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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
यशायाह

यशायाह

1 यहूदा और यरूशलेम के बारे में यशायाह* का दर्शन।+ आमोज के बेटे यशायाह ने यह दर्शन यहूदा के राजा उज्जियाह,+ योताम,+ आहाज+ और हिजकियाह+ के दिनों में देखा था।+

 2 हे आकाश सुन, हे पृथ्वी कान लगा!+

यहोवा कहता है,

“जिन बेटों को मैंने पाल-पोसकर बड़ा किया,+

वे मेरे ही खिलाफ हो गए।+

 3 बैल अपने मालिक को पहचानता है

और गधा अपने मालिक की चरनी को,

लेकिन इसराएल मुझे* नहीं पहचानता,+

मेरे अपने लोग समझ से काम नहीं लेते।”

 4 हे पापी राष्ट्र, धिक्कार है तुझ पर!+

हे बुरे काम से लदे हुए लोगो,

हे भ्रष्ट बच्चो और दुष्टों की टोली, धिक्कार है तुम पर!

तुमने यहोवा को छोड़ दिया है,+

इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर का अपमान किया है,

उससे मुँह फेर लिया है।

 5 तुम बगावत करने से बाज़ नहीं आते,

अब मैं तुम्हें और कहाँ मारूँ?+

तुम्हारा पूरा सिर घाव से भरा है

और दिल पूरी तरह बीमार है।+

 6 सिर से पाँव तक ऐसी एक भी जगह नहीं जहाँ तुम्हें चोट न लगी हो।

जगह-जगह ज़ख्म, चोट और सड़े हुए घाव हैं,

न तो उनका मवाद निकाला गया,* न उन पर पट्टी बाँधी गयी

और न ही तेल लगाकर उन्हें नरम किया गया।+

 7 तुम्हारा देश उजाड़ दिया गया है,

तुम्हारे शहर जला दिए गए हैं,

परदेसी तुम्हारे सामने तुम्हारी फसल खा रहे हैं।+

देश वीरान हो गया है जैसे दुश्‍मनों ने इसे तबाह कर दिया हो।+

 8 सिय्योन शहर को ऐसा छोड़ दिया गया है मानो वह अंगूरों के बाग का छप्पर,

खीरे के खेत में झोंपड़ी

और सेना से घिरा हुआ शहर हो।+

 9 अगर सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने हममें से कुछ को रहने न दिया होता,

तो हम सदोम की तरह बन गए होते,

हमारा हाल अमोरा जैसा हो गया होता।+

10 हे सदोम के तानाशाहो,* यहोवा का संदेश सुनो!+

हे अमोरा के लोगो,+ हमारे परमेश्‍वर के कानून* पर ध्यान दो!

11 यहोवा कहता है, “तुम्हारे ढेरों बलिदान मेरे किस काम के?+

मेढ़ों की होम-बलि+ और मोटे-ताज़े जानवरों की चरबी+ से मैं उकता चुका हूँ,

अब मुझे तुम्हारे बैलों और भेड़-बकरियों+ के खून+ से कोई खुशी नहीं मिलती।

12 तुमसे किसने कहा कि मेरे सामने आओ,+

मेरे आँगनों को यूँ रौंदो?+

13 तुम अनाज का अपना व्यर्थ चढ़ावा लाना बंद करो!

तुम्हारा धूप जलाना मुझे घिनौना लगता है।+

तुम नया चाँद+ और सब्त मनाते हो+ और पवित्र सभाएँ रखते हो।+

लेकिन मुझसे यह बरदाश्‍त नहीं होता कि खास सभाएँ रखने के साथ-साथ तुम जादू-टोना करो।+

14 मुझे तुम्हारे नए चाँद के दिनों और त्योहारों से नफरत है,

ये मुझे बोझ लगने लगे हैं, इन्हें ढोते-ढोते मैं थक गया हूँ।

15 जब तुम मेरे आगे हाथ फैलाओगे,

तो मैं अपनी आँखें फेर लूँगा।+

तुम चाहे जितनी भी प्रार्थना कर लो,+

मैं तुम्हारी एक न सुनूँगा,+

क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से रंगे हैं।+

16 खुद को धोओ और शुद्ध करो,+

मेरे सामने से अपने दुष्ट काम दूर करो,

बुराई करना बंद करो।+

17 भलाई करना सीखो, न्याय करो,+

ज़ुल्म करनेवालों को सुधारो,

अनाथों* के हक के लिए लड़ो

और विधवाओं को इंसाफ दिलाओ।”+

18 यहोवा कहता है, “आओ हम आपस में मामला सुलझा लें,+

चाहे तुम्हारे पाप सुर्ख लाल रंग के हों,

तो भी वे बर्फ के समान सफेद हो जाएँगे।+

चाहे वे गहरे लाल रंग के हों,

तो भी वे ऊन की तरह उजले बन जाएँगे।

19 अगर तुम मेरी बात मानने को राज़ी हो,

तो तुम देश की बढ़िया-बढ़िया चीज़ें खाओगे।+

20 लेकिन अगर तुम नहीं मानोगे और मेरे खिलाफ हो जाओगे,

तो तुम तलवार की भेंट चढ़ जाओगे।+

यह बात यहोवा ने कही है।”

21 देखो, यह विश्‍वासयोग्य नगरी+ कैसी वेश्‍या बन गयी है!+

जिस नगरी में न्याय का बोलबाला था,+

नेकी का बसेरा था,+

अब वहाँ हत्यारे रहते हैं।+

22 तुम्हारी चाँदी, धातु का मैल बन गयी है,+

तुम्हारी शराब* में पानी मिल गया है।

23 तुम्हारे हाकिम अड़ियल हैं और चोरों से मिले हुए हैं,+

सब-के-सब घूस खाते हैं, तोहफे के पीछे भागते हैं,+

अनाथों को न्याय नहीं देते

और विधवाओं के मुकदमे की सुनवाई नहीं करते।+

24 इसलिए सच्चा प्रभु, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

इसराएल का शक्‍तिशाली परमेश्‍वर ऐलान करता है,

“अब मैं अपने दुश्‍मनों को खदेड़ूँगा,

अपने बैरियों से बदला लूँगा।+

25 मैं तुम्हारे खिलाफ अपना हाथ उठाऊँगा

और जैसे चाँदी को पिघलाकर उसका मैल सज्जी* से दूर किया जाता है,

वैसे ही मैं तुम्हारी सारी अशुद्धता दूर करूँगा।+

26 फिर मैं पहले की तरह,

तुम पर न्यायी और सलाहकार ठहराऊँगा।+

इसके बाद तुम नेक नगरी और विश्‍वासयोग्य नगरी कहलाओगे।+

27 सिय्योन न्याय के दम पर छुड़ायी जाएगी+

और उसके लौटनेवाले लोग नेकी से छुड़ाए जाएँगे।

28 मगर बागियों और पापियों का एक-साथ नाश हो जाएगा+

और यहोवा को छोड़ देनेवालों का अंत हो जाएगा।+

29 जो ऊँचे-ऊँचे पेड़ तुम्हें प्यारे थे, उनकी वजह से तुम्हें शर्मिंदा होना पड़ेगा।+

अपने चुने हुए बगीचों* की वजह से तुम्हें बेइज़्ज़त होना पड़ेगा।+

30 तुम उस बड़े पेड़ जैसे बन जाओगे जिसके पत्ते मुरझा रहे हैं,+

उस बगीचे के समान हो जाओगे जिसमें पानी नहीं।

31 ताकतवर आदमी अलसी के धागे जैसा बन जाएगा

और उसके काम चिंगारी जैसे हो जाएँगे,

दोनों एक साथ जलेंगे,

उन्हें बुझानेवाला कोई न होगा।”

2 आमोज के बेटे यशायाह ने यहूदा और यरूशलेम के बारे में यह दर्शन देखा:+

 2 आखिरी दिनों में,

यहोवा के भवन का पर्वत,

सब पहाड़ों के ऊपर बुलंद किया जाएगा+

और सभी पहाड़ियों से ऊँचा किया जाएगा।

राष्ट्रों के लोग धारा के समान उसकी ओर आएँगे,+

 3 देश-देश के लोग आएँगे और कहेंगे,

“आओ हम यहोवा के पर्वत पर चढ़ें,

याकूब के परमेश्‍वर के भवन की ओर जाएँ।+

वह हमें अपने मार्ग सिखाएगा

और हम उसकी राहों पर चलेंगे।”+

क्योंकि सिय्योन से कानून* दिया जाएगा

और यरूशलेम से यहोवा का वचन।+

 4 वह राष्ट्रों को अपने फैसले सुनाएगा,

देश-देश के लोगों के मामले सुलझाएगा।

वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल

और अपने भालों को हँसिया बनाएँगे।+

एक देश दूसरे देश पर फिर तलवार नहीं चलाएगा

और न लोग फिर कभी युद्ध करना सीखेंगे।+

 5 हे याकूब के घराने,

आ, हम यहोवा की रौशनी में चलें।+

 6 हे परमेश्‍वर, तूने अपने लोगों को, याकूब के घराने को त्याग दिया है,+

क्योंकि उन्होंने पूरब देश की कई बातें अपना ली हैं,

वे पलिश्‍तियों की तरह जादू-टोना करने लगे हैं+

और उनका देश परदेसियों* से भर गया है।

 7 उनके पास ढेर सारा सोना-चाँदी है,

उन्हें दौलत की कोई कमी नहीं।

उनके देश में ढेर सारे घोड़े हैं,

उन्हें रथों की कोई कमी नहीं।+

 8 उनका देश निकम्मी मूरतों से भरा पड़ा है,+

वे अपने ही हाथ की कारीगरी के आगे झुकते हैं

हाँ, उन मूरतों के आगे जिन्हें उनकी उँगलियों ने ढाला है।

 9 इस तरह वे खुद को नीचा करते हैं, अपनी बेइज़्ज़ती कराते हैं,

तू उन्हें माफ मत करना!

10 जब यहोवा पूरे वैभव के साथ आएगा+

और अपना खौफ फैलाएगा,

तो चट्टानों में चले जाना, खुद को धूल में छिपा लेना।

11 तब घमंड से चढ़ी आँखें नीची की जाएँगी,

इंसान का गुरूर तोड़ दिया जाएगा,

उस दिन सिर्फ यहोवा को ऊँचा किया जाएगा,

12 क्योंकि वह सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का दिन होगा।+

वह दिन घमंडियों और अहंकारियों पर,

रुतबेदार और मामूली इंसानों पर, सब लोगों पर आ पड़ेगा।+

13 लबानोन के ऊँचे-ऊँचे देवदारों पर

और बाशान के बाँज के पेड़ों पर,

14 आसमान छूते पहाड़ों पर

और ऊँची-ऊँची पहाड़ियों पर,

15 बड़ी-बड़ी मीनारों और मज़बूत शहरपनाहों पर,

16 तरशीश के सभी जहाज़ों पर+

और सुंदर-सुंदर नाव पर वह दिन आ पड़ेगा।

17 तब इंसान की सारी हेकड़ी खत्म हो जाएगी,

उसका घमंड चूर-चूर कर दिया जाएगा,

उस दिन सिर्फ यहोवा को ऊँचा किया जाएगा।

18 निकम्मे देवताओं का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा।+

19 जब यहोवा पूरे वैभव के साथ आएगा

और अपना खौफ फैलाएगा,

जब वह धरती को आतंक से कँपकँपाएगा,

तब लोग गुफाओं और चट्टानों में चले जाएँगे,

गड्‌ढे खोदकर उसमें घुस जाएँगे।+

20 उस दिन लोग अपने सोने-चाँदी की निकम्मी मूरतों को,

जो उन्होंने दंडवत करने के लिए बनायी थीं,

छछूँदरों और चमगादड़ों के आगे फेंक देंगे+

21 और छिपने के लिए चट्टानों की खोह

और दरारों में घुस जाएँगे,

क्योंकि यहोवा पूरे वैभव के साथ आएगा

और अपना खौफ फैलाएगा,

वह धरती को आतंक से कँपकँपाएगा।

22 इसलिए भलाई इसी में है कि अदना इंसान पर भरोसा रखना बंद करो,

जो बस नथनों की साँस है।

इंसान है ही क्या जो उस पर ध्यान दिया जाए?

3 देख! सच्चा प्रभु, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

यरूशलेम और यहूदा से उनका हर सहारा छीन लेगा।

उनकी रोटी-पानी ले लेगा,+

 2 उनके शक्‍तिशाली आदमियों और योद्धाओं को,

न्यायियों और भविष्यवक्‍ताओं को,+ ज्योतिषियों और मुखियाओं को,

 3 50 आदमियों के प्रधानों को,+ ऊँचे अधिकारियों और सलाहकारों को,

माहिर जादूगरों और सपेरों+ को उनसे छीन लेगा।

 4 मैं लड़कों को उन पर हाकिम ठहराऊँगा

और उन पर ऐसा शासक राज करेगा जो डाँवाँडोल होता रहता है।

 5 लोग एक-दूसरे पर ज़्यादती करेंगे,

हर कोई अपने साथी पर ज़ुल्म ढाएगा,+

लड़का बड़े-बूढ़ों पर हाथ उठाएगा

और नीच इंसान इज़्ज़तदार का अपमान करेगा।+

 6 हर कोई अपने पिता के घर में अपने भाई को पकड़कर कहेगा,

“तेरे पास तो चोगा है, आ हमारा राजा बन जा,

खंडहरों के इस ढेर पर राज कर।”

 7 लेकिन वह नहीं मानेगा और कहेगा,

“मैं तुम्हारी मरहम-पट्टी* करनेवाला नहीं बन सकता,

मुझे खुद खाने-पहनने के लाले पड़े हैं!

मुझे नहीं बनना किसी का राजा।”

 8 यरूशलेम डगमगा गया है, यहूदा गिर गया है,

क्योंकि उनकी बातें और उनके काम यहोवा के खिलाफ हैं,

महिमावान परमेश्‍वर* के सामने उन्होंने उसकी आज्ञा तोड़ी है।+

 9 उनके चेहरे के भाव उनके खिलाफ गवाही देते हैं,

वे सदोम के लोगों की तरह अपने पापों का ढिंढोरा पीटते हैं,+

इन्हें छिपाने की कोशिश नहीं करते।

धिक्कार है उन पर! वे खुद पर बरबादी जो ला रहे हैं।

10 नेक जनों से कह कि उनका भला होगा,

उन्हें अपने कामों का अच्छा फल मिलेगा।+

11 मगर दुष्टों का बुरा हाल होगा,

उन पर विपत्ति आ पड़ेगी,

क्योंकि जैसा उन्होंने दूसरों के साथ किया, उनके साथ भी वैसा ही होगा।

12 जहाँ तक मेरे लोगों की बात है, उनसे काम करानेवाले बहुत बेरहम हैं,

मेरे लोगों पर औरतें राज करती हैं।

हे मेरे लोगो, तुम्हारे अगुवे तुम्हें गुमराह कर रहे हैं,

उन्होंने तुम्हारे लिए सही राह पहचानना मुश्‍किल कर दिया है।+

13 यहोवा देश-देश के लोगों से हिसाब लेने

और अपना फैसला सुनाने के लिए खड़ा हो गया है।

14 यहोवा अपने लोगों के मुखियाओं और हाकिमों को सज़ा सुनाएगा। वह उनसे कहेगा,

“तुमने अंगूरों का बाग जलाकर राख कर दिया

और गरीबों को लूटकर अपने घर भरे।”+

15 सारे जहान का मालिक, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा यह भी कहेगा,

“मेरे लोगों को कुचलने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई!

गरीबों का मुँह धूल में रगड़ने की तुमने जुर्रत कैसे की!”+

16 यहोवा कहता है, “सिय्योन की बेटियों में कितना घमंड है,

वे सिर उठाए चलती हैं, आँखें मटकाती हैं,

पायल से छम-छम करती हुईं, ठुमक-ठुमक कर चलती हैं।

17 इसलिए यहोवा सिय्योन की बेटियों का सिर पपड़ीदार घाव से भर देगा,

यहोवा उन्हें गंजा कर देगा।+

18 उस दिन यहोवा उनके सिंगार की ये चीज़ें छीन लेगा:

उनकी पाजेब, माथे की लड़ी, चंद्रहार,+

19 झुमके, कंगन, घूँघट,

20 ओढ़नी, पायल, सीनाबंद,

इत्रदान, तावीज़,*

21 अँगूठी, नथ,

22 कीमती कपड़े, कोटी, शाल, बटुआ,

23 हाथ का आईना,+ मलमल की कुरती,*

पगड़ी और घूँघट।

24 बलसाँ के तेल+ की खुशबू की जगह उनसे बदबू आएगी,

उनकी कमर पर कमरबंद की जगह रस्सी बँधी होगी,

सजे-सँवरे बालों की जगह गंजापन होगा,+

कीमती कपड़ों की जगह वे टाट पहनेंगी,+

खूबसूरती की जगह उन पर गुलामी का निशान होगा।

25 हे सिय्योन, तेरे आदमी तलवार की भेंट चढ़ जाएँगे,

तेरे योद्धा युद्ध में मारे जाएँगे।+

26 सिय्योन के फाटक रोएँगे और मातम मनाएँगे,+

यह नगरी लुटी-पिटी, ज़मीन पर बैठी रहेगी।”+

4 उस दिन सात औरतें एक आदमी को पकड़कर+ कहेंगी,

“हम अपने खाने-पीने का इंतज़ाम खुद कर लेंगे,

अपने लिए कपड़े-लत्ते भी जुटा लेंगे,

बस हमें अपनाकर अपना नाम दे दे

ताकि हमारी बदनामी* दूर हो जाए।”+

2 उस दिन हर वह चीज़ जो यहोवा उगाएगा, सुंदर और शानदार दिखेगी। और देश की उपज इसराएल के बचे हुओं के लिए उनकी शोभा और गौरव ठहरेगी।+ 3 सिय्योन के बचे हुए लोग और यरूशलेम के बचे-खुचे लोग, हाँ, वे सब जिनके नाम यरूशलेम में रहने के लिए लिखे गए थे,+ पवित्र कहलाएँगे।

4 यहोवा यरूशलेम पर अपना क्रोध दिखाएगा और उसका न्याय करेगा। इस तरह वह सिय्योन की बेटियों की गंदगी* धो डालेगा+ और यरूशलेम से खून-खराबा मिटा देगा।+ 5 यहोवा यह भी करेगा: दिन के वक्‍त वह पूरे सिय्योन पहाड़ और सभावाले इलाके को बादल और धुएँ से ढक देगा और रात के वक्‍त जलती हुई आग से रौशन करेगा।+ इस शानदार देश पर सुरक्षा छायी रहेगी। 6 वहाँ एक छप्पर भी होगा जो दिन की तपती धूप में छाँव देगा+ और तूफान और बरसात से बचने के लिए आड़ ठहरेगा।+

5 मैं अपने अज़ीज़ के लिए एक गीत गाऊँगा,

यह गीत उसके और उसके अंगूरों के बाग के बारे में है।+

मेरे अज़ीज़ का बाग फलती-फूलती पहाड़ियों की ढलान पर था।

 2 उसने ज़मीन की खुदाई की,

उसमें से कंकड़-पत्थर निकाले,

बढ़िया लाल अंगूरों की कलम लगायी,

बाग के बीचों-बीच एक मीनार बनायी

और अंगूर रौंदने का हौद भी खोदा।+

फिर बढ़िया अंगूर लगने का इंतज़ार करने लगा,

मगर बेलों पर जंगली अंगूर उग आए।+

 3 इसलिए उसने कहा, “हे यरूशलेम के रहनेवालो! हे यहूदा के लोगो!

अब तुम्हीं मेरे और मेरे अंगूरों के बाग के बीच फैसला करो।+

 4 मैंने अपने बाग के लिए क्या-कुछ नहीं किया।+

फिर ऐसा क्यों हुआ कि जब मैंने अच्छे अंगूरों की उम्मीद की,

तो मुझे जंगली अंगूर मिले?

 5 अब मैं तुम्हें बताता हूँ

कि मैं अपने अंगूरों के बाग के साथ क्या करूँगा:

मैं इसका काँटेदार बाड़ा निकाल दूँगा

और बाग को जला दिया जाएगा।+

मैं पत्थरों की दीवार ढा दूँगा

और बाग को रौंद दिया जाएगा।

 6 मैं इसे बंजर बना दूँगा,+

इसकी कभी छँटाई नहीं की जाएगी,

न ही इसमें कुदाल चलाया जाएगा,

पूरा बाग कँटीली झाड़ियों और जंगली पौधों से भर जाएगा।+

मैं बादलों को हुक्म दूँगा कि इस पर न बरसें।+

 7 मैं सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा हूँ और इसराएल मेरे अंगूरों का बाग है।+

यहूदा के आदमी इसकी बेल हैं जिनसे मुझे खास लगाव था।

मैंने उनसे न्याय की उम्मीद की थी,+

मगर चारों तरफ अन्याय का बोलबाला है,

मैंने सोचा था वे नेकी से चलेंगे,

मगर जहाँ देखो वहाँ दुख-भरी पुकार सुनायी दे रही है।”+

 8 धिक्कार है उन पर,

जो घर से घर मिलाते जाते हैं+

और अपने खेत ऐसे बढ़ाते जाते हैं+ कि कोई ज़मीन नहीं बचती,

पूरे इलाके पर अकेले मालिक बन बैठते हैं।

 9 सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की यह शपथ मेरे कानों में गूँज उठी,

बहुत-से घर सुनसान और उजाड़ हो जाएँगे,

इन आलीशान घरों की हालत देखकर,

लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएँगे।+

10 दस एकड़* के बाग से सिर्फ बत-भर* अंगूर मिलेंगे,

होमेर-भर* बीज से सिर्फ एक एपा* अनाज मिलेगा।+

11 धिक्कार है उन पर जो सुबह-सुबह उठकर शराब पीते हैं+

और शाम को देर तक दाख-मदिरा पीते रहते हैं, जब तक कि धुत्त न हो जाएँ।

12 उनकी दावतों में सुरमंडल, तारोंवाला बाजा,

डफली और बाँसुरी बजायी जाती है, दाख-मदिरा पी जाती है,

लेकिन वे यहोवा के कामों पर गौर नहीं करते,

उसके हाथ के कामों पर कोई ध्यान नहीं देते।

13 मेरे लोगों ने मुझे नहीं जाना,+

इसलिए उन्हें बंदी बनाकर ले जाया जाएगा।

उनके इज़्ज़तदार आदमी भूख से बेहाल हो जाएँगे+

और उनके सब लोग प्यास के मारे तड़पेंगे।

14 कब्र ने जगह बनायी है,

वह मुँह फाड़े खड़ी है+ कि कब यरूशलेम के बड़े-बड़े लोगों,*

हुल्लड़ मचानेवालों और मौज-मस्ती करनेवालों को निगल जाए।

15 तब इंसान को झुकना पड़ेगा,

इंसान को बेइज़्ज़त किया जाएगा,

घमंड से चढ़ी उसकी आँखें नीची की जाएँगी।

16 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा सज़ा देकर* खुद को ऊँचा करेगा,

सच्चा और पवित्र परमेश्‍वर+ अपनी नेकी+ के कारण पवित्र ठहरेगा।

17 मेम्ने वीरान जगहों पर ऐसे चरेंगे मानो उनका अपना मैदान हो।

जो जगह मोटे-ताज़े जानवरों का पेट भरती थीं, अब परदेसियों का पेट भरेंगी।

18 धिक्कार है उन पर,

जो अपने दोष को कपट की डोरी से

और अपने पाप को बैल-गाड़ी के रस्से से खींचते हैं

19 और जो कहते हैं, “परमेश्‍वर ज़रा फुर्ती करे,

फटाफट अपना काम करे कि हम उसका काम देखें।

इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर अपना मकसद* जल्दी पूरा करे ताकि हम इसे जान सकें।”+

20 धिक्कार है उन पर,

जो अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा कहते हैं,+

जो अंधकार को रौशनी और रौशनी को अंधकार बताते हैं,

जो कड़वे को मीठा और मीठे को कड़वा कहते हैं।

21 धिक्कार है उन पर,

जो अपनी ही नज़र में बुद्धिमान हैं

और जो समझते हैं कि उनमें बहुत सूझ-बूझ है।+

22 धिक्कार है उन पर,

जो छककर दाख-मदिरा पीते हैं,

जो शराब में मसाला मिलाने में उस्ताद हैं,+

23 जो घूस खाकर दुष्ट को बरी कर देते हैं+

और जो नेक जन को इंसाफ नहीं दिलाते।+

24 इसलिए जैसे आग में घास-फूस भस्म हो जाती है,

लपटों से सूखी घास झुलस जाती है,

वैसे ही वे भी खत्म हो जाएँगे,

उनकी जड़ें सड़ जाएँगी,

उनके फूल धूल की तरह उड़ जाएँगे,

क्योंकि उन्होंने सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का कानून* ठुकराया है

और इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर की बातों का अनादर किया है।+

25 इस वजह से यहोवा का क्रोध अपने लोगों पर भड़क उठा है,

वह अपना हाथ बढ़ाकर उन्हें मारेगा।+

तब पहाड़ काँप उठेंगे,

उनकी लाशें कूड़े की तरह गलियों में पड़ी रहेंगी,+

फिर भी उसका क्रोध शांत नहीं होगा,

उन्हें मारने के लिए वह अपना हाथ बढ़ाए रखेगा।

26 उसने झंडा खड़ा करके दूर के एक राष्ट्र को बुलाया है,+

सीटी बजाकर पृथ्वी के छोर से उन लोगों को बुलाया है।+

देखो, वे तेज़ी से आ रहे हैं!+

27 न तो वे थके-माँदे हैं, न उनके कदम लड़खड़ा रहे हैं,

न कोई ऊँघ रहा है न कोई सो रहा है,

किसी का भी कमरबंद ढीला नहीं है,

न ही उनकी जूतियों के फीते टूटे हैं।

28 उनके तीर पैने हैं

और उनके कमान तने हुए हैं।

उनके घोड़ों के खुर चकमक पत्थर जैसे सख्त हैं

और उनके रथ के पहियों में तूफान की तेज़ी है।+

29 वे शेर की तरह गरजते हैं,

जवान शेर की तरह दहाड़ते हैं।+

वे गुर्राते हुए अपने शिकार पर झपट पड़ेंगे और उसे उठा ले जाएँगे,

कोई उसे उनके हाथ से नहीं छुड़ा सकेगा।

30 उस दिन वे अपने शिकार पर समुंदर के गरजन की तरह गरजेंगे।+

जो कोई उस देश को देखेगा,

उसे अंधकार और संकट दिखायी देगा।

घने बादलों के छाने से सूरज भी बुझ जाएगा।+

6 जिस साल राजा उज्जियाह की मौत हुई,+ मैंने एक दर्शन देखा। मैंने यहोवा को एक बहुत ही ऊँची राजगद्दी पर बैठे देखा।+ उसके कपड़े के घेरे से पूरा मंदिर भरा हुआ था। 2 उसके आस-पास साराप खड़े थे। उनके छ: पंख थे, दो से वे अपना चेहरा ढके हुए थे, दो से पाँव और दो से वे उड़ रहे थे।

 3 साराप एक-दूसरे को पुकार-पुकारकर कह रहे थे,

“सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है।+

सारी पृथ्वी उसकी महिमा से भर गयी है।”

4 उनकी गूँज से* दरवाज़ों की चूल हिल उठी और पूरा घर धुएँ से भर गया।+

 5 यह देखकर मैंने कहा, “हाय! अब मैं ज़िंदा नहीं बचूँगा,

क्योंकि मेरे होंठ अशुद्ध हैं,

मैं अशुद्ध होंठवाले इंसानों के बीच रहता हूँ+

और मैंने सेनाओं के परमेश्‍वर

और महाराजाधिराज यहोवा को देख लिया है।”

6 तभी एक साराप उड़ता हुआ मेरे पास आया। वह चिमटे में एक अंगारा लिए हुए था,+ जो उसने वेदी से उठाया था।+ 7 उसने अंगारे से मेरे मुँह को छूकर कहा,

“देख, इसने तेरे होंठों को छू लिया,

तेरे अपराध दूर हो गए,

तेरे पाप माफ किए गए।”*

8 फिर मैंने यहोवा को यह कहते सुना, “मैं किसे भेजूँ? कौन हमारी+ तरफ से जाएगा?” मैंने कहा, “मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज!”+

 9 तब परमेश्‍वर ने कहा,

“जा! और उन लोगों से कह,

‘तुम बार-बार सुनोगे, फिर भी न समझोगे,

बार-बार देखोगे, फिर भी न सीखोगे।’+

10 उन लोगों का मन सुन्‍न कर दे,+

उनके कान बहरे कर दे,+

उनकी आँखें बंद कर दे

कि आँखें होते हुए भी वे देख न सकें,

कान होते हुए भी सुन न सकें,

उनका मन बातों को समझ न सके

और वे पलटकर लौट न आएँ और चंगे हो जाएँ।”+

11 तब मैंने पूछा, “हे यहोवा, ऐसा कब तक रहेगा?”

उसने कहा, “जब तक शहर खंडहर न हो जाएँ और कोई निवासी न बचे,

जब तक सारे घर खाली न हो जाएँ,

जब तक पूरा देश तहस-नहस होकर उजड़ न जाए,+

12 जब तक यहोवा लोगों को खदेड़कर दूर न भगा दे+

और सारे देश में सन्‍नाटा न छा जाए।

13 मगर इसराएल के लोगों का दसवाँ हिस्सा बच जाएगा। उन्हें एक बड़े पेड़ और बाँज पेड़ की तरह काटकर फिर से आग में झोंक दिया जाएगा। मगर सिर्फ ठूँठ रह जाएगा। पवित्र वंश ही वह ठूँठ होगा।”

7 उन दिनों योताम का बेटा और उज्जियाह का पोता आहाज, यहूदा का राजा था।+ उस वक्‍त सीरिया का राजा रसीन और इसराएल का राजा पेकह,+ जो रमल्याह का बेटा था यरूशलेम से लड़ने आए। लेकिन वह* उसे अपने कब्ज़े में नहीं कर पाया।+ 2 जब वे चढ़ाई करने आए थे तो दाविद के घराने को यह खबर दी गयी, “एप्रैम* के साथ सीरिया भी मिल गया है।”

यह सुनते ही आहाज और उसके लोगों का दिल ऐसा काँप उठा, जैसे जंगल के पेड़ आँधी में काँप उठते हैं।

3 तब यहोवा ने यशायाह से कहा, “ज़रा अपने बेटे शार-याशूब*+ को लेकर आहाज के पास जा। वह तुझे ऊपरवाले तालाब की नहर के छोर पर मिलेगा,+ जो धोबी के मैदान की तरफ जानेवाले राजमार्ग के पास है। 4 उससे कहना, ‘घबरा मत! सीरिया के राजा रसीन और रमल्याह के बेटे+ के धधकते क्रोध को देखकर खौफ न खा, न हिम्मत हार। क्योंकि वे दोनों जलती लकड़ियाँ हैं, जो बस बुझने पर हैं। 5 सीरिया, एप्रैम और रमल्याह के बेटे ने मिलकर तेरे खिलाफ साज़िश रची है और कहा है, 6 “आओ हम यहूदा पर धावा बोल दें और उसके टुकड़े-टुकड़े कर दें।* और ताबेल के बेटे को वहाँ का राजा बनाएँ।”+

7 सारे जहान का मालिक यहोवा कहता है,

“ऐसा कभी नहीं होगा!

उनकी साज़िश कभी कामयाब नहीं होगी।

 8 सीरिया का सिर दमिश्‍क है

और दमिश्‍क का सिर रसीन है।

65 साल के अंदर एप्रैम तहस-नहस हो जाएगा,

उसके लोगों का वजूद मिट जाएगा।+

 9 एप्रैम का सिर सामरिया है+

और सामरिया का सिर रमल्याह का बेटा है।+

जब तक तुम लोगों में मज़बूत विश्‍वास न हो,

तुम मज़बूती से खड़े नहीं रह पाओगे।”’”

10 यहोवा ने आहाज से यह भी कहा, 11 “माँग, तुझे अपने परमेश्‍वर यहोवा से क्या निशानी चाहिए।+ चाहे वह कब्र जितनी गहरी हो या आसमान जितनी ऊँची, मैं वह निशानी तुझे ज़रूर दूँगा।” 12 लेकिन आहाज ने कहा, “नहीं, मैं कोई निशानी नहीं मागूँगा। मैं यहोवा को नहीं परखना चाहता।”

13 तब यशायाह ने कहा, “ऐ दाविद के घराने, सुन! क्या इंसानों के सब्र की परीक्षा लेकर तेरा जी नहीं भरा, जो तू परमेश्‍वर के सब्र की परीक्षा लेना चाहता है?+ 14 अब यहोवा खुद तुझे एक निशानी देगा। देख! एक लड़की गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी।+ वह उसका नाम इम्मानुएल* रखेगी।+ 15 इससे पहले कि वह लड़का बुराई को ठुकराना और अच्छाई को अपनाना सीखे, वह सिर्फ मक्खन और शहद खाएगा क्योंकि खाने को और कुछ नहीं होगा। 16 और जब तक वह लड़का बुराई को ठुकराना और अच्छाई को अपनाना सीखेगा, इन दोनों राजाओं के देश पूरी तरह खंडहर बन चुके होंगे,+ वही राजा जिनसे तू डर रहा है। 17 यहोवा तुझे, तेरे पिता के घराने को और तेरे लोगों को ऐसा दिन दिखाएगा, जो तुमने तब से नहीं देखा जब से एप्रैम, यहूदा से अलग हुआ है।+ वह तुम्हारे खिलाफ अश्‍शूर के राजा को भेजेगा।+

18 उस दिन यहोवा सीटी बजाकर दूर मिस्र में नील की धाराओं से मक्खियों को और अश्‍शूर से मधुमक्खियों को बुलाएगा। 19 वे सब-की-सब आकर गहरी घाटियों, चट्टान की दरारों, कँटीली झाड़ियों और पानीवाली जगहों पर छा जाएँगी।

20 उस दिन यहोवा महानदी* के इलाके के अश्‍शूर के राजा से, हाँ, उस भाड़े के उस्तरे से+ सिर और पाँव के बाल और दाढ़ी को सफाचट कर देगा।

21 उस दिन एक आदमी के पास अपने मवेशियों में से एक गाय और दो भेड़ें बचेंगी। 22 उसके पास सिर्फ दूध होगा इसलिए वह मक्खन खाएगा और देश के बचे हुए लोगों के पास भी शहद और मक्खन के सिवा कुछ नहीं होगा।

23 उस दिन जहाँ कहीं अंगूर की 1,000 बेलें होती थीं, जिनकी कीमत चाँदी के 1,000 टुकड़े थी, वहाँ सिर्फ कँटीली झाड़ियाँ और जंगली पौधे उगेंगे। 24 पूरा इलाका कँटीली झाड़ियों और जंगली पौधों से भर जाएगा। वहाँ जाने के लिए लोगों को तीर-कमान लेकर चलना पड़ेगा। 25 और जिन पहाड़ों पर एक वक्‍त कुदाल से सफाई की जाती थी, अब वहाँ कँटीली झाड़ियों और जंगली पौधों के डर से तू नहीं जाएगा। वह बैलों और भेड़ों के चरने की जगह बन जाएगी।”

8 यहोवा ने मुझसे कहा, “एक बड़ी तख्ती ले+ और उस पर एक मामूली कलम* से लिख, ‘महेर-शालाल-हाश-बज़।’* 2 और याजक उरियाह+ और जेबेरेक्याह का बेटा जकरयाह जो सच्चे गवाह हैं, उनसे कह कि वे इस बात की गवाही लिखकर दें।”

3 फिर मैंने अपनी पत्नी के साथ संबंध रखे* जो भविष्यवक्‍तिन थी। वह गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया।+ तब यहोवा ने मुझसे कहा, “इसका नाम महेर-शालाल-हाश-बज़ रख 4 क्योंकि इससे पहले कि यह लड़का ‘माँ’ और ‘पिताजी’ बोलना सीखे, दमिश्‍क की दौलत और सामरिया के लूट का माल ले लिया जाएगा और अश्‍शूर के राजा के सामने लाया जाएगा।”+

5 यहोवा ने मुझसे यह भी कहा,

 6 “इन लोगों ने शीलोह* के बहते पानी को ठुकराया है+

और ये रमल्याह के बेटे और रसीन से खुश हैं।+

 7 इसलिए देख! यहोवा उनके खिलाफ

महानदी* का विशाल और शक्‍तिशाली पानी ले आएगा,

हाँ, अश्‍शूर का राजा+ पूरी ताकत के साथ उनसे लड़ने आएगा।

वह आकर उनके नदी-नालों को भर देगा,

तटों के ऊपर बहने लगेगा।

 8 वह यहूदा को भी अपनी चपेट में ले लेगा

और उसे गले तक डुबा देगा।+

हे इम्मानुएल!*+

तेरा पूरा देश उसके पंख फैलाने से ढक जाएगा।”

 9 हे लोगो, उन्हें चोट पहुँचाकर तो देखो! तुम्हें चूर-चूर कर दिया जाएगा।

हे पृथ्वी के दूर देश के लोगो, सुनो!

युद्ध के लिए अपनी कमर कस लो, मगर तुम्हें चूर-चूर कर दिया जाएगा!+

युद्ध के लिए अपनी कमर कस लो, मगर तुम्हें चूर-चूर कर दिया जाएगा!

10 जो योजना बनानी है बना लो, मगर वह नाकाम हो जाएगी,

जो कहना है कह लो, मगर वह पूरा नहीं होगा,

क्योंकि परमेश्‍वर हमारे साथ है!*+

11 यहोवा का शक्‍तिशाली हाथ मुझ पर था और उसने मुझे खबरदार किया कि मैं इन लोगों की राह न चलूँ। उसने कहा,

12 “जब ये लोग कहें, ‘आओ हम साज़िश रचें!’

तो तुम मत कहना, ‘हाँ-हाँ चलो साज़िश रचें।’

जिससे वे डरते हैं उससे तुम मत डरना, न उससे खौफ खाना।

13 याद रखो, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा पवित्र है,+

वही है जिसका तुम्हें डर मानना चाहिए,

जिससे तुम्हें खौफ खाना चाहिए।”+

14 वह पनाह साबित होगा,

लेकिन इसराएल के दोनों घरानों के लिए,

वह ऐसा पत्थर होगा जिससे वे ठोकर खाएँगे,

ऐसी चट्टान होगा जिससे वे टकराएँगे।+

यरूशलेम के रहनेवालों के लिए,

वह फंदा और जाल बनेगा।

15 कई लोग ठोकर खाएँगे, गिरेंगे, ज़ख्मी होंगे,

फँस जाएँगे और पकड़े जाएँगे।

16 उस खर्रे को लपेट लो जिस पर संदेश लिखा है,

मेरे चेलों के बीच कानून* को मुहरबंद कर दो!

17 मैं यहोवा पर उम्मीद लगाए रखूँगा,*+ जो याकूब के घराने से मुँह फेरे हुए है।+ और मैं उस पर आस लगाए रखूँगा।

18 देखो, मैं और मेरे ये बच्चे जो यहोवा ने मुझे दिए हैं,+ इसराएल के लिए चिन्ह और चमत्कार ठहरे हैं।+ ये चिन्ह और चमत्कार सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से हैं जो सिय्योन पर्वत पर रहता है।

19 अगर वे तुमसे कहें, “उनके पास जाओ जो मरे हुओं से संपर्क करने का दावा करते हैं या जो भविष्य बताते हैं, हाँ, जो चहचहाते और बुदबुदाते हैं, उनसे पूछताछ करो,” तो क्या तुम ऐसा करोगे? क्या ज़िंदा लोगों के लिए, मरे हुओं से बात करना सही है?+ क्या एक इंसान को अपने परमेश्‍वर के पास जाकर पूछताछ नहीं करनी चाहिए? 20 हाँ! परमेश्‍वर की लिखी बातों में और उसके कानून में ही खोजबीन की जानी चाहिए।

जो इनके मुताबिक बातें नहीं करते, उनके पास कोई रौशनी* नहीं।+ 21 जहाँ देखो वहाँ लोग दुखी होंगे, भूख से बिलख रहे होंगे।+ भूख और गुस्से में वे अपने राजा को बददुआएँ देंगे और ऊपर आसमान की तरफ देखकर परमेश्‍वर को कोसेंगे। 22 जब वे धरती पर नज़र डालेंगे तो उन्हें रौशनी की कोई किरण नहीं दिखेगी। चारों तरफ नज़र आएगा तो सिर्फ दुख, धुँधलापन, अंधकार और मुश्‍किलें।

9 लेकिन यह अंधकार वैसा नहीं होगा जैसा उस वक्‍त था जब देश पर मुसीबत आयी थी, जब बीते समय में जबूलून के देश और नप्ताली के देश को नीचा दिखाया गया था।+ मगर बाद में परमेश्‍वर उस देश का मान बढ़ाएगा, जो समुंदर के रास्ते पर और यरदन के इलाके में आता है और गैर-यहूदियों का गलील कहलाता है।

 2 अंधकार में चलनेवालों ने तेज़ रौशनी देखी है,

जिस देश में घुप अँधेरा छाया था,

वहाँ के रहनेवालों पर रौशनी चमकी है।+

 3 तूने उस राष्ट्र के लोगों की गिनती बढ़ायी है,

तूने उन्हें बहुत खुशियाँ दी हैं।

वे तेरे सामने ऐसे मगन हैं, जैसे कटाई के समय

और लूट का माल बाँटते समय लोग मगन होते हैं,

 4 क्योंकि तूने उनके बोझ के जुए को, उनके कंधों पर रखे छड़ को,

उनसे काम लेनेवाले जल्लादों की लाठी को तोड़ दिया है,

जैसा तूने मिद्यानियों के दिनों में किया था।+

 5 ज़मीन को हिलाकर रख देनेवाले फौजी जूते

और खून से सने कपड़े आग में भस्म कर दिए जाएँगे।

 6 हमारे लिए एक लड़का पैदा हुआ है,+

हमें एक बेटा दिया गया है,

उसे राज करने का अधिकार* सौंपा जाएगा,*+

उसे* बेजोड़ सलाहकार,+ शक्‍तिशाली ईश्‍वर,+ युग-युग का पिता और शांति का शासक कहा जाएगा।

 7 उसकी हुकूमत* बढ़ती जाएगी

और शांति का अंत नहीं होगा।+

वह अपने राज में दाविद की राजगद्दी पर बैठेगा,+

वह अपना राज मज़बूती से कायम करेगा,+

वह अब से हमेशा तक

न्याय और नेकी से उसे सँभाले रहेगा।+

सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा अपने जोश के कारण ऐसा ज़रूर करेगा।

 8 यहोवा ने याकूब के खिलाफ पैगाम भेजा है,

इसराएल के खिलाफ संदेश भेजा है+

 9 और यह बात एप्रैम और सामरिया के रहनेवाले,

हाँ, सब लोग जान लेंगे,

जो घमंड में चूर होकर और दिल की ढिठाई से कहते हैं,

10 “कच्ची ईंटों का घर गिर गया तो क्या हुआ,

हम तराशे हुए पत्थरों से इसकी दीवार खड़ी करेंगे।+

गूलर के पेड़ काट डाले गए तो क्या हुआ,

हम उनकी जगह देवदार के पेड़ लगाएँगे।”

11 यहोवा रसीन के दुश्‍मनों को उसके खिलाफ खड़ा करेगा

और इसराएल के दुश्‍मनों को हमला करने के लिए उभारेगा।

12 पूरब से सीरिया और पश्‍चिम से पलिश्‍ती आएँगे,+

वे मुँह फाड़े इसराएल पर टूट पड़ेंगे और उसे खा जाएँगे।+

फिर भी परमेश्‍वर का क्रोध शांत नहीं होगा,

उसे मारने के लिए वह अपना हाथ बढ़ाए रखेगा,+

13 क्योंकि ये लोग अपने मारनेवाले के पास नहीं लौट रहे,

सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा को नहीं ढूँढ़ रहे।+

14 इसलिए यहोवा एक ही दिन में इसराएल का सिर और दुम,

उसकी टहनी और लंबी-लंबी घास* काट देगा।+

15 मुखिया और इज़्ज़तदार लोग उसका सिर हैं

और झूठी बातें सिखानेवाले भविष्यवक्‍ता उसकी दुम।+

16 उसके अगुवे लोगों को गलत राह पर ले जाते हैं

और उनके पीछे चलनेवाले उलझन में हैं।

17 यहोवा उनके जवान आदमियों से खुश नहीं होगा,

अनाथों* और विधवाओं पर कोई रहम नहीं करेगा,

क्योंकि सब-के-सब दुष्ट हो गए हैं,

उन्होंने परमेश्‍वर से मुँह मोड़ लिया है,+

जिसे देखो, वह बेसिर-पैर की बातें करता है।

यही वजह है कि परमेश्‍वर का क्रोध शांत नहीं होगा,

बल्कि उन्हें मारने के लिए वह अपना हाथ बढ़ाए रखेगा।+

18 दुष्टता धधकती आग की तरह है,

जो कँटीली झाड़ियों और जंगली पौधों को भस्म कर देती है,

जंगल की घनी झाड़ियों में आग लगा देती है,

जिसका धुआँ आसमान की तरफ उठने लगता है।

19 सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के क्रोध ने पूरे देश में आग लगा दी है।

लोगों को ईंधन की तरह इस आग में डाला जाएगा,

ऐसा हाल होगा कि भाई, भाई को नहीं छोड़ेगा।

20 वे अपने दायीं तरफ माँस का टुकड़ा काटकर खाएँगे,

फिर भी भूखे रह जाएँगे।

अपने बायीं तरफ माँस का टुकड़ा नोचेंगे,

फिर भी उनका पेट नहीं भरेगा।

हर कोई अपने ही हाथ का माँस काटकर खाएगा।

21 मनश्‍शे एप्रैम को उजाड़ेगा

और एप्रैम मनश्‍शे को।

मगर वे दोनों मिलकर यहूदा से लड़ेंगे।+

यही वजह है कि परमेश्‍वर का क्रोध शांत नहीं होगा,

बल्कि उन्हें मारने के लिए वह अपना हाथ बढ़ाए रखेगा।+

10 धिक्कार है उन पर जो ऐसे नियम बनाते हैं,

जिनसे दूसरों का नुकसान होता है,+

ऐसे आदेश जारी करते हैं,

जिनसे लोगों का जीना दूभर हो जाता है।

 2 ऐसे में गरीब इंसाफ के लिए फरियाद नहीं कर पाता,

मेरे दीन-दुखियों को उनका हक नहीं मिल पाता।+

वे विधवाओं और अनाथों* को लूट का माल समझते हैं।+

 3 उस दिन तुम क्या करोगे, जिस दिन तुमसे हिसाब लिया जाएगा?*+

जब दूर से तुम पर विनाश आ पड़ेगा,+

तब मदद माँगने किसके पास भागोगे?+

अपनी दौलत* कहाँ छोड़ जाओगे?

 4 तुम्हारे आगे कोई रास्ता नहीं बचेगा,

या तो तुम कैदियों के बीच दुबककर बैठे होगे या लाशों के ढेर में मरे पड़े होगे।

फिर भी परमेश्‍वर का क्रोध शांत नहीं होगा,

बल्कि तुम्हें मारने के लिए वह अपना हाथ बढ़ाए रखेगा।+

 5 “देखो, वह रहा अश्‍शूर!+

वह मेरे क्रोध की छड़ी है,+

उसके हाथ में वह लाठी है जिससे मैं अपनी जलजलाहट दिखाऊँगा।

 6 मैं उसे उस राष्ट्र के खिलाफ भेजूँगा जिसने मुझसे मुँह मोड़ लिया है,+

उन लोगों के खिलाफ जिन्होंने मेरा क्रोध भड़काया है।

मैं उसे हुक्म दूँगा कि वह उन्हें पूरी तरह लूट ले,

उन्हें ऐसे रौंद दे जैसे गली का कीचड़ रौंदा जाता है।+

 7 लेकिन उसका झुकाव किसी और बात की तरफ होगा,

उसके मन में कुछ और ही चल रहा होगा।

वह देश को मिटा देना चाहता है

और कुछ देशों को नहीं बल्कि कई देशों को तबाह करना चाहता है।

 8 क्योंकि वह कहता है,

‘ये सब-के-सब हाकिम जो मेरे अधीन हैं, पहले राजा हुआ करते थे।+

 9 क्या कलनो,+ कर्कमीश+ की तरह नहीं?

क्या हमात,+ अरपाद की तरह नहीं?+

क्या सामरिया,+ दमिश्‍क की तरह नहीं?+

10 मैंने ऐसे राज्यों को मुट्ठी में किया है जहाँ निकम्मे देवता पूजे जाते थे,

जहाँ यरूशलेम और सामरिया से ज़्यादा देवताओं की मूरतें थीं।+

11 जो हाल मैंने सामरिया और उसके निकम्मे देवताओं का किया,

क्या वही हाल मैं यरूशलेम और उसकी मूरतों का नहीं कर सकता?’+

12 जब यहोवा सिय्योन पहाड़ और यरूशलेम में अपना सब काम पूरा कर लेगा, तब वह* अश्‍शूर के राजा को उसके मन की ढिठाई और घमंड से चढ़ी आँखों के लिए सज़ा देगा।+ 13 क्योंकि अश्‍शूर ने कहा था,

‘मैं अपनी ताकत के दम पर,

अपनी बुद्धि के बल पर यह सब करूँगा क्योंकि मैं बुद्धिमान हूँ।

मैं देश-देश की सीमाएँ तोड़ दूँगा,+

उनका खज़ाना लूट लूँगा,+

एक शूरवीर की तरह उनके निवासियों को अपने अधीन कर लूँगा।+

14 जैसे एक आदमी घोंसले में हाथ डालकर अंडे निकाल लेता है,

वैसे ही मैं देश-देश के लोगों से उनकी दौलत छीन लूँगा।

जिस तरह कोई लावारिस अंडों को बटोर लेता है,

उसी तरह मैं पूरी पृथ्वी को बटोर लूँगा!

कोई पंख फड़फड़ाने, चोंच खोलने या चीं-चीं करने की जुर्रत भी नहीं करेगा।’”

15 क्या कुल्हाड़ी अपने चलानेवाले से बड़ी हो सकती है?

क्या आरा खुद को अपने काटनेवाले से बड़ा बता सकता है?

क्या लाठी+ अपने चलानेवाले को चला सकती है?

या छड़ी उसे घुमा सकती है जो उसे लिए-लिए फिरता है?

16 इसलिए सच्चा प्रभु, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

उसके* हट्टे-कट्टे लोगों को पीड़ित करके दुबला बना देगा,+

वह उसकी शान को आग में जलाकर राख कर देगा।+

17 ‘इसराएल की रौशनी’+ आग बन जाएगी,+

पवित्र परमेश्‍वर आग की लपटों की तरह धधक उठेगा,

एक ही दिन में उसके जंगली पौधे और कँटीली झाड़ियाँ भस्म हो जाएँगी।

18 परमेश्‍वर उसके जंगल और फलों के बाग की शान मिट्टी में मिला देगा,

वह हाल कर देगा मानो किसी रोगी का शरीर घुलता जा रहा हो।+

19 उसके जंगल में इतने कम पेड़ रह जाएँगे

कि बच्चा भी उन्हें गिन लेगा।

20 उस दिन इसराएल में जो लोग ज़िंदा बचेंगे,

याकूब के घराने के बचे हुए लोग,

फिर कभी उसका सहारा नहीं लेंगे जिसने उन्हें मारा था।+

इसके बजाय, वे सच्चे मन से इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर का,

हाँ, यहोवा का सहारा लेंगे।

21 सिर्फ कुछ ही लोग, याकूब के बचे हुए लोग ही,

शक्‍तिशाली परमेश्‍वर के पास लौटेंगे।+

22 हे इसराएल, चाहे तेरे लोग

समुंदर की बालू के किनकों जैसे अनगिनत हों,

मगर उनमें से सिर्फ मुट्ठी-भर* लौटेंगे।+

परमेश्‍वर ने तुम्हारा विनाश तय कर दिया है+

और जल्द ही उसका दंड* तुम पर आ पड़ेगा।+

23 सारे जहान का मालिक और सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

जो विनाश लानेवाला है वह पूरे देश पर आ पड़ेगा।+

24 इसलिए सारे जहान का मालिक और सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, “हे सिय्योन में रहनेवाले मेरे लोगो, अश्‍शूर से मत डरो जो मिस्र की तरह तुम पर छड़ी उठाता है+ और लाठी चलाता है।+ 25 क्योंकि थोड़ी देर में मेरी जलजलाहट शांत हो जाएगी। फिर मेरा क्रोध उस पर भड़क उठेगा और उसका विनाश कर देगा।+ 26 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा उसे कोड़ों से मारेगा,+ जैसे उसने ओरेब की चट्टान के पास मिद्यानियों को मारा था।+ वह अपनी लाठी समुंदर के ऊपर उठाएगा, जैसे उसने मिस्र के खिलाफ उठायी थी।+

27 उस दिन अश्‍शूर के राजा का बोझ तेरे कंधों से,

उसका जुआ तेरी गरदन से उठा लिया जाएगा+

और तेल के कारण वह जुआ तोड़ दिया जाएगा।”+

28 उसने अय्यात+ पर हमला कर दिया है,

वह मिगरोन से होकर गया है,

मिकमाश+ में उसने अपना सामान छोड़ा है,

29 उसने नदी का घाट पार करके गेबा+ में रात गुज़ारी है,

रामाह थर-थर काँप रहा है

और शाऊल का शहर गिबा+ भाग खड़ा हुआ।+

30 हे गल्लीम की बेटी, चीख-चीखकर रो!

हे लैशा, ध्यान दे!

ऐ अनातोत,+ दुख से चिल्ला!

31 मदमेना भाग गया है,

गेबीम के रहनेवालों ने कहीं और पनाह ले ली है।

32 आज के दिन वह नोब+ में रुकेगा।

वह सिय्योन की बेटी के पहाड़ को,

यरूशलेम की पहाड़ी को घूँसा दिखाकर धमकी देगा।

33 देखो, सच्चा प्रभु, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

इस तरह टहनियाँ काटेगा कि भयंकर शोर मचेगा।+

वह लंबे-लंबे पेड़ों को काटकर गिरा देगा,

जो ऊँचे हैं उन्हें नीचा करेगा।

34 जंगल की घनी झाड़ियों को कुल्हाड़ी से काट डालेगा,

लबानोन एक शूरवीर के हाथों गिराया जाएगा।

11 यिशै के ठूँठ से एक टहनी उगेगी,+

उसकी जड़ों से एक अंकुर फूटेगा+ जो फलेगा-फूलेगा।

 2 उस पर यहोवा की पवित्र शक्‍ति छायी रहेगी,+

इसलिए वह बुद्धिमान होगा,+ उसमें बड़ी समझ होगी,

वह बढ़िया सलाह देगा, शक्‍तिशाली और बहुत ज्ञानी होगा+

और वह यहोवा का डर मानेगा।

 3 यहोवा का डर मानने में उसे खुशी मिलेगी,+

वह मुँह देखा न्याय नहीं करेगा

और न सुनी-सुनायी बातों के आधार पर डाँट लगाएगा।+

 4 वह सच्चाई* से गरीबों का न्याय करेगा,

सीधाई से डाँट लगाएगा कि पृथ्वी के दीन लोगों का भला हो।

अपने मुँह की छड़ी से वह धरती को मारेगा,+

अपनी फूँक से* दुष्टों को खत्म कर देगा।+

 5 वह कमर पर नेकी का कमरबंद कसेगा

और सच्चाई का पट्टा बाँधेगा।+

 6 भेड़िया, मेम्ने के साथ बैठेगा,+

चीता, बकरी के बच्चे के साथ लेटेगा,

बछड़ा, शेर और मोटा-ताज़ा बैल* मिल-जुलकर रहेंगे*+

और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा।

 7 गाय और रीछनी एक-साथ चरेंगी

और उनके बच्चे साथ-साथ बैठेंगे,

शेर, बैल के समान घास-फूस खाएगा।+

 8 दूध पीता बच्चा नाग के बिल के पास खेलेगा

और दूध छुड़ाया हुआ बच्चा ज़हरीले साँप के बिल में हाथ डालेगा।

 9 मेरे सारे पवित्र पर्वत पर

वे न किसी को चोट पहुँचाएँगे,+ न तबाही मचाएँगे,+

क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी,

जैसे समुंदर पानी से भरा रहता है।+

10 उस दिन यिशै की जड़,+ झंडे की तरह खड़ी होगी

और देश-देश के लोगों को बुलाएगी,+

सब राष्ट्र सलाह लेने उसके पास आएँगे*+

और उसका निवास महिमा से भर जाएगा।

11 उस दिन यहोवा एक बार फिर अपना हाथ बढ़ाएगा और अपने बचे हुए लोगों को वापस ले आएगा। वह अश्‍शूर,+ मिस्र,+ पत्रोस,+ कूश,*+ एलाम,+ शिनार,* हमात और समुंदर के द्वीपों से अपने लोगों को इकट्ठा करेगा।+ 12 वह राष्ट्रों के लिए एक झंडा खड़ा करेगा और इसराएल के बिखरे हुए लोगों को इकट्ठा करेगा।+ और धरती के चारों कोनों में तितर-बितर हुए यहूदा के लोगों को वापस ले आएगा।+

13 तब एप्रैम की जलन खत्म हो जाएगी+

और यहूदा को सतानेवाले मिट जाएँगे।

एप्रैम फिर यहूदा से जलन नहीं रखेगा,

न यहूदा एप्रैम से दुश्‍मनी निकालेगा।+

14 वे मिलकर पश्‍चिम में पलिश्‍तियों की ढलान* पर झपट्टा मारेंगे

और पूरब के लोगों को लूट लेंगे।

वे एदोम और मोआब को दबोचने के लिए अपना हाथ बढ़ाएँगे+

और अम्मोन को अपने अधीन कर लेंगे।+

15 यहोवा मिस्र में समुंदर की खाड़ी को दो हिस्सों में बाँट देगा*+

और महानदी*+ पर अपना हाथ उठाएगा।

अपनी साँसों की गरमी* से वह नदी की सात धाराओं को मारेगा*

और लोग जूतियाँ पहने उसे पार कर लेंगे।

16 वह अपने बचे हुओं के लिए अश्‍शूर से ऐसा राजमार्ग निकालेगा,+

जैसा उसने तब निकाला था जब इसराएल मिस्र से लौटा था।

12 उस दिन तू यह ज़रूर कहेगा,

“हे यहोवा, तेरा लाख-लाख शुक्रिया!

भले ही तेरा क्रोध मुझ पर भड़क उठा था,

पर अब तेरा क्रोध थम गया है और तूने मुझे दिलासा दिया है।+

 2 देखो, परमेश्‍वर मेरा उद्धारकर्ता है,+

मैं उस पर भरोसा रखूँगा और मुझे कोई डर नहीं सताएगा।+

याह* यहोवा मेरी ताकत है, मेरा बल है,

वही मेरा उद्धारकर्ता है।”+

 3 तुम खुशी-खुशी उद्धार के सोतों से पानी भरोगे।+

 4 उस दिन तुम कहोगे,

“यहोवा का शुक्रिया अदा करो, उसका नाम पुकारो,

उसके कामों के बारे में देश-देश के लोगों को बताओ!+

ऐलान करो कि उसका नाम कितना महान है।+

 5 यहोवा की तारीफ में गीत गाओ*+ क्योंकि उसने शानदार काम किए हैं,+

यह खबर पूरी दुनिया में फैलाओ।

 6 हे सिय्योन की रहनेवाली,* खुशी के मारे जयजयकार कर,

क्योंकि तेरे बीच इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर महान है।”

13 आमोज के बेटे यशायाह+ ने एक दर्शन देखा, जिसमें बैबिलोन के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:+

 2 “वीरान पहाड़ पर झंडा खड़ा करो,+

आवाज़ लगाओ और हाथ दिखाकर सैनिकों को बुलाओ

कि वे बड़े-बड़े लोगों के फाटकों से घुस आएँ।

 3 मैंने जिन्हें ठहराया है+ उन्हें* मैंने हुक्म दिया है,

अपने योद्धाओं को इकट्ठा किया है कि वे मेरा क्रोध उँडेलें,

इस पर वे घमंड से फूल उठे और बड़े खुश हुए।

 4 सुनो! पहाड़ों से लोगों की आवाज़ आ रही है,

ऐसा लगता है भीड़-की-भीड़ जमा हो रही है।

राज्यों के इकट्ठा होने का शोर हो रहा है,

हाँ, राष्ट्रों के जमा होने का कोलाहल सुनायी दे रहा है।+

सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा युद्ध के लिए अपनी सेना तैयार कर रहा है।+

 5 वे दूर देश से, हाँ, आकाश के छोर से चले आ रहे हैं,+

यहोवा और उसके क्रोध के हथियार पूरी धरती को उजाड़ने आ रहे हैं।+

 6 ज़ोर-ज़ोर से रोओ क्योंकि यहोवा का दिन करीब है!

वह दिन सर्वशक्‍तिमान की तरफ से विनाश का दिन होगा।+

 7 इस कारण सबके हाथ ढीले पड़ जाएँगे,

हर किसी का दिल काँप उठेगा,+

 8 लोग सुध-बुध खो बैठेंगे,+

उनके पेट में मरोड़ उठेगी, वे दर्द से छटपटाएँगे,

मानो किसी गर्भवती को प्रसव-पीड़ा उठी हो।

वे हक्के-बक्के होकर एक-दूसरे का मुँह ताकेंगे,

उनके चेहरे पर डर और चिंता छा जाएगी।

 9 देखो, यहोवा का दिन आ रहा है!

यह दिन क्रोध और जलजलाहट के साथ आएगा,

यह दिन किसी पर रहम नहीं खाएगा,

देश का वह हाल करेगा कि देखनेवालों के होश उड़ जाएँगे।+

वह पापियों को उसमें से मिटा देगा।

10 आसमान के तारे और तारामंडल,*+

अपनी रौशनी देना बंद कर देंगे।

उगता सूरज उजाला नहीं देगा,

न चाँद अपनी चाँदनी बिखेरेगा।

11 मैं धरती के रहनेवालों को उनकी बुराई का सिला दूँगा+

और दुष्टों को उनके गुनाहों की सज़ा दूँगा।

मैं गुस्ताख लोगों का घमंड तोड़ दूँगा

और तानाशाहों का गुरूर तोड़ दूँगा।+

12 मैं नश्‍वर इंसान को शुद्ध सोने से ज़्यादा,

हाँ, ओपीर के सोने+ से ज़्यादा दुर्लभ बना दूँगा।+

13 यही वजह है कि मैं, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

आसमान को कँपकँपा दूँगा और क्रोध के दिन अपनी जलजलाहट लाकर,

धरती को उसकी जगह से हिला दूँगा।+

14 हर कोई अपने लोगों के पास लौट जाएगा

और अपने देश भाग खड़ा होगा,+

जैसे चिकारा अपनी जान बचाकर भागता है

और भेड़-बकरियाँ बिन चरवाहे के तितर-बितर हो जाती हैं।

15 जो कोई मिलेगा उसे भेद दिया जाएगा,

जो पकड़ा जाएगा वह तलवार से मारा जाएगा।+

16 उनकी आँखों के सामने उनके बच्चों को पटक-पटककर मार डाला जाएगा।+

उनके घर लूट लिए जाएँगे,

उनकी पत्नियों का बलात्कार किया जाएगा।

17 मैं उनके खिलाफ मादियों को लाऊँगा,+

जिनकी नज़रों में चाँदी का कोई मोल नहीं,

जिन्हें सोने से कोई लगाव नहीं।

18 वे अपने धनुष से जवानों के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे,+

बच्चों पर कोई रहम नहीं करेंगे,

गर्भ के फल पर कोई तरस नहीं खाएँगे।

19 बैबिलोन नगरी, जो राज्यों में सबसे शानदार नगरी है,+

जो कसदियों की शोभा और उनका घमंड है,+

उसका वह हाल होगा जो सदोम और अमोरा का तब हुआ था,

जब परमेश्‍वर ने उनका नाश किया था।+

20 वह नगरी फिर कभी नहीं बसेगी,

पीढ़ी-पीढ़ी तक उसमें कोई आकर नहीं रहेगा,+

अरब का कोई आदमी वहाँ अपना तंबू नहीं गाड़ेगा

और न कोई चरवाहा अपने झुंड को वहाँ ले जाएगा।

21 वह रेगिस्तान के जंगली जानवरों का बसेरा बन जाएगी,

वहाँ के घर, उल्लुओं* का ठिकाना बन जाएँगे,

वहाँ शुतुरमुर्ग रहा करेंगे+

और जंगली बकरे कूदेंगे-फाँदेंगे।

22 उसकी मीनारों में जानवर चिल्लाया करेंगे

और उसके आलीशान महलों में सियार हुआँ-हुआँ करेंगे।

उसका वक्‍त पास आ गया है, उसे और मोहलत नहीं दी जाएगी।”+

14 यहोवा याकूब पर दया करेगा+ और एक बार फिर इसराएल को चुन लेगा।+ परमेश्‍वर उन्हें अपने देश में बसाएगा।*+ परदेसी भी उनके साथ हो लेंगे और याकूब के घराने से जुड़ जाएँगे।+ 2 दूसरे देश के लोग उन्हें वापस उनके वतन ले आएँगे। और इसराएल का घराना यहोवा के देश में उन लोगों को दास-दासी बना लेगा।+ वे अपने बंदी बनानेवालों को बंदी बना लेंगे और जिन्होंने उनसे जबरन काम लिया था, उन्हें वे अपने अधीन कर लेंगे।

3 जिस दिन यहोवा तेरा दुख-दर्द और तेरी बेचैनी दूर करेगा और कड़ी गुलामी से तुझे राहत दिलाएगा, उस दिन तू+ 4 बैबिलोन के राजा पर यह ताना कसेगा,

“यह क्या, दूसरों से गुलामी करानेवाला खुद खत्म हो गया!

उसके ज़ुल्मों का अंत हो गया!+

 5 यहोवा ने उस दुष्ट की छड़ी तोड़ डाली,

उन शासकों की लाठी के टुकड़े-टुकड़े कर दिए,+

 6 जो गुस्से में देश-देश के लोगों पर अंधाधुंध वार कर रहे थे,+

राष्ट्रों को जीतने के लिए एक-के-बाद-एक ज़ुल्म कर रहे थे।+

 7 अब पूरी पृथ्वी को चैन मिला है, हर तरफ शांति है,

लोग खुशी के मारे चिल्ला रहे हैं।+

 8 सनोवर के पेड़ और लबानोन के देवदार भी,

तेरा हाल देखकर फूले नहीं समा रहे।

वे कहते हैं, ‘अच्छा हुआ तुझे गिरा दिया गया,

अब हमें काटने कोई लकड़हारा नहीं आता।’

 9 नीचे कब्र में हलचल मची है,

सब तुझे देखना चाहते हैं।

कब्र मुरदों को नींद से उठाती है,

धरती के सब ज़ालिम अगुवों* को जगाती है,

सब राष्ट्र के राजाओं को अपनी-अपनी राजगद्दी से खड़ा करती है।

10 वे सब-के-सब तुझसे कहते हैं,

‘तेरा हाल भी हमारे जैसा हो गया!

भला तू कब से हमारी तरह कमज़ोर बन गया?

11 देख! कब्र* में तेरा घमंड चूर-चूर हो गया,

तेरे तारोंवाले बाजे खामोश हो गए।+

अब तो तू कीड़ों से सजे बिस्तर पर सोएगा,

केंचुओं की चादर ओढ़ेगा।’

12 हे चमकते तारे, हे सुबह के बेटे,

तू आसमान से कैसे गिर पड़ा?

हे राष्ट्रों को धूल चटानेवाले,+

तू कैसे कटकर गिर गया?

13 तूने मन-ही-मन कहा था, ‘मैं आकाश पर चढ़ूँगा,+

अपनी राजगद्दी परमेश्‍वर के तारों से भी ऊँची करूँगा।+

मैं उत्तर के दूर के इलाके में,

सभा के पर्वत पर बैठूँगा।+

14 मैं बादलों से भी ऊपर चढ़ जाऊँगा,

खुद को परम-प्रधान परमेश्‍वर जैसा बनाऊँगा।’

15 लेकिन तुझे नीचा किया गया,

तू कब्र* में, हाँ, सबसे गहरे गड्‌ढे में जा गिरा।

16 देखनेवाले तुझे घूर-घूरकर देखते हैं,

वे पास आकर तुझे देखते हैं और कहते हैं,

‘क्या यह वही आदमी है जिसके सामने पूरी धरती काँपती थी,

जिसके खौफ से राज्य थरथरा उठते थे?+

17 क्या यह वही है जिसने धरती को वीरान कर दिया,

उसके शहरों को ढा दिया+

और अपने कैदियों को रिहा नहीं किया?’+

18 दूसरे राष्ट्र के राजाओं को,

हाँ, उन सभी को पूरी इज़्ज़त के साथ

अपनी-अपनी कब्र* में दफनाया गया।

19 लेकिन तुझे नहीं दफनाया गया,

तुझे एक सड़ी डाल की तरह फेंक दिया गया,

तेरी लाश उन लोगों की लाशों के ढेर में दबी है, जो तलवार से मारे गए

और जिन्हें गड्‌ढे में पत्थरों के बीच फेंक दिया गया।

तू पैरों तले रौंदी गयी लाश जैसा हो गया है।

20 तुझे राजाओं के साथ कब्र में नहीं दफनाया जाएगा,

क्योंकि तूने खुद अपना देश उजाड़ा है

और अपने लोगों की जान ली है।

दुष्ट की औलादों का नाम फिर कभी नहीं लिया जाएगा।

21 उनके बाप-दादा पाप के दोषी थे,

इसलिए जाओ, बेटों को मार डालने के लिए एक जगह तैयार करो,

कहीं वे बगावत करके पृथ्वी पर कब्ज़ा न कर लें

और जगह-जगह अपने शहर न बसा लें।”

22 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा ऐलान करता है, “मैं बैबिलोन के खिलाफ उठूँगा।”+

यहोवा कहता है, “मैं बैबिलोन का नाम खाक में मिला दूँगा। उसके बचे हुए लोगों, उसकी संतान और आनेवाली पीढ़ियों का नामो-निशान मिटा दूँगा।”+

23 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा ऐलान करता है, “मैं उसे साहियों का अड्डा बना दूँगा। उसके पूरे इलाके को दलदल में बदल दूँगा। मैं विनाश की झाड़ू से उसे झाड़ दूँगा।”+

24 सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने शपथ खायी है,

“जैसा मैंने सोचा है वैसा ही होगा,

जो मैंने ठाना है वह पूरा होकर ही रहेगा।

25 मैं अपने देश में अश्‍शूर को कुचल दूँगा

और अपने पहाड़ों पर उसे रौंद डालूँगा।+

उसका जुआ अपने लोगों पर से हटा दूँगा

और उसका बोझ उनके कंधों से उतार फेंकूँगा।”+

26 पूरी पृथ्वी के खिलाफ मैंने यही ठाना है

और सब राष्ट्रों के खिलाफ अपना हाथ बढ़ाया है।

27 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा जो ठान लेता है,

उसे कौन नाकाम कर सकता है?+

जब वह अपना हाथ बढ़ाता है,

तो कौन उसे रोक सकता है?+

28 जिस साल राजा आहाज की मौत हुई,+ उस साल परमेश्‍वर ने यह संदेश दिया:

29 “हे पलिश्‍त, खुश मत हो कि तुझे मारनेवाले की लाठी टूट गयी।

क्योंकि साँप की जड़+ से एक ज़हरीला साँप निकलेगा+

और उसका वंश ऐसा विषैला साँप होगा जिसमें बिजली की सी फुर्ती होगी।

30 दीन-दुखियों के पहलौठे जी-भरकर खाएँगे

और गरीब बेखौफ जीएँगे,

मगर तेरे लोगों* को मैं अकाल से मार डालूँगा

और तेरे बचे हुओं की जान ले लूँगा।+

31 हे शहर, मातम मना! हे शहर के फाटको, ज़ोर-ज़ोर से रोओ!

हे पलिश्‍त के लोगो, तुम हिम्मत हार बैठोगे,

क्योंकि देखो, उत्तर से एक धुआँ तुम्हारी तरफ बढ़ रहा है,

दुश्‍मन सेना एक-साथ आ रही है, एक भी सैनिक पीछे नहीं है।”

32 वे राष्ट्र के दूतों को क्या जवाब देंगे?

यही कि यहोवा ने सिय्योन की नींव डाली है+

और उसके दीन जन सिय्योन में पनाह लेंगे।

15 मोआब के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:+

‘मोआब का आर’ खामोश कर दिया जाएगा,

क्योंकि एक ही रात में वह तबाह हो जाएगा।+

‘मोआब का कीर’ खामोश कर दिया जाएगा,

क्योंकि एक ही रात में वह तबाह हो जाएगा।+

 2 वह मातम मनाने ऊपर मंदिर* में और दीबोन जाएगा,+

ऊँची जगहों में जाकर फूट-फूटकर रोएगा,

नबो और मेदबा+ के लिए मोआब शोक मनाएगा,+

सबका सिर मूँड़ा जाएगा+ और सबकी दाढ़ी काटी जाएगी।+

 3 उसकी गलियों में लोग टाट ओढ़े नज़र आएँगे,

अपने घरों की छत पर और शहर के चौक में,

वे ज़ोर-ज़ोर से रोएँगे और रोते-रोते ज़मीन पर गिर पड़ेंगे।+

 4 हेशबोन और एलाले+ ज़ोर-ज़ोर से रोएँगे,

उनकी आवाज़ दूर यहस+ तक सुनायी देगी।

मोआब के सैनिक चिल्लाते रहेंगे,

मोआब थर-थर काँप उठेगा।

 5 मेरा दिल मोआब के लिए रो पड़ेगा।

उसके भगोड़े दूर सोआर+ और एगलत-शलिशीयाह+ तक भाग जाएँगे।

वे लूहीत की चढ़ाई पर चढ़ते हुए आँसू बहाएँगे,

होरोनैम जाते हुए इस तबाही पर रोएँगे।+

 6 क्योंकि निमरीम का सारा पानी सूख जाएगा,

हरी-हरी घास झुलस जाएगी,

सारी हरियाली खत्म हो जाएगी, कुछ नहीं बचेगा।

 7 इसलिए लोग अपना बचा-खुचा सामान और दौलत समेटकर,

पेड़ों* की घाटी के उस पार चले जाएँगे।

 8 मोआब का चप्पा-चप्पा रोने के शोर से गूँज उठेगा,+

यह हाहाकार एगलैम तक सुनायी देगा,

बेर-एलीम तक रोने-बिलखने की आवाज़ आएगी।

 9 दीमोन की नदियाँ खून से लाल हो जाएँगी।

मैं दीमोन पर एक और मुसीबत लाऊँगा:

मोआब के जो लोग ज़िंदा बच निकलेंगे

और जो देश में रह जाएँगे, उनके यहाँ एक शेर भेजूँगा।+

16 देश के शासक को एक मेढ़ा भेजो,

उस मेढ़े को सेला से लो और वीराने के रास्ते से होते हुए,

उसे सिय्योन की बेटी के पहाड़ पर पहुँचाओ।

 2 अरनोन के घाट पर मोआब के लोग ऐसे दिखेंगे,+

जैसे किसी चिड़िया को उसके घोंसले से भगा दिया हो।+

 3 “सलाह दो, फैसले को अंजाम दो,

भरी दोपहरी में छाँव बनकर हिफाज़त दो,

ऐसी छाँव जो रात के अँधेरे जितनी घनी हो।

तितर-बितर हुए लोगों को छिपा लो, भागनेवालों को दुश्‍मनों के हवाले मत करो।

 4 हे मोआब, तू तितर-बितर हुए मेरे लोगों को अपने बीच रहने दे,

उनके लिए छिपने की जगह बन जा कि वे नाश करनेवाले से बच जाएँ।+

ज़ुल्म ढानेवाले का नाश हो जाएगा,

तबाही का अंत हो जाएगा,

दूसरों को कुचलनेवाले धरती से मिट जाएँगे।

 5 इसके बाद एक राजगद्दी कायम की जाएगी, जिसकी बुनियाद अटल प्यार होगी।

दाविद के तंबू में जो उस राजगद्दी पर बैठेगा वह विश्‍वासयोग्य होगा,+

वह सच्चा न्याय करेगा और नेक काम करने के लिए तत्पर रहेगा।”+

 6 हमने मोआब के घमंड के बारे में सुना है, वह बड़ा मगरूर है,+

हमने उसकी हेकड़ी, उसके घमंड और गुस्से के बारे में सुना है,+

लेकिन उसकी बड़ी-बड़ी बातें खोखली निकलेंगी।

 7 मोआब अपनी तबाही पर रोएगा,

वहाँ के सभी निवासी ज़ोर-ज़ोर से रोएँगे,+

मार खानेवाले लोग कीर-हरासत की किशमिश की टिकियों को याद करके आहें भरेंगे।+

 8 हेशबोन+ के सीढ़ीनुमा खेत सूख गए,

राष्ट्रों के शासकों ने सिबमा+ की बेलों को,

उसकी लाल-लाल बेलों* को रौंद डाला,

जो याजेर तक पहुँच चुकी थीं,+

वीराने तक बढ़ गयी थीं।

उसकी डालियाँ दूर समुंदर तक फैल गयी थीं।

 9 इसलिए जैसे मैं याजेर की बेलों के लिए रोया, सिबमा की बेलों के लिए भी रोऊँगा।

हे हेशबोन और एलाले, मैं तुम्हें अपने आँसुओं से भिगो दूँगा,+

क्योंकि तुम्हारे यहाँ गरमियों की फसल का शोर, फलों की कटाई का शोर बंद हो गया।*

10 बागों से खुशियों और जश्‍न का माहौल छीन लिया गया,

अंगूरों के बाग में कोई गीत नहीं गा रहा, कोई खुशी से नहीं झूम रहा,+

दाख-मदिरा के लिए हौद में अंगूर नहीं रौंदे जा रहे,

क्योंकि मैंने उनका शोर-शराबा बंद कर दिया।+

11 इसलिए मेरा मन मोआब के लिए तड़प उठा,+

मैं अंदर-ही-अंदर कीर-हरासत के लिए तड़प उठा,

मानो किसी ने सुरमंडल के तार छेड़ दिए हों।+

12 मोआब चाहे ऊँची जगहों पर जाकर खुद को थका दे, चाहे अपने पवित्र-स्थान में जाकर दुआएँ माँगे, फिर भी उसकी नहीं सुनी जाएगी।+

13 मोआब के बारे में यह संदेश यहोवा ने पहले ही दे दिया था। 14 अब यहोवा कहता है, “ठीक तीन साल के अंदर* मोआब की शान धूल में मिल जाएगी। चारों तरफ हाहाकार मचेगा। उसमें बस गिने-चुने लोग रह जाएँगे, जो न के बराबर होंगे।”+

17 दमिश्‍क के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:+

“देखो, दमिश्‍क शहर मिट जाएगा,

मलबे का ढेर बन जाएगा।+

 2 अरोएर+ के शहर सुनसान हो जाएँगे,

वहाँ सिर्फ भेड़-बकरियाँ नज़र आएँगी

और उन्हें कोई नहीं डराएगा।

 3 एप्रैम के किलेबंद शहर मिट जाएँगे,+

दमिश्‍क का राज्य खाक हो जाएगा।+

सीरिया के बचे हुओं की शान ऐसे गायब हो जाएगी,

जैसे इसराएलियों की गायब हुई थी।” यह ऐलान सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने किया है।

 4 “उस दिन याकूब की शान घट जाएगी,

उसका हट्टा-कट्टा* शरीर दुबला हो जाएगा।

 5 वह रपाई घाटी+ के उस खेत जैसा दिखेगा,

जिसकी कटाई हो चुकी है,

जहाँ बीनने के लिए कुछ ही बालें रह गयी हैं।

 6 वह जैतून के पेड़ जैसा दिखेगा जिसे झाड़ दिया गया है,

जिस पर थोड़े ही फल बचे हैं,

बस दो-तीन पके जैतून सबसे ऊँची डाली पर हैं,

सिर्फ चार-पाँच फल डालियों पर लटके हैं।”+ यह ऐलान इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने किया है।

7 उस दिन इंसान अपने बनानेवाले की ओर ताकेगा और उसकी आँखें इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर की तरफ लगी रहेंगी। 8 वह अपनी बनायी वेदियों की ओर नहीं देखेगा,+ न उन पूजा-लाठों* या धूप-स्तंभों की ओर देखेगा जिन्हें उसने अपने हाथ से बनाया था।

 9 उस दिन उसके किलेबंद शहरों का हाल,

जंगल की उस बस्ती जैसा हो जाएगा जो वीरान हो गयी है,+

उस टहनी जैसा हो जाएगा, जिसे इसराएलियों के आगे फेंक दिया गया हो।

सब वीरान हो जाएगा।

10 तू* अपने उद्धारकर्ता, अपने परमेश्‍वर को भूल गयी है,+

तूने अपनी चट्टान+ को, अपने गढ़ को याद नहीं रखा,

इसलिए तू पेड़-पौधों के सुंदर-सुंदर* बाग लगाती है

और उनमें पराए* की टहनियाँ रोपती है।

11 चाहे तू उस दिन सावधानी से बाग के चारों तरफ बाड़ा बाँधे

और सुबह ही बीजों से अंकुर फूट निकलें,

तब भी तेरी बीमारी और दर्द के दिन तेरी फसल तेरे हाथ से निकल जाएगी।+

12 सुन! देश-देश के लोगों का होहल्ला सुनायी दे रहा है,

तूफानी समुंदर की तरह वे हाहाकार मचा रहे हैं,

राष्ट्रों का कोलाहल सुनायी पड़ रहा है,

मानो ऊँची-ऊँची लहरें गरज रही हों।

13 ये राष्ट्र ऐसे गरजेंगे मानो समुंदर गरज रहा हो।

वह उन्हें फटकारेगा और वे ऐसे दूर भाग जाएँगे,

जैसे तेज़ हवा पहाड़ से भूसा उड़ा ले जाती है,

जैसे आँधी उखड़ी हुई कँटीली झाड़ी उड़ा ले जाती है।

14 शाम को आतंक छा जाएगा,

सुबह होते-होते कोई नहीं बचेगा,

जो हमें लूटते हैं, उनके हिस्से में यही आएगा,

जो हमें उजाड़ते हैं, उनको यही भाग मिलेगा।

18 कीड़ों से भिनभिनाते देश पर धिक्कार है!

इथियोपिया की नदियों के पास बसे उस देश पर धिक्कार है!+

 2 वह अपने दूतों को समुंदर के रास्ते,

सरकंडे की नाव में पानी के उस पार भेजता है और उनसे कहता है,

“हे फुर्तीले दूतो, उस राष्ट्र के पास जाओ,

जिसके लोग ऊँचे कदवाले और चिकनी चमड़ीवाले हैं,

जिनसे हर कोई डरता है।+

उस राष्ट्र के पास जाओ जो बहुत शक्‍तिशाली है

और जीत-पर-जीत हासिल कर रहा है,

जिसके देश को नदियाँ बहा ले गयी हैं।”

 3 हे देश-देश के लोगो, हे पृथ्वी के निवासियो,

तुम जो देखोगे वह पहाड़ों पर लहराते झंडे जैसा होगा,

तुम जो सुनोगे वह नरसिंगे की आवाज़ जैसा होगा,

 4 क्योंकि यहोवा ने मुझसे कहा है,

“मैं अपने निवास की जगह को* चुपचाप देखता रहूँगा,

मानो दिन में चिलचिलाती धूप पड़ रही हो,

अंगूरों की कटाई के गरम मौसम में ओस पड़ रही हो।

 5 फूल पूरी तरह खिल जाएँगे और अंगूर पकने लगेंगे,

मगर इससे पहले कि कटनी का समय आए,

उसकी डालियाँ दराँती से काट दी जाएँगी,

उसकी बेलें काटकर फेंक दी जाएँगी।

 6 वे पहाड़ के शिकारी पक्षियों के लिए,

धरती के जंगली जानवरों के लिए छोड़ दी जाएँगी।

पूरी गरमी शिकारी पक्षी उन्हें खाते रहेंगे,

कटनी के पूरे मौसम में जंगली जानवर उनसे अपना पेट भरेंगे।

 7 उस वक्‍त सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के लिए एक तोहफा लाया जाएगा,

उस राष्ट्र से, जिसके लोग ऊँचे कदवाले और चिकनी चमड़ीवाले हैं,

जिनसे हर कोई डरता है,

वही राष्ट्र जो बहुत शक्‍तिशाली है

और जीत-पर-जीत हासिल कर रहा है,

जिसके देश को नदियाँ बहा ले गयी हैं।

वह तोहफा सिय्योन पहाड़ पर लाया जाएगा,

हाँ, उस जगह, जो सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से जानी जाती है।”+

19 मिस्र के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:+

देखो! यहोवा बादलों पर सवार होकर तेज़ी से मिस्र आ रहा है,

मिस्र के निकम्मे देवता उसके सामने थर-थर काँपेंगे+

और मिस्र के लोगों का दिल दहल उठेगा।

 2 “मैं मिस्रियों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काऊँगा,

वे एक-दूसरे से लड़ेंगे,

भाई भाई से, पड़ोसी पड़ोसी से,

शहर शहर से और एक राज्य दूसरे राज्य से।

 3 मिस्रियों की मति मारी जाएगी,

मैं उनकी योजनाएँ नाकाम कर दूँगा।+

वे निकम्मे देवताओं, टोना-टोटका करनेवालों,

मरे हुओं से संपर्क करनेवालों और ज्योतिषियों से पूछताछ करेंगे।+

 4 मैं मिस्र को एक बेरहम मालिक के हवाले कर दूँगा,

एक ज़ालिम राजा उस पर राज करेगा।”+ यह ऐलान सच्चे प्रभु और सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने किया है।

 5 समुंदर का पानी सूख जाएगा,

नदी का पानी सूखकर खाली हो जाएगा।+

 6 नदियाँ बदबू मारेंगी,

मिस्र में नील की नहरें पतली होते-होते सूख जाएँगी,

नरकट और पानी के पौधे सड़ जाएँगे।+

 7 नील नदी के किनारे, उसके मुहाने पर सारी हरियाली

और आस-पास के सारे खेत+ सूख जाएँगे,+

हवा उन्हें यहाँ-वहाँ उड़ा ले जाएगी, कुछ नहीं बचेगा।

 8 मछुवारे शोक मनाएँगे,

नील नदी में काँटा डालनेवाले दुख मनाएँगे,

पानी पर जाल फेंकनेवालों की गिनती कम हो जाएगी।

 9 बढ़िया अलसी के धागे से काम करनेवाले,+

करघे पर सफेद कपड़ा बुननेवाले शर्मिंदा किए जाएँगे।

10 मिस्र के जुलाहे मायूस हो जाएँगे,

दिहाड़ी के सब मज़दूर दुख मनाएँगे।

11 सोअन+ के हाकिम मूर्ख हैं,

फिरौन के बुद्धिमान सलाहकार भी मूर्खता-भरी सलाह देते हैं।+

ऐसे में तुम फिरौन से कैसे कह सकते हो,

“हम बुद्धिमानों के बच्चे हैं,

प्राचीन समय के राजाओं के वंशज हैं”?

12 हे फिरौन, तेरे बुद्धिमान सलाहकार कहाँ गए?+

अगर वे जानते हैं कि सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने मिस्र के बारे में क्या ठाना है, तो उनसे कह कि तुझे बताएँ।

13 सोअन के हाकिमों ने मूर्खता का काम किया है,

नोप* के हाकिमों+ ने खुद को धोखे में रखा है,

मिस्र के गोत्र के मुखियाओं ने मिस्र को गुमराह कर दिया है।

14 यहोवा ने मिस्र के मन को उलझन में डाल दिया है,+

उसके अगुवे हर काम में उसे ऐसे गुमराह कर रहे हैं

कि वह शराबी की तरह अपनी ही उलटी में लड़खड़ा रहा है।

15 मिस्र कुछ नहीं कर पाएगा,

न उसका सिर, न उसकी दुम,

न उसकी टहनी, न ही लंबी-लंबी घास* कुछ कर पाएगी।

16 उस दिन मिस्र के लोग औरतों के समान हो जाएँगे। वे थर-थर काँपेंगे और खौफ खाएँगे क्योंकि सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा उनके खिलाफ अपना हाथ बढ़ाएगा।+ 17 मिस्र, यहूदा से खौफ खाएगा। उसका नाम सुनते ही मिस्रियों की जान सूख जाएगी क्योंकि सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने उनके खिलाफ फैसला सुना दिया है।+

18 उस दिन मिस्र में पाँच शहर ऐसे होंगे जहाँ कनान की भाषा बोली जाएगी।+ वे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा से वफा निभाने की कसम खाएँगे। उनमें से एक शहर ढा देनेवाला शहर कहलाएगा।

19 उस दिन मिस्र के बीचों-बीच यहोवा के लिए एक वेदी होगी और मिस्र की सरहद पर यहोवा के लिए एक खंभा होगा। 20 ये इस बात की निशानी ठहरेंगे कि लोग सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा को याद रखें। अत्याचारियों के ज़ुल्म सहते हुए जब वे यहोवा से फरियाद करेंगे, तो परमेश्‍वर एक उद्धारकर्ता भेजेगा जो बहुत महान होगा और उन्हें मुसीबतों से बचाएगा। 21 उस दिन यहोवा खुद को मिस्रियों पर प्रकट करेगा और वे यहोवा को जान जाएँगे। वे यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाएँगे, भेंट लाएँगे, उससे मन्‍नत मानेंगे और अपनी मन्‍नत पूरी करेंगे। 22 यहोवा मिस्र को सज़ा देगा,+ वह उसे मारेगा और चंगा करेगा। वे यहोवा के पास लौट आएँगे और परमेश्‍वर उनकी बिनती सुनकर उन्हें चंगा करेगा।

23 उस दिन मिस्र से एक राजमार्ग+ अश्‍शूर को जाएगा। तब अश्‍शूरी, मिस्र आएँगे और मिस्री, अश्‍शूर जाएँगे। मिस्र, अश्‍शूर के साथ मिलकर परमेश्‍वर की सेवा करेगा। 24 उस दिन इसराएल भी मिस्र और अश्‍शूर से जा मिलेगा+ और पूरी धरती के लिए एक आशीष ठहरेगा। 25 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा उन्हें आशीष देगा और कहेगा, “हे मिस्र, हे मेरे लोगो, तुम धन्य हो। हे अश्‍शूर, मेरे हाथ के काम और हे इसराएल, मेरी विरासत, तुम धन्य हो।”+

20 जिस साल अश्‍शूर के राजा सरगोन ने तरतान* को अशदोद+ भेजा, उसी साल तरतान ने अशदोद से युद्ध करके उस पर कब्ज़ा कर लिया।+ 2 उस वक्‍त यहोवा ने आमोज के बेटे यशायाह से कहा,+ “जा, जाकर अपनी कमर से टाट और अपने पैरों से जूतियाँ उतार।” यशायाह ने वैसा ही किया। वह नंगे बदन और नंगे पैर घूमता रहा।

3 फिर यहोवा ने कहा, “मेरा सेवक यशायाह तीन साल तक नंगे बदन और नंगे पैर घूमता रहा। यह इस बात की निशानी+ और चेतावनी है कि मिस्र और इथियोपिया के साथ क्या होनेवाला है।+ 4 अश्‍शूर का राजा आकर मिस्र और इथियोपिया के लोगों को बंदी बनाएगा।+ वह जवान-बूढ़े सब आदमियों के कपड़े उतरवाकर उन्हें नंगे बदन और नंगे पैर ले जाएगा, उनके नितंब खुले होंगे। हाँ, मिस्र का अपमान* किया जाएगा। 5 जिन लोगों ने इथियोपिया पर आस लगायी थी और जिन्हें मिस्र की शान पर नाज़ था,* वे उनका हाल देखकर शर्मिंदा होंगे और खौफ खाएँगे। 6 समुंदर किनारे बसे ये लोग उस दिन कहेंगे, ‘देखो! जिन पर हमने आस लगायी थी और अश्‍शूर के राजा से बचने के लिए जिनकी पनाह ली थी, उनका क्या हश्र हो गया! अब हमें कौन बचाएगा?’”

21 समुद्री वीराने* के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:+

देखो! वीराने से, उस डरावने देश से,

ऐसा विनाश आ रहा है, जैसे दक्षिण से आँधी आती है।+

 2 मुझे एक भयानक दर्शन दिखाया गया:

दगाबाज़ नगरी दगा दे रही है,

नाश करनेवाली नगरी नाश कर रही है।

हे एलाम, उस पर चढ़ाई कर! हे मादै, उसे घेर ले!+

उस नगरी ने जो-जो दुख दिए हैं, उन्हें मैं दूर कर दूँगा।+

 3 यह दर्शन देखकर मैं दर्द से छटपटाने लगा हूँ,*+

मुझे ऐसी पीड़ा हो रही है,

जैसे बच्चा जननेवाली औरत को होती है।

मैं इतना दुखी हो गया हूँ कि कुछ सुनायी नहीं देता,

इतना घबरा गया हूँ कि कुछ दिखायी नहीं देता।

 4 मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा है, मैं थर-थर काँप रहा हूँ,

शाम के जिस पहर का मुझे इंतज़ार रहता था, अब उसी से डर लगने लगा है।

 5 मेज़ सजा दो, बैठने का इंतज़ाम करो, खाओ-पीओ!+

हे हाकिमो, उठो! ढाल का अभिषेक करो।*

 6 यहोवा ने मुझसे कहा,

“जा, जाकर एक पहरेदार तैनात कर कि वह जो कुछ देखे उसकी खबर तुझे दे।”

 7 उसने क्या देखा,

एक युद्ध-रथ जिसे दो घोड़े तेज़ी से दौड़ा रहे थे,

एक और युद्ध-रथ जिसे गधे दौड़ा रहे थे,

एक और युद्ध-रथ जिसे ऊँट भगा रहे थे।

वह ध्यान से उन्हें देखता रहा, उन पर टकटकी लगाए रहा।

 8 फिर उसने शेर की तरह गरजकर कहा,

“हे यहोवा, मैं हर दिन पहरे की मीनार पर पहरा देता हूँ,

हर रात पहरे की चौकी पर तैनात रहता हूँ।+

 9 और मैंने क्या देखा,

दो घोड़ोंवाला रथ आ रहा है जिस पर सैनिक सवार हैं।”+

फिर उसने चिल्लाकर कहा,

“गिर पड़ी! बैबिलोन नगरी गिर पड़ी!+

उसके देवताओं की खुदी हुई सब मूरतें चकनाचूर हो गयीं!”+

10 हे मेरे रौंदे गए* लोगो,

हे मेरे खलिहान का अनाज,+

मैंने इसराएल के परमेश्‍वर, सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा से जो सुना, वह तुम्हें बता दिया।

11 दूमा* के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:

कोई सेईर से मुझे आवाज़ लगा रहा है,+

“पहरेदार! रात कब खत्म होगी?

पहरेदार! रात कब खत्म होगी?”

12 पहरेदार ने जवाब दिया,

“सुबह बस होनेवाली है और फिर रात हो जाएगी।

अगर तुम कुछ और पूछना चाहते हो तो पूछो।

दोबारा आना!”

13 रेगिस्तान* के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:

हे ददान के कारवाँ,

तुम रेगिस्तान में झाड़ियों के पास* रात काटोगे।+

14 हे तेमा के रहनेवालो,+

प्यासे लोगों के लिए पानी लाओ,

भागनेवालों के लिए रोटी लाओ।

15 क्योंकि वे तलवार से, खिंची हुई तलवार से भाग रहे हैं,

वे तने हुए कमान से और घमासान युद्ध से भाग रहे हैं।

16 यहोवा ने मुझसे कहा, “ठीक एक साल के अंदर* केदार की सारी शान+ मिट जाएगी। 17 उसके योद्धाओं में बहुत कम तीरंदाज़ बचेंगे क्योंकि यह बात इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने कही है।”

22 दर्शन की घाटी* के लिए संदेश:+

तुझे क्या हुआ कि तेरे सब लोग छत पर चढ़े हुए हैं?

 2 तेरे यहाँ खलबली मची हुई है,

हाँ, पूरी नगरी में शोर हो रहा है, खुशियाँ मनायी जा रही हैं।

तेरे जितने लोग मारे गए,

वे न तो तलवार से मारे गए, न ही युद्ध में।+

 3 तेरे सभी तानाशाह भाग खड़े हुए,+

बिना तीर-कमान चलाए उन्हें बंदी बना लिया गया।

और जो लोग भागकर दूर निकल गए थे,

उन्हें भी बंदी बना लिया गया।+

 4 इसलिए मैंने कहा, “अपनी आँखें मुझसे फेर लो

कि मैं फूट-फूटकर रोऊँ।+

मेरे लोगों के विनाश पर मुझे दिलासा देने की कोशिश मत करो।+

 5 सारे जहान के मालिक और सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से,

यह दिन दर्शन की घाटी के लिए,

गड़बड़ी, हार और आतंक का दिन है।+

शहरपनाह तोड़ी जा रही है+

और उनकी पुकार पहाड़ तक सुनायी दे रही है।

 6 एलाम+ ने तरकश हाथ में ले लिया है,

वह रथों और घुड़सवारों* के साथ आ रहा है।

कीर+ ने अपनी ढाल तैयार कर ली* है।

 7 अब तेरी अच्छी-अच्छी घाटियाँ युद्ध-रथों से भर जाएँगी,

घुड़सवार* फाटक के सामने अपनी-अपनी जगह तैनात हो जाएँगे।

 8 यहूदा का परदा* हटा दिया जाएगा।

उस दिन तू वन भवन+ के हथियार-घर पर आस लगाएगा। 9 तू दाविदपुर की शहरपनाह में जगह-जगह पड़ी दरारों+ का मुआयना करेगा और निचले तालाब+ में पानी जमा करेगा। 10 तू यरूशलेम के घरों को गिनेगा और शहरपनाह मज़बूत करने के लिए घरों को ढा देगा। 11 पुराने तालाब का पानी जमा करने के लिए तू दोनों शहरपनाहों के बीच एक कुंड बनाएगा। तू यह सब करेगा लेकिन अपने महान परमेश्‍वर की ओर नहीं देखेगा, जिसने यह कहर ढाने का फैसला बहुत पहले कर लिया था।

12 उस दिन सारे जहान के मालिक

और सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने तुम्हें रोने

और मातम मनाने के लिए कहा,+

अपने सिर मुँड़वाने और टाट पहनने के लिए कहा।

13 लेकिन तुमने जश्‍न और खुशियाँ मनायीं,

भेड़ें और गाय-बैल काटे,

गोश्‍त खाया, दाख-मदिरा पी+ और कहा,

‘आओ हम खाएँ-पीएँ क्योंकि कल तो मरना ही है।’”+

14 तब सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने मेरे कानों में कहा, “सारे जहान के मालिक और सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का कहना है, ‘तुम लोगों के जीते-जी तुम्हारे इस पाप का कभी प्रायश्‍चित नहीं होगा।’”+

15 सारे जहान का मालिक और सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, “जा! महल के प्रबंधक शेबना+ के पास जा और उससे कह, 16 ‘तू यहाँ क्या कर रहा है? तेरा यहाँ कौन है जो तू अपने लिए कब्र तराश रहा है?’ वह अपने लिए ऊँची जगह पर कब्र तैयार कर रहा है, चट्टानों में विश्राम की जगह* खुदवा रहा है। 17 ‘हे आदमी, देख! यहोवा तुझे दबोचेगा और ज़ोर से तुझे पटक देगा। 18 वह तुझे कसकर लपेटेगा और गेंद की तरह खुले मैदान में दूर फेंक देगा। वहीं तू मरेगा। तेरे शानदार रथ भी वहीं पड़े रहेंगे, जिससे तेरे मालिक का घराना अपमानित होगा। 19 मैं तुझसे तेरी पदवी छीन लूँगा और तुझे तेरे ओहदे से गिरा दूँगा।

20 उस दिन मैं अपने सेवक एल्याकीम+ को बुलाऊँगा, जो हिलकियाह का बेटा है। 21 मैं उसे तेरी पोशाक पहनाऊँगा, तेरी कमर-पट्टी उसकी कमर पर कसकर बाँधूँगा+ और तेरा अधिकार उसके हाथ कर दूँगा। वह यरूशलेम के रहनेवालों और यहूदा के घराने का पिता बनेगा। 22 मैं दाविद के घराने की चाबी+ उसके कंधे पर रखूँगा। वह जो खोलेगा उसे कोई बंद नहीं कर पाएगा और वह जो बंद करेगा उसे कोई खोल नहीं पाएगा। 23 मैं उसे खूँटी की तरह एक मज़बूत जगह ठोंक दूँगा। वह अपने पिता के घराने के लिए आदर की राजगद्दी बन जाएगा। 24 और उसके पिता के घराने की सारी शान* उस पर टँगी होगी। जिस तरह सभी छोटे बरतन, कटोरे और बड़े-बड़े मटके खूँटी के सहारे टँगे होते हैं, वैसे ही उसके बच्चे* और वंशज उसके सहारे रहेंगे।’

25 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा ऐलान करता है, ‘उस दिन जो खूँटी मज़बूत जगह ठोंकी गयी है, वह निकाल दी जाएगी।+ उसे निकालकर फेंक दिया जाएगा और उस पर जो-जो चीज़ें टँगी हैं वे गिरकर खत्म हो जाएँगी क्योंकि यहोवा ने खुद यह बात कही है।’”

23 सोर के लिए यह संदेश दिया गया:+

तरशीश के जहाज़ो,+ ज़ोर-ज़ोर से रोओ!

बंदरगाह तबाह हो गया है, जहाज़ों के टिकने की जगह नहीं रही।

यह खबर उन्हें कित्तीम देश+ में दी गयी।

 2 समुंदर किनारे रहनेवालो, चुप हो जाओ,

सीदोन+ के सौदागरों ने समुंदर से आते हुए उन्हें मालामाल किया।

 3 शीहोर*+ का अनाज समुंदर के रास्ते पहुँचाया,

उन्होंने नील की फसल देकर राष्ट्रों से मुनाफा कमाया,

सोर को आमदनी दी।+

 4 हे सीदोन, हे समुंदर के मज़बूत गढ़,

शर्मिंदा हो क्योंकि समुंदर ने कहा है,

“मुझे कभी प्रसव-पीड़ा नहीं उठी, न मैंने किसी को जन्म दिया,

मैंने न तो लड़कों को पाला-पोसा, न लड़कियों को।”+

 5 जब लोग सोर के बारे में सुनेंगे तो बेचैन हो उठेंगे,

जैसे मिस्र की खबर सुनकर हुए थे।+

 6 समुंदर किनारे रहनेवालो, उस पार तरशीश भाग जाओ!

और ज़ोर-ज़ोर से रोओ!

 7 क्या यही वह नगरी है जो बरसों से, पुराने ज़माने से खुशियाँ मना रही थी?

जिसने दूर-दूर के देशों में अपने पैर जमाए थे?

 8 सोर नगरी, जिसने दूसरों को ताज पहनाया,

जिसके सौदागर बड़े-बड़े हाकिम थे,

जिसके लेन-देन करनेवालों की पूरी धरती पर इज़्ज़त थी,+

उस नगरी के खिलाफ किसने यह सब करने की ठानी?

 9 सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा ने यह ठाना है

कि उसकी खूबसूरती और उसका घमंड मिट्टी में मिला दे,

जिन लोगों को पूरी धरती पर इज़्ज़त दी जाती थी, उन्हें शर्मिंदा कर दे।+

10 हे तरशीश की बेटी, नील नदी की तरह अपने देश में फैल जा,

क्योंकि अब यहाँ जहाज़ों के लिए कोई जगह* नहीं।+

11 परमेश्‍वर ने अपना हाथ समुंदर पर बढ़ाया,

उसने राज्यों को हिलाकर रख दिया,

यहोवा ने फीनीके के मज़बूत गढ़ों को नाश करने का हुक्म दिया।+

12 उसने कहा, “हे सतायी हुई सीदोन की कुँवारी बेटी,

अब तू और खुशियाँ नहीं मनाएगी।+

उठ! समुंदर पार करके कित्तीम+ जा!

पर वहाँ भी तुझे चैन नहीं मिलेगा।”

13 देख! वे अश्‍शूरी+ नहीं, कसदी+ थे,

जिन्होंने इस नगरी को जंगली जानवरों का अड्डा बना दिया,

जिन्होंने मीनारें खड़ी करके उसकी घेराबंदी की,

उसकी मज़बूत मीनारें गिरा दीं,+

पूरी नगरी को खाक में मिला दिया।

14 हे तरशीश के जहाज़ो, ज़ोर-ज़ोर से रोओ!

क्योंकि तुम्हारा मज़बूत गढ़ नाश हो गया है!+

15 उस दिन सोर को 70 साल के लिए भुला दिया जाएगा,+ हाँ, उतने सालों के लिए जितने साल* एक राजा राज करता है। 70 साल के आखिर में सोर उस वेश्‍या जैसी हो जाएगी, जिसके बारे में यह गीत गाया जाता है,

16 “हे भुला दी गयी वेश्‍या,

सुरमंडल उठा और पूरे शहर का चक्कर लगा,

सुरमंडल पर मधुर राग बजा,

ढेर सारे गीत गा कि लोग तुझे फिर याद करें।”

17 70 साल के आखिर में यहोवा सोर नगरी पर ध्यान देगा। वह दोबारा वेश्‍या की तरह कमाने लगेगी और धरती के सभी राज्यों के साथ बदचलनी करेगी। 18 लेकिन उसकी कमाई और मुनाफा यहोवा के लिए पवित्र ठहरेगा। इसे न जमा किया जाएगा, न बचाकर रखा जाएगा क्योंकि यह कमाई यहोवा के लोगों के लिए होगी। वे इससे जी-भरकर खाएँगे और शानदार कपड़े पहनेंगे।+

24 देख! यहोवा देश* को खाली कर रहा है, उसे वीरान बना रहा है।+

वह उसे उलट देगा+ और उसके निवासियों को तितर-बितर कर देगा।+

 2 किसी को भी छोड़ा नहीं जाएगा,

न लोगों को न याजक को,

न नौकर को न मालिक को,

न नौकरानी को न मालकिन को,

न खरीदनेवाले को न बेचनेवाले को,

न उधार देनेवाले को न उधार लेनेवाले को,

और न देनदार को न लेनदार को।+

 3 देश पूरी तरह खाली कर दिया जाएगा,

उसे पूरी तरह लूट लिया जाएगा।+

यह बात यहोवा ने कही है।

 4 देश मातम मनाएगा*+ और घुलता जाएगा,

उपजाऊ ज़मीन धीरे-धीरे सूख जाएगी और मिट जाएगी।

देश के बड़े-बड़े लोगों की गिनती घट जाएगी।

 5 उसके निवासियों ने उसे दूषित कर दिया है,+

उन्होंने कानून का उल्लंघन किया है,+ नियम बदल दिए हैं+

और हमेशा तक कायम रहनेवाला* करार तोड़ दिया है।+

 6 इसलिए पूरे देश को शाप खा जाएगा+

और उसमें रहनेवाले दोषी ठहरेंगे।

इसलिए देश के निवासी घटते जाएँगे

और इक्का-दुक्का लोग ही रह जाएँगे।+

 7 नयी दाख-मदिरा शोक मना रही है,* अंगूर की बेलें मुरझा रही हैं+

और जिनका दिल खुश था वे आहें भर रहे हैं।+

 8 डफली पर खुशी की धुन बजना बंद हो गयी है,

मौज-मस्ती करनेवालों का शोर खत्म हो गया है,

सुरमंडल से खुशी का सुर सुनायी नहीं दे रहा।+

 9 दाख-मदिरा पीते वक्‍त कोई गीत नहीं गाया जा रहा,

शराब पीनेवालों को शराब कड़वी लग रही है।

10 तबाह किया गया शहर वीरान हो गया है,+

घर ऐसे बंद पड़े हैं कि कोई अंदर नहीं जा सकता।

11 लोग सड़कों पर दाख-मदिरा के लिए चिल्ला रहे हैं।

जश्‍न का कहीं नामो-निशान नहीं,

पूरे देश से खुशी गायब हो चुकी है।+

12 शहर उजाड़ पड़ा है, उसके फाटकों को तोड़कर

उन्हें मलबे का ढेर बना दिया गया है।+

13 देश-देश के लोगों के बीच मेरे लोग ऐसे होंगे,

जैसे जैतून के पेड़ को झाड़ने पर उसमें कुछ ही फल बचे हों,+

जैसे अंगूर की कटाई के बाद बीनने के लिए थोड़े ही अंगूर रह गए हों।+

14 वे ऊँची आवाज़ में पुकारेंगे,

खुशी के मारे चिल्लाएँगे,

पश्‍चिम* से यहोवा के प्रताप का ऐलान करेंगे।+

15 वे पूरब* में यहोवा की बड़ाई करेंगे,+

समुंदर के द्वीपों में इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम की बड़ाई करेंगे।+

16 पृथ्वी के कोने-कोने में ये गीत गाए जाएँगे:

“उस नेक परमेश्‍वर की महिमा हो!”+

लेकिन मैं कहता हूँ, “मैं घुलता जा रहा हूँ! मैं घुलता जा रहा हूँ!

हाय! दगाबाज़ दगा दे रहा है,

दगा-पर-दगा दे रहा है।”+

17 हे देश के निवासी! आतंक, गड्‌ढा और फंदा तेरा इंतज़ार कर रहे हैं।+

18 आतंक का शोर सुनकर जो कोई भागेगा वह गड्‌ढे में जा गिरेगा,

गड्‌ढे से निकलकर जो ऊपर आएगा वह फंदे में फँस जाएगा,+

क्योंकि आकाश के झरोखे खुल जाएँगे,

धरती की नींव हिल जाएगी।

19 ज़मीन डोल उठेगी, फट जाएगी,

बुरी तरह काँपने लगेगी।+

20 वह शराबी की तरह लड़खड़ाएगी,

ऐसे झूमेगी जैसे झोपड़ी आँधी में थपेड़े खा रही हो।

वह अपने अपराध के बोझ से गिर जाएगी+

और फिर खड़ी नहीं हो पाएगी।

21 उस दिन यहोवा ऊपर आकाश की सेना

और नीचे पृथ्वी के राजाओं के खिलाफ कदम उठाएगा।

22 उन्हें इकट्ठा किया जाएगा,

जैसे कैदियों को गड्‌ढे में इकट्ठा किया जाता है।

उन्हें काल-कोठरी में बंद कर दिया जाएगा

और कई दिनों बाद उनसे हिसाब लिया जाएगा।

23 पूनम की चाँदनी फीकी पड़ जाएगी,

चमकता सूरज भी शर्मसार हो जाएगा,+

क्योंकि सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा, सिय्योन पहाड़ पर और यरूशलेम में राजा बना है।+

वह अपने लोगों के मुखियाओं के सामने पूरी महिमा के साथ राज करेगा।+

25 हे यहोवा, तू ही मेरा परमेश्‍वर है,

मैं तेरी बड़ाई करता हूँ, तेरे नाम की तारीफ करता हूँ,

क्योंकि तूने लाजवाब काम किए हैं।+

बहुत समय पहले ही तूने ठान लिया था कि तू क्या करेगा,+

तूने दिखा दिया कि तू विश्‍वासयोग्य और भरोसेमंद है।+

 2 तूने शहर को पत्थरों का ढेर बना दिया,

गढ़वाले नगर को खंडहर में बदल दिया,

परदेसियों का फौलादी किला ढा दिया।

यह शहर फिर कभी नहीं बनाया जाएगा।

 3 इसलिए शक्‍तिशाली लोग तेरी महिमा करेंगे,

खूँखार राष्ट्रों का शहर तुझसे खौफ खाएगा।+

 4 जब ज़ालिमों का कहर ऐसे टूट पड़ता है,

जैसे दीवार पर तेज़ बौछार पड़ती है,

तब तू दीन-दुखियों का मज़बूत गढ़ ठहरता है,+

मुसीबत की घड़ी में गरीबों का मज़बूत गढ़ बनता है।

तू आँधी-तूफान में पनाह है,

चिलचिलाती धूप में छाँव है।+

 5 तू अजनबियों का कोलाहल ऐसे शांत कर देता है,

जैसे तू झुलसती धरती की गरमी दूर करता है।

ज़ालिमों के गाने की आवाज़ ऐसे दबा देता है,

जैसे बादलों के छाने से भीषण गरमी कम हो जाती है।

 6 इस पहाड़ पर+ सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

देश-देश के सब लोगों के लिए ऐसी दावत रखेगा,

जहाँ चिकना-चिकना खाना होगा,+

उम्दा किस्म की दाख-मदिरा मिलेगी,

ऐसा चिकना खाना जिसमें गूदेवाली हड्डियाँ परोसी जाएँगी,

ऐसी बेहतरीन दाख-मदिरा जो छनी हुई होगी।

 7 परमेश्‍वर पहाड़ से वह चादर हटा देगा जो देश-देश के लोगों को ढके है,

वह परदा* निकाल फेंकेगा जो सब राष्ट्रों पर पड़ा है।

 8 वह मौत को हमेशा के लिए निगल जाएगा,*+

सारे जहान का मालिक यहोवा हर इंसान के आँसू पोंछ देगा+

और पूरी धरती से अपने लोगों की बदनामी दूर करेगा।

यह बात खुद यहोवा ने कही है।

 9 उस दिन लोग कहेंगे,

“देखो, यही हमारा परमेश्‍वर है!+

उस पर हमने आस लगायी+

और उसने हमें बचाया है।+

हाँ, वह यहोवा है!

उसी पर हमने आस लगायी।

आओ हम मगन हों और खुशियाँ मनाएँ क्योंकि उसने हमें बचाया है।”+

10 यहोवा का हाथ इस पहाड़ पर बना रहेगा+

और वह मोआब को उसकी जगह पर ऐसे रौंद देगा,+

जैसे भूसा, गोबर के ढेर में रौंदा जाता है।

11 परमेश्‍वर अपना हाथ बढ़ाकर मोआब को ऐसे मारेगा,

जैसे एक तैराक पानी में तैरते वक्‍त हाथ मारता है।

वह अपने कुशल हाथ मोआब पर ऐसे चलाएगा

कि उसकी सारी हेकड़ी निकल जाएगी।+

12 तेरे* किलेबंद शहर और तेरी ऊँची-ऊँची शहरपनाह को वह ढा देगा,

तेरे शहर को ज़मीन पर पटक देगा, उसे मिट्टी में मिला देगा।

26 उस दिन यहूदा देश में यह गीत गाया जाएगा:+

“हमारा शहर बहुत मज़बूत है।+

जो उद्धार परमेश्‍वर दिलाता है,

वह इसकी शहरपनाह और सुरक्षा की ढलान है।+

 2 इसके फाटक खोलो+ कि नेक राष्ट्र अंदर आ सके,

वह राष्ट्र जो अपने कामों में विश्‍वासयोग्य है।

 3 तू उन्हें सलामत रखेगा जो पूरी तरह तुझ पर निर्भर हैं,*

तू पल-पल उन्हें शांति देगा,+

क्योंकि वे तुझ पर भरोसा रखते हैं।+

 4 हमेशा यहोवा पर भरोसा रखो,+

क्योंकि याह* यहोवा सदा कायम रहनेवाली चट्टान है।+

 5 जो नगरी ऊँचाई पर खड़ी घमंड से इतरा रही थी,

परमेश्‍वर ने उसका गुरूर तोड़ दिया,

उसे नीचे गिरा दिया,

उसे ज़मीन पर धूल में गिरा दिया।

 6 वह पैरों तले रौंदी जाएगी,

दीन-दुखी और सताए हुए लोग उसे कुचल देंगे।”

 7 नेक जन की राह, सीधाई की राह* होती है।

हे परमेश्‍वर, तू सीधा-सच्चा है,

इसलिए तू नेक जन की राह को समतल करेगा।

 8 हे यहोवा, हमने तुझ पर आस लगायी है

कि हम तेरे न्याय की राह पर चल सकें।

तेरे लिए और तेरे नाम के लिए* हम तड़प उठते हैं।

 9 रात को मेरा रोम-रोम तेरे लिए तरसता है,

मेरा मन तुझे ढूँढ़ता फिरता है।+

जब तू धरती का न्याय करता है,

तो लोग सीखते हैं कि नेकी क्या होती है।+

10 लेकिन अगर दुष्ट पर दया भी की जाए,

तब भी वह नेकी करना नहीं सीखेगा,+

सीधाई के देश में भी वह दुष्ट काम करेगा+

और यहोवा का गौरव नहीं देख पाएगा।+

11 हे यहोवा, तेरा हाथ उन पर उठा हुआ है, फिर भी वे नहीं देखते।+

वे यह देखकर शर्मिंदा होंगे कि तुझे अपने लोगों के लिए कैसी धुन है,

हाँ, तेरी यही आग तेरे दुश्‍मनों को भस्म कर देगी।

12 हे यहोवा, तू हमें शांति देगा,+

क्योंकि हम जो कुछ कर पाए,

तेरी वजह से कर पाए।

13 हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, तेरे अलावा हम पर दूसरे मालिकों ने भी राज किया,+

मगर हम सिर्फ तेरे नाम की तारीफ करेंगे।+

14 वे तो मर गए हैं और फिर ज़िंदा नहीं होंगे,

कब्र में बेजान पड़े हैं, वे नहीं उठेंगे,+

तूने उनके खिलाफ कदम जो उठाया था,

उन्हें नाश करने, उनका नामो-निशान मिटाने की जो ठानी थी।

15 हे यहोवा, तूने राष्ट्र के लोगों की गिनती बढ़ायी है,

हाँ, तूने उनकी गिनती बढ़ायी है,

तूने अपनी महिमा की है,+

राष्ट्र की सरहदें चारों तरफ फैलायी हैं।+

16 हे यहोवा, दुख में वे तेरी तरफ मुड़े,

जब तूने उन्हें सुधारने के लिए सज़ा दी, तो दबी आवाज़ में उन्होंने प्रार्थना की,

तेरे सामने अपना दिल खोलकर रख दिया।+

17 हे यहोवा, तेरी वजह से हमारा यह हाल है,

हम उस गर्भवती के जैसे हो गए हैं, जिसे प्रसव-पीड़ा उठी है

और जो दर्द से तड़प रही है, चीख रही है।

18 भले ही हम गर्भवती के समान थे,

हमें प्रसव-पीड़ा भी उठी,

मगर हमने सिर्फ हवा को जन्म दिया था।

हम देश को बचा नहीं पाए,

उसे आबाद करने के लिए कोई पैदा नहीं हुआ।

19 परमेश्‍वर कहता है, “तेरे जो लोग मर गए हैं, वे उठ खड़े होंगे,

मेरे लोगों की लाशों* में जान आ जाएगी।+

तुम जो मिट्टी में जा बसे हो,+ जागो!

खुशी से जयजयकार करो!

तेरी ओस सुबह की ओस* जैसी है!

कब्र में पड़े बेजान लोगों को धरती लौटा देगी कि वे ज़िंदा किए जाएँ।

20 हे मेरे लोगो, अपने-अपने अंदरवाले कमरे में जाओ

और दरवाज़ा बंद कर लो।+

थोड़ी देर के लिए छिप जाओ,

जब तक कि मेरी जलजलाहट शांत नहीं हो जाती।+

21 देखो! मैं यहोवा अपनी जगह से आ रहा हूँ

कि उस देश के निवासियों से उनके गुनाहों का हिसाब लूँ।

देश में जितना खून बहाया गया, वह खुलकर सामने आएगा,

वहाँ मारे गए लोगों को नहीं छिपाया जाएगा।”

27 उस दिन यहोवा अपनी पैनी और डरावनी तलवार से,+

फुर्तीले लिव्यातान* पर वार करेगा,

उस बलखाते साँप लिव्यातान पर वार करेगा,

वह समुंदर में रहनेवाले उस बड़े जंतु को मार डालेगा।

 2 उस दिन इस औरत* के लिए तुम यह गीत गाना:

“अंगूरों की बगिया में दाख-मदिरा बन रही है!*+

 3 यहोवा कहता है, ‘मैं बगिया की हिफाज़त कर रहा हूँ,+

मैं हर वक्‍त उसमें पानी डालता हूँ,+

दिन-रात उसकी रक्षा करता हूँ

कि कोई उसे नुकसान न पहुँचाए।+

 4 मैं अब उससे गुस्सा नहीं हूँ।+

अगर कोई मेरी बगिया में कँटीली झाड़ियाँ और जंगली पौधे बोएगा,

तो मैं उससे लड़ूँगा और उसी वक्‍त उन्हें कुचल दूँगा, भस्म कर दूँगा।

 5 अगर वह नहीं चाहता कि ऐसा हो, तो उससे कह

कि वह मेरे मज़बूत गढ़ में आए और मेरे साथ शांति कायम करे,

हाँ, वह आकर शांति कायम करे।’”

 6 आनेवाले दिनों में याकूब जड़ पकड़ेगा,

इसराएल में फूल खिलेंगे और कोपलें निकलेंगी,+

उसकी पैदावार से धरती भर जाएगी।+

 7 उसे जिस सख्ती से मारा गया, क्या उतनी सख्ती से मारना चाहिए था?

उसे जैसी मौत मिली, क्या ऐसी मौत मिलनी चाहिए थी?

 8 तू उस नगरी का सामना करेगा, चिल्लाकर उसे दूर भगा देगा।

तू मानो पूर्वी हवा के तेज़ झोंके से उसे उड़ा देगा।+

 9 इस तरह याकूब के पापों का प्रायश्‍चित होगा,+

जब उसके पाप दूर किए जाएँगे तो उसका फल यह होगा:

वह* वेदी के सब पत्थरों को चूना पत्थर की तरह चूर-चूर कर देगा।

एक भी पूजा-लाठ* या धूप-स्तंभ नहीं बचेगा।+

10 उस किलेबंद नगरी को छोड़ दिया जाएगा,

उसके चरागाह, वीराने की तरह सुनसान हो जाएँगे।+

वहाँ बछड़ा चरेगा और आराम करेगा,

वह उसकी सारी टहनियाँ चट कर जाएगा।+

11 जब उस नगरी की टहनियाँ सूख जाएँगी,

तो औरतें आकर उन्हें तोड़ लेंगी

और उनसे आग जलाएँगी।

उन लोगों में कोई समझ नहीं,+

इसलिए उनका बनानेवाला उन पर दया नहीं करेगा,

उन्हें रचनेवाला उन पर कोई रहम नहीं खाएगा।+

12 हे इसराएल के लोगो, जैसे कोई पेड़ से एक-एक फल तोड़कर उन्हें इकट्ठा करता है, यहोवा भी महानदी* से लेकर मिस्र घाटी*+ तक के इलाकों से तुम्हें इकट्ठा करेगा।+ 13 उस दिन ज़ोर से नरसिंगा फूँका जाएगा+ और जो अश्‍शूर में मर-मरके जी रहे थे+ और जो मिस्र में तितर-बितर हो गए थे,+ वे यरूशलेम के पवित्र पहाड़ पर आएँगे और यहोवा के आगे दंडवत करेंगे।+

28 धिक्कार है एप्रैम के शराबियों पर, उनके घमंडी मुकुट* पर!+

धिक्कार है उनके खूबसूरत फूलों के ताज पर जो मुरझा रहा है,

जो उस उपजाऊ घाटी के सिर पर सजा है, जहाँ लोग दाख-मदिरा के नशे में धुत्त हैं।

 2 देखो, यहोवा एक ताकतवर सूरमा भेजेगा,

जो ओलों की ज़बरदस्त बारिश और तबाही मचानेवाली आँधी की तरह आएगा,

तूफान और भयंकर बाढ़ की तरह आएगा

और उस मुकुट को धरती पर ज़ोर से पटक देगा।

 3 एप्रैम के शराबी जिस मुकुट पर घमंड करते हैं,

उसे पैरों तले रौंदा जाएगा।+

 4 उपजाऊ घाटी के सिर पर सजे,

खूबसूरत फूलों के मुरझाते ताज का वही हाल होगा,

जो गरमियों से पहले अंजीर की पहली फसल का होता है,

जो कोई उसे देखता है उसे तोड़कर तुरंत निगल जाता है।

5 उस दिन सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा अपने बचे हुए लोगों के लिए शानदार मुकुट और फूलों का खूबसूरत ताज बनेगा।+ 6 जो न्याय करने बैठते हैं, उन्हें वह न्याय करने की समझ* देगा और जो फाटक पर हमलावरों का सामना करते हैं, उन्हें लड़ने की ताकत देगा।+

 7 याजक और भविष्यवक्‍ता भी दाख-मदिरा पीकर बहक गए हैं,

वे शराब के नशे में लड़खड़ाते हैं,

हाँ, वे शराब पीकर बहक गए हैं,

दाख-मदिरा से उनका दिमाग फिर गया है,

शराब की वजह से वे लड़खड़ाते हैं।

उनके दर्शनों ने उन्हें भटका दिया है,

वे सही फैसले नहीं ले पा रहे।+

 8 उनकी मेज़ गंदगी से सनी हुई है,

हर तरफ उलटी-ही-उलटी है।

 9 वे कहते हैं, “वह किसे सिखाने चला है?

किसे अपना संदेश समझाना चाहता है?

क्या हम कोई बच्चे हैं जिनका दूध अभी-अभी छुड़ाया गया है?

जिन्हें अपनी माँ की छाती से अभी-अभी हटाया गया है?

10 जब देखो बस यही रट लगाए रहता है,

‘आदेश पर आदेश, आदेश पर आदेश!

नियम* पर नियम, नियम पर नियम!+

थोड़ा यहाँ, थोड़ा वहाँ।’”

11 इसलिए परमेश्‍वर लड़खड़ाती ज़बानवालों और विदेशी भाषा बोलनेवालों के ज़रिए उन लोगों से बात करेगा।+ 12 उसने एक बार उनसे कहा था, “यह आराम करने की जगह है। थके-माँदों को यहाँ आराम करने दे कि वे तरो-ताज़ा हो जाएँ।” मगर उन्होंने एक न सुनी।+ 13 तब यहोवा फिर से उन्हें कहेगा,

“आदेश पर आदेश, आदेश पर आदेश!

नियम* पर नियम, नियम पर नियम!+

थोड़ा यहाँ, थोड़ा वहाँ।”

मगर वे उसकी नहीं सुनेंगे

और पीछे की तरफ धड़ाम से गिर पड़ेंगे,

वे घायल हो जाएँगे और फँसकर पकड़े जाएँगे।+

14 हे डींगें मारनेवालो, हे यरूशलेम के लोगों के शासको,

यहोवा का वचन सुनो!

15 तुम लोग कहते हो,

“हमने मौत के साथ करार किया है,+

कब्र के साथ साझेदारी की है।*

इसलिए जब अचानक पानी का सैलाब आएगा,

तो हम तक नहीं पहुँचेगा,

क्योंकि हमने झूठ को अपनी पनाह बनाया है

और कपट में शरण ली है।”+

16 इसलिए सारे जहान का मालिक यहोवा कहता है,

“मैं सिय्योन में परखे हुए पत्थर की नींव डाल रहा हूँ,+

उस कीमती कोने के पत्थर+ को नींव में बिठा रहा हूँ।+

जो कोई उस पर विश्‍वास करता है वह नहीं घबराएगा।+

17 मैं न्याय को नापने की डोरी+

और नेकी को साहुल* बनाऊँगा।+

ओलों की बारिश झूठ की उनकी पनाह को ढा देगी,

बाढ़ उनके छिपने की जगह को बहा ले जाएगी।

18 मौत के साथ तुम्हारा करार रद्द हो जाएगा,

कब्र के साथ तुम्हारी साझेदारी नहीं रहेगी।+

जब अचानक पानी का सैलाब आएगा,

तो तुम तहस-नहस हो जाओगे।

19 जब-जब वह आएगा,

तुम्हें बहा ले जाएगा।+

हर सुबह आएगा,

चाहे दिन हो या रात, वह नहीं रुकेगा।

खौफ खाकर ही वे समझेंगे कि वह संदेश क्या है।”*

20 पलंग पैर फैलाने के लिए छोटा पड़ जाएगा

और चादर ओढ़ने के लिए छोटी पड़ जाएगी।

21 यहोवा उठ खड़ा होगा जैसे वह परासीम पहाड़ पर उठा था,

वह कदम उठाएगा जैसे उसने गिबोन के पासवाली घाटी में उठाया था,+

ताकि वह अपना काम, अपना निराला काम पूरा करे,

ताकि वह अपना काम, अपना अनोखा काम पूरा करे!+

22 ठट्ठा मत उड़ाओ,+ नहीं तो तुम्हारे बंधन और कस दिए जाएँगे,

क्योंकि मैंने सारे जहान के मालिक और सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा से सुना है

कि उसने पूरे देश* का नाश करने की ठान ली है।+

23 मेरी बात पर कान लगाओ,

ध्यान से सुनो मैं क्या कह रहा हूँ।

24 क्या खेत जोतनेवाला, बीज बोने के लिए पूरे दिन हल चलाता है?

क्या वह सारा वक्‍त मिट्टी के ढेले तोड़ने और पटेला चलाने में लगा देता है? नहीं!+

25 खेत समतल करने के बाद,

वह कलौंजी और जीरे के बीज छितराता है,

गेहूँ, ज्वार और जौ अपनी-अपनी जगह बोता है

और खेत के किनारे-किनारे कठिया गेहूँ+ लगाता है।

26 परमेश्‍वर इंसान को सही राह पर चलना सिखाता है,*

उसका परमेश्‍वर उसे हिदायतें देता है।+

27 कलौंजी दाँवने की पटिया+ से नहीं दाँवी जाती

और जीरा गाड़ी के चक्के से नहीं दाँवा जाता,

बल्कि कलौंजी डंडे से

और जीरा लाठी से झाड़ा जाता है।

28 जिस अनाज से रोटी बनती है,

उसे दाँवा तो जाता है मगर लगातार नहीं।+

और जब घोड़े से लगे छोटे-छोटे पहिए उस पर चलाए जाते हैं,

तो उन्हें इतना नहीं चलाया जाता कि अनाज कुचल जाए।+

29 ये बातें भी सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से हैं,

जिसका मकसद बेजोड़ है

और जो अपने हर काम में सफल होता है।*+

29 “धिक्कार है अरीएल* पर,

हाँ, उस नगरी पर जहाँ दाविद का डेरा था।+

त्योहारों का उसका सिलसिला+ जारी रहे,

साल-दर-साल यह चलता रहे।

 2 मगर मैं अरीएल पर आफत लाऊँगा,+

हर तरफ मातम और विलाप होगा,+

मेरे लिए यह नगरी वेदी का अग्नि-कुंड बन जाएगी।+

 3 मैं तेरे चारों तरफ मोरचा बाँधूँगा,

नुकीले लट्ठों का बाड़ा बनाऊँगा,

हर तरफ से तेरी घेराबंदी करूँगा।+

 4 तुझे नीचे ज़मीन पर पटक दिया जाएगा,

तू वहाँ से बोलेगी, मगर तेरी आवाज़ धूल में दबी रह जाएगी।

ज़मीन से तेरी आवाज़ ऐसी लगेगी,+

मानो कोई मरे हुओं से संपर्क करनेवाला बोल रहा हो।

तेरी चहचहाहट मिट्टी से सुनायी देगी।

 5 तेरे दुश्‍मनों* की भीड़ धूल बन जाएगी,+

ज़ालिमों की भीड़ भूसे की तरह उड़ जाएगी,+

यह सब अचानक पलक झपकते ही होगा!+

 6 मैं, सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा तुझे छुड़ाने के लिए कदम उठाऊँगा,

उस वक्‍त बादल गरजेंगे, भूकंप होगा, भयानक शोर सुनायी देगा,

ज़ोरदार आँधी-तूफान चलेगा और भस्म करनेवाली आग की लपटें उठेंगी।”+

 7 तब राष्ट्रों की जो भीड़ अरीएल से युद्ध करेगी,+

जो लोग उससे लड़ेंगे,

उस पर हमला करने के लिए मीनारें खड़ी करेंगे,

उस पर मुसीबतें लाएँगे,

वे सब एक सपना बनकर रह जाएँगे, रात में देखा गया सपना।

 8 यह ऐसा होगा मानो कोई भूखा इंसान सपने में खाना खा रहा हो,

मगर जागने पर उसका पेट खाली ही है।

जैसे कोई प्यासा सपने में पानी पी रहा हो,

मगर नींद खुलने पर वह प्यासा और थका-माँदा ही है।

यही हाल राष्ट्रों की उस भीड़ का होगा,

जो सिय्योन पहाड़ से लड़ेगी।+

 9 दंग रह जाओ, हैरत में पड़ जाओ,+

इस कदर अंधे हो जाओ कि तुम्हें कुछ दिखायी न दे।+

वे नशे में हैं मगर दाख-मदिरा के नशे में नहीं,

वे लड़खड़ा रहे हैं, मगर शराब पीकर नहीं।

10 यहोवा ने तुम लोगों को मानो गहरी नींद में डाल दिया है,+

उसने तुम्हारी आँखों को, हाँ, भविष्यवक्‍ताओं को अंधा कर दिया है,+

उसने तुम्हारी अक्ल पर, हाँ, दर्शियों पर परदा डाल दिया है।+

11 हर दर्शन तुम्हारे लिए मुहरबंद किताब जैसा है।+ जब किसी पढ़े-लिखे को यह किताब देकर कहा जाएगा, “ज़रा इसे ज़ोर से पढ़ना,” तो वह कहेगा, “मैं कैसे पढ़ूँ, यह तो मुहरबंद है।” 12 और जब इसे किसी अनपढ़ को देकर कहा जाएगा, “ज़रा पढ़ना इसे,” तो वह कहेगा, “मुझे पढ़ना नहीं आता।”

13 यहोवा कहता है, “ये लोग अपने मुँह और होंठों से तो मेरा आदर करते हैं,+

मगर इनका दिल मुझसे कोसों दूर रहता है।

वे कहने को तो मेरा डर मानते हैं,

मगर इंसानों की आज्ञाओं पर चलते हैं।+

14 इसलिए मैं एक बार फिर इन लोगों के साथ कुछ अनोखा करूँगा,+

एक-से-एक अद्‌भुत काम करूँगा।

तब उनके बुद्धिमानों की बुद्धि खत्म हो जाएगी,

उनके समझदारों की समझ गायब हो जाएगी।”+

15 धिक्कार है उन पर, जो यहोवा से अपनी योजनाएँ छिपाने के लिए क्या-कुछ नहीं करते।+

वे अँधेरी जगहों में छिपकर काम करते हैं

और कहते हैं, “हमें कौन देख रहा है?

किसे पता हम क्या कर रहे हैं?”+

16 तुम लोग कितने टेढ़े हो!*

क्या मिट्टी कुम्हार के बराबर हो सकती है?+

क्या बनी हुई चीज़ अपने बनानेवाले के बारे में कह सकती है,

“उसने मुझे नहीं बनाया”?+

या रची गयी चीज़ अपने रचनेवाले के बारे में कह सकती है,

“उसमें कुछ समझ नहीं”?+

17 कुछ ही देर में लबानोन फलों का बाग बन जाएगा,+

फिर यह बाग हरा-भरा जंगल बन जाएगा।+

18 उस दिन बहरे भी उस किताब की बातें सुनेंगे,

अंधों की आँखों के सामने से धुँधलापन और अंधकार दूर हो जाएगा।+

19 दीन जन यहोवा के कारण फूले नहीं समाएँगे

और गरीब, इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर के कारण खुशियाँ मनाएँगे।+

20 क्योंकि ज़ालिम नहीं रहेगा,

शेखी बघारनेवाला खत्म हो जाएगा

और दूसरों को नुकसान पहुँचाने की ताक में रहनेवाला मिट जाएगा।+

21 वे सभी मिट जाएँगे जो झूठ बोलकर दूसरों को दोषी ठहराते हैं,

जो शहर के फाटक पर न्याय के रखवाले के लिए फंदा बिछाते हैं+

और खोखली दलीलें देते हैं ताकि नेक जन को इंसाफ न मिले।+

22 अब्राहम का छुड़ानेवाला यहोवा,+ अब याकूब के घराने से कहता है,

“याकूब फिर कभी शर्मिंदा नहीं होगा,

उसका सिर नहीं झुकेगा।*+

23 क्योंकि जब वह अपने बच्चों को, जो मेरे हाथ की कारीगरी हैं,+

अपने आस-पास देखेगा,

तो उनके साथ मिलकर मेरे नाम का आदर करेगा,

हाँ, वे याकूब के पवित्र परमेश्‍वर का आदर करेंगे

और इसराएल के परमेश्‍वर के लिए श्रद्धा से भर जाएँगे।+

24 जिनके मन भटक गए थे वे समझ हासिल करेंगे

और जो शिकायत करते थे वे सीखने को तैयार होंगे।”

30 यहोवा कहता है, “धिक्कार है उन ज़िद्दी बेटों पर,+

वे ऐसी योजनाओं को अंजाम देते हैं जो मेरी तरफ से नहीं,+

ऐसी संधि करते हैं* जो मेरी मरज़ी* के खिलाफ है

और जो पाप-पर-पाप करते जा रहे हैं।

 2 वे मुझसे बिना पूछे+ मिस्र के पास जाते हैं+

कि फिरौन की हिफाज़त पाएँ

और मिस्र के साए में शरण लें।

 3 मगर फिरौन की हिफाज़त तुम्हारे लिए लज्जा का कारण ठहरेगी,

मिस्र का साया तुम्हारे लिए अपमान का कारण बनेगा।+

 4 हाकिम सोअन में हैं,+

दूत हानेस तक पहुँच गए हैं।

 5 इसराएलियों को शर्मिंदा होना पड़ेगा,

क्योंकि मिस्रियों से उन्हें कोई फायदा नहीं होगा,

उन्हें कोई मदद, कोई लाभ नहीं मिलेगा,

उलटा वे उन्हें शर्मिंदा और बेइज़्ज़त करके छोड़ेंगे।”+

6 दक्षिण जानेवाले जानवरों के खिलाफ यह संदेश सुनाया गया:

गधों की पीठ पर दौलत लादकर,

ऊँट की कूबड़ पर तोहफे लेकर,

ये दूत, दुख और मुसीबतों के इलाके से गुज़रते हैं,

उस इलाके से जहाँ शेर, गरजते शेर रहते हैं,

जहाँ ज़हरीले साँप और ऐसे विषैले साँप भी रहते हैं, जिनमें बिजली की सी फुर्ती है।

मगर ये तोहफे और दौलत किसी काम नहीं आएँगे।

 7 मिस्र की मदद बेकार साबित होगी,+

इसीलिए मैंने उसके बारे में कहा, “वह राहाब* है,+ मगर किसी काम की नहीं।”

 8 “अब जाओ, ये बातें उनके सामने एक तख्ती पर लिखो,

किसी किताब में दर्ज़ करो+

ताकि आनेवाले समय में ये हमेशा के लिए गवाह ठहरें।+

 9 क्योंकि ये बगावती लोग हैं,+ धोखा देनेवाले बेटे हैं,+

ऐसे बेटे हैं जो मुझ यहोवा का कानून* सुनना ही नहीं चाहते।+

10 ये दर्शियों से कहते हैं, ‘दर्शन मत देखो!’

भविष्यवक्‍ताओं से कहते हैं, ‘मत करो हमारे बारे में सच्ची भविष्यवाणियाँ!+

हमसे मीठी-मीठी बातें करो, गुमराह करनेवाले दर्शन देखो।+

11 सही रास्ते से हट जाओ, उस राह को छोड़ दो,

इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर के बारे में हमसे और कुछ मत कहो।’”+

12 अब सुनो कि इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर क्या कहता है,

“तुमने मेरा वचन ठुकरा दिया,+

कपट और धोखे पर भरोसा किया,

उन्हीं पर आस लगायी,+

13 इसलिए तुम्हारा यह गुनाह ऐसी दीवार जैसा हो गया है जिसमें दरारें पड़ चुकी हैं,

ऐसी फूली हुई दीवार जैसा, जो कभी-भी गिर सकती है,

वह अचानक पल-भर में धड़ाम से गिर जाएगी।

14 वह कुम्हार के बड़े मटके की तरह फूट जाएगा,

पूरी तरह चकनाचूर हो जाएगा, उसका एक भी टुकड़ा नहीं बचेगा,

जिससे आग से जलता अंगारा उठाया जा सके,

या गड्‌ढे* से पानी निकाला जा सके।”

15 सारे जहान का मालिक, इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर यहोवा कहता है,

“मेरे पास लौट आओ और खामोश बैठे रहो, तब तुम्हें हिफाज़त मिलेगी,

शांत रहो और मुझ पर भरोसा करो, तब तुम्हें हिम्मत मिलेगी।”+

मगर तुम्हें यह मंज़ूर नहीं था।+

16 उलटा तुमने कहा, “नहीं, हम घोड़ों पर भागेंगे!”

भागना तो तुम्हें पड़ेगा।

तुमने कहा, “हम तेज़ घोड़ों पर सवार होकर बच निकलेंगे!”+

पर तुम्हारा पीछा करनेवाले तुमसे भी तेज़ होंगे।+

17 सिर्फ एक के धमकाने से तुम्हारे हज़ार लोग काँप उठेंगे,+

पाँच की ललकार सुनकर तो तुम भाग खड़े होगे।

तुममें से जो बच जाएँगे वे पहाड़ की चोटी पर अकेले मस्तूल जैसे होंगे,

हाँ, पहाड़ी पर लहराते अकेले झंडे जैसे।+

18 मगर यहोवा इंतज़ार* कर रहा है कि कब तुम पर रहम करे,+

वह दया करने के लिए ज़रूर कदम उठाएगा,+

क्योंकि यहोवा न्याय का परमेश्‍वर है।+

सुखी हैं वे जो उस पर उम्मीद लगाए रहते हैं।*+

19 जब लोग सिय्योन में, यरूशलेम में रहेंगे+ तो तू बिलकुल नहीं रोएगा।+ जैसे ही तू परमेश्‍वर को पुकारेगा वह तुझ पर रहम खाएगा और तेरे दुहाई देते ही वह तेरी सुनेगा।+ 20 भले ही यहोवा तुझे मुसीबत की रोटी खिलाएगा और दुख का पानी पिलाएगा,+ मगर तेरा महान उपदेशक तुझसे अब और छिपा न रहेगा। तू अपने महान उपदेशक को अपनी आँखों से देखेगा।+ 21 और अगर कभी तू सही राह से भटककर दाएँ या बाएँ मुड़े, तो तेरे कानों में पीछे से यह आवाज़ आएगी, “राह यही है,+ इसी पर चल।”+

22 तू अपनी खुदी हुई मूरतों को और ढली हुई मूरतों को अशुद्ध करेगा जिन पर सोना-चाँदी मढ़ा है।+ तू उन्हें ऐसे फेंक देगा जैसे माहवारी का कपड़ा फेंका जाता है और कहेगा, “दूर हो जा।”*+ 23 परमेश्‍वर तेरे लगाए बीजों को सींचने के लिए बारिश लाएगा।+ तेरे खेतों में खूब फसल होगी और भरपूर उपज पैदा होगी।+ उस दिन तेरे मवेशी बड़े-बड़े चरागाह में चरेंगे।+ 24 खेती के काम आनेवाले गाय-बैल और गधे ऐसा बढ़िया चारा* खाएँगे, जिसे बेलचे और काँटे से फटका गया हो। 25 जिस दिन ऊँची-ऊँची मीनारें गिरेंगी और बड़ी तादाद में मार-काट मचेगी, उस दिन ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों और पहाड़ियों पर नहरें और नदियाँ बहेंगी।+ 26 जिस दिन यहोवा अपने घायल लोगों की मरहम-पट्टी करेगा,*+ जो गहरे घाव उसने दिए थे उनको भरेगा,+ उस दिन पूनम का चाँद ऐसे चमकेगा मानो सूरज चमक रहा हो। और सूरज सात गुना रौशनी देगा+ मानो सात दिनों की रौशनी एक-साथ चमका रहा हो।

27 देखो, यहोवा* दूर से आ रहा है,

वह अपनी जलजलाहट और घने बादलों के साथ आ रहा है।

उसके होंठ क्रोध से भरे हुए हैं,

उसकी ज़बान भस्म करनेवाली आग है।+

28 उसकी ज़ोरदार शक्‍ति* उमड़ती बाढ़ जैसी है, जिसका पानी गले तक पहुँच गया है।

वह राष्ट्रों को विनाश के छलने में हिलाएगा

और देश-देश के लोगों के मुँह में लगाम लगाएगा+ कि उन्हें नाश की ओर ले जाए।

29 लेकिन तुम ऐसे गीत गाओगे,

जैसे त्योहार की तैयारी करते वक्‍त* रात में गाया जाता है।+

तुम्हारा दिल खुशी से ऐसे झूम उठेगा,

मानो कोई बाँसुरी बजाते हुए*

यहोवा के पर्वत की ओर, ‘इसराएल की चट्टान’+ के पास जा रहा हो।

30 उस वक्‍त यहोवा अपनी ज़ोरदार आवाज़+ सुनाएगा,

वह जलजलाहट,+ भस्म करनेवाली आग,+ फटते बादल,+

आँधी-तूफान और ओलों से+

अपने बाज़ुओं की ताकत दिखाएगा।+

31 यहोवा की आवाज़ सुनकर अश्‍शूर में आतंक छा जाएगा,+

वह अश्‍शूर को छड़ी से मारेगा।+

32 यहोवा जब उसके खिलाफ युद्ध में अपना हाथ बढ़ाएगा,

उस पर सज़ा की छड़ी चलाएगा,+

तो उसके हर वार पर डफली और सुरमंडल बजेंगे।+

33 अश्‍शूर की तोपेत*+ पहले से तैयार है,

उसके राजा के लिए भी यह तैयार है।+

परमेश्‍वर ने लकड़ियों का ढेर लगाने के लिए उसे गहरा और चौड़ा किया है,

वहाँ बहुत-सी लकड़ियाँ और आग है।

यहोवा की साँस गंधक की धारा के समान है,

वही उस ढेर को सुलगाएगी।

31 धिक्कार है उन पर जो मदद के लिए मिस्र के पास जाते हैं,+

जो घोड़ों पर भरोसा रखते हैं,+

जो युद्ध-रथों की भरमार देखकर,

जंगी घोड़ों* की ताकत देखकर उन पर आस लगाते हैं,

मगर इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर की ओर नहीं ताकते,

यहोवा की खोज नहीं करते।

 2 पर वह भी बुद्धिमान है।

वह विपत्ति लाएगा, अपनी बात से मुकरेगा नहीं।

वह दुष्टों के घर के खिलाफ उठेगा

और उन लोगों के खिलाफ भी जो गुनहगारों की मदद करते हैं।+

 3 मिस्र के लोग परमेश्‍वर नहीं इंसान हैं,

उनके घोड़े कोई अनदेखी शक्‍ति नहीं हाड़-माँस के हैं।+

जब यहोवा अपना हाथ बढ़ाएगा,

तो मदद देनेवाले लड़खड़ा जाएँगे

और मदद लेनेवाले गिर पड़ेंगे,

दोनों का एक-साथ नाश हो जाएगा।

 4 यहोवा ने मुझसे कहा,

“एक शेर, शक्‍तिशाली शेर अपने शिकार की रखवाली करते हुए दहाड़ता है

और जब उसे भगाने के लिए चरवाहों का झुंड बुलाया जाता है,

तो उनकी ललकार सुनकर वह नहीं डरता,

उनके शोर से पीछे नहीं हटता,

वैसे ही सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,

सिय्योन पहाड़ और उसकी पहाड़ी की खातिर युद्ध करने नीचे उतरेगा।

 5 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा पक्षी की तरह फुर्ती से आकर यरूशलेम को बचाएगा।+

वह उसकी हिफाज़त करेगा और उसे बचाएगा,

उसे खतरों से महफूज़ रखेगा और उसे छुड़ा लेगा।”

6 “हे इसराएल के लोगो, उस परमेश्‍वर के पास लौट आओ जिसके खिलाफ तुमने बड़ी बेशर्मी से बगावत की।+ 7 उस दिन हर कोई सोने-चाँदी के अपने निकम्मे देवताओं को ठुकरा देगा, जिन्हें तुमने अपने हाथों से बनाकर पाप किया था।

 8 अश्‍शूरी तलवार से मारे जाएँगे, मगर किसी इंसान की तलवार से नहीं,

वे उस तलवार का कौर बनेंगे जो इंसान की नहीं।+

अश्‍शूरी उस तलवार से डरकर भागेंगे

और उनके जवानों से जबरन मज़दूरी करवायी जाएगी।

 9 डर के मारे उसकी चट्टान गायब हो जाएगी

और झंडा देखकर उसके हाकिम थर-थर काँप उठेंगे।”

यह ऐलान यहोवा ने किया है,

जिसकी ज्योति* सिय्योन में है, जिसकी भट्ठी यरूशलेम में है।

32 देखो! राजा+ नेकी से राज करेगा+

और हाकिम न्याय से शासन करेंगे।

 2 हर हाकिम मानो आँधी से छिपने की जगह होगा,

तेज़ बारिश में मिलनेवाली पनाह होगा,

सूखे देश में पानी की धारा होगा+

और तपते देश में बड़ी चट्टान की छाया होगा।

 3 तब देखनेवालों की आँखें फिर कभी बंद नहीं होंगी

और सुननेवालों के कान ध्यान से सुनेंगे।

 4 उतावली करनेवाला मन ज्ञान की बातों पर गहराई से सोचेगा

और हकलानेवाली ज़बान बिना लड़खड़ाए साफ-साफ बोलेगी।+

 5 मूर्ख को अब से दरियादिल नहीं कहा जाएगा

और जो उसूलों पर नहीं चलता उसे भला नहीं कहा जाएगा।

 6 मूर्ख बेकार की बातें करता है

और अपने मन में साज़िशें रचता है,+

ताकि दूसरों को यहोवा के खिलाफ कर दे,* उसके बारे में झूठी बातें कहे,

ताकि भूखा भूखे पेट रह जाए

और प्यासा पानी के लिए तरस जाए।

 7 जो आदमी उसूलों पर नहीं चलता, उसके तरीके बुरे होते हैं।+

वह शर्मनाक काम को बढ़ावा देता है,

अपनी झूठी बातों से दुखियारों को बरबाद कर देता है,+

उस गरीब को भी जो सच बोलता है।

 8 लेकिन दरियादिल इंसान देने की सिर्फ ख्वाहिश नहीं रखता,

वह दिल खोलकर देता भी रहता है।*

 9 “हे बेफिक्र औरतो, उठो! मेरी बात सुनो!

हे मस्ती में डूबी बेटियो,+ मेरी बातों पर ध्यान दो!

10 तुम जो आज बेफिक्र बैठी हो, साल-भर बाद काँपने लगोगी,

क्योंकि अंगूर की कटाई खत्म हो जाएगी और तुम्हारे हाथ कुछ नहीं लगेगा।+

11 हे बेफिक्र औरतो, डर के मारे काँपो!

हे मस्ती में डूबी बेटियो, थर-थर काँपो!

अपने कपड़े उतारो और कमर पर टाट बाँध लो।+

12 छाती पीट-पीटकर शोक मनाओ!

लहलहाते खेतों और अंगूरों के फलते-फूलते बागों को देखकर शोक मनाओ,

13 क्योंकि मेरे लोगों की ज़मीन काँटों और कँटीली झाड़ियों से भर जाएगी,

जिन घरों में खुशियाँ मनायी जाती थीं,

हाँ, खुशियों के उस शहर में झाड़ियाँ उग आएँगी।+

14 उसकी मज़बूत मीनार खाली हो जाएगी,

चहल-पहलवाले शहर में खामोशी छा जाएगी,+

ओपेल+ और पहरे की मीनार हमेशा के लिए वीरान हो जाएगी,

जंगली गधे यहाँ मज़े करेंगे

और भेड़-बकरियाँ यहाँ चरेंगी।+

15 लेकिन फिर परमेश्‍वर हम पर अपनी पवित्र शक्‍ति उँडेलेगा+

और वीराना, फलों का बाग बन जाएगा,

फिर यह बाग हरा-भरा जंगल बन जाएगा।+

16 तब उस वीराने में न्याय का बोलबाला होगा,

फलों के उस बाग में नेकी का बसेरा होगा।+

17 सच्ची नेकी की बदौलत हर तरफ शांति होगी,+

सच्ची नेकी से सुकून और हिफाज़त मिलेगी जो कभी नहीं मिटेगी।+

18 मेरे लोग ऐसी जगह रहेंगे, जहाँ अमन-चैन होगा,

हाँ, ऐसे बसेरों में, जहाँ वे सुखी और महफूज़ रहेंगे।+

19 मगर ओले गिरने से जंगल का नाश हो जाएगा

और शहर पूरी तरह खाक में मिल जाएगा।

20 सुखी हो तुम जो नदी के पास बीज बोते हो

और अपना बैल और गधा खुला छोड़ते हो।”+

33 हे नाश करनेवाले, तू जिसका नाश नहीं किया गया,+

हे विश्‍वासघाती, तू जिसके साथ विश्‍वासघात नहीं किया गया,

धिक्कार है तुझ* पर! जब तू नाश करना बंद कर देगा, तब तेरा नाश किया जाएगा,+

जब तू विश्‍वासघात करना बंद कर देगा, तब तेरे साथ विश्‍वासघात होगा।

 2 हे यहोवा, हम पर दया कर!+

हमारी आशा तुझ पर लगी है।

हर सुबह हमारी ताकत* बन,+

हाँ, मुसीबत के वक्‍त हमारा उद्धारकर्ता बन जा।+

 3 तेरा गरजन सुनकर देश-देश के लोग भाग खड़े होते हैं,

तेरे उठते ही राष्ट्र तितर-बितर हो जाते हैं।+

 4 जैसे भूखी टिड्डियाँ आकर पूरे देश पर टूट पड़ती हैं,

वैसे ही दूसरे आकर तुम्हारे लूट के माल पर टूट पड़ेंगे

और टिड्डियों के झुंड की तरह उसे पूरी तरह चट कर जाएँगे।

 5 यहोवा को ऊँचा किया जाएगा,

क्योंकि वह ऊँचे पर विराजमान है।

वह सिय्योन को न्याय और नेकी से भर देगा।

 6 उन दिनों* वह मज़बूती देगा,

बड़े पैमाने पर उद्धार,+ बुद्धि, ज्ञान और यहोवा का डर देगा।+

यही तुम्हारा खज़ाना होगा।*

 7 देखो! उनके* शूरवीर सड़कों पर दुख के मारे चिल्ला रहे हैं,

शांति का संदेश ले जानेवाले दूत फूट-फूटकर रो रहे हैं।

 8 राजमार्ग सुनसान पड़े हैं,

रास्तों पर कोई राहगीर नज़र नहीं आ रहा।

उसने* करार तोड़ दिया है,

उसने शहरों को ठुकरा दिया है,

उसकी नज़र में इंसान कुछ भी नहीं।+

 9 देश शोक मना रहा है* और मुरझा रहा है,

लबानोन शर्मिंदा है,+ वह सड़ता जा रहा है,

शारोन के मैदान रेगिस्तान बन गए हैं,

बाशान और करमेल के पत्ते झड़ रहे हैं।+

10 यहोवा कहता है, “अब मैं उठूँगा,

खुद को ऊँचा करूँगा,+ अपनी महिमा करूँगा।

11 तुम्हारी कोख में सूखी घास पलेगी और तुम भूसे को जन्म दोगे,

तुम्हारे मन का झुकाव आग की तरह तुम्हें भस्म कर देगा।+

12 देश-देश के लोग जले हुए चूने की तरह हो जाएँगे,

उन्हें कँटीली झाड़ियों की तरह काटकर आग में झोंक दिया जाएगा।+

13 हे दूर-दूर के इलाकों में रहनेवालो, सुनो मैं क्या करनेवाला हूँ!

हे आस-पास के रहनेवालो, मेरी ताकत पहचानो!

14 सिय्योन में गुनहगार घबराए हुए हैं,+

परमेश्‍वर से मुँह मोड़नेवाले थर-थर काँप रहे हैं।

वे एक-दूसरे से कहते हैं,

‘भस्म करनेवाली आग के सामने कौन टिक सकता है?+

कभी न बुझनेवाली लपटों के आगे कौन खड़ा रह सकता है?’

15 जो नेकी की राह पर बना रहता है,+

जो सीधी-सच्ची बातें बोलता है,+

जो धोखाधड़ी और बेईमानी की कमाई ठुकराता है,

जो रिश्‍वत पर झपटने के बजाय अपना हाथ रोक लेता है,+

जो खून-खराबा करने की साज़िश सुनकर कान बंद कर लेता है,

जो बुराई देखने से अपनी आँखें मूँद लेता है,

16 ऐसा इंसान ऊँची जगहों पर रहेगा,

चट्टान पर बना मज़बूत* गढ़ उसकी पनाह होगा,

उसे रोटी मिलती रहेगी

और कभी पानी की कमी न होगी।”+

17 तुम्हारी आँखें राजा को उसकी पूरी शान में देखेंगी

और देश को दूर से निहारेंगी।

18 तुम मन में उस खौफनाक वक्‍त को याद करते* हुए कहोगे,

“शास्त्री कहाँ गया?

कर देनेवाला कहाँ गया?+

मीनारों को गिननेवाला कहाँ गया?”

19 तुम उन घमंडियों को फिर कभी न देखोगे,

हाँ, उन लोगों को जिनकी अजीबो-गरीब ज़बान तुम नहीं समझते,

जिनकी भाषा समझ से परे है।+

20 सिय्योन को देख! उस शहर को देख, जहाँ हम अपने त्योहार मनाते हैं।+

यरूशलेम एक ऐसी जगह बन जाएगा, जहाँ हम अमन-चैन से रहेंगे,

वह ऐसा तंबू बन जाएगा जिसे कभी नहीं गिराया जाएगा,+

उसकी खूँटियाँ नहीं निकाली जाएँगी,

न उसकी कोई रस्सी काटी जाएगी।

21 वहाँ महाप्रतापी यहोवा,

हमारी नदी और हमारी नहर बनकर रक्षा करेगा।

चाहे जहाज़ों* का लशकर हमारे खिलाफ आए,

वह उन्हें पार नहीं होने देगा,

बड़े-बड़े जहाज़ों को नहीं गुज़रने देगा।

22 क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी है,+

यहोवा हमारा कानून देनेवाला है,+

यहोवा हमारा राजा है,+

वही हमें बचाएगा।+

23 दुश्‍मन के जहाज़ों की रस्सियाँ* ढीली हो जाएँगी,

न तो मस्तूल खड़ा हो पाएगा, न ही पाल फैल सकेगा।

उस वक्‍त लूट का इतना माल बाँटा जाएगा

कि लँगड़े भी आकर बहुत-सा माल ले जाएँगे।+

24 देश का कोई निवासी न कहेगा, “मैं बीमार हूँ।”+

क्योंकि उसमें रहनेवालों का पाप माफ किया जाएगा।+

34 हे राष्ट्रो, पास आकर सुनो!

हे देश-देश के लोगो, ध्यान से सुनो!

पृथ्वी और जो कुछ उसमें है,

ज़मीन और जो कोई उस पर रहता है, सब सुनो!

 2 यहोवा की जलजलाहट सारे राष्ट्रों पर भड़क उठी है,+

उसके गुस्से की आग उनकी सेनाओं पर धधक रही है।+

वह उन्हें पूरी तरह से नाश करेगा,

उन्हें घात होने के लिए दे देगा।+

 3 उनके मरे हुओं को दफनाया नहीं जाएगा,

उनकी लाशों की बदबू ऊपर उठेगी,+

उनके खून से पहाड़ पिघल जाएँगे।*+

 4 आकाश की पूरी सेना गल जाएगी,

आकाश को खर्रे की तरह लपेटकर रख दिया जाएगा।

जैसे अंगूर की बेल के पत्ते

और अंजीर के फल सूखकर गिर जाते हैं,

वैसे ही आकाश की सेना मुरझाकर गिर जाएगी।

 5 “आकाश में मेरी तलवार तर होगी।+

यह तलवार एदोम को सज़ा देने के लिए उतरेगी,+

उन लोगों को, जिन्हें मैंने नाश के लायक ठहराया है।

 6 हाँ, यहोवा की तलवार खून से, चरबी से तर होगी,+

मेढ़ों और बकरों के खून से सनी होगी,

मेढ़ों के गुरदे की चरबी से ढकी होगी।

क्योंकि यहोवा बोसरा में बलिदान चढ़ाएगा

और एदोम में बहुतों का खून बहाया जाएगा।+

 7 जंगली साँड़ भी उनके साथ नाश होने आएँगे,

बैल भी हट्टे-कट्टे बैलों के साथ आएँगे,

उनका देश खून से भीग जाएगा,

धूल चरबी से सन जाएगी।”

 8 यहोवा ने दुश्‍मनों से बदला लेने का दिन ठहरा दिया है,+

वह साल तय कर दिया है, जब उन्हें सिय्योन पर ज़ुल्म करने की सज़ा देगा।+

 9 उस नगरी* की नदियाँ डामर में

और उसकी धूल गंधक में बदल जाएगी,

पूरी नगरी धधकता हुआ डामर बन जाएगी।

10 वह दिन-रात सुलगती रहेगी,

उससे हमेशा धुआँ उठता रहेगा,

पीढ़ी-पीढ़ी तक वह उजाड़ पड़ी रहेगी,

फिर कभी कोई उसमें से होकर नहीं गुज़रेगा।+

11 हवासिल* और साही वहाँ अपना डेरा जमाएँगे,

लंबे कानोंवाला उल्लू और कौवे उसमें रहेंगे।

परमेश्‍वर नापने की डोरी और साहुल से उस नगरी को नापेगा,

क्योंकि उसने ठान लिया है कि वह उसे सुनसान और तबाह कर देगा।

12 उसके किसी भी रुतबेदार आदमी को राजा नहीं बनाया जाएगा

और उसके सारे हाकिमों का अंत हो जाएगा।

13 नगरी की मज़बूत मीनारों पर काँटे निकल आएँगे,

उसके किलों में बिच्छू-बूटी और कँटीली घास उग आएगी।

वह नगरी गीदड़ों की माँद

और शुतुरमुर्गों का अड्डा बन जाएगी।+

14 रेगिस्तान के जंगली जानवर, गीदड़ों के साथ रहेंगे,

जंगली बकरा अपने साथी को बुलाएगा,

वहाँ छपका* डेरा जमाएगा और आराम फरमाएगा।

15 उड़नेवाली साँपिन वहाँ अपना बिल बनाएगी और अंडे देगी,

उन्हें सेएगी और बच्चों को अपने साए में इकट्ठा करेगी।

वहाँ चील भी अपने-अपने जोड़े के साथ जमा होंगी।

16 यहोवा की किताब में ढूँढ़ो और उसे ज़ोर से पढ़ो।

उनमें से एक भी नहीं छूटेगा,

कोई अपने जोड़े से अलग न होगा,

क्योंकि यह हुक्म यहोवा के मुँह से निकला है

और उसकी पवित्र शक्‍ति ने उनको इकट्ठा किया है।

17 उसी ने चिट्ठियाँ डालकर और नापने की डोरी* से नापकर,

हरेक को अपनी-अपनी जगह दी है।

वह जगह हमेशा के लिए उनकी हो जाएगी

और पीढ़ी-पीढ़ी तक वे उसमें बसे रहेंगे।

35 वीराना और सूखा मैदान खुशी से झूम उठेगा,+

बंजर ज़मीन खुशियाँ मनाएगी, केसर के बाग की तरह खिल उठेगी।+

 2 पूरे देश में बहार छा जाएगी,+

देश खुशी के मारे झूम उठेगा, मगन होकर चिल्लाएगा।

उसकी शान लबानोन की शान जैसी हो जाएगी,+

उसकी खूबसूरती करमेल और शारोन जैसी दिखेगी।+

लोग यहोवा की महिमा देखेंगे, हमारे परमेश्‍वर का वैभव देखेंगे।

 3 ढीले हाथों को मज़बूत करो,

काँपते घुटनों को मज़बूती दो।+

 4 जिनका मन घबरा रहा है उनसे कहो,

“घबराओ मत! हिम्मत रखो।

देखो! तुम्हारा परमेश्‍वर दुश्‍मनों से बदला लेने,

उन्हें सज़ा देने आ रहा है,+

वह ज़रूर आएगा और तुम्हें बचाएगा।”+

 5 उस वक्‍त अंधों की आँखें खोली जाएँगी+

और बहरों के कान खोले जाएँगे,+

 6 लँगड़े, हिरन की तरह छलाँग भरेंगे+

और गूँगों की ज़बान खुशी के मारे जयजयकार करेगी।+

वीराने में पानी की धाराएँ फूट निकलेंगी

और बंजर ज़मीन में नदियाँ उमड़ पड़ेंगी।

 7 झुलसी हुई ज़मीन, नरकटोंवाला तालाब बन जाएगी,

प्यासी धरती से पानी के सोते फूट पड़ेंगे।+

जिन माँदों में गीदड़ रहा करते थे,+

वहाँ हरी-हरी घास, नरकट और सरकंडे उग आएँगे।

 8 एक राजमार्ग तैयार किया जाएगा,+

हाँ, ऐसा मार्ग जो पवित्र मार्ग कहलाएगा।

कोई अशुद्ध इंसान उस पर नहीं चलेगा,+

यह सिर्फ उनके लिए होगा, जिनके लिए यह बनाया गया है,

मूर्ख उस पर पैर भी नहीं रख सकेगा।

 9 वहाँ न शेर, न खूँखार जंगली जानवर घूमेंगे,

वे उस राह पर नज़र भी नहीं आएँगे।+

जिन लोगों को कीमत देकर छुड़ाया गया है,

सिर्फ वे उस राह पर चलेंगे।+

10 यहोवा जिन्हें छुड़ाएगा वे जयजयकार करते हुए सिय्योन लौटेंगे,+

कभी न मिटनेवाली खुशी उनके सिर का ताज होगी।+

वे इतने मगन होंगे, इतनी खुशियाँ मनाएँगे

कि दुख और मातम उनके सामने से भाग खड़े होंगे।+

36 राजा हिजकियाह के राज के 14वें साल में, अश्‍शूर+ के राजा सनहेरीब ने यहूदा के सभी किलेबंद शहरों पर हमला कर दिया और उन पर कब्ज़ा कर लिया।+ 2 तब अश्‍शूर के राजा ने लाकीश से रबशाके* को एक विशाल सेना के साथ+ राजा हिजकियाह के पास यरूशलेम भेजा।+ वे वहाँ गए और जाकर ऊपरवाले तालाब की नहर के पास खड़े हो गए,+ जो धोबी के मैदान की तरफ जानेवाले राजमार्ग के पास थी।+ 3 तब राज-घराने की देखरेख करनेवाला अधिकारी एल्याकीम+ (जो हिलकियाह का बेटा था), राज-सचिव शेबना+ और शाही इतिहासकार योआह (जो आसाप का बेटा था) बाहर उसके पास आए।

4 रबशाके ने उनसे कहा, “जाकर हिजकियाह से कहो, ‘अश्‍शूर के राजाधिराज का यह संदेश है: “तू किस बात पर भरोसा किए बैठा है?+ 5 तू जो कहता है कि मेरे पास युद्ध की रणनीति तैयार है, मेरे पास बहुत ताकत है, यह सब बकवास है! तूने किस पर भरोसा करके मुझसे बगावत करने की जुर्रत की?+ 6 उस मिस्र पर? वह तो कुचला हुआ नरकट है! अगर कोई उसका सहारा लेने के लिए उस पर हाथ रखे तो वह उसकी हथेली में चुभ जाएगा। मिस्र के राजा फिरौन पर जितने लोग भरोसा रखते हैं उनके लिए वह एक कुचले हुए नरकट के सिवा कुछ नहीं है।+ 7 अब यह मत कहना कि हमें अपने परमेश्‍वर यहोवा पर भरोसा है। हिजकियाह ने तो उसकी सारी ऊँची जगह और वेदियाँ ढा दीं+ और वह यहूदा और यरूशलेम के लोगों से कहता है, ‘तुम सिर्फ इस वेदी के आगे दंडवत करना।’”’+ 8 अब आ और मेरे मालिक अश्‍शूर के राजा से यह बाज़ी लगा:+ मैं तुझे 2,000 घोड़े देता हूँ, तू उनके लिए सवार लाकर दिखा। 9 जब तू यह नहीं कर सकता, तो हमारी सेना का मुकाबला कैसे करेगा? तू चाहे मिस्र के सारे रथ और घुड़सवार ले आए, फिर भी मेरे मालिक के एक राज्यपाल को, उसके सबसे छोटे सेवक को भी हरा नहीं पाएगा। 10 और क्या मैं बिना यहोवा की इजाज़त के इस देश को नाश करने आया हूँ? यहोवा ने खुद मुझसे कहा है, ‘जा उस देश पर हमला कर, उसे तबाह कर दे।’”

11 तब एल्याकीम, शेबना+ और योआह ने रबशाके+ से कहा, “मेहरबानी करके अपने सेवकों से अरामी* भाषा+ में बात कर क्योंकि हम वह भाषा समझ सकते हैं। तू हमसे यहूदियों की भाषा में बात न कर क्योंकि शहरपनाह पर खड़े लोग सुन रहे हैं।”+ 12 मगर रबशाके ने कहा, “मेरे मालिक ने मुझे सिर्फ तुम्हें और तुम्हारे मालिक को संदेश सुनाने के लिए नहीं भेजा। यह संदेश शहरपनाह पर खड़े आदमियों के लिए भी है, क्योंकि उनकी और तुम्हारी ऐसी हालत होगी कि तुम अपना ही मल खाओगे और अपना ही पेशाब पीओगे।”

13 फिर रबशाके वहीं खड़े-खड़े यहूदियों की भाषा में ज़ोर-ज़ोर से कहने लगा,+ “अश्‍शूर के राजाधिराज का संदेश सुनो,+ 14 ‘तुम लोग हिजकियाह की बातों में मत आओ, वह तुम्हें नहीं बचा सकता।+ 15 उसकी बात पर यकीन मत करो जो तुम्हें यहोवा पर भरोसा दिलाने+ के लिए कहता है, “यहोवा हमें ज़रूर बचाएगा और यह शहर अश्‍शूर के राजा के हाथ में नहीं किया जाएगा।” 16 तुम उसकी बात बिलकुल मत सुनना। अश्‍शूर के राजा ने कहा है, “तुम लोग मेरे साथ सुलह कर लो और अपने हथियार डाल दो, तब तुममें से हर कोई अपने-अपने अंगूरों के बाग और अंजीर के पेड़ से खा सकेगा और अपने कुंड से पानी पी सकेगा। 17 फिर मैं आकर तुम्हें एक ऐसे देश में ले जाऊँगा जो तुम्हारे देश जैसा है।+ वहाँ अनाज, नयी दाख-मदिरा और रोटी की भरमार होगी और जगह-जगह अंगूरों के बाग होंगे। 18 हिजकियाह तुम्हें यह कहकर गुमराह न करे, ‘यहोवा हमें बचा लेगा।’ क्या आज तक किसी राष्ट्र का देवता अपने देश को अश्‍शूर के राजा के हाथ से बचा पाया है?+ 19 हमात और अरपाद के देवता कहाँ गए?+ कहाँ गए सपरवैम के देवता?+ क्या वे सामरिया को मेरे हाथ से बचा सके?+ 20 क्या उनमें से एक भी देवता ऐसा है जो अपने देश को मेरे हाथ से बचा पाया हो? तो फिर यहोवा कैसे यरूशलेम को मेरे हाथ से बचा पाएगा?”’”+

21 मगर वे चुप रहे, उन्होंने जवाब में कुछ नहीं कहा क्योंकि राजा का यह आदेश था: “तुम उसे कोई जवाब मत देना।”+ 22 इसके बाद राज-घराने की देखरेख करनेवाले अधिकारी एल्याकीम (जो हिलकियाह का बेटा था), राज-सचिव शेबना+ और शाही इतिहासकार योआह ने (जो आसाप का बेटा था) अपने कपड़े फाड़े और हिजकियाह के पास आकर उसे रबशाके की सारी बातें बतायीं।

37 जैसे ही राजा हिजकियाह ने यह सुना, उसने अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया।+ 2 फिर उसने राज-घराने की देखरेख करनेवाले अधिकारी एल्याकीम, राज-सचिव शेबना और याजकों के मुखियाओं को आमोज के बेटे भविष्यवक्‍ता यशायाह+ के पास भेजा। वे सभी टाट ओढ़े उसके पास गए। 3 उन्होंने उससे कहा, “हिजकियाह ने कहा है, ‘आज का दिन भारी संकट का दिन है, निंदा* और अपमान का दिन है। हमारी हालत ऐसी औरत की तरह हो गयी है जिसके बच्चे होने का वक्‍त आ गया है,* मगर उसमें बच्चा जनने की ताकत नहीं है।+ 4 इसलिए तू इस देश में बचे हुओं+ की खातिर परमेश्‍वर से बिनती कर।+ हो सकता है तेरा परमेश्‍वर यहोवा रबशाके की बातों पर ध्यान दे जिसे अश्‍शूर के राजा ने जीवित परमेश्‍वर पर ताना कसने भेजा था।+ और तेरा परमेश्‍वर यहोवा उससे उन सारी बातों का हिसाब ले जो उसने सुनी हैं।’”

5 जब राजा हिजकियाह के सेवकों ने यशायाह को यह संदेश सुनाया,+ 6 तो यशायाह ने उनसे कहा, “तुम जाकर अपने मालिक से कहना, ‘यहोवा ने कहा है, “अश्‍शूर के राजा के सेवकों+ ने मेरी निंदा में जो बातें कही हैं, उनकी वजह से तू मत डर।+ 7 मैं उसके दिमाग में एक बात डालूँगा और वह एक खबर सुनकर अपने देश लौट जाएगा।+ फिर मैं उसे उसी के देश में तलवार से मरवा डालूँगा।”’”+

8 रबशाके को खबर मिली कि अश्‍शूर का राजा लाकीश से अपनी सेना लेकर चला गया है, तब रबशाके वापस अपने राजा के पास लौट गया और उसने देखा कि राजा लिब्ना से युद्ध कर रहा है।+ 9 अश्‍शूर के राजा को खबर मिली कि इथियोपिया का राजा तिरहाका उससे युद्ध करने आया है। इसलिए उसने अपने दूतों से यह कहकर उन्हें फिर हिजकियाह के पास भेजा:+ 10 “तुम जाकर यहूदा के राजा हिजकियाह से कहना, ‘तू अपने परमेश्‍वर की बात पर यकीन मत कर। वह तुझे यह कहकर धोखा दे रहा है कि यरूशलेम अश्‍शूर के राजा के हाथ में नहीं किया जाएगा।+ 11 तू अच्छी तरह जानता है कि अश्‍शूर के राजाओं ने दूसरे सभी देशों का क्या हाल किया, उन्हें कैसे धूल चटा दी।+ फिर तूने यह कैसे सोच लिया कि तू अकेला बच जाएगा? 12 मेरे पुरखों ने जिन राष्ट्रों का नाश किया था, क्या उनके देवता अपने राष्ट्रों को बचा सके?+ गोजान, हारान+ और रेसेप, आज ये सारे राष्ट्र कहाँ हैं? तलस्सार में रहनेवाले अदन के लोग कहाँ गए? 13 हमात का राजा, अरपाद का राजा और सपरवैम,+ हेना, इव्वा, इन सारे शहरों के राजा कहाँ रहे?’”

14 हिजकियाह ने दूतों से वे चिट्ठियाँ लीं और उन्हें पढ़ा। फिर वह यहोवा के भवन में गया और यहोवा के सामने चिट्ठियाँ फैलाकर रख दीं।+ 15 हिजकियाह यहोवा से बिनती करने लगा,+ 16 “हे सेनाओं के परमेश्‍वर और इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा,+ तू जो करूबों पर* विराजमान है, धरती के सब राज्यों में तू अकेला सच्चा परमेश्‍वर है। तूने ही आकाश और धरती बनायी है। 17 हे यहोवा, मेरी तरफ कान लगा और सुन!+ हे यहोवा, हम पर नज़र कर!+ सनहेरीब ने तुझ जीवित परमेश्‍वर को ताना मारने के लिए जो बातें लिखी हैं, उन पर ध्यान दे।+ 18 हे यहोवा, यह सच है कि अश्‍शूर के राजाओं ने सब राष्ट्रों को और अपने देश को भी तहस-नहस कर दिया,+ 19 उनके देवताओं को आग में झोंक दिया।+ मगर वे उन देवताओं को इसलिए नाश कर पाए क्योंकि वे देवता नहीं, बस इंसानों की कारीगरी थे,+ पत्थर और लकड़ी थे। 20 अब हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, दया करके तू हमें उसके हाथ से बचा ले ताकि धरती के सब राज्य जान लें कि तू यहोवा ही परमेश्‍वर है।”+

21 तब आमोज के बेटे यशायाह ने हिजकियाह के पास यह संदेश भेजा: “इसराएल का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘तूने अश्‍शूर के राजा सनहेरीब के बारे में मुझसे प्रार्थना की थी,+ 22 इसलिए यहोवा ने सनहेरीब के खिलाफ यह फैसला सुनाया है:

“सिय्योन की कुँवारी बेटी तुझे तुच्छ समझती है, तेरी खिल्ली उड़ाती है।

यरूशलेम की बेटी सिर हिला-हिलाकर तुझ पर हँसती है।

23 तू जानता भी है तूने किसे ताना मारा है,+ किसकी निंदा की है?

किसके खिलाफ आवाज़ उठायी है?+

तू घमंड से भरकर किसे आँखें दिखा रहा है?

इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर को!+

24 तूने अपने सेवकों के हाथ यह संदेश भेजकर यहोवा को ताना मारा है:+

‘मैं अपने बेहिसाब युद्ध-रथ लेकर आऊँगा,

पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ जाऊँगा,+

लबानोन के दूर-दूर के इलाकों तक पहुँच जाऊँगा।

मैं उसके ऊँचे-ऊँचे देवदार, बढ़िया-बढ़िया सनोवर काट डालूँगा।

सबसे ऊँचे पर बसे उसके आशियाने में, उसके सबसे घने जंगलों में घुस जाऊँगा।

25 मैं कुएँ खुदवाऊँगा, उनका पानी पीऊँगा,

अपने पैरों के तलवे से मिस्र की नदियाँ* सुखा दूँगा।’

26 क्या तूने नहीं सुना? मैंने बहुत पहले ही यह फैसला कर लिया था।

अरसों पहले इसकी तैयारी कर ली थी।*+

अब वक्‍त आ गया है इसे अंजाम देने का।+

तू किलेबंद शहरों को मलबे का ढेर बना देगा।+

27 उनके निवासी बेबस हो जाएँगे,

उनमें डर समा जाएगा, वे शर्मिंदा हो जाएँगे।

वे मैदान के पेड़-पौधों और हरी घास की तरह कमज़ोर हो जाएँगे,

छत की घास जैसे हो जाएँगे जो पूरब की हवा से झुलस जाती है।

28 मैं तेरा उठना-बैठना, आना-जाना सब जानता हूँ,+

यह भी कि तू कब मुझ पर भड़क उठता है।+

29 क्योंकि तेरा क्रोध करना+ और तेरा दहाड़ना मेरे कानों तक पहुँचा है।+

मैं तेरी नाक में नकेल डालूँगा और तेरे मुँह में लगाम लगाऊँगा,+

तुझे खींचकर उसी रास्ते वापस ले जाऊँगा जिससे तू आया है।”

30 ये बातें ज़रूर होंगी, इसकी मैं तुझे* यह निशानी देता हूँ: इस साल तुम लोग वह अनाज खाओगे जो अपने आप उगता है,* अगले साल वह अनाज खाओगे जो पिछले अनाज के गिरने से उगता है और तीसरे साल तुम बीज बोओगे और उसकी फसल काटोगे और अंगूरों के बाग लगाओगे और उनके फल खाओगे।+ 31 यहूदा के घराने के जो लोग बच जाएँगे,+ वे पौधों की तरह जड़ पकड़ेंगे और फल पैदा करेंगे। 32 बचे हुए लोग यरूशलेम से निकलेंगे, हाँ, जो ज़िंदा बच जाएँगे वे सिय्योन पहाड़ से निकलेंगे।+ सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा अपने जोश के कारण ऐसा ज़रूर करेगा।+

33 इसलिए यहोवा अश्‍शूर के राजा के बारे में कहता है,+

“वह इस शहर में नहीं आएगा,+

न यहाँ एक भी तीर चलाएगा,

न ढाल लेकर हमला करेगा,

न ही घेराबंदी की ढलान खड़ी करेगा।”’+

34 यहोवा ने यह ऐलान किया है, ‘वह जिस रास्ते आया है उसी रास्ते लौट जाएगा,

वह इस शहर में नहीं आएगा।

35 मैं अपने नाम की खातिर और अपने सेवक दाविद की खातिर+

इस शहर की रक्षा करूँगा,+ इसे बचाऊँगा।’”+

36 फिर यहोवा का एक स्वर्गदूत अश्‍शूरियों की छावनी में गया और उनके 1,85,000 सैनिकों को मार डाला। जब लोग सुबह तड़के उठे तो उन्होंने देखा कि चारों तरफ लाशें बिछी हैं।+ 37 तब अश्‍शूर का राजा सनहेरीब वहाँ से चला गया और नीनवे+ लौट गया और वहीं रहा।+ 38 एक दिन जब वह अपने देवता निसरोक के मंदिर में झुककर दंडवत कर रहा था तो उसके अपने बेटों ने, अद्र-मेलेक और शरेसेर ने उसे तलवार से मार डाला।+ फिर वे अरारात देश+ भाग गए। सनहेरीब की जगह उसका बेटा एसर-हद्दोन+ राजा बना।

38 उन दिनों हिजकियाह बीमार हो गया। उसकी हालत इतनी खराब हो गयी कि वह मरनेवाला था।+ तब आमोज का बेटा भविष्यवक्‍ता यशायाह+ उसके पास आया और उससे कहा, “यहोवा ने कहा है, ‘तू अपने घराने को ज़रूरी हिदायतें दे क्योंकि तू इस बीमारी से ठीक नहीं होगा, तेरी मौत हो जाएगी।’”+ 2 यह सुनकर हिजकियाह ने दीवार की तरफ मुँह किया और वह यहोवा से प्रार्थना करने लगा, 3 “हे यहोवा, मैं तुझसे बिनती करता हूँ, याद कर+ कि मैं कैसे तेरा विश्‍वासयोग्य बना रहा और पूरे दिल से तेरे सामने सही राह पर चलता रहा।+ मैंने हमेशा वही किया जो तेरी नज़र में सही है।” यह कहकर हिजकियाह फूट-फूटकर रोने लगा।

4 तब यहोवा का यह संदेश यशायाह के पास आया: 5 “तू हिजकियाह के पास वापस जा और उससे कह,+ ‘तेरे पुरखे दाविद के परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, “मैंने तेरी प्रार्थना सुनी है,+ तेरे आँसू देखे हैं।+ मैं तेरी उम्र 15 साल और बढ़ा दूँगा।+ 6 मैं तुझे और इस शहर को अश्‍शूर के राजा के हाथ से बचाऊँगा और इस शहर की हिफाज़त करूँगा।+ 7 यहोवा की तरफ से तेरे लिए यह निशानी होगी जिससे तू यकीन करे कि यहोवा ने जो कहा है उसे वह पूरा भी करेगा:+ 8 आहाज की सीढ़ियों* पर ढलते सूरज की जो छाया आगे बढ़ चुकी है वह दस कदम पीछे हो जाएगी।”’”+ तब सीढ़ियों पर सूरज की जो छाया आगे बढ़ चुकी थी वह दस कदम पीछे चली गयी।

9 यहूदा के राजा हिजकियाह की रचना जो उसने बीमार होने पर और ठीक होने के बाद रची थी,

10 मैंने कहा, “अपनी आधी उम्र जीकर,

मैं कब्र के दरवाज़े से अंदर जाऊँगा।

मेरी ज़िंदगी के बचे हुए साल मुझसे छीन लिए जाएँगे।”

11 मैंने कहा, “मैं याह,* हाँ, याह की मेहरबानी देखने के लिए ज़िंदा* नहीं रहूँगा,+

मैं इंसानों को फिर कभी नहीं देख पाऊँगा,

क्योंकि मैं मरे हुओं में जा मिलूँगा।

12 चरवाहे के तंबू की तरह,

मेरा डेरा उखाड़ दिया गया है और मुझसे ले लिया गया है।+

जैसे जुलाहा कपड़ा बुनकर उसे लपेटता है, वैसे ही मेरा जीवन लपेट दिया गया है,

करघे से काटकर अलग कर दिया गया है।

सुबह से शाम तक तू मुझे दुख देता है।+

13 मैं सुबह तक अपने मन को शांत करता हूँ,

मगर तू शेर की तरह मेरी हड्डियों को तोड़ता रहता है,

सुबह से शाम तक मुझे दुख देता है।+

14 बतासी और सारिका* की तरह मैं चीं-चीं करता हूँ,+

फाख्ते की तरह कराहता हूँ।+

ऊपर देखते-देखते मेरी आँखें पथरा गयी हैं।+

‘हे यहोवा, मैं बहुत दुखी हूँ,

मेरा सहारा बन जा!’*+

15 मैं कैसे उसका शुक्रिया अदा करूँ?

उसने मुझसे जो कहा, वह पूरा किया,

मुश्‍किल घड़ी में मुझे सँभाला।

इसलिए सारी ज़िंदगी मैं नम्र बना रहूँगा।

16 ‘हे यहोवा, इस कारण* लोग ज़िंदा हैं

और इसी कारण मेरी साँसें भी चल रही हैं।

तू मेरी सेहत मुझे लौटा देगा और मेरी ज़िंदगी सलामत रखेगा।+

17 देख! शांति के बजाय मैं कड़वाहट से भर गया था,

पर तुझे मुझसे गहरा लगाव था,

इसलिए तूने मुझे विनाश के गड्‌ढे में गिरने से बचाया,+

मेरे सारे पापों को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया।*+

18 कब्र* तेरा गुणगान नहीं कर सकती,+

न मौत तेरी बड़ाई कर सकती है,+

जो नीचे गड्‌ढे में जा चुके हैं, वे तेरे विश्‍वासयोग्य होने की आस नहीं लगा सकते।+

19 ज़िंदा इंसान, हाँ, जीवित इंसान ही तेरी बड़ाई कर सकते हैं,

जैसे आज मैं कर रहा हूँ।

एक पिता अपने बेटे को तेरे विश्‍वासयोग्य होने के बारे में सिखा सकता है।+

20 हे यहोवा, मुझे बचा

कि मैं ज़िंदगी-भर तेरे भवन में, यहोवा के भवन में,

दूसरों के साथ तारोंवाले बाजे पर अपने गीत बजा सकूँ।’”+

21 फिर यशायाह ने राजा के सेवकों से कहा, “सूखे अंजीरों की एक टिकिया लाओ और राजा के फोड़े पर लगाओ ताकि वह ठीक हो जाए।”+ 22 हिजकियाह ने यशायाह से पूछा था, “मैं कैसे यकीन करूँ कि मैं यहोवा के भवन में फिर जा पाऊँगा? क्या तू मुझे इसकी कोई निशानी देगा?”+

39 उस वक्‍त बैबिलोन के राजा मरोदक-बलदान ने, जो बलदान का बेटा था, अपने दूतों के हाथ हिजकियाह को चिट्ठियाँ और एक तोहफा भेजा+ क्योंकि उसे पता चला कि हिजकियाह बीमार था और अब ठीक हो गया है।+ 2 हिजकियाह ने उन दूतों का खुशी-खुशी स्वागत किया* और उन्हें अपना सारा खज़ाना दिखा दिया।+ उसने सोना-चाँदी, बलसाँ का तेल, दूसरे किस्म के बेशकीमती तेल, हथियारों का भंडार और वह सारी चीज़ें दिखायीं जो उसके खज़ाने में थीं। उसके महल और पूरे राज्य में ऐसी एक भी चीज़ नहीं थी जो उसने न दिखायी हो।

3 इसके बाद भविष्यवक्‍ता यशायाह, राजा हिजकियाह के पास आया और उससे पूछा, “ये आदमी कहाँ से आए थे और इन्होंने तुझसे क्या कहा?” हिजकियाह ने कहा, “वे एक दूर देश बैबिलोन से आए थे।”+ 4 फिर यशायाह ने पूछा, “उन्होंने तेरे महल में क्या-क्या देखा?” हिजकियाह ने कहा, “उन्होंने मेरे महल की हर चीज़ देखी। मेरे खज़ानों में ऐसा कुछ नहीं जो मैंने उन्हें न दिखाया हो।”

5 तब यशायाह ने हिजकियाह से कहा, “अब तू सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का संदेश सुन। 6 यहोवा कहता है, ‘देख! वह दिन आ रहा है जब तेरे महल का सारा खज़ाना बैबिलोन ले जाया जाएगा। तेरे पुरखों ने आज के दिन तक जितना धन जमा किया था, वह सब भी लूट लिया जाएगा। एक भी चीज़ नहीं छोड़ी जाएगी।+ 7 तेरे जो बेटे होंगे उनमें से कुछ को बैबिलोन ले जाया जाएगा और वहाँ के राजमहल में दरबारी बनाया जाएगा।’”+

8 हिजकियाह ने यशायाह से कहा, “तूने यहोवा का जो फैसला सुनाया है, वह सही है।” फिर उसने कहा, “मेरे जीते-जी* मेरे राज में शांति और सुरक्षा* रहेगी।”+

40 तुम्हारा परमेश्‍वर कहता है,

“मेरे लोगों को दिलासा दो, उन्हें दिलासा दो!+

 2 यरूशलेम नगरी की हिम्मत बँधाओ।

उससे कहो कि उसके दुख-भरे दिन* बीत गए,

वह अपने पापों की कीमत अदा कर चुकी है,+

यहोवा के हाथों उसे अपने पापों का पूरा* बदला मिल चुका है।”+

 3 वीराने में कोई पुकार रहा है,

“यहोवा का रास्ता तैयार करो,+

हमारे परमेश्‍वर के लिए रेगिस्तान से जानेवाला राजमार्ग सीधा करो।+

 4 हरेक घाटी भर दी जाए,

हरेक पहाड़ और पहाड़ी नीची की जाए,

ऊँचे-नीचे रास्ते सपाट किए जाएँ

और ऊबड़-खाबड़ ज़मीन को मैदान बना दिया जाए।+

 5 तब यहोवा की महिमा प्रकट होगी+

और सब इंसान इसे देखेंगे,+

क्योंकि यह बात यहोवा ने कही है।”

 6 सुन, कोई कह रहा है, “आवाज़ लगा!”

दूसरे ने पूछा, “क्या आवाज़ लगाऊँ?”

“सब इंसान हरी घास के समान हैं,

उनका अटल प्यार मैदान के फूलों की तरह है।+

 7 जब यहोवा की फूँक उन पर पड़ती है,

तो हरी घास सूख जाती है

और खिले हुए फूल मुरझा जाते हैं।+

सच, लोग हरी घास के समान हैं।

 8 हरी घास तो सूख जाती है

और फूल मुरझा जाते हैं,

लेकिन हमारे परमेश्‍वर का वचन हमेशा तक कायम रहता है।”+

 9 हे सिय्योन को खुशखबरी सुनानेवाली,

ऊँचे पहाड़ पर चढ़ जा।+

हे यरूशलेम को खुशखबरी सुनानेवाली,

ऊँची आवाज़ में इसे सुना।

हाँ, ऊँची आवाज़ में सुना, डर मत।

यहूदा के शहरों में ऐलान कर, “वह रहा तुम्हारा परमेश्‍वर!”+

10 देख, सारे जहान का मालिक यहोवा पूरी ताकत के साथ आ रहा है

और उसका बाज़ू उसकी तरफ से राज करेगा।+

देख, परमेश्‍वर अपने साथ इनाम लेकर आ रहा है,

जो मज़दूरी वह देगा, वह उसके पास है।+

11 वह चरवाहे की तरह अपने झुंड की देखभाल करेगा,+

अपने हाथों से मेम्नों को इकट्ठा करेगा,

उन्हें अपनी गोद में* उठाएगा,

दूध पिलानेवाली भेड़ों को धीरे-धीरे ले चलेगा।+

12 किसने सागर का पानी अपने चुल्लू में नापा है?+

किसने आकाश को बित्ते* से नापा है?

किसने पृथ्वी की धूल को पैमाने में भरा है?+

किसने पहाड़ों को तराज़ू में

और पहाड़ियों को पलड़े में तौला है?

13 किसने यहोवा की ज़ोरदार शक्‍ति को नाप-तौलकर देखा है?*

कौन उसका सलाहकार बनकर उसे सलाह दे सकता है?+

14 समझ पाने के लिए उसने किससे मशविरा किया?

या न्याय करना उसे किसने सिखाया?

किसने उसे ज्ञान दिया

या सच्ची समझ की राह दिखायी?+

15 देखो! सब राष्ट्र उसके सामने ऐसे हैं,

जैसे बाल्टी में पानी की एक बूँद हो,

जैसे तराज़ू के पलड़ों पर जमी धूल हो।+

वह द्वीपों को धूल के समान उठा लेता है।

16 लबानोन के सारे पेड़ भी उसकी वेदी के लिए कम पड़ेंगे,

वहाँ के जंगली जानवर भी होम-बलि के लिए कम पड़ेंगे।

17 सभी राष्ट्र उसके सामने ऐसे हैं मानो उनका कोई वजूद ही नहीं,+

उसकी नज़र में वे कुछ नहीं, उनका कोई मोल नहीं।+

18 तुम परमेश्‍वर की तुलना किससे करोगे?+

ऐसी कौन-सी चीज़ है जो दिखने में उसके जैसी है?+

19 कारीगर एक मूरत ढालता है

और सुनार उसे सोने से मढ़ता है,+

उसके लिए चाँदी की ज़ंजीरें बनाता है।

20 या एक आदमी चढ़ावे के लिए ऐसा पेड़ चुनता है+ जिसमें कीड़े न लगें।

फिर वह जाकर एक कुशल कारीगर को ढूँढ़ लाता है

कि वह ऐसी मूरत बनाए जो मज़बूती से खड़ी रह सके।+

21 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना?

क्या तुम्हें शुरू से नहीं बताया गया?

क्या तुमने उस सबूत पर ध्यान नहीं दिया,

जो पृथ्वी की नींव डालने के समय से मौजूद है?+

22 यही कि परमेश्‍वर पृथ्वी के घेरे* के ऊपर विराजमान है,+

उसके सामने धरती के निवासी टिड्डियों जैसे हैं।

वह आसमान को महीन चादर की तरह फैलाए हुए है,

उसे तंबू की तरह ताने हुए है।+

23 वह ऊँचे-ऊँचे अधिकारियों को नीचा कर देता है,

पृथ्वी के न्यायियों* को न के बराबर बना देता है।

24 अभी-अभी वे रोपे गए थे,

अभी-अभी वे बोए गए थे,

उनके तने ने मिट्टी में जड़ भी नहीं पकड़ी थी

कि उन पर फूँक मारी गयी और वे सूख गए,

आँधी आकर उन्हें भूसे की तरह उड़ा ले गयी।+

25 पवित्र परमेश्‍वर कहता है,

“तुम किससे मेरी तुलना करोगे? मुझे किसके बराबर ठहराओगे?

26 ज़रा अपनी आँखें उठाकर आसमान को देखो,

किसने इन तारों को बनाया?+

उसी ने जो गिन-गिनकर उनकी सेना को बुलाता है,

एक-एक का नाम लेकर उसे पुकारता है।+

उसकी ज़बरदस्त ताकत और विस्मयकारी शक्‍ति की वजह से,+

उनमें से एक भी उसके सामने गैर-हाज़िर नहीं रहता।

27 हे याकूब, तू क्यों यह कहता है,

हे इसराएल, तू क्यों ऐसा बोलता है,

‘मेरी राह यहोवा से छिपी हुई है,

परमेश्‍वर से मुझे कोई न्याय नहीं मिलता’?+

28 क्या तू नहीं जानता? क्या तूने नहीं सुना?

पृथ्वी की सब चीज़ों का बनानेवाला यहोवा, युग-युग का परमेश्‍वर है।+

वह न कभी थकता है न पस्त होता है,+

उसकी समझ की थाह कोई नहीं ले सकता।+

29 वह थके हुओं में दम भर देता है,

कमज़ोरों को गज़ब की ताकत देता है।+

30 लड़के थककर चूर हो जाएँगे,

जवान आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ेंगे,

31 मगर यहोवा पर भरोसा रखनेवालों को नयी ताकत मिलती रहेगी।

वे उकाब की तरह पंख फैलाकर ऊँची उड़ान भरेंगे,+

वे दौड़ेंगे पर पस्त नहीं होंगे,

वे चलेंगे पर थकेंगे नहीं।”+

41 “हे द्वीपो, चुपचाप मेरी बात सुनो!*

हे देश-देश के लोगो, नयी ताकत से भर जाओ,

मेरे सामने आकर अपनी बात कहो।+

आओ हम इकट्ठा हों कि मैं तुम्हें अपना फैसला सुनाऊँ।

 2 वह कौन है जिसने उसे पूरब से उभारा?+

न्याय करने के लिए उसे अपने पाँव के पास* बुलाया?

वह कौन है जो राष्ट्रों को उसके हवाले कर देगा?

राजाओं को उसके अधीन कर देगा?+

उसकी तलवार के आगे उन्हें धूल में मिला देगा

और उसके धनुष के आगे उन्हें भूसे की तरह उड़ा देगा?

 3 वह उनका पीछा करेगा, बिना रुके आगे बढ़ेगा,

उन रास्तों से होकर जाएगा, जहाँ आज तक उसके कदम नहीं पड़े।

 4 किसने यह सबकुछ किया, इसे अंजाम दिया?

किसने शुरूआत से एक-एक पीढ़ी को हुक्म देकर बुलाया?

मैं यहोवा, जो सबसे पहला था,+

आखिरी पीढ़ी के लिए भी वैसा ही रहूँगा।”+

 5 द्वीप यह देखकर घबरा गए,

पृथ्वी के दूर-दूर के इलाके काँपने लगे,

वे एकजुट हो गए।

 6 हरेक अपने साथी की मदद कर रहा है

और अपने भाई से कह रहा है, “हिम्मत रख।”

 7 कारीगर, सुनार का हौसला बढ़ा रहा है+

और हथौड़ा पीटनेवाला, निहाई पर काम करनेवाले का।

वह टाँकों के बारे में कहता है, “जोड़ तो अच्छा है।”

फिर कीलें ठोंककर मूरत को खड़ा किया जाता है कि वह न गिरे।

 8 “लेकिन हे इसराएल, तू मेरा सेवक है,+

हे याकूब, तुझे मैंने चुना है,+

तू मेरे दोस्त अब्राहम का वंश* है।+

 9 मैं तुझे पृथ्वी के छोर से लाया हूँ,+

मैंने तुझे धरती के दूर-दूर के इलाकों से बुलाया है।

मैंने तुझसे कहा, ‘तू मेरा सेवक है,+

मैंने तुझे चुना है, तुझे ठुकराया नहीं।+

10 डर मत क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ,+

घबरा मत क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर हूँ।+

मैं तेरी हिम्मत बँधाऊँगा, तेरी मदद करूँगा,+

नेकी के दाएँ हाथ से तुझे सँभाले रहूँगा।’

11 देख! जो तुझ पर भड़क उठते हैं उनको शर्मिंदा और नीचा किया जाएगा,+

जो तुझसे झगड़ते हैं उनका नामो-निशान मिटा दिया जाएगा।+

12 जो तुझसे लड़ते हैं उन्हें ढूँढ़ने पर भी तू उन्हें न पाएगा,

क्योंकि तुझसे युद्ध करनेवालों का नाश हो जाएगा, वे मिट जाएँगे।+

13 मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दायाँ हाथ थामे हुए हूँ,

मैं तुझसे कहता हूँ, ‘मत डर, मैं तेरी मदद करूँगा।’+

14 हे याकूब, भले ही तू कीड़े जैसा कमज़ोर है,+ मगर डर मत।

हे इसराएल के लोगो, मैं तुम्हारी मदद करूँगा।”

यह ऐलान इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर यहोवा ने किया है, जो तुम्हारा छुड़ानेवाला है।+

15 “देख, मैंने तुझे दाँवने की पटिया बनाया है,+

एकदम नयी और पैनी दाँवने की पटिया।

तू पहाड़ों को दाँवेगा और उन्हें चूर-चूर कर देगा,

तू पहाड़ियों को भूसा बना देगा।

16 तू उन्हें फटकेगा

और हवा उन्हें उड़ा ले जाएगी,

आँधी उन्हें छितरा देगी।

तू यहोवा के कारण मगन होगा+

और इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर के बारे में गर्व से बात करेगा।”+

17 “ज़रूरतमंद और गरीब पानी की तलाश में हैं,

मगर उन्हें पानी नहीं मिलता,

उनकी जीभ प्यास के मारे सूख गयी है।+

मैं यहोवा उनकी दुहाई सुनूँगा,+

मैं इसराएल का परमेश्‍वर उन्हें नहीं त्यागूँगा।+

18 मैं सूखी पहाड़ियों पर नदियाँ बहाऊँगा,+

घाटी के मैदानों में पानी के सोते निकालूँगा।+

मैं वीराने को नरकटोंवाले तालाब में

और सूखे देश को पानी के सोते में बदल दूँगा।+

19 मैं बंजर इलाके में देवदार, बबूल, मेंहदी और चीड़ के पेड़ लगाऊँगा।+

सूखे मैदानों में सनोवर, एश और सरो के पेड़ लगाऊँगा+

20 ताकि सब लोग देखें और जान लें,

ध्यान दें और समझ जाएँ

कि ये यहोवा के हाथ के काम हैं,

इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर ने यह सब किया है।”+

21 यहोवा कहता है, “अपना मुकदमा पेश करो।”

याकूब का राजा कहता है, “अपनी दलीलें पेश करो,

22 सबूत लाओ और बताओ कि क्या होनेवाला है।

जो बातें पहले हो चुकी हैं, वे हमें बताओ

कि हम उन पर सोचें और उनके नतीजों पर ध्यान दें,

या जो बातें आगे होनेवाली हैं, वे हमें बताओ।+

23 बताओ कि भविष्य में क्या होनेवाला है

कि हम जान जाएँ कि तुम ईश्‍वर हो।+

अच्छा या बुरा, कुछ तो करो

कि उसे देखकर हम हैरत में पड़ जाएँ।+

24 सुनो, तुम निकम्मे हो!

तुम्हारे काम भी बेकार हैं,+

जो कोई तुम्हें चुनता है वह घिनौना है।+

25 मैंने उत्तर से किसी को उभारा है, वह आ रहा है,+

पूरब से आनेवाला वह शख्स+ मेरे नाम की महिमा करेगा।

वह शासकों* को मिट्टी की तरह रौंद देगा,+

जैसे कुम्हार गीली मिट्टी को रौंदता है।

26 किसने यह बात शुरूआत से बतायी कि हम इसे जान सकें?

किसने बहुत पहले ही यह बता दिया था

कि हम कहें, ‘उसने सही कहा था’?+

किसी ने नहीं! न किसी ने इसका ऐलान किया।

तुमने हमें कुछ नहीं बताया।”+

27 मैंने ही सबसे पहले सिय्योन को बताया, “देख, यह सब होनेवाला है।”+

और यह खुशखबरी सुनाने के लिए यरूशलेम में एक दूत भेजा।+

28 मैंने इधर-उधर देखा मगर वहाँ कोई न था,

एक भी नहीं जो सलाह दे सके,

बार-बार पूछने पर भी मुझे कोई जवाब नहीं मिला।

29 वे सब बेकार हैं,*

उनके काम भी व्यर्थ हैं,

उनकी ढली हुई मूरतें सिर्फ हवा हैं, धोखा हैं।+

42 देखो! मेरा सेवक+ जिसे मैं सँभाले हुए हूँ!

मेरा चुना हुआ जन+ जिसे मैंने मंज़ूर किया है!+

मैंने उस पर अपनी पवित्र शक्‍ति उँडेली है,+

वह राष्ट्रों को दिखाएगा कि सच्चा न्याय क्या होता है।+

 2 वह न तो चिल्लाएगा, न शोर मचाएगा

और न ही सड़कों पर अपनी आवाज़ ऊँची करेगा।+

 3 वह कुचले हुए नरकट को नहीं कुचलेगा,

टिमटिमाती बाती को नहीं बुझाएगा।+

वह न्याय करने में विश्‍वासयोग्य होगा।+

 4 वह न बुझेगा, न कुचला जाएगा,

वह पृथ्वी पर न्याय कायम करेगा+

और सारे द्वीप उसके कानून* का इंतज़ार करेंगे।

 5 जिसने आकाश को बनाया और उसे ताना है,+

पृथ्वी और उस पर की सारी चीज़ें रची हैं,+

जिसने उस पर रहनेवाले इंसानों को जीवन दिया है+

और जीवन कायम रखने के लिए उन्हें साँसें दी हैं,+

वह महान और सच्चा परमेश्‍वर यहोवा कहता है,

 6 “मुझ यहोवा ने अपने नेक मकसद के लिए तुझे बुलाया है,

मैंने तेरा हाथ थामा है, मैं तेरी हिफाज़त करूँगा,

तू मेरे और लोगों के बीच करार ठहरेगा+

और राष्ट्रों के लिए रौशनी बनेगा+

 7 ताकि तू अंधों की आँखें खोले,+

काल-कोठरी से कैदियों को छुड़ाए

और कैदखाने के अँधेरे से लोगों को निकाले।+

 8 मैं यहोवा हूँ, यही मेरा नाम है।

मैं अपनी महिमा किसी और को न दूँगा,*

न अपनी तारीफ खुदी हुई मूरतों को दूँगा।+

 9 देखो! पुरानी बातें खत्म हो चुकी हैं,

अब मैं नयी बातों का ऐलान कर रहा हूँ,

उनके होने से पहले तुम्हें वे बातें बता रहा हूँ।”+

10 हे समुंदर में उतरनेवालो, उसके जीवों के पास जानेवालो,

हे द्वीपो और उसमें रहनेवालो,+

यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ,+

पृथ्वी के कोने-कोने में उसकी तारीफ करो।+

11 वीराना और उसके शहर जयजयकार करें,+

केदार+ की बस्तियाँ गुणगान करें,

चट्टानों में रहनेवाले खुशी के मारे चिल्लाएँ,

पहाड़ों की चोटी से ऊँची आवाज़ में चिल्लाएँ।

12 वे यहोवा की महिमा करें

और द्वीपों में उसका गुणगान करें।+

13 यहोवा वीर योद्धा के समान निकलेगा,+

सूरमा की तरह पूरे जोश के साथ आएगा,+

वह चिल्लाकर युद्ध की ललकार लगाएगा

और अपने दुश्‍मनों से ज़्यादा ताकतवर साबित होगा।+

14 “मैं काफी समय से चुप रहा,

खामोश रहकर खुद को रोकता रहा।

पर अब मैं गर्भवती औरत के समान कराहूँगा,

हाँफूँगा और ज़ोर-ज़ोर से साँस भरूँगा।

15 मैं पहाड़ों और पहाड़ियों को उजाड़ दूँगा,

उनकी सारी हरियाली झुलसा दूँगा,

नदियों को सूखी ज़मीन* बना दूँगा,

नरकटोंवाले तालाबों को सुखा दूँगा।+

16 मैं अंधों को ऐसी राह पर ले जाऊँगा, जिन्हें वे नहीं जानते,+

उन रास्तों पर ले चलूँगा जिनसे वे अनजान हैं।+

मैं उनके सामने अंधकार को उजाले में बदल दूँगा,+

ऊबड़-खाबड़ रास्तों को समतल कर दूँगा।+

यह सब मैं उनके लिए करूँगा, मैं उन्हें नहीं त्यागूँगा।”

17 जो तराशी हुई मूरतों पर भरोसा रखते हैं,

जो ढली हुई मूरतों से कहते हैं, “तुम हमारे ईश्‍वर हो,”

वे शर्मिंदा होंगे और पीठ दिखाकर भागेंगे।+

18 हे बहरो, सुनो!

हे अंधो, आँखें खोलो और देखो!+

19 मेरे सेवक को छोड़ और कौन अंधा है?

मेरे भेजे हुए दूत के जैसा बहरा कौन है?

जिसे मैंने इनाम दिया उसके जैसा अंधा कौन है?

हाँ, यहोवा के सेवक जैसा अंधा कौन है?+

20 तू बहुत-सी चीज़ें देखता है मगर ध्यान नहीं देता,

तेरे कान खुले रहते हैं मगर तू कुछ नहीं सुनता।+

21 यहोवा वही करता है जो सही है,

इसलिए उसने खुशी-खुशी दिखाया कि उसके कानून* कितने शानदार और महान हैं।

22 मगर ये तो लुटे-पिटे लोग हैं,+

सब गड्‌ढे में फँसे हुए हैं और जेलों में बंद हैं।+

उन्हें लूट लिया गया, उन्हें बचानेवाला कोई नहीं,+

उनकी तरफ से कोई यह कहनेवाला नहीं, “उन्हें वापस ले आओ।”

23 तुममें से कौन इस पर कान लगाएगा?

कौन आनेवाले कल को ध्यान में रखकर इसे सुनेगा?

24 किसने याकूब को लुटने दिया

और इसराएल को लुटेरों के हाथ कर दिया?

क्या यहोवा ने नहीं, जिसके खिलाफ उन्होंने पाप किया,

जिसकी राहों पर चलने से उन्होंने इनकार किया

और जिसके कानून* को उन्होंने नहीं माना?+

25 इसलिए उसने अपनी जलजलाहट और अपना क्रोध उन पर उँडेला,

युद्ध का कहर उन पर बरसाया।+

उनके आस-पास जो कुछ था सब भस्म हो गया, फिर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया।+

वे खुद भी झुलस गए, फिर भी उन्हें समझ नहीं आ रहा।+

43 हे याकूब, जिसने तेरी सृष्टि की,

हे इसराएल, जिसने तुझे रचा है,+

वही यहोवा अब कहता है,

“डर मत, मैंने तुझे छुड़ा लिया है।+

मैंने तेरा नाम लेकर तुझे बुलाया है, तू मेरा है।

 2 जब तू पानी में से होकर जाएगा, तो मैं तेरे साथ रहूँगा,+

जब तू नदियों में से होकर जाएगा, तो वे तुझे डुबा न सकेंगी,+

जब तू आग में से होकर जाएगा, तो तू नहीं जलेगा,

उसकी आँच भी तुझे नहीं लगेगी,

 3 क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ,

मैं इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर और तेरा उद्धारकर्ता हूँ।

मैंने तेरी फिरौती के लिए मिस्र, इथियोपिया और सबा दिया है।

 4 तू मेरी नज़रों में अनमोल है,+

तू आदर के लायक ठहरा है और मैं तुझसे प्यार करता हूँ।+

इसलिए मैं तेरे बदले लोगों को दे दूँगा,

तेरी जान के बदले राष्ट्रों को दे दूँगा।

 5 डर मत क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ!+

मैं तेरे वंश को पूरब से ले आऊँगा

और पश्‍चिम से तुझे इकट्ठा करूँगा।+

 6 मैं उत्तर से कहूँगा, ‘उन्हें छोड़ दे!’+

दक्षिण से कहूँगा, ‘उन्हें मत रोक।

मेरे बेटों को दूर से और मेरी बेटियों को धरती के कोने-कोने से ले आ।+

 7 हर कोई जो मेरे नाम से जाना जाता है,+

जिसे मैंने अपनी महिमा के लिए सिरजा है,

जिसे मैंने रचा और बनाया है,+ उसे ले आ।’

 8 उन लोगों को ले आ जिनकी आँखें तो हैं, मगर वे अंधे हैं,

जिनके कान तो हैं, मगर वे बहरे हैं।+

 9 सब राष्ट्र एक जगह इकट्ठा हों

और देश-देश के लोग जमा हों।+

उनमें* ऐसा कौन है जो ये बातें बता सकता है?

या यह सुना सकता है कि पहली बातें* क्या हैं?+

वह खुद को सही साबित करने के लिए साक्षियों को लाए

कि दूसरे सुनकर कहें, ‘यह सच है।’”+

10 यहोवा ऐलान करता है, “तुम मेरे साक्षी हो,+

हाँ, मेरा वह सेवक, जिसे मैंने चुना है+

कि तुम मुझे जानो और मुझ पर विश्‍वास* करो

और यह जान लो कि मैं वही हूँ।+

मुझसे पहले न कोई ईश्‍वर हुआ

और न मेरे बाद कोई होगा।+

11 मैं ही यहोवा हूँ,+ मेरे अलावा कोई उद्धारकर्ता नहीं।”+

12 यहोवा कहता है,

“जब तुम्हारे बीच कोई पराया देवता नहीं था,+

तब मैंने ही तुमसे बात की, तुम्हें बचाया और तुम्हें समझ दी।

इसलिए तुम मेरे साक्षी हो और मैं परमेश्‍वर हूँ।+

13 मैं हमेशा से वैसा ही हूँ।+

ऐसा कोई नहीं जो मेरे हाथ से कुछ छीनकर ले जा सके।+

जब मैं कुछ करता हूँ तो उसे कौन रोक सकता है?”+

14 तुम्हारा छुड़ानेवाला और इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर यहोवा कहता है,+

“तुम्हारी खातिर मैं उन्हें बैबिलोन भेजूँगा और सारे फाटकों को गिरा दूँगा+

और कसदी अपने जहाज़ों में दुख के मारे रोएँगे।+

15 मैं यहोवा हूँ, तुम्हारा पवित्र परमेश्‍वर,+ इसराएल का सृष्टिकर्ता+ और तुम्हारा राजा।”+

16 यहोवा जो समुंदर के बीच से रास्ता बनाता है,

उफनती लहरों में से भी राह निकालता है,+

17 जो अपने साथ युद्ध-रथों और घोड़ों को ले चलता है,+

वीर योद्धाओं के साथ पूरी सेना लेकर आता है, वह कहता है,

“वे ऐसे गिरेंगे कि फिर न उठ सकेंगे,+

उन्हें बुझा दिया जाएगा जैसे जलती बाती बुझा दी जाती है।”

18 “गुज़री बातों को याद मत करो,

बीती बातों के बारे में मत सोचते रहो।

19 देखो! मैं कुछ नया कर रहा हूँ,+

उसकी शुरूआत हो चुकी है।

क्या तुम उसे देख सकते हो?

मैं वीराने से एक रास्ता बनाऊँगा+

और रेगिस्तान से नदियाँ बहाऊँगा।+

20 गीदड़ और शुतुरमुर्ग,

मैदान के ये जंगली जानवर मेरा आदर करेंगे,

क्योंकि मैं अपनी प्रजा, अपने चुने हुओं के लिए+

वीराने में पानी का इंतज़ाम करूँगा,

रेगिस्तान में नदियाँ बहाऊँगा,+

21 हाँ, अपनी प्रजा के लिए ऐसा करूँगा,

जिसे मैंने अपने लिए रचा है कि वह मेरा गुणगान करे।+

22 मगर हे याकूब, तूने मुझे नहीं पुकारा,+

क्योंकि हे इसराएल, तू मुझसे ऊब गया है।+

23 तू होम-बलि चढ़ाने के लिए भेड़ें नहीं लाया,

अपने बलिदानों से तूने मेरी महिमा नहीं की,

मैंने ये तोहफे लाने के लिए तुझे मजबूर नहीं किया,

न लोबान माँग-माँगकर तुझे थका दिया।+

24 तूने अपने पैसों से मेरे लिए खुशबूदार वच* नहीं खरीदा,

न बलिदान में चरबी चढ़ाकर मुझे खुश किया।+

उलटा, तूने अपने पापों का बोझ मुझ पर लाद दिया,

बुरे-बुरे काम करके मुझे थका दिया।+

25 मैं वही हूँ जो अपने नाम की खातिर तेरे अपराध* मिटाता हूँ+

और तेरे पाप याद नहीं रखूँगा।+

26 अगर मैं तेरा कोई अच्छा काम भूल गया हूँ, तो मुझे याद दिला,

हम एक-दूसरे से मुकदमा लड़ेंगे,

तू अपनी सफाई में जो कहना चाहता है, कहना।

27 तेरे पहले पुरखे ने तो पाप किया था,

तेरी तरफ से बोलनेवालों* ने भी मेरे खिलाफ बगावत की।+

28 इसलिए मैं पवित्र-स्थान के हाकिमों को अशुद्ध ठहराऊँगा,

याकूब को नाश होने के लिए दे दूँगा

और इसराएल को निंदा की बातें सुनने के लिए सौंप दूँगा।+

44 हे याकूब, मेरे सेवक,

हे इसराएल, मेरे चुने हुए,+ सुन!

 2 यहोवा जो तेरा बनानेवाला है, जिसने तुझे रचा है,+

जो जन्म* से तेरी मदद करता आया है, वह कहता है,

‘हे मेरे सेवक याकूब,

हे यशूरून*+ मेरे चुने हुए, मत डर,+

 3 क्योंकि मैं प्यासी धरती* पर पानी बरसाऊँगा+

और सूखी ज़मीन पर नदियाँ बहाऊँगा।

मैं तेरे वंश पर अपनी पवित्र शक्‍ति उँडेलूँगा+

और तेरे वंशजों पर आशीषों की बौछार करूँगा।

 4 वे हरी घास की तरह खूब बढ़ेंगे,+

बहती धाराओं के किनारे लगे पेड़ों* की तरह बढ़ेंगे।

 5 कोई कहेगा, “मैं यहोवा का हूँ।”+

कोई अपना नाम याकूब रखेगा,

कोई अपने हाथ पर लिखेगा, “मैं यहोवा का हूँ।”

तो कोई इसराएल का नाम अपनाएगा।’

 6 यहोवा जो इसराएल का राजा+ और उसका छुड़ानेवाला है,+

यहोवा जो सेनाओं का परमेश्‍वर है, वह कहता है,

‘मैं ही पहला और मैं ही आखिरी हूँ।+

मुझे छोड़ कोई परमेश्‍वर नहीं।+

 7 मेरे जैसा कौन है?+

अगर कोई है तो बताए, आकर मेरे सामने इसके सबूत पेश करे,+

वह करके दिखाए जो मैं अपने लोगों को अस्तित्व में लाने के समय से कर रहा हूँ।

क्या वह ऐसी बातें बता सकेगा जो बस होनेवाली हैं और जो आगे चलकर होंगी?

 8 खौफ मत खाओ,

डर के मारे तुम्हारे हाथ-पैर ढीले न पड़ें।+

क्या मैंने पहले से नहीं बताया था, तुममें से हरेक को नहीं कहा था?

तुम मेरे साक्षी हो।+

क्या मेरे सिवा कोई परमेश्‍वर है?

नहीं! मुझे छोड़ दूसरी कोई चट्टान नहीं,+ मैं तो किसी को नहीं जानता।’”

 9 मूरतों को तराशनेवाले सब-के-सब बेकार हैं

और जो मूरतें उन्हें प्यारी हैं वे उनके किसी काम की नहीं।+

उनके साक्षी बनकर वे* न तो कुछ देख सकते हैं न समझ सकते हैं,+

इसलिए इन मूरतों को बनानेवाले शर्मिंदा होंगे।+

10 ऐसा कौन है जिसे हाथ के बनाए देवता,

या ढली हुई मूरत से कोई फायदा हुआ हो?+

11 देखो, उसके सभी साथी शर्मिंदा किए जाएँगे।+

मूरत बनानेवाले कारीगर तो इंसान हैं।

वे सब इकट्ठा हों और सामने आएँ,

वे सब खौफ खाएँगे और शर्मिंदा किए जाएँगे।

12 लोहार अपने औज़ार से लोहे को पकड़कर अंगारों पर रखता है,

अपने मज़बूत हाथों से हथौड़ा चलाता है और उसे आकार देता है।+

काम करते-करते उसे भूख लगती है और उसमें ताकत नहीं रहती,

वह पानी नहीं पीता और थककर चूर हो जाता है।

13 बढ़ई नापने की डोरी से लकड़ी नापता है,

लाल खड़िया से निशान लगाता है,

फिर छेनी से उसे तराशता है और परकार से उसे नापता रहता है,

उसे इंसान का आकार देता है,+

इंसान की तरह उसे सुंदर बनाता है कि वह मंदिर* में रखी जा सके।+

14 देवदार के पेड़ काटनेवाला,

एक खास किस्म का पेड़ चुनता है, बाँज का पेड़

और जंगल में उसे बाकी पेड़ों के बीच बढ़ने देता है।+

वह एक और पेड़* लगाता है, जो बारिश के पानी में बढ़ता रहता है।

15 फिर उसकी लकड़ी ईंधन के काम आती है।

वह उसे जलाकर आग तापता है, उस पर रोटी पकाता है,

फिर उसी लकड़ी से देवता बनाकर उसे पूजता है,

एक मूरत तराशकर उसके आगे दंडवत करता है।+

16 लकड़ी के आधे हिस्से से वह आग जलाता है,

फिर उसी पर गोश्‍त भूनता है, जी-भरकर खाता है

और आग सेंककर कहता है,

“वाह! इसकी गरमी अच्छी लग रही है।”

17 बची हुई लकड़ी से वह देवता की एक मूरत बनाता है,

उसके आगे झुककर उसकी पूजा करता है

और उससे प्रार्थना करता है,

“मुझे बचा ले क्योंकि तू ही मेरा ईश्‍वर है।”+

18 ऐसे लोग कुछ नहीं जानते, कुछ नहीं समझते,+

क्योंकि उनकी आँखें बंद हैं, वे कुछ नहीं देख सकते

और उनका मन अंदरूनी समझ से खाली है।

19 कोई अपने मन में नहीं सोचता,

न किसी में इतना ज्ञान और समझ है कि वह कहे,

“लकड़ी का आधा हिस्सा तो मैंने जला दिया,

उसके अंगारों पर रोटी पकायी और गोश्‍त भूनकर खाया।

अब क्या बाकी हिस्से से मैं घिनौनी चीज़ बनाऊँ?+

पेड़ के इस लट्ठे* को पूजूँ?”

20 वह मानो राख से अपना पेट भर रहा है,

उसका मन बहक गया है और उसे गुमराह कर रहा है।

वह खुद को नहीं बचा सकता, न वह यह कबूल करता है

कि “मेरे दाएँ हाथ में यह चीज़ एकदम बेकार है।”

21 “हे याकूब, हे इसराएल, मेरी इन बातों को याद रखना,

क्योंकि तू मेरा सेवक है।

तुझे मैंने रचा है और तू मेरा सेवक है।+

हे इसराएल, मैं तुझे नहीं भूलूँगा।+

22 मैं तेरे अपराधों और पापों को मिटा दूँगा,

उन्हें बादलों से, हाँ, घने बादलों से ढक दूँगा।+

मेरे पास लौट आ कि मैं तुझे छुड़ा लूँ।+

23 हे आकाश, खुशी से चिल्ला!

क्योंकि यहोवा ने यह काम किया है।

हे धरती की गहराइयो, जयजयकार करो!

हे पहाड़ो, खुशियाँ मनाओ!+

हे जंगल और उसके सब पेड़ो, खुशी से झूमो!

क्योंकि यहोवा ने याकूब को छुड़ा लिया है,

वह इसराएल में अपनी महिमा दिखाता है।”+

24 यहोवा जो तेरा छुड़ानेवाला है,+

जिसने तुझे कोख में रचा था, वह कहता है,

“मैं यहोवा हूँ, मैंने सबकुछ बनाया है।

मैंने आकाश को ताना है+ और धरती को फैलाया है।+

उस वक्‍त मेरे साथ कौन था?

25 मैं झूठे भविष्यवक्‍ताओं* की निशानियों को झूठा साबित करूँगा,

ज्योतिषियों का मज़ाक बना दूँगा।+

मैं बुद्धिमानों को उलझन में डाल दूँगा,

उनके ज्ञान को मूर्खता में बदल दूँगा।+

26 मैं अपने सेवक की बातों को सच साबित करूँगा,

अपने दूतों की भविष्यवाणियों को पूरा करूँगा।+

मैं यरूशलेम नगरी के बारे में कहता हूँ, ‘वह बसायी जाएगी।’+

यहूदा के शहरों के बारे में कहता हूँ, ‘उन्हें दोबारा खड़ा किया जाएगा।+

मैं उनके खंडहरों को फिर से बनाऊँगा।’+

27 मैं गहरे पानी से कहता हूँ, ‘भाप बनकर उड़ जा,

मैं तेरी सारी नदियों को सुखा दूँगा।’+

28 मैं कुसरू के बारे में कहता हूँ,+ ‘वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है,

वह मेरी एक-एक मरज़ी पूरी करेगा।’+

यरूशलेम नगरी के बारे में कहता हूँ, ‘वह दोबारा बनायी जाएगी।’

और मंदिर के बारे में कहता हूँ ‘तेरी नींव डाली जाएगी।’”+

45 यहोवा ने अपने अभिषिक्‍त जन कुसरू+ का दायाँ हाथ थामा है+

कि राष्ट्रों को उसके अधीन करे,+

राजाओं की ताकत तोड़ दे।*

उसके आगे दरवाज़े के दोनों पल्ले खोल दे

कि फाटक बंद न किए जाएँ।

वही परमेश्‍वर उससे कहता है,

 2 “मैं तेरे आगे-आगे जाऊँगा+

और पहाड़ियों को समतल करूँगा।

ताँबे के फाटकों के टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा

और उनके लोहे के बेड़ों को काट दूँगा।+

 3 मैं तुझे अँधेरे में रखा खज़ाना दूँगा,

गुप्त जगहों में छिपा खज़ाना दूँगा+

ताकि तू जान ले कि मैं यहोवा हूँ,

मैं इसराएल का परमेश्‍वर हूँ जो तुझे तेरे नाम से बुलाता हूँ।+

 4 मेरे सेवक याकूब और मेरे चुने हुए इसराएल की खातिर,

मैंने तेरा नाम लेकर तुझे बुलाया है।

तू मुझे नहीं जानता, फिर भी मैं तेरा नाम महान करूँगा।

 5 मैं यहोवा हूँ, मेरे सिवा और कोई नहीं,

मुझे छोड़ कोई परमेश्‍वर नहीं।+

तू मुझे नहीं जानता, फिर भी मैं तुझे शक्‍तिशाली बनाऊँगा*

 6 ताकि पूरब से लेकर पश्‍चिम तक सब जान लें

कि मेरे अलावा कोई परमेश्‍वर नहीं।+

मैं यहोवा हूँ, मेरे सिवा और कोई नहीं।+

 7 मैं ही रौशनी और अंधकार का रचनेवाला हूँ,+

मैं ही शांति देनेवाला+ और विपत्ति का लानेवाला हूँ,+

मैं यहोवा ही यह सब करता हूँ।

 8 हे आकाश, ऊपर से रिमझिम बरस,+

बादलों से कह, वे नेकी की बूँदें बरसाएँ कि धरती जाग जाए,

उसमें उद्धार और नेकी के बीज फूट पड़ें+

और पूरी धरती पर फैल जाएँ।

मैं यहोवा ही यह सब करता हूँ।”

 9 धिक्कार है उस पर, जो अपने बनानेवाले से बहस करता है।

वह है ही क्या? मिट्टी के बरतन का बस एक टुकड़ा,

जो बाकी टुकड़ों के साथ फेंक दिया गया है।

क्या मिट्टी का लोंदा कुम्हार* से कह सकता है, “यह क्या बना दिया तूने?”+

या क्या तेरे हाथ की बनायी चीज़ तुझसे कह सकती है, “तेरे तो हाथ ही नहीं”?*

10 धिक्कार है उस पर, जो एक पिता से कहता है, “तूने किसे पैदा कर दिया?”

जो एक माँ से कहता है, “तूने किसे जन्म दिया है?”*

11 यहोवा जो इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर+ और उसका रचनेवाला है, कहता है,

“क्या तू मुझसे आनेवाली चीज़ों के बारे में सवाल करेगा?

अपने बेटों+ और अपनी कारीगरी के साथ क्या करना है, यह तू मुझे बताएगा?

12 मैंने पृथ्वी बनायी+ और उस पर इंसान को रचा,+

अपने हाथों से आकाश को ताना,+

आकाश के सारे तारे* मेरा हुक्म मानते हैं।”+

13 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है,

“अपने नेक मकसद को पूरा करने के लिए मैंने एक आदमी को उभारा है,+

मैं उसकी हर राह को सीधा करूँगा।

वही मेरे शहर को बनाएगा+ और बँधुआई में पड़े मेरे लोगों को आज़ाद करेगा,+

वह न तो रिश्‍वत लेगा न कोई कीमत माँगेगा।”+

14 यहोवा कहता है,

“मिस्र का मुनाफा,* इथियोपिया का माल* और सबाई के लंबे-चौड़े लोग,

तेरे पास आएँगे और तेरे हो जाएँगे।

वे बेड़ियाँ पहने तेरे पीछे-पीछे चलेंगे,

वे आकर तेरे आगे झुकेंगे,+

पूरी श्रद्धा से कहेंगे, ‘सचमुच, परमेश्‍वर तेरे साथ है।+

उसके सिवा कोई परमेश्‍वर नहीं, कोई भी नहीं।’”

15 हे इसराएल के परमेश्‍वर, हे उसके बचानेवाले,+

वाकई, तू ऐसा परमेश्‍वर है जो खुद को छिपाए रखता है।

16 मूरत बनानेवालों को शर्मिंदा होना पड़ेगा, उन्हें नीचा दिखाया जाएगा,

वे सभी बेइज़्ज़त होकर चले जाएँगे।+

17 पर हे इसराएल, यहोवा तुझे बचाएगा और हमेशा के लिए तेरा उद्धार करेगा,+

तुझे फिर कभी शर्मिंदा और बेइज़्ज़त नहीं होना पड़ेगा।+

18 सच्चा परमेश्‍वर यहोवा जिसने आकाश की सृष्टि की,+

पृथ्वी को रचा, उसे बनाया और मज़बूती से कायम किया,+

जिसने पृथ्वी को यूँ ही* नहीं बनाया, बल्कि बसने के लिए रचा है,+

वही परमेश्‍वर कहता है, “मैं यहोवा हूँ, मेरे सिवा और कोई नहीं।

19 मैंने न तो अंधकार के देश में से न ही छिपी हुई जगह में से बात की।+

मैंने याकूब के वंश से यह नहीं कहा,

‘मुझे ढूँढ़ो पर तुम्हारी मेहनत बेकार जाएगी।’

मैं यहोवा हूँ। मैं नेकी की बातें कहता हूँ और सीधी-सच्ची बातों का ऐलान करता हूँ।+

20 हे राष्ट्रों से आज़ाद हुए लोगो, आओ।

इकट्ठे होकर आओ।+

जो तराशी हुई मूरत लिए फिरते हैं, वे कुछ नहीं जानते,

वे ऐसे ईश्‍वर से प्रार्थना करते हैं जो उन्हें नहीं बचा सकता।+

21 अपना मुकदमा पेश करो, अपनी सफाई दो,

आपस में सलाह करो।

किसने बहुत पहले ही बता दिया था,

गुज़रे ज़माने में ही ऐलान कर दिया था?

क्या मुझ यहोवा ने नहीं?

मेरे सिवा और कोई परमेश्‍वर नहीं,

मुझ जैसा नेक परमेश्‍वर और उद्धारकर्ता कोई नहीं।+

22 हे पृथ्वी के कोने-कोने में रहनेवालो,

मेरे पास लौट आओ, तब तुम उद्धार पाओगे,+

क्योंकि मैं ही परमेश्‍वर हूँ, मेरे सिवा और कोई नहीं।+

23 मैं खुद अपनी शपथ खाकर कहता हूँ,

मेरे मुँह से निकला वचन सच्चा है

और वह हर हाल में पूरा होगा।+

हर कोई मेरे सामने घुटने टेकेगा,

अपनी ज़बान से वफा निभाने की कसम खाएगा+

24 और कहेगा, ‘वाकई, यहोवा नेकी का परमेश्‍वर है, वह शक्‍तिशाली है,

जो उस पर भड़क उठता है, उसे शर्मिंदा होना पड़ेगा।

25 इसराएल का पूरा वंश समझ जाएगा कि यहोवा की सेवा करके उन्होंने बिलकुल सही किया+

और वे उसके बारे में गर्व से बात करेंगे।’”

46 बेल देवता झुक गया,+ नबो नीचा किया गया,

उनकी मूरतें जानवरों पर, बोझ ढोनेवाले जानवरों पर ऐसी लदी हैं,+

जैसे थके हुए जानवरों पर ढेर सारा सामान लदा हो।

 2 बेल और नबो झुक गए हैं, उन्हें नीचा किया गया है,

उनका सामान* जा रहा है, पर वे उसे नहीं बचा सकते,

न ही खुद को बँधुआई में जाने से रोक सकते हैं।

 3 “हे याकूब के घराने, हे इसराएल के घराने के बचे हुओ,+ मेरी सुनो!

मैं तुम्हें गर्भ से सँभाले हुए हूँ, तुम्हारे जन्म से तुम्हें उठाए हुए हूँ।+

 4 तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं नहीं बदलूँगा,+

चाहे तुम्हारे बाल पक जाएँ मैं तुम्हें उठाए रहूँगा,

तुम्हें लिए फिरूँगा, तुम्हें सँभालूँगा और बचाऊँगा,

जैसा मैंने अब तक किया है।+

 5 तुम किससे मेरी तुलना करोगे या किसे मेरे बराबर ठहराओगे?+

किसके बारे में कहोगे कि वह मेरे जैसा है?+

 6 ऐसे लोग हैं जो थैली से सोना निकाल-निकालकर देते हैं

और तराज़ू पर चाँदी तौलते हैं।

वे सुनार को काम पर लगाते हैं और सुनार उससे देवता की एक मूरत बनाता है,+

फिर वे उस मूरत के आगे दंडवत करते हैं, उसकी पूजा करते हैं।+

 7 उसे कंधों पर उठाते हैं+

और ले जाकर उसकी जगह पर उसे खड़ा कर देते हैं।

वह वहीं खड़ी रहती है, अपनी जगह से हिलती तक नहीं।+

वे उसके आगे गिड़गिड़ाते हैं पर वह कोई जवाब नहीं देती,

वह किसी को उसके दुखों से नहीं छुड़ा सकती।+

 8 हे अपराधियो, उन बातों को याद करो,

उन्हें अपने मन में बिठा लो कि तुम हिम्मत से काम ले सको,

 9 बीती बातें याद करो,

जान लो कि मैं परमेश्‍वर हूँ, मेरे सिवा और कोई नहीं।

मैं ही परमेश्‍वर हूँ, मेरे जैसा और कोई नहीं।+

10 अंत में क्या होगा यह मैं शुरू में ही बता देता हूँ

और जो बातें अब तक नहीं हुईं, उन्हें बहुत पहले से बता देता हूँ।+

मैं कहता हूँ, ‘मैंने जो तय* किया है वह होकर ही रहेगा+

और मैं अपनी मरज़ी ज़रूर पूरी करूँगा।’+

11 मैं पूरब से एक शिकारी पक्षी को बुला रहा हूँ,+

दूर देश से एक आदमी को बुला रहा हूँ, जो मेरे मकसद* को अंजाम देगा।+

मैंने ही यह कहा है और उसे पूरा भी करूँगा,

मैंने ही यह ठाना है और उसे करके रहूँगा।+

12 हे मन के ढीठ लोगो, मेरी सुनो!

तुम जो नेकी की राह से कोसों दूर हो, सुनो!

13 बहुत जल्द मैं अपनी नेकी दिखाऊँगा,

वह दिन दूर नहीं।

मैं उद्धार करने में देर न करूँगा,+

मैं सिय्योन को उद्धार दिलाऊँगा, इसराएल को अपने वैभव से भर दूँगा।”+

47 हे बैबिलोन की कुँवारी बेटी,+

नीचे उतर और आकर धूल में बैठ।

हे कसदियों की बेटी,

ज़मीन पर बैठ, यहाँ तेरे लिए कोई राजगद्दी नहीं,+

क्योंकि लोग फिर कभी नहीं कहेंगे कि तू बड़ी नाज़ुक है और तुझे बहुत लाड़-प्यार मिला है।

 2 हाथ की चक्की ले और आटा पीस।

अपनी ओढ़नी हटा दे,

अपना घाघरा उतार दे

और अपनी नंगी टाँगों से नदियों को पार कर।

 3 सब तेरा नंगापन देखेंगे,

तू सरेआम शर्मिंदा होगी।

मैं तुझसे बदला लूँगा+ और कोई मुझे नहीं रोक सकेगा।*

 4 “इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर,

हमारा छुड़ानेवाला है।

उसका नाम सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा है।”+

 5 हे कसदियों की बेटी,

अँधेरे में जा और चुपचाप बैठी रह,+

क्योंकि अब लोग तुझे रियासतों की मलिका नहीं कहेंगे।+

 6 मैं अपने लोगों पर भड़क उठा था,+

मैंने अपनी विरासत को दूषित होने दिया+

और उन्हें तेरे हाथ कर दिया।+

लेकिन तूने उन पर कोई दया नहीं की,+

तूने बुज़ुर्गों पर भी भारी जुआ लाद दिया।+

 7 तूने कहा, “मैं हमेशा मलिका बनी रहूँगी।”+

एक पल के लिए भी नहीं सोचा कि तू क्या कर रही है

और तेरे कामों का क्या अंजाम होगा।

 8 हे रंगरलियों में डूबी औरत, सुन!+

तू जो बेखौफ बैठी है और अपने मन में कहती है,

“मैं महान हूँ, मेरे जैसा और कोई नहीं।+

मैं कभी विधवा नहीं होऊँगी,

न मेरे बच्चे कभी मरेंगे।”+

 9 पर एक ही दिन में तुझ पर दो आफतें टूट पड़ेंगी:+

तेरे बच्चे मारे जाएँगे और तू विधवा हो जाएगी।

ये आफतें ज़बरदस्त तरीके से तुझ पर आ पड़ेंगी,+

क्योंकि* तू बढ़-चढ़कर टोना-टोटका करती और बड़े-बड़े मंत्र फूँकती है।+

10 तुझे अपने दुष्ट कामों पर इतना भरोसा है

कि तू कहती है, “मुझे कोई नहीं देख रहा।”

तेरी बुद्धि और ज्ञान ने तुझे इस कदर भटका दिया है

कि तू मन-ही-मन कहती है, “मैं महान हूँ, मेरे जैसा और कोई नहीं।”

11 मगर तुझ पर विपत्ति आ पड़ेगी

और तेरा कोई मंत्र काम नहीं आएगा।*

तुझ पर मुसीबत आ पड़ेगी और तू उसे टाल नहीं पाएगी,

पल-भर में तेरा ऐसा नाश होगा, जिसके बारे में तूने सोचा भी नहीं था।+

12 तू मंत्र फूँकती रह और टोना-टोटका करती जा,+

जिसमें तू बचपन से लगी हुई है।

क्या पता तुझे उससे कोई फायदा हो!

क्या पता लोगों में तेरा डर छा जाए!

13 तू अपने ढेरों सलाहकारों की सुन-सुनकर खुद को थका रही है।

ज़रा कह उनसे कि वे आकर तुझे बचाएँ,

हाँ, उन्हीं से जो आकाश की पूजा करते हैं,* तारों को ध्यान से देखते हैं,+

नए चाँद को देखकर भविष्य बताते हैं।

वे आकर बताएँ कि तेरे साथ क्या होनेवाला है।

14 देख! वे तो भूसे की तरह हैं,

आग उन्हें भस्म कर देगी,

उसकी लपटें इतनी तेज़ होंगी कि वे खुद को बचा नहीं पाएँगे।

ये जलते कोयले नहीं जिन पर कोई हाथ सेंके,

न यह ऐसी आग है जिसके सामने कोई बैठ सके।

15 तेरे टोना-टोटका करनेवालों का भी यही हश्र होगा,

जिनके साथ तू जवानी से मेहनत करती आयी है।

वे तितर-बितर हो जाएँगे* और यहाँ-वहाँ भटकते फिरेंगे,

तुझे बचानेवाला कोई न होगा।+

48 हे याकूब के घराने के लोगो, सुनो!

तुम जो खुद को इसराएल कहते हो+

और यहूदा के सोतों से* निकले हो।

तुम जो यहोवा के नाम से शपथ खाते हो+

और इसराएल के परमेश्‍वर को पुकारते हो,

पर यह सब तुम सच्चाई और नेकी से नहीं करते।+

 2 ये लोग खुद को पवित्र शहर के निवासी बताते हैं+

और इसराएल के परमेश्‍वर का सहारा लेते हैं,+

जिसका नाम सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा है।

 3 वह तुमसे कहता है,

“पिछली बातों के बारे में मैंने बहुत पहले ही बता दिया था,

वे मेरे ही मुँह से निकली थीं और मैंने ही वे बातें बतायी थीं।+

मैंने तुरंत कदम उठाया और वे पूरी हुईं।+

 4 मैं जानता था कि तुम बहुत ढीठ हो,

तुम्हारी गरदन लोहे की तरह और तुम्हारा माथा ताँबे की तरह कड़ा है।+

 5 इसलिए मैंने बहुत पहले ही वे बातें बता दी थीं,

उनके पूरा होने से पहले ही तुम्हें बता दिया था

ताकि तुम यह न कह सको, ‘यह हमारे देवता* का काम है,

हमारी तराशी हुई और ढली हुई मूरत की आज्ञा पर यह हुआ है।’

 6 तुमने ये सारी बातें सुनी और देखी हैं,

क्या इन्हें सरेआम नहीं बताओगे?+

अब मैं नयी बातों का ऐलान कर रहा हूँ,+

छिपे हुए राज़ खोल रहा हूँ।

 7 एक नयी रचना करने जा रहा हूँ जो मैंने पहले कभी नहीं की थी,

जिसके बारे में आज से पहले तुमने कभी नहीं सुना था

ताकि तुम यह न कह सको, ‘अरे! यह तो हम पहले से जानते हैं।’

 8 पर तुम तो सुनना ही नहीं चाहते,+ न जानना चाहते हो,

तुमने पहले से ही अपने कान बंद कर लिए हैं,

मुझे पता है तुम दगाबाज़ हो+

और जन्म से बागी हो।+

 9 मगर मैं अपने नाम की खातिर अपना क्रोध रोके रहूँगा,+

अपनी महिमा की खातिर खुद को रोके रहूँगा,

मैं तेरा नामो-निशान नहीं मिटाऊँगा।+

10 देख, मैंने तुझे शुद्ध किया है मगर चाँदी की तरह नहीं।+

मैंने तुझे दुख की भट्ठी में तपाकर परख* लिया है।+

11 मैं अपनी खातिर, हाँ, अपने नाम की खातिर ऐसा करूँगा।+

भला मैं अपने नाम को अपवित्र कैसे होने दूँ?+

मैं अपनी महिमा किसी और को न दूँगा।*

12 हे याकूब, मेरी सुन! हे इसराएल, मेरी सुन! तुझे मैंने बुलाया है,

मैं वही हूँ, मैं बदला नहीं।+ मैं ही पहला और मैं ही आखिरी हूँ।+

13 मैंने अपने हाथों से पृथ्वी की नींव डाली,+

अपने दाएँ हाथ से आकाश को ताना।+

मेरे बुलाने पर वे एक-साथ मेरे सामने हाज़िर हो जाते हैं।

14 तुम सब इकट्ठा हो और सुनो,

तुम्हारे देवताओं में से* ऐसा कौन है जिसने इन बातों का ऐलान किया है?

जिस शख्स से यहोवा प्यार करता है,+

वह बैबिलोन के खिलाफ उसकी मरज़ी पूरी करेगा,+

और उसका हाथ कसदियों पर उठेगा।+

15 मैंने खुद यह कहा है, मैंने ही उसे बुलाया है+

और मैं ही उसको लाया हूँ। उसका हर काम सफल होगा।+

16 मेरे पास आओ और सुनो!

शुरू से ही मैंने यह बात खुलकर बतायी,+

जब यह पूरी होने लगी तो मैं वहीं था।”

अब सारे जहान के मालिक यहोवा ने मुझे भेजा है और अपनी पवित्र शक्‍ति भी दी है।*

17 यहोवा, जो तेरा छुड़ानेवाला और इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर है, वह कहता है,+

“मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ,

जो तुझे तेरे भले के लिए सिखाता हूँ+

और जिस राह पर तुझे चलना चाहिए उसी पर ले चलता हूँ।+

18 मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुन, उन्हें मान!+

तब तेरी शांति नदी के समान+

और तेरी नेकी समुंदर की लहरों के समान होगी।+

19 तेरा वंश बालू के समान अनगिनत होगा

और तेरे वंशज बालू के किनकों की तरह बेहिसाब होंगे।+

तेरा नाम मेरे सामने से न कभी मिटाया जाएगा, न कभी खाक में मिलाया जाएगा।”

20 बैबिलोन से निकल जाओ!+

कसदियों से दूर भाग जाओ!

खुशी के मारे ऐलान करो, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाओ,+

धरती के कोने-कोने तक यह खबर सुनाओ,+

“यहोवा ने अपने सेवक याकूब को छुड़ा लिया है।+

21 उजाड़ जगहों से लाते वक्‍त उसने उन्हें प्यासा नहीं मरने दिया,+

उसने उनके लिए चट्टान से पानी निकाला,

चट्टान को चीर दिया और पानी बह निकला।”+

22 यहोवा कहता है, “दुष्टों को कभी शांति नहीं मिलती।”+

49 हे द्वीपो, मेरी सुनो,

हे दूर-दूर के राष्ट्रो, मेरी बात पर ध्यान दो।+

मेरे पैदा होने से पहले* ही यहोवा ने मुझे बुलाया,+

जब मैं अपनी माँ के पेट में ही था, उसने मेरा नाम बताया।

 2 उसने मेरे मुँह को तेज़ धारवाली तलवार बनाया,

अपने हाथ की छाया में मुझे छिपाया,+

मुझे चमचमाता तीर बनाया

और अपने तरकश में महफूज़ रखा।

 3 उसने मुझसे कहा, “हे इसराएल, तू मेरा सेवक है,+

तेरे ज़रिए मैं अपनी महिमा दिखाऊँगा।”+

 4 लेकिन मैंने कहा, “मेरी मेहनत का कोई फायदा नहीं हुआ,

मैंने बेकार ही अपनी ताकत लगायी।

मगर यहोवा मेरा न्याय करेगा,

मेरा परमेश्‍वर ही मेरी मेहनत का फल* देगा।”+

 5 और अब यहोवा ने, जिसने मुझे गर्भ से ही अपना सेवक होने के लिए रचा,

मुझे यह आदेश दिया है कि मैं याकूब को वापस उसके पास लाऊँ

ताकि इसराएल उसके सामने इकट्ठा हो सके।+

मैं यहोवा की नज़रों में ऊँचा किया जाऊँगा,

मेरा परमेश्‍वर मेरी ताकत बनेगा।

 6 उसने कहा, “मैंने तुझे सिर्फ याकूब के गोत्रों को बहाल करने,

इसराएल के बचे हुओं को वापस लाने के लिए अपना सेवक नहीं ठहराया,

बल्कि राष्ट्रों के लिए रौशनी भी ठहराया है+

कि उद्धार का मेरा संदेश पृथ्वी के छोर तक फैल सके।”+

7 लोग जिससे घिन करते हैं,+ राष्ट्र जिससे नफरत करते हैं और जो शासकों का सेवक है, उससे इसराएल का छुड़ानेवाला और उसका पवित्र परमेश्‍वर यहोवा+ कहता है,

“राजा तुझे देखकर उठ खड़े होंगे

और हाकिम तेरे आगे झुकेंगे,

वे यहोवा के कारण ऐसा करेंगे जो विश्‍वासयोग्य परमेश्‍वर है,+

इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर के कारण ऐसा करेंगे, जिसने तुझे चुना है।”+

 8 यहोवा कहता है,

“मंज़ूरी पाने के वक्‍त मैंने तेरी सुनी और तुझे जवाब दिया,+

उद्धार के दिन तेरी मदद की।+

मैं तेरी हिफाज़त करता रहा कि तू मेरे और लोगों के बीच करार ठहरे,+

देश को दोबारा बसाए,

मेरे लोगों को उनकी विरासत की ज़मीन वापस दिलाए, जो उजाड़ पड़ी है,+

 9 कैदियों से कहे, ‘बाहर आओ!’+

और अंधकार में पड़े लोगों+ से कहे, ‘उजाले में आओ!’

मार्ग के किनारे वे खाएँगे,

आने-जानेवाले रास्तों* के किनारे उनके चरागाह होंगे।

10 वे भूखे-प्यासे नहीं रहेंगे,+

न चिलचिलाती धूप, न तपती गरमी उन्हें झुलसाएगी।+

क्योंकि उनकी अगुवाई करनेवाला उन पर दया करेगा+

और उन्हें पानी के सोतों के पास ले चलेगा।+

11 मैं अपने सारे पहाड़ों को समतल रास्ता बना दूँगा

और अपने राजमार्गों को ऊँचा करूँगा।+

12 देखो, वे दूर-दूर से आ रहे हैं,+

कुछ उत्तर से, कुछ पश्‍चिम से,

तो कुछ सिनीम देश से आ रहे हैं।”+

13 हे आकाश, जयजयकार कर! हे पृथ्वी, मगन हो!+

हे पहाड़ो, खुशी से चिल्लाओ,+

क्योंकि यहोवा ने अपने लोगों को दिलासा दिया है,+

अपने दुखी लोगों पर उसने दया की है।+

14 मगर सिय्योन बार-बार कहती है,

“यहोवा ने मुझे छोड़ दिया है,+ यहोवा मुझे भूल गया है।”+

15 क्या ऐसा हो सकता है कि एक माँ अपने दूध-पीते बच्चे को भूल जाए?

अपने बच्चे पर तरस न खाए जो उसकी कोख से पैदा हुआ?

अगर वह भूल भी जाए, तो भी मैं तुझे कभी नहीं भूलूँगा।+

16 देख! मैंने अपनी हथेली पर तेरा नाम खुदवाया है,

तेरी शहरपनाह हर पल मेरे सामने है।

17 तेरे बेटे फुर्ती से लौट रहे हैं।

जिन लोगों ने तुझे ढा दिया था, तबाह कर दिया था वे तेरे यहाँ से चले जाएँगे।

18 अपनी आँखें उठा और चारों तरफ नज़र दौड़ा,

देख! वे सब एक-साथ इकट्ठा हो रहे हैं,+ तेरे पास आ रहे हैं।

यहोवा ऐलान करता है, “मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ,

तू उन सबको गहने की तरह पहन लेगी,

दुल्हन की तरह उनसे अपना सिंगार करेगी।

19 तेरी जो जगह उजाड़ और सुनसान पड़ी थीं, तेरा जो देश खंडहर पड़ा था,+

अब वहाँ रहनेवालों के लिए जगह कम पड़ जाएगी।+

और जिन्होंने तुझे निगल लिया था+ वे तुझसे दूर किए जाएँगे।+

20 तेरे बच्चों के मरने के बाद जो बेटे पैदा हुए, वे तेरे सामने कहेंगे,

‘यह जगह हमारे लिए कम पड़ रही है,

हमारे लिए और जगह बनाओ।’+

21 तू अपने मन में कहेगी,

‘ये किसके बच्चे हैं जो मुझे दिए गए हैं?

मैं तो बेऔलाद और बाँझ थी,

मुझे कैदी बनाकर बँधुआई में ले गए थे।

किसने इन्हें पाला?+

मैं तो अकेली रह गयी थी,+

फिर ये सब कहाँ से आए?’”+

22 सारे जहान का मालिक यहोवा कहता है,

“देख, मैं अपने हाथ से राष्ट्रों को इशारा करूँगा,

अपना झंडा खड़ा करूँगा कि देश-देश के लोग उसे देख सकें।+

तब वे तेरे बेटों को गोद में उठाकर लाएँगे,

तेरी बेटियों को कंधों पर बिठाकर लाएँगे।+

23 राजा तेरी सेवा करेंगे,+

उनकी रानियाँ तेरी धाई होंगी।

वे ज़मीन पर गिरकर तुझे प्रणाम करेंगे,+

तेरे पैरों की धूल चाटेंगे।+

तब तू जान लेगी कि मैं यहोवा हूँ,

जो मुझ पर आस लगाते हैं वे कभी शर्मिंदा नहीं होंगे।”+

24 क्या शूरवीर के हाथ से उसके कैदी छीने जा सकते हैं?

क्या तानाशाह के कब्ज़े में पड़े बंदी छुड़ाए जा सकते हैं?

25 मगर यहोवा कहता है,

“शूरवीर के हाथ से उसके कैदी छीन लिए जाएँगे,+

तानाशाह के कब्ज़े में पड़े बंदी भी छुड़ा लिए जाएँगे।+

जो तेरे खिलाफ उठते हैं, मैं उनके खिलाफ उठूँगा+

और तेरे बेटों को बचा लूँगा।

26 जो तेरे साथ बदसलूकी करते हैं मैं उन्हें उन्हीं का माँस खिलाऊँगा,

मीठी दाख-मदिरा की तरह वे अपना ही खून पीकर धुत्त हो जाएँगे।

तब सब लोगों को जानना होगा कि मैं यहोवा हूँ,+

जो तेरा बचानेवाला+ और तेरा छुड़ानेवाला है,+

जो याकूब का शक्‍तिशाली परमेश्‍वर है।”+

50 यहोवा कहता है,

“जब मैंने तुम्हारी माँ को दूर भेजा, तो क्या उसे कोई तलाकनामा दिया?+

क्या मैंने अपना कोई कर्ज़ चुकाने के लिए तुम्हें बेचा?

नहीं! तुम्हें तो अपने गुनाहों+ के कारण बेचा गया,

तुम्हारे अपराधों के कारण तुम्हारी माँ को दूर भेजा गया।+

 2 जब मैं यहाँ आया तो क्यों मुझे कोई नहीं मिला?

क्यों मेरे बुलाने पर किसी ने जवाब नहीं दिया?+

क्या मेरा हाथ इतना छोटा है कि वह छुड़ा न सके?

क्या मुझमें ताकत नहीं कि तुम्हें बचा सकूँ?+

देखो, मेरी फटकार सुनकर समुंदर सूख जाता है।+

मैं नदियों को रेगिस्तान बना देता हूँ,+

उनकी मछलियाँ बिन पानी के प्यासी मर जाती हैं और बदबू मारने लगती हैं।

 3 मैं आसमान को काली चादर से ढक देता हूँ+

और उसे टाट का कपड़ा पहनाता हूँ।”

 4 सारे जहान के मालिक यहोवा ने मुझे सिखाया और ऐसी ज़बान* दी+

कि मैं सही बात कहकर थके-माँदों को जवाब दे सकूँ।*+

वह मुझे हर सुबह उठाता है, मेरे कान खोलता है

ताकि मैं सीखनेवालों की तरह ध्यान से उसकी सुनूँ।+

 5 सारे जहान के मालिक यहोवा ने मुझे समझ की बातें सिखायीं,*

मैं बागी नहीं था,+ मैंने उससे मुँह नहीं फेरा।+

 6 मैंने कोड़े मारनेवालों को अपनी पीठ दी,

दाढ़ी नोचनेवालों की ओर अपने गाल कर दिए।

अपमान सहने और थूके जाने पर मैंने मुँह नहीं छिपाया।+

 7 सारे जहान का मालिक यहोवा मेरी मदद करेगा,+

इसलिए मैं बेइज़्ज़त महसूस नहीं करूँगा।

मैंने अपना चेहरा चकमक पत्थर की तरह कड़ा कर लिया है+

और मुझे यकीन है कि मुझे शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।

 8 जो मुझे नेक करार देता है, वह मेरे करीब है।

कौन मुझ पर इलज़ाम लगाएगा?+

वह सामने आकर बात करे।

कौन मुझसे मुकदमा लड़ेगा?

वह आगे आए।

 9 देखो! सारे जहान का मालिक यहोवा मेरी मदद करेगा।

कौन मुझे दोषी ठहरा सकता है?

देखो! वे उस पुराने कपड़े की तरह हो जाएँगे,

जिसे कपड़-कीड़ा खा गया हो।

10 तुम्हारे बीच ऐसा कौन है जो यहोवा का डर मानता है

और उसके सेवक की बात सुनता है?+

कौन है जो बिन रौशनी के घुप अँधेरे में चलता है?

वह यहोवा के नाम पर भरोसा करे और परमेश्‍वर को अपना सहारा बनाए।*

11 “तुम सब जो आग सुलगाते हो, जिससे चिंगारियाँ उठती हैं,

अपनी सुलगायी आग की रौशनी में चलो,

उससे उठनेवाली चिंगारियों में होकर चलो।

पर मेरी तरफ से तुम्हें यह सज़ा मिलेगी:

तुम दर्द से बेहाल पड़े रहोगे।

51 हे नेकी का पीछा करनेवालो,

हे यहोवा को ढूँढ़नेवालो, मेरी सुनो!

उस चट्टान की ओर देखो, जिससे तुम काटे गए हो,

उस खदान की ओर देखो, जिससे तुम निकाले गए हो।

 2 अपने पिता अब्राहम की ओर देखो,

सारा+ की ओर देखो, जिसने तुम्हें जन्म दिया।*

जब मैंने उसे बुलाया तो वह अकेला था,+

फिर मैंने उसे आशीष दी और उसे एक से अनेक बना दिया।+

 3 यहोवा सिय्योन को दिलासा देगा,+

उसके सभी खंडहरों को दोबारा बसाएगा।*+

वह उसके वीराने को अदन जैसा+

और उसके बंजर इलाके को यहोवा के बाग जैसा बना देगा।+

सिय्योन नगरी मगन होगी, उसमें खुशियाँ मनायी जाएँगी,

धन्यवाद दिया जाएगा और सुरीले गीत गाए जाएँगे।+

 4 हे मेरे लोगो, मुझ पर ध्यान दो,

हे मेरे राष्ट्र, मेरी बात पर कान लगा,+

क्योंकि मैं एक कानून निकालूँगा+

और अपना न्याय कायम करूँगा, जो देश-देश के लोगों के लिए रौशनी ठहरेगा।+

 5 मेरी नेकी पास आ रही है,+

मेरी तरफ से तुम्हें उद्धार मिलनेवाला है।+

मैं अपनी ताकत के दम पर देश-देश के लोगों का न्याय करूँगा,+

द्वीप मुझ पर आस लगाएँगे+ और मेरी ताकत* देखने का इंतज़ार करेंगे।

 6 आकाश की ओर अपनी आँखें उठाओ,

नीचे पृथ्वी की ओर देखो।

आकाश धुएँ के समान गायब हो जाएगा,

पृथ्वी पुराने कपड़े के समान तार-तार हो जाएगी

और उसके निवासी मच्छरों की तरह मर जाएँगे।

लेकिन जो उद्धार मैं दिलाऊँगा वह हमेशा रहेगा+

और मेरी नेकी का अंत कभी न होगा।+

 7 हे लोगो, तुम जो मेरी नेकी से वाकिफ हो,

जिनके दिलों में मेरा कानून* बसा है,+ मेरी सुनो!

नश्‍वर इंसान के तानों से मत डरो,

न उनकी अपमान-भरी बातों से खौफ खाओ।

 8 क्योंकि कीड़ा उन्हें कपड़े की तरह खा जाएगा,

कपड़-कीड़ा उन्हें ऊन की तरह चट कर जाएगा।+

लेकिन मेरी नेकी हमेशा कायम रहेगी

और जो उद्धार मैं देता हूँ वह पीढ़ी-पीढ़ी तक बना रहेगा।”+

 9 जाग! जाग यहोवा के बाज़ू,

उठकर अपनी ताकत दिखा,+

जैसे तूने बहुत पहले, बीते ज़माने में दिखायी थी।

क्या वह तू नहीं जिसने राहाब*+ के टुकड़े-टुकड़े किए थे,

उस बड़े समुद्री जीव को भेदा था?+

10 क्या तूने ही सागर को, गहरे सागर को नहीं सुखाया था?+

समुंदर की गहराइयों में रास्ता नहीं निकाला था कि छुड़ाए हुए लोग उसे पार कर सकें?+

11 यहोवा जिन्हें छुड़ाएगा वे जयजयकार करते हुए सिय्योन लौटेंगे,+

कभी न मिटनेवाली खुशी उनके सिर का ताज होगी।+

वे इतने मगन होंगे, इतनी खुशियाँ मनाएँगे

कि दुख और मातम उनके सामने से भाग खड़े होंगे।+

12 “तुझे दिलासा देनेवाला मैं ही हूँ,+

तो फिर तू नश्‍वर इंसान से क्यों डरती है, जो एक दिन मर जाएगा?+

इंसान से क्यों खौफ खाती है, जो हरी घास की तरह मुरझा जाएगा?

13 तू यहोवा को, अपने बनानेवाले+ को क्यों भूल गयी,

जिसने आकाश को ताना+ और पृथ्वी की नींव डाली?

तू अत्याचार करनेवाले के क्रोध से दिन-भर डरी-सहमी क्यों रहती है,

मानो वह तेरा नाश करने के लिए तैयार खड़ा है?

बता, कहाँ रहा अत्याचार करनेवाले का क्रोध?

14 जो ज़ंजीरों से झुक गए हैं वे जल्द ही आज़ाद किए जाएँगे,+

वे मरेंगे नहीं, न कब्र में जाएँगे,

उन्हें रोटी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा।

15 मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ,

मैं समुंदर को झकझोरता हूँ, लहरों को उछालता हूँ।+

सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा, यही मेरा नाम है।+

16 मैं अपना संदेश तेरे मुँह में डालूँगा,

अपने हाथ की छाया में तुझे छिपा लूँगा,+

ताकि आकाश को स्थिर करूँ और पृथ्वी की नींव डालूँ,+

ताकि सिय्योन से कहूँ, ‘तू मेरी प्रजा है।’+

17 जाग यरूशलेम जाग! उठ खड़ी हो!+

तूने यहोवा के हाथ से उसके क्रोध का प्याला पी लिया है,

वह जाम पी लिया है जो लड़खड़ा देता है,

हाँ, तू पूरा-का-पूरा प्याला पी चुकी है।+

18 जितने बेटे उसने पैदा किए, उनमें से किसी ने उसे राह नहीं दिखायी,

जितने बेटों को उसने पाला-पोसा, उनमें से किसी ने उसका हाथ नहीं पकड़ा।

19 तुझ पर दो विपत्तियाँ आ पड़ी हैं:

नाश और बरबादी, भुखमरी और तलवार!+

कौन तुझसे हमदर्दी जताएगा?

कौन तुझे दिलासा देगा?+

20 तेरे बेटे बेहोश पड़े हैं,+

हर गली के नुक्कड़ पर ऐसे पड़े हैं,

जैसे जंगली भेड़ जाल में फँसी हो।

यहोवा का क्रोध पूरी तरह उन पर आ पड़ा है,

उन्हें परमेश्‍वर से ज़बरदस्त फटकार मिली है।”

21 इसलिए हे दुखियारी, सुन!

तू जो नशे में धुत्त है, पर दाख-मदिरा के नशे में नहीं,

22 तेरा प्रभु और परमेश्‍वर यहोवा, जो अपने लोगों की वकालत करता है, कहता है,

“देख! मैं तेरे हाथ से वह प्याला ले लूँगा, जिसे पीकर तू लड़खड़ा रही थी।+

मेरे क्रोध का वह प्याला, मेरा जाम तू फिर कभी न पीएगी।+

23 मैं उसे तेरे सतानेवालों के हाथ में दे दूँगा,+

जिन्होंने तुझसे कहा, ‘लेट जा कि हम तुझ पर पैर रखकर जाएँ!’

इसलिए तूने अपनी पीठ को ज़मीन बना दिया

कि वे सड़क समझकर उस पर चलें।”

52 जाग सिय्योन जाग! अपनी ताकत जुटा+ और उठ!+

हे पवित्र नगरी यरूशलेम, अपने सुंदर कपड़े पहन ले!+

क्योंकि अब से कोई खतनारहित और अशुद्ध इंसान तुझमें दाखिल न होगा।+

 2 हे यरूशलेम, खड़ी हो! धूल झाड़ और यहाँ ऊपर आकर बैठ।

हे गुलामी में पड़ी सिय्योन की बेटी, अपने गले के बंधन खोल दे।+

 3 यहोवा कहता है,

“तुम लोग बिना कीमत के बेचे गए+

और अब बिना कीमत के छुड़ाए भी जाओगे।”+

 4 सारे जहान का मालिक यहोवा कहता है,

“पहले मेरे लोग मिस्र गए कि वहाँ परदेसी बनकर रहें,+

फिर अश्‍शूर ने बेवजह उन पर ज़ुल्म ढाया।”

 5 यहोवा कहता है, “अब जब मेरे लोगों को बिना कीमत के

बंदी बना लिया गया है, तो मैं क्या करूँ?”

यहोवा कहता है, “उन पर राज करनेवाले अपनी जीत पर डींगें मार रहे हैं,+

वे दिन-भर मेरे नाम की बदनामी कर रहे हैं।+

 6 इसलिए मेरे लोगों को मेरा नाम जानना होगा,+

हाँ, उस दिन वे जान लेंगे कि जो उनसे बात कर रहा है, वह मैं ही हूँ।”

 7 पहाड़ों पर उसके पाँव कितने सुंदर हैं जो खुशखबरी लाता है,+

शांति का पैगाम सुनाता है,+

अच्छी बातों की खुशखबरी लाता है,

उद्धार का संदेश सुनाता है,

जो सिय्योन से कहता है, “तेरा परमेश्‍वर राजा बन गया है।”+

 8 सुन! तेरे पहरेदार खुशी से चिल्ला रहे हैं,

साथ मिलकर जयजयकार कर रहे हैं,

क्योंकि वे साफ देख सकते हैं कि यहोवा सिय्योन को वापस ला रहा है।

 9 हे यरूशलेम के खंडहरो,+ खुशी से झूमो, मिलकर जयजयकार करो!

क्योंकि यहोवा ने अपने लोगों को दिलासा दिया है,+ उसने यरूशलेम को छुड़ाया है।+

10 सब राष्ट्रों के सामने यहोवा ने अपना पवित्र बाज़ू दिखाया,+

पृथ्वी के कोने-कोने तक लोग वह उद्धार देखेंगे जो हमारा परमेश्‍वर दिलाता है।*+

11 दूर हो जाओ, उससे दूर हो जाओ!

वहाँ से निकल आओ,+ किसी भी अशुद्ध चीज़ को मत छूओ!+

हे यहोवा के बरतनों को उठानेवालो,+

उसमें से निकल आओ+ और खुद को शुद्ध बनाए रखो।

12 तुम्हें वहाँ से घबराकर नहीं निकलना होगा,

न ही तुम्हें वहाँ से भागना पड़ेगा,

क्योंकि यहोवा तुम्हारे आगे-आगे जाएगा,+

इसराएल का परमेश्‍वर तुम्हारी रक्षा के लिए पीछे-पीछे चलेगा।+

13 देखो, मेरा सेवक+ अंदरूनी समझ से काम लेगा,

उसे ऊँचे पर उठाया जाएगा,

उसे ऊँचा और महान किया जाएगा।+

14 जिस तरह उसे देखकर बहुत-से लोग दंग रह गए थे,

क्योंकि उसका रूप इतना बिगड़ा हुआ था जितना किसी आदमी का नहीं बिगड़ा,

उसकी शान इतनी घट गयी थी जितनी किसी की नहीं घटी थी,

15 उसी तरह राष्ट्र उसे देखकर दंग रह जाएँगे,+

राजा उसके सामने खामोश खड़े रहेंगे,*+

क्योंकि वे ऐसी बात देखेंगे जो उन्हें नहीं बतायी गयी थी,

ऐसी बात पर ध्यान देंगे जो उन्होंने नहीं सुनी थी।+

53 हमारे संदेश पर* किसने विश्‍वास किया है?+

यहोवा ने अपनी ताकत*+ किस पर ज़ाहिर की है?+

 2 वह टहनी की तरह उसके* सामने उगेगा,+ सूखी ज़मीन में जड़ की तरह फैलेगा।

जब हम उसे देखते हैं, तो उसमें कोई सुंदरता, कोई शान नज़र नहीं आती,+

न उसके रूप में ऐसी खासियत है कि हम उसकी तरफ खिंचे चले जाएँ।

 3 लोगों ने उसे तुच्छ जाना, उससे किनारा किया।+

वह अच्छी तरह जानता था कि दर्द क्या होता है, बीमारी क्या होती है।

उसका चेहरा मानो हमसे छिपा हुआ था।*

हमने उसे तुच्छ जाना और बेकार समझा।+

 4 उसने हमारी बीमारी खुद पर उठा ली+

और हमारा दर्द हमसे ले लिया।+

पर हमने समझा कि उस पर परमेश्‍वर की मार पड़ी है,

उसी ने उसे घायल किया और दुख दिया है।

 5 हमारे अपराधों के लिए उसे भेदा गया,+

हमारे गुनाहों के लिए उसे कुचला गया,+

हमारी शांति के लिए उसने सज़ा भुगती+

और उसके घाव से हम चंगे हुए।+

 6 हम सब भेड़ों की तरह भटके हुए थे,+

हर कोई अपनी राह चल रहा था।

लेकिन यहोवा ने हमारे गुनाहों का बोझ उस पर लाद दिया।+

 7 उस पर अत्याचार किए गए,+ पर उसने सबकुछ सह लिया,+

अपने मुँह से एक शब्द नहीं निकाला।

वह भेड़ की तरह बलि होने के लिए लाया गया।+

जैसे मेम्ना अपने ऊन कतरनेवाले के सामने चुपचाप रहता है,

वैसे ही उसने अपने मुँह से एक शब्द नहीं निकाला।+

 8 ज़ुल्म और अन्याय से उसकी जान ले ली गयी।*

मगर क्या किसी ने यह जानना चाहा कि वह कौन है, कहाँ से आया है?*

उसे दुनिया* से मिटा दिया गया,+

मेरे लोगों के अपराधों के लिए उसे मार डाला गया।*+

 9 उसने कोई बुराई* नहीं की,

न उसके मुँह से छल की बातें निकलीं,+

फिर भी उसे दुष्टों के साथ कब्र में दफनाया गया,*+

जब उसकी मौत हुई, तो उसे अमीरों* के साथ गाड़ा गया।+

10 यह यहोवा की मरज़ी थी* कि वह कुचला जाए,

तभी उसने उसे दुख झेलने दिया।

हे परमेश्‍वर, अगर तू उसकी जान दोष-बलि के तौर पर दे,+

तो वह अपने वंश* को देखेगा और बहुत दिनों तक जीएगा।+

उसी से यहोवा की मरज़ी* पूरी होगी।+

11 उसने जो पीड़ाएँ सहीं, उन्हें देखकर उसे संतोष मिलेगा।

मेरा नेक जन, मेरा सेवक+ अपने ज्ञान से,

कई लोगों की मदद करेगा कि वे नेक ठहरें।+

वह उनके गुनाह अपने ऊपर ले लेगा।+

12 इसलिए मैं उसे बहुतों के साथ हिस्सा दूँगा,

वह शूरवीरों के साथ लूट का माल बाँटेगा,

क्योंकि उसने अपनी जान कुरबान कर दी,*+

वह अपराधियों में गिना गया,+

वह बहुतों का पाप उठा ले गया+

और अपराधियों की खातिर उसने बिनती की।+

54 यहोवा कहता है,

“हे बाँझ औरत, तू जिसने किसी को जन्म नहीं दिया,+ जयजयकार कर!

तू जिसे बच्चा जनने की पीड़ा नहीं हुई,+ मगन हो और खुशी के मारे चिल्ला!+

क्योंकि छोड़ी हुई औरत के लड़के,*

उस औरत के लड़कों से ज़्यादा हैं, जिसका पति* उसके साथ है।+

 2 अपने तंबू को बड़ा कर,+

अपने आलीशान डेरे का कपड़ा फैला।

कोई कसर मत छोड़, तंबू की रस्सियों को लंबा कर

और उसकी खूँटियों को मज़बूत कर,+

 3 क्योंकि तू दाएँ-बाएँ दोनों तरफ फैलेगी।

तेरे बच्चे राष्ट्रों पर कब्ज़ा करेंगे,

उजाड़ और सुनसान शहरों को फिर से बसाएँगे।+

 4 डर मत,+ तुझे शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा,+

न खुद को नीचा समझ क्योंकि तुझे निराश नहीं होना पड़ेगा।

तूने अपनी जवानी में जो शर्मिंदगी झेली उसे तू भूल जाएगी,

अपने विधवा होने का कलंक तुझे याद न रहेगा।”

 5 “तेरा महान रचनाकार+ ही तेरा पति* है,+

सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा उसका नाम है,

इसराएल का पवित्र परमेश्‍वर तेरा छुड़ानेवाला है,+

उसे पूरी धरती का परमेश्‍वर कहा जाएगा।+

 6 यहोवा ने तुझे ऐसे बुलाया मानो तू छोड़ी हुई औरत हो, मन से दुखी हो,+

जिसकी शादी जवानी में हुई हो और बाद में जिसके पति ने उसे ठुकरा दिया हो।”

यह बात तेरे परमेश्‍वर ने कही है।

 7 “पल-भर के लिए मैंने तुझे छोड़ दिया था,

लेकिन अब बड़ी दया करके तुझे वापस ले आऊँगा।+

 8 क्रोध में आकर कुछ वक्‍त के लिए तुझसे अपना चेहरा छिपा लिया था,+

लेकिन अब मैं तुझ पर दया करूँगा क्योंकि मेरा प्यार सदा कायम रहता है।”+

यह बात यहोवा ने कही है जो तेरा छुड़ानेवाला है।+

 9 “मेरे लिए यह वैसा है जैसा नूह के दिनों में था।+

जिस तरह मैंने शपथ खायी थी कि पृथ्वी जलप्रलय से फिर कभी न डूबेगी,+

उसी तरह मैं शपथ खाता हूँ कि मैं तुझ पर फिर कभी नहीं भड़कूँगा, न तुझे फटकारूँगा।+

10 चाहे पहाड़ मिट जाएँ, पहाड़ियाँ डगमगा जाएँ,

मगर मेरा अटल प्यार तेरे लिए नहीं मिटेगा,+

शांति का मेरा करार कभी नहीं डगमगाएगा।”+

यह बात यहोवा ने कही है, जो तुझ पर दया करता है।+

11 “हे दुखियारी,+ तू जो आँधी-तूफान से उछाली गयी,

तू जिसे दिलासा नहीं मिला,+

मैं तेरे पत्थरों को मज़बूत गारे से बिठाऊँगा,

नीलम से तेरी नींव डालूँगा।+

12 मैं तेरी शहरपनाह की मुँडेर को माणिकों से

और तेरे फाटकों को चमचमाते पत्थरों से बनाऊँगा,

कीमती पत्थरों से तेरी सरहद खड़ी करूँगा।

13 तेरे सारे बेटे* यहोवा के सिखाए हुए होंगे+

और उन्हें भरपूर शांति मिलेगी।+

14 नेकी के दम पर तुझे मज़बूती से कायम किया जाएगा।+

तुझे अत्याचार से बचाया जाएगा,+

तुझे किसी बात का डर नहीं होगा, न ही तू खौफ खाएगी,

डर तेरे पास भी नहीं फटकेगा।+

15 अगर तुझ पर हमला हो,

तो वह मेरे आदेश पर नहीं होगा।

जो कोई तुझसे लड़ेगा, उसे हार का मुँह देखना पड़ेगा।”+

16 “देख मैं ही उस लोहार का बनानेवाला हूँ,

जो फूँक मारकर कोयले सुलगाता है और उस पर हथियार बनाता है।

मैं ही उस आदमी का रचनेवाला हूँ,

जो खूँखार है और तबाही मचाता है।+

17 इसलिए तुम्हारे खिलाफ उठनेवाला कोई भी हथियार कामयाब नहीं होगा,+

तुम पर दोष लगानेवाली हर ज़बान झूठी साबित होगी।

यही यहोवा के सेवकों की विरासत है

और मैं उन्हें नेक ठहराता हूँ।” यह ऐलान यहोवा ने किया है।+

55 हे सब प्यासे लोगो, आओ!+ पानी के पास आओ!+

जिसके पास पैसा नहीं, वह भी आए और आकर खाए-पीए!

आओ और बिना पैसे दिए, मुफ्त में+ दाख-मदिरा और दूध ले जाओ।+

 2 जिस खाने से भूख नहीं मिटती, उस पर तुम क्यों पैसा खर्च करते हो?

जिस खाने से जी नहीं भरता, उस पर अपनी कमाई* क्यों उड़ाते हो?

मेरी बात ध्यान से सुनो! बढ़िया खाना खाओ,+

तब तुम चिकना-चिकना खाना खाकर खुश हो जाओगे।+

 3 मेरे पास आओ,+ मेरी बातों पर कान लगाओ।

मेरी सुनो, तब तुम जीवित रहोगे।

मैं तुम्हारे साथ सदा का करार करूँगा+

ताकि दिखाऊँ कि दाविद के लिए मेरा प्यार अटल और सच्चा है।+

 4 देखो, मैंने उसे राष्ट्रों के लिए गवाह ठहराया है,+

राष्ट्रों के लिए उसे अगुवा+ और शासक+ बनाया है।

 5 देख, तू उस राष्ट्र को बुलाएगा जिसे तू नहीं जानता

और जो राष्ट्र तुझे नहीं जानता वह तेरे पास दौड़ा चला आएगा।

वह इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर, तेरे परमेश्‍वर यहोवा की वजह से आएगा,+

क्योंकि परमेश्‍वर तेरा गौरव बढ़ाएगा।+

 6 जब तक यहोवा मिल सकता है उसकी खोज करते रहो,+

जब तक वह करीब है उसे पुकारते रहो।+

 7 दुष्ट इंसान अपनी दुष्ट राह छोड़ दे,+

बुरा इंसान अपने बुरे विचारों को त्याग दे।

वह यहोवा के पास लौट आए जो उस पर दया करेगा,+

हमारे परमेश्‍वर के पास लौट आए क्योंकि वह दिल खोलकर माफ करता है।+

 8 यहोवा ऐलान करता है, “मेरी सोच तुम्हारी सोच जैसी नहीं,+

न मेरी राहें तुम्हारी राहों जैसी हैं।

 9 जिस तरह आकाश पृथ्वी से ऊँचा है,

उसी तरह मेरी राहें तुम्हारी राहों से

और मेरी सोच तुम्हारी सोच से ऊँची है।+

10 जैसे आसमान से बारिश और बर्फ गिरती है और यूँ ही नहीं लौट जाती,

बल्कि धरती को सींचती है और फसल उपजाती है,

जिससे बोनेवाले को बीज और खानेवाले को रोटी मिलती है,

11 वैसे ही मेरे मुँह से निकला वचन भी होगा।+

वह बिना पूरा हुए मेरे पास नहीं लौटेगा,+

बल्कि हर हाल में मेरी मरज़ी पूरी करेगा+

और जिस काम के लिए मैंने उसे भेजा है उसे ज़रूर अंजाम देगा।

12 तुम खुशी मनाते हुए निकलोगे+

और तुम्हें सही-सलामत वापस लाया जाएगा।+

तुम्हें आते देख पहाड़ और पहाड़ियाँ खुशी से चिल्लाएँगे+

और मैदान के सब पेड़ तालियाँ बजाएँगे।+

13 कँटीली झाड़ियों की जगह सनोवर के पेड़ उग आएँगे,+

बिच्छू-बूटी की जगह मेंहदी के पेड़ उग आएँगे।

इन सारी बातों से यहोवा का नाम रौशन होगा+

और यह ऐसी निशानी होगी जो कभी नहीं मिटेगी।”

56 यहोवा कहता है,

“न्याय की राह पर बने रहो+ और सही काम करो,

क्योंकि मैं जल्द ही तुम्हारा उद्धार करूँगा

और अपनी नेकी दिखाऊँगा।+

 2 सुखी है वह इंसान जो ऐसा करता है

और जो इन बातों पर कायम रहता है,

जो सब्त मनाता है और इसे अपवित्र नहीं करता+

और जो हर तरह के बुरे काम करने से दूर रहता है।

 3 यहोवा की उपासना करनेवाला परदेसी+ यह न कहे,

‘यहोवा मुझे अपने लोगों में से अलग कर देगा।’

और जो नपुंसक है वह यह न कहे, ‘देख! मैं तो सूखा पेड़ हूँ।’”

4 क्योंकि यहोवा कहता है, “जो नपुंसक मेरे ठहराए हुए सब्त मनाते हैं, वे वही करते हैं जो मुझे पसंद है और मेरा करार थामे रहते हैं,

 5 मैं उन्हें अपने घर में, अपनी चारदीवारी के अंदर एक जगह* और एक नाम दूँगा,

जो बेटे-बेटियों के होने से कहीं बढ़कर होगा।

मैं उन्हें ऐसा नाम दूँगा जो हमेशा कायम रहेगा,

ऐसा नाम जो कभी नहीं मिटेगा।

 6 और जो परदेसी यहोवा की सेवा करने के लिए,

यहोवा के नाम से प्यार करने के लिए+

और उसके सेवक बनने के लिए आगे आते हैं,

जो सब्त मनाते हैं और उसे अपवित्र नहीं करते,

जो मेरा करार थामे रहते हैं,

 7 उन्हें भी मैं अपने पवित्र पर्वत पर लाऊँगा,+

अपने प्रार्थना के घर में खुशियाँ दूँगा,

उनकी होम-बलियाँ और बलिदान अपनी वेदी पर कबूल करूँगा।

मेरा घर देश-देश के सब लोगों के लिए प्रार्थना का घर कहलाएगा।”+

8 सारे जहान का मालिक यहोवा, जो इसराएल के तितर-बितर हुए लोगों को इकट्ठा कर रहा है,+ ऐलान करता है,

“जो लोग इकट्ठे किए जा चुके हैं, उनके अलावा मैं औरों को भी इकट्ठा करूँगा।”+

 9 हे मैदान के जंगली जानवरो, आओ!

हे जंगल के सारे जानवरो, खाने के लिए आओ!+

10 पहरेदार अंधे हैं,+ उनमें से कोई ध्यान नहीं देता,+

सब-के-सब गूँगे कुत्ते हैं जो भौंक नहीं सकते,+

वे बस लेटे रहते हैं और हाँफते रहते हैं, उन्हें तो अपनी नींद प्यारी है।

11 वे ऐसे भूखे कुत्ते हैं,

जिनका पेट* कभी नहीं भरता।

वे ऐसे चरवाहे हैं जिनमें कोई समझ नहीं,+

सब अपनी मनमानी करते हैं,

हर कोई अपने फायदे के लिए बेईमानी करता है और कहता है,

12 “आओ, हम दाख-मदिरा पीएँ,

पीकर नशे में चूर हो जाएँ।+

कल का दिन आज जैसा होगा बल्कि आज से भी अच्छा होगा।”

57 नेक जन मिट गया है,

पर किसी को इसकी परवाह नहीं।

वफादार लोग छीन लिए गए हैं,*+

पर कोई नहीं सोचता कि नेक जन को मुसीबतों ने* छीन लिया है।

 2 अब उसे चैन मिला है।

जितने भी सीधाई से चलते हैं, उन्हें अपने बिस्तर पर* आराम मिला है।

 3 “हे टोना-टोटका करनेवाली के बेटो,

हे व्यभिचार करनेवाले की औलादो,

हे वेश्‍या की संतानो, इधर आओ!

 4 तुम किसकी हँसी उड़ा रहे हो?

मुँह फाड़कर किसे जीभ दिखा रहे हो?

क्या तुम पापियों के बच्चे नहीं?

झूठे लोगों की संतान नहीं?+

 5 क्या तुम बड़े-बड़े पेड़ों+ के नीचे,

हर घने पेड़ के नीचे+ काम-इच्छा से मचल नहीं उठते?

क्या तुम घाटियों में, खड़ी चट्टान की दरारों में,

अपने बच्चों की बलि नहीं चढ़ाते?+

 6 तूने* घाटी के चिकने-चिकने पत्थरों को चुन लिया है,+

वही तेरा हिस्सा हैं।

उन्हीं को तू अर्घ चढ़ाती और भेंट के चढ़ावे देती है।+

क्या यह सब देखकर मैं खुश होऊँगा?*

 7 तूने एक बड़े और ऊँचे पहाड़ पर अपना बिस्तर सजाया+

और वहाँ तू बलि चढ़ाने के लिए गयी।+

 8 दरवाज़े के पीछे और चौखट पर तूने अपने देवताओं की निशानी बनायी,

तूने मुझे छोड़ दिया, अपने कपड़े उतारे

और ऊपर जाकर अपना बिस्तर चौड़ा किया।

तूने उनके साथ करार किया,

उनके साथ सोना तुझे अच्छा लगा+

और तूने पुरुष-लिंग देखे।*

 9 तू तेल और ढेर सारा इत्र लेकर मेलेक* के पास गयी।

तूने अपने दूतों को दूर-दूर भेजा।

इस तरह तू नीचे कब्र में उतर गयी।

10 तू अलग-अलग राहों पर चलते-चलते थक गयी है,

फिर भी तू नहीं कहती, ‘ये सब बेकार है।’

तुझमें नया जोश भर आया है,

इसलिए तू रुकने का नाम नहीं ले रही।*

11 तू किसका डर मानकर झूठ बोलने लगी?+

तूने मुझे याद नहीं रखा,+

मेरी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया।+

मैं चुप रहा, तेरी करतूतों को बरदाश्‍त करता रहा,+

इसलिए तूने मेरा डर मानना छोड़ दिया है।

12 तेरी नेकी+ और तेरे कामों का+ तुझे कोई फायदा नहीं होगा,+

क्योंकि मैं इनका परदाफाश कर दूँगा।

13 जब तू मदद के लिए पुकारेगी,

तब जिन मूरतों को तूने जमा किया है, वे तुझे बचा न सकेंगी।+

हवा उन सबको उड़ा ले जाएगी,

एक फूँक में ही वे उड़ जाएँगी।

लेकिन जो मुझमें पनाह लेता है वही देश में बसेगा

और मेरे पवित्र पहाड़ को अपने अधिकार में कर लेगा।+

14 तब यह कहा जाएगा, ‘सड़क बनाओ! रास्ता तैयार करो!+

मेरे लोगों की राह से हर रुकावट दूर करो।’”

15 क्योंकि जो सबसे महान है, जो सदा तक जीवित रहता है+

और जिसका नाम पवित्र है,+ वह कहता है,

“भले ही मैं ऊँची और पवित्र जगह में रहता हूँ,+

मगर मैं उनके संग भी रहता हूँ जो कुचले हुए और मन से दीन हैं

ताकि दीन जनों की हिम्मत बँधाऊँ

और कुचले हुओं में नयी जान डाल दूँ।+

16 मैं सदा तक उनका विरोध नहीं करूँगा,

न मेरा गुस्सा हमेशा तक बना रहेगा।+

कहीं ऐसा न हो कि मेरी वजह से इंसान* कमज़ोर हो जाए,+

हाँ, साँस लेनेवाला हर जीव जिसे मैंने बनाया है, कमज़ोर न पड़ जाए।

17 इसराएल को पाप करते देख,

बेईमानी की कमाई बटोरते देख मैं भड़क उठा,+

इसलिए मैंने उसे मारा और गुस्से में अपना मुँह फेर लिया।

फिर भी वह बागी बनकर+ अपनी मनमानी करता रहा।

18 मैं उसकी चाल देखता आया हूँ,

फिर भी मैं उसे चंगा करूँगा+ और उसकी अगुवाई करूँगा,+

उसे और मातम मनानेवाले उसके लोगों को दिलासा दूँगा।”+

19 यहोवा कहता है, “मैं ही होंठों के फल का रचनेवाला हूँ,

मैं लोगों को शांति देता रहूँगा फिर चाहे वे दूर हों या पास+

और उन्हें चंगा करूँगा।”

20 “मगर दुष्ट लोग अशांत समुंदर जैसे हैं, जिसकी लहरें थमने का नाम नहीं लेतीं

और जिसका पानी काई और कीचड़ उछालता रहता है।

21 दुष्टों को कभी शांति नहीं मिलती।”+ यह बात मेरे परमेश्‍वर ने कही है।

58 उसने मुझसे कहा, “चुप मत रह, गला फाड़कर चिल्ला!

नरसिंगे की तरह ऊँची आवाज़ में चिल्ला।

मेरे लोगों को उनके अपराध बता,+

याकूब के घराने को उसके पाप सुना।

 2 वे हर दिन मेरी खोज में रहते हैं,

मेरी राहों को जानने के लिए ऐसे खुश होते हैं,

मानो वे नेकी की राह पर चलनेवाला राष्ट्र हों,

जिसने अपने परमेश्‍वर के नियमों को कभी न टाला हो।+

वे मेरे नेक फैसलों के बारे में ऐसे पूछते हैं,

मानो उन्हें अपने परमेश्‍वर के करीब आने में खुशी मिल रही हो।+

 3 वे कहते हैं, ‘जब हम उपवास करते हैं तब तू क्यों नहीं देखता?+

जब हम अपने पापों के लिए दुख मनाते हैं तब तू क्यों ध्यान नहीं देता?’+

क्योंकि तुम उपवास के दिन भी अपनी इच्छा* पूरी करने में लगे रहते हो,

अपने मज़दूरों पर ज़ुल्म ढाते हो।+

 4 उपवास के दिन लड़ाई-झगड़ा करते हो

और करारे मुक्के जमाते हो।

जिस तरह के उपवास तुम आजकल करते हो, उससे स्वर्ग में तुम्हारी नहीं सुनी जाएगी।

 5 क्या मैंने तुम्हें इस तरह उपवास करने को कहा है

कि तुम उस दिन खुद को दुख पहुँचाओ,

लंबी-लंबी घास की तरह अपना सिर झुकाओ,

टाट और राख को अपना बिस्तर बनाओ?

क्या तुम इसे उपवास कहते हो? क्या इस तरह यहोवा को खुश किया जाता है?

 6 नहीं! मैं जो उपवास चाहता हूँ वह यह है

कि तुम अन्याय की बेड़ियाँ तोड़ दो,

जुए के बंधन खोल दो,+

ज़ुल्म सहनेवालों को रिहा करो,+

हर जुए के दो टुकड़े कर दो।

 7 अपनी रोटी भूखों के साथ बाँटो,+

गरीब और बेघर लोगों को अपने घर में पनाह दो,

किसी को नंगा देखकर उसे तन ढकने के लिए कपड़े दो,+

अपने जाति भाइयों से मुँह मत मोड़ो।

 8 तब तुम्हारी रौशनी सुबह की किरणों की तरह चमकेगी+

और जल्द ही तुम चंगे हो जाओगे।

नेकी तुम्हारे आगे-आगे चलेगी

और यहोवा का तेज तुम्हारी रक्षा के लिए पीछे-पीछे आएगा।+

 9 तुम यहोवा से फरियाद करोगे और वह तुम्हें जवाब देगा,

तुम मदद के लिए उसे पुकारोगे और वह कहेगा, ‘मैं यहाँ हूँ।’

अगर तुम अपने बीच से जुआ फेंक दो,

दूसरों पर उँगली उठाना बंद करो, उनके बारे में गलत बातें बोलना छोड़ दो,+

10 अगर तुम किसी भूखे को वह चीज़ दो जो खुद तुम्हें चाहिए+

और सताए हुओं का पूरा खयाल रखो,

तब तुम्हारी रौशनी अँधेरे में भी चमकेगी

और तुम्हारा अंधकार, भरी दोपहरी की तरह जगमगाएगा।+

11 यहोवा हमेशा तुम्हारे आगे-आगे चलेगा

और सूखे देश में भी तुम्हें तृप्त करेगा,+

वह तुम्हारी हड्डियों में जान फूँक देगा

और तुम सिंचे हुए बाग की तरह हरे-भरे हो जाओगे,+

उस सोते की तरह हो जाओगे जो कभी नहीं सूखता।

12 तुम्हारे लिए पुराने खंडहर फिर से बनाए जाएँगे,+

जो नींव सदियों से उजाड़ पड़ी हैं उन्हें दोबारा डाला जाएगा।+

तुम्हें टूटी शहरपनाह की मरम्मत करनेवाला कहा जाएगा,+

उन रास्तों का बनानेवाला कहा जाएगा, जिनके आस-पास फिर से लोग बसेंगे।

13 अगर तुम सब्त के दिन, मेरे पवित्र दिन अपनी ख्वाहिशें पूरी करने से दूर रहो,+

इसे अपार खुशी का दिन, यहोवा का पवित्र दिन मानकर इसका आदर करो,+

अपनी ख्वाहिशें पूरी करने और बेकार की बातें करने के बजाय इस दिन को खास समझो,

14 तब तुम्हें यहोवा के कारण अपार खुशी मिलेगी।

तब मैं धरती की ऊँची-ऊँची जगहों को तुम्हारे अधीन कर दूँगा+

और तुम्हारे पुरखे की ज़मीन से तुम्हें उपज खिलाऊँगा,*

हाँ, याकूब की विरासत की ज़मीन से।+

यह बात यहोवा ने कही है।”

59 देखो! यहोवा का हाथ इतना छोटा नहीं कि बचा न सके,+

न ही उसके कान इतने कमज़ोर हैं कि वह सुन न सके।+

 2 तुम्हारे गुनाह ही तुम्हें अपने परमेश्‍वर से दूर ले गए हैं।+

तुम्हारे पापों की वजह से ही उसने अपना मुँह फेर लिया है

और वह तुम्हारी नहीं सुनना चाहता।+

 3 तुम्हारे हाथ खून से दूषित हैं+

और तुम्हारी उँगलियाँ गुनाह से।

तुम्हारे होंठ झूठ बोलते हैं+ और तुम्हारी ज़बान बुरी बातें।

 4 कोई भी नेकी की बातों का ऐलान नहीं करता,+

कोई भी सच बोलने के लिए अदालत नहीं जाता,

लोग खोखली बातों पर भरोसा करते हैं+ और बेकार की बातें करते हैं।

उन्हें मुसीबत का गर्भ ठहरता है और वे बुराई को जन्म देते हैं।+

 5 वे ज़हरीले साँप के अंडे देते हैं,

अंडा फूटने पर उसमें से ज़हरीला साँप निकलता है।

जो उन अंडों को खाएगा, मर जाएगा।

वे लोग मकड़ी का जाल भी बुनते हैं,+

 6 मगर वह कपड़े का काम नहीं देता,

वे जो कुछ बुनते हैं, उससे अपना तन नहीं ढक सकते।+

उनके काम तबाही मचाते हैं,

वे खून-खराबा करते हैं।+

 7 उनके पैर बुराई की तरफ दौड़ते हैं,

वे मासूमों का खून बहाने के लिए फुर्ती करते हैं,+

वे अपने मन में बुरा करने की सोचते हैं,

दूसरों को बरबाद करना और दुख देना ही उनका काम है।+

 8 वे अमन की राह पर चलना जानते ही नहीं,

उनकी डगर में इंसाफ नाम की कोई चीज़ नहीं।+

उन्होंने अपने रास्ते टेढ़े-मेढ़े बना लिए हैं,

जो कोई उन पर चलता है उसे शांति नहीं मिलेगी।+

 9 इसीलिए इंसाफ हमसे कोसों दूर है

और नेकी हम तक पहुँच नहीं पाती।

हम रौशनी की उम्मीद करते रहते हैं, पर अँधेरा ही मिलता है,

हम उजाले की आस देखते रहते हैं, मगर घुप अँधेरे में चलते हैं।+

10 हम अंधों की तरह दीवार टटोलते हैं,

ऐसे टटोलते हुए चलते हैं मानो हमारी आँखें ही न हों।+

भरी दोपहरी में ऐसे ठोकर खाते हैं मानो शाम का अँधेरा छा गया हो।

ताकतवरों के बीच हम ज़िंदा लाश बनकर रह गए हैं।

11 हम सब भालू की तरह गुर्राते हैं,

फाख्ते की तरह विलाप करते हैं।

हम न्याय की उम्मीद करते हैं, मगर हमें न्याय नहीं मिलता,

उद्धार की आस लगाते हैं, मगर वह हमसे कोसों दूर है,

12 क्योंकि हमारे अपराध तेरे सामने अनगिनत हैं,+

हमारा एक-एक पाप हमारे खिलाफ गवाही दे रहा है।+

हम अपने अपराधों से अनजान नहीं,

हमें अपने गुनाह अच्छी तरह मालूम हैं।+

13 हमने अपराध किया और यहोवा को जानने से इनकार किया,

अपने परमेश्‍वर के पीछे चलना छोड़ दिया।

हमने अत्याचार और विद्रोह करने की सोची,+

अपने दिल में झूठी बातें गढ़ीं और हम उन्हें ज़बान पर भी लाए।+

14 न्याय को खदेड़ दिया गया है+

और नेकी दूर हटकर खड़ी हो गयी है,+

क्योंकि शहर के चौक पर सच्चाई* दम तोड़ रही है

और सीधाई अंदर नहीं आ पा रही है।

15 सच्चाई* खत्म हो चुकी है,+

बुरी राह छोड़नेवालों को लूटा जा रहा है।

यह देखकर यहोवा को बहुत गुस्सा आया

कि कहीं भी न्याय नहीं रहा।+

16 उसे ताज्जुब हुआ कि कोई कुछ नहीं कर रहा,

उनकी तरफ से बोलनेवाला एक भी आदमी नहीं।

तब उसने अपने बाज़ू की ताकत से उद्धार दिलाया*

और उसकी नेकी ने उसका साथ दिया।

17 उसने नेकी का बख्तर पहना,

सिर पर उद्धार* का टोप रखा,+

बदला लेने की पोशाक

और जोश का चोगा पहन लिया।+

18 वह उन्हें उनके कामों का फल देगा:+

अपने शत्रुओं पर क्रोध बरसाएगा, दुश्‍मनों को दंड देगा+

और द्वीपों को उनके किए की सज़ा देगा।

19 तब पश्‍चिम के लोग यहोवा के नाम का डर मानेंगे,

पूरब के लोग उसकी महिमा देखकर खौफ खाएँगे,

क्योंकि वह नदी की तेज़ धारा की तरह चला आएगा,

मानो यहोवा की ज़ोरदार शक्‍ति उसे बहाकर ला रही हो।

20 यहोवा ऐलान करता है, “सिय्योन में छुड़ानेवाला+ आ रहा है!+

वह याकूब के उन वंशजों के लिए आ रहा है, जिन्होंने अपराध छोड़ दिया है।”+

21 यहोवा कहता है, “मैं उनके साथ यह करार करूँगा:+ मेरी पवित्र शक्‍ति जो तुझ पर ठहरी है और मेरी बातें जो मैंने तेरे मुँह में डाली हैं, वे तेरे, तेरे बच्चों और पोतों के मुँह से कभी नहीं ली जाएँगी, न तो आज और न ही आगे कभी।” यह बात यहोवा ने कही है।

60 “हे औरत, उठ!+ उठकर रौशनी चमका क्योंकि तेरी रौशनी आ गयी है,

यहोवा की महिमा का तेज तुझ पर चमका है।+

 2 देख! धरती पर अँधेरा होनेवाला है,

राष्ट्रों पर घोर अंधकार छानेवाला है।

मगर यहोवा तुझ पर उजाला चमकाएगा,

उसकी महिमा का तेज तुझ पर दिखायी देगा।

 3 राष्ट्रों के लोग तेरी रौशनी की तरफ आएँगे+

और राजा+ तेरे ऐश्‍वर्य और वैभव* की ओर।+

 4 आँख उठाकर अपने चारों तरफ देख!

वे सब इकट्ठा हो गए हैं और तेरे पास आ रहे हैं,

तेरे बेटे दूर-दूर से आ रहे हैं,+

तेरी बेटियों को गोद में उठाकर लाया जा रहा है।+

 5 उस वक्‍त तेरा चेहरा दमक उठेगा,+

तेरा दिल उछल पड़ेगा और खुशी से भर जाएगा,

क्योंकि समुंदर की दौलत तेरे पास चली आएगी,

राष्ट्रों का खज़ाना तेरे पास आएगा।+

 6 तेरा देश* ऊँटों के कारवाँ से भर जाएगा,

हाँ, मिद्यान और एपा+ के जवान ऊँट वहाँ उमड़ पड़ेंगे।

शीबा के सारे लोग आएँगे,

वे अपने साथ सोना और लोबान लाएँगे,

आकर यहोवा के गुण गाएँगे।+

 7 केदार+ की सारी भेड़-बकरियाँ तेरे पास इकट्ठा होंगी,

नबायोत+ के मेढ़े तेरी सेवा में हाज़िर होंगे।

वे मेरी वेदी पर चढ़ाए जाएँगे और मैं उन्हें कबूल करूँगा,+

मैं अपने शानदार भवन की शोभा बढ़ाऊँगा।+

 8 ये कौन हैं जो बादलों की तरह उड़े चले आ रहे हैं?

कबूतरों की तरह अपने कबूतरखाने की ओर आ रहे हैं?

 9 द्वीप मुझ पर आस लगाएँगे।+

तरशीश के जहाज़ सबसे आगे हैं,*

वे तेरे बेटों को दूर-दूर से ला रहे हैं,+

उनका सोना-चाँदी भी साथ ला रहे हैं

कि तेरे परमेश्‍वर यहोवा के नाम की, इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर की बड़ाई हो,

क्योंकि परमेश्‍वर तेरी शोभा बढ़ाएगा।+

10 परदेसी तेरी शहरपनाह बनाएँगे,

उनके राजा तेरी सेवा करेंगे।+

मैंने क्रोध से भरकर तुझे मारा था,

पर अब तुझसे खुश होकर तुझ पर दया करूँगा।+

11 तेरे फाटक दिन-रात खुले रहेंगे,+

वे कभी बंद नहीं किए जाएँगे

ताकि राष्ट्रों की दौलत तेरे पास लायी जा सके

और ऐसा करने में उनके राजा सबसे आगे होंगे।+

12 जो राष्ट्र और राज्य तेरी सेवा नहीं करेंगे, उन्हें मिटा दिया जाएगा,

उन राष्ट्रों को खाक में मिला दिया जाएगा।+

13 सनोवर, एश और सरो के पेड़,+

हाँ, लबानोन की शान, खुद चलकर तेरे पास आएगी+

ताकि मेरे पवित्र-स्थान की शोभा बढ़े।

मैं अपने पाँव की जगह को महिमा से भर दूँगा।+

14 जिन्होंने तुझे सताया था, उनके बेटे आकर तेरे आगे झुकेंगे,

तेरा अपमान करनेवाले तेरे पैरों पर गिरकर तुझे प्रणाम करेंगे।

उन्हें कहना पड़ेगा कि तू यहोवा की नगरी है,

इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर की सिय्योन नगरी।+

15 तुझे छोड़ दिया गया, तुझसे नफरत की गयी और तुझमें से होकर कोई नहीं जाता,+

पर अब मैं तुझे हमेशा के लिए गर्व करने की वजह बना दूँगा,

तू पीढ़ी-पीढ़ी तक खुशियाँ मनाने की वजह बन जाएगी।+

16 तू राष्ट्रों का दूध पीएगी,+

हाँ, राजाओं की छाती से पीएगी+

और तू जान लेगी कि मैं यहोवा, तेरा उद्धारकर्ता हूँ,

याकूब का शक्‍तिशाली परमेश्‍वर, तेरा छुड़ानेवाला हूँ।+

17 मैं ताँबे के बदले सोना,

लोहे के बदले चाँदी,

लकड़ी के बदले ताँबा

और पत्थर के बदले लोहा लाऊँगा।

मैं शांति को ठहराऊँगा कि तेरी निगरानी करे

और नेकी तुझे काम सौंपेगी।+

18 तेरे देश में फिर कभी हिंसा नहीं होगी,

न तेरी सीमाओं के अंदर तबाही और बरबादी मचेगी।+

तू अपनी शहरपनाह का नाम उद्धार+ और अपने फाटकों का नाम तारीफ रखेगी।

19 तेरी रौशनी न दिन के सूरज से होगी,

न चाँद की चाँदनी से,

बल्कि यहोवा सदा के लिए तेरी रौशनी बनेगा+

और तेरा परमेश्‍वर तेरी शोभा ठहरेगा।+

20 अब से तेरा सूरज कभी नहीं डूबेगा,

न तेरे चाँद की चाँदनी फीकी पड़ेगी।

मातम मनाने के तेरे दिन खत्म हुए,+

क्योंकि यहोवा सदा के लिए तेरी रौशनी बनेगा।+

21 तेरे सभी लोग नेक होंगे,

वे इस देश में सदा बसे रहेंगे।

वे मेरे लगाए हुए पौधे और मेरे हाथ के काम ठहरेंगे,+

जिनसे मेरी महिमा हो।+

22 थोड़े-से-थोड़ा, एक हज़ार हो जाएगा

और छोटे-से-छोटा, ताकतवर राष्ट्र बन जाएगा।

मैं यहोवा, ठीक समय पर इस काम में तेज़ी लाऊँगा।”

61 सारे जहान के मालिक यहोवा की पवित्र शक्‍ति मुझ पर है,+

यहोवा ने मेरा अभिषेक किया है कि मैं दीन लोगों को खुशखबरी सुनाऊँ।+

उसने मुझे भेजा है ताकि मैं टूटे मनवालों की मरहम-पट्टी करूँ,

बंदियों को रिहाई का पैगाम दूँ,

कैदियों को संदेश दूँ कि उनकी आँखें खोली जाएँगी,+

 2 यहोवा की मंज़ूरी पाने के साल का प्रचार करूँ,

हमारे परमेश्‍वर के बदला लेने के दिन+ के बारे में बताऊँ,

शोक मनानेवाले सभी लोगों को दिलासा दूँ,+

 3 सिय्योन पर मातम मनानेवालों को

राख के बजाय सुंदर पगड़ी दूँ,

मातम के बजाय उन पर हर्ष का तेल मलूँ

और निराश मन के बजाय उन्हें तारीफ का कपड़ा पहनाऊँ।

वे नेकी के बड़े-बड़े पेड़ कहलाएँगे,

यहोवा के लगाए पेड़ ताकि उसकी महिमा हो सके।*+

 4 वे पुराने खंडहरों को फिर से खड़ा करेंगे,

लंबे समय से उजाड़ पड़ी जगहों को दोबारा बसाएँगे,+

तहस-नहस हो चुके शहरों की मरम्मत करेंगे,+

हाँ, उन जगहों की जो पीढ़ी-पीढ़ी से उजाड़ पड़ी थीं।+

 5 “पराए लोग आकर तेरे झुंड के चरवाहे बनेंगे,

परदेसी+ तेरे खेत के किसान बनेंगे और तेरे अंगूरों के बाग के माली होंगे।+

 6 मगर तुम यहोवा के याजक कहलाओगे,+

वे तुम्हें हमारे परमेश्‍वर के सेवक बुलाएँगे।

तुम राष्ट्रों की दौलत का मज़ा लोगे+

और उनकी शान* के बारे में गर्व से बताओगे।

 7 शर्मिंदगी की जगह अब मेरे लोगों को दुगना भाग मिलेगा,

बेइज़्ज़ती की जगह वे अपना हिस्सा पाकर जयजयकार करेंगे,

हाँ, उन्हें अपने देश में दुगना भाग मिलेगा।+

उनकी खुशी का कोई अंत नहीं होगा।+

 8 क्योंकि मैं यहोवा, न्याय से प्यार करता हूँ,+

मुझे लूटपाट और अन्याय से नफरत है।+

मैं पूरी ईमानदारी से उन्हें उनका इनाम दूँगा

और उनके साथ सदा का करार करूँगा।+

 9 उनकी संतान को सभी राष्ट्र

और उनके वंशजों को देश-देश के लोग जान लेंगे।+

देखनेवाला हर कोई पहचान लेगा

कि ये वही संतान हैं, जिन पर यहोवा की आशीष है।”+

10 मैं यहोवा के कारण खुशियाँ मनाऊँगा,

मेरा मन अपने परमेश्‍वर के कारण झूम उठेगा,+

क्योंकि उसने मुझे उद्धार की पोशाक पहनायी है।+

जैसे एक दूल्हा, याजक की तरह पगड़ी पहनता है,+

जैसे दुल्हन गहनों से खुद को सजाती है,

वैसे ही उसने मुझे नेकी का बागा पहनाया है।

11 जिस तरह धरती फसल उगाती है

और बाग बीजों को अंकुरित करता है,

उसी तरह सारे जहान का मालिक यहोवा,

सब राष्ट्रों के सामने अपनी नेकी+ और तारीफ बढ़ाएगा।+

62 मैं सिय्योन की खातिर तब तक चुप नहीं रहूँगा,+

यरूशलेम की खातिर तब तक शांत नहीं बैठूँगा,

जब तक उसकी नेकी तेज़ रौशनी की तरह नहीं चमकती,+

जब तक उसका उद्धार जलती मशाल की तरह नहीं दिखता।+

 2 “हे औरत, देश-देश के लोग तेरी नेकी

और सब राजा तेरी शान देखेंगे।+

तुझे एक नए नाम से बुलाया जाएगा,+

उस नाम से, जो खुद यहोवा तुझे देगा।

 3 तू यहोवा के हाथ में खूबसूरत ताज

और अपने परमेश्‍वर के हाथ में शाही पगड़ी ठहरेगी।

 4 तुझे फिर कभी छोड़ी हुई औरत नहीं कहा जाएगा,+

न कभी तेरे देश को उजाड़ कहा जाएगा,+

बल्कि तुझे इस नाम से बुलाया जाएगा, ‘मेरी खुशी उसमें है’+

और तेरे देश को ‘ब्याही हुई’ कहा जाएगा,

क्योंकि यहोवा तुझमें खुशी पाएगा

और तेरा देश ऐसा होगा मानो उसकी शादी हुई हो।

 5 जैसे एक जवान आदमी किसी कुँवारी से शादी करता है,

वैसे ही तेरे लोग तुझसे शादी करेंगे।

जैसे दूल्हा अपनी दुल्हन पाकर फूला नहीं समाता,

वैसे ही तेरा परमेश्‍वर तुझे पाकर फूला न समाएगा।+

 6 हे यरूशलेम, तेरी शहरपनाह पर मैंने पहरेदार बिठाए हैं।

वे कभी चुप नहीं रहेंगे, फिर चाहे दिन हो या रात।

हे यहोवा की तारीफ करनेवालो,

चैन से मत बैठो,

 7 उसे पुकारते रहो, जब तक कि वह यरूशलेम को मज़बूती से कायम न कर दे,

जब तक कि वह पूरी धरती पर उस नगरी का नाम न फैला दे।”+

 8 यहोवा ने अपना दायाँ हाथ, अपना शक्‍तिशाली बाज़ू उठाकर यह शपथ खायी है,

“मैं फिर कभी तेरा अनाज दुश्‍मनों को नहीं खाने दूँगा,

न परदेसी तेरी नयी दाख-मदिरा पीएँगे, जिसके लिए तूने कड़ी मेहनत की है।+

 9 मगर अनाज बटोरनेवाले ही उसे खाएँगे और यहोवा का गुणगान करेंगे,

अंगूर इकट्ठा करनेवाले ही मेरे पवित्र आँगनों में इसे पीएँगे।”+

10 निकल जाओ, फाटकों से बाहर निकल जाओ!

लोगों के लिए रास्ता तैयार करो,+

पत्थरों को हटाकर राजमार्ग बनाओ,+

देश-देश के लोगों के लिए झंडा खड़ा करो।+

11 सुनो! यहोवा ने धरती के छोर तक ऐलान किया है,

“सिय्योन की बेटी से कहो,

‘तेरा उद्धार होनेवाला है!+

देख! परमेश्‍वर अपने साथ इनाम लेकर आ रहा है,

जो मज़दूरी वह देगा, वह उसके पास है।’”+

12 वे यहोवा के छुड़ाए हुए, उसके पवित्र लोग कहलाएँगे+

और तेरे बारे में कहा जाएगा कि ‘तू अपनायी गयी है, तू वह नगरी है जिसे परमेश्‍वर ने नहीं त्यागा।’+

63 यह कौन है जो एदोम+ से चला आ रहा है?

यह कौन है जो बोसरा+ से उजले* कपड़ों में,

शानदार पोशाक पहने ज़बरदस्त ताकत के साथ चला आ रहा है?

“यह मैं हूँ जो नेकी की बातें कहता हूँ,

जो उद्धार दिलाने की ज़बरदस्त ताकत रखता हूँ।”

 2 तेरे कपड़े लाल क्यों हैं?

तेरे कपड़े हौद में अंगूर रौंदनेवाले की तरह क्यों हैं?+

 3 “मैंने अकेले ही हौद में अंगूर रौंदे हैं।

देश-देश के लोगों में से कोई भी मेरे साथ नहीं था।

मैं अपने क्रोध में उनको रौंदता गया,

अपनी जलजलाहट में उन्हें कुचलता गया।+

उनके खून के छींटें मेरी पोशाक पर आ पड़े,

इससे मेरे पूरे कपड़ों पर धब्बे लग गए।

 4 मैंने बदला लेने का दिन ठहरा दिया था,+

वह साल तय कर दिया था जब मैं अपने लोगों को छुड़ाऊँगा।

 5 मैंने यहाँ-वहाँ देखा मगर मदद के लिए कोई आगे नहीं आया,

मुझे बड़ी हैरानी हुई कि किसी ने मेरा साथ नहीं दिया।

तब मैंने अपने बाज़ू की ताकत से उद्धार दिलाया*+

और मेरी जलजलाहट ने मेरा साथ दिया।

 6 मैंने अपने क्रोध में देश-देश के लोगों को कुचल डाला,

अपनी जलजलाहट का जाम पिलाकर उन्हें धुत्त कर दिया+

और उनका खून ज़मीन पर उँडेल दिया।”

 7 मैं यहोवा के अटल प्यार का ऐलान करूँगा,

यहोवा के उन कामों का बखान करूँगा जो तारीफ के लायक हैं,

क्योंकि यहोवा ने हमारे लिए क्या-कुछ नहीं किया।+

अपनी दया और महान अटल प्यार की वजह से,

उसने इसराएल के घराने पर बहुत उपकार किए हैं।

 8 परमेश्‍वर ने कहा, “ये मेरे लोग हैं, मेरे बेटे हैं, ये कभी विश्‍वासघात नहीं करेंगे।”+

और वह उनका उद्धारकर्ता बन गया।+

 9 जब-जब वे तकलीफ में थे, उसे भी तकलीफ हुई+

और उन्हें बचाने के लिए उसने अपना दूत* भेजा।+

उसने प्यार और करुणा की वजह से उन्हें छुड़ाया,+

प्राचीन समय से उन्हें गोद में लेकर फिरता रहा।+

10 लेकिन उन्होंने बगावत की+ और उसकी पवित्र शक्‍ति को दुखी किया।+

इसलिए वह उनका दुश्‍मन बन गया+ और उनसे लड़ा।+

11 तब वे पुराने दिनों को याद करने लगे,

परमेश्‍वर के सेवक मूसा के दिनों को और कहने लगे,

“कहाँ है वह, जो अपने लोगों और उनके चरवाहों+ को समुंदर से निकाल लाया था?+

जिसने अपनी पवित्र शक्‍ति मूसा पर* उँडेली थी?+

12 कहाँ है वह, जिसने अपने शक्‍तिशाली हाथ से मूसा का दायाँ हाथ थामा था?+

जिसने लोगों के सामने पानी को दो हिस्सों में बाँटा था+

कि उसका नाम हमेशा तक याद रखा जाए?+

13 कहाँ है वह, जिसने गहरे सागर के बीच उन्हें चलाया था

और वे बिना ठोकर खाए आगे बढ़ते रहे,

जैसे कोई घोड़ा खुले मैदान* में दौड़ रहा हो?

14 फिर यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने उन्हें चैन दिया,+

जैसे मवेशी घाटी के मैदान में बैठकर चैन पाते हैं।”

इस तरह तूने अपने लोगों का मार्गदर्शन किया

कि तेरा नाम गौरवशाली ठहरे।+

15 स्वर्ग से नीचे देख,

अपने ऊँचे बसेरे से, अपने पवित्र और शानदार* निवास से देख।

तू मुझ पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा? अपनी शक्‍ति क्यों नहीं दिखा रहा?

तेरे अंदर करुणा क्यों नहीं जाग रही?+ कहाँ गयी तेरी दया?+

तू क्यों मुझसे यह सब रोके हुए है?

16 तू हमारा पिता है।+

भले ही अब्राहम हमें जानने से

और इसराएल हमें पहचानने से इनकार कर दे,

मगर हे यहोवा, तू हमारा पिता है।

प्राचीन समय से तू ही हमारा छुड़ानेवाला है और यही तेरा नाम है।+

17 हे यहोवा, तूने क्यों हमें अपनी राहों से भटकने दिया?*

क्यों हमारे दिलों को कठोर होने दिया* कि हमने तेरा डर मानना छोड़ दिया?+

लौट आ, अपने सेवकों की खातिर लौट आ!

उन गोत्रों की खातिर लौट आ, जो तेरी जागीर हैं।+

18 तेरा देश कुछ समय के लिए तेरे पवित्र लोगों के अधिकार में था,

फिर हमारे दुश्‍मनों ने आकर तेरा पवित्र-स्थान रौंद डाला।+

19 अरसों तक हम ऐसे थे मानो तूने हम पर राज ही न किया हो,

मानो हम कभी तेरे नाम से बुलाए ही न गए हों।

64 काश! तू आकाश को फाड़कर नीचे उतर आए

और तेरे सामने पहाड़ काँप उठें।

 2 यह ऐसा होगा जैसे आग झाड़-झंखाड़ को जला देती है,

जैसे आग पानी को उबाल देती है,

तब तेरे दुश्‍मन तेरा नाम जान जाएँगे

और देश-देश के लोग तेरे सामने थरथराएँगे।

 3 तूने हमारी उम्मीद से बढ़कर विस्मयकारी काम किए,+

तू नीचे आया और पहाड़ तेरे सामने काँप उठे।+

 4 बीते समय से न तो कभी आँखों ने देखा है,

न कानों ने सुना है कि तुझे छोड़ कोई दूसरा परमेश्‍वर है,

जो उस पर आस लगानेवालों* की खातिर कदम उठाता है।+

 5 तू उन लोगों की मदद करने आता है,

जो खुशी-खुशी सही काम करते हैं,+

जो तुझे याद करते हैं और तेरी राहों पर चलते हैं।

पर तू हम पर भड़क उठा क्योंकि हम पाप-पर-पाप कर रहे थे,+

लंबे समय से इनमें लगे हुए थे।

भला हम कैसे बच सकते हैं!

 6 हम सब-के-सब अशुद्ध इंसान जैसे हो गए हैं

और हमारे सारे नेक काम माहवारी के कपड़े जैसे।+

हम पत्तों की तरह मुरझा जाएँगे

और हमारे गुनाह हवा की तरह हमें उड़ा ले जाएँगे।

 7 कोई भी इंसान तेरा नाम लेकर तुझे नहीं पुकारता,

न तुझसे लिपटे रहने के लिए तरसता है,

इसलिए तूने हमसे मुँह फेर लिया है,+

हमें अपने गुनाहों की वजह से घुल-घुलकर मरने के लिए छोड़ दिया है।

 8 फिर भी हे यहोवा, तू हमारा पिता है।+

हम मिट्टी के लोंदे हैं और तू हमारा कुम्हार* है,+

हम सब तेरे हाथ के काम हैं।

 9 हे यहोवा, हमसे इतना क्रोधित न हो,+

हमारे गुनाहों को हमेशा के लिए याद न रख।

मेहरबानी करके हम पर नज़र डाल, हम सब तेरे ही लोग हैं।

10 तेरे पवित्र शहर उजाड़ पड़े हैं,

सिय्योन सुनसान हो चुका है,

यरूशलेम तबाह हो गया है।+

11 हमारा पवित्र और शानदार* मंदिर,

जहाँ हमारे बाप-दादा तेरा गुणगान करते थे,

आग से फूँक दिया गया है।+

जो चीज़ें हमें प्यारी थीं, वे सब उजाड़ पड़ी हैं।

12 हे यहोवा, यह सब देखकर भी क्या तू खुद को रोके रहेगा?

क्या तू खामोश रहेगा और हमें दुखों से घिरा रहने देगा?+

65 “जिन्होंने मेरे बारे में नहीं पूछा, उन्हें मैं मिल गया,

जिन्होंने मुझे नहीं ढूँढ़ा, उन्होंने मुझे पा लिया।+

जो राष्ट्र मेरा नाम नहीं पुकारता, उससे मैंने कहा, ‘मैं यहाँ हूँ!’+

 2 मैं ऐसे हठीले लोगों+ के सामने दिन-भर हाथ फैलाए रहा,

जो बुरी राह पर चलते हैं+ और अपने मन की करते हैं।+

 3 ये लोग खुलेआम मेरी बेइज़्ज़ती करते हैं,+

बगीचों में बलिदान चढ़ाते हैं,+ ईंटों पर बलि चढ़ाते हैं ताकि धुआँ उठे,

 4 कब्रों के बीच बैठते हैं,+

छिपने की जगहों* में रात बिताते हैं,

सूअर का माँस खाते हैं+

और अपने बरतनों में अशुद्ध* चीज़ों का शोरबा रखते हैं।+

 5 वे कहते हैं, ‘दूर खड़ा रह, मेरे पास मत आ,

क्योंकि मैं तुझसे पवित्र हूँ।’*

ये लोग मेरी नाक में धुएँ की तरह हैं और वे दिन-भर मुझे गुस्सा दिलाते हैं,

जैसे कोई आग दिन-भर जलती रहती है।

 6 देखो! यह सब मेरे सामने लिखा गया,

मैं चुप नहीं बैठूँगा,

उनके कामों का बदला उन्हें चुकाऊँगा,+

हाँ, उन्हें पूरा-पूरा बदला दूँगा,

 7 उन गुनाहों के लिए जो उन्होंने और उनके पुरखों ने किए हैं।+

उन्होंने पहाड़ों पर बलिदान चढ़ाए कि उनसे धुआँ उठे,

पहाड़ियों पर मेरा अपमान किया,+

इसलिए सबसे पहले मैं उन्हें उनके कामों का पूरा-पूरा बदला दूँगा।”

यह बात यहोवा ने कही है।

 8 यहोवा कहता है,

“अंगूर के गुच्छे से अगर नयी दाख-मदिरा मिल सकती है तो लोग कहते हैं,

‘उसे नष्ट मत करो, उसमें अब भी कुछ अच्छा* बाकी है।’

अपने सेवकों की खातिर भी मैं कुछ ऐसा करूँगा,

मैं उन सबका नाश नहीं करूँगा।+

 9 मैं याकूब से एक वंश निकालूँगा

और यहूदा से अपने पहाड़ों के लिए एक वारिस लाऊँगा।+

मेरे चुने हुए लोग मेरे देश को अपने अधिकार में कर लेंगे

और मेरे सेवक वहाँ बसेंगे।+

10 शारोन के मैदान+ भेड़ों के लिए चरागाह बन जाएँगे,

आकोर घाटी+ गाय-बैलों के आराम करने की जगह बन जाएगी,

यह सब मेरे उन लोगों के लिए होगा जो मेरी खोज में रहते हैं।

11 मगर तुम उनमें से हो जिन्होंने यहोवा को छोड़ दिया है,+

तुम मेरे पवित्र पहाड़ को भूल गए,+

तुम सौभाग्य देवता के लिए मेज़ सजाते हो,

भविष्य बतानेवाले देवता के लिए मसालेवाली दाख-मदिरा का प्याला भरते हो।

12 मैं बताता हूँ तुम्हारा भविष्य क्या होगा,

तुम तलवार से मारे जाओगे,+ घात होने के लिए अपना सिर झुकाओगे,+

क्योंकि मैंने तुम्हें बुलाया था मगर तुमने कोई जवाब नहीं दिया,

मैंने तुम्हें समझाया था मगर तुमने मेरी एक न सुनी।+

तुम उन्हीं कामों में लगे रहे जो मेरी नज़र में बुरे थे

और तुमने वही चुना जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं।”+

13 इसलिए सारे जहान का मालिक यहोवा कहता है,

“देखो! मेरे सेवक खाएँगे, मगर तुम भूखे रहोगे,+

मेरे सेवक पीएँगे,+ मगर तुम प्यासे रहोगे,

मेरे सेवक खुशियाँ मनाएँगे,+ मगर तुम शर्मिंदा होगे,+

14 देखो! मेरे सेवक जयजयकार करेंगे क्योंकि उनका दिल खुश होगा,

मगर तुम रोओगे क्योंकि तुम्हारा दिल दुखी होगा,

तुम ज़ोर-ज़ोर से रोओगे क्योंकि तुम्हारा मन निराश होगा।

15 तुम अपने पीछे ऐसा नाम छोड़ जाओगे, जिसे मेरे चुने हुए लोग शाप की तरह इस्तेमाल करेंगे।

सारे जहान का मालिक यहोवा तुममें से हरेक को मौत के घाट उतार देगा,

मगर अपने सेवकों को मैं* एक दूसरे नाम से बुलाऊँगा।+

16 इसलिए धरती पर जो कोई अपने लिए आशीष माँगेगा,

वह सच्चाई के* परमेश्‍वर से आशीष पाएगा

और धरती पर जो कोई शपथ खाएगा,

वह सच्चाई के* परमेश्‍वर के नाम से शपथ खाएगा।+

पुराने दुख भुला दिए जाएँगे,

वे मेरी आँखों से ओझल हो जाएँगे।+

17 देखो! मैं नए आकाश और नयी पृथ्वी की सृष्टि कर रहा हूँ,+

फिर पुरानी बातें याद न आएँगी,

न ही उनका खयाल कभी तुम्हारे दिल में आएगा।+

18 इसलिए मैं जो रच रहा हूँ, उस पर सदा खुशी मनाओ और मगन हो।

देखो! मैं यरूशलेम को रच रहा हूँ कि वह खुशी का कारण ठहरे

और उसके लोगों को भी कि वे मगन होने का कारण बनें।+

19 मैं यरूशलेम के लिए खुशियाँ मनाऊँगा, अपने लोगों के लिए मगन होऊँगा,+

फिर कभी उस नगरी में न रोने की आवाज़ सुनायी देगी न दर्द-भरी पुकार।”+

20 “वहाँ ऐसा नहीं होगा कि कोई शिशु थोड़े दिन जीकर मर जाए,

बूढ़ा भी अपनी पूरी उम्र जीएगा।

अगर कोई सौ साल की उम्र में मरेगा, तो कहा जाएगा कि वह भरी जवानी में ही मर गया

और एक पापी चाहे सौ साल का भी हो, शाप मिलने पर वह मर जाएगा।*

21 वे घर बनाकर उसमें बसेंगे,+

अंगूरों के बाग लगाएँगे और उनका फल खाएँगे।+

22 ऐसा नहीं होगा कि वे घर बनाएँ और कोई दूसरा उसमें रहे,

वे बाग लगाएँ और कोई दूसरा उसका फल खाए,

क्योंकि मेरे लोगों की उम्र, पेड़ों के समान होगी,+

मेरे चुने हुए अपनी मेहनत के फल का पूरा-पूरा मज़ा लेंगे।

23 उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी,+

न उनके बच्चे दुख उठाने के लिए पैदा होंगे,

क्योंकि वे और उनके बच्चे यहोवा का वंश* हैं,

जिन्हें उसने आशीष दी है।+

24 उनके बुलाने से पहले ही मैं उन्हें जवाब दूँगा

और जब वे अपनी बातें बताएँगे, तो मैं उनकी सुनूँगा।

25 भेड़िया और मेम्ना साथ-साथ चरेंगे,

शेर, बैल की तरह घास-फूस खाएगा+

और साँप मिट्टी खाया करेगा।

मेरे सारे पवित्र पर्वत पर वे न तो किसी का नुकसान करेंगे, न ही तबाही मचाएँगे।”+ यह बात यहोवा ने कही है।

66 यहोवा कहता है,

“स्वर्ग मेरी राजगद्दी है और पृथ्वी मेरे पाँवों की चौकी।+

तो फिर तुम मेरे लिए कैसा भवन बनाओगे?+

मेरे रहने के लिए कहाँ जगह बनाओगे?”+

 2 यहोवा ऐलान करता है,

“मेरे ही हाथों ने इन सब चीज़ों को रचा है और ये वजूद में आयीं।+

फिर भी मैं उस इंसान पर ध्यान दूँगा,

जो दीन है और टूटे मन का है और जो मेरी बातों पर थरथराता है।*+

 3 बैल की बलि चढ़ानेवाला, उस इंसान के समान है जो किसी का खून करता है,+

भेड़ की बलि चढ़ानेवाला, उसके समान है जो कुत्ते की गरदन तोड़ता है,+

भेंट का चढ़ावा चढ़ानेवाला मानो सूअर का खून चढ़ा रहा हो!+

यादगार के लिए लोबान जलानेवाला,+ उसके समान है जो मंत्र जपकर आशीर्वाद देता है।*+

उन्होंने अपनी राह खुद चुन ली है,

वे घिनौनी बातों से खुश होते हैं।

 4 इसलिए मैं उन्हें अपने तरीके से सज़ा दूँगा,+

जिन बातों से वे खौफ खाते हैं वही उन पर ले आऊँगा।

क्योंकि जब मैंने उन्हें बुलाया तो किसी ने जवाब नहीं दिया,

जब मैंने उन्हें समझाया तो किसी ने मेरी नहीं सुनी।+

वे उन्हीं कामों में लगे रहे जो मेरी नज़र में बुरे थे

और उन्होंने वही चुना जो मुझे बिलकुल पसंद नहीं।”+

 5 हे यहोवा की बातों पर थरथरानेवालो,* सुनो!

“तुम्हारे भाई जो तुमसे नफरत करते हैं और जिन्होंने मेरे नाम की वजह से तुमसे किनारा कर लिया है,

वे दिखावे के लिए कहते हैं, ‘यहोवा की महिमा हो!’+

मगर जब परमेश्‍वर प्रकट होगा, तब तुम खुशी मनाओगे और वे शर्मिंदा होंगे।”+

 6 सुनो! शहर में होहल्ला मच रहा है, मंदिर से आवाज़ें आ रही हैं!

यहोवा अपने दुश्‍मनों को उनके किए की सज़ा दे रहा है।

 7 इससे पहले कि उस औरत को प्रसव-पीड़ा उठे, उसे बच्चा हो गया,+

इससे पहले कि उसे बच्चा जनने की पीड़ा उठे, उसने एक लड़के को जन्म दे दिया।

 8 क्या किसी ने कभी ऐसी बात सुनी है?

क्या किसी ने कभी ऐसा होते देखा है?

क्या कोई देश एक ही दिन में पैदा हो सकता है?

या कोई राष्ट्र अचानक ही जन्म ले सकता है?

मगर सिय्योन ने प्रसव-पीड़ा उठते ही लड़कों को जन्म दे दिया।

 9 यहोवा कहता है, “क्या मैं एक बच्चे को जन्म के समय तक पहुँचाकर उसे पैदा न होने दूँ?”

तेरा परमेश्‍वर कहता है, “क्या मैं गर्भ में बच्चा ठहराकर उसे गर्भ से निकलने न दूँ?”

10 यरूशलेम से प्यार करनेवाले सब लोगो,+ उसके साथ खुशियाँ मनाओ और झूम उठो।+

उस नगरी पर शोक मनानेवाले सब लोगो, उसके साथ मगन हो,

11 क्योंकि तुम उसकी छाती से दूध पीकर तृप्त होगे और दिलासा पाओगे,

तुम जी-भरकर पीओगे और उसकी बड़ी शान देखकर खुशी पाओगे।

12 यहोवा कहता है,

“मैं उसे नदी के समान शांति दूँगा,+

उमड़ती नदी के समान देश-देश की शान दूँगा।+

तुम्हें दूध पिलाया जाएगा, गोद में उठाया जाएगा

और पैरों पर झुलाया* जाएगा।

13 जैसे एक माँ अपने बेटे को दिलासा देती है,

वैसे ही मैं तुम्हें दिलासा देता रहूँगा+

और यरूशलेम के कारण तुम दिलासा पाओगे।+

14 यह सब देखकर तुम्हारा मन खुशी से झूम उठेगा,

तुम्हारी हड्डियाँ नयी घास की तरह लहलहा उठेंगी।

तब यहोवा का हाथ* उसके सेवकों के लिए प्रकट होगा,

मगर अपने दुश्‍मनों को वह धिक्कारेगा।”+

15 “यहोवा आग की तरह आएगा+

और उसके रथ आँधी की तरह आएँगे।+

वह अपने क्रोध की जलजलाहट में बदला लेने

और आग की ज्वाला के साथ फटकार लगाने आएगा।+

16 यहोवा आग से, अपनी तलवार से,

सब इंसानों को सज़ा देगा।

तब कई लोग यहोवा के हाथों मारे जाएँगे।

17 जो बागों के बीच खड़ी मूरत को पूजने के लिए खुद को तैयार और शुद्ध करते हैं+ और जो सूअर का माँस, घिनौनी चीज़ें और चूहे खाते हैं,+ वे सब एक-साथ मारे जाएँगे।” यह बात यहोवा ने कही है। 18 “क्योंकि मैं उनके कामों और विचारों को जानता हूँ। मैं देश-देश के और अलग-अलग भाषा के लोगों को इकट्ठा करने आ रहा हूँ। वे आएँगे और आकर मेरी महिमा देखेंगे।”

19 “मैं उनके बीच एक निशानी ठहराऊँगा। मैं अपने बचे हुओं में से कुछ लोगों को उन देशों में भेजूँगा, जहाँ न तो किसी ने मेरे बारे में सुना है और न मेरी महिमा देखी है। मैं उन्हें तीरंदाज़ों के देश तरशीश,+ पूल और लूद+ भेजूँगा। और तूबल, यावान+ और दूर-दूर के द्वीपों में भी उन्हें भेजूँगा। वे देश-देश में मेरी महिमा का ऐलान करेंगे।+ 20 जैसे इसराएली साफ बरतनों में यहोवा के भवन में तोहफे लाते हैं, वैसे ही ये लोग सब देशों से तुम्हारे सारे भाइयों को लाएँगे+ और उन्हें यहोवा को तोहफे में देंगे। वे उन्हें घोड़ों, खच्चरों और तेज़ दौड़नेवाले ऊँटों पर, रथों और छतवाली गाड़ियों में लाएँगे और वे सब यरूशलेम में, मेरे पवित्र पहाड़ पर आएँगे।” यह बात यहोवा ने कही है।

21 यहोवा कहता है, “उनमें से मैं कुछ को याजकों और कुछ को लेवियों के तौर पर ले लूँगा।”

22 यहोवा ऐलान करता है, “जैसे मैं नए आकाश और नयी पृथ्वी+ को बना रहा हूँ और वे मेरे सामने हमेशा कायम रहेंगे, उसी तरह तुम्हारा वंश* और तुम्हारा नाम भी बना रहेगा।”+

23 यहोवा कहता है, “एक नए चाँद से लेकर दूसरे नए चाँद तक

और एक सब्त से लेकर दूसरे सब्त तक हर इंसान आकर मुझे दंडवत* करेगा।+

24 वे बाहर जाकर उन आदमियों की लाशें देखेंगे जो मेरे खिलाफ हो गए थे,

उन लाशों में लगे कीड़े नहीं मरेंगे

और उन्हें जलानेवाली आग कभी नहीं बुझेगी।+

उन लाशों से सब लोग घिन करेंगे।”

मतलब “यहोवा उद्धार है।”

या “अपने मालिक को।”

शा., “घाव दबाए गए।”

या “के शासको।”

या “की शिक्षा।”

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

या “गेहूँ से बनी शराब।”

एक तरह का साबुन।

ज़ाहिर है कि ये पेड़ और बगीचे मूर्तिपूजा से जुड़े हैं।

या “शिक्षा।”

शा., “परदेसियों के बच्चों।”

या “तुम्हें चंगा।”

शा., “महिमा से भरी उसकी आँखों।”

या “सुंदर सीपी का तावीज़।”

या “अंदर पहने जानेवाले कपड़े।”

यानी शादी न होने और माँ न बनने का कलंक।

शा., “का मल।”

शा., “दस बित्ता।”

अति. ख14 देखें।

अति. ख14 देखें।

अति. ख14 देखें।

शा., “की शान।”

या “न्याय करके।”

या “फैसला; इरादा।”

या “शिक्षा।”

शा., “पुकारनेवाले की आवाज़ से।”

या “का प्रायश्‍चित हो चुका है।”

या शायद, “वे।”

यानी इसराएल।

मतलब “सिर्फ बचे हुए लोग लौटेंगे।”

या शायद, “उसे घबरा दें।”

मतलब “परमेश्‍वर हमारे साथ है।”

यानी फरात नदी।

शा., “नश्‍वर इंसान की कलम।”

शायद इसका मतलब है, “लूट के माल की तरफ फुर्ती से जाना, उसे बटोरने के लिए फौरन आना।”

शा., “के पास गया।”

यह एक नहर थी।

यानी फरात नदी।

यश 7:14 देखें।

“परमेश्‍वर हमारे साथ है,” इन शब्दों का इब्रानी शब्द है, इम्मानुएल। यश 7:14; 8:8 देखें।

या “शिक्षा।”

या “बेसब्री से इंतज़ार करूँगा।”

शा., “सुबह।”

या “सरकार।”

शा., “उसके कंधों पर होगा।”

शा., “उसका नाम।”

या “सरकार।”

या शायद, “खजूर की डाली और नरकट।”

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

या “सज़ा दी जाएगी?”

या “शान।”

शा., “मैं।”

यानी “अश्‍शूर के,” जिसका ज़िक्र आय. 5 और 24 में आता है।

या “बचे हुए लोग।”

या “न्याय।”

या “नेकी।”

या “हुक्म देकर।”

शा., “पाला-पोसा जानवर।”

या शायद, “बछड़ा और शेर साथ-साथ चरेंगे।”

या “राष्ट्र उसे ढूँढ़ेंगे।”

या “इथियोपिया।”

यानी बैबिलोनिया।

शा., “के कंधे।”

या शायद, “को सुखा देगा।”

यानी फरात नदी।

या “पवित्र शक्‍ति।”

या शायद, “को सात धाराओं में बाँट देगा।”

“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “संगीत बजाओ।”

यहाँ सिय्योन के लोगों को एक औरत बताया गया है।

शा., “मेरे अलग किए गए लोगों को।”

शा., “और केसिल।” यहाँ शायद मृगशिरा और उसके आस-पास के तारामंडल की बात की गयी है।

शा., “घुग्घुओं।”

या “चैन देगा।”

शा., “सब बकरों।”

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

शा., “घर।”

शा., “तेरी जड़।”

शा., “घर।”

शा., “पहाड़ी पीपल।”

या “लाल-लाल अंगूरों से लदी बेलों।”

या शायद, “गरमियों की फसल और फलों की कटाई के वक्‍त तुम्हारे यहाँ युद्ध की ललकार सुनायी दे रही है।”

शा., “तीन साल, जैसे मज़दूरों के होते हैं।” मज़दूरी का समय पहले से तय होता था, एक भी दिन घटाया-बढ़ाया नहीं जाता था।

शा., “मोटा।”

शब्दावली देखें।

यानी यरूशलेम नगरी।

या “मनभावने।”

या “पराए देवता।”

या शायद, “से।”

या “मेम्फिस।”

या शायद, “न खजूर की डाली, न ही नरकट।”

या “सेनापति।”

शा., “को नंगा।”

या “जो मिस्र की सुंदरता देखकर खुश होते थे।”

ज़ाहिर है कि यहाँ प्राचीन बैबिलोनिया के इलाके की बात की गयी है।

शा., “मेरी कमर दर्द से भर गयी है।”

या “पर तेल मलो।”

शा., “दाँवे गए।”

मतलब “सन्‍नाटा।”

या “पठार; बंजर इलाके।”

शा., “जंगल में।”

शा., “एक साल, जैसे मज़दूरों के होते हैं।” मज़दूरी का समय पहले से तय होता था, एक भी दिन घटाया-बढ़ाया नहीं जाता था।

ज़ाहिर है कि यहाँ यरूशलेम की बात की गयी है।

या “घोड़ों।”

शा., “का कवच उतार लिया।”

या “घोड़े।”

या “हिफाज़त।”

शा., “रहने की जगह।”

शा., “वज़न।”

या “शाखाएँ।”

यानी नील नदी की धारा।

या शायद, “बंदरगाह।”

शा., “दिन।”

या “धरती।”

या शायद, “सूख जाएगा।”

या “प्राचीन।”

या शायद, “सूख रही है।”

या “समुंदर।”

या “उजाले के इलाके।”

या “घूँघट।”

या “मिटा देगा।”

ज़ाहिर है, यह बात मोआब से कही गयी है।

या शायद, “जिनका मन हिलाया नहीं जा सकता।”

“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “समतल।”

यानी परमेश्‍वर और उसके नाम को याद करने, उसका ऐलान करने के लिए।

शा., “मेरे मुरदे।”

या शायद, “जड़ी-बूटियों (गुलखेर) पर पड़ी ओस।”

शब्दावली देखें।

ज़ाहिर है कि यहाँ इसराएल की बात की गयी है, जिसे एक औरत बताया गया है और जिसकी तुलना अंगूरों के बाग से की गयी है।

या “दाख-मदिरा में झाग उठ रहा है।”

ज़ाहिर है, यहोवा।

शब्दावली देखें।

यानी फरात नदी।

शब्दावली देखें।

ज़ाहिर है कि यहाँ राजधानी सामरिया की बात की गयी है।

या “शक्‍ति।”

शा., “नापने की डोरी।”

शा., “नापने की डोरी।”

या शायद, “के साथ दर्शन देखा है।”

दीवार वगैरह की सीध नापने का औज़ार।

या शायद, “जब वे समझेंगे तो उन पर खौफ छा जाएगा।”

या “पूरी धरती।”

या “को सुधारता है; सज़ा देता है।”

या “और जिसकी फायदा पहुँचानेवाली बुद्धि महान है।”

शायद इसका मतलब है, “परमेश्‍वर की वेदी का अग्नि-कुंड।” ज़ाहिर है कि यहाँ यरूशलेम की बात की गयी है।

शा., “परदेसियों।”

या “कैसी टेढ़ी-मेढ़ी बातें करते हो!”

यानी शर्म और निराशा से।

शा., “अर्घ उँडेलते हैं,” ज़ाहिर है कि यहाँ करार करने की बात की गयी है।

शा., “मेरी पवित्र शक्‍ति।”

शब्दावली देखें।

या “की शिक्षा।”

या शायद, “हौद।”

या “सब्र के साथ इंतज़ार।”

या “उसका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।”

या शायद, “और उन्हें गंदी चीज़ कहेगा।”

जिसमें खट्टा साग मिला हो।

या “अपने लोगों की टूटी हड्डी जोड़ेगा।”

शा., “यहोवा का नाम।”

या “उसकी फूँक।”

या “के लिए खुद को शुद्ध करते वक्‍त।”

या “की धुन सुनते हुए।”

इस आयत में “तोपेत” एक लाक्षणिक जगह है जहाँ आग जलती है। यह विनाश की निशानी है।

या “घुड़सवारों।”

या “आग।”

या “ताकि अपने काम से परमेश्‍वर का अनादर करे।”

या “भले कामों में लगा भी रहता है।”

यहाँ अश्‍शूर की बात की गयी है।

शा., “बाज़ू।”

शा., “तुम्हारे दिनों में।”

या शायद, “यही परमेश्‍वर का दिया खज़ाना होगा।”

ज़ाहिर है, यहूदा के।

यहाँ दुश्‍मन की बात की गयी है।

या शायद, “सूख गया है।”

या “ऊँचा।”

या “के बारे में गहराई से सोचते।”

या “चप्पूवाले जहाज़ों।”

शा., “तेरी रस्सियाँ।”

या “उनका खून पहाड़ पर बहेगा।”

ज़ाहिर है कि यहाँ एदोम की राजधानी बोसरा की बात की गयी है।

एक किस्म का बगुला।

रात में निकलनेवाला एक पक्षी जो कुछ-कुछ उल्लू जैसा दिखता है।

शा., “अपने हाथ।”

या “प्रधान साकी।”

या “सीरियाई।”

या “बेइज़्ज़ती।”

शा., “बच्चेदानी के मुँह तक आ गए हैं।”

या शायद, “के बीच।”

या “नील की नहरें।”

या “इसे रचा था।”

यानी हिजकियाह।

या “बिखरे हुए दानों से हुई पैदावार खाओगे।”

शायद इन सीढ़ियों का इस्तेमाल एक धूप-घड़ी की तरह समय मापने के लिए किया जाता था।

“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

शा., “जीवितों के देश में।”

या शायद, “सारस।”

शा., “मेरा ज़ामिन बन जा।”

यानी परमेश्‍वर की कही बातों और कामों के कारण।

या “अपनी नज़रों से दूर कर दिया।”

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

शा., “से खुश हुआ।”

शा., “दिनों में।”

शा., “सच्चाई।”

शा., “जबरन मज़दूरी।”

या “दुगना।”

या “अपने कपड़े की तह में।”

अँगूठे के सिरे से छोटी उँगली के सिरे तक की दूरी। अति. ख14 देखें।

या शायद, “की थाह ली है।”

या “गोलाई।”

या “शासकों।”

या “मेरे सामने खामोश रहो।”

यानी अपनी सेवा में।

शा., “बीज।”

या “मातहत अधिकारियों।”

या “मानो वजूद में ही नहीं।”

या “शिक्षा।”

या “किसी और के साथ नहीं बाँटूँगा।”

शा., “द्वीप।”

या “शिक्षा।”

या “शिक्षा।”

ज़ाहिर है कि यहाँ झूठे देवताओं की बात की गयी है।

शायद यह भविष्य में होनेवाली सबसे पहली बातों का ज़िक्र हो।

या “भरोसा।”

एक खुशबूदार नरकट।

या “बगावत।”

शायद यहाँ कानून सिखानेवालों की बात की गयी है।

शा., “गर्भ।”

मतलब “सीधा-सच्चा जन,” इसराएल को दी गयी सम्मान की उपाधि।

शा., “प्यासे।”

शा., “पहाड़ी पीपल।”

यानी मूरतें।

शा., “घर।”

यानी हब्‌-एल-घर। एक सदाबहार पेड़ जो तेजपात की जाति का है।

या “सूखी लकड़ी।”

शा., “खोखली बातें करनेवालों।”

शा., “कमर ढीली करे।”

शा., “तेरी कमर कसूँगा।”

या “अपने बनानेवाले।”

या शायद, “या क्या मिट्टी कह सकती है, ‘तेरी बनायी इस चीज़ में तो हत्था ही नहीं’?”

या “तूने किस लिए प्रसव-पीड़ा सही?”

शा., “की सारी सेना।”

या शायद, “के मज़दूर।”

या शायद, “के व्यापारी।”

या शायद, “सुनसान रहने के लिए।”

यानी जानवरों पर लदी मूरतें।

या “मकसद; फैसला।”

या “मैंने जो तय किया है; फैसला।”

या शायद, “मेरे सामने कोई भी आए, मैं कृपा नहीं करूँगा।”

या शायद, “जबकि।”

या “और तू अपने मंत्र से उसे दूर नहीं कर पाएगी।”

या शायद, “जो आकाश को बाँटते हैं; ज्योतिषी।”

शा., “अपने-अपने इलाके में जाएँगे।”

या शायद, “यहूदा से।”

या “हमारी मूरत।”

या शायद, “चुन।”

या “किसी और के साथ न बाँटूँगा।”

शा., “उनमें से।”

या “मुझे अपनी पवित्र शक्‍ति देकर भेजा है।”

शा., “गर्भ से।”

या “इनाम।”

या शायद, “सूनी पहाड़ियों।”

या “तालीम पायी हुई ज़बान।”

या शायद, “की हिम्मत बँधा सकूँ।”

शा., “मेरा कान खोला।”

या “पर आस लगाए।”

या “तुम्हें प्रसव-पीड़ा के साथ पैदा किया।”

शा., “दिलासा देगा।”

शा., “बाज़ू।”

या “शिक्षा।”

शब्दावली देखें।

या “लोग हमारे परमेश्‍वर की जीत देखेंगे।”

शा., “अपना मुँह बंद रखेंगे।”

या शायद, “जो संदेश हमने सुना है उस पर।”

शा., “बाज़ू।”

“उसके” का मतलब परमेश्‍वर हो सकता है या कोई इंसान, जो यह सब देख रहा है।

या शायद, “लोग उससे अपना मुँह फेर लेते थे।”

शा., “उसे ले लिया गया।”

या “उसकी ज़िंदगी के बारे में जानना चाहा?”

शा., “जीवितों के देश में।”

शा., “उसे मार पड़ी।”

या “हिंसा।”

या “दुष्टों के साथ दफनाने के लिए वह अपनी जगह देगा।”

शा., “अमीर आदमी।”

या “यहोवा को यह भाया।”

शा., “बीज।”

या “यहोवा को जो मंज़ूर है।”

शा., “उँडेल दी।”

या “बच्चे।”

या “मालिक।”

या “मालिक।”

या “बच्चे।”

या “अपने खून-पसीने की कमाई।”

या “स्मारक।”

या “जी।”

यानी मौत ने छीन लिया है।

या शायद, “मुसीबतों से बचाने के लिए।”

यानी कब्र में।

सिय्योन या यरूशलेम नगरी की बात की गयी है।

या “खुद को दिलासा दूँगा?”

शायद मूर्तिपूजा की बात की गयी है।

या शायद, “राजा।”

शा., “तू नहीं थकी।”

शा., “इंसान का मन।”

या “खुशी।”

या “ज़मीन का मज़ा लेने दूँगा।”

या “ईमानदारी।”

या “ईमानदारी।”

या “से जीत हासिल की।”

या “जीत।”

या “तेरे भोर के उजाले।”

शा., “तू।”

या “पहले की तरह आ रहे हैं।”

या “शोभा बढ़ सके।”

या “दौलत।”

या शायद, “चटक लाल रंग के।”

या “जीत दिलायी।”

या “उसकी हाज़िरी में रहनेवाला स्वर्गदूत।”

शा., “उस पर।”

या “वीराने।”

या “खूबसूरत।”

या “भटका दिया?”

शा., “बना दिया।”

या “सब्र के साथ इंतज़ार करनेवालों।”

या “रचनेवाला।”

या “खूबसूरत।”

या शायद, “पहरा देने की झोंपड़ियों।”

या “घिनौनी।”

या शायद, “वरना मेरी पवित्रता तुझे मिल जाएगी।”

शा., “आशीष।”

शा., “वह।”

या “विश्‍वासयोग्य।” शा., “आमीन के।”

या “विश्‍वासयोग्य।” शा., “आमीन के।”

या शायद, “और जो सौ की उम्र तक नहीं पहुँचता वह शापित माना जाएगा।”

शा., “बीज।”

या “बातें जानने के लिए बेताब रहता है।”

या शायद, “जो किसी मूरत की बड़ाई करता है।”

या “बातें जानने के लिए बेताब रहनेवालो।”

या “खेलाया।”

या “की ताकत।”

शा., “बीज।”

या “मेरी उपासना।”

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