नीतिवचन
1 दाविद के बेटे और इसराएल के राजा, सुलैमान+ के नीतिवचन,+
2 जिनसे इंसान बुद्धि+ और शिक्षा पाएगा,
बुद्धि की बातें समझेगा,
3 ऐसी शिक्षा पाएगा+ जो उसे अंदरूनी समझ देगी,
नेकी+ और सीधाई से चलने और सही फैसले लेने*+ में उसे मदद देगी।
4 ये नादानों को होशियार बनाएँगे,+
जवानों को ज्ञान और सोचने-परखने की शक्ति देंगे।+
7 यहोवा का डर मानना,* ज्ञान पाने की शुरूआत है।+
मूर्ख ही बुद्धि और शिक्षा को तुच्छ समझता है।+
10 हे मेरे बेटे, उन पापियों की बातों में न आना, जो तुझे फुसलाते हैं+
11 और कहते हैं, “आ, हमारे साथ चल!
खून करने के लिए हम घात लगाएँगे,
छिपकर मासूमों पर हमला करेंगे।
12 उन्हें निगल जाएँगे जैसे कब्र ज़िंदा लोगों को निगल जाती है,
हाँ, साबुत निगल जाएँगे।
13 उनकी सारी कीमती चीज़ें छीन लेंगे,
लूट के माल से अपना घर भर लेंगे।
15 हे मेरे बेटे, उनके पीछे मत जाना,
उनकी राहों से दूर रहना।+
16 क्योंकि उनके पैर बुराई करने को दौड़ते हैं,
वे लोग खून बहाने के लिए फुर्ती करते हैं।+
17 चिड़िया की आँखों के सामने जाल बिछाना बेकार है,
18 इसीलिए दुष्ट, खून करने के लिए घात लगाते हैं
लोगों की जान लेने के लिए छिपकर बैठते हैं।
20 सच्ची बुद्धि+ सड़कों पर पुकारती है,+
चौराहों पर उसकी आवाज़ गूँजती है,+
21 चहल-पहलवाले नुक्कड़ पर वह आवाज़ लगाती है,
शहर के फाटकों पर कहती है,+
22 “ऐ नादानो, तुम कब तक नादानी से लिपटे रहोगे?
ऐ खिल्ली उड़ानेवालो, तुम कब तक खिल्ली उड़ाने का मज़ा लोगे?
ऐ मूर्खो, तुम कब तक ज्ञान से नफरत करोगे?+
तब मेरे सोते तुम्हारे लिए फूट पड़ेंगे
और मैं तुम्हें अपनी बातें बताऊँगी।+
24 मैंने बार-बार पुकारा पर तुमने सुनने से इनकार कर दिया,
मैंने हाथ से इशारा किया, मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया,+
25 मेरी सलाह को तुम अनसुना करते रहे,
जब मैंने डाँट लगाकर तुम्हें सुधारना चाहा,
तो तुमने इसे ठुकरा दिया,
26 इसलिए जब विपत्ति तुम पर टूट पड़ेगी तो मैं हँसूँगी,
जिसका तुम्हें डर है, जब वह तुम पर आ पड़ेगा तो मैं मज़ाक उड़ाऊँगी।+
27 जब वह डर तूफान की तरह तुम पर छा जाएगा,
विपत्ति ज़ोरदार आँधी की तरह तुम पर टूट पड़ेगी,
संकट और मुसीबतें तुम्हें आ घेरेंगी, तब मैं हँसूँगी।
28 उस वक्त वे रह-रहकर मुझे पुकारेंगे, मगर मैं कोई जवाब नहीं दूँगी,
मुझे यहाँ-वहाँ ढूँढ़ेंगे मगर मैं न मिलूँगी+
29 क्योंकि उन्होंने ज्ञान से नफरत की,+
यहोवा का डर मानना उन्हें रास नहीं आया।+
30 उन्होंने मेरी सलाह ठुकरा दी,
जब-जब मैंने डाँट लगायी, उन्होंने इसकी कदर नहीं की।
32 मुझसे मुँह मोड़कर नादान अपनी जान गँवा बैठता है,
मूर्खों का बेफिक्र रवैया उन्हें तबाह कर देता है।
2 हे मेरे बेटे, अगर तू मेरी बातों को माने,
मेरी आज्ञाओं को खज़ाने की तरह सँभालकर रखे,+
2 बुद्धि की बातों पर कान लगाए,+
पैनी समझ की बातों पर मन लगाए,+
पैनी समझ को ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाए,+
4 अगर तू इन्हें चाँदी की तरह ढूँढ़ता रहे,+
छिपे हुए खज़ाने की तरह खोजता रहे,+
5 तब तू समझेगा कि यहोवा का डर मानना क्या होता है+
और तुझे परमेश्वर का ज्ञान हासिल होगा।+
7 उसके पास ऐसी बुद्धि का भंडार है, जिससे सीधे लोगों को फायदा होता है।
निर्दोष चाल चलनेवालों के लिए वह ढाल है।+
10 जब बुद्धि तेरे दिल में उतरेगी+
और ज्ञान तेरे जी* को भाने लगेगा,+
11 जब सोचने-परखने की शक्ति तुझ पर नज़र रखेगी+
और पैनी समझ तेरी हिफाज़त करेगी,
12 तब तू गलत रास्ते पर जाने से बचेगा,
उन आदमियों से दूर रहेगा जो टेढ़ी बातें कहते हैं,+
13 जो अँधेरी राहों पर चलने के लिए+
सीधाई का रास्ता छोड़ देते हैं,
14 जिन्हें बुरे काम करने में मज़ा आता है,
गंदी और घिनौनी बातें जिन्हें उमंग से भर देती हैं,
15 जिनकी राहें टेढ़ी हैं
और जिनके सारे काम कपट से भरे हैं।
16 बुद्धि तुझे नीच* औरत से बचाएगी,
बदचलन* औरत की चिकनी-चुपड़ी बातों से बचाएगी,+
17 जिसने अपनी जवानी के करीबी साथी* को छोड़ दिया+
और अपने परमेश्वर का करार भूल गयी।
20 इसलिए अच्छे लोगों की राह पर चल,
नेक जनों के रास्ते पर बना रह,+
21 क्योंकि सिर्फ सीधे-सच्चे लोग धरती पर बसेंगे,
निर्दोष लोग ही इस पर रहेंगे,+
22 मगर दुष्टों को धरती से मिटा दिया जाएगा+
और विश्वासघातियों को उखाड़ दिया जाएगा।+
3 हे मेरे बेटे, मेरी सिखायी बातों को मत भूलना
और मेरी आज्ञाओं को पूरे दिल से मानना।
3 अटल प्यार और सच्चाई को अपने से दूर मत करना,+
उन्हें अपने गले का हार बनाना
और अपने दिल की पटिया पर लिखना,+
4 तब परमेश्वर और इंसान तुझसे खुश होंगे
और कबूल करेंगे कि तुझमें अंदरूनी समझ है।+
5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना,+
बल्कि पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखना,+
7 खुद को बड़ा बुद्धिमान न समझना,+
यहोवा का डर मानना और बुराई से दूर रहना।
8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला-चंगा रहेगा
और तेरी हड्डियों को ताज़गी मिलेगी।
9 अपनी अनमोल चीज़ें देकर यहोवा का सम्मान करना,+
अपनी उपज* का पहला फल* चढ़ाकर उसका आदर करना,+
10 तब तेरे भंडार खूब भरे रहेंगे+
और तेरे हौद नयी दाख-मदिरा से उमड़ते रहेंगे।
11 हे मेरे बेटे, यहोवा की शिक्षा मत ठुकराना,+
उसकी डाँट से नफरत न करना,+
12 क्योंकि यहोवा जिससे प्यार करता है उसको डाँटता भी है,+
जैसे पिता उस बेटे को डाँटता है जिसे वह बेहद चाहता है।+
16 यह अपने दाएँ हाथ से लंबी ज़िंदगी देती है
और बाएँ हाथ से धन-दौलत और सम्मान।
19 यहोवा ने बुद्धि से पृथ्वी की नींव डाली,+
पैनी समझ से आकाश को मज़बूती से ताना।+
21 हे मेरे बेटे, इन्हें* भूल न जाना,
जो बुद्धि तुझे फायदा पहुँचाती है उसे सँभालकर रखना
और अपनी सोचने-परखने की शक्ति गँवा न देना।
22 ये तुझे ज़िंदगी देंगी,
तेरे गले का खूबसूरत हार बनेंगी,
23 तू अपनी डगर पर महफूज़ रहेगा
और तेरे पैर कभी ठोकर नहीं खाएँगे।+
25 अचानक आनेवाली आफत से तू न डरेगा,+
न दुष्टों पर आनेवाले तूफान से खौफ खाएगा,+
26 क्योंकि तेरा भरोसा यहोवा पर होगा,+
वह तेरे पैरों को किसी फंदे में नहीं फँसने देगा।+
28 अगर तू अपने पड़ोसी को अभी कुछ दे सकता है,
तो उससे यह मत कहना, “कल आना, कल मैं तुझे दूँगा।”
31 खूँखार इंसान से ईर्ष्या मत करना,+
न उसकी राह पर चलना,
32 क्योंकि यहोवा कपटी लोगों से नफरत करता है,+
मगर सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।+
4 मेरे पिता ने यह कहकर मुझे सिखाया,
5 बुद्धि हासिल कर, समझ हासिल कर,+
मेरी बातों को भूल न जाना, उनसे मुँह मत फेरना।
6 बुद्धि को मत छोड़ना, वह तेरी हिफाज़त करेगी,
उससे प्यार करना, वह तेरी रक्षा करेगी।
8 बुद्धि को अनमोल जान, वह तुझे ऊँचा उठाएगी,+
उसे गले लगा, वह तेरा मान बढ़ाएगी।+
9 वह तेरे सिर पर फूलों का ताज सजाएगी,
खूबसूरत ताज पहनाकर तेरी शोभा बढ़ाएगी।”
12 जब तू चलेगा तो कोई बाधा तुझे नहीं रोकेगी,
जब तू दौड़ेगा तो तू ठोकर खाकर नहीं गिरेगा।
13 तुझे जो शिक्षा मिले उसे पकड़े रहना, जाने मत देना,+
उसी पर तेरी ज़िंदगी टिकी है, उसे सँभालकर रखना।+
16 क्योंकि दुष्ट को बुराई करे बिना नींद नहीं आती,
जब तक वे किसी को बरबाद न कर दें, वे चैन से नहीं सोते।
17 वे दुष्टता की रोटी खाते हैं,
हिंसा से मिली दाख-मदिरा पीते हैं।
19 दुष्टों की राह में अँधेरा-ही-अँधेरा है,
वे नहीं जानते कि उन्हें किससे ठोकर लगती है।
20 हे मेरे बेटे, मेरी बातों पर ध्यान दे,
इन पर कान लगा।
बुराई के रास्ते पर कदम रखने से दूर रहना।
5 हे मेरे बेटे, मेरी बुद्धि-भरी बातों पर ध्यान दे,
मैं पैनी समझ के बारे में जो सिखाऊँ, उस पर कान लगा।+
2 तब तू अपनी सोचने-परखने की शक्ति की रक्षा कर सकेगा
और तेरे मुँह से हमेशा सच्चे ज्ञान की बातें निकलेंगी।+
3 बदचलन* औरत की बातें* शहद जैसी मीठी+
और तेल से भी चिकनी होती हैं,+
4 लेकिन आखिर में वह नागदौने जैसी कड़वी निकलती हैं+
और दोधारी तलवार की तरह चोट पहुँचाती हैं।+
5 उसके पैर मौत की तरफ बढ़ते हैं,
उसके कदम सीधे कब्र की ओर ले जाते हैं।
6 जीवन की राह के बारे में वह ज़रा भी नहीं सोचती,
अपनी राह पर वह भटक रही है और नहीं जानती कि यह उसे किधर ले जाएगी।
7 हे मेरे बेटो, मेरी सुनो,
मैं जो कहूँ, उसे अनसुना मत करना।
8 उस औरत से कोसों दूर रहना,
उसकी दहलीज़ के पास भी न जाना।+
9 कहीं ऐसा न हो कि तू अपना मान-सम्मान खो बैठे+
और सारी ज़िंदगी तुझे दुख में काटनी पड़े,+
10 या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरें+
और जो कुछ तूने मेहनत से जोड़ा है, वह दूसरों के घर चला जाए।
11 अगर ऐसा हुआ तो जीवन के आखिरी समय में,
जब तेरी ताकत और शरीर जवाब देने लगेंगे, तब तू कराहेगा+
12 और कहेगा, “मैंने शिक्षा से नफरत क्यों की?
क्यों मेरे मन ने डाँट को स्वीकार नहीं किया?
13 मैंने अपने शिक्षकों की बात क्यों नहीं सुनी?
क्यों अपने सिखानेवालों पर ध्यान नहीं दिया?
19 वह तो तेरी प्यारी हिरनी है, मन मोह लेनेवाली पहाड़ी बकरी है।+
उसके स्तन हमेशा तुझे संतुष्ट रखें,
तू हमेशा उसके प्यार में डूबा रहे।+
22 दुष्ट के गुनाह उसी के लिए फंदा बन जाते हैं,
वह अपने ही पाप की रस्सियों में कसकर रह जाता है,+
23 अपनी बड़ी मूर्खता के कारण भटकता फिरता है,
शिक्षा कबूल न करने से वह मर जाएगा।
6 हे मेरे बेटे, अगर तूने किसी का कर्ज़ चुकाने का ज़िम्मा लिया है,*+
अगर तूने किसी पराए से हाथ मिलाया है,*+
2 अगर तू वचन देकर फँस गया है,
ज़बान देकर बँध गया है,+
3 तो हे मेरे बेटे, खुद को छुड़ाने के लिए ऐसा कर:
नम्र होकर उस आदमी के पास जा और उसके आगे गिड़गिड़ा,
क्योंकि तू उसके हाथ में पड़ चुका है।+
4 अपनी आँखों में नींद न आने दे,
अपनी पलकों को झपकी न लेने दे,
5 खुद को छुड़ा ले, जैसे चिकारा खुद को शिकारी की पकड़ से
और पंछी खुद को बहेलिए के हाथ से छुड़ाता है।
7 उसका न तो सेनापति होता है,
न कोई अधिकारी, न ही शासक,
8 फिर भी वह गरमियों में अपने खाने का इंतज़ाम करती है,+
कटनी के समय खाने की चीज़ें बटोरती है।
9 हे आलसी, तू कब तक पड़ा रहेगा?
नींद से कब जागेगा?
10 थोड़ी देर और सो ले, एक और झपकी ले ले,
हाथ बाँधकर थोड़ा सुस्ता ले,+
11 तब गरीबी, लुटेरे की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी,
तंगी, हथियारबंद आदमी की तरह हमला बोल देगी।+
12 निकम्मा और दुष्ट इंसान टेढ़ी-मेढ़ी बातें करता है,+
13 बुरे इरादे से आँख मारता है,+
पैरों और उँगलियों से इशारे करता है।
16 छ: चीज़ें हैं जिनसे यहोवा नफरत करता है,
हाँ, सात चीज़ें हैं जिनसे वह घिन करता है:
झूठ बोलनेवाली जीभ,+
बेगुनाहों का खून करनेवाले हाथ,+
बुराई की तरफ दौड़नेवाले पैर,
19 बात-बात पर झूठ बोलनेवाला गवाह+
और भाइयों में फूट डालनेवाला आदमी।+
21 इन्हें अपने दिल में बिठा,
अपने गले में बाँध।
22 जब तू चलेगा तो ये तेरी अगुवाई करेंगी,
जब तू लेटेगा तो तुझ पर पहरा देंगी,
जब तू जागेगा तो तुझसे बातें करेंगी।*
25 उसकी खूबसूरती देखकर दिल में उसकी लालसा न करना+
या जब वह सुंदर आँखों से लुभाए तो बहक न जाना,
26 क्योंकि वेश्या के पीछे जाकर इंसान रोटी का मोहताज हो जाता है,+
मगर दूसरे की पत्नी के पीछे जाकर वह अपना अनमोल जीवन ही गँवा बैठता है।
27 क्या ऐसा हो सकता है कि एक आदमी अपने सीने पर आग रखे और उसके कपड़े न जलें?+
28 या एक आदमी जलते अंगारों पर चले और उसके पैर न झुलसें?
29 दूसरे की पत्नी के साथ संबंध रखनेवाले का भी यही हाल होता है,
उस औरत को छूनेवाला सज़ा से नहीं बचेगा।+
30 लोग उस चोर को नहीं धिक्कारते,
जो अपनी भूख मिटाने के लिए चोरी करता है,
31 फिर भी पकड़े जाने पर उसे सात गुना मुआवज़ा भरना पड़ता है,
जो कुछ उसके घर में है, उसे देना पड़ता है।+
32 व्यभिचार करनेवाले में समझ ही नहीं होती,*
वह खुद पर बरबादी लाता है,+
33 दर्द और अपमान के सिवा उसे कुछ नहीं मिलता,+
उसकी बदनामी दूर नहीं होगी।+
34 क्योंकि जलन एक पति का क्रोध भड़काती है,
जब वह बदला लेगा तो कोई रहम नहीं करेगा,+
35 कोई मुआवज़ा* कबूल नहीं करेगा,
तू उसे कितना ही बड़ा तोहफा दे, उसका गुस्सा शांत नहीं होगा।
4 बुद्धि से कह, “तू मेरी बहन है,”
समझ से कह, “तू मेरी सगी है”
6 एक बार मैं अपने घर की खिड़की पर खड़ा,
जालीदार झरोखे से नीचे देख रहा था।
8 वह उस सड़क पर चला जा रहा था,
जिसके मोड़ पर वह औरत रहती थी,
वह तेज़ कदमों से उसके घर की तरफ बढ़ने लगा।
10 तभी मैंने देखा, एक औरत उस नौजवान से मिली,
उसके पैर घर पर नहीं टिकते थे,
13 उसने उस जवान को पकड़कर चूमा
और बेहयाई से कहने लगी,
14 “मैंने शांति-बलि चढ़ायी है,+
आज अपनी मन्नत पूरी की है,
15 इसलिए मैं तुझसे मिलने आयी हूँ,
मैं तुझे ही ढूँढ़ रही थी और तू मुझे मिल गया।
17 उस पर गंधरस, अगर और दालचीनी छिड़की है।+
18 आ! हम एक-दूसरे के प्यार में खो जाएँ,
सुबह तक प्यार का जाम पीते रहें।
19 मेरा पति भी घर पर नहीं है,
वह लंबे सफर पर गया है
20 और अपने साथ पैसों की थैली ले गया है,
पूरे चाँद के निकलने तक वह नहीं लौटेगा।”
21 वह अपनी लच्छेदार बातों में उसे फँसा लेती है,+
मीठी-मीठी बातों से उसे फुसला लेती है।
22 फिर क्या, वह नौजवान फौरन उसके पीछे चल देता है,
जैसे बैल हलाल होने जा रहा हो,
23 अंत में एक तीर उसके कलेजे को भेद देगा,
उसका हाल उस पक्षी जैसा होगा,
जो तेज़ी से जाल की तरफ उड़ता है
और नहीं जानता कि अपनी जान गँवा बैठेगा।+
24 इसलिए मेरे बेटो, मेरी सुनो,
मैं जो कह रहा हूँ, उस पर ध्यान दो।
25 तेरा दिल तुझे उस औरत के पीछे जाने के लिए बहका न दे,
तू भटककर उसकी राहों पर मत जाना।+
26 उसने कई लोगों को अपना शिकार बनाया है,+
उसके हाथों बेहिसाब लोग मारे गए।+
27 उसका घर कब्र में ले जाता है,
मौत की काल-कोठरी में पहुँचाता है।
8 देख, बुद्धि आवाज़ लगा रही है,
पैनी समझ ऊँची आवाज़ में कह रही है।+
6 मेरी सुनो क्योंकि मैं ज़रूरी बातें बता रही हूँ,
मैं जो कहूँगी सही कहूँगी।
7 मैं सच्चाई की बातें धीमे-धीमे बोलती हूँ,
मेरे होंठ दुष्ट बातों से घिन करते हैं।
8 मेरी कही सारी बातें नेकी की हैं,
उनमें कोई छल-कपट या उलट-फेर नहीं।
9 समझ रखनेवाले ये बातें साफ-साफ समझ जाते हैं,
ज्ञान पानेवालों को ये सीधी और सच्ची लगती हैं।
10 चाँदी को नहीं, मेरी शिक्षा को चुन लो,
बढ़िया सोने को नहीं, मेरे ज्ञान को ले लो,+
11 क्योंकि बुद्धि का मोल मूंगों* से बढ़कर है,
सारी कीमती चीज़ें भी इसकी बराबरी नहीं कर सकतीं।
13 यहोवा का डर मानना, बुराई से नफरत करना है।+
गुरूर, घमंड,+ बुरी राह और झूठी ज़बान से मुझे नफरत है।+
16 मेरी मदद से हाकिम राज करते हैं,
ऊँचे अधिकारी सच्चाई से न्याय करते हैं।
18 मेरे पास धन और आदर है,
कभी न मिटनेवाली दौलत और नेकी है।
19 मेरे दिए तोहफे सोने से, हाँ, शुद्ध सोने से बढ़कर हैं,
मैं जो देती हूँ वह बढ़िया चाँदी से अच्छा है।+
20 मैं नेकी की राह पर चलती हूँ,
इंसाफ की डगर के बीचों-बीच जाती हूँ।
25 पहाड़ों को अपनी जगह स्थिर करने से पहले,
पहाड़ियों से भी पहले, मुझे रचा गया।
26 उस वक्त उसने न तो धरती न इसके मैदान,
न ही मिट्टी का पहला ढेला बनाया था।
गहरे सागर में सोते बनाए,
29 जब उसने समुंदर की हद ठहरायी
कि वह उसका हुक्म न तोड़े,+
जब उसने धरती की नींव रखी,
उसे हर दिन मुझसे बहुत खुशी मिलती थी+
और मैं हर वक्त उसके सामने मगन रहती थी।+
31 जब मैंने इंसानों के रहने के लिए धरती देखी,
तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा।
इंसानों से मुझे गहरा लगाव था।
34 सुखी है वह इंसान जो मेरी सुनता है,
जो हर दिन मेरे दरवाज़े पर सुबह-सुबह आता है,
चौखट के पास खड़ा मेरा इंतज़ार करता है।
36 मगर जो मुझे अनदेखा करता है, वह खुद को चोट पहुँचाता है,
जो मुझसे नफरत करता है उसे मौत ज़्यादा प्यारी है।”+
9 सच्ची बुद्धि ने अपना घर बनाया है,
तराशे हुए सात खंभों पर इसे खड़ा किया है।
4 “जो नादान हैं, वे इधर आएँ।”
जिनमें समझ नहीं, उनसे वह कहती है,
5 “आओ और मेरे यहाँ रोटी खाओ,
आकर दाख-मदिरा पीओ जिसका मैंने स्वाद बढ़ाया है।
7 जो खिल्ली उड़ानेवाले को सुधारता है, वह अपनी ही बेइज़्ज़ती कराता है,+
जो दुष्ट को डाँट लगाता है वह खुद चोट खाता है।
8 खिल्ली उड़ानेवाले को मत डाँट, वह तुझसे नफरत करेगा,+
बुद्धिमान को डाँट, वह तुझसे प्यार करेगा।+
9 बुद्धिमान को समझा, वह और बुद्धिमान बनेगा,+
नेक इंसान को सिखा, वह सीखकर अपना ज्ञान बढ़ाएगा।
10 यहोवा का डर मानना बुद्धि की शुरूआत है,+
परम-पवित्र परमेश्वर के बारे में जानना,+ समझ हासिल करना है।
12 अगर तू बुद्धिमान बने तो तेरा ही भला होगा,
लेकिन अगर तू खिल्ली उड़ाए, तो तू ही अंजाम भुगतेगा।
13 मूर्ख औरत बकबक तो करती है,+
मगर जानती कुछ नहीं, बिना जाने बोलती रहती है।
14 वह शहर की ऊँची-ऊँची जगह पर,
अपने घर के सामने बैठी,+
15 आने-जानेवालों को आवाज़ लगाती है,
अपने रास्ते पर सीधे जा रहे लोगों से कहती है,
16 “जो नादान हैं, वे इधर आएँ।”
जिनमें समझ नहीं, उनसे वह कहती है,+
बुद्धिमान बेटा अपने पिता को खुशी देता है,+
लेकिन मूर्ख अपनी माँ को दुख देता है।
5 जो बेटा गरमियों में फसल बटोरता है, वह अंदरूनी समझ दिखाता है,
लेकिन जो बेटा कटाई के समय गहरी नींद सोता है, उसे शर्मिंदा होना पड़ता है।+
10 जो धोखा देने के लिए आँख मारता है, वह दुख पहुँचाता है+
और जो मूर्खता की बातें करता है, वह कुचला जाता है।+
13 पैनी समझ रखनेवाले के होंठों पर बुद्धि पायी जाती है,+
लेकिन जिसमें समझ नहीं उसकी पीठ पर छड़ी पड़ती है।+
15 रईस की दौलत उसके लिए किलेबंद शहर है।
गरीब की गरीबी उसे बरबाद कर देती है।+
17 जो शिक्षा कबूल करता है वह दूसरों को जीवन की राह दिखाता है,*
लेकिन जो डाँट को अनसुना करता है, वह दूसरों को गुमराह करता है।
18 जो नफरत छिपाए रखता है, वह झूठ बोलता है+
और जो दूसरों को बदनाम करने के लिए बातें* फैलाता है, वह मूर्ख है।
19 जहाँ बहुत बातें होती हैं, वहाँ अपराध भी होता है,+
लेकिन जो ज़बान पर काबू रखता है, वह सूझ-बूझ से काम लेता है।+
29 यहोवा की राह निर्दोष लोगों के लिए एक मज़बूत गढ़ है,+
मगर बुरे काम करनेवालों के लिए यह विनाश साबित होती है।+
31 नेक जन के मुँह से बुद्धि की बातें निकलती हैं,
लेकिन छल करनेवाली ज़बान काट दी जाएगी।
32 नेक जन के होंठ मनभावनी बातें कहना जानते हैं,
मगर दुष्ट के मुँह से छल की बातें निकलती हैं।
3 सीधे-सच्चे इंसान का निर्दोष चालचलन उसे राह दिखाएगा,+
मगर छल-कपट करनेवाले का कपट खुद उसका नाश कर देगा।+
9 भक्तिहीन* अपनी बातों से अपने पड़ोसी को तबाह कर देता है,
लेकिन नेक इंसान ज्ञान की वजह से बच जाते हैं।+
12 जिसमें समझ नहीं होती वह अपने पड़ोसी को नीचा दिखाता है,
लेकिन जिसमें पैनी समझ होती है वह चुप रहता है।+
13 दूसरों को बदनाम करनेवाला उनका राज़ बताता फिरता है,+
लेकिन भरोसेमंद इंसान राज़ को राज़ ही रखता है।*
15 जो अजनबी का कर्ज़ चुकाने का ज़िम्मा लेता है,* वह मुसीबत में पड़ता है,+
मगर जो हाथ मिलाकर वादा करने से दूर रहता है,* वह बच जाता है।
22 जो औरत सुंदर है मगर समझ से काम नहीं लेती,
वह ऐसी है जैसे सूअर की नाक में सोने की नथ।
24 जो दिल खोलकर देता* है, उसके पास और ज़्यादा आ जाता है+
और जो उतना भी नहीं देता जितना उसे देना चाहिए, वह कंगाल हो जाता है।+
26 अनाज के जमाखोरों को लोग कोसते हैं,
मगर इसे बेचनेवालों को दुआएँ देते हैं।
27 जो भलाई करने की ताक में रहता है वह मंज़ूरी पाना चाहता है,+
लेकिन जो बुराई करने की ताक में रहता है, बुराई उसी पर आ पड़ती है।+
29 जो अपने परिवार पर आफत* लाता है, उसके हाथ कुछ नहीं* लगेगा+
और मूर्ख, बुद्धिमान का नौकर बनकर उसकी सेवा करेगा।
31 अगर नेक जन को धरती पर अपने कामों का फल मिलेगा,
तो दुष्ट और पापियों को और भी बढ़कर अपने कामों का फल मिलेगा।+
4 एक अच्छी पत्नी अपने पति के सिर का ताज है,+
लेकिन जो उसे शर्मिंदा करती है,
वह मानो उसकी हड्डियाँ गला देती है।+
5 नेक इंसान की सोच सीधी होती है,
लेकिन दुष्ट की सलाह कपट से भरी होती है।
12 दुष्ट, बुरे लोगों की लूट का लालच करता है,
लेकिन नेक जन की जड़ें मज़बूत होती हैं और वह बढ़िया फल देता है।
26 नेक जन अपने चरागाह को गौर से देखता है,
लेकिन दुष्टों की राह उन्हें भटका देती है।
2 इंसान अपने मुँह की बातों की वजह से अच्छा खाता है,+
लेकिन धोखेबाज़ का जी हिंसा के लिए उतावला रहता है।
3 जो ज़बान पर काबू रखता है वह अपनी जान बचाता है,+
मगर जो अपना मुँह बंद नहीं रखता वह खुद को बरबाद करता है।+
7 कोई अपने को अमीर बताता है जबकि उसके पास कुछ नहीं,+
कोई अपने को गरीब बताता है जबकि उसके पास बहुत दौलत है।
11 रातों-रात कमायी गयी दौलत घटती जाएगी,+
लेकिन जो थोड़ा-थोड़ा करके जमा करता है, उसकी दौलत बढ़ती जाएगी।
12 जब उम्मीद* पूरी होने में देर होती है, तो मन उदास हो जाता है,+
मगर जब मन की आरज़ू पूरी होती है, तो मानो यह जीवन का पेड़ है।+
13 जो हिदायत* को तुच्छ समझता है, उसे सज़ा भुगतनी होगी,+
लेकिन जो आज्ञा का आदर करता है उसे इनाम मिलेगा।+
15 अंदरूनी समझ रखनेवाला दूसरों की मंज़ूरी पाता है,
लेकिन कपटी की राह दुखों से भरी होती है।
20 बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा,+
लेकिन मूर्खों के साथ मेल-जोल रखनेवाला बरबाद हो जाएगा।+
24 जो अपने बेटे पर छड़ी* नहीं चलाता, वह उससे नफरत करता है,+
मगर जो उससे प्यार करता है, वह उसे सुधारने से पीछे नहीं हटता।*+
2 सीधाई की राह पर चलनेवाला यहोवा का डर मानता है,
लेकिन टेढ़ी चाल चलनेवाला परमेश्वर को तुच्छ जानता है।
3 मूर्ख की घमंड से भरी बातें छड़ी की मार जैसी हैं,
लेकिन बुद्धिमान के होंठ हिफाज़त देते हैं।
4 जहाँ गाय-बैल नहीं होते, वहाँ चरनी साफ रहती है,
लेकिन बैल की ताकत से बहुत पैदावार होती है।
6 हँसी उड़ानेवाला बुद्धि को ढूँढ़ता है पर उसे नहीं पाता,
लेकिन समझ रखनेवाले को ज्ञान आसानी से मिल जाता है।+
8 होशियार इंसान की बुद्धि उसे बताती है कि वह किस राह पर है,
10 एक इंसान ही अपने दिल का दर्द जानता है
और उसकी खुशी को कोई दूसरा नहीं समझ सकता।
13 हँसी के पीछे भी दिल का गम छिपा हो सकता है
और मौज-मस्ती दुख में बदल सकती है।
14 जिसका दिल परमेश्वर से दूर हो गया है वह अपने कामों का फल भोगेगा,+
लेकिन अच्छे इंसान को अपने कामों का बढ़िया फल मिलेगा।+
16 बुद्धिमान सतर्क रहता है और बुराई से मुँह फेर लेता है,
लेकिन मूर्ख बेफिक्र होता है* और खुद पर ज़्यादा ही भरोसा करता है।
19 बुरे लोगों को अच्छे लोगों के आगे झुकना पड़ेगा
और दुष्ट को नेक के फाटकों के सामने झुकना होगा।
22 जो साज़िश करता है क्या वह सही राह से भटक नहीं जाएगा?
लेकिन जो भला करना चाहता है, उससे अटल प्यार और वफादारी निभायी जाएगी।+
25 सच्चा गवाह जान बचाता है,
लेकिन धोखेबाज़ बात-बात पर झूठ बोलता है।
27 यहोवा का डर मानना जीवन का सोता है,
यह मौत के फंदे में फँसने से बचाता है।
29 जो क्रोध करने में धीमा है वह पैनी समझ से मालामाल है,+
लेकिन जो उतावली करता है वह अपनी मूर्खता दिखाता है।+
31 जो दीन-दुखियों को ठगता है, वह उनके बनानेवाले का अपमान करता है,+
लेकिन जो गरीब पर दया करता है वह परमेश्वर की महिमा करता है।+
35 जो सेवक अंदरूनी समझ दिखाता है, राजा उससे खुश होता है,+
मगर जो शर्मनाक काम करता है, राजा उस पर भड़क उठता है।+
2 बुद्धिमान जो अच्छी बातें जानता है उन्हें ज़बान पर लाता है,+
मगर मूर्ख अपने मुँह से मूर्खता की बातें उगलता है।
11 जब कब्र* और विनाश की जगह* यहोवा से नहीं छिपी,+
तो फिर इंसान का दिल उससे कैसे छिपा रह सकता है!+
12 हँसी उड़ानेवाले को वह इंसान पसंद नहीं जो उसे सुधारता* है,+
वह बुद्धिमान से कोई सलाह नहीं लेता।+
21 जिसमें समझ ही नहीं उसे मूर्खता से खुशी मिलती है,+
मगर पैनी समझ रखनेवाला सीधी राह पर बढ़ता जाता है।+
24 अंदरूनी समझ रखनेवाले को जीवन की राह ऊपर-ऊपर से ले जाती है,+
ताकि वह नीचे कब्र में जाने से बचा रहे।+
27 बेईमानी से कमानेवाला अपने ही परिवार पर आफत* लाता है,+
मगर जिसे घूस लेने से नफरत है वह जीवित रहेगा।+
32 जो शिक्षा को ठुकराता है, वह अपने जीवन को तुच्छ समझता है,+
लेकिन जो डाँट सुनकर सुधर जाता है, वह समझ हासिल करता है।+
16 इंसान अपने मन के विचारों को तैयार तो करता है,
4 यहोवा हर काम इस तरह करता है कि उसका मकसद पूरा हो,
उसने दुष्ट को भी विनाश के दिन के लिए इसीलिए रखा है।+
5 जिसके मन में घमंड है, वह यहोवा की नज़र में घिनौना है।+
यकीन रख, वह बिना सज़ा पाए नहीं रहेगा।
6 अटल प्यार और वफादारी से* पापों का प्रायश्चित होता है+
और यहोवा का डर मानने से इंसान बुराई से मुँह फेर लेता है।+
7 जब यहोवा किसी इंसान की राह से खुश होता है,
तब वह उसके दुश्मनों को भी उसके साथ शांति से रहने देता है।+
13 सच्ची बातें राजाओं को खुश करती हैं,
उन्हें वे लोग पसंद हैं जो सीधी-सच्ची बात कहते हैं।+
16 बुद्धि सोना हासिल करने से
और समझ चाँदी हासिल करने से कहीं बढ़कर है।+
17 सीधे-सच्चे लोगों की राह उन्हें बुराई से दूर रखती है,
जो अपनी राह की रक्षा करता है, वह अपनी जान बचाता है।+
20 जो अंदरूनी समझ दिखाता है उसे कामयाबी मिलती है
और जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह सुखी है।
22 जिसमें अंदरूनी समझ है उसके लिए यह जीवन का सोता है,
मगर मूर्ख को अपनी मूर्खता से ही सज़ा मिलती है।
24 मनभावनी बातें छत्ते के शहद जैसी होती हैं,
29 खूँखार आदमी अपने पड़ोसी को बहकाकर
उसे बुरे रास्ते पर ले जाता है।
30 वह साज़िश रचते हुए आँख मारता है,
बुरे काम करते वक्त मुस्कुराता है।*
2 अंदरूनी समझ रखनेवाला नौकर,
उस बेटे पर राज करेगा, जो शर्मनाक काम करता है
और उसकी जायदाद का हिस्सेदार बनेगा मानो वह उसका भाई हो।
5 जो गरीब का मज़ाक उड़ाता है, वह उसके बनानेवाले का अपमान करता है।+
और जो दूसरों की बरबादी पर हँसता है, वह सज़ा से नहीं बचेगा।+
7 जब अच्छी* बातें कहना मूर्ख को शोभा नहीं देता,+
तो फिर झूठी बातें कहना शासक को कैसे शोभा देगा!+
9 जो अपराध माफ करता* है, वह प्यार की खोज में रहता है,+
लेकिन जो एक ही बात पर अड़ जाता है, वह जिगरी दोस्तों में फूट डाल देता है।+
11 बुरा इंसान सिर्फ बगावत करने की सोचता है,
इसलिए उसे सज़ा देने के लिए जो दूत भेजा जाएगा, वह कोई रहम नहीं करेगा।+
12 अपनी मूर्खता में डूबे मूर्ख का सामना करने से अच्छा है,
उस रीछनी का सामना करना जिसके बच्चे छीन लिए गए हों।+
19 जिसे झगड़ा करने में मज़ा आता है, उसे अपराध करना पसंद है,+
जो अपना फाटक ऊँचा करता है, वह मुसीबत को दावत देता है।+
23 दुष्ट, न्याय का खून करने के लिए चोरी-छिपे घूस* लेता है।+
24 बुद्धि, समझदार इंसान के सामने होती है,
मगर मूर्ख की नज़रें इसे धरती के कोने-कोने तक ढूँढ़ती फिरती हैं।+
28 मूर्ख भी जब चुप रहता है, तो उसे बुद्धिमान समझा जाता है,
जो अपने होंठ सी लेता है, उसे समझदार माना जाता है।
18 खुद को दूसरों से अलग करनेवाला अपने स्वार्थ के पीछे भागता है
और ऐसी बुद्धि को ठुकरा देता* है, जो उसे फायदा पहुँचा सकती है।
4 इंसान के मुँह की बातें गहरे पानी की तरह होती हैं,+
बुद्धि का सोता नदी की तरह उमड़ता रहता है।
10 यहोवा का नाम एक मज़बूत मीनार है,+
जिसमें भागकर नेक जन हिफाज़त पाता है।*+
17 जो मुकदमे में पहले बोलता है, उसकी बातें सही लगती हैं,+
मगर जब दूसरा पक्ष सवाल-जवाब करता है, तब हकीकत सामने आती है।+
21 ज़िंदगी और मौत ज़बान के बस में है,+
एक इंसान जैसी बातें करना पसंद करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है।+
23 गरीब मदद के लिए गिड़गिड़ाता है,
मगर रईस उसे रुखाई से जवाब देता है।
24 ऐसे भी साथी होते हैं, जो एक-दूसरे को बरबाद करने के लिए तैयार रहते हैं,+
मगर ऐसा भी दोस्त होता है, जो भाई से बढ़कर वफा निभाता है।+
3 इंसान अपनी मूर्खता की वजह से गलत कदम उठाता है,
फिर उसका मन यहोवा पर भड़क उठता है।
वह अपनी फरियाद लिए उनके पीछे-पीछे जाता है,
मगर कोई उसकी नहीं सुनता।
8 जो समझ हासिल करता है वह खुद से प्यार करता है,+
जो पैनी समझ को अनमोल जानता है* उसे कामयाबी मिलती है।+
11 इंसान की अंदरूनी समझ उसे गुस्सा करने से रोकती है+
और ठेस पहुँचने पर उसे अनदेखा करना उसकी खूबी है।+
21 इंसान अपने दिल में बहुत-सी योजनाएँ बनाता है,
23 यहोवा का डर मानना जीवन की ओर ले जाता है,+
जिसमें यह डर है वह चैन से जीता है,
उस पर कोई आँच नहीं आती।+
27 हे मेरे बेटे, अगर तू शिक्षा पर कान लगाना छोड़ दे,
तो तू ज्ञान की बातों पर चलने से भटक जाएगा।
4 आलसी सर्दियों में जुताई नहीं करता,
तभी कटाई के समय उसके पास कुछ नहीं होता
6 कई लोग अपने अटल प्यार का दम भरते हैं,
मगर सच्चा इंसान बड़ी मुश्किल से मिलता है।
7 नेक जन अपना चालचलन निर्दोष बनाए रखता है,+
उसकी आनेवाली संतान* सुखी रहेगी।+
13 नींद से प्यार मत कर, वरना तू कंगाल हो जाएगा,+
अपनी आँखें खुली रख तब तू भरपेट खाएगा।+
14 खरीदार कहता है, “चीज़ रद्दी है, एकदम रद्दी!”
मगर वहाँ से चले जाने के बाद अपने सौदे पर शेखी मारता है।+
16 उस आदमी के कपड़े गिरवी रख ले, जो किसी अजनबी का ज़ामिन बना है+
और अगर उसने बदचलन* औरत की वजह से अपनी चीज़ गिरवी रखी है, तो उसे वापस मत कर।+
19 जो दूसरों को बदनाम करना चाहता है, वह उनके राज़ बताता फिरता है,+
जिसे गप्पे लड़ाना पसंद है उससे दोस्ती मत रख।
22 यह मत कह, “मैं इस बुराई का बदला लूँगा।”+
यहोवा पर भरोसा रख,+ वह तेरी रक्षा करेगा।+
25 उतावली में आकर मन्नत मानना और किसी चीज़ को अर्पित करना,+
फिर बाद में उस पर सोच-विचार करना एक फंदा है।+
27 इंसान की साँस यहोवा के लिए दीपक है,
जो अंदर के इंसान पर रौशनी डालता है।
21 राजा का मन यहोवा के हाथ में पानी की धारा के समान है,+
वह जहाँ चाहता है उसे मोड़ देता है।+
8 जो दोषी होता है, उसकी राह टेढ़ी-मेढ़ी होती है,
मगर जो निर्दोष होता है, उसके काम सीधाई के होते हैं।+
11 हँसी उड़ानेवाले को जब सज़ा मिलती है, तो नादान बुद्धि हासिल करता है
और अगर बुद्धिमान को अंदरूनी समझ मिल जाए, तो वह ज्ञान हासिल करता है।*+
17 जिसे मौज-मस्ती से प्यार है, वह कंगाल हो जाएगा,+
जिसे तेल और दाख-मदिरा से प्यार है, वह अमीर नहीं होगा।
20 बुद्धिमान के घर में बेशकीमती खज़ाना और तेल मिलता है,+
लेकिन मूर्ख के पास जो कुछ होता है उसे वह लुटा देता है।+
22 बुद्धिमान इंसान योद्धाओं के शहर को जीत लेता है*
और जिस ताकत पर वे भरोसा रखते हैं उसे तोड़ देता है।+
तो यह और भी कितना घिनौना होगा!
30 यहोवा के खिलाफ न तो कोई बुद्धि, न कोई पैनी समझ और न ही कोई सलाह टिक सकती है।+
2 अमीर और गरीब में एक बात मिलती-जुलती है,*
दोनों को यहोवा ने रचा है।+
5 टेढ़े इंसान की राह में काँटे और फंदे बिछे होते हैं,
लेकिन जिसे अपनी जान प्यारी है वह इनसे दूर रहता है।+
13 आलसी कहता है, “बाहर शेर है!
अगर मैं चौक पर गया तो पक्का मारा जाऊँगा।”+
14 बदचलन* औरत का मुँह गहरी खाई है+
और यहोवा जिसे धिक्कारता है वह उसमें जा गिरेगा।
19 मैंने आज ये बातें तुझे बतायी हैं
ताकि तेरा भरोसा यहोवा पर हो।
20 मैंने पहले भी बहुत-सी सलाह
और ज्ञान की बातें तुझे लिखी थीं
21 कि तू सच्ची और भरोसेमंद बातें सीखे
और अपने भेजनेवाले के पास सही-सही जानकारी ले जाए।
24 गरम मिज़ाजवाले के साथ मत रह
और जो बात-बात पर भड़क उठता है उससे दोस्ती मत रख,
25 कहीं ऐसा न हो कि तू उसके जैसी चाल चलने लगे
और यह तेरे लिए फंदा साबित हो।+
27 क्योंकि अगर तेरे पास चुकाने के लिए कुछ न हो,
तो तेरा बिस्तर भी तुझसे छीन लिया जाएगा।
29 क्या तूने ऐसे आदमी को देखा है जो अपने काम में माहिर है?
वह किसी मामूली इंसान के सामने नहीं,
राजा-महाराजाओं के सामने खड़ा होगा।+
23 जब तू राजा के साथ खाने बैठे,
तो ध्यान रख, तू किस तरह खाता है।
3 उसके लज़ीज़ खाने की लालसा मत कर,
कहीं तू उससे धोखा न खा जाए।
4 पैसे के पीछे इतना मत भाग कि तू थककर चूर हो जाए,+
ज़रा रुक और समझदारी से काम ले।*
5 क्या तू ऐसी चीज़ पर आँख लगाएगा जो नहीं रहेगी?+
पैसा तो पंख लगाकर उकाब की तरह आसमान में उड़ जाता है।+
6 कंजूस के यहाँ खाना मत खाना,
उसके लज़ीज़ खाने की लालसा मत करना।
वह दाने-दाने का हिसाब रखता है।
8 तूने उसके यहाँ जो खाया होगा उसे तू उगल देगा,
जितनी भी तारीफ की होगी, सब बेकार जाएँगी।
12 शिक्षा पर अपना मन लगा
और सिखायी जानेवाली बातों पर कान दे।
13 अपने लड़के* को सिखाने से पीछे मत हट,+
अगर तू उसे छड़ी भी मारे तो वह मरेगा नहीं।
14 छड़ी चलाने से
तू उसे कब्र में जाने से बचा लेगा।
17 तेरा दिल पापियों से ईर्ष्या न करे,+
बल्कि हर वक्त यहोवा का डर माने,+
18 तब तेरा भविष्य सुनहरा होगा+
और तेरी आशा नहीं मिटेगी।
19 हे मेरे बेटे, सुन और बुद्धिमान बन,
अपने दिल को सही राह पर ले चल।
24 नेक जन के पिता को कितनी खुशी मिलती है
और बुद्धिमान का पिता उसके कारण कितना मगन होता है।
25 तेरे माता-पिता बेहद खुश होंगे
और तुझे जन्म देनेवाली फूली न समाएगी।
29 कौन हाय-हाय करता है? कौन दुखी है?
कौन लड़ता-झगड़ता और शिकायतें करता है?
किसे बेवजह चोट लगती है? किसकी आँखें लाल रहती हैं?
31 दाख-मदिरा के लाल रंग को मत देख,
जो प्याले में चमचमाती है और बड़े आराम से गले से उतरती है।
32 आखिर में वह साँप की तरह डसती है
और ज़हरीले साँप की तरह ज़हर उगलती है।
34 तुझे लगेगा जैसे तू बीच समुंदर में पड़ा है,
जहाज़ के मस्तूल की चोटी पर सोया हुआ है।
35 तू कहेगा, “उन्होंने मुझे मारा? मुझे तो कोई दर्द नहीं हुआ।
उन्होंने मुझे पीटा? मुझे तो कुछ पता नहीं चला।
2 क्योंकि उनका मन हिंसा करने की सोचता रहता है
और उनके होंठ दुख देने की बातें करते हैं।
11 जिन्हें मौत की तरफ ले जाया जा रहा है उन्हें बचा ले,
जो विनाश की कगार पर हैं, उन्हें गिरने से रोक ले।+
12 अगर तू कहे, “मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता,”
तो क्या दिलों* का जाँचनेवाला यह भाँप न लेगा?+
तुझ पर नज़र रखनेवाला सब जानता है,
वह हरेक को उसके कामों का फल देगा।+
13 हे मेरे बेटे, शहद खा क्योंकि यह बहुत अच्छा है,
छत्ते का शहद खाने में बड़ा मीठा लगता है।
14 इसी तरह, बुद्धि भी तेरे लिए अच्छी है,*+
अगर तू इसे पा ले तो तेरा भविष्य सुनहरा होगा
और तेरी आशा नहीं मिटेगी।+
15 दुष्टों की तरह नेक जन के घर पर घात मत लगा,
उसके आशियाने को मत उजाड़।
16 नेक जन चाहे सात बार गिरे, तब भी उठ खड़ा होगा,+
लेकिन अगर दुष्ट मुसीबत की वजह से ठोकर खाए, तो वह नहीं उठेगा।+
19 बुरे लोगों को देखकर मत कुढ़
और न ही दुष्टों से ईर्ष्या कर,
20 क्योंकि बुराई करनेवालों का कोई भविष्य नहीं,+
दुष्टों का दीपक बुझा दिया जाएगा।+
और कौन जाने वे दोनों* उन पर कैसी विपत्ति लाएँ!+
23 बुद्धिमानों ने भी कहा है:
न्याय करते वक्त किसी का पक्ष लेना अच्छा नहीं।+
24 जो दुष्ट से कहता है, “तू नेक है,”+
देश-देश के लोग उसे शाप देंगे और राष्ट्र उसे धिक्कारेंगे।
26 जो सच-सच बोलता है लोग उसका आदर करते हैं।*+
28 बिना सबूत के अपने पड़ोसी के खिलाफ गवाही मत देना,+
दूसरों को धोखा देने के लिए झूठी बातें मत बोलना।+
31 तब मैंने देखा वहाँ जंगली पौधे उग आए हैं,
ज़मीन बिच्छू-बूटी के पौधों से भर चुकी है
और पत्थर की दीवार टूटी पड़ी है।+
33 थोड़ी देर और सो ले, एक और झपकी ले ले,
हाथ बाँधकर थोड़ा सुस्ता ले,
34 तब गरीबी, लुटेरे की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी,
तंगी, हथियारबंद आदमी की तरह हमला बोल देगी।+
25 ये भी सुलैमान के नीतिवचन हैं।+ यहूदा के राजा हिजकियाह+ के आदमियों ने इनकी नकल तैयार की थी:*
2 परमेश्वर की शान इसमें है कि वह किसी बात को राज़ रखे+
और राजाओं की शान इसमें है कि वे मामले की छानबीन करें।
3 जैसे आकाश की ऊँचाई और धरती की गहराई जानना नामुमकिन है,
वैसे ही राजाओं के दिल में क्या है, यह जानना मुमकिन नहीं।
6 राजा के सामने अपनी बड़ाई मत कर,+
न ही बड़े-बड़े लोगों के बीच जगह ले,+
7 किसी रुतबेदार आदमी के सामने राजा तुझे बेइज़्ज़त करे,
इससे तो अच्छा है कि वह खुद तुझसे कहे, “यहाँ ऊपर आकर बैठ।”+
8 अपने पड़ोसी से मुकदमा लड़ने में जल्दबाज़ी मत कर,
अगर उसने तुझे गलत साबित कर दिया, तब तू क्या करेगा?+
9 अपने पड़ोसी के सामने अपने मुकदमे की पैरवी कर,+
लेकिन जो राज़ की बात तुझे बतायी गयी है, उसे मत खोल,*+
10 कहीं तू कोई झूठी बात* न फैला दे, जिसे वापस न लिया जा सके
और सुननेवाला तुझे शर्मिंदा करे।
12 जैसे सोने की बाली और बढ़िया सोने के ज़ेवर अच्छे लगते हैं,
वैसे ही बुद्धिमान की डाँट उस कान को अच्छी लगती है जो उसे सुनता है।+
13 जैसे कटाई के वक्त बर्फ का ठंडा पानी तरो-ताज़ा करता है,
वैसे ही विश्वासयोग्य दूत अपने मालिक को ताज़गी पहुँचाता है।+
14 जो आदमी तोहफा देने की शेखी मारता है पर देता नहीं,*
वह उस हवा और बादल की तरह है जो बारिश नहीं लाते।+
17 किसी के घर बार-बार मत जा,
कहीं वह तंग आकर तुझसे नफरत न करने लगे।
19 जो भरोसे के लायक नहीं होता,*
उस पर मुसीबत के वक्त आस लगाना,
टूटे दाँत या लँगड़ाते पैर पर आस लगाने जैसा है।
21 अगर तेरा दुश्मन भूखा हो तो उसे रोटी खिला,
अगर वह प्यासा हो तो उसे पानी पिला,+
22 तब तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा*+
और यहोवा तुझे इसका इनाम देगा।
26 नेक इंसान जब दुष्ट से समझौता कर लेता है,
तो वह मटमैले पानी के सोते और गंदे कुएँ जैसा बन जाता है।
26 जैसे गरमियों में बर्फ और कटाई में पानी बरसना अखरता है,
वैसे ही मूर्ख को आदर मिले, यह शोभा नहीं देता।+
2 जैसे पक्षी और अबाबील चिड़िया के उड़ने की कोई वजह होती है,
वैसे ही शाप लगने की कोई-न-कोई वजह होती है।*
9 मूर्ख के मुँह में नीतिवचन,
पियक्कड़ के हाथ में कँटीली झाड़ी जैसा है।
12 क्या तूने ऐसा आदमी देखा है, जो अपनी नज़र में बुद्धिमान है?+
उससे ज़्यादा तो मूर्ख के सुधरने की गुंजाइश है।
16 आलसी सोचता है कि वह उन सातों से बुद्धिमान है,
जिन्होंने सोच-समझकर जवाब दिया।
17 जो राह चलते किसी का झगड़ा देखकर भड़क उठता है,*
वह उस आदमी के समान है, जो कुत्ते को कान से पकड़ता है।+
18 जैसा एक सनकी जलते अंगारे और मौत के तीर फेंकता है,
19 वैसा ही वह आदमी है जो अपने साथी को छलकर कहता है, “मैं तो मज़ाक कर रहा था!”+
24 दूसरों से नफरत करनेवाला अच्छी-अच्छी बातें तो करता है,
लेकिन उसके अंदर कपट भरा होता है।
26 वह छल करके अपनी नफरत छिपा भी ले,
तो भी मंडली के सामने उसकी बुराई का परदाफाश होगा।
27 जो गड्ढा खोदता है वह खुद उसमें जा गिरता है,
जो पत्थर लुढ़काता है, वह पत्थर खुद उस पर लुढ़क आता है।+
2 अपने मुँह से अपनी तारीफ मत कर, दूसरे तेरी तारीफ करें,
तेरे अपने होंठ नहीं बल्कि किसी और के होंठ तेरी बड़ाई करें।+
7 जिसका पेट भरा हो वह छत्ते का शहद भी नहीं खाता,
लेकिन जिसे भूख लगी हो उसे कड़वी चीज़ भी मीठी लगती है।
8 जो आदमी अपना घर छोड़कर भटकता फिरता है,
वह उस पंछी जैसा है, जो अपना घोंसला छोड़कर उड़ता फिरता है।
9 जैसे तेल और खुशबूदार धूप से दिल खुश हो जाता है,
वैसे ही दोस्त की सीधी-सच्ची सलाह से मन खुश हो जाता है।+
10 अपने दोस्त या अपने पिता के दोस्त का साथ मत छोड़ना
और मुसीबत में अपने सगे भाई के घर न जाना,
पास रहनेवाला दोस्त, दूर रहनेवाले भाई से अच्छा है।+
13 उस आदमी के कपड़े गिरवी रख ले, जो किसी अजनबी का ज़ामिन बना है
और अगर उसने बदचलन* औरत की वजह से अपनी चीज़ गिरवी रखी है, तो उसे वापस मत कर।+
14 अगर कोई सुबह-सुबह चिल्लाकर अपने साथी को आशीर्वाद देता है,
तो ऐसा आशीर्वाद शाप माना जाएगा।
15 झगड़ालू* पत्नी, बारिश में टपकती छत जैसी होती है,+
16 जो उसे रोक सकता है, वह हवा को भी रोक सकता है
और दायीं मुट्ठी में तेल पकड़ सकता है।
18 जो अंजीर के पेड़ की देखरेख करता है, वह उसका फल खाएगा+
और जो अपने मालिक का खयाल रखता है वह इज़्ज़त पाएगा।+
19 जैसे कोई पानी में अपना चेहरा देख पाता है,
वैसे ही एक इंसान दूसरे के मन में अपना मन देख पाता है।
21 जैसे चाँदी के लिए कुठाली* और सोने के लिए भट्ठी होती है,+
वैसे ही इंसान की परख उसे मिलनेवाली तारीफ से होती है।
24 क्योंकि दौलत हमेशा नहीं रहती,+
न ही मुकुट पीढ़ी-पीढ़ी तक टिकता है।
25 जब हरी घास सूख जाती है, तो नयी घास आती है
और पहाड़ों से हरियाली इकट्ठी की जाती है।
26 भेड़ के बच्चों के ऊन से तुझे कपड़े मिलेंगे
और बकरियों के दाम से तू खेत खरीदेगा।
27 बकरियाँ तुझे इतना दूध देंगी कि तू, तेरा पूरा घराना और तेरी दासियाँ जी-भरकर पीएँगे।
2 जिस देश में कायदे-कानून तोड़े जाते हैं,* वहाँ हाकिम बदलते रहते हैं,+
मगर जिस हाकिम के* सलाहकार में पैनी समझ और ज्ञान है, उसका राज बना रहता है।+
8 जो ब्याज लेकर और बेईमानी से दौलत बटोरता है,+
वह उस आदमी के लिए बटोर रहा है,
जो गरीबों पर मेहरबानी करता है।+
10 जो सीधे इंसान को बहकाकर बुरी राह पर ले जाता है, वह अपने ही खोदे हुए गड्ढे में जा गिरेगा,+
लेकिन जो निर्दोष चाल चलता है उसे अच्छा फल मिलेगा।+
13 जो अपने अपराध छिपाए रखता है वह सफल नहीं होगा,+
लेकिन जो इन्हें मान लेता है और दोहराता नहीं, उस पर दया की जाएगी।+
14 सुखी है वह इंसान जो हमेशा चौकन्ना रहता है,*
मगर जो अपने दिल को ढीठ बना लेता है उस पर विपत्ति टूट पड़ेगी।+
16 जिस अगुवे में पैनी समझ नहीं, वह ताकत का गलत इस्तेमाल करता है,+
लेकिन जो बेईमानी की कमाई से नफरत करता है, उसकी उम्र लंबी होती है।+
17 जो किसी के खून का दोषी है, वह मरने तक* भागता रहेगा,+
कोई उसकी मदद न करे।
19 जो अपना खेत जोतता है उसके पास रोटी की भरमार होगी,
लेकिन जो बेकार के कामों में लगा रहता है उसके पास गरीबी की भरमार होगी।+
24 जो अपने माँ-बाप को लूटकर कहता है, “मैंने कुछ गलत नहीं किया,”+
वह तबाही मचानेवाले का साझेदार है।+
27 जो गरीबों को देता है उसे किसी बात की कमी न होगी,+
लेकिन जो उन्हें देखकर आँख मूँद लेता है, उसे बहुत शाप मिलेंगे।
28 दुष्ट जब सत्ता में आता है तो लोग छिप जाते हैं,
लेकिन जब उसका विनाश हो जाता है तब नेक जन बढ़ने लगते हैं।+
29 बार-बार डाँट खाने पर भी जो ढीठ बना रहता है,+
उसका अचानक ऐसा नाश होगा कि बचने की कोई उम्मीद न होगी।+
2 जब नेक लोगों का बोलबाला होता है तो लोग खुशियाँ मनाते हैं,
मगर जब दुष्ट का राज होता है तो लोग आहें भरते हैं।+
3 बुद्धि से प्यार करनेवाला, अपने पिता का दिल खुश करता है,+
लेकिन वेश्याओं से दोस्ती रखनेवाला अपनी दौलत लुटा देता है।+
4 जो राजा इंसाफ करता है वह देश-भर में शांति लाता है,+
लेकिन जो रिश्वत लेता है वह पूरे देश को तबाह कर देता है।
6 बुरा इंसान अपने ही अपराधों के जाल में फँस जाता है,+
लेकिन नेक जन खुशी के मारे चिल्लाता और झूमता है।+
9 जब बुद्धिमान किसी मूर्ख पर मुकदमा चलाता है,
तो मूर्ख गला फाड़कर चिल्लाता है, मज़ाक उड़ाता है
और बुद्धिमान का चैन छिन जाता है।+
10 जो खून के प्यासे होते हैं, वे निर्दोष लोगों से नफरत करते हैं+
और सीधे-सच्चे लोगों की जान लेने* की ताक में रहते हैं।
13 गरीब और ज़ुल्म करनेवाले में एक बात मिलती-जुलती है,
दोनों की आँखों को यहोवा ने रौशनी दी है।*
15 छड़ी* और डाँट से बच्चा बुद्धिमान बनता है,+
लेकिन जिस पर रोक-टोक नहीं लगायी जाती,
वह अपनी माँ को शर्मिंदा करता है।
18 जहाँ परमेश्वर का मार्गदर्शन* नहीं वहाँ लोग मनमानी करते हैं,+
लेकिन जो उसका कानून मानते हैं वे सुखी रहते हैं।+
20 क्या तूने ऐसे इंसान को देखा है जो बोलने में उतावली करता है?+
उससे ज़्यादा तो मूर्ख के सुधरने की गुंजाइश है।+
21 अगर एक नौकर को बचपन से सिर पर चढ़ाया जाए,
तो आगे चलकर वह एहसान-फरामोश निकलेगा।
24 चोर का साथी अपनी जान का दुश्मन बन बैठता है,
क्योंकि जब उसे गवाही देने बुलाया जाता है, तब* वह अपना मुँह नहीं खोलता।+
27 नेक इंसान की नज़र में अन्याय करनेवाला घिनौना है,+
लेकिन दुष्ट की नज़र में सीधी चाल चलनेवाला घिनौना है।+
30 याके के बेटे आगूर की तरफ से ज़रूरी संदेश। यह संदेश ईतीएल और ऊकल के लिए है।
3 मैं नहीं कहता कि मैं बुद्धिमान हूँ।
जितना ज्ञान परम-पवित्र परमेश्वर को है, वह मुझमें कहाँ!
4 ऐसा कौन है जो स्वर्ग पर चढ़ा हो, फिर धरती पर उतरा हो?+
किसने हवा को अपनी दोनों मुट्ठियों में बंद किया है?
किसने पानी को अपने कपड़ों में लपेटा है?+
किसने पृथ्वी के चारों कोने ठहराए हैं?+
अगर तुझे उसका और उसके बेटे का नाम पता है तो बता।
5 परमेश्वर का हर वचन पूरी तरह शुद्ध है,+
वह उनके लिए ढाल है जो उसमें पनाह लेते हैं।+
7 हे परमेश्वर, मुझे और कुछ नहीं चाहिए,
बस मेरे जीते-जी ये दो चीज़ें कर दे,
मुझे बस मेरे हिस्से का खाना दे,+
9 ऐसा न हो कि मेरे पास बहुत हो जाए और मैं तुझसे मुकरकर कहूँ, “यहोवा कौन है?”+
या मैं गरीब हो जाऊँ और चोरी करके अपने परमेश्वर का नाम बदनाम करूँ।
11 ऐसी भी पीढ़ी है जो अपने पिता को बददुआएँ देती है
और अपनी माँ के लिए उनके मुँह से दुआएँ नहीं निकलतीं।+
14 ऐसी भी पीढ़ी है जिसके दाँत तलवार जैसे
और जबड़े छुरे जैसे हैं।
वह धरती के दीन-दुखियों
और गरीबों को फाड़ खाती है।+
15 जोंक की दो बेटियाँ हैं जो “दे दो, दे दो” चिल्लाती हैं।
तीन चीज़ें हैं जो कभी तृप्त नहीं होतीं,
बल्कि चार हैं, जो कभी नहीं कहतीं “बस हुआ!”
17 जो अपने पिता का तिरस्कार करता है
और अपनी माँ की आज्ञा को तुच्छ जानता है,+
उसकी आँखें घाटी के कौवे और उकाब के बच्चे नोंच खाएँगे।+
18 तीन बातें हैं जो मेरी समझ से बाहर हैं,
हाँ, चार बातें हैं जिन्हें मैं नहीं समझ पाया:
19 आसमान में उड़ते उकाब की राह,
चट्टान पर साँप की चाल,
खुले समुंदर में जहाज़ का मार्ग
और लड़के का लड़की से व्यवहार।
20 बदचलन औरत ऐसी होती है:
वह खा-पीकर अपना मुँह पोंछती है
और कहती है, “मैंने कुछ गलत नहीं किया।”+
21 तीन चीज़ें ऐसी हैं जिनसे धरती काँप उठती है,
बल्कि चार चीज़ें हैं जो वह बरदाश्त नहीं कर सकती:
मूर्ख के पास ढेर सारा खाना होना,
23 उस औरत की शादी होना जिससे सब नफरत करते हैं
और नौकरानी का अपनी मालकिन की जगह लेना।+
29 तीन जीव ऐसे हैं जो बड़ी ठाट से चलते हैं,
बल्कि चार हैं, जिनकी चाल में शान नज़र आती है:
31 शिकारी कुत्ता, बकरा
और अपनी सेना के आगे-आगे चलनेवाला राजा।
32 अगर तूने खुद को ऊँचा उठाने की मूर्खता की है,+
या ऐसा करने की साज़िश की है,
तो अपने मुँह पर हाथ रखकर चुप रह।+
33 क्योंकि जैसे दूध मथने से मक्खन निकलता है
और नाक मरोड़ने से खून बहता है,
वैसे ही गुस्सा भड़काने से झगड़े पैदा होते हैं।+
31 ये ज़रूरी बातें राजा लमूएल की हैं, जो उसकी माँ ने उसे सिखायी थीं:+
2 हे मेरे बेटे, मैं तुझे क्या सिखाऊँ?
हे मेरी कोख से जन्म लेनेवाले, मैं तुझे क्या बताऊँ?
जिस बेटे के लिए मैंने मन्नत मानी,+ उससे मैं क्या कहूँ?
4 हे लमूएल, दाख-मदिरा पीना राजाओं को शोभा नहीं देता,
न ही शासकों का यह कहना जँचता है, “मेरा जाम कहाँ है?”+
5 क्योंकि पीने के बाद वे कायदे-कानून भूल जाते हैं
और दीन-दुखियों को उनका हक नहीं देते।
6 जो मरनेवाला है, उसे शराब पिला,+
जो दुख से बेहाल है, उसे दाख-मदिरा दे,+
7 ताकि पीकर वह अपनी गरीबी याद न करे
और अपना दुख भूल जाए।
א [आलेफ ]
10 एक अच्छी पत्नी कौन पा सकता है?+
उसका मोल मूंगों* से भी बढ़कर है।
ב [बेथ ]
11 उसका पति पूरे दिल से उस पर भरोसा करता है
और उसके पति को किसी चीज़ की कमी नहीं होती।
ג [गिमेल ]
12 वह कभी अपने पति का बुरा नहीं करती,
बल्कि जीवन-भर उसका भला करती है।
ד [दालथ ]
ה [हे ]
ו [वाव ]
15 पौ फटने से पहले वह उठ जाती है,
अपने घराने के लिए खाना तैयार करती है,
अपनी नौकरानियों को भी उनके हिस्से का खाना देती है।+
ז [जैन ]
ח [हेथ ]
ט [टेथ ]
18 वह लेन-देन में मुनाफे का ध्यान रखती है,
उसके घर का दीया रात को भी जलता रहता है।
י [योध ]
כ [काफ ]
ל [लामेध ]
מ [मेम ]
22 वह खुद अपने हाथों से चादरें बनाती है,
वह मलमल और बैंजनी ऊन के कपड़े पहनती है।
נ [नून ]
ס [सामेख ]
ע [ऐयिन ]
פ [पे ]
צ [सादे ]
ק [कोफ ]
28 उसके बच्चे खड़े होकर उसकी तारीफ करते हैं,
उसका पति भी उठकर उसके गुण गाता है।
ר [रेश ]
29 अच्छी औरतें तो बहुत हैं,
मगर तू उन सबसे बढ़कर है।
ש [शीन ]
ת [ताव ]
या “और न्याय करने।”
या “बुद्धि-भरी सलाह।”
या “सोच में डालनेवाली कहावतें।”
या “के लिए गहरी श्रद्धा।”
या “हम सबकी एक ही थैली (या बटुआ) होगी।”
या “लौट आओ।”
या “से अघा जाएँगे।”
शब्दावली में “जीवन” देखें।
शा., “परायी।”
शा., “परदेसी।”
या “के पति।”
शा., “तेरा रास्ता सीधा करेगा।”
या “कमाई।”
या “का सबसे बढ़िया हिस्सा।”
या “इसे मुनाफे में हासिल करना।”
शब्दावली देखें।
ज़ाहिर है कि यहाँ परमेश्वर के उन गुणों की बात की गयी है, जो पिछली आयतों में बताए गए हैं।
या “जिनका भला करना तेरा फर्ज़ है।”
या शायद, “पर अच्छे-से गौर कर।”
शा., “परायी।”
शा., “के होंठ।”
शा., “सभा और मंडली के बीच।”
या “बहता।”
शा., “परदेसी।”
शा., “तू किसी का ज़ामिन बना है।”
यानी उसकी मदद करने का वादा किया है।
या “तुझे सिखाएँगी।”
या “शिक्षा देने।”
शा., “परदेसी।”
शा., “में दिल नहीं होता।”
या “फिरौती।”
शा., “परायी।”
शा., “परदेसी।”
या “वेश्या के।”
या “बेड़ियों।”
शा., “तुम आदमियों से।”
शब्दावली देखें।
या “जब प्रसव-पीड़ा के साथ मुझे पैदा किया गया।”
या “क्षितिज।”
शा., “स्थिर किए।”
शा., “अपना जानवर काटा है।”
या “नादानों को।”
या “के अच्छे नाम के लिए।”
या शायद, “वह जीवन की राह पर है।”
या “अफवाहें।”
शा., “के मन।”
या “को राह दिखाती हैं।”
या “दुख; मुश्किल।”
या “भेजनेवाले।”
या “आशा।”
शा., “पूरे।”
या “अपनी हद भूल जाता है।”
या “परमेश्वर से बगावत करनेवाला।”
शा., “बात को छिपाए रखता है।”
या “बुद्धि-भरी सलाह।”
या “उद्धार।”
या “का ज़ामिन बनता है।”
शा., “से नफरत करता है।”
या “अटल प्यार।”
या “अपमान।”
शा., “जो छितराता।”
शा., “को खूब सींचता है।”
या “अपमान।”
शा., “हवा।”
या “से खुश होता है।”
शा., “खून करने के लिए घात में बैठती हैं।”
या “उसी दिन।”
शा., “को ढक देता।”
शा., “नेकी की बातें।”
या “चंगा।”
शा., “शांति की सलाह।”
या “सुधार।”
शा., “कोई फटकार नहीं सुनता।”
शा., “खुशियाँ मनाती है।”
या “आशा।”
या “वचन।”
या “जो सुधार के लिए दी गयी सलाह।”
या “गरीब को।”
या “शिक्षा; सज़ा।”
या शायद, “उसे तुरंत सुधारता है।”
या शायद, “से दूसरों को धोखा देता है।”
या “गलती सुधारने को।”
या “लोगों के बीच अच्छी भावना होती है।”
या “भड़क उठता है।”
या “मगर जिसके पास सोचने-परखने की शक्ति है।”
या “चंगा करनेवाली।”
या “सुधार के लिए दी गयी सलाह।”
या “कठोर।”
या “शीओल।” शब्दावली देखें।
या “और अबद्दोन।” शब्दावली देखें।
या “डाँटता।”
शा., “मोटा-ताज़ा बैल।”
शा., “थोड़ी-सी साग-सब्ज़ी।”
शा., “की सीमा।”
या “अपमान।”
या “ध्यान से सोचता है कि किस तरह जवाब दूँ।”
या “मगर सही जवाब।”
शा., “पवित्र।”
या “मन।”
इब्रानी पाठ के मुताबिक यह परमेश्वर का अटल प्यार और वफादारी भी हो सकती है।
या “उसके क्रोध से बचना।”
शा., “जो दिल में बुद्धिमान।”
या “मन को भानेवाले।”
या “जो खाने पर।”
शा., “उसका मुँह।”
या “साज़िश रचनेवाला।”
शा., “होंठ दबाता है।”
या “शानदार।”
शा., “मन।”
शा., “बलि के जानवर।”
मिट्टी की हाँडी, जिसमें चाँदी को गलाकर शुद्ध किया जाता था।
या “बच्चों।”
या “माँ-बाप।”
या “सीधी-सच्ची।”
या “वह रत्न है जिससे उसके मालिक को फायदा होता है।”
शा., “को ढक देता।”
शा., “पानी छोड़ने।”
या “उसमें समझ ही न हो।”
या “का ज़ामिन बनता है।”
या “हड्डियाँ सुखा देती है।”
शा., “सीने से निकली घूस।”
या “पर जुरमाना लगाना।”
शा., “उसका मन शांत रहता है।”
या “को तुच्छ समझता।”
शा., “को ऊँचा उठाया जाता है,” यानी वह सुरक्षित है और उस तक कोई नहीं पहुँच सकता।
शा., “के बेड़े।”
या “की कृपा।”
शा., “उतावली से दौड़नेवाला।”
या “दरियादिल।”
या “को सँभालकर रखता है।”
या “जान खानेवाली।”
या “बदला।”
या “की इच्छा मत कर।”
या “जो मकसद ठहराता है।”
या शायद, “कटाई के समय ढूँढ़ने पर भी उसे कुछ नहीं मिलता।”
या “इरादे।”
शा., “बेटे।”
या “दो अलग-अलग बाट-पत्थर और दो अलग-अलग माप के पैमाने।”
या “लड़का।”
शब्दावली देखें।
शा., “परदेसी।”
या “पक्की।”
या “बुद्धि-भरी सलाह।”
या “दो अलग-अलग बाट-पत्थर।”
या “इरादों।”
या “फायदेमंद।”
या शायद, “उनके लिए कोहरे की तरह गायब हो जाती है जो मौत ढूँढ़ते हैं।”
या “जान खानेवाली।”
या “वह जान जाता है कि उसे क्या करना है।”
या “जान खानेवाली।”
शा., “शहर पर चढ़ जाता है।”
या “इसे शर्मनाक बरताव के साथ।”
या “अपनी राह पक्की करता है।”
शा., “मंज़ूरी।”
शा., “एक-दूसरे से मिलते हैं।”
या “सज़ा।”
या “बच्चे; जवान।”
या “मुकदमे।”
शा., “ज्ञान।”
शा., “परायी।”
या “बच्चे; जवान।”
या “दूसरों का ज़ामिन बनते हैं।”
शा., “अपने गले पर छुरी रख।”
या शायद, “अपनी समझ से काम लेना बंद कर।”
शा., “उसका मन तुझसे लगा नहीं।”
या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”
शा., “छुड़ानेवाला” यानी परमेश्वर।
या “बच्चे; जवान।”
शा., “तेरा दिल।”
शा., “मेरे गुरदे।”
या “को हासिल कर।”
शा., “परदेसी।”
या “ऐसी मदिरा पीने के लिए इकट्ठा होता है।”
या “मैं फिर इसे ढूँढ़ूँ?”
या “घर-परिवार।”
या “बुद्धि-भरी सलाह।”
या “कामयाबी; उद्धार।”
या “मूर्खता-भरी योजनाएँ।”
या “दुख की।”
या “इरादों।”
या “तुझे मीठी लगेगी।”
यानी दुश्मन।
यानी यहोवा और राजा।
शा., “उसके होंठ चूमते हैं।” या शायद, “जो सीधे-सीधे बोलता है वह मानो चुंबन देता है।”
या “घर-परिवार।”
शा., “शिक्षा ली।”
या “इन्हें इकट्ठा किया और इनकी नकल तैयार की थी।”
या “दूसरों के राज़ मत खोल।”
या “तू दूसरों को बदनाम करने के लिए अफवाह।”
शा., “जो झूठ-मूठ का तोहफा देने की शेखी मारता है।”
या शायद, “जो धोखेबाज़ है।”
या “सोडा।”
यानी उसके सख्त दिल को पिघलाना और उसका गुस्सा शांत करना।
या “जान खानेवाली।”
या शायद, “बेवजह दिया शाप नहीं लगता।”
या “ताकि तू उसके समान न बन जाए।”
शा., “अपने पैर को चोट पहुँचाता है और हिंसा पीता है।”
या “जो सबको घायल करता है।”
या “चूल।”
या शायद, “के झगड़े में पड़ता है।”
या “उसका दिल पूरी तरह घिनौना है।”
या शायद, “दिखावटी; झूठा।”
या “सज़ा।”
या “परदेसी।”
या “जान खानेवाली।”
शा., “दोस्त के चेहरे को।”
या “और अबद्दोन।” शब्दावली देखें।
मिट्टी की हाँडी, जिसमें चाँदी को गलाकर शुद्ध किया जाता था।
या “पर ध्यान दे।”
या “बगावत होती है।”
शा., “जिसके।”
या “परमेश्वर का डर मानता है।”
या “कब्र में जाने तक।”
या “लालची।”
या शायद, “घमंडी।”
या शायद, “मगर सीधे-सच्चे लोग अपनी जान बचाने।”
यानी उसने उन्हें जीवन दिया है।
या “शिक्षा; सज़ा।”
या “जहाँ भविष्यवक्ताओं को दिया दर्शन; परमेश्वर का संदेश।”
या “वह शपथ सुनता है कि गवाही न देनेवाले पर शाप पड़ेगा, फिर भी।”
या शायद, “की मेहरबानी पाना।”
शा., “अपने मल।”
या “शीओल।” शब्दावली देखें।
या “बहुत बुद्धि होती है।”
या “की पैरवी करना।”
शब्दावली देखें।
या “अपनी कमाई से।” शा., “मेहनत के फल से।”
तकुआ और तकली ऐसी डंडियाँ होती थीं, जिनकी मदद से धागा लपेटा या बनाया जाता था।
शा., “दो-दो।”
या “अंदर पहने जानेवाले कपड़े।”
या “पर हँसती है।”
या “प्यार से सिखाना; अटल प्यार का नियम।”
या “खोखली।”
शा., “उसके हाथों के फल में से उसे दे।”