वह अपने साथ और पाँच तोड़े लेकर आगे आया और उसने कहा, ‘मालिक, तूने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे। देख, मैंने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’+ 21 मालिक ने उससे कहा, ‘शाबाश, अच्छे और विश्वासयोग्य दास! तू थोड़ी चीज़ों में विश्वासयोग्य रहा। मैं तुझे बहुत-सी चीज़ों पर अधिकार दूँगा।+ अपने मालिक के साथ खुशियाँ मना।’+ 22 इसके बाद, जिसे दो तोड़े चाँदी के सिक्के मिले थे, वह आगे आया और उसने कहा, ‘मालिक, तूने मुझे दो तोड़े सौंपे थे। देख, मैंने दो तोड़े और कमाए हैं।’+ 23 मालिक ने उससे कहा, ‘शाबाश, अच्छे और विश्वासयोग्य दास! तू थोड़ी चीज़ों में विश्वासयोग्य रहा। मैं तुझे बहुत-सी चीज़ों पर अधिकार दूँगा। अपने मालिक के साथ खुशियाँ मना।’
24 आखिर में, वह दास आगे आया जिसे एक तोड़ा चाँदी के सिक्के मिले थे। उसने कहा, ‘मालिक, मैं जानता था कि तू एक कठोर इंसान है, तू जहाँ नहीं बोता वहाँ भी कटाई करता है और जहाँ अनाज नहीं फटकाता वहाँ से भी बटोरता है।+ 25 इसलिए मैं डर गया और मैंने जाकर तेरे चाँदी के सिक्के ज़मीन में छिपा दिए। यह ले, जो तेरा है, यह रहा।’ 26 जवाब में मालिक ने उससे कहा, ‘अरे दुष्ट और आलसी दास, तू जानता था न कि मैं जहाँ नहीं बोता वहाँ भी कटाई करता हूँ और जहाँ अनाज नहीं फटकाता वहाँ से भी बटोरता हूँ? 27 तो फिर, तूने मेरे पैसे* साहूकारों के पास क्यों नहीं जमा कर दिए, तब लौटने पर मुझे अपने पैसों के साथ ब्याज भी मिलता।
28 इसलिए उससे वह चाँदी ले लो और जिसके पास दस तोड़े हैं, उसे दे दो+ 29 क्योंकि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा। मगर जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है।+ 30 इस निकम्मे दास को बाहर अँधेरे में फेंक दो, जहाँ वह रोएगा और दाँत पीसेगा।’
31 जब इंसान का बेटा+ पूरी महिमा के साथ आएगा और सब स्वर्गदूत उसके साथ होंगे,+ तब वह अपनी शानदार राजगद्दी पर बैठेगा। 32 और सब राष्ट्रों के लोग उसके सामने इकट्ठे किए जाएँगे। तब वह लोगों को एक-दूसरे से अलग करेगा, ठीक जैसे एक चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है। 33 वह भेड़ों+ को अपने दायीं तरफ करेगा मगर बकरियों को बायीं तरफ।+
34 इसके बाद राजा उन लोगों से जो उसके दायीं तरफ हैं कहेगा, ‘मेरे पिता से आशीष पानेवालो, आओ, उस राज के वारिस बन जाओ जो दुनिया की शुरूआत से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है। 35 इसलिए कि मैं भूखा था और तुमने मुझे खाना दिया। मैं प्यासा था और तुमने मुझे पानी पिलाया। मैं अजनबी था और तुमने मुझे अपने घर ठहराया।+ 36 मैं नंगा था* और तुमने मुझे कपड़े दिए।+ मैं बीमार पड़ा और तुमने मेरी देखभाल की। मैं जेल में था और तुम मुझसे मिलने आए।’+ 37 तब नेक जन उससे कहेंगे, ‘प्रभु, हमने कब तुझे भूखा देखा और खाना खिलाया या प्यासा देखा और तुझे पानी पिलाया?+ 38 हमने कब तुझे एक अजनबी देखा और अपने घर ठहराया, या नंगा देखकर तुझे कपड़े दिए? 39 हमने कब तुझे बीमार या जेल में देखा और तुझसे मिलने आए?’ 40 तब राजा उनसे कहेगा, ‘मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे साथ किया।’+
41 इसके बाद राजा उन लोगों से जो उसके बायीं तरफ हैं कहेगा, ‘हे शापित लोगो, मेरे सामने से दूर हो जाओ+ और हमेशा जलनेवाली उस आग में चले जाओ,+ जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गयी है।+ 42 इसलिए कि मैं भूखा था मगर तुमने मुझे खाने को कुछ नहीं दिया। मैं प्यासा था मगर तुमने मुझे पीने को कुछ नहीं दिया। 43 मैं अजनबी था मगर तुमने मुझे अपने घर नहीं ठहराया। मैं नंगा था मगर तुमने मुझे कपड़े नहीं दिए। मैं बीमार पड़ा और जेल में था मगर तुमने मेरी देखभाल नहीं की।’ 44 तब वे भी उससे कहेंगे, ‘प्रभु, हमने कब तुझे भूखा या प्यासा या एक अजनबी या नंगा या बीमार या जेल में देखा और तेरी सेवा नहीं की?’ 45 तब राजा उनसे कहेगा, ‘मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।’+ 46 ये लोग हमेशा के लिए नाश हो जाएँगे,*+ मगर नेक जन हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे।”+
26 जब यीशु ये सारी बातें बता चुका, तो उसने अपने चेलों से कहा, 2 “तुम जानते हो कि अब से दो दिन बाद फसह का त्योहार है+ और इंसान के बेटे को काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए सौंप दिया जाएगा।”+
3 तब प्रधान याजक और लोगों के मुखिया, कैफा नाम के महायाजक के आँगन में इकट्ठा हुए।+ 4 उन्होंने मिलकर साज़िश की+ कि कैसे यीशु को छल से पकड़ें* और मार डालें। 5 मगर वे कह रहे थे, “त्योहार के वक्त नहीं ताकि लोग हंगामा न मचा दें।”
6 यीशु बैतनियाह में शमौन के घर में था, जो पहले एक कोढ़ी था।+ 7 जब वह खाना खा रहा था,* तो एक औरत उसके पास खुशबूदार तेल की बोतल लेकर आयी जो बहुत महँगा था। वह उसके सिर पर तेल उँडेलने लगी। 8 यह देखकर चेले भड़क उठे और कहने लगे, “यह औरत क्यों तेल बरबाद कर रही है? 9 इसे ऊँचे दामों में बेचकर पैसा गरीबों को दिया जा सकता था।” 10 यीशु ने यह जानकर कि वे आपस में क्या बात कर रहे हैं कहा, “तुम इस औरत को क्यों परेशान कर रहे हो? इसने तो मेरी खातिर एक बढ़िया काम किया है। 11 गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे,+ मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।+ 12 इसने मेरे शरीर पर खुशबूदार तेल मलकर मेरे दफनाए जाने की तैयारी की है।+ 13 मैं तुमसे सच कहता हूँ, सारी दुनिया में जहाँ कहीं खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा, वहाँ इस औरत की याद में इसके काम की चर्चा की जाएगी।”+
14 फिर उन बारहों में से एक, जो यहूदा इस्करियोती कहलाता था,+ प्रधान याजकों के पास गया+ 15 और उसने उनसे कहा, “अगर मैं उसे तुम्हारे हाथों पकड़वा दूँ, तो तुम मुझे क्या दोगे?”+ उन्होंने कहा कि वे उसे चाँदी के 30 सिक्के देंगे।+ 16 तब से यहूदा, यीशु को पकड़वाने के लिए सही मौका ढूँढ़ने लगा।
17 बिन-खमीर की रोटी के त्योहार+ के पहले दिन, चेले यीशु के पास आए और उससे पूछने लगे, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फसह का खाना खाने की तैयारी करें?”+ 18 उसने कहा, “शहर में फलाँ-फलाँ आदमी के पास जाओ और उससे कहो, ‘गुरु कहता है, “मेरे लिए तय किया गया वक्त पास आ गया है। मैं अपने चेलों के साथ तेरे घर में फसह का त्योहार मनाऊँगा।”’” 19 तब चेलों ने ठीक वैसा ही किया जैसा यीशु ने उनसे कहा था और फसह की तैयारी की।
20 जब शाम हुई+ तो वह अपने 12 चेलों के साथ खाना खाने बैठा।*+ 21 जब वे खा रहे थे, तो उसने कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, तुममें से एक मेरे साथ विश्वासघात करके मुझे पकड़वा देगा।”+ 22 यह सुनकर वे बहुत दुखी हुए और एक-एक करके उससे पूछने लगे, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ न?” 23 उसने कहा, “जो मेरे साथ कटोरे में हाथ डालता है, वही मेरे साथ विश्वासघात करेगा।+ 24 यह सच है कि इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, मगर उस आदमी का बहुत बुरा होगा+ जो इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात करके उसे पकड़वा देगा!+ उस आदमी के लिए अच्छा तो यह होता कि वह पैदा ही न हुआ होता।”+ 25 तब यहूदा ने, जो उसके साथ गद्दारी करनेवाला था, उससे कहा, “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूँ न?” यीशु ने उससे कहा, “तूने खुद कह दिया है।”
26 जब वे खाना खा रहे थे, तो यीशु ने एक रोटी ली और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उसे तोड़ा+ और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ। यह मेरे शरीर की निशानी है।”+ 27 फिर उसने एक प्याला लिया और प्रार्थना में धन्यवाद देकर उन्हें दिया और कहा, “तुम सब इसमें से पीओ+ 28 क्योंकि यह मेरे खून की निशानी है,+ जो करार को पक्का करता है+ और जो बहुतों के पापों की माफी के लिए बहाया जाएगा।+ 29 मगर मैं तुमसे कहता हूँ, अब से मैं यह दाख-मदिरा उस दिन तक हरगिज़ नहीं पीऊँगा, जिस दिन मैं अपने पिता के राज में तुम्हारे साथ नयी दाख-मदिरा न पीऊँ।”+ 30 आखिर में उन्होंने परमेश्वर की तारीफ में गीत* गाए और फिर जैतून पहाड़ की तरफ निकल गए।+
31 इसके बाद यीशु ने उनसे कहा, “आज की रात मेरे साथ जो होगा उसकी वजह से तुम सबका विश्वास डगमगा जाएगा* क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और झुंड की भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’+ 32 लेकिन जब मुझे ज़िंदा कर दिया जाएगा, तो मैं तुमसे पहले गलील जाऊँगा।”+ 33 मगर पतरस ने उससे कहा, “तेरे साथ जो होगा उसकी वजह से चाहे बाकी सबका विश्वास डगमगा जाए, मगर मेरा विश्वास कभी नहीं डगमगाएगा।”+ 34 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात मुर्गे के बाँग देने से पहले तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ 35 पतरस ने उससे कहा, “चाहे मुझे तेरे साथ मरना पड़े, तब भी मैं तुझे जानने से हरगिज़ इनकार नहीं करूँगा।”+ बाकी सभी चेलों ने भी यही कहा।
36 तब यीशु अपने चेलों के साथ गतसमनी+ नाम की जगह आया और उसने चेलों से कहा, “मैं वहाँ प्रार्थना करने जा रहा हूँ, तुम यहीं बैठे रहना।”+ 37 और उसने पतरस और जब्दी के दोनों बेटों को अपने साथ लिया। उसका जी बहुत बेचैन हो उठा और वह दुख से बेहाल होने लगा।+ 38 तब उसने उनसे कहा, “मेरा मन बहुत दुखी है, यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत हो रही है। तुम यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”+ 39 फिर वह थोड़ा आगे गया और मुँह के बल गिरकर यह प्रार्थना करने लगा,+ “मेरे पिता, अगर हो सके तो यह प्याला+ मेरे सामने से हटा दे। फिर भी मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”+
40 जब वह अपने चेलों के पास वापस आया, तो उसने देखा कि वे सो रहे हैं। उसने पतरस से कहा, “क्या तुम लोग मेरे साथ थोड़ी देर के लिए भी नहीं जाग सके?+ 41 जागते रहो+ और प्रार्थना करते रहो+ ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।+ दिल तो बेशक तैयार* है, मगर शरीर कमज़ोर है।”+ 42 फिर वह दूसरी बार गया और यह कहकर प्रार्थना करने लगा, “मेरे पिता, अगर मुझे यह प्याला पीना ही है और इसे हटाया नहीं जा सकता, तो तेरी मरज़ी पूरी हो।”+ 43 वह फिर चेलों के पास आया और उसने उन्हें सोता हुआ पाया क्योंकि उनकी आँखें नींद से बोझिल थीं। 44 तब वह उन्हें वहीं छोड़कर एक बार फिर गया और तीसरी बार भी उसने वही प्रार्थना की। 45 इसके बाद वह फिर अपने चेलों के पास आया और उसने कहा, “तुम ऐसे वक्त में सो रहे हो और आराम कर रहे हो! देखो, वह घड़ी आ गयी है कि इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात करके उसे पापियों के हाथ सौंप दिया जाए। 46 उठो, आओ चलें। देखो, मुझसे गद्दारी करनेवाला पास आ गया है।” 47 वह बोल ही रहा था कि तभी यहूदा आ गया, जो उन बारहों में से एक था। उसके साथ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए लोगों की एक बड़ी भीड़ थी जिसे प्रधान याजकों और लोगों के मुखियाओं ने भेजा था।+
48 उसके साथ विश्वासघात करनेवाले ने उन्हें यह कहकर एक निशानी दी थी, “जिसे मैं चूमूँगा, वही है। उसे गिरफ्तार कर लेना।” 49 यहूदा ने सीधे यीशु के पास जाकर उससे कहा, “नमस्कार, रब्बी!” और उसे प्यार से चूमा। 50 मगर यीशु ने उससे कहा, “तू यहाँ किस इरादे से आया है?”+ तब उन्होंने आगे बढ़कर यीशु को पकड़ लिया और हिरासत में ले लिया। 51 मगर तभी जो यीशु के साथ थे उनमें से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींची और महायाजक के दास पर वार करके उसका कान उड़ा दिया।+ 52 तब यीशु ने उससे कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले,+ इसलिए कि जो तलवार उठाते हैं वे तलवार से ही नाश किए जाएँगे।+ 53 क्या तुझे नहीं लगता कि मैं अपने पिता से यह बिनती कर सकता हूँ कि वह इसी पल स्वर्गदूतों की 12 से भी ज़्यादा पलटनें मेरे पास भेज दे?+ 54 ऐसे में शास्त्र में लिखी यह बात कैसे पूरी होगी कि यह सबकुछ होना ज़रूरी है?” 55 तब यीशु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे गिरफ्तार करने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ? मैं हर दिन मंदिर में बैठकर सिखाया करता था,+ फिर भी तुमने मुझे हिरासत में नहीं लिया।+ 56 मगर यह सब इसलिए हुआ है ताकि भविष्यवक्ताओं ने जो लिखा है वह पूरा हो।”+ तब सारे चेले उसे छोड़कर भाग गए।+
57 जिन लोगों ने यीशु को गिरफ्तार किया वे उसे महायाजक कैफा+ के पास ले गए, जहाँ शास्त्री और मुखिया इकट्ठा थे।+ 58 मगर पतरस कुछ दूरी पर रहकर यीशु के पीछे-पीछे गया और महायाजक के आँगन तक आ गया। अंदर जाने के बाद वह घर के सेवकों के साथ बैठ गया कि देखे आगे क्या होगा।+
59 प्रधान याजक और पूरी महासभा यीशु को मार डालने के लिए उसके खिलाफ झूठी गवाही ढूँढ़ रही थी।+ 60 बहुत-से झूठे गवाह आए मगर एक भी ऐसी गवाही नहीं मिली, जिससे यीशु को दोषी ठहराया जाए।+ बाद में दो गवाह आए 61 और उन्होंने कहा, “इस आदमी ने कहा था, ‘मैं परमेश्वर के मंदिर को ढा सकता हूँ और तीन दिन के अंदर इसे खड़ा कर सकता हूँ।’”+ 62 यह सुनकर महायाजक उठ गया और उसने यीशु से कहा, “क्या तू जवाब में कुछ नहीं कहेगा? क्या तू सुन नहीं रहा कि ये तुझ पर क्या-क्या इलज़ाम लगा रहे हैं?”+ 63 मगर तब भी यीशु चुप रहा।+ महायाजक ने फिर उससे कहा, “मैं तुझे जीवित परमेश्वर की शपथ दिलाता हूँ, हमें बता, क्या तू परमेश्वर का बेटा मसीह है?”+ 64 यीशु ने उससे कहा, “तूने खुद कह दिया है। फिर भी मैं तुम लोगों से कहता हूँ, अब से तुम इंसान के बेटे+ को शक्तिशाली परमेश्वर के दाएँ हाथ बैठा+ और आकाश के बादलों पर आता देखोगे।”+ 65 तब महायाजक ने यह कहते हुए अपना चोगा फाड़ा, “इसने परमेश्वर की निंदा की है! अब हमें और गवाहों की क्या ज़रूरत है? देखो! तुम लोगों ने ये निंदा की बातें सुनी हैं। 66 तुम्हारी क्या राय है?” उन्होंने कहा, “यह मौत की सज़ा के लायक है।”+ 67 इसके बाद, उन्होंने यीशु के मुँह पर थूका+ और उसे घूँसे मारे।+ दूसरों ने यह कहते हुए उसके मुँह पर थप्पड़ मारे,+ 68 “अरे मसीह, भविष्यवाणी कर, हममें से किसने तुझे मारा?”
69 पतरस बाहर आँगन में बैठा हुआ था। तब एक दासी उसके पास आकर कहने लगी, “तू भी उस यीशु गलीली के साथ था!”+ 70 मगर उसने सबके सामने इनकार करते हुए कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है।” 71 जब वह बाहर निकलकर आँगन के द्वार की तरफ गया, तो एक और लड़की ने उसे देखकर वहाँ मौजूद लोगों से कहा, “यह आदमी यीशु नासरी के साथ था।”+ 72 एक बार फिर वह शपथ खाकर इनकार करने लगा, “मैं उस आदमी को नहीं जानता!” 73 थोड़ी देर बाद आस-पास खड़े लोग पतरस के पास आकर उससे कहने लगे, “बेशक तू भी उनमें से एक है, तेरी बोली* तेरा राज़ खोल रही है।” 74 तब वह खुद को कोसने लगा और कसम खाकर कहने लगा, “मैं उस आदमी को नहीं जानता!” उसी घड़ी एक मुर्गे ने बाँग दी। 75 तब पतरस को यीशु की वह बात याद आयी, “मुर्गे के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मुझे जानने से इनकार कर देगा।”+ और वह बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा।
27 जब सुबह हो गयी, तो सभी प्रधान याजकों और लोगों के मुखियाओं ने यीशु को मार डालने के लिए आपस में सलाह-मशविरा किया।+ 2 वे उसे बाँधकर राज्यपाल पीलातुस के पास ले गए और उसके हवाले कर दिया।+
3 उसके साथ विश्वासघात करनेवाले यहूदा ने जब देखा कि यीशु को मौत की सज़ा दी गयी है, तो उसका दिल उसे कचोटने लगा। उसने प्रधान याजकों और मुखियाओं को चाँदी के वे 30 सिक्के लौटाते हुए+ 4 कहा, “मैंने एक निर्दोष आदमी के खून का सौदा करके पाप किया है।” उन्होंने कहा, “इससे हमें क्या लेना? तू ही जान!”* 5 तब उसने चाँदी के टुकड़े मंदिर में फेंक दिए और जाकर फाँसी लगा ली।+ 6 लेकिन प्रधान याजकों ने उन चाँदी के टुकड़ों को लेकर कहा, “इन्हें मंदिर के खज़ाने में डालना सही नहीं होगा क्योंकि यह खून की कीमत है।” 7 उन्होंने आपस में बात करने के बाद, उन पैसों से अजनबियों को दफनाने के लिए कुम्हार की ज़मीन खरीद ली। 8 इसलिए वह ज़मीन आज के दिन तक खून की ज़मीन कहलाती है।+ 9 इससे यह बात पूरी हुई जो यिर्मयाह भविष्यवक्ता से कहलवायी गयी थी, “उन्होंने चाँदी के 30 टुकड़े लिए, जो उस आदमी के लिए ठहरायी गयी कीमत थी। इसराएल के कुछ बेटों ने उस आदमी के लिए एक कीमत ठहरा दी थी। 10 और उन्होंने ये सिक्के कुम्हार की ज़मीन के लिए दिए, जैसा यहोवा* ने मुझे आज्ञा दी थी।”+
11 यीशु अब राज्यपाल के सामने खड़ा था। और राज्यपाल ने उससे यह सवाल किया, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने जवाब दिया, “तू खुद यह कहता है।”+ 12 मगर जब प्रधान याजक और मुखिया उस पर इलज़ाम लगा रहे थे, तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।+ 13 तब पीलातुस ने उससे कहा, “क्या तू सुन नहीं रहा कि ये तुझ पर क्या-क्या इलज़ाम लगा रहे हैं?” 14 फिर भी यीशु ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, यहाँ तक कि एक शब्द भी नहीं कहा, इसलिए राज्यपाल को बड़ा ताज्जुब हुआ।
15 राज्यपाल का यह रिवाज़ था कि वह हर साल त्योहार के वक्त किसी एक कैदी को, जिसे लोग चाहते थे, रिहा कर दिया करता था।+ 16 उन्हीं दिनों, बरअब्बा नाम का एक कुख्यात कैदी उनकी कैद में था। 17 इसलिए जब वे इकट्ठा हुए, तो पीलातुस ने उनसे पूछा, “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए किसे रिहा करूँ, बरअब्बा को या यीशु को जिसे मसीह कहा जाता है?” 18 पीलातुस जानता था कि उन्होंने ईर्ष्या की वजह से यीशु को उसके हवाले किया था। 19 इतना ही नहीं, जब वह न्याय-आसन पर बैठा हुआ था, तो उसकी पत्नी ने उसके पास यह संदेश भेजा, “तू उस नेक इंसान के मामले में दखल मत देना, क्योंकि उसकी वजह से मुझे एक डरावना सपना आया और आज मैं बहुत परेशान हूँ।” 20 मगर प्रधान याजकों और मुखियाओं ने भीड़ को यह कहने के लिए उकसाया कि बरअब्बा को रिहा कर दिया जाए,+ मगर यीशु को मार डाला जाए।+ 21 राज्यपाल ने एक बार फिर उनसे पूछा, “तुम क्या चाहते हो, मैं दोनों में से किसे तुम्हारे लिए रिहा करूँ?” उन्होंने कहा, “बरअब्बा को।” 22 पीलातुस ने उनसे कहा, “तो फिर मैं इस यीशु के साथ, जिसे मसीह कहा जाता है, क्या करूँ?” उन सबने कहा, “इसे काठ पर लटका दे!”+ 23 राज्यपाल ने कहा, “क्यों, इसने क्या बुरा किया है?” मगर वे और भी ज़ोर से चिल्लाने लगे, “इसे काठ पर लटका दे!”+
24 जब पीलातुस ने देखा कि उसके कहने का कोई फायदा नहीं हो रहा, बल्कि हुल्लड़ बढ़ता ही जा रहा है, तो उसने पानी लिया और भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए कहा, “मैं इस आदमी के खून से निर्दोष हूँ। तुम ही जानो।” 25 तब सब लोगों ने कहा, “इसका खून हमारे और हमारे बच्चों के सिर आ पड़े।”+ 26 तब उसने बरअब्बा को रिहा कर दिया। मगर यीशु को उसने कोड़े लगवाए+ और काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए सौंप दिया।+
27 इसके बाद, राज्यपाल के सैनिक यीशु को उसके भवन के अंदर ले गए और उन्होंने सैनिकों की पूरी पलटन को वहाँ उसके पास इकट्ठा कर लिया।+ 28 उन्होंने उसके कपड़े उतारकर उसे सुर्ख लाल रंग का एक कपड़ा पहनाया+ 29 और काँटों का एक ताज बनाकर उसके सिर पर रखा और उसके दाएँ हाथ में एक नरकट दिया। फिर वे उसके सामने घुटने टेककर यह कहते हुए उसका मज़ाक उड़ाने लगे, “हे यहूदियों के राजा, सलाम!”* 30 उन्होंने उस पर थूका+ और नरकट लेकर उसके सिर पर मारने लगे। 31 जब उन्होंने उसका खूब मज़ाक उड़ा लिया, तो वह कपड़ा उतार दिया और उसी के कपड़े उसे पहना दिए। फिर वे उसे काठ पर ठोंकने के लिए ले गए।+
32 जब वे जा रहे थे, तो उन्हें कुरेने का रहनेवाला एक आदमी मिला जिसका नाम शमौन था। उन्होंने इस आदमी को जबरन सेवा के लिए पकड़ा कि वह यीशु का यातना का काठ* उठाकर ले चले।+ 33 जब वे गुलगुता नाम की जगह पहुँचे, जो खोपड़ी स्थान कहलाती है,+ 34 तो उन्होंने यीशु को पीने के लिए पित्त* मिली दाख-मदिरा दी।+ मगर उसने चखने के बाद, उसे पीने से इनकार कर दिया। 35 सैनिकों ने उसे काठ पर ठोंक दिया और चिट्ठियाँ डालकर उसका ओढ़ना आपस में बाँट लिया।+ 36 फिर वहाँ बैठकर वे उसकी पहरेदारी करने लगे। 37 और उस पर जो इलज़ाम था, उसे लिखकर उन्होंने उसके सिर के ऊपर काठ पर लगा दिया: “यह यहूदियों का राजा यीशु है।”+
38 उसके साथ दो लुटेरों को काठ पर लटकाया गया था, एक उसके दायीं तरफ और दूसरा बायीं तरफ।+ 39 जो लोग वहाँ से गुज़र रहे थे, वे सिर हिला-हिलाकर उसकी बेइज़्ज़ती करने लगे,+ 40 “अरे मंदिर को ढानेवाले, उसे तीन दिन के अंदर बनानेवाले,+ खुद को बचा ले! अगर तू परमेश्वर का बेटा है, तो यातना के काठ* से नीचे उतर आ!”+ 41 इसी तरह, प्रधान याजक भी शास्त्रियों और मुखियाओं के साथ मिलकर उसका मज़ाक उड़ाने लगे,+ 42 “इसने दूसरों को तो बचाया, मगर खुद को नहीं बचा सकता! यह इसराएल का राजा है।+ अब यह यातना के काठ* से नीचे तो उतरे, तब हम इसका यकीन करेंगे। 43 इसने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, अगर परमेश्वर इसे चाहता है, तो इसे बचाए+ क्योंकि इसने कहा है, ‘मैं परमेश्वर का बेटा हूँ।’”+ 44 यहाँ तक कि जो लुटेरे उसके दोनों तरफ काठ पर थे, वे भी उसे बुरा-भला कह रहे थे।+
45 छठे घंटे* से उस पूरे देश में अंधकार छा गया और नौवें घंटे* तक छाया रहा।+ 46 नौवें घंटे के करीब यीशु ने ज़ोर से पुकारा, “एली, एली, लामा शबकतानी?” जिसका मतलब है, “मेरे परमेश्वर, मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?”+ 47 यह सुनकर वहाँ खड़े कुछ लोग कहने लगे, “यह आदमी एलियाह को पुकार रहा है।”+ 48 उनमें से एक ने फौरन दौड़कर एक स्पंज लिया और उसे खट्टी दाख-मदिरा में डुबोकर नरकट पर रखा और उसे पीने के लिए दिया।+ 49 मगर बाकियों ने कहा, “देखते हैं, एलियाह इसे बचाने आता है या नहीं।” 50 यीशु एक बार फिर ज़ोर से चिल्लाया और उसने दम तोड़ दिया।+
51 तब देखो! मंदिर का परदा+ ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया+ और धरती काँप उठी और चट्टानें फट गयीं। 52 कब्रें* खुल गयीं और मौत की नींद सोए बहुत-से पवित्र जनों की लाशें कब्रों से बाहर जा गिरीं 53 और कब्रिस्तान में मौजूद बहुत-से लोगों ने ये लाशें देखीं। (कुछ लोग जो कब्रों के पास गए थे, वे यीशु के ज़िंदा किए जाने के बाद पवित्र शहर आए।) 54 मगर जब सेना-अफसर और उसके साथ यीशु की पहरेदारी करनेवालों ने भूकंप और उन सारी घटनाओं को देखा, तो वे बहुत डर गए और कहने लगे, “वाकई यह परमेश्वर का बेटा था।”+
55 वहाँ बहुत-सी औरतें, जो गलील से यीशु की सेवा करती हुई उसके साथ आयी थीं, दूर खड़ी देख रही थीं।+ 56 उनमें मरियम मगदलीनी, याकूब और योसेस की माँ मरियम और जब्दी के बेटों की माँ भी थी।+
57 जब दोपहर काफी बीत चुकी, तब यूसुफ नाम का एक अमीर आदमी वहाँ आया, जो अरिमतियाह का रहनेवाला था। वह भी यीशु का एक चेला बन चुका था।+ 58 इस आदमी ने पीलातुस के पास जाकर यीशु की लाश माँगी।+ तब पीलातुस ने हुक्म दिया कि उसे लाश दे दी जाए।+ 59 यूसुफ ने लाश लेकर उसे बढ़िया मलमल की साफ चादर में लपेटा+ 60 और अपनी नयी कब्र में रखा,+ जो उसने चट्टान खोदकर बनवायी थी। कब्र के द्वार पर एक बड़ा पत्थर लुढ़काने के बाद, वह वहाँ से चला गया। 61 लेकिन मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम वहीं कब्र के सामने बैठी रहीं।+
62 अगले दिन यानी तैयारी के दिन के बाद,+ प्रधान याजक और फरीसी, पीलातुस के सामने जमा हुए 63 और कहने लगे, “हुज़ूर, हमें याद है कि उस फरेबी ने जीते-जी कहा था, ‘तीन दिन बाद मुझे ज़िंदा कर दिया जाएगा।’+ 64 इसलिए हुक्म दे कि तीसरे दिन तक कब्र की चौकसी की जाए ताकि उसके चेले आकर उसे चुरा न लें+ और लोगों से कहें, ‘उसे मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया गया है!’ फिर यह आखिरी ढोंग, पहलेवाले ढोंग से भी बदतर होगा।” 65 पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम पहरेदार ले जा सकते हो। और जैसा पहरा बिठाना चाहते हो वैसा बिठा दो।” 66 तब वे गए और उन्होंने एक बड़े पत्थर से कब्र का द्वार अच्छी तरह बंद कर दिया और पहरेदार तैनात कर दिए।
28 सब्त के बाद, हफ्ते के पहले दिन पौ फटते ही मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आयीं।+
2 कुछ समय पहले एक भारी भूकंप आया था क्योंकि यहोवा* का दूत स्वर्ग से उतरा था। उसने कब्र के मुँह पर रखा पत्थर लुढ़का दिया था और उस पर बैठा हुआ था।+ 3 उसका रूप बिजली जैसा था और उसके कपड़े बर्फ जैसे सफेद थे।+ 4 पहरेदार उससे इतने डर गए थे कि वे काँपने लगे और मुरदे जैसे हो गए।
5 मगर जब ये औरतें कब्र पर आयीं, तो स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “डरो मत। तुम यीशु को ढूँढ़ रही हो न, जिसे काठ पर लटकाकर मार डाला गया था?+ 6 वह यहाँ नहीं है। जैसा उसने कहा था, उसे ज़िंदा कर दिया गया है।+ आकर यह जगह देखो जहाँ उसे रखा गया था। 7 अब तुम जल्दी जाओ और जाकर उसके चेलों को बताओ कि उसे मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया गया है और वह तुमसे पहले गलील जाएगा+ और वहाँ तुम उसे देखोगे। मैं तुम्हें यही संदेश देने आया हूँ।”+
8 यह सुनकर वे फौरन कब्र के पास से निकल पड़ीं। वे डरी हुई थीं पर साथ ही, खुशी से फूली नहीं समा रही थीं। वे उसके चेलों को खबर देने के लिए दौड़ी-दौड़ी जा रही थीं+ 9 कि अचानक यीशु उनसे रास्ते में मिला और उन्हें सलाम कहा। वे उसके पास गयीं और उन्होंने उसके पैर पकड़ लिए और उसे झुककर प्रणाम* किया। 10 तब यीशु ने उनसे कहा, “डरो मत! जाकर मेरे भाइयों को खबर दो कि वे गलील चले जाएँ। वे मुझे वहाँ देखेंगे।”
11 जब ये औरतें रास्ते में ही थीं, तो कब्र पर पहरा देनेवाले पहरेदारों में से कुछ,+ शहर में गए और उन्होंने सारी घटनाएँ प्रधान याजकों को सुनायीं। 12 तब प्रधान याजकों ने मुखियाओं को बुलाया और उनके साथ सलाह-मशविरा करने के बाद सैनिकों को घूस में बहुत चाँदी दी 13 और उनसे कहा, “तुम बोल देना कि रात में जब हम सो रहे थे, तब उसके चेले आए और उसे चुराकर ले गए।+ 14 और अगर यह बात राज्यपाल के कानों तक पहुँचेगी, तो हम उसे समझा देंगे* और तुम्हारी सारी चिंता दूर कर देंगे।” 15 तब पहरेदारों ने चाँदी के सिक्के ले लिए और उन्हें जैसा बताया गया था उन्होंने वैसा ही किया और आज तक हर कहीं यह किस्सा यहूदियों में फैला हुआ है।
16 वे 11 चेले गलील में उस पहाड़ पर गए,+ जहाँ यीशु ने उन्हें मिलने के लिए कहा था।+ 17 जब उन्होंने उसे देखा तो झुककर प्रणाम* किया, मगर उनमें से कुछ ने शक किया। 18 यीशु उनके पास आया और उसने कहा, “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार मुझे दिया गया है।+ 19 इसलिए जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ+ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा दो।+ 20 और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है।+ और देखो! मैं दुनिया की व्यवस्था* के आखिरी वक्त+ तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।”
या “मसीहा; अभिषिक्त जन।”
या “ज़ोरदार शक्ति।”
यह उन 237 जगहों में से पहली जगह है, जहाँ यहोवा नाम यूनानी शास्त्र में पाया जाता है। अति. क5 देखें।
शा., “अपने घर लाने।”
यह नाम, इब्रानी नाम “येशू” और “यहोशू” के जैसा है, जिसका मतलब है “यहोवा उद्धार है।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
शब्दावली देखें।
या “मजूसी।”
या “उसके सामने झुककर प्रणाम।”
या “मसीहा; अभिषिक्त जन।”
या “झुककर उसे प्रणाम।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
यह शब्द शायद “अंकुर” के लिए इस्तेमाल होनेवाले इब्रानी शब्द से निकला है।
अति. क5 देखें।
या “डुबकी दिलाता।”
या “नेक।”
शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
या “सबसे ऊँची जगह।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “दस शहरों का इलाका।”
या “जो पवित्र शक्ति की भीख माँगते हैं।”
या “नापने की टोकरी।”
शा., “वह स्वर्ग के राज के संबंध में सबसे ‘छोटा’ कहलाएगा।”
शा., “वह स्वर्ग के राज के संबंध में ‘महान’ कहलाएगा।”
यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। शब्दावली देखें।
शा., “आखिरी कौद्रान।” अति. ख14 देखें।
शब्दावली देखें।
या “तुझे ठोकर खिला रही है।”
शब्दावली देखें।
या “तुझे ठोकर खिला रहा है।”
शब्दावली देखें।
यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।
अति. क5 देखें।
शा., “उस दुष्ट।”
अति. ख14 देखें।
यानी बिना ब्याज के उधार माँगे।
या “पूरा।”
शा., “दया के दान।” शब्दावली देखें।
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “पवित्र माना जाए; समझा जाए।”
शा., “अपने कर्ज़दारों।”
शा., “हमारे कर्ज़।”
शा., “उस दुष्ट।”
या “छुड़ा।”
या “गंदा रहने देते हैं।”
या “जो गुप्त में देखता है।”
या “साफ-साफ देखती है।” शा., “सादी है।”
शा., “आँख बुरी; दुष्ट है।”
शा., “एक हाथ भी।” अति. ख14 देखें।
या “लिली।”
या “तंदूर।”
शब्दावली देखें।
या “की खोज में लगे रहो।”
या “दंडवत।”
या “तुम्हारे दिल क्यों काँप रहे हैं?”
या “स्मारक कब्रों।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
या “दंडवत।”
शा., “कनानानी।”
या “धरता है।”
शैतान को दिया एक नाम जो दुष्ट स्वर्गदूतों का राजा या शासक है।
या “जीवन पाने की उम्मीद नहीं छीन सकते।”
शब्दावली देखें।
शा., “एक असारियन में।” अति. ख14 देखें।
शब्दावली देखें।
या “मेरी वजह से ठोकर नहीं खाता।”
या “शानदार।”
या “उसे कब्ज़े में कर रहे हैं।”
या “नतीजों।”
या “बुद्धि की जीत होती है।”
या “नज़राने की रोटी।”
या “लकवा मार गया था।”
शैतान को दिया एक नाम।
या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।
या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।
शा., “व्यभिचारी।”
शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
शा., “वह दुष्ट।”
शा., “तो वह ठोकर खाता है।”
या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।
या “तीन बड़े माप।”
या शायद, “दुनिया की शुरूआत।”
शा., “उस दुष्ट।”
या “ज़माने।” शब्दावली देखें।
या “ज़माने।” शब्दावली देखें।
शा., “जो चीज़ें ठोकर खिलाने की वजह बनती हैं।”
या “ज़माने।” शब्दावली देखें।
यानी हेरोदेस अन्तिपास। शब्दावली देखें।
या “मेज़ से टेक लगाए बैठे थे।”
शा., “कई स्तादियौन।” एक स्तादियौन 185 मी. (606.95 फुट) के बराबर था।
यानी सुबह करीब 3 बजे से करीब 6 बजे तक।
या “दंडवत।”
यानी रिवाज़ के मुताबिक हाथ नहीं धोते।
या “गाली देता है।”
यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।
यानी रिवाज़ के मुताबिक हाथ धोए बिना।
या “दंडवत।”
शा., “व्यभिचारी।”
या “बड़े टोकरे।”
या “हेडीज़।” शब्दावली देखें।
शा., “मेरे पीछे जा।”
शब्दावली देखें।
शा., “टेढ़ी पीढ़ी।”
अति. क3 देखें।
शा., “दो-द्राख्मा का एक सिक्का।” अति. ख14 देखें।
शा., “स्ताटेर सिक्का,” जो चार-द्राख्मा के बराबर माना जाता था। अति. ख14 देखें।
शा., “तुम न पलटो।”
यानी कुछ ऐसा करता है कि दूसरा आदमी विश्वास करना छोड़ देता है।
या “ठोकर के पत्थर।”
या “तुझे ठोकर खिलाता है।”
शब्दावली देखें।
अति. क3 देखें।
या शायद, “तुम्हारा।”
शा., “उसे सुधार।”
शा., “मुँह।”
या “चाँदी के 10,000 तोड़े।” अति. ख14 देखें।
या “दंडवत करके।”
अति. ख14 देखें।
शा., “एक जुए में जोड़ा है।”
यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
या “तू परिपूर्ण हो।”
या “नयी सृष्टि की जाएगी।”
अति. ख14 देखें।
यानी सुबह करीब 9 बजे।
यानी दोपहर करीब 12 बजे।
यानी दोपहर करीब 3 बजे।
यानी शाम करीब 5 बजे।
अति. ख14 देखें।
अति. ख14 देखें।
अति. ख14 देखें।
या “दरियादिली।”
शा., “तेरी आँख दुष्ट है।”
या “दंडवत।”
ज़ाहिर है, ओढ़नों पर।
अति. क5 देखें।
शा., “की गुफा।”
अति. क5 देखें।
या “गिरफ्तार करना।”
या “मेज़ से टेक लगाए।”
यूनानी में “कैसर।”
अति. ख14 देखें।
अति. क5 देखें।
शब्दावली में “जीवन” देखें।
अति. क5 देखें।
या “सबसे बढ़िया।”
शा., “रब्बी।”
अति. क3 देखें।
या “को यहूदी धर्म अपनाने के लिए।”
शब्दावली देखें।
या “लूट का माल।”
या “स्मारक कब्रें।”
शा., “अपने पुरखों का पैमाना भर दो।”
शब्दावली देखें।
यानी मंदिर।
या शायद, “तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा गया है।”
अति. क5 देखें।
शब्दावली देखें।
या “ज़माने।” शब्दावली देखें।
या “ठोकर खाएँगे।”
यानी परमेश्वर के कानून को तुच्छ समझना।
या “धरता है।”
शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
या “रात में किस वक्त।”
या “सूझ-बूझ से काम लेनेवाला।”
या “सूझ-बूझ से काम लेनेवाली।”
“तोड़ा” यूनानी तौल की एक इकाई थी जो करीब 20.4 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “चाँदी।”
शा., “चाँदी।”
शा., “चाँदी।”
या “मेरे पास तन ढकने को कपड़े नहीं थे।”
शा., “काट डाले जाएँगे।” यानी जीवन से।
या “गिरफ्तार करें।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठा था।”
या “मेज़ से टेक लगाए बैठा।”
या “भजन।”
शा., “तुम ठोकर खाओगे।”
या “उत्सुक।”
या “बोलने का लहज़ा।”
या “यह तेरी सिरदर्दी है!”
अति. क5 देखें।
या “तेरी जय हो!”
शब्दावली देखें।
एक कड़वी चीज़।
शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
यानी दोपहर करीब 12 बजे।
यानी दोपहर करीब 3 बजे।
या “स्मारक कब्रें।”
अति. क5 देखें।
या “दंडवत।”
शा., “कायल कर देंगे।”
या “दंडवत।”
या “ज़माने।” शब्दावली देखें।