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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
2 इतिहास

दूसरा इतिहास

1 दाविद के बेटे सुलैमान का राज दिनों-दिन मज़बूत होता गया। उसका परमेश्‍वर यहोवा उसके साथ था और परमेश्‍वर ने उसे महानता की बुलंदी तक पहुँचा दिया।+

2 सुलैमान ने पूरे इसराएल को, हज़ारों और सैकड़ों की टुकड़ियों के प्रधानों, न्यायियों और इसराएल के उन सभी अधिकारियों को बुलाया जो पिताओं के घरानों के मुखिया थे। 3 फिर सुलैमान और पूरी मंडली के लोग गिबोन की ऊँची जगह गए,+ क्योंकि वहीं सच्चे परमेश्‍वर की भेंट का तंबू था जिसे यहोवा के सेवक मूसा ने वीराने में बनाया था। 4 मगर सच्चे परमेश्‍वर के संदूक को दाविद किरयत-यारीम+ से उस जगह ले आया था जो उसने संदूक के लिए तैयार की थी। दाविद ने संदूक के लिए यरूशलेम में एक तंबू खड़ा किया था।+ 5 और ताँबे की वेदी,+ जो ऊरी के बेटे और हूर के पोते बसलेल+ ने बनायी थी, यहोवा के पवित्र डेरे के सामने रखी गयी थी। इसी वेदी के सामने सुलैमान और मंडली के लोग प्रार्थना करते थे।* 6 अब सुलैमान ने वहाँ यहोवा के सामने बलिदान चढ़ाए। उसने भेंट के तंबू के पास ताँबे की वेदी पर 1,000 होम-बलियाँ चढ़ायीं।+

7 उसी दिन, रात को परमेश्‍वर सुलैमान के सामने प्रकट हुआ और उससे कहा, “तू जो चाहे माँग, मैं तुझे दूँगा।”+ 8 सुलैमान ने परमेश्‍वर से कहा, “तूने मेरे पिता दाविद से बहुत प्यार* किया+ और उसकी जगह मुझे राजा बनाया है।+ 9 अब हे परमेश्‍वर यहोवा, तूने मेरे पिता दाविद से जो वादा किया था उसे पूरा कर।+ तूने मुझे जिस प्रजा का राजा बनाया है वह धरती की धूल के कणों की तरह बेशुमार है।+ 10 इसलिए तेरे इन लोगों की अगुवाई करने के लिए* मुझे बुद्धि और ज्ञान दे,+ क्योंकि तेरी मदद के बगैर कौन इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सकता है?”+

11 तब परमेश्‍वर ने सुलैमान से कहा, “तूने अपने लिए न तो धन-दौलत न मान-सम्मान माँगा, न तुझसे नफरत करनेवालों की मौत माँगी और न ही खुद के लिए लंबी उम्र की गुज़ारिश की। इसके बजाय तूने बुद्धि और ज्ञान की बिनती की ताकि तू मेरे लोगों का न्याय कर सके, जिन पर मैंने तुझे राजा ठहराया है। तेरी यही दिली तमन्‍ना है+ 12 इसलिए मैं तुझे ज़रूर बुद्धि और ज्ञान दूँगा। यही नहीं, मैं तुझे इतनी धन-दौलत और इतना मान-सम्मान दूँगा जितना न तो तुझसे पहले किसी राजा के पास था और न ही तेरे बाद किसी राजा के पास होगा।”+

13 फिर सुलैमान गिबोन की ऊँची जगह+ से यानी भेंट के तंबू के सामने से यरूशलेम आया और उसने इसराएल पर राज किया। 14 सुलैमान ज़्यादा-से-ज़्यादा रथ और घोड़े* इकट्ठे करता गया। उसके पास 1,400 रथ और 12,000 घोड़े* जमा हो गए।+ उसने इन्हें रथों के शहरों+ में और यरूशलेम में अपने पास रखा।+ 15 राजा ने यरूशलेम में इतनी तादाद में सोना-चाँदी इकट्ठा किया कि वह पत्थर जितना आम हो गया था+ और उसने देवदार की इतनी सारी लकड़ी इकट्ठी की कि उसकी तादाद शफेलाह के गूलर पेड़ों जितनी हो गयी थी।+ 16 सुलैमान के घोड़े मिस्र से मँगाए गए थे।+ राजा के व्यापारियों का दल ठहराए हुए दाम पर घोड़ों के झुंड-के-झुंड खरीदकर लाता था।*+ 17 मिस्र से मँगाए गए हर रथ की कीमत चाँदी के 600 टुकड़े थी और हर घोड़े की कीमत चाँदी के 150 टुकड़े थी। फिर ये व्यापारी रथ और घोड़े हित्तियों के सभी राजाओं और सीरिया के सभी राजाओं को बेचते थे।

2 सुलैमान ने यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन+ और एक राजमहल बनाने का आदेश दिया।+ 2 सुलैमान ने 70,000 आम मज़दूरों* और पहाड़ों पर पत्थर काटनेवाले 80,000 मज़दूरों को काम पर लगाया+ और उनकी निगरानी करने के लिए 3,600 आदमियों को ठहराया।+ 3 इसके अलावा, सुलैमान ने सोर के राजा हीराम+ के पास यह संदेश भेजा: “जैसे तूने मेरे पिता दाविद को महल बनाने के लिए देवदार की लकड़ी भेजी थी, उसी तरह मेरे लिए भी भेज।+ 4 मैं अपने परमेश्‍वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाने जा रहा हूँ ताकि भवन को उसके लिए पवित्र किया जाए, उसके सामने सुगंधित धूप जलाया जाए,+ उसमें लगातार रोटियों का ढेर* रखा जाए+ और सुबह-शाम,+ सब्त के मौकों पर,+ नए चाँद के मौकों पर+ और हमारे परमेश्‍वर यहोवा के लिए मनाए जानेवाले साल के अलग-अलग त्योहारों पर+ होम-बलियाँ चढ़ायी जाएँ। इसराएल को यह फर्ज़ सदा के लिए निभाना है। 5 मैं जो भवन बनाने जा रहा हूँ वह बहुत आलीशान होगा क्योंकि हमारा परमेश्‍वर सभी देवताओं से कहीं महान है। 6 मगर देखा जाए तो उसके लिए भवन बनाना किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि वह तो आकाश में, हाँ विशाल आकाश में भी नहीं समा सकता।+ मैं भी उसके लिए भवन नहीं बना सकता, मैं बस एक ऐसी जगह बना सकता हूँ जहाँ उसके सामने बलिदान चढ़ाया जाए ताकि धुआँ उठे। 7 अब तू मेरे पास एक ऐसा कारीगर भेज जो सोने, चाँदी, ताँबे,+ लोहे, बैंजनी ऊन, गहरे लाल रंग के धागे और नीले धागे के काम में हुनरमंद हो और नक्काशी करना जानता हो। वह यहूदा में और यरूशलेम में रहकर मेरे उन कुशल कारीगरों के साथ काम करेगा, जिनका इंतज़ाम मेरे पिता दाविद ने किया है।+ 8 तू मुझे लबानोन से देवदार, सनोवर+ और लाल-चंदन की लकड़ी भी भेज,+ क्योंकि मैं जानता हूँ कि तेरे सेवकों को लबानोन में पेड़ काटने का काफी तजुरबा है।+ मेरे सेवक तेरे सेवकों के साथ मिलकर काम करेंगे।+ 9 वे मेरे लिए भारी तादाद में लकड़ी तैयार करेंगे क्योंकि मैं एक ऐसा भवन बनाने जा रहा हूँ जो बिलकुल अनोखा और बेजोड़ होगा। 10 देख, मैं पेड़ काटनेवाले तेरे सेवकों के लिए खाना मुहैया कराऊँगा।+ मैं उनके लिए 20,000 कोर* गेहूँ, 20,000 कोर जौ, 20,000 बत* दाख-मदिरा और 20,000 बत तेल दूँगा।”

11 जवाब में सोर के राजा हीराम ने सुलैमान को यह संदेश लिखकर भेजा: “यहोवा अपने लोगों से प्यार करता है इसलिए उसने तुझे उनका राजा बनाया है।” 12 हीराम ने यह भी कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई हो, जिसने आकाश और धरती बनायी क्योंकि उसने राजा दाविद को एक बुद्धिमान बेटा दिया है,+ सूझ-बूझ से काम लेनेवाला और समझदार बेटा,+ जो यहोवा के लिए एक भवन और अपने लिए एक राजमहल बनाएगा। 13 मैं तेरे पास हूराम-अबी नाम के एक समझदार और कुशल कारीगर को भेज रहा हूँ+ 14 जिसकी माँ दान गोत्र की है और पिता सोर का था। उसे सोने, चाँदी, ताँबे, लोहे, पत्थर, लकड़ी, बैंजनी ऊन, गहरे लाल रंग के धागे और नीले धागे और बेहतरीन कपड़ों के काम का तजुरबा है।+ वह हर तरह की नक्काशी और हर तरह की कारीगरी कर सकता है।+ वह तेरे कुशल कारीगरों के साथ और मेरे मालिक यानी तेरे पिता दाविद के कुशल कारीगरों के साथ मिलकर काम करेगा। 15 मेरे मालिक, तू अपने वादे के मुताबिक अपने सेवकों को गेहूँ, जौ, तेल और दाख-मदिरा भेज।+ 16 तुझे जितनी लकड़ी चाहिए, उतनी हम लबानोन से काटेंगे+ और शहतीरों के बेड़े बनवाकर समुंदर के रास्ते याफा ले आएँगे।+ फिर तू वहाँ से उन्हें यरूशलेम ले जाना।”+

17 फिर सुलैमान ने उन सभी आदमियों की गिनती ली जो इसराएल देश में परदेसी थे+ और पाया कि वे 1,53,600 थे। सुलैमान ने यह गिनती दाविद के गिनती लेने के बाद ली थी।+ 18 तब सुलैमान ने उन परदेसियों में से 70,000 को आम मज़दूरी* के काम पर और 80,000 को पहाड़ों पर पत्थर काटने के काम पर लगाया+ और उनकी निगरानी करने के लिए 3,600 आदमियों को ठहराया ताकि वे इन मज़दूरों से काम कराएँ।+

3 फिर सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिया पहाड़+ पर यहोवा के लिए भवन बनाने का काम शुरू किया,+ जहाँ यहोवा उसके पिता दाविद के सामने प्रकट हुआ था।+ यह जगह यबूसी ओरनान के खलिहान में थी जो दाविद ने तैयार की थी।+ 2 सुलैमान ने अपने राज के चौथे साल के दूसरे महीने के दूसरे दिन भवन बनाने का काम शुरू किया। 3 उसने सच्चे परमेश्‍वर के भवन के लिए जो बुनियाद डाली वह पुराने ज़माने की नाप* के मुताबिक 60 हाथ लंबी और 20 हाथ चौड़ी थी।+ 4 भवन का सामनेवाला बरामदा 20 हाथ लंबा था यानी भवन की चौड़ाई के बराबर। उसकी ऊँचाई 20 हाथ* थी। उसने बरामदे के अंदर का पूरा हिस्सा शुद्ध सोने से मढ़ा।+ 5 उसने भवन के बड़े कमरे पर सनोवर के तख्ते लगाए और उन पर बढ़िया सोना मढ़ा।+ फिर उसे खजूर के पेड़ों की नक्काशी+ और ज़ंजीरों से सजाया।+ 6 इसके अलावा, उसने भवन पर सुंदर, कीमती रत्न जड़े।+ उसने जो सोना+ इस्तेमाल किया वह पर्वेम से लाया गया था। 7 उसने भवन और उसके शहतीरों, दहलीज़ों, दीवारों और दरवाज़ों पर सोना मढ़ा+ और दीवारों पर करूबों की नक्काशी की।+

8 इसके बाद उसने परम-पवित्र भाग* बनाया।+ उसकी लंबाई भवन की चौड़ाई के बराबर यानी 20 हाथ थी। उसकी चौड़ाई 20 हाथ थी। उसने परम-पवित्र भाग पर 600 तोड़े* बढ़िया सोना मढ़ा।+ 9 कीलों के लिए 50 शेकेल* सोना इस्तेमाल किया गया। उसने छत के खानों को सोने से मढ़ा।

10 फिर उसने परम-पवित्र भाग* में दो करूब बनाए और उन पर सोना मढ़ा।+ 11 दोनों करूबों के पंखों+ की कुल लंबाई 20 हाथ थी। एक करूब का एक पंख पाँच हाथ लंबा था और भवन की दीवार को छूता था। उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ लंबा था और दूसरे करूब के एक पंख को छूता था। 12 दूसरे करूब का भी एक पंख पाँच हाथ लंबा था और भवन की दीवार को छूता था। उसका दूसरा पंख पाँच हाथ लंबा था और पहले करूब के एक पंख को छूता था। 13 इन करूबों के पंख फैले हुए थे और उनकी कुल लंबाई 20 हाथ थी। वे अपने पैरों पर खड़े थे और अंदर की तरफ मुँह किए हुए थे।*

14 उसने नीले धागे, बैंजनी ऊन, गहरे लाल रंग के धागे और बेहतरीन कपड़े से परदा+ भी बनाया और उस पर करूबों की कढ़ाई की।+

15 फिर उसने भवन के सामने दो खंभे+ बनाए जो 35 हाथ लंबे थे। हर खंभे के ऊपरी सिरे पर एक कंगूरा था जो पाँच हाथ का था।+ 16 उसने हार जैसी ज़ंजीरें बनायीं और उन्हें खंभों के ऊपरी सिरे पर लगाया। उसने 100 अनार बनाकर उन्हें ज़ंजीरों पर लगाया। 17 उसने खंभों को मंदिर के सामने खड़ा किया, एक को दायीं* तरफ और एक को बायीं* तरफ। उसने दाएँ खंभे का नाम याकीन* रखा और बाएँ का नाम बोअज़।*

4 फिर उसने ताँबे की वेदी+ बनायी जो 20 हाथ लंबी, 20 हाथ चौड़ी और 10 हाथ ऊँची थी।

2 उसने ताँबे का बड़ा हौद ढालकर बनाया जिसे ‘सागर’ कहा जाता था।+ यह गोलाकार था और इसके मुँह की चौड़ाई 10 हाथ थी और मुँह के पूरे घेरे की लंबाई 30 हाथ थी। हौद की ऊँचाई 5 हाथ थी।+ 3 हौद के मुँह के नीचे, चारों तरफ दो कतारों में खरबूजों की बनावट थी।+ एक-एक हाथ की जगह में दस-दस खरबूजे बने थे। खरबूजों को हौद के साथ ही ढाला गया था। 4 यह हौद ताँबे के 12 बैलों पर रखा गया था,+ 3 बैल उत्तर की तरफ मुँह किए हुए थे, 3 पश्‍चिम की तरफ, 3 दक्षिण की तरफ और 3 पूरब की तरफ। सभी बैलों का पिछला भाग अंदर की तरफ था। इन बैलों पर हौद टिकाया गया था। 5 हौद की दीवार की मोटाई चार अंगुल* थी। उसके मुँह की बनावट प्याले के मुँह जैसी थी और यह दिखने में खिले हुए सोसन के फूल जैसा था। इस हौद में 3,000 बत* पानी भरा जा सकता था।

6 इसके अलावा, उसने दस हौदियाँ बनायीं। उसने पाँच दायीं तरफ और पाँच बायीं तरफ रखीं।+ वे उन हौदियों में उन चीज़ों को धोया करते थे जो होम-बलियों के लिए इस्तेमाल की जाती थीं।+ मगर पानी का बड़ा हौद याजकों के हाथ-पैर धोने के लिए था।+

7 फिर उसने सोने की दस दीवटें बनायीं,+ ठीक जैसे बताया गया था+ और उन्हें मंदिर में रखा, पाँच दायीं तरफ और पाँच बायीं तरफ।+

8 उसने दस मेज़ें भी बनायीं और उन्हें मंदिर में रखा, पाँच दायीं तरफ और पाँच बायीं तरफ।+ उसने सोने की 100 कटोरियाँ बनायीं।

9 फिर उसने याजकों का आँगन+ और बड़ा आँगन बनाया+ और उस आँगन के लिए दरवाज़े बनाए। उसने दरवाज़ों पर ताँबा मढ़ा। 10 उसने पानी के बड़े हौद को दायीं तरफ, दक्षिण-पूर्व में रखा।+

11 हीराम ने हंडियाँ, बेलचे और कटोरे भी बनाए।+

इस तरह हीराम ने सच्चे परमेश्‍वर के भवन के लिए वह सारा काम पूरा किया जो राजा सुलैमान ने उसे दिया था। उसने यह सब बनाया:+ 12 दो खंभे+ और उनके ऊपर दो कटोरानुमा कंगूरे, कंगूरों की सजावट के लिए दो-दो जालीदार काम,+ 13 दोनों जालीदार काम के लिए 400 अनार,+ यानी हर जालीदार काम के लिए दो कतारों में अनार जिससे दोनों खंभों पर कटोरानुमा कंगूरे ढक जाएँ,+ 14 दस हौदियाँ और उन्हें ढोने के लिए दस हथ-गाड़ियाँ,*+ 15 पानी का बड़ा हौद और उसके नीचे 12 बैल,+ 16 हंडियाँ, बेलचे, काँटे+ और उनसे जुड़ी बाकी सारी चीज़ें। हूराम-अबीव+ ने राजा सुलैमान के कहे मुताबिक यहोवा के भवन के लिए यह सब झलकाए हुए ताँबे से तैयार किया। 17 राजा ने ये सारी चीज़ें यरदन ज़िले में सुक्कोत+ और सरेदा के बीच मिट्टी के साँचे में ढलवाकर बनवायीं। 18 सुलैमान ने ये सारी चीज़ें भारी तादाद में बनवायीं, इसलिए यह मालूम न हो सका कि उन्हें बनाने में कितना ताँबा इस्तेमाल हुआ।+

19 सुलैमान ने सच्चे परमेश्‍वर के भवन के लिए ये सारी चीज़ें बनवायीं:+ सोने की वेदी,+ नज़राने की रोटी रखने की मेज़ें,+ 20 शुद्ध सोने की दीवटें और दीए+ ताकि नियम के मुताबिक उन्हें भीतरी कमरे में जलाया जाए, 21 दीवटों पर एकदम शुद्ध सोने की पंखुड़ियाँ, दीए और चिमटे, 22 बाती बुझाने की शुद्ध सोने की कैंचियाँ, शुद्ध सोने की कटोरियाँ, प्याले और आग उठाने के करछे और भवन का प्रवेश, परम-पवित्र भाग के दरवाज़े+ और मंदिर के दरवाज़े जो सोने के थे।+

5 इस तरह सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिए वह सारा काम पूरा किया जो उसे करना था।+ इसके बाद सुलैमान वह सारी चीज़ें भवन में ले आया जो उसके पिता दाविद ने पवित्र ठहरायी थीं।+ उसने सोना, चाँदी और बाकी सारी चीज़ें सच्चे परमेश्‍वर के भवन के खज़ानों में रख दीं।+ 2 तब सुलैमान ने इसराएल के सभी अगुवों को, यानी सभी गोत्रों के मुखियाओं और पिताओं के घरानों के प्रधानों को यरूशलेम बुलवाया ताकि वे दाविदपुर यानी सिय्योन से यहोवा के करार का संदूक ले आएँ। तब वे सभी यरूशलेम आए।+ 3 इसराएल के सभी आदमी सातवें महीने में त्योहार* के समय राजा के सामने इकट्ठा हुए।+

4 जब इसराएल के सारे अगुवे आए तो लेवियों ने करार का संदूक उठाया।+ 5 याजक और लेवी* करार का संदूक, भेंट का तंबू+ और उसमें रखी सारी पवित्र चीज़ें ले आए। 6 राजा सुलैमान और इसराएल की पूरी मंडली, जिसे उसने बुलवाया था, करार के संदूक के सामने हाज़िर थे। इतनी तादाद में भेड़ों और गाय-बैलों की बलि चढ़ायी गयी+ कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती थी। 7 फिर याजक यहोवा के करार का संदूक उस जगह ले आए जो उसके लिए बनायी गयी थी। वे उसे भवन के भीतरी कमरे यानी परम-पवित्र भाग में ले आए और उसे करूबों के पंखों के नीचे रख दिया।+ 8 इस तरह करूबों के पंख उस जगह के ऊपर फैले हुए थे जहाँ संदूक रखा गया था और करूब, संदूक और उसके डंडों को ढाँपे हुए थे।+ 9 संदूक के डंडे इतने लंबे थे कि उनके सिरे पवित्र भाग से दिखते थे जो भीतरी कमरे के सामने था। मगर डंडों के सिरे बाहर से नहीं दिखायी देते थे। आज तक ये चीज़ें वहीं रखी हुई हैं। 10 संदूक में पत्थर की दो पटियाओं को छोड़ और कुछ नहीं था जो मूसा ने उसके अंदर रखी थीं। मूसा ने ये पटियाएँ होरेब में उस वक्‍त रखी थीं+ जब यहोवा ने इसराएलियों के साथ उनके मिस्र से निकलकर आते वक्‍त+ एक करार किया था।+

11 जब याजक पवित्र जगह से बाहर निकल आए (क्योंकि वहाँ मौजूद सभी याजकों ने खुद को पवित्र किया था,+ फिर चाहे वे किसी भी दल के थे)+ 12 तो आसाप,+ हेमान,+ यदूतून+ और उनके बेटों और भाइयों के दलों के सभी लेवी गायक+ बेहतरीन कपड़े पहने झाँझ, तारोंवाले बाजे और सुरमंडल बजाते हुए वेदी के पूरब में खड़े थे। उनके साथ 120 याजक तुरहियाँ फूँकते हुए खड़े थे।+ 13 तुरहियाँ फूँकनेवाले और गायक सुर-में-सुर मिलाकर यहोवा की तारीफ और उसका शुक्रिया अदा कर रहे थे। उनकी तुरहियों, झाँझ और दूसरे साज़ों की तेज़ आवाज़ गूँज रही थी और वे यह कहकर यहोवा की तारीफ कर रहे थे, “क्योंकि वह भला है, उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”+ जब वे ऐसा कर रहे थे तो यहोवा का भवन बादल से भर गया।+ 14 बादल की वजह से याजक वहाँ खड़े होकर सेवा नहीं कर पाए क्योंकि सच्चे परमेश्‍वर यहोवा का भवन उसकी महिमा से भर गया था।+

6 उस वक्‍त सुलैमान ने कहा, “हे यहोवा, तूने कहा था कि तू घने बादलों में निवास करेगा।+ 2 मैंने तेरे लिए एक शानदार भवन बनाया है ताकि तू सदा तक इसमें निवास करे।”+

3 फिर राजा इसराएल की पूरी मंडली की तरफ मुड़ा जो वहाँ खड़ी थी और लोगों को आशीर्वाद देने लगा।+ 4 उसने कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ हो। उसने अपने मुँह से जो वादा किया था उसे आज अपने हाथों से पूरा किया है। उसने मेरे पिता दाविद से कहा था, 5 ‘जिस दिन मैं अपनी प्रजा इसराएल को मिस्र से निकाल लाया था, उस दिन से लेकर अब तक मैंने इसराएल के किसी भी गोत्र के इलाके में कोई शहर नहीं चुना कि वहाँ मेरे नाम की महिमा के लिए कोई भवन बनाया जाए।+ और मैंने अपनी प्रजा इसराएल का अगुवा होने के लिए किसी इंसान को नहीं चुना था। 6 मगर मैंने यरूशलेम को चुना+ कि उससे मेरा नाम जुड़ा रहे और मैंने दाविद को अपनी प्रजा इसराएल पर राज करने के लिए चुना है।’+ 7 मेरे पिता दाविद की दिली तमन्‍ना थी कि वह इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाए।+ 8 मगर यहोवा ने मेरे पिता दाविद से कहा, ‘यह अच्छी बात है कि तू मेरे नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाने की दिली तमन्‍ना रखता है। 9 पर तू मेरे लिए भवन नहीं बनाएगा बल्कि तेरा अपना बेटा, जो तुझसे पैदा होगा, वह मेरे नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाएगा।’+ 10 यहोवा ने अपना यह वादा पूरा किया है क्योंकि मैं अपने पिता दाविद के बाद राजा बना हूँ और इसराएल की राजगद्दी पर बैठा हूँ,+ ठीक जैसे यहोवा ने वादा किया था।+ और मैंने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए भवन भी बनाया है। 11 इस भवन में मैंने वह संदूक रखा है जिसमें उस करार की पटियाएँ हैं+ जो यहोवा ने इसराएल के लोगों के साथ किया था।”

12 फिर वह इसराएल की पूरी मंडली के देखते यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ और उसने आसमान की तरफ अपने हाथ फैलाए।+ 13 (सुलैमान ने ताँबे का एक चबूतरा बनाया था और उसे आँगन के बीच रखा था।+ यह चबूतरा पाँच हाथ* लंबा, पाँच हाथ चौड़ा और तीन हाथ ऊँचा था। सुलैमान उस पर खड़ा था।) उसने इसराएल की पूरी मंडली के सामने घुटने टेककर और आसमान की तरफ अपने हाथ फैलाकर यह प्रार्थना की:+ 14 “हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, तेरे जैसा परमेश्‍वर कोई नहीं, न आसमान में न धरती पर। तू हमेशा अपना करार पूरा करता है और अपने उन सेवकों से प्यार* करता है जो तेरे सामने पूरे दिल से सही राह पर चलते हैं।+ 15 तूने अपना वह वादा पूरा किया है जो तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाविद से किया था।+ तूने खुद अपने मुँह से यह वादा किया था और आज उसे अपने हाथों से पूरा भी किया।+ 16 अब हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, तू अपना यह वादा भी पूरा करना जो तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाविद से किया था: ‘अगर तेरे बेटे तेरी तरह मेरे सामने सही राह पर चलते रहेंगे और इस तरह अपने चालचलन पर ध्यान देंगे, तो ऐसा कभी नहीं होगा कि मेरे सामने इसराएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए तेरे वंश का कोई आदमी न हो।’+ 17 हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, तू अपना यह वादा पूरा करना जो तूने अपने सेवक दाविद से किया था।

18 लेकिन क्या परमेश्‍वर वाकई धरती पर इंसानों के साथ निवास करेगा?+ देख, तू तो आकाश में, हाँ, विशाल आकाश में भी नहीं समा सकता।+ फिर यह भवन क्या है जो मैंने बनाया है, कुछ भी नहीं!+ 19 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, तेरा यह सेवक तेरे सामने जो प्रार्थना कर रहा है उस पर ध्यान दे, उसकी कृपा की बिनती सुन। तू उसकी मदद की पुकार सुन और उसकी प्रार्थना स्वीकार कर। 20 तूने इस भवन के बारे में कहा था कि इससे तेरा नाम जुड़ा रहेगा,+ इसलिए तेरी आँखें दिन-रात इस भवन पर लगी रहें और जब तेरा सेवक इस भवन की तरफ मुँह करके प्रार्थना करे तो तू उस पर ध्यान देना। 21 जब तेरा यह सेवक और तेरी प्रजा इसराएल के लोग इस जगह की तरफ मुँह करके मदद के लिए गिड़गिड़ाकर बिनती करें तो तू उनकी सुनना,+ अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उनकी सुनना।+ तू उनकी फरियाद सुनना और उनके पाप माफ करना।+

22 अगर एक आदमी का संगी-साथी उस पर इलज़ाम लगाए कि तूने मेरे साथ गलत किया है और उसे शपथ धरायी जाती है* और वह आदमी शपथ* की वजह से इस भवन में तेरी वेदी के सामने आए,+ 23 तो तू स्वर्ग से सुनकर कार्रवाई करना। तू अपने सेवकों का न्याय करना, उनमें से जो दुष्ट है उसे उसके किए की सज़ा देना+ और जो नेक है उसे बेकसूर* ठहराना और उसकी नेकी के मुताबिक उसे फल देना।+

24 अगर तेरी प्रजा इसराएल तेरे खिलाफ पाप करते रहने की वजह से दुश्‍मन से युद्ध हार जाए+ और वह बाद में तेरे पास लौट आए, तेरे नाम की महिमा करे+ और इस भवन में आकर तुझसे प्रार्थना करे+ और रहम की भीख माँगे,+ 25 तो तू स्वर्ग से अपनी प्रजा इसराएल के लोगों की बिनती सुनना+ और उनके पाप माफ करना। तू उन्हें इस देश में लौटा ले आना जो तूने उन्हें और उनके पुरखों को दिया था।+

26 अगर उनके पाप करते रहने की वजह से+ आकाश के झरोखे बंद हो जाएँ और बारिश न हो+ और तू उन्हें नम्रता का सबक सिखाए* और इस वजह से वे इस जगह की तरफ मुँह करके प्रार्थना करें, तेरे नाम की महिमा करें और पाप की राह से पलटकर लौट आएँ,+ 27 तो तू स्वर्ग से अपनी प्रजा इसराएल की सुनना और अपने सेवकों के पाप माफ करना क्योंकि तू उन्हें सही राह के बारे में सिखाएगा जिस पर उन्हें चलना चाहिए+ और अपने इस देश पर बारिश करेगा+ जिसे तूने अपने लोगों को विरासत में दिया है।

28 अगर देश में अकाल पड़े+ या महामारी फैले+ या फसलों पर झुलसन, बीमारी,+ दलवाली टिड्डियों या भूखी टिड्डियों का कहर टूटे+ या दुश्‍मन आकर देश के किसी शहर* को घेर लें+ या देश में कोई बीमारी फैले या किसी और तरह की मुसीबत आए+ 29 और ऐसे में एक आदमी या तेरी प्रजा इसराएल के सब लोग इस भवन की तरफ हाथ फैलाकर तुझसे कृपा की बिनती करें+ (क्योंकि हर कोई अपनी पीड़ा और अपना दर्द जानता है),+ 30 तो तू अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उनकी सुनना+ और उन्हें माफ करना।+ तू उनमें से हरेक को उसके कामों के हिसाब से फल देना क्योंकि तू हरेक का दिल जानता है (सिर्फ तू ही सही मायनों में जानता है कि इंसान का दिल कैसा है)।+ 31 तब वे जब तक इस देश में रहेंगे, जो तूने हमारे पुरखों को दिया था, तेरी राहों पर चलकर तेरा डर मानते रहेंगे।

32 अगर कोई परदेसी, जो तेरी प्रजा इसराएल में से नहीं है, तेरे महान नाम के बारे में सुनकर और यह भी कि तूने कैसे अपना शक्‍तिशाली हाथ बढ़ाकर बड़े-बड़े काम किए थे, दूर देश से आता है+ और इस भवन की तरफ मुँह करके प्रार्थना करता है,+ 33 तो तू अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उसकी सुनना और उसके लिए वह सब करना जिसकी वह गुज़ारिश करता है ताकि धरती के सब देशों के लोग तेरा नाम जानें+ और तेरा डर मानें, जैसे तेरी इसराएली प्रजा तेरा डर मानती है और वे जानें कि यह भवन जो मैंने बनाया है, इससे तेरा नाम जुड़ा है।

34 जब तू अपने लोगों को दुश्‍मनों से लड़ने कहीं भेजे+ और वे तेरे चुने हुए शहर की तरफ और इस भवन की तरफ मुँह करके, जो मैंने तेरे नाम की महिमा के लिए बनाया है, तुझसे प्रार्थना करें,+ 35 तो तू स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और उनकी कृपा की बिनती सुनना और उन्हें न्याय दिलाना।+

36 अगर वे तेरे खिलाफ पाप करें (क्योंकि ऐसा कोई भी इंसान नहीं जो पाप न करता हो)+ और तू क्रोध से भरकर उन्हें दुश्‍मनों के हवाले कर दे और दुश्‍मन उन्हें बंदी बनाकर किसी देश में ले जाएँ, फिर चाहे वह पास का देश हो या दूर का+ 37 और वहाँ जाने के बाद जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हो और वे बँधुआई के देश में रहते तेरे पास लौट आएँ और तुझसे रहम की भीख माँगें और कहें, ‘हमने पाप किया है, हमने गुनाह किया है, हमने दुष्टता का काम किया है’+ 38 और वे बँधुआई के देश में रहते+ पूरे दिल और पूरी जान से तेरे पास लौट आएँ+ और अपने इस देश की तरफ मुँह करके तुझसे प्रार्थना करें जो तूने उनके पुरखों को दिया था और तेरे चुने हुए शहर की तरफ और इस भवन की तरफ, जो मैंने तेरे नाम की महिमा के लिए बनाया है, मुँह करके प्रार्थना करें+ 39 तो तू अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और कृपा की बिनती सुनना और उन्हें न्याय दिलाना।+ तू अपने लोगों के पाप माफ कर देना जो उन्होंने तेरे खिलाफ किए होंगे।

40 हे मेरे परमेश्‍वर, मेहरबानी करके उन लोगों की प्रार्थना सुनना जो इस जगह पर* करेंगे और तेरी नज़र उन पर बनी रहे।+ 41 अब हे यहोवा परमेश्‍वर, उठ, अपने विश्राम की जगह आ।+ तू और तेरा संदूक आए जो तेरी ताकत की निशानी है। हे यहोवा परमेश्‍वर, तेरे याजक उद्धार की पोशाक पहने हुए हों और तेरे वफादार लोग तेरी भलाई के कारण मगन हों।+ 42 हे यहोवा परमेश्‍वर, अपने अभिषिक्‍त जन को न ठुकरा।*+ तूने अपने सेवक दाविद से जो प्यार* किया था, तू उसे याद रखे।”+

7 जैसे ही सुलैमान ने प्रार्थना खत्म की,+ आकाश से आग बरसी+ और होम-बलि और दूसरे बलिदान भस्म हो गए और भवन यहोवा की महिमा से भर गया।+ 2 याजक यहोवा के भवन में नहीं जा सके क्योंकि यहोवा का भवन यहोवा की महिमा से भर गया।+ 3 जब आग ऊपर से बरसी और यहोवा की महिमा भवन पर छा गयी, तो सब इसराएली देख रहे थे। उन्होंने झुककर और फर्श पर मुँह के बल गिरकर दंडवत किया और यह कहकर यहोवा का शुक्रिया अदा किया, “क्योंकि वह भला है, उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”

4 फिर राजा और सब लोगों ने यहोवा के सामने बलिदान चढ़ाए।+ 5 राजा सुलैमान ने 22,000 बैलों और 1,20,000 भेड़ों की बलि चढ़ायी। इस तरह राजा और सब लोगों ने सच्चे परमेश्‍वर के भवन का उद्‌घाटन किया।+ 6 याजक सेवा के लिए अपनी-अपनी ठहरायी जगह खड़े थे और वे लेवी भी खड़े थे जिनके पास यहोवा के लिए गीत गाते समय बजानेवाले साज़ होते थे।+ (राजा दाविद ने ये साज़ इसलिए बनाए थे ताकि ये उस वक्‍त बजाए जाएँ जब वह उनके* साथ परमेश्‍वर की तारीफ करे और यह कहकर यहोवा का शुक्रिया अदा करे, “क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”) और उनके सामने याजक ज़ोर-ज़ोर से तुरहियाँ फूँक रहे थे+ और सारे इसराएली वहाँ खड़े थे।

7 फिर सुलैमान ने यहोवा के भवन के सामनेवाले आँगन के बीच का हिस्सा पवित्र ठहराया क्योंकि वहाँ पर उसे होम-बलियाँ और शांति-बलियों की चरबी चढ़ानी थी।+ उसने ये सारे बलिदान वहाँ इसलिए चढ़ाए क्योंकि उसकी बनायी ताँबे की वेदी+ पर इतनी तादाद में होम-बलियाँ, अनाज के चढ़ावे+ और चरबी नहीं चढ़ायी जा सकी।+ 8 इस मौके पर सुलैमान ने सात दिन तक इसराएलियों की एक बड़ी भीड़ के साथ मिलकर त्योहार मनाया।+ इस भीड़ में लेबो-हमात* से लेकर मिस्र घाटी* तक के सारे लोग शामिल थे।+ 9 मगर आठवें दिन* उन्होंने एक पवित्र सभा रखी+ क्योंकि उन्होंने सात दिन तक वेदी का उद्‌घाटन किया था और सात दिन त्योहार मनाया था। 10 फिर सातवें महीने के 23वें दिन सुलैमान ने लोगों को अपने-अपने घर भेज दिया। यहोवा ने दाविद और सुलैमान और अपनी प्रजा इसराएल की खातिर जो भलाई की थी, उससे उनका दिल खुशी से उमड़ रहा था+ और वे सब आनंद मनाते हुए अपने-अपने घर लौटे।+

11 इस तरह सुलैमान ने यहोवा का भवन और राजमहल बनाने का काम पूरा किया।+ उसने यहोवा के भवन और अपने महल में जो भी बनाना चाहा, वह सब बनाने में कामयाब रहा।+ 12 फिर यहोवा रात के वक्‍त सुलैमान के सामने प्रकट हुआ+ और उससे कहा, “मैंने तेरी प्रार्थना सुनी है और मैंने यह जगह अपने लिए बलिदान की जगह ठहरायी है।+ 13 जब मैं आकाश के झरोखे बंद कर दूँ और बारिश न हो और मैं टिड्डियों को आदेश दूँ कि वे इस ज़मीन को चट कर जाएँ और अपने लोगों में महामारी भेजूँ, 14 तब अगर मेरे लोग जो मेरे नाम से जाने जाते हैं,+ खुद को नम्र करें+ और प्रार्थना करके मेरी मंज़ूरी पाने की कोशिश करें और अपनी बुरी राहों से फिर जाएँ,+ तो मैं स्वर्ग से उनकी प्रार्थना सुनूँगा और उनके पाप माफ करूँगा और उनके देश को चंगा करूँगा।+ 15 इस जगह पर जो लोग प्रार्थना करेंगे, मैं उनकी सुनूँगा और मेरी नज़र उन पर बनी रहेगी।+ 16 मैंने यह भवन चुना है और इसे पवित्र किया है ताकि सदा तक मेरा नाम इससे जुड़ा रहे+ और मैं इसकी देखभाल के लिए हमेशा अपनी आँखें इस पर लगाए रखूँगा और यह भवन सदा मेरे दिल के करीब रहेगा।+

17 और अगर तू वह सब करेगा जिसकी मैंने तुझे आज्ञा दी है और मेरे नियम और न्याय-सिद्धांत मानेगा और इस तरह अपने पिता दाविद की तरह मेरे सामने सही राह पर चलेगा,+ 18 तो मैं तेरी राजगद्दी हमेशा के लिए कायम रखूँगा,+ ठीक जैसे मैंने तेरे पिता दाविद से यह करार किया था,+ ‘ऐसा कभी नहीं होगा कि इसराएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए तेरे वंश का कोई आदमी न हो।’+ 19 लेकिन अगर तू मुझसे मुँह फेर लेगा और मेरी आज्ञाओं और विधियों को मानना छोड़ देगा जो मैंने तुझे दी हैं और जाकर पराए देवताओं की पूजा करेगा और उन्हें दंडवत करेगा,+ 20 तो मैं इसराएल को अपने देश से उखाड़ फेंकूँगा जो मैंने उसे दिया है+ और इस भवन को, जिसे मैंने अपने नाम की महिमा के लिए पवित्र ठहराया है, अपनी नज़रों से दूर कर दूँगा। यह भवन सब देशों में मज़ाक* बनकर रह जाएगा, इसकी बरबादी देखकर सब हँसेंगे।+ 21 और यह भवन मलबे का ढेर हो जाएगा। इसके पास से गुज़रनेवाला हर कोई इसे फटी आँखों से देखता रह जाएगा+ और कहेगा, ‘यहोवा ने इस देश की और इस भवन की ऐसी हालत क्यों कर दी?’+ 22 फिर वे कहेंगे, ‘वह इसलिए कि उन्होंने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा को छोड़ दिया+ जो उन्हें मिस्र से निकाल लाया था+ और उन्होंने दूसरे देवताओं को अपना लिया और वे उन्हें दंडवत करके उनकी सेवा करने लगे।+ इसीलिए वह उन पर यह संकट ले आया।’”+

8 सुलैमान को यहोवा का भवन और अपना राजमहल बनाने में पूरे 20 साल लगे।+ इसके बाद 2 उसने वे शहर दोबारा बनाए जो हीराम+ ने उसे दिए थे और वहाँ इसराएलियों* को बसाया। 3 इसके अलावा, सुलैमान ने हमात-सोबा जाकर उस पर कब्ज़ा कर लिया। 4 फिर उसने वीराने में तदमोर और उन सभी गोदामवाले शहरों को मज़बूत किया*+ जो उसने हमात में बनाए थे।+ 5 उसने ऊपरी बेत-होरोन+ और निचली बेत-होरोन+ की दीवारें, फाटक और बेड़े बनाकर उन शहरों को भी मज़बूत किया। 6 सुलैमान ने बालात+ और अपने सभी गोदामवाले शहर, रथों के शहर+ और घुड़सवारों के लिए शहर भी बनाए और यरूशलेम और लबानोन में और अपने राज्य के पूरे इलाके में वह जो-जो बनाना चाहता था वह सब उसने बनाया।

7 हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों+ में से बचे हुए लोग, जो इसराएल की प्रजा नहीं थे+ 8 और जिन्हें इसराएलियों ने नहीं मिटाया था, उनके वंशज इसराएल देश में रहते थे।+ सुलैमान ने इन लोगों को जबरन मज़दूरी में लगा दिया और आज तक वे यही काम करते हैं।+ 9 मगर सुलैमान ने किसी भी इसराएली को गुलाम बनाकर उससे मज़दूरी नहीं करवायी।+ वे तो उसके योद्धा, सहायक सेना-अधिकारियों के मुखिया और सारथियों और घुड़सवारों के प्रधान थे।+ 10 राजा सुलैमान के काम की निगरानी करनेवाले अधिकारियों की गिनती 250 थी। उन्हें कर्मचारियों पर अधिकार दिया गया था।+

11 सुलैमान फिरौन की बेटी+ को दाविदपुर से उस महल में ले आया जो उसने उसके लिए बनवाया था+ क्योंकि उसने कहा, “भले ही वह मेरी पत्नी है, मगर वह इसराएल के राजा दाविद के महल में नहीं रह सकती क्योंकि जिन जगहों पर यहोवा का संदूक आया है वे पवित्र हैं।”+

12 फिर सुलैमान ने यहोवा की उस वेदी+ पर यहोवा के लिए होम-बलियाँ चढ़ायीं+ जो उसने बरामदे के सामने बनायी थी।+ 13 वह मूसा की आज्ञा के मुताबिक हर दिन, सब्त के दिन,+ नए चाँद के मौकों पर+ और साल के इन तीन त्योहारों पर बलिदान चढ़ाता था:+ बिन-खमीर की रोटी का त्योहार,+ कटाई का त्योहार+ और छप्परों का त्योहार।+ 14 साथ ही, उसने अपने पिता दाविद के कायदे के मुताबिक याजकों को सेवा के लिए अलग-अलग दलों में ठहराया+ और लेवियों को उनकी ज़िम्मेदारियाँ सौंपीं ताकि वे रोज़ के नियम के मुताबिक परमेश्‍वर की तारीफ करें+ और याजकों के सामने सेवा करें। उसने पहरेदारों के दलों को अलग-अलग फाटकों पर ठहराया+ क्योंकि सच्चे परमेश्‍वर के सेवक दाविद ने ऐसा करने की आज्ञा दी थी। 15 राजा ने याजकों और लेवियों को भंडार-घरों के मामले में या किसी और मामले में जो भी आज्ञा दी थी उसे मानने से वे नहीं चूके। 16 जिस दिन यहोवा के भवन की बुनियाद डाली गयी+ तब से लेकर उसे बनाने का काम पूरा करने तक सुलैमान ने हर काम की अच्छी व्यवस्था की।* इस तरह यहोवा के भवन का काम पूरा हुआ।+

17 इसके बाद सुलैमान एस्योन-गेबेर+ और एलोत+ गया जो एदोम देश के तट पर हैं।+ 18 हीराम+ ने अपने सेवकों के ज़रिए अपने जहाज़ और तजुरबेकार नाविक सुलैमान के पास भेजे। वे सुलैमान के सेवकों के साथ मिलकर ओपीर+ गए और वहाँ से 450 तोड़े* सोना+ राजा सुलैमान के पास ले आए।+

9 शीबा की रानी+ ने सुलैमान की शोहरत के बारे में सुना, इसलिए वह यरूशलेम आयी ताकि बेहद मुश्‍किल और पेचीदा सवालों से* उसे परखे। उसके साथ एक बहुत बड़ा और शानदार कारवाँ आया। वह अपने साथ बलसाँ के तेल, भारी तादाद में सोने+ और अनमोल रत्नों से लदे ऊँट लायी। जब वह सुलैमान के पास आयी तो उसके मन में जितने भी सवाल थे, वे सब उसने राजा से पूछे।+ 2 और सुलैमान ने उसके सभी सवालों के जवाब दिए। ऐसी कोई बात नहीं थी* जिसके बारे में उसे समझाना सुलैमान के लिए मुश्‍किल रहा हो।

3 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की बुद्धि,+ उसका बनाया राजमहल,+ 4 मेज़ पर लगा शाही खाना,+ उसके अधिकारियों के बैठने के लिए किया गया इंतज़ाम, खाना परोसनेवालों की सेवाएँ और उनकी खास पोशाक, उसके साकी और उनकी खास पोशाक और वे होम-बलियाँ देखीं जिन्हें वह नियमित तौर पर यहोवा के भवन में चढ़ाया करता था,+ तो वह ऐसी दंग रह गयी कि उसकी साँस ऊपर-की-ऊपर और नीचे-की-नीचे रह गयी। 5 उसने राजा से कहा, “मैंने अपने देश में तेरी कामयाबियों* के बारे में और तेरी बुद्धि के बारे में जो चर्चे सुने थे, वे बिलकुल सही थे। 6 लेकिन मैंने तब तक यकीन नहीं किया जब तक मैंने यहाँ आकर खुद अपनी आँखों से नहीं देखा।+ अब मैं देख सकती हूँ कि तेरी बुद्धि वाकई लाजवाब है। मुझे लगता है कि मुझे इसका आधा भी नहीं बताया गया था।+ मैंने तेरे बारे में जो सुना था, तू उससे कहीं ज़्यादा महान है।+ 7 तेरे इन आदमियों और सेवकों को कितना बड़ा सम्मान मिला है कि वे हर समय तेरे सामने रहकर तेरे मुँह से बुद्धि की बातें सुनते हैं! 8 तेरे परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई हो, जिसने तुझसे खुश होकर तुझे अपनी राजगद्दी पर बिठाया ताकि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से राज करे। तेरा परमेश्‍वर इसराएल से प्यार करता है+ और उसे सदा तक कायम रखना चाहता है, इसीलिए उसने तुझे इसराएल का राजा ठहराया ताकि तू न्याय और नेकी करे।”

9 इसके बाद शीबा की रानी ने राजा को 120 तोड़े* सोना, बहुत सारा बलसाँ का तेल और अनमोल रत्न तोहफे में दिए।+ उसने राजा सुलैमान को जितना बलसाँ का तेल दिया था उतना फिर कभी किसी ने नहीं दिया।+

10 इसके अलावा, हीराम के सेवक और सुलैमान के सेवक, जो ओपीर से सोना लाया करते थे,+ वहाँ से अनमोल रत्न और लाल-चंदन की लकड़ी भी लाते थे।+ 11 राजा ने लाल-चंदन की लकड़ी से यहोवा के भवन के लिए और राजमहल+ के लिए सीढ़ियाँ बनायीं,+ साथ ही उस लकड़ी से गायकों के लिए सुरमंडल और तारोंवाले दूसरे बाजे बनाए।+ इतनी उम्दा चीज़ें यहूदा देश में पहले कभी नहीं देखी गयी थीं।

12 राजा सुलैमान ने भी शीबा की रानी को वह सब दिया जो उसने माँगा। रानी उसके लिए जितने तोहफे लायी थी उससे कई गुना ज़्यादा चीज़ें राजा ने उसे दीं।* फिर रानी अपने सेवकों के साथ अपने देश लौट गयी।+

13 सुलैमान को हर साल करीब 666 तोड़े सोना मिलता था।+ 14 इसके अलावा उसे सौदागरों, लेन-देन करनेवाले व्यापारियों और अरब के सब राजाओं और देश के राज्यपालों से भी सोना मिलता था क्योंकि वे सोना-चाँदी लाकर उसे देते थे।+

15 राजा सुलैमान ने मिश्रित सोने की 200 बड़ी-बड़ी ढालें+ (हर ढाल में 600 शेकेल* सोना लगा था)+ 16 और 300 छोटी-छोटी ढालें* बनायीं (हर छोटी ढाल में तीन मीना* सोना लगा था)। राजा ने ये ढालें ‘लबानोन के वन भवन’ में रखीं।+

17 राजा ने हाथी-दाँत की एक बड़ी राजगद्दी भी बनायी और उस पर शुद्ध सोना मढ़ा।+ 18 राजगद्दी तक जाने के लिए छ: सीढ़ियाँ थीं और राजगद्दी से पाँवों की चौकी लगी थी जो सोने की थी। राजगद्दी के दोनों तरफ हाथ रखने के लिए टेक बनी थी और दोनों तरफ टेक के पास एक-एक शेर+ खड़ा हुआ बना था। 19 राजगद्दी तक जानेवाली छ: सीढ़ियों में से हर सीढ़ी के दोनों तरफ भी एक-एक शेर खड़ा हुआ बना था यानी कुल मिलाकर 12 शेर थे।+ ऐसी राजगद्दी किसी और राज्य में नहीं थी। 20 राजा सुलैमान के सभी प्याले सोने के थे और ‘लबानोन के वन भवन’ के सारे बरतन भी शुद्ध सोने के थे। एक भी चीज़ चाँदी की नहीं थी क्योंकि सुलैमान के दिनों में चाँदी का कोई मोल नहीं था।+ 21 राजा के जहाज़ हीराम के सेवकों के साथ तरशीश+ जाते थे।+ हर तीन साल में एक बार तरशीश के जहाज़ों का लशकर सोना, चाँदी, हाथी-दाँत,+ बंदर और मोर लाता था।

22 राजा सुलैमान इतना बुद्धिमान था और उसके पास दौलत का ऐसा अंबार था कि दुनिया का कोई भी राजा उसकी बराबरी नहीं कर सकता था।+ 23 सच्चे परमेश्‍वर ने उसे बहुत बुद्धि दी थी और उसकी बुद्धि की बातें सुनने धरती के कोने-कोने से राजा उसके पास आया करते थे।*+ 24 जब भी कोई सुलैमान के पास आता तो वह तोहफे में राजा को सोने-चाँदी की चीज़ें, कपड़े,+ हथियार, बलसाँ का तेल, घोड़े और खच्चर देता था। ऐसा साल-दर-साल चलता रहा। 25 सुलैमान के पास घोड़ों और रथों के लिए 4,000 अस्तबल थे और उसके 12,000 घोड़े* थे।+ उसने इन्हें रथों के शहरों में और यरूशलेम में अपने पास रखा था।+ 26 वह महानदी* से लेकर पलिश्‍तियों के देश और मिस्र की सरहद तक के सभी राजाओं पर राज करता था।+ 27 राजा ने यरूशलेम में इतनी तादाद में चाँदी इकट्ठी की कि वह पत्थर जितनी आम हो गयी थी और उसने देवदार की इतनी सारी लकड़ी इकट्ठी की कि उसकी तादाद शफेलाह के गूलर पेड़ों जितनी हो गयी थी।+ 28 सुलैमान के लिए मिस्र और दूसरे देशों से घोड़े लाए जाते थे।+

29 सुलैमान की ज़िंदगी की बाकी कहानी+ यानी शुरू से लेकर आखिर तक का इतिहास भविष्यवक्‍ता नातान के लेखनों में,+ शीलो के रहनेवाले अहियाह की भविष्यवाणी की किताब में+ और दर्शी इद्दो की उस किताब में लिखा है+ जिसमें नबात के बेटे यारोबाम+ के बारे में दर्शन लिखे हैं। 30 सुलैमान ने यरूशलेम में रहकर पूरे इसराएल पर 40 साल राज किया। 31 फिर उसकी मौत हो गयी* और उसे उसके पिता दाविद के शहर दाविदपुर में दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा रहूबियाम राजा बना।+

10 रहूबियाम शेकेम+ गया क्योंकि पूरा इसराएल उसे राजा बनाने के लिए शेकेम में इकट्ठा हुआ था।+ 2 जैसे ही इसकी खबर नबात के बेटे यारोबाम+ को मिली, वह मिस्र से वापस आ गया। (वह अब भी मिस्र में था क्योंकि वह राजा सुलैमान की वजह से मिस्र भाग गया था।)+ 3 फिर लोगों ने यारोबाम को बुलवाया और वह और पूरा इसराएल रहूबियाम के पास आया और वे कहने लगे, 4 “तेरे पिता ने हमसे कड़ी मज़दूरी करवाकर हम पर भारी बोझ लाद दिया था।+ अगर तू हमारे साथ थोड़ी रिआयत करे और यह भारी बोझ ज़रा हलका कर दे, तो हम तेरी सेवा करेंगे।”

5 रहूबियाम ने उनसे कहा, “तुम लोग तीन दिन बाद वापस आना।” तब लोग वहाँ से चले गए।+ 6 इस बीच राजा रहूबियाम ने उन बुज़ुर्गों* से सलाह की जो उसके पिता सुलैमान के सलाहकार हुआ करते थे। उसने उनसे पूछा, “तुम्हारी क्या राय है, इन लोगों को क्या जवाब देना सही रहेगा?” 7 बुज़ुर्गों ने उससे कहा, “अगर तू इन लोगों के साथ भलाई करे, उन्हें खुश करे और उनसे प्यार से बात करे, तो वे हमेशा तेरे सेवक बने रहेंगे।”

8 मगर रहूबियाम ने बुज़ुर्गों* की सलाह ठुकरा दी और उन जवानों से सलाह-मशविरा किया जो उसके साथ पले-बढ़े थे और अब उसके सेवक थे।+ 9 उसने उनसे पूछा, “तुम क्या सलाह देते हो? मैं इन लोगों को क्या जवाब दूँ जिन्होंने मुझसे कहा है, ‘तेरे पिता ने हम पर जो भारी बोझ लादा था उसे हलका कर दे’?” 10 उसके साथ पले-बढ़े जवानों ने उससे कहा, “जिन लोगों ने तुझसे कहा है, ‘तेरे पिता ने हम पर जो भारी बोझ लादा था उसे हलका कर दे,’ उनसे तू कहना, ‘मेरी छोटी उँगली मेरे पिता की कमर से भी मोटी होगी। 11 मेरे पिता ने तुम पर जो भारी बोझ लादा था मैं उसे और बढ़ा दूँगा। मेरा पिता तुम्हें कोड़ों से पिटवाता था, मगर मैं तुम्हें कीलोंवाले कोड़ों से पिटवाऊँगा।’”

12 तीसरे दिन यारोबाम और सब लोग रहूबियाम के पास आए, ठीक जैसे राजा ने उनसे तीसरे दिन आने को कहा था।+ 13 मगर राजा रहूबियाम ने उनके साथ कठोरता से बात की। इस तरह उसने बुज़ुर्गों* की सलाह ठुकरा दी। 14 उसने जवानों की सलाह मानकर लोगों से कहा, “मैं तुम लोगों का बोझ और भारी कर दूँगा, उसे बढ़ा दूँगा। मेरा पिता तुम्हें कोड़ों से पिटवाता था, मगर मैं तुम्हें कीलोंवाले कोड़ों से पिटवाऊँगा।” 15 इस तरह राजा ने लोगों की बात नहीं मानी। इसके पीछे सच्चे परमेश्‍वर यहोवा का हाथ था।+ उसने ऐसा इसलिए किया ताकि वह वचन पूरा हो जो उसने शीलो के रहनेवाले अहियाह के ज़रिए नबात के बेटे यारोबाम से कहा था।+

16 जब राजा ने इसराएलियों की बात मानने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने राजा से कहा, “अब दाविद के साथ हमारा क्या साझा? यिशै के बेटे की विरासत उसी के पास रहे। इसराएलियो, तुममें से हरेक अपने देवताओं के पास लौट जाए! हे दाविद, अब तू अपने ही घराने की देखभाल करना!”+ यह कहकर इसराएल के सभी लोग अपने-अपने घर* लौट गए।+

17 मगर रहूबियाम उन इसराएलियों पर राज करता रहा जो यहूदा के शहरों में रहते थे।+

18 फिर राजा रहूबियाम ने हदोराम+ को इसराएलियों के पास भेजा, जो जबरन मज़दूरी करनेवालों का अधिकारी था। मगर इसराएलियों ने उसे पत्थरों से मार डाला। राजा रहूबियाम किसी तरह अपने रथ पर सवार होकर यरूशलेम भाग गया।+ 19 तब से लेकर आज तक इसराएली दाविद के घराने से बगावत करते आ रहे हैं।

11 जब रहूबियाम यरूशलेम पहुँचा तो उसने फौरन यहूदा के घराने से और बिन्यामीन गोत्र+ से 1,80,000 तालीम पाए* सैनिकों को इकट्ठा किया ताकि वे इसराएल से युद्ध करें और राज फिर से रहूबियाम के अधिकार में कर दें।+ 2 तब यहोवा का यह संदेश सच्चे परमेश्‍वर के सेवक शमायाह+ के पास पहुँचा, 3 “सुलैमान के बेटे, यहूदा के राजा रहूबियाम से, साथ ही यहूदा के घराने और बिन्यामीन गोत्र के सभी इसराएलियों से कहना, 4 ‘यहोवा ने कहा है, “तुम ऊपर जाकर अपने भाइयों से युद्ध मत करना। तुम सब अपने-अपने घर लौट जाओ क्योंकि यह सब मैंने ही करवाया है।”’”+ उन्होंने यहोवा की बात मान ली और सब अपने-अपने घर लौट गए और यारोबाम से युद्ध करने नहीं गए।

5 रहूबियाम यरूशलेम में रहा और उसने यहूदा में किलेबंद शहर बनाए। 6 उसने बेतलेहेम,+ एताम, तकोआ,+ 7 बेत-सूर, सोको,+ अदुल्लाम,+ 8 गत,+ मारेशाह, ज़ीफ,+ 9 अदोरैम, लाकीश,+ अजेका,+ 10 सोरा, अय्यालोन+ और हेब्रोन+ को बनाया।* ये सारे किलेबंद शहर यहूदा और बिन्यामीन के इलाके में थे। 11 यही नहीं, उसने उन किलेबंद शहरों को मज़बूत किया और उनमें सेनापति ठहराए और वह उन्हें खाने-पीने की चीज़ें, तेल और दाख-मदिरा मुहैया कराता रहा। 12 उसने अलग-अलग शहरों में भारी तादाद में बड़ी-बड़ी ढालें और भाले रखवाए और उन्हें सुरक्षित करके बहुत मज़बूत किया। यहूदा और बिन्यामीन के लोग उसी की प्रजा बने रहे।

13 पूरे इसराएल में रहनेवाले याजक और लेवी रहूबियाम का साथ देने के लिए अपना-अपना इलाका छोड़कर उसके पास आ गए। 14 लेवी अपने चरागाह और अपनी जागीर छोड़कर+ यहूदा और यरूशलेम आ गए, क्योंकि यारोबाम और उसके बेटों ने उन्हें यहोवा के लिए याजक के नाते सेवा करने से हटा दिया था।+ 15 फिर यारोबाम ने खुद ही कुछ आदमियों को अपनी बनायी ऊँची जगहों के लिए और दुष्ट स्वर्गदूतों*+ और बछड़ों+ की सेवा के लिए याजक ठहरा दिया।+ 16 इसराएल के सब गोत्रों में से जितने लोगों ने अपने दिल में इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की खोज करने की ठान ली थी, वे उन याजकों और लेवियों के पीछे-पीछे यरूशलेम आ गए ताकि अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा को बलिदान चढ़ा सकें।+ 17 वे तीन साल तक यहूदा के राज को मज़बूत करते रहे और सुलैमान के बेटे रहूबियाम का साथ देते रहे, क्योंकि इन तीन सालों के दौरान वे दाविद और सुलैमान की राह पर चलते रहे।

18 फिर रहूबियाम ने महलत से शादी की, जो दाविद के बेटे यरीमोत की बेटी थी। महलत की माँ अबीहैल थी जो यिशै के बेटे एलीआब+ की बेटी थी। 19 कुछ समय बाद महलत ने रहूबियाम के इन बेटों को जन्म दिया: यूश, शमरयाह और जाहम। 20 फिर रहूबियाम ने माका से शादी की, जो अबशालोम+ की नातिन थी। कुछ समय बाद माका ने इन बेटों को जन्म दिया: अबियाह,+ अत्तै, ज़ीज़ा और शलोमीत। 21 रहूबियाम की 18 पत्नियाँ और 60 उप-पत्नियाँ थीं और उसके 28 बेटे और 60 बेटियाँ थीं। मगर अपनी सब पत्नियों और उप-पत्नियों में से वह सबसे ज़्यादा अबशालोम की नातिन माका से प्यार करता था।+ 22 इसलिए रहूबियाम ने माका के बेटे अबियाह को उसके भाइयों का मुखिया और अगुवा ठहराया, क्योंकि वह चाहता था कि उसके बाद अबियाह राजा बने। 23 रहूबियाम ने समझ से काम लिया और अपने कुछ बेटों को यहूदा और बिन्यामीन के सभी प्रदेशों के सभी किलेबंद शहरों में भेज दिया*+ और उन्हें खाने-पीने की चीज़ें बहुतायत में दीं और बहुत-सी औरतों से उनकी शादी करायी।

12 जैसे ही रहूबियाम का राज मज़बूती से कायम हो गया+ और वह ताकतवर बन गया, उसने और पूरे इसराएल ने यहोवा का कानून मानना छोड़ दिया।+ 2 रहूबियाम के राज के पाँचवें साल में मिस्र के राजा शीशक+ ने यरूशलेम पर हमला किया, क्योंकि इसराएलियों ने यहोवा के साथ विश्‍वासघात किया था। 3 राजा शीशक मिस्र से अपने साथ 1,200 रथ, 60,000 घुड़सवार और सैनिकों की अनगिनत टुकड़ियाँ लेकर आया। उसकी सेना में लिबिया और इथियोपिया के लोगों की सेना और सुक्कियों की सेना थीं।+ 4 उसने यहूदा के किलेबंद शहरों पर कब्ज़ा कर लिया और यरूशलेम तक आ गया।

5 भविष्यवक्‍ता शमायाह+ रहूबियाम और यहूदा के हाकिमों के पास आया, जो शीशक की वजह से यरूशलेम में इकट्ठा हुए थे। शमायाह ने उनसे कहा, “यहोवा ने कहा है, ‘तुमने मुझे छोड़ दिया है इसलिए मैंने तुम्हें छोड़ दिया+ और शीशक के हवाले कर दिया है।’” 6 इस पर राजा और इसराएल के हाकिमों ने खुद को नम्र किया+ और कहा, “यहोवा नेक है।” 7 जब यहोवा ने देखा कि उन्होंने खुद को नम्र किया है, तो यहोवा का यह संदेश शमायाह के पास पहुँचा, “उन्होंने खुद को नम्र किया है। इसलिए मैं उन्हें नाश नहीं करूँगा+ और बहुत जल्द उन्हें छुड़ाऊँगा। मैं शीशक के ज़रिए यरूशलेम पर अपने क्रोध का प्याला नहीं उँडेलूँगा। 8 फिर भी, वे उसके सेवक बन जाएँगे और तब वे जान लेंगे कि मेरी सेवा करने और दूसरे देशों के राजाओं* की सेवा करने में क्या फर्क है।”

9 इसलिए मिस्र के राजा शीशक ने यरूशलेम पर हमला कर दिया। वह यहोवा के भवन का खज़ाना और राजा के महल का खज़ाना लूट ले गया।+ वह सबकुछ ले गया, यहाँ तक कि सोने की वे ढालें भी जो सुलैमान ने बनवायी थीं।+ 10 इसलिए राजा रहूबियाम ने उन ढालों के बदले ताँबे की ढालें बनवायीं और उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी उन पहरेदारों के सरदारों को दी जो राजमहल के प्रवेश पर पहरा देते थे। 11 जब भी राजा यहोवा के भवन में आता तो पहरेदार अंदर आते और ये ढालें लेकर चलते और फिर उन्हें वापस पहरेदारों के खाने में रख देते थे। 12 राजा ने खुद को नम्र किया था, इसलिए यहोवा ने अपना क्रोध उस पर नहीं भड़काया+ और उन्हें पूरी तरह नाश नहीं किया।+ इसके अलावा, यहूदा के लोगों में कुछ अच्छाइयाँ पायी गयी थीं।+

13 राजा रहूबियाम यरूशलेम में ताकतवर होता गया और वह राज करता रहा। जब वह राजा बना तब वह 41 साल का था और उसने 17 साल यरूशलेम में रहकर राज किया, जिसे यहोवा ने इसराएल के सभी गोत्रों में से इसलिए चुना था कि उस शहर से उसका नाम जुड़ा रहे। राजा की माँ नामा एक अम्मोनी औरत थी।+ 14 मगर रहूबियाम ने बुरे काम किए क्योंकि उसने अपने दिल में यहोवा की खोज करने की नहीं ठानी थी।+

15 रहूबियाम का शुरू से लेकर आखिर तक का पूरा इतिहास भविष्यवक्‍ता शमायाह और दर्शी इद्दो के लेखनों में लिखा गया+ जो वंशावली के रूप में है। और रहूबियाम और यारोबाम के बीच लगातार युद्ध चलता रहा।+ 16 फिर रहूबियाम की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में दफनाया गया।+ रहूबियाम की जगह उसका बेटा अबीयाह+ राजा बना।

13 अबियाह जब यहूदा का राजा बना तब यारोबाम के राज का 18वाँ साल चल रहा था।+ 2 अबियाह ने यरूशलेम में रहकर तीन साल राज किया। उसकी माँ का नाम मीकायाह था,+ जो गिबा+ के रहनेवाले उरीएल की बेटी थी। अबियाह और यारोबाम के बीच युद्ध हुआ।+

3 अबियाह तालीम पाए हुए* 4,00,000 वीर योद्धाओं को लेकर युद्ध करने गया।+ और यारोबाम ने उसका मुकाबला करने के लिए तालीम पाए हुए* 8,00,000 वीर योद्धाओं को तैनात किया। 4 अबियाह, समारैम पहाड़ पर खड़ा हुआ जो एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में है और उसने कहा, “हे यारोबाम और पूरे इसराएल, मेरी बात सुनो। 5 क्या तुम नहीं जानते कि इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने दाविद और उसके बेटों+ के साथ नमक का करार*+ करके इसराएल का राज सदा के लिए उन्हें दे दिया है?+ 6 मगर नबात का बेटा यारोबाम,+ जो दाविद के बेटे सुलैमान का सेवक था, अपने मालिक के खिलाफ खड़ा हुआ और बगावत करने लगा।+ 7 और निकम्मे और आलसी आदमी उसके पास इकट्ठा होते गए। वे सुलैमान के बेटे रहूबियाम से ज़्यादा ताकतवर निकले क्योंकि रहूबियाम छोटा और बुज़दिल था और वह उनके आगे टिक नहीं पाया।

8 और अब तुम सोचते हो कि तुम यहोवा के राज के खिलाफ खड़े हो सकोगे, जो दाविद के बेटों के हाथ में है क्योंकि तुम गिनती में बहुत ज़्यादा हो और तुम्हारे पास सोने के वे बछड़े हैं जिन्हें यारोबाम ने बनाया कि वे तुम्हारे देवता हों।+ 9 तुम लोगों ने यहोवा के याजकों को भगा दिया+ जो हारून के वंशज हैं और लेवियों को भी भगा दिया और उनके बदले खुद ही दूसरे आदमियों को याजक बना दिया, जैसे दूसरे देशों के लोग करते हैं।+ जो भी एक बैल और सात मेढ़े लेकर आता है,* वह उन मूरतों का याजक बन जाता है जो ईश्‍वर नहीं हैं। 10 लेकिन हमारा परमेश्‍वर यहोवा है+ और हमने उसे नहीं छोड़ा है। हमारे याजक हारून के वंशज हैं, जो यहोवा की सेवा करते हैं और लेवी उनकी मदद करते हैं। 11 वे हर दिन सुबह-शाम यहोवा के लिए होम-बलियाँ चढ़ाते हैं ताकि उनका धुआँ उठे,+ सुगंधित धूप जलाते हैं,+ शुद्ध सोने की मेज़ पर रोटियों का ढेर*+ रखते हैं और हर शाम सोने की दीवट+ और उसके दीए जलाते हैं+ क्योंकि हमारे परमेश्‍वर यहोवा की तरफ हमारी जो ज़िम्मेदारी बनती है उसे हम निभाते हैं। मगर तुम लोगों ने उसे छोड़ दिया है। 12 अब देखो, सच्चा परमेश्‍वर हमारे साथ है और हमारी अगुवाई कर रहा है। उसके याजक भी हमारे साथ हैं, जो तुम्हारे खिलाफ युद्ध का ऐलान करने के लिए हाथ में तुरहियाँ लिए हुए हैं। इसराएल के आदमियो, अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा से युद्ध मत करो क्योंकि तुम कामयाब नहीं होगे।”+

13 मगर यारोबाम ने उनके पीछे सैनिकों को घात में बिठाया, इसलिए उसका एक सेना-दल यहूदा के सामने था और घात लगाए हुए सैनिक पीछे थे। 14 जब यहूदा के आदमी पीछे मुड़े तो उन्होंने देखा कि अब उन पर आगे-पीछे दोनों तरफ से हमला होनेवाला है। वे मदद के लिए यहोवा को पुकारने लगे+ और याजक ज़ोर-ज़ोर से तुरहियाँ फूँकने लगे। 15 फिर यहूदा के आदमियों ने ज़ोर से युद्ध की पुकार लगायी। जब उन्होंने ऐसा किया तो सच्चे परमेश्‍वर ने अबियाह और यहूदा के सामने यारोबाम और पूरे इसराएल को हरा दिया। 16 इसराएली यहूदा के सामने से भाग गए और परमेश्‍वर ने उन्हें यहूदा के आदमियों के हाथ में कर दिया। 17 अबियाह और उसके लोगों ने इतनी मार-काट मचायी कि इसराएल के तालीम पाए हुए* 5,00,000 सैनिक मारे गए। 18 इस तरह इसराएल के लोगों को नीचा दिखाया गया, जबकि यहूदा के लोग ताकतवर साबित हुए क्योंकि उन्होंने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा पर भरोसा रखा था।+ 19 अबियाह, यारोबाम का पीछा करता गया और उसने यारोबाम से कुछ शहर ले लिए। उसने बेतेल+ और उसके आस-पास के नगरों पर, यशाना और उसके आस-पास के नगरों पर और एप्रोन+ और उसके आस-पास के नगरों पर कब्ज़ा कर लिया। 20 अबियाह के राज के दौरान यारोबाम फिर कभी पहले की तरह ताकतवर नहीं बन सका। इसके बाद यहोवा ने उसे सज़ा दी और वह मर गया।+

21 मगर अबियाह का राज मज़बूत होता गया। कुछ समय बाद उसने 14 औरतों से शादी की+ और उसके 22 बेटे और 16 बेटियाँ हुईं। 22 अबियाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए और बातें कहीं, उनका ब्यौरा भविष्यवक्‍ता इद्दो के लेखनों* में लिखा है।+

14 फिर अबियाह की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर+ में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा आसा राजा बना। उसके राज के दस सालों के दौरान देश में शांति थी।

2 आसा ने वही किया जो उसके परमेश्‍वर यहोवा की नज़र में सही और भला था। 3 उसने पराए देवताओं की वेदियाँ और ऊँची जगह मिटा दीं,+ पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर दिए+ और पूजा-लाठें* काट डालीं।+ 4 और उसने यहूदा के लोगों को बढ़ावा दिया कि वे अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा की खोज करें और उसके कानून और उसकी आज्ञाओं का पालन करें। 5 उसने यहूदा के सब शहरों में से ऊँची जगह और धूप-स्तंभ निकाल दिए+ और उसके राज में यहूदा देश में चैन रहा। 6 उसने यहूदा में किलेबंद शहर बनाए+ क्योंकि इन सालों के दौरान देश में चैन था और किसी ने आसा से युद्ध नहीं किया। यहोवा ने उसे शांति दी थी।+ 7 आसा ने यहूदा के लोगों से कहा, “आओ हम ये शहर बनाएँ, इनके चारों तरफ शहरपनाह, मीनारें,+ फाटक* और बेड़े बनाएँ। यह देश हमारे अधिकार में है क्योंकि हमने अपने परमेश्‍वर यहोवा की खोज की है। हमने उसकी खोज की और उसने हमें चारों तरफ शांति दी है।” इसलिए वे शहर बनाने में कामयाब रहे।+

8 आसा की सेना में यहूदा के 3,00,000 आदमी थे जो बड़ी ढालों और भालों से लैस थे। और बिन्यामीन गोत्र के 2,80,000 वीर योद्धा थे जो छोटी ढालों* और तीर-कमान से लैस थे।+

9 बाद में इथियोपिया का जेरह 10,00,000 आदमियों और 300 रथों की सेना के साथ उन पर हमला करने आया।+ जब वह मारेशाह पहुँचा,+ 10 तो आसा उसका मुकाबला करने गया। उन्होंने अपनी-अपनी सेना को मारेशाह की सापता घाटी में तैनात किया। 11 फिर आसा ने अपने परमेश्‍वर यहोवा को यह कहकर पुकारा,+ “हे यहोवा, तू जिन लोगों की मदद करना चाहता है, उनकी मदद ज़रूर कर सकता है, फिर चाहे वे गिनती में ज़्यादा हों या उनके पास ताकत न हो।+ हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, हमारी मदद कर क्योंकि हमने तुझ पर भरोसा किया है+ और तेरे नाम से हम इस विशाल सेना का मुकाबला करने आए हैं।+ हे यहोवा, तू हमारा परमेश्‍वर है। नश्‍वर इंसान को तुझ पर जीत हासिल करने न दे।”+

12 इसलिए यहोवा ने आसा और यहूदा के सामने इथियोपिया के लोगों को हरा दिया और वे लोग भाग गए।+ 13 आसा और उसके लोगों ने दूर गरार+ तक इथियोपिया के लोगों का पीछा किया और वे उन्हें तब तक घात करते गए जब तक कि उनमें से एक भी ज़िंदा न बचा। यहोवा और उसकी सेना ने इथियोपिया के लोगों को कुचल दिया। इसके बाद यहूदा के लोग लूट का ढेर सारा माल लेकर चल दिए। 14 उन्होंने गरार के आस-पास के सभी शहरों को भी नाश कर दिया क्योंकि उन शहरों में यहोवा का खौफ समा गया था। यहूदा के लोगों ने उन सभी शहरों को लूट लिया क्योंकि वहाँ लूट के लिए ढेर सारा माल था। 15 उन्होंने उन तंबुओं पर भी हमला किया जिनमें मवेशी पालनेवाले रहते थे। उन्होंने भारी तादाद में उनकी भेड़-बकरियाँ और ऊँट ले लिए और इसके बाद वे यरूशलेम लौट गए।

15 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ओदेद के बेटे अजरयाह पर आयी। 2 तब अजरयाह आसा से मिलने गया और उससे कहा, “हे आसा और यहूदा और बिन्यामीन के सब लोगो, मेरी बात सुनो! यहोवा तब तक तुम्हारे साथ रहेगा जब तक तुम उसके साथ रहोगे।+ अगर तुम उसकी खोज करोगे तो वह तुम्हें मिलेगा,+ लेकिन अगर तुम उसे छोड़ दोगे तो वह भी तुम्हें छोड़ देगा।+ 3 इसराएल काफी लंबे समय* तक बिना सच्चे परमेश्‍वर के, बिना सिखानेवाले याजक के और बिना कानून के रहा था।+ 4 मगर जब वे संकट में पड़ गए और इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के पास लौट आए और उसकी खोज करने लगे, तो वह उन्हें मिला।+ 5 उन दिनों कोई भी सही-सलामत कहीं सफर नहीं कर सकता था* क्योंकि देश के सब लोगों में काफी खलबली मची हुई थी। 6 एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को और एक शहर दूसरे शहर को कुचल रहा था, क्योंकि परमेश्‍वर ने उन पर हर तरह का संकट लाकर उन्हें गड़बड़ी में डाल दिया था।+ 7 मगर तुम लोग मज़बूत बने रहो और हिम्मत न हारो*+ क्योंकि तुम्हें अपने काम का इनाम मिलेगा।”

8 जैसे ही आसा ने अजरयाह के ये शब्द और भविष्यवक्‍ता ओदेद की भविष्यवाणी सुनी, उसे हिम्मत मिली और उसने यहूदा और बिन्यामीन के पूरे इलाके से और एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के उन शहरों से, जिन पर उसने कब्ज़ा किया था, घिनौनी मूरतें निकाल दीं।+ उसने यहोवा की वेदी ठीक की, जो यहोवा के भवन के बरामदे के सामने थी।+ 9 उसने यहूदा और बिन्यामीन के सब लोगों को और एप्रैम, मनश्‍शे और शिमोन के इलाकों में रहनेवाले परदेसियों को इकट्ठा किया। ये परदेसी बड़ी तादाद में इसराएल छोड़कर आसा के पास आ गए थे+ क्योंकि उन्होंने देखा था कि आसा का परमेश्‍वर यहोवा उसके साथ है। 10 उन सबको आसा के राज के 15वें साल के तीसरे महीने में यरूशलेम में इकट्ठा किया गया। 11 उस दिन उन्होंने लूट के माल से, जो वे लाए थे, 700 बैलों और 7,000 भेड़ों को यहोवा के लिए बलि किया। 12 साथ ही, उन्होंने यह करार किया कि वे पूरे दिल और पूरी जान से अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा की खोज करेंगे।+ 13 जो कोई इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की खोज नहीं करेगा वह मार डाला जाएगा, फिर चाहे वह छोटा हो या बड़ा, आदमी हो या औरत।+ 14 उन्होंने तुरहियाँ और नरसिंगे फूँकते हुए ज़ोरदार आवाज़ में यहोवा से शपथ खायी और खुशी से जयजयकार की। 15 इस शपथ पर सारे यहूदा के लोगों ने खुशियाँ मनायीं, क्योंकि उन्होंने पूरे दिल से शपथ खायी थी और पूरे जोश से उसकी खोज की थी और वह उन्हें मिला।+ यहोवा उन्हें हर तरफ से शांति देता रहा।+

16 यहाँ तक कि राजा आसा ने अपनी दादी माका+ को राजमाता के पद से हटा दिया क्योंकि माका ने पूजा-लाठ* की उपासना के लिए एक अश्‍लील मूरत खड़ी करवायी थी।+ आसा ने उसकी अश्‍लील मूरत काट डाली, उसे चूर-चूर करके किदरोन घाटी में जला दिया।+ 17 मगर इसराएल से ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं।+ फिर भी आसा का दिल सारी ज़िंदगी परमेश्‍वर पर पूरी तरह लगा रहा।+ 18 वह सच्चे परमेश्‍वर के भवन में वह सारा सोना, चाँदी और दूसरी चीज़ें ले आया जो उसने और उसके पिता ने पवित्र ठहरायी थीं।+ 19 आसा के राज के 35वें साल तक कोई युद्ध नहीं हुआ।+

16 आसा के राज के 36वें साल में इसराएल के राजा बाशा+ ने यहूदा पर हमला बोल दिया। वह रामाह+ को बनाने* लगा ताकि न तो उसके यहाँ से कोई यहूदा के राजा आसा के इलाके में जा सके और न वहाँ से कोई यहाँ आ सके।+ 2 तब आसा ने यहोवा के भवन के खज़ाने और राजमहल के खज़ाने से सोना-चाँदी निकाला+ और सीरिया के राजा बेन-हदद के पास भेजा,+ जो दमिश्‍क में रहता था और उससे कहा, 3 “जैसे तेरे पिता और मेरे पिता के बीच संधि* थी वैसे ही हम दोनों के बीच भी संधि है। देख, मैं तेरे लिए सोना-चाँदी भेज रहा हूँ। तू आकर इसराएल के राजा बाशा के साथ अपनी संधि तोड़ दे। तब वह मेरा इलाका छोड़कर चला जाएगा।”

4 बेन-हदद ने राजा आसा की बात मान ली और अपने सेनापतियों को इसराएल के शहरों पर हमला करने भेजा। उन्होंने जाकर इय्योन,+ दान+ और आबेल-मैम को और नप्ताली के शहरों के सभी गोदामों को नाश कर दिया।+ 5 जब इसकी खबर बाशा को मिली तो उसने रामाह को बनाने* का काम फौरन रोक दिया और काम वहीं बंद कर दिया। 6 फिर राजा आसा ने यहूदा के सभी लोगों को लिया और वे रामाह+ से वे सारे पत्थर और शहतीरें उठाकर ले गए जिनसे बाशा, रामाह शहर बना रहा था।+ उन चीज़ों से आसा ने गेबा+ और मिसपा+ शहर बनाए।*

7 तब हनानी+ दर्शी यहूदा के राजा आसा के पास आया और उसने उससे कहा, “तूने अपने परमेश्‍वर यहोवा पर भरोसा करने के बजाय सीरिया के राजा पर भरोसा किया, इसलिए सीरिया के राजा की सेना तेरे हाथ से निकल गयी है।+ 8 क्या इथियोपिया और लिबिया के लोगों की एक बहुत बड़ी और विशाल सेना नहीं आयी थी? क्या उनके बहुत-से रथ और घुड़सवार नहीं थे? फिर भी यहोवा ने उन्हें तेरे हाथ में कर दिया था क्योंकि तूने उस पर भरोसा किया था।+ 9 यहोवा की आँखें सारी धरती पर इसलिए फिरती रहती हैं+ कि वह उन लोगों की खातिर अपनी ताकत दिखाए* जिनका दिल उस पर पूरी तरह लगा रहता है।+ तूने इस मामले में मूर्खता का काम किया है इसलिए अब से तू लड़ाइयों में उलझा रहेगा।”+

10 मगर आसा को यह बात बहुत बुरी लगी। इसलिए वह दर्शी पर भड़क उठा और उसे कैद में डाल दिया। और आसा बाकी लोगों के साथ भी बुरा सलूक करने लगा। 11 आसा का शुरू से लेकर आखिर तक का पूरा इतिहास, यहूदा और इसराएल के राजाओं की किताब में लिखा है।+

12 अपने राज के 39वें साल में आसा के पैरों में एक रोग लग गया और वह बहुत बीमार हो गया। मगर अपनी बीमारी में भी वह मदद के लिए यहोवा के पास नहीं गया बल्कि वैद्यों के पास गया। 13 फिर आसा अपने राज के 41वें साल में मर गया।*+ 14 उसे दाविदपुर+ में एक शानदार कब्र में दफनाया गया, जो उसने खुद के लिए बनवायी थी। उसकी लाश जिस अर्थी पर रखी गयी थी, उसे बलसाँ के तेल और अलग-अलग मसालों और सुगंधित तेलों से बनाए मिश्रण से भरा गया था।+ इसके अलावा, उसके सम्मान में एक बड़ी आग जलायी गयी थी।*

17 आसा की जगह उसका बेटा यहोशापात+ राजा बना और वह इसराएल में ताकतवर होता गया। 2 उसने यहूदा के सभी किलेबंद शहरों में सेना की टुकड़ियाँ तैनात कीं और यहूदा देश में और एप्रैम के उन शहरों में सैनिकों की चौकियाँ बनायीं जिन पर उसके पिता आसा ने कब्ज़ा किया था।+ 3 यहोवा यहोशापात के साथ रहा क्योंकि वह उन राहों पर चला जिन पर उसका पुरखा दाविद गुज़रे वक्‍त में चला था+ और वह बाल देवताओं की तरफ नहीं फिरा। 4 यहोशापात ने अपने पिता के परमेश्‍वर की खोज की+ और उसकी आज्ञाएँ मानीं* और इसराएल के तौर-तरीके नहीं अपनाए।+ 5 यहोवा उसका राज मज़बूत करता रहा+ और यहूदा के सभी लोग यहोशापात को तोहफे दिया करते थे। उसने खूब दौलत और शोहरत हासिल की।+ 6 उसने यहोवा की राहों पर चलने के लिए हिम्मत से काम लिया, यहाँ तक कि यहूदा से ऊँची जगह और पूजा-लाठें* निकाल दीं।+

7 अपने राज के तीसरे साल उसने इन हाकिमों को बुलवाया: बेन-हैल, ओबद्याह, जकरयाह, नतनेल और मीकायाह। उसने अपने इन हाकिमों को यहूदा के शहरों में सिखाने भेजा। 8 उनके साथ ये लेवी भी थे: शमायाह, नतन्याह, जबद्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनियाह, तोबियाह और तोब-अदोनियाह। साथ ही, याजक एलीशामा और याजक यहोराम भी थे।+ 9 वे यहोवा के कानून की किताब अपने साथ लिए हुए यहूदा में सिखाने लगे।+ उन्होंने सभी शहरों में घूम-घूमकर लोगों को सिखाया।

10 यहूदा के आस-पास के सभी राज्यों में यहोवा का खौफ छा गया और उन्होंने यहोशापात से लड़ाई नहीं की। 11 पलिश्‍ती लोग यहोशापात को नज़राने में तोहफे और पैसे दिया करते थे। अरबी लोगों ने अपने जानवरों के झुंड में से 7,700 मेढ़े और 7,700 बकरे लाकर उसे दिए।

12 यहोशापात दिनों-दिन ताकतवर होता गया+ और वह यहूदा में किले और गोदामवाले शहर बनाता गया।+ 13 उसने यहूदा के शहरों में बड़े-बड़े काम करवाए और यरूशलेम में उसके वीर योद्धा थे। 14 उन्हें अपने-अपने पिता के घराने के मुताबिक इन दलों में बाँटा गया था: यहूदा गोत्र में हज़ारों के प्रधान ये थे, सेनापति अदनाह और उसके साथ 3,00,000 वीर योद्धा।+ 15 उसकी कमान के नीचे सेनापति यहोहानान था और उसके साथ 2,80,000 सैनिक थे। 16 अदनाह की कमान के नीचे जिक्री का बेटा अमस्याह भी था, जो यहोवा की सेवा के लिए खुद आगे आया था और उसके साथ 2,00,000 वीर योद्धा थे। 17 बिन्यामीन गोत्र+ में से एल्यादा एक वीर योद्धा था और उसके साथ 2,00,000 सैनिक थे जो तीर-कमान और ढालों से लैस थे।+ 18 एल्यादा की कमान के नीचे यहोजाबाद था और उसके साथ 1,80,000 हथियारबंद सैनिक थे। 19 वे राजा की सेवा करते थे। उनके अलावा राजा के और भी सैनिक थे जिन्हें उसने पूरे यहूदा के किलेबंद शहरों में तैनात किया था।+

18 यहोशापात ने खूब दौलत और शोहरत हासिल की थी,+ मगर उसने अहाब से रिश्‍तेदारी कर ली।+ 2 इसलिए कुछ साल बाद यहोशापात, अहाब से मिलने सामरिया गया।+ अहाब ने उसके लिए और उसके साथ आए लोगों के लिए बहुत-सी भेड़ों और गाय-बैलों का बलिदान किया। और उसने यहोशापात को रामोत-गिलाद+ पर हमला करने के लिए कायल कर दिया। 3 फिर इसराएल के राजा अहाब ने यहूदा के राजा यहोशापात से कहा, “क्या तू युद्ध करने मेरे साथ रामोत-गिलाद चलेगा?” यहोशापात ने उससे कहा, “हम दोनों एक हैं और मेरे लोग तेरे ही लोग हैं। हम युद्ध में ज़रूर तेरा साथ देंगे।”

4 मगर यहोशापात ने इसराएल के राजा से कहा, “क्यों न हम पहले यहोवा से पूछें कि उसकी क्या सलाह है?”+ 5 इसलिए इसराएल के राजा ने सभी भविष्यवक्‍ताओं को इकट्ठा किया जो 400 थे। उसने उनसे पूछा, “क्या हम रामोत-गिलाद पर हमला करने जाएँ?” उन्होंने कहा, “जा, तू हमला कर, सच्चा परमेश्‍वर उसे तेरे हाथ में कर देगा।”

6 फिर यहोशापात ने कहा, “क्या यहाँ यहोवा का कोई भविष्यवक्‍ता नहीं है?+ चलो हम उसके ज़रिए भी पूछते हैं।”+ 7 तब इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “एक और आदमी है+ जिसके ज़रिए हम यहोवा से सलाह माँग सकते हैं, मगर मुझे उस आदमी से नफरत है। वह मेरे बारे में कभी अच्छी बातों की भविष्यवाणी नहीं करता, हमेशा बुरी बातें कहता है।+ वह यिम्ला का बेटा मीकायाह है।” मगर यहोशापात ने कहा, “राजा को ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए।”

8 तब इसराएल के राजा ने अपने एक दरबारी को बुलाया और उससे कहा, “यिम्ला के बेटे मीकायाह को फौरन यहाँ ले आ।”+ 9 इसराएल का राजा अहाब और यहूदा का राजा यहोशापात, शाही कपड़े पहने सामरिया के फाटक के पास एक खलिहान में अपनी-अपनी राजगद्दी पर बैठे थे। सारे भविष्यवक्‍ता उन दोनों के सामने भविष्यवाणी कर रहे थे। 10 तब कनाना के बेटे सिदकियाह ने अपने लिए लोहे के सींग बनवाए और कहा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘तू सीरिया के लोगों को इनसे तब तक मारता* रहेगा जब तक कि वे मिट नहीं जाते।’” 11 बाकी भविष्यवक्‍ता भी यही भविष्यवाणी कर रहे थे। वे कह रहे थे, “जा, तू रामोत-गिलाद पर हमला कर। तू ज़रूर कामयाब होगा,+ यहोवा उसे तेरे हाथ में कर देगा।”

12 मीकायाह को बुलाने के लिए जो दूत गया था, उसने मीकायाह से कहा, “देख, सारे भविष्यवक्‍ता राजा को एक ही बात बता रहे हैं। वे उसे अच्छी बातों की भविष्यवाणी सुना रहे हैं। इसलिए मेहरबानी करके तू भी उनकी तरह कोई अच्छी बात सुना।”+ 13 मगर मीकायाह ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, मैं वही बात बताऊँगा जो मेरा परमेश्‍वर मुझे बताएगा।”+ 14 फिर मीकायाह राजा के पास आया और राजा ने उससे पूछा, “मीकायाह, तू क्या कहता है, हम रामोत-गिलाद पर हमला करें या न करें?” उसने फौरन जवाब दिया, “जा, तू रामोत-गिलाद पर हमला कर। तू ज़रूर कामयाब होगा, वे तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएँगे।” 15 राजा ने उससे कहा, “मैं तुझे कितनी बार शपथ धराकर कहूँ कि तू यहोवा के नाम से मुझे सिर्फ सच बताएगा?” 16 तब मीकायाह ने कहा, “मैं देख रहा हूँ कि सारे इसराएली पहाड़ों पर तितर-बितर हो गए हैं, उन भेड़ों की तरह जिनका कोई चरवाहा नहीं होता।+ यहोवा कहता है, ‘इनका कोई मालिक नहीं है। इनमें से हर कोई शांति से अपने घर लौट जाए।’”

17 तब इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “देखा, मैंने कहा था न, यह आदमी मेरे बारे में अच्छी बातों की भविष्यवाणी नहीं करेगा, सिर्फ बुरी बातें कहेगा।”+

18 फिर मीकायाह ने कहा, “इसलिए अब यहोवा का संदेश सुनो। मैंने देखा है कि यहोवा अपनी राजगद्दी पर बैठा है+ और उसके दायीं और बायीं तरफ स्वर्ग की सारी सेना खड़ी है।+ 19 फिर यहोवा ने कहा, ‘इसराएल के राजा अहाब को कौन बेवकूफ बनाएगा ताकि वह रामोत-गिलाद जाए और वहाँ मारा जाए?’ तब सेना में से किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ। 20 फिर एक स्वर्गदूत+ यहोवा के सामने आकर खड़ा हुआ और उसने कहा, ‘मैं अहाब को बेवकूफ बनाऊँगा।’ यहोवा ने पूछा, ‘तू यह कैसे करेगा?’ 21 उसने कहा, ‘मैं जाकर उसके सभी भविष्यवक्‍ताओं के मुँह से झूठ बुलवाऊँगा।’ परमेश्‍वर ने कहा, ‘तू उसे बेवकूफ बना लेगा, तू ज़रूर कामयाब होगा। जा, तूने जैसा कहा है वैसा ही कर।’ 22 इसलिए यहोवा ने तेरे इन भविष्यवक्‍ताओं के मुँह से झूठ बुलवाया है,+ मगर यहोवा ने ऐलान किया है कि तुझ पर संकट आएगा।”

23 तब कनाना का बेटा सिदकियाह,+ मीकायाह+ के पास गया और उसके गाल पर ज़ोर से थप्पड़ मारा+ और कहा, “यहोवा का स्वर्गदूत कब से मुझे छोड़कर तुझसे बात करने लगा है?”+ 24 मीकायाह ने कहा, “इसका जवाब तुझे उस दिन मिलेगा जब तू भागकर अंदर के कमरे में जा छिपेगा।” 25 तब इसराएल के राजा ने हुक्म दिया, “ले जाओ इस मीकायाह को। इसे शहर के प्रधान आमोन और राजा के बेटे योआश के हवाले कर दो। 26 उनसे कहना, ‘राजा ने आदेश दिया है कि इसे जेल में बंद कर दो+ और जब तक मैं सही-सलामत लौट नहीं आता तब तक इसे नाम के लिए खाना-पानी देते रहना।’” 27 मगर मीकायाह ने कहा, “अगर तू सही-सलामत लौटा तो इसका मतलब यह होगा कि यहोवा ने मेरे ज़रिए बात नहीं की है।”+ फिर उसने कहा, “लोगो, तुम सब यह बात याद रखना।”

28 इसके बाद इसराएल का राजा अहाब और यहूदा का राजा यहोशापात रामोत-गिलाद गए।+ 29 इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “मैं अपना भेस बदलकर युद्ध में जाऊँगा, मगर तू अपने शाही कपड़े पहने रहना।” इसराएल के राजा ने भेस बदला और वे दोनों युद्ध में गए। 30 वहाँ सीरिया के राजा ने अपनी रथ-सेना के सेनापतियों को यह हुक्म दिया था, “तुम लोग सीधे इसराएल के राजा से युद्ध करना, उसके सिवा किसी और से मत लड़ना, फिर चाहे वह कोई मामूली सैनिक हो या बड़ा अधिकारी।” 31 जैसे ही रथ-सेना के सेनापतियों ने यहोशापात को देखा उन्होंने सोचा, “यही इसराएल का राजा होगा।” इसलिए वे सब यहोशापात पर हमला करने लगे और वह मदद के लिए पुकारने लगा।+ यहोवा ने उसकी मदद की और दुश्‍मनों को फौरन उससे दूर ले गया। 32 जैसे ही सेनापतियों को पता चला कि वह इसराएल का राजा नहीं है, उन्होंने उसका पीछा करना छोड़ दिया।

33 तब किसी सैनिक ने यूँ ही एक तीर चलाया और वह तीर इसराएल के राजा को वहाँ जा लगा जहाँ कवच और बख्तर का दूसरा हिस्सा जुड़ा हुआ था। राजा ने अपने सारथी से कहा, “रथ घुमाकर मुझे युद्ध के मैदान* से बाहर ले जा, मैं बुरी तरह घायल हो गया हूँ।”+ 34 पूरे दिन घमासान लड़ाई चलती रही और इसराएल के राजा को सहारा देकर शाम तक सीरिया के लोगों के सामने रथ पर खड़ा रखना पड़ा। और सूरज ढलते-ढलते वह मर गया।+

19 फिर यहूदा का राजा यहोशापात सही-सलामत*+ यरूशलेम में अपने महल लौट आया। 2 तब हनानी+ दर्शी का बेटा येहू+ राजा यहोशापात से मिलने आया और उससे कहा, “क्या तुझे एक दुष्ट की मदद करनी चाहिए+ और उन लोगों से प्यार करना चाहिए जो यहोवा से नफरत करते हैं?+ इसलिए यहोवा का क्रोध तुझ पर भड़क उठा है। 3 फिर भी तुझमें कुछ अच्छाइयाँ पायी गयी हैं+ क्योंकि तूने देश से पूजा-लाठें* निकाल दीं और सच्चे परमेश्‍वर की खोज करने के लिए अपने दिल को तैयार किया है।”*+

4 यहोशापात यरूशलेम में ही रहा और वह एक बार फिर बेरशेबा से लेकर एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ तक रहनेवालों के पास गया ताकि उन्हें उनके पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा के पास लौटा ले आए।+ 5 साथ ही, यहूदा में जितने किलेबंद शहर थे उनमें से हर शहर में उसने न्यायी ठहराए+ 6 और उनसे कहा, “तुम जो न्याय करते हो उस पर ध्यान दो क्योंकि तुम इंसान की तरफ से नहीं, यहोवा की तरफ से न्याय करते हो। और जब तुम फैसला सुनाते हो तो वह तुम्हारे साथ रहता है।+ 7 यहोवा का डर तुममें बना रहे।+ तुम अपना काम सावधानी से करना क्योंकि हमारा परमेश्‍वर यहोवा कभी अन्याय नहीं करता,+ किसी की तरफदारी नहीं करता+ और न ही रिश्‍वत लेता है।”+

8 यहोशापात ने यरूशलेम में भी कुछ लेवियों, याजकों और इसराएल के पिताओं के घरानों के मुखियाओं को न्यायी ठहराया ताकि वे यहोवा की तरफ से यरूशलेम के लोगों के मुकदमे सुलझाएँ।+ 9 उसने उन्हें आज्ञा दी, “तुम यहोवा का डर मानकर, विश्‍वासयोग्य बने रहकर और पूरे दिल से ऐसा करना: 10 जब भी दूसरे शहरों में रहनेवाले तुम्हारे भाई ऐसा मामला लाते हैं जिसमें किसी का खून किया गया हो+ या किसी कानून, आज्ञा, नियम या न्याय-सिद्धांत को लेकर सवाल उठा हो तो तुम उन्हें आगाह करना ताकि वे यहोवा के सामने दोषी न ठहरें। अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो परमेश्‍वर का क्रोध तुम पर और तुम्हारे भाइयों पर भड़क उठेगा। तुम ऐसा ही करना ताकि तुम दोषी न ठहरो। 11 देखो, यहोवा से जुड़े हर मामले की देखरेख करने के लिए प्रधान याजक अमरयाह को तुम्हारा अधिकारी ठहराया गया है।+ और राजा से जुड़े हर मामले की देखरेख करने के लिए जबद्याह को ठहराया गया है, जो इश्‍माएल का बेटा और यहूदा के घराने का अगुवा है। और लेवी तुम्हारे लिए अधिकारी के नाते सेवा करेंगे। तुम सब हिम्मत से काम लेना। यहोवा उनके साथ रहे जो भला करते हैं।”*+

20 बाद में मोआबी+ और अम्मोनी+ लोग और उनके साथ कुछ अम्मोनिम लोग* यहोशापात से युद्ध करने आए। 2 यहोशापात को यह खबर दी गयी: “सागर* के इलाके से, एदोम+ से एक विशाल सेना तुझसे युद्ध करने आयी है। वे अभी हसासोन-तामार यानी एनगदी+ में हैं।” 3 यह सुनकर यहोशापात डर गया और उसने यहोवा की खोज करने की ठानी।+ इसलिए उसने पूरे यहूदा में उपवास का ऐलान किया। 4 फिर यहूदा के लोग यहोवा से मदद माँगने के लिए इकट्ठा हुए।+ वे यहोवा से सलाह करने यहूदा के सब शहरों से आए।

5 यहूदा और यरूशलेम के लोगों की मंडली यहोवा के भवन में नए आँगन के सामने इकट्ठा हुई। तब यहोशापात मंडली के सामने खड़ा हुआ 6 और उसने कहा:

“हे यहोवा, हमारे पुरखों के परमेश्‍वर, क्या स्वर्ग में तू ही परमेश्‍वर नहीं है?+ क्या राष्ट्रों के सब राज्यों पर तेरा ही अधिकार नहीं है?+ तेरे हाथ में शक्‍ति और ताकत है और कोई तेरे खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता।+ 7 हे हमारे परमेश्‍वर, क्या तूने अपनी प्रजा इसराएल के सामने इस देश से लोगों को खदेड़ नहीं दिया था? और क्या तूने यह देश अपने दोस्त अब्राहम के वंश के लिए हमेशा की जागीर बनाकर नहीं दे दिया था?+ 8 वे इस देश में बस गए और उन्होंने तेरे नाम की महिमा के लिए यहाँ एक पवित्र-स्थान बनाया+ और कहा, 9 ‘अगर हम तलवार चलने, कड़ी सज़ा पाने या महामारी या अकाल की वजह से संकट में पड़ जाएँ, तो हमें इस भवन के सामने और तेरे सामने खड़े होने दे (क्योंकि तेरा नाम इस भवन से जुड़ा है)+ और तुझे मदद के लिए पुकारने दे और तू हमारी सुने और हमें बचाए।’+ 10 अब अम्मोनी, मोआबी और सेईर के पहाड़ी प्रदेश+ के लोगों को देख। जब इसराएली मिस्र से निकले थे तो तूने उन्हें इन लोगों पर हमला करने की इजाज़त नहीं दी थी। इसराएलियों ने उनका नाश नहीं किया था और उनसे दूर चले गए थे।+ 11 देख, अब ये लोग उसका कैसा बदला दे रहे हैं, ये हमें इस जागीर से खदेड़ने आए हैं जो तूने हमें विरासत में दी है।+ 12 हे हमारे परमेश्‍वर, क्या तू उन्हें सज़ा नहीं देगा?+ हमारे पास इस विशाल सेना का मुकाबला करने की ताकत नहीं है जो हम पर हमला करने आयी है। और हम नहीं जानते कि हमें क्या करना चाहिए,+ हमारी आँखें तेरी ओर लगी हैं।”+

13 इस दौरान, यहूदा के सब आदमी अपनी पत्नियों, बच्चों,* यहाँ तक कि छोटे-छोटे बच्चों के साथ यहोवा के सामने खड़े थे।

14 तब उस मंडली के बीच यहजीएल पर यहोवा की पवित्र शक्‍ति आयी, जो जकरयाह का बेटा था। जकरयाह बनायाह का, बनायाह यीएल का और यीएल मत्तन्याह का बेटा था, जो आसाप के बेटों में से एक लेवी था। 15 यहजीएल ने कहा, “हे पूरे यहूदा और यरूशलेम के लोगो और हे राजा यहोशापात, ध्यान से सुनो! यहोवा तुमसे कहता है, ‘इस विशाल सेना से मत डरो और न ही खौफ खाओ क्योंकि यह लड़ाई तुम्हारी नहीं, परमेश्‍वर की है।+ 16 तुम कल उनसे युद्ध करने जाओ। वे सीस की तंग घाटी से आएँगे और तुम उन्हें घाटी के छोर पर यरुएल वीराने के सामने पाओगे। 17 तुम्हें यह लड़ाई लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी। तुम अपनी जगह खड़े रहना और देखना+ कि यहोवा कैसे तुम्हारा उद्धार करता है।*+ हे यहूदा और यरूशलेम, तुम मत डरना और न ही खौफ खाना।+ कल तुम उनसे युद्ध करने जाना और यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।’”+

18 यह सुनते ही यहोशापात ने ज़मीन की तरफ सिर झुकाकर दंडवत किया और पूरे यहूदा और यरूशलेम के लोगों ने यहोवा के सामने गिरकर यहोवा की उपासना की। 19 तब वे लेवी, जो कहातियों के वंशज+ और कोरहवंशी थे, खड़े हुए ताकि बुलंद आवाज़ में+ इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ करें।

20 अगले दिन सुबह वे जल्दी उठे और तकोआ के वीराने+ में गए। जब वे जा रहे थे तो यहोशापात खड़ा हुआ और कहने लगा, “यहूदा और यरूशलेम के लोगो, मेरी सुनो! तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा पर विश्‍वास रखो ताकि तुम मज़बूत खड़े रह सको।* उसके भविष्यवक्‍ताओं पर विश्‍वास रखो+ और तुम कामयाब होगे।”

21 यहोशापात ने लोगों से सलाह करने के बाद कुछ आदमियों को चुना ताकि वे यहोवा की तारीफ में गीत गाएँ।+ वे पवित्र पोशाक पहने, हथियारबंद सैनिकों के आगे-आगे चलते हुए यह गीत गाएँगे: “यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”+

22 जब वे खुशी-खुशी तारीफ के गीत गाने लगे तो यहोवा ने यहूदा पर धावा बोलनेवाले अम्मोन, मोआब और सेईर के पहाड़ी प्रदेश के लोगों पर पीछे से हमला करवाया और उन लोगों ने एक-दूसरे को मार डाला।+ 23 अम्मोनी और मोआबी लोग सेईर के पहाड़ी प्रदेश के लोगों पर टूट पड़े+ ताकि उन्हें नाश कर दें, उन्हें मिटा दें। सेईर के लोगों को नाश करने के बाद उन्होंने एक-दूसरे को नाश कर दिया।+

24 जब यहूदा के लोग वीराने में पहरे की मीनार तक पहुँचे+ तो उन्होंने वहाँ से देखा कि दुश्‍मनों की लाशें ज़मीन पर पड़ी हैं।+ कोई भी ज़िंदा नहीं बचा था। 25 तब यहोशापात और उसके लोग उन्हें लूटने के लिए वहाँ गए। उन्हें ढेर सारी चीज़ें, कपड़े और सुंदर-सुंदर चीज़ें मिलीं और वे लाशों से ये चीज़ें उतारने लगे। वे तब तक बटोरते रहे जब तक कि और न ले जा सके।+ लूट का इतना सारा माल था कि उन्हें बटोरने में तीन दिन लगे। 26 चौथे दिन वे सब बराका घाटी में इकट्ठा हुए और वहाँ उन्होंने यहोवा की तारीफ की।* इसीलिए उन्होंने उस जगह का नाम बराका* घाटी रखा+ और आज तक उसका नाम यही है।

27 इसके बाद यहूदा और यरूशलेम के सभी आदमी खुशियाँ मनाते हुए यरूशलेम लौट गए क्योंकि यहोवा ने उन्हें दुश्‍मनों पर जीत दिलायी थी।+ उनके आगे-आगे यहोशापात था। 28 वे तारोंवाले बाजे और सुरमंडल बजाते हुए+ और तुरहियाँ फूँकते हुए+ यरूशलेम आए और यहोवा के भवन गए।+ 29 जब सब देशों के राज्यों ने सुना कि यहोवा ने इसराएल के दुश्‍मनों से युद्ध किया है, तो परमेश्‍वर का खौफ उन सबमें समा गया।+ 30 इसलिए यहोशापात के राज में शांति बनी रही और उसका परमेश्‍वर उसे चारों तरफ के दुश्‍मनों से राहत देता रहा।+

31 यहोशापात यहूदा पर राज करता रहा। जब वह राजा बना तब वह 35 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 25 साल राज किया। उसकी माँ का नाम अजूबाह था जो शिलही की बेटी थी।+ 32 यहोशापात अपने पिता आसा के नक्शे-कदम पर चलता रहा।+ वह उस राह से नहीं भटका और उसने यहोवा की नज़र में सही काम किए।+ 33 लेकिन उसके राज के दौरान ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं+ और लोगों ने अपने पुरखों के परमेश्‍वर की खोज करने के लिए अब तक अपने दिल को तैयार नहीं किया था।+

34 यहोशापात की ज़िंदगी की बाकी कहानी यानी शुरू से लेकर आखिर तक का इतिहास हनानी+ के बेटे येहू+ के लेखनों में लिखा है। इन लेखनों को इसराएल के राजाओं की किताब में शामिल किया गया था। 35 इसके बाद यहूदा के राजा यहोशापात ने इसराएल के राजा अहज्याह के साथ संधि की। अहज्याह दुष्ट काम करता था।+ 36 यहोशापात ने तरशीश जानेवाले जहाज़+ बनाने के काम में उसके साथ साझेदारी की। और उन्होंने एस्योन-गेबेर+ में जहाज़ बनाए। 37 मगर एलीएज़ेर ने, जो मारेशा के रहनेवाले दोदावाहू का बेटा था, यहोशापात के खिलाफ यह भविष्यवाणी की: “यहोवा तेरे काम को नाकाम कर देगा क्योंकि तूने अहज्याह के साथ संधि की है।”+ इसलिए उनके जहाज़ टूटकर तहस-नहस हो गए+ और तरशीश नहीं जा सके।

21 फिर यहोशापात की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में उसके पुरखों की कब्र में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा यहोराम राजा बना।+ 2 यहोराम के भाई यानी यहोशापात के बेटे थे अजरयाह, यहीएल, जकरयाह, अजरयाह, मीकाएल और शपत्याह। ये सभी इसराएल के राजा यहोशापात के बेटे थे। 3 उनके पिता ने उन्हें तोहफे में बहुत सारा सोना, चाँदी और कीमती चीज़ें दीं, साथ ही यहूदा के किलेबंद शहर भी दिए,+ मगर यहोराम को उसने अपना राज सौंपा+ क्योंकि वह पहलौठा था।

4 जब यहोराम ने अपने पिता के राज की बागडोर हाथ में ली, तो उसने अपना दबदबा बनाए रखने के लिए अपने सब भाइयों को और इसराएल के कुछ हाकिमों को तलवार से मार डाला।+ 5 यहोराम 32 साल की उम्र में राजा बना और उसने यरूशलेम में रहकर आठ साल राज किया।+ 6 यहोराम ने इसराएल के राजाओं के तौर-तरीके अपना लिए,+ ठीक जैसे अहाब के घराने ने किया था क्योंकि उसकी शादी अहाब की बेटी से हुई थी।+ वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। 7 फिर भी यहोवा ने दाविद के घराने का नाश नहीं करना चाहा, क्योंकि उसने दाविद के साथ करार किया था+ कि उसका और उसके बेटों का दीया हमेशा जलता रहेगा।+

8 यहोराम के दिनों में एदोम ने यहूदा से बगावत की+ और फिर अपना एक राजा खड़ा किया।+ 9 इसलिए यहोराम और उसके सेनापति अपने सभी रथ लेकर उस पार गए। यहोराम ने रात के वक्‍त जाकर एदोमियों पर हमला किया, जो उसे और रथ-सेना के अधिकारियों को घेरे हुए थे और उन्हें हरा दिया। 10 इसके बाद भी एदोम ने यहूदा से बगावत करना नहीं छोड़ा और आज तक वह बगावत कर रहा है। उन्हीं दिनों लिब्ना+ ने भी यहूदा से बगावत की क्योंकि यहोराम ने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा को छोड़ दिया था।+ 11 उसने यहूदा के पहाड़ों पर ऊँची जगह भी बनवायीं+ ताकि यरूशलेम के लोगों को परमेश्‍वर से विश्‍वासघात* करने के लिए उकसाए। वह यहूदा को बहकाकर परमेश्‍वर से दूर ले गया।

12 कुछ समय बाद उसे भविष्यवक्‍ता एलियाह+ का लिखा यह संदेश मिला: “तेरे पुरखे दाविद का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘तू अपने पिता यहोशापात+ और यहूदा के राजा आसा के नक्शे-कदम पर नहीं चला।+ 13 इसके बजाय, तूने इसराएल के राजाओं के तौर-तरीके अपना लिए+ और यहूदा और यरूशलेम के लोगों को परमेश्‍वर से विश्‍वासघात* करने के लिए उकसाया,+ ठीक जैसे अहाब के घराने ने विश्‍वासघात किया।+ तूने अपने पिता के घराने को, अपने भाइयों तक को मार डाला+ जो तुझसे अच्छे थे। 14 इसलिए यहोवा तेरे लोगों, तेरे बेटों और तेरी पत्नियों पर भारी कहर ढाएगा और तेरी सारी दौलत नाश कर देगा। 15 और तू कई बीमारियों से पीड़ित होगा, तुझे अंतड़ियों की बीमारी भी लग जाएगी और दिनों-दिन यह बीमारी इतनी बढ़ जाएगी कि तेरी अंतड़ियाँ बाहर निकल आएँगी।’”

16 फिर यहोवा ने पलिश्‍तियों+ को और उन अरबी लोगों+ को, जो इथियोपिया के लोगों के पास रहते थे, यहोराम पर हमला करने के लिए भड़काया।+ 17 इसलिए उन्होंने यहूदा पर हमला किया और वे देश में घुसकर राजमहल से वह सारी दौलत उठा ले गए जो उन्हें मिली थी।+ वे यहोराम के बेटों और पत्नियों को भी ले गए, सिर्फ उसका सबसे छोटा बेटा यहोआहाज*+ उसके पास रह गया। 18 यह सब होने के बाद, यहोवा ने उसे अंतड़ियों की एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित किया।+ 19 कुछ समय बाद, दो साल बीतने पर बीमारी की वजह से उसकी अंतड़ियाँ बाहर निकल आयीं। इस बीमारी में उसने बहुत दर्द झेला और फिर वह मर गया। उसके लोगों ने उसके सम्मान में आग नहीं जलायी, जैसे उसके पुरखों के लिए जलायी थी।+ 20 यहोराम 32 साल की उम्र में राजा बना था और उसने यरूशलेम में रहकर आठ साल राज किया था। जब उसकी मौत हुई तो किसी को दुख नहीं हुआ। उन्होंने उसे दाविदपुर में दफनाया,+ मगर राजाओं की कब्र में नहीं।+

22 फिर यरूशलेम के लोगों ने यहोराम के सबसे छोटे बेटे अहज्याह को उसकी जगह राजा बनाया, क्योंकि अरबी लोगों के साथ आए लुटेरे-दल ने उसके सभी बड़े बेटों को मार डाला था।+ इस तरह यहोराम का बेटा अहज्याह यहूदा का राजा बना।+ 2 उस वक्‍त वह 22 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर एक साल राज किया। उसकी माँ का नाम अतल्याह+ था जो ओम्री+ की पोती* थी।

3 अहज्याह ने अहाब के घराने के तौर-तरीके अपना लिए+ क्योंकि उसकी माँ उसे दुष्ट काम करने की सलाह देती थी। 4 वह अहाब के घराने की तरह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा, क्योंकि उसके पिता की मौत के बाद अहाब के घराने के लोग उसके सलाहकार बन गए। इस वजह से वह बरबाद हो गया। 5 उनकी सलाह मानकर वह इसराएल के राजा अहाब के बेटे यहोराम के साथ सीरिया के राजा हजाएल+ से युद्ध करने रामोत-गिलाद+ गया। उस युद्ध में तीरंदाज़ों ने यहोराम को घायल कर दिया। 6 वह ठीक होने के लिए यिजरेल+ लौटा क्योंकि रामाह में सीरिया के राजा हजाएल के सैनिकों ने उसे घायल कर दिया था।+

अहाब का बेटा यहोराम+ ज़ख्मी हो गया* था, इसलिए उसे देखने के लिए यहूदा का राजा अहज्याह* जो यहोराम+ का बेटा था, यिजरेल गया।+ 7 यहोराम के पास जाना अहज्याह की मौत की वजह बन गया। यह सब परमेश्‍वर की तरफ से हुआ था। जब वह यहोराम के पास गया तो वह और यहोराम, निमशी के पोते* येहू से मिलने गए।+ यहोवा ने येहू का अभिषेक किया था ताकि वह अहाब के घराने को मिटा दे।+ 8 जब येहू अहाब के घराने का नाश करने लगा, तो उसने यहूदा के हाकिमों और अहज्याह के भतीजों को देखा, जो अहज्याह के मंत्री थे और उसने उनको मार डाला।+ 9 फिर येहू अहज्याह को ढूँढ़ने लगा। उसके आदमियों ने अहज्याह को सामरिया में पकड़ लिया जहाँ वह छिपा था। वे उसे येहू के पास ले आए। उन्होंने उसे मार डाला और दफना दिया+ क्योंकि उन्होंने कहा, “यह यहोशापात का पोता है जो पूरे दिल से यहोवा की खोज करता था।”+ अहज्याह के घराने में ऐसा कोई नहीं था जो उसकी राजगद्दी सँभाल सके।

10 जब अहज्याह की माँ अतल्याह+ ने देखा कि उसका बेटा मर गया है, तो उसने यहूदा के शाही खानदान के सभी वारिसों को मार डाला।*+ 11 लेकिन राजा की बेटी यहोशावत ने अहज्याह के बेटे यहोआश+ को बचा लिया। उसने यहोआश को राजा के बेटों में से चुपके से उठा लिया जिन्हें अतल्याह मार डालनेवाली थी। यहोशावत ने यहोआश और उसकी धाई को सोने के कमरे में रखा। राजा यहोराम+ की बेटी यहोशावत ने किसी तरह यहोआश को अतल्याह से छिपाए रखा, इसलिए वह उसे नहीं मार सकी।+ (यहोशावत, याजक यहोयादा+ की पत्नी और अहज्याह की एक बहन थी।) 12 यहोआश छ: साल तक उनके साथ रहा। उसे सच्चे परमेश्‍वर के भवन में छिपाकर रखा गया। इस दौरान अतल्याह देश पर राज करती रही।

23 सातवें साल यहोयादा ने हिम्मत से काम लिया और सौ-सौ की टुकड़ियों के इन अधिकारियों के साथ एक करार किया:+ यरोहाम का बेटा अजरयाह, यहोहानान का बेटा इश्‍माएल, ओबेद का बेटा अजरयाह, अदायाह का बेटा मासेयाह और जिक्री का बेटा एलीशापात। 2 फिर वे पूरे यहूदा में गए और उन्होंने यहूदा के सब शहरों से लेवियों+ को और इसराएल के पिताओं के घरानों के मुखियाओं को इकट्ठा किया। जब वे यरूशलेम आए, 3 तो पूरी मंडली ने सच्चे परमेश्‍वर के भवन में राजा के साथ एक करार किया।+ इसके बाद यहोयादा ने उनसे कहा,

“देखो! राजा का बेटा अब राज करेगा, ठीक जैसे यहोवा ने दाविद के बेटों के बारे में वादा किया था।+ 4 तुम्हें यह करना होगा: सब्त के दिन जो लेवी और याजक काम पर होंगे+ उनमें से एक-तिहाई आदमी दरबान होंगे,+ 5 एक-तिहाई आदमी राजमहल के पास तैनात होंगे+ और एक-तिहाई आदमी ‘नींव के फाटक’ पर तैनात होंगे। और बाकी लोग यहोवा के भवन के आँगनों में होंगे।+ 6 मंदिर में सेवा करनेवाले याजकों और लेवियों को छोड़ किसी को भी यहोवा के भवन के अंदर आने मत देना।+ सिर्फ याजकों और लेवियों को आने देना क्योंकि वे पवित्र लोगों का दल हैं और बाकी सब लोग यहोवा की तरफ अपना फर्ज़ निभाएँगे। 7 तुम लेवी अपने हाथों में हथियार लिए राजा के चारों तरफ तैनात रहना और उसकी रक्षा करना। अगर कोई भवन के अंदर आए तो उसे मार डालना। राजा जहाँ कहीं जाए* तुम उसके साथ रहना।”

8 लेवियों और पूरे यहूदा के लोगों ने ठीक वैसा ही किया जैसा यहोयादा याजक ने उन्हें आदेश दिया था। सब्त के दिन हर अधिकारी ने अपने दल के सभी आदमियों को लिया। जिन आदमियों की सेवा करने की बारी थी, उनके साथ-साथ उन आदमियों को भी लिया गया जिनकी बारी नहीं थी,+ क्योंकि यहोयादा याजक ने किसी भी दल को छुट्टी नहीं दी थी।+ 9 फिर यहोयादा याजक ने सौ-सौ की टुकड़ियों के अधिकारियों+ को भाले, छोटी ढालें* और गोलाकार ढालें दीं। ये हथियार राजा दाविद के थे+ जो सच्चे परमेश्‍वर के भवन में रखे हुए थे।+ 10 उसने सब लोगों को, जो हाथ में हथियार लिए हुए थे, भवन के दाएँ कोने से लेकर बाएँ कोने तक तैनात किया। उसने उन्हें वेदी और भवन के पास यानी राजा के चारों तरफ खड़ा करवाया। 11 फिर वे राजा के बेटे+ को बाहर ले आए और उसे ताज पहनाया और उसके ऊपर साक्षी-पत्र*+ रखा और उसे राजा बनाया। यहोयादा और उसके बेटों ने उसका अभिषेक किया। फिर वे कहने लगे, “राजा की जय हो! राजा की जय हो!”+

12 जब अतल्याह ने लोगों के दौड़ने और राजा की जयजयकार करने का शोर सुना, तो वह फौरन यहोवा के भवन में वहाँ आयी जहाँ लोगों की भीड़ इकट्ठा थी।+ 13 उसने देखा कि राजा भवन के प्रवेश में अपने खंभे के पास खड़ा है और उसके साथ हाकिम+ और तुरही फूँकनेवाले भी हैं। देश के सभी लोग खुशियाँ मना रहे हैं,+ तुरहियाँ फूँकी जा रही हैं और गायक साज़ बजाते हुए जश्‍न मनाने में अगुवाई कर रहे हैं। यह देखते ही अतल्याह ने अपने कपड़े फाड़े और वह चिल्लाने लगी, “यह साज़िश है! साज़िश!” 14 तब यहोयादा याजक ने सौ-सौ की टुकड़ियों के अधिकारियों को यह कहकर बाहर भेजा, “इस औरत को सैनिकों के बीच से बाहर ले जाओ। अगर कोई इसके पीछे-पीछे जाए तो उसे तलवार से मार डालो!” याजक ने उनसे कहा था, “उस औरत को यहोवा के भवन में घात मत करना।” 15 इसलिए वे उसे पकड़कर ले गए और जब वह महल के घोड़ा फाटक के प्रवेश के पास पहुँची, तो उन्होंने फौरन उसे मार डाला।

16 फिर यहोयादा ने अपने और राजा और लोगों के बीच एक करार किया कि वे यहोवा के लोग बने रहेंगे।+ 17 इसके बाद सब लोगों ने जाकर बाल का मंदिर ढा दिया+ और उसकी वेदियाँ और मूरतें चूर-चूर कर दीं+ और वेदियों के सामने ही बाल के पुजारी मत्तान को मार डाला।+ 18 फिर यहोयादा ने यहोवा के भवन की निगरानी का ज़िम्मा याजकों और लेवियों को सौंपा। दाविद ने इन्हें अलग-अलग दलों में बाँटकर यहोवा के भवन की ज़िम्मेदारी सौंपी थी ताकि वे यहोवा के लिए होम-बलियाँ चढ़ाएँ,+ ठीक जैसे मूसा के कानून में लिखा है+ और दाविद के निर्देश के मुताबिक खुशियाँ मनाएँ और गीत गाएँ। 19 इसके अलावा, यहोयादा ने यहोवा के भवन के फाटकों पर पहरेदारों को तैनात किया+ ताकि ऐसा कोई भी इंसान अंदर न जा सके जो किसी भी तरह से अशुद्ध है। 20 फिर उसने सौ-सौ की टुकड़ियों के अधिकारियों,+ रुतबेदार आदमियों, लोगों के शासकों और देश के सभी लोगों को साथ लिया और वे सब राजा को यहोवा के भवन से बाहर ले गए। वे ऊपरी फाटक से राजमहल के अंदर आए और उन्होंने राजा को राजगद्दी+ पर बिठाया।+ 21 देश के सभी लोगों ने खुशियाँ मनायीं और शहर में शांति छा गयी क्योंकि अतल्याह को तलवार से मार डाला गया था।

24 यहोआश जब राजा बना तब वह सात साल का था+ और उसने 40 साल यरूशलेम में रहकर राज किया। उसकी माँ का नाम सिब्याह था जो बेरशेबा की रहनेवाली थी।+ 2 जब तक याजक यहोयादा ज़िंदा था तब तक यहोआश यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा।+ 3 यहोयादा ने दो औरतों से उसकी शादी करायी और उसके कई बेटे-बेटियाँ हुए।

4 बाद में यहोआश के दिल में यह इच्छा जागी कि वह यहोवा के भवन की मरम्मत करे।+ 5 इसलिए उसने याजकों और लेवियों को इकट्ठा किया और उनसे कहा, “यहूदा के शहरों में जाओ और पूरे इसराएल से पैसा इकट्ठा करो ताकि हर साल तुम्हारे परमेश्‍वर के भवन की मरम्मत की जा सके।+ तुम्हें इस काम के लिए फौरन कदम उठाना है।” मगर लेवियों ने फौरन कदम नहीं उठाया।+ 6 इसलिए राजा ने प्रधान याजक यहोयादा को बुलाया और उससे कहा,+ “तूने लेवियों से क्यों नहीं पूछा कि यहूदा और यरूशलेम से पवित्र कर लाने का काम क्यों नहीं हुआ, जिसकी आज्ञा यहोवा के सेवक मूसा ने दी थी?+ इसराएल की मंडली से उस तंबू के लिए पवित्र कर क्यों नहीं इकट्ठा किया गया जिसमें गवाही का संदूक रखा है?+ 7 उस दुष्ट औरत अतल्याह के बेटे+ सच्चे परमेश्‍वर यहोवा के भवन में ज़बरदस्ती घुस गए थे+ और उन्होंने वहाँ की सारी पवित्र चीज़ें ले जाकर बाल देवताओं के लिए इस्तेमाल कर दी थीं।” 8 फिर राजा के हुक्म पर एक पेटी+ तैयार की गयी और उसे यहोवा के भवन के फाटक के बाहर रखा गया।+ 9 इसके बाद पूरे यहूदा और यरूशलेम में ऐलान किया गया कि यहोवा के लिए वह पवित्र कर+ लाया जाए जिसकी आज्ञा सच्चे परमेश्‍वर के सेवक मूसा ने वीराने में इसराएल को दी थी। 10 सारे हाकिम और सब लोग बहुत खुश हुए+ और वे दान लाकर पेटी में डालते रहे। वे तब तक लाते थे जब तक कि पेटी भर नहीं जाती।*

11 जब भी लेवी देखते कि पेटी भर गयी है, वे उसे राजा के पास ले जाते और राजा का सचिव और प्रधान याजक का सहायक आकर उसे खाली करते।+ फिर वे पेटी को वापस उसकी जगह रख देते। वे ऐसा हर दिन करते थे और उन्होंने बहुत सारा पैसा जमा किया। 12 फिर राजा और यहोयादा वह पैसा उन आदमियों को देते जो यहोवा के भवन के काम की देखरेख करते थे। और काम की देखरेख करनेवाले पैसे से यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिए पत्थर काटनेवालों और कारीगरों को काम पर लगाते थे।+ साथ ही, वे लोहे और ताँबे का काम करनेवालों को भी यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिए लगाते थे। 13 काम की देखरेख करनेवालों ने काम शुरू करवा दिया और उनकी निगरानी में मरम्मत का काम चलता रहा। आखिरकार उन्होंने परमेश्‍वर के भवन को मज़बूत बनाकर उसे बिलकुल वैसा ही बना दिया जैसा पहले था। 14 जैसे ही उन्होंने काम पूरा कर दिया, बचा हुआ पैसा लाकर राजा और यहोयादा को दे दिया और उन्होंने यह पैसा यहोवा के भवन के लिए चीज़ें, सेवा में और बलि चढ़ाने में इस्तेमाल होनेवाली चीज़ें और सोने और चाँदी के प्याले और दूसरी चीज़ें बनाने में लगाया।+ जब तक यहोयादा ज़िंदा था तब तक वे यहोवा के भवन में नियमित तौर पर होम-बलियाँ चढ़ाते थे।+

15 फिर यहोयादा की मौत हो गयी। वह 130 साल का था। उसने एक लंबी और खुशहाल ज़िंदगी जी थी। 16 उन्होंने उसे दाविदपुर में राजाओं की कब्र में दफनाया+ क्योंकि उसने इसराएल में भले काम किए थे,+ खासकर सच्चे परमेश्‍वर और उसके भवन के मामले में।

17 यहोयादा की मौत के बाद, यहूदा के हाकिम राजा के पास आए और उसे झुककर प्रणाम किया और राजा ने उनकी बात मानी। 18 लोगों ने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा का भवन छोड़ दिया और वे पूजा-लाठों* और मूरतों की सेवा करने लगे। उनके इस पाप की वजह से परमेश्‍वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़क उठा। 19 यहोवा उनके पास भविष्यवक्‍ताओं को भेजता रहा ताकि वे उन्हें उसके पास लौटा लाएँ। वे उन लोगों को चेतावनी* देते रहे मगर उन्होंने सुनने से इनकार कर दिया।+

20 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति यहोयादा+ याजक के बेटे जकरयाह पर आयी और उसने एक ऊँची जगह पर खड़े होकर लोगों से कहा, “सच्चे परमेश्‍वर ने कहा है, ‘तुम लोग क्यों यहोवा की आज्ञाएँ तोड़ते हो? तुम कामयाब नहीं होगे! तुम लोगों ने यहोवा को छोड़ दिया है इसलिए वह भी तुम्हें छोड़ देगा।’”+ 21 मगर उन्होंने उसके खिलाफ साज़िश की+ और राजा के हुक्म पर उसे यहोवा के भवन के आँगन में पत्थरों से मार डाला।+ 22 इस तरह राजा यहोआश वह प्यार* भूल गया जो उसके पिता* यहोयादा ने उससे किया था। उसने यहोयादा के बेटे को मार डाला। जकरयाह ने मरते वक्‍त कहा, “यहोवा यह देखे और तुझसे लेखा ले।”+

23 साल की शुरूआत में सीरिया की सेना यहोआश से लड़ने आयी और यहूदा और यरूशलेम पर हमला कर दिया।+ उन्होंने लोगों के सभी हाकिमों+ को मार डाला और सारा माल लूटकर दमिश्‍क के राजा को भेज दिया। 24 सीरिया की सेना छोटी थी, फिर भी यहोवा ने यहूदा की विशाल सेना को उसके हवाले कर दिया+ क्योंकि उन्होंने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा को छोड़ दिया था। इसलिए उन्होंने* यहोआश को सज़ा दी। 25 यहोआश को बहुत-से ज़ख्म लगे थे।* जब सीरिया के लोग यहोआश को छोड़कर चले गए, तो उसके अपने सेवकों ने उसके खिलाफ साज़िश रची क्योंकि उसने यहोयादा याजक के बेटों* का खून बहाया था।+ उन्होंने उसी के बिस्तर पर उसे मार डाला।+ उसे दाविदपुर में दफनाया गया,+ मगर राजाओं की कब्र में नहीं।+

26 उसके खिलाफ साज़िश करनेवाले थे,+ जाबाद जो अम्मोनी औरत शिमात का बेटा था और यहोजाबाद जो मोआबी औरत शिमरित का बेटा था। 27 यहोआश के बेटों के बारे में, उसके खिलाफ जो संदेश सुनाए गए थे+ उनके बारे में और सच्चे परमेश्‍वर के भवन की मरम्मत*+ का पूरा ब्यौरा राजाओं की किताब के लेखनों* में लिखा है। यहोआश की जगह उसका बेटा अमज्याह राजा बना।

25 अमज्याह जब राजा बना तब वह 25 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 29 साल राज किया। उसकी माँ का नाम यहोअद्दान था जो यरूशलेम की रहनेवाली थी।+ 2 अमज्याह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा, मगर पूरे दिल से नहीं। 3 जैसे ही अमज्याह ने राज पर अपनी पकड़ मज़बूत की, उसने अपने उन सेवकों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता यहोआश का कत्ल किया था।+ 4 मगर उसने उन सेवकों के बेटों को नहीं मारा क्योंकि उसने मूसा के कानून की किताब में लिखी यहोवा की यह आज्ञा मानी: “बेटों के पाप के लिए पिताओं को न मार डाला जाए और न ही पिताओं के पाप के लिए बेटों को मार डाला जाए। जो पाप करता है उसके पाप के लिए उसी को मौत की सज़ा दी जाए।”+

5 अमज्याह ने यहूदा और बिन्यामीन के लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें पिताओं के घरानों के मुताबिक, हज़ारों और सैकड़ों की टुकड़ियों के प्रधानों की निगरानी में खड़ा किया।+ उसने 20 साल और उससे ज़्यादा उम्र के आदमियों का नाम लिखवाया+ और पाया कि वे 3,00,000 योद्धा थे। वे तालीम पाए हुए सैनिक थे और भाले और बड़ी ढालें लेकर युद्ध करने के काबिल थे। 6 इनके अलावा, उसने इसराएल के 1,00,000 वीर योद्धाओं को 100 तोड़े* चाँदी देकर किराए पर बुलाया। 7 मगर सच्चे परमेश्‍वर के एक सेवक ने आकर उससे कहा, “हे राजा, तू इसराएल की सेना को अपने साथ मत आने दे क्योंकि यहोवा इसराएल के साथ नहीं है,+ वह एप्रैमियों में से किसी के साथ नहीं है। 8 युद्ध के लिए तू ही जा और हिम्मत से लड़। अगर तू उन्हें ले जाएगा तो सच्चा परमेश्‍वर तुझे दुश्‍मन के सामने गिरा देगा, क्योंकि परमेश्‍वर के पास मदद करने और गिराने की भी ताकत है।”+ 9 अमज्याह ने सच्चे परमेश्‍वर के सेवक से कहा, “मगर उन 100 तोड़ों का क्या, जो मैंने इसराएल की टुकड़ियों को दे दिए हैं?” सच्चे परमेश्‍वर के सेवक ने कहा, “यहोवा के पास तुझे उससे भी ज़्यादा देने की ताकत है।”+ 10 तब अमज्याह ने एप्रैम से आयी टुकड़ियों को वापस उनकी जगह भेज दिया। मगर उन सैनिकों को यहूदा पर बहुत गुस्सा आया और वे तमतमाते हुए अपनी जगह लौट गए।

11 फिर अमज्याह हिम्मत जुटाकर अपनी टुकड़ियों को लेकर नमक घाटी+ गया और उसने सेईर के 10,000 आदमियों को मार डाला।+ 12 यहूदा के आदमियों ने 10,000 आदमियों को ज़िंदा पकड़ा और चट्टान के ऊपर ले गए और वहाँ से उन्हें नीचे गिरा दिया। वे सब चूर-चूर हो गए। 13 मगर जिन टुकड़ियों को अमज्याह ने अपने साथ युद्ध में नहीं आने दिया और वापस भेज दिया,+ उन्होंने सामरिया+ से लेकर बेत-होरोन+ तक यहूदा के शहरों को लूट लिया और 3,000 लोगों को मार डाला और खूब सारा माल लूटकर ले गए।

14 मगर जब अमज्याह एदोमियों को मार डालने के बाद लौटा, तो वह अपने साथ सेईर के लोगों के देवताओं की मूरतें ले आया और उन्हें अपना देवता बना लिया।+ वह उनके आगे दंडवत करने लगा और बलिदान चढ़ाने लगा ताकि उनका धुआँ उठे। 15 इस पर यहोवा का क्रोध अमज्याह पर भड़क उठा और उसने एक भविष्यवक्‍ता को उसके पास भेजा। भविष्यवक्‍ता ने उससे कहा, “तू उन देवताओं के पीछे क्यों जाता है जो अपने लोगों को तेरे हाथ से बचा नहीं सके?”+ 16 भविष्यवक्‍ता बात कर ही रहा था कि राजा ने उसे बीच में टोककर कहा, “तुझे किसने राजा का सलाहकार बनाया है?+ चुप हो जा,+ वरना तू मार डाला जाएगा!” तब भविष्यवक्‍ता यह कहकर चुप हो गया, “मैं जानता हूँ कि परमेश्‍वर ने तेरा नाश करने का फैसला किया है क्योंकि तूने यह काम किया है और मेरी सलाह नहीं मानी।”+

17 यहूदा के राजा अमज्याह ने अपने सलाहकारों से बात करने के बाद, अपने दूतों के हाथ इसराएल के राजा यहोआश को (जो यहोआहाज का बेटा और येहू का पोता था) यह संदेश भेजा: “युद्ध के मैदान में आ, हम एक-दूसरे से मुकाबला* करें।”+ 18 इसराएल के राजा यहोआश ने यहूदा के राजा अमज्याह को यह जवाब भेजा: “लबानोन के काँटेदार पौधे ने लबानोन के देवदार को एक संदेश भेजा, ‘अपनी बेटी का हाथ मेरे बेटे के हाथ में दे दे।’ मगर लबानोन का एक जंगली जानवर वहाँ से गुज़रा और उसने काँटेदार पौधे को रौंद डाला। 19 तू कहता है, “देखा, मैंने* एदोम को हरा दिया है!”+ तेरा मन घमंड से फूल गया है, तू अपनी वाह-वाही चाहता है। मगर अब तू अपने महल में ही रह। क्यों तू बेकार में मुसीबत को दावत दे रहा है? खुद तो डूबेगा ही, साथ में पूरे यहूदा को भी ले डूबेगा।”

20 मगर अमज्याह ने यहोआश की बात नहीं मानी।+ सच्चे परमेश्‍वर की यही मरज़ी थी कि वे दुश्‍मनों के हाथ में कर दिए जाएँ+ क्योंकि वे एदोम के देवताओं के पीछे चलने लगे थे।+ 21 इसलिए इसराएल का राजा यहोआश, यहूदा के राजा अमज्याह से युद्ध करने निकला और उनका मुकाबला बेत-शेमेश+ में हुआ जो यहूदा के इलाके में है। 22 इसराएल ने यहूदा को हरा दिया और यहूदा के सभी लोग अपने-अपने घर* भाग गए। 23 इसराएल के राजा यहोआश ने बेत-शेमेश में यहूदा के राजा अमज्याह को पकड़ लिया, जो यहोआश का बेटा और यहोआहाज* का पोता था। यहोआश अमज्याह को पकड़कर यरूशलेम ले आया और वहाँ की शहरपनाह का एक हिस्सा तोड़ दिया। उसने एप्रैम फाटक+ से लेकर ‘कोनेवाले फाटक’+ तक का 400 हाथ* लंबा हिस्सा ढा दिया। 24 यहोआश ने सच्चे परमेश्‍वर के भवन से सारा सोना-चाँदी और दूसरा सामान लूट लिया, जो ओबेद-एदोम की देखरेख में था। उसने राजमहल के खज़ानों से भी सारा सोना-चाँदी और दूसरा सामान लूट लिया+ और कुछ लोगों को बंदी बना लिया। फिर वह सामरिया लौट गया।

25 इसराएल के राजा यहोआहाज के बेटे यहोआश+ की मौत के बाद यहूदा का राजा अमज्याह+ (जो यहोआश का बेटा था) 15 साल और जीया।+ 26 अमज्याह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, शुरू से लेकर आखिर तक का इतिहास, यहूदा और इसराएल के राजाओं की किताब में लिखा है। 27 जब से अमज्याह ने यहोवा के पीछे चलना छोड़ दिया, तब से यरूशलेम में उसके दुश्‍मन उसके खिलाफ साज़िश करने लगे,+ इसलिए वह लाकीश भाग गया। मगर उसके दुश्‍मनों ने अपने आदमियों को लाकीश भेजा और उसे वहाँ मरवा डाला। 28 वे उसकी लाश घोड़ों पर लादकर ले आए और यहूदा के शहर में उसके पुरखों की कब्र में दफना दी।

26 फिर यहूदा के सब लोगों ने अमज्याह के बेटे उज्जियाह+ को उसकी जगह राजा बनाया। उस वक्‍त उज्जियाह 16 साल का था।+ 2 जब राजा* की मौत हो गयी* तो उसने एलत+ को फिर से बनाया और उसे वापस यहूदा के अधिकार में कर दिया।+ 3 उज्जियाह+ जब राजा बना तब वह 16 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 52 साल राज किया। उसकी माँ का नाम यकोल्याह था जो यरूशलेम की रहनेवाली थी।+ 4 उज्जियाह अपने पिता अमज्याह की तरह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा।+ 5 जकरयाह के दिनों में वह परमेश्‍वर की खोज करता रहा। जकरयाह ने ही उसे सच्चे परमेश्‍वर का डर मानना सिखाया था। जब तक उज्जियाह सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की खोज करता रहा, तब तक परमेश्‍वर की आशीष से वह फलता-फूलता रहा।+

6 वह पलिश्‍तियों से लड़ने गया+ और गत,+ यब्ने+ और अशदोद+ की शहरपनाहों में छेद करके उन शहरों में घुस गया और उसने उन पर कब्ज़ा कर लिया। फिर उसने अशदोद के इलाके में और पलिश्‍तियों के इलाके में शहर बनाए। 7 सच्चा परमेश्‍वर उसे पलिश्‍तियों, गूरबाल में रहनेवाले अरबी लोगों+ और मऊनी लोगों पर जीत हासिल करने में मदद देता रहा। 8 अम्मोनी लोग+ उज्जियाह को नज़राना देने लगे। उसकी शोहरत दूर मिस्र तक फैल गयी क्योंकि वह बहुत ताकतवर हो गया था। 9 इसके अलावा, उज्जियाह ने यरूशलेम के ‘कोनेवाले फाटक’+ के पास, ‘घाटी के फाटक’+ के पास और पुश्‍ते के पास मज़बूत मीनारें खड़ी कीं।+ 10 उसने वीराने में भी मीनारें+ खड़ी कीं और बहुत-से कुंड खुदवाए* (क्योंकि उसके पास बड़ी तादाद में मवेशी थे)। उसने शफेलाह और मैदान में* भी मीनारें बनवायीं और कुंड खुदवाए। पहाड़ों पर और करमेल में उसके किसान और अंगूरों के बागों के माली थे, क्योंकि वह खेती-बाड़ी का बड़ा शौकीन था।

11 उज्जियाह की एक मज़बूत सेना भी थी जो हथियारों से लैस थी। उन्हें अलग-अलग दलों में बाँटा गया था और इसी कायदे से वे युद्ध में जाते थे। राज-सचिव+ यीएल और अधिकारी मासेयाह ने उनकी गिनती की और उनका नाम लिखवाया था।+ वे दोनों राजा के एक हाकिम हनन्याह की कमान के नीचे काम करते थे। 12 राजा के वीर योद्धाओं के सेनापति, पिताओं के घरानों के मुखिया थे और उनकी कुल गिनती 2,600 थी। 13 और उनकी कमान के नीचे 3,07,500 सैनिक थे जो युद्ध के लिए तैयार थे। राजा की तरफ से दुश्‍मनों से लड़नेवाली यह सेना बहुत ताकतवर थी।+ 14 उज्जियाह ने अपनी पूरी सेना को ढालों, बरछों,+ टोपों, बख्तर,+ तीर-कमानों और गोफन के पत्थरों से लैस कराया।+ 15 इतना ही नहीं, उसने यरूशलेम में कुशल कारीगरों से युद्ध के यंत्र बनवाए थे। ये यंत्र मीनारों+ पर और शहरपनाहों के कोनों पर रखे गए थे और इनसे तीर छोड़े जाते और बड़े-बड़े पत्थर फेंके जाते थे। उज्जियाह की शोहरत दूर-दूर तक फैल गयी क्योंकि उसे बहुत मदद मिली थी और वह काफी ताकतवर हो गया था।

16 मगर जैसे ही वह ताकतवर हो गया, उसका मन घमंड से फूल उठा और यह उसकी बरबादी का कारण बन गया। वह धूप की वेदी पर धूप जलाने के लिए यहोवा के मंदिर में घुस गया और ऐसा करके उसने अपने परमेश्‍वर यहोवा के साथ विश्‍वासघात किया।+ 17 जब वह अंदर गया तो फौरन अजरयाह याजक और यहोवा के 80 और दिलेर याजक उसके पीछे-पीछे गए। 18 उन्होंने राजा उज्जियाह को रोकते हुए कहा, “उज्जियाह, यहोवा के लिए धूप जलाना तेरा काम नहीं है!+ यह काम सिर्फ याजकों का है क्योंकि वे हारून के वंशज हैं+ और उन्हें पवित्र किया गया है। तू पवित्र-स्थान से बाहर चला जा, तूने विश्‍वासघात किया है। इस काम के लिए यहोवा परमेश्‍वर से तुझे सम्मान नहीं मिलेगा।”

19 मगर उज्जियाह, जिसके हाथ में धूपदान था, उन याजकों पर भड़क उठा।+ वह याजकों पर गुस्सा कर ही रहा था कि तभी उसके माथे पर कोढ़+ फूट निकला। यह सब यहोवा के भवन में, धूप की वेदी के पास याजकों के सामने हुआ। 20 प्रधान याजक अजरयाह और बाकी सब याजकों ने देखा कि उसके माथे पर कोढ़ हो गया है! वे उसे फौरन वहाँ से बाहर ले जाने लगे और वह खुद भी जल्दी करने लगा, क्योंकि यहोवा ने उसे कोढ़ी बना दिया।

21 राजा उज्जियाह अपनी मौत तक कोढ़ी रहा। वह एक अलग घर में रहने लगा+ क्योंकि उसे यहोवा के भवन में जाने की इजाज़त नहीं थी। उसके बेटे योताम ने महल की बागडोर सँभाली और वह देश के लोगों का न्याय करता था।+

22 उज्जियाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, शुरू से लेकर आखिर तक का इतिहास आमोज के बेटे भविष्यवक्‍ता यशायाह ने दर्ज़ किया था।+ 23 फिर उज्जियाह की मौत हो गयी* और उसे उसके पुरखों की कब्र में दफनाया गया, मगर उसे राजाओं की कब्र की पासवाली ज़मीन में दफनाया गया क्योंकि उन्होंने कहा, “वह कोढ़ी है।” उसकी जगह उसका बेटा योताम+ राजा बना।

27 योताम+ जब राजा बना तब वह 25 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 16 साल राज किया। उसकी माँ का नाम यरूशा था जो सादोक की बेटी थी।+ 2 योताम अपने पिता उज्जियाह की तरह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा।+ उसके पिता और उसमें यही फर्क था कि वह अपने पिता की तरह ज़बरदस्ती यहोवा के मंदिर में नहीं घुसा।+ मगर लोग अब भी बुरे काम करते थे। 3 उसने यहोवा के भवन का ऊपरी फाटक बनवाया+ और ओपेल की शहरपनाह पर काफी काम करवाया।+ 4 उसने यहूदा के पहाड़ी प्रदेश+ में भी शहर बनवाए+ और जंगलों में किले+ और मीनारें बनवायीं।+ 5 उसने अम्मोनियों के राजा से युद्ध किया+ और आखिरकार उन्हें हरा दिया, इसलिए अम्मोनियों ने उस साल उसे 100 तोड़े* चाँदी और दस-दस हज़ार कोर* गेहूँ और जौ दिए। अम्मोनियों ने दूसरे और तीसरे साल भी उसे यह सब दिया।+ 6 इस तरह योताम दिनों-दिन ताकतवर होता गया, क्योंकि उसने अपने परमेश्‍वर यहोवा की राहों पर चलने की ठान ली थी।

7 योताम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो युद्ध किए, उनके बारे में और उसके चालचलन के बारे में इसराएल और यहूदा के राजाओं की किताब में लिखा है।+ 8 जब वह राजा बना तब वह 25 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 16 साल राज किया।+ 9 फिर योताम की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर+ में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा आहाज राजा बना।+

28 आहाज+ जब राजा बना तब वह 20 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 16 साल राज किया। उसने ऐसे काम नहीं किए जो यहोवा की नज़र में सही थे, जैसे उसके पुरखे दाविद ने किए थे।+ 2 इसके बजाय उसने इसराएल के राजाओं के तौर-तरीके अपना लिए,+ यहाँ तक कि बाल देवताओं की धातु की मूरतें* बनवायीं।+ 3 और उसने ‘हिन्‍नोम के वंशजों की घाटी’* में बलिदान चढ़ाए ताकि उनका धुआँ उठे और आग में अपने बेटों को होम कर दिया।+ इस तरह उसने उन राष्ट्रों के जैसे घिनौने काम किए,+ जिन्हें यहोवा ने इसराएलियों के सामने से खदेड़ दिया था। 4 इतना ही नहीं, वह ऊँची जगहों+ और पहाड़ियों पर और हर घने पेड़ के नीचे बलिदान चढ़ाता था+ ताकि उनका धुआँ उठे।

5 इसलिए उसके परमेश्‍वर यहोवा ने उसे सीरिया के राजा के हाथ में कर दिया।+ उन्होंने उसे हरा दिया और बहुत-से लोगों को बंदी बनाकर दमिश्‍क+ ले गए। आहाज को इसराएल के राजा के हाथ में भी कर दिया गया, जिसने उसके यहाँ आकर बहुत मार-काट मचायी। 6 रमल्याह के बेटे पेकह+ ने एक ही दिन में यहूदा के 1,20,000 दिलेर आदमियों को मार डाला, क्योंकि उन्होंने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा को छोड़ दिया था।+ 7 एक एप्रैमी योद्धा जिक्री ने राजा के बेटे मासेयाह को और अजरीकाम को मार डाला, जिसे राजमहल* का ज़िम्मा सौंपा गया था। उसने एलकाना को भी मार डाला जो राजा के बादवाले ओहदे पर था। 8 और इसराएलियों ने यहूदा से अपने 2,00,000 भाइयों को बंदी बना लिया, जिनमें औरतें, लड़के और लड़कियाँ भी थीं। उन्होंने खूब सारा माल लूटा और सामरिया+ ले गए।

9 मगर वहाँ यहोवा का एक भविष्यवक्‍ता था जिसका नाम ओदेद था। वह सामरिया आनेवाली सेना के सामने गया और सैनिकों से कहा, “देखो! तुम्हारे पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा का क्रोध यहूदा पर भड़का हुआ था, इसलिए उसने यहूदा के लोगों को तुम्हारे हाथ में कर दिया।+ और तुमने ऐसी जलजलाहट से यहूदा में मार-काट मचायी है कि उनकी चीख-पुकार स्वर्ग तक पहुँच गयी है। 10 और अब तुम यहूदा और यरूशलेम के लोगों को अपने दास-दासी बनाना चाहते हो।+ मगर क्या तुम भी अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने दोषी नहीं हो? 11 इसलिए मेरी सुनो और इन बंदियों को लौटा दो जिन्हें तुम अपने भाइयों के यहाँ से ले आए हो, क्योंकि यहोवा के क्रोध की आग तुम पर भड़क उठी है।”

12 तब एप्रैमियों के कुछ मुखियाओं ने यानी यहोहानान के बेटे अजरयाह, मशिल्लेमोत के बेटे बेरेक्याह, शल्लूम के बेटे यहिजकियाह और हदलै के बेटे अमासा ने युद्ध से लौटनेवालों का सामना किया 13 और उनसे कहा, “तुम बंदियों को हमारे यहाँ मत लाना, वरना हम यहोवा के सामने दोषी ठहरेंगे। तुम जो करने की सोच रहे हो, उससे हमारा पाप और दोष और बढ़ जाएगा, क्योंकि हम पहले ही बहुत दोषी हैं और इसराएल पर परमेश्‍वर का क्रोध भड़क उठा है।” 14 तब हथियारबंद सैनिकों ने बंदियों और लूट के माल+ को हाकिमों और पूरी मंडली के हवाले कर दिया। 15 फिर जिन आदमियों को नाम से चुना गया था, उन्होंने आकर बंदियों को लिया। उन्होंने बंदियों में से उन्हें लूट के माल से कपड़े दिए जिनके पास कपड़े नहीं थे। साथ ही उन्हें पैरों के लिए जूतियाँ दीं, खाने-पीने की चीज़ें दीं और शरीर के लिए तेल दिया। और उन्होंने कमज़ोरों को गधों पर चढ़ाया और उनके भाइयों के पास यरीहो ले आए, जो खजूर के पेड़ों का शहर है। इसके बाद, वे सामरिया लौट गए।

16 उन्हीं दिनों राजा आहाज ने अश्‍शूर के राजाओं से मदद माँगी।+ 17 एक बार फिर एदोमियों ने यहूदा पर हमला करके उसे हरा दिया और बंदियों को उठाकर ले गए। 18 पलिश्‍तियों+ ने भी यहूदा के शफेलाह+ और नेगेब के इलाके पर धावा बोल दिया और इन शहरों पर कब्ज़ा कर लिया: बेत-शेमेश,+ अय्यालोन,+ गदेरोत, सोको और उसके आस-पास के नगर, तिमना+ और उसके आस-पास के नगर और गिमजो और उसके आस-पास के नगर। और वे इन शहरों में बस गए। 19 यहोवा ने इसराएल के राजा आहाज की वजह से यहूदा को नीचा दिखाया, क्योंकि आहाज ने यहूदा को पाप करने की पूरी छूट दे दी जिस वजह से लोगों ने यहोवा से विश्‍वासघात करने में हद कर दी थी।

20 आखिरकार अश्‍शूर के राजा तिलगत-पिलनेसेर+ ने आहाज पर हमला कर दिया और वह उसे मज़बूत करने के बजाय उस पर मुसीबत ले आया।+ 21 आहाज ने यहोवा का भवन, राजमहल और हाकिमों के भवनों को पूरी तरह खाली करके+ अश्‍शूर के राजा को तोहफा दिया था, मगर इससे कोई फायदा नहीं हुआ। 22 और मुसीबत के वक्‍त राजा आहाज ने यहोवा से और भी विश्‍वासघात किया। 23 जिस दमिश्‍क ने उसे हरा दिया था, वह उसी के देवताओं के आगे बलिदान चढ़ाने लगा+ क्योंकि उसने कहा, “सीरिया के राजाओं के देवता उनकी मदद कर रहे हैं, इसलिए मैं भी उन देवताओं के आगे बलिदान चढ़ाऊँगा ताकि वे मेरी मदद करें।”+ मगर उन्होंने उसे और पूरे इसराएल को बरबाद कर दिया। 24 यही नहीं, आहाज ने सच्चे परमेश्‍वर के भवन की चीज़ें इकट्ठी कीं और उनके टुकड़े-टुकड़े कर डाले,+ यहोवा के भवन के दरवाज़े बंद कर दिए+ और यरूशलेम के हर कोने में अपने लिए वेदियाँ खड़ी कर दीं। 25 उसने यहूदा के सभी शहरों में ऊँची जगह बनायीं ताकि वहाँ दूसरे देवताओं के लिए बलिदान चढ़ाया जाए जिससे धुआँ उठे।+ उसने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा का क्रोध भड़काया।

26 उसकी ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों के बारे में शुरू से लेकर आखिर तक का ब्यौरा यहूदा और इसराएल के राजाओं की किताब में लिखा है।+ 27 फिर आहाज की मौत हो गयी* और उसे यरूशलेम में दफनाया गया। उसे इसराएल के राजाओं की कब्र में नहीं दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा हिजकियाह राजा बना।

29 हिजकियाह+ जब राजा बना तब वह 25 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 29 साल राज किया। उसकी माँ का नाम अबियाह था जो जकरयाह की बेटी थी।+ 2 हिजकियाह यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा,+ ठीक जैसे उसके पुरखे दाविद ने किया था।+ 3 अपने राज के पहले साल के पहले महीने, उसने यहोवा के भवन के दरवाज़े खोले और उनकी मरम्मत की।+ 4 फिर उसने याजकों और लेवियों को भवन के पूरब के चौक में इकट्ठा किया। 5 उसने उनसे कहा, “लेवियो, मेरी बात सुनो। अब तुम सब खुद को पवित्र करो+ और अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा के भवन को पवित्र करो। और पवित्र जगह से अशुद्ध चीज़ें निकालकर फेंक दो।+ 6 क्योंकि हमारे पिताओं ने परमेश्‍वर से विश्‍वासघात किया और हमारे परमेश्‍वर यहोवा की नज़रों में बुरा काम किया।+ उन्होंने उसे छोड़ दिया, यहोवा के पवित्र डेरे से मुँह फेर लिया और उसे पीठ दिखायी।+ 7 उन्होंने भवन के बरामदे के दरवाज़े भी बंद कर दिए+ और दीए बुझा दिए।+ उन्होंने पवित्र जगह में इसराएल के परमेश्‍वर के लिए धूप जलाना+ और होम-बलियाँ चढ़ाना बंद कर दिया।+ 8 इसलिए यहूदा और यरूशलेम पर यहोवा का क्रोध भड़क उठा+ और जैसा कि तुम देख सकते हो, उसने यहूदा और यरूशलेम का ऐसा हश्र किया कि उनकी बरबादी देखकर लोगों का दिल दहल गया, वे दंग रह गए और उन्होंने उनका मज़ाक बनाया।*+ 9 हमारे बाप-दादा तलवार से मारे गए,+ हमारे बेटे-बेटियों और हमारी पत्नियों को बंदी बना लिया गया।+ 10 अब यह मेरी दिली तमन्‍ना है कि मैं इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के साथ एक करार करूँ+ ताकि उसके क्रोध की आग हमसे दूर हो जाए। 11 मेरे बेटो, अब यह वक्‍त लापरवाही बरतने* का नहीं है क्योंकि यहोवा ने तुम्हें इसलिए चुना है कि तुम उसके सामने खड़े होकर उसकी सेवा करो+ और उसके लिए बलिदान चढ़ाओ ताकि उनका धुआँ उठे।”+

12 तब ये सभी लेवी काम पर लग गए: कहातियों+ में से अमासै का बेटा महत और अजरयाह का बेटा योएल, मरारियों+ में से अब्दी का बेटा कीश और यहल्ले-लेल का बेटा अजरयाह, गेरशोनियों+ में से जिम्मा का बेटा योआह और योआह का बेटा अदन, 13 एलीसापान के बेटों में से शिम्री और यूएल, आसाप के बेटों+ में से जकरयाह और मत्तन्याह, 14 हेमान के बेटों+ में से यहीएल और शिमी और यदूतून के बेटों+ में से शमायाह और उज्जीएल। 15 इन लेवियों ने अपने भाइयों को इकट्ठा किया। फिर सबने खुद को पवित्र किया और वे यहोवा के भवन को शुद्ध करने के लिए आगे आए, ठीक जैसे राजा ने यहोवा के कहने पर आज्ञा दी थी।+ 16 फिर याजक यहोवा के भवन को शुद्ध करने के लिए उसके अंदर गए और उन्हें यहोवा के मंदिर में जितनी भी अशुद्ध चीज़ें मिलीं, वह सब बाहर यहोवा के भवन के आँगन+ में ले आए। फिर लेवी वे चीज़ें उठाकर किदरोन घाटी+ ले गए। 17 इस तरह उन्होंने पहले महीने के पहले दिन यहोवा के भवन को पवित्र करने का काम शुरू किया और उसी महीने के आठवें दिन वे भवन के बरामदे+ तक पहुँच गए। उन्होंने आठ दिन तक यहोवा के भवन को पवित्र किया और पहले महीने के 16वें दिन यह काम पूरा कर लिया।

18 इसके बाद उन्होंने राजा हिजकियाह के पास जाकर कहा, “हमने यहोवा के पूरे भवन को शुद्ध कर दिया है। होम-बलि की वेदी+ और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें,+ रोटियों का ढेर* रखनेवाली मेज़+ और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें शुद्ध कर दी हैं। 19 और उन सारी चीज़ों को तैयार करके पवित्र किया है+ जिन्हें राजा आहाज ने अपने राज के दौरान परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करके निकाल दिया था।+ वे चीज़ें अब यहोवा की वेदी के सामने हैं।”

20 राजा हिजकियाह सुबह जल्दी उठा और उसने शहर के हाकिमों को इकट्ठा किया और वे यहोवा के भवन में गए। 21 वे सात बैल, सात मेढ़े, सात नर मेम्ने और सात बकरे ले आए ताकि राज, पवित्र-स्थान और यहूदा की खातिर उनकी पाप-बलि चढ़ा सकें।+ राजा ने हारूनवंशी याजकों से कहा कि वे यहोवा की वेदी पर इन जानवरों की बलि चढ़ाएँ। 22 उन्होंने बैल हलाल किए+ और याजकों ने उनका खून ले जाकर वेदी पर छिड़का।+ इसके बाद उन्होंने मेढ़े हलाल किए और उनका खून वेदी पर छिड़का, फिर नर मेम्ने हलाल किए और उनका खून वेदी पर छिड़का। 23 फिर वे पाप-बलि के बकरों को राजा और मंडली के सामने ले आए और अपना हाथ उन जानवरों पर रखा। 24 याजकों ने पूरे इसराएल के पापों का प्रायश्‍चित करने के लिए जानवर हलाल किए और उनका खून वेदी पर छिड़ककर पाप-बलि चढ़ायी क्योंकि राजा ने कहा था कि होम-बलि और पाप-बलि पूरे इसराएल की खातिर चढ़ायी जाए।

25 इस दौरान राजा ने लेवियों को आज्ञा दी कि वे झाँझ, तारोंवाले बाजे और सुरमंडल हाथ में लिए यहोवा के भवन में खड़े रहें,+ ठीक उस क्रम में जो दाविद, राजा के दर्शी गाद+ और भविष्यवक्‍ता नातान+ ने ठहराया था।+ यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए यह आज्ञा दी थी। 26 इसलिए लेवी दाविद के बनाए साज़ हाथ में लिए खड़े रहे और याजक तुरहियाँ लिए खड़े रहे।+

27 फिर हिजकियाह ने आदेश दिया कि वेदी पर होम-बलि चढ़ायी जाए।+ जब होम-बलि चढ़ाना शुरू हुआ, तो यहोवा के लिए गीत गाया जाने लगा और इसराएल के राजा दाविद के बनाए साज़ों की धुन पर तुरहियाँ फूँकी जाने लगीं। 28 जब गीत गाया जा रहा था और तुरहियाँ फूँकी जा रही थी तो पूरी मंडली के लोगों ने अपना सिर झुकाए रखा। ऐसा तब तक होता रहा जब तक कि होम-बलि चढ़ाने का काम पूरा न हुआ। 29 जैसे ही उन्होंने बलि चढ़ाना पूरा किया, राजा और उसके साथवाले सभी लोगों ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया। 30 फिर राजा हिजकियाह और हाकिमों ने लेवियों से कहा कि वे दाविद और आसाप दर्शी के गीत गाकर यहोवा की तारीफ करें।+ इसलिए उन्होंने आनंद-मगन होकर परमेश्‍वर की तारीफ की और मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया।

31 फिर हिजकियाह ने कहा, “तुम अब यहोवा के लिए अलग किए गए हो,* इसलिए यहोवा के भवन में बलिदान और धन्यवाद-बलियाँ ले आओ।” तब पूरी मंडली बलिदान और धन्यवाद-बलियाँ लेकर आयी और हर कोई जो अपनी इच्छा से देना चाहता था वह होम-बलियाँ ले आया।+ 32 मंडली होम-बलि के लिए 70 बैल, 100 मेढ़े और 200 नर मेम्ने ले आयी। यह सब यहोवा के लिए होम-बलि चढ़ाने के लिए था।+ 33 और पवित्र बलि के लिए 600 बैल और 3,000 भेड़ें लायी गयीं। 34 मगर होम-बलि के इन सभी जानवरों की खाल उतारने के लिए काफी याजक नहीं थे, इसलिए उनके लेवी भाइयों ने उनकी मदद की।+ वे तब तक उनकी मदद करते रहे जब तक काम पूरा नहीं हो गया और याजकों ने खुद को पवित्र न कर लिया।+ याजकों से कहीं ज़्यादा लेवियों ने खुद को पवित्र करने पर ध्यान दिया था।* 35 इसके अलावा, होम-बलि के लिए बहुत-से जानवर,+ शांति-बलियों के चरबीवाले हिस्से+ और होम-बलि के साथ बहुत-सा अर्घ चढ़ाया गया।+ इस तरह यहोवा के भवन में सेवाएँ फिर से शुरू की गयीं।* 36 सच्चे परमेश्‍वर ने लोगों की खातिर जो किया था, उसकी वजह से हिजकियाह और लोगों ने बहुत खुशियाँ मनायीं+ क्योंकि यह सब इतनी जल्दी हो गया था।

30 हिजकियाह ने पूरे इसराएल और यहूदा में संदेश भिजवाया+ और एप्रैम और मनश्‍शे के इलाकों+ को भी चिट्ठियाँ भेजीं और उन सबसे कहा कि वे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के लिए फसह मनाने यरूशलेम में यहोवा के भवन आएँ।+ 2 राजा, उसके हाकिमों और यरूशलेम की पूरी मंडली ने फैसला किया था कि फसह दूसरे महीने मनाया जाएगा।+ 3 वे पहले महीने+ यह त्योहार नहीं मना पाए थे क्योंकि बहुत-से याजकों ने खुद को पवित्र नहीं किया था,+ न ही लोग यरूशलेम में इकट्ठा हुए थे। 4 दूसरे महीने फसह मनाने का यह इंतज़ाम राजा को और पूरी मंडली को सही लगा। 5 इसलिए उन्होंने बेरशेबा से दान+ तक पूरे इसराएल में यह ऐलान करने का फैसला किया कि लोग इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के लिए फसह मनाने यरूशलेम आएँ, क्योंकि इससे पहले उनके पूरे समूह ने मिलकर कानून के मुताबिक यह त्योहार नहीं मनाया था।+

6 फिर दूत राजा और हाकिमों की चिट्ठियाँ लेकर पूरे इसराएल और यहूदा में गए, ठीक जैसे राजा ने उन्हें आज्ञा दी थी। वे यह कहते गए, “इसराएल के लोगो, अब्राहम, इसहाक और इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के पास लौट आओ ताकि वह तुम लोगों के पास लौट आए जो अश्‍शूर के राजाओं के हाथ से बच निकले हो।+ 7 तुम अपने पुरखों की तरह मत बनो, न ही अपने भाइयों की तरह बनो, जिन्होंने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा से विश्‍वासघात किया था, इसलिए परमेश्‍वर ने उनका ऐसा हश्र किया कि देखनेवालों का दिल दहल उठा, जैसा कि तुम देख रहे हो।+ 8 अब तुम अपने पुरखों की तरह ढीठ मत बनो।+ यहोवा के अधीन हो जाओ और उसके पवित्र स्थान में आओ+ जिसे उसने हमेशा के लिए पवित्र किया है और अपने परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करो ताकि उसके क्रोध की आग तुमसे दूर हो जाए।+ 9 जब तुम यहोवा के पास लौट आओगे, तो तुम्हारे भाइयों और बेटों पर वे लोग दया करेंगे जिन्होंने उन्हें बंदी बना लिया है+ और वे उन्हें इस देश में लौटने देंगे+ क्योंकि तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा करुणा से भरा और दयालु है।+ अगर तुम उसके पास लौटोगे तो वह तुमसे मुँह नहीं फेरेगा।”+

10 दूत पूरे एप्रैम और मनश्‍शे प्रदेश के हर शहर में गए,+ यहाँ तक कि जबूलून भी गए, मगर लोग उनका मज़ाक बनाने लगे और उनकी खिल्ली उड़ाने लगे।+ 11 फिर भी आशेर, मनश्‍शे और जबूलून के कुछ लोगों ने खुद को नम्र किया और यरूशलेम आए।+ 12 साथ ही, सच्चे परमेश्‍वर की आशीष यहूदा पर थी और उसने एक होकर* राजा और हाकिमों की वह आज्ञा मानी जो उन्होंने यहोवा के कहे मुताबिक दी थी।

13 दूसरे महीने+ लोगों की एक बड़ी भीड़ बिन-खमीर की रोटी का त्योहार मनाने यरूशलेम में इकट्ठी हुई।+ यह वाकई बहुत बड़ी भीड़ थी। 14 उन सबने वे वेदियाँ निकाल दीं जो यरूशलेम में थीं+ और धूप की सारी वेदियाँ भी निकाल दीं+ और उन्हें ले जाकर किदरोन घाटी में फेंक दिया। 15 इसके बाद उन्होंने दूसरे महीने के 14वें दिन फसह का जानवर हलाल करके बलिदान किया। याजकों और लेवियों ने शर्मिंदा महसूस किया, इसलिए उन्होंने खुद को पवित्र किया और होम-बलियाँ लेकर यहोवा के भवन में आए। 16 वे उन जगहों पर खड़े हुए जो उनके लिए ठहरायी गयी थीं, ठीक जैसे सच्चे परमेश्‍वर के सेवक मूसा के कानून में बताया गया था। फिर याजकों ने लेवियों के हाथ से खून लेकर वेदी पर छिड़का।+ 17 मंडली में ऐसे कई लोग थे जिन्होंने खुद को पवित्र नहीं किया था और लेवियों की ज़िम्मेदारी थी कि उन अशुद्ध लोगों की खातिर फसह के जानवर हलाल करें+ और लोगों को यहोवा के लिए पवित्र करें। 18 बहुत-से लोगों ने खुद को शुद्ध नहीं किया था, खासकर एप्रैम, मनश्‍शे,+ इस्साकार और जबूलून के लोगों ने। फिर भी उन्होंने नियम के खिलाफ जाकर फसह का भोज खा लिया था। इसलिए हिजकियाह ने उनकी खातिर यह प्रार्थना की: “यहोवा, जो भला है,+ ऐसे हर इंसान को माफ कर दे 19 जिसने सच्चे परमेश्‍वर की, अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा की खोज करने के लिए अपने दिल को तैयार किया है,+ इसके बावजूद कि उसने पवित्रता के नियम के मुताबिक खुद को पवित्र नहीं किया।”+ 20 यहोवा ने हिजकियाह की प्रार्थना सुनी और लोगों को माफ कर दिया।*

21 यरूशलेम में जो इसराएली थे उन्होंने सात दिन तक बड़ी खुशी से+ बिन-खमीर की रोटी का त्योहार मनाया+ और हर दिन लेवी और याजक यहोवा के लिए ज़ोर-ज़ोर से साज़ बजाते हुए यहोवा की तारीफ करते रहे।+ 22 इसके अलावा, हिजकियाह ने उन सभी लेवियों से बात की और उनकी हिम्मत बँधायी, जो सूझ-बूझ से यहोवा की सेवा करते थे। और उन्होंने सात दिन के त्योहार के दौरान खाया-पीया,+ शांति-बलियाँ चढ़ायीं+ और अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा का शुक्रिया अदा किया।

23 इसके बाद, पूरी मंडली ने फैसला किया कि वे सात दिन और त्योहार मनाएँगे। इसलिए उन्होंने खुशी-खुशी सात दिन और त्योहार मनाया।+ 24 यहूदा के राजा हिजकियाह ने मंडली के लिए 1,000 बैल और 7,000 भेड़ें भेट कीं और हाकिमों ने मंडली के लिए 1,000 बैल और 10,000 भेड़ें भेंट कीं।+ बड़ी संख्या में याजकों ने खुद को पवित्र किया।+ 25 यहूदा की पूरी मंडली, याजक, लेवी, इसराएल से आयी पूरी मंडली+ और इसराएल से आए परदेसी+ और यहूदा में रहनेवाले परदेसी खुशियाँ मनाते रहे। 26 यरूशलेम में खूब जश्‍न मनाया गया क्योंकि इसराएल के राजा दाविद के बेटे सुलैमान के दिनों से लेकर अब तक यरूशलेम में ऐसा जश्‍न नहीं मनाया गया था।+ 27 आखिर में लेवी याजकों ने उठकर लोगों को आशीर्वाद दिया।+ उनकी प्रार्थना परमेश्‍वर के पवित्र निवास स्वर्ग तक पहुँची और उसने उनकी प्रार्थना सुनी।

31 त्योहार के फौरन बाद वहाँ मौजूद सभी इसराएली यहूदा के शहरों में गए, साथ ही बिन्यामीन, एप्रैम और मनश्‍शे के इलाकों+ में भी गए और उन्होंने पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर दिए,+ पूजा-लाठें* काट डालीं+ और ऊँची जगह और वेदियाँ ढा दीं।+ वे तब तक ये काम करते रहे जब तक कि उन्होंने ये सारी चीज़ें पूरी तरह मिटा न दीं। इसके बाद, सभी इसराएली अपने-अपने शहर और अपनी-अपनी जागीर में लौट गए।

2 फिर हिजकियाह ने याजकों और लेवियों को उनके अपने-अपने दल के मुताबिक सेवा के लिए ठहराया।+ हर याजक और लेवी को उसके लिए ठहरायी गयी सेवा सौंपी।+ उनका काम था होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ाना, भवन में सेवा करना और यहोवा के भवन के आँगनों* के फाटकों के पास उसका शुक्रिया अदा करना और उसकी तारीफ करना।+ 3 राजा ने अपनी जायदाद का कुछ हिस्सा, यहोवा के कानून में बतायी होम-बलियों के लिए,+ सुबह और शाम के चढ़ावे के लिए,+ सब्त+ और नए चाँद के मौकों पर+ और त्योहारों+ में दी जानेवाली होम-बलियों के लिए दिया।

4 इतना ही नहीं, राजा ने यरूशलेम के लोगों को आज्ञा दी कि वे याजकों और लेवियों को वह हिस्सा दें जिस पर उनका हक है,+ ताकि वे यहोवा के कानून को सख्ती से मानें।* 5 राजा का यह आदेश पाते ही इसराएलियों ने अपनी उपज के पहले फल में से यह सब बहुतायत में लाकर दिया: अनाज, नयी दाख-मदिरा, तेल,+ शहद और खेत की बाकी उपज।+ उन्होंने हर चीज़ का दसवाँ हिस्सा लाकर दिया और इस तरह उन्होंने दान में बहुत सारी चीज़ें लाकर दीं।+ 6 यहूदा के शहरों में रहनेवाले इसराएल के लोग और यहूदा के लोग गाय-बैलों और भेड़ों का भी दसवाँ हिस्सा ले आए और उन पवित्र चीज़ों का दसवाँ हिस्सा ले आए,+ जो उन्होंने अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिए पवित्र ठहरायी थीं। इस तरह दान की गयी चीज़ों का ढेर लग गया। 7 उन्होंने दान देना तीसरे महीने में+ शुरू किया था और वे सातवें महीने+ तक देते रहे। 8 जब हिजकियाह और हाकिम आए और वह ढेर देखा, तो उन्होंने यहोवा की तारीफ की और उसकी प्रजा इसराएल को आशीर्वाद दिया।

9 जब हिजकियाह ने याजकों और लेवियों से उस ढेर के बारे में पूछा, 10 तो सादोक के घराने के प्रधान याजक अजरयाह ने कहा, “जब से लोग यहोवा के भवन में दान लाकर देने लगे हैं,+ तब से लोगों को खाने को भरपूर चीज़ें मिल रही हैं। इसके बाद भी इतना कुछ बच गया है। यहोवा ने अपने लोगों को आशीष दी है, तभी इतना कुछ बच गया है।”+

11 तब हिजकियाह ने उनसे कहा कि वे यहोवा के भवन में भंडार-घर*+ तैयार करें और उन्होंने तैयार किए। 12 लोगों के दान, दसवाँ हिस्सा+ और पवित्र चीज़ें लायी जा रही थीं। इन सारी चीज़ों की निगरानी का ज़िम्मा लेवी कोनन्याह को सौंपा गया और उसका भाई शिमी दूसरे पद पर था। 13 राजा हिजकियाह के आदेश पर कोनन्याह और उसके भाई शिमी की मदद करने के लिए इन सबको सहायक अधिकारी चुना गया: यहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमोत, योजाबाद, एलीएल, यिसमक्याह, महत और बनायाह। और अजरयाह को सच्चे परमेश्‍वर के भवन की निगरानी का ज़िम्मा सौंपा गया। 14 लेवी यिम्नाह के बेटे कोरे को, जो पूरब के फाटक का पहरेदार था,+ सच्चे परमेश्‍वर के लिए दी गयीं स्वेच्छा-बलियों+ का ज़िम्मा सौंपा गया। वह यहोवा के लिए भेंट की गयी चीज़ों का और उन चीज़ों का बँटवारा करता था+ जो बहुत पवित्र थीं।+ 15 उसके निर्देशन में अदन, मिन्यामीन, येशू, शमायाह, अमरयाह और शकन्याह याजकों के शहरों+ में काम करते थे। उन्हें भरोसेमंद जानकर यह पद सौंपा गया था ताकि वे अलग-अलग दलों में काम करनेवाले अपने भाइयों को चीज़ें बराबर बाँटें,+ फिर चाहे वे छोटे हों या बड़े। 16 इनके अलावा, वे उन सब आदमियों को भी ये चीज़ें देते थे जिनका नाम वंशावली में लिखा था और जो अपने-अपने दल की बारी के मुताबिक हर दिन यहोवा के भवन में आकर सेवा करते थे। साथ ही तीन साल और उससे ज़्यादा उम्र के लड़कों को भी देते थे जिनका नाम वंशावली में लिखा था।

17 वंशावली में याजकों का नाम उनके पिताओं के घरानों के मुताबिक लिखा गया था।+ और 20 साल और उससे ज़्यादा उम्रवाले लेवियों का नाम भी उनके पिताओं के घरानों के मुताबिक+ और उनके अलग-अलग सेवा-दल के मुताबिक लिखा गया था।+ 18 इस वंशावली में लेवियों के सभी बच्चों, पत्नियों और बेटे-बेटियों का यानी उनकी पूरी मंडली का नाम लिखा गया, क्योंकि लेवियों ने पवित्र सेवा के लिए खुद को अलग रखा था और उन्हें भरोसेमंद जानकर सेवा का पद सौंपा गया था। 19 वंशावली में हारूनवंशी याजकों का नाम भी लिखा गया था, जो अपने शहरों के आस-पास चरागाह के मैदानों में रहते थे।+ सभी शहरों में कुछ आदमियों को नाम लेकर चुना गया था ताकि वे याजकों के परिवार के हर लड़के और आदमी को, साथ ही लेवियों की वंशावली में दर्ज़ सब लोगों को दान की चीज़ों में से हिस्सा दें।

20 हिजकियाह ने यह इंतज़ाम पूरे यहूदा में करवाया और वह ऐसे काम करता रहा जो यहोवा की नज़रों में भले और सही थे और वह अपने परमेश्‍वर का विश्‍वासयोग्य बना रहा। 21 उसने अपने परमेश्‍वर की खोज करने के लिए जो भी काम हाथ में लिया, फिर चाहे वह सच्चे परमेश्‍वर के भवन में सेवा से जुड़ा हो+ या परमेश्‍वर के कानून और उसकी आज्ञा से जुड़ा हो, उसने उसे पूरे दिल से किया और वह कामयाब रहा।

32 हिजकियाह ने जब विश्‍वासयोग्य रहकर ये सारे काम किए,+ तो इसके बाद अश्‍शूर के राजा सनहेरीब ने आकर यहूदा पर धावा बोल दिया। उसने वहाँ किलेबंद शहरों में घुसकर उन पर कब्ज़ा करने के लिए घेराबंदी की।+

2 जब हिजकियाह ने देखा कि सनहेरीब आ गया है और उसने यरूशलेम से युद्ध करने की ठान ली है 3 तो उसने अपने हाकिमों और योद्धाओं से सलाह-मशविरा किया और फैसला किया कि वह शहर के बाहर के सोतों का पानी+ बंद कर देगा। उन सबने उसका साथ दिया। 4 बहुत-से लोगों को इकट्ठा किया गया और उन्होंने सभी सोते बंद कर दिए और नदी की वह धारा रोक दी जो उस पूरे इलाके में बहती थी। उन्होंने कहा, “हम नहीं चाहते कि जब अश्‍शूर के राजा यहाँ आएँ तो उन्हें भरपूर पानी मिले।”

5 इसके अलावा, हिजकियाह ने मज़बूत इरादे के साथ शहरपनाह का टूटा हुआ पूरा हिस्सा बनाया, उस पर मीनारें खड़ी कीं और बाहर एक और शहरपनाह बनायी। उसने दाविदपुर के टीले* की मरम्मत की+ और बहुत सारे हथियार और ढालें बनायीं। 6 फिर उसने लोगों पर सेनापति ठहराए और उन्हें शहर के फाटक के पासवाले चौक में इकट्ठा किया। उसने यह कहकर उन सबकी हिम्मत बँधायी: 7 “तुम सब हिम्मत से काम लो और हौसला रखो। तुम अश्‍शूर के राजा और उसकी विशाल सेना से मत डरना, न ही खौफ खाना+ क्योंकि उसके साथ जितने हैं उनसे कहीं ज़्यादा हमारे साथ हैं।+ 8 उसे इंसानी ताकत पर भरोसा है, मगर हमारे साथ हमारा परमेश्‍वर यहोवा है। वह हमारी मदद करेगा और हमारी तरफ से युद्ध करेगा।”+ यहूदा के राजा हिजकियाह के इन शब्दों से लोगों को बहुत हौसला मिला।+

9 इसके बाद, जब अश्‍शूर का राजा सनहेरीब अपनी ताकतवर सेना* के साथ लाकीश+ में था तो उसने अपने सेवकों को यरूशलेम भेजा ताकि वे यहूदा के राजा हिजकियाह से और यहूदिया के उन सभी लोगों से जो यरूशलेम में थे,+ यह कहें:

10 “अश्‍शूर के राजा सनहेरीब ने कहा है, ‘तुम्हें किस बात पर इतना भरोसा है जो तुम अब भी यरूशलेम में हो, जबकि इसे घेर लिया गया है?+ 11 हिजकियाह तुमसे कहता है, “हमारा परमेश्‍वर यहोवा हमें अश्‍शूर के राजा के हाथ से छुड़ाएगा।” क्या ऐसा कहकर वह तुम्हें गुमराह नहीं कर रहा है और भूखा-प्यासा नहीं मारना चाहता?+ 12 क्योंकि उसी ने तो तुम्हारे परमेश्‍वर की* ऊँची जगह और वेदियाँ ढा दीं+ और यहूदा और यरूशलेम के लोगों से कहा, “तुम्हें सिर्फ एक ही वेदी के आगे दंडवत करना चाहिए और उसी पर बलिदान चढ़ाना चाहिए ताकि उसका धुआँ उठे।”+ 13 क्या तुम नहीं जानते कि मैंने और मेरे पुरखों ने दूसरे देशों का क्या हश्र किया है?+ क्या उन राष्ट्रों के देवता उनके देशों को मेरे हाथ से छुड़ा पाए?+ 14 जिन राष्ट्रों को मेरे पुरखों ने नाश कर डाला, क्या उनके देवताओं में से कोई भी अपने लोगों को मेरे हाथ से छुड़ा पाया था? तो फिर तुम्हारा परमेश्‍वर तुम लोगों को मेरे हाथ से कैसे छुड़ा लेगा?+ 15 तुम लोग हिजकियाह की बातों में मत आओ, वह तुम्हें गुमराह कर रहा है!+ उस पर विश्‍वास मत करो क्योंकि किसी भी राष्ट्र या राज्य का कोई भी देवता अपने लोगों को मेरे और मेरे पुरखों के हाथ से नहीं छुड़ा पाया। फिर तुम्हारे परमेश्‍वर की हस्ती ही क्या है कि वह तुम्हें मेरे हाथ से छुड़ाए!’”+

16 सनहेरीब के सेवकों ने सच्चे परमेश्‍वर यहोवा और उसके सेवक हिजकियाह के खिलाफ और भी बहुत कुछ कहा। 17 सनहेरीब ने कुछ चिट्ठियाँ भी लिखीं+ जिनमें उसने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के बारे में अपमान की बातें कहीं।+ उसने चिट्ठियों में परमेश्‍वर के खिलाफ यह लिखा, “जैसे दूसरे राष्ट्रों के देवता अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं छुड़ा पाए,+ उसी तरह हिजकियाह का परमेश्‍वर भी अपने लोगों को मेरे हाथ से नहीं छुड़ा पाएगा।” 18 यरूशलेम के जो लोग शहरपनाह पर खड़े थे, उनसे सनहेरीब के सेवक ऊँची आवाज़ में यहूदियों की भाषा में बात करते रहे ताकि उनके अंदर डर और खौफ पैदा करके शहर पर कब्ज़ा कर लें।+ 19 उन्होंने यरूशलेम के परमेश्‍वर के खिलाफ वही बातें कहीं जो उन्होंने दुनिया के बाकी देशों के उन देवताओं के खिलाफ कही थीं जो इंसान के हाथ के बने हैं। 20 मगर राजा हिजकियाह और आमोज का बेटा, भविष्यवक्‍ता यशायाह+ इस बारे में प्रार्थना करते रहे और मदद के लिए स्वर्ग की तरफ पुकारते रहे।+

21 फिर यहोवा ने एक स्वर्गदूत को भेजा जिसने अश्‍शूर के राजा की छावनी में जाकर हर वीर योद्धा,+ अगुवे और सेनापति को मार डाला। नतीजा यह हुआ कि सनहेरीब को अपमानित होकर अपने देश लौटना पड़ा। बाद में वह अपने देवता के मंदिर में गया और वहाँ उसके अपने ही कुछ बेटों ने उसे तलवार से मार डाला।+ 22 इस तरह यहोवा ने हिजकियाह और यरूशलेम के निवासियों को अश्‍शूर के राजा सनहेरीब और बाकी सबके हाथ से बचाया और चारों तरफ के दुश्‍मनों से उन्हें राहत दिलायी। 23 फिर कई लोग यहोवा के लिए भेंट लेकर यरूशलेम आए और यहूदा के राजा हिजकियाह को तोहफे में बढ़िया-बढ़िया चीज़ें दीं।+ इसके बाद से सब राष्ट्र हिजकियाह का बहुत आदर करने लगे।

24 उन दिनों हिजकियाह बीमार हो गया। उसकी हालत इतनी खराब हो गयी कि वह मरनेवाला था। उसने यहोवा से प्रार्थना की+ और परमेश्‍वर ने उसकी सुनी और उसे एक निशानी दी।+ 25 मगर हिजकियाह के साथ जो भलाई की गयी थी, उसकी उसने कदर नहीं की क्योंकि उसका मन घमंड से फूल गया था। इसलिए परमेश्‍वर का क्रोध उस पर और यहूदा और यरूशलेम पर भड़क उठा। 26 मगर हिजकियाह ने अपने मन का घमंड दूर करके खुद को नम्र किया+ और यरूशलेम के लोगों ने भी खुद को नम्र किया, इसलिए हिजकियाह के दिनों में यहोवा का क्रोध उन पर नहीं भड़का।+

27 हिजकियाह ने खूब सारी दौलत और शोहरत हासिल की।+ उसने अपने लिए भंडार-घर बनाए+ ताकि उनमें सोना, चाँदी, कीमती पत्थर, बलसाँ का तेल, ढालें और बाकी सभी मनभावनी चीज़ें रखे। 28 उसने अनाज, नयी दाख-मदिरा और तेल जमा करने के लिए भी भंडार-घर बनाए, साथ ही सब किस्म के मवेशियों और भेड़-बकरियों के लिए बाड़े बनाए। 29 उसने कई शहर भी बनाए और बड़ी तादाद में भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल इकट्ठा किए क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे बहुत दौलत दी थी। 30 हिजकियाह ने ही गीहोन+ नदी का ऊपरी सोता बंद कर दिया+ और उसके पानी का रुख ऐसा मोड़ दिया कि वह सीधे दाविदपुर+ के पश्‍चिम की तरफ बहे। हिजकियाह अपने हर काम में कामयाब रहा था। 31 मगर जब बैबिलोन के हाकिमों के दूतों को हिजकियाह के देश में देखी गयी निशानी+ के बारे में पूछने के लिए उसके पास भेजा गया,+ तो सच्चे परमेश्‍वर ने उसे छोड़ दिया ताकि उसे परखकर जाने कि उसके दिल में क्या है।+

32 हिजकियाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी और उसने अटल प्यार का सबूत देते हुए जो काम किए,+ उनका ब्यौरा आमोज के बेटे यशायाह भविष्यवक्‍ता के दर्शन के लेखनों में+ और यहूदा और इसराएल के राजाओं की किताब में लिखा है।+ 33 फिर हिजकियाह की मौत हो गयी* और उसे उस चढ़ाई पर दफनाया गया जो दाविद के बेटों के कब्रिस्तान की तरफ जाती है।+ उसकी मौत पर पूरे यहूदा और यरूशलेम के लोगों ने उसका सम्मान किया। उसकी जगह उसका बेटा मनश्‍शे राजा बना।

33 मनश्‍शे+ जब राजा बना तब वह 12 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 55 साल राज किया।+

2 मनश्‍शे ने यहोवा की नज़र में बुरे काम किए। उसने उन राष्ट्रों के जैसे घिनौने काम किए जिन्हें यहोवा ने इसराएल के लोगों के सामने से खदेड़ दिया था।+ 3 उसने वे ऊँची जगह फिर से बनवा दीं जो उसके पिता हिजकियाह ने ढा दी थीं।+ उसने बाल देवताओं के लिए वेदियाँ खड़ी करवायीं और पूजा-लाठें* बनवायीं। वह आकाश की सारी सेना के आगे दंडवत करता था और उसकी पूजा करता था।+ 4 उसने यहोवा के उस भवन में भी वेदियाँ खड़ी कर दीं+ जिसके बारे में यहोवा ने कहा था, “यरूशलेम से मेरा नाम हमेशा जुड़ा रहेगा।”+ 5 उसने यहोवा के भवन के दोनों आँगनों+ में आकाश की सारी सेना के लिए वेदियाँ खड़ी कीं। 6 उसने ‘हिन्‍नोम के वंशजों की घाटी’+ में अपने बेटों को आग में होम कर दिया।+ वह जादू करता था,+ ज्योतिषी का काम करता था, टोना-टोटका करता था और उसने देश में मरे हुओं से संपर्क करने का दावा करनेवालों और भविष्य बतानेवालों को ठहराया था।+ उसने ऐसे काम करने में सारी हदें पार कर दीं जो यहोवा की नज़र में बुरे थे और उसका क्रोध भड़काया।

7 उसने जो मूरत तराशकर बनवायी थी उसे ले जाकर सच्चे परमेश्‍वर के भवन में रख दिया,+ जिसके बारे में परमेश्‍वर ने दाविद और उसके बेटे सुलैमान से कहा था, “इस भवन और यरूशलेम के साथ मेरा नाम हमेशा जुड़ा रहेगा, जिन्हें मैंने इसराएल के सभी गोत्रों के इलाके में से चुना है।+ 8 मैं इसराएलियों को इस देश से फिर कभी नहीं निकालूँगा जो मैंने उनके पुरखों को दिया था, बशर्ते वे मेरी सब आज्ञाओं को सख्ती से मानें, उस पूरे कानून को, सारे नियमों और न्याय-सिद्धांतों को मानें जो मैंने मूसा के ज़रिए दिए थे।” 9 मनश्‍शे यहूदा और यरूशलेम के लोगों को सही राह से दूर ले जाता रहा और उन राष्ट्रों से भी बढ़कर दुष्ट काम करवाता रहा, जिन्हें यहोवा ने इसराएलियों के सामने से मिटा दिया था।+

10 यहोवा मनश्‍शे और उसकी प्रजा से बात करता रहा, मगर उन्होंने बिलकुल ध्यान नहीं दिया।+ 11 इसलिए यहोवा ने अश्‍शूर के राजा के सेनापतियों से उन पर हमला करवाया। उन्होंने मनश्‍शे को पकड़ लिया, उसे नकेल डाली* और ताँबे की दो बेड़ियों से जकड़कर बैबिलोन ले गए। 12 अपनी दुख की घड़ी में उसने अपने परमेश्‍वर यहोवा से रहम की भीख माँगी और अपने पुरखों के परमेश्‍वर के सामने खुद को बहुत नम्र किया। 13 वह परमेश्‍वर से प्रार्थना करता रहा। परमेश्‍वर को उसका गिड़गिड़ाना देखकर उस पर तरस आया और उसने उसकी बिनती सुनकर उस पर रहम किया। परमेश्‍वर ने उसे यरूशलेम वापस लाकर उसका राज लौटा दिया।+ तब मनश्‍शे ने जाना कि यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है।+

14 इसके बाद उसने दाविदपुर के लिए घाटी के गीहोन+ के पश्‍चिम में एक बाहरी दीवार खड़ी की।+ यह दीवार बहुत ऊँची थी। उसने यह दीवार दूर मछली फाटक+ तक बनायी। वहाँ से यह दीवार शहर को घेरते हुए ओपेल+ तक पहुँची। और उसने यहूदा के सभी किलेबंद शहरों में सेनापति ठहराए। 15 उसने पराए देवताओं की मूरतें, यहोवा के भवन में रखी मूरत+ और वे सभी वेदियाँ निकाल दीं जो उसने यहोवा के भवन के पहाड़ पर और यरूशलेम में बनवायी थीं।+ उसने ये सारी चीज़ें शहर के बाहर फिंकवा दीं। 16 फिर उसने यहोवा की वेदी तैयार की+ और उस पर शांति-बलियाँ और धन्यवाद-बलियाँ चढ़ाने लगा।+ उसने यहूदा के लोगों से कहा कि वे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करें। 17 लोग अब भी ऊँची जगहों पर बलिदान चढ़ाते रहे मगर वे सिर्फ अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिए ऐसा करते थे।

18 मनश्‍शे की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने अपने परमेश्‍वर से जो प्रार्थना की और दर्शियों ने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से उससे जो बातें कहीं, वह सब इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 19 और उसने जो प्रार्थना की+ और परमेश्‍वर ने जिस तरह उसकी बिनती सुनी और उसने खुद को नम्र करने से पहले क्या-क्या पाप किए, कैसे विश्‍वासघात किया+ और कहाँ-कहाँ ऊँची जगह बनायीं, पूजा-लाठें खड़ी कीं+ और खुदी हुई मूरतें रखीं, उन सबके बारे में दर्शियों के लेखनों में लिखा है। 20 फिर मनश्‍शे की मौत हो गयी* और उसे उसी के घर के पास दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा आमोन राजा बना।+

21 जब आमोन+ राजा बना तब वह 22 साल का था और उसने यरूशलेम से यहूदा पर दो साल राज किया।+ 22 वह अपने पिता मनश्‍शे की तरह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा।+ आमोन ने उन सभी खुदी हुई मूरतों के आगे बलिदान चढ़ाए, जो उसके पिता मनश्‍शे ने बनवायी थीं+ और वह उनकी सेवा करता रहा। 23 मगर उसने यहोवा के सामने खुद को नम्र नहीं किया,+ जैसे उसके पिता मनश्‍शे ने खुद को नम्र किया था।+ इसके बजाय, आमोन ने और भी बढ़-चढ़कर पाप किया। 24 बाद में उसके सेवकों ने उसके खिलाफ साज़िश रची+ और उसी के महल में उसका कत्ल कर दिया। 25 मगर देश के लोगों ने उन सबको मार डाला जिन्होंने राजा आमोन के खिलाफ साज़िश की थी।+ फिर उन्होंने आमोन की जगह उसके बेटे योशियाह+ को राजा बनाया।

34 योशियाह+ जब राजा बना तब वह आठ साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 31 साल राज किया।+ 2 उसने यहोवा की नज़र में सही काम किए और वह अपने पुरखे दाविद के नक्शे-कदम पर चला। वह परमेश्‍वर की बतायी राह से न कभी दाएँ मुड़ा न बाएँ।

3 अपने राज के 8वें साल से जब वह एक लड़का ही था, वह अपने पुरखे दाविद के परमेश्‍वर की खोज करने लगा+ और 12वें साल में उसने यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध करना शुरू किया।+ वह वहाँ की ऊँची जगह,+ पूजा-लाठें* और खुदी+ और ढली हुई मूरतें हटाने लगा। 4 और लोगों ने उसके सामने बाल देवताओं की वेदियाँ ढा दीं और उसने वेदियों के ऊपर के धूप-स्तंभ तोड़ डाले। उसने पूजा-लाठों और खुदी और ढली हुई मूरतों को भी चूर-चूर करके धूल बना दिया और वह धूल उन लोगों की कब्रों पर छिड़क दी जो उन मूरतों के आगे बलिदान चढ़ाते थे।+ 5 उसने उनकी वेदियों पर पुजारियों की हड्डियाँ जला दीं।+ इस तरह उसने यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध किया।

6 उसने मनश्‍शे, एप्रैम,+ शिमोन और नप्ताली तक के शहरों और उनके आस-पास के खंडहरों में 7 वेदियाँ ढा दीं और पूजा-लाठों और खुदी हुई मूरतों को चूर-चूर करके+ धूल बना दिया। पूरे इसराएल देश में जितने भी धूप-स्तंभ थे, उन सबको उसने तोड़ दिया।+ इसके बाद वह यरूशलेम लौट आया।

8 अपने राज के 18वें साल में जब वह देश और मंदिर* को शुद्ध कर चुका था, तब उसने अपने परमेश्‍वर यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिए असल्याह के बेटे शापान,+ शहर के प्रधान मासेयाह और शाही इतिहासकार योआह को भेजा जो योआहाज का बेटा था।+ 9 उन्होंने महायाजक हिलकियाह के पास जाकर उसे वह पैसा दिया जो परमेश्‍वर के भवन में लाया गया था। यह पैसा दरबान का काम करनेवाले लेवियों ने मनश्‍शे, एप्रैम और इसराएल के बाकी लोगों से,+ साथ ही यहूदा, बिन्यामीन और यरूशलेम के निवासियों से इकट्ठा किया था। 10 उन्होंने यह पैसा उन आदमियों को दिया, जिन्हें यहोवा के भवन के काम की निगरानी सौंपी गयी है। फिर यहोवा के भवन में काम करनेवालों ने यह पैसा उसकी मरम्मत करने के लिए इस्तेमाल किया। 11 उन्होंने यह पैसा कारीगरों और राजगीरों को दिया ताकि वे इससे गढ़े हुए पत्थर और टेक के लिए लकड़ी खरीदें और शहतीरों से उन भवनों को बनाएँ, जिन्हें यहूदा के राजाओं ने उजड़ जाने दिया था।+

12 उन आदमियों ने मरम्मत का काम पूरी सच्चाई से किया।+ उनके काम की देखरेख करने के लिए इन लेवियों को ठहराया गया: मरारियों+ में से यहत और ओबद्याह और कहातियों+ में से जकरयाह और मशुल्लाम। और उन सभी लेवियों को, जो कुशल संगीतकार थे,+ 13 आम मज़दूरों* के अधिकारी ठहराया गया और वे उन सभी की निगरानी करनेवाले थे जो हर तरह की सेवा से जुड़े काम करते थे। कुछ लेवी सचिव थे, कुछ अधिकारी थे और कुछ पहरेदार।+

14 जब वे यहोवा के भवन में लाया पैसा निकाल रहे थे,+ तो उसी दौरान याजक हिलकियाह को यहोवा के कानून की वह किताब+ मिली जो मूसा के ज़रिए दी गयी थी।+ 15 हिलकियाह ने राज-सचिव शापान से कहा, “मुझे यहोवा के भवन में कानून की किताब मिल गयी है!” हिलकियाह ने वह किताब शापान को दी। 16 शापान ने वह किताब ले जाकर राजा को दी और उससे कहा, “तेरे सेवक हर वह काम कर रहे हैं जो उन्हें सौंपा गया है। 17 उन्होंने यहोवा के भवन का सारा पैसा निकालकर निगरानी करनेवालों और काम करनेवालों को दिया है।” 18 राज-सचिव शापान ने राजा को यह खबर भी दी, “याजक हिलकियाह ने मुझे एक किताब दी है।”+ फिर शापान राजा को वह किताब पढ़कर सुनाने लगा।+

19 जैसे ही राजा ने कानून में लिखी बातें सुनीं, उसने अपने कपड़े फाड़े।+ 20 फिर उसने हिलकियाह, शापान के बेटे अहीकाम,+ मीका के बेटे अब्दोन, राज-सचिव शापान और अपने सेवक असायाह को यह आदेश दिया: 21 “तुम लोग मेरी तरफ से और इसराएल और यहूदा में बचे हुए लोगों की तरफ से जाओ और यह जो किताब मिली है, इसमें लिखी बातों के बारे में यहोवा से पूछो। हमारे पुरखों ने इस किताब में लिखी यहोवा की आज्ञाओं का पालन नहीं किया, इसमें जो लिखा है उसे नहीं माना, इसलिए यहोवा के क्रोध का प्याला जो हम पर उँडेला जाएगा वह बहुत भयानक होगा।”+

22 तब हिलकियाह, राजा के भेजे हुए आदमियों के साथ मिलकर भविष्यवक्‍तिन+ हुल्दा के पास गया। भविष्यवक्‍तिन हुल्दा, शल्लूम की पत्नी थी जो तिकवा का बेटा और हरहस का पोता था। शल्लूम पोशाक-घर की देखरेख करनेवाला था। हुल्दा यरूशलेम के ‘नए हिस्से’ में रहती थी और वहीं योशियाह के भेजे हुए आदमियों ने उससे बात की।+ 23 हुल्दा ने उनसे कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, ‘जिस आदमी ने तुम्हें मेरे पास भेजा है, उससे कहना: 24 “यहोवा ने कहा है, ‘मैं इस जगह पर और यहाँ रहनेवालों पर विपत्ति लाऊँगा।+ उस किताब में लिखे सारे शाप उन पर आ पड़ेंगे,+ जो यहूदा के राजा के सामने पढ़कर सुनाए गए हैं। 25 उन्होंने मुझे छोड़ दिया है+ और वे दूसरे देवताओं के सामने बलिदान चढ़ाते हैं और अपने हाथ की बनायी चीज़ों से मुझे गुस्सा दिलाते हैं,+ इसलिए मेरे क्रोध का प्याला इस जगह पर उँडेला जाएगा और इसकी आग नहीं बुझेगी।’”+ 26 मगर तुम यहूदा के राजा से, जिसने यहोवा की मरज़ी जानने के लिए तुम्हें भेजा है, कहना, “तूने जो बातें सुनी हैं+ उनके बारे में इसराएल का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, 27 ‘जब तूने सुना कि मैं इस जगह और यहाँ रहनेवालों के साथ क्या करनेवाला हूँ, तो इस बात ने तेरे दिल पर गहरा असर किया और तूने खुद को मेरे सामने नम्र किया और तू अपने कपड़े फाड़कर मेरे सामने रोया। इसलिए मैंने तेरी बिनती सुनी है।’+ यहोवा का यह ऐलान है। 28 ‘इसलिए तेरे जीते-जी मैं इस जगह पर और यहाँ के रहनेवालों पर कहर नहीं ढाऊँगा। तू शांति से मौत की नींद सोएगा* और तुझे अपनी कब्र में दफना दिया जाएगा।’”’”+

तब उन आदमियों ने जाकर यह संदेश राजा को सुनाया। 29 इसलिए राजा ने आदेश दिया और यहूदा और यरूशलेम के सभी मुखियाओं को बुलाया।+ 30 इसके बाद राजा योशियाह, यहूदा के सभी आदमियों को, याजकों और लेवियों को और यरूशलेम के छोटे-बड़े सब लोगों को लेकर यहोवा के भवन में गया। फिर उसने सबको करार की पूरी किताब पढ़कर सुनायी जो यहोवा के भवन में मिली थी।+ 31 राजा अपनी जगह पर खड़ा हुआ और उसने यहोवा के सामने यह करार किया*+ कि हम सब यहोवा के पीछे चलेंगे और पूरे दिल और पूरी जान से+ उसकी आज्ञाओं और विधियों पर चलेंगे, जो हिदायतें वह याद दिलाता है उन्हें मानेंगे और इस किताब में लिखी करार की बातों का हमेशा पालन करेंगे।+ 32 फिर उसने यरूशलेम और बिन्यामीन के इलाके के सभी लोगों से हामी भरायी। और यरूशलेम के निवासियों ने अपने पुरखों के परमेश्‍वर के करार के मुताबिक काम किया।+ 33 फिर योशियाह ने इसराएलियों के सभी इलाकों से सारी घिनौनी चीज़ें* निकाल दीं+ और इसराएल के सब लोगों से उनके परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करायी। जब तक वह ज़िंदा था तब तक वे अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा के पीछे चलने से नहीं हटे।

35 योशियाह ने यरूशलेम में यहोवा के लिए फसह मनाने+ का इंतज़ाम किया और उन्होंने पहले महीने के 14वें दिन+ फसह का बलि-पशु हलाल किया।+ 2 उसने याजकों को उनके काम पर ठहराया और उन्हें बढ़ावा दिया कि वे यहोवा के भवन में अपनी सेवा में लगे रहें।+ 3 फिर उसने लेवियों से, जो पूरे इसराएल में सिखाने का काम करते थे+ और यहोवा के लिए पवित्र थे, कहा, “पवित्र संदूक को उस भवन में रखो जिसे इसराएल के राजा दाविद के बेटे सुलैमान ने बनाया था।+ अब से तुम्हें संदूक को कंधों पर ढोकर ले जाने की ज़रूरत नहीं होगी।+ अब तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा और उसकी प्रजा इसराएल की सेवा करो। 4 तुम अपने-अपने पिता के घराने और अपने दल के मुताबिक सेवा के लिए खुद को तैयार करो, ठीक जैसे इसराएल के राजा दाविद और उसके बेटे सुलैमान ने लिखा था।+ 5 तुम सब पवित्र जगह में अपने-अपने दल के मुताबिक इस तरह खड़े रहो कि हर परिवार की सेवा के लिए उसके साथ एक लेवी परिवार का एक दल रहे। 6 फसह का बलि-पशु हलाल करो,+ खुद को पवित्र करो और अपने भाइयों के लिए तैयारी करो ताकि यहोवा ने मूसा के ज़रिए जो आज्ञा दी है उसका तुम पालन कर सको।”

7 योशियाह ने वहाँ हाज़िर सब लोगों को नर मेम्ने और बकरी के नर बच्चे दान में दिए ताकि वे फसह के लिए उनका बलिदान करें। उसने कुल मिलाकर 30,000 भेड़-बकरियाँ और 3,000 बैल दिए। राजा ने ये सारे जानवर अपने झुंड में से दिए।+ 8 उसके हाकिमों ने भी लोगों, याजकों और लेवियों के लिए जानवर दान किए ताकि वे इनकी स्वेच्छा-बलि दे सकें। सच्चे परमेश्‍वर के भवन के अगुवे हिलकियाह,+ जकरयाह और यहीएल ने याजकों को फसह के बलिदान के लिए 2,600 जानवर दिए, साथ ही 300 बैल भी दिए। 9 कोनन्याह और उसके भाई शमायाह और नतनेल ने और लेवियों के प्रधान हशब्याह, यीएल और योजाबाद ने फसह के बलिदान के लिए लेवियों को 5,000 जानवर दिए, साथ ही 500 बैल भी दिए।

10 त्योहार के लिए तैयारियाँ पूरी हो गयीं और जैसे राजा ने आज्ञा दी थी, याजक अपनी-अपनी जगह खड़े हो गए और लेवी अपने-अपने दल के मुताबिक खड़े हो गए।+ 11 लेवियों ने फसह के बलि-पशु हलाल किए+ और याजकों ने उनके हाथ से खून लेकर वेदी पर छिड़का।+ और लेवी जानवरों की खाल उतारते रहे।+ 12 इसके बाद उन्होंने उन बाकी लोगों को देने के लिए होम-बलियाँ तैयार कीं, जिन्हें अपने पिताओं के कुलों के मुताबिक समूहों में बाँटा गया था ताकि मूसा की किताब में दी हिदायतों के मुताबिक ये बलिदान यहोवा को अर्पित किए जा सकें। उन्होंने बैलों के साथ भी ऐसा ही किया। 13 उन्होंने दस्तूर के मुताबिक फसह के बलि-पशु को आग में पकाया।*+ पवित्र चढ़ावे को उन्होंने हंडों, गोल पेंदे की हंडियों और डोंगों में पकाया और उसे जल्दी से बाकी सभी लोगों के पास ले आए। 14 फिर उन्होंने अपने लिए और याजकों के लिए तैयारियाँ कीं क्योंकि हारूनवंशी याजक अँधेरा होने तक होम-बलियाँ और चरबीवाले हिस्से चढ़ाते रहे। लेवियों ने अपने लिए और हारूनवंशी याजकों के लिए तैयारियाँ कीं।

15 और आसाप के वंश के गायक+ दाविद, आसाप, हेमान और राजा के दर्शी यदूतून की आज्ञा के मुताबिक+ अपनी-अपनी जगह खड़े हुए और पहरेदार अलग-अलग फाटकों पर तैनात हुए।+ उन्हें अपनी सेवा का काम नहीं छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके लेवी भाइयों ने उनके लिए तैयारियाँ की थीं। 16 इस तरह उस दिन यहोवा के लिए सारी सेवाओं की तैयारियाँ की गयीं ताकि फसह मनाया जा सके+ और यहोवा की वेदी पर होम-बलियाँ चढ़ायी जा सकें, ठीक जैसे राजा योशियाह ने आदेश दिया था।+

17 वहाँ हाज़िर इसराएलियों ने उस समय फसह मनाया और फिर सात दिन तक बिन-खमीर की रोटी का त्योहार मनाया।+ 18 इसराएल में जैसा फसह मनाया गया, वैसा भविष्यवक्‍ता शमूएल के ज़माने से लेकर अब तक नहीं मनाया गया था। योशियाह, याजकों, लेवियों, वहाँ मौजूद पूरे यहूदा और इसराएल के सभी लोगों ने और यरूशलेम के निवासियों ने जैसा फसह मनाया वैसा इसराएल के किसी और राजा ने नहीं मनाया था।+ 19 यह फसह योशियाह के राज के 18वें साल में मनाया गया।

20 जब यह सब पूरा हो गया और योशियाह मंदिर* को तैयार कर चुका, तो उसके बाद मिस्र का राजा निको+ युद्ध करने फरात के पास कर्कमीश गया। और योशियाह उसका सामना करने निकला।+ 21 तब निको ने अपने दूतों के हाथ योशियाह को यह संदेश भेजा: “हे यहूदा के राजा, तू क्यों मुझसे लड़ने आ रहा है? मैं तुझसे नहीं किसी और राष्ट्र से लड़ने जा रहा हूँ। परमेश्‍वर ने मुझे जल्दी जाने के लिए कहा है। तेरी भलाई इसी में है कि तू मुझसे मत लड़ क्योंकि परमेश्‍वर मेरे साथ है। उसका विरोध मत कर वरना वह तुझे बरबाद कर देगा।” 22 मगर योशियाह उसके रास्ते से नहीं हटा। उसने निको की बात नहीं मानी जो परमेश्‍वर की तरफ से थी। इसके बजाय वह भेस बदलकर+ निको से लड़ने मगिद्दो के मैदान में गया।+

23 फिर तीरंदाज़ों ने तीरों से राजा योशियाह पर वार किया और राजा ने अपने सेवकों से कहा, “मुझे यहाँ से ले चलो, मैं बुरी तरह घायल हो गया हूँ।” 24 उसके सेवकों ने उसे रथ से उठाया और उसके दूसरे रथ पर बिठाकर यरूशलेम ले आए। इस तरह योशियाह की मौत हो गयी और उसे उसके पुरखों की कब्र में दफनाया गया।+ पूरे यहूदा और यरूशलेम ने उसके लिए मातम मनाया। 25 यिर्मयाह+ ने योशियाह के लिए राग अलापा और सभी गायक-गायिकाएँ+ आज भी अपने शोकगीतों में योशियाह का ज़िक्र करते हैं। फिर यह फैसला किया गया कि ये शोकगीत इसराएल में गाए जाएँ। इन गीतों को शोकगीतों में शामिल किया गया है।

26 योशियाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी और उसने यहोवा के कानून के मुताबिक अपने अटल प्यार का सबूत देते हुए जो काम किए उनका ब्यौरा 27 और शुरू से लेकर आखिर तक उसने जो-जो काम किए उनका ब्यौरा इसराएल और यहूदा के राजाओं की किताब में लिखा है।+

36 फिर यहूदा के लोगों ने योशियाह के बेटे यहोआहाज+ को यरूशलेम में उसके पिता की जगह राजा बनाया।+ 2 यहोआहाज जब राजा बना तब वह 23 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर तीन महीने राज किया। 3 मगर मिस्र के राजा ने उसे यरूशलेम में राजा के पद से हटा दिया और देश पर 100 तोड़े* चाँदी और एक तोड़े सोने का जुरमाना लगा दिया।+ 4 और मिस्र के राजा ने यहोआहाज के भाई एल्याकीम को यहूदा और यरूशलेम का राजा बना दिया और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रख दिया। मगर निको,+ यहोयाकीम के भाई यहोआहाज को मिस्र ले गया।+

5 यहोयाकीम+ जब राजा बना तब वह 25 साल का था और उसने यरूशलेम से यहूदा पर 11 साल राज किया। वह अपने परमेश्‍वर यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा।+ 6 बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर+ ने उस पर हमला कर दिया ताकि उसे ताँबे की दो बेड़ियों से जकड़कर बैबिलोन ले जाए।+ 7 और नबूकदनेस्सर यहोवा के भवन से कुछ बरतन बैबिलोन ले गया और उन्हें वहाँ अपने महल में रख लिया।+ 8 यहोयाकीम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो घिनौने काम किए और उसमें जो बुराइयाँ पायी गयीं, उन सबका ब्यौरा इसराएल और यहूदा के राजाओं की किताब में लिखा है। उसकी जगह उसका बेटा यहोयाकीन राजा बना।+

9 यहोयाकीन+ जब राजा बना तब वह 18 साल का था और उसने यरूशलेम से यहूदा पर तीन महीने, दस दिन राज किया। वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा।+ 10 साल की शुरूआत में* राजा नबूकदनेस्सर ने अपने आदमियों को भेजा ताकि वे यहोयाकीन को पकड़कर बैबिलोन ले आएँ,+ साथ ही यहोवा के भवन से कीमती चीज़ें ले आएँ।+ फिर उसने यहोयाकीन के चाचा सिदकियाह को यहूदा और यरूशलेम का राजा बनाया।+

11 सिदकियाह+ जब राजा बना तब वह 21 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 11 साल राज किया।+ 12 वह अपने परमेश्‍वर यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। उसने भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के सामने खुद को नम्र नहीं किया,+ जो यहोवा के आदेश पर बोलता था। 13 सिदकियाह ने राजा नबूकदनेस्सर से भी बगावत की,+ जिसने उसे परमेश्‍वर के नाम से शपथ धरायी थी। सिदकियाह ढीठ और कठोर बना रहा और उसने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के पास लौटने से इनकार कर दिया। 14 याजकों के सभी प्रधानों और लोगों ने भी परमेश्‍वर से विश्‍वासघात करने में हद कर दी। उन्होंने वे सारे घिनौने काम किए जो दूसरे राष्ट्र करते थे और यहोवा के भवन को दूषित कर दिया,+ जिसे परमेश्‍वर ने यरूशलेम में पवित्र ठहराया था।

15 उनके पुरखों का परमेश्‍वर यहोवा अपने दूत भेजकर उन्हें खबरदार करता रहा, बार-बार आगाह करता रहा क्योंकि उसके दिल में अपने लोगों और निवास के लिए करुणा थी। 16 मगर वे सच्चे परमेश्‍वर के दूतों का मज़ाक उड़ाते रहे,+ उसकी बातों को तुच्छ समझा+ और उसके भविष्यवक्‍ताओं की खिल्ली उड़ाते रहे।+ ऐसा वे तब तक करते रहे जब तक कि यहोवा का क्रोध अपने लोगों पर भड़क न उठा+ और उनके चंगे होने की कोई गुंजाइश नहीं बची।

17 इसलिए परमेश्‍वर ने उन पर कसदियों के राजा से हमला कराया।+ उस राजा ने आकर उनके पवित्र-स्थान में ही उनके जवानों को तलवार से मार डाला।+ उसने लड़कों, लड़कियों, बूढ़ों, बीमारों सबको मार डाला, किसी पर भी तरस नहीं खाया।+ परमेश्‍वर ने सबकुछ उस राजा के हाथ में कर दिया।+ 18 वह सच्चे परमेश्‍वर के भवन की सारी चीज़ें, हर छोटी-बड़ी चीज़ बैबिलोन ले गया। साथ ही यहोवा के भवन के खज़ाने और राजा और उसके हाकिमों के खज़ाने भी लूटकर ले गया।+ 19 उसने सच्चे परमेश्‍वर के भवन को जला दिया,+ यरूशलेम की शहरपनाह तोड़ डाली,+ उसकी सारी किलेबंद मीनारें जला दीं और वहाँ की एक-एक कीमती चीज़ नाश कर दी।+ 20 जो तलवार से बच गए थे उन्हें वह बंदी बनाकर बैबिलोन ले गया+ और वे तब तक उसके और उसके बेटों के गुलाम बने रहे+ जब तक कि फारस के राज्य* का राज शुरू न हुआ।+ 21 ऐसा इसलिए हुआ ताकि यहोवा की वह बात पूरी हो जो उसने यिर्मयाह से कहलवायी थी+ और उन सारे सब्तों का कर्ज़ चुकाया जाए जो देश ने तब तक नहीं मनाए थे।+ जितने समय देश उजाड़ पड़ा रहा उतने समय यानी 70 साल के पूरा होने तक देश ने सब्त मनाया।+

22 फारस के राजा कुसरू+ के राज के पहले साल में यहोवा ने उसके मन को उभारा कि वह अपने पूरे राज्य में एक ऐलान करवाए ताकि यहोवा ने यिर्मयाह से जो बातें कहलवायी थीं+ वे पूरी हों। राजा कुसरू ने यह ऐलान दस्तावेज़ में भी लिखवाया:+ 23 “फारस के राजा कुसरू ने कहा है, ‘स्वर्ग के परमेश्‍वर यहोवा ने धरती के सारे राज्य मेरी मुट्ठी में कर दिए हैं+ और मुझे यह हुक्म दिया है कि मैं यहूदा के यरूशलेम में उसका भवन बनवाऊँ।+ इसलिए तुममें से जो कोई उसके लोगों में से है, उसके साथ उसका परमेश्‍वर यहोवा रहे और वह यरूशलेम जाए।’”+

या “परमेश्‍वर की मरज़ी पूछते थे।”

या “अटल प्यार।”

शा., “लोगों के सामने बाहर जाने और अंदर आने के लिए।”

या “घुड़सवार।”

या “घुड़सवार।”

या शायद, “मिस्र और कोए से मँगाए गए थे; राजा के व्यापारी कोए से घोड़े खरीदकर लाते थे।” शायद कोए, किलिकिया है।

या “बोझ ढोनेवालों।”

यानी नज़राने की रोटी।

एक कोर 220 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

एक बत 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “बोझ ढोने।”

मानक नाप के मुताबिक एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था, मगर कुछ लोगों का मानना है कि “पुराने ज़माने की नाप” का मतलब लंबा हाथ है जो 51.8 सें.मी. (20.4 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।

कुछ पुरानी हस्तलिपियों में यहाँ “120” लिखा है, तो दूसरी हस्तलिपियों और कुछ अनुवादों में “20 हाथ” लिखा है।

शा., “भवन।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

शा., “भवन।”

यानी पवित्र भाग की तरफ।

या “दक्षिण की।”

या “उत्तर की।”

मतलब “वह [यानी यहोवा] मज़बूती से कायम करे।”

शायद इसका मतलब है, “ताकत के साथ।”

करीब 7.4 सें.मी. (2.9 इंच)। अति. ख14 देखें।

एक बत 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “पानी के ठेले।”

यानी छप्परों का त्योहार।

या “लेवी याजक।”

एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “अटल प्यार।”

या “संगी-साथी उसे शाप देता है।” यानी ऐसी शपथ जिसमें उस इंसान को शाप मिलता था जो झूठी शपथ खाता है या अपनी शपथ पूरी नहीं करता।

शा., “शाप।”

शा., “नेक।”

या “दुख दे।”

शा., “उसके फाटकों के देश।”

या “के बारे में।”

शा., “का मुँह न फेर दे।”

या “अटल प्यार।”

शायद यहाँ लेवियों की बात की गयी है।

या “हमात के प्रवेश।”

शब्दावली देखें।

त्योहार के बादवाला दिन या 15वाँ दिन।

शा., “कहावत।”

शा., “इसराएल के बेटों।”

या “दोबारा बनाया।”

या “का अच्छा इंतज़ाम किया; पूरा किया।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “ताकि पहेलियाँ पूछकर।”

शा., “कोई बात उससे छिपी न थी।”

या “बातों।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या शायद, “उसके बराबर की कीमत के तोहफे भी राजा ने उसे दिए।”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

ये ढालें अकसर तीरंदाज़ ढोते थे।

इब्रानी शास्त्र में बताए एक मीना का वज़न 570 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

शा., “उसका मुँह देखना चाहते थे।”

या “घुड़सवार।”

यानी फरात नदी।

शा., “वह अपने पुरखों के साथ सो गया।”

या “मुखियाओं।”

या “मुखियाओं।”

या “मुखियाओं।”

शा., “तंबू।”

शा., “चुने हुए।”

या “मज़बूत किया।”

शा., “बकरों।”

या “तितर-बितर कर दिया।”

शा., “राज्यों।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शा., “चुने हुए।”

शा., “चुने हुए।”

यानी यह करार सदा के लिए है और कभी नहीं बदलेगा।

शा., “अपना हाथ भरने आता है।”

यानी नज़राने की रोटी।

शा., “चुने हुए।”

या “वर्णन; टिप्पणी।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शब्दावली देखें।

शा., “दो पल्लेवाले फाटक।”

ये ढालें अकसर तीरंदाज़ ढोते थे।

शा., “बहुत दिनों।”

शा., “न बाहर जानेवाले को शांति थी न अंदर आनेवाले को।”

शा., “तुम्हारे हाथ ढीले न पड़ें।”

शब्दावली देखें।

या “मज़बूत करने; दोबारा बनाने।”

या “करार।”

या “मज़बूत करने; दोबारा बनाने।”

या “मज़बूत किए; दोबारा बनाए।”

या “उन लोगों का साथ दे।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

ज़ाहिर है, आसा की लाश नहीं बल्कि मसाले जलाए गए थे।

शा., “आज्ञाओं पर चला।”

शब्दावली देखें।

या “धकेलता।”

शा., “मुझे छावनी।”

या “शांति से।”

शब्दावली देखें।

या “करने की तेरे दिल ने ठान ली है।”

या “यहोवा भलाई के साथ रहे।”

या शायद, “मऊनी लोग।”

ज़ाहिर है, मृत सागर।

शा., “बेटों।”

या “तुम्हें छुड़ाता है।”

या “धीरज धर सको।”

शा., “को आशीर्वाद दिया।”

मतलब “आशीर्वाद।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

या “को वेश्‍याओं जैसी बदचलनी।”

या “को वेश्‍याओं जैसी बदचलनी।”

अहज्याह भी कहलाता था।

शा., “बेटी।”

या “बीमार।”

कुछ इब्रानी हस्तलिपियों में “अजरयाह।”

शा., “बेटे।”

शा., “राज के सारे बीज नाश कर दिए।”

शा., “जब राजा बाहर जाए और जब वह अंदर आए।”

ये ढालें अकसर तीरंदाज़ ढोते थे।

शायद एक खर्रा जिसमें परमेश्‍वर का कानून लिखा था।

या शायद, “जब तक कि सब नहीं दे देते।”

शब्दावली देखें।

या “के खिलाफ गवाही।”

या “अटल प्यार।”

यानी जकरयाह का पिता।

यानी सीरिया की सेना ने।

या “बहुत-सी बीमारियाँ लगी थीं।”

या “बेटे।” शायद सम्मान देने के लिए बहुवचन इस्तेमाल हुआ है।

शा., “बुनियाद डालने।”

या “वर्णन; टिप्पणी।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “का सामना।”

शा., “तूने।”

शा., “तंबू।”

अहज्याह भी कहलाता था।

करीब 178 मी. (584 फुट)। अति. ख14 देखें।

यानी उसके पिता अमज्याह।

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

या “काटे,” शायद चट्टान में से।

या “पठार पर।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

एक कोर 220 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

या “ढली हुई मूरतें।”

शब्दावली में “गेहन्‍ना” देखें।

शा., “घर।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शा., “सीटी बजायी।”

या “आराम करने।”

यानी नज़राने की रोटी।

शा., “अब तुमने अपना हाथ भर लिया है।”

शा., “लेवी खुद को पवित्र करने में मन के सीधे-सच्चे थे।”

या “सेवाओं की तैयारी की गयी।”

शा., “उसने उन्हें एक मन देकर।”

शा., “चंगा किया।”

शब्दावली देखें।

शा., “की छावनियों।”

या “के लिए खुद को पूरी तरह लगा दें।”

या “भोजन के कमरे।”

या “मिल्लो।” इस इब्रानी शब्द का मतलब “भरना” है।

या “अपनी सेना की पूरी ताकत और शान।”

शा., “उसकी।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “को गड्‌ढों में पकड़ा।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शब्दावली देखें।

शा., “भवन।”

या “बोझ ढोनेवालों।”

शा., “अपने पुरखों में जा मिलेगा।”

या “दोबारा करार किया।”

या “मूरतें।”

या शायद, “भूना।”

शा., “भवन।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शायद वसंत में।

या “के शाही घराने।”

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